18/09/2025 : दिल्ली दंगों में संदिग्ध पुलिस? | भक्ति काल का बड़ा जयकारा | इधर सेब सड़ रहे हैं, उधर झींगे अधर में | ईयू को भी रूसी करीबी से एतराज़ | भारत आये शरणार्थियों से दग़ा | सरकारी ईमेल का ठेका
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
दिल्ली दंगे: अदालत की सीधी चोट. पुलिस के 'मनगढ़ंत' सबूत, 'बनावटी' गवाह.
कश्मीर में सेबों का सैलाब, पर बर्बादी भी... हाइवे पर फंसी मेहनत, आंखों के सामने सड़ती फसल.
मोदी@75: 'अवतार पुरुष' की जय-जयकार... और उनके बचपन के दोस्त 'अब्बास' की कहानी का सच.
फैक्ट चेक: पिता की हत्या का दर्द... और उस पर बलात्कार का झूठा सांप्रदायिक रंग.
अमेरिकी टैरिफ की मार... दक्षिण भारत के निर्यात पर संकट. टेक्सटाइल से झींगा तक हाहाकार.
भारत-रूस दोस्ती पर यूरोपीय संघ की टेढ़ी नज़र... रिश्तों पर पड़ सकती है आंच.
अमेरिका छोड़ चीन क्यों जा रहे हैं AI के दिग्गज... एक जीनियस वैज्ञानिक की कहानी.
नेपाल में क्यों भड़का युवाओं का गुस्सा... और कैसे ढह गईं सरकारी संस्थाएं.
असम बीजेपी का AI-निर्मित वीडियो... मुसलमानों के खिलाफ नफरती प्रोपेगेंडा.
भारत-पाक मैच में तनातनी... मैच रेफरी को क्यों मांगनी पड़ी पाकिस्तान से माफ़ी.
दिल्ली में अफ्रीकी शरणार्थियों पर कार्रवाई... क्या बदल रही है भारत की नीति?
सरकारी ईमेल का काम अब निजी कंपनी के पास... डेटा सुरक्षा और निजता पर गंभीर सवाल.
दिल्ली दंगों की जाँच में अदालत ने पुलिस की भूमिका ही संदिग्ध पाई
93 में से 17 बरी मामले | 'मनगढ़ंत' सबूत | बनावटी गवाह | केस फाइल में हेरफेर
2020 के दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में अब तक हुए 97 बरी के फ़ैसलों में से कम से कम 17 मामलों में राष्ट्रीय राजधानी की स्थानीय अदालतों ने पुलिस की जांच में गंभीर गड़बड़ियों की ओर इशारा किया है. द इंडियन एक्सप्रेस में विनीत भल्ला और निर्भय ठाकुर की एक जांच में पाया गया है कि इन मामलों में लगभग हर पांचवें मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.
रिकॉर्ड बताते हैं कि अगस्त 2025 के अंत तक, दिल्ली पुलिस द्वारा दंगा, आगज़नी और ग़ैर-क़ानूनी सभा के 695 मामलों में से 116 पर फ़ैसले सुनाए गए हैं. इनमें से 97 में बरी और 19 में दोषसिद्धि हुई. द इंडियन एक्सप्रेस 93 बरी के मामलों से संबंधित रिकॉर्ड तक पहुँचने में सक्षम था.
इन मामलों के विश्लेषण से पता चलता है:
कम से कम 12 मामलों में, अदालतों ने पाया कि पुलिस ने "बनावटी" गवाह पेश किए थे या सबूत "मनगढ़ंत" प्रतीत होते थे.
कम से कम दो मामलों में, गवाहों ने गवाही दी कि उनके बयान उनके अपने नहीं थे, बल्कि पुलिस द्वारा लिखवाए गए थे या उनमें अतिरिक्त बातें जोड़ी गई थीं.
कई अन्य मामलों में, अदालतों ने निष्कर्ष निकाला कि जांच न्याय सुनिश्चित करने के बजाय केवल मामले को बंद करने की आवश्यकता से प्रेरित थी. एक मामले में, न्यायाधीश ने केस रिकॉर्ड में "हेरफेर" की ओर भी इशारा किया.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने पिछले महीने न्यू उस्मानपुर पुलिस स्टेशन के एक मामले में छह अभियुक्तों को बरी करते हुए अपने आदेश में कहा: “जांच अधिकारी द्वारा सबूतों में ज़बरदस्त हेरफेर किया गया है और इसके परिणामस्वरूप अभियुक्तों के अधिकारों का गंभीर हनन हुआ है, जिन पर शायद केवल यह दिखाने के लिए चार्जशीट दायर की गई है कि यह मामला सुलझा लिया गया है... ऐसे उदाहरण जांच प्रक्रिया और क़ानून के शासन में लोगों के विश्वास का गंभीर क्षरण करते हैं.”
फ़रवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध प्रदर्शनों के बीच हुए दंगों के दौरान कम से कम 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे.
अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, जिन 17 बरी के मामलों में अदालतों ने मनगढ़ंत सबूतों को चिह्नित किया है, उनमें दयालपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज पांच मामले, खजूरी ख़ास और गोकलपुरी में चार-चार, और ज्योति नगर, भजनपुरा, जाफ़राबाद और न्यू उस्मानपुर में एक-एक मामला शामिल है. इन सभी मामलों में, कड़कड़डूमा अदालतों के न्यायाधीशों ने कई तरह की अनियमितताओं को उजागर किया है.
उदाहरण के लिए, 16 दिसंबर, 2022 के एक आदेश में, ज्योति नगर पुलिस स्टेशन से संबंधित एक एफ़आईआर में, अदालत ने कहा, "मो. असलम नामक किसी ऐसे व्यक्ति का वास्तविक अस्तित्व भी, जिसने कथित अपराधों को देखा था, संदेह के घेरे में आता है, और उसके एक काल्पनिक व्यक्ति होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है."
इसी तरह, 29 मई, 2023 और 30 मई, 2023 के दो अलग-अलग आदेशों में, खजूरी ख़ास पुलिस स्टेशन की एफ़आईआर के संबंध में, अदालत ने एक ही अभियुक्त नूर मोहम्मद के बारे में लगभग समान निष्कर्ष दिया, "यह अनुमान लगाया जा सकता है कि (शिनाख़्त परेड) इसलिए नहीं की गई क्योंकि पुलिस को पहले से ही पता था कि उसका मामला मनगढ़ंत है और अभियुक्त को केवल इस मामले को सुलझाने के लिए अपराधी के रूप में दिखाया गया है."
कई अन्य मामलों में, अदालतों ने "बनावटी दावा", पुलिस द्वारा लिखवाए गए बयान, और मामले को सुलझाने के लिए "मनगढ़ंत" सबूत बनाने जैसी गंभीर टिप्पणियाँ की हैं.
फेक न्यूज | फैक्ट चैक | हेट क्राइम
भीड़ द्वारा पिता की हत्या के बाद रोती महिला का वीडियो, बांग्लादेश में इस्लामिस्टों द्वारा हिंदू महिला से बलात्कार के झूठे दावे के साथ वायरल
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक महिला ज़मीन पर बैठकर बेतहाशा रो रही है, जबकि उसके चारों ओर मौजूद भीड़ उससे सवाल करने की कोशिश कर रही है. इस वीडियो के साथ दावा किया जा रहा है कि यह एक हिंदू महिला की दुर्दशा को दिखाता है, जिसके साथ कथित तौर पर 'इस्लामिस्टों' ने उसके पिता की मौजूदगी में सामूहिक बलात्कार किया. क्लिप साझा करने वालों ने दावा किया कि यह घटना बांग्लादेश के ढाका डिवीज़न के गाज़ीपुर ज़िले में हुई. वीडियो में, कुछ पुलिस अधिकारियों सहित पुरुषों का एक समूह उसे उठने के लिए कहता है, लेकिन वह रोती रहती है और उनका जवाब नहीं दे पाती है. ऑल्ट न्यूज़ के लिए प्रांतिक अली की विस्तार से इस फेक न्यूज की रिपोर्ट है
11 सितंबर को, एक्स (पूर्व में ट्विटर) यूज़र @HinduVoice_in ने वायरल वीडियो और दावों को साझा करते हुए यह भी लिखा कि बांग्लादेश में हिंदुओं के ख़िलाफ़ 'नरसंहार' चल रहा है. कैप्शन में लिखा था, "लड़की और उसके पिता एक रिश्तेदार के घर जा रहे थे. रास्ते में, इस्लामिस्टों ने उनका अपहरण कर लिया. फिर इस्लामिस्टों ने पिता को बांध दिया और लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया." एक अन्य एक्स यूज़र, @MeghUpdates ने भी इसी दावे के साथ वीडियो पोस्ट किया. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह यूज़र अक्सर एक्स पर ग़लत सूचना और सांप्रदायिक प्रचार साझा करता है. इस दावे को एक अन्य एक्स यूज़र @Starboy2079 ने भी पोस्ट किया, जिसमें अनुयायियों से "हर एक बांग्लादेशी को भारत से बाहर निकालने" का आग्रह किया गया.
