19/04/2025 : मोदी की मुस्लिमों से मोहब्बत | पंचर पर पलटवार | धनखड़ को सिब्बल की समझाइश | जफ़र को औरंगजेब समझ पोत दिया | जंग रुकवाने पर अमेरिका ढुलमुल | पाकिस्तान में केएफसी निशाने पर | अंबानी के तोते
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मक़ान पीएम आवास योजना का आंध्र सरकार ने एससी-एसटी को उपवर्गीकृत किया
स्टालिन ने मोदी को गुजरात वाले दिनों की याद दिलाई
रूस से जंग रुकवाने पर अमेरिका की अगर मगर शुरू
एप्प बचाता हाथियों के रास्ते में आने से
मोदी की नीले मकाउ संग तस्वीर पर विवाद
अगर मैं मरूं, तो मेरी मौत गूंजती हुई होनी चाहिए
मोदी के बयान के बाद मुसलमानों ने अस्पताल से लेकर कॉरपोरेट बोर्डरूम तक… हर जगह पंचर लगाने शुरू किये
‘पंचर रिपेयर’ वाले ताने का जवाब देखिए, ‘कुछ नहीं, बस भारतीय इतिहास में पंक्चर ठीक कर रहा हूँ’
प्रधानमंत्री के दक्षिणपंथी इस्लामोफोबिक बयान की प्रतिध्वनि ने ऑनलाइन ट्रेंड को बढ़ावा दिया है, क्योंकि मुस्लिम पेशेवर अस्पतालों के ऑपरेशन थिएटर से लेकर कॉरपोरेट दफ्तरों के बोर्डरूम तक अपनी ‘पंचर’ वाली नौकरियों को दिखा रहे हैं. प्रधानमंत्री के अपमानजनक बयान पर आमतौर पर पूरे भारत में मुसलमानों ने आक्रोश नहीं दिखाया, बल्कि जवाब देने के लिए बेबाक गर्व और हास्य को चुना.
हरियाणा के हिसार में एक रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वक़्फ़ संपत्तियों के दुरुपयोग ने युवा मुस्लिम पुरुषों को साइकिल पंचर मरम्मत के काम में धकेल दिया है. हालांकि सरकारी आंकड़े बताते हैं, सिर्फ मुसलमान नहीं, देशभर के सभी धर्मों के 30 प्रतिशत से अधिक युवा वर्तमान में न तो रोजगार में हैं, न ही शिक्षा या प्रशिक्षण में.
इस बीच प्रधानमंत्री का यह बयान सोशल मीडिया पर अवज्ञा और गरिमा के प्रदर्शन में बदल गया है. डॉक्टर, उद्यमी, इंजीनियर और कलाकार इस मज़ाकिया ट्रेंड में शामिल हो गए हैं. एक सर्जन ने ऑपरेशन थियेटर के अंदर से पोस्ट किया : “ओटी में विशेष पंचर मरम्मत.”
एक लग्जरी कार के मालिक ने अपनी ऑडी के अंदर का हिस्सा दिखाया : “अपनी पंचर मरम्मत की दुकान पर जा रहा हूँ.” यह ट्रेंड वायरल लहर का रूप ले चुका है. इसे ‘एक्स’ और ‘इंस्टाग्राम’ पर व्यापक रूप से देखा जा सकता है. इन पोस्टों में व्यंग्य और दावे दोनों बराबर दिख रहे हैं. कई उपयोगकर्ताओं ने इसे एक अपमानजनक टिप्पणी के रूप में देखी गई प्रतिक्रिया के रूप में पहचान की और इसे सामूहिक रूप से पुनः वर्णित किया.
एक इतिहासकार ने व्याख्यान के बीच में एक पोस्ट में लिखा था, “कुछ नहीं, बस भारतीय इतिहास में पंचर ठीक कर रहा हूँ." इसके बाद एक और पोस्ट किया गया, जिसमें एक कॉन्फ़्रेंस रूम को संबोधित करते हुए तस्वीर के साथ लिखा था : “कुछ नहीं, बस अपने पंचर व्यवसाय को बेहतर बनाने के बारे में प्रजेंटेशन दे रहा हूँ.” मुसलमानों ने बिना नारे या भाषण के अपने पोस्ट में व्यंग्य की खुराक जोड़कर डॉक्टर, सलाहकार, इंजीनियर और शिक्षक के रूप में अपनी वास्तविकता दिखाने का विकल्प चुना है.
हेट स्पीच
पंचर पहली बार नहीं, 2002 से ही मिलती रही है ‘सौग़ात ए मोदी’, यहां देखिये चुनिंदा 22 बयान
मुसलमानों के बिना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीति किस कदर अधूरी और बेमानी है, ये उनके उन बयानों से पता चलता है, जो उनके भाषणों और सियासत में सनातन तौर पर दिखलाई पड़ते रहे है. तब से जब वे सत्ता की राजनीति में आये. यानी 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बन कर.
द वायर के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने इस हफ़्ते की शुरुआत में मुसलमानों के खिलाफ़ ‘पंचरवाला’ शब्द का इस्तेमाल पहली बार नहीं किया है. दरअसल यह उन कई कट्टरपंथी शब्दों और शिष्ट शब्दों की शृंखला में से एक है, उन्होंने जिनका इस्तेमाल समुदाय को संदर्भित करने के लिए किया है. गुजरात के मुख्यमंत्री के दिनों से, मोदी ने मुसलमानों के बारे में कई विवादास्पद बयान दिए हैं, जिनकी देश में मुस्लिम विरोधी नफ़रत को बढ़ावा देने और सांप्रदायिक विभाजन को गहरा करने के लिए व्यापक आलोचना हुई है.
मोदी अक्सर इशारे मे और कई बार बेहद भद्दी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उनके इरादे और लक्ष्य को उनके समर्थकों, विश्लेषकों और यहां तक कि पीड़ितों द्वारा व्यापक रूप से पहचाना जाता है. जैसा न्यूयॉर्क टाइम्स ने अप्रैल 2024 में उल्लेख किया था, “देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक के खिलाफ इस्तेमाल की गई सीधी भाषा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्व मंच पर प्रस्तुत छवि के विपरीत थी.”
मोदी ने अक्सर अप्रत्यक्ष भाषा और डॉग व्हिसल का इस्तेमाल किया है, जैसे ‘तुष्टीकरण’, ‘वोट बैंक की राजनीति’, ‘मुगल’ और ‘बाहरी लोगों’ का संदर्भ, यह सुझाव देने के लिए कि मुसलमान हिंदू बहुसंख्यकों के प्रति विश्वासघाती या ख़तरा हैं. उनकी मुस्लिम विरोधी बयानबाजी चुनाव अभियानों के दौरान सबसे स्पष्ट रही है, खासकर जब हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जाती है. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान 173 में से कम से कम 110 भाषणों में मुस्लिम विरोधी टिप्पणियां की. इसमें विपक्ष पर मुसलमानों का पक्ष लेने और गलत सूचना के माध्यम से हिंदुओं में भय पैदा करने का गलत आरोप लगाया. उनके भाषणों में झूठे दावे शामिल थे कि विपक्ष ‘केवल मुस्लिम अधिकारों को बढ़ावा देता है’ और मुसलमानों को संसाधनों तक प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे मुसलमानों को बाहरी या ख़तरा बताने की कहानी को बढ़ावा मिला.
14 अगस्त, 2024 को जारी एचआरडब्ल्यू रिपोर्ट में कहा गया है कि आम चुनाव 2024 के बाद से धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भी जारी है. इसमें देश भर में कथित 28 हमलों में 12 मुस्लिम पुरुषों और एक ईसाई महिला की मौत की ओर इशारा किया गया है. मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने मुसलमानों को ख़तरा बताते हुए अभियान वीडियो जारी किए हैं, जैसे एक वीडियो में विपक्षी नेता राहुल गांधी को ‘मुसलमानों’ के नाम से एक अंडे को घोंसले में रखते हुए दिखाया गया है और दूसरे वीडियो में कांग्रेस पर मुसलमानों को संसाधनों को फिर से वितरित करने की योजना बनाने का आरोप लगाया गया है.
हालांकि यह सूची काफी लंबी है, मगर यहां पिछले उदाहरणों की कुछ ही सूची रखी गई है, जिससे आपको समझने में मदद मिले कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सार्वजनिक भाषणों में किस तरह से मुस्लिम विरोधी शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. प्रधानमंत्री की ये सारी टिप्पणियां मीडिया में रिपोर्ट की गई खबरों से उठाई गई हैं.
