19/08/2025: विपक्ष में महाभियोग की बात, राहुल ने कार्रवाई की चेतावनी दी | जयश्रीराम नहीं कहा, तो मारा मुसलमान को | जेलेंस्की के साथ पूरा यूरोप पंहुचा | जियो मंहंगा | रजनी के 50, एनीमल फॉर्म के 80 साल
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
राहुल ने केंचुआ को चेताया, यदि इंडिया गठबंधन सत्ता में आया तो कड़ी कार्रवाई करेंगे
ज्ञानेश कुमार से योगेंद्र यादव के 10 सवाल
“हम अपने सीईसी को ढूंढ़ रहे थे, हमें एक नया भाजपा प्रवक्ता मिल गया”
भारत के सामरिक स्तंभ ढह रहे हैं, आत्मसंतोष कोई विकल्प नहीं
सीईसी ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला सकता है विपक्ष, संसद में ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ के नारे
एसआईआर पर रिपोर्ट : कितनी समावेशी है चुनाव आयोग की यह कवायद
ज्ञानेश कुमार तो मोदी एंड कंपनी का हुक्म बजाने वाले नौकर हैं
‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्री राम नहीं बोलने पर मुस्लिम को पीटा, कहा-सरकार तो हिंदुओं की है
भीलवाड़ा में दान पेटी के विवाद पर दलित पुजारी की पिटाई
पुतिन के बाद ट्रम्प जेलेंस्की से मिले, सात यूरोपीय नेताओं के साथ
तेज प्रताप यादव की पार्टी का नाम ‘जेजेडी’
असम में निजी कंपनी को 3,000 बीघा भूमि आवंटित, गुवाहाटी हाईकोर्ट बोल-“क्या यह कोई मजाक है?”
चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत दौरे पर, सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों पर होगी चर्चा
सेना प्रमुख का वायरल वीडियो डीपफेक, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में नुकसान का दावा झूठा
उत्तराखंड में नए कानून से समाप्त होगा मदरसा बोर्ड, अल्पसंख्यक शिक्षा के लाभ मुसलमानों तक सीमित नहीं
सिमी से संबंध साबित नहीं, 18 साल बाद जेल से छूटे 8 मुस्लिम युवक
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ट्रम्प के सलाहकार ने कह-भारत को रूसी कच्चे तेल की खरीद रोकनी होगी
राजनीकांत के 50 साल : ‘फैमिली-फ़्रेंडली’ सुपरस्टार अब क्यों अपना रहे हैं गंभीर और डार्क किरदार
-कंबल लपेटकर लिखी गई ‘एनिमल फार्म’ के 80 साल! आज भी लागू है जॉर्ज ऑरवेल की चेतावनी
केंचुआ के खिलाफ महाभियोग लाने की बात
संसद में ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ के नारे
विपक्षी “इंडिया ब्लॉक” मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है. विपक्ष का मानना है कि रविवार 17 अगस्त को सीईसी ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में न सिर्फ कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब नहीं दिए, बल्कि विपक्ष के 'वोट चोरी' के आरोपों को खारिज कर दिया. ज्ञानेश कुमार ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा लगाए गए वोट चोरी के आरोपों को तो संविधान का "अपमान" बताया और गांधी से शपथ पत्र देने या देश से माफी मांगने की मांग की, लेकिन बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर के इसी तरह के आरोपों पर चुप्पी साध ली और ठाकुर से शपथ पत्र भी नहीं मांगा.
सीईसी और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 के अनुसार, सीईसी को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह ही हटाया जा सकता है. इसका मतलब है कि संसद दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके सीईसी को हटा सकती है. प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं, जैसा कि शोभना के. नायर ने बताया है. हालांकि, विपक्ष के पास प्रस्ताव मंजूर कराने के लिए पर्याप्त सदस्य संख्या नहीं है, लेकिन विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह प्रस्ताव मुख्य चुनाव आयुक्त के व्यवहार पर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए है. कांग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन ने कहा, "अगर जरूरत पड़ी, तो हम नियमों के तहत लोकतंत्र के सभी हथियारों का उपयोग करेंगे." उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक इस बारे में औपचारिक चर्चा नहीं हुई है.
इधर पीटीआई के अनुसार, “वोट चोरी” और बिहार में चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे एसआईआर में गड़बड़ियों को लेकर सोमवार को भी संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने नारेबाजी की. इस कारण लोकसभा की कार्यवाही तो मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी गई, मगर राज्यसभा में दोपहर बाद कुछ कामकाज हुआ. विपक्ष ने सदन के बाहर भी बैनर पोस्टर लेकर लेकर नारे लगाए. सांसदों के नारे थे- “वोट चोर गद्दी छोड़” और वी वॉन्ट जस्टिस (हम न्याय चाहते हैं).”
राहुल ने केंचुआ को चेताया, यदि इंडिया गठबंधन सत्ता में आया तो कड़ी कार्रवाई करेंगे
“वोट चोरी भारत माता पर हमला”
"वोट चोरी भारत माता पर हमला है," यह दावा करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों को चेतावनी दी कि जब इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. चुनाव आयोग पर अपने हमले को तेज करते हुए गांधी ने यह भी कहा कि पूरा देश आयोग से हलफनामा मांगेगा और अगर समय दिया गया तो उनकी पार्टी हर विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में "वोट चोरी" को उजागर करेगी.
कांग्रेस नेता का चुनाव आयोग पर यह नया हमला ऐसे समय आया जब एक दिन पहले ही मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने उन्हें वोट चोरी के दावों के समर्थन में हस्ताक्षरित हलफनामा देने के लिए सात दिन का अल्टीमेटम दिया था, अन्यथा उनके आरोप निराधार माने जाने की बात कही थी.
लोकसभा में विपक्ष के नेता गांधी ने कहा कि जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष पैकेज की बात करते हैं, वैसे ही चुनाव आयोग ने बिहार के लिए एक नया "स्पेशल पैकेज" लाया है, जिसे एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न) कहा गया है – जो कि वोट चोरी का नया तरीका है. उनकी ये बातें 'वोटर अधिकार यात्रा' के दूसरे दिन आईं, जो रविवार को सासाराम से शुरू हुई थी और फिर औरंगाबाद होते हुए सोमवार को गया जी पहुंची.
आरजेडी के तेजस्वी यादव, भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी के साथ, गांधी ने दूसरे दिन की शुरुआत देव रोड, कुटुंभा से की, फिर रफीगंज होते हुए गया जी के डबूर पहुंचे. यहां एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग उनसे हलफनामा मांग रहा है जबकि आयोग की "वोट चोरी" पहले ही पकड़ी जा चुकी है. गांधी ने कहा, "मैं चुनाव आयोग से कहना चाहता हूं कि पूरा देश आपसे हलफनामा मांगेगा. हमें थोड़ा समय दीजिए, हम आपकी चोरी हर विधानसभा और लोकसभा सीट में पकड़कर जनता के सामने रखेंगे."
कितनी समावेशी है एसआईआर की यह कवायद?