दावों की प्रामाणिकता की जांच करने के लिए, ऑल्ट न्यूज़ ने वायरल क्लिप को कई बार देखा. लगभग 00:54 मिनट पर, हम महिला को यह जवाब देते हुए सुन सकते हैं कि उसके पिता का नाम 'रूपलाल' था.
इसी से संकेत लेते हुए, ऑल्ट न्यूज़ ने गूगल पर एक प्रासंगिक कीवर्ड खोज की. इससे हम बांग्लादेशी समाचार आउटलेट 'द डेली स्टार' की 11 अगस्त की एक रिपोर्ट पर पहुँचे. इस रिपोर्ट के अनुसार, 40 वर्षीय रूपलाल रोबिदास, जो पेशे से एक मोची थे, अपने रिश्तेदार प्रदीप के साथ एक वैन में घर जा रहे थे. रास्ते में, एक भीड़ ने उन्हें घेर लिया, जिसने उन पर वैन चोरी करने का आरोप लगाया. यह कहने के बावजूद कि यह वैन उनकी है, दोनों लोगों पर हिंसक हमला किया गया और बाद में उन्होंने अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि रूपलाल की बेटी नूपुर की जल्द ही शादी होने वाली थी. एक दुखद मोड़ में, रूपलाल और प्रदीप नूपुर की सगाई को अंतिम रूप देने और शादी की तारीख़ तय करने के बाद घर लौट रहे थे.
हमें 13 अगस्त को 'प्रोथोम आलो' की इस घटना पर रिपोर्ट भी मिली. रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों लोगों को बांग्लादेश के रंगपुर के तारागंज में बुरीरहाट हाई स्कूल के परिसर में 15-20 युवकों ने पुलिस की मौजूदगी में पीट-पीटकर मार डाला. पुलिस ने कथित तौर पर संख्या में कम होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं की. तारागंज पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी (ओसी) एम.ए. फ़ारूक़ ने प्रकाशन को बताया कि घटनास्थल पर हज़ारों लोग थे और केवल चार पुलिस अधिकारी थे.
इस प्रकार, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा यह वीडियो इस झूठे दावे के साथ साझा किया गया है कि इसमें एक हिंदू महिला को उसके पिता की मौजूदगी में सामूहिक बलात्कार करते दिखाया गया है. असल में, यह 45 वर्षीय रूपलाल रोबिदास की बेटी को दिखाता है, जो अपने पिता की भीड़ द्वारा की गई क्रूर हत्या पर प्रतिक्रिया दे रही है. रूपलाल को, उनके रिश्तेदार प्रदीप दास के साथ, 9 अगस्त की रात को बांग्लादेश के रंगपुर ज़िले में चोरी के झूठे आरोपों पर एक भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था. रिपोर्टों से यह स्पष्ट नहीं था कि इस घटना का कोई सांप्रदायिक पहलू था.
बम्पर फसल है, हम अपने सेबों को अपनी निगाहों के सामने सड़ता हुआ देख रहे हैं
श्रीनगर से न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर है कि कश्मीर के फल उत्पादकों के लिए, फ़सल का मौसम निराशा का मंजर बन गया है. 270 किलोमीटर लंबे श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर 2,000-3,000 ट्रक सेब से लदे सड़ रहे हैं. यह राजमार्ग इस क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाला एकमात्र सड़क मार्ग है, जो फ़िलहाल बंद है. फल उत्पादकों और व्यापारियों को 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुक़सान हुआ है, और यह नुक़सान अभी भी बढ़ रहा है, जिससे घाटी में हज़ारों लोगों की आजीविका को ख़तरा है.
बारामूला के सोपोर के एक फल उत्पादक अल्ताफ़ अहमद ने कहा, "इस साल हमारे पास सेब की बंपर फ़सल थी. इसका मतलब घाटी भर के उत्पादकों के लिए राहत लाना था. यह फ़सल कटाई का चरम मौसम है, और राजमार्ग के लगातार बंद रहने से हमारी ख़ुशी दुख में बदल गई है. हम अपनी मेहनत को अपनी आंखों के सामने सड़ते हुए देख रहे हैं."
घाटी, जो सालाना लगभग 20-25 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन करती है, फलों को देश के विभिन्न बाज़ारों तक पहुँचाने के लिए श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्भर है. 25 अगस्त को भारी बारिश से सड़क को हुए नुक़सान के बाद राजमार्ग को वाहनों के आवागमन के लिए बंद कर दिया गया था. हालांकि हाल ही में हल्के वाहनों को अनुमति दी गई है, लेकिन सड़क की ख़राब स्थिति के कारण ट्रकों को अभी भी अनुमति नहीं है.
कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स-कम-डीलर्स यूनियन के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर के अनुसार, सेब और नाशपाती से लदे लगभग 2000-3000 ट्रक राजमार्ग पर विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए हैं. उन्होंने कहा, "चूंकि ये जल्दी ख़राब होने वाली वस्तुएं हैं, इसलिए अब तक बहुत सारे फल सड़ चुके होंगे. ट्रक लगभग 20 दिनों से फंसे हुए हैं. प्रत्येक ट्रक में 10-15 लाख रुपये मूल्य के 700-1200 सेब के बक्से होते हैं. हमें डर है कि लंबे समय तक बंद रहने के कारण 30 लाख सेब के बक्से सड़ गए होंगे." बशीर ने कहा कि फल उत्पादकों और व्यापारियों का नुक़सान पहले ही 1,000 करोड़ रुपये को पार कर चुका है.
'एपल टाउन' के नाम से मशहूर फ्रूट मंडी सोपोर के अध्यक्ष फ़याज़ अहमद मलिक ने कहा कि आम तौर पर सोपोर से रोज़ाना 200-300 सेब के ट्रक देश के विभिन्न बाज़ारों के लिए निकलते थे. "अब, न केवल हमारे ट्रक राजमार्ग पर फंसे हैं, बल्कि कई मंडी में ही लदे हुए हैं. सेब ट्रकों, फल मंडियों और गोदामों में सड़ रहे हैं, और नुक़सान बढ़ता जा रहा है."
विरोध के तौर पर, कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स कम डीलर्स यूनियन ने घोषणा की कि श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर फल लदे ट्रकों को रोके जाने के ख़िलाफ़ रविवार से कश्मीर की सभी फल मंडियां दो दिनों के लिए बंद रहेंगी.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ विधायक डॉ. बशीर अहमद वीरी ने राजमार्ग की बहाली पर तत्काल कार्रवाई की मांग की. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “एनएच44 पर दिनों से फंसे सेब के ट्रक, नुक़सान पहले ही 1200 करोड़+ हो चुका है. उत्पादकों का कहना है कि राजमार्ग का कुप्रबंधन हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ को नष्ट कर रहा है. हमारी अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की जानबूझकर की गई साज़िश. लाखों परिवार बाग़वानी पर निर्भर हैं. फिर भी जल्दी ख़राब होने वाली उपज सड़क पर सड़ रही है, जबकि उत्पादक निराशा में इंतज़ार कर रहे हैं. यह राजनीति नहीं है. यह अस्तित्व का सवाल है.”
यूरोपीय संघ ने भारत-रूस व्यापार से होने वाले ख़तरों की चेतावनी भी दी
द हिंदू के मुताबिक यूरोपीय संघ ने भारत के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को बेहतर बनाने की एक योजना पेश की है. हालांकि, उसने यह चेतावनी भी दी है कि रूस के साथ भारत के सैन्य अभ्यास और रूसी तेल की ख़रीद ब्रसेल्स और नई दिल्ली के बीच बढ़ते रणनीतिक संबंधों के लिए ख़तरा हैं.
