19/03/2025 : रूस को ट्रम्प का शांति प्रस्ताव पूरी तरह मंजूर नहीं, नागपुर के 11 इलाकों में कर्फ्यू, इजरायल ने 400 फिलीस्तीनियों को मारा, आकार पटेल और नेताओं के लिए 11 साल का कायदा
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
अयोध्या राम मंदिर में अब मुख्य पुजारी नहीं होगा
होली के दौरान हेट क्राइम, दर्जी की मौत
सम्भल के ‘नेजा मेले ’ पर रोक
सोरोस से जुड़े संगठन पर ईडी की सर्च
काठमांडू में राजशाही बहाली की बजती घंटियां
बिहार में बढ़ती तस्करी, जहरीली शराब से हुए अंधे
आधार से वोटर आईडी लिंक पर बात आगे बढ़ी : विपक्ष द्वारा मतदाता सूची की शुद्धता को लेकर उठाई गई चिंताओं के बीच चुनाव आयोग उन मतदाताओं के इलेक्ट्रॉनिक फोटो पहचान पत्र को आधार नंबर के साथ जोड़ने की तैयारी कर रहा है, जिन्होंने इसे स्वेच्छा से प्रदान किया है. चुनाव आयोग ने मंगलवार को कहा कि वह जल्द ही आधार संख्या जोड़ने के अभ्यास के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के साथ तकनीकी परामर्श शुरू करेगा.
उधर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से बूथ-वार मतदाता उपस्थिति डेटा और फॉर्म 17सी (जो किसी बूथ पर डाले गए मतों की संख्या रिकॉर्ड करता है) जारी करने के अनुरोध पर विचार करने को कहा है. कोर्ट ने स्वीकार किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया मुद्दा महत्वपूर्ण है, हालांकि उम्मीदवारों को पहले से ही ऐसी जानकारी प्राप्त होती है. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को 10 दिनों के भीतर अपना प्रतिवेदन चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया है.
नागपुर के 11 इलाकों में कर्फ्यू : औरंगजेब का पुतला जलाने के बाद फैली एक अफवाह के कारण सोमवार को नागपुर के कुछ इलाकों में हिंसा हुई थी. मंगलवार को पुलिस ने 11 थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया. हिंसा में करीब 40 लोग घायल हुए हैं, जिनमें 33 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. 50 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है. नागपुर के पुलिस आयुक्त रविंदर कुमार सिंघल ने कहा कि शहर के हालात सामान्य हो गए हैं. उधर, संभाजीनगर (औरंगाबाद) में औरंगजेब की कब्र की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. इस बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने विधानसभा में कहा कि “छावा” फिल्म ने औरंगजेब के खिलाफ लोगों के गुस्से को और भड़का दिया है. फिर भी, महाराष्ट्र में सबको शांति बनाए रखना चाहिए.
होली के दौरान हेट क्राइम, दर्जी की मौत : उत्तरप्रदेश के उन्नाव में 48 वर्षीय दर्जी शरीफ की होली मनाने वालों द्वारा हमला किए जाने के बाद दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. एक प्रत्यक्षदर्शी ने “द वायर” के उमर राशिद को बताया कि शरीफ की इच्छा के विपरीत उन पर रंग फेंका गया था. हालांकि, स्थानीय पुलिस ने कहा कि पोस्टमार्टम में शरीफ के शरीर पर किसी चोट के निशान नहीं मिले.
अयोध्या राम मंदिर में अब मुख्य पुजारी नहीं होगा : अयोध्या के राम मंदिर में अब कोई मुख्य पुजारी नहीं होगा. इस पद पर अंतिम व्यक्ति आचार्य सत्येंद्र दास का पिछले माह निधन हो चुका है, लेकिन अब कोई नया व्यक्ति उनकी जगह नहीं लेगा. “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के हवाले से दी गई खबर में इस बात का जिक्र नहीं है कि मंदिर में पूजा-पाठ की व्यवस्था की जिम्मेदारी किसके पास होगी? राय ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में राम मंदिर के निर्माण कार्यों पर अब तक ₹2,150 करोड़ खर्च किए गए हैं. ट्रस्ट ने ₹396 करोड़ का कर, सेस और सेवा शुल्क के रूप में भुगतान किया है, जिसमें से ₹272 करोड़ जीएसटी के रूप में सरकार को दिए गए हैं. ट्रस्ट ने पिछले पांच वर्षों में भक्तों से 944 किलोग्राम चांदी प्राप्त की. चांदी को 20 किलोग्राम की चांदी की ईंटों में ढाला गया है. चांदी की ईंटों को बैंक लॉकरों में रखा गया है. राम मंदिर का 96 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और शेष कार्यों के 30 अप्रैल तक पूरा होने की उम्मीद है.
सम्भल के ‘नेजा मेले’ पर रोक : उत्तरप्रदेश के सम्भल जिले में पुलिस ने मसूद गाजी के नाम पर लगने वाले “नेजा मेले” पर रोक लगा दी है. यह प्राचीन मेला मुस्लिम समुदाय द्वारा 11वीं सदी के सैन्य नेता सैयद सालार मसूद गाजी की स्मृति में आयोजित किया जाता था. पुलिस ने इस आयोजन को "राष्ट्र-विरोधी" और "गलत परंपरा" बताते हुए इसे अनुमति देने से इनकार कर दिया है.
