18/08/2025 : इधर राहुल की वोटचोरी के खिलाफ यात्रा, उधर केंचुआ ने की माफ़ी की मांग | वोटरलिस्ट के फर्जीवाड़े जारी | वीपी के लिए सीपी का नाम | जेलेंस्की डीसी में
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आज की सुर्खियां
चुनाव आयोग निश्चिंत है, क्योंकि 2023 में मोदी-शाह ने कानून बना दिया : राहुल गांधी
केंचुआ ने कहा कि राहुल 7 दिन में शपथपत्र दें, नहीं तो माफ़ी मांगें, जरूरी सवालों पर चुप्पी
सात ऐसे बिंदु, जिनका स्पष्ट उत्तर देने से परहेज
पराकला प्रभाकर: लोकसभा और सरकार की वैधता तभी, जब मतदाता सूची साफ, निष्पक्ष और विश्वसनीय हो
3 विधानसभा क्षेत्रों में 80 हजार वोटर फर्जी और गलत पतों पर दर्ज
वीपी के लिए सीपी का नाम
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बीजेपी जिला अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर
आकार पटेल: शर्तों वाली आज़ादी
जेलेंस्की ट्रम्प से मिलने डीसी में
एआई के मदद लेगा तिरुमाला तिरुपति मंदिर
चुनाव आयोग निश्चिंत है, क्योंकि 2023 में मोदी-शाह ने कानून बना दिया : राहुल गांधी
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने रविवार को चुनाव आयोग पर ज़ोरदार हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने 2023 में एक कानून पास किया है, ताकि चुनाव आयोग के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो सके. क्योंकि चुनाव आयोग भाजपा की मदद कर रहा है और उनके साथ "वोट चोरी" में संलिप्त है. उन्होंने सासाराम से आज शुरू हुई अपनी 'वोटर अधिकार यात्रा' के पहले दिन के अंत में औरंगाबाद में कहा कि जब उनसे "वोट चोरी" के खुलासे के बाद हलफनामा देने को कहा गया, तो भाजपा नेताओं से ऐसी कोई मांग नहीं की गई, जिन्होंने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसी प्रकार के आरोप लगाए थे.
उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि बिहार में हुआ चुनावी मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) दरअसल राज्य के लोगों के वोट चुराने का एक तरीका है. राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और भाजपा के बीच सांठगांठ का भी आरोप लगाया. कहा- आज उन्होंने (चुनाव आयोग) एक प्रेस कांफ्रेंस की. मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि सरकार ने चुनाव प्रक्रिया की सीसीटीवी फुटेज संबंधी कानून को क्यों बदला? क्या आपको पता है कि चुनाव आयुक्तों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता? भारत की किसी भी अदालत में उनके खिलाफ कोई केस नहीं चल सकता.," "यह कानून 2023 में बनाया गया था. यह कानून क्यों बनाया गया? यह इसलिए बनाया गया क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोई भी चुनाव आयोग के खिलाफ कार्रवाई न कर सके, क्योंकि चुनाव आयोग उनकी मदद कर रहा है और उनके साथ मिलकर वोट चोरी में शामिल है," गांधी ने जोड़ा. उन्होंने कहा कि यह अम्बेडकर के संविधान और 'एक व्यक्ति, एक वोट' के सिद्धांत की रक्षा की लड़ाई है.
इस बीच, कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सिर्फ अपनी "अयोग्यता" ही नहीं, बल्कि "स्पष्ट पक्षपात" के लिए भी पूरी तरह से बेनकाब हो गया है. पार्टी ने आयोग के इस दावे को भी "हास्यास्पद" करार दिया कि वह सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के बीच कोई भेदभाव नहीं करता. सीईसी की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने पूछा कि क्या चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त, 2025 के आदेशों को अक्षरशः और भावनापूर्वक लागू करेगा. "आज, जब राहुल गांधी ने सासाराम से इंडिया गठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा शुरू की, उसके थोड़ी देर बाद ही सीईसी और उनके दो आयुक्तों ने कह दिया कि वे सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के बीच कोई भेदभाव नहीं करते. यह बहुत ही हल्के शब्दों में कहें तो ‘हास्यास्पद’ है, जबकि इसके उलट ढेरों सबूत मौजूद हैं. खासतौर पर, सीईसी ने राहुल गांधी द्वारा उठाए गए किसी भी महत्वपूर्ण सवाल का सार्थक जवाब नहीं दिया."
केंचुआ ने कहा कि राहुल 7 दिन में शपथपत्र दें, नहीं तो माफ़ी मांगें, जरूरी सवालों पर चुप्पी
अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कई सवालों के जवाब नहीं दिए, उल्टे लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से 7 दिनों के भीतर माफी की मांग की और कहा कि मतदाताओं के नाम कई बार आना इसका मतलब यह नहीं है कि वोट चोरी हुई है. उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण और 65 लाख मतदाताओं को ड्राफ्ट मतदाता सूची से बाहर किए जाने को लेकर आरोपों का सामना करना पड़ रहा है. राहुल गांधी और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने “वोट चोरी” का आरोप भी लगाया है. विपक्षी पार्टियों की कड़ी आलोचनाओं का सामना करते हुए, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने रविवार, 17 अगस्त को अपनी एक घंटे से अधिक चली प्रेस कॉन्फ्रेंस में, कर्नाटक के महादेवरपुरा विधानसभा क्षेत्र में लोकसभा चुनाव 2024 में एक लाख से अधिक वोट चोरी के राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों पर गांधी से शपथ पत्र मांगने के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया. साथ ही, भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के खिलाफ रायबरेली, वायनाड, डायमंड हार्बर और कानपुर की मतदाता सूचियों में अनियमितताओं के आरोपों पर भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, जिनमें ठाकुर ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अभिषेक बनर्जी और अखिलेश यादव से लोकसभा सांसद पद से इस्तीफा देने की मांग की थी.
कुमार ने इस बारे में भी कोई उत्तर नहीं दिया कि बिहार में कितने गणना प्रपत्र आवश्यक दस्तावेज़ों के साथ जमा किए गए हैं और एसआईआर के दौरान कितने विदेशी अवैध अप्रवासी पाए गए, साथ ही इस आरोप पर भी कि क्या यह पुनरीक्षण राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने के लिए किया जा रहा है?
श्रावस्ती दासगुप्ता के अनुसार, जहां एक ओर चुनाव से ठीक पहले और वह भी बाढ़ के मौसम में एसआईआर कराए जाने पर पूछे गए सवाल के जवाब में कुमार ने कहा कि इस अभ्यास का पिछला चरण भी वर्ष 2003 में जुलाई में हुआ था, वहीं उन्होंने यह उल्लेख करना ज़रूरी नहीं समझा कि उस समय विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2005 से पहले निर्धारित नहीं थे. इसके बजाय कुमार ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अपने जवाबों को अलंकारिक बातों से भर दिया. उन्होंने मतदाताओं के नाम जिनके मकान नंबर "शून्य" दर्ज हैं, उसे गरीबों पर किया गया एक "मज़ाक" बताने की कोशिश की और यह भी दावा किया कि किसी मतदाता का नाम कई बार आना इसका अर्थ नहीं है कि वोट चोरी हुई है या मतदाता ने एक से अधिक बार मतदान किया है. उन्होंने नाम लिये बिना राहुल गांधी को अंतिम चेतावनी भी दी, जिसमें कहा गया कि उन्हें सात दिनों के अंदर शपथपत्र प्रस्तुत करना होगा होगी या फिर राष्ट्र से माफी मांगनी होगी. अन्यथा, यह माना जाएगा कि उनके आरोप निराधार हैं.
