19 दिसंबर 2024: अंबेडकर पर शाह, पटेल पर मोदी के बयान से बवाल, अडानी की आंच अमेरिकी कंपनियों तक, सम्भल में अपने मक़ान ढहाते मुस्लिम, बिखरता हुआ इंडिया ब्लॉक, राज कपूर@100, 'लापता लेडीज' ऑस्कर से बाहर
हिंदी भाषियों का क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज्यादा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां : गृह मंत्री अमित शाह की अंबेडकर को लेकर की गई एक टिप्पणी के कारण बुधवार को संसद के दोनों सदनों में भारी हंगामा हुआ और कार्यवाही नहीं चल पाई. शाह ने दरअसल, मंगलवार को राज्यसभा में संविधान पर बहस के दौरान सभापति जगदीप धनखड़ से मुखातिब होकर कहा था कि ‘मान्यवर, अभी एक फैशन हो गया है कि अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.’ शाह ने यह भी कहा था कि अंबेडकर ने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था क्योंकि उन्हें ‘अनदेखा’ किया गया था और वे ‘असंतुष्ट’ थे.
कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने इसे डॉ. अंबेडकर का अपमान बताया है और शाह के इस्तीफे की मांग की है. तृणमूल कांग्रेस ने गृह मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया है. विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ब्लॉक ने संसद परिसर में शाह की टिप्पणी के खिलाफ प्रदर्शन भी किया. उन्होंने नारे लगाए, “जय भीम”, “संघ का विधान नहीं चलेगा” और “अमित शाह माफी मांगो.” उनके हाथ में अंबेडकर की तस्वीरें थीं. शाह की अंबेडकर को लेकर की गई यह टिप्पणी कांग्रेस महासचिव और राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश ने “एक्स” पर भी शेयर की. भाषण का यह अंश सोशल मीडिया में भी जमकर वायरल हो रहा है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि जिनका मनुस्मृति में विश्वास है, उनका अंबेडकर से झगड़ा होगा ही.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि गृह मंत्री ने बाबासाहेब का अपमान करके एक बार फिर साबित कर दिया है कि भाजपा और आरएसएस तिरंगे के खिलाफ थे, उनके पुरखों ने अशोक चक्र का विरोध किया और संघ परिवार पहले दिन से चाहता था कि भारत में संविधान की जगह ‘मनुस्मृति’ लागू हो. बाबा साहेब ने चूंकि ऐसा होने नहीं दिया, इसलिए उनके प्रति इतनी घृणा है. “मोदी सरकार के मंत्रियों को यह समझना चाहिए कि मेरे जैसे करोड़ों लोगों के लिए बाबा साहेब भगवान से कम नहीं हैं. दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों, गरीबों के लिए वह मसीहा हैं और रहेंगे,” खड़गे ने हिन्दी में “एक्स” पर पोस्ट में कहा. बाद में कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खड़गे ने कहा, “हम चाहते हैं कि अमित शाह माफी मांगें और मोदी जी में संविधान के प्रति जरा भी आदर है तो वह उनको आज रात 12 बजे के पहले मंत्री पद से बर्खास्त कर दें. इसके बाद ही लोग शांत होंगे, अन्यथा लोग तो बाबासाहेब के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी भाजपा को आड़े हाथों लिया है. अमित शाह की टिप्पणी पर सियासी बवाल के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने गृह मंत्री के बचाव में “एक्स” पर एक के बाद एक कई पोस्ट कीं. उन्होंने कहा, “कांग्रेस यदि यह सोचती है कि उसके दूषित ईको सिस्टम और दुर्भावनापूर्ण झूठ से उसके पाप छुप जाएंगे तो वह बड़ी गलती कर रही है.” शाम होते-होते अमित शाह ने भी सफाई दी. कहा, मैं अंबेडकर के खिलाफ कभी नहीं बोल सकता. सपने में भी नहीं. कांग्रेस ने मेरी टिप्पणी को घुमाफिरा कर पेश किया है.
भारतीय जनता पार्टी के 20 से ज्यादा लोक सभा सदस्य एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक के मतदान के दौरान गैरहाजिर पाये गये. इनमे कई मंत्री भी शामिल थे. मतविभाजन 90 मिनट की बहस के बाद हुआ था और विपक्ष के सदस्यों ने इसका जमकर विरोध किया. पर भाजपा नेताओं का मतविभाजन के वक़्त गायब रहना कुछ और ही संकेत कर रहा है. पार्टी इन सदस्यों को नोटिस भेजने वाली है.
