19/05/2025 : बड़े लश्कर नेता की हत्या | प्रोफेसर गिरफ्तार, मंत्री अभी तक रिहा | गुजरात में मनरेगा घपला | चीन और अमेरिका अब महाशक्तियां | दवा सिर्फ वज़न की नहीं | पोलिश सैलानी का हिमाचल टूरिज्म
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
मुंबई पंहुचने पर प्रोटोकॉल की चूक से सीजेआई गवई नाराज़, संविधान को सुप्रीम बताया
जस्टिस बेला त्रिवेदी की विदाई सभा में सिब्बल ने यूएपीए सुनवाई और सहानुभूति की याद दिलाई
राष्ट्रपति के 14 सवाल : स्टालिन हारने को तैयार नहीं
पीएसएलवी-सी61 में गड़बड़ी की समीक्षा
जासूसी की आरोपी ज्योति के बचाव में पिता ने कहा, ‘पाकिस्तान में बेटी के दोस्त नहीं हो सकते?’
चीनी हथियारों ने न सिर्फ पाक को मजबूती दी, बल्कि अमेरिका और समर्थकों को चौंका भी दिया
अमेरिका में भारत के आम ‘रिजेक्ट’
पाकिस्तान भी भेजेगा डेलिगेशन
वे आईं तो वज़न घटाने थीं, पर फायदे उनके और भी
लश्कर ए तैयबा मास्टरमाइंड रजाउल्लाह निजामानी की सिंध में घर से निकलते ही गोली मारकर हत्या
पीटीआई के मुताबिक लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी रजाउल्लाह निजामानी खालिद उर्फ अबू सैफुल्लाह खालिद, जो 2006 में आरएसएस मुख्यालय पर हमले का मास्टरमाइंड था, रविवार को पाकिस्तान के सिंध प्रांत में तीन अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा मार दिया गया, यहाँ के अधिकारियों ने बताया. खालिद 2000 के दशक की शुरुआत में नेपाल से लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के आतंकी ऑपरेशन चलाता था और उसके कई उपनाम थे, जिनमें विनोद कुमार, मोहम्मद सलीम और रजाउल्लाह शामिल थे. अधिकारियों ने बताया कि वह भारत में कई आतंकी हमलों में शामिल था. अधिकारियों के अनुसार, वह आज दोपहर मटली में अपने घर से निकला था और सिंध प्रांत के बादनी में एक चौराहे के पास हमलावरों ने उसे गोली मार दी.
लश्कर के अबू अनस का करीबी सहयोगी खालिद, नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मुख्यालय पर हमले का मास्टरमाइंड था, जिसमें तीनों आतंकवादियों को गोली मार दी गई थी. आरएसएस हमले के अलावा, यह लश्कर ऑपरेटिव 2005 में बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान पर हुए आतंकी हमले में भी शामिल था, जिसमें आईआईटी प्रोफेसर मुनीश चंद्र पुरी की मौत हो गई थी और चार अन्य घायल हो गए थे. आतंकी घटनास्थल से फरार हो गए थे. बाद में, पुलिस ने इस मामले की जाँच की और अबू अनस के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया, जो अब भी फरार है.
खालिद 2008 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर हमले का भी मास्टरमाइंड था, जिसमें सात जवानों और एक नागरिक की मौत हो गई थी. दोनों आतंकवादी अंधेरे का फायदा उठाकर फरार हो गए थे. 2000 के दशक के मध्य से, खालिद लश्कर के नेपाल मॉड्यूल का प्रभारी था, जो कैडरों की भर्ती, वित्तीय और लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करने और भारत-नेपाल सीमा पर लश्कर ऑपरेटिवों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए जिम्मेदार था.
खालिद लश्कर के तथाकथित "लॉन्चिंग कमांडरों" — आज़म चीमा उर्फ बाबाजी और याकूब (लश्कर के मुख्य लेखाकार) के साथ मिलकर काम करता था. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा मॉड्यूल का पर्दाफाश होने के बाद खालिद नेपाल छोड़कर पाकिस्तान लौट आया. बाद में, उसने लश्कर और जमात-उद-दावा के कई नेताओं, जिनमें जम्मू-कश्मीर के लश्कर कमांडर यूसुफ मुजम्मिल, मुजम्मिल इकबाल हाशमी और मुहम्मद यूसुफ तैयबी शामिल थे, के साथ मिलकर काम किया. लश्कर और जमात-उद-दावा के नेतृत्व ने खालिद को सिंध के बादिन और हैदराबाद जिलों के इलाकों से नए कैडरों की भर्ती करने और संगठन के लिए धन जुटाने का काम सौंपा था. सिंध से मिली मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गोली लगने के बाद खालिद को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया. इन रिपोर्ट्स में इसे व्यक्तिगत दुश्मनी का मामला भी बताया गया है.
अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर की गिरफ्तारी, सोशल मीडिया पोस्ट पर विवाद
नई दिल्ली : हरियाणा स्थित अशोका यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और प्रमुख अली खान महमूदाबाद को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. यह गिरफ्तारी उनके द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की मीडिया कवरेज पर की गई एक फेसबुक पोस्ट के चार दिन बाद हुई, जिसके लिए हरियाणा राज्य महिला आयोग ने उन्हें समन जारी किया था. प्रोफेसर पर भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के तहत सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने, विद्रोह और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया है, जिससे शैक्षणिक और कार्यकर्ता हलकों में आक्रोश फैल गया है. अशोका यूनिवर्सिटी ने इस बयान से अपना हाथ खींच लिया है. महमूदाबाद के जिन बयानों पर हरियाणा सरकार ने कार्रवाई की है, वे यहां पढ़े जा सकते हैं.
विवाद की शुरुआत प्रोफेसर महमूदाबाद की 8 मई की फेसबुक पोस्ट से हुई थी, जिसमें उन्होंने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों की दक्षिणपंथी प्रशंसा में ‘पाखंड’ की ओर इशारा किया था, जबकि वे घृणा अपराधों और व्यवस्थागत अन्यायों पर चुप रहते हैं. उन्होंने लिखा था, "मैं बहुत खुश हूं कि इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं, लेकिन शायद वे उतनी ही जोर से यह भी मांग कर सकते हैं कि मॉब लिंचिंग, मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने और भाजपा की नफरत फैलाने वाली राजनीति के शिकार अन्य लोगों को भारतीय नागरिकों के रूप में संरक्षित किया जाए. दो महिला सैनिकों द्वारा अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने की छवि महत्वपूर्ण है, लेकिन छवि को जमीन पर वास्तविकता में बदलना होगा, अन्यथा यह सिर्फ पाखंड है."
इसके जवाब में, हरियाणा राज्य महिला आयोग ने उन पर ‘भारतीय सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों का अपमान करने’ और ‘सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने’ का आरोप लगाया और 23 मई तक पेश न होने पर आपराधिक कार्रवाई की धमकी दी थी. प्रोफेसर महमूदाबाद ने जवाब दिया था कि उनकी टिप्पणियों को जानबूझकर तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और उनका उद्देश्य नागरिकों और सैनिकों दोनों के जीवन की सुरक्षा करना था, न कि महिलाओं का अपमान करना.