सोरोस से जुड़े संगठन पर ईडी की सर्च : प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कई टीमों ने मंगलवार को बेंगलुरू में आठ स्थानों पर सर्च की, जिनमें अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस से मदद प्राप्त ओपन सोसाइटी फाउंडेशंस (ओएसएफ) के कार्यालय भी शामिल हैं. इस संगठन पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के उल्लंघन का आरोप है. सूत्रों के अनुसार, ईडी की प्रारंभिक जांच से पता चला है कि 2016 में गृह मंत्रालय ने ओएसएफ को "प्रायर रेफरेंस कैटेगरी" में रखा था, यानी इसे भारत में गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को बिना अनुमति दान देने से रोका गया था. आरोप है कि इस प्रतिबंध को दरकिनार करने के लिए ओएसएफ ने भारत में सहायक कंपनियां बनाईं और वह इनके जरिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) और परामर्श शुल्क के रूप में धन लेकर आया. इस पैसे का उपयोग कई एनजीओ की गतिविधियों को वित्तपोषित करने में किया गया, जो फेमा का उल्लंघन है. ईडी यह भी जांच कर रहा है कि सोरोस इकोनॉमिक डेवलपमेंट फंड द्वारा लाए गए एफडीआई फंड का उपयोग कैसे किया गया.
कर्नाटक में पुरुषों को हर हफ्ते 2 बोतल देने की मांग : कर्नाटक विधानसभा में एक वरिष्ठ विधायक ने हर हफ्ते पुरुषों के लिए मुफ्त शराब की 2 बोतलें देने की मांग उठाई है. जेडी (एस) के विधायक एमटी कृष्णप्पा ने कहा, “पुरुषों को सप्ताह में दो बोतलें दें, इसमें क्या गलत है? सरकार इसे सोसाइटियों के माध्यम से प्रदान कर सकती है.” उन्होंने कहा कि सिर्फ एक साल में सरकार ने तीन बार (एक्साइज) टैक्स बढ़ाया. यह गरीबों पर भारी पड़ रहा है. 40,000 करोड़ रुपये के एक्साइज लक्ष्य को बिना फिर से टैक्स बढ़ाए कैसे पूरा किया जाएगा?”
स्टारलिंक पर नियमों का पालन करते ही मिलेगा लाइसेंस : केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट किया है कि इलोन मस्क के स्वामित्व वाली कंपनी ‘स्टारलिंक’ को भारत में लाइसेंस हासिल करने के लिए सभी गाइडलाइंस का पालन करना होगा. “मनीकंट्रोल" से बातचीत करते हुए सिंधिया ने कहा कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेक्टर सभी कंपनियों के लिए खुला है. सरकार किसी कंपनी का पक्ष नहीं लेगी. जो भी कारोबार करने भारत आना चाहे, आ सकता है, लेकिन उसे लाइसेंस प्राप्त करने के लिए सभी नियमों का पालन करना होगा. स्टारलिंक के चार साल से पेंडिंग आवेदन के बारे में सिंधिया का कहना था कि यह कंपनी और आवेदन प्रक्रिया के बीच का मामला है. जैसे ही कंपनी सभी नियमों को टिक करेगी, उसे लाइसेंस मिल जाएगा.
यूक्रेन को लेकर ट्रम्प और पुतिन में बातचीत
अमेरिकी-समर्थित 30-दिवसीय युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार करने से रूस का इंकार
व्लादिमीर पुतिन और डोनल्ड ट्रम्प के बीच मंगलवार को करीब 90 मिनट लंबी फोन कॉल के बाद क्रेमलिन ने एक बयान में कहा कि पुतिन ने रूसी सेना को बिजलीघरों पर हमले रोकने का आदेश दिया है. लेकिन उन्होंने व्यापक अमेरिकी-समर्थित 30-दिवसीय युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार करने से रोक दिया, जिसे यूक्रेन ने कहा है कि वह लागू करने के लिए तैयार है. क्रेमलिन ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति ने ऐसी युद्धविराम का उपयोग यूक्रेन द्वारा अधिक सैनिकों को जुटाने और खुद को फिर से हथियारबंद करने के लिए किए जाने की आशंका जताई. क्रेमलिन ने कहा कि पुतिन ने यह भी जोर दिया कि संघर्ष के किसी भी समाधान के लिए यूक्रेन को सभी सैन्य और खुफिया सहायता समाप्त करने की आवश्यकता होगी.
एक बयान में, व्हाइट हाउस ने कहा कि काला सागर में समुद्री युद्धविराम के साथ-साथ अधिक पूर्ण युद्धविराम और एक स्थायी शांति समझौते पर बातचीत मध्य पूर्व में तत्काल शुरू होगी. बयान में यह नहीं बताया गया कि यूक्रेन को आमंत्रित किया जाएगा या नहीं.
यह स्पष्ट नहीं था कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की रूसी ऊर्जा लक्ष्यों पर अपनी सेना के हमलों को रोकने के लिए सहमत होंगे या नहीं. रूस के 2022 के आक्रमण के बाद से, यूक्रेन ने रूसी क्षेत्र में गहराई तक ड्रोन और मिसाइल हमलों के साथ अपने बहुत बड़े पड़ोसी के खिलाफ लड़ने की कोशिश की है, जिसमें बिजलीघरों पर निशाने भी शामिल हैं. मास्को का कहना है कि ये हमले आतंकवाद के समान हैं, और कीव को रूस की अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाए रखने की अनुमति दी है.