यूरोपीय आयोग और यूरोपीय संघ की शीर्ष राजनयिक काजा कैलास ने बुधवार (17 सितंबर, 2025) को ब्रसेल्स में 'ए न्यू स्ट्रेटेजिक ईयू-इंडिया एजेंडा' जारी किया. उन्होंने यूरोपीय संसद और परिषद (सदस्य देशों के प्रमुख) से इसे अपनाने का आग्रह किया. सुश्री कैलास ने बुधवार को ब्रसेल्स में एक टेलीविज़न प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत यूरोपीय संघ के लिए एक "महत्वपूर्ण" भागीदार है. उन्होंने व्यापार, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा, रक्षा और जलवायु को शामिल करने वाली इस रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की. दस्तावेज़ में घोषणा की गई कि "यूरोपीय संघ और भारत में 21वीं सदी की निर्णायक साझेदारियों में से एक को आकार देने की क्षमता और दृढ़ संकल्प है".
ब्रसेल्स और नई दिल्ली इस समय एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत कर रहे हैं. यूरोपीय संघ के व्यापार प्रमुख मारोस शेफकोविच ने पिछले हफ़्ते वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ बातचीत के लिए नई दिल्ली का दौरा किया था. सुश्री कैलास ने कहा, "हम वर्गीकृत सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक समझौते पर भी बातचीत कर रहे हैं और रक्षा उद्योग के बीच संबंधों को गहरा कर रहे हैं." उन्होंने यह भी कहा कि इस पर कमिश्नरों के कॉलेज (27 यूरोपीय संघ के देशों के आयुक्तों से मिलकर बना) के बीच कुछ हिचकिचाहट थी.
रूस द्वारा हाल के हफ़्तों में यूक्रेन पर अपने हमले तेज़ करने के साथ, यूरोपीय इस बात से जूझ रहे हैं कि नई दिल्ली की मॉस्को के साथ निकटता को कैसे देखें. सुश्री कैलास ने कहा, "रूस के सैन्य अभ्यासों में भारत की भागीदारी और रूसी तेल की उसकी ख़रीद क़रीबी संबंधों के रास्ते में खड़ी है, क्योंकि अंततः, हमारी साझेदारी केवल व्यापार के बारे में नहीं है, बल्कि नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा के बारे में भी है." रणनीति दस्तावेज़ में कहा गया है, "यूरोपीय संघ के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि युद्ध को किसी भी तरह से बढ़ावा देने वाली चीज़ों पर अंकुश लगाया जाए."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह नए रणनीतिक दस्तावेज़ को अपनाने से "प्रसन्न" हैं. उन्होंने यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के साथ बुधवार को हुई अपनी फ़ोन पर बातचीत को याद करते हुए कहा, "हम यूक्रेन संघर्ष के शीघ्र और शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं."
भारत और यूरोपीय संघ बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितता और अमेरिका के साथ अपने व्यापार संबंधों में चुनौतियों का सामना करते हुए संबंधों को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले एक दशक में भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापार 90% से अधिक बढ़ा है. श्री शेफकोविच ने कहा कि वह श्री गोयल के लगातार संपर्क में हैं, लेकिन चाहते थे कि पिछले हफ़्ते नई दिल्ली की उनकी यात्रा के दौरान बातचीत में "और प्रगति" हुई होती. उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय व्यापार वार्ताकारों की "सख्त" होने की प्रतिष्ठा है.
जब रूस के नेतृत्व वाले हालिया ज़ापाद-2025 सैन्य अभ्यास में भारत की भागीदारी के बारे में विशेष रूप से पूछा गया, तो सुश्री कैलास ने कहा कि उन्होंने मंगलवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर से बात की थी. उन्होंने दोहराया कि रूस के साथ अभ्यास और तेल ख़रीदना रिश्ते के लिए मुद्दे थे. उन्होंने कहा कि कमिश्नरों के कॉलेज ने सहमति व्यक्त की थी कि यूरोपीय संघ को भारत के साथ संबंधों को गहरा करना चाहिए ताकि "उन्हें वास्तव में रूस के पाले में न धकेला जाए."
मोदी के 75वें जन्मदिन पर 'भक्ति': अख़बारों के विज्ञापनों से लेकर प्रार्थनाओं और सोशल मीडिया पोस्ट तक
"सर्वशक्तिमान ईश्वर ने स्वयं मोदीजी को हमारी मातृभूमि को पृथ्वी पर सबसे महान राष्ट्र बनाने के लिए एक अवतार पुरुष के रूप में भेजा है"
"सर्वशक्तिमान ईश्वर ने स्वयं मोदीजी को हमारी मातृभूमि को पृथ्वी पर सबसे महान राष्ट्र बनाने के लिए एक अवतार पुरुष के रूप में भेजा है"; "मेरी गहरी इच्छा है कि जब स्वतंत्र भारत 100 साल का हो जाए तो मोदीजी सेवा करें"; "75 साल की उम्र में आपकी ऊर्जा हम जैसे युवाओं को भी मात देती है"; "नए भारत के निर्माता". ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनका इस्तेमाल क्रमशः उद्योगपति मुकेश अंबानी, अभिनेता शाहरुख़ ख़ान और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बुधवार, 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन पर उनके वर्णन के लिए किया.
हालांकि मोदी के जन्मदिन पर अतीत में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके नेताओं की ओर से धूमधाम होती रही है, लेकिन उनके इस मील के पत्थर वाले जन्मदिन पर समारोह का पैमाना अभूतपूर्व था. इसे उनकी सेवानिवृत्ति के आसपास की अटकलों को पलटने के एक ठोस प्रयास के रूप में देखा गया. यह अटकलें इस बीच लगाई जा रही हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा प्रधानमंत्री के कार्यकाल के 11वें वर्ष में सेवानिवृत्ति के लिए 75 साल का पैमाना लागू करेंगे, क्योंकि उम्र का बहाना पहले लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा जैसे अन्य दिग्गजों पर लागू किया गया था.
1949 में संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में, भारतीय संविधान के जनक बी.आर. अंबेडकर ने लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए व्यक्ति-पूजा के ख़िलाफ़ चेतावनी दी थी और कहा था कि भारत में, यह किसी भी अन्य देश के विपरीत एक भूमिका निभाता है. उन्होंने कहा था, "भारत में, भक्ति या जिसे वीर-पूजा का मार्ग कहा जा सकता है, उसकी राजनीति में इतनी बड़ी भूमिका है जितनी दुनिया के किसी अन्य देश की राजनीति में नहीं है. धर्म में भक्ति आत्मा के मोक्ष का मार्ग हो सकती है. लेकिन राजनीति में, भक्ति या वीर-पूजा पतन और अंततः तानाशाही का एक निश्चित मार्ग है."
17 सितंबर को उसी व्यक्ति-पूजा का एक अभूतपूर्व पैमाने पर प्रदर्शन देखा गया, जिसके ख़िलाफ़ अंबेडकर ने मोदी के 75वें जन्मदिन को मनाने के लिए आगाह किया था. अख़बारों से लेकर राजनेताओं, खिलाड़ियों, मशहूर हस्तियों, उद्योगपतियों, निजी कंपनियों, शैक्षणिक संस्थानों और प्रदर्शनियों तक, सभी ने मोदी के जन्मदिन समारोह के इस ज़बरदस्त प्रचार में भाग लिया.
द इंडियन एक्सप्रेस के दिल्ली संस्करण में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की ओर से मोदी को उनके जन्मदिन की बधाई देते हुए एक पूरा फ़्रंट पेज विज्ञापन शामिल था, जिसमें उन्हें "नए भारत का निर्माता" कहा गया था. द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू के दिल्ली संस्करण भी दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा मोदी को उनके जन्मदिन की बधाई और उनकी उपलब्धियों को सूचीबद्ध करने वाले फ़्रंट पेज विज्ञापनों के साथ खुले. डालमिया भारत जैसी निजी कंपनियों ने भी मोदी को शुभकामनाएं देते हुए पूरे पेज के विज्ञापन दिए, जबकि सतीश लोहिया और संजय काकड़े जैसे भाजपा नेताओं ने भी अख़बारों के विज्ञापनों में प्रधानमंत्री को बधाई दी.
इस पर श्रीकांत वर्मा की एक कविता प्रासंगिक है.
