18/07/2025: पायलट की तरफ सुई, विरोध भी | तेजस्वी का केचुआ पर आरोप, लवासा के सवाल | 5 पूर्व सीजेआई पर दवे की तोहमतें | ममता और बांग्ला गर्व | खाता है, पर लेनदेन नहीं
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
पायलट सभरवाल की तरफ घूमती सुई, पर और भी कई पहलू, वॉल स्ट्रीट जर्नल की ख़बर का विरोध
तेजस्वी ने चुनाव आयोग पर लगाए 'वोटबंदी' की साजिश के गंभीर आरोप, 35 लाख नामों पर हंगामा
चुनाव आयोग के मुताबिक राजनीतिक दलों के साथ साझा की जा रही है मतदाता जानकारी
बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने उठाए गंभीर सवाल
भाजपा शासित राज्यों में बंगालियों का उत्पीड़न का आरोप ममता ने लगाया
रूस से व्यापार पर नाटो महासचिव ने भारत, चीन, ब्राज़ील को दी कड़ी चेतावनी
कुछ चीन के हथियार रहे, कुछ भारत की गलतियां
वकालत छोड़ने के बाद दुष्यंत दवे ने न्यायपालिका को डुबोने के लिए 5 पूर्व सीजेआई के नाम लिए
प्रिया को न माफ़ी और न ही ‘ब्लड मनी’ स्वीकार, नफ़रत भरी टिप्पणियों से बात बिगड़ी
भारत में 35% बैंक खाता धारक अपने खाते का उपयोग नहीं कर रहे
गुजरात में ऊंची जाति की तरह कपड़े पहनने पर पिटाई के बाद दलित युवक ने जान दी
महाराष्ट्र के होम्योपैथी डॉक्टर भूख हड़ताल पर
सिद्धू मूसेवाला एक बार फिर मंच पर
एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की किताब से टीपू सुल्तान और हैदर अली गायब, एंग्लो-मैसूर युद्धों का भी कोई ज़िक्र नहीं
ज़ेलेंस्की, ट्रम्प के बीच ड्रोन मेगा-डील?
मेटा निवेशक और ज़करबर्ग के बीच समझौता, 8 अरब डॉलर के मुकदमे का अंत
'सरदार जी 3' ने विदेशों में तोड़े बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड, दिलजीत दोसांझ की ग्लोबल पकड़ कायम
गांधी का पोर्ट्रेट 1.75 करोड़ रुपये में नीलाम
"गर्म हवा": तीन उर्दू दिग्गजों के सहयोग से बनी बंटवारे की सबसे सजीव कहानी
अहमदाबाद विमान हादसा
पायलट सभरवाल की तरफ घूमती सुई, पर और भी कई पहलू, वॉल स्ट्रीट जर्नल की ख़बर का विरोध
पिछले महीने हुए एयर इंडिया विमान हादसे की जांच में सामने आए नए विवरण ने जांच की दिशा को कॉकपिट में मौजूद वरिष्ठ पायलट की ओर मोड़ दिया है. हालांकि, भारतीय जांचकर्ता विमान में पहले से मौजूद तकनीकी खामियों की भी गहनता से पड़ताल कर रहे हैं, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि यह हादसा मानवीय भूल थी या एक भयावह तकनीकी विफलता. अमेरिकी अधिकारियों के आकलन के अनुसार, ब्लैक बॉक्स रिकॉर्डिंग से पता चलता है कि कैप्टन ने ही विमान के इंजनों में ईंधन की आपूर्ति बंद कर दी थी, जबकि भारतीय जांचकर्ता विमान में इलेक्ट्रिकल और सॉफ्टवेयर से जुड़ी उन खामियों की जांच कर रहे हैं, जिनसे "अन-कमांडेड" (बिना कमांड के) एक्शन हो सकता था.
अमेरिकी अधिकारियों के शुरुआती आकलन से परिचित लोगों के अनुसार, विमान के ब्लैक-बॉक्स में दर्ज दोनों पायलटों के बीच की बातचीत से संकेत मिलता है कि यह कैप्टन सुमीत सभरवाल थे, जिन्होंने विमान के दोनों इंजनों में ईंधन पहुंचाने वाले स्विच बंद कर दिए थे. वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, विमान उड़ा रहे फर्स्ट ऑफिसर क्लाइव कुंदर ने अनुभवी कैप्टन से पूछा कि उन्होंने रनवे से उड़ान भरने के बाद स्विच को "कटऑफ" स्थिति में क्यों कर दिया. सूत्रों के मुताबिक, फर्स्ट ऑफिसर ने हैरानी जताई और फिर घबरा गए, जबकि कैप्टन शांत लग रहे थे. भारत के विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) द्वारा जारी प्रारंभिक रिपोर्ट में इस बातचीत का सारांश था, लेकिन यह नहीं बताया गया था कि किसने क्या कहा. रिपोर्ट के अनुसार, दोनों स्विच एक सेकंड के अंतराल पर बंद किए गए और लगभग 10 सेकंड बाद वापस चालू किए गए. इस खुलासे ने कुछ अमेरिकी अधिकारियों के बीच इस विश्वास को हवा दी है कि इस मामले की समीक्षा आपराधिक अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए.
इसके विपरीत, भारतीय जांचकर्ता एक अलग और महत्वपूर्ण पहलू की जांच कर रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जांचकर्ता विमान के इलेक्ट्रिकल और सॉफ्टवेयर घटकों में आई उन खामियों का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं, जिनसे संभवतः "अन-कमांडेड" एक्शन शुरू हो सकता था. इस थ्योरी को इस बात से बल मिलता है कि दुर्घटनाग्रस्त बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर में पहले भी गंभीर तकनीकी समस्याएं आ चुकी थीं, जिसमें दिसंबर 2024 में एक "असमाधानीय इलेक्ट्रिकल खराबी" के कारण उड़ान रद्द होना और 2015 में केबिन एयर कंप्रेसर (CAC) सर्ज के कारण आपातकालीन लैंडिंग शामिल है. जांचकर्ताओं के अनुसार, यह संभव है कि सेंसर में आई खराबी या सॉफ्टवेयर बग ने बिना कमांड के एक्शन शुरू कर दिया हो, जिससे इंजन फेल हो गए और ईंधन स्विच कट-ऑफ मोड में चले गए.