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने मंगलवार को चेतावनी दी कि रूस ने "यूरोपीय लोकतंत्रों के साथ भविष्य में होने वाले टकराव" की तैयारी में अपनी सैन्य-औद्योगिक उत्पादन क्षमता का बड़े पैमाने पर विस्तार किया है. पुतिन ने कहा कि उन्होंने नाटो के रेंगते विस्तार से रूस की सुरक्षा को खतरा होने के कारण यूक्रेन में सैनिक भेजे. उन्होंने मांग की है कि यूक्रेन पश्चिमी सैन्य गठबंधन में शामिल होने की किसी भी महत्वाकांक्षा को छोड़ दे. पुतिन ने यह भी कहा है कि रूस को अपने द्वारा कब्जा किए गए यूक्रेनी क्षेत्र का नियंत्रण बनाए रखना चाहिए, पश्चिमी प्रतिबंधों में ढील दी जानी चाहिए और कीव को राष्ट्रपति चुनाव कराना चाहिए. ज़ेलेंस्की, जो 2019 में चुने गए थे, युद्ध के कारण लगाए गए मार्शल लॉ के तहत सत्ता में बने हुए हैं.
काठमांडू में राजशाही बहाली की बजती घंटियां
काठमांडू में 9 मार्च को हुए राजशाही समर्थक प्रदर्शनों ने नेपाल की राजनीति को हिला दिया है. द वायर में प्रकाशित कमल देव भट्टाराय के डिस्पैच के मुताबिक पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के पोखरा से लौटने पर हजारों समर्थकों ने उनका स्वागत किया और हवाईअड्डे से उनके निजी आवास तक काफिला निकाला. यह प्रदर्शन देश के अन्य हिस्सों में भी फैले, जिसके बाद प्रमुख राजनीतिक दलों ने वर्तमान गणतांत्रिक व्यवस्था को बचाने की बात की. 2008 में राजशाही खत्म होने और 2015 के संविधान से नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष संघीय गणराज्य बना. लेकिन राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) जैसे छोटे दल और हिंदू संगठन अब राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वापसी की मांग कर रहे हैं. इन्हें नेपाली कांग्रेस और माओवादी दलों के भीतर भी कुछ समर्थन मिलता है. राजशाही समर्थकों का मानना है कि राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, युवाओं का पलायन और आर्थिक ठहराव उनकी मांगों को बल देते हैं. 19 फरवरी को ‘लोकतंत्र दिवस’ पर ज्ञानेंद्र ने देशवासियों से “राष्ट्र की रक्षा” के लिए एकजुट होने की अपील की, जिसके बाद प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ.
प्रमुख दल राजशाही की वापसी को “अस्वीकार्य” बताते हैं. माओवादी नेता पुष्पकमल दहल ने 2001 के राजपरिवार हत्याकांड का जिक्र कर ज्ञानेंद्र पर संदेह जताया. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सड़क प्रदर्शनों से व्यवस्था पर तत्काल खतरा नहीं है, क्योंकि राजशाही समर्थक अव्यवस्थित हैं और संसद में उनका प्रतिनिधित्व सीमित (14 सीटें) है. इसके अलावा 2015 के संविधान को 275 में से 175 सांसदों का समर्थन है. ज्ञानेंद्र सीधे टकराव से बच रहे हैं, क्योंकि हिंसा भड़कने पर संसद उनकी गतिविधियां रोक सकती है.
नेपाली नेताओं को शक है कि भारत के कुछ हिंदूवादी समूह इस आंदोलन को प्रोत्साहित कर रहे हैं. ज्ञानेंद्र का यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और भूटान से मिलना इन अटकलों को हवा देता है. हालांकि, ठोस सबूत नहीं हैं. राजशाही की वापसी की संभावना फिलहाल कमजोर है, लेकिन यह प्रदर्शन सत्ताधारियों के लिए चेतावनी हैं. यदि जनता का असंतोष बढ़ा, तो 2015 का संविधान संकट में पड़ सकता है.
बिहार में बढ़ती तस्करी, जहरीली शराब से हुए अंधे
(मकबूल हाशमी (30) पश्चिम बिहार में 15 अक्टूबर को अवैध शराब पीने के बाद पूरी तरह से अंधे हो गए. राज्य में नकली शराब से अंधे हुए लोगों के लिए कोई मुआवजा नीति नहीं है. अब वह अपनी माँ, साइबुन निसा, जो एक फुटपाथ विक्रेता हैं, पर जीविका के लिए निर्भर हैं. साभार : विपुल कुमार.)
‘आर्टिकल 14’ के लिए विपुल कुमार और अलीशान जाफरी की रिपोर्ट है कि बिहार में शराबबंदी के बावजूद शराब की तस्करी और अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है, जिससे जहरीली शराब से कई लोगों की मौत हुई और कुछ लोग अंधेपन का शिकार हो गए. बिहार में 2016 में लागू हुई शराबबंदी के बावजूद, अवैध और जहरीली शराब खुलेआम उपलब्ध है, जिससे अब तक कम से कम 280 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से अधिकांश राज्य के गरीब और हाशिये पर खड़े समुदायों से आते हैं. शराब माफिया, जो अक्सर उन्हीं जातियों से होते हैं, पुलिस के साथ मिलीभगत में बसों, एंबुलेंसों, यहां तक कि ताबूतों में शराब की तस्करी करते हैं. उनका कहना है कि भारत के सबसे गरीब राज्य में, जहां नौकरी के अवसर बेहद कम हैं, उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचता.