उनकी गिरफ्तारी के बाद से, 1100 से अधिक शिक्षाविदों, इतिहासकारों, फिल्म निर्माताओं और अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक याचिका पर हस्ताक्षर कर आयोग से समन वापस लेने और प्रोफेसर महमूदाबाद से सार्वजनिक माफी मांगने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ अपराध दर देश में सबसे अधिक है, और आयोग को वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि ऐसे अपराध गढ़ने चाहिए जहाँ कोई अपराध हुआ ही न हो. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि आयोग के पास न तो प्रोफेसर को समन जारी करने का कानूनी अधिकार क्षेत्र है और न ही सीमा पार आतंकवाद या यूजीसी के आचार संहिता जैसे मुद्दे उसके दायरे में आते हैं.
इस घटना ने एक बार फिर भारत में संवैधानिक रूप से संरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरों को उजागर किया है, खासकर उन ताकतों से जो नफरत फैलाना और देश को अस्थिर करना चाहती हैं. याचिका में अशोका यूनिवर्सिटी से भी अपने संकाय सदस्य के साथ खड़े होने का आह्वान किया गया है.
मंत्री विजय शाह पर सरकार और भाजपा की चुप्पी
एक तरफ एक मुस्लिम प्रोफेसर के बतौर जागरूक भारतीय कहे गये बयान के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है, दूसरी तरफ उन सारे लोगों पर सरकार और भारतीय जनता पार्टी किसी भी तरह की कार्रवाई से बच रही है, जिन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी और विदेश सचिव विक्रम मिसरी को लेकर सोशल मीडिया में अपना गटर ज्ञान बहाया हुआ था. विजय शाह अपनी बकवास करने के सात दिन बाद भी मंत्री पद पर आसीन हैं. इसे लेकर अजीत अंजुम ने सीधे प्रधानमंत्री के नाम अपना संदेश जारी किया है.
मुंबई पंहुचने पर प्रोटोकॉल की चूक से सीजेआई गवई नाराज़, संविधान को सुप्रीम बताया
सीजेआई बनने के बाद बीआर गवई रविवार को पहली बार मुंबई पहुंचे, लेकिन, महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया. तीनों में से एक भी अफसर उनकी अगवानी के लिए नहीं पहुंचा. इस पर जस्टिस गवई ने महाराष्ट्र-गोवा बार काउंसिल के कार्यक्रम में नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि देश का मूल ढांचा मजबूत है और संविधान के तीनों स्तंभ समान हैं. संविधान के सभी अंगों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए. न तो न्यायपालिका, न ही कार्यपालिका और संसद सर्वोच्च है, बल्कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और तीनों अंगों को संविधान के अनुसार काम करना है.
सीजेआई ने कहा, “मैं ऐसे छोटे-मोटे मुद्दों पर बात नहीं करना चाहता, लेकिन मैं इस बात से निराश हूं कि महाराष्ट्र के बड़े अफसर प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते. लोकतंत्र के तीनों स्तंभ समान हैं और उन्हें एक-दूसरे के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए.” उन्होंने कहा कि अगर भारत के चीफ जस्टिस पहली बार महाराष्ट्र आ रहे हैं तो ये उम्मीद की जाती है कि यहां के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मुंबई के पुलिस कमिश्नर को मौजूद रहना चाहिए. ऐसा न करना सोचने पर मजबूर करता है.
जस्टिस गवई ने कहा कि जब किसी संस्था का प्रमुख पहली बार राज्य में आ रहा हो, खासकर जब वह भी उसी राज्य का हो, तो उन्हें खुद ही सोचना चाहिए कि जो व्यवहार किया गया, वह सही था या नहीं. हालांकि, सीजेआई ने तुरंत ही स्पष्ट भी किया कि यह टिप्पणी प्रोटोकॉल का पालन करने पर जोर देने के लिए नहीं, अपितु तीनों लोकतांत्रिक स्तंभों के बीच आपसी सम्मान की आवश्यकता बताने के लिए है.
जस्टिस बेला त्रिवेदी की विदाई सभा में सिब्बल ने यूएपीए सुनवाई और सहानुभूति की याद दिलाई
सुप्रीम कोर्ट की ग्यारहवीं महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने साढ़े तीन साल से अधिक के कार्यकाल के बाद मंगलवार को उनका अंतिम कार्यदिवस था. इस विदाई बेला पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता तथा सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने उनके कार्यकाल पर अलग तरह से उनकी प्रशंसा की. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष के रूप में कपिल सिब्बल ने जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी के विदाई समारोह में उनकी भूमिका की सराहना करते हुए कहा, “सुप्रीम कोर्ट हमेशा से सितारों का आकाश रहा है और जस्टिस बेला त्रिवेदी उनमें से एक चमकता सितारा हैं. वह सुप्रीम कोर्ट की 11वीं महिला जज थीं, और यह अपने आप में एक गौरव की बात है.” उन्होंने जस्टिस त्रिवेदी के न्यायिक करियर की प्रशंसा की और इस दौरान विशेष रूप से उनके गुजरात हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में योगदान को रेखांकित किया और न्यायिक स्वतंत्रता पर सूक्ष्म टिप्पणी की, “आपने हमेशा अपने विवेक और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर फैसले दिए, न कि बहुसंख्यक राय के आधार पर. यह एक जज के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण है.”
यह बयान कुछ लोगों ने जस्टिस त्रिवेदी के फैसलों, विशेष रूप से संवेदनशील राजनीतिक या सामाजिक मामलों में उनकी कथित रूढ़िवादी रुख की आलोचना के रूप में देखा. ‘एक्स’ पर कुछ यूजर्स ने इस पर टिप्पणी भी की. अधिवक्ता संजय घोष ने ‘एक्स’ पर लिखा, कपिल सिब्बल ने इतिहास बनाया. आम तौर पर औपचारिक बेंच के सामने वकील रिटायर हो रहे जज के बारे में अच्छी बातें कहते हैं. सिब्बल ने यूएपीए केस को याद किया, जिसमें बेला त्रिवेदी ने राहत देने से इनकार कर दिया था.
सिब्बल ने एक अदालती क्षण को याद किया, जो उनके साथ रहा था. कड़े आतंकवाद-विरोधी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अभियोजित एक व्यक्ति से जुड़े एक मामले में, सिब्बल ने व्यक्ति के कर्नाटक से केरल स्थानांतरण के लिए अनुरोध किया था. न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने अनुरोध के खिलाफ फैसला दिया. "मुझे भीतर से लगा और मैंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि आपकी लेडीशिप में कुछ सहानुभूति होगी.' आपकी लेडीशिप ने तब कहा, 'तब आप मुझे नहीं जानते,'" श्री सिब्बल ने याद किया. "खैर, हम आपको जानते थे इससे पहले कि आप यहां आएं. और हम आपको जानेंगे, जब आप यहां से जाएंगे. आपने जो किया उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. मुझे नहीं लगता कि इस अदालत में कोई भी न्यायाधीश लोकप्रिय भावना के सामने झुकता है."
सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से बोलते हुए कहा, “बार एसोसिएशन का कर्तव्य है कि वह जजों के साथ सहयोग करे और न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करे. हालांकि, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि बार को अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए. सिब्बल की यह टिप्पणी उस विवाद के संदर्भ में थी, जिसमें एससीबीए ने जस्टिस त्रिवेदी के लिए औपचारिक विदाई समारोह आयोजित नहीं किया था, जिसके कारण मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने नाराजगी जताई थी.
एससीबीए का बहिष्कार: जस्टिस त्रिवेदी के कुछ फैसलों, विशेष रूप से संवेदनशील मामलों (जैसे बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई से संबंधित निर्णय या अन्य राजनीतिक रूप से चार्ज्ड मामले) के कारण बार एसोसिएशन के कुछ सदस्यों में असंतोष था. इस वजह से एसोसिएशन ने औपचारिक विदाई समारोह का आयोजन नहीं किया, जिसे सीजेआई गवई ने ‘अनुचित’ करार दिया. उन्होंने टिप्पणी की, “समारोह में सिब्बल और एससीबीए उपाध्यक्ष रचना श्रीवास्तव की उपस्थिति की सराहना करते हैं, लेकिन साथ ही बार का बहिष्कार ‘न्यायिक परंपराओं के खिलाफ’ है. उन्होंने सिब्बल से इस मुद्दे पर विचार करने को कहा. सिब्बल ने हालांकि सीधे-सीधे सीजेआई की टिप्पणी का जवाब नहीं दिया, लेकिन उनके भाषण में ‘बार की स्वतंत्रता और सिद्धांतों’ पर जोर देना इस विवाद को अप्रत्यक्ष रूप से संबोधित करता था.
कार्यकाल : जस्टिस त्रिवेदी का कार्यकाल विवादों से अछूता नहीं रहा है. आलोचकों ने गुजरात में मोदी के अधीन उनकी पिछली भूमिका, उमर खालिद और हेमंत सोरेन जैसे कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं से जुड़े राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों को उनकी पीठ को सौंपे जाने का हवाला देते हुए उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं. उदाहरण के लिए अधिकार कार्यकर्ता उमर खालिद ने 2024 में उनकी पीठ से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली, कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि कपिल सिब्बल और अन्य लोग उनसे बचने के लिए ‘फोरम शॉपिंग’ का प्रयास कर रहे थे. अधिवक्ता प्रशांत भूषण सहित आलोचकों ने उन्हें ‘नागरिक स्वतंत्रता विरोधी और भाजपा सरकार समर्थक’ करार दिया है, खासकर पीएमएलए और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के तहत जमानत से जुड़े मामलों में. हालांकि, ये आरोप अटकलें ही बने हुए हैं, क्योंकि न्यायिक कार्य सीजेआई द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं, और सरकार के प्रभाव का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है. न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कई फैसलों में योगदान दिया है, जिनमें 2022 का फैसला शामिल है, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% आरक्षण को बरकरार रखा गया है और 2024 का फैसला है, जिसमें राज्यों को आरक्षण के प्रयोजनों के लिए अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का अधिकार दिया गया है.
करियर : न्यायमूर्ति त्रिवेदी का करियर भाजपा से निकटता से जुड़ा है, क्योंकि वे मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (2001-2014) के तहत गुजरात सरकार में विधि सचिव के रूप में कार्यरत थीं. इस भूमिका में, उन्होंने राज्य को कानूनी और नीतिगत मामलों पर सलाह दी. इससे वे मोदी के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद पर आसीन हुईं. गुजरात में उनकी न्यायिक नियुक्तियाँ, जिनमें 2004 में गुजरात उच्च न्यायालय में उनकी पदोन्नति और 2006 में स्थायी न्यायाधीश का पद शामिल है, भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के तहत हुईं, पहले मोदी के अधीन और बाद में आनंदीबेन पटेल (2014-2016) के अधीन. राजस्थान उच्च न्यायालय (2016-2018) में उनका स्थानांतरण वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के साथ हुआ. 2021 में सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के तहत हुई, जिसकी सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने की और केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी दी. जस्टिस त्रिवेदी ने 1995 में अहमदाबाद के सिटी सिविल और सत्र न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में न्यायपालिका में प्रवेश किया, जो उनके पिता के साथ उनकी सेवा के लिए उल्लेखनीय भूमिका थी. इसने ‘एक ही न्यायालय में पिता-पुत्री न्यायाधीश’ के लिए लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में प्रवेश अर्जित किया.
राष्ट्रपति के 14 सवाल : स्टालिन हारने को तैयार नहीं
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन हार मानने को तैयार नहीं हैं. रविवार को उन्होंने सभी गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखकर राष्ट्रपति के सुप्रीम कोर्ट से मांगे गए संदर्भ का विरोध करने की अपील की. स्टालिन ने पत्र में कहा कि जब किसी मुद्दे पर कोर्ट के आधिकारिक फैसले से पहले ही निर्णय लिया जा चुका हो, तब सुप्रीम कोर्ट के सलाह देने के क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. फिर भी भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति पर संदर्भ मांगने के लिए जोर दिया है, जो उसके भयानक इरादे की ओर इशारा करता है. स्टालिन ने मुख्यमंत्रियों से यह भी कहा कि हमें कोर्ट में कानूनी रणनीति पेश करनी चाहिए. साथ ही संविधान के मूल ढांचे की रक्षा करने के लिए एक मोर्चा (फ्रंट) बनाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधेयकों की मंजूरी के बारे में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए डेडलाइन तय करने पर 14 सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था ही नहीं है, तो सुप्रीम कोर्ट कैसे राष्ट्रपति-राज्यपाल के लिए समयसीमा तय करने का फैसला दे सकता है.
पीएसएलवी-सी61 में गड़बड़ी की समीक्षा
पीएसएलवी-सी61 मिशन के तीसरे चरण के विफल होने के कुछ ही घंटों बाद, इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने इस बारे में ‘एक्स’ पर अपने अनुभव और संकल्प से भरा संदेश साझा किया. उन्होंने लिखा, “प्रिय साथियों, आज #PSLVC61 मिशन के दौरान हमें एक झटका लगा. फिर भी, अपनी अटूट भावना के अनुरूप इसरो @ISRO अपने बेहतरीन दिमागों को जल्दी से इकट्ठा करेगा, ताकि इस गड़बड़ी का विश्लेषण किया जा सके और आगे की एक सुव्यवस्थित योजना बनाई जा सके. मुझे यह जानकारी है कि तीसरे चरण में किन कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा. यह एक ऐसा प्रयास था, जिसमें कई बार विफलता मिली. इस चरण में इस तरह की गड़बड़ी का फिर से सामने आना वास्तव में असामान्य है. फिर भी, मुझे पूरी उम्मीद है कि टीम जल्द ही और प्रभावी ढंग से मूल कारण का पता लगा लेगी,” सोमनाथ ने लिखा. सोमनाथ की पोस्ट ऐसे वक्त में आई है, जब अंतरिक्ष एजेंसी एक विफलता से गुजर रही है. उन्होंने कहा कि विफलता कभी हार नहीं होती.