पंजाब में किसानों का 'रेल रोको' प्रदर्शन: ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि बुधवार को पंजाब में किसानों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर तीन घंटे का 'रेल रोको' प्रदर्शन किया. किसानों ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित अन्य मांगों को केंद्र सरकार से मनवाने के लिए यह कदम दोबारा उठाया है. इससे पहले भी किसान इन्हीं मांगों को लेकर सालभर तक दिल्ली में धरना दे चुके हैं. यह प्रदर्शन संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के नेतृत्व में हुआ. किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने बताया कि दोपहर 12 बजे से लेकर 3 बजे तक किसानों ने कई जगहों पर रेलवे ट्रैक पर धरना दिया. पंजाब के कई जिलों में इसके चलते रेल यातायात प्रभावित रहा. बता दें कि 13 फरवरी से किसान शंभू और खनौरी सीमा पर धरना दे रहे हैं, जहां उन्हें हरियाणा पुलिस ने दिल्ली मार्च से रोक दिया. इसी के विरोध में किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल पिछले तीन हफ्तों से भूख हड़ताल पर हैं. इस दौरान 6, 8 और 14 दिसंबर को 101 किसानों का जत्था तीन बार दिल्ली की ओर बढ़ने की कोशिश कर चुका है, लेकिन हरियाणा पुलिस ने उन्हें रोक दिया.
मनरेगा मजदूरी बढ़ाने की सिफारिश: ‘द हिंदू’ में शोभना के. नायर की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण विकास पर संसद की स्थायी समिति ने कहा है कि “मनरेगा के तहत नाम मात्र की मजदूरी और भुगतान में देरी श्रमिकों को हतोत्साहित करती है और बेहतर पारिश्रमिक देने वाले क्षेत्रों में काम की तलाश में पलायन करने के लिए प्रेरित करती है". समिति ने अधिनियम के तहत मजदूरी को बढ़ाने की वकालत भी की, यह कहते हुए कि अभी मिल रही मजदूरी वर्तमान में "जीवन यापन की बढ़ती लागत के अनुरूप नहीं है". समिति ने केंद्र सरकार द्वारा अधिनियम के तहत आधार मजदूरी दर को संशोधित न करने पर भी प्रतिकूल टिप्पणी की.
सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई जाति आधारित नहीं : केंद्र सरकार ने मंगलवार को संसद में दावा किया कि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई जाति-आधारित काम नहीं, बल्कि ‘व्यवसाय-आधारित’ है. वहीं केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ओर से पेश किए गए आंकड़े कुछ और ही बयान कर रहे हैं. सरकारी आंकड़े के अनुसार, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के 92% कर्मचारी इस काम में लगे हैं. वहीं सामान्य वर्ग के सिर्फ 8.05% कर्मी इस कार्य में लगे हैं. इस कार्य में सिर्फ अनुसूचित जाति के 67.91% श्रमिक लगे हैं, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के 15.73 और अनुसूचित जनजाति के 8.31% श्रमिक हैं. यह डेटा सरकार ने ‘नेशनल एक्शन फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम’ (नमस्ते) नामक योजना के तहत एकत्र किया है. इसकी जानकारी केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने लोकसभा में दी.
बहन की शादी के लिए उमर खालिद को अंतरिम जमानत : दिल्ली के शाहदरा जिला न्यायालय ने बुधवार को जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश के मामले में सात दिन की अंतरिम जमानत दी है. खालिद को यह जमानत चचेरी बहन की शादी में शामिल होने के लिए मिली है. कोर्ट ने उसको 20,000 रुपये के निजी मुचलके पर 28 दिसंबर की सुबह से 3 जनवरी, 2025 की शाम तक जेल से बाहर रहने की अनुमति दी है. यह शर्त भी लगाई है कि वह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के अलावा किसी से नहीं मिलेगा और इस दरमियान सोशल मीडिया का इस्तेमाल हरगिज नहीं करेगा. खालिद ने अंतरिम जमानत के लिए निचली अदालत का रुख किया था, जबकि उसकी नियमित जमानत याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित है. दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 6 दिसंबर को खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई की थी, जहां उसके वकील ने तर्क दिया था कि उसके खिलाफ दर्ज 34 अपराधों में से उसने ‘पहले ही सजा पूरी कर ली है या आधे से अधिक काट ली है’.
अडानी जाँच के बाद अमेरिकी कंपनियों ने जुर्माना भरकर पीछा छुड़ाया
गौतम अडानी और उनकी कंपनियों पर संयुक्त राज्य अमेरिका में अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों के बीच, भारत में आधार रखने और कारोबार करने वाली कई अन्य कंपनियां भी सूची में शामिल हो गई हैं. ‘द पायनियर’ की रिपोर्ट के अनुसार, इन अमेरिकी फर्मों पर भारत और अन्य देशों में अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप है और अभियोजन से बचने के लिए उन्होंने 300% से अधिक जुर्माना भरकर मामलों का निपटारा किया है.. इन मामलों में, अमेरिकी न्याय विभाग और प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी ने कई अमेरिकी कंपनियों को भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रिश्वत देने का दोषी पाया है. मूग आईएनसी को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और भारतीय रेलवे में ठेके प्राप्त करने के लिए 500,000 डॉलर से अधिक की रिश्वत देने का दोषी पाया गया. कंपनी ने 1.68 मिलियन डॉलर से अधिक का जुर्माना देकर मामले का निपटारा किया. ओरेकल कॉर्पोरेशन भारतीय रेलवे, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और तुर्की में 6.8 मिलियन डॉलर से अधिक की रिश्वतखोरी के आरोपों में दोषी पाई गई. कंपनी ने 23 मिलियन डॉलर का जुर्माना देकर मामले का निपटारा किया. एल्बेमार्ल कॉर्पोरेशन को भारतीय तेल निगम (IOC) और इंडोनेशिया और वियतनाम की कंपनियों में 63.5 मिलियन डॉलर से अधिक की रिश्वत देने का दोषी पाया गया. कंपनी ने अभियोजन से बचने के लिए 198 मिलियन डॉलर से अधिक का जुर्माना देकर मामले का निपटारा किया. अमेरिकी अधिकारियों ने पाया कि मोग, ओरेकल और एल्बेमार्ल जैसी कंपनियों ने भारत में ठेके प्राप्त करने के लिए रिश्वत का इस्तेमाल किया. इन कंपनियों ने रिश्वत देने के लिए मध्यस्थों का उपयोग किया और गलत खातों में भुगतान दर्ज किए. अमेरिकी जांच में यह भी खुलासा हुआ कि कंपनियों ने भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए "कमीशन" या "बफर" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. मामलों को निपटाने के लिए कंपनियों को भारी जुर्माना देना पड़ा, लेकिन आपराधिक मुकदमा चलने से बच गए.