‘बच्चे पैदा करने के लिए राहत शिविर नहीं चलाएंगे’ : 2002 के गुजरात दंगों के बाद, तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम दंगा पीड़ितों के लिए राहत शिविरों को बच्चे पैदा करने का शिविर कहा था. इससे मुसलमानों के बारे में यह धारणा बनी कि वे जनसांख्यिकीय रूप से ख़तरा हैं. 2002 में गुजरात दंगे के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौरव यात्रा के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय पर कटाक्ष करते हुए कहा, “हम बच्चे पैदा करने के लिए राहत शिविर चलाते रहना नहीं चाहते.” इस दरमियान कांग्रेस पर भी निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा सरकार द्वारा 'श्रावण' के महीने में नर्मदा का जल लाने पर उसे आपत्ति है. उन्हें इसे रमज़ान में लाना चाहिए.”
‘अदृश्य दुश्मन’ और ‘लव जिहाद’ : मोदी ने बार-बार ‘अदृश्य दुश्मनों’ का संदर्भ दिया है और ‘ज़ालिम प्रेम’ के खिलाफ़ चेतावनी दी है, जो ‘लव जिहाद’ के षड्यंत्र सिद्धांत का संकेत है. इसमें झूठा दावा किया जाता है कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को बहकाकर उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करते हैं. मई 2024 में, उन्होंने समाज को विभाजित करने के लिए काम कर रहे ‘अदृश्य दुश्मनों’ की बात की और दावा किया कि विपक्षी दल ‘घुसपैठियों’ के हाथों खेल रहे हैं.
'हम पाँच, हमारे पच्चीस' : मोदी ने ‘हम पाँच, हमारे पच्चीस’ वाक्यांश के साथ मुस्लिम परिवार के आकार का मज़ाक उड़ाया, जो मुसलमानों में बहुविवाह और बड़े परिवारों के लिए अपमानजनक संदर्भ था. 2002 गुजरात विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोगों की एक परंपरा है : हम पाँच, हमारे पच्चीस:”
'पिंक रिवोल्यूशन' : मोदी ने कांग्रेस सरकार पर ‘पिंक रिवोल्यूशन’ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. मांस उद्योग, विशेष रूप से गोमांस का जिक्र करते हुए, जिसका अर्थ था कि मुसलमानों का पक्ष लिया जा रहा है और हिंदू हितों को कम किया जा रहा है. 2013 में, प्रधानमंत्री रूप में चुने जाने के अभियान के दौरान, मोदी ने कहा, “गुलाबी क्रांति से किसे फायदा हो रहा है? सब्सिडी किसे मिल रही है?”
कार के पहिये के नीचे पिल्ला आ जाए तो दर्दनाक होगा ही : जुलाई 2013 में रॉयटर ने साक्षात्कार के दौरान तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से साक्षात्कार में जब 2002 में हुए घातक सांप्रदायिक दंगे, जिसमें भारी संख्या में मुसलमान मारे गए थे, के बारे में जब यह पूछा कि क्या उन्हें हिंसा पर खेद है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, “कोई और कार चला रहा है और हम पीछे बैठे हैं, तब भी अगर कोई पिल्ला पहिये के नीचे आ जाता है, तो क्या यह दर्दनाक होगा या नहीं? बेशक होगा. मैं मुख्यमंत्री हूं या नहीं, मैं एक इंसान हूं. अगर कहीं कुछ बुरा होता है, तो दुखी होना स्वाभाविक है."
हिंसा करने वालों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार, 15 दिसंबर 2019 को झारखंड के दुमका में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए सीएए-एनआरसी मुद्दे पर देशभर में चल रहे आंदोलनों पर टिप्पणी करते हुए कहा, “कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी हंगामा कर रहे हैं. वे आगजनी कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी मर्जी नहीं मिली. हिंसा करने वालों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है.”
‘घुसपैठिया’ : 21 अप्रैल, 2024 को राजस्थान के बांसवाड़ा में एक चुनावी रैली के दौरान मोदी ने मुसलमानों को ‘घुसपैठिया’ कहा, यह शब्द हिंदुत्व के विचारकों द्वारा आमतौर पर यह सुझाव देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है कि मुसलमान विदेशी या अवैध अप्रवासी हैं, जबकि उनमें से ज़्यादातर पीढ़ियों से भारतीय नागरिक हैं. मोदी ने पूछा, “क्या आपको लगता है कि आपकी मेहनत की कमाई घुसपैठियों को दी जानी चाहिए?” और कांग्रेस पर हिंदुओं से धन जब्त करने और इसे ‘अधिक बच्चे पैदा करने वालों’ और ‘घुसपैठियों’ को वितरित करने की योजना बनाने का आरोप लगाया.
मुसलमानों के लिए ‘मंगलसूत्र’ और सोना छीन लिया जाएगा : उसी भाषण में, मोदी ने दावा किया कि कांग्रेस “माताओं और बहनों के मंगलसूत्र और सोना छीनकर” मुसलमानों को दे देगी, जिससे भय और आक्रोश पैदा हुआ और यह संकेत मिला कि मुसलमान हिंदू संपत्ति और सम्मान के लिए खतरा हैं.
‘मियाँ मुशर्रफ’ : 2002 के गुजरात चुनाव अभियान के दौरान, मोदी ने तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ को बार-बार ‘मियाँ मुशर्रफ’ (मियाँ भारत में मुस्लिम पुरुषों को संदर्भित करने का शब्द) कहकर संबोधित किया, इसे अपने राजनीतिक विरोधियों को मुस्लिम समर्थक और राष्ट्र विरोधी के रूप में चित्रित करने के लिए एक गाली के रूप में इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, “हम मियाँ मुशर्रफ से पूछना चाहते हैं…”, जिसका अर्थ था कि कांग्रेस और मुसलमान पाकिस्तान के साथ जुड़े हुए हैं.
मुसलमानों का शुद्धीकरण करें : 25 सितंबर, 2016 को केरल के कोझिकोड में राष्ट्रीय स्तर के भाजपा सम्मेलन को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने अपने दर्शकों के साथ मुसलमानों के बारे में अपनी धारणा साझा की. उन्होंने कहा, “पचास साल पहले, पंडित उपाध्याय ने कहा था, मुसलमानों को न पुरस्कृत करें और न ही उन्हें तिरस्कृत करें, बल्कि उनका परिष्कार (शुद्धीकरण) करें.”
कब्रिस्तान-श्मशान : 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया जैसे-जैसे आगे बढ़ी, प्रधानमंत्री मोदी अपने सांप्रदायिक, ध्रुवीकरण वाले बयानों में और भी आक्रामक होते गए. 20 फरवरी, 2017 को फतेहपुर में एक चुनावी रैली में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने ‘राज्य में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण’ का मुद्दा उठाते हुए सत्ताधारी समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि वह हिंदुओं के बजाय मुसलमानों को तरजीह देती है. हमेशा की तरह, विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विभाजन पैदा करने के लिए, प्रधानमंत्री मोदी ने अपना सबसे अच्छा तर्क दिया कि अखिलेश सरकार मुस्लिम मतदाताओं द्वारा चुनी गई थी, इसलिए यह स्वाभाविक रूप से हिंदुओं की जरूरतों या मांगों को अनदेखा करते हुए अपने ‘मुस्लिम वोट-बैंक’ के हित के लिए काम करती है. उन्होंने कहा, “रमज़ान में बिजली आती है तो दिवाली में भी आनी चाहिए, भेदभाव नहीं होना चाहिए.” इसके आगे कहा, “गांव में कब्रिस्तान बनता है तो श्मशान भी बनना चाहिए.”
सीएए आंदोलन राष्ट्रविरोधी : दिल्ली चुनाव से ठीक पहले 3 फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी रैली में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध करने वालों के खिलाफ बयान देते हुए कहा, “चाहे सीलमपुर हो, जामिया हो या शाहीन बाग, पिछले कई दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं. क्या यह महज संयोग है? नहीं, यह एक प्रयोग है. यह देश की एकता को तोड़ने की राजनीतिक साजिश है."
दानिश अली पर साधा निशाना : 19 अप्रैल, 2024 को उत्तर प्रदेश की अमरोहा लोकसभा सीट पर भाजपा के लिए प्रचार करते हुए, पीएम मोदी ने मौजूदा सांसद और कांग्रेस उम्मीदवार दानिश अली पर टिप्पणी की, “क्या एक व्यक्ति, जो भारत माता की जय स्वीकार नहीं कर सकता, भारतीय संसद में अच्छा लगेगा? क्या ऐसे व्यक्ति को संसद में प्रवेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए जो अपनी मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना पसंद नहीं करता है.”