इस मामले में विभिन्न रिपोर्टों के बीच, अधिकारियों ने संयम बरतने की अपील की है. एएआईबी और नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्टिंग को "एकतरफा" बताते हुए खारिज कर दिया और मीडिया व जनता से जांच की सत्यनिष्ठा को कमजोर करने वाले समय से पहले निष्कर्ष फैलाने से बचने का आग्रह किया. एयर इंडिया के सीईओ कैंपबेल विल्सन ने भी कर्मचारियों से आग्रह किया है कि वे दुर्घटना के बारे में जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालें. इस बीच, कुछ मीडिया आउटलेट्स ने कैप्टन सभरवाल की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर निराधार दावे किए, जिनका टाटा समूह के एक अधिकारी ने खंडन किया.
इस जांच में अमेरिकी राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (एनटीएसबी) की सीधी भागीदारी है क्योंकि विमान बोइंग द्वारा डिजाइन किया गया था. एनटीएसबी की अध्यक्ष जेनिफर होमेंडी ने खुद कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डिंग सुनने की मांग की है, जो इस मामले में अमेरिकी गंभीरता को दर्शाता है. इन सबके बीच, तकनीकी विश्लेषण और परस्पर विरोधी रिपोर्टों के शोर से परे, इस त्रासदी की एक मानवीय कहानी भी है, जो न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी रिपोर्टों में सामने आई है. यह हमें याद दिलाती है कि जांच का हर डेटा पॉइंट एक खत्म हो चुकी जिंदगी का प्रतीक है. इसी को देखते हुए, विमानन नियामक, डीजीसीए ने भारत में पायलटों के लिए चिकित्सा मानकों को संशोधित करने के लिए एक समिति गठित करने पर सहमति व्यक्त की है.
निष्कर्षतः, एयर इंडिया फ्लाइट 171 की दुर्घटना की जांच एक दोराहे पर खड़ी है. एक ओर, सबूत वरिष्ठ पायलट द्वारा जानबूझकर उठाए गए कदम की ओर इशारा करते हैं, जबकि दूसरी ओर, विमान का तकनीकी इतिहास और सॉफ्टवेयर की खामियों की आशंका एक प्रणालीगत विफलता की गंभीर संभावना को उजागर करती है. जांच अभी पूरी नहीं हुई है और कोई भी अंतिम निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी. जब तक अंतिम रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाएगा कि यह हादसा एक पायलट की गलती थी या उस उन्नत विमान की तकनीक का धोखा, जिस पर सैकड़ों यात्रियों की जान निर्भर थी.
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स (FIP), जो लगभग 5,500 पायलटों का प्रतिनिधित्व करता है, ने द वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है. एफआईपी के अध्यक्ष सीएस रंधावा ने वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में कहीं भी पायलट की गलती या कार्रवाई का जिक्र नहीं है और मीडिया पायलटों की छवि को धूमिल कर रहा है. सीएस रंधावा ने कहा — “हम इस तरह पायलटों को निशाना बनाए जाने का विरोध करते हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल के आरोप भ्रामक और आधारहीन हैं. हम कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं,”. भारत की विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) की प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुर्घटना के तुरंत बाद दोनों इंजन बंद हो गए, क्योंकि दोनों फ्यूल कंट्रोल स्विच 'RUN' से 'CUTOFF' पर आ गए थे.
बिहार
तेजस्वी ने चुनाव आयोग पर लगाए 'वोटबंदी' की साजिश के गंभीर आरोप, 35 लाख नामों पर हंगामा
राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने गुरुवार (17 जुलाई, 2025) को चुनाव आयोग पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला है. उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण के माध्यम से सत्तारूढ़ भाजपा के इशारे पर बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम काटने की साजिश रची जा रही है. यह विवाद तब और गहरा गया जब चुनाव आयोग ने खुद स्वीकार किया कि मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के दौरान 35 लाख से अधिक मतदाता अपने पते पर नहीं पाए गए.
अपने आवास पर इंडिया ब्लॉक के अन्य नेताओं के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, तेजस्वी यादव ने कहा कि SIR को लेकर विपक्ष की आशंकाएं सही साबित हो रही हैं. उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए कहा, "SIR के माध्यम से न केवल लोगों के अधिकार छीने जा रहे हैं, बल्कि उनका अस्तित्व भी छीना जा रहा है. मतदाता सूची से उनके नाम हटाकर उन्हें हर तरह की सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से वंचित करने की साजिश है". उन्होंने चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी अवहेलना करने का आरोप लगाया और कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार इस मामले पर चुप हैं और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए काम में लगे हुए हैं.
तेजस्वी ने पुनरीक्षण प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "तीन दिन पहले, कई अखबारों ने सूत्रों के हवाले से खबर छापी कि 35 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए जाएंगे. 16 जुलाई को, चुनाव आयोग ने उन्हीं आंकड़ों का हवाला दिया. सवाल यह है कि जब प्रक्रिया अभी चल ही रही है और SIR के समाप्त होने में अभी भी आठ दिन बाकी हैं, तो इतने सारे मतदाताओं के नाम हटाने की खबर पहले ही कैसे लीक हो गई?". उन्होंने दावा किया कि यह दर्शाता है कि "दाल में कुछ काला है". इस मुद्दे पर आगे की रणनीति बनाने के लिए, उन्होंने बताया कि वह 19 जुलाई को दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर होने वाली बैठक में भी शामिल होंगे.
राजद नेता ने आरोप लगाया कि बिहार में बूथ-स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) पर दबाव डालकर और फर्जी हस्ताक्षर की मदद से भाजपा के लोगों द्वारा मतदाताओं की जानकारी के बिना धोखाधड़ी से उनके नाम अपलोड किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, "हमारे पास इसके वीडियो फुटेज भी हैं. जो पत्रकार इस सच्चाई को दिखा रहे हैं, उन पर FIR की जा रही है". तेजस्वी ने आशंका जताई कि बिहार में 12% से 15% मतदाताओं के नाम हटाने की तैयारी चल रही है और दावा किया कि 22,000 बूथों पर बीएलओ ने अभी तक काम भी शुरू नहीं किया है.
इस मुद्दे पर उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि एनडीए के भीतर ही, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी एसआईआर पर सवाल उठाए हैं, लेकिन नीतीश कुमार चुप हैं. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश कुमार ने भी आरोप लगाया कि मतदाताओं के नाम उनके उपनामों के आधार पर चुनिंदा तरीके से हटाए जा रहे हैं.
