18/05/2025 : थरूर पर पार्टी कम सरकार ज्यादा मेहरबान | डेलिगेशन डैमेज कंट्रोल है या मास्टर स्ट्रोक | बिहार में भाजपा | यूट्यूबर और जासूसी | बंकर कागज़ी थे, बमबारी असली | फेंकने में आगे कौन | गाज़ा हमला
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
थरूर और सर्वदलीय डेलिगेशन ऐसा क्या कर लेंगे जो मोदी और विदेश मंत्रालय नहीं कर पाए?
लाइसेंस रद्द करने के खिलाफ तुर्कीये की कंपनी कोर्ट पहुंची
प्रवीण साहनी : सरकार के कई दाँव गलत पड़े
आप टूटी, 15 पार्षदों ने नई पार्टी बनाई
कई बांग्लादेशी वस्तुओं के आयात पर बंदरगाह प्रतिबंध
अफीम, अग्नि मंदिर और पारसी साड़ियाँ
सिंदूरी सियासत
कांग्रेस को चिढ़ाने थरूर को जोड़ा, जवाब में राहुल ने पूछा, “इस अपराध से हमने कितने विमान खोए”
भारत-पाकिस्तान के संघर्ष विराम के बाद अब देश में सियासत भी शुरू हो गई है. केंद्र सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को भारत का रुख बताने के लिए भेजे जाने वाले सर्वदलीय सांसदों में शशि थरूर का नाम शामिल कर कांग्रेस के भीतर नया विवाद पैदा कर दिया है. कांग्रेस का कहना है कि सरकार राजनीति कर रही है. पार्टी ने सरकार को थरूर का नाम दिया ही नहीं था, फिर उनका नाम कैसे आ गया? कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर लिखा, “शुक्रवार को सुबह संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से विदेश भेजे जाने वाले प्रतिनिधिमण्डल के लिए चार सांसदों के नाम मांगे थे. कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार के नाम दिए थे.” कांग्रेस को इसी बात की हैरानी हुई कि थरूर का नाम नहीं दिया था, फिर सूची में कैसे आ गया? हालांकि, खुद थरूर पर कांग्रेस की आपत्ति का कोई फ़र्क नहीं पड़ा है. उनका कहना है कि वह सरकार के इस फैसले से सम्मानित महसूस कर रहे हैं. संभव है कि विदेश मामलों में उनकी विशेषज्ञता के कारण सरकार ने उनका नाम चुना हो. वैसे भी राष्ट्र, राजनीति से ऊपर है. यहां यह उल्लेखनीय है कि शशि थरूर मोदी सरकार को लेकर लंबे अरसे से कुछ सहानुभूति दिखाते रहे हैं. पार्टी की परवाह किए बिना सरकार के कई फैसलों की उन्होंने तारीफ की है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए भी केंद्र सरकार की सराहना करते हुए उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान और दुनिया के लिए यह मजबूत संदेश है. पिछले दिनों केरल में उद्योगपति गौतम अडानी के एक कार्यक्रम में उन्होंने पीएम मोदी और केरल के मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा किया था, जिसमें मोदी ने थरूर को इंगित करते हुए विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक पर तंज़ किया था.
इधर, थरूर को लेकर केंद्र के फैसले से असहज हुई कांग्रेस ने विदेश मंत्री एस जयशंकर को निशाने पर लेकर जवाब दिया. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारत-पाकिस्तान द्वारा सैन्य कार्रवाई रोकने के बाद अपनी पहली टिप्पणी में शनिवार को जयशंकर के उस बयान को लेकर सवाल उठाया, जिसमें कहा गया था कि भारत ने पाकिस्तान को उसकी जमीन पर आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाने की सूचना दी थी. राहुल गांधी ने कहा, “हमले की शुरुआत में पाकिस्तान को सूचित करना एक अपराध था.” उन्होंने यह भी पूछा कि “इसका नतीजा क्या हुआ, हमारी वायुसेना ने कितने विमान खोए?”
दरअसल, गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए, जयशंकर ने कहा था, "ऑपरेशन की शुरुआत में, हमने पाकिस्तान को संदेश भेजा था कि हम आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला कर रहे हैं. हम सेना पर हमला नहीं कर रहे हैं. इसलिए सेना के पास यह विकल्प था कि वह अलग रहे और इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करे. लेकिन, उन्होंने इस अच्छे सुझाव को मानना उचित नहीं समझा." जयशंकर का इशारा उस कॉल की ओर था, जो भारतीय सेना के सैन्य संचालन महानिदेशक (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला को की थी, जब भारतीय सशस्त्र बलों ने 7 मई को रात 1 बजे से 1:30 बजे के बीच पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर हमला किया था.
लेफ्टिनेंट जनरल घई ने पाकिस्तानी समकक्ष को बताया था कि भारत ने ‘सावधानी से चुने गए’ आतंकी ठिकानों पर हमला किया है और सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाया है. पाकिस्तान को यह संदेश भी भेजा गया था कि अगर वह बातचीत करना चाहता है, तो भारत इसके लिए तैयार है.
गांधी ने शनिवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, "हमले की शुरुआत में पाकिस्तान को सूचित करना एक अपराध था. विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि भारत सरकार ने ऐसा किया. इसकी अनुमति किसने दी? इसके परिणामस्वरूप हमारी वायुसेना ने कितने विमान खोए?"
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "विदेश मंत्री ने कहा था कि हमने पाकिस्तान को शुरुआत में ही चेतावनी दी थी, जो स्पष्ट रूप से ऑपरेशन सिंदूर के शुरू होने के बाद का शुरुआती चरण है. इसे गलत तरीके से ऑपरेशन शुरू होने से पहले की चेतावनी के रूप में पेश किया जा रहा है. इस बीच पत्रकार, लेखक प्रेम पाणिकर ने थरूर विवाद को ‘बेमतलब की अफरातफरी’ बताया. उनका कहना है कि रिजिजू की ‘एक्स’ पोस्ट में स्पष्ट रूप से लिखा है कि सात सांसद सात प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करेंगे - न कि ये ही पूरा प्रतिनिधिमंडल हैं. प्रतिनिधिमंडल के नेताओं के चयन के बाद, रिजिजू ने प्रतिनिधिमंडलों में शामिल किए जाने वाले सांसदों के नाम मांगे और जयराम रमेश ने चार नाम भेजे. थरूर का नाम तो बतौर नेतृत्व कर्ता रखा गया है. अगर जयराम रमेश, या कोई कांग्रेस प्रवक्ता, या खुद थरूर, स्पष्ट रूप से एक सामान्य-सी बात बता देते तो इस अफरा-तफरी को टाला जा सकता था. लेकिन नहीं, शायद सभी पक्षों को विवाद जारी रखना ही ठीक लगता है.