कांग्रेस आपकी संपत्ति छीनकर ‘मुसलमानों’ को दे देगी : 23 अप्रैल, 2024 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ के सरगुजा में चुनावी रैली के दौरान एक और विभाजनकारी भाषण दिया. विपक्षी कांग्रेस पार्टी पर हमला करते हुए, पीएम मोदी ने मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया और गलत सूचना फैलाई- “कांग्रेस आपकी संपत्ति, यहाँ तक कि आपका सोना भी लूटना चाहती है. आप सभी जानते हैं कि वे इसे किसे देंगे. आप जानते हैं. मैं कांग्रेस की ‘मुस्लिम लीग’ सोच को उजागर करना चाहता हूँ. कांग्रेस के घोषणापत्र ने मुस्लिम लीग के विचार को अपनाया है.”
टीएमसी-कांग्रेस आपका हिस्सा छीनकर अपने वोट बैंक को दे देगी : 26 अप्रैल, 2024 को पश्चिम बंगाल के मालदा में पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि टीएमसी पार्टी बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों को देश में बसाने का काम कर रही है, जबकि कांग्रेस देश के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा मुसलमानों को देना चाहती है- “वे एक बहुत ही खतरनाक कानून लाना चाहते हैं, जिससे आदिवासी महिलाओं के मंगलसूत्र और सोना छीन लिया जाएगा. वे हर नागरिक की संपत्ति छीन लेंगे और उसका एक बड़ा हिस्सा अपने वोट बैंक को दे देंगे. टीएमसी पार्टी बांग्लादेश से घुसपैठियों को देश में लाने की दिशा में काम करती है. वे इन घुसपैठियों को आपकी जमीन पर कब्जा करने देते हैं और अब कांग्रेस आपकी संपत्ति ऐसे घुसपैठियों को देना चाहती है.”
औरंगजेब, मंदिर और कांग्रेस : शहजादे (राहुल गांधी) भारत के राजाओं पर अत्याचार करने का आरोप लगाते हैं, लेकिन नवाबों, निजामों, सुल्तानों और बादशाहों के खिलाफ कभी एक शब्द नहीं बोलते. 27 अप्रैल, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कर्नाटक के बेलगावी में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, “वे (कांग्रेस) औरंगजेब की पार्टियों का साथ देते हैं, जिसने गायों को मारा और मंदिरों को तोड़ा… कांग्रेस आपकी संपत्ति लेगी और इसे अपने ‘वोट बैंक’ में बांट देगी. कांग्रेस के शहजादे (राहुल गांधी) ने भारत के राजाओं पर अत्याचार करने का आरोप लगाया था, लेकिन नवाबों, निजामों, सुल्तानों और बादशाहों के खिलाफ कभी एक शब्द नहीं कहा. कांग्रेस को औरंगजेब द्वारा किए गए अत्याचार याद नहीं हैं, जिसने हमारे हजारों मंदिरों को नष्ट कर दिया था. कांग्रेस उन दलों के साथ राजनीतिक गठबंधन बनाती है, जो औरंगजेब की प्रशंसा करते हैं. वे उन सभी के बारे में बात नहीं करते, जिन्होंने हमारे तीर्थ स्थलों को नष्ट किया, उन्हें लूटा, हमारे लोगों को मारा और गायों को मारा. कांग्रेस के शहजादे ने कांग्रेस पार्टी के वोट बैंक को खुश करने के लिए यह टिप्पणी की.
जब तक जिंदा हूँ, मुसलमानों को आरक्षण नहीं मिलने दूंगा : 30 अप्रैल 2024 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना के मेडक जिले के अल्लादुर्गा में अपने चुनावी भाषण में कहा, “डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान निर्माताओं ने धर्म आधारित कोटा के खिलाफ फैसला किया था और इसे केवल एससी/एसटी/बीसी के लिए बनाया था, लेकिन कांग्रेस पार्टी और उसके ‘राजकुमार’ (राहुल गांधी) अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिए पिछले दरवाजे से मुसलमानों के लिए कोटा लाकर हाशिए पर पड़े वर्गों के अधिकारों को छीनकर भारतीय संविधान को कमजोर कर रहे हैं. “जब तक मैं जीवित हूं, मैं किसी भी कीमत पर एससी/एसटी और बीसी के लिए भारतीय संविधान द्वारा अनिवार्य आरक्षण को मुसलमानों को वितरित नहीं होने दूंगा. मोदी ने राम मंदिर नहीं बनाया, बल्कि आपका वोट बनाया है. आपका वोट हर चीज से ऊपर है, लेकिन कांग्रेस के लिए उनका वोट बैंक सबसे ऊपर है.”
वोट जिहाद! : 2 मई 2024 को गुजरात के आनंद में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सीधे तौर पर ‘लव जिहाद’ और ‘भूमि जिहाद’ के मुस्लिम विरोधी षड्यंत्र सिद्धांतों को बढ़ावा दिया. इसके अलावा, उन्होंने मुस्लिम समुदाय पर ‘वोट जिहाद’ करने का भी आरोप लगाया- “(विपक्षी गठबंधन) मुसलमानों से ‘वोट जिहाद’ करने को कह रहा है. यह नया है, क्योंकि हमने अब तक ‘लव जिहाद’ और ‘भूमि जिहाद’ के बारे में सुना है. मुझे उम्मीद है कि आप सभी जानते होंगे कि जिहाद का क्या मतलब है और यह किसके खिलाफ़ छेड़ा जाता है.”
गोधरा ट्रेन आगजनी का मुद्दा उठाया : 4 मई 2024 को, उत्तर बिहार के दरभंगा में एक चुनावी रैली में, पीएम मोदी ने 2002 के गोधरा ट्रेन आगजनी का मुद्दा उठाया. उन्होंने आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद पर ‘सोनिया मैडम के शासन के दौरान’ 60 से अधिक कारसेवकों को ज़िंदा जलाने के लिए ज़िम्मेदार लोगों को ‘बचाने’ का प्रयास करने का आरोप लगाया. पीएम मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए हुई इस घटना को याद करते हुए, उन्होंने विपक्षी दलों पर हमेशा ‘तुष्टीकरण’ की राजनीति करने का आरोप लगाया- “इसी तुष्टीकरण की राजनीति के कारण बिहार के ‘शहजादा’ (तेजस्वी यादव) के पिता ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड के लिए जिम्मेदार लोगों को बचाने की कोशिश की थी. आखिरकार, यह सोनिया मैडम का शासन था. इंडिया ब्लॉक आरक्षण को मुसलमानों की ओर मोड़ने की कोशिश कर रहा है. वे बाबासाहेब अंबेडकर और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों के खिलाफ जा रहे हैं, जिनमें से कोई भी धार्मिक आधार पर आरक्षण के पक्ष में नहीं था.”
आदिवासी भूमि पर ‘घुसपैठियों’ को जमीन हड़पने की अनुमति दी जा रही है : 4 मई को झारखंड के लोहरदगा में एक चुनावी रैली में बोलते हुए पीएम मोदी ने विपक्षी दलों पर आदिवासी भूमि पर ‘घुसपैठियों’ को बसाने के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया. पीएम मोदी ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण देगी- “घुसपैठियों को यहां बसने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, उन्हें आदिवासियों की जमीन हड़पने की अनुमति दी जा रही है. वे विशेष रूप से महिलाओं को निशाना बनाते हैं. ये लोग ‘भूमि जिहाद’ और ‘लव जिहाद’ करते थे, अब वे ‘वोट जिहाद’ करना चाहते हैं. वे भारत के संविधान के खिलाफ जाकर मुसलमानों को आरक्षण देना चाहते हैं.’
कांग्रेस को राम मंदिर पर ‘बाबरी ताला’ लगाने से रोकने के लिए उन्हें 400 से ज़्यादा सीटों की ज़रूरत : 7 मई को मध्य प्रदेश के खरगोन और धार जिलों और महाराष्ट्र में रैलियों को संबोधित करते हुए, पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को संसद में 400 से ज़्यादा सीटों की ज़रूरत है, ताकि कांग्रेस अयोध्या में राम मंदिर पर ‘बाबरी ताला’ न लगा सके या जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को फिर से लागू न कर सके- “मोदी को 400 सीटों की ज़रूरत है, ताकि कांग्रेस कश्मीर में अनुच्छेद 370 को वापस लाकर परेशानी न खड़ी कर सके. मोदी को 400 सीटों की ज़रूरत है, ताकि कांग्रेस अयोध्या में राम मंदिर पर बाबरी ताला न लगा सके.” उन्होंने आगे कहा, “क्या आपको ‘वोट जिहाद’ स्वीकार्य है? क्या लोकतंत्र में इसकी अनुमति दी जा सकती है? क्या भारत का संविधान इस तरह के जिहाद की अनुमति देता है?”