प्रक्रिया / श्रीकांत वर्मा
मैं क्या कर रहा था जब
सब जयकार कर रहे थे?
मैं भी जयकार कर रहा था -
डर रहा था
जिस तरह
सब डर रहे थे।
मैं क्या कर रहा था जब
सब कह रहे थे,
'अजीज मेरा दुश्मन है?'
मैं भी कह रहा था,
'अजीज मेरा दुश्मन है।'
मैं क्या कर रहा था
जब
सब कह रहे थे,
'मुँह मत खोलो?'
मैं भी कह रहा था,
'मुँह मत खोलो
बोला
जैसा सब बोलते हैं।'
खत्म हो चुकी है जयकार,
अजीज मारा जा चुका है,
मुँह बंद हो चुके हैं।
हैरत में सब पूछ रहे हैं,
यह कैसे हुआ?
जिस तरह सब पूछ रहे हैं
उसी तरह मैं भी
यह कैसे हुआ?
भारत परमाणु धमकियों से नहीं डरता, पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया है : मोदी
अपने 75वें जन्मदिन के अवसर पर मध्यप्रदेश के धार जिले में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को पलक झपकते ही घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि भारत किसी भी परमाणु धमकी से डरता नहीं है और शत्रु के घर में घुसकर प्रहार करता है.
आनंद मोहन जे. के मुताबिक, देश के पहले प्रधानमंत्री मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड ऐपेरल (पीएम मित्र) पार्क की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक समय ऐसा भी था जब "पाकिस्तान से आए आतंकवादी हमारी माताओं-बहनों की अस्मिता को रौंदने की कोशिश करते थे." मोदी ने कहा कि कल ही पूरे देश और दुनिया ने देखा कि एक पाकिस्तानी आतंकवादी अपने हालात स्वीकार करते हुए आंसू बहा रहा था. यह नया भारत है.
प्रधानमंत्री ने मेड इन इंडिया उत्पादों के लिए भी अपील की. कहा- जो भी आप घर लाएं, उसमें हमारी मातृभूमि की मिट्टी की खुशबू होनी चाहिए. आज मैं खास तौर पर अपने व्यापारियों और भाइयों-बहनों से अपील करता हूं. इस राष्ट्र के लिए मेरे साथ खड़े हों, क्योंकि मैं भारत को 2047 तक विकसित देश बनते देखने के लिए संकल्पित हूं.
श्रवण गर्ग: अभाव का बचपन, अब्बास की दोस्ती और अब
हरकारा डीपडाइव में वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने नरेन्द्र मोदी के अब तक के सफर की बात की. उनके बचपन की, अभाव की और अब्बास नाम के दोस्त की. आज जब देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 75वां जन्मदिन मना रहा है, तो चारों तरफ़ उनके योगदान और उनकी उपलब्धियों की चर्चा है. लेकिन चलिए, हम कुछ साल पीछे चलते हैं और उस कहानी को याद करते हैं जो ख़ुद प्रधानमंत्री ने सुनाई थी—एक कहानी अपने बचपन की, अपनी माँ की, और अपने एक मुस्लिम दोस्त 'अब्बास' की.
यह क़िस्सा तब सामने आया जब मोदी जी ने अपनी माँ हीराबा के 100वें वर्ष में प्रवेश करने पर एक ब्लॉग लिखा. उन्होंने अपने बचपन के घर को याद करते हुए लिखा, "वडनगर का वह घर बहुत ही छोटा था. कोई बाथरूम नहीं, कोई शौचालय नहीं. मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना डेढ़ कमरे का ढाँचा... उसी में माँ-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे."
इसी ब्लॉग में उन्होंने एक बेहद दिलचस्प पात्र का परिचय कराया. उन्होंने लिखा, "हमारे घर से थोड़ी दूर पर मेरे पिताजी के एक बहुत करीबी दोस्त रहा करते थे. उनका बेटा था अब्बास. दोस्त की असमय मृत्यु के बाद पिताजी अब्बास को हमारे घर ले आए. एक तरह से अब्बास हमारे घर में ही रहकर पढ़ा. हम सब बच्चों की तरह माँ अब्बास की भी देखभाल करती थीं. ईद पर माँ अब्बास के लिए उसकी पसंद के पकवान बनाती थीं."
यह कहानी सुनने में जितनी मार्मिक और समावेशी लगती है, वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग इसके पीछे की राजनीति और समय पर सवाल उठाते हैं. यह ब्लॉग तब आया था जब नूपुर शर्मा के एक बयान के बाद देश में सांप्रदायिक तनाव चरम पर था. गर्ग का मानना है कि 'अब्बास' का चरित्र ठीक उसी समय जनता के सामने लाया गया ताकि यह संदेश दिया जा सके कि प्रधानमंत्री तो हमेशा से अल्पसंख्यकों के प्रति स्नेह रखते आए हैं.
लेकिन इस कहानी का सबसे बड़ा विरोधाभास कहीं और छिपा है. जो व्यक्ति इतने अभाव और ग़रीबी में पला-बढ़ा हो, जिसकी छत खपरैल की हो और घर में बाथरूम तक न हो, उस व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए? उसे सादगी का प्रतीक होना चाहिए या वैभव का? आज हम प्रधानमंत्री को लाखों के सूट, महंगी घड़ियाँ और चश्मों में देखते हैं, जो उनके बताए गए अतीत से बिल्कुल मेल नहीं खाता.
गर्ग साहब के मुताबिक एक और दिलचस्प बात यह है कि बाद में जब एक पत्रकार ने अब्बास से संपर्क किया, तो उन्होंने बताया कि जब वह मोदी के घर रहने आए, तब तक नरेंद्र मोदी घर छोड़ चुके थे. यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे शासकों की कहानियाँ उतनी ही सीधी होती हैं जितनी वे दिखाई देती हैं. या फिर वे भी समय और ज़रूरत के हिसाब से गढ़ी जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक कुम्हार मिट्टी को आकार देता है. मोदी के 75 साल हमें यह मौक़ा देते हैं कि हम सिर्फ़ वर्तमान को नहीं, बल्कि उस अतीत को भी देखें, जिसकी बुनियाद पर आज का वर्तमान खड़ा है.
मोदी की मां का वीडियो सोशल मीडिया से हटाएं, पटना हाईकोर्ट का कांग्रेस को आदेश
पटना हाईकोर्ट ने कांग्रेस पार्टी को निर्देश दिया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डाले गए उस एआई-जनित वीडियो को हटाया जाए जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां हीराबेन मोदी दिखाई गई थीं. यह वीडियो पिछले हफ्ते कांग्रेस की बिहार इकाई ने जारी किया था, जिसमें दिखाया गया था कि मोदी की मां उनके सपने में आकर उनके राजनीतिक तौर-तरीकों की आलोचना कर रही हैं.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश पी. बी. बैजनत्री ने विवेकानंद सिंह की याचिका पर यह आदेश पारित किया और कहा कि यह “अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो निजता के अधिकार और मानवीय गरिमा से जुड़ा है.” कांग्रेस का कहना था कि उसने न तो प्रधानमंत्री का, और न ही उनकी मां का अपमान किया है. पार्टी के प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा को “हिंदुस्तान टाइम्स” ने उद्धृत करते हुए लिखा—“आपत्ति किस बात की है? अगर कोई मां अपने बेटे को सही काम करने की सीख दे रही है तो इसमें अनादर कहां है? यह न तो मां का अपमान है, जिनका हम गहरा सम्मान करते हैं, और न ही बेटे का.”
खालिस्तानी संगठन ‘एसएफजे’ ने कनाडा में भारतीय वाणिज्य दूतावास को ‘घेरने’ की धमकी दी
एक तरफ भारत और कनाडा कूटनीतिक संबंध बहाल करने की दिशा में बढ़ रहे हैं, वहीं, दूसरी ओर अमेरिका स्थित खालिस्तानी संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ (एसएफजे), जिसे भारत में प्रतिबंधित किया गया है, ने बुधवार को वैंकूवर स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास को "घेरने" की धमकी दी. इस संगठन ने “एक्स” पर साझा अपने बयान में भारतीयों और इंडो-कनाडाई नागरिकों से अपील की कि वे दूतावास जाने से बचें. साथ ही इसने भारत के नए उच्चायुक्त दिनेश पटनायक को निशाना बनाते हुए एक पोस्टर भी प्रसारित किया.
