18/04/2025 : रामदेव की पोलखोल | सरकार झुकी वक़्फ़ एक्ट पर | वज़न और शुगर दोनों घटाएगी नई गोली | नौकरी को लेकर बढ़ती फ़िक्र | कॉमेडी अब ‘संस्कारी’ होगी | दूर ग्रह में जीवन | गूगल को अदालती फटका
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
बीरेन सिंह के ऑडियो की जांच पूरी
जज “सुपर पार्लियामेंट” की तरह काम कर रहे हैं
सिर्फ 99 पैसे में मोटे मुनाफे वाली कंपनी टीसीएस को 21.16 एकड़ जमीन
नड्डा की जगह कौन, बीजेपी फैसले के करीब
अमेरिकी यूनिवर्सिटी में भाषण देने से प्रोफेसर अपूर्वानंद को डीयू ने रोका
निगम ने फरीदाबाद में 50 साल पुरानी मस्जिद ढहाई
‘मैंने गूगल में दशकों काम किया. अब जो यह कर रहा है, उससे घिन आती है'
हरकारा विशेष
कहीं रसूख का इस्तेमाल, कहीं कानून से किनारा
जानते कितना हैं योग और आयुर्वेद की दुकान चलाने वाले रामकिशन यादव को आप?
गौरव नौड़ियाल
रूह अफ़ज़ा शरबत को लेकर नफरती बयान देने का वीडियो जारी होने के बाद ‘हरकारा’ ने पतंजलि आयुर्वेद कंपनी के मालिक और खुद को योग गुरु बताने वाले रामदेव के बारे में थोड़ा रिसर्च और किया और पिछले कई सालों से उनके संग चल रहे विवादों की एक लिस्ट बनाई है. किसी और देश में ये सब होता, तो कानून कब का उन्हें टांग चुका होता. ये रामदेव के बारे में जितना है, उतना ही हम सबके बारे में भी है, जो न सिर्फ इस तरह की बेवकूफियों, भ्रष्टाचार, झूठ, छलावे और दुष्प्रचार को सह रहे हैं, बल्कि उसे बढ़ावा और चढ़ावा भी दिये जा रहे हैं. यह फेहरिस्त पूरी नहीं है. पर इसकी जरूरत है. ताकि सनद रहे और आगे आने वाली पीढ़ियां भी हमें आश्चर्य से देखें कि रामदेव को ये सब कैसे करने दिया गया. आपके होते हुए.
साधारण से जोगी से जेट वाले कारोबारी बाबा तक रामदेव के इस सफर में घालमेल ही घालमेल है. रामदेव को साल 2014 के लोकसभा इलेक्शन में भाजपा का चुनाव प्रचार करने के एवज में अलग-अलग राज्यों में न केवल बेशुमार जमीनें मिली, बल्कि पोस्ट ऑफिस से माल की बिक्री से लेकर फौज की कैंटीन तक रामदेव की धमक बढ़ी. रामदेव के विज्ञापनों से बंधे बड़े-बड़े मीडिया हाउसेज ने रामदेव के प्रोडक्ट पोस्ट ऑफिस से बेचने की खबरों को ऐसे प्रसारित किया, मानों भारत सरकार की कोई महत्वाकांक्षी योजना हो. रामदेव के ही विज्ञापनों का असर है कि बाबा के बड़े-बड़े कांड हो जाने पर भी मुख्यधारा के मीडिया में अक्सर सन्नाटा ही पसरा रहता है. ये एक किस्म से रामदेव के कारोबार को सीधा समर्थन देना था.
हालांकि, फौज ने प्रोडक्ट की गुणवत्ता को देखकर जल्द ही पतंजलि के कुछ उत्पादों से हाथ खींच लिए थे. रामदेव पर सरकार किस कदर मेहरबान थी, उसे समझने के लिए जरा 'जनसत्ता' की साल 2017 की इस हेडलाइन को देखिए- 'नरेंद्र मोदी राज के तीन साल में बाबा रामदेव की ‘पतंजलि’ को मिली 2000 एकड़ जमीन, 300 करोड़ की छूट भी'!
बड़े मीडिया हाउसेज भले ही विज्ञापनों की चमक में खबरों की नब्ज़ ढूंढ़ने में नाकामयाब हों, लेकिन रामदेव के खिलाफ गुमनाम स्वतंत्र पत्रकारों की रिपोर्ट से यूट्यूब पर कई जिंदा दस्तावेज़ मौजूद हैं, जहां पीड़ित खुद बता रहे हैं कि कैसे रामदेव के साम्राज्य विस्तार ने उन्हें न्याय के दरवाजे तक से वंचित कर दिया है. बाबा रामदेव पर हरिद्वार में जमीनें कब्जाने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन बाबा की धमक और पहुंच के आगे पीड़ित हासिल कुछ नहीं कर पा रहे. हां, कभी कोई गुमनाम पत्रकार उनसे मिलता है तो वो साल 2007 से अपनी खरीदी हुई जमीनों और अब खंडहर हो रहे घरों के दु:ख के बीच, कानून का मजाक उड़ाती हुई रामदेव की कहानी सुना देते हैं.
ऋषिकेश और हरिद्वार की सड़क, घाट, बाजारों में घूमकर जड़ी बूटियां बेचने वाले रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव आज ऐसे ही 'पूछ फाड़ लेगा क्या' की धमकी नहीं देते, बल्कि अपनी ऊंची राजनीतिक रसूख का उपयोग बाबा ने अपने से छोटे लोगों को कुचलने के लिए कई दफा किया है.
पहुंच रामदेव की, गुंडागर्दी भाई राम भरत की
योगगुरु बाबा रामदेव के भाई राम भरत पर पतंजलि योगपीठ में काम करने वाले एक युवक के अपहरण और मारपीट का आरोप भी लगा और उसकी ‘भूल’ महज इतनी थी कि वह पतंजलि से काम छोड़कर कहीं और चला गया था. इसके अलावा साल 2015 में फ़ूड पार्क में काम की मांग कर रहे स्थानीय ट्रक यूनियन के प्रदर्शनकारियों और पतंजलि कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प में ट्रक ड्राइवर दलजीत सिंह की मौत के बाद उस पर हत्या का आरोप लगाया गया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. दिलचस्प बात तो ये है कि ट्रक ड्राइवर की हत्या में आरोपी, गुंडागर्दी करने वाला और फैक्ट्री में मजदूरों को बंधक बनाकर पीटने वाला रामभरत यादव पतंजलि के उसी आयुर्वेदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट का सीईओ है, जिसका उद्घाटन करने भारत के प्रधानमंत्री पहुंच जाते हैं. गुजरी जनवरी में ही पतंजलि आयुर्वेदिक लिमिटेड यूनिट-3 के डिप्टी मैनेजर को बंधक बनाकर मारपीट करने और डरा-धमकाकर संपत्ति हड़पने के मामले में अदालत ने आठ लोगों के खिलाफ नोटिस जारी किए थे, जिनमें बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव का भाई रामभरत भी शामिल था. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि धर्म और गुंडागर्दी के दम पर पतंजलि कैसे कानूनों का खुला मखौल उड़ा रही है.
‘न्यूजलॉन्ड्री’ की एक रिपोर्ट कहती है कि रामदेव के परिवार को जानने वाले 24 वर्षीय दीपक सिंह ने आरोप लगाया, "उन्होंने देश के लिए जो कुछ भी किया हो, उन्होंने यहां के लोगों के लिए कुछ नहीं किया. उनके परिवार के सदस्यों ने गांव की पंचायत की जमीन हड़पने की कोशिश की है. उन्होंने एक सरकारी तालाब पर कब्जा कर लिया है और किसी को वहां से मिट्टी भी नहीं लेने देते." एक बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया कि सैदलीपुर में, जिसकी आबादी करीब 3,000 है, ज़्यादातर शिक्षित लोग बेरोज़गार हैं, “लेकिन कोई भी पतंजलि नहीं जाना चाहता”. “कोई भी उन्हें अपना नहीं मानता. रामदेव और उनके परिवार की हालत इतनी खराब है कि अगर वे सरपंच का चुनाव लड़ते हैं, तो उनके परिवार के अलावा कोई भी उन्हें वोट नहीं देगा.” रामदेव और उनके परिवार द्वारा कथित शोषण की ऐसी कहानियां सैदलीपुर में प्रचुर मात्रा में हैं, जो कि रामदेव का मूल गांव है.
'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' के लिए तपस्या की रिपोर्ट है कि रामदेव की संस्था ‘योगक्षेम संस्थान’ ने वर्षों तक कोई चैरिटी नहीं की, बल्कि टैक्स-फ्री ढांचे का उपयोग निवेश पार्किंग के लिए किया. 2016 में स्थापित योगक्षेम संस्थान को योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में टैक्स में छूट दी गई थी. छह वर्षों तक इस संस्था ने कोई भी सामाजिक सेवा या चैरिटी का कार्य नहीं किया, बल्कि इसका उपयोग पातंजलि समूह की निवेश संपत्तियों को पार्क करने के लिए किया गया. संस्था को बालकृष्ण और अन्य कंपनियों से 2 करोड़ शेयर (₹79.8 करोड़ मूल्य) दान में मिले, पर ये शेयर पहले से बैंकों को गिरवी रखे गए थे, जिसका बाद में ट्रांसफर रद्द करना पड़ा. इसके बावजूद योगक्षेम को टैक्स छूट मिलती रही और जांच एजेंसियों की नजर से यह बची रही.