इसके पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा था कि वह तकनीकी खराबी के कारण अपना 101वां मिशन, पीएसएलवी सी61/ईओएस-09 पूरा नहीं कर सका. इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा कि पीएसएलवी चार-चरणीय प्रक्षेपण यान है. दूसरे चरण का प्रदर्शन पूरी तरह सामान्य था. तीसरे चरण का मोटर भी सही तरीके से शुरू हुआ, लेकिन इस चरण के संचालन के दौरान हमें एक गड़बड़ी देखने को मिली और मिशन को पूरा नहीं किया जा सका. लेकिन, इस घटना का विश्लेषण के बाद, हम वापस आएंगे.
जासूसी की आरोपी ज्योति के बचाव में पिता ने कहा, ‘पाकिस्तान में बेटी के दोस्त नहीं हो सकते?’
पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों को गुप्त सूचनाएं देने के आरोप में गिरफ्तार ट्रैवल व्लॉगर और यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा के पिता हरीश मल्होत्रा नहीं मानते कि उनकी बेटी जासूसी कर सकती है. उन्होंने हिसार में मीडिया से कहा, उन्होंने अपनी बेटी से बात की है. उसने किसी भी तरह के गलत काम से इनकार किया. “ज्योति का कहना है कि उसे झूठा फंसाया जा रहा है. उसका दावा है कि उसके पास पाकिस्तान जाने की आधिकारिक अनुमति थी.
हरीश ने कहा कि उनकी बेटी दूतावास से अनुमति लेकर पाकिस्तान गई थी और जब कोई बाहर जाता है, तो क्या उसके दोस्त नहीं हो सकते? मेरी बेटी सिर्फ पाकिस्तान में अपने दोस्तों से बात करती थी और उनकी बातचीत सामान्य थी. उन्होंने पुलिस प्रशासन से जब्त किया गया सारा सामान वापस करने का अनुरोध किया और कहा कि उन्हें और कुछ नहीं चाहिए.
“गुरुवार को महिला पुलिसकर्मियों सहित एक पुलिस टीम उनके घर पहुंची और घर की गहन तलाशी ली. टीम ने उनके और उनकी बेटी के मोबाइल फोन समेत कई सामान जब्त किए. उन्होंने बताया कि पुलिस पिछले कुछ दिनों से हमारे घर आ रही है और हर बार तलाशी ले रही है. इस बार, टीम में छह अधिकारी शामिल थे, जिनमें दो महिलाएँ और एक कैमरामैन शामिल था. उन्होंने ज्योति का लैपटॉप और मोबाइल फोन, साथ ही मेरा और मेरे भाई का फोन भी छीन लिया और हमारे बैंक के दस्तावेज़ भी ले लिए.”
इस बीच, हिसार के डीएसपी कमलजीत सिंह ने पुष्टि की कि ज्योति के पास से कुछ संदिग्ध सामान बरामद किया गया है. उसके खिलाफ संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर उसे पांच दिन की पुलिस हिरासत में लिया गया है.
वहीं एनडीटीवी के सीनियर मैनेजिंग एडिटर रह चुके औनिंदयो चक्रवर्ती ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया है, “यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कौन-से रहस्य पता थे, जो वह पाकिस्तानी जासूस को दे पाईं? उन्हें ये रहस्य कैसे मिले? मैं इस बारे में खबरें ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ. विफल रहा हूँ. अगर आपको इस बारे में कोई अच्छी खबर मिली हो, तो कृपया जवाब में लिंक चिपकाएँ.” इसे रविश ने भी री-ट्वीट किया है.
ट्रैवल यूटयूबर ज्योति के सोशल मीडिया अकाउंट पर पाकिस्तान के कटासराज मंदिर, लाहौर के मशहूर अनारकली बाजार समेत कई स्थानों के फोटो और वीडियो आप देख सकते हैं. इसके अलावा उसका प्रभाव पाकिस्तान में कितना था, उसकी भी झलक मिलती है.
मनरेगा फंड्स में करोड़ों का घपला
मोदी के गुजरात में मंत्री का एक बेटा गिरफ्तार, दूसरा फरार
“न खाऊंगा, न खाने दूंगा” का वादा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में 71 करोड़ रुपये के मनरेगा घोटाले ने भूचाल ला दिया है, क्योंकि इस घोटाले में गिरफ्तार लोगों में भाजपा सरकार के पंचायत और कृषि मंत्री बच्चूभाई खाबड़ का बेटा बलवंत खाबड़ भी शामिल है. इतना ही नहीं, आरोपियों में मंत्री के छोटे बेटे किरण खाबड़ का नाम भी है, लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका है. वह फरार है और गुजरात पुलिस उसकी तलाश कर रही है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में दिलीप सिंह क्षत्रिय की रिपोर्ट कहती है कि यह घोटाला दाहोद जिले के धनपुर और देवगढ़ बारिया तालुका में सामने आया है. इस घोटाले का केंद्र एक संगठित नेटवर्क है, जिसमें कागजों पर ही सड़कों, बांधों और अन्य सार्वजनिक कार्यों के फर्जी प्रोजेक्ट दिखाकर मनरेगा के तहत आदिवासी रोजगार के लिए आए फंड को फर्जी प्रमाणपत्रों और बिलों के जरिए हड़प लिया गया. यह पैसा मंत्री के बेटों से जुड़ी एजेंसियों तक पहुंचाया गया. जांच में सामने आया कि बलवंत और किरण खाबड़ की फ़र्में इस फर्जीवाड़े में मुख्य भूमिका में थीं.