अडानी मामले पर भारतीय मीडिया इतना ढीला और पक्षपाती कैसे रहा, ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट
अमेरिकी अदालत में अडानी समूह और उसके अधिकारियों पर धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी के आरोपों के बाद हुए कवरेज को ध्यान में रखकर ऑल्ट न्यूज नें भारत में खबर देने वालों की खबर ली है. इस लम्बे विश्लेषण के अनुसार, इस मामले की रिपोर्टिंग में देरी और पक्षपात देखा गया. अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने तुरंत इस खबर को उठाया, लेकिन कई प्रमुख भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने देर से प्रतिक्रिया दी. कुछ मीडिया आउटलेट्स ने खबर को दबाने की कोशिश की, जबकि कुछ ने समूह की बजाय विपक्षी दलों पर ध्यान केंद्रित किया. अडानी समूह के साथ संबंध रखने वाले मीडिया आउटलेट्स, जैसे कि एनडीटीवी और आईएएनएस ने इस खबर को बहुत देर से रिपोर्ट किया और समूह की तरफ से आरोपों से इनकार करने वाली प्रतिक्रियाओं को प्रमुखता दी. प्रमुख टीवी चैनलों पर बहस में भी, आरोपों पर कम और राजनीतिक पहलुओं पर अधिक चर्चा हुई. कुछ चैनलों ने अमेरिकी सरकार को भारत की प्रगति से चिंतित बताया और इस मामले को विपक्षी दलों द्वारा सरकार को बदनाम करने की साजिश बताया. इस मामले में, मीडिया ने ना केवल रिपोर्टिंग में देरी की बल्कि प्रमुख खबरों, जैसे केन्या में अडानी समूह के साथ हुए सौदों को रद्द करना, को भी अनदेखा किया. यह पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग भारत में मीडिया की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करती है, जहां मीडिया पर बढ़ते राजनीतिक और व्यावसायिक दबाव हैं.
जस्टिस यादव को विवाद से बचने की सलाह : इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के साथ बैठक की. कॉलेजियम ने उनसे कहा कि हाल ही में विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने जो विवादास्पद टिप्पणी की, उससे बचा जा सकता था.
संभल : मंदिर के पास अपने मकान तोड़ रहे हैं मुस्लिम : संभल में जहां जिला प्रशासन ने पिछले हफ्ते ‘प्राचीन मंदिर’ की खोज की थी, वहां के मुस्लिम निवासियों ने कथित तौर पर मंदिर की अतिक्रमित संपत्ति पर बने अपने घरों को तोड़ना शुरू कर दिया है. जिला प्रशासन ने मौके पर सीसीटीवी कैमरे लगा दिए हैं और व्यापक अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू कर दिया है. यह यूपी पावर कॉरपोरेशन की ओर से संभल के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में बिजली चोरी के खिलाफ लगातार की जा रही कार्रवाई के बीच हुआ है. बिजली विभाग ने कई घरों में बिजली चोरी पकड़ी है और कुल 1.3 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. उधर संभल से सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की है. इसके साथ ही उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की भी मांग की है. संभल हिंसा मामले में पुलिस ने बर्क के खिलाफ मामला बनाया है. पुलिस का आरोप है कि शाही जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान हुई हिंसा के पीछे उनका भड़काऊ भाषण ही वजह थी. 500 साल पुरानी जामा मस्जिद के कोर्ट के आदेश पर 24 नवंबर को संभल शहर में हुई हिंसा के बाद दर्ज एफआईआर में बर्क समेत 6 लोगों का नाम है, जबकि 2750 अज्ञात लोगों पर भी केस दर्ज किया गया है.
9 दिन में पांचवीं बार दिल्ली के स्कूलों को मिली बम से उड़ाने की धमकी : मंगलवार 17 दिसंबर को एक बार फिर दिल्ली के कुछ स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी मिली. पिछले नौ दिनों में पांचवीं बार ऐसा हुआ है, जब दिल्ली के स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी मिली है, मगर पुलिस अब तक इस गुत्थी को सुलझाने में नाकाम रही है.