योगक्षेम संस्थान ने रुचि सोया (अब पातंजलि फूड्स) में निवेश को गुप्त रखने का माध्यम बनाया. 2020-21 में, योगक्षेम को 6 करोड़ शेयर रुचि सोया के (₹42 करोड़ मूल्य) दान में मिले, जिससे वह कंपनी का 20.28% मालिक बन गया. यह निवेश पहले दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट, फिर पातंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट और अंत में पातंजलि फूड एंड हर्बल पार्क्स प्रा. लि. को ट्रांसफर होता रहा, जिससे मालिकाना हक और लाभार्थी की पहचान छिपी रही. 2022-23 में योगक्षेम ने रुचि सोया से ₹30 करोड़ का डिविडेंड कमाया, जिसमें से केवल ₹19.43 करोड़ चंद अज्ञात संस्थाओं को दान में दिया गया, और ₹10.48 करोड़ टैक्स चुकाया. फिर भी, योगक्षेम 16.52% हिस्सेदारी रुचि सोया में रखे हुए है और अब भी चैरिटेबल संस्था का दर्जा रखता है.
हरियाणा में तो बाबा रामदेव और पतंजलि समूह द्वारा की गई कथित ज़मीन खरीद-फरोख्त और नीतिगत लाभ के कई मामले हैं, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं. ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ की ही एक रिपोर्ट कहती है कि 2015 में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की पेशकश की, जिसे रामदेव ने यह कहकर ठुकरा दिया कि "अब पीएम हमारे हैं, पूरा कैबिनेट हमारा है." रामदेव का बीजेपी से गहरा नाता, विशेषकर नरेंद्र मोदी को समर्थन देने के बाद, पतंजलि को नीतिगत लाभ मिला.
अरावली की ज़मीन में हेराफेरी : हरियाणा सरकार ने अरावली की पहाड़ियों में स्थित संवेदनशील वन भूमि को संरक्षण से बाहर रखा. सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों की अनदेखी की गई, ताकि ज़मीनें निजी हाथों में जाएं.
शेल कंपनियों के ज़रिए ज़मीन की खरीद-फरोख्त : रामदेव से जुड़ी कम से कम 14 कंपनियों और 2 ट्रस्टों ने फरीदाबाद के मंगर गांव में ज़मीन खरीदी और बेची. इन कंपनियों ने "औद्योगिक संयंत्र लगाने" के नाम पर ज़मीन ली, पर उद्योग नहीं लगाया. सिर्फ ज़मीन बेचकर भारी मुनाफा कमाया.
एक सौदा, 365% लाभ : "कंकाल आयुर्वेद प्रा. लि." नामक शेल कंपनी ने 2.66 करोड़ रुपये की ज़मीन 12.38 करोड़ में बेची. यह कंपनी कभी अपने घोषित उद्देश्य (आयुर्वेदिक उत्पाद बनाना) में सक्रिय नहीं रही.
नीति का दुरुपयोग : हरियाणा सरकार ने जानबूझकर जंगल क्षेत्र की पहचान को टालते हुए उन्हें "गैर मुमकिन पहाड़" के रूप में वर्गीकृत किया. इन वर्गों की ज़मीन पर संरक्षण कानून लागू नहीं होते, जिससे रियल एस्टेट का रास्ता साफ हो गया.
कानूनी खामियों का लाभ : 2023 में केंद्र सरकार ने "फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट" में संशोधन कर ‘डीम्ड फॉरेस्ट’ की रक्षा को हटा दिया. इससे ऐसी तमाम ज़मीनें, जिन्हें जंगल माना जा सकता था, अब कानूनी संरक्षण से बाहर हो गईं, जिसका सीधा लाभ पतंजलि और अन्य रियल एस्टेट समूहों को मिला.
पैसे का घुमाव : ज़मीन बेचकर जो पैसा आया, उसे अन्य पतंजलि कंपनियों में निवेश किया गया या ‘एडवांस’ के नाम पर लोगों को दिया गया. एक नेपाल की एयरलाइन (गुणा एयरलाइंस) में भी निवेश किया गया.
जवाबदेही से बचाव : सरकार और कंपनियों को भेजे गए सवालों के जवाब टालमटोल वाले थे. सबने वही कॉपी-पेस्ट जवाब भेजा कि “हमने सभी कानूनों का पालन किया है.”
पारदर्शिता की कमी : इन शेल कंपनियों की गतिविधियों की सार्वजनिक तौर पर कोई जांच नहीं हुई है. पिछली बार 2012 में यूपीए सरकार के समय इस प्रकार की जमीन लेन-देन पर सवाल उठे थे.
छुपा हुआ रियल एस्टेट साम्राज्य : योग और आयुर्वेद की आड़ में पतंजलि ने एक गुप्त रियल एस्टेट बिज़नेस खड़ा कर लिया है, जिसे अब तक जनता की नज़रों से दूर रखा गया है.
इसके अलावा भी रामदेव ने विज्ञान, उपभोक्ता और नैतिकता के साथ खासा घालमेल किया हुआ है.
कोरोनिल का दावा : 2020 में पतंजलि ने 'कोरोनिल' नामक उत्पाद को COVID-19 के इलाज के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे बाद में आयुष मंत्रालय ने केवल 'इम्यूनिटी बूस्टर' के रूप में मान्यता दी.
एफएसएसएआई लाइसेंस की कमी : 2015 में पतंजलि ने इंस्टेंट आटा नूडल्स लॉन्च किया वो भी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) से आवश्यक लाइसेंस प्राप्त किए बिना, जिसके कारण उन्हें कानूनी नोटिस का सामना करना पड़ा.
आंवला जूस और घी की गुणवत्ता : 2015 में कैन्टीन स्टोर्स डिपार्टमेंट ने पतंजलि के आंवला जूस को पीने के लिए अनुपयुक्त बताया और अपने स्टोर्स से हटा दिया. उसी वर्ष, हरिद्वार में पतंजलि घी में फंगस और अशुद्धियां मिलने की शिकायतें भी सामने आईं.
भ्रामक विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी : सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को भ्रामक विज्ञापनों के लिए फटकार लगाई और चेतावनी दी कि यदि ऐसे विज्ञापन जारी रहे तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
बिना शर्त माफी की अस्वीकृति : सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि उनके भ्रामक दावों से जनता को नुकसान हो सकता है.
एलोपैथी को 'मूर्खतापूर्ण विज्ञान' कहना : बाबा रामदेव ने एलोपैथी को 'मूर्खतापूर्ण और दिवालिया विज्ञान' कहा, जिससे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की.
डॉक्टरों पर आरोप : रामदेव ने दावा किया कि एलोपैथी दवाओं के कारण लाखों मरीजों की मौत हुई है, न कि ऑक्सीजन की कमी से, जिससे चिकित्सा समुदाय में आक्रोश उत्पन्न हुआ.
बच्चों के लिए उत्पाद विवाद : "शिशु केयर किट" को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) द्वारा बिना अनुमोदन के बेचे जाने के आरोप.
गाय के दूध विवाद : मदर डेयरी और अमूल पर भ्रामक दावे करने के आरोप.
विज्ञापन विवाद : कई गैर-वैज्ञानिक और अतिशयोक्तिपूर्ण दावों के लिए एडवरटाइज़िंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) द्वारा आलोचना.
स्पष्ट लेबलिंग का अभाव : कुछ उत्पादों पर पूर्ण सामग्री सूची का अभाव.
नेपाल में पतंजलि उत्पादों पर प्रतिबंध : नेपाल के ड्रग रेगुलेटर ने योग गुरु रामदेव के पतंजलि उत्पादों का निर्माण करने वाली दिव्य फार्मेसी को ब्लैक लिस्ट कर दिया है. अब ये कंपनी नेपाल में अपनी दवा नहीं बेच पाएगी. नेपाल ने इस कंपनी को बैन करने के पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मानदंडों का पालन नहीं करने का हवाला दिया, हालांकि भारत में बाबा धड़ल्ले से कुछ भी बेचता है और सालों से लैबों में एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई-कई उत्पाद टेस्ट में फेल हो रहे हैं.
आयकर विभाग विवाद : 13 साल पहले की बात है जब आयकर विभाग ने बाबा रामदेव से जुड़े ट्रस्टों की आय वर्ष 2009-10 में 120 करोड़ रुपए आंकी और इसके आधार पर ट्रस्ट से 58 करोड़ रुपए का कर मांगा. बाबा से जुड़े ट्रस्टों को मिलने वाली छूट भी समाप्त कर दी गई थी. यह छूट ट्रस्टों को कल्याणकारी व धर्मार्थ कार्यों के लिए दी जाती थी, लेकिन जैसे ही बाबा रामदेव व अन्ना हजारे ने दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला था, उत्तराखंड में रामदेव के काले कारनामें एक के बाद एक बाहर आने लगे थे. टैक्स पर छूट लेकर रामदेव एक ओर धंधा बढ़ाता रहा और दूसरी ओर सरकार बदलते ही तमाम तरह की रियायतें हासिल करने की ताकत पा ली.