मनरेगा के तहत गांवों में कई कार्यों को कागजों पर पूरा हुआ दिखाया गया, जबकि जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ. जांच में सामग्री आपूर्तिकर्ताओं की भूमिका भी सामने आई है. यह घोटाला तब उजागर हुआ जब जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के निदेशक बीएम पटेल ने प्रोजेक्ट्स के क्रियान्वयन में भारी गड़बड़ी की शिकायत की. इसके बाद ऑडिट में फर्जीवाड़ा पकड़ में आया और जांच का दायरा बढ़ता गया. फिलहाल, पुलिस और विशेष जांच दल मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं और घोटाले की रकम 200 करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
क्षत्रिय की रिपोर्ट के अनुसार अनुमानित 160 करोड़ रुपये के फर्जी दावों की जांच चल रही है. गहराई से जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है. अब तक देवगढ़ बारिया और धनपुर में ही 71 करोड़ के फर्जी बिलों का पता चला है. जांचकर्ताओं का मानना है कि जैसे-जैसे और तालुके जांच के दायरे में आएंगे, यह आंकड़ा और बढ़ सकता है. विपक्ष के नेता अमित चावड़ा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पहले ही इस घोटाले को लेकर चेताया था और कहा था कि घोटाला करीब 250 करोड़ रुपये का है. सरकार की चुप्पी पर हमला करते हुए चावड़ा ने आरोप लगाया कि खाबड़ से जुड़ी कंपनियों को वर्षों तक बिना जांच के भुगतान मिलता रहा. उन्होंने कहा, "यह गुजरात के सबसे गरीब लोगों की दिनदहाड़े लूट है. उधर, बढ़ते दबाव के बावजूद मंत्री बच्चू खाबड़ अब तक चुप हैं और सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिसे विपक्ष और नागरिक समाज की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. जो एक सामान्य ऑडिट के रूप में शुरू हुआ था, वह गुजरात के सबसे बड़े कल्याणकारी घोटालों में से एक बन गया है, जिसने गहरी जड़ें जमा चुकी भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है और सरकारी जवाबदेही में जनता का भरोसा हिला दिया है.
विश्लेषण | आकार पटेल
चीन और अमेरिका ही हैं अब नई महाशक्तियां
इतिहासकार मैक्स हेस्टिंग्ज़ ने दूसरे विश्व युद्ध को मुख्य रूप से दो विशालकाय राक्षसों के बीच मौत की जकड़ के रूप में बयान किया — एडॉल्फ हिटलर की नाज़ी सेनाओं का जोसेफ स्टालिन की सोवियत ताक़तों के ख़िलाफ़ संघर्ष. बाक़ी सब, विंस्टन चर्चिल के भाषण और प्रशांत क्षेत्र में जापान के ख़िलाफ़ अमेरिकी संघर्ष, ज़्यादा से ज़्यादा एक साइडशो थे और यह सच है जैसा कि मारे गए लोगों की राष्ट्रीयता से पता चलता है.
हमारे समय का महान मुक़ाबला भी सिर्फ़ दो महाशक्तियों के बीच है : डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका और शी जिनपिंग के चीन. बाक़ी दुनिया एक शोरगुल भरा साइडशो है. अमेरिका और चीन के बीच यह मुक़ाबला कम से कम अभी तक सैन्य नहीं है. लेकिन दांव पर लगी चीज़ें समान हैं और कई मायनों में ज़्यादा बड़ी हैं.
बाहर से, इसे पश्चिम और एशिया के बीच वैश्विक आर्थिक प्रभुत्व के लिए संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है. आम तौर पर, हमें पश्चिम के ख़िलाफ़ एक साथी एशियाई शक्ति का समर्थन करना चाहिए या हम करते, लेकिन मेरे हिसाब से देसी असुरक्षित और छोटे दिमाग़ वाले होते हैं. इसलिए अभी इसे यहीं छोड़ देते हैं.
चीन को जिस चीज़ की ज़रूरत है वो है वक़्त. 1991 में, जब भारत इस नए चरण में प्रवेश कर रहा था, जिसे उदारीकरण कहा जाता है, हम आर्थिक रूप से चीन के बराबर थे. औसत भारतीय उतना ही उत्पादन करता था, जितना औसत चीनी. यह सच है कि चीन उससे एक दशक पहले से ही सुधार कर रहा था, और यह हमारे ऊपर एक फ़ायदे के रूप में देखा जाता है, हालांकि, उसने ऐसा एक ऐसी स्थिति से किया था जो भारत से बहुत नीचे थी. उद्योग और कृषि में, यह दशकों से दुनिया से कटा हुआ था, भारत के विपरीत. और हमारे विपरीत, चीनी नेतृत्व ने आम चीनी लोगों को अनावश्यक कष्ट दिया था, जिससे देश अभी उभर रहा था.
अगले 35 सालों में, चीन ने औसतन 9 प्रतिशत सालाना जीडीपी ग्रोथ हासिल की, पश्चिम में किसी भी शक्ति द्वारा कभी हासिल की गई से तेज़ आर्थिक प्रगति. पिछले 10 सालों में, चीन की ग्रोथ धीमी होकर औसतन 5.8 प्रतिशत रह गई है, जो भारत के समान थी, लेकिन पांच गुना बड़े बेस पर.
अगर चीन को बिना किसी व्यवधान के बढ़ने के लिए एक और दशक मिलता है, तो यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा. यह पहले ही ऐसा उस चीज़ में कर चुका है, जिसे परचेज़िंग पावर पैरिटी टर्म्स कहा जाता है, लेकिन एक दशक में यह संभवतः निरपेक्ष रूप से भी बड़ा होगा. एक ऐसी दुनिया में नंबर दो होना, जिस पर उसने 150 सालों से प्रभुत्व रखा है, अमेरिका के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है. जॉन मीरशाइमर जैसे पश्चिमी राजनीतिक वैज्ञानिक कहते हैं कि चीन का उदय अनिवार्य रूप से संघर्ष की ओर ले जाएगा, क्योंकि जिसे थ्यूसिडाइड्स ट्रैप कहा जाता है, जो सिद्धांत देता है कि जब एक उभरती शक्ति प्रमुख शक्ति को विस्थापित करने वाली होती है, तो युद्ध परिणाम होता है. इस सिद्धांत में, हिंसा परिणाम है, क्योंकि मौजूदा प्रमुख शक्ति, इस मामले में अमेरिका, कभी भी दूसरी पोज़िशन स्वीकार नहीं करेगी और अपने प्रतिद्वंद्वी को जैसे भी हो सके दबा देगी. कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह शायद चीज़ों को देखने का एक पश्चिमी तरीका है और कि एशियाई शक्तियां वैश्विक मामलों में दखल देने में उस तरह से रुचि नहीं रखतीं, जिस तरह से यूरोप और अमेरिका ने पिछले दो शताब्दियों से किया है. वे सोचते हैं कि चीन का उदय दुनिया भर में अमेरिकी बेसों या आईएमएफ, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे संस्थानों पर उसकी पकड़ को खतरा नहीं देगा. और इसलिए, अमेरिका को यह विचार करना चाहिए कि जब वह यह आकलन कर रहा हो कि चीन का नंबर एक बनना क्या मायने रखता है. लेकिन थ्यूसिडाइड्स ट्रैप की तरह, यह भी महज़ सिद्धांत है और कोई नहीं जानता कि जब चीन अमेरिका को पीछे छोड़ देगा तो वह कैसे कार्य करेगा.