बिहार में चल रही मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया केवल नामों को अपडेट करने तक सीमित नहीं रही है, बल्कि इसने एक व्यापक बहस को जन्म दिया है. इस पहल के तहत, मतदाता सूची के सत्यापन के लिए कुछ पहचान और नागरिकता संबंधी दस्तावेज़ों — विशेष रूप से जन्म प्रमाणपत्र — की अनिवार्यता पर चर्चा की गई है. चुनाव आयोग लगातार यह तर्क दे रहा है कि दस्तावेज़ों की मांग उचित है और अधिकांश मतदाताओं के पास इनमें से कम-से-कम एक दस्तावेज़ उपलब्ध है. इस कारण यह मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है, खासतौर से तब, जब एसआईआर प्रक्रिया का अन्य राज्यों तक विस्तार करने का प्रस्ताव सामने आया है. एसआईआर के विरोधियों का कहना है कि इस प्रकार की कवायद केवल बड़ी संख्या में मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर कर देगी. एक लोकतंत्र में सभी योग्य व्यक्तियों को मतदाता सूची में शामिल करना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली की सबसे मौलिक शर्त है.
इसलिए यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मतदाताओं के पास वास्तव में कौन से दस्तावेज़ उपलब्ध हैं, किन व्यक्तियों के पास ऐसे दस्तावेज़ होने की संभावना कम है, और कितने नागरिकों के चुनावी सूची से बाहर हो जाने की आशंका हो सकती है. यह सब एसआईआर जैसी व्यवस्थाओं की व्यवहार्यता और समावेशन का आकलन करने के लिए आवश्यक है. भारत जैसे सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक विविधता वाले देश में दस्तावेज़ प्राप्त करने की सुविधा प्रशासनिक ढांचे, ऐतिहासिक अभिलेख-प्रबंधन, साक्षरता स्तर और जन-जागरूकता में अंतर के कारण काफी भिन्न होती है. सबसे बढ़कर, राज्य स्तर पर अभिलेख-प्रबंधन की क्षमता और नागरिकों के लिए दस्तावेज़ों को आसानी से उपलब्ध कराने की प्रक्रिया ऐसे कारक हैं, जिनके कारण कुछ राज्यों में नामों को हटाने की संभावना अन्य राज्यों की तुलना में अधिक हो सकती है. बहरहाल, चुनाव आयोग की विशेष पुनरीक्षण कवायद कितनी समावेशी है, इस बारे में “द हिंदू” की इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है.
विश्लेषण | नलिन रंजन मोहंती
ज्ञानेश कुमार तो मोदी एंड कंपनी का हुक्म बजाने वाले नौकर हैं
चुनाव आयोग ने कल प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नरेंद्र मोदी की भाजपा का कठपुतली होने की छवि को हटाने की कोशिश जरूर की, लेकिन अंततः मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने उस छवि को ही मजबूत किया कि “वे मोदी एंड कंपनी के हुक्म बजाने वाले महज नौकर हैं.”
देखने में तो यह अच्छा लगा कि चुनाव आयोग ने अंततः प्रेस कॉन्फ्रेंस की; क्योंकि इस वर्ष 24 जून को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के आदेश के बाद से विपक्षी दल चुनाव आयोग से कई चिंताजनक खुलासों पर स्थिति स्पष्ट करने की लगातार मांग कर रहे थे.
सवाल उठाए गए थे कि आयोग चुनावी प्रक्रिया के सभी हितधारकों को विश्वास में लिए बिना, जो भारत के लोकतंत्र के लिए चिंतित हैं, इतनी बड़ी कार्रवाई कैसे शुरू कर सकता है, जो 22 वर्षों में पहली बार हो रही है. यह मांग विरोधी दलों और कई पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों की तरफ से भी उठाई गई. लेकिन, ज्ञानेश कुमार एंड कंपनी, मीडिया और विपक्ष से आमने-सामने संवाद करने से बचती रही, क्योंकि वह अपनी अवैध कवायद का बचाव करने में असमर्थ थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्णायक हस्तक्षेप के बाद, जिसमें कोर्ट ने एसआईआर को अवैध नहीं कहा, लेकिन राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं की मांगों को स्वीकार करते हुए आयोग को निर्देश दिया कि वह संशोधन के बाद हटाए गए मतदाताओं के नाम और कारणों को मशीन-रीडेबल और एपिक-खोज योग्य फार्मेट में प्रकाशित करे; और आधार को मतदाता पंजीकरण के लिए मान्य दस्तावेज माना जाए, आयोग के पास बंद दरवाजों के पीछे छिपने का कोई कारण नहीं था.
नलिनी रंजन मोहंती लिखते हैं, आयोग ने कल प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन मतदाता सूची में किए गए कथित छेड़छाड़ के आरोपों को झूठ बोलकर टाल दिया. ज्ञानेश कुमार ने अपने ट्वीट्स की तरह कहा कि राहुल गांधी को आरोपों को शपथपूर्वक साबित करना चाहिए; यह एक साफ झूठ है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि 'शपथपूर्वक शिकायत' का कानून केवल मतदाता सूची तैयार करते समय लागू होता है, जबकि राहुल गांधी चुनाव के बाद अनियमितताओं का आरोप लगा रहे हैं.
ज्ञानेश कुमार का यह दोहरा मापदंड देखें : राहुल गांधी को शपथपूर्वक आरोप लगाने या माफी मांगने की चुनौती दी जाती है, जबकि सत्तारुढ़ भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर से ऐसी मांग नहीं की जाती, जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में रायबरेली और वायनाड सहित छह निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावी धोखाधड़ी का दावा किया.
चुनाव आयोग दोमुंही बातें इसलिए बोल रहा है, क्योंकि हमारे पास चुनाव संचालन करने वाली सर्वोच्च संस्था में डरपोक लोग हैं. यही कारण है कि उन्होंने इस बात का जवाब देने से इनकार कर दिया है कि महाराष्ट्र में मई 2024 के लोकसभा चुनाव और पिछले साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव के बीच पांच महीनों में मतदाताओं की संख्या में 8% की वृद्धि कैसे हुई? दोनों सूचियां राजनीतिक दलों को क्यों नहीं दी जा सकतीं? दरअसल, इन चुनाव आयुक्तों के पास छिपाने के लिए बहुत कुछ है.
जब हर दिन उनकी ईमानदारी पर सवाल उठ रहे हैं, तो अगर उनके पास सच होता, तो ज्ञानेश कुमार एंड कंपनी राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दाखिल करती. लेकिन वे डरते हैं, क्योंकि कोर्ट केस होने से नरेंद्र मोदी के नौकर के रूप में उनका “छल-कपट” सबके सामने आ जाएगा.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व संपादक हैं.
ज्ञानेश कुमार से योगेंद्र यादव के 10 सवाल
चुनाव विश्लेषक और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये 10 सवाल पूछे गए, लेकिन इनके जवाब नहीं मिले. ये 10 सवालों की सूची है :
1. चुनाव आयोग ने एसआईआर शुरू करने से पहले राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा क्यों नहीं किया?
2. बिहार में चुनाव वर्ष में एसआईआर न करने के चुनाव आयोग के अपने दिशानिर्देशों का उल्लंघन क्यों हुआ?