भूमि अधिग्रहण विवाद : सबसे चौंकाने वाला है बार-बार बाबा रामदेव का जमीनों को कब्जाने या हेर-फेर में उछलने वाला नाम, लेकिन इसके बावजूद पसरी चुप्पी. मानों बाबा के आगे कानून नतमस्तक हो. पिछले कुछ साल पहले छोटानागपुर लॉ कॉलेज की ओर से सरकार को जमीन देने के लिए दिए गए आवेदन की अनदेखी कर झारखंड सरकार ने पतंजलि योगपीठ को दे दी थी. यहां रामदेव ने अस्पताल बनाने का झांसा देकर औने-पौने दाम पर जमीन ले ली थी.
न्यूजलॉन्ड्री ने तो बाबा के जमीन कब्जाने पर ही एक पूरी रिपोर्ट की हुई है. बसंत कुमार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है- 'उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में तेलीवाला नाम का एक गांव है. तेलीवाला, औरंगाबाद और इसके आस पास के गांवों में सैकड़ों बीघा जमीन पतंजलि के पास है. एक विश्व प्रसिद्ध योग गुरु खासकर जो एक समय में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला चुका है, उसके द्वारा जमीनें खरीदने के लिए ऐसा कुछ भी किया जा सकता है, यह विश्वास से परे लगता है. कहीं ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा तो कहीं बरसाती नदी को भरकर कब्जा. कहीं दलितों की जमीन खरीदने के लिए दलितों को ही मोहरा बनाया गया.'
ऐसे ही स्वामी रामदेव से जुड़ी पतंजलि योग लिमिटेड को नोएडा में ‘फूड पार्क’ स्थापित करने के लिए दी गई 4,500 एकड़ जमीन पर भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामला पहुंचा. हाई कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी से पूछा था कि क्या फूड पार्क स्थापित करने के लिए रामदेव, उनके किसी सहयोगी या उनकी कंपनी को परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जमीन आवंटित की गई थी? असफ खान नाम के व्यक्ति ने हाई कोर्ट में याचिका डालकर पतंजलि को जमीन आवंटन पर सवाल उठाए थे. याचिका में कहा गया था कि इस जमीन पर लगे 600 पेड़ काटे जाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा.
अवैज्ञानिक बयान विवाद : गर्भ में बच्चे के लिंग चयन के बारे में अवैज्ञानिक दावे. फिर बाद में 'पुत्रजीवक बीज' दवा को लेकर उठे विवाद पर बाबा रामदेव ने सफाई भी पेश की थी.
काला धन विवाद : राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर काले धन से संबंधित बयानों को लेकर विवाद. रामदेव ने साल 2012 में काला धन को लेकर ट्वीट किया था कि काला धन वापस आने के बाद पेट्रोल 30 रुपए प्रति लीटर बिकने लगेगा.
GST चोरी के आरोप : पतंजलि पर कर चोरी के आरोप और टैक्स अधिकारियों द्वारा जांच के एक-दो नहीं, बल्कि कई मामले हैं. जीएसटी इंटेलीजेंस महानिदेशालय (DGGI) ने पतंजलि ग्रुप की कंपनियों - पतंजलि आयुर्वेद और पतंजलि फूड्स को जीएसटी पेमेंट न करने और गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्लेम करने के लिए 19 अप्रैल, 2024 को पतंजलि ग्रुप की कंपनियों- पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और पतंजलि फूड्स लिमिटेड को दो कारण बताओ नोटिस भेजे थे. डायरेक्टर जनरल ऑफ गुड्स एंड सर्विस टैक्स इंटेलीजेंस जीएसटी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी है, जो देशभर में जीएसटी की चोरी पर नजर रखती है.
साल 2012 में भी सरकार ने योग गुरु रामदेव द्वारा चलाए जाने वाले ट्रस्ट योग शिविरों के लिए कथित तौर पर सेवा कर के भुगतान के संबंध में पांच करोड़ रुपये का डिमांड नोटिस जारी किया था. अधिकारियों ने तब कहा था कि हरिद्वार के पतंजलि योग पीठ और दिव्य योग ट्रस्ट द्वारा आयोजित शिविर वाणिज्यिक गतिविधि है, इसलिए राजस्व विभाग ने योग सीखने वाले व्यक्तियों से आयोजित शुल्क पर 5.14 करोड़ रुपये का नोटिस जारी किया गया.
12 साल पहले योगगुरु रामदेव के फर्मों पर सेंट्रल एक्साइज और कस्टम विभाग के अधिकारियों ने छापेमारी की थी और तब अधिकारियों ने दावा किया था कि छापे के दौरान 20 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी सामने आई. छापेमारी में पता चला है कि पतंजलि के कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स पर एक्साइज ड्यूटी अदा नहीं की गई थी.
भ्रामक प्रमाणपत्र विवाद : कुछ उत्पादों पर लगाए गए "प्रमाणित" या "अनुमोदित" जैसे दावों की वैधता पर सवाल.
शुद्धता से नीचे का कतई दावा न करने वाले बाबा का घी तक मिलावटी निकला. पतंजलि ब्रांड गाय के घी का सैंपल फेल पाया गया है. यह सैंपल उत्तराखंड राज्य की प्रयोगशाला के बाद केंद्रीय प्रयोगशाला में भी सैंपल फेल पाया गया. जिसके बाद टिहरी जनपद के खाद्य सरंक्षा और औषधि विभाग के द्वारा पतंजलि कंपनी के खिलाफ एडीएम कोर्ट में वाद दायर किया गया.
अतिरंजित विज्ञापन दावे : वजन घटाने और रोग निवारण के दावों पर नियामक संस्थाओं द्वारा आपत्ति.
पतंजलि नूडल्स विवाद : खाद्य सुरक्षा मानकों के उल्लंघन के आरोप और बाद में वापसी.
मधुमेह उपचार दावा विवाद : मधुमेह को ठीक करने के दावों पर चिकित्सा संस्थानों द्वारा आपत्ति.
प्रतिस्पर्धी व्यवसायों पर अनुचित टिप्पणियां : अन्य FMCG कंपनियों के खिलाफ विवादास्पद बयानबाजी. हाल ही में ‘शरबत जिहाद’ का मामला, जो अब तूल पकड़ चुका है.
पतंजलि और बाबा रामदेव को विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जो ज्ञात भूमि आवंटन या लीज पर दी गई हैं, उनमें कुछ इस प्रकार हैं :
हरिद्वार, उत्तराखंड : पतंजलि योगपीठ और विश्वविद्यालय के लिए बड़े पैमाने पर भूमि आवंटन
नोएडा, उत्तर प्रदेश : पतंजलि फूड और हर्बल पार्क के लिए भूमि आवंटन, जहां रियायती दरों पर जमीन दी गई.
महाराष्ट्र : विदर्भ क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण इकाई और अन्य परियोजनाओं के लिए भूमि.
असम : पतंजलि हर्बल और फूड पार्क के लिए जमीन.
मध्य प्रदेश : औषधीय और खाद्य उत्पादों के लिए विभिन्न स्थानों पर भूमि आवंटन.
छत्तीसगढ़ : जड़ी-बूटी खेती और औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि लीज.
हरियाणा : कृषि और औद्योगिक प्रयोजनों के लिए भूमि आवंटन.
राजस्थान : विशेष आर्थिक क्षेत्र और औद्योगिक इकाइयों के लिए जमीन
गुजरात : औद्योगिक इकाइयों के लिए भूमि आवंटन
इनमें से कई भूमि आवंटन रियायती दरों पर किए गए और कुछ मामलों में विवादास्पद रहे हैं, जहां आरोप लगाया गया कि सामान्य प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया या विशेष लाभ दिए गए. हालांकि, सरकारों ने इन्हें आमतौर पर निवेश और रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहन के रूप में न्यायोचित ठहराया है. कुछ मामलों में, भूमि के उपयोग या आवंटन की शर्तों के उल्लंघन के आरोप भी लगे हैं, जिससे विवाद उत्पन्न हुए हैं. कुल मिलाकर बाबा की दादागिरी सिर्फ दूसरी कंपनियों को धर्म के नाम पर बदनाम करने या अपना माल बेचने के लिए एलोपैथी को निशाने पर लेने और भ्रामक दावों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बाबा के साम्राज्य की नींद में मजदूरों की पिटाई से लेकर जमीनें कब्जाने और सरकारी रसूख का इस्तेमाल कर टैक्स चोरी के भी बेशुमार किस्से ही किस्से हैं. भारत का कानून कभी बाबा को शिकंजे में लेगा, ये जरूर देखने वाली बात होगी.
वक़्फ़ एक्ट के दो प्रावधान फिलहाल होल्ड पर
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार ने बुधवार को कोर्ट को बताया कि वह वक़्फ़ अधिनियम, 2025 के कम से कम दो विवादास्पद प्रावधानों— ‘वक़्फ़ बाय यूज़र’ की अवधारणा और वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व—को अगले सप्ताह तक रोक देगी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा, “मेरी विनती है... कृपया मुझे एक सप्ताह का समय दें, और मैं आपके समक्ष वादा करता हूं कि एक सप्ताह के भीतर मेरी प्रारंभिक प्रतिक्रिया, कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ और विधियों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा... यह ऐसा मामला नहीं है, जिस पर आप मान्यवर प्राथमिक दृष्टि में ही विचार करना चाहेंगे.”