कांग्रेस पर मुसलमानों के लिए अलग बजट बनाने का आरोप : 15 मई को, महाराष्ट्र के नासिक और कायलान क्षेत्रों में दो अलग-अलग चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए, पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस केंद्रीय बजट को हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग बजट में विभाजित करेगी. उन्होंने यह भी दावा किया कि पिछली सरकार केंद्रीय बजट का 15% केवल मुसलमानों को समर्पित करना चाहती थी और यह उनकी सरकार थी, जिसने उन्हें ऐसा करने से रोका था- “उस समय की कांग्रेस सरकार भारत के पूरे बजट का 15% केवल मुसलमानों पर खर्च करना चाहती थी. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मेरी भूमिका में मेरे कड़े विरोध के बाद उन्हें इस योजना को टालना पड़ा. लेकिन अब वे अपने पिछले एजेंडे को फिर से लागू करने पर आमादा हैं. अगर कांग्रेस चुनी जाती है, तो वह धर्म के आधार पर दो बजट बनाएगी. मैं बजट को ‘हिंदू बजट’ और ‘मुस्लिम बजट’ के रूप में विभाजित नहीं होने दूंगा और धर्म के आधार पर कोटा की अनुमति नहीं दूंगा. पीएम मोदी ने कहा, "उन्हें धर्म के नाम पर राष्ट्र बनाना था और उन्होंने ऐसा किया. कांग्रेस असहाय थी और उसने ऐसा कर दिया. अब आप कहेंगे 'हिंदू बजट', 'मुस्लिम बजट'. क्या इस देश में हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग बजट हो सकता है? आप कल्पना कर सकते हैं कि बजट को इस तरह से विभाजित करने की सोच कितनी खतरनाक है. कांग्रेस के लिए केवल एक अल्पसंख्यक समुदाय है - उसका प्रिय वोट बैंक."
हेट क्राइम
आखिर बच कैसे जाता है खुलेआम हिंसा और नफरत का आह्वान करने वाला टी राजा सिंह!
'ऑल्ट न्यूज' ने भाजपा के हैदराबाद से विधायक टी राजा सिंह के नफरती भाषणों के बरक्स विधायक को मिली कानूनी छूट की पड़ताल की है. भाजपा विधायक टी राजा सिंह हैदराबाद और महाराष्ट्र में कई विवादास्पद और भड़काऊ भाषण देने के लिए चर्चा में हैं. साल 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों से पहले उनके खिलाफ 87 आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें से अधिकतर धार्मिक आधार पर नफरत फैलाने से संबंधित हैं, बावजूद इसके टी राजा सिंह हर बार बच निकलते हैं. मुसलमानों के विरुद्ध कटु भाषण देने के लिए कुख्यात, हैदराबाद के गोशामहल से भारतीय जनता पार्टी के विधायक ने पहले भी समुदाय के खिलाफ हिंसा का आह्वान किया है, उन्हें अमानवीय बताया है, उन पर 'लव जिहाद' और 'भूमि जिहाद' का आरोप लगाया है और हिंदुओं से आग्रह किया है कि वे उनका सामाजिक और आर्थिक रूप से बहिष्कार करें. अपने भाषणों में, वह मुसलमानों को संदर्भित करने के लिए "लव जिहादी कुत्तों," "मुल्ले," "हरामी" और "लंड्या" जैसे शब्दों का उपयोग करता है. वह पुराने हैदराबाद को, जहां एक बड़ी मुस्लिम आबादी है, "मिनी पाकिस्तान" के रूप में भी संदर्भित करता है. उन पर लगाए गए आरोपों में से अधिकतर धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने या जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के लिए थे, जिनका उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को आहत करके मान्यताओं का अपमान करना था. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, विधायक के खिलाफ पिछले साल तक 104 एफआईआर दर्ज थीं. इन सब के बावजूद, सिंह विराम लेने से इनकार करते हैं. पिछले कुछ दिनों में, उन्होंने हैदराबाद में राम नवमी शोभा यात्रा और महाराष्ट्र में दक्षिणपंथी समूहों द्वारा आयोजित विभिन्न अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा देने और हिंसा भड़काने वाली विवादास्पद और भड़काऊ टिप्पणियों की एक शृंखला दी है. अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने और गौ संरक्षण को बढ़ावा देने से लेकर, औरंगजेब के मकबरे को नष्ट करने और शिवाजी विश्वविद्यालय का नाम बदलने का आह्वान करने तक, सिंह के भाषणों ने एक बार फिर हिंसा की महिमा की और इन क्षेत्रों में पहले से ही उबल रहे सांप्रदायिक तनावों को बढ़ावा दिया. इन भाषणों के बावजूद, सिंह पर केवल एक मामला दर्ज किया गया, वह भी राम नवमी शोभा यात्रा की शर्तों के उल्लंघन के लिए, न कि उनके भड़काऊ भाषणों के लिए. न्याय प्रणाली कुछ लोगों के प्रति कितनी नरम है, जबकि अन्य (जैसे उमर खालिद) अब भी जेल में हैं.
भगवा कार्यकर्ताओं ने औरंगजेब का समझ ज़फ़र के भित्ति चित्र को पोता
भगवा कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर चार की दीवार पर लगे मुगल सम्राट बहादुर शाह जफ़र के भित्तिचित्र को औरंगजेब समझकर काले रंग से पोत दिया. उन्होंने इस दौरान मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ विरोध जताया, साथ ही कहा कि वे देश के किसी भी सार्वजनिक स्थान पर ऐसी तस्वीरों को बर्दाश्त नहीं करेंगे. रिपोर्ट्स में कहा गया कि रेलवे सुरक्षा बल और जीआरपी के जवानों ने भगवा कार्यकर्ताओं को रोकने का प्रयास नहीं किया. कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया कि यह भित्ति चित्र अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र का था, औरंगज़ेब का नहीं. ज़फ़र को 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाने वाला माना जाता है. एक साल बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (म्यांमार) के रंगून (अब यांगून) निर्वासित कर दिया था, जहां उनकी मृत्यु हो गई.
"भाजपा को वोट न दिया तो अगले जन्म में भेड़, बकरी, ऊंट, कुत्ते, बिल्ली बनेंगे"
मध्यप्रदेश की पूर्व मंत्री और सत्तारूढ़ भाजपा की विधायक उषा ठाकुर ने कहा है, “भाजपा को ही वोट दें. जो वोट बेचेंगे, वे अगले जन्म में भेड़, बकरी, ऊंट, कुत्ते या बिल्ली बनेंगे.” यह बयान उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के हासलपुर गांव में दिया. वोट बेचने वालों को चेतावनी दी और कहा कि पैसे, शराब या अन्य किसी भी लालच के लिए वोट बेचना लोकतंत्र के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात है. उन्होंने यह भी दावा किया कि उनकी भगवान से सीधी बातचीत होती है और इसलिए उन्हें यह पता है कि जो लोग वोट बेचेंगे, उनका अगला जन्म ऐसे जानवरों के रूप में होगा. कहा कि- “बीजेपी सरकार की कई योजनाओं जैसे लाड़ली बहना योजना और किसान सम्मान निधि के माध्यम से हर लाभार्थी के खाते में हजारों रुपये आते हैं. इसके बावजूद अगर वोट 1,000-500 रुपये में बिकते हैं, तो यह इंसानियत के लिए शर्म की बात है.” इस बयान में उन्होंने मतदाताओं से अपील की कि वे अपने वोट और ईमान को न बेचें और भाजपा को ही वोट दें, क्योंकि भाजपा देश, धर्म और संस्कृति की सेवा करती है.