नवंबर में भारत का व्यापार घाटा रिकॉर्ड 37.8 अरब डॉलर तक पहुंचा : वाणिज्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत का व्यापार घाटा नवंबर में रिकॉर्ड 37.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. यह वृद्धि मुख्य रूप से सोने के आयात में अभूतपूर्व वृद्धि और निर्यात में गिरावट के कारण हुई है.
चीन ने भूटान की सीमा के भीतर पिछले आठ सालों में 22 सेटलमेंट बनाए हैं. इनमें से आठ गांव ऐसे हैं जो रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण डोकलम पठार के बहुत करीब हैं. रजाउल एच हक्सर ने हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा है, इससे भारत के सिलीगुड़ी गलियारे को ख़तरा हो सकता है.
रवीश ने किया मोदी का फैक्ट चैक: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में भाषण देते हुए झूठा दावा किया कि प्रधानमंत्री पद के लिए जवाहर लाल नेहरू की दावेदारी का सरदार पटेल ने कभी भी समर्थन नहीं किया. हालांकि ऐतिहासिक साक्ष्य साफ बताते हैं कि नेहरू की इस भूमिका के लिए पटेल का मजबूत समर्थन था. रवीश कुमार ने इस वीडियो में नरेन्द्र मोदी का थोड़ा फैक्ट चैक किया है.
अश्विन की स्पिन से क्रिकेट की दुनिया बोल्ड: भारत के शीर्ष ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने बुधवार को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज के बीच में ही अचानक तत्काल प्रभाव से संन्यास की घोषणा कर सबको चौंका दिया, जबकि वह आज भी भारत के सर्वश्रेष्ठ स्पिनर हैं. अश्विन 106 मैचों में 537 विकेट लिए हैं. अनिल कुंबले (619 विकेट) के बाद वह भारत के दूसरे हाइएस्ट विकेट टेकर हैं. अश्विन आईपीएल सहित क्लब क्रिकेट खेलना जारी रखेंगे.
नेटफ्लिक्स पर जुर्माना: अपने ग्राहकों के निजी डाटा का व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए डच एजेंसियों ने नेटफ्लिक्स पर 47.5 लाख यूरो (42.24 करोड़ रूपयों) का जुर्माना लगाया है. नेटफ्लिक्स ने सरकार के फैसले पर अपील की है. डच डाटा सुरक्षा ऑथारिटी ने कहा है कि 2018 से 2020 के बीच नेटफ्लिक्स ने अपने ग्राहकों को समुचित तौर पर यह साफ नहीं किया था कि वह उनके निजी डाटा के साथ क्या करने वाली है.
बिखरता इंडिया ब्लॉक…क्या राहुल अकेले पड़े?
राजेश चतुर्वेदी
क्या विपक्षी दलों के गठबंधन “इंडिया ब्लॉक” का अंत नजदीक है? दरअसल, तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समान विचारधारा वाले दलों, जैसे उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शरद पवार की एनसीपी और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी, को साथ लेकर विपक्ष की एक नई धुरी बनाने पर विचार कर रही हैं. यह सूची बढ़ भी सकती है. अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से लेकर वाईएसआर कांग्रेस तक इसमें शामिल हो सकते हैं. मुमकिन है कि ममता बनर्जी संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र के अवसान की प्रतीक्षा कर रही हों, जो 20 दिसंबर तक है. इसके बाद इंडिया ब्लॉक का क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा. ममता स्वयं खुले तौर पर यह जाहिर कर चुकी हैं कि वह इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं, लेकिन विपक्षी गठबंधन के सबसे बड़े घटक कांग्रेस ने उनकी “इच्छा” पर अब तक कोई आधिकारिक जवाब या प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है.
कांग्रेस का नेतृत्व मौन साधे हुए है. इसके उलट इंडिया ब्लॉक के दीगर घटकों की भाव भंगिमाएं बदल रही हैं. ममता, खासकर राहुल गांधी के उदासीन रवैये से विचलित हैं. संविधान पर बहस के दौरान राहुल गांधी के वीर सावरकर को निशाने पर लेने से महाराष्ट्र की दोनों पार्टियों शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) भी खुद को असहज महसूस कर रही हैं. महाराष्ट्र में चुनाव हारने के बाद तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने तो कहा भी था कि कांग्रेस को यह समझने की जरूरत है कि उसके नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक असफल हो चुका है, लिहाजा उसे अपना अहम छोड़कर ममता बनर्जी को नेतृत्व सौंप देना चाहिए. लेकिन यहां सवाल यह भी है कि इंडिया ब्लॉक को अस्तित्व में आए दो साल का वक्त बीत चुका है और पटना, बेंगलुरू, मुंबई व दिल्ली में हुई उसकी चार बैठकों में नेतृत्व कब तय किया गया?
इसीलिए यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या 90 के दशक की तरह कोई तीसरा मोर्चा स्वरूप लेगा? क्योंकि इंडिया ब्लॉक में यह पूछा जा रहा है कि कौन? ममता दीदी या राहुल भैया? खासकर, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजों ने इंडिया ब्लॉक के कई सदस्यों को इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए विवश किया है कि राहुल गांधी- मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व वाली कांग्रेस असफल रही है. यही वजह है कि एक सुविचारित रणनीति के तहत आम आदमी पार्टी ने पहले ही घोषणा कर दी कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में 'ग्रैंड ओल्ड पार्टी' के लिए 'ज़ीरो स्पेस' होगा.
हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भी हार के तुरंत बाद साफ़ होने लगा कि राहुल की लड़ाई मोदी-अडानी-संघ के साथ तो है ही, अपनी ही पार्टी के खुर्राट कांग्रेसियों और इंडिया ब्लॉक के सत्ताभोगी सहयोगियों से भी है. हकीकत यह है कि राहुल कहानी तो ‘एकलव्य’ की सुना रहे हैं पर उनकी ख़ुद की हालत अभिमन्यु जैसी बन रही है. वरिष्ठ पत्रकार और संपादक श्रवण गर्ग का यह सवाल भी मौजूं है कि क्या नेतृत्व के सवाल पर इंडिया ब्लॉक टूट जाएगा या राहुल कांग्रेस को उससे आज़ाद करके आगे की लड़ाई अकेले लड़ेंगे ? मोदी-अडानी के ख़िलाफ़ राहुल लड़ाई में इतना आगे बढ़ चुके हैं कि इंडिया ब्लॉक के सहयोगियों की सत्ता-समृद्धि के लिए वे न तो अडानी को छोड़ सकते हैं और न ईवीएम और संविधान को. अनुमान ही लगाया जा सकता है कि इंडिया गठबंधन के भविष्य को लेकर नीतीश कुमार इस समय क्या सोच रहे होंगे!
रूसियों ने कैंसर का टीका खोज निकाला
रूसियों ने दुनिया में चल रही फार्मा रेस के मामले में एक कदम बढ़त पा ली है. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के मुताबिक सदी की सबसे बड़ी खोज कही जाने वाली खबर है कि रूसियों ने कैंसर का टीका खोज निकाला. पुतिन इसे 2025 में रूसीयों को तोहफे में देने जा रहे हैं. रूसी समाचार एजेंसी TASS के मुताबिक रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर के जनरल डायरेक्टर आंद्रेई काप्रिन ने रेडियो रसिया को बताया कि रूस ने कैंसर के खिलाफ अपना एमआरएनए टीका विकसित कर लिया है. रूसियों को ये टीका मुफ्त मिलेगा. यह खोज कैंसर के उपचार और रोकथाम के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है.
मणिपुर में 'मस्क की किरणें' : एलोन मस्क ने मणिपुर को अशांत बनाए रखने की लौ सुलागाए रखने वाली ही एक नई थ्योरी पैदा कर दी है. स्पेसएक्स के संस्थापक एलन मस्क ने कहा- 'भारत में स्टारलिंक सैटेलाइट बीम को बंद कर दिया गया है.' ये प्रतिक्रिया तब आई है जब, हाल ही में सुरक्षा बलों ने इंफाल ईस्ट जिले के केइराओ खुनोउ में एक छापेमारी के दौरान कुछ इंटरनेट उपकरणों के साथ हथियार और गोला-बारूद भी जब्त किया था. पता लगा संदेश भेजने के लिए तो मस्क की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है. फिर एलोन ने भी कह दिया कि 'बंद की हुई बीम से सर्विस मुमकिन ही नहीं'. एक पक्ष कह रहा है कि इस्तेमाल हुआ और दूसरा कह रहा है बंद है सर्विस. स्टारलिंक स्पेसएक्स का उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवा नेटवर्क है, जो दूरस्थ इलाकों में भी इंटरनेट पहुंचाने के लिए छोटे डिवाइस और उपग्रह बीम का उपयोग करता है. मस्क ने बोल दिया बेबुनियाद हैं आरोप.
गरीबों को इस तरह गायब किया मोदी सरकार ने
मिनिस्ट्री ऑफ ट्रुथ सीरीज की दूसरी किश्त में रिपोर्टर्स कलेक्टिव के श्रीगिरीश जलीहाल तफसील से बताते हैं कि मोदी सरकार ने 2024 के चुनावों से पहले अपनी छवि सुधारने के लिए गरीबी के आंकड़ों में हेरफेर किया. सरकार ने एक नई बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) बनाया और इसमें ऐसे मापदंडों का उपयोग किया जो गरीबी के स्तर को कम करके दिखाते थे. संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक गरीबी सूचकांक में खराब प्रदर्शन के कारण, सरकार ने नीति आयोग के माध्यम से एक वैकल्पिक सूचकांक तैयार किया. इस सूचकांक में, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मापदंडों पर कम ध्यान दिया गया, जबकि बैंक खातों जैसे अधिक सकारात्मक पहलुओं पर जोर दिया गया. सरकार ने 2020 में ही यह तय कर लिया था कि यह सूचकांक गरीबी में कमी दिखाएगा, भले ही डेटा का विश्लेषण बाद में किया गया हो. 2023 में जारी की गई रिपोर्ट में दावा किया गया कि सरकारी योजनाओं के कारण गरीबी कम हुई है. इस हेरफेर के माध्यम से, सरकार ने 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का दावा किया, जो कि वास्तविक आंकड़ों से मेल नहीं खाता. यह जांच दिखाती है कि कैसे सरकार ने वैश्विक रैंकिंग को दरकिनार करके अपने राजनीतिक लाभ के लिए गरीबी के आंकड़ों को विकृत किया.