उन्होंने यह भी कहा कि जब तक सरकार की लिखित दलीलें कोर्ट के समक्ष नहीं आ जातीं, तब तक इन मुख्य प्रावधानों को लागू नहीं किया जाएगा. इसके बाद, सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामला अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई. मेहता ने तर्क दिया कि कोर्ट को केंद्र सरकार को लिखित दलीलें प्रस्तुत करने का अवसर दिए बिना कोई “कठोर कदम” (जैसे कि अंतरिम स्थगन) नहीं उठाना चाहिए.
इस प्रकार, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया है कि वक़्फ़ अधिनियम, 2025 के ‘यूज़र द्वारा वक़्फ़’ और वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व से जुड़े प्रावधानों को फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा, और सरकार अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया व दस्तावेज़ एक सप्ताह में कोर्ट के समक्ष रखेगी.
ये दोनों मुद्दे उन तीन मुद्दों में शामिल हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल को चिन्हित किया था. कोर्ट ने यह भी कहा कि इन प्रावधानों के संचालन पर रोक लगाई जा सकती है. 'वक़्फ़-बाय-यूज़र' वह ज़मीन होती है, जिसका लंबे समय से मुस्लिम धार्मिक या चैरिटेबल कार्यों के लिए उपयोग होता आया है. ऐसी ज़मीन को वक़्फ़ माना जाता है, भले ही वह आधिकारिक रूप से वक़्फ़ के रूप में पंजीकृत न हो.
दूसरा प्रावधान, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया, वह ज़िला कलेक्टर के अधिकारों से जुड़ा है. 2025 के कानून के अनुसार, यदि ज़िला कलेक्टर किसी संपत्ति को सरकारी ज़मीन के रूप में चिन्हित करता है, तो वह ज़मीन वक़्फ़ संपत्ति नहीं मानी जाएगी, जब तक कि कोर्ट उसका अंतिम निर्णय न कर दे. सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि कलेक्टर अपनी जांच कर सकते हैं, लेकिन उनके निर्णय का प्रभाव फिलहाल स्थगित रखा जा सकता है.
सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने आदेश में दर्ज किया कि "प्रतिवादी एक संक्षिप्त जवाब दाखिल करना चाहेंगे, जो 7 दिनों के भीतर प्रस्तुत किया जाएगा.
उन्होंने (मेहता ने) आगे कहा कि अगली सुनवाई की तारीख तक, वे न्यायालय को आश्वस्त करते हैं कि संशोधित प्रावधानों की धारा 9 और 14 के तहत परिषद और बोर्ड में कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी. यह भी कहा गया कि अगली सुनवाई (5 मई) की तारीख तक, वक़्फ़, जिसमें 'वक़्फ़-बाय-यूज़र' भी शामिल है, चाहे वह अधिसूचना के माध्यम से घोषित हो या पंजीकरण के माध्यम से, उसकी पहचान नहीं की जाएगी और न ही उसके स्वरूप में कोई परिवर्तन किया जाएगा. “हम इस बयान को अभिलेख पर लेते हैं. प्रतिवादियों की ओर से उत्तर/काउंटर हलफनामा 7 दिनों के भीतर दायर किया जाए. उसके बाद 5 दिनों के भीतर उसका उत्तर दायर किया जाए,” सुप्रीम कोर्ट ने कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई में "निर्देश और अंतरिम आदेश" पारित किए जाएंगे और वह केवल पांच रिट याचिकाओं की सुनवाई करेगा, जो इस विवादित नए कानून को चुनौती देती हैं. याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे आपस में तय करें कि कौन-सी पांच याचिकाएं सुनी जाएंगी. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनौती अब किसी एक याचिकाकर्ता के नाम से नहीं, बल्कि इसे “री वक़्फ़ संशोधन अधिनियम” के नाम से पढ़ा जाएगा.
टाइप 2 डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए अब गोली ब्लड शुगर और वजन घटा सकती है!
'एनबीसी न्यूज' की रिपोर्ट है कि एलाइ लिली की एक नई गोली (ऑरफॉर्ग्लिप्रॉन), रोज़ लिये जाने पर जाती है, ने टाइप 2 डायबिटीज़ के मरीज़ों में ब्लड शुगर कम किया और वजन घटाया. ये वही GLP-1 दवाओं की कैटेगरी में आती है जैसे ओज़ेम्पिक और मौंजारो, लेकिन फर्क ये है कि ये इंजेक्शन नहीं, गोली है. हालांकि, ऑरफॉर्ग्लिप्रॉन को साप्ताहिक इंजेक्शन के बजाय गोली के रूप में लिया जा सकता है. एलाइ लिली के चीफ़ साइंटिफ़िक ऑफिसर डॉ. डैन स्कोवरॉन्स्की ने एक इंटरव्यू में कहा — “अब हर कोई GLP-1 दवाओं को जानता है, जो इंजेक्टेबल पेप्टाइड दवाओं के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी हैं, लेकिन अब हमने इसे एक नई प्रकार की दवा के रूप में विकसित किया है जिसे गोली के रूप में लिया जा सकता है.” अगर इसे मंज़ूरी मिलती है, तो अमेरिका में यह दूसरी मौखिक GLP-1 दवा होगी. पहली दवा रायबेलसस है, जो नोवो नॉरडिस्क कंपनी ने बनाया है. रायबेलसस को टाइप 2 डायबिटीज़ के लिए मंज़ूरी मिली हुई है. एलाइ लिली ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि फेज 3 क्लिनिकल ट्रायल में, ऑरफॉर्ग्लिप्रॉन ने 40 हफ्तों में A1C लेवल को प्लेसीबो की तुलना में 1.6% तक घटा दिया है. अमेरिकन डायबिटीज़ एसोसिएशन के अनुसार, A1C अगर 5.7% से कम हो तो वह सामान्य होता है; 6.5% या उससे अधिक डायबिटीज़ की सीमा में आता है; और इसके बीच का परिणाम प्री-डायबिटीज़ के अंतर्गत आता है. ट्रायल में भाग लेने वाले 65% से अधिक लोगों का A1C स्तर 40 हफ्तों के बाद 6.5% या उससे कम पाया गया. जिन प्रतिभागियों को दवा की सबसे अधिक खुराक दी गई, उन्होंने इस अवधि में 16 पाउंड (लगभग 7.9%) तक वजन कम किया.
नौकरी को लेकर फिक्रमंद होता भारत
71% कर्मचारी नौकरी को लेकर असुरक्षित, 59% चिंताग्रस्त और 47% हैं नाखुश
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि भारत भर में किए गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में कार्यस्थलों की एक चिंताजनक सच्चाई सामने आई है. 8,000 से अधिक कर्मचारियों पर आधारित इस सर्वे में ब्रांड विशेषज्ञ हरीश बिजूर ने पाया कि 71% वेतनभोगी कर्मचारी अपनी नौकरियों को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं, जबकि 59% को चिंता और 47% को काम में असंतोष या नाखुशी महसूस होती है. 40 से 59 वर्ष की आयु वर्ग के कर्मचारी इस असुरक्षा को सबसे अधिक महसूस कर रहे हैं. इसकी प्रमुख वजह है, बच्चों की शिक्षा, माता-पिता की स्वास्थ्य देखभाल, तकनीकी बदलाव और घटते हुए रोजगार के अवसरों के बीच संतुलन बनाने की चुनौती. यह रिपोर्ट भारतीय कार्य संस्कृति में बढ़ती अस्थिरता और मानसिक दबाव की ओर स्पष्ट संकेत देती है. यह सर्वेक्षण फिजिकल और वर्चुअल दोनों कार्यस्थलों पर आधारित था और इसमें आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, टेलीकॉम, फार्मा समेत 12 क्षेत्रों के स्थायी कर्मचारियों को शामिल किया गया, हालांकि गिग वर्कर्स को नहीं.
बीरेन सिंह का ऑडियो के जांच पूरी : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि मणिपुर की लीक ऑडियो को लेकर फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री की रिपोर्ट तैयार है और जल्द ही उसे कोर्ट में पेश कर दिया जाएगा. इस ऑडियो में कथित तौर पर पूर्व सीएम एन बीरेन सिंह की आवाज है, जिसमें वे लोगों को हिंसा के लिए भड़काते सुनाई दे रहे हैं. केंद्र सरकार ने कहा कि रिपोर्ट तैयार है और उसे जल्द ही सीलबंद लिफाफे में कोर्ट में पेश कर दिया जाएगा. सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील की दलील को मानते हुए सुनवाई 5 मई तक के लिए टाल दी. कुकी मानवाधिकार संगठन (KOHUR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में आरोप लगाया गया है कि लीक ऑडियो में पूर्व सीएम एन बीरेन सिंह की आवाज है, जिसमें वे हिंसा भड़काते सुनाई दे रहे हैं.