यह मामला अब बिहार से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया है. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया पर आरोप लगाया, "एसआईआर अभ्यास के खुलासे भाजपा-नियंत्रित चुनाव आयोग को पूरी तरह से बेनकाब करते हैं. प्रारंभिक अनुमान बताते हैं कि इस जल्दबाजी की प्रक्रिया में 35 लाख मतदाताओं को मताधिकार से वंचित किया जा रहा है". उन्होंने इसे "खुलेआम वोटबंदी" करार दिया और कहा कि यह बड़े पैमाने पर चुनावी धांधली की बू देता है, जिसे हम कभी नहीं होने देंगे. विपक्ष ने बिहार में इस विशेष गहन पुनरीक्षण को तत्काल रोकने की मांग की है.
चुनाव आयोग के मुताबिक राजनीतिक दलों के साथ साझा की जा रही है मतदाता जानकारी
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि चुनाव आयोग (ECI) ने गुरुवार को बताया कि बिहार में चल रहे विशेष सघन पुनरीक्षण अभियान (SIR) के तहत ऐसे मतदाताओं की जानकारी राजनीतिक दलों के ज़मीनी कार्यकर्ताओं और ज़िला अध्यक्षों के साथ साझा की जा रही है, जो या तो स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके हैं, मृतक हैं या एक से अधिक स्थानों पर नामांकित हैं. आयोग ने बताया कि 25 जुलाई तक विशेष पुनरीक्षण फॉर्म भरे जा सकते हैं, जिसके बाद 1 अगस्त को मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी. अभी तक 89.7% मतदाताओं (7,08,18,162) ने अपने फॉर्म भर दिए हैं. शेष 5.8% मतदाता अब भी फॉर्म नहीं भर पाए हैं. जो मतदाता अस्थायी रूप से बिहार से बाहर हैं, वे अपने फॉर्म ECINet ऐप या voters.eci.gov.in पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन भर सकते हैं.
अब तक के आंकड़े चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार के कुल 7,89,69,844 मतदाताओं में से 4.5% मतदाता अपने पते पर नहीं मिले. 1.59% मृत घोषित हुए हैं. 0.73% एक से अधिक स्थानों पर नामांकित और 2.2% स्थायी रूप से स्थानांतरित पाए गए हैं.
बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने उठाए गंभीर सवाल
पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने 'द वायर' के लिए करण थापर को दिए अपने इंटरव्यू में कहा है कि यह प्रक्रिया आक्रामक, जल्दबाज़ और टालने योग्य थी. बिहार में चल रहे विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर पूर्व चुनाव आयुक्त ने गहरी आपत्ति जताई है. लवासा ने इस प्रक्रिया को "आक्रामक, अचानक, महत्त्वाकांक्षी और टालने योग्य" बताया. चुनाव आयोग द्वारा 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने वालों से नागरिकता का प्रमाण मांगने की नई नीति पर उन्होंने कहा कि यह भारत की 74 वर्षों की चुनावी परंपरा से पूर्णत: भिन्न और असंवैधानिक प्रवृत्ति है.
लवासा ने साफ कहा कि "जिस व्यक्ति को EPIC (मतदाता पहचान पत्र) मिला है और जो पूर्व में मतदान कर चुका है, उससे अब फिर से नागरिकता प्रमाण मांगना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि अन्यायपूर्ण भी." उन्होंने इस बिंदु पर 1993 के गुवाहाटी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग मतदाता सूची बनाते समय नागरिकता की जांच नहीं कर सकता. यदि कोई विदेशी नागरिक के तौर पर चिन्हित होता है, तो सूची से नाम हटाना मुमकिन है पर इसकी जांच गृह मंत्रालय का दायित्व है, न कि चुनाव आयोग का.
लवासा ने चुनाव आयोग की मंशा पर सीधे सवाल नहीं उठाए, लेकिन संकेत दिया कि "इस प्रक्रिया का समय अत्यंत संवेदनशील है, जब बिहार में कुछ ही महीने में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में यह कदम लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित कर सकता है." उन्होंने यह भी कहा कि यह वही रास्ता है जो असम में "D-वोटर" की प्रणाली से देखा गया, जिसमें लाखों लोग अनिश्चितता में फंसे और नागरिकता साबित करने में वर्षों लग गए.
जब लवासा से पूछा गया कि क्या चुनाव आयोग विदेशी नागरिकों जैसे "बांग्लादेशी, नेपाली और म्यांमार से आए" लोगों की पहचान कर सकता है, उन्होंने आश्चर्य जताते हुए पूछा कि "क्या लोग खुद बताते हैं कि वे विदेशी हैं? अगर नहीं, तो आयोग यह पहचान किस आधार पर करता है?"
भाजपा शासित राज्यों में बंगालियों का उत्पीड़न का आरोप ममता ने लगाया
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा-शासित राज्यों में बंगाली भाषी लोगों के साथ होने वाले कथित उत्पीड़न के खिलाफ कोलकाता में एक बड़ा विरोध मार्च निकाला. इस मार्च में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के वरिष्ठ नेताओं और हजारों कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया.
ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि भाजपा-शासित राज्यों में बंगाली भाषी लोगों को बार-बार निशाना बनाया जा रहा है, उनकी पहचान को चुनौती दी जा रही है, और उन्हें अवैध प्रवासी कह कर नीचा दिखाया जा रहा है. उन्होंने पूछा, “क्या पश्चिम बंगाल भारत में नहीं है? क्या यह भारत का हिस्सा नहीं है? बंगालियों के खिलाफ इतनी नफरत क्यों?” यह भी कहा कि अगर तुम्हारे पास हिम्मत है तो मुझे हिरासत कैंप में डालो. बंगाल झुकने वाला नहीं है. यह हमारे सम्मान और मूल अधिकारों की लड़ाई है. अगर किसी को बंगाली होने की वजह से बांग्लादेशी कहा जाएगा, तो हम यह सहन नहीं करेंगे. विरोध के दौरान "बीजेपी, ची ची" जैसे नारे लगाए गए. उन्होंने भाजपा को चेतावनी दी कि यदि बंगाली भाषियों का उत्पीड़न नहीं रुका तो इसके गंभीर राजनीतिक परिणाम होंगे. ममता के इस मार्च को पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनावों और बंगाली पहचान, सम्मान तथा अधिकारों की रक्षा के लिए टीएमसी की रणनीतिक राजनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है.