'लापता लेडीज' ऑस्कर की रेस से बाहर : भारत की ओर से आलोचनाओं के बावजूद ऑस्कर भेजी गई किरण राव की फिल्म 'लापता लेडीज' रेस से बाहर हो गई है. यह हिंदी फिल्म 97वें अकादमी अवॉर्ड्स के लिए उन 15 फिल्मों की सूची में शामिल नहीं है, जो अंतिम पाँच नामांकनों के लिए होड़ में हैं. हालांकि, ब्रिटिश-भारतीय फिल्ममेकर संध्या सूरी की फिल्म 'संतोष' ने इस सूची में अपनी जगह बनाई है. इस फिल्म में भारतीय अभिनेत्रियों शहाना गोस्वामी और सुनीता राजवार ने अभिनय किया है. ये यूके का प्रतिनिधित्व कर रही है.
‘वक्फ’ को खत्म करने की कोशिश ?
मजकूर आलम
सुप्रीम कोर्ट के वकील शमशाद ओर नबीला जमील ने वक्फ संशोधन बिल पर विस्तार से मिंट में लिखा है. इस लेख में वे कहते हैं, ‘वक्फ बिल ‘संशोधनों’ की आड़ में भारत की सबसे पुरानी मुस्लिम संस्थाओं में से एक को खत्म करने का इरादा रखता है. वक्फ में निश्चित सुधार जरूरत है, लेकिन प्रस्तावित बिल उन संवैधानिक धार्मिक गारंटी का उल्लंघन है, जो धर्मार्थ संपत्तियों के राज्य अधिग्रहण को मंजूरी देते हैं’.
सबसे पहले हम यह जानते हैं कि वक्फ है क्या? सहज शब्दों में वक्फ इस्लामी धार्मिक मान्यताओं में निहित दान की एक विधि है. वक्फ बनाने के लिए, एक व्यक्ति अपनी स्व-अर्जित या विरासत में मिली चल या अचल संपत्ति को अल्लाह की राह में समर्पित करता है.
वक्फ का अर्थ सिर्फ मस्जिदों और मदरसों की संपत्तियां नहीं होती है. इससे वक्फ को जोड़ना गलतफहमी है. दुनिया भर में कई यूनिवर्सिटी, अनाथालय, स्कूल और अस्पताल या तो वक्फ की जमीन पर या वक्फ के पैसे से चल रहे हैं. वक्फ परोपकार के सारे काम करने वाली धार्मिक संस्था है.
हिंदू धर्म समेत अन्य धर्मों और धर्मार्थ संस्थाओं की तरह ही एक बार संपत्ति वक्फ को समर्पित कर दी गई तो दानकर्ता भी फिर उसे वापस नहीं ले सकता. मौजूदा वक्फ कानूनों के सिद्धांत हिंदू समेत विभिन्न अन्य धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती कानूनों के समान हैं, जिसे गैरबराबरी के आधार पर बदला जा रहा है.
वक्फ संशोधन विधेयक, 2024
2024 का विधेयक न केवल केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड दोनों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व को काफी कम करता है, बल्कि मनमाने ढंग से केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड दोनों में गैर-मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व को अनिवार्य बनाता है.
ऐसा क्यों नहीं है? इस प्रश्न का उत्तर कानून के समान संरक्षण और अनुच्छेद 26 के संवैधानिक वादे में निहित है. संविधान का ‘अनुच्छेद 26’ मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी के तहत प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को धर्म से जुड़े मामलों में खुद का प्रबंधन करने की इजाजत देता है.
इसी ‘अनुच्छेद 26’ के तहत यूपी, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार आदि में हिंदू मंदिरों और उनकी संपत्तियों के प्रबंधन के लिए हिंदू धर्म को मानने वाले व्यक्ति का प्रतिनिधित्व अनिवार्य करने वाले कानून हैं. हिंदू धर्मार्थ संस्थाओं के सदस्यों का हिंदू होना अनिवार्य है. गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के सदस्य भी सिख ही होने चाहिए.
वहीं 2024 का वक्फ संशोधन विधेयक मनमाने ढंग से मुस्लिम प्रतिनिधित्व को कम करता है. इतना ही नहीं, वक्फ प्रशासन में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व को भी अनिवार्य बनाता है.
2024 का वक्फ विधेयक जिला कलेक्टर (जो सरकारी कर्मचारी है) को वक्फ संपत्तियों का वास्तविक संरक्षक बनाता है. विधेयक कलेक्टर को निर्देश जारी कर और राजस्व अभिलेखों में जानकारी अपडेट कर वक्फ संपत्तियों को ‘सरकारी संपत्तियों’ में बदलने का अधिकार देता है.
कलेक्टर के अधीनस्थों की रिपोर्ट वक्फ संपत्तियों की प्रकृति के संबंध में विवाद पैदा करने के लिए पर्याप्त होगी. फिर उन संपत्तियों को तब तक पंजीकृत नहीं किया जाएगा, जब तक कोई सक्षम न्यायालय विवाद का फैसला न दे दे.