दलितों को मक़ान पीएम आवास योजना का, जगह खाली करने का नोटिस हापुड़ नगर निगम का
पिछली दिवाली के लिए लगाए गए प्लास्टिक के झालर अब भी घरों के बाहर लटके हुए हैं. एक पुराने से सफेद रंग की दीवार पर लिखा है - "प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)", फिर लाभार्थी का नाम “गंगाराम” और पता. दो कमरे के इस घर के गलियारे में डॉ. भीमराव अंबेडकर की नीले सूट में तस्वीर लगी है. 'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि 9 अप्रैल को, 58 वर्षीय गंगाराम, जो यूपी के हापुड़ ज़िले के गढ़मुक्तेश्वर में टॉफी और चिप्स की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं, को नगर परिषद की ओर से एक नोटिस मिला, जिसमें कहा गया कि उनका कब्ज़ा “अवैध” है. इसी तरह के नोटिस इंद्रा नगर की 40 अन्य परिवारों को भी मिले, जो 1986 से यहां रह रहे हैं. यहां कुल 41 घर हैं, जिनमें से 40 घर 2019 से प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत बने हैं. 8 अप्रैल को जारी नोटिस में कहा गया है कि यह ज़मीन सरकार की है और यहां कभी एक तालाब था. नोटिस में लिखा है - “आपने नगर पालिका की भूमि पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर मकान बना लिया है और उसे हटाना नहीं चाहते, इसलिए आपके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना आवश्यक हो गया है. नोटिस प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर अपना कब्ज़ा हटा लें, अन्यथा कार्यवाही के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे.” स्थानीय निवासी बताते हैं कि यह नोटिस हैरान करने वाला है. गंगाराम के पड़ोसी 70 वर्षीय प्रकाश नोटिस के उस भाग की ओर इशारा करते हैं, जो गढ़मुक्तेश्वर नगर परिषद के कार्यपालक अधिकारी मुक्ता सिंह की ओर से एक वकील ने जारी किया है - “नगर पालिका अधिकारियों ने आपको मौखिक रूप से कई बार भूमि खाली करने को कहा है, लेकिन आप ‘अपनी हेठी के बल पर’ कहते हैं कि यह ज़मीन आपको रिकॉर्ड में मिली है. जबकि इस ज़मीन पर कोई आवासीय प्लॉट दर्ज नहीं है, और यदि कोई रिकॉर्ड बना भी हो तो उसे निरस्त कर दिया गया है.”
जब हापुड़ ज़िला प्रशासन से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि मामले की जांच की जा रही है. ज़िलाधिकारी प्रेरणा शर्मा ने कहा - “हमें यह मामला मंगलवार को जानकारी में आया. अगर लोगों के दावे सही हैं, तो हम इसकी जांच करेंगे. पीएमएवाई के अंतर्गत हम केवल यह देखते हैं कि दस्तावेज़ के अनुसार व्यक्ति मालिक है या नहीं. दस्तावेज़ों की वैधता हम नहीं जांचते.”
योजना के लाभार्थी गंगाराम कहते हैं - “मैं तो केवल चौथी कक्षा तक पढ़ा हूं, अपना नाम पढ़ सकता हूं. कॉलोनी के लोगों ने समझाया कि हमें घर खाली करना है. अधिकारी कह रहे थे कि कॉलोनी अवैध है. उन्होंने कहा कि कोर्ट में याचिका दायर करो. हम तो गरीब हैं, सिर्फ शिकायत कर सकते हैं. मुझे पीएमएवाई के तहत तीन किश्तों में पैसा मिला. पहली बार ₹1 लाख, फिर ₹50,000-₹50,000. मैंने अपनी जमा की हुई ₹1.5 लाख भी लगाई घर पूरा करने में.”
स्थानीय लोग बताते हैं कि वे गढ़मुक्तेश्वर के चुपला से विस्थापित होकर यहां आए थे, जब यह क्षेत्र गाज़ियाबाद ज़िले में था. उनके पास 18 जुलाई 1986 का एक नोटिस भी है, जिसमें लिखा है - “पुनर्वास के उद्देश्य से सामूहिक आवेदन को ध्यान में रखते हुए, आपको 100 गज भूमि दी जाती है ताकि समस्या का समाधान हो सके. इस ज़मीन को बेचना और हस्तांतरण करना प्रतिबंधित होगा.'
आंध्र सरकार ने एससी-एसटी को उपवर्गीकृत किया : चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने गुरुवार को अध्यादेश जारी कर आंध्र प्रदेश की 59 अनुसूचित जातियों को आरक्षण के लिए तीन समूहों में उप-वर्गीकृत किया. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फैसला सुनाया था कि राज्यों को कोटा के लिए एससी और एसटी समुदायों को उप-वर्गीकृत करने का अधिकार है.
धनखड़ पर सिब्बल : किसी राज्यसभा सभापति को “प्रवक्ता” जैसे राजनीतिक बयान देते नहीं देखा
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने शुक्रवार (18 अप्रैल 2025) को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की आलोचना की, जिन्होंने राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने की समय सीमा को लेकर न्यायपालिका पर सवाल उठाए थे. सिब्बल ने इसे "असंवैधानिक" बताया और कहा कि उन्होंने कभी किसी राज्यसभा के सभापति (भाजपा के भी) को इस प्रकार के "राजनीतिक बयान" देते नहीं देखा. उन्होंने कहा कि लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा अध्यक्ष दोनों ही विपक्ष और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच समान दूरी बनाए रखते हैं और किसी भी पार्टी के “प्रवक्ता” नहीं हो सकते. सिब्बल ने कहा कि न्यायपालिका पर इस तरह से हमला करना उचित नहीं है, क्योंकि न्यायपालिका स्वतंत्र लोकतंत्र की बुनियाद है.
“यह सभी जानते हैं कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी बीच में होती है. वह सदन का अध्यक्ष होता है, किसी एक पार्टी का नहीं. वह मतदान नहीं करते, केवल तब वोट करते हैं जब वोट बराबर हो जाता है. यही स्थिति उच्च सदन की भी होती है. आप विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी के बीच समान दूरी पर होते हैं.”
सिब्बल ने सदन के अध्यक्ष के अलावा दो मंत्रियों अर्जुन राम मेघवाल और किरेन रिजिजू का भी जिक्र करते हुए कहा कि न्यायपालिका पर कार्यपालिका द्वारा इस प्रकार हमला नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि न्यायपालिका अपनी रक्षा नहीं कर सकती. तब राजनीति को न्यायपालिका की रक्षा करनी चाहिए. न्यायपालिका की स्वतंत्रता देश में लोकतंत्र के लिए मौलिक है. जो किया जा रहा है वह असंवैधानिक है.
सिब्बल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जब सरकार के लोग न्यायपालिका के निर्णयों को पसंद नहीं करते हैं, तो वे यह आरोप लगाना शुरू कर देते हैं कि यह (न्यायपालिका) अपनी सीमा से बाहर चली गई है. जब उन्हें यह पसंद आता है और विपक्ष कुछ कहता है, तो वे कहते हैं कि यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है. जब कोई अनुच्छेद 370 या राम जन्मभूमि के फैसले पर सवाल उठाता है, तो सरकार के लोग यह बताते हैं कि यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. "जब (न्यायमूर्ति जे.बी.) पारदीवाला का फैसला आया तो कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा कैसे कह सकता है? वह फैसला जो आपको पसंद नहीं है वह गलत है और जो आपकी सोच के अनुसार है, वह ठीक है. एक संवैधानिक अधिकारी के लिए ऐसी बात कहना सही नहीं है," उन्होंने धनखड़ के बयान का संदर्भ देते हुए कहा.
सिब्बल ने कहा, “मैं उनकी (उपराष्ट्रपति धनखड़) बहुत इज्जत करता हूँ, लेकिन आपने कहा कि अनुच्छेद 142 परमाणु मिसाइल की तरह है, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को शक्तियां देता है और यह सरकार द्वारा नहीं, संविधान द्वारा दी गई है, ताकि पूर्ण न्याय किया जा सके.”
सिब्बल ने यह भी बताया कि भारत के राष्ट्रपति केवल एक सांकेतिक प्रमुख हैं और वे मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करते हैं. उन्होंने कहा, "राज्य में राज्यपाल भी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करता है. जब कोई विधेयक पारित होता है तो वह राज्यपाल के पास जाता है, राज्यपाल टिप्पणी कर वापस भेज सकता है, लेकिन यदि विधेयक पुनः पारित हो जाता है तो राज्यपाल को संविधान के अनुसार स्वीकृति देनी होती है. राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है. राष्ट्रपति भी मंत्रियों की सहायता और सलाह पर कार्य करता है, इसलिए राष्ट्रपति के पास व्यक्तिगत शक्तियां नहीं हैं.
धनखड़ ने सवाल उठाया था कि राष्ट्रपति की शक्तियों को कैसे सीमित किया जा सकता है, जिस पर सिब्बल ने पूछा कि कौन राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित कर रहा है? उन्होंने यह भी कहा कि क्या कोई राज्यपाल दो साल तक किसी महत्वपूर्ण विधेयक पर बैठ सकता है, यह विधायिका की सर्वोच्चता में हस्तक्षेप है.
सिब्बल ने कहा कि यदि किसी निर्णय से समस्या हो तो पुनर्विचार के लिए कहें और यदि फिर भी समस्या हो तो सुप्रीम कोर्ट से सलाह लें. उन्होंने (धनखड़ ने) 1984 के सिख दंगों के बारे में बात की लेकिन 2002 (जब गुजरात दंगे हुए और नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे) के बारे में नहीं कहा. आपने (धनखड़) आपातकाल के बारे में तो बात की, लेकिन जो 2014 के बाद अघोषित आपातकाल चल रहा है, उसके बारे में नहीं कहा, आपने संस्थानों के कब्जे के बारे में भी बात नहीं की?