गंगा नदी के किनारे रात में शराब बनाने के बाद, 28 वर्षीय एम दिन में उसे अपनी पान की दुकान के पीछे पीले रंग की साड़ी के पर्दे के सहारे बेचता है, जो पटना के एक भीड़भाड़ वाले बाजार में स्थित है. भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक बिहार में, करीब नौ साल से शराब बनाना, बेचना, रखना और इसका सेवन करना प्रतिबंधित है. जनवरी 2025 में हुई हमारी मुलाकात में एम ने बताया कि जब प्रशासन ने बिना लाइसेंस के चल रही उनकी अस्थायी सब्जी की दुकान को तोड़ दिया, तो परिवार के भरण-पोषण के लिए उसे इस अवैध धंधे में उतरना पड़ा. चूहा पकड़ने वाले मुसहर समुदाय से आने वाले एम ने कहा, “वह इसलिए काम कर पाता है, क्योंकि पुलिस, शराब माफिया और उनके आकाओं की आपस में मिलीभगत है. वह अक्सर पुलिस अधिकारियों को रिश्वत देता है, ताकि वे आंखें मूंदे रहें. हमारे शराब के धंधे से पुलिस को भी बराबर फायदा होता है.” उसने आगे बताया, "अगर किसी दूसरे इलाके की पुलिस या उत्पाद विभाग की रेड होती है, तो स्थानीय पुलिस हमें पहले ही खबर कर देती है." जब उसके पास रिश्वत के पैसे नहीं होते, तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है और फिर जमानत होने तक जेल में रहना पड़ता है. 2016 में शराबबंदी लागू होने के बाद से एम को छह बार गिरफ्तार किया गया, लेकिन वह अब भी आर्थिक स्थिरता और सुरक्षा से कोसों दूर है. उसने कहा, "मैं छह साल से शराब बेच रहा हूं, लेकिन इन मामलों और पुलिस की वजह से अब भी कर्ज में डूबा हूं."
2018 में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में गिरफ्तारियों में एससी का हिस्सा 27.1% था, जबकि उनकी जनसंख्या हिस्सेदारी मात्र 16% थी. अनुसूचित जनजातियों की हिस्सेदारी 6.8% थी, जबकि उनकी जनसंख्या केवल 1.3% थी. ओबीसी का हिस्सा 34.4% था, जबकि वे बिहार की कुल जनसंख्या के 25% हैं. गरीबी और बेरोजगारी ने इन समुदायों को इस खतरनाक और अवैध काम में धकेल दिया, जिससे वे मुश्किल से अपनी जिंदगी चला पा रहे हैं.
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे 2023-24 के अनुसार बिहार की श्रम भागीदारी दर – कामकाजी उम्र की आबादी का वह हिस्सा जो श्रम शक्ति का हिस्सा है – 34.5% है, जो राष्ट्रीय औसत 45.1% से काफी कम है. बिहार में प्रति व्यक्ति आय लगभग ₹50,000 है, जो इसे भारत का सबसे गरीब बड़ा राज्य बनाता है, 2023 की भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट के अनुसार. नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि बिहार की 33.76% आबादी “बहुआयामी गरीबी” में जी रही है – स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में कमी के कारण – जो देश में किसी भी राज्य में सबसे अधिक है. शराब माफिया और पुलिस के बीच की सांठगांठ गहरी होती जा रही है, जिससे ये लोग लगातार रिश्वत देकर अपने छोटे-मोटे धंधे को चलाते हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती और वे बार-बार गिरफ्तार होते रहते हैं.
2024 में लांसेट की एक रिपोर्ट ने शराबबंदी का समर्थन करते हुए कहा कि इस कानून ने 18 लाख पुरुषों में मोटापे के मामले रोके और 21 लाख से अधिक घरेलू हिंसा की घटनाओं को रोका. हालांकि, शराबबंदी के चलते बिहार में शराब माफिया का बोलबाला हो गया है. 2016 में बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन इसके बाद शराब की तस्करी बढ़ गई. बड़ी कंपनियों के ब्रांडेड शराब के नकली संस्करण (डुप्लीकेट) बनाए जाते हैं, जिनकी सप्लाई के लिए कई राज्यों से सामग्री लाई जाती है. शराब की तस्करी के लिए एंबुलेंस, शव वाहन, सब्जी के ट्रक, और बसों में गुप्त चेंबर बनाए जाते हैं. शराबबंदी के बावजूद शराब की बिक्री और तस्करी में पुलिस और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप लगाया गया है. कई बार गरीबों पर कार्रवाई होती है, जबकि बड़े सिंडिकेट बच जाते हैं.
इजरायली हवाई हमलों में 400 से अधिक फिलीस्तीनी फिर मारे गए
गाजा में पसरी शांति सीजफायर के खत्म होते ही कहीं दूर चली गई है. ‘द गार्डियन’ की खबर है कि फिलीस्तीनी स्वास्थ्य अधिकारियों ने गाजा पट्टी पर इजरायली हवाई हमलों में मरने वालों की संख्या बढ़ा दी है. गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने टेलीग्राम पर कहा कि हवाई हमलों में मरने वालों की संख्या 404 हो गई है, जो पहले 326 बताई गई थी. मंत्रालय ने अपने व्हाट्सएप चैनल पर यह संख्या 413 बताई. गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 660 से अधिक घायल फिलीस्तीनियों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, जबकि कई अन्य हवाई हमलों के पीड़ितों के मलबे में दबे होने की आशंका है. रेड क्रॉस ने कहा कि गाजा पट्टी में कई चिकित्सा सुविधाएं इन हमलों के बाद दुर्लभ सी हो गई हैं. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसाइटीज के प्रवक्ता टॉमासो डेला लॉन्गा ने जिनेवा में एक ब्रीफिंग में कहा कि आज सुबह हमारे फिलीस्तीनी क्रिसेंट सहयोगियों से जो जानकारी मिली, वह यह है कि गाजा भर में कई चिकित्सा सुविधाएं सचमुच दुर्लभ हैं. इजरायल ने पहले ही सहायता प्रतिबंध लगाया हुआ है, जिससे स्थितियां और नाजुक हो गई हैं. ‘अलजजीरा’ की खबर है कि इजरायली सेना ने गाजा में कई लोगों को निकलने के लिए भी कहा है, जिसके बाद अफरातफरी देखी गई है.