विधेयक मनमाने ढंग से मौजूदा वक्फ अधिनियम की धारा 40 को छोड़ देता है, जो वक्फ संपत्तियों को विनियमित करने और प्रशासित करने के संबंध में वक्फ बोर्डों को अधिकार देता है. प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, ये अधिकार कलेक्टर के पास होंगे और सर्वेक्षण आयुक्त की मौजूदा शक्तियों में वक्फ संपत्तियों के सर्वे का अधिकार होगा.
यह विधेयक बेदखली जमीन पर वक्फ अधिनियम के लागू होने का अधिकार हटा देता है और वक्फ संपत्तियों के हस्तांतरण के लिए दंड को कम कर देता है.
यह मौजूदा अधिनियम में इसे भी समाप्त कर देता है कि सीमा अधिनियम (प्रतिकूल कब्ज़ा) अचल वक्फ संपत्ति के कब्जे के लिए मुकदमे कर दावा नहीं कर सकेगी. यहां यह बताते चलें कि 2019 में संसद में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने बताया था कि करीब 17,000 वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण किया गया है.
मौजूदा अधिनियम ‘किसी भी व्यक्ति’ पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ कार्यों के लिए किसी भी चल या अचल संपत्ति वक्फ को समर्पित करने की अनुमति देता है, जबकि प्रस्तावित विधेयक इन पर भी पाबंदी लगाता है. प्रस्तावित विधेयक में कम से कम पांच सालों तक इस्लामी आस्था का पालन करने वाला एक मुस्लिम (सिर्फ मुस्लिम) केवल एक वक्फ समर्पित कर सकता है.
विधेयक पूरी तरह से ‘उपयोगकर्ता वक्फ’ की अवधारणा को छोड़ देता है, जो यह निर्धारित करता है कि किसी संपत्ति की वक्फ प्रकृति को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए दीर्घकालिक उपयोग किया जा सकता है, स्थापित किया जा सकता है. कई मस्जिदें, दरगाहें और कब्रिस्तान का उपयोगकर्ता वक्फ हैं। ‘उपयोगकर्ता वक्फ’- सिद्धांत हमारी कानूनी प्रणाली में एक स्थापित अवधारणा है जैसा हाल ही में अयोध्या शीर्षक विवाद में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने दोहराया है.
बिल वक्फ न्यायाधिकरण की सदस्यता को तीन से घटाकर दो कर देता है. इसमें से मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र को जानने वाले सदस्य का प्रावधान हटा दिया गया है. यह वक्फ परिसंपत्ति प्रबंधन प्रणाली में सरकारी हस्तक्षेप और वक्फ के कार्यालय के माध्यम से ऑडिटिंग के लिए जगह बनाता है. बिल राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्यों के ‘चुनाव’ को राज्य सरकारों के जरिये ‘नामांकन’ से बदल देता है.
इसके अलावा भी कई अन्य गंभीर चिंताएं हैं जैसे वक्फ अल-औलाद के उत्तराधिकार अधिकारों में हस्तक्षेप, केवल पोर्टल और डेटाबेस के माध्यम से पंजीकरण, महिला सदस्यों का मामला आदि.
मैं जब तक आई बाहर | गगन गिल
(साहित्य अकादमी ने 2024 के वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा की है, जिसमें 21 भाषाओं के साहित्यकारों को सम्मानित किया गया है. हिंदी साहित्य के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार कवयित्री गगन गिल को उनकी कृति "मैं जब तक आई बाहर" के लिए प्रदान किया जाएगा. 18 नवंबर 1959 को नई दिल्ली में जन्मीं गगन गिल एक स्थापित कवयित्री हैं. 1983 में उनके पहले कविता संग्रह, 'एक दिन लौटेगी लड़की' के प्रकाशन ने उन्हें साहित्यिक जगत में एक प्रमुख कवयित्री के रूप में स्थापित कर दिया. उनकी कविताएँ स्त्री मन के जटिल भावों को एक नए रूप में प्रस्तुत करती हैं. गगन गिल को उनके साहित्यिक योगदान के लिए पहले भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें 1984 में भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार और 1989 में सर्जनात्मक लेखन के लिए संस्कृति पुरस्कार शामिल हैं. पुरस्कृत संग्रह के शीर्षक से लिखी कविता)
मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने
बदल चुका था
रंग दुनिया का
अर्थ भाषा का
मंत्र और जप का
ध्यान और प्रार्थना का
कोई बंद कर गया था
बाहर से
देवताओं की कोठरियाँ
अब वे खुलने में न आती थीं
ताले पड़े थे तमाम शहर के
दिलों पर
होंठों पर
आँखें ढँक चुकी थीं
नामालूम झिल्लियों से
सुनाई कुछ पड़ता न था
मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने
रंग हो चुका था लाल
आसमान का