सिब्बल ने यह भी कहा कि यदि कार्यपालिका अपना काम नहीं करती तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है. “हमने दिसंबर में हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था; इस पर 50 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर थे. अब अप्रैल है, और यह पता लगाने में पांच महीने लग गए कि वे हस्ताक्षर असली हैं या नहीं? तो और कितने महीने लगेंगे?,” सिब्बल ने तंज़ किया. "अगर आप इस मामले को शीघ्रता से नहीं सुलझाते हैं, तो हमारा तर्क होगा कि हम कुछ भी नहीं कर सकते. अगर राज्यपाल बिलों को मंजूरी नहीं देते हैं, तो न्यायपालिका कुछ भी नहीं कर सकती," उन्होंने कहा. अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति देता है कि वह किसी भी मामले में "पूर्ण न्याय" सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश या निर्णय पास कर सके. “यह संविधान द्वारा प्रदत्त शक्ति है, न कि सरकार द्वारा,” कांग्रेस के पूर्व नेता ने कहा.
पीएम मोदी को गुजरात के सीएम की याद दिलाई
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने 18 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में केंद्र सरकार से धन मांगने के संबंध में उनके बयानों की याद दिलाई. उन्होंने यह भी पूछा कि क्या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह गारंटी दे सकते हैं कि परिसीमन तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व कम नहीं करेगा, राज्य को नीट के दायरे से छूट दी जाएगी और यह कि हिंदी थोपी नहीं जाएगी. तिरुवल्लूर जिले के पोन्नेरी में एक सरकारी समारोह के दौरान, स्टालिन ने रामेश्वरम की मोदी की हालिया यात्रा के दौरान की गई टिप्पणियों को याद किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि तमिलनाडु में लोग धन के लिए "रो रहे हैं". स्टालिन ने कहा - "उन्होंने क्या कहा? कितना भी दिया जाए, यहां के लोग रो रहे हैं. वे कह रहे हैं कि वे जितना भी देते हैं, हम रो रहे हैं. पूरी विनम्रता और सम्मान के साथ, मैं प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहता हूं, यह आप [मोदी] ही थे जिन्होंने कहा था कि राज्य केंद्र सरकार से धन के लिए हाथ फैलाने वाले भिखारी नहीं हैं. मैं केवल आपको याद दिला रहा हूं." मोदी के और बयानों को याद करते हुए, स्टालिन ने कहा - "आपने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए क्या कहा था? कि वे राज्यपालों के माध्यम से एक समानांतर सरकार चला रहे थे? तब किसने यह कहा था? मोदी ने यह तब कहा था, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार राज्यों को धन आवंटित करने में पक्षपातपूर्ण थी [जो केंद्र सरकार के विपक्ष में थीं]."
केंद्र सरकार से धन की तमिलनाडु की मांगों को बताते हुए, स्टालिन ने कहा - "जब हम वही मांगते हैं, तो यह कहना कैसे उचित है कि हम धन के लिए रो रहे हैं? मेरी मांग रोना नहीं, बल्कि तमिलनाडु का अधिकार है. मैं न तो रोने वाला हूं और न ही किसी के पैरों में रेंगने और गिरने वाला. आइए अपने रिश्तों के लिए हाथ बढ़ाएं और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं. किसने हमें यह सिखाया? वह हमारे नेता कलाइज्ञर [करुणानिधि] थे. मैं उनके पदचिह्नों पर चल रहा हूं." मुख्यमंत्री ने तिरुवल्लूर जिले में कुल 1,166 करोड़ रुपये की लागत से पूरी की गई 6,700 से अधिक परियोजनाओं का उद्घाटन किया. उन्होंने 7,300 से अधिक नई परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी और 2.02 लाख से अधिक लाभार्थियों को कल्याणकारी उपायों का वितरण शुरू किया.
महाराष्ट्र : हिरासत में मौतों को ‘सामान्य’ बनाने में लगी सरकार
“द वायर” में सुकन्या शांता की रिपोर्ट है कि महाराष्ट्र की सरकार पुलिस हिरासत में मौतों को रोकने की बजाय अपनी मुआवजा नीति के जरिए उनको “सामान्य” बनाने में लगी है. महाराष्ट्र की नीति में हिरासत में मौतों के लिए मुआवजे का प्रावधान है, लेकिन इसमें अधिकारियों की जवाबदेही का अभाव है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस सप्ताह कैबिनेट बैठक में घोषणा की कि महाराष्ट्र में हिरासत में 'अप्राकृतिक' मौतों के लिए मृतक के परिजनों को 5 लाख रुपये और हिरासत में आत्महत्या के लिए 1 लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा. इस नीति में जेल अधिकारियों द्वारा दी जाने वाली शारीरिक चोटों, चिकित्सा लापरवाही, कैदियों के बीच झगड़े और दुर्घटनाओं को भी अप्राकृतिक मौतों में शामिल किया गया है. अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने का प्रावधान नहीं है, जो कि एक महत्वपूर्ण कमी है. कैदियों के अधिकारों के विशेषज्ञ मुरली कर्णम ने इस नीति को इस तरह देखा है कि मानो राज्य कह रहा हो कि "मौतें होती रहेंगी, और चूंकि उन्हें रोका नहीं जा सकता, इसलिए मुआवजा दिया जाएगा.” इस नीति के तहत, जेल अधीक्षक को प्रारंभिक जांच रिपोर्ट, पोस्टमार्टम, मेडिकल रिकॉर्ड आदि प्रस्तुत करना होगा, और बाद में उच्च अधिकारियों की सिफारिश के बाद मुआवजा दिया जाएगा. साथ ही, अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान भी है, लेकिन इसके प्रभावी क्रियान्वयन पर सवाल बने हुए हैं.
राज ठाकरे और कांग्रेस के एक सुर ; “हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं”
महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के फैसले का विरोध करने वालों में राज ठाकरे और कांग्रेस शामिल हैं. राज ठाकरे ने कहा है कि "हम हिंदू हैं लेकिन हिंदी नहीं" और हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं है. अगर महाराष्ट्र को हिंदीकरण की परत से ढकने की कोशिश की गई तो महाराष्ट्र में संघर्ष होना तय है.” उन्होंने इस फैसले को महाराष्ट्र में मराठी और गैर-मराठी के बीच मतभेद पैदा करने की साजिश बताया है. कांग्रेस ने भी इस कदम को मराठी पहचान के खिलाफ और संघीय व्यवस्था के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया है. इस प्रकार, महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने के फैसले को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीव्र विवाद उत्पन्न हो गया है, जिसमें मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है.
तेजस्वी को समन्वय समिति का नेतृत्व : बिहार में महागठबंधन ने विधानसभा चुनावों से पहले समन्वय समिति बनाई है, जिसका नेतृत्व तेजस्वी यादव करेंगे, हालांकि इस गठबंधन ने मुख्यमंत्री पद के लिए अभी कोई चेहरा घोषित नहीं किया है.
टीसीएस पर भेदभाव के आरोप: अमेरिका की इक्वल एम्प्लॉयमेंट ऑपरच्यूनिटी कमीशन (ईईओसी) टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) पर लगे आरोपों की जाँच कर रही है. दर्जनों अमेरिकी नागरिकों ने शिकायत की है कि टीसीएस ने उनके साथ संरक्षित आधारों (जैसे नस्ल, उम्र) पर भेदभाव किया. अधिकांश शिकायतकर्ता गैर-दक्षिण एशियाई मूल के और 40 वर्ष से अधिक आयु के हैं, जिनका कहना है कि टीसीएस ने उन्हें नौकरी से हटा दिया, जबकि उनके भारतीय सहयोगियों को बनाए रखा. ये शिकायतें 2023 के अंत से दर्ज की जाने लगीं. ईईओसी की ट्रम्प-नियुक्त कार्यवाहक अध्यक्षा ने अमेरिकी कर्मचारियों के खिलाफ भेदभाव की जाँच बढ़ाने का वादा किया है. हाल ही में, ब्रिटेन में टीसीएस के पूर्व कर्मचारियों ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे.