यूजीसी कार्यवाहक अध्यक्ष की नियुक्ति अधिनियम के विपरीत : केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में उच्च शिक्षा सचिव डॉ. विनीत जोशी को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया है. इस फैसले ने विवाद को जन्म दे दिया है. 11 अप्रैल को जारी आदेश में कहा गया है : “शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. विनीत जोशी को यूजीसी के नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति होने तक या यूजीसी के सदस्य बने रहने तक या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, यूजीसी के अध्यक्ष पद का अतिरिक्त प्रभार सौंपा जाता है.” हालांकि, यह आदेश यूजीसी अधिनियम के अध्याय II के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है. यूजीसी अधिनियम की धारा 5(2) में स्पष्ट रूप से कहा गया है, “अध्यक्ष का चयन ऐसे व्यक्तियों में से किया जाएगा जो केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार के अधिकारी नहीं हैं.” इसके अलावा, उसी अध्याय की धारा 6(3) में स्पष्ट रूप से प्रावधानित किया गया है कि आकस्मिक रिक्त स्थान की स्थिति में, चाहे वह मृत्यु, त्यागपत्र, बीमारी या अक्षमता के कारण हो, उपाध्यक्ष ही स्वतः कार्यवाहक अध्यक्ष की भूमिका ग्रहण करेगा. इस प्रावधान में कोई अस्पष्टता नहीं है. सरकार के जानकार सूत्रों ने बताया, “यह पूरी तरह से अंतरिम व्यवस्था है, जो आकस्मिक रिक्ति से उत्पन्न नहीं हुई है. इसलिए, किसी अन्य यूजीसी अधिकारी या उपाध्यक्ष के कार्यभार संभालने का सवाल ही नहीं उठता. यूजीसी अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया उचित समय पर पूरी की जाएगी."
भारत में ‘ट्विन ट्रम्प टॉवर’ खड़े कर रहे : एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत के साथ व्यापार समझौतों पर बातचीत कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ 'ब्लूमबर्ग' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी पारिवारिक कंपनी ट्रम्प ऑर्गनाइजेशन ने चुपचाप गुरुग्राम में 51-मंज़िलों के जुड़वां लग्ज़री टॉवरों की एक नई परियोजना शुरू कर दी है, जिसकी अनुमानित बिक्री $409 मिलियन (लगभग ₹3,400 करोड़) बताई जा रही है. यह ट्रम्प ऑर्गनाइजेशन का भारत में पांचवां प्रोजेक्ट है और अमेरिका के बाहर सबसे बड़ा बाज़ार भी. हालांकि ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद के दौरान अपनी संपत्तियों को एक ट्रस्ट में स्थानांतरित कर दिया था, लेकिन नैतिकता विशेषज्ञ इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि विदेशी निवेश, खासकर भारत जैसे देश में जहां अमेरिका की तुलना में कम टैरिफ लगते हैं, कहीं अमेरिकी नीति को प्रभावित न करें. इस प्रोजेक्ट को लेकर एरिक ट्रम्प ने भारत के साथ "असाधारण साझेदारी" का जिक्र करते हुए इसे कंपनी के लिए एक मील का पत्थर बताया. यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जब अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में कई संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा चल रही है.
जज “सुपर पार्लियामेंट” की तरह काम कर रहे हैं : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई है, जिसमें उसने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय की थी. धनखड़ ने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं. उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है. जज “सुपर पार्लियामेंट” की तरह काम कर रहे हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि विरुद्ध राज्य सरकार के प्रकरण में विधेयकों के लिए एक माह की “समय सीमा” तय की थी. इसी तरह राष्ट्रपति के लिए तीन माह की सीमा तय की गई.
उपराष्ट्रपति ने गुरुवार को एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में कहा, “हमारे पास ऐसे जज हैं, जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका का कार्य करेंगे, जो “सुपर संसद” के रूप में भी कार्य करेंगे. लेकिन उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता.” धनखड़ ने सवाल किया, जस्टिस यशवंत वर्मा के घर अधजली नकदी मिलने के मामले में अब तक एफआईआर क्यों नहीं हुई? क्या कुछ लोग कानून से ऊपर हैं? यदि यह मामला किसी आम आदमी के घर होता, तो अब तक पुलिस और जांच एजेंसियां सक्रिय हो चुकी होतीं.
कॉमेडी को ‘संस्कारी’ बनाने का संघी संकल्प
कुणाल कामरा विवाद के बीच आरएसएस से जुड़े संस्कार भारती ने एक प्रस्ताव पारित कर ‘कॉमेडी विधाओं में भारतीय मूल्यों की पुनर्स्थापना’ का आह्वान किया है. उसने घोषणा की, “स्टैंड-अप कॉमेडी जैसे मौजूदा माध्यमों को अभद्र, असंवेदनशील और विवादास्पद विषयों से हटाकर भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर सभ्य, उद्देश्यपूर्ण और संचारी बनाना महत्वपूर्ण कदम होगा.” रिपोर्ट के अनुसार, उसने ‘धार्मिक प्रतीकों का मज़ाक उड़ाने, राष्ट्रीय नायकों की व्यंग्यात्मक आलोचना या सामाजिक प्रथाओं का मज़ाक उड़ाने’ की भी आलोचना की है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कुणाल कामरा को गिरफ्तारी से दिया अंतरिम संरक्षण : बॉम्बे हाईकोर्ट ने कथित तौर पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर पैरोडी बनाने वाले कुणाल कामरा को बड़ी राहत दी है. हाईकोर्ट ने कहा कि अगले आदेश तक कुणाल कामरा के खिलाफ कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए. उनका बयान दर्ज करने के लिए गिरफ्तारी की कोई जरूरत नहीं है. कॉमेडियन कुणाल कामरा ने याचिका दायर कर अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है.
यूट्यूबर के घर पर ग्रेनेड फेंका, सेना का जवान गिरफ्तार : पंजाब पुलिस ने एक आर्मी जवान को पिछले महीने जालंधर के एक यूट्यूबर के घर पर हैंड ग्रेनेड फेंकने वाले आरोपी को ऑनलाइन प्रशिक्षण देने के आरोप में गिरफ्तार किया है. स्थानीय अदालत ने उसे पांच दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया है. सूत्रों ने बताया कि मुक्तसर का रहने वाला 30 वर्षीय जवान सुखचरण सिंह 2015 में सेना में भर्ती हुआ था और वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में तीसरी सिख लाइट इन्फैंट्री में तैनात था. यूट्यूबर रोजर संधू के घर पर ग्रेनेड फेंकने वाले मुख्य आरोपी हार्दिक कंबोज से पूछताछ में आर्मी जवान का नाम सामने आया. सुखचरण ने आरोपी को वीडियो कॉल के जरिए ग्रेनेड पिन हटाने की ट्रेनिंग दी थी. इस मामले में अब तक नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है. ट्रेनिंग के बावजूद कंबोज ने पिन हटाए बिना ग्रेनेड फेंका, जिससे वह फट नहीं सका था.
सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल के टीचरों को राहत दी : पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 25 हजार से ज्यादा बर्खास्त शिक्षकों को राहत दी है. शीर्ष अदालत ने कहा- जिन शिक्षकों की नियुक्ति रद्द हुई है, वे नई चयन प्रक्रिया पूरी होने तक पढ़ाना जारी रख सकते हैं. बशर्ते, उनका नाम 2016 के घोटाले में नहीं आया हो. सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा, ‘बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन को 31 मई तक भर्ती प्रक्रिया का नोटिफिकेशन जारी करना होगा और 31 दिसंबर तक चयन प्रक्रिया पूरी करना होगी. अगर तय समय में प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो कोर्ट उचित कार्रवाई करेगा.
महाराष्ट्र के प्राथमिक स्कूलों में हिंदी अब अनिवार्य : महाराष्ट्र सरकार ने अपनी द्विभाषा नीति में परिवर्तन किया है और 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाना अनिवार्य कर दिया है. इससे पहले महाराष्ट्र में सिर्फ दो भाषाएं पढ़ाई जाती थी.
नड्डा की जगह कौन, बीजेपी फैसले के करीब
भाजपा अपने अगले अध्यक्ष की घोषणा से पहले संगठनात्मक फेरबदल को अंतिम रूप देने के करीब है. मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पार्टी अध्यक्ष और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा के आवास पर तीन घंटे से अधिक समय तक बैठक की. पार्टी के कुछ लोगों ने इसे सामान्य बैठक बताया, लेकिन सूत्रों के अनुसार, नेताओं ने पार्टी में होने वाले बदलावों पर चर्चा की. “द इंडियन एक्सप्रेस” में लिज़ मैथ्यू की रिपोर्ट के अनुसार बुधवार को शाह, सिंह और भाजपा के संगठन महासचिव बी.एल. संतोष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर संगठनात्मक बदलावों को अंतिम रूप दिया. बाद में शाह ने नड्डा से भी मुलाकात की, जिनका भाजपा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल समाप्त हो चुका है. भाजपा ने अब तक 15 राज्यों के अध्यक्षों के नाम तय कर लिए हैं, जबकि छह-सात और राज्यों के अध्यक्षों की घोषणा 19 अप्रैल तक होने की संभावना है. जिन राज्यों में इस सप्ताह के अंत तक नए अध्यक्षों की घोषणा हो सकती है, उनमें उत्तरप्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक शामिल हैं. भाजपा सूत्रों के अनुसार, नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नामांकन की प्रक्रिया 20 अप्रैल के बाद शुरू होने की संभावना है.
“द टेलीग्राफ” में जेपी यादव ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार रात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अचानक मुलाकात की, और लगभग उसी समय भाजपा के शीर्ष नेता पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के आवास पर कई घंटों तक बैठक कर रहे थे. इन दोनों बैठकों का एजेंडा पूरी तरह गोपनीय रखा गया. ये घटनाक्रम उस समय हुए जब भाजपा और उसकी वैचारिक मातृ संस्था आरएसएस के बीच अगले पार्टी अध्यक्ष के चयन और संभावित मंत्रिमंडल फेरबदल को लेकर गतिरोध बना हुआ है. भाजपा के कुछ वर्गों का कहना है कि नेतृत्व ने नए पार्टी अध्यक्ष के चुनाव और संगठन व सरकार में बदलाव की तैयारी के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है.