3. बिहार में बाढ़ के बीच, बिना किसी सूचना या तैयारी के इतनी जल्दी एसआईआर करने की क्या जल्दी थी?
4. बिहार में एसआईआर के दौरान (25 जून - 25 जुलाई) कितने मतदाता जोड़े गए?
5. कितने गणना प्रपत्र बिना किसी दस्तावेज़ संलग्न किए दायर किए गए हैं?
6. कितने फॉर्म बीएलओ द्वारा "अनुशंसित नहीं" के तौर पर चिह्नित किए गए? किस आधार पर?
7. एसआईआर के दौरान मौजूदा सूची में कितने विदेशी मतदाता पाए गए?
8. राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मतदाता सूची का प्रारूप क्यों बदला गया?
9. चुनाव आयोग ने अनुराग ठाकुर से शपथपत्र (एफिडेविट) की मांग क्यों नहीं की?
10. पूर्व में दायर शपथपत्रों के आधार पर (जैसे सपा द्वारा) कोई जांच क्यों नहीं की गई?
“हम अपने सीईसी को ढूंढ रहे थे, हमें एक नया भाजपा प्रवक्ता मिल गया”
सोमवार को विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि वह देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी व्यवस्था सुनिश्चित करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य को निभाने में विफल रहा है. उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वे मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने से पीछे नहीं हटेंगे, जिन पर उन्होंने आरोप लगाया कि वे "बीजेपी के प्रवक्ता" की तरह काम कर रहे हैं.
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, आठ प्रमुख राजनीतिक दलों — कांग्रेस, टीएमसी, सपा, डीएमके, राजद, माकपा, आप और शिवसेना (उद्धव बाला ठाकरे गुट) — के प्रतिनिधियों ने कहा कि सीईसी (मुख्य चुनाव आयुक्त) ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण और मतदाता सूची में गड़बड़ियों से जुड़े मुद्दों पर उनके सवालों का जवाब देने में "असफल" रहे और इसके बजाय रविवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्ष पर ही हमला करने का रास्ता चुना.
20 विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से जारी संयुक्त बयान में आरोप लगाया गया कि चुनाव आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी व्यवस्था सुनिश्चित करने के अपने संवैधानिक दायित्व को निभाने में "पूरी तरह विफल" रहा है. अब यह साफ हो गया है कि आयोग का नेतृत्व ऐसे अधिकारियों के पास नहीं है जो सभी दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित कर सकें.
फैक्ट चेक
सेना प्रमुख का वायरल वीडियो डीपफेक, 'ऑपरेशन सिंदूर' में नुकसान का दावा झूठा
सोशल मीडिया पर भारतीय थल सेनाध्यक्ष (COAS) उपेंद्र द्विवेदी का एक 40 सेकंड का वीडियो क्लिप वायरल हो रहा है, जिसमें वह कथित तौर पर 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारत को छह जेट और 250 सैनिकों के नुकसान की बात 'स्वीकार' कर रहे हैं. ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल में यह वीडियो डिजिटल रूप से परिवर्तित और नकली पाया गया है. वायरल क्लिप में, सेनाध्यक्ष द्विवेदी को यह कहते हुए सुना जा सकता है, "...हमने पहले ही छह जेट और 250 सैनिक खो दिए हैं, लेकिन हम कभी हार नहीं मानेंगे, हम सीखेंगे, और हमारे पास कुछ कटौतियां हैं."इस वीडियो को "ब्रेकिंग: भारतीय सेना प्रमुख ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में 6 जेट और 250 सैनिकों को खोने की बात स्वीकार की" जैसे कैप्शन के साथ साझा किया गया था.
जांच करने पर पाया गया कि वीडियो के जिस हिस्से में नुकसान की बात कही गई है, वहां सेना प्रमुख की आवाज़ बाकी वीडियो से अलग है और उनके होठों की हरकत भी आवाज़ से मेल नहीं खाती. सेना प्रमुख का पूरा भाषण ADGPI-INDIAN ARMY के यूट्यूब चैनल पर 9 अगस्त, 2025 को पोस्ट किया गया था, जो उन्होंने IIT मद्रास में दिया था.मूल भाषण में, उन्होंने कहीं भी भारत के जेट या सैनिकों को खोने का ज़िक्र नहीं किया है.
वीडियो की प्रामाणिकता की जांच के लिए जब एआई-जनित सामग्री डिटेक्टर टूल का इस्तेमाल किया गया, तो 98.9% संभावना पाई गई कि वीडियो में एआई या डीपफेक सामग्री है. पीआईबी फैक्ट चेक ने भी इस वीडियो को AI-जनित डीपफेक बताते हुए कहा है कि सेना प्रमुख ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया. इसलिए, यह स्पष्ट है कि वायरल क्लिप IIT मद्रास में COAS उपेंद्र द्विवेदी के मूल भाषण का एक डिजिटल रूप से परिवर्तित संस्करण है, जिसमें "हमने पहले ही छह जेट और 250 सैनिक खो दिए हैं..." वाली लाइन अलग से जोड़ी गई थी.
विश्लेषण
जनरल मनोज मुकुंद नरवणे : भारत के सामरिक स्तंभ ढह रहे हैं, आत्मसंतोष कोई विकल्प नहीं’
द प्रिंट ने पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे का ये लेख प्रकाशित किया है. उसके अंश
वैश्विक व्यवस्था पुनः संकट में है, कई संकटों ने पुराने विश्वासों को तोड़ा है और नई कमजोरियां उजागर हुई हैं. ऐसे बदलते विश्व में, भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और रक्षा संरचना को तीव्रता से नए, बहुध्रुवीय विश्व की चुनौतियों के लिए पुनः तैयार करना होगा.
यूक्रेन और गाजा में जारी युद्ध गहरे भू-राजनीतिक तनावों के दायरे में हैं. अमेरिका ने खुद को वैश्विक प्रहरी के रूप में पीछे हटाते हुए व्यापार युद्ध छेड़ दिया है, जिसने पुराने सहयोगियों के साथ रिश्ते तनावपूर्ण कर दिए हैं. भारत इन हंगामों के बीच फंसा है, जहां उसका मुख्य प्रतिद्वंद्वी चीन ने पाकिस्तान के साथ रणनीतिक साझेदारी मजबूत कर ली है. अमेरिका और भारत के संबंध भी तनावपूर्ण हैं, खासकर ट्रंप प्रशासन के दौरान.
शीत युद्ध के बाद वैश्विक व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर हो रही है. यूक्रेन युद्ध पश्चिमी निवारण की सीमाओं और रूस की हठधर्मिता को दिखाता है. गाजा संघर्ष मानवीय त्रासदी बन चुका है. ये संघर्ष व्यापक नियम आधारित व्यवस्था के विघटन के लक्षण हैं, जिसमें शक्ति बढ़ती जा रही है और गठबंधनों की मजबूती शक के घेरे में है.