रूस से व्यापार पर नाटो महासचिव ने भारत, चीन, ब्राज़ील को दी कड़ी चेतावनी
रूत्ते ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा, “मेरी सलाह इन तीन देशों के लिए खासतौर पर यह है कि अगर आप बीजिंग, दिल्ली में रहते हैं, या ब्राज़ील के राष्ट्रपति हैं, तो आपको इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, क्योंकि इसका असर आप पर बहुत कठोर हो सकता है.” उनका यह बयान ट्रम्प से मुलाकात के एक दिन बाद आया है. ट्रम्प पहले ही यूक्रेन के लिए नए हथियारों की घोषणा कर चुके हैं और यह चेतावनी भी दी है कि अगर अगले 50 दिनों में शांति समझौता नहीं हुआ, तो रूसी निर्यात खरीदने वालों पर 100% तक के कड़े टैरिफ लगाए जाएंगे. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता ने कहा — “हम इस मसले पर किसी भी प्रकार के दोहरे मापदंड को लेकर विशेष रूप से सावधानी बरतने की सलाह देते हैं.”
भारत ने पहले भी रूस से तेल खरीद को लेकर पश्चिमी देशों की आलोचनाओं को 'भारत के ऊर्जा हितों से जुड़ा निर्णय' बताते हुए खारिज किया है. चीन और ब्राज़ील भी अब तक रूस के साथ व्यापार और कूटनीति में निष्पक्ष संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते रहे हैं.
ऑपरेशन सिंदूर
कुछ चीन के हथियार रहे, कुछ भारत की गलतियां
इकोनॉमिस्ट ने रिपोर्ट किया है कि मई महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए एक संक्षिप्त हवाई संघर्ष के बाद, भारतीय लड़ाकू विमानों के नुकसान को लेकर जांच की दिशा अब तकनीकी कमियों से हटकर भारतीय पक्ष की "सामरिक गलतियों" और विवादास्पद राजनीतिक आदेशों की ओर मुड़ गई है. यह मामला 7 मई को उत्तरी भारत के अकालगढ़ कलां गांव में एक भारतीय लड़ाकू विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से सुर्खियों में आया, जिसमें दो नागरिकों की भी मौत हो गई. हालांकि भारत सरकार पाकिस्तान द्वारा छह विमानों को मार गिराने के दावे का खंडन करती है, लेकिन विदेशी सैन्य अधिकारी कम से कम एक राफेल समेत पांच भारतीय विमानों के नष्ट होने का अनुमान लगा रहे हैं. अब भारतीय सैन्य अधिकारी भी, संख्या बताए बिना, कुछ विमानों को खोने की बात स्वीकार कर रहे हैं, जिससे जांच और गहरी हो गई है.
यह संघर्ष सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि यह पहली बार था जब पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए गए उन्नत चीनी लड़ाकू विमान (J-10) और मिसाइलों (PL-15) का मुकाबला पश्चिमी और रूसी तकनीक से हुआ. अमेरिका और उसके सहयोगी इस पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि ताइवान के साथ संभावित संघर्ष में चीन इन्हीं हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. शुरुआती अटकलों के बावजूद कि चीनी तकनीक बेहतर साबित हुई, अब भारतीय अधिकारियों के बयान एक अलग कहानी बयां कर रहे हैं. भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, जनरल अनिल चौहान ने स्वीकार किया कि संघर्ष की पहली रात "सामरिक गलतियों" के कारण कुछ विमानों का नुकसान हुआ, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया.
इस मामले में सबसे विस्फोटक मोड़ तब आया जब जकार्ता में भारत के रक्षा अताशे, कैप्टन शिव कुमार का एक बयान सामने आया. उन्होंने दावा किया कि भारतीय विमानों को नुकसान इसलिए हुआ क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने वायु सेना को पाकिस्तानी हवाई सुरक्षा पर हमला न करने का आदेश दिया था. उनके अनुसार, पहले दिन केवल आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिससे भारतीय जेट पाकिस्तानी हमलों के प्रति असुरक्षित हो गए. कैप्टन कुमार ने कहा कि इस नुकसान के बाद ही भारत ने अपनी रणनीति बदली और पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमले शुरू किए. यदि यह दावा सही है, तो जिम्मेदारी सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार पर आती है, और यह विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे मामले को दबाने के आरोपों को और बल देता है.
इन दावों के अलावा, विदेशी अधिकारी कई अन्य तकनीकी सिद्धांतों पर भी विचार कर रहे हैं. एक थ्योरी यह है कि पहले दिन भारतीय राफेल विमानों पर लंबी दूरी की मेटियोर मिसाइलें नहीं लगाई गई थीं. एक अन्य संभावना यह है कि विमानों में पाकिस्तान के नए हथियारों से बचाव के लिए उपयुक्त इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग उपकरण या अपडेटेड सॉफ्टवेयर का अभाव था. एक व्यापक स्पष्टीकरण यह भी है कि भारत के पास पाकिस्तान की रणनीति को समझने के लिए आवश्यक "मिशन डेटा" की कमी थी.
इस प्रकरण का भारत के भविष्य के रक्षा सौदों पर भी गहरा असर पड़ रहा है. भारत जल्द ही 114 नए लड़ाकू विमानों के लिए एक बड़ी निविदा जारी करने वाला है, जिसमें फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट (राफेल निर्माता) एक प्रमुख दावेदार है. लेकिन अब भारतीय सैन्य हलकों में राफेल के प्रदर्शन पर सवाल उठ रहे हैं. वहीं, डसॉल्ट और फ्रांसीसी सरकार पर भी अपने सबसे उन्नत लड़ाकू विमान की पहली युद्धक क्षति पर स्पष्टीकरण देने का भारी दबाव है. डसॉल्ट के चेयरमैन ने पाकिस्तानी दावों को "असत्य" बताया है और संकेत दिया है कि पूरी सच्चाई सामने आने पर कई लोग हैरान होंगे. फ्रांसीसी संसद में भी राफेल की इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली 'स्पेक्ट्रा' की विफलता को लेकर सवाल उठाए गए हैं.
वकालत छोड़ने के बाद दुष्यंत दवे ने न्यायपालिका को डुबोने के लिए 5 पूर्व सीजेआई के नाम लिए
प्रसिद्ध वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के तीन बार अध्यक्ष रह चुके दुष्यंत दवे ने 70वें जन्मदिन के कुछ ही दिनों बाद कानूनी पेशे से संन्यास लेने की घोषणा कर सबको चौंका दिया है. 'द वायर' के साथ करन थापर को दिए विशेष इंटरव्यू में उन्होंने न केवल अपने पेशेवर जीवन की यादें साझा कीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में न्यायपालिका की विफलता को लेकर गंभीर सवाल भी उठाए.