विश्लेषण
थरूर और सर्वदलीय डेलिगेशन ऐसा क्या कर लेंगे जो मोदी और विदेश मंत्रालय नहीं कर पाए?
निधीश त्यागी
सर्वदलीय शब्द के मायने किसने कम किये हैं, यह कोई पहेली नहीं है.
केंद्र सरकार सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल बना तो रही है, पर उसमें भी मुखर बात ये नहीं है कि सभी दलों को साथ लेकर चलना है. शशि थरूर के मार्फत इसमें सियासी दांव खेले हैं. अगर देश की छवि को ही ठीक करना, और नये सिरे से दोस्ती और वफादारियां कमाना ही मोदी सरकार का इरादा होता, तो ये सब पिछले कई सालों से करना था. ये डेलिगेशन स्थानीय राजनीति के लिए मास्टर स्ट्रोक शायद साबित हों, पर जिस उद्देश्य से बनाए गए हैं, एक कमज़ोर डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज है. प्रतीकात्मक कार्रवाई.
अब तक, दो देश हैं इतनी बड़ी दुनिया में, जो भारत के साथ खड़े हैं. दोनों की पाकिस्तान से कट्टी है. और आपस में भी. और दोनों यानी इजराइल और अफ़गानिस्तान दुनिया के सबसे क्रूर, खौफनाक और आदमखोर मुल्क हैं. इनका साथ मिलने से भी हमारा केस कैसे मजबूत होने वाला है? और सर्वदलीय डेलिगेशन इसमें क्या कर लेगा. क्या उसे सरकार से ज्यादा पता है? क्या उसे दुनिया की सारी इंटेलिजेंस और डिप्लोमैटिक जानकारियों के अलावा ऐसा कुछ पता है, जिसका रहस्योद्धाटन वे अपने दौरे में करेंगे.
जब वे विदेशों में जाकर भारत के केस के बारे में बताएंगे, थरूर की अंग्रेजी को शब्दकोष खोल कर सुनेंगे, तो उससे क्या भारत की स्थिति मजबूत होगी? वे पीपीटी दिखाएंगे, पार्टी करेंगे, बंद कमरों में बैठकें करेंगे, थिंक टैंक्स से बात करेंगे, विदेशी मीडिया को इंटरव्यू देंगे. अभी तक ये नहीं साफ है कि ये डेलिगेशन करेगा क्या. वे किन देशों में जाकर क्या बोलेंगे? क्या वे भी विदेश सचिव विक्रम मिसरी की तरह भारत को संविधान से चलने वाले, विविधता से परिपूर्ण, धर्मनिरपेक्ष, शांतिप्रिय देश की तरह पेश करेंगे? उन सारी रिपोर्ट्स को छिपा कर और खारिज करते हुए, जिनमें भारत की पिछले दशक में मिट्टी पलीत ही हुई है.
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ऐसा क्या कर लेगा, जो भारत का विदेश मंत्रालय, नरेन्द्र मोदी और बाकी लोगों के विदेश दौरे, नरेन्द्र मोदी की गलबहियां और तोहफे नहीं कर पाए. क्या सचमुच जो पंचर भारतीय कूटनीति और रसूख में लगा है, वह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के सांसद लगा पाएंगे. शशि थरूर ऐसा क्या कर लेंगे, जो मोदी और जयशंकर या उनके पहले के विदेश मंत्री नहीं कर पाए.
भारत के सामने विदेश नीति की चुनौतियां अभी क्या हैं?
अमेरिका को मैनेज करना और कश्मीर को अंतरराष्ट्रीयकरण से रोकना : 10 मई, 2025 को अमेरिका द्वारा कराया गया युद्धविराम और राष्ट्रपति ट्रंप का कश्मीर पर व्यापक बातचीत के लिए दबाव, पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की प्राथमिकता के अनुरूप है, जिसका भारत विरोध करता है. भारत का जोर है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, और ट्रंप की संभावित ‘समाधान’ के बारे में टिप्पणियां विवाद को अंतरराष्ट्रीयकृत करने का जोखिम उठाती हैं, जिससे भारत का रुख कमजोर होता है.
पाकिस्तान पहलगाम हमले में अपनी संलिप्तता से इनकार करता है और एक स्वतंत्र जांच की मांग करता है, तथा भारत के ऑपरेशन सिंदूर को तनाव बढ़ाने वाला चित्रित करता है. यह नैरेटिव, पाकिस्तान के नागरिक हताहतों के दावों के साथ मिलकर, कुछ देशों, खासकर इस्लामी दुनिया से सहानुभूति प्राप्त करने का जोखिम लेकर आता है. G20 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों को जानकारी देने सहित भारत की राजनयिक मुहिम का उद्देश्य पाकिस्तान को अलग-थलग करना है, लेकिन उसे प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है.
पाकिस्तान के साथ चीन की रणनीतिक साझेदारी, जिसमें भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए गए J-10C लड़ाकू विमानों जैसे सैन्य समर्थन शामिल हैं, भारत की क्षेत्रीय कूटनीति को जटिल बनाती है. चीन द्वारा तनाव कम करने का आह्वान और कश्मीर में उसके क्षेत्रीय दावे दबाव बढ़ाते हैं, क्योंकि कोई भी भारतीय क्षेत्रीय लाभ बीजिंग को उकसा सकता है.
सऊदी अरब और ईरान जैसे खाड़ी देश, जो पारंपरिक रूप से धार्मिक संबंधों के कारण पाकिस्तान के करीब रहे हैं, अब आर्थिक रूप से भारत से तेजी से जुड़ रहे हैं. उनके मध्यस्थता प्रयास, जैसे ईरान द्वारा तनाव कम करने की पेशकश, भारत की द्विपक्षीय समाधानों की प्राथमिकता को चुनौती देते हैं. सिंधु जल संधि का भारत द्वारा निलंबन, जिसे पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, इन राज्यों को अलग-थलग करने का जोखिम है.