भारत की रणनीति मुख्य रूप से तीन स्तंभों पर आधारित है: चीन-पाकिस्तान के खिलाफ मजबूत निवारक स्थिति, अमेरिका के साथ बढ़ती साझेदारी, और बहुपक्षवाद के माध्यम से वैश्विक मंचों में भागीदारी. लेकिन ये स्तंभ अब दबाव में हैं. चीन की आक्रामकता, हिंद महासागर में उसकी नौसैनिक सक्रियता, और पाकिस्तान के साथ उसकी करीबी भारत के लिए जटिल खतरा हैं. भारत-अमेरिका संबंधों में गिरावट और पाकिस्तान की परमाणु धमकियां भारत के लिए नई चुनौतियां हैं.
इस परिप्रेक्ष्य में भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का व्यापक नवीनीकरण करना होगा. बहुध्रुवीय विश्व को स्वीकार करते हुए रणनीतिक साझेदारियां बढ़ानी होंगी. क्वाड के अलावा फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, आसियान, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के साथ कनेक्शन मजबूत करना जरूरी है. नए क्षेत्रीय गठबंधनों की खोज करनी चाहिए.
रक्षा आधुनिकीकरण को तेज करना होगा—तकनीकी श्रेष्ठता, साइबर युद्ध, अंतरिक्ष निगरानी, बेड़े के बिना पायलट वाले सिस्टम में निवेश अनिवार्य हैं. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडोओ) को नवाचार के लिए पुनर्गठित करना होगा.
आंतरिक सुरक्षा पर पुनर्विचार, विशेषकर आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए केंद्र और राज्य एजेंसियों का समन्वय बेहतर करना जरूरी है. अर्धसैनिक बलों का आधुनिकीकरण और सेना के साथ समन्वय बढ़ाना आवश्यक है.
परमाणु नीति में परिपक्वता—कोई पहला प्रयोग न करने की नीति के साथ परमाणु ब्लैकमेल का निर्णायक जवाब देने के लिए तत्परता दिखानी होगी. पाकिस्तान की परमाणु धमकियों का स्पष्ट और साहसिक जवाब देना होगा.
भारत को अपनी आर्थिक ताकत को रणनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना होगा. अमेरिका पर निर्भरता कम करते हुए व्यापार समझौतों को तेज गति से लागू करना, विदेशी निवेश आकर्षित करना, और आर्थिक गलियारों का निर्माण करना होगा.
साथ ही रणनीतिक संवाद में सुधार कर भारत को एक जिम्मेदार और स्थिर शक्ति के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी छवि बनानी चाहिए. समसामयिक खतरों और अनिश्चितताओं के बावजूद, यह भारत के लिए एक अवसर भी है कि वह अपनी सुरक्षा संरचना को मजबूत और अनुकूल बनाकर विश्व मंच पर अपनी स्थिति पुनः परिभाषित करे.
हेट अलर्ट
‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्री राम’ नहीं बोलने पर मुस्लिम को पीटा, कहा-सरकार तो हिंदुओं की है
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में 15 अगस्त के दिन एक मुस्लिम व्यक्ति से "भारत माता की जय" और "जय श्री राम" का नारा लगवाने की कोशिश की गई और जब उसने इनकार किया तो उसके साथ मारपीट की गई. घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें सहारनपुर निवासी पीड़ित रिजवान अहमद को सड़क पर पीटा जा रहा है और उससे जबरदस्ती "जय श्री राम" बुलवाया जा रहा है.
"द इंडियन एक्सप्रेस" के अनुसार, रिज़वान ने एफआईआर में लिखाया है, “उन्होंने मेरी दाढ़ी पकड़ ली, ज़ोर से खींचा और चिल्लाए: 'इस आदमी की दाढ़ी काट दो!’ उन्होंने इस हमले का वीडियो बना लिया. मुझे ज़बरदस्ती ‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्री राम’ बोलने पर मजबूर किया गया. किसी तरह मैं दुकान के पिछले हिस्से से भागकर अपनी गाड़ी की ओर दौड़ा." इसी शिकायत में अहमद ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने उसी दिन सहारनपुर के एक और व्यक्ति, मुख्तियार इस्लाम, को भी धमकाया और उसे भी ‘जय श्री राम’ बोलने पर मजबूर करने की कोशिश की.
अहमद के साथ घटना का वीडियो दिखाता है कि तीनों आरोपियों की पिटाई के बाद वह खून से लथपथ था. एक अन्य व्यक्ति ने इस घटना को वीडियो में रिकॉर्ड किया और चाय की दुकान का मालिक यह सब देखता रहा. वीडियो में अहमद को लगातार गालियां दी जा रही थीं और आरोपियों ने उसके साथ सांप्रदायिक अपशब्दों का इस्तेमाल किया. इनमें से एक आरोपी उससे पूछ रहा था कि वह स्वतंत्रता दिवस पर ‘भारत माता की जय’ क्यों नहीं बोल सकता, जबकि दूसरा कह रहा था: “अगर हिंदुस्तान में रहना है तो ‘जय श्री राम’ बोलना पड़ेगा.” आरोपी यह भी कहते नज़र आए कि “सरकार तो हिंदुओं की है” — और अहमद धीरे से नारे दोहराता रहा. इसी दौरान एक आरोपी कहते हुए सुना गया: “हम तुम्हें हलाल से भी काट देंगे और झटके से भी.” पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज कर मुकेश भट्ट, नवीन भण्डारी और मनीष बिष्ट नामक तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया है.
भीलवाड़ा में दान पेटी के विवाद पर दलित पुजारी की पिटाई
भीलवाड़ा जिले के बराना गांव के एक दलित पुजारी ने आरोप लगाया है कि उनके साथ मारपीट की गई और खाकुल देव जी मंदिर में पूजा करने से रोका गया. यह विवाद एक दान पेटी की स्थापना को लेकर हुआ. मेघवाल समुदाय के पुजारी विष्णु बलाई ने दावा किया कि शुक्रवार को जब वे मंदिर में पूजा करने गए, तो कुछ ग्रामीणों ने उन पर हमला किया और उन्हें पूजा करने से रोक दिया. हालांकि, ग्रामीणों ने इन आरोपों को खारिज कर दिया. उनका कहना है कि बलाई मंदिर विकास के लिए दान पेटी लगाने का लगातार विरोध कर रहे थे. ग्रामीणों ने उन पर मंदिर की संपत्ति का गलत उपयोग करने, कबूतरों के लिए अनाज बेचने और झूठी शिकायत दर्ज कराने का आरोप लगाया.
“टाइम्स ऑफ इंडिया” के मुताबिक, स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता संपत लाल जाट ने कहा कि खाकुल देव जी मंदिर मेघवाल समाज द्वारा सदियों से पूजा जाता रहा है और बलाई वहां लंबे समय से पूजा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर विकास समिति, जिसमें सभी समुदायों के सदस्य शामिल हैं, ने मंदिर विकास के लिए फंड जुटाने के लिए दान पेटी रखने का फैसला किया था.