दवे ने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद, मुख्य न्यायाधीश ठाकुर आखिरी व्यक्ति थे जिन्होंने न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखा. उसके बाद आए सभी मुख्य न्यायाधीशों — न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, एसए बोबडे, एनवी रमना, डीवाई चंद्रचूड़ सभी ने देश और न्याय प्रणाली को निराश किया. न्याय वितरण व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.” उन्होंने यह भी कहा कि “न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह कार्यपालिका द्वारा क़ानून को हाथ में लेने की प्रवृत्ति को रोके, लेकिन उसने अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी पूरी नहीं की.”
जब उनसे पूछा गया कि संन्यास का निर्णय क्यों लिया, तो उन्होंने कहा — “70वां जन्मदिन मेरे लिए एक स्वाभाविक अवसर बन गया इस निर्णय को औपचारिक रूप देने का. मैं इसे काफी समय से सोच रहा था. मेरा मानना है कि मैंने अपने करियर में बहुत कुछ हासिल किया है और अब समय है विराम लेने का.” उनके परिवार— बच्चे, बहू, दामाद और पत्नी ने दो साल और कार्य करने का आग्रह किया था ताकि 50 वर्षों की सेवा पूरी हो सके, लेकिन दवे ने यह कहकर इनकार किया कि 48 साल या 50 साल से क्या फर्क पड़ता है? मैं ऐसे उत्सवों में विश्वास नहीं रखता. दवे ने अपने करियर की शुरुआत 250 रुपये प्रति माह की तनख्वाह पर की थी. उन्होंने बताया कि उनके पिता—जो हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज थे, वित्तीय मदद नहीं कर सकते थे. ऐसे में एक पियून जीलूस सिंह ने उनके साथ कमरा साझा किया और खाना भी बनाया. यह दोस्ती वर्षों तक चली और जीलूस सिंह का परिवार आज भी दवे के संपर्क में है. उन्होंने अपने करियर में हजारों मुकदमे लड़े. खासतौर पर गुजरात हाई कोर्ट में सरकारी याचिकाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्हें गहरा अनुभव मिला, जहां उन्हें 30 रुपये प्रति केस मिलते थे, जिसमें टाइपिंग शुल्क भी शामिल था.
प्रिया को न माफ़ी और न ही ‘ब्लड मनी’ स्वीकार, नफ़रत भरी टिप्पणियों से बात बिगड़ी
यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी के भाई अब्दुल फताह मेहदी ने कहा है कि उसका परिवार शरिया कानून के तहत निमिषा प्रिया के परिवार से ‘ब्लड मनी’ स्वीकार नहीं करेगा और न ही माफ़ी देगा. दरअसल, अब्दो महदी की हत्या के आरोप में केरल की निवासी निमिषा प्रिया को मौत की सज़ा सुनाई गई है और ‘ब्लड मनी’ स्वीकार करने से प्रिया की फांसी टल जाती. लेकिन, अब्दुल फताह ने सोशल मीडिया पर की गईं तमाम पोस्ट में से एक उद्धृत किया, जिसमें कहा गया था, “फांसी में कोई भी देरी हो, बदले की कार्रवाई अवश्य होगी.” उन्होंने यह भी रिपोर्ट किया कि भारतीय धर्मगुरु कंथपुरम अबूबक्कर मुस्लियार, जिन्होंने प्रिया की फांसी की कार्रवाई को कुछ वक्त के लिए टलवाने में मदद की, के कुछ विरोधियों ने महदी के परिवार से कोई भी ‘ब्लड मनी’ स्वीकार न करने का आग्रह किया है. शाजू फिलिप के अनुसार, सबसे चिंताजनक बात यह है कि आरजेडी राष्ट्रीय परिषद सदस्य सलीम मडवूर ने कहा है कि "कुछ लोग पीड़ित के भाई के फेसबुक पेज पर नफरत भरी टिप्पणियां कर रहे हैं और इसका प्रिया को रिहा कराने की कोशिशों पर नकारात्मक असर पड़ेगा.”
कच्छ के चारागाह में वंतारा के चीतल छोड़ने पर चिंता
'द वायर' की रिपोर्ट है कि अनंत अंबानी के वन्य संरक्षण प्रोजेक्ट वंतारा द्वारा गुजरात के बन्नी घासभूमि में चीतल (स्पॉटेड डियर) छोड़ने के फैसले पर पर्यावरणविदों ने गंभीर चिंता जताई है. वंतारा का कहना है कि यह कदम गुजरात वन विभाग के साथ संयुक्त क्षेत्रीय मूल्यांकन के बाद उठाया गया, लेकिन क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र से परिचित विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय और सोच-समझकर लिया जाना चाहिए था. पर्यावरण रिपोर्टर आथिरा पेरिनचेरी को कई विशेषज्ञों ने बताया कि चीतल आमतौर पर ऐसी गर्म, अर्ध-शुष्क और सूखा-बाढ़ दोनों की मार झेलने वाली जगहों में जीवित नहीं रह पाते. अगर उन्हें कृत्रिम रूप से सहारा देकर जीवित रखा गया तो वे आक्रामक प्रजाति बन सकते हैं, जो स्थानीय पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
स्थानीय चरवाहा समुदायों के लिए बन्नी की घासभूमि पहले से ही एक महत्वपूर्ण चरागाह है. चीतलों की मौजूदगी से उनका जीवन प्रभावित हो सकता है. एक दिन बाद ही गुजरात के शीर्ष वन अधिकारी ने यह बयान दिया कि बन्नी अब अफ्रीकी चीता परियोजना के लिए तैयार है, जिससे अटकलें तेज़ हो गई हैं कि क्या चीतलों को भविष्य में चीतों के शिकार के रूप में पेश करने की तैयारी हो रही है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा हुआ, तो यह न सिर्फ स्थानीय पारिस्थितिकी के साथ खिलवाड़ होगा, बल्कि वन्यजीव प्रबंधन की नैतिकता पर भी सवाल खड़े करेगा.