एक भाजपा नेता ने कहा, "नए भाजपा अध्यक्ष के चुनाव के बाद पार्टी संगठन में बदलाव होंगे. कुछ पार्टी में काम कर रहे नेताओं को मंत्री बनाया जा सकता है और कुछ मंत्रियों को पार्टी में भेजा जा सकता है. "
नए पार्टी अध्यक्ष का चुनाव मोदी-शाह की जोड़ी के लिए चुनौतीपूर्ण बन गया है, क्योंकि आरएसएस नेतृत्व "मजबूत संगठनात्मक नेता" की मांग कर रहा है, न कि "रबर स्टैम्प" की. पिछले महीने मोदी की आरएसएस मुख्यालय यात्रा के बावजूद, अगले अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है. सहमति की कमी के कारण भाजपा नेतृत्व नए अध्यक्ष के चुनाव को टालता रहा है, ताकि मोदी की पसंद के नाम पर आरएसएस की मंजूरी मिल सके. वर्तमान अध्यक्ष नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो गया था, लेकिन वह अब तक विस्तार पर बने हुए हैं. पार्टी नेताओं का कहना है कि इससे पहले कभी भी कोई अध्यक्ष इतने लंबे समय तक विस्तार पर नहीं रहा. एक नेता ने कहा, "चुनाव अगले महीने की शुरुआत तक टल सकता है. " हालांकि, मंगलवार रात की बैठकों के बाद भाजपा के कुछ वर्गों ने दावा किया कि नए अध्यक्ष का नाम तय हो गया है और जल्द ही घोषणा की जाएगी.
शाह के करीबी एक भाजपा नेता ने कहा, "बैठकें इस बात का संकेत थीं कि नए पार्टी अध्यक्ष का नाम अंतिम रूप दे दिया गया है." नेता ने कहा कि मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री को अगला भाजपा अध्यक्ष बनाया जाएगा और दावा किया कि आरएसएस ने भी इसकी मंजूरी दे दी है.
हिंदू देवताओं की तस्वीरों वाले नैपकिन, रेस्टोरेंट मालिक गिरफ्तार : अलीगढ़ पुलिस ने हिंदू देवताओं की तस्वीरों वाले नैपकिन और टिशू पेपर इस्तेमाल करने के आरोप में एक मुस्लिम रेस्टोरेंट मालिक को गिरफ्तार कर लिया. यह गिरफ्तारी बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा रेस्टोरेंट में तोड़फोड़ के दो दिन बाद की गई. हालांकि, मोहम्मद सलीम, जो दशकों से चल रहे ख्वाजा होटल के मालिक हैं, को कुछ घंटों बाद जमानत मिल गई. बजरंग दल का आरोप था कि रेस्टोरेंट में "भारत माता की आरती" लिखे हुए और हिंदू देवताओं की तस्वीरों वाले नैपकिन और टिशू पेपर इस्तेमाल हो रहे थे. सलीम ने कहा कि वह नैपकिन खुद नहीं बनाते और अलग-अलग सप्लायर्स से लेते हैं, लेकिन विवादित नैपकिन हटा दिए गए हैं और भविष्य में सावधानी बरती जाएगी.
निगम ने फरीदाबाद में 50 साल पुरानी मस्जिद ढहाई, अदालत के आदेश का भी इंतजार नहीं किया : नगर निगम ने मनमाने ढंग से हरियाणा के फरीदाबाद जिले में बड़खल गांव स्थित 50 साल पुरानी अक्सा मस्जिद को तीन सहायक पुलिस आयुक्तों और भारी पुलिस बल की मौजूदगी में 50 साल पुरानी अक्सा मस्जिद को मनमाने ढंग से गिरा दिया. वह भी इसके बावजूद कि मस्जिद का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इससे स्थानीय लोगों में आक्रोश देखा जा रहा है. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला नहीं आया था, फिर क्यों इतनी जल्दबाजी में मस्जिद गिरा दिया गया? वे आगे कहते हैं, “पहले उन्होंने कुछ छोटी दुकानें गिराईं, फिर वे मस्जिद पर आ गए. यह जानबूझकर किया गया. हमें समय भी नहीं दिया गया.”
यह मस्जिद पांच दशक पहले गांव के पूर्व सरपंच द्वारा दान की गई जमीन पर बनाई गई थी. अचानक से हाल ही में नगर निगम ने इसे अवैध कहना शुरू किया. वहीं नगर निगम अधिकारियों ने कहा कि यह अचानक लिया गया निर्णय नहीं है. मस्जिद सार्वजनिक भूमि पर पहचानी गई कई अवैध संरचनाओं में से एक थी.
सुप्रीम कोर्ट जांच करेगा कि क्या मुसलमानों पर शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून लागू हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस विवादास्पद मुद्दे पर विचार करने पर सहमति जताई कि क्या मुसलमानों धर्म को त्यागे बिना शरीयत के बजाय पैतृक संपत्तियों से निपटने के लिए धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत शासित किया जा सकता है. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने केरल के त्रिशूर जिले के निवासी नौशाद ने याचिका दायर कर कहा था कि वह इस्लाम छोड़े बिना शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत शासित होना चाहते हैं. पीठ ने याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है. पीठ ने इस मुद्दे पर लंबित समान मामलों के साथ याचिका को टैग करने का आदेश दिया.
सिर्फ 99 पैसे में मोटे मुनाफे वाली कंपनी टीसीएस को 21.16 एकड़ जमीन
आंध्र प्रदेश की मंत्रिमंडल ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को विशाखापत्तनम में 21.16 एकड़ जमीन आवंटित करने की मंजूरी दी है. इस जमीन पर कंपनी 1,370 करोड़ रुपये निवेश करके एक 'विकास केंद्र' बनाएगी. हैरानी की बात यह है कि सरकार ने यह जमीन महज 99 पैसे के नाममात्र शुल्क पर दी है, जबकि टीसीएस ने पिछले तिमाही में अकेले 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ कमाया है.
वित्तीय विशेषज्ञ देविना मेहरा ने इस सौदे पर सवाल उठाते हुए कहा, "जब टीसीएस जैसी कंपनी मार्केट प्राइस देने में सक्षम है, तो उसे जमीन की मार्केट कीमत क्यों नहीं चुकानी चाहिए?" उन्होंने इस नीति और गरीबों को मुफ्त अनाज या लड़कियों को साइकिल देने जैसी योजनाओं के विरोध के बीच दोहरे मापदंडों पर चिंता जताई. मेहरा के अनुसार, कॉर्पोरेट्स को कर छूट, सस्ती जमीन और टैक्स हॉलिडे जैसी सुविधाएं 'रिफॉर्म' बताई जाती हैं, जबकि गरीबों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा या भोजन सब्सिडी को 'फिस्कल प्रॉफ्लिगेसी' या 'रेवड़ी' कहकर खारिज किया जाता है.
मेहरा ने अपने लेख में इशारा किया कि प्रभुत्वशाली वर्ग के लिए कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती, सस्ती आईआईटी/आईआईएम शिक्षा या मुफ्त जमीन 'रिफॉर्म' हैं, लेकिन गरीबों की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करना 'फिजूलखर्ची' माना जाता है. उन्होंने कहा, "जिन लोगों ने सब्सिडी वाली शिक्षा पाकर विदेशों में बस गए, वे गरीबों को बस सब्सिडी देने पर आपत्ति करते हैं."
अमेरिका में धरा गया भारतीय मूल का डॉक्टर : 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि भारतीय मूल के डॉक्टर नील के. आनंद को अमेरिका की एक संघीय जूरी ने दोषी ठहराया है. उन पर आरोप था कि उन्होंने मरीज़ों को जरूरत से ज़्यादा और अनावश्यक दवाएं दीं और स्वास्थ्य बीमा योजनाओं जैसे कि मेडिकेयर, ओपीएम, इंडिपेंडेंस ब्लू क्रॉस (IBC) और एंथम से फर्जी दावों के ज़रिए करोड़ों डॉलर की रकम हासिल की. उन्होंने मरीज़ों को “गुडी बैग्स” नाम से दवाएं दीं, जो मेडिकल रूप से आवश्यक नहीं थीं और बदले में उन्हें नशीली दवाओं की पर्चियां दी जाती थीं. ये दवाएं उनकी खुद की फार्मेसी से दी जाती थीं. सबूतों के अनुसार, डॉक्टर आनंद ने मरीज़ों को ऑक्सिकोडोन जैसी नशीली दवाएं बिना किसी वैध कारण के दीं. इस साजिश में अनधिकृत मेडिकल इंटर्न्स भी शामिल थे, जो पहले से साइन किए गए ब्लैंक पर्चों का इस्तेमाल करते थे. उन्होंने सिर्फ 9 मरीज़ों के लिए 20,850 ऑक्सिकोडोन टैबलेट्स लिखीं. जांच की भनक लगने पर आनंद ने करीब $12 लाख की अवैध कमाई अपने पिता के नाम पर और अपनी नाबालिग बेटी के लाभ के लिए एक अकाउंट में ट्रांसफर की. आनंद को स्वास्थ्य देखभाल धोखाधड़ी और वायर फ्रॉड की साजिश, तीन मामलों में स्वास्थ्य देखभाल धोखाधड़ी, एक मामला मनी लॉन्ड्रिंग, चार मामले अवैध आर्थिक लेनदेन, मादक दवाओं की आपूर्ति की साजिश जैसी धाराओं में दोषी ठहराया गया है. डॉ. आनंद को 19 अगस्त को सजा सुनाई जाएगी और उन्हें 130 साल तक की अधिकतम सज़ा हो सकती है.