सात ऐसे बिंदु, जिनका स्पष्ट उत्तर देने से परहेज
(1) गांधी से शपथपत्र मांगा गया लेकिन भाजपा से नहीं : ज्ञानेश कुमार ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत यह कहते हुए की, कि चुनाव आयोग के लिए कोई "पक्ष या विपक्ष" नहीं होता. उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग के लिए कोई शासक पार्टी या विपक्ष नहीं है; सभी समान हैं. किसी भी राजनीतिक दल से कोई भी हो, चुनाव आयोग अपने संवैधानिक कर्तव्यों से पीछे नहीं हटेगा." मगर, उन्होंने यह भी कहा कि “यदि किसी मतदाता के दृष्टिकोण से कोई शिकायत आती है, तो चुनाव आयोग उसकी जांच करता है. लेकिन यदि आरोप 1.5 लाख मतदाताओं के बारे में है, तो क्या हम बिना किसी सबूत या शपथ पत्र के 1.5 लाख मतदाताओं को नोटिस भेजें? क्या यह कानूनी होगा? कानून में कोई सबूत या शपथ पत्र नहीं है. क्या हमें 1.5 लाख मतदाताओं को एसडीएम के कार्यालय बुलाकर कहना चाहिए कि वे नकली मतदाता हैं? क्या मतदाता सबूत नहीं मांगेंगे? बिना किसी सबूत के वैध मतदाताओं के नाम नहीं काटे जाएंगे,” कुमार ने कहा.
उन्होंने राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा, “यदि कोई यह सोचता है कि गलत विश्लेषण और तथ्यों के साथ पीपीटी देकर और यह कहकर कि ‘इस महिला ने दो बार मतदान किया है’, तब चुनाव आयोग कार्रवाई करेगा, तो ऐसा नहीं होगा. क्योंकि इतनी गंभीर बात में बिना शपथ पत्र के आयोग कार्रवाई नहीं कर सकता; यह कानून और संविधान के खिलाफ होगा.”
गांधी ने 7 अगस्त को अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाजपा और चुनाव आयोग के बीच कथित “साजिश” का आरोप लगाया था और महादेवपुरा में एक लाख से अधिक वोट चोरी होने का दावा करने के लिए चुनाव आयोग की मतदाता सूची को प्रमाण के रूप में दिखाया था. इस पर कुमार ने कहा कि मतदाता सूची हमारी थी, लेकिन डेटा नहीं था.
कुमार से पत्रकारों ने सवाल किया कि भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर से उनके आरोपों के लिए चुनाव आयोग शपथ पत्र क्यों नहीं मांग रहा है? लेकिन उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया.
(2) नियम 20(3)(b) को चयनात्मक रूप से उद्धृत करना : गांधी से हलफनामा मांगते हुए, बिना उनका नाम लिए, कुमार ने 1960 के पंजीकरण मतदाता नियम के नियम 20(3)(b) पर ध्यान केंद्रित किया.
'यदि आप उस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता हैं, तो आप निर्धारित समय के भीतर बूथ स्तर के अधिकारी के माध्यम से फॉर्म 6, 7 और 8 भर सकते हैं. लेकिन यदि आप उस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता नहीं हैं, तो आपके पास कानून के तहत केवल एक उपाय है, जो कि नियम 20(3)(b) है.
'यह कहता है कि यदि आप उस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता नहीं हैं, तो आप गवाह के रूप में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं. आपको निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी के समक्ष शपथ देनी होगी और वह शपथ उस व्यक्ति के सामने ग्रहण करनी होगी जिसके खिलाफ आपने शिकायत की है.’ हालांकि, नियम 20(3)(b) उन दावों और आपत्तियों पर लागू होता है जो चुनाव आयोग द्वारा संशोधन अभ्यास के बाद ड्राफ्ट मतदाता सूची के बाद उठाए जाते हैं.
लेकिन, कुमार ने यह नहीं बताया कि नियम 20(3)(b) उन दावों और आपत्तियों पर लागू होता है जो ड्राफ्ट मतदाता सूची के बाद उठाए जाते हैं. इसके बजाय, गांधी के संदर्भ में, उन्होंने कहा कि यदि 45 दिनों के भीतर त्रुटियां नहीं उठाई जाती हैं, तो यह 'जनता को भ्रमित करने' के लिए है.
'अगर आप मतदाता सूची में त्रुटियों के खिलाफ निर्धारित 45 दिनों की अवधि के भीतर शिकायत नहीं उठाते, और फिर "वोट चोरी" जैसे गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तो क्या यह जनता को भ्रमित करने का एक तरीका नहीं है? यह भारत के संविधान के प्रति भी अनादर दिखाता है. अगर यह नहीं, तो क्या है?' उन्होंने कहा.
'राष्ट्र के प्रति शपथ लें या माफी मांगें. कोई तीसरा विकल्प नहीं है. अगर हमें सात दिनों के भीतर हलफनामा नहीं मिला, तो इसका मतलब है कि ये सभी आरोप बेबुनियाद हैं और जो व्यक्ति कह रहा है कि 'हमारे वोटर धोखेबाज़ हैं' उसे माफी मांगनी चाहिए."
(3) 2003 में जुलाई में हुआ एसआईआर, पर उस वर्ष चुनाव नहीं था : कुमार ने बिहार में एसआईआर की समयावधि को लेकर सवालों का जवाब देते हुए कहा कि जब यह प्रक्रिया पिछली बार 2003 में कराई गई थी, तब भी इसे जुलाई में ही किया गया था. बिहार में ऐसी स्थिति होती है जहां मानसून के कारण बाढ़ आ सकती है, फिर भी इस बार भी सभी गणना प्रपत्र जुटा लिए गए हैं. कुमार ने यह नहीं बताया कि 2003 में बिहार में विधानसभा चुनाव नहीं होने वाले थे.
कुमार ने 2004 के एक गहन संशोधन आदेश पर भी सवालों का जवाब नहीं दिया, जिसमें चुनाव आयोग ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में उस वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए उन राज्यों में संशोधन चुनावों के बाद होगा.