उत्तराखंड में नए कानून से समाप्त होगा मदरसा बोर्ड, अल्पसंख्यक शिक्षा के लाभ मुसलमानों तक सीमित नहीं
उत्तराखंड सरकार ने एक नया विधेयक लाने का फैसला किया है, जिसके तहत मदरसा बोर्ड को समाप्त कर दिया जाएगा. कैबिनेट ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान विधेयक, 2025 पेश करने का निर्णय लिया है, जिसमें कई प्रावधानों के साथ-साथ राज्य में मदरसा बोर्ड और अल्पसंख्यक संचालित संस्थानों से जुड़े नियमों को समाप्त किया जाएगा.
ऐश्वर्या राज के अनुसार, प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा मुसलमानों के अलावा अन्य अल्पसंख्यक समुदायों तक भी विस्तारित करना है, जिससे अब सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों को भी इसके लाभ मिल सकेंगे. इस कदम के कारण मुस्लिम संगठनों में चिंता पैदा हुई है कि इस कानून के लागू होने से उनके संविधान के अनुच्छेद 26 और 30 के तहत प्राप्त शिक्षा संस्थान चलाने एवं धार्मिक मामलों के संचालन के अधिकारों में कमी आ सकती है.
प्रस्तावित विधेयक, यदि पारित होता है, तो यह अगले वर्ष 1 जुलाई से मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों में गुरुमुखी और पाली भाषा के अध्ययन की अनुमति देगा और साथ ही उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 तथा उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियमावली, 2019 को भी समाप्त कर देगा. इन नियमों के अनुसार मदरसा बोर्ड को पाठ्यक्रम तैयार करने, दिशा-निर्देश निर्धारित करने, परीक्षाएं आयोजित करने और मदरसों का निरीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं. वर्तमान में, बोर्ड के पास एक मान्यता समिति है, जो मदरसों को मान्यता देने का कार्य करती है. बोर्ड के नियमों के अनुसार, “समिति में 13-सदस्यीय बोर्ड द्वारा नामित एक सदस्य, ‘शैक्षणिक पद’ वाला एक सदस्य, उप पंजीयक और ‘प्रधानाध्यापक स्तर’ का एक सदस्य शामिल होगा.” प्रस्तावित विधेयक से संस्थानों की मान्यता शून्य हो सकती है, क्योंकि यह सिखों, जैनों, ईसाइयों, बौद्धों और पारसियों को अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान चलाने की अनुमति देता है, जबकि वर्तमान में यह प्रावधान केवल मुसलमानों के लिए है. वर्तमान में, पूरे राज्य में 452 “मान्यता प्राप्त” मदरसे संचालित हो रहे हैं.
सिमी से संबंध साबित नहीं, 18 साल बद जेल से छूटे 8 मुस्लिम युवक
नागपुर कोर्ट ने 18 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़े मामले में आरोपित आठ मुस्लिम युवकों को बरी कर दिया है. इन पर सिमी की बैठकें आयोजित करने और उन्हें फण्ड करने के आरोप लगे थे, लेकिन सबूत के अभाव की वजह से इन युवकों को बरी कर दिया गया है.
मकतूब मीडिया के मुताबिक, न्यायिक मजिस्ट्रेट ए.के. बंकार ने अपने आदेश में कहा कि “आरोपियों द्वारा बैठकों में भाग लेने, संचार, प्रचार करने या किसी प्रकार से, चाहे वित्तीय या अन्य तरीके से, सहयोग करने का कोई प्रमाण नहीं है.” कोर्ट ने यह भी कहा कि “किसी प्रतिबंधित संगठन से कथित रूप से जुड़े साहित्य या दस्तावेज़ों को सिर्फ अपने पास रखना, कानून में तय मानकों को पूरा नहीं करता.”
पुतिन के बाद ट्रम्प ज़ेलेंस्की से मिले, सात यूरोपीय नेताओं के साथ
यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी, क्षेत्रीय रियायतों पर चर्चा; पुतिन के साथ त्रिपक्षीय बैठक की तैयारी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने सोमवार को व्हाइट हाउस में यूरोपीय नेताओं की मौजूदगी में एक उच्च-स्तरीय बैठक की. फरवरी में हुई उनकी तनावपूर्ण मुलाकात के विपरीत, इस बार माहौल काफ़ी दोस्ताना था, हालांकि बातचीत के एजेंडे में युद्ध समाप्त करने के लिए सुरक्षा गारंटी और क्षेत्रीय रियायतें जैसे जटिल मुद्दे शामिल थे. इस बैठक का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यूक्रेन के लिए किसी भी शांति समझौते के तहत मजबूत अमेरिकी सुरक्षा गारंटी का ट्रम्प द्वारा दिया गया समर्थन था, जिसे कीव के लिए एक बड़ी खबर माना जा रहा है.
यह बैठक यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. बैठक से पहले के कुछ दिन तनावपूर्ण थे, जिसमें ट्रम्प ने शांति स्थापित करने के लिए ज़ेलेंस्की की इच्छा पर सवाल उठाया था. वहीं, यूक्रेनी अधिकारियों को चिंता थी कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अलास्का में हुए शिखर सम्मेलन के दौरान ट्रम्प को प्रभावित किया हो सकता है. हालांकि, सोमवार को ट्रम्प ने यूक्रेन को "बहुत अच्छी सुरक्षा" देने का वादा किया. जब उनसे पूछा गया कि क्या युद्ध के बाद यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी के लिए अमेरिका सैनिक भेजने को तैयार है, तो ट्रम्प ने कहा कि यूरोपीय देश "रक्षा की पहली पंक्ति" होंगे लेकिन "हम शामिल होंगे."
बैठक के दौरान, ट्रम्प ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ज़ेलेंस्की को शामिल करते हुए एक त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन की अपनी इच्छा दोहराई. उन्होंने कहा कि पुतिन के साथ उनकी बातचीत होगी और वह "इस बैठक के समाप्त होने पर मेरे फोन का इंतजार कर रहे हैं." ज़ेलेंस्की और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों सहित यूरोपीय नेताओं ने भी इस विचार का समर्थन किया. ट्रम्प ने यह भी संकेत दिया कि पुतिन जल्द ही 1,000 से अधिक यूक्रेनी कैदियों को रिहा कर सकते हैं. एजेंडे में क्षेत्रीय रियायतों का मुद्दा भी था, जिसे ट्रम्प शांति के लिए आवश्यक मानते हैं. हालांकि, ज़ेलेंस्की ने यूक्रेनी क्षेत्र को छोड़ने के सवाल पर सीधा जवाब नहीं दिया, लेकिन बैठक से पहले सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया था कि वह क्षेत्र नहीं छोड़ेंगे.
इस बैठक में ज़ेलेंस्की और ट्रम्प के अलावा सात यूरोपीय नेता भी शामिल हुए, जिन्होंने एकजुटता का संदेश दिया. इतालवी प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने कहा, "अगर हम शांति चाहते हैं तो हमें एकजुट होकर काम करना होगा. हम यूक्रेन के पक्ष में हैं." फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब ने कहा, "यह टीम यूरोप और टीम संयुक्त राज्य अमेरिका है जो यूक्रेन की मदद कर रही है." यूरोपीय नेताओं ने ट्रम्प पर शांति के लिए यूक्रेन का समर्थन करने के नाजुक तर्क को आगे बढ़ाने की कोशिश की. नाटो महासचिव मार्क रूट ने यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी में अमेरिकी समर्थन की पेशकश को शांति हासिल करने की दिशा में एक "बड़ी सफलता" बताया.