प्रोफेसर अपूर्वानंद को अकादमिक कार्यक्रम में जाने से रोका, कुणाल कामरा ने कहा - 'यही तो सेंसरशिप है'
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अपूर्वानंद को एक शैक्षणिक विजिट के लिए विदेश जाने की अनुमति न देने के सरकार के फैसले की खासी किरकिरी हो रही है. कॉमेडियन कुणाल कामरा ने भी प्रोफेसर अपूर्वानंद के साथ अपने नए पॉडकास्ट शो 'नोप : नॉट योर ऑर्डिनरी पॉडकास्ट फॉर एंटरटेनमेंट' में हुई बातचीत का वीडियो शेयर कर एक्स पर लिखा है - 'दो दिन पहले मैंने प्रोफेसर अपूर्वानंद के साथ एक पॉडकास्ट जारी किया था, जिसमें भारतीय विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक स्वतंत्रता की दयनीय स्थिति पर चर्चा की गई थी. आज सुबह उठते ही सुनने को मिला कि उन्हें अमेरिका में एक अकादमिक कार्यक्रम में बोलने के लिए छुट्टी देने से इनकार कर दिया गया है. यही तो सेंसरशिप है, जिसके बारे में हमने बातचीत की थी.' कुणाल ने बातचीत का वीडियो अपने ‘एक्स’ हैंडल पर पिन किया है. कुणाल कामरा ने अपने शो के दौरान प्रोफेसर से एक दिलचस्प सवाल पूछा, आजकल मां-बाप क्लासरूम के बाहर बच्चों को रखने में या सीखने देने में बिल्कुल भी इंटरेस्टेड नहीं हैं. अब तो लोग अपने बच्चों को ओपनली बोलना शुरू कर देते हैं कि पॉलिटिक्स में तो बिल्कुल मत पड़ना- ऐसा क्यो हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए प्रोफेसर अपूर्वानंद ने बताया कि मां-बाप अब डरने लगे हैं. ये हमारे दौर में नहीं था. तब छात्र मार भी खाते थे, जेल भी जाते थे, लेकिन उस वक्त यूनिवर्सिटी मां-बाप को धमकी नहीं देते थे. ये अब पिछले आठ-दस साल से हमने देखा है कि यूनिवर्सिटी छात्रों को बालिग की तरह नहीं देखती, बल्कि माइनर की तरह देखती है. वो अभिभावको को फोन कर धमकाते हैं कि 50 हजार का जुर्माना कर देंगे. इससे अभिभावक घबरा जाते हैं. गरीब अभिभावक बड़ी मुश्किल से अपने बच्चों को यूनिवर्सिटी में दाखिला करवाते हैं. इस वजह से मां-बाप घबराते हैं और अपने बच्चों को राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने को कहते हैं. उन्होंने सीएए का उदाहरण देकर कहा कि ये आंदोलन छात्रों ने सबसे पहले शुरू किया, लेकिन उसके बाद पुलिस ने मां-बाप का नंबर लेकर उनको डराया, बच्चों को गिरफ्तार कर धमकाया गया. जामिया के करीब 700-800 बच्चों को गिरफ्तार किया गया. मां बाप को चिट्ठियां लिखी गई.
प्रोफेसर अर्पूवानंद ने कहा कि मां-बाप का डरना स्वाभाविक है, लेकिन ये एक फौरी चीज है. हमारा मीडिया सही बात नहीं बता रहा कि आपके बच्चे जिस कैंपस में गए हैं, उसका सारा कुछ राजनीति तय कर रही है. उन्होंने कहा कि प्राइवेट यूनिवर्सिटी के कोर्स मजबूत हुए हैं ओर दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे सरकारी यूनिवर्सिटी के कोर्स खराब हुए हैं. बच्चे ये सब यूनिवर्सिटी में आकर जान जाते हैं और वो राजनीति में प्रवेश करते हैं.
गौरतलब है कि प्रोफेसर अपूर्वानंद को न्यूयॉर्क की यूनिवर्सिटी 'द न्यू स्कूल' में एक अकादमिक कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई. विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपूर्वानंद से उनके व्याख्यान का पाठ मांगा, जिसे देने से उन्होंने इनकार कर दिया. इसके बाद डीयू ने उन्हें यात्रा की अनुमति नहीं दी. अपूर्वानंद ने 23 अप्रैल से 1 मई तक आयोजित इंडिया चाइना इंस्टीट्यूट की 20वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए छुट्टी की अर्जी दी थी. 'हरकारा' के 18 अप्रैल के अंक में हमने इस मसले पर विस्तार से रिपोर्ट की है. यहां देखिए कुणाल कामरा के शो के दूसरे एपिसोड 'शिक्षा, साहित्य और सरकार' पर प्रोफेसर अपूर्वानंद और कुणाल कामरा के बीच हुई पूरी गुफ्तगू..
ऐप बचाता हाथियों के रास्ते में आने से
छत्तीसगढ़ के सूखे जंगलों में, हाथियों और इंसानों के बीच बढ़ते टकराव को रोकने के लिए एक ऐप अलर्ट सिस्टम नई उम्मीद बनकर उभरा है. संसदीय आंकड़ों के अनुसार, 2023-2024 में भारत में 629 लोग हाथियों के हमलों में मारे गए, जिनमें से 15% मौतें छत्तीसगढ़ में दर्ज की गईं, हालांकि यहां देश के सिर्फ 1% जंगली हाथी रहते हैं.
इस चुनौती से निपटने के लिए, राज्य वन विभाग ने कल्पवैग कंपनी द्वारा विकसित एक मोबाइल ऐप के साथ ट्रैकर्स की टीम तैनात की है. "हाथी मित्र" कहलाने वाले ये ट्रैकर्स हाथियों के पैरों के निशान, मल, या आवाज़ों को ट्रैक कर ऐप में डेटा डालते हैं, जिससे 5 किमी के दायरे में ग्रामीणों को एसएमएस, कॉल और लाउडस्पीकर के जरिए चेतावनी भेजी जाती है. उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में इस सिस्टम के लागू होने के बाद, हाथी से होने वाली मौतें 2022 के 5 से घटकर 2023 से अब तक सिर्फ 1 रह गई हैं.
हालांकि, संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ. 2022 में चावल किसान लक्ष्मीबाई गोंड की हाथी ने उनके खेत में हत्या कर दी थी. उनके बेटे मोहन सिंह ने बताया, "वह अचानक हमले में फंस गईं." ग्रामीणों का कहना है कि चेतावनियों ने जान बचाई है, लेकिन हाथियों द्वारा फसलों को नुकसान और जंगलों तक पहुंच सीमित होने से आजीविका प्रभावित हुई है.
वन अधिकारी वरुण जैन के अनुसार, "ऐप ट्रैकिंग का सबसे प्रभावी तरीका है. रेडियो कॉलर हटा दिए जाते हैं, लेकिन यह सिस्टम अकेले नर हाथियों (उत्तेजित अवस्था में) के खतरे को भी कम करता है." विभाग अब हाथियों के प्राकृतिक आवास को बेहतर बनाने पर भी काम कर रहा है, ताकि वे गांवों की ओर न जाएं.
मोदी की नीले मकाउ संग तस्वीर पर विवाद
इस साल 3 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के जामनगर स्थित वंतारा (ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर) गए थे. वहां उन्होंने कई जानवरों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं, जिनमें ब्राजील का दुर्लभ नीले रंग का तोता 'स्पिक्स मकाउ' भी शामिल था. यह प्रजाति जंगल से विलुप्त हो चुकी है और केवल कैद में या प्रजनन केंद्रों में ही मौजूद है, सिवाय 2022 में जंगल में छोड़े गए कुछ पक्षियों के. द वायर ने इस पर विस्तार से रिपोर्ट की है.
मोदी की तस्वीर के बाद विवाद खड़ा हो गया. ब्राजील सरकार, जो अपने स्पिक्स मकाउ पुनर्वास कार्यक्रम के लिए इन पक्षियों की वापसी चाहती है, ने कहा कि उसे जर्मनी के एक प्रजनन केंद्र से भारत (वंतारा) में इन पक्षियों के ट्रांसफर की जानकारी नहीं थी और न ही उसने इसकी अनुमति दी थी. ब्राजील ने नवंबर 2023 और फरवरी 2024 में वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन की बैठकों में भी यह मुद्दा उठाया था.
रिपोर्ट्स के अनुसार, वंतारा ने 2023 में जर्मनी के एसीटीपी से 26 स्पिक्स मकाउ प्राप्त किए थे. ब्राजील का आरोप है कि यह ट्रांसफर उसकी सहमति के बिना हुआ और इसमें पैसों का लेन-देन भी हो सकता है, हालांकि एसीटीपी और वंतारा इससे इनकार करते हैं. ब्राजील का कहना है कि एसीटीपी या वंतारा उसके आधिकारिक स्पिक्स मकाउ प्रबंधन कार्यक्रम का हिस्सा नहीं हैं. इस घटना ने सार्वजनिक हस्तियों द्वारा विदेशी वन्यजीवों के साथ तस्वीरें खिंचवाने के खतरों पर भी ध्यान खींचा है. शोध बताते हैं कि इससे विदेशी पालतू जानवरों की लोकप्रियता बढ़ सकती है और अवैध वन्यजीव व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है. वंतारा ने इन आरोपों को निराधार बताया है.