विश्लेषण
आकार पटेल : विश्व इतिहास में उपलब्धियों का 11 साल वाला कायदा
इतिहास बताता है कि एक नेता के सबसे परिवर्तनकारी वर्ष अक्सर सत्ता में उनके पहले दशक तक ही सीमित होते हैं. नेपोलियन को दिसंबर 1804 में ताज पहनाया गया था और 11 साल बाद, जून 1815 में, वाटरलू में हार गए. इन 11 वर्षों में उन्होंने पहली बार यूरोप को एकजुट किया जो शार्लेमेन द्वारा सन 804 में पहले किए जाने के एक हजार साल बाद. नेपोलियन ने अपने युग की महान सैन्य शक्तियों, जैसे प्रशिया और ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्धक्षेत्र में जीत के माध्यम से इसे हासिल किया.
देंग शियाओ पिंग पहले से ही 74 वर्ष के एक बूढ़े आदमी थे, जब उन्होंने 1978 में चीन का कार्यभार संभाला. ग्यारह साल बाद, उन्होंने 1989 में इस्तीफा दे दिया, जो तियानमेन चौक का साल था. सिंगापुर के नेता ली कुआन यू सहित कई लोगों ने उन्हें सबसे महान व्यक्ति माना, जिसे उन्होंने कभी जाना था, क्योंकि उन्होंने इन 11 वर्षों में जो हासिल करना शुरू किया और फिर हासिल किया. देंग ने आधे सदी से अधिक समय तक अपने मार्क्सवादी विचारों को त्याग दिया और चीन में सुधार किया, जिससे वह आज की राह पर चल पड़ा.
ग्यारह साल एक लंबा समय होता है. या बल्कि हम कहें कि एक नेता के पास प्रभाव डालने के लिए यह पर्याप्त समय है. पृथ्वी पर किसी भी स्थान पर, और वास्तव में इतिहास में किसी भी समय, ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ना मुश्किल है, जिसने अपने पहले दशक के बाद कोई बड़ा कमाल किया हो. अपने बेहतरीन स्वरूप में भी अगर वे रहें तो भी वे वही करते रहे होंगे, जो वे कर रहे थे. लेकिन अक्सर वे थके हुए दिखते हैं. और कभी-कभी वे भयानक परिणाम उत्पन्न करते हैं. देंग के पूर्ववर्ती माओ इसका एक अच्छा उदाहरण हैं. उनके पहले दशक के बाद नीति और हिंसा के कारण अकाल आया. इंदिरा गांधी की सभी उपलब्धियां, चाहे उन्हें अच्छी के रूप में वर्गीकृत किया जाए या बुरी के रूप में, उनके शुरुआती वर्षों में लागू की गईं. बैंक राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स को समाप्त करने से लेकर बांग्लादेश युद्ध तक. फिर आपातकाल आया और उनके अंतिम वर्षों में पंजाब में हिंसा हुई.
हमारे समय में तुर्की के रेसेप तैय्यप एर्दोगन पर ध्यान दें, जो 2003 से सत्ता में हैं, और रूस के व्लादिमीर पुतिन, जो 25 वर्षों से आसपास हैं. पुतिन के कार्यभार संभालने पर रूस की प्रति व्यक्ति जीडीपी 1,700 डॉलर थी. ग्यारह साल बाद, 2011 में, यह बढ़कर 14,300 डॉलर हो गई थी. आज, उसके 14 साल बाद, विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, यह गिरकर 13,800 डॉलर हो गया है. पुतिन सत्ता में बने हुए हैं. उन्होंने डेढ़ दशक तक कोई आर्थिक विकास नहीं देखा है, और एक युद्ध ने पहले ही रूस के युवाओं की जवानी और उसके भविष्य को खा लिया है. एर्दोगन ने 2003 में 4,600 डॉलर प्रति व्यक्ति की अर्थव्यवस्था संभाली और इसे 2013 तक 12,500 डॉलर तक ले गए. आज यह अब भी लगभग उसी स्थान पर है. वह फिर भी टिका हुआ है.
जवाहरलाल नेहरू ने अपना पहला दशक उन संस्थानों के निर्माण में बिताया, जो अब भी हमारे आसपास हैं. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान 1950 में खड़गपुर से शुरू हुआ, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र 1954 में, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान 1956 में, भारतीय प्रबंधन संस्थान 1961 में आया. इस अवधि में, नेहरू ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की एक शृंखला खड़ी की, जो अब भी जीवित हैं. स्टील दिग्गज सेल (1954), ओएनजीसी (1956), एनएमडीसी (1958), इंडियन ऑयल (1959), और इसी तरह और आगे भी. विश्व मामलों में उनका योगदान भी पंचशील (1954) से लेकर बांडुंग (1955) तक इसी अवधि में था.