पिछले आठ सालों से, अमेरिका चीन की आर्थिक प्रगति को रोकने और ब्लॉक करने की कोशिश कर रहा है. उसने चीन की कंपनियों को एडवांस्ड सेमीकंडक्टर्स तक पहुंच से इनकार कर दिया है. उसने चीनी निर्यात पर शुल्क लगाए हैं, फेंटेनिल ड्रग को बहाने के रूप में उतना ही इस्तेमाल करते हुए जितना उसने 'डंपिंग' का किया है. उसने चीन पर उद्योग में अधिक क्षमता निर्माण करने का आरोप लगाया है, हालांकि यह आमतौर पर जिसे निर्यात-उन्मुख विकास कहा जाता है. और ट्रम्प के दूसरे राष्ट्रपति काल के तहत, इसने इतने ऊंचे टैरिफ लगाकर चीन से पूरी तरह से डीकपल करने की कोशिश की है कि व्यापार असंभव हो जाए. अमेरिका के लिए दुर्भाग्य से, वह विफल रहा है. स्टॉक और बॉन्ड मार्केट ने ट्रम्प को स्पष्ट रूप से बताया कि चीन को अलग-थलग करने का कोई भी विचार अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का कारण बनेगा और इसने ट्रम्प को पीछे हटने के लिए मजबूर किया है.
चीन को अब समय मिल गया है. कितना समय? मेरा मानना है कि यह उसे पार ले जाने के लिए पर्याप्त है. पहले से ही ट्रम्प प्रशासन का फोकस व्यापार से हटकर टैक्स कट की ओर चला गया है और इस साल के बाकी हिस्से में यह उसकी अधिकांश एनर्जी लेगा. 2026 में अमेरिकी कांग्रेस के लिए मिड-टर्म चुनावों के साथ, पिछले कुछ महीनों में ट्रम्प ने व्यापार पर जैसी लापरवाही दिखाई है, वैसी चीज़ें करने की इच्छा कम होगी. यह भी चीन को समय खरीदेगा. ट्रम्प के व्यापार दांव की विफलता को देखते हुए, यह संभव है और शायद 2028 के बाद उनका उत्तराधिकारी उसी रास्ते पर नहीं जाएगा.
चीनियों ने पिछले आठ सालों से व्यापार युद्ध के लिए तैयारी की है. उन्होंने जानबूझकर लड़खड़ाते रियल एस्टेट व्यवसायों से राज्य समर्थन हटा दिया है और उन्हें ध्वस्त होने दिया है, ताकि पूंजी उद्योग की ओर प्रवाहित हो सके. उन्होंने अमेरिका के बाहर दुनिया भर में अपने निर्यात के लिए बाज़ार बनाने की कोशिश की है और उन्होंने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में सौदों के माध्यम से अपनी सप्लाई चेन को मज़बूत किया है.
अमेरिका अब चीन का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है, दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संघ और यूरोपीय संघ के पीछे. सबसे बढ़कर, उन्होंने भविष्य-सामने वाली तकनीकों की एक रेंज में अपनी बढ़त को तेज़ किया है. ट्रम्प के अमेरिका का शी के चीन पर जो लीवरेज है वह सिकुड़ गया है.
अगर चीज़ें जैसी हैं वैसी ही चलती रहीं, तो 200 सालों में पहली बार, दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति पश्चिमी नहीं बल्कि एशियाई होगी. इसके निहितार्थ सभी देशों को प्रभावित करेंगे, हालांकि किसी भी देश की सरकार ने, अमेरिका सहित, अपने नागरिकों को इस बदलाव के लिए तैयार नहीं किया है.
आकार पटेल स्तंभकार हैं और एमनेस्टी इंडिया के चेयर हैं.
चीनी हथियारों ने न सिर्फ पाक को मजबूती दी, बल्कि अमेरिका और समर्थकों को चौंका भी दिया
भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक चला सैन्य टकराव कई नई मिसालें स्थापित कर गया. इकोनोमिस्ट के मुताबिक इस क्षेत्र से बाहर के सैन्य अधिकारियों के लिए सबसे दिलचस्प बात यह थी कि पाकिस्तान ने पश्चिमी निर्मित लड़ाकू विमानों के साथ हवाई मुकाबले में चीन के उन्नत लड़ाकू विमानों और मिसाइलों का इस्तेमाल किया.
इसके अलावा, पाकिस्तान का दावा है कि उसके चीनी J-10C लड़ाकू विमानों और PL-15 हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों ने भारतीय विमानों पर जीत हासिल की. पाकिस्तान के अनुसार, 7 मई को उसके विमानों ने भारत के पांच लड़ाकू विमानों को मार गिराया, जिनमें तीन फ्रेंच राफेल और दो पुराने रूसी विमान शामिल थे. पाकिस्तानी वायु सेना के मुताबिक, 114 विमानों के बीच एक घंटे से अधिक चला यह हवाई मुकाबला पूरी तरह से विजुअल रेंज (दृश्य सीमा) से बाहर लड़ा गया.
भारत ने इसे न तो स्वीकार किया है और न ही खारिज किया है, केवल यह कहा है कि उसके सभी पायलट सुरक्षित हैं, साथ ही उसने कुछ "हाई-टेक" पाकिस्तानी युद्धक विमानों को नष्ट करने का दावा किया है (जिसे पाकिस्तान ने खारिज करते हुए केवल एक विमान को मामूली नुकसान होने की बात कही है). फिर भी, स्वतंत्र रिपोर्ट्स से पता चलता है कि कुछ भारतीय विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए, जिनमें कम से कम एक राफेल शामिल था.
पाकिस्तान का चीनी हथियारों का इस्तेमाल कोई आश्चर्य की बात नहीं है. चीन दशकों से उन्हें हथियार मुहैया करा रहा है और अब वह उसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. लेकिन चीन के आधुनिक लड़ाकू विमान पहले कभी युद्ध में परखे नहीं गए थे और उन्हें पश्चिमी समकक्षों से कमतर माना जाता था. यदि पाकिस्तान के दावे सही हैं, तो यह राफेल विमान की पहली युद्धक हार होगी.
चीन सरकार ने केवल यह कहा है कि उसे इस मामले की जानकारी नहीं है. लेकिन चाइना स्पेस न्यूज, जो एक सरकारी रक्षा उद्योग प्रकाशन है, ने 12 मई को रिपोर्ट दी कि पाकिस्तान ने एक नई प्रणाली का इस्तेमाल किया, जिसमें हवाई रक्षा प्रणालियों ने लक्ष्यों को लॉक किया. इसके बाद, अन्य विमानों द्वारा निर्देशित मिसाइलों को दूर से ही दागा गया. हालांकि, इस रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया कि चीनी हार्डवेयर का इस्तेमाल हुआ, लेकिन पाकिस्तान के पास चीनी हवाई रक्षा उपकरण भी हैं (जिन्हें भारत ने जाम करने का दावा किया है) और एयरबोर्न रडार विमान भी हैं.
इन दावों के भारत के लिए गंभीर निहितार्थ हैं. पिछले एक दशक में भारत ने 62 राफेल विमान खरीदकर अपनी सेना को आधुनिक बनाया है और अधिक खरीदने पर विचार कर रहा है. वहीं, पाकिस्तान ने 2007 से 150 JF-17 लड़ाकू विमान जोड़े हैं, जिनमें से अधिकांश चीन के साथ संयुक्त रूप से निर्मित हैं, और 2022 से 20 J-10C विमान खरीदे हैं.
अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए भी यह चिंता का विषय है. चीन छोटे और पुराने JF-17 का इस्तेमाल नहीं करता, लेकिन वह J-10C संचालित करता है, जिनमें ताइवान के आसपास तैनात विमान भी शामिल हैं. इसलिए, इस स्व-शासित द्वीप को लेकर अमेरिका के साथ युद्ध की स्थिति में ये विमान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि चीन ने अभी तक इन्हें केवल पाकिस्तान को ही बेचा है, लेकिन अब अन्य देश भी इनमें दिलचस्पी दिखा सकते हैं (J-10C निर्माता कंपनी के शेयरों में तेजी आई है).
यहां तक कि अगर पाकिस्तान के दावे की पुष्टि हो जाती है, तो भी यह J-10C की राफेल या अन्य पश्चिमी विमानों पर श्रेष्ठता साबित नहीं करेगा, क्योंकि कई पश्चिमी विमान अधिक विविध मिशनों को अंजाम देने में सक्षम हैं. फिर भी, दुनिया भर के सैन्य अधिकारी अधिक जानकारी जुटाने में जुट गए हैं और कुछ मामलों में युद्ध योजनाओं को अद्यतन करने की तैयारी कर रहे हैं.
चारमीनार के पास लगी आग में 17 की मौत : रविवार 18 मई को ऐतिहासिक चारमीनार के पास गुलज़ार हौज़ में एक इमारत में लगी भीषण आग में कम ये कम 17 लोगों की मौत की खबर है. अग्निशमन विभाग के अधिकारी के अनुसार, उन्हें सुबह करीब 6.30 बजे एक कॉल मिली और वे घटनास्थल पर पहुंचे. कई लोग बेहोश पाए गए और उन्हें विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया.
अमेरिका में भारत के आम ‘रिजेक्ट’
भारत-पाकिस्तान के ताज़ा संघर्ष में पाकिस्तान को भारत के बराबर रख “चौधरी” की तरह बर्ताव करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मुल्क ने अब हिंदुस्तान के रसीले आम को भी “रिजेक्ट” कर दिया है. उसके इस अप्रत्याशित फैसले से भारतीय निर्यातकों को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है.
“इकोनॉमिक टाइम्स” में शांतनु नंदन शर्मा की रिपोर्ट है कि अमेरिकी अधिकारियों ने भारत से भेजी गईं आम की कम से कम 15 खेपों को अनिवार्य विकिरण प्रक्रिया से जुड़ी दस्तावेज़ी त्रुटियों के कारण अस्वीकार कर दिया, जबकि यह प्रक्रिया मुंबई में अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अधिकारी की निगरानी में पूरी की गई थी. ये सभी खेप हवाई मार्ग से अमेरिका पहुंच चुकी थीं, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने निर्यातकों से कहा कि वे या तो अपना माल अमेरिका में नष्ट कर दें या फिर वापस भारत भेज दें. आम चूंकि बहुत जल्दी खराब होने वाला फल है और उसे वापस भारत भेजना महंगा पड़ता, लिहाजा निर्यातकों ने आमों को अमेरिका में ही फेंकना मुनासिब समझा. इस घटना ने भारत-अमेरिका के आम व्यापार पर बड़ा असर डाला है और निर्यातकों ने नियामक एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय की मांग की है, ताकि भविष्य में ऐसे नुकसान से बचा जा सके.
पाकिस्तान भी भेजेगा डेलिगेशन
'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद आतंकवाद से निपटने के भारत के संकल्प को प्रमुख सहयोगी देशों तक पहुंचाने के लिए भारत के प्रतिनिधिमंडल भेजने के फैसले के कुछ घंटों बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी घोषणा की कि वे अपने देश का पक्ष रखने के लिए महत्वपूर्ण विश्व राजधानियों में राजनयिक टीम भेजेंगे. प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अनुसार, शनिवार 17 मई को पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के प्रमुख बिलावल भुट्टो जरदारी से टेलीफोन वार्ता के बाद शरीफ ने यह निर्णय लिया. पाक प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला भारत की इस घोषणा के कुछ घंटों बाद आया कि वह पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकवाद के खिलाफ भारत का संदेश पहुंचाने के लिए इस महीने के अंत में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों सहित प्रमुख सहयोगी देशों में सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजेगा.
सेहत
वे आईं तो वज़न घटाने थीं, पर फायदे उनके और भी
कभी मोटापे को चिकित्सा जगत में कम महत्व दिया जाता था, लेकिन ओज़ेम्पिक (Ozempic) और वेगोवी (Wegovy) जैसी भूख कम करने वाली नई दवाओं ने इसे स्वास्थ्य सेवा का सबसे रोमांचक क्षेत्र बना दिया है. ये दवाएं न केवल आश्चर्यजनक रूप से वज़न घटाती हैं, बल्कि वज़न प्रबंधन से कहीं आगे बढ़कर स्वास्थ्य लाभ भी पहुंचाती हैं. गार्डियन ने इस शनिवार इस पर विस्तृत लेख प्रकाशित किया है.
ये दवाएं, जैसे नोवो नॉर्डिस्क की सेमाग्लूटाइड (ओज़ेम्पिक और वेगोवी का सक्रिय तत्व) और एली लिली की टिर्ज़ेपेटाइड (माउंजारो में), GLP-1 नामक एक हार्मोन की नक़ल करती हैं. यह हार्मोन हमारे खाने पर आंत में निकलता है और मस्तिष्क सहित शरीर के विभिन्न हिस्सों पर काम करके भूख कम करता है और पेट भरने का एहसास दिलाता है. माउंजारो GLP-1 के साथ एक और हार्मोन की नक़ल कर और भी बेहतर परिणाम (लगभग 20% वज़न कमी) दिखाती है.
वज़न घटाने से परे लाभ : स्वस्थ वज़न कई बीमारियों का खतरा कम करता है. अध्ययनों से पता चला है कि ये दवाएं हृदय रोग, कुछ प्रकार के कैंसर, क्लॉटिंग विकार, अल्जाइमर और किडनी रोगों जैसी लगभग 42 बीमारियों का जोखिम कम कर सकती हैं. कुछ लाभ तो सीधे दवाओं के चयापचय (metabolic) प्रभाव से भी आगे जाते हैं. उदाहरण के लिए, फैटी लिवर रोग में सुधार देखा गया है, भले ही वज़न ज़्यादा कम न हुआ हो. मोटापे से जुड़े कैंसर का खतरा भी कम होता है और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, संभवतः मस्तिष्क की इनाम प्रणाली (reward system) पर उनके असर के कारण. इन्हें ‘दवाओं का स्विस आर्मी नाइफ’ भी कहा जा रहा है.