भारत में 35% बैंक खाता धारक अपने खाते का उपयोग नहीं कर रहे
भारत में एक तिहाई से अधिक बैंक खाता धारक अब बैंकिंग सुविधाओं का उपयोग नहीं कर रहे हैं और उनके खाते निष्क्रिय हैं, यह जानकारी वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट ‘ग्लोबल फिनडेक्स 2025’ में दी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में खातों की निष्क्रियता की उच्च दर का बड़ा कारण जन धन योजना के तहत खोले गए खाते हैं. इसमें यह भी बताया गया है कि अन्य विकासशील देशों की तुलना में निष्क्रिय उपयोगकर्ताओं की हिस्सेदारी भारत में काफी अधिक है.
अनुमान है कि 2021 में भारत में 35% बैंक खाता धारकों के खाते निष्क्रिय थे, जो अन्य विकासशील देशों (भारत को छोड़कर) के औसत 5% से सात गुना अधिक है. निष्क्रिय खाता वह होता है, जिसमें लंबे समय (अक्सर 12 महीने) तक ग्राहक द्वारा कोई लेन-देन नहीं किया गया हो. कई खाते भारत सरकार की जन धन योजना के तहत खोले गए थे, जिससे बैंकिंग प्रणाली में करोड़ों भारतीय शामिल हुए. इस योजना में अकेले अप्रैल 2022 तक 45 करोड़ नए बैंक खाते खोले गए थे.
निष्क्रिय खातों के कारण के बारे में लोगों ने बताया कि वित्तीय संस्थान दूर होने, संस्थानों पर भरोसा न होने, या खाते की आवश्यकता न होने के कारण खाते निष्क्रिय हैं. 40% ने कहा कि उनके पास खाते में उपयोग के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे. 30% ने कहा कि उन्हें स्वयं बैंकिंग करने में असुविधा महसूस होती है. उच्च आय वाले देशों में 2021 में लगभग सभी खाताधारकों का खाता सक्रिय था. बिजनेस स्टैण्डर्ड में शिवा राजौरा ने पूरी जानकारी दी है.
हेट क्राइम
गुजरात में ऊंची जाति की तरह कपड़े पहनने पर पिटाई के बाद दलित युवक ने जान दी
एक दलित होकर उसने ऊंची जाति के आदमियों की तरह कपड़े क्यों पहने, इस बात पर उसे जलील किया और पीटा. वह यह अपमान सहन नहीं कर सका और उसने आत्महत्या कर ली. यह घटना गुजरात की है.
“डेक्कन हेराल्ड” के अनुसार 19 वर्षीय दलित युवक, महेंद्र कालाभाई परमार के बनासकांठा जिले के वासरदा गांव में ऊंची जाति के पांच लोगों ने कथित रूप से “उनके जैसी पोशाक पहनने” पर हमला किया. वह 10 जुलाई को लापता हो गया था और उसकी लाश 12 जुलाई को गांव के कुएं में मिली थी. एफआईआर के अनुसार, महेंद्र के चाचा ने आरोप लगाया कि गांव के पंचायत कार्यालय के पास पांच लोगों ने उसे पीटा और बेइज्जती की. आरोपी 'रबारी' समुदाय से हैं, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आते हैं. पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं और अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत पांचों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
महाराष्ट्र के होम्योपैथी डॉक्टर भूख हड़ताल पर
महाराष्ट्र के होम्योपैथी डॉक्टरों ने महाराष्ट्र चिकित्सा शिक्षा विभाग के एक फैसले के खिलाफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है. दरअसल, विभाग ने एक वर्ष का प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद होम्योपैथी चिकित्सकों को एलोपैथी से इलाज या प्रैक्टिस करने की अनुमति दी थी, लेकिन अब उसने अपना यह आदेश स्थगित कर दिया है.
“मिड डे” के अनुसार, पंजीकृत होम्योपैथ डॉक्टरों को एलोपैथी से इलाज करने की अनुमति देने का उद्देश्य ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में एमबीबीएस डॉक्टरों की गंभीर कमी को दूर करना था. लेकिन इस फैसले का भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) ने कड़ा विरोध किया. उसका तर्क था कि होम्योपैथ को आधुनिक चिकित्सा करने की अनुमति देना मरीजों की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है.
इसके जवाब में, बॉम्बे हाईकोर्ट पहले ही इस मामले पर रोक लगा चुका था, लेकिन राज्य सरकार ने आगे बढ़कर आदेश जारी कर दिया. अब, कानूनी और पेशेवर दबाव के चलते, चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान निदेशालय ने यह आदेश वापस लिया है और मामले की आगे जांच के लिए एक समिति गठित की है. इस आदेश की वापसी से होम्योपैथ बिरादरी में नाराज़गी है, जो खुद को हाशिये पर महसूस कर रही है और मानती है कि उनके साथ पक्षपात हो रहा है.
सिद्धू मूसेवाला एक बार फिर मंच पर
पंजाबी सिंगर-रैपर सिद्धू मूसेवाला, जिनकी 2022 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, एक बार फिर अपने फैंस के सामने आने वाले हैं. इस बार एक अनोखे अंदाज में. “साइंड टू गॉड” (Signed To God) नाम से 2026 में एक वर्ल्ड टूर आयोजित किया जाएगा, जिसमें सिद्धू मूसेवाला की ‘थ्रीडी’ होलोग्राम तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. यह भारत के किसी भी कलाकार का पहला होलोग्राम दौरा होगा.
“द हिंदू” में पीटीआई की खबर है कि इस टूर में थ्रीडी होलोग्राम, एआई और सिनेमेटिक विजुअल्स के साथ सिद्धू मूसेवाला के असल वोकल्स को सिंक किया जाएगा. शो भारत के पंजाब के अलावा टोरंटो, लंदन और लॉस एंजेलिस जैसे शहरों में होंगे. फैंस को लगेगा जैसे सिद्धू मूसेवाला असल में मंच पर मौजूद हैं. उनकी एनर्जी, आवाज़ और स्टाइल को नए सिरे से महसूस किया जा सकेगा.
उल्लेखनीय है कि तीन साल पहले दुनिया छोड़ने के बाद भी सिद्धू मूसेवाला भारतीय और अंतरराष्ट्रीय फैंस में बेहद लोकप्रिय हैं. उनका यह होलोग्राम वर्ल्ड टूर न केवल उनकी यादों को ताज़ा करेगा, बल्कि संगीत जगत में तकनीक के इस्तेमाल का नया उदाहरण बनेगा और संभवतः आने वाले समय में अन्य दिवंगत कलाकारों के लिए भी ऐसी प्रस्तुतियों का रास्ता खोलेगा.
एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की किताब से टीपू सुल्तान और हैदर अली गायब, एंग्लो-मैसूर युद्धों का भी कोई ज़िक्र नहीं
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की नई पाठ्यपुस्तक से टीपू सुल्तान, हैदर अली और एंग्लो-मैसूर युद्धों से जुड़ा पूरा इतिहास हटा दिया गया है. इस बदलाव की जानकारी पत्रकार अभिनया हरिगोविंद की रिपोर्ट से सामने आई है. जब इस विषय में पूछा गया कि क्या ये अध्याय साल के अंत में आने वाली दूसरी पुस्तक में शामिल किए जाएंगे, तो पाठ्यपुस्तक विकास समिति के अध्यक्ष माइकल डैनिनो ने कहा - “संभावित उत्तर है: शायद नहीं… दुर्भाग्य से उपनिवेशकालीन समय की सभी घटनाओं को कवर कर पाना संभव नहीं है. अगर हम ऐसा करते हैं तो हम फिर से उसी पुराने ढर्रे में लौट जाएंगे, जहां किताबें तारीखों और युद्धों से भरी होती थीं.”
एनसीईआरटी द्वारा इतिहास को इस तरह चुनकर पेश करने की आलोचना पहले भी हो चुकी है, खासकर मुगल इतिहास, गांधी-नेहरू युग और दंगे जैसे विषयों के विलोपन को लेकर. अब दक्षिण भारत के मुस्लिम शासकों खासकर टीपू सुल्तान, जिन्होंने अंग्रेजों से चार युद्ध लड़े थे, को हटाने के फैसले को कई शिक्षाविद ‘इतिहास का राजनीतिकरण’ बता रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की काट-छांट छात्रों की ऐतिहासिक समझ को संकीर्ण बनाती है और विविध भारत की विरासत को सीमित कर देती है. इतिहासकारों के अनुसार, टीपू सुल्तान न केवल एक कुशल शासक थे, बल्कि उपनिवेशवाद के खिलाफ सबसे तेज़ प्रतिरोध के प्रतीक भी हैं. ऐसे में अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या एनसीईआरटी का उद्देश्य इतिहास को सरल बनाना है या चुनिंदा तौर पर उसे दोबारा गढ़ना?
ज़ेलेंस्की, ट्रम्प के बीच ड्रोन मेगा-डील?
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वे और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक बड़ी ड्रोन डील पर विचार कर रहे हैं, जिसमें वॉशिंगटन यूक्रेन से युद्ध में परखे गए ड्रोन खरीदेगा और इसके बदले कीव अमेरिका से हथियार खरीदेगा. यह बात ज़ेलेंस्की ने न्यूयॉर्क पोस्ट को बुधवार को दिए एक साक्षात्कार में कही. ज़ेलेंस्की ने बताया कि उनकी हालिया बातचीत में ट्रम्प के साथ एक ऐसा समझौता चर्चा में है जिससे दोनों देशों की हवाई तकनीकी क्षमताएं मज़बूत होंगी. उन्होंने कहा, "अमेरिकी लोगों को यह तकनीक चाहिए और इसे उनकी सैन्य शक्ति का हिस्सा बनना चाहिए." यूक्रेन के ड्रोन इतने सक्षम हैं कि वे 1,300 किलोमीटर दूर रूस के भीतर भी हमले कर पाए हैं. ज़ेलेंस्की ने ड्रोन को अपनी सेना का सबसे अहम हथियार बताया, जिसने यूक्रेन को तीन साल से ज्यादा समय तक रूस का मुकाबला करने में मदद की. उन्होंने यह भी कहा, "हम अमेरिका और अन्य यूरोपीय साझेदारों के साथ यह अनुभव साझा करने को तैयार हैं." ज़ेलेंस्की ने बताया कि डेनमार्क, नॉर्वे और जर्मनी के साथ भी इस तकनीक को लेकर बातचीत चल रही है.
इधर अमेरिका ने भी अपने अगले वर्ष के रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा बजट में छोटे ड्रोन पर खर्च बढ़ाया गया है और इसकी एक बड़ी वजह है यूक्रेन-रूस युद्ध से मिली सीख है. इस युद्ध में कम लागत वाले लेकिन बेहद प्रभावी ड्रोन युद्ध का अहम हिस्सा बन चुके हैं.
मेटा निवेशक और ज़करबर्ग के बीच समझौता, 8 अरब डॉलर के मुकदमे का अंत
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि मेटा प्लेटफॉर्म्स (पूर्व में फेसबुक) के सीईओ मार्क ज़करबर्ग और कंपनी के वर्तमान व पूर्व अधिकारी गुरुवार को एक मुकदमे को निपटाने पर सहमत हो गए, जिसमें उन पर आरोप था कि उन्होंने फेसबुक यूज़र्स की गोपनीयता का बार-बार उल्लंघन होने दिया, जिससे कंपनी को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ. यह मुकदमा डेलावेयर की चांसरी कोर्ट में चल रहा था और गुरुवार को इसके दूसरे दिन की कार्यवाही से पहले ही न्यायाधीश काथलीन मैककॉर्मिक ने ट्रायल को स्थगित कर दिया और समझौते के लिए दोनों पक्षों को बधाई दी. निवेशकों की ओर से वकील सैम क्लोसिक ने बताया कि समझौता अचानक ही तय हो गया. समझौते की राशि या शर्तें सार्वजनिक नहीं की गई हैं. इस मुकदमे में जुकरबर्ग के साथ मेटा के निदेशक और अरबपति निवेशक मार्क आंद्रेसेन, पूर्व चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर शेरिल सैंडबर्ग सहित 11 लोगों को प्रतिवादी बनाया गया था. मेटा कंपनी खुद इसमें प्रतिवादी नहीं थी.
निवेशकों का आरोप था कि इन अधिकारियों ने 2012 में यूज़र्स की डेटा सुरक्षा को लेकर अमेरिकी संघीय व्यापार आयोग (FTC) से हुए समझौते का पालन सुनिश्चित नहीं किया, जिसके चलते कंपनी को 2019 में 5 अरब डॉलर का ऐतिहासिक जुर्माना भरना पड़ा. इन निवेशकों की मांग थी कि जुकरबर्ग और अन्य प्रतिवादी इस नुकसान की भरपाई अपनी निजी संपत्ति से करें. हालांकि प्रतिवादियों ने इन आरोपों को "चरम और बेबुनियाद" बताया था.