चाहे आप नेहरू की प्रशंसा करें, जैसा कि मेरे उम्र के लोग अपनी जवानी के दिनों में करने को मजबूर थे, या आप उन्हें नापसंद करते हैं, जैसा कि आज फैशनेबल है. उनकी विरासत उन संस्थानों में जीवित और सांस ले रही है, जिनकी उन्होंने कल्पना की और निर्माण किया. यह सब कमोबेश 11 वर्षों में समाप्त हो गया.
पाकिस्तान के जनरल अयूब खान की तुलना ‘क्लैश ऑफ सिविलिजेशन्स’ लिखने के लिए प्रसिद्ध सैमुअल हंटिंगटन ने प्राचीन ग्रीस के विधि निर्माताओं से की थी. अयूब ने 1958 में सत्ता संभाली और 11 साल बाद 1969 में इसे खो दिया. उनके शुरुआती वर्ष आर्थिक विकास के मामले में आशाजनक थे, जिसके कारण हंटिंगटन से यह प्रशंसा मिली, भले ही जापान और दक्षिण कोरिया और ताइवान के मानकों के अनुसार यह आंकड़ा मामूली था. लेकिन 1965 में भारत के खिलाफ युद्ध और पूर्व में भड़क रहे आंदोलनों ने उन्हें खत्म कर दिया.
यहां तक कि इतिहास के दुष्ट नेताओं ने भी इस अवधि में अपना चाप पूरा कर लिया. हिटलर ने 1933 में सत्ता हासिल की और 1944 तक अपने बंकर में जनरल ज़ुकोव की पलटनों का इंतजार कर रहे थे, जिन्होंने एक साल पहले स्टेलिनग्राद में जर्मनों को हराया था. जर्मन तानाशाह के लिए इतिहास जिन सभी उपलब्धियों को सूचीबद्ध करता है, अर्थव्यवस्था और ऑटोबान के लिए उसने जो किया, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, "ब्लिट्जक्रीग" की अवधारणा के साथ फ्रांसीसी और ब्रिटिश सेनाओं को चुनौती देना, पहले आधुनिक रॉकेट, वीटू का विकास, ये सभी 11 वर्षों में आए.
11 साल की मियाद का कायदा होने की एक वजह है और इस तरह से देखा भी गया है. यह मनुष्य के स्वभाव और मनुष्य के समान होने के बारे में बोलता है. हमारे पास सीमित संख्या में मूल विचार हैं और वह सीमा समय के साथ समाप्त हो जाती है. हममें से अधिकांश के पास दुनिया पर बहुत अधिक ताकत या प्रभाव नहीं है. कुछ जिनके पास शक्ति है, वे हममें से बाकी को दिखाते हैं कि क्या संभव है और कितने समय तक.
अपनी पुस्तक द 10 रूल्स ऑफ सक्सेसफुल नेशन्स में, रुचिर शर्मा "बासी नेताओं" के उपशीर्षक के तहत लिखते हैं कि "इस नियम के बारे में सोचने का एक सरल तरीका यह है कि उच्च प्रभाव सुधार एक नेता के पहले कार्यकाल में सबसे अधिक होने की संभावना है, और दूसरे कार्यकाल और उसके बाद कम होने की संभावना है, क्योंकि एक नेता के विचारों या सुधार के लिए समर्थन समाप्त हो जाता है और वह एक महान विरासत को सुरक्षित करने की ओर मुड़ जाता है".
जैसा कि राल्फ वाल्डो इमर्सन ने कहा: "अंत में हर नायक एक बोर बन जाता है".
लेखक एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के अध्यक्ष हैं.
बौद्ध मंदिरों पर कब्जे छुड़ाने की लड़ाई तेज
'स्क्रोल' के लिए तबस्सुम बरनागरवाला और नोलीना मिन्ज की रिपोर्ट है कि महाबोधि मंदिर पर नियंत्रण को लेकर बौद्ध समुदाय में असंतोष बढ़ रहा है. 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम के तहत, मंदिर का प्रबंधन बिहार सरकार द्वारा नियुक्त समिति के हाथों में है, जिसमें आधे सदस्य हिंदू होते हैं और अध्यक्ष भी हिंदू जिला मजिस्ट्रेट होता है. बौद्ध समुदाय इसे अन्याय मानता है, क्योंकि वे इसे उनके धर्म का सबसे पवित्र स्थल मानते हैं, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था. आंदोलनकारियों का कहना है कि मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और ब्राह्मणवादी अनुष्ठान बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं, जो अंधविश्वास और जाति व्यवस्था का विरोध करता है. यह विरोध महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में जोर पकड़ रहा है, जहां डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में दलितों ने बौद्ध धर्म अपनाया था. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि मंदिर का पूरा नियंत्रण बौद्धों को सौंपा जाए, जैसे वेटिकन कैथोलिकों द्वारा और मक्का मुसलमानों द्वारा संचालित होता है. यह आंदोलन अब पूरे भारत में फैल रहा है.
रिपोर्ट में जिक्र है कि 24 वर्षीय विशाल कदम ने पिछले जनवरी में जब बोधगया में महाबोधि मंदिर का दौरा किया, तो वह उस स्थान को देखने के लिए उत्सुक थे, जहां माना जाता है कि बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था. हालांकि, कदम की नजर मंदिर परिसर के कोनों में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों पर पड़ी. कदम ने कहा, “वहां बौद्ध धर्म का सार बहुत कम था. बहुत सारे पुजारी पूजा कर रहे थे और दावा कर रहे थे कि वे तीर्थयात्रियों की समस्याओं को अनुष्ठानों के माध्यम से हल कर सकते हैं.” उन्होंने कहा कि यह उन्हें परेशान कर गया, क्योंकि बौद्ध धर्म ऐसे प्रथाओं के खिलाफ अनुयायियों को सचेत करता है.