यह कोई युद्ध का मैदान था
चले जा रही थी
जिसमें मैं
लाल रोशनी में
शाम में
मैं इतनी देर में आई बाहर
कि योद्धा हो चुके थे
अदृश्य
शहीद
युद्ध भी हो चुका था
अदृश्य
हालाँकि
लड़ा जा रहा था
अब भी
सब ओर
कहाँ पड़ रहा था
मेरा पैर
चीख़ आती थी
किधर से
पता कुछ चलता न था
मैं जब तक आई बाहर
ख़ाली हो चुके थे मेरे हाथ
न कहीं पट्टी
न मरहम
सिर्फ़ एक मंत्र मेरे पास था
वही अब तक याद था
किसी ने मुझे
वह दिया न था
मैंने ख़ुद ही
खोज निकाला था उसे
एक दिन
अपने कंठ की गूँ-गूँ में से
चाहिए थी बस मुझे
तिनका भर कुशा
जुड़े हुए मेरे हाथ
ध्यान
प्रार्थना
सर्वम शांति के लिए
मंत्र का अर्थ मगर अब
वही न था
मंत्र किसी काम का न था
मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने
बदल चुका था मर्म
भाषा का
स्रोत : पुस्तक : मैं जब तक आई बाहर | रचनाकार : गगन गिल प्रकाशन | वाणी प्रकाशन संस्करण : 2018
चलते-चलते : आरके @100.. आवारा हूँ - दिल का हाल सुने दिलवाला
14 दिसंबर, 1924 को मौजूदा पाकिस्तान के पेशावर में जन्मे राज कपूर की गिनती उन फ़िल्मकारों में होती है, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया. उनकी जन्मशती मनाई जा रही है. इस मौके पर बीबीसी के लिए प्रदीप कुमार ने राज कपूर पर विस्तार से लिखा है. इस आलेख में उन्होंने लिखा है कि कई सिने पत्र-पत्रिकाओं का आंकलन है कि 'आवारा' भारत की बनी अब तक की दुनिया भर में सबसे ज्यादा देखी गई फिल्म रही है. राज कपूर की फिल्म 'आवारा' रूस की सबसे मशहूर फिल्मों में शुमार की जाती है, लेकिन समाजवादी संदेश वाली इस फ़िल्म का जादू चीन, ईरान, तुर्की, अमेरिका, पूर्वी यूरोप के कई देशों में आज भी महसूस किया जा सकता है.
मनोरंजन की दुनिया में ये पहला मौका था, जब सोवियत संघ में एक विदेशी फिल्म को राष्ट्रीय गौरव हासिल हुआ. वहां उस दौर में पैदा हुए बच्चों के नाम आवारा के नायक-नायिका के नाम पर राज और रीता रखे गए.
पचास के दशक में नेहरू जब रूस गए तो सरकारी भोज के दौरान प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन ने अपने मंत्रियों के साथ ‘आवारा हूं…’ गाकर नेहरू को चकित कर दिया था. वैसे ये भी दिलचस्प है कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रूसी साहित्यकार अलेक्जेंडर सोल्ज़ेनित्सिन की एक किताब है 'द कैंसर वार्ड.' इस पुस्तक में कैंसर वार्ड का एक दृश्य आता है, जिसमें एक नर्स एक कैंसर मरीज की तकलीफ ‘आवारा हूं…’ गाकर कम करने की कोशिश करती है.
आवारा के फिल्म कथा-पटकथा लेखक मार्क्सवादी ख्वाजा अहमद अब्बास ने सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव से रूस में 'आवारा' की लोकप्रियता का राज पूछा था, तो उनका जवाब था- ‘दूसरे विश्व युद्ध की विभीषिकाओं का सबसे अधिक सामना रूसी लोगों ने किया था. बहुत से रूसी फिल्म निर्माताओं ने इस विषय पर फिल्में बनाकर उन्हें इस त्रासदी की याद दिलाने की कोशिश की थी. वहीं 'आवारा' के जरिये राज कपूर ने लोगों में उम्मीद की एक किरण जगाई थी और उनके दुखों को भूलने में मदद की थी’.
1951 में बनी इस फिल्म के करीब पांच दशक बाद 1996 में जब राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर और बेटी ऋतु नंदा चीन गए, तो उनकी आंखों में उस वक्त आंसू आ गए, जब चीनी लोग उन्हें देखते ही ‘आवारा हूं…’ गाने लगे. वह भी तब जब उन्हें ये पता नहीं था कि ये दोनों राज कपूर के बेटे-बेटी हैं. कहा तो ये भी जाता है कि 'आवारा' माओत्से तुंग की पसंदीदा फिल्म थी. इस फिल्म को लेकर तुर्की में एक टेलीविजन सीरियल भी बनाया गया.
ऋतु नंदा ने 'राज कपूर स्पीक्स' में लिखा है कि 1993 में जब रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन भारत आए और उन्हें बताया गया कि वो उनसे मिलना चाहती हैं, तो न सिर्फ वो इसके लिए तैयार हो गए, बल्कि उन्होंने उनकी किताब पर एक नोट लिखा, ‘मैं आपके पिता से प्रेम करता था. वो हमारी यादों में आज भी मौजूद हैं’.
आप यहां राज कपूर की वो 100 फिल्मों की लिस्ट देख सकते हैं, जो बताती है कि भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े शोमैन वह क्यों हैं.
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