डिजिटल कंटेंट प्रोवाइडर्स के समूह डिजिटल कंटेंट नेक्स्ट के प्रमुख जेसन किंट ने कहा, “यह समझौता भले ही संबंधित पक्षों के लिए राहत लाए, लेकिन यह सार्वजनिक जवाबदेही का एक महत्वपूर्ण मौका चूक गया.” उनका कहना था कि फेसबुक ने इस पूरे घोटाले को "कुछ बुरे लोगों" की गलती बनाकर पेश किया, जबकि असल में यह उसकी पूरी निगरानी-आधारित कारोबारी मॉडल की विफलता थी.
हरकारा डीप डाइव में हमने मेटा की ऐसी ही कारगुजारियों को लेकर बात की है.
'सरदार जी 3' ने विदेशों में तोड़े बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड, दिलजीत दोसांझ की ग्लोबल पकड़ कायम
गायक, अभिनेता और निर्माता दिलजीत दोसांझ की फिल्म ‘सरदार जी 3’ भले ही भारत में अब तक रिलीज़ नहीं हो पाई हो, लेकिन विदेशों में इसने बॉक्स ऑफिस पर धमाकेदार कमाई करते हुए रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. यह साबित करता है कि दिलजीत की लोकप्रियता अब केवल पंजाब या भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह एक ग्लोबल सुपरस्टार बन चुके हैं. फिल्म की भारत में रिलीज़ राजनीतिक कारणों से अटकी हुई है, लेकिन इसके बावजूद दर्शकों का उत्साह कम नहीं हुआ. यूके, कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में फिल्म को जबरदस्त ओपनिंग मिली है, जहां पंजाबी समुदाय की बड़ी आबादी रहती है. दिलजीत की लोकप्रियता को हाल ही में और बढ़ावा मिला जब उन्होंने Met Gala में ऐतिहासिक उपस्थिति दर्ज की और उनका ‘Dil-Luminati’ वर्ल्ड टूर दुनिया भर में हाउसफुल जा रहा है.
यह फिल्म दिलजीत के बेहद लोकप्रिय 'सरदार जी' फ्रेंचाइज़ी की तीसरी कड़ी है. कॉमेडी और एक्शन से भरपूर इस फिल्म में दिलजीत की सोलो स्टार पावर पूरी तरह चमकती है.
गांधी का पोर्ट्रेट 1.75 करोड़ रुपये में नीलाम
'बीबीसी' की रिपोर्ट है कि महात्मा गांधी का एक दुर्लभ ऑयल पेंटिंग पोर्ट्रेट लंदन में नीलामी के दौरान £1,52,800 (लगभग ₹1.75 करोड़) में बिक गया. यह चित्र 1931 में ब्रिटिश कलाकार क्लेयर लीटन द्वारा बनाया गया था और माना जाता है कि यह वही एकमात्र चित्र है, जिसके लिए गांधी जी ने स्वयं बैठकर पोज़ दिया था. यह पेंटिंग बोनहम्स नीलामी घर द्वारा पेश की गई थी, जिसकी मूल अनुमानित कीमत £50,000 से £70,000 के बीच लगाई गई थी. लेकिन अंतिम बिक्री मूल्य ने कला संग्राहकों और इतिहासकारों को चौंका दिया. नीलामी घर के अनुसार, यह पेंटिंग गांधी जी के 1931 के लंदन दौरे के दौरान बनी थी, जब वे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने आए थे. उस दौरान लीटन ने गांधी जी का यह चित्र बनाया. इसे गांधी जी की शांतचित्तता और आध्यात्मिक व्यक्तित्व को दर्शाने वाली एक दुर्लभ कलाकृति माना जा रहा है. चित्र के खरीदार की पहचान फिलहाल गोपनीय रखी गई है. कला विशेषज्ञों का कहना है कि यह पेंटिंग इतिहास और कला के संगम का एक बेहतरीन उदाहरण है, जो गांधी जी के वैश्विक प्रभाव और उनकी छवि को रेखांकित करता है.
चलते-चलते
"गर्म हवा": तीन उर्दू दिग्गजों के सहयोग से बनी बंटवारे की सबसे सजीव कहानी
भारतीय सिनेमा की कालजयी फिल्म गर्म हवा की कहानी जितनी मार्मिक है, उतनी ही रोचक है इसके निर्माण की यात्रा. यह फिल्म महज़ एक लेखक या निर्देशक की उपज नहीं थी, बल्कि उर्दू अदब की तीन बड़ी हस्तियों — राजिंदर सिंह बेदी, इस्मत चुगताई और कैफ़ी आज़मी के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग से आकार ले सकी.
पटकथा लेखिका शमा ज़ैदी जब बेदी साहब के साथ एक चादर मैली सी को रूपांतरित कर रही थीं, तब उन्होंने सुझाव दिया कि बंटवारे के बाद भारत में रह गए मुसलमानों पर एक फिल्म बननी चाहिए. इसके लिए उन्होंने इस्मत चुगताई का नाम आगे बढ़ाया.
शमा ज़ैदी के आग्रह पर इस्मत चुगताई ने एक कहानी लिखी, लेकिन बाद में वह पांडुलिपि खो गई. उन्होंने फिर एक नई अलग कहानी लिखी. कुछ समय बाद, जब वह अपनी अलमारी साफ़ कर रही थीं, उन्हें पुरानी कहानी मिल गई, जो लखनऊ के एक मुस्लिम परिवार पर आधारित थी, लेकिन समस्या यह थी कि उस कहानी में परिवार अंततः पाकिस्तान चला जाता है.
इस बिंदु पर कैफ़ी आज़मी को जोड़ा गया. उन्होंने कहानी को दोबारा लिखा, इस बार परिवार को भारत में रुकते हुए दिखाया और कहानी की पृष्ठभूमि को लखनऊ से बदलकर आगरा की एक जूता फैक्ट्री में रख दिया. यहीं से गर्म हवा की अंतिम पटकथा बनी, जिस पर निर्देशक एम.एस. सथ्यू ने फिल्म का निर्माण किया. यह एक दुर्लभ उदाहरण है जहां साहित्य, राजनीति और सिनेमा के भावनात्मक आयाम एक साथ मिलते हैं. गर्म हवा केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि बंटवारे के बाद के भारतीय मुसलमानों की अस्मिता, संघर्ष और उम्मीदों की दस्तावेज़ बन गई.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.