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि कानून के मुताबिक हर चुनाव से पहले संशोधन करना अनिवार्य है. इस साल जनवरी में बिहार में एक संक्षिप्त संशोधन किया गया था, लेकिन वह नवंबर में होने वाले चुनाव के लिए पर्याप्त नहीं होता, इसलिए जुलाई को योग्य तिथि के रूप में चुना गया. क्योंकि अक्टूबर में हो नहीं सकता था और अप्रैल में करते तो कहा जाता कि जनवरी में तो हुआ था, फिर इतनी जल्दी क्यों?
(4) अवैध प्रवासियों पर कोई उत्तर नहीं : 24 जून को बिहार में एसआईआर की घोषणा करते हुए, चुनाव आयोग ने कहा कि यह कार्य विभिन्न कारणों से जरूरी था, जिनमें से एक था "विदेशी अवैध प्रवासियों" को मतदाता सूची में शामिल करना. चुनाव आयोग ने पहले कुछ मीडिया आउटलेट्स को "स्रोतों" के माध्यम से बताया था कि नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के कुछ अनिर्दिष्ट संख्या के अवैध प्रवासी मतदाता सूचियों में पाए गए हैं. जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन अनधिकृत प्रवासियों की संख्या के बारे में सवाल किया गया, तो कुमार ने कोई संख्या नहीं बताई.
उन्होंने कहा, "मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि भारत के संविधान के अनुसार, केवल भारतीय नागरिक ही संसद और विधानसभा चुनावों में मतदान कर सकते हैं. अन्य देशों के लोग मतदान का अधिकार नहीं रखते. यदि ऐसे लोग नामांकन फॉर्म भरते हैं, तो एसआईआर प्रक्रिया के दौरान उन्हें कुछ दस्तावेज जमा करके अपनी नागरिकता साबित करनी होगी, जिसकी जांच 30 सितंबर तक चल रही है. जो लोग भारतीय नागरिक नहीं पाए जाएंगे, उन्हें मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाएगा." उन्होंने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि क्या एसआईआर का उपयोग राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लाने के लिए किया जा रहा है.
(5) सत्यापन दस्तावेजों के साथ प्राप्त नामांकन प्रपत्रों की संख्या पर साफ जवाब नहीं : चुनाव आयोग ने कहा है कि 25 जुलाई तक नामांकन फॉर्मों के संग्रह के समापन तक, 99.8% फॉर्म मतदाताओं से प्राप्त हो चुके थे. हालांकि इस प्रक्रिया में विवाद का मुख्य बिंदु उन 11 दस्तावेजों की सूची है जिन्हें आयोग मतदाताओं से उनकी पात्रता के प्रमाण के तौर पर मांग रहा है, लेकिन कुमार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि कितने फॉर्म उपयुक्त दस्तावेजों के साथ प्राप्त हुए हैं, या फिर बूथ स्तर के अधिकारियों द्वारा किन उम्मीदवारों को 'अनुमोदित' और किन्हें 'अस्वीकृत' बताया जा रहा है, इसका कारण क्या है? कुमार ने कहा, "बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया में, कितने लोगों के दस्तावेज प्राप्त हुए हैं, कितनों को अनुशंसित किया गया है और प्रत्येक बूथ स्तर अधिकारी ने क्या अनुशंसा की है—इस डेटा को इकट्ठा करने का प्रयास जारी है. चुनाव आयोग एक बहु-स्तरीय संरचना पर काम कर रहा है."
उन्होंने कहा, "पहला स्तर बूथ अधिकारी का होता है, फिर बूथ स्तर पर्यवेक्षक, उसके बाद एसडीएम, डीएम और फिर मुख्य निर्वाचन अधिकारी. न तो चुनाव आयोग और न ही कोई अन्य कानूनी प्रक्रिया के बिना कोई वोट जोड़ सकता है. इस विकेंद्रीकृत संरचना के तहत, अभी यह सत्यापित किया जा रहा है कि कितने दस्तावेज प्राप्त हुए या नहीं, और यह SDM स्तर पर नियंत्रित है. यह जानकारी बाद में सामने आएगी, पहले से कुछ कहना सही नहीं होगा."
(6) मकान नंबर शून्य : रिपोर्ट्स आई हैं कि बिहार के मतदाता सूची में कई मतदाताओं के मकान नंबर को शून्य (0) दिखाया गया है. इस पर टिप्पणी करते हुए कुमार ने कहा कि ऐसी प्रविष्टियों पर सवाल उठाना गरीब मतदाताओं का मज़ाक उड़ाने जैसा है. उन्होंने कहा, “बहुत से लोगों के पास घर नहीं है, लेकिन उनके नाम मतदाता सूची में दर्ज हैं. तो फिर उनका पता क्या लिखा जाता है? पता वही लिखा जाता है जहां वे रात में जाकर सोते हैं—कभी सड़क के किनारे, कभी पुल के नीचे, कभी बिजली के खंभे के पास. और अगर यह कहा जाए कि ये नकली मतदाता हैं, तो यह हमारी गरीब जनता, बहनों, भाइयों और बुज़ुर्गों के साथ बहुत बड़ा मज़ाक होगा.” कुमार ने कहा कि “करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पते ‘शून्य’ के रूप में दर्ज हैं क्योंकि उनकी पंचायतों या नगरपालिकाओं ने उनके घरों को नंबर नहीं दिया है. चुनाव आयोग ऐसे मतदाताओं को ‘कल्पित नंबर’ देता है जो कंप्यूटर पर शून्य के रूप में दिखता है. इसका अर्थ यह नहीं है कि वे मतदाता नहीं हैं. ”
(7) मतदाता सूची और मतदान में अंतर : जहां गांधी ने आरोप लगाया कि कई बार एक ही मतदाता का नाम अलग-अलग मतदान केंद्रों की मतदाता सूचियों में दर्ज होता है, कुमार ने कहा कि यदि किसी मतदाता का नाम कई जगह दर्ज हो, तब भी वह व्यक्ति केवल एक बार ही वोट डाल सकता है. हालांकि, कुमार ने यह नहीं बताया कि किसी मतदाता का नाम शुरू में ही कई सूचियों में क्यों दर्ज हो रहा है? गांधी ने अपनी 7 अगस्त की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई उदाहरण दिखाए थे, जहां मतदाताओं के नाम अलग-अलग मतदान बूथों की मतदाता सूचियों में बार-बार दर्ज पाए गए. कुमार ने कहा, “एक मतदाता केवल एक ही बार वोट डाल सकता है. यदि किसी का नाम मतदाता सूची में दो बार आ भी गया है, तो भी यह “वोट चोरी” नहीं कहलाएगा, क्योंकि हर मतदाता केवल एक ही बार वोट डाल सकता है. इसी कारण हमने कहा कि चुनाव आयोग के आंकड़ों का गलत तरीके से विश्लेषण किया गया है और यह कहा जा रहा है कि मतदाता सूची गलत है और इसलिए मतदान भी गलत हुआ. लेकिन वास्तव में मतदाता सूची और मतदान दो अलग-अलग चीजें हैं.