दवा बंद करने पर क्या होता है? यह एक बड़ी चुनौती है. जैसे ही लोग दवा लेना बंद करते हैं, खोया हुआ वज़न तेज़ी से वापस आ जाता है – अक्सर कुछ ही महीनों में. अनुमान है कि लगभग 95% लोगों के साथ ऐसा होता है. एक मरीज़ ने माउंजारो से काफी वज़न घटाया. लेकिन दवा महंगी होने के कारण छोड़ने पर कुछ ही महीनों में उनका वज़न तेजी से वापस बढ़ गया. उन्होंने फिर से दवा शुरू की. विशेषज्ञों का मानना है कि इन दवाओं को किसी संक्रमण के अल्पकालिक इलाज के बजाय, स्टैटिन (कोलेस्ट्रॉल के लिए) जैसी पुरानी बीमारियों की दवाओं की तरह आजीवन लेना पड़ सकता है. यह अभी स्पष्ट नहीं है कि क्यों कुछ लोग दवा बंद करने के बाद भी वज़न दोबारा नहीं बढ़ाते. शोधकर्ता वज़न को दोबारा बढ़ने से रोकने के तरीकों पर काम कर रहे हैं, जैसे खुराक को धीरे-धीरे कम करना. हालांकि, ये दवाएं सभी के लिए नहीं हैं. कुछ लोगों को दुष्प्रभाव (जैसे मतली) परेशान कर सकते हैं, या वे लगातार दवा नहीं लेना चाहते. बच्चों में इनके उपयोग पर भी विचार किया जा रहा है, लेकिन यह बहस का विषय है. मांसपेशियों में कमी भी एक चिंता का विषय है, जिस पर और शोध की आवश्यकता है.
सुरक्षा और भविष्य GLP-1 दवाएं लगभग 20 वर्षों से मधुमेह के लिए इस्तेमाल हो रही हैं, और आंकड़े बताते हैं कि वे कुल मिलाकर सुरक्षित हैं. अग्नाशय या थायरॉइड कैंसर जैसी शुरुआती चिंताएं बाद के आंकड़ों में सही साबित नहीं हुईं. आलोचक कहते हैं कि यह मोटापे की समस्या का औषधीकरण है, जबकि हमें जीवनशैली और खाद्य नीतियों पर ध्यान देना चाहिए. हालांकि, ये दवाएं मोटापे को एक जैविक समस्या के रूप में समझने में मदद कर रही हैं, न कि केवल इच्छाशक्ति की कमी. यह मोटापे के उपचार में एक क्रांति है जो शायद खाद्य उद्योग को भी स्वस्थ विकल्प प्रदान करने के लिए प्रेरित करे और चिकित्सा जगत के दृष्टिकोण को बदले. इन दवाओं ने मोटापे के प्रति हमारी समझ और उपचार को हमेशा के लिए बदल दिया है.
चलते-चलते
जब देवभूमि में पोलिश सैलानी को तंग करता हुआ संस्कारी पुरुष पीछे ही पड़ गया, उसने कहा, 'मैं कोई चिड़ियाघर की जानवर नहीं!’
काशिया, एक ट्रैवल कंटेंट क्रिएटर जो इंस्टाग्राम पर jenesaisquoi_x यूजरनेम से जानी जाती हैं, ने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें एक आदमी उनका पीछा करता दिख रहा है जब वह अपने गेस्ट हाउस के पास एक पहाड़ से उतर रही थीं. पोलैंड की एक अकेली महिला यात्री ने हिमाचल प्रदेश में अपनी हालिया ट्रेक से एक परेशान करने वाला वीडियो शेयर किया है, जहां एक आदमी द्वारा उनका पीछा किया गया, जिसने कथित तौर पर उनके मना करने के बावजूद उनके साथ तस्वीरें खींचने पर जोर दिया. टेलीग्राफ ने इस पर खबर की है.
कैप्शन में, उन्होंने लिखा, "मुझे पूरा यकीन था कि वह मुझसे अपनी तस्वीर खींचने के लिए कह रहा था, लेकिन बाद में पता चला कि वह मेरी तस्वीर लेना चाहता था. मैंने मना कर दिया, क्योंकि मुझे बातचीत करने और तस्वीरें लेने के लिए रुकने का मन नहीं था, मैं अपने खुद के स्पेस में रहना चाहती थी. भारत में इतना समय बिताने और अजनबियों के साथ इतनी सेल्फी लेने के बाद जिसमें छोटी बातचीत भी शामिल होती है, मुझे वाकई नहीं लगता कि मैं अब ऐसा करना चाहती हूँ."
उन्होंने आगे बताया कि मना करने के बाद भी वह आदमी पीछे नहीं हटा. इसके बजाय, उसने उनका पीछा किया और हिंदी में चिल्लाया. असुरक्षित महसूस करते हुए, काशिया ने बातचीत को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया. वीडियो में, उन्हें आदमी से कहते हुए सुना जा सकता है, "मैं आपके साथ तस्वीर नहीं लेना चाहती. क्या आप मेरा पीछा करना बंद कर सकते हैं? मुझे यह पसंद नहीं है." जैसे ही उसने कैमरा देखा, उसने अपनी नज़र हटा ली और वहां से चला गया. कमेंट्स बंद करने से पहले पोस्ट ने जल्दी ही ध्यान आकर्षित किया.
पोस्ट में, उन्होंने यह भी लिखा, "मैं चिड़ियाघर में देखने और तस्वीरें लेने के लिए कोई जानवर नहीं हूँ, यह बहुत असहज है. कुछ भारतीय पुरुषों को - क्रीप मत बनो. हम, विदेशी महिलाएँ, मांस की तरह महसूस नहीं करना चाहती हैं. हमें अजीब तरीके से घूरना हमें आपसे बात करने की इच्छा नहीं दिलाएगा. मैं कोई वस्तु नहीं हूँ. मुझे अकेला छोड़ दें." हालांकि इस घटना ने उन्हें झकझोर दिया, काशिया ने स्पष्ट किया कि वह अकेले यात्रा करना जारी रखेंगी और उनका पोस्ट सामान्यीकरण करने या दूसरों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं था. एक फॉलो-अप पोस्ट में, उन्होंने लिखा, "एक कहावत है - भारत शुरुआती लोगों के लिए नहीं है. मेरा इरादा महिलाओं को डराना नहीं था, या पूरे राष्ट्र पर बुरा नाम रखना नहीं था. मेरा इरादा यह दिखाने का था कि जब आप एक पुरुष हों तो क्या नहीं करना चाहिए, जागरूकता बढ़ाना था. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप भारतीय हैं, क्रोएशियाई हैं या ब्रिटिश." उन्होंने कहा कि वीडियो अपलोड करने से पहले उन्होंने लंबे समय तक और गहराई से सोचा. "अगर हम इस मुद्दे को संबोधित नहीं करते और इस पर बात नहीं करते, तो कुछ भी नहीं बदलेगा."
पाठकों से अपील-
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