अमेरिकी यूनिवर्सिटी में भाषण देने से प्रोफेसर अपूर्वानंद को डीयू ने रोका
‘इंडियन एक्सप्रेस’ के लिए विधीशा कुंतामल्ला की रिपोर्ट है कि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के हिंदी विभाग के प्रोफेसर अपूर्वानंद को न्यूयॉर्क की यूनिवर्सिटी 'द न्यू स्कूल' में एक अकादमिक कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई. विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनसे उनके व्याख्यान का पाठ मांगा, जिसे देने से उन्होंने इनकार कर दिया. इसके बाद डीयू ने उन्हें यात्रा की अनुमति देने से इनकार कर दिया. अपूर्वानंद ने 23 अप्रैल से 1 मई तक आयोजित इंडिया चाइना इंस्टीट्यूट की 20वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए छुट्टी की अर्जी दी थी. उन्होंने बताया कि उन्होंने 35 दिन पहले आवेदन किया था, लेकिन 2 अप्रैल को विश्वविद्यालय ने आधिकारिक रूप से उनकी छुट्टी की अर्जी अस्वीकार कर दी. विश्वविद्यालय ने कहा कि उन्हें केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय से सलाह लेनी पड़ी. सेमिनार का विषय था : "वैश्विक अधिनायकवादी दौर में विश्वविद्यालय की स्थिति". अपूर्वानंद ने 16 अप्रैल को कुलपति योगेश सिंह को पत्र लिखते हुए कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि विश्वविद्यालय ने संस्थागत स्वायत्तता को दरकिनार कर केंद्र सरकार के हस्तक्षेप को क्यों आमंत्रित किया…?” उन्होंने लिखा, “लेक्चर का पाठ मांगना अकादमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है. यह विश्वविद्यालय के नियमों में नहीं है… किसी शिक्षक से उसकी प्रस्तावित बातचीत का पाठ मांगना सेंसरशिप के बराबर है.” डीयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय संदर्भ को देखते हुए हमने मंत्रालय से सलाह लेना उचित समझा. आमतौर पर ऐसा नहीं करते, लेकिन इस बार हमने प्रोफेसर से उनका व्याख्यान मांगा, जो उन्होंने नहीं दिया.” अपूर्वानंद ने यह भी लिखा - “रजिस्ट्रार ने भी सुझाव दिया था कि मैं विश्वविद्यालय को अपनी बात का मसौदा सौंपूं… यह व्याख्यान की सेंसरशिप जैसा है.” उन्होंने कहा कि कुछ सहकर्मियों का मानना था कि उन्होंने जिस प्रकार की छुट्टी (ड्यूटी लीव) के लिए आवेदन किया था, उसमें समस्या हो सकती है क्योंकि वह सीधे तौर पर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे थे. जब आवेदन खारिज हो गया, तो उन्होंने रजिस्ट्रार से पूछा कि क्या छुट्टी की श्रेणी बदलकर फिर से आवेदन करें, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. रजिस्ट्रार विकास गुप्ता और कुलपति योगेश सिंह ने इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं की.
अपूर्वानंद ने इस पूरे घटनाक्रम को "स्वैच्छिक रूप से विश्वविद्यालय की शक्ति/स्वायत्तता को कम करना और सरकार को नियंत्रण का अधिकार देना" बताया और चेताया कि ऐसी प्रवृत्तियां खतरनाक परंपरा की शुरुआत कर सकती हैं. उन्होंने लिखा - “दिल्ली विश्वविद्यालय महान इसलिए बना, क्योंकि यहां स्वतंत्र सोच को पोषित किया गया और अंतरराष्ट्रीय अकादमिक समुदाय का हिस्सा बनने की अनुमति दी गई… मुझे उम्मीद है कि यह एक अपवाद साबित होगा…”
गाजा में इजरायली हमलों में कम से कम 29 लोगों की मौत
'अल जज़ीरा' की रिपोर्ट है कि गाज़ा पर ताजे इजरायली हमलों में कम से कम 29 लोगों की जान चली गई है. इन मृतकों में से 21 सिर्फ गाज़ा सिटी में मारे गए हैं. इधर 'द गार्डियन' की खबर है कि नागरिक सुरक्षा प्रवक्ता महमूद बास्सल ने बताया कि दक्षिणी शहर खान यूनुस के अल-मवासी क्षेत्र में दो इजराइली मिसाइलें गिरीं, जिससे कई टेंट नष्ट हो गए और कम से कम 16 लोगों की जान गई, जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे. 23 अन्य घायल हुए. अन्य दो हमलों में आठ और लोगों की मौत हुई और कई अन्य घायल हुए. बेइत लाहिया में टेंट पर हुए एक हमले में सात लोग मारे गए, जबकि अल-मवासी के पास एक और हमले में एक पिता और उसके बच्चे की मौत हो गई जो टेंट में रह रहे थे. “यह युद्ध अपराध की सार्वजनिक स्वीकृति है, जिसमें नागरिकों को खाने, पानी, दवाओं और ईंधन से वंचित किया जा रहा है. यह भूख को हथियार की तरह इस्तेमाल करना है.” हमास ने कहा.
दूर ग्रह में जीवन के नये संकेत
K2-18b, पृथ्वी से 2.5 गुना बड़ा है और एक लाल बौने तारे की परिक्रमा करता है. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने धरती से 124 प्रकाश-वर्ष दूर स्थित इस ग्रह (K2-18b) के वायुमंडल में जीवन से जुड़े अहम अणुओं की खोज की है. जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) से प्राप्त डेटा के अनुसार, इस ग्रह के वायुमंडल में डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS) और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड (DMDS) जैसे यौगिक मिले हैं, जो पृथ्वी पर समुद्री सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पन्न होते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह "अब तक का सबसे मजबूत संकेत" है कि इस ग्रह पर जीवन मौजूद हो सकता है.
JWST ने इसके वायुमंडल का विश्लेषण करते हुए यह डेटा एकत्र किया. प्रोफेसर निक्कू मधुसूदन के नेतृत्व में टीम का दावा है कि यहाँ DMS की मात्रा पृथ्वी से हजारों गुना अधिक है, जो "जीवन से भरे ग्रह" की ओर इशारा करती है. हालाँकि, यह निष्कर्ष अभी 99.7% सटीकता (3 सिग्मा) पर आधारित है, जबकि वैज्ञानिक पुष्टि के लिए 99.99999% (5 सिग्मा) चाहते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि इन अणुओं का निर्माण गैर-जैविक प्रक्रियाओं से भी हो सकता है. कुछ शोधकर्ता ग्रह की संरचना को लेकर भी सवाल उठाते हैं—क्या यह महासागर वाला ग्रह है या एक छोटा गैस दानव? प्रोफेसर कैथरीन हेमन्स के अनुसार, "यह निश्चित करना मुश्किल है कि ये गैसें जीवन से ही आई हैं."
मधुसूदन की टीम अगले 1-2 वर्षों में और डेटा जुटाकर इस रहस्य को सुलझाने की उम्मीद कर रही है. यदि यह खोज सही साबित होती है, तो यह मानवता के लिए एक ऐतिहासिक पल होगा—जो ब्रह्मांड में हमारे अकेलेपन के सवाल का जवाब दे सकता है.
गूगल की विज्ञापन मोनोपली ग़ैरकानूनी करार
अमेरिकी अदालत का ऐतिहासिक फैसला, व्यापारिक प्रथाओं में बड़ा बदलाव होगा
अमेरिकी संघीय न्यायाधीश लियोनी ब्रिंकेमा ने गूगल के ऑनलाइन विज्ञापन व्यवसाय को "अवैध एकाधिकार" करार देते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. यह मामला अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा दायर उस एंटीट्रस्ट याचिका में बड़ी जीत है, जिसमें आरोप था कि गूगल ने डिजिटल विज्ञापन बाजार में प्रतिस्पर्धा को कुचलकर अपना वर्चस्व कायम किया. अदालत ने कहा कि कंपनी ने प्रकाशकों और विज्ञापनदाताओं के बीच मध्यस्थता करने वाली अपनी तकनीकी प्रणाली (एड टेक स्टैक) का दुरुपयोग करते हुए "एकाधिकार शक्ति" हासिल की, जिससे प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचा.
$31 अरब के व्यवसाय पर चोट : न्यायाधीश ब्रिंकेमा के 115 पेज के फैसले में गूगल के विज्ञापन सर्वर और एक्सचेंज प्लेटफॉर्म को जोड़ने की प्रथा को "एंटीकॉम्पेटिटिव" बताया गया. इससे कंपनी को अपने $31 अरब के ऑनलाइन विज्ञापन व्यवसाय के हिस्से बेचने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. हालांकि, अदालत ने विज्ञापनदाता नेटवर्क से जुड़े कुछ आरोपों को खारिज कर दिया. गूगल ने कहा कि वह इस निर्णय के खिलाफ अपील करेगा.