एसएफजे ने घोषणा की कि वह गुरुवार सुबह 8 बजे (स्थानीय समय) से भारतीय दूतावास का 12 घंटे का "घेराव" करेगा. संगठन का कहना है कि यह कार्रवाई कनाडाई ज़मीन पर कथित जासूसी और डराने-धमकाने के मामलों में "जवाबदेही की मांग" के लिए की जा रही है. अपने बयान में एसएफजे ने कहा—"यह घेराव हमारी ओर से जवाबदेही की मांग करने का तरीका है. "
गौरतलब है कि यह धमकी ऐसे समय दी गई है जब कुछ दिन पहले एक कनाडाई सरकारी रिपोर्ट ने औपचारिक रूप से खालिस्तानी उग्रवादी संगठनों की मौजूदगी और कनाडा से आतंकवाद के वित्तपोषण में उनकी भूमिका को स्वीकार किया था.
नेपाल
कनकमणि दीक्षित : नौजवान अपनी सरकार की नाकामियों से मायूस हो चुके थे
हिमाल के संपादक और नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार कनक मणि दीक्षित ने दो हिस्सों में नेपाल पर पूरा रिपोर्ताज लिखा है. वायर में बुधवार को पहला हिस्सा छपा है. उसके प्रमुख अंश.
सितंबर के दूसरे सप्ताह की घटनाओं ने उजागर किया कि वर्षों की राजनीतिक अराजकता और कुशासन के बाद नेपाली राज्य की संस्थाएं कितनी कमज़ोर और दिखावटी हो गई थीं. अपनी अन्य विफलताओं के अलावा, प्रधानमंत्री के.पी. ओली के नेतृत्व में नेपाली कांग्रेस (एनसी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल-यूएमएल का विशाल गठबंधन सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को विनियमित करने की एक सुसंगत योजना भी लागू नहीं कर सका.
सरकार ने अंतरराष्ट्रीय तकनीकी दिग्गजों को काठमांडू में एक 'प्वाइंट पर्सन' नियुक्त करने के लिए बार-बार नोटिस जारी किए थे, जिसका मुख्य उद्देश्य शिकायतों और साइबर अपराध की जांच में सुविधा प्रदान करना था. जब अधिकारियों ने 4 सितंबर को पंजीकरण लंबित होने तक 26 प्लेटफ़ॉर्मों के निलंबन की घोषणा की, तो वे उस आबादी के गुस्से का अंदाज़ा लगाने में विफल रहे, जो अचानक उन साधनों से वंचित हो गई थी जिन पर उनका दैनिक जीवन और आजीविका निर्भर थी.
परिणामस्वरूप सार्वजनिक हताशा को उन युवाओं ने महसूस किया, जिन्होंने 8 सितंबर को मध्य काठमांडू में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. जो तब तक 'जेनरेशन ज़ी' के युवाओं का एक ढीला-ढाला समूह था, जो सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के निलंबन को रद्द करने का आह्वान कर रहा था, वह सुशासन और पारदर्शिता जैसी मांगों के साथ बड़ा हो गया.
आधुनिक नेपाल की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ 8 सितंबर को आया, जब स्कूली बच्चे और कॉलेज के छात्र काठमांडू शहर के मैतीघर मंडल चौराहे पर इकट्ठा हुए. प्रारंभ में, जेन ज़ी का विरोध शांतिपूर्ण ढंग से चला, लेकिन जल्द ही चीजें बिगड़नी शुरू हो गईं. पुलिस बल अपने कर्तव्य में विफल रहा. उसने दंगा नियंत्रण के स्वीकृत उपायों को लागू नहीं किया और भीड़ को संसद परिसर में घुसने दिया, जिस बिंदु पर स्पेशल टास्क फ़ोर्स (एसटीएफ) ने कथित तौर पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं. बल का प्रयोग प्रदर्शनकारियों द्वारा उत्पन्न ख़तरे के अनुपात में दुखद रूप से बहुत ज़्यादा था. शाम तक, कम से कम 19 युवा नागरिक मारे गए थे, और 300 से अधिक घायल अस्पतालों में भर गए थे. अब तक, दुखद आंकड़ा 70 से अधिक मौतों और एक हज़ार से अधिक घायलों का है.
पुलिस के हाथों हुई मौतों ने तुरंत एनसी-यूएमएल सरकार के पतन की स्थितियाँ पैदा कर दीं. 9 सितंबर को आगज़नी और हमले देशव्यापी और विनाशकारी थे, जिससे देश पूरी तरह से ठप हो गया. सुप्रीम कोर्ट, सिंह दरबार सरकारी सचिवालय और संसद सभी को आग लगा दी गई. अदालत, सचिवालय और संसद के कागज़ात धुएं में उड़ गए. नेपाल पुलिस और सशस्त्र पुलिस बल पूरी तरह से ग़ैर-मौजूद थे, जबकि दमकल कर्मियों को उनका थोड़ा-बहुत काम करने से भी रोक दिया गया था.
सेना मुख्यालय भद्रकाली में संसद, सुप्रीम कोर्ट और सिंह दरबार की ओर देखने वाली एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है. सिंह दरबार परिसर के भीतर एक बटालियन तैनात है जिसे तीनों संस्थानों की रक्षा करनी चाहिए थी. सैनिक नहीं हिले. सेना ने 9 सितंबर का पूरा दिन ले लिया, इससे पहले कि वह सड़कों पर गश्त करने की ज़रूरत के प्रति जागी, और उस दिन रात 10 बजे ही बाहर आई.
कहा जाता है कि अपने आधिकारिक बालुवाटार आवास पर, प्रधानमंत्री ओली संकट से निपटने के लिए प्रतिबद्ध थे, लेकिन जब उन्हें सेना द्वारा सूचित किया गया कि अब उन्हें उसका समर्थन प्राप्त नहीं है, तो उन्होंने अचानक पद छोड़ने का फ़ैसला किया. इस जानकारी की सत्यता की जांच आने वाले दिनों में करनी होगी. बीच-बचाव के बीच, सत्ता के उचित और सार्वजनिक हस्तांतरण की ज़रूरत को नज़रअंदाज़ कर दिया गया. इसके परिणामस्वरूप अधिकार के अभाव में भीड़ और भी उग्र हो गई. धुएं और खंडहरों के बीच, नेपाल के संविधान का अस्तित्व ही अचानक सवालों के घेरे में आ गया है. पूरा लेख विस्तार से वायर में पढ़ें.
हुर्रियत के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल गनी भट का निधन
हुर्रियत गठबंधन के पूर्व प्रमुख और अलगाववादी समूहों के नेता अब्दुल गनी भट, जो 2000 के दशक की शुरुआत में एनडीए सरकार के साथ दिल्ली-श्रीनगर वार्ताओं के "चेहरे" बन गए थे, का आज सोपोर में बीमारी के बाद 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया. पीरज़ादा आशिक, जो भट को कश्मीर पर दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों के साथ वार्ता के "मजबूत समर्थक" के रूप में याद करते हैं, ने बताया कि वर्तमान हुर्रियत अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक को श्रीनगर से उत्तर कश्मीर के सोपोर तक यात्रा की अनुमति नहीं दी गई है. उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने भट के अंतिम संस्कार को "बुधवार रात तक पूरा करने" के लिए कहा है.
2026 के चुनाव से पहले, असम भाजपा ने इस्लामोफ़ोबिक वीडियो जारी किया
जिन लोगों को पिछले साल आम चुनाव और झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के कथित साम्प्रदायिक वीडियो देखकर लगा था कि इससे ज़्यादा बुरा क्या होगा, तो शायद वे पार्टी की असम इकाई का नया वीडियो देखकर मालूम नहीं क्या निष्कर्ष निकालेंगे. इस वीडियो में मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला गया है. “द वायर” में श्रावस्ती दासगुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा द्वारा “एक्स” पर पोस्ट किया गया यह एआई-निर्मित वीडियो इस कल्पना पर आधारित है कि अगर असम में बीजेपी सत्ता में न होती तो राज्य कैसा दिखता? इसमें टोपी पहने पुरुषों और हिजाब पहनी महिलाओं (यानी बंगाल मूल के मुसलमानों) को गुवाहाटी की विभिन्न जगहों पर घूमते हुए, राज्य में ‘ग़ैरक़ानूनी तरीके से प्रवेश’ करते हुए, सड़क पर गाय का मांस काटते हुए, ‘सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करते’ हुए और राज्य की “90%” आबादी बनते हुए दिखाया गया है. इसके साथ ही कांग्रेस को “पाकिस्तान-समर्थित पार्टी” बताया गया है और दर्शकों को चेतावनी दी गई है कि ‘अपना वोट सोच-समझकर चुनें.’ नए भारत की हकीकत यह है कि जहां ऐसा नफरती कंटेंट अब भी ऑनलाइन है, वहीं दूसरी तरफ अडानी समूह पर रिपोर्टिंग वाले वीडियो (और एक मामले में तो सिर्फ इस समूह पर छपे लेख की तस्वीर वाले वीडियो) को हटाने का आदेश दिया गया है.