रूस से जंग रुकवाने पर अमेरिका की अगर-मगर
रूसी जंग को जिस धूम धड़ाके से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने एक दिन, एक हफ्ते, कुछ ही हफ्तों में रुकवाने की बात की थी, अब अपनी बात से पलट रहा है. अब अमेरिका जंग रुकवाने की कोशिश से पीछे हटने की बात कह रहा है. दिलचस्प ये है कि ये बयान उस दिन आये हैं, जब अमेरिका ने यूक्रेन के साथ दुर्लभ खनिज संपदा को लेकर समझौता किया. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने चेतावनी दी है कि यदि रूस-यूक्रेन शांति वार्ता में जल्द कोई ठोस प्रगति नहीं होती है, तो अमेरिका कुछ ही दिनों में इस प्रयास से पीछे हट जाएगा. उन्होंने कहा कि अमेरिका "हफ्तों और महीनों तक इस प्रयास को जारी नहीं रखेगा" क्योंकि उसके पास "ध्यान केंद्रित करने के लिए अन्य प्राथमिकताएं" हैं. पेरिस में यूरोपीय नेताओं के साथ संभावित संघर्ष विराम पर बैठक के बाद रूबियो ने शुक्रवार को कहा, "हमें अब बहुत जल्दी यह निर्धारित करने की आवश्यकता है - और मैं कुछ दिनों की बात कर रहा हूं - कि यह (समझौता) संभव है या नहीं." उन्होंने कहा, "अगर यह नहीं होने वाला है, तो हम बस आगे बढ़ जाएंगे."
इस बीच, यूक्रेन पर रूसी हमले जारी हैं, राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने शुक्रवार को मिसाइल हमलों में दो लोगों के मारे जाने की सूचना दी.
खनिज समझौते का उद्देश्य यूक्रेन के पुनर्निर्माण के लिए एक निवेश कोष स्थापित करना है, जिसे 26 अप्रैल तक अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है. हालांकि विवरण अस्पष्ट हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि इसमें ऊर्जा अवसंरचना भी शामिल हो सकती है. यूक्रेन इस फंड को अमेरिकी सैन्य सहायता की अदायगी से जोड़ने का विरोध करता रहा है. यूक्रेन इस समझौते के माध्यम से अमेरिकी सुरक्षा गारंटी की उम्मीद कर रहा है, लेकिन अमेरिका अब तक इससे बचता रहा है.
अब पाकिस्तान के मिनरल्स पर अमेरिका की नजर
'फॉरेन पॉलिसी' के लिए माइकल कुगलमैन की रिपोर्ट है कि ट्रम्प प्रशासन ने पाकिस्तान के विशाल खनिज भंडारों के दोहन करने में रुचि दिखाई है, जो एक ऐसे "नए आकर्षण बिंदु" में बदल सकता है. ये 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से एक मज़बूत साझेदारी के लिए आधार खोजने के लिए जूझते आ रहे रिश्ते को नई दिशा दे सकता है. इस रुचि का महत्व उस इस्लामाबाद के लिए भी है जिसे ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र में निवेश सुनिश्चित करने में कठिनाइयां रही हैं. हालांकि, सुरक्षा संबंधी ख़तरों को इस रुचि को निवेश में बदलने की राह में सबसे बड़ी बाधा माना जा रहा है. पिछले साल पाकिस्तान में हुए अधिकांश आतंकवादी हमले बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में हुए, जो देश के अधिकांश खनिज संसाधनों का केंद्र हैं. कुगलमैन याद दिलाते हैं कि बलूचिस्तान में संसाधनों के शोषण को लेकर लोगों में पहले से ही नाराज़गी है.
पाकिस्तान में अमेरिका के खिलाफ प्रदर्शन, केएफसी पर अटैक
पाकिस्तान में हाल के हफ्तों में अमेरिका के खिलाफ प्रदर्शन की 10 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं और इस दौरान पड़ोसी मुल्क के प्रमुख शहरों में ‘केएफसी’ के आउटलेट्स को नुकसान पहुंचाया गया है. पुलिस ने कम से कम 178 लोगों को गिरफ्तार किया है. यह विरोध अमेरिका के खिलाफ भावना और गाजा में उसके विनाशकारी सैन्य अभियान के बीच इजरायल के समर्थन के खिलाफ है. रिपोर्ट में अरिबा शाहिद और मुबाशिर बुखारी ने यह भी बताया कि केएफसी को विशेष रूप से लंबे समय से अमेरिका का प्रतीक माना जाता रहा है और पिछले दशकों में यह अमेरिकी विरोधी भावना का मुख्य निशाना रहा है.
चलते-चलते
‘अगर मैं मरूं, तो मेरी मौत गूंजती हुई होनी चाहिए’
'द गार्डियन' की खबर है कि ग़ाज़ा में रहने वाली युवा फोटो पत्रकार फ़ातिमा हस्सूना जानती थीं कि मौत हर रोज़ उनके दरवाज़े पर दस्तक दे रही है. पिछले 18 महीनों से वे युद्ध, हवाई हमलों, अपने घर के ध्वस्त होने, बार-बार विस्थापन और 11 परिजनों की हत्या को दस्तावेज़ के रूप में दर्ज कर चुकी थीं. उनकी एक ही मांग थी और वो ये कि जब मौत आए, तो वह खामोशी से न आए. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था- “अगर मैं मरूं, तो मेरी मौत गूंजती हुई होनी चाहिए. मैं नहीं चाहती कि मेरी मौत बस एक ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर रह जाए, या आंकड़ों में एक संख्या बन जाऊं. मैं चाहती हूं कि मेरी मौत ऐसी हो, जिसे दुनिया सुने, एक असर छोड़े जो समय के पार बना रहे और एक ऐसी तस्वीर बन जाए जो कभी दफन न हो सके.” बुधवार को, अपनी शादी के कुछ ही दिन पहले, 25 वर्षीय फ़ातिमा हस्सूना एक इज़राइली हवाई हमले में मारी गईं. हमला उत्तरी ग़ाज़ा स्थित उनके घर पर हुआ. उनके साथ उनके परिवार के 10 सदस्य, जिनमें उनकी गर्भवती बहन भी शामिल थीं, मारे गए. इज़राइली सेना ने बयान में कहा कि यह एक लक्षित हमला था जो एक ऐसे हमास सदस्य पर किया गया था जो इज़राइली सैनिकों और नागरिकों पर हमलों में शामिल था.
एक फिल्म, जो अब विरासत बन गई : फ़ातिमा की मौत के महज 24 घंटे पहले घोषणा की गई थी कि उन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म फ्रांस में कान फिल्म फेस्टिवल के समांतर चलने वाले एक स्वतंत्र फिल्म महोत्सव में दिखाई जाएगी. इस फिल्म का नाम है "Put Your Soul on Your Hand and Walk", जिसे ईरानी निर्देशक सेपीदेह फारसी ने बनाया है. फिल्म में ग़ाज़ा में युद्ध की त्रासदी और फ़ातिमा के जीवन को उनकी और फारसी के बीच हुई वीडियो बातचीतों के ज़रिये दिखाया गया है. फारसी ने कहा- “वह मेरी आंखें बन गई थीं ग़ाज़ा में. जीवन से भरी हुई, तेज़, मज़बूत. मैंने उसके हंसी, आंसू, उम्मीदें और उदासी सब कुछ कैमरे में कैद किया. मैं उससे कुछ घंटे पहले ही बात कर रही थी, उसे बताया था कि फिल्म कॉन में है और उसे न्यौता दिया था. वह एक रोशनी थी, बेहद प्रतिभाशाली.”
एक आख़िरी कविता : फ़िलीस्तीनी कवि हैदर अल-ग़ज़ाली ने बताया कि फ़ातिमा ने मरने से पहले उनसे एक कविता लिखने को कहा था. कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह थीं - “आज की धूप हानिकारक नहीं होगी. गमलों में पौधे खुद को सजाकर एक कोमल मेहमान का स्वागत करेंगे. आज की धूप इतनी तेज़ होगी कि मांएं जल्दी कपड़े सुखा सकें, और इतनी नरम कि बच्चे पूरे दिन खेल सकें. आज की धूप किसी को नहीं जलाएगी.”
पाठकों से अपील
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