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म का जन्म हिंदू धर्म में अनुष्ठानों और जाति पदानुक्रम पर जोर देने के विकल्प के रूप में हुआ था. महाबोधि मंदिर बुद्ध से जुड़े चार पवित्र स्थलों में से एक है और धर्म के अनुयायियों द्वारा श्रद्धेय है. कदम ने कहा कि उन्हें याद है कि मुंबई में अपने परिवार के सदस्यों के साथ उन्होंने मंदिर में हिंदू अनुष्ठानों की उपस्थिति पर चर्चा की थी. इसलिए, जब फरवरी में कई बौद्ध भिक्षुओं ने महाबोधि मंदिर पर पूर्ण नियंत्रण की मांग को लेकर बोधगया में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की, तो उन्होंने इसमें शामिल होने का फैसला किया.
एक निजी अस्पताल में लैब तकनीशियन के रूप में काम करने वाले कदम ने काम से छुट्टी लेकर मुंबई के चेंबूर और बांद्रा क्षेत्रों में रैलियों में हिस्सा लिया, ताकि बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को निरस्त करने की मांग की जा सके. उन्होंने कहा, “हम यह मांग कर रहे हैं कि जो हमारा है, उसे पूरी तरह से हमें सौंप दिया जाए.” बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 के अनुसार, बिहार राज्य सरकार द्वारा गठित एक समिति महाबोधि मंदिर और उसकी संपत्ति के "प्रबंधन और नियंत्रण" की देखरेख करेगी. विरोध कर रहे भिक्षु अधिनियम के प्रावधानों के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं. वंचित बहुजन अघाड़ी के मुंबई के उपाध्यक्ष चेतन अहिरे ने कहा, “साईं बाबा मंदिर या किसी इस्लामी ट्रस्ट में हमें बौद्ध भिक्षु समिति के सदस्य के रूप में नहीं मिलते. फिर हमारे मंदिर में हिंदू सदस्य क्यों हैं?” उन्होंने कहा कि महाबोधि मंदिर परिसर में राम और लक्ष्मण की मूर्तियां हैं. वहां एक हनुमान की मूर्ति भी है, लेकिन हमें वहां बौद्ध धर्म के बारे में बहुत कम लेखन देखने को मिलता है.” उन्होंने दावा किया कि कई अंतरराष्ट्रीय पर्यटक, जो मंदिर में बौद्ध धर्म के बारे में जानने आते हैं, उन्हें पांडवों या रामायण की पौराणिक कथाओं के साथ गुमराह किया जाता है. “इसका मंदिर या बुद्ध के बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त करने से कोई संबंध नहीं है.”
मुंबई में बौद्ध सोसायटी ऑफ इंडिया से जुड़े देवानंद लोखंडे ने कहा कि मंदिर के हिंदू सदस्यों के प्रोत्साहन से प्रार्थनास्थल में ब्राह्मणवादी अनुष्ठानों और हिंदू प्रथाओं की बढ़ती घुसपैठ हुई है. उन्होंने कहा, “बुद्ध ने हमें अंधविश्वासों से बचने की शिक्षा दी थी. वहां जो किया जा रहा है, वह इसके बिल्कुल विपरीत है.”
वंचित बहुजन अघाड़ी के महासचिव प्रियदर्शी तेलंग ने बताया कि महाबोधि मंदिर दुनिया भर के बौद्धों के लिए पवित्र है. उन्होंने कहा, “इसे भारत सरकार और म्यांमार, वियतनाम, थाईलैंड और अन्य देशों में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध समूहों से धन मिलता है. फिर उन्हें इसके प्रबंधन में शामिल क्यों नहीं किया जाता?” उन्होंने कहा कि यदि वेटिकन कैथोलिकों द्वारा प्रबंधित है और मक्का मुसलमानों द्वारा, तो यह मांग करना उचित है कि महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बौद्धों द्वारा किया जाए. उन्होंने पूछा, “ब्राह्मण इसमें क्यों शामिल हों?” उन्होंने दावा किया कि भारत भर में कई हिंदू मंदिरों में बौद्ध मूल के पुरातात्विक साक्ष्य हैं. “यदि बौद्ध इन मंदिरों पर अधिकार की मांग करने लगें, तो बड़ा हंगामा हो जाएगा, लेकिन हम केवल एक मंदिर के प्रबंधन की मांग कर रहे हैं.”
चलते चलते
दिमाग की विरोधी दुनिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता
राकेश कायस्थ
जिस समय दुनिया के एक बड़े हिस्से में "बुद्धि विरोधी जनांदोलन" अपने चरम पर हैं, उसी वक्त कृत्रिम बुद्धि का महाविस्फोट हुआ है. यह बर्फ से ढंके किसी ग्रह का सूर्य सरीखे किसी आग के गोले से जा टकराने जैसा मामला है. इसके परिणाम को व्यक्त करने के लिए अंग्रेजी का शब्द ‘डिसरप्शन’ भी मेरे हिसाब से नाकाफी है.