हालांकि पुतिन बैठक में मौजूद नहीं थे, लेकिन उनकी उपस्थिति महसूस की गई. ट्रम्प ने अपने रूसी समकक्ष के बारे में कहा, "मैं उन्हें लंबे समय से जानता हूं, मेरे उनके साथ हमेशा अच्छे संबंध रहे हैं." ट्रम्प ने विश्वास जताया कि पुतिन भी इस मुद्दे का हल चाहते हैं. बैठक में माहौल फरवरी की तुलना में काफी हल्का-फुल्का था. ज़ेलेंस्की ने ट्रम्प के प्रयासों के लिए उन्हें कई बार धन्यवाद दिया. एक पत्रकार द्वारा ज़ेलेंस्की के सूट की तारीफ करने पर ट्रम्प ने भी उनकी पोशाक की सराहना की, जबकि पिछली बैठक में ज़ेलेंस्की के पहनावे ने ट्रम्प को नाराज कर दिया था.
अब आगे क्या होगा, यह पुतिन के साथ प्रस्तावित त्रिपक्षीय बैठक पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. ट्रम्प को उम्मीद है कि यह जल्द ही होगा, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या पुतिन बातचीत के लिए गंभीर हैं या केवल समय निकालने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा कि कई आलोचकों को संदेह है. ट्रम्प ने कहा, "अगले एक या दो सप्ताह में हमें पता चल जाएगा कि हम इसे हल करने जा रहे हैं या यह भयानक लड़ाई जारी रहेगी."
तेज प्रताप यादव की पार्टी का नाम “जेजेडी”
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले एक नई राजनीतिक पार्टी जनशक्ति जनता दल (जेजेडी) का गठन किया है. पुष्ट सूत्रों ने बताया कि अब निर्वाचन आयोग ने जेजेडी को औपचारिक रूप से पंजीकृत कर लिया है.
असम में निजी कंपनी को 3,000 बीघा भूमि आवंटित, गुवाहाटी हाईकोर्ट बोला- “क्या यह कोई मजाक है?”
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम के जनजातीय बहुल दीमा हसाओ ज़िले में एक निजी कंपनी को सीमेंट कारखाना स्थापित करने के लिए 3,000 बीघा (लगभग 4 वर्ग किलोमीटर) भूमि आवंटित करने पर कड़े शब्दों में टिप्पणी की है. पिछले हफ्ते एक सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने राज्य सरकार को उस नीति को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसके तहत संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में “इतनी बड़ी मात्रा में भूमि” आवंटित की गई है.
सुकृता बरुआ के अनुसार, दीमा हसाओ, असम का एक जनजातीय बहुल पहाड़ी ज़िला है, जिसका प्रशासन भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के प्रावधानों के अंतर्गत,उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद (एनसीएचएसी) के माध्यम से किया जाता है. अक्टूबर 2024 में, महाबल सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड (जिसका पंजीकृत पता कोलकाता में है) को 2,000 बीघा भूमि आवंटित की गई थी. उसी वर्ष नवंबर में, कंपनी को इसके ठीक समीप 1,000 बीघा भूमि और आवंटित कर दी गई. यह आवंटन आदेश, जिसे अतिरिक्त सचिव, राजस्व, एनसीएचएसी द्वारा जारी किया गया है, बताता है कि आवंटन का उद्देश्य सीमेंट प्लांट की स्थापना है. संयोगवश, महाबल सीमेंट ने इस वर्ष फरवरी में असम सरकार के मेगा निवेश सम्मेलन के दौरान राज्य के साथ ₹11,000 करोड़ के निवेश के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें कंपनी के एक प्रवक्ता ने बताया था कि वे दीमा हसाओ में एक सीमेंट प्लांट स्थापित करेंगे.
गत सप्ताह इस आवंटन से संबंधित दो याचिकाओं की सुनवाई के दौरान, जिनमें से एक स्थानीय निवासियों द्वारा दायर की गई थी—जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्हें उनकी भूमि से बेदखल किया जा रहा है—जस्टिस संजय कुमार मेधी की बेंच ने टिप्पणी की, “3,000 बीघा!... यह क्या हो रहा है? किसी निजी कंपनी को 3,000 बीघा भूमि आवंटित? यह किस प्रकार का निर्णय है? क्या यह कोई मजाक है?”
चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत दौरे पर, सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों पर होगी चर्चा
चीनी विदेश मंत्री वांग यी सोमवार, 18 अगस्त, 2025 को दो दिवसीय यात्रा पर भारत पहुंचे. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ द्विपक्षीय और व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए चर्चा शुरू की. इस बातचीत में जयशंकर ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को "आगे बढ़ाने" की आवश्यकता पर ज़ोर दिया. हिंदू में सुहासिनी हैदर के मुताबिक दोनों नेताओं ने इस महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा की तैयारियों पर भी चर्चा की.
यह यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. पिछले साल अक्टूबर 2024 में कज़ान में प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक के बाद यह पहली मंत्रिस्तरीय यात्रा है. उस बैठक में दोनों नेता चार साल के सैन्य गतिरोध के बाद संबंधों को सामान्य बनाने पर सहमत हुए थे. अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में, जयशंकर ने कहा कि "हमारे संबंधों में एक कठिन दौर देखने के बाद... हमारे दोनों राष्ट्र अब आगे बढ़ना चाहते हैं." उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि हमारे संबंधों में किसी भी सकारात्मक गति का आधार सीमावर्ती क्षेत्रों में संयुक्त रूप से शांति बनाए रखने की क्षमता है.
मंगलवार, 19 अगस्त, 2025 को वांग यी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिलेंगे.यह विशेष प्रतिनिधियों की 24वीं दौर की वार्ता होगी, जिसमें भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के समाधान पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी भी मंगलवार शाम को वांग यी से मुलाकात करेंगे, जो टियांजिन में SCO शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी बैठकों से पहले एक विशेष भाव है. दोनों पक्षों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली और चीनी पर्यटकों के लिए भारतीय वीज़ा फिर से शुरू करने जैसे सकारात्मक विकास हुए हैं.इसके अलावा, नदी के जल डेटा को साझा करने और 2020 से निलंबित भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने पर भी चर्चा चल रही है.
जियो ने बंद किया अपना सबसे सस्ता 1 जीबी/दिन वाला प्लान, अब 1.5 जीबी होगा शुरुआती विकल्प.