लोकसभा और सरकार की वैधता तभी, जब मतदाता सूची साफ, निष्पक्ष और विश्वसनीय हो
राजनीतिक अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर ने कहा है कि लोकसभा और सरकार की वैधता तभी मानी जा सकती है, जब मतदाता सूची पूरी तरह से साफ, निष्पक्ष और विश्वसनीय हो. जब तक यही गड़बड़ी चलती रहेगी तब तक लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं पर प्रश्न लगता रहेगा.
"द वायर" के संस्थापक संपादक एमके वेणु से बात करते हुए प्रभाकर ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष और ईमानदारी पर केंद्रित होना चाहिए. यह मुद्दा केवल राजनीतिक दलों का नहीं, बल्कि नागरिकों का भी है. चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उसकी प्रक्रिया में गड़बड़ी है, जिससे लोकसभा या विधानसभा का चुनाव सही प्रकार से नहीं हो पा रहा है. पूर्व में जब भी ऐसे आरोप लगे तो चुनाव आयोग ने सही ढंग से जवाब नहीं दिया. बल्कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी जवाब देती रही.
वेणु के साथ प्रभाकर की इस चर्चा में यह भी सामने आया कि डिजिटल इंडिया के दौर में भी चुनाव आयोग, डिजिटल मतदाता सूची को जनता के लिए सार्वजनिक नहीं कर रहा है. जब किसी निर्वाचन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वोटों की गिनती में अंतर दिखता है, या फर्जी मतदान का आरोप लगता है, तो आयोग को पारदर्शी तरीके से जांच करनी चाहिए. राहुल गांधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा में इस तरह के फर्जी वोट और मतदाता सूची में गड़बड़ी के आंकड़े रखे, जिससे संदेह और बढ़ गया.
वोट फॉर डेमोक्रेसी जैसी संस्थाओं और एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लगभग 79 लोकसभा सीटों पर चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल है और करीब 5 करोड़ फर्जी वोट जोड़ दिए गए हैं. इन सवालों के जवाब देने में आयोग की निष्क्रियता को सुप्रीम कोर्ट ने भी नोटिस लिया और आयोग को आदेश दिया कि बिहार की मतदाता सूची से हटाए जा रहे 65 लाख लोगों के नाम सार्वजनिक किए जाएं और यह भी बताया जाए कि उन्हें हटाने का आधार क्या है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को वोटर आईडी के लिए जरूरी मानने का निर्देश दिया.
चर्चा में यह भी कहा गया कि आयोग के चयन की प्रक्रिया में सरकार का प्रभुत्व है, जिससे उसकी स्वतंत्रता पर प्रश्न चिह्न उठता है. आयोग ने कई बार अहम दस्तावेज और डेटा देने से मना किया, जैसे फॉर्म 17 सी, जिसमें मतदान के अंतिम आंकड़े दर्ज होते हैं. आयोग ने इन्हें सार्वजनिक करने से मना कर दिया और ऐसे में बीजेपी ने बचाव में कहा कि कानून इसकी मांग नहीं करता.
कुछ राज्यों में, जैसे ओडिशा और आंध्र प्रदेश में, मतदान के अंतिम आंकड़ों और गिनती के आंकड़ों में 12-15% तक अंतर पाया गया, जबकि पहले यह अंतर 1-2% से ज्यादा नहीं होता था. इससे शक पैदा होता है कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है, जो अक्सर सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में गई.
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद यह मामला थोड़ा रास्ते पर आया, लेकिन आयोग ने जवाबदेही नहीं दिखाई. इस बातचीत में बार-बार यह कहा गया कि चुनाव आयोग को पारदर्शिता रखते हुए जनता के सामने सच्चाई रखनी चाहिए ताकि लोगों का लोकतंत्र में विश्वास बहाल हो सके. केवल राजनीतिक दलों का मामला न मानकर यह एक जनता का आंदोलन बनना चाहिए.
बिहार में एसआईआर : दो घर अस्तित्व में ही नहीं, लेकिन, एक में 509 और दूसरे में 459 मतदाता
3 विधानसभा क्षेत्रों में 80 हजार वोटर फर्जी और गलत पतों पर दर्ज
चुनाव आयोग ने बिहार के पिपरा विधानसभा क्षेत्र के गलिमपुर गांव के "एक घर" में अलग-अलग परिवारों, जातियों और समुदायों के 509 मतदाताओं को एक साथ रहने वाला दर्ज कर दिया है. हैरानी की बात यह है कि यह घर अस्तित्व में ही नहीं है.
इतना ही नहीं, इसी गांव में एक और घर (यह भी अस्तित्व में नहीं है) में आयोग ने 459 लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकृत कर दिया. यह कोई एक बार की गलती नहीं है, बल्कि बिहार से शुरू होकर पूरे देश के मतदाता डेटाबेस को संशोधित करने के चुनाव आयोग के अभूतपूर्व प्रयास में हुई गड़बड़ी है, जिस बात का खुलासा "द रिपोर्टर्स कलेक्टिव" की जांच में हुआ है. आयुषी कर और विष्णु नारायण की रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के तीन विधानसभा क्षेत्रों—पिपरा, बगहा और मोतिहारी—में 3,590 ऐसे मामले सामने आए, जहां चुनाव आयोग ने 20 या उससे ज्यादा लोगों को एक ही पते पर रजिस्टर कर दिया. कई बार तो घर ही नहीं हैं. हैरत की बात है कि इन तीन क्षेत्रों में 80,000 से अधिक मतदाताओं को इसी तरह पंजीकृत किया गया है.
आमतौर पर 20-50 लोगों को एक ही पते पर दर्ज कर दिया गया. ये पते सामान्य नंबर, गांव या वार्ड के नाम तक सीमित थे. बगहा में 9 ऐसे घर मिले, जिनमें 100 से अधिक मतदाताओं को एक ही पते पर रजिस्टर किया गया. मोतिहारी में तीन ऐसे मामले सामने आए, जिनमें 100 से अधिक मतदाता गैर-मौजूद पते पर रजिस्टर थे. सबसे बड़ा मामला एक घर का है, जहां, चुनाव आयोग की नई मतदाता सूची के हिसाब से, 294 मतदाता विभिन्न परिवार, जाति और समुदाय के हैं. पिपरा, मोतिहारी और बगहा विधानसभा क्षेत्रों में लगभग 10 लाख मतदाता पंजीकृत हैं. इसका मतलब यह हो सकता है कि लगभग आठ प्रतिशत मतदाता संदिग्ध पते पर दर्ज हैं. यह सारा मामला 30 दिनों की उस मुहिम का नतीजा है, जो आयोग ने बिहार के मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ करने के लिए चलाई थी. और, दावा किया गया था कि राज्य की मतदाता सूची का आगामी चुनावों से पहले ‘शुद्धिकरण’ कर दिया जाएगा.
"द रिपोर्टर्स कलेक्टिव" ने पाया कि किन घरों पर सैकड़ों मतदाता दर्ज किए गए हैं, वे घर वास्तव में मौजूद ही नहीं हैं. मतदाताओं को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि उन्हें किस पते पर दर्ज किया गया है. गांव में लोग हैरान रह गए कि अलग-अलग जातियों के लोग कैसे एक ही छत के नीचे दर्ज हो सकते हैं. कलिमपुर के बूथ नं. 320 के अजय कुमार झा ने बताया कि 2003 की विशेष रिवीजन वोटर लिस्ट में ऐसे फर्जी पते नहीं थे. तब सभी के अलग-अलग पते थे.
ग्रामीण क्षेत्रों में थोक पंजीकरण के चलते चुनाव आयोग की आदत "एन" से शुरू होने वाले नाममात्र नंबर देने की है, लेकिन इस बार बूथ लेवल अधिकारियों ने पुराने सिस्टम को भी नहीं अपनाया. बूथ नं. 196 में 104 मतदाताओं को गैर-मौजूद मकान नंबर 2 पर रजिस्टर किया गया. लोगों ने फॉर्म नहीं भरे, अधिकारी ही फॉर्म भर ले गए. ऐसा कई जगह देखने को मिला. एक बूथ लेवल अधिकारी ने स्वीकारा कि समय की कमी के चलते वे फॉर्म खुद ही भर रहे थे. वेबसाइट रात में ही काम करती थी, इसलिए जल्दी-जल्दी काम निपटाना पड़ता था. प्रशिक्षण भी उचित नहीं मिला.
बहरहाल, यह पूरी रिपोर्ट दिखाती है कि चुनाव आयोग की "विशेष गहन पुनरीक्षण" (एसआईआर) प्रक्रिया में गंभीर खामियां छूटी हैं और पुरानी मतदाता सूची की समस्याएं न केवल बनी रहीं, बल्कि और बढ़ गईं.
वीपी के लिए सीपी का नाम
एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार नामित किया है. यह घोषणा भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने नई दिल्ली में पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद की. तमिलनाडु के एक अनुभवी भाजपा नेता राधाकृष्णन का चार दशकों से अधिक का एक लंबा और प्रतिष्ठित राजनीतिक करियर रहा है. वह झारखंड के राज्यपाल के रूप में कार्य कर चुके हैं और तेलंगाना के राज्यपाल और पुडुचेरी के उपराज्यपाल के रूप में अतिरिक्त प्रभार भी संभाल चुके हैं. कोयंबटूर से दो बार के लोकसभा सांसद, राधाकृष्णन भाजपा की तमिलनाडु इकाई का नेतृत्व भी कर चुके हैं. उनका राजनीतिक सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के अग्रदूत जनसंघ के साथ शुरू हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राधाकृष्णन को बधाई देते हुए समुदाय की सेवा करने और वंचितों को सशक्त बनाने में उनके समर्पण, विनम्रता और बुद्धि पर प्रकाश डाला. मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि राधाकृष्णन एक "प्रेरणादायक उपराष्ट्रपति" होंगे. अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं और सहयोगियों ने भी नामांकन का स्वागत करते हुए एक सांसद और राज्यपाल के रूप में राधाकृष्णन के व्यापक अनुभव की सराहना की है. इस नामांकन को भाजपा द्वारा दक्षिणी राज्यों, विशेषकर तमिलनाडु में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है. राधाकृष्णन प्रभावशाली गौंडर समुदाय से हैं, जो राज्य में महत्वपूर्ण चुनावी वजन वाला एक ओबीसी समूह है. दिवंगत द्रमुक संरक्षक एम. करुणानिधि और उनके परिवार के साथ उनके अच्छे संबंध को भी एक ऐसे कारक के रूप में देखा जा रहा है जो व्यापक समर्थन जुटा सकता है. विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने अभी तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है और इस मामले पर चर्चा के लिए एक बैठक आयोजित करने की उम्मीद है. जबकि कुछ विपक्षी नेताओं ने राधाकृष्णन को एक "गैर-विवादास्पद" व्यक्तित्व के रूप में वर्णित किया है, दूसरों ने उनके पूर्ववर्ती, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के समय और अचानक इस्तीफे पर सवाल उठाया है. इंडिया ब्लॉक के एक प्रमुख घटक द्रमुक ने नामांकन को एक "अच्छा निर्णय" कहा है, लेकिन कहा है कि वह गठबंधन के सामूहिक निर्णय का पालन करेगा. संसद के दोनों सदनों के सदस्यों वाले निर्वाचक मंडल में एनडीए के पास आरामदायक बहुमत होने के कारण, राधाकृष्णन का चुनाव निश्चित प्रतीत होता है. चुनाव 9 सितंबर को होना है, और नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 21 अगस्त है.
जम्मू-कश्मीर में फिर तबाही, बादल फटने और भूस्खलन से मौतें बढ़ीं
जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर त्रासदी हुई है क्योंकि भारी बारिश के कारण हुए नए बादल फटने और भूस्खलन ने व्यापक तबाही मचाई है, जिसमें कठुआ जिले में कम से कम सात लोगों की जान चली गई है. यह तब हुआ है जब क्षेत्र अभी भी किश्तवाड़ जिले में एक घातक बादल फटने से उबर रहा है जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए हैं और दर्जनों लापता हैं. कठुआ की घटनाएं दूरदराज के जोड घाटी गांव और जांगलोट इलाके में हुईं, जिससे अचानक बाढ़ आ गई जिसने सड़कें बहा दीं, घरों को नुकसान पहुंचाया और जम्मू-पठानकोट लाइन पर ट्रेन सेवाओं को बाधित कर दिया. बचाव अभियान जारी है.
नैनीताल का जिला पंचायत चुनाव
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बीजेपी जिला अध्यक्ष के खिलाफ एफआईआर
उत्तराखंड के नैनीताल में पुलिस ने 11 लोगों, जिनमें भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष भी शामिल हैं, तथा 15-20 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. यह कार्रवाई गत गुरुवार को हुए स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान अपहरण और पंचायत सदस्यों पर हमले के आरोपों के बाद हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद की गई.
नरेंद्र सेठी के मुताबिक, 14 अगस्त को हुए विवादित चुनाव में भारी हंगामा हुआ और अशांति देखी गई. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर उनके समर्थित जिला पंचायत सदस्यों को गायब करने के आरोप लगाए. इस वजह से पांच सदस्य वोट नहीं डाल पाए. कांग्रेस ने तुरंत ही घटना वाले दिन उत्तराखंड हाईकोर्ट का रुख किया. हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद पुलिस ने सक्रियता दिखाई. अब तक पीड़ितों की शिकायतों के आधार पर चार अलग-अलग मामलों में केस दर्ज किए गए हैं.
भाजपा जिला अध्यक्ष प्रताप बिष्ट, दीपिका डर्मवाल (भाजपा प्रत्याशी) के पति आनंद डर्मवाल और नौ अन्य को आरोपी बनाया गया है. इसके अलावा 15-20 अज्ञात लोगों को भी आरोपित किया गया है. खास चिंता का विषय यह है कि कथित तौर पर पांच जिला पंचायत सदस्यों – दीकर सिंह मेवाड़ी, प्रमोद सिंह, तरुण कुमार शर्मा, दीप सिंह बिष्ट और विपिन सिंह – का मतदान केंद्र के पास पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में अपहरण कर लिया गया. इस विवाद के बाद, निर्वाचन आयोग ने नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष का परिणाम घोषित नहीं किया है. इस मामले की सुनवाई सोमवार को नैनीताल हाई कोर्ट में होगी, जहां सील बंद परिणाम पेश किया जाएगा.
यूट्यूबर एल्विश यादव के गुरुग्राम स्थित आवास के बाहर फायरिंग
एक मोटरसाइकिल पर आए अज्ञात हमलावरों ने रविवार सुबह विवादास्पद यूट्यूबर और बिग बॉस विजेता एल्विश यादव के गुरुग्राम स्थित आवास के बाहर कई राउंड फायरिंग की. जबकि यादव घर पर नहीं थे, उनका परिवार मौजूद था लेकिन उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ. एक "भाऊ गैंग" के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने गोलीबारी की जिम्मेदारी ली है, जिसमें यादव द्वारा कथित तौर पर सट्टेबाजी ऐप्स को बढ़ावा देने का हवाला दिया गया है. पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और मामले की जांच कर रही है, अपराधियों की पहचान के लिए सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही है.
तकनीकी और रखरखाव संबंधी समस्याओं के कारण एयर इंडिया की उड़ानें बाधित
एयर इंडिया के यात्रियों को रविवार को उस समय भारी परेशानी का सामना करना पड़ा जब तकनीकी और रखरखाव संबंधी समस्याओं के कारण दो उड़ानों ने टेक-ऑफ रद्द कर दिया. दिल्ली-लेह उड़ान और मुंबई-अहमदाबाद उड़ान को प्रस्थान से ठीक पहले रद्द कर दिया गया, जिससे लंबी देरी हुई. यह हाल के दिनों में एयरलाइन द्वारा उड़ान रद्द करने और व्यवधानों की एक श्रृंखला के बीच आता है, जिसमें परिचालन चुनौतियों और एहतियाती सुरक्षा जांचों के कारण कई अंतरराष्ट्रीय उड़ानें प्रभावित हुई हैं.
अंडे के कारण 84 बच्चों ने स्कूल से टीसी कटाई
कर्नाटक के अलाकेरे में एक सरकारी स्कूल के 84 छात्रों ने मिड-डे मील में उबले अंडे परोसे जाने के विरोध में स्कूल से टीसी कटा ली है. ये छात्र लिंगायत समुदाय से हैं, जो भगवान शिव की पूजा करते हैं. उनके माता-पिता स्कूल में अंडा पकाए जाने का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि यह स्कूल एक शिव मंदिर के पास स्थित है.
स्कूल और छात्रों के माता-पिता के बीच मिड-डे मील को लेकर असंतोष लंबे समय से चला आ रहा था. कर्नाटक सरकार छात्रों को मिड-डे मील योजना के तहत उबला अंडा, केला या चिक्की में से कोई एक चुनने का विकल्प देती है. कक्षा 1 से 8 तक के इस कोएड स्कूल में 124 बच्चे थे. मांड्या विधायक रविकुमार गौड़ा ने "द टेलीग्राफ" को बताया कि 40% छात्र लिंगायत समुदाय से हैं, जो उबले अंडे के खिलाफ हैं. बाकी 60% विद्यार्थी वोक्कालिगा और अनुसूचित जाति समुदाय से हैं, जो मिड-डे मील में अंडा चाहते हैं.” बढ़ते विवाद के बीच, 84 छात्रों के माता-पिता ने अपने बच्चों का पास के अन्य सरकारी स्कूलों में दाख़िल करा दिया.
कर्नाटक के शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा ने कहा कि कुछ माता-पिता चाहते थे कि उनके बच्चे विशेष दिनों पर अंडा न खाएं. अब निर्णय लिया गया है कि प्रवेश के समय ही बच्चों की भोजन पसंद को लेकर अभिभावकों की अनुमति ली जाएगी.
“नए दौर की सेंसरशिप कैसी दिखती है, बीते हफ्ते ने हमें दिखाया”
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चुनावी अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. इन आरोपों की जांच के बजाय, चुनाव आयोग (ईसीआई) ने आक्रामक बचाव का रास्ता चुना और गांधी से शपथपत्र पर शिकायत दर्ज करने को कहा.उसी दौरान मीडिया का ध्यान कई अन्य चर्चित खबरों की ओर हट गया — मसलन, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की लोकेशन से जुड़ी अफवाहें, ऑपरेशन सिंदूर में छह पाकिस्तानी विमानों के गिराए जाने की खबर, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त के देश छोड़ने की अफवाहें, और आवारा कुत्तों पर चर्चा. इस न्यूज़ साइकिल को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि 21वीं सदी में सेंसरशिप कैसे काम करती है और कैसे हमारा ध्यान भटकाकर उसे हमारे खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है.
वकील सरयू पाणि ने लिखा है, आज सेंसरशिप के लिए जानकारी को सीधे ब्लॉक करना ज़रूरी नहीं, क्योंकि ऐसा करने पर स्ट्रीसैंड प्रभाव हो सकता है — यानी जिस सूचना पर रोक लगी, वही ज़्यादा वायरल हो जाती है. समाजशास्त्री ज़ेयनेप तुफ़ेकची मानती हैं कि 2011 में तहरीर चौक (इजिप्ट) के अनुभव के बाद सरकारों ने सोशल मीडिया, ऐक्टिविज़्म और सेंसरशिप को कंट्रोल करने के लिये ज़्यादा सूक्ष्म तरीके अपनाये हैं.
अब सेंसरशिप का मकसद जानकारी तक पहुंच को पूरी तरह रोकना नहीं, बल्कि जानकारी के प्रसार, व्यक्ति की इच्छा व एजेंसी और विरोध की भावना — इन कड़ियों को तोड़ना है. इसका उद्देश्य है- जनता में हताशा, निराशा और लाचारी की भावना लाना. इसके लिए सरकारें जानबूझकर ध्यान भटकाने के तरीके इस्तेमाल करती हैं और वास्तव में जानकारी के स्रोत को बदनाम करती हैं. इसके साथ, सरकार और मीडिया मिलकर विरोध की धार को कुंद करने का प्रयास करते हैं. राहुल गांधी पर बार-बार लगाए गए आरोप, उनकी विश्वसनीयता को कम करने के लिए किए गए हमले, और मीडिया में उनका मजाक, कभी भी ईमानदारी से सच को उजागर करने की बजाय जनता को भ्रमित करने का प्रयास दिखाते हैं.
विश्लेषण
आकार पटेल: शर्तों वाली आज़ादी
हमने इस महीने स्वतंत्रता दिवस मनाया, हमारे स्वतंत्रता संग्राम की परिणति. स्वतंत्रता और आजादी किससे? विदेशी शासन से और दमनकारी कानूनों से - चाहे वे हम पर कोई भी लादे? महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन वर्तमान में राज्य द्वारा पारित 'महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक' नामक एक कानून की जांच कर रहे हैं.
मैंने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की ओर से राज्यपाल को पत्र लिखा है और उनसे कहा है कि वे इस पर हस्ताक्षर न करें और इसके बजाय अपनी सहमति देने से इनकार कर दें.
"अर्बन नक्सलियों" के नाम से जाने जाने वाले लोगों के खिलाफ प्रतिकारी उपाय के रूप में तैयार किया गया यह विधेयक संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय रूप से संरक्षित मानवाधिकारों के लिए खतरा है. नक्सलवाद को एक दशकों पुराना ग्रामीण और कम्युनिस्ट-प्रेरित आंदोलन माना जाता है. वर्तमान चर्चा में "अर्बन नक्सलवाद" संभवतः बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और अन्य लोगों द्वारा इस आंदोलन के कथित समर्थन को संदर्भित करता है. "अर्बन नक्सलवाद" शब्द की भारतीय कानून में कोई कानूनी परिभाषा नहीं है. अपनी अस्पष्ट भाषा, भेदभावपूर्ण फोकस, न्यायिक निरीक्षण की अनुपस्थिति और दुरुपयोग की उच्च संभावना के साथ, यह विधेयक हमारे सबसे बड़े राज्यों में से एक में वैध असंतोष को अपराधीकृत करने का जोखिम उठाता है.
यह विधेयक अस्पष्ट, व्यापक और वैचारिक रूप से पक्षपाती प्रावधान पेश करता है जो अंतर्राष्ट्रीय और संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों के लिए तत्काल खतरा पैदा करते हैं और राज्य में असंतोष को अपराधीकृत करेंगे.
जैसा कि अपेक्षित था, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जोर देकर कहा है कि इस कानून का उपयोग सरकारी आलोचकों को दबाने के लिए नहीं किया जाएगा. हालांकि, यदि "अर्बन नक्सलवाद" शब्द की भारत में कोई कानूनी परिभाषा नहीं है, तो यह क्या है? यह एक बयानबाजी और राजनीतिक रूप से आवेशित वाक्यांश है - जो मीडिया और राजनीतिक प्रवचन में लोकप्रिय है, न्यायशास्त्र में नहीं. इसकी अस्पष्टता ही इसे नागरिक समाज के खिलाफ हथियार बनाने की अनुमति देती है, अक्सर शांतिपूर्ण असंतोष को राजद्रोह या आतंकवाद से जोड़ती है. एक परेशान करने वाली मिसाल है. भीमा कोरेगांव मामला, जिसमें 16 कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था, यह दिखाता है कि इस लेबल का उपयोग व्यक्तियों को बिना मुकदमे के वर्षों तक हिरासत में रखने के लिए कैसे किया गया है. अभियुक्तों में से कई का किसी भी हिंसक कृत्य से कोई संबंध नहीं था, बल्कि केवल आलोचनात्मक विचारों की अभिव्यक्ति, हाशिए पर पड़े समुदायों की वकालत या नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा से संबंध था.
उल्लेखनीय रूप से, गिरफ्तारियां 2018 में फडणवीस के मुख्यमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान शुरू हुईं. सात साल बाद, मुकदमे अभी भी शुरू नहीं हुए हैं, छह कार्यकर्ताओं की जमानत अस्वीकार्य है, और अभियुक्तों में से एक, फादर स्टेन स्वामी की हिरासत में मृत्यु हो गई.
अर्बन नक्सल की कहानी ने अहिंसक राजनीतिक विरोध और हिंसक उग्रवाद के बीच की रेखा को खतरनाक रूप से धुंधला कर दिया है. ऐसा भ्रम न केवल भारत के संवैधानिक मूल्यों के साथ असंगत है बल्कि इसकी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का भी उल्लंघन करता है.
इस कानून के अन्य परेशान करने वाले तत्व हैं, जैसे भेदभाव. इसके शुरुआती पैराग्राफ "वामपंथी उग्रवादी संगठनों या समान संगठनों" को अपने फोकस के रूप में पहचानते हैं. यह अपराधीकरण के लिए विचारधाराओं को अलग करता है और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो राजनीतिक राय की परवाह किए बिना कानून के तहत समान सुरक्षा की गारंटी देता है, और जिस पर भारत हस्ताक्षरकर्ता है.
हिंसा की उकसाहट या उसमें भागीदारी के सबूत के बिना केवल विचारों के आधार पर किसी संगठन की सदस्यता को दंडित करना भी भारतीयों के अधिकारों का उल्लंघन है.
यह कानून "अवैध गतिविधि" को अस्पष्ट और व्यक्तिगत शब्दों जैसे "सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा" या "कानून के प्रशासन में हस्तक्षेप की प्रवृत्ति" का उपयोग करके परिभाषित करता है. ये परिभाषाएं शांतिपूर्ण विरोध या नागरिक अवज्ञा को शामिल कर सकती हैं, जो हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आधारभूत तत्व हैं.
धारा 3 कार्यकारी को संगठनों को "अवैध" घोषित करने का अधिकार देती है, त्वरित और निष्पक्ष न्यायिक समीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसी घोषणाओं की समीक्षा का काम सौंपा गया सलाहकार बोर्ड केवल सरकारी नियुक्तियों से बना है, जिसका मतलब है कि वे कंगारू कोर्ट होंगे.
कानून की धाराएं जो एक अधिकारी की "राय" या "व्यक्तिगत जानकारी" के आधार पर तलाशी और जब्ती की अनुमति देती हैं, न्यायिक सुरक्षा को छीन लेती हैं और मनमानी कार्रवाई का दरवाजा खोल देती हैं. यह तलाशी में निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया की गारंटी देने वाले अधिकारों का उल्लंघन करता है, व्यक्तियों को अपने घर, संपत्ति और गोपनीता के साथ गैरकानूनी हस्तक्षेप से सुरक्षा प्रदान करता है.
धारा 14 अपीलों को प्रतिबंधित करती है, जबकि धारा 17 दुरुपयोग के मामलों में भी सरकारी अधिकारियों को व्यापक छूट प्रदान करती है. ऐसी धाराएं जवाबदेही को समाप्त कर देती हैं.
जैसा कि फैशन बन गया है, लोगों को जेल में डालने पर औपनिवेशिक शैली का दमन इस कानून में भी मौजूद है. धारा 15 विधेयक के तहत सभी अपराधों को गैर-जमानती और संज्ञेय बनाती है, उनकी परिभाषाओं की अस्पष्टता के बावजूद. यह न्यायिक जांच के बिना लंबी पूर्व-मुकदमा हिरासत को सुविधाजनक बनाता है.
सब कुछ के ऊपर, इस कानून की जरूरत नहीं है: भारत के पास पहले से ही बहुत प्रतिबंधात्मक आतंकवाद विरोधी और आपराधिक कानून हैं, जिनमें यूएपीए, एमसीओसीए और भारतीय न्याय संहिता शामिल हैं, जो समान या समान कथित आचरण को अपराधीकृत करते हैं. नया विधेयक असंतोष को दबाने के लिए एक और हथियार जोड़ता है, कानूनी प्रक्रिया को ही सजा में बदल देता है और नागरिक स्वतंत्रताओं को और भी घटा देता है.
यदि हस्ताक्षरित और लागू किया जाता है, तो सुरक्षा की आड़ में यह कानून मौलिक अधिकारों की कीमत पर राज्य की शक्ति का एक गंभीर और अनावश्यक विस्तार दर्शाता है. महाराष्ट्र की सुरक्षा करने से कहीं दूर, यह असंतोष, बहस और जवाबदेही को अपराधीकृत करता है. "अर्बन नक्सल" जैसे अस्पष्ट शब्दों के दुरुपयोग ने पहले ही अपार नुकसान पहुंचाया है. इस विधेयक पर सहमति देना एक ऐसे ढांचे को वैध बनाना होगा जो न्याय पर दुरुपयोग और दंडमुक्ति को सक्षम बनाता है.
इसीलिए मैंने राज्यपाल से अत्यंत सम्मान के साथ विधेयक पर सहमति रोकने का आग्रह किया है. स्वतंत्रता दिवस का अवलोकन केवल झंडा फहराने और सलामी देने और लंबे भाषणों के प्रतीकवाद तक सीमित नहीं होना चाहिए. जिसका अवलोकन किया जाना चाहिए वह है स्वतंत्रता के लिए हमारी निरंतर प्रतिबद्धता, नागरिक स्वतंत्रताओं का संरक्षण, मानवाधिकारों का संरक्षण और न्याय तक पहुंच. यह कानून इन सभी का उल्लंघन है और इस कारण से उम्मीद है कि यह भारतीयों पर नहीं थोपा जाए.
पुतिन के बाद अब ज़ेलेंस्की से ट्रम्प की वार्ता
रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ अलास्का में शिखर वार्ता के बाद, राष्ट्रपति ट्रम्प सोमवार दोपहर व्हाइट हाउस में यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से मुलाक़ात करेंगे, जो एक मुश्किल बैठक हो सकती है. इस मुलाक़ात से पहले ट्रम्प, ज़ेलेंस्की और कई नाटो नेताओं के बीच एक लंबी और "कठिन" फ़ोन कॉल हुई, जिसमें ट्रम्प ने पुतिन के साथ हुई अपनी बैठक की जानकारी दी. ट्रम्प का रुख़ अब युद्धविराम के बजाय सीधे एक व्यापक शांति समझौते की ओर झुक गया है.
पुतिन के साथ बैठक के बाद ट्रम्प की स्थिति यूक्रेन के लिए बहुत प्रतिकूल दिखाई देती है. ट्रम्प का यह कहना कि वह अब युद्धविराम का समर्थन नहीं करते हैं और शांति स्थापित करना "राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की पर निर्भर है," यूक्रेन पर भारी दबाव डालता है. ज़ेलेंस्की हमेशा से शांति वार्ता से पहले युद्धविराम की मांग पर अड़े रहे हैं.
ट्रम्प ने अलास्का से वाशिंगटन लौटते समय एयर फ़ोर्स वन से ज़ेलेंस्की को फ़ोन किया. इस कॉल में विदेश मंत्री मार्को रुबियो और व्हाइट हाउस के दूत स्टीव विटकॉफ़ भी शामिल थे. एक घंटे बाद ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, फ़िनलैंड, नाटो और यूरोपीय आयोग के नेता भी कॉल में शामिल हो गए. ट्रम्प ने नेताओं को बताया कि पुतिन युद्धविराम नहीं चाहते, बल्कि युद्ध समाप्त करने के लिए एक व्यापक समझौता चाहते हैं. ट्रम्प के दूत विटकॉफ़ ने दावा किया कि पुतिन यूक्रेन के लिए अमेरिकी सुरक्षा गारंटी की अनुमति देने पर सहमत हो गए हैं और शांति समझौते के हिस्से के रूप में "ज़मीनी अदला-बदली" पर भी रियायतें दी हैं.
ट्रम्प का रुख़ उस दृष्टिकोण से बिल्कुल विपरीत है जिसका उन्होंने मूल रूप से समर्थन किया था. उन्होंने ज़ेलेंस्की को यह भी बताया कि पुतिन ने उनसे कहा था कि रूस मोर्चे पर महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, जिसका ज़ेलेंस्की ने खंडन किया. ऐसा लगता है कि ज़मीन के बदले में, पुतिन युद्ध समाप्त करने और यूक्रेन में और अधिक क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा न करने और दूसरे देशों पर हमला न करने का वादा करने को तैयार हैं. हालांकि, ज़ेलेंस्की ने फिर से दोहराया है कि यूक्रेनी संविधान के तहत किसी भी ज़मीन की अदला-बदली असंभव होगी.
ज़ेलेंस्की ने कहा है कि वह शांति हासिल करने के लिए अधिकतम प्रयास करने को तैयार हैं और वह सोमवार को ट्रम्प के साथ अपनी बैठक का उपयोग "हत्या और युद्ध को समाप्त करने के संबंध में सभी विवरणों" पर चर्चा करने के लिए करेंगे. ट्रम्प ने लिखा है कि "अगर सब कुछ ठीक रहा" तो वह जल्द ही पुतिन और ज़ेलेंस्की के साथ एक त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन निर्धारित करेंगे. ज़ेलेंस्की के साथ कई प्रमुख यूरोपीय नेता भी अमेरिका जाएंगे, जो यूक्रेनी नेता के लिए कूटनीतिक समर्थन का एक असाधारण प्रदर्शन है. अमेरिका और उसके सहयोगी शांति समझौता होने पर "नाटो के आर्टिकल 5 जैसी भाषा" वाली सुरक्षा गारंटी की पेशकश कर सकते हैं.
एआई के मदद लेगा तिरुमाला तिरुपति मंदिर
आस्था और प्रौद्योगिकी के एक अनूठे मिश्रण में, विश्व प्रसिद्ध भगवान वेंकटेश्वर मंदिर का प्रबंधन करने वाला तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD), गूगल के सहयोग से अपनी तीर्थयात्री सेवाओं में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को एकीकृत करने वाला पहला हिंदू मंदिर ट्रस्ट बनने के लिए तैयार है. इस पहल का उद्देश्य भीड़ प्रबंधन को सुव्यवस्थित करके, कतार प्रणालियों को अनुकूलित करके, और दर्शन और आवास सहित विभिन्न सेवाओं की दक्षता में सुधार करके तीर्थयात्रा के अनुभव को बढ़ाना है. प्रमुख उद्देश्यों में से एक भक्तों के लिए प्रतीक्षा समय को महत्वपूर्ण रूप से कम करना है, जिससे तीर्थयात्रा अधिक परेशानी मुक्त हो. टीटीडी द्वारा यह कदम अपने समुदायों की बेहतर सेवा के लिए पारंपरिक संस्थानों द्वारा आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाने को दर्शाता है.
पाठकों से अपील :
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