गूगल का पक्ष : गूगल की विनियामक मामलों की उपाध्यक्ष ली-ऐन मुलहोलैंड ने कहा, "यह फैसला नवाचार को नुकसान पहुंचाएगा और छोटे प्रकाशकों व व्यवसायों के लिए मुश्किलें बढ़ाएगा." उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रकाशक गूगल के टूल्स को "सस्ते और प्रभावी" होने के कारण चुनते हैं. वहीं, न्यायाधीश ने कहा कि गूगल ने "प्रतिस्पर्धियों को बाजार से बाहर कर दिया".
टेक दिग्गजों पर बढ़ता दबाव : यह फैसला टेक कंपनियों के खिलाफ बढ़ते नियामक दबाव का हिस्सा है. इसी सप्ताह, मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने एफटीसी के एंटीट्रस्ट मामले में गवाही दी. गूगल पर यह तीसरा बड़ा झटका है—पिछले साल उसके ऐप स्टोर और सर्च इंजन को भी "एकाधिकार" करार दिया गया था. विशेषज्ञ मानते हैं कि ये फैसले डिजिटल अर्थव्यवस्था की संरचना को बदल सकते हैं, लेकिन अपील की प्रक्रिया में वर्षों लग सकते हैं. न्याय विभाग ने अभी तक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन यह मामला सरकार और टेक क्षेत्र के बीच चल रही "एकाधिकार बनाम नवाचार" की लड़ाई में एक नया अध्याय जोड़ता है.
चलते-चलते
‘मैंने गूगल में दशकों काम किया, अब जो यह कर रहा है, उससे घिन आती है'
गूगल की पूर्व कर्मचारी एम्मा जैक्सन ने टेक कंपनियों और हथियार कपंनियों की साझेदारी और रक्षा बजट को चट कर जाने के खेल को समझाने की कोशिश की है. “No Tech for Apartheid” के कार्यकर्ताओं द्वारा गूगल के ऑफिस में किए गए धरनों के एक साल पूरे होने के उपलक्ष्य में उन्होंने टेक कंपनियों की युद्ध में भूमिका को लेकर अपने अनुभव साझे किए हैं. उनके बयान के हिस्से :
पहली बार मैं सार्वजनिक रूप से बोलने के लिए मजबूर महसूस कर रही हूं, क्योंकि हमारी कंपनी अब दुनियाभर में राज्य प्रायोजित हिंसा को बढ़ावा दे रही है. जब मैंने 20 साल पहले गूगल जॉइन किया था, तब यह एक छोटा स्टार्टअप था, जहां कुछ ही हज़ार लोग काम करते थे. उस समय ऐसा लगता था कि हम समाज के लिए कुछ उपयोगी बना रहे हैं. जब मैंने पहली बार माउंटेन व्यू मुख्यालय का दौरा किया और वहां गूगल की टी-शर्ट पहने इंजीनियरों को देखा, तो मैंने सोचा कि शायद कंपनी ने यूनिफॉर्म अनिवार्य कर दी है. लेकिन जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि ये लोग कंपनी को लेकर वाकई जुनूनी हैं. हर कुछ महीनों में कोई नई, मुफ़्त और बेहद उपयोगी चीज़ लॉन्च होती थी (जैसे Gmail! Google Maps!). लेकिन आज गर्व की उस भावना की जगह दिल टूटने की भावना ने ले ली है.
इसके पीछे वर्षों से लिए गए नेतृत्व के चिंताजनक फैसले हैं. चाहे वो प्रोजेक्ट मावेन जैसे मिलिट्री कॉन्ट्रैक्ट में गूगल का प्रवेश हो, या फिर हालिया प्रोजेक्ट निंबस, जो गूगल और अमेजन का $1.2 बिलियन का अनुबंध है, जो इज़रायली सेना को एआई और क्लाउड कंप्यूटिंग मुहैया करवा रहा है, जिसका इस्तेमाल ग़ाज़ा में फिलीस्तीनियों के नरसंहार में हो रहा है. आज “No Tech for Apartheid” के कार्यकर्ताओं द्वारा ऑफिस में किए गए धरनों को एक साल हो चुका है. ये प्रदर्शन इस नरसंहार को चलाने के लिए हमारे श्रम के इस्तेमाल के खिलाफ, फिलीस्तीनी, मुस्लिम और अरब सहकर्मियों के उत्पीड़न के खिलाफ, और कार्यस्थल में स्वास्थ्य और सुरक्षा संकट पर कार्रवाई की मांग को लेकर हुए थे. जवाब में गूगल ने 50 कर्मचारियों को गैर-कानूनी तरीके से निकाल दिया, उनमें कई तो धरनों में सीधे शामिल भी नहीं थे.
पिछले एक साल में गूगल ने सैन्य अनुबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और भी गहरा दी है. दो महीने पहले गूगल ने सार्वजनिक रूप से AI को हथियार या निगरानी तकनीक के रूप में न बनाने की अपनी पुरानी प्रतिज्ञा को छोड़ दिया, ताकि ट्रम्प प्रशासन के संभावित ठेके हासिल कर सके. फिर तुरंत ही गूगल ने इज़राइली क्लाउड सिक्योरिटी स्टार्टअप Wiz को खरीदा, अमेरिकी सीमा पर निगरानी टावरों को अपडेट करने के लिए इज़राइली हथियार कंपनी एलबिट सिस्टम्स से साझेदारी की और फिर दुनिया की सबसे बड़ी हथियार निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन के साथ AI में साझेदारी शुरू कर दी.
आज के दौर में लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन या नॉर्थरॉप ग्रमन जैसे पारंपरिक हथियार निर्माता अकेले नहीं हैं, गूगल और अन्य बड़ी टेक कंपनियां अब इस सैन्य कारोबार का बड़ा हिस्सा बन गई हैं. अब जब उपभोक्ता और एंटरप्राइज बाज़ार लगभग संतृप्त हो चुके हैं, तो टेक कंपनियां “रक्षा बजट” को नया कमाई का जरिया बना रही हैं. अब वक्त आ गया है कि हम एक वैश्विक AI हथियार प्रतिबंध की मांग करें.
गूगल में मैं वर्षों से इस सैन्यीकरण के खिलाफ अंदर से लड़ रही हूं. मैंने और मेरे जैसे कई लोगों ने आंतरिक मंचों का उपयोग करके कंपनी को सही दिशा में मोड़ने की कोशिश की, लेकिन अब 20 वर्षों में पहली बार, मैं सार्वजनिक रूप से बोल रही हूं, क्योंकि मेरी कंपनी अब दुनियाभर में राज्य प्रायोजित हिंसा को बढ़ावा दे रही है और यह नुकसान तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन टेक्नोलॉजी को हथियार बनाने के खिलाफ श्रमिक हमेशा से खड़े हुए हैं. जैसे यूनाइटेड फार्म वर्कर ने बहिष्कार और हड़तालों का सहारा लिया, या अमेरिका में ब्लैक कर्मचारियों ने पोलारॉइड के खिलाफ आंदोलन चलाया, क्योंकि उसका कैमरा रंगभेद वाली दक्षिण अफ्रीकी सरकार के पासबुक सिस्टम में इस्तेमाल हो रहा था और उन्होंने जीत हासिल की. हमें कार्यस्थल में एकजुटता को ज़रूरी शर्त और संगठनात्मक मुद्दा मानना होगा, ताकि हम न सिर्फ छोटे-छोटे बदलाव लाएं, बल्कि उस पूरी सत्ता संरचना को चुनौती दे सकें जो हमारे मालिकों को नरसंहार को प्राथमिकता देने की ताकत देती है. मानवीय तकनीक के लिए लड़ाई जीतने के लिए हमें कार्यस्थलों और प्रभावित समुदायों जैसे ग़ाज़ा में मारे जा रहे फिलिस्तीनियों, भारत में 14 घंटे की ड्यूटी करने वाले श्रमिकों, पलायन कर रहे प्रवासियों, पुलिस निगरानी में जी रहे हमारे अपने पड़ोस और उन वेयरहाउस कर्मचारियों जो बाथरूम जाने से डरते हैं, क्योंकि नौकरी खोने का डर है, सभी के साथ एकजुट होना होगा. गूगल को पहले भी कर्मचारियों ने बदला है. ट्रम्प प्रशासन के पहले कार्यकाल में मैंने अपने साथियों के साथ मिलकर प्रोजेक्ट मावेन के खिलाफ मोर्चा खोला और हम सफल हुए. गूगल ने वह अनुबंध छोड़ दिया.
हमारे पास ताकत है. और यह ताकत एकजुट होकर आती है. हम इस अंधेरे दौर में केवल साथ खड़े रहकर ही टिक सकते हैं और यही हमारी प्रेरणा और सामूहिक साहस का स्रोत बनता है. मेरे साथियों और अन्य टेक कर्मचारियों से मेरा आग्रह है. अगर हमने अभी कुछ नहीं किया, तो हम ट्रंप के फासीवादी एजेंडे में शामिल कर लिए जाएंगे, जो प्रवासियों को निकालना, असहमति को दबाना, महिलाओं के प्रजनन अधिकार छीनना, लोकतंत्र को बिगाड़ना और बिग टेक अरबपतियों के लिए नियम फिर से लिखना चाहता है और इस सबके बीच फिलिस्तीनियों के नरसंहार को बढ़ावा देता रहेगा. टेक्नोलॉजी का उपयोग मानवता के खिलाफ न हो, इसकी जिम्मेदारी हमारी है. अभी नहीं तो कभी नहीं.
पाठकों से अपील
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