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक मुकेश अंबानी की कंपनी जियो ने अपना एंट्री-लेवल 1 जीबी प्रति दिन वाला प्रीपेड प्लान बंद कर दिया है. 28 दिनों की वैधता वाले इस प्लान की क़ीमत 249 रुपये थी. अब ग्राहकों के लिए शुरुआती विकल्प 1.5 जीबी प्रति दिन वाला पैक होगा. यह बदलाव जियो की आधिकारिक वेबसाइट पर भी दिखने लगा है, जहां अब 1 जीबी प्रति दिन का कोई विकल्प मौजूद नहीं है. इस बदलाव का मतलब है कि जियो के ग्राहकों के लिए अब मोबाइल डेटा का शुरुआती खर्च बढ़ जाएगा. जो यूज़र्स कम डेटा इस्तेमाल करते थे और 1 जीबी वाले प्लान से काम चलाते थे, उन्हें अब मज़बूरन ज़्यादा क़ीमत वाला 1.5 जीबी का प्लान लेना होगा. यह कंपनी की प्रति यूज़र औसत कमाई (ARPU) बढ़ाने की एक रणनीति हो सकती है. ट्राई (TRAI) के आंकड़ों के मुताबिक़, जियो ने जून में 19 लाख नए वायरलेस ग्राहक जोड़े, जबकि एयरटेल ने 7,63,482 यूज़र्स जोड़े. इसी दौरान, वोडाफ़ोन-आइडिया (Vi) ने 2,17,816 और बीएसएनएल (BSNL) ने 3,05,766 ग्राहक खो दिए. देश में कुल वायरलेस ग्राहकों की संख्या बढ़कर 116.3 करोड़ हो गई है. एक्टिव सब्सक्राइबर्स के मामले में भी जियो 46.44 करोड़ यूज़र्स के साथ सबसे आगे है.
यह क़दम ऐसे समय में उठाया गया है जब जियो लगातार अपना ग्राहक आधार बढ़ा रहा है और बाज़ार में अपनी पकड़ मज़बूत कर रहा है. अपने प्रतिद्वंद्वियों के ग्राहक खोने के बीच जियो अपने सबसे सस्ते प्लान को हटाकर मुनाफ़े को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. कंपनी अब कम क़ीमत पर ग्राहक जोड़ने के बजाय मौजूदा ग्राहकों से ज़्यादा कमाई करने पर ज़ोर दे रही है. इस बदलाव के बाद उम्मीद है कि एयरटेल और वोडाफ़ोन-आइडिया जैसी दूसरी कंपनियां भी अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती हैं. हो सकता है कि वे भी अपने एंट्री-लेवल प्लान्स की क़ीमतों में बढ़ोतरी करें. ग्राहकों को अब अपनी डेटा ज़रूरतों का फिर से आकलन करना होगा और उसके हिसाब से नया प्लान चुनना होगा.
ट्रम्प के सलाहकार ने कहा- भारत को रूसी कच्चे तेल की खरीद रोकनी होगी.
रॉयटर्स के मुताबिक व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने कहा है कि भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल की खरीद से यूक्रेन में मॉस्को के युद्ध को फ़ंडिंग मिल रही है और इसे रुकना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार बनना चाहता है, तो उसे वैसा ही व्यवहार करना शुरू करना होगा. यह बयान भारत पर अमेरिकी दबाव को दिखाता है कि वह रूस के साथ अपने व्यापारिक, विशेषकर ऊर्जा संबंधों को कम करे. अमेरिका भारत के रूस और चीन के साथ बढ़ते संबंधों को लेकर चिंतित है और इसे अपनी विदेश नीति के लिए एक चुनौती के रूप में देख रहा है.
नवारो ने फ़ाइनेंशियल टाइम्स में लिखे एक लेख में कहा कि नई दिल्ली "अब रूस और चीन दोनों के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है". उन्होंने यह भी कहा कि भारत रूसी तेल के लिए एक 'ग्लोबल क्लियरिंगहाउस' के रूप में काम कर रहा है, जो प्रतिबंधित कच्चे तेल को महंगे निर्यात में बदलकर मॉस्को को डॉलर कमाने में मदद कर रहा है. इसके जवाब में, भारत के विदेश मंत्रालय ने पहले कहा है कि भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए ग़लत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है, जबकि अमेरिका और यूरोपीय संघ ख़ुद रूस से सामान खरीदना जारी रखे हुए हैं.
यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत और चीन के बीच तनाव कम करने और संबंध सुधारने की कोशिशें चल रही हैं. वहीं, अमेरिका और भारत के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत रुकी हुई है. नवारो की टिप्पणी भारत को यह संदेश देने की कोशिश है कि रूस और चीन के साथ नज़दीकियां बढ़ाने पर उसे अमेरिकी आर्थिक और सैन्य सहयोग जैसे क्षेत्रों में नुक़सान उठाना पड़ सकता है. भारत पर कूटनीतिक दबाव बढ़ने की संभावना है. हालांकि, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) जैसे भारतीय रिफ़ाइनर्स ने स्पष्ट किया है कि वे आर्थिक फ़ायदे के आधार पर रूसी तेल खरीदना जारी रखेंगे. अब यह देखना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अमेरिकी दबाव और देश की ऊर्जा ज़रूरतों के बीच कैसे संतुलन बनाती है.
रजनीकांत के 50 साल: 'फ़ैमिली-फ्रेंडली' सुपरस्टार अब क्यों अपना रहे हैं डार्क क़िरदार
सुपरस्टार रजनीकांत ने फ़िल्म इंडस्ट्री में 50 साल पूरे कर लिए हैं. उनकी शुरुआत 1975 में के. बालाचंदर की फ़िल्म 'अपूर्वा रागांगल' से हुई थी. इन पांच दशकों में, रजनीकांत ने एक बस कंडक्टर से भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े आइकॉन तक का सफ़र तय किया है. हाल के वर्षों में, उन्होंने अपनी 'फ़ैमिली-फ्रेंडली' हीरो की छवि से हटकर 'जेलर' और आने वाली फ़िल्म 'कुली' जैसी गंभीर और ज़्यादा हिंसक भूमिकाएं निभानी शुरू कर दी हैं. हिंदू ने इस पर एक लम्बा फीचर किया है. यह रजनीकांत के करियर में एक बड़े बदलाव का प्रतीक है. यह दिखाता है कि सुपरस्टार समय के साथ ख़ुद को बदलने और नई पीढ़ी के दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए तैयार हैं. वे अब सिर्फ़ अपने स्टारडम पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि किरदारों के साथ प्रयोग कर रहे हैं, जो उनकी लंबी पारी का राज़ है.

शिवाजी राव गायकवाड़ से रजनीकांत बनने का सफ़र आसान नहीं था. शुरुआती दौर में उन्होंने विलेन के किरदार निभाए. 80 के दशक में उन्होंने एक्शन हीरो के तौर पर अपनी जगह बनाई और बॉलीवुड में भी 'अंधा क़ानून' जैसी फ़िल्मों से क़दम रखा. 90 का दशक 'बाशा', 'पडयप्पा' और 'मुथु' जैसी फ़िल्मों के साथ आया, जिसने उन्हें तमिल परिवारों का पसंदीदा बना दिया. 'जेलर' उनकी अब तक की सबसे हिंसक फ़िल्मों में से एक है, और 'कुली' 36 सालों में उनकी पहली 'ए' सर्टिफ़िकेट वाली फ़िल्म होगी. रजनीकांत का करियर सिर्फ़ हिट फ़िल्मों का नतीजा नहीं है, बल्कि बाज़ार की ताक़तों को समझते हुए लगातार ख़ुद को बदलने की एक सोची-समझी रणनीति का परिणाम है. जब उन्हें लगा कि दर्शक उन्हें पुराने और अप्रासंगिक मान रहे हैं, तो उन्होंने पा. रंजीत की 'काला' और 'कबाली' जैसी फ़िल्मों के ज़रिए अपनी छवि को बदला. अब वे युवा निर्देशकों के साथ काम कर रहे हैं जो उन्हें ज़्यादा वास्तविक और गंभीर किरदारों में पेश करना चाहते हैं.