भारत के गंभीर राजनयिक उपाय—पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित करना, सिंधु जल संधि को निलंबित करना, और सीमाएं बंद करना—ने अमेरिका, फ्रांस और जापान जैसे सहयोगियों से एकजुटता हासिल की है, लेकिन अगर इसे अत्यधिक आक्रामक माना गया तो भारत के अलग-थलग पड़ने का जोखिम है. पाकिस्तान की पारस्परिक कार्रवाइयां, जैसे शिमला समझौते को निलंबित करना, राजनयिक दरार को गहरा करती हैं.
डोनाल्ड ट्रम्प को एक और बार कहने से रोक पाना कि दोनों देशो को व्यापार का लालच देकर लड़ाई ट्रम्प ने रुकवाई, नहीं तो बात तो न्यूक्लियर तक पंहुच रही थी. जितनी बार ट्रम्प ये बोलेंगे भारत की कुनमुनाहट उतनी बढ़ेगी.
आतंकवाद के मसले पर डटे रहना, पाकिस्तान की तरफ इशारे करना पर चार आतंकियों का पता ठिकाना नहीं ढूंढ़ पाना, न बता पाना, न सुबूत पेश कर पाना.
संघर्ष ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को निष्क्रिय कर दिया है, जिसमें भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा विशेषाधिकार रद्द कर दिए हैं. यह क्षेत्रीय सहयोग को सीमित करता है और पाकिस्तान को अलग-थलग करता है, लेकिन भारत की क्षेत्रीय नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं को भी बाधित करता है.
पाकिस्तान से आयात पर भारत का प्रतिबंध और सीमा पार चौकियों को बंद करने से द्विपक्षीय व्यापार बाधित होता है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर मामूली प्रभाव पड़ता है, लेकिन यह एक कठोर रुख का संकेत देता है. यह, संभावित अमेरिकी टैरिफ (भारतीय वस्तुओं पर 26%) के साथ मिलकर, भारत की आर्थिक कूटनीति पर दबाव डालता है.
10 मई, 2025 को घोषणा के तुरंत बाद दोनों पक्षों द्वारा युद्धविराम का उल्लंघन, तनाव कम करने को बनाए रखने की कठिनाई को रेखांकित करता है. पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई की चेतावनियां, खासकर सिंधु जल संधि को लेकर, और पाकिस्तानी क्षेत्र में भारत के गहरे हमले जोखिम को बढ़ाते हैं.
इतनी मुश्किल से डि हाइफनेट होने के बाद फिर से पाकिस्तान के बराबर देखा और तौला जाना. इस हाइफन की वापसी जिससे भारत ने बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया था.
ये लिस्ट और भी लंबी हो सकती है. इन चुनौतियों में से कितनी सारी तो ऐसी हैं, जो पिछले दस सालों में माबदौलत किनके पैदा हुई हैं, समझना मुश्किल नहीं है. जो सरकार संसद को, सांसदों को, विपक्ष को, सवाल करने वालों को गंभीरता से नहीं लेती, उसके बनाए सर्वदलीय प्रतिनिधियों को दुनिया किस आधार पर महत्व देगी. अगर सरकार में इन चुनौतियों को पैदा करने की जिम्मेदारी लेने का माद्दा नहीं है, भूल-चूक को लेकर लोगों को भरोसे में लेने और पारदर्शी होकर साफ बात करने की हिम्मत नहीं है, तो फिर इन प्रतिनिधिमण्डलों से चमत्कार की उम्मीद करना बहुत ही रोचक अध्याय बनने वाला है.
शशि थरूर आज की हैडलाइन हैं. पर पूरी स्टोरी नहीं.
राजनीति
मोदी के कश्मीर के बजाय बिहार दौरे, ट्रम्प के दावों, जाति जनगणना के एलान से बीजेपी को नुकसान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. फाइल फोटो.
पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जम्मू-कश्मीर के बजाय बिहार का राजनीतिक दौरा, जाति जनगणना का एलान और भारत-पाक के बीच सीजफायर को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दावों ने बिहार में भाजपा की संभावनाओं को खासा नुकसान पहुंचाया है. ‘द वायर’ के लिए सुरूर अहमद की रिपोर्ट कहती है- चूंकि 24 अप्रैल (पहलगाम हमले के दो दिन बाद) को बिहार में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहलगाम नरसंहार के दोषियों का सफाया करने का संकल्प लिया था, इसलिए 'ऑपरेशन सिंदूर' के चुनावी प्रभाव की पहली परीक्षा भी इसी चुनावी राज्य में होगी.
याद रहे कि प्रधानमंत्री को बिहार दौरे के कारण विपक्षी नेताओं और स्वतंत्र विश्लेषकों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उन्होंने इस भीषण घटना के 48 घंटे के भीतर नेपाल सीमा से सटे मधुबनी जिले के झंझारपुर कस्बे में एक कार्यक्रम को संबोधित किया, लेकिन वह जम्मू-कश्मीर नहीं गए.
हालांकि, आम धारणा यह है कि भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता स्वीकार कर युद्धक्षेत्र में हालात को हाथ से निकलने से रोक लिया, लेकिन जनता का असली मूड तो सिर्फ चुनाव के जरिये ही मापा जा सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के अन्य हिस्सों की तरह बिहार में भी बड़ी संख्या में मतदाता, खासकर शिक्षित सवर्ण- जो बीजेपी का मुख्य वोट बैंक है- ने ट्रम्प को अचानक दिए गए ‘विशेषाधिकार’ पर सवाल उठाया है, जो अब कह रहे हैं कि वह कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए मध्यस्थता करने को भी तैयार हैं.
वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर मोदी के सामने ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि उन्हें इतना बड़ा यू-टर्न लेना पड़ा. जब बीजेपी की नीति थी कि बातचीत और आतंक एक साथ नहीं चल सकते, तो फिर तीसरे पक्ष यानी अमेरिका को क्यों शामिल किया गया?
विपक्ष, जिसने पूरे दिल से ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन किया था, अब खुलकर पूछ रहा है कि आखिर मोदी को ट्रम्प के सामने लगभग आत्मसमर्पण करने के लिए किसने मजबूर किया? विपक्ष में कांग्रेस इस स्थिति का पूरा फायदा उठा रही है. सोशल मीडिया पर उसके कार्यकर्ता पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भाषण साझा कर रहे हैं, जिन्होंने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का डटकर सामना किया था और उनकी दखलअंदाजी की कतई परवाह नहीं की थी. उस समय अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया था. इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी 15 मई को बिहार का दौरा किया, जो चार महीनों के भीतर चौथा था.