जैसे-जैसे भारत शरणार्थियों पर कार्रवाई कर रहा है, वह अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के प्रति अपनी लंबी प्रतिबद्धता को धोखा दे रहा है
भारतीय मीडिया ने शरणार्थी मुद्दे को केवल कभी-कभार मानवीय रुचि की कहानियों के स्रोत के रूप में देखा है. हाल ही में, जब वे मणिपुर में हिंसा में एक राजनीतिक मुद्दा बन गए, तब शरणार्थी भारत में सुर्खियों में आए. फिर रोहिंग्याओं के एक समूह की भयावह कहानी आई, जिन्हें भारतीय अधिकारियों द्वारा ले जाकर समुद्र में फेंक दिया गया. स्क्रोल में नंदिता हक्सर की इस पर विस्तार से रिपोर्ट छपी है.
हालांकि, रोहिंग्याओं की गिरफ़्तारी और हिरासत को भारत में शरणार्थी संरक्षण के मुद्दे से अलग करके नहीं देखा जा सकता है. इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक विकास के संदर्भ में देखा जाना चाहिए - यानी धार्मिक दक्षिणपंथी राजनीतिक आंदोलन का उदय जिसने अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए आप्रवासन और शरणार्थी मुद्दों को हथियार बना लिया है.
इसी संदर्भ में हमें दिल्ली के मालवीय नगर में रहने वाले अफ़्रीकी शरणार्थियों की ताज़ा गिरफ़्तारियों को देखना चाहिए. पिछले एक सप्ताह या उससे अधिक समय से, पुलिस, अक्सर सादे कपड़ों में, सूडान, यमन, सोमालिया के शरणार्थियों को उठा रही है और उनके बायोमेट्रिक्स लेने के बाद, उन्हें हरियाणा के कुख्यात हिरासत केंद्र लम्पुर सेवा सदन भेज रही है. शरणार्थियों का कहना है कि पुलिस पुरुषों को उठा रही है, जिससे महिलाएं और बच्चे अकेले रह जाते हैं. अधिकांश महिलाएं काम नहीं करती हैं, जो उन्हें बहुत कमज़ोर बना देता है.
सूडान के एक शरणार्थी यूसुफ़ हारून, जिनके पास संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त शरणार्थी (यूएनएचसीआर) का पहचान पत्र है, ने यूएनएचसीआर को मालवीय नगर से हाल की गिरफ़्तारियों की सूचना देते हुए कई हताश ईमेल भेजे हैं. लेकिन उन्होंने उसे शांत रहने और अपना मोबाइल नंबर बदलने की सलाह देने के अलावा कोई और सलाह नहीं दी है. यमन के एक युवा शरणार्थी ने कहा कि उसे पुलिस ने पकड़ा और पीटा. जब उसने पूछा कि उसे क्यों पीटा गया, तो उन्होंने कहा कि वह अवैध रूप से भारत आया है. पुलिस यूएनएचसीआर द्वारा जारी पहचान पत्रों का सम्मान नहीं करती है.
अफ़्रीका के शरणार्थियों का कहना है कि उन्हें रोज़ाना नस्लवाद का सामना करना पड़ता है. कई शरणार्थियों ने फ़र्ज़ी आधार कार्ड प्राप्त करने के तरीक़े खोज लिए थे, जिससे वे अपने बच्चों को स्कूल भेज सकते थे, बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच सकते थे, और दोपहिया वाहनों के लिए लाइसेंस प्राप्त कर सकते थे. हालांकि, नए आप्रवासन और विदेशी अधिनियम, 2025 के तहत, अस्पतालों और स्कूलों को यह रिपोर्ट करना अनिवार्य है कि क्या कोई विदेशी बिना वैध वीज़ा के उनके संस्थान में आता है.
इन गिरफ़्तारियों और शरणार्थियों को वापस भेजने का एक विकल्प है: एक ऐसा क़ानून जो शरणार्थियों की रक्षा करता है और साथ ही उनका दस्तावेज़ीकरण करने का एक तरीक़ा भी है. उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने और हमारे देश में योगदान करने के तरीक़े खोजने का अवसर देना. ये शरणार्थी दोस्ती और एकजुटता के पुल बन सकते हैं. यदि हम इन गिरफ़्तारियों, हिरासतों और निर्वासनों को जारी रखते हैं, तो हम निश्चित रूप से एक ऐसी स्थिति पैदा करेंगे जब भारत विरोधी भावनाओं और नाराज़गी का निर्माण होगा और भारतीय प्रवासियों को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा और वे पहले से ही इसका सामना कर रहे हैं.
क्रिकेट के जंगी तेवर
‘सबसे बड़ी आपत्ति सूर्यकुमार के बयान पर... पायक्रॉफ्ट ने सॉरी कहा है’; पीसीबी
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के अध्यक्ष मोहसिन नक़वी, पूर्व प्रमुख नजम सेठी और पूर्व कप्तान रमीज़ राजा ने भारत पर खेल में राजनीति लाने का आरोप लगाया है, जबकि उन्होंने बहिष्कार की धमकी से पीछे हटने का फ़ैसला किया है.
पीसीबी अध्यक्ष मोहसिन नक़वी ने कहा, “जैसा कि आप सभी जानते हैं, 14 सितंबर से एक संकट चल रहा है. हमें मैच रेफ़री (एंडी पायक्रॉफ्ट) की भूमिका पर आपत्ति थी. कुछ समय पहले ही, मैच रेफ़री ने टीम के कोच, कप्तान और मैनेजर से बातचीत की. उन्होंने कहा कि यह घटना (हाथ न मिलाना) नहीं होनी चाहिए थी. हमने पहले भी आईसीसी से अनुरोध किया था कि मैच के दौरान कोड के उल्लंघन पर एक जांच स्थापित की जाए. हमारा मानना है कि राजनीति और खेल एक साथ नहीं चल सकते. यह खेल है, और इसे खेल ही रहने दें.”
पूर्व पीसीबी प्रमुख नजम सेठी ने कहा, “पीसीबी का उद्देश्य हमेशा से यही रहा है कि खेल में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए. उन्होंने राजनीति की, हमने नहीं. हमने माफ़ी की मांग की और उन्होंने माफ़ी दी है. क्रिकेट विजेता है. दुनिया हमारे रुख़ का समर्थन करेगी और आप सभी भारत के रुख़ पर दुनिया की प्रतिक्रिया देख रहे हैं.” पूर्व कप्तान रमीज़ राजा ने अपनी सबसे बड़ी आपत्ति ज़ाहिर की. उन्होंने कहा, “मेरी सबसे बड़ी आपत्ति उस पर थी जो मैच के बाद की प्रस्तुति में (भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव द्वारा) कहा गया था.. अगर माफ़ी (मैच रेफ़री से) आ गई है और यह आ गई है, तो यह अच्छा है क्योंकि क्रिकेट क्रिकेट होना चाहिए, अन्यथा इसका कोई अंत नहीं है. जैसा कि मोहसिन साहब ने कहा, एक जांच होगी ताकि ये चीजें फिर से न हों. दिलचस्प बात यह है कि एंडी पायक्रॉफ्ट भारत के पसंदीदा मैच रेफ़री हैं. जब भी मैं कोई गेम करता हूं (एक कमेंटेटर के रूप में और टॉस पर), मुझे लगता है कि पायक्रॉफ्ट (भारत के खेलों में) एक स्थायी स्थिरता है. वह भारत के खेलों में 90 बार मैच रेफ़री रहे हैं. यह मुझे एकतरफ़ा लगता है. ऐसा नहीं होना चाहिए. यह एक तटस्थ मंच है.”
पाकिस्तान ने एशिया कप के बहिष्कार की धमकी वापस ले ली और बुधवार को वह यूएई के खिलाफ अहम मुकाबले के लिए मैदान में उतरा, लेकिन इससे पहले उसने मुकाबले में देरी करवाई और मैच रेफरी एंडी पायक्रॉफ्ट से “माफी” ली, जिन्हें हटाने की पाकिस्तान की लगातार मांग के बावजूद आईसीसी ने पद पर बनाए रखा.
“द ट्रिब्यून” में पीटीआई के हवाले से खबर है कि पायक्रॉफ्ट ने पिछले रविवार को भारत के खिलाफ पाकिस्तान के मैच के दौरान हुई "गलतफ़हमी" के लिए माफ़ी मांगी. उस मैच में भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने पहलगाम आतंकवादी हमले के पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए पाकिस्तानी कप्तान सलमान अली आगा से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया था.
पाकिस्तान ने पायक्रॉफ्ट को हटाने की मांग करते हुए आईसीसी में दो अलग-अलग शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन आईसीसी ने दोनों को तुरंत खारिज कर दिया. गतिरोध तब खत्म हुआ जब पायक्रॉफ्ट ने पाकिस्तानी टीम के मैनेजर और कप्तान से माफ़ी मांगी.
केंद्रीय सूचना आयोग एक बार फिर बिना सीआईसी के
केंद्रीय सूचना आयोग एक बार फिर बिना प्रमुख के है, क्योंकि 13 सितंबर को मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया के सेवानिवृत्त होने के बाद अभी तक इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है.
पारदर्शिता के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले 11 वर्षों में यह सातवीं बार है, जब आयोग बिना मुख्य आयुक्त के काम कर रहा है. सामरिया 65 वर्ष की आयु पूरी करने पर सेवानिवृत्त हुए. उनसे पहले भी, वाई.के. सिंह की सेवानिवृत्ति के बाद यह पद एक महीने तक खाली रहा था.
अमिय कुशवाह के मुताबिक, सूचना का अधिकार अधिनियम से संबंधित मामलों में अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करने वाला केंद्रीय सूचना आयोग पहली बार अगस्त 2014 में बिना प्रमुख के रह गया था, जब उस समय के मुख्य आयुक्त राजीव माथुर सेवानिवृत्त हुए थे.
अमेरिकी टैरिफ़
भारत के दक्षिणी राज्यों को हज़ारों करोड़ का निर्यात घाटा, केंद्र से मदद मांगी
भारत के दक्षिणी राज्य अमेरिकी टैरिफ़ के बोझ तले दबे हुए हैं. केरल के पारंपरिक निर्यात संकट में हैं, आंध्रप्रदेश अपने जलीय क्षेत्र के लिए तात्कालिक राहत की मांग कर रहा है और तमिलनाडु ने चेतावनी दी है कि वस्त्र, चमड़ा, ऑटो और मशीनरी क्षेत्र में लाखों नौकरियां जोखिम में हैं.
केरल के वित्त मंत्री के. एन. बालगोपाल ने चेतावनी दी है कि नए दंडात्मक टैरिफ से राजस्व में भारी गिरावट हो सकती है, आपूर्ति शृंखला गड़बड़ा सकती है और हज़ारों मज़दूर — जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं — रोज़गार से बाहर हो सकते हैं. टैरिफ का असर पहले से ही समुद्री उत्पादों, मसालों, काजू, नारियल रेशा, चाय और रबर जैसे क्षेत्रों पर दिखाई देने लगा है, जो केरल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं.
उन्होंने कहा, “ये टैरिफ़ केरल में बड़े आर्थिक झटके पैदा कर रहे हैं. एक प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक सालाना 2,500 करोड़ रुपये से 4,500 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है.” समुद्री निर्यात सबसे पहले प्रभावित हुए हैं. भारत के समुद्री खाद्य निर्यात में केरल की हिस्सेदारी 12–13 फीसदी है और झींगा इसका सबसे बड़ा आय स्रोत है.
वॉशिंगटन ने भारतीय झींगा पर एंटी-डंपिंग शुल्क 1.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत कर दिया है, साथ ही प्रतिकारी शुल्क और 25 प्रतिशत तक का अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क भी लगाया है. अब कुल प्रभावी शुल्क भार 33 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है, जिससे अमेरिकी बाजार में भारतीय झींगा काफी महंगा हो गया है. ऑर्डर रद्द हो रहे हैं, ठंडे गोदामों में स्टॉक जमा हो रहा है और प्रोसेसिंग संयंत्रों का उपयोग 20 प्रतिशत से नीचे गिर गया है. झींगा प्रसंस्करण इकाइयों में ज्यादातर कर्मचारी महिलाएं हैं और अब उनकी नौकरियां खतरे में हैं.
मसाले का व्यापार, जो सदियों से केरल की पहचान रहा है, वह भी संकट से गुजर रहा है. भारत के काली मिर्च निर्यात का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा राज्य से होता है, साथ ही इलायची, अदरक, मसाला तेल और ओलियोरेज़िन भी यहां से निर्यात किए जाते हैं.
बालगोपाल ने कहा कि अमेरिका हर साल 700 मिलियन डॉलर से अधिक के मसाला उत्पादों का आयात करता है. लेकिन शुल्क, जो चरणबद्ध तरीके से 50 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं, केरल की प्रतिस्पर्धात्मकता को खत्म करने की धमकी दे रहे हैं. निर्यातकों का कहना है कि टैरिफ घोषित होने के बाद से ऑर्डरों में छह प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे प्रतिद्वंदी देश बाज़ार में बड़ी हिस्सेदारी पर नजर गड़ाए हुए हैं.
चाय, जो अमेरिका को सालाना लगभग 700 करोड़ रुपये की निर्यात होती है, और रबर भी इस झटके की चपेट में हैं. केरल की प्रवासी आबादी निर्यात उद्योगों को बनाए रखने में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाती है, और व्यापार में व्यवधान प्रवासन पैटर्न पर भी असर डाल सकते हैं.
आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी कहा कि आंध्रप्रदेश भारत के झींगा निर्यात में लगभग 80 प्रतिशत और समुद्री निर्यात में 34 प्रतिशत का योगदान देता है, जिसकी वार्षिक कीमत 21,246 करोड़ रुपये है. उन्होंने कहा कि उद्योग को लगभग 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, जिसमें करीब आधे निर्यात ऑर्डर रद्द हो चुके हैं और लगभग 2,000 कंटेनर 600 करोड़ रुपये के टैरिफ बोझ से प्रभावित हुए हैं.
नायडू ने ऋण और ब्याज चुकाने पर 240 दिन की मोहलत, ब्याज पर सब्सिडी और जमे हुए झींगे पर 5 प्रतिशत जीएसटी में अस्थायी छूट की मांग केंद्र से की है. इससे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी ऐसे ही आशंकाएं जताई थीं. उन्होंने चेतावनी दी कि टेक्सटाइल, चमड़ा, ऑटो, मशीनरी और अन्य क्षेत्रों में लाखों नौकरियां खतरे में हैं. उन्होंने “एक्स” पर प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि मानव-निर्मित फाइबर पर जीएसटी घटाया जाए, कपास के आयात पर लगे शुल्क हटाए जाएं, कम ब्याज दर पर ऋण दिया जाए और निर्यात प्रोत्साहन बढ़ाए जाएं. दक्षिण के राज्यों के हालात के साथ ही “द टेलीग्राफ” ने यह भी बताया है कि बंगाल के साइकिल निर्माता, चाय निर्यातक और रत्न व आभूषण क्षेत्र भी अमेरिकी टैरिफ के असर से झटके झेलने की तैयारी कर रहे हैं.
अहमदाबाद विमान दुर्घटना: पायलट के पिता ने एक और जांच की मांग की, कहा- एएआईबी की रिपोर्ट ने उनके बेटे की छवि खराब की
अहमदाबाद विमान हादसे की एएआईबी जांच के प्रारंभिक निष्कर्षों से व्यथित होकर, कैप्टन सुमित सभरवाल के पिता पुष्कराज सभरवाल ने, जो दुर्भाग्यपूर्ण एयर इंडिया ड्रीमलाइनर उड़ान के पायलटों में से एक थे, केंद्र सरकार से इस दुर्घटना की विधिवत जांच’ की मांग की है.