रजनीकांत अब अपनी सुपरस्टार वाली छवि की सीमाओं को परखने के लिए तैयार हैं. 'वेट्टैयन' और 'कुली' जैसी फ़िल्में इस बात का संकेत हैं कि वह अब सुरक्षित रास्ते पर नहीं चलना चाहते. वे आज के दर्शकों के लिए ज़्यादा यथार्थवादी और दमदार एक्शन फ़िल्में कर रहे हैं. यह साबित करता है कि सुपरस्टार को अब सबको खुश करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह हमेशा हर उम्र के दर्शकों के लिए सुपरस्टार रहेंगे.
चलते चलते
कंबल लपेटकर लिखी गई ‘एनीमल फार्म’ के 80 साल! आज भी लागू है जॉर्ज ऑर्वेल की चेतावनी
जब सूअरों में बदल गए इंसान और इंसानों में सुअर
आज से 80 साल पहले 17 अगस्त 1945 को एक ऐसी किताब प्रकाशित हुई जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस वक़्त थी. जॉर्ज ऑर्वेल का 'एनीमल फार्म' केवल एक कहानी नहीं, बल्कि तानाशाही की एक कड़वी सच्चाई है जो हर युग में दोहराई जाती है.यह कहानी शुरू होती है 1943-44 की सर्द सर्दियों में लंदन के किलबर्न इलाके के एक ठंडे फ्लैट से. द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था और जॉर्ज ऑर्वेल अपनी पत्नी ईलीन के साथ कंबल में दुबके हुए इस अमर कृति को लिख रहे थे. रोज़ रात को ऑर्वेल अपनी पत्नी को दिन भर लिखा गया हिस्सा सुनाते और दोनों मिलकर कहानी को आगे बढ़ाने पर चर्चा करते. ईलीन के सहयोग से ही यह किताब अपना अंतिम रूप पा सकी. आर्वेल का जन्म बिहार के मोतीहारी में 1903 में हुआ था.
लेकिन 'एनीमल फार्म' का जन्म आसान नहीं था. पांच बड़े प्रकाशकों ने इसे छापने से मना कर दिया था. कारण? ब्रिटेन उस वक़्त सोवियत रूस का सहयोगी था और स्टालिन की आलोचना करना राजनीतिक रूप से ग़लत माना जा रहा था. यहां तक कि टी.एस. इलियट ने भी कहा था कि "यह सही समय नहीं है राजनीतिक स्थिति की आलोचना करने का." अंततः फ्रेड्रिक वार्बर्ग ने हिम्मत दिखाई और इसे प्रकाशित करने का फैसला लिया.
सुअरों की सत्ता और इंसानी फितरत
'एनीमल फार्म' की कहानी सादी है लेकिन गहरी. मिस्टर जोन्स नाम के किसान के जानवर उसके ख़िलाफ़ बग़ावत करते हैं और खेत पर अपना राज स्थापित करते हैं. शुरुआत में सभी जानवर बराबर हैं, लेकिन धीरे-धीरे सूअर सत्ता हथियाते जाते हैं. नेपोलियन नाम का सुअर तानाशाह बन जाता है और आख़िर में वही हाल होता है जिससे बचने के लिए क्रांति हुई थी - "बाहर के जीवों ने सुअर से इंसान की ओर देखा, फिर इंसान से सुअर की ओर, और फिर सुअर से इंसान की ओर. लेकिन अब यह कहना नामुमकिन हो गया था कि कौन कौन है."
ऑर्वेल ने इस कहानी के ज़रिए दिखाया कि कैसे हर क्रांति अपनी ही बर्बादी के बीज अपने साथ लेकर आती है. वह दस अहम सबक़ देते हैं जो आज भी उतने ही सच हैं.
पहले सुअरों ने सिर्फ़ दूध और सेब अपने लिए रखे - दिमाग़ी काम के लिए ज़रूरी बताकर. यह छोटी असमानता धीरे-धीरे बड़े अत्याचार में बदल गई. भाषा हक़ीक़त को नियंत्रित करने का हथियार बन गई. रात में नियम बदले जाते - "कोई जानवर शराब नहीं पिएगा" बन जाता "कोई जानवर ज़्यादा शराब नहीं पिएगा."
नेपोलियन ने कुत्तों को अपनी सुरक्षा के लिए तैयार किया और बाक़ी जानवरों को अनपढ़ रखा ताकि वे बदले गए नियम न पढ़ सकें. इतिहास को मिटाया गया - जो स्नोबॉल नाम का सुअर पहले हीरो था, बाद में उसे ग़द्दार बताया गया.
प्रोपेगेंडा यानी भ्रामक प्रचार शारीरिक बल से ज़्यादा शक्तिशाली साबित हुआ. स्क्वीलर नाम का सुअर हमेशा डराता रहता कि "जोन्स वापस आ जाएगा" अगर जानवर नहीं माने. झूठे आंकड़े दिए जाते कि उत्पादन बढ़ा है जबकि जानवर भूखे मर रहे थे. सबसे दिल दहलाने वाला किरदार है बॉक्सर घोड़े का, जिसका नारा था "मैं और मेहनत करूंगा" और "नेपोलियन हमेशा सही है." जब वह काम के कारण बीमार पड़ा, तो नेपोलियन ने उसे गोंद की फैक्ट्री में बेच दिया शराब के पैसों के लिए, जबकि जानवरों से कहा कि वह अस्पताल में मर गया.
आज का संदर्भ
ऑर्वेल के बेटे रिचर्ड ब्लेयर कहते हैं कि 'एनीमल फार्म' केवल रूसी क्रांति की आलोचना नहीं है, बल्कि हर उस राजनीतिक नेता के ख़िलाफ़ चेतावनी है जो नेक मक़सद का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए करता है. आज जब दुनिया में तानाशाही, राष्ट्रवाद, विदेशी विरोध और राजनीतिक झूठ बढ़ रहे हैं, यह किताब पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गई है. 80 साल में इसकी 1.1 करोड़ कॉपियां बिक चुकी हैं और यह कभी प्रिंट से बाहर नहीं गई. म्यांमार, ज़िम्बाब्वे और यूक्रेन जैसे देशों में लोकतंत्र की लड़ाई में इसका इस्तेमाल होता रहा है.
ऑर्वेल का यह वाक्य आज भी गूंजता है - "बाहर के जीवों ने सुअर से इंसान की ओर देखा, और इंसान से सुअर की ओर, और फिर सुअर से इंसान की ओर. लेकिन अब यह कहना असंभव हो गया था कि कौन कौन है."
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