हालांकि चुनाव अभी लगभग छह महीने दूर हैं, लेकिन बिहार में बीजेपी की चुनावी मशीनरी में बड़ी लड़ाई लड़ने का जज़्बा नजर नहीं आ रहा है. अगर बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता इसी तरह राष्ट्रवादी आक्रामकता से दूर रहे, तो चुनाव परिणाम किसी भी तरफ जा सकते हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो कभी पार्टी की ताकत थे, अब बोझ बन गए हैं. ऐसे में नीतीश और मोदी दोनों का करिश्मा शायद काम न आए, हालांकि मोदी इस महीने के अंत में एक बार फिर बिहार आ सकते हैं. विपक्ष के पास तेजस्वी यादव के रूप में एक नया चेहरा है. फिलहाल राज्य की स्थिति यही है.
लाइसेंस रद्द करने के खिलाफ तुर्कीये की कंपनी कोर्ट पहुंची
तुर्कीये की कंपनी सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (बीसीएएस) द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सिक्योरिटी क्लियरेंस रद्द करने के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
तुर्कीये द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करने और पड़ोसी देश में आतंकी शिविरों पर भारत के हमलों की निंदा करने के कुछ दिनों बाद फर्म की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी गई थी.
“द हिंदू” के मुताबिक मामले से जुड़े एक वकील ने याचिका दायर करने की पुष्टि की है. बता दें, सेलेबी, भारतीय विमानन क्षेत्र में डेढ़ दशक से अधिक समय से कार्यरत है. इसमें 10 हजार से अधिक लोग काम करते हैं. यह नौ हवाई अड्डों पर अपनी सेवाएं प्रदान करती है.
तुर्कीये की इस कंपनी को सुरक्षा मंजूरी नवंबर 2022 में दी गई थी. सेलेबी की वेबसाइट के अनुसार, यह भारत में सालाना लगभग 58,000 उड़ानें और 54 हजार टन कार्गो संभालती है. यह मुंबई, दिल्ली, कोचीन, कन्नूर, बैंगलोर, हैदराबाद, गोवा, अहमदाबाद और चेन्नई हवाई अड्डों पर मौजूद है.
जासूसी के आरोप में हरियाणा की यूट्यूबर गिरफ्तार
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के लिए जासूसी करने के आरोप में हरियाणा की 33 वर्षीय यूट्यूबर ज्योति रानी को गिरफ्तार किया गया है. हिसार पुलिस ने शनिवार को ज्योति को कोर्ट में पेश कर पांच दिन के रिमांड पर लिया है. केंद्रीय एजेंसियां ज्योति से पूछताछ कर रही हैं.
ज्योति रानी का 'ट्रैवल विद जो' नामक यूट्यूब चैनल है, जिसके 3 लाख 77 हजार से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं और इंस्टाग्राम पर उसके एक लाख 32 हजार से अधिक फॉलोअर्स हैं. पुलिस के अनुसार, उसे दिल्ली स्थित पाकिस्तान हाई कमीशन के एक अधिकारी को ‘संवेदनशील जानकारी’ साझा करते हुए पाया गया, जिसके बाद उसे हिरासत में लिया गया.
ज्योति रानी पर ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा 3 और 5 तथा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 (जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित है) के तहत मामला दर्ज किया गया है. हरियाणा पुलिस ने इसी सप्ताह पानीपत से भी एक युवक को पाकिस्तान में कई लोगों को संवेदनशील सूचनाएं शेयर करने के आरोप में गिरफ्तार किया था.
बंकर कागज़ी थे, बमबारी असली, 20 मौतें भी
द वायर के लिए जहांगीर अली की रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में कागजों पर तो बंकरों को बना दिया गया, लेकिन जमीन पर नहीं. हैरत की बात यह है कि पाकिस्तान ने उन्हीं इलाकों को निशाना बनाया, जहां मोदी सरकार ने 2018 में बंकरों के निर्माण की स्वीकृति दी थी, लेकिन भूमिगत बंकर बनाए नहीं गए. यह भी खास है कि वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप ऐसे समय सामने आए हैं, जब पाकिस्तान ने सीमा क्षेत्रों में मनमाने ढंग से गोलाबारी की, जिसमें कम से कम 20 नागरिक मारे गए और दर्जनों घायल हुए.
इस मामले ने जम्मू-कश्मीर के उन अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं, जो कथित तौर पर नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय के पास रहने वाले नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाई गई इस महत्वपूर्ण परियोजना के क्रियान्वयन में विफल रहे.
सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस के विधायक एजाज जान ने बताया कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कथित गड़बड़ियों की जांच के आदेश दिए हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ बंकर, जिन्हें कागजों पर ‘पूरा’ दिखाया गया है, वास्तव में जमीन पर मौजूद नहीं हैं. अगर ये बंकर होते, तो पुंछ में गोलाबारी से हुई तबाही को कम किया जा सकता था.
आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार, पिछले साल तक किसी भी बंकर का ऑडिट नहीं हुआ था. गृह मंत्रालय की टीम ने अनियमितताओं की जांच के लिए ऑडिट शुरू किया है, जो 2026 तक पूरा होगा.
शिकायतकर्ता अशुतोष खन्ना ने आरोप लगाया कि राजौरी जिले के कई ब्लॉकों में अतिरिक्त धन जारी किया गया और कुछ खरीद के रिकॉर्ड सरकारी किताबों में नहीं मिले.
यह विवाद 2018 का है, जब जम्मू डिवीजन के सांबा, जम्मू, कठुआ, पुंछ और राजौरी जिलों में सीमावर्ती निवासियों के लिए 14,460 बंकरों को 415.73 करोड़ रुपये की लागत से तैयार करने की मंजूरी दी गई थी, जिनमें से 13,029 व्यक्तिगत बंकर और 1,431 सामुदायिक बंकर थे.
बहरहाल, जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती निवासियों के लिए केंद्र प्रायोजित भूमिगत बंकर परियोजना में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की अब एंटी-करप्शन ब्यूरो और गृह मंत्रालय दोनों द्वारा जांच की जा रही है.
रक्षा विश्लेषण
प्रवीण साहनी : सरकार के कई दाँव गलत पड़े
'कड़वी कॉफी' संवाद शृंखला अपने गंभीर और गहन विमर्श के लिए जानी जाती है, जहाँ तात्कालिक मुद्दों से परे जाकर उनके दीर्घकालिक संदर्भों और जटिलताओं को समझने का प्रयास किया जाता है. इसी कड़ी में, हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच उत्पन्न तनाव को लेकर अपूर्वानंद से चर्चा करते हुए रक्षा विशेषज्ञ प्रवीण साहनी ने कई पहलुओं पर बात रखी.
चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 12 मई की रात दिए गए राष्ट्र के नाम संबोधन से हुई. प्रधानमंत्री ने पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 सैलानियों की जान गई थी, का बदला लेने के लिए 'ऑपरेशन सिंदूर' किए जाने की बात कही. उन्होंने बताया कि इस ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान के भीतर नौ दहशतगर्द ठिकानों पर हमले किए गए और यह "हमारी मांओं और बहनों के सिंदूर पोंछने का बदला" था. सबसे महत्वपूर्ण बात, प्रधानमंत्री ने कहा कि 'ऑपरेशन सिंदूर' समाप्त नहीं हुआ है, बल्कि यह एक 'न्यू नॉर्मल' है, जबकि उस समय तक दोनों देशों के बीच टकराहट रुके 48 घंटे बीत चुके थे.
प्रवीण साहनी, जो 'फोर्स' पत्रिका से जुड़े हैं और रक्षा मामलों पर कई पुस्तकों के लेखक हैं, ने प्रधानमंत्री के 'न्यू नॉर्मल' वाले बयान पर गहरी चिंता व्यक्त की. साहनी के अनुसार, ऑपरेशन के समाप्त न होने और 'न्यू नॉर्मल' बनने का अर्थ है कि दोनों देशों को अब निरंतर एक-दूसरे के खिलाफ वैसी ही कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा, जैसी 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान देखी गई – जिसमें मिसाइलें, ड्रोन और लॉन्ग रेंज आर्टिलरी का इस्तेमाल पूरे बॉर्डर पर हुआ, न कि सिर्फ नियंत्रण रेखा पर.
साहनी ने आगाह किया कि यह लड़ाई सिर्फ पाकिस्तान से नहीं, बल्कि पाकिस्तान और चीन से है. चीन सीधे तौर पर शामिल न होते हुए भी पाकिस्तान की हर तरह से मदद कर रहा है. इस 'न्यू नॉर्मल' के तहत पाकिस्तान को चीन से अत्याधुनिक हथियार (जैसे उन्नत ड्रोन, J-31 लड़ाकू विमान, KJ-500 एयरबॉर्न अर्ली वार्निंग सिस्टम, माइक्रोवेव हथियार युक्त मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम) बहुत तेजी से (दो-तीन महीनों में) मिल जाएंगे, जो पहले डेढ़-दो साल में मिलने थे.
प्रधानमंत्री द्वारा किसी भी आतंकी हमले को 'एक्ट ऑफ वॉर' मानने की घोषणा का अर्थ है कि 'न्यू नॉर्मल' पर लगा विराम (पॉज़) अगले हमले के साथ ही हट जाएगा और फिर से वैसी ही शत्रुतापूर्ण कार्रवाई शुरू हो जाएगी, जिसके लिए पाकिस्तान तब तक और बेहतर तरीके से लैस हो चुका होगा. साहनी ने स्पष्ट किया कि 'ऑपरेशन सिंदूर' कोई युद्ध नहीं था, बल्कि यह एक 'संकट की स्थिति' (क्राइसिस सिचुएशन) थी, जो युद्ध से तीन पायदान नीचे है.
युद्ध का अर्थ है अपनी पूरी सैन्य (थल सेना, वायु सेना, नौसेना) ताकत झोंक देना. 'ऑपरेशन सिंदूर' में सीमित कार्रवाई हुई. संकट की स्थिति के बाद अगला चरण 'प्री-वॉर कंडीशन' होता है, जब दोनों सेनाएं मोर्चे पर आ जाती हैं. इसमें पाकिस्तान को अपनी भौगोलिक स्थिति (लंबाई में फैली सेना) के कारण फायदा है, जबकि भारत की सेना फैली हुई है. भारत को पूर्ण सैन्य जमावड़े में (जैसा ऑपरेशन पराक्रम 2001-02 में हुआ) दो हफ्ते लग सकते हैं, जबकि पाकिस्तान एक हफ्ते में तैयार हो सकता है.
साहनी ने जोर देकर कहा कि वास्तविक लड़ाई में भावनाओं या ‘सिंदूर’ जैसी बातों का कोई स्थान नहीं होता. इसमें तीन चीजें मायने रखती हैं : काबिलियत (टेक्नोलॉजी), उसे इस्तेमाल करने की कला (डॉक्ट्रिन), और ट्रेनिंग. साहनी ने 2019 से ‘वन फ्रंट रीइंफोर्स्ड वॉर’ (एक मोर्चे पर सुदृढ़ युद्ध) की बात कही है, जहाँ भारत का दुश्मन सिर्फ पाकिस्तान नहीं, बल्कि चीन से समर्थित पाकिस्तान है.
मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के सैन्य और सुरक्षा निहितार्थों पर विचार नहीं किया गया. इसके तुरंत बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख चीन गए, जहाँ शी जिनपिंग ने जनरल बाजवा को सुरक्षा की चिंता चीन पर छोड़कर विकास पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी.
अक्टूबर 2019 में महाबलीपुरम में शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा था कि चीन, पाकिस्तान और भारत में शांति क्षेत्रीय विकास के लिए ज़रूरी है, जिसे भारत ने नज़रअंदाज़ किया. अप्रैल 2020 में चीन ने पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की. चीन लगातार पाकिस्तान की सुरक्षा और संप्रभुता का समर्थन करने की बात कह रहा है, जिसका अर्थ है पाकिस्तान को सैन्य रूप से और मज़बूत बनाना.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस बयान, जिसमें उन्होंने परमाणु युद्ध के अंदेशे और अपनी मध्यस्थता से इसे रोकने का दावा किया था, और प्रधानमंत्री मोदी के ‘हम न्यूक्लियर ब्लैकमेल से नहीं डरेंगे’ वाले कथन पर साहनी ने कहा : 1949 से नियंत्रण रेखा आज भी कायम है, जिसका अर्थ है कि भारत 65, 71 के पूर्ण युद्धों में भी पाकिस्तान को पश्चिमी मोर्चे पर निर्णायक रूप से नहीं हरा सका. जब पारंपरिक युद्ध में नहीं हरा पाए, तो परमाणु हथियार की बात कहाँ से आई?
परमाणु हथियार तब इस्तेमाल होते हैं, जब किसी देश का अस्तित्व ही दाँव पर लग जाए. पाकिस्तान की ‘फुल स्पेक्ट्रम कैपेबिलिटी’ (टैक्टिकल परमाणु हथियार) एक निवारक है, लेकिन इसका नियंत्रण सेना मुख्यालय के पास है, फील्ड कमांडरों के पास नहीं. ‘न्यूक्लियर ब्लैकमेल’ का डर गलत धारणा है. टकराव रुकवाने में ट्रम्प के दावे के अलावा चीन, सऊदी अरब, ईरान आदि की भी भूमिका रही.
साहनी के अनुसार, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, तुर्कीये, चीन सबसे संपर्क साधा, ताकि लड़ाई आगे न बढ़े. इसका अर्थ यह हुआ कि भारत ने स्वयं को पाकिस्तान के समकक्ष खड़ा कर दिया और बाहरी शक्तियों से लड़ाई रुकवाने की अपील कर अपनी कमजोरी ज़ाहिर की. सरकार का आकलन था कि बालाकोट की तरह इस बार भी पाकिस्तान कड़ी जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा, जो गलत साबित हुआ.
'ऑपरेशन सिंदूर' : एक 'ब्लंडर'?
साहनी ने 'ऑपरेशन सिंदूर' को ‘ब्लंडर" (बड़ी भूल) करार दिया. पहलगाम हमले को खुफिया विफलता कहना गलत है. जब सरकार कश्मीर को ‘सामान्य’ घोषित कर चुकी है और लाखों पर्यटक वहाँ जा रहे हैं, तो आतंकी कहीं भी हमला कर सकते हैं. असल मुद्दा कश्मीर को ‘सामान्य’ घोषित करने के बावजूद वहाँ से सेना न हटाना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल न करना है.
पाकिस्तान के अंदर ‘आतंकी ठिकानों’ पर हमला उसकी संप्रभुता का उल्लंघन था. ऐसे में पाकिस्तान की सैन्य ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई अपेक्षित थी. प्रधानमंत्री का यह कहना कि पाकिस्तान को हमारा साथ देना चाहिए था, नासमझी है. साहनी के मुताबिक आतंकी ठिकाने अस्थायी होते हैं. उनसे क्या हासिल हुआ? जब तक सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाया जाता, कोई ठोस परिणाम नहीं मिलता. ऑपरेशन के दौरान ‘संयम’ की बात करना लड़ाई न लड़ने की इच्छा दर्शाता है.
प्रधानमंत्री के पाकिस्तान से आतंक और पीओके के अलावा कोई बात न करने के बयान को साहनी ने भारत की विदेश नीति के लिए नुकसानदेह बताया. भारत ने 2016 से सार्क को लगभग त्याग दिया है और बिम्सटेक पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे क्षेत्र में एक भू-राजनीतिक शून्य पैदा हुआ है, जिसे चीन भर रहा है. 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान की प्रतिष्ठा बढ़ी है. बांग्लादेश का भारत के लिए हवाई क्षेत्र बंद करने का बयान चिंताजनक है. भारत की सैन्य क्षमता पर संदेह के चलते अमेरिका भी हिंद महासागर में चीन के खिलाफ भारत को एक सैन्य शक्ति के रूप में देखने की अपनी धारणा पर पुनर्विचार कर सकता है.
साहनी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर की नीति को पुरानी सोच पर आधारित बताया, जो अमेरिका-केंद्रित है, जबकि दुनिया बहुध्रुवीय हो चुकी है. भारत की विदेश नीति का लक्ष्य क्षेत्रीय शांति और विकास होना चाहिए. पाकिस्तान ने 5 भारतीय विमान गिराने का दावा किया, जबकि भारत ने अस्पष्ट बयान दिए.
पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने अपनी ‘नई युद्ध कला’ (मल्टी-डोमेन ऑपरेशंस) प्रस्तुत की. चीनी J-10 और PL-15 मिसाइल के संयोजन की सफलता की चर्चा हुई.
भारत की ओर से चुप्पी या टालमटोल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के दावे को बल दिया. संकट की स्थिति में सूचना युद्ध महत्वपूर्ण होता है, जिसमें भारत पिछड़ गया.
लोकतंत्र, विचारधारा और सेना का राजनीतिकरण
साहनी ने इस बात पर सहमति जताई कि लोकतंत्र का सार सरकार से सवाल पूछना है, जो पिछले कुछ वर्षों में कठिन हुआ है. भारत की सुरक्षा स्थिति बिगड़ी है और खतरे बढ़े हैं. सेना की ब्रीफिंग में तुलसीदास और दिनकर का भावनात्मक उद्धरण एक पेशेवर सेना के लिए चिंताजनक है. साहनी ने अपनी पुस्तक में ‘सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण’ पर एक अध्याय लिखा है. उनके अनुसार, आज वायु सेना में सबसे अधिक सक्षम और तटस्थ अधिकारी हैं. अगली लड़ाई वायु सेना के नेतृत्व में होगी, इसलिए वायु सेना को निर्णय लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, न कि प्रधानमंत्री कार्यालय को. वर्तमान सुरक्षा टीम देश की नहीं, एक विचारधारा की सेवा कर रही है. वाजपेयी अपनी विचारधारा को दबाकर सबसे बात करते थे, लेकिन अब स्थिति चरम पर है.
90.23 मीटर का ये थ्रो सिर्फ़ आंकड़ा नहीं
नीरज चोपड़ा ने शुक्रवार को दोहा डायमंड लीग 2025 में अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ 90.23 मीटर थ्रो के साथ 90 मीटर का आंकड़ा पार कर लिया. हालांकि अपना सर्वश्रेष्ठ हासिल करने के बावजूद वे जर्मनी के जूलियन वेबर से पीछे रह गए, लेकिन उन्होंने जो उपलब्धि हासिल की वह महज एक आंकड़ा नहीं है.
2021 टोक्यो ओलंपिक से पहले अगर किसी ने भविष्यवाणी की होती कि भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ओलंपिक स्वर्ण जीतेंगे, तो उनका मजाक उड़ाया जाता, क्योंकि स्वतंत्र भारत ने तब तक एथलेटिक्स में कभी ओलंपिक पदक नहीं जीता था. लेकिन उससे बहुत पहले, मई 2017 में ऑस्ट्रेलियाई गैरी कैल्वर्ट - जिन्होंने नीरज को जूनियर विश्व रिकॉर्ड के साथ 2016 अंडर-20 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक दिलाया था - ने द हिंदू से कहा था कि यह भारतीय न केवल 90 मीटर को पार करेगा, बल्कि 92 से आगे निकल जाएगा और 95 मीटर को भी छू लेगा!
दिवंगत हो चुके कैल्वर्ट ने तब खेल संवाददाता स्टान रायन से कहा था, “मेरे पास जो विकास योजना थी, उसके अनुसार वह 12 महीनों में 90 मीटर और दो साल में 92 से 95 मीटर तक पहुँच सकता है. नीरज ने दिखाया है कि उनमें क्षमता है. मैंने देखा है कि वह 30 वर्षों का सबसे बेहतरीन टैलेंट है."
कैल्वर्ट के सुनहरे शब्द एक-एक कर चमक रहे हैं. टोक्यो 2021 में, नीरज ने आश्चर्यजनक रूप से एथलेटिक्स में भारत का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाया और पहली बार भारत, जो हमेशा ओलंपिक ट्रैक और फील्ड में अपना सिर झुकाता था, ओलंपिक एथलेटिक्स पदक तालिका में ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, स्पेन, ब्राजील और जापान से ऊपर रहा. नीरज ने 2023 में विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण जीता और पिछले साल पेरिस में अपना दूसरा ओलंपिक पदक - रजत – जीता. अब जब उन्होंने अपने कंधों से बोझ उतार दिया है (1986 में दर्शकों के लिए खेल को सुरक्षित बनाने के लिए भाला को फिर से डिजाइन किए जाने के बाद से केवल 26 ने ऐसा किया है और एशिया से महज तीन ने), शुक्रवार की रात दोहा में डायमंड लीग में 90.23 मीटर के साथ नीरज का भाला अब और लंबी दूरी तक उड़ना चाहिए, क्योंकि अब वह अधिक स्वतंत्रता से फेंक पाएंगे. इससे यह सवाल भी खत्म हो जाना चाहिए कि ‘वह 90 मीटर कब आएगा’ जो नीरज के साथ हर बातचीत के दौरान उठता था.
वह देश के अब तक के सबसे महान एथलीट हैं और नीरज की किंवदंती यहाँ से और बड़ी होनी चाहिए. 27 वर्षीय नीरज, एक किसान का बेटा है, जो बचपन में भैंसों की दुम बांधता था और मधुमक्खियों के छत्ते को परेशान करता था. उनमें इस खेल में दुनिया के महान खिलाड़ियों में से एक होने की संभावना है. चेक विश्व रिकॉर्ड धारक जान ज़ेलेज़नी, जो अब नीरज के कोच हैं, को किसी तरह से पहले ही यह आभास हो गया था कि जब वह दोहा पहुंचे तो 90 मीटर का दिन आ गया है. शुक्रवार की रात दोहा में नीरज के बारे में कहा, “वह आमतौर पर डायमंड लीग में नहीं जाता है, लेकिन वह मेरे साथ आया, क्योंकि उसने मुझसे कहा था कि आज 90 मीटर हासिल करने का दिन है.”
शांत और संयमित, नीरज लगभग हमेशा दबाव में पनपते दिखते हैं. नीरज भी भाग्यशाली रहे हैं कि उन्हें दुनिया के कुछ बेहतरीन कोचों - कैल्वर्ट, वर्नर डेनियल, क्लॉस बार्टोनिट्ज़ और अब ज़ेलेज़नी - का मार्गदर्शन मिला है और इससे उन्हें अपनी क्षमता हासिल करने में मदद मिल रही है. अब हम नीरज से क्या पूछें? 92 मीटर ... या शायद 95?
आप टूटी, 15 पार्षदों ने नई पार्टी बनाई : शनिवार को आम आदमी पार्टी (आप) के पंद्रह पार्षदों ने दिल्ली में पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देकर नई पार्टी ‘इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी’ का गठन कर लिया. बागी नेताओं में एमसीडी में आप के सदन के नेता मुकेश गोयल के नेतृत्व में नई पार्टी का गठन किया गया है. गोयल फरवरी में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की टिकट पर आदर्श नगर से हार गए थे. गोयल समेत उनके नेतृत्व में अधिकतर नेता पिछले नगर निगम चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर आप में शामिल हुए थे.
कई बांग्लादेशी वस्तुओं के आयात पर बंदरगाह प्रतिबंध
केंद्र सरकार ने शनिवार को पूर्वोत्तर में भूमि पारगमन चौकियों के माध्यम से उपभोक्ता वस्तुओं की एक शृंखला के बांग्लादेश आयात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. इस फैसले में बांग्लादेश से रेडीमेड कपड़ों को केवल कोलकाता और न्हावा शेवा बंदरगाहों के माध्यम से प्रवेश की अनुमति देने का भी निर्णय लिया है. मिंट के अनुसार, यह प्रतिबंध भारत से होकर नेपाल और भूटान जाने वाले बांग्लादेशी सामान पर लागू नहीं होंगे. इस आदेश में कहा गया है, “फल/फलों के स्वाद वाले और कार्बोनेटेड पेय, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, कपास और सूती धागे का कचरा, प्लास्टिक और पीवीसी तैयार माल, पिगमेंट, डाई, प्लास्टिसाइज़र और ग्रेन्युल को छोड़कर जो अपने उद्योगों के लिए इनपुट बनाते हैं और लकड़ी के फर्नीचर को असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में किसी भी भूमि सीमा शुल्क स्टेशन (एलसीएस)/एकीकृत चेक पोस्ट (आईसीपी) और पश्चिम बंगाल में एलसीएस चंग्रबांधा और फुलबारी के माध्यम से आयात करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.” बयान में आगे कहा गया है, “बंदरगाह प्रतिबंध बांग्लादेश से मछली, एलपीजी, खाद्य तेल और कुचल पत्थर के आयात पर लागू नहीं होते हैं.”