पोस्ट ट्रूथ शब्द पिछले दस-बारह साल में दुनिया भर के बौद्धिक तबके में सबसे ज्यादा प्रयुक्त होनेवाला शब्द है. आसान भाषा में पोस्ट ट्रूथ का मतलब ये है कि हम उसी बात को तथ्य मान लेते हैं, जिससे हमारा अहं और हमारी भावनाएं तुष्ट होती हैं, या जिससे हमारी धारणा या पूर्वाग्रहों की पुष्टि होती है. मन जो कहता है, वही दिखाई भी देने लगता है, भले असल में हो या ना हो.
मान लीजिये अरहर की दाल 400 रुपये किलो हो गई. जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, लेकिन लोगों में जादुई असर रखने वाले किसी नेता ने कह दिया कि अरहर की दाल खाने से बुद्धि कुंद होती है. जनता एक बड़ा हिस्सा चुपचाप ये मान लेगा कि हमारे नेता कहा है, तो ठीक ही कहा होगा.
दुनिया में हमेशा से बड़ी तादाद ऐसे लोगों की रही है, जिन्हें सोचने में बहुत कठिनाई होती है. अपने परिवार, रिश्तेदार या दफ्तर में देख लीजिये. ऐसे लोग बहुतायत में मिल जाएंगे, जिनके सामने कोई जटिल प्रश्न रखा जाये तो दो-चार मिनट में वो झल्ला जाते हैं, उनका रियेक्शन होता है 'बातों की जलेबी मत बनाओ, गोल-गोल मत घुमाओ, सीधे बताओ करना क्या है.'
अगर आप उन्हें कहेंगे कि सारी चीज़ें सीधी नहीं होती हैं, कुछ चीज़ें जटिल भी होती हैं, तो वो आप पर और नाराज़ होंगे. आप उन्हें नहीं समझा सकते कि अगर हर चीज़ बहुत सरल होती तो दुनिया का हर आदमी अपना डॉक्टर खुद होता, किसी विशेषज्ञ की ज़रूरत कही नहीं होती. ना तो विज्ञान और दर्शन जैसे विषय होते और ना ही मानव जाति के शब्दकोश में किंतु-परंतु जैसे शब्द होते.
किसी मूर्ख से आप जितना कहेंगे कि सबकुछ सीधा नहीं होता, उसका अविश्वास आप पर उतना ही बढ़ता चला जाएगा. फिर वह अपने जैसे लोग ढूंढे़गा, दोनों मिलकर आपको लानते भेजेंगे. फिर यह संख्या दो से चार होगी, चार से आठ. लोग मिलते जाएंगे और कारवां बनता जाएगा और फिर एक ऐसा आदमी अवतरित होगा, जिनमें ये तमाम लोग अपनी छवि देखेंगे और जनांदोलन बनी संगठित मूर्खता, क्रांति बनकर किसी महानायक के नेतृत्व वाली सरकार में तब्दील हो जाएगी.
21वीं सदी के शुरुआती 25 साल मूर्खता के महाविस्फोट से पैदा हुई क्रांतियों के नाम रही है, जिन्हें आम भाषा में लोकतांत्रिक सरकार भी कहते हैं. इन सरकारों ने और कुछ किया ना किया हो वैसे लोगों को एक नई आइडेंटिटी दी है, जिन्हें सोचने समझने में खासी तकलीफ होती थी. इन लोगों के नेताओं ने उन्हें बार-बार आश्वस्त किया है कि शारीरिक या आर्थिक कष्ट जितना भी हो, उनके दिमागी आराम में कोई खलल नहीं पड़ेगा. मूर्खों के दिमाग़ को दुनिया का सबसे कीमती खजाना मानकर नेता रात-दिन उनकी रक्षा में जुटे हैं. चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन बाहर से कोई संक्रमण ना आने पाये.
सबकुछ बढ़िया चल रहा था, लेकिन अचानक कृत्रिम बुद्धि आ गई. एआई नाम का यह प्राणी ईश्वर की तरह अदृश्य है, लेकिन जब भी याद करो आपकी स्क्रीन पर आ जाता है और अधिकतम और लगभग शत-प्रतिशत सत्य बातें बताता है. उसे जो पता नहीं होता है, कह देता है कि मैं अभी सीख रहा हूं.
एआई मानव मष्तिष्क को उद्देलित कर रहा है. वह बार-बार कह रहा है, तुम एक मनुष्य हो, तुम्हारा काम सोचना है. जब दिमाग है तो इस्तेमाल क्यों नहीं करते?
'हम जितना जानते जाते हैं, उतना ही हमें यह पता चलता जाता है कि हम कितना कम जानते हैं.' इस मूल स्थापना को एआई सच साबित कर रहा है. जो लोग कुछ सोचते हैं, एआई ने उन्हें सोचने की इतनी सामग्री दे रहा है कि विचार करते और समझते पूरी जिंदगी निकल जाये, लेकिन मेरी चिंता दूसरी है.
बुद्धि विरोधी जनांदोलनों से पैदा हुए महामानवों का क्या होगा? जो निष्क्रिष्य दिमाग उनका सबसे बड़ा खज़ाना रहे हैं, उनकी हिफाजत एआई के आने के बाद महामानव कैसे कर पाएंगे? कैसे राजनेता ये सुनिश्चित कर पाएंगे कि पोस्ट ट्रूथ का तिलिस्म बरकरार रहे और सुनामी बनकर आ रहा सत्य इसे उड़ा ना ले जाये? एआई निकट भविष्य में कुछ करे या ना करे लेकिन आधी से ज्यादा मूढ़ आबादी को किंकर्त्व्यविमूढ़ जरूर कर देगा.
लेखक रामभक्त रंगबाज के उपन्यासकार हैं.
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