नागरिक उड्डयन सचिव और एएआईबी महानिदेशक को लिखे गए पत्र में, 91 वर्षीय पुष्कराज ने कहा कि इस दुर्घटना के बारे में चुनिंदा सूचनाओं के लीक होने से ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि सुमित (56) गहन मानसिक दबाव में थे और आत्महत्या करने का विचार कर रहे थे. “इन संकेतों ने मेरे स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव डाला है और कैप्टन सुमित सभरवाल की प्रतिष्ठा को भी आघात पहुंचाया है. यह कैप्टन सभरवाल की साख को धूमिल करते हैं, जबकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को प्रदान किया गया एक मौलिक अधिकार है.
ईवीएम पर अब उम्मीदवारों के रंगीन फ़ोटो लगेंगे
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर अब उम्मीदवारों की रंगीन फोटो लगाई जाएंगी. यह व्यवस्था बिहार विधानसभा चुनाव से लागू हो जाएगी. अब तक ईवीएम पर चिपकाए जाने वाले बैलेट पेपर पर उम्मीदवारों की ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटो रहती थीं, जिन्हें कई मतदाताओं को पहचानने में कठिनाई होती थी. चुनाव आयोग ने बुधवार को कहा कि फोटो का तीन-चौथाई हिस्सा उम्मीदवार के चेहरे के लिए होगा, ताकि दृश्यता बेहतर हो. उम्मीदवारों और "नोटा" विकल्प के क्रमांक भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप में छापे जाएंगे.
केंद्र ने अपनी आधिकारिक ई-मेल सेवाओं को बीजेपी की नजदीकी संस्था को सौंपा
सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास ने बुधवार को राज्यसभा अध्यक्ष सी. पी. राधाकृष्णन को पत्र लिखकर केंद्र सरकार के इस फैसले पर चिंता जताई कि उसने अपने आधिकारिक ई-मेल सेवाओं और बहु-कारक प्रमाणीकरण (मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन) के प्रबंधन और होस्टिंग का जिम्मा एक निजी कंपनी को सौंप दिया है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार राधाकृष्णन को लिखे पत्र में ब्रिटास ने कहा कि यह पुनर्गठन संसद संचार की स्वतंत्रता, गोपनीयता और निष्पक्षता को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े करता है. उन्होंने दावा किया कि 50 लाख सरकारी ई-मेल इनबॉक्स अब एक निजी कंपनी द्वारा संचालित किए जाएंगे.
जॉन ब्रिटास ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "जब साइबर सुरक्षा और डेटा चोरी को रोकना सबसे महत्वपूर्ण है, तब संसद सदस्यों और सरकारी अधिकारियों की आधिकारिक ई-मेल प्रणाली तक को एक निजी इकाई को सौंपा जा रहा है, और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) की भूमिका को हाशिये पर धकेला जा रहा है." उन्होंने यह भी आरोप लगाया, “जोहो कार्पोरेशन, जो “वनऑथ” ऑथेंटिकेशन ऐप के साथ मास्टर सिस्टम इंटीग्रेटर होगी, भाजपा की विचारधारा के साथ निकटता से जुड़ी हुई है. जबकि अब तक संसद और सरकारी संचार नेटवर्क का संपूर्ण संरक्षण एनआईसी के पास था.”
राज्यसभा में वाम दल के नेता ने अपने पत्र में कहा कि केंद्र ने अब अपना आधिकारिक ई-मेल और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन सिस्टम—जो अब तक पूरी तरह एनआईसी के पास था— जोहो कार्पोरेशन को सौंप दिया है. यह "सिर्फ प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि हमारी संस्थागत स्वायत्तता और संसदीय संप्रभुता की बुनियाद पर चोट करने के अलावा गोपनीयता और सार्वजनिक हित दोनों के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता है."
सबसे प्रतिभाशाली ‘एआई’ वैज्ञानिकों में से एक ने अमेरिका छोड़कर चीन का रुख किया, पर क्यों?
“द गार्डियन” ने दुनिया के सबसे प्रतिभाशाली “एआई” वैज्ञानिकों में से एक, सोंग चुन झू के बारे में लंबा लेख प्रकाशित किया है. इसमें झू के अमेरिका छोड़कर चीन में बसने के फैसले की विस्तार से चर्चा की गई है. उन्होंने वर्ष 2020 में अमेरिका छोड़कर चीन जाने का फैसला किया था, जबकि अपने जीवन का आधा हिस्सा झू अमेरिका में बिता चुके थे. सवाल यही है कि इतना लंबा समय अमेरिका में बिताने के बावजूद उन्होंने वापस चीन लौटने का फैसला क्यों किया? लेख मुख्य रूप से इसी सवाल का जवाब देता है, जिसमें कहा गया है कि झू के इस फैसले का मुख्य कारण अमेरिका-चीन के बीच तनाव था. खासकर, ट्रम्प प्रशासन के दौरान, और वहां चीनी-अमेरिकी वैज्ञानिकों पर बढ़ती संदेह की भावना थी, जिससे झू के लिए सहयोग और फंडिंग पाना मुश्किल हो गया था. इसके विपरीत, चीन ने “एआई” क्षेत्र में भारी निवेश किया है और वहां की डेटा नीतियां तथा संसाधन झू को अपनी रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए बेहतर मौका देती हैं.
झू यूसीएलए सेंटर फॉर विज़न में प्रोफेसर और कंप्यूटर विज़न व मशीन लर्निंग के क्षेत्र में अग्रणी थे. उनका उद्देश्य ‘एआई’ की एक एकीकृत थ्योरी विकसित करना है, जिससे मशीनें इंसानों की तरह विजुअल डेटा समझ सकें. चीन लौटने के बाद उन्होंने बीजिंग इंस्टीट्यूट फॉर जनरल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की स्थापना की, जहां वे “स्मॉल डेटा, बिग टास्क्स” के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं, यानी कम डेटा के साथ बड़ी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे साबित होता है कि अब ‘एआई’ क्षेत्र में केवल फंडिंग या तकनीकी संसाधनों की दौड़ नहीं है, बल्कि मूल सवालों, नई दृष्टि और गहरे सिद्धांतों की आवश्यकता है.
झू के फैसले ने एआई अनुसंधान की वैश्विक प्रवृत्ति में बड़ा बदलाव दिखाया है. अब तमाम शोधकर्ता और वैज्ञानिक न केवल अमेरिका बल्कि चीन जैसी उभरती ताकतों का रुख कर रहे हैं, जहां संस्थागत समर्थन, नीति और संसाधन तेजी से बढ़ रहे हैं. उनके इस कदम को चीन की विज्ञान नीति और अमेरिका-चीन टेक्नोलॉजी प्रतिस्पर्धा में एक महत्वपूर्ण मोड़ के तौर पर देखा जा रहा है.
त्सिंगहुआ विश्वविद्यालय, बीजिंग में उन्हें बड़ी टीम बनाने, विशाल डाटा के साथ खेलने और रणनीतिक सपोर्ट मिला—जो कि उनकी कल्पना के “एआई” सिस्टम के लिए जरूरी था. उन्होंने चीनी युवाओं को पश्चिमी वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पूर्वी दर्शनशास्त्र के मेल से तैयार करने का लक्ष्य तय किया. हालांकि, चीन में ‘एआई’ का प्रयोग प्रायः निगरानी और राज्य व्यवस्था के लिए होता है, जिससे मानवाधिकारों से जुड़ा प्रश्न उठता है. झू ने जोर दिया कि वे मूल वैज्ञानिक रिसर्च पर ही ध्यान देते हैं, विवादास्पद क्षेत्रों से दूरी रखते हैं. उनकी वापसी इस रुझान को भी दर्शाती है कि विश्वभर में ‘एआई’ प्रतिभाओं का अड्डा बदल रहा है और अमेरिका का केंद्र स्थान अब निर्विवाद नहीं रहा.
झू ने अपने बचपन की गरीबी और भूले-बिसरे लोगों की कहानियों से प्रेरणा ली. उनका मानना है कि विज्ञान को सिर्फ तथ्य ही नहीं, बल्कि कहानियां भी संजोनी चाहिए. हो सकता है कि उनके पास यह कुंजी हो कि वैश्विक एआई दौड़ में कौन जीतेगा?
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