हवाई हमले से इजराइल ने गाजा में 146 मारे
इजराइली हवाइर हमले के बाद गाजा में तबाही का खौफनाक मंजर. इसमें दर्जनों फिलीस्तीनी पिछले 24 घंटे में हुए इज़रायली हवाई हमलों से हुए मलबे में दबे और खड़े हैं. ढही इमारतें, बिखरा सामान, अस्थायी आश्रय दिखाई दे रहे हैं. यहां लोग मलबे में दबे लोगों को इस उम्मीद से देख रहे हैं कि शायद कोई बचा हो.
स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, पिछले 24 घंटों में इजराइली हवाई हमले में गाजा में कम से कम 146 फिलीस्तीनी मारे गए और सैकड़ों घायल हुए हैं. हमलों की यह लहर 18 मार्च को इजराइल और हमास के बीच संघर्ष विराम टूटने के बाद से सबसे घातक अवधियों में से एक को चिह्नित करती है, क्योंकि इज़राइल एक संभावित जमीनी आक्रमण के लिए अब तैयार है.
उत्तरी गाजा में इंडोनेशियाई अस्पताल के निदेशक, मारवान अल-सुल्तान ने बेहद भयावह स्थितियों का वर्णन किया है. उनके अनुसार, आधी रात से चार बच्चों सहित 58 शव प्राप्त हुए हैं, कई पीड़ित अब भी मलबे में फंसे हैं.
इजराइल की कड़ी नाकाबंदी ने गंभीर रूप से चिकित्सा आपूर्ति और मानवीय सहायता को प्रभावित किया है. गाजा की स्वास्थ्य प्रणाली ढहने के करीब है. उधर संयुक्त राष्ट्र ने क्षेत्र में आसन्न अकाल की चेतावनी दी है.
कमाल तो यह है कि भारत-पाकिस्तान में महज चार दिनों में समझौता का दावा करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्य-पूर्व की अपनी हालिया यात्रा के दौरान की गई अपील और अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने के बावजूद नतीजा संघर्ष विराम तक नहीं पहुंचा है. कथित तौर पर गाजा की आबादी को स्थानांतरित करने की योजनाएं गति में हैं. रिपोर्ट है कि ट्रम्प प्रशासन एक मिलियन फिलीस्तीनियों को लीबिया में स्थानांतरित करने पर विचार कर रहा है. इसके बावजूद कि इस प्रस्ताव का फिलीस्तीनी विरोध कर रहे हैं.
डेली सियासत के अनुसार, इन अपीलों का इजरायल पर कोई असर नहीं दिखता है. उसकी सेना ने बताया कि वह व्यापक हवाई हमले कर रहा है और ‘ऑपरेशन गिदोन के वैगनों’ के तहत गाजा में अपने अभियान को तेज करने के लिए सैनिकों को जुटा रहा है. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार व्यापक आक्रामकता के साथ आगे बढ़ रही है, जिसमें पूरी गाजा पट्टी पर नियंत्रण का मंसूबा शामिल है.
दिल्ली एयरपोर्ट पर अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट के 4 चीनी गिरफ्तार : एक चीनी व्यक्ति को बुधवार को दिल्ली के आईजीआई हवाई अड्डे पर एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान के दौरान यात्रियों से डेबिट और क्रेडिट कार्ड चुराने के आरोप में बुधवार को दिल्ली के आईजीआई हवाई अड्डे पर एक अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट का हिस्सा चार चीनी नागिरकों को गिरफ्तार किया गया था. अभियुक्तों की पहचान बेनलाई पैन, 30, और उनके सहयोगियों मेंग गुआंगयांग, 51, चांग मंग, 42, और लियू जी, 45 के रूप में की गई है.
पूछताछ में पैन ने स्वीकार किया कि वह और उनके साथी अंतरराष्ट्रीय पारगमन उड़ानों पर एक समन्वित सिंडिकेट संचालन का हिस्सा थे.
चलते-चलते
अफीम, अग्नि मंदिर और पारसी साड़ियाँ
भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई के एक शांत कोने में स्थित है ‘फ़्रामजी दादाभाई अलपाइवाला संग्रहालय’, जो दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक, पारसी धर्म के अनुयायियों को समर्पित है. यह संग्रहालय भारत में तेजी से घट रहे पारसी समुदाय के इतिहास और विरासत को दर्शाता है, जिनकी संख्या अब केवल 50,000 से 60,000 के बीच अनुमानित है. माना जाता है कि पारसी उन प्राचीन ईरानियों के वंशज हैं, जो सदियों पहले इस्लामी शासकों के धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए भारत आए थे.
संग्रहालय के क्यूरेटर करमन फातकिया के अनुसार, यह पुनर्निर्मित संग्रहालय दुर्लभ ऐतिहासिक कलाकृतियों के माध्यम से पारसी समुदाय के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को जानने का अवसर प्रदान करता है, ताकि उनकी अनूठी पहचान को और अधिक लोग जान सकें.
यहाँ 4000-5000 ईसा पूर्व की क्यूनिफॉर्म ईंटें, मिट्टी के बर्तन और साइरस महान के प्रसिद्ध 'साइरस सिलेंडर' की प्रतिकृति जैसी प्राचीन वस्तुएँ प्रदर्शित हैं, जिसे दुनिया का पहला मानवाधिकार चार्टर माना जाता है. एक दिलचस्प खंड 19वीं सदी में चीन के साथ चाय, रेशम, कपास और विशेष रूप से अफीम का व्यापार कर धनी हुए पारसियों से जुड़ी वस्तुओं को दर्शाता है, जिसमें चीनी और यूरोपीय डिजाइनों से प्रभावित पारंपरिक पारसी 'गारा' साड़ियाँ शामिल हैं.
संग्रहालय में 'टॉवर ऑफ साइलेंस' (दखमा) और पारसी अग्नि मंदिर (अगियारी) की प्रतिकृतियां भी हैं, जो गैर-पारसियों के लिए सामान्यतः दुर्गम पवित्र स्थलों की दुर्लभ झलक प्रस्तुत करती हैं. प्रसिद्ध पारसियों जैसे जमशेदजी टाटा के चित्र और उनसे जुड़ी वस्तुएँ भी यहाँ देखी जा सकती हैं. यह छोटा सा संग्रहालय इतिहास से भरा हुआ है. विस्तार से पढ़िये बीबीसी पर चेरीलन मोलन की रिपोर्ट.
पाठकों से अपील-
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