19/11/2025: रिहायशी इलाके में विस्फोटक क्यों ले गई पुलिस? | एकदलीय लोकतंत्र | डोभाल का मुकरना | हसीना का क्या होगा? | भारत से सोमालिया उड़ते परिंदे | चुंबन पहले आया या इंसान?
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
नौगाम धमाका, 3000 किलो विस्फोटक और लापरवाही के सवाल
विस्फोटक सिलने गए दर्ज़ी की मौत, पीछे छोड़ गए बेसहारा परिवार
डोभाल का पुराना वीडियो वायरल, आईएसआई पर बयान से मुकरे
एक दलीय व्यवस्था की ओर भारत, डर और संस्थाओं पर क़ब्ज़ा
सिद्धू मूसेवाला का हत्यारा अनमोल बिश्नोई अमेरिका से भारत लाया गया
चीनी हथियारों से जीता पाकिस्तान, अमेरिकी रिपोर्ट का दावा
हम 2015 में भारतीय बने, 2002 की सूची से हमें क्यों परख रहे हैं
शेख हसीना का क्या करे भारत, प्रत्यर्पण की राह में कई पेंच
रिकॉर्ड तोड़ व्यापार घाटा, निर्यात में भारी गिरावट
ईरान ने भारतीयों के लिए वीज़ा-मुक्त प्रवेश पर लगाई रोक
निवर्तमान सीजेआई ने पर्यावरण पर अपना ही फ़ैसला पलटा, निराशा
जापान से फिर पिछड़ा भारत, चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं
‘बाप बोल मुझे’, दलित सब्ज़ी विक्रेता की बर्बर पिटाई
नया डेटा क़ानून, पत्रकारिता और आरटीआई पर बड़ा ख़तरा
29 साल बाद बेगुनाह साबित, सबूतों के अभाव में इलियास बरी
नन्हा बाज़ 5 दिन में 5000 किमी उड़कर सोमालिया पहुँचा
इंसान ने 2.1 करोड़ साल पहले सीखा था चूमना
नौगाम धमाका
क्या सोच कर ले गये थे रिहायशी पुलिस स्टेशन में 3,000 किलो विस्फोटक, कई सवाल
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के लिए फ़याज़ वानी की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीनगर के नौगाम पुलिस स्टेशन में सैंपलिंग के दौरान हुए एक विनाशकारी विस्फोट के बाद सुरक्षा विशेषज्ञों और राजनीतिक नेताओं ने घनी आबादी वाले इलाक़े में लगभग 3,000 किलोग्राम विस्फोटक के रख-रखाव और भंडारण पर गंभीर सवाल उठाए हैं. इस धमाके में नौ लोगों की मौत हो गई और 32 अन्य घायल हो गए.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व पुलिस प्रमुख एस. पी. वैद ने कहा कि विस्फोटक सामग्री को कभी भी रिहायशी इलाक़ों में नहीं रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “स्थापित दिशा-निर्देशों के अनुसार विस्फोटक सामग्री को अलग और सुरक्षित स्थानों पर रखने की आवश्यकता होती है. मुझे नहीं पता कि इस मामले में दिशा-निर्देशों का पालन किया गया था या नहीं.”
स्टेशन पर रखा गया अमोनियम नाइट्रेट अत्यधिक संवेदनशील होता है और आसानी से फट सकता है. वैद ने कहा, “यह पानी या चिंगारी के संपर्क में आने पर फट सकता है. इसे सील करते समय माचिस जलाने से भी विस्फोट हो सकता है.”
एक अंतर-राज्यीय व्हाइट-कॉलर आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ करने के बाद ज़ब्त किया गया लगभग 2,900 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट उसी पुलिस स्टेशन में रखा गया था जहाँ मूल मामला दर्ज किया गया था. शनिवार शाम को, सैंपलिंग के दौरान एक ज़ोरदार धमाका हुआ, जिसने आसपास के क्षेत्र को हिलाकर रख दिया.
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जाँच चल रही है. उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि यहाँ रखी गई बड़ी मात्रा में विस्फोटक, किन परिस्थितियों में उन्हें लाया और संग्रहीत किया गया, और उन्हें कैसे संभाला जा रहा था, के बारे में जवाब मिलेंगे.”
पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ़्ती ने सवाल किया कि इतनी बड़ी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट को चार दिनों तक भीड़भाड़ वाले इलाक़े में क्यों रखा गया. उन्होंने कहा, “यह पुलिस की ओर से लापरवाही है. इस बात की जाँच होनी चाहिए कि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक इतने दिनों तक घनी आबादी वाले इलाक़े के एक पुलिस स्टेशन में क्यों रखा गया.”
इल्तिजा ने सैंपलिंग के दौरान नागरिकों की मौजूदगी की भी आलोचना की. उन्होंने कहा, “नायब तहसीलदार सहित नागरिकों को वहाँ क्यों ले जाया गया, जब वे यह नहीं जानते कि अमोनियम नाइट्रेट को कैसे सील किया जाए. यह बेहद ख़तरनाक था और एक हादसा होने का इंतज़ार कर रहा था.” उन्होंने कहा कि यह निर्णय की एक बड़ी चूक थी, और इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद रुहुल्लाह मेहदी ने इस घटना को “बड़ी चूक” बताया और गहन जाँच की माँग की. उन्होंने कहा, “अत्यधिक विस्फोटक सामग्री को असंवेदनशीलता और अव्यवसायिकता के साथ संभालना जाँच का विषय होना चाहिए. हर स्तर पर ज़िम्मेदारी तय की जानी चाहिए.”
बीजेपी नेता रविंद्र रैना ने भी इस घटना की विस्तृत जाँच की माँग की है.
पीड़ितों में एसआईए इंस्पेक्टर 37 वर्षीय असरार अहमद शाह (कुपवाड़ा निवासी); 33 वर्षीय अरशद अहमद शाह, क्राइम ब्रांच के फ़ोटोग्राफ़र (कुलगाम निवासी); 40 वर्षीय जावेद मंसूर राथर, क्राइम फ़ोटोग्राफ़र (त्राल, पुलवामा निवासी); नायब तहसीलदार 33 वर्षीय मुज़फ़्फ़र अहमद ख़ान (सोइबुग, बडगाम निवासी); सुहैल अहमद राथर, एक चौकीदार (नटीपोरा, श्रीनगर निवासी); दर्ज़ी मोहम्मद शफ़ी परे, जिन्हें सैंपल संग्रह में सहायता के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया गया था; और एफ़एसएल, श्रीनगर के कांस्टेबल एजाज़ अहमद, मोहम्मद अमीन और शौकत अहमद शाह शामिल हैं.
एक कश्मीरी दर्ज़ी की मौत
हर दिन की तरह, मोहम्मद शफ़ी परे 14 नवंबर की सुबह श्रीनगर के बाहरी इलाक़े नौगाम में अपनी सिलाई की दुकान के लिए निकले. जल्द ही, 50 वर्षीय परे को स्थानीय पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा गया.
स्क्रोल.इन के लिए सफ़वत ज़रगर की रिपोर्ट के मुताबिक परे के भतीजे ज़हूर अहमद परे ने बताया, “सुबह क़रीब 9 बजे, पास के नौगाम पुलिस स्टेशन के अधिकारी उन्हें उनकी सिलाई मशीन और अन्य औज़ारों के साथ स्टेशन ले गए.” परिवार ने चिंता नहीं की क्योंकि दर्ज़ी का पुलिस के साथ एक “कामकाजी संबंध” था. पुलिस अधिकारी अक्सर उनसे वर्दी सिलवाने या कपड़े ठीक करवाने के लिए कहते थे.
उस दिन, शफ़ी परे को 10 नवंबर को नई दिल्ली में लाल क़िले पर हुए धमाके के साज़िशकर्ताओं से बरामद विस्फोटक सामग्री को रखने के लिए कपड़े के थैले सिलने के लिए बुलाया गया था. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक “अंतर्राष्ट्रीय आतंकी मॉड्यूल” का भंडाफोड़ किया था और 2,900 किलोग्राम विस्फोटक बनाने की सामग्री बरामद की थी. चूँकि मामला नौगाम पुलिस स्टेशन में दर्ज था, जाँचकर्ताओं ने ज़ब्त किए गए पदार्थ को वहीं सुरक्षित रखा था.
शफ़ी परे ने दिन का ज़्यादातर हिस्सा पुलिस स्टेशन में बिताया. उनके सबसे बड़े बेटे बिलाल अहमद ने बताया, “शाम को, वह चाय पीने घर आए थे. बाद में, वह गर्म कपड़े लेने और रात का खाना खाने के लिए घर आए और फिर से पुलिस स्टेशन चले गए.” उनकी बेटी ने रात क़रीब 11 बजे उन्हें फ़ोन किया. उन्होंने कहा कि वह एक घंटे में वापस आ जाएँगे.
यह आख़िरी बार था जब परिवार ने मोहम्मद शफ़ी परे से बात की.
बीस मिनट बाद, नौगाम पुलिस स्टेशन के अंदर एक ज़बरदस्त धमाका हुआ. विस्फोट में नौ लोगों की मौत हो गई, जिसमें परे भी शामिल थे. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि यह एक “आकस्मिक विस्फोट” था जो बरामद सामग्री के सैंपल लेते समय हुआ.
एक नागरिक को एक हाई-प्रोफ़ाइल मामले में संवेदनशील विस्फोटकों से निपटने के लिए काम पर रखना असामान्य है.
धमाके के बाद, परे का परिवार उनके घर से क़रीब 300 मीटर दूर पुलिस स्टेशन की ओर भागा. बिलाल ने याद करते हुए कहा, “पूरा पुलिस स्टेशन आग की लपटों में घिरा हुआ था.” कई अस्पतालों में खोजने के बाद, 15 नवंबर की सुबह पुलिस कंट्रोल रूम में उनकी तलाश ख़त्म हुई. उनके भतीजे ज़हूर ने कहा, “उन्होंने उनकी शर्ट की जेब में मिली एक रसीद से उनकी पहचान की.” ज़हूर के अनुसार, दर्ज़ी का शरीर पहचानने योग्य नहीं था.
शफ़ी परे अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं. जम्मू-कश्मीर सरकार ने मारे गए नौ लोगों के परिवारों के लिए 10-10 लाख रुपये के मुआवज़े की घोषणा की है. परिवार का कहना है कि यह काफ़ी नहीं है. मोहम्मद यूसुफ़ परे ने कहा, “मेरे भाई को छोड़कर, मरने वाले अन्य लोग सरकारी कर्मचारी थे. हम चाहते हैं कि सरकार कम से कम परे के परिवार के एक सदस्य को नौकरी प्रदान करे.”
डोभाल ने 2014 में कहा था- आईएसआई ने भारत में मुसलमानों की तुलना में अधिक हिंदुओं की भर्ती की, 2025 में डीपफेक बताकर मुकरे
सोशल मीडिया पर एक पुराने वीडियो के वायरल होने के बाद, जिसमें उन्होंने कहा था कि “मुसलमानों की तुलना में हिंदू अधिक आईएसआई की ओर आकर्षित हैं”, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने इसे खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने कभी ऐसी बात नहीं कही और दावा किया कि वीडियो में हेरफेर किया गया प्रतीत होता है. डोभाल ने सीएनएन-न्यूज़18 को दिए एक बयान में इसे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को विकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया डीपफेक हेरफेर बताया और कहा कि प्रसारित क्लिप्स भारत के आतंकवाद निरोधी आख्यान को निशाना बनाने का प्रयास है. हालांकि, “ऑल्ट न्यूज़” की शिंजनी मजूमदार द्वारा की गई तथ्यों की जांच से पता चलता है कि डोभाल ने वास्तव में 2014 में कहा था कि “आईएसआई ने मुसलमानों की तुलना में अधिक हिंदुओं की भर्ती की.” यह वीडियो ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट द्वारा 20 मार्च 2014 को पोस्ट किया गया था. मजूमदार अपनी फैक्ट चैक रिपोर्ट में कहती हैं, “संक्षेप में, एनएसए अजीत डोभाल ने, वैश्विक आतंकवाद पर 2014 के एक व्याख्यान में, वास्तव में कहा था कि आईएसआई ने भारत में खुफिया कार्यों के लिए मुसलमानों की तुलना में अधिक हिंदुओं की भर्ती की थी. वायरल वीडियो उनके लंबे व्याख्यान से लिया गया एक क्लिप है, जिसमें वह स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक और राष्ट्रीय पहचान को जोड़ने से बचने का आग्रह करते हैं और आतंकवाद को मुस्लिम बनाम हिंदू मुद्दा बताने से परहेज करते हैं. इसके बावजूद, उनका यह बयान कि वायरल फुटेज डीपफेक या एआई-जनरेटेड था, झूठा है. ये टिप्पणियां वास्तव में उन्हीं के द्वारा की गई थीं.”
सब काम छोड़कर अमित शाह की शरण में शिंदे, बीजेपी ने सबको किनारे किया, नाम के डिप्टी सीएम और मंत्री
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का भाजपा के साथ सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. बुधवार को उन्होंने मुंबई में निर्धारित अपने आधिकारिक कार्यक्रमों को छोड़कर दिल्ली का रुख किया. अपनी नाराजगी और शिकायतों को व्यक्त करने के लिए अचानक दिल्ली रवाना हो गए, जहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अपनी तकलीफ़ बताएंगे.
सुधीर सूर्यवंशी की रिपोर्ट है कि शिंदे और उनके मंत्रियों को भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में किनारे कर दिया गया है. मंत्री भाजपा के ‘ऑपरेशन लोटस’ की गर्मी महसूस कर रहे हैं, जो शिंदे और उनकी पार्टी के आधार को कमजोर कर देगा. शिवसेना मंत्री प्रताप सरनाईक ने कहा कि यह सच है कि मतभेद हैं और वे असहज महसूस कर रहे हैं क्योंकि भाजपा, सेना के मजबूत और प्रभावशाली नेताओं को तोड़ रही है, लेकिन चीजें सौहार्दपूर्ण ढंग से हल हो जाएंगी.
एक उच्च पदस्थ सूत्र ने अखबार से कहा, “शिंदे का चारों तरफ से गला घोंट दिया गया है, और उनके तथा उनके लोगों के लिए भूलभुलैया जैसी स्थिति पैदा कर दी गई है, ताकि उनके पास भाजपा के निर्देश को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प न बचे. शिंदे के मित्र और डेवलपर, अजय अशर, जो वर्तमान में दुबई में रहते हैं, अब शिंदे के करीब नहीं हैं और उन्होंने वित्तीय मामलों में मेरी मदद करने में अपनी लाचारी व्यक्त की. दूसरी ओर, सेना के मंत्रियों को पर्याप्त धन आवंटित नहीं किया गया है, और सेना के मंत्रियों के विभागों के फैसले भी मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा लिए जाते हैं. इसलिए, सेना के मंत्री इसे लागू करने की शक्ति और अधिकार के बिना सिर्फ पदों पर बने हुए हैं.” उन्होंने आगे कहा कि विभाग संभालने वाले सेना के मंत्रियों के सचिवों को उच्च अधिकारियों द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि स्पष्ट निर्देशों के बिना कोई निर्णय और कागजात बाहर और अंदर नहीं जाने चाहिए.
एक सूत्र ने कहा, “शिंदे दोहरी विपत्ति का सामना कर रहे हैं: पार्टी का भविष्य और वित्तीय रुकावट. इसलिए, उन्हें उम्मीद है कि अमित शाह के साथ उनकी मुलाकात से उन्हें और उनकी भ्रमित पार्टी को कुछ राहत और सांत्वना मिलेगी. “ मंगलवार को, विरोध के रूप में, शिंदे के मंत्रियों ने कैबिनेट बैठक छोड़ दी और भाजपा के ऑपरेशन लोटस पर अपना गुस्सा व्यक्त करने के लिए मुख्यमंत्री फडणवीस से मिले. मुख्यमंत्री फडणवीस ने उन्हें फटकार लगाई और कहा कि सेना को पहले अपना आचरण सुधारना चाहिए और फिर भाजपा के खिलाफ शिकायत लेकर उनके पास आना चाहिए. इस बीच, एकनाथ शिंदे के दिल्ली जाने की खबर के बाद, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुंबई में उपमुख्यमंत्री अजित पवार के साथ एक बैठक की, जो स्वयं भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों का सामना कर रहे हैं.
विश्लेषण
एजाज़ अशरफ़ : एक दलीय व्यवस्था की तरफ
एजाज़ वरिष्ठ पत्रकार और भीमा कोरेगांव: चैलेंजिंग कास्ट के लेखक हैं. यह लेख उनके मिडडे कॉलम में प्रकाशित किया गया है. उसके अंश.
बिहार में मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की शानदार जीत से पता चलता है कि भारत पिछले साल की तुलना में एक-दलीय प्रणाली के ज़्यादा क़रीब आ गया है. एक-दलीय प्रणाली ये मानकर चलती है कि विपक्ष की हार लगभग तय है, और चुनाव के ज़रिए सत्तारूढ़ पार्टी या उसके नेतृत्व वाले गठबंधन को हटाना असंभव है.
यह निष्कर्ष एनडीए और बीजेपी की बिहार में सुनामी जैसी जीत से निकाला जाना है, जहाँ उसने 243 में से 202 सीटें हासिल कीं. 2024 के लोकसभा चुनावों में झटका लगने के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में अपनी पहले से ही प्रभावशाली जीतों को और आगे बढ़ाया. इन जीतों से विपक्ष का मनोबल और गिरेगा, जिसे 2029 से पहले नए विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
भारत का एक-दलीय प्रणाली की ओर बढ़ने के दो मुख्य कारण हैं. इनमें से एक यह है कि बीजेपी केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी होने से मिली अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल विपक्ष को पंगु बनाने के लिए कर रही है. उसने विपक्षी नेताओं पर छापे मारकर, भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करके और उनमें से कुछ को जेल में डालकर ऐसा किया है. डर के इस हथियार का इस्तेमाल, अपने ज़बरदस्त संसाधनों के साथ, प्रतिद्वंद्वी पार्टियों को तोड़ने, विपक्ष को कमज़ोर करने के लिए किया जाता है, जो वैसे भी अपनी बनाई गई धारणा कि वो पूरी तरह से भ्रष्ट है, से घिरा हुआ है.
उभरती हुई एक-दलीय प्रणाली का दूसरा कारण भारत के चुनाव आयोग का अपनी निष्पक्षता में विश्वास जगाने में विफल रहना है, कम से कम इसलिए क्योंकि इसके आयुक्तों की नियुक्ति में बीजेपी की बड़ी भूमिका है. विपक्ष अपनी हार का दोष, जैसा कि बिहार में हुआ, मतदाता सूची में गलत तरीके से नाम जोड़ने और हटाने के माध्यम से कथित वोट-चोरी पर मढ़ता रहा है.
इन खामियों को चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का आदेश देकर दूर करने की कोशिश की थी. इस साल की शुरुआत में संक्षिप्त रूप से संशोधित की गई मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर नाम हटाए और जोड़े गए, जिसके कारण इसमें लगभग 40 लाख मतदाताओं की कमी आई. इसके लिए विपक्षी कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर यह जाँचने की ज़रूरत है कि पुनरीक्षण किस हद तक वास्तविक है, यह एक बहुत बड़ा काम है जिसे सटीकता के साथ पूरा करना लगभग असंभव है.
बिहार की मतदाता सूचियों के “शुद्धिकरण” पर अस्पष्टता ने विपक्ष को यह दावा करने के लिए प्रेरित किया है कि राज्य को चुरा लिया गया, जैसे पिछले साल महाराष्ट्र को चुराया गया था. फिर भी, महाराष्ट्र के विपरीत, बिहार में 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए का 47.2 प्रतिशत का वोट-शेयर पिछले हफ़्ते के विधानसभा चुनावों में मामूली रूप से घटकर 46.5 प्रतिशत रह गया. इसके विपरीत, मुख्य रूप से राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वाम दलों वाले महागठबंधन का वोट-शेयर 2024 में 39.2 प्रतिशत से घटकर पिछले हफ़्ते 37.6 प्रतिशत रह गया. ये आँकड़े बताते हैं कि दोनों गठबंधनों के पास स्थिर समर्थन आधार हैं, जो एसआईआर प्रक्रिया के कारण बदले नहीं.
फिर भी एसआईआर ने विपक्ष को नुक़सान पहुँचाया क्योंकि यह अचानक उस पर थोप दिया गया था. संतुलन बिगड़ने के कारण, विपक्ष ने बिहार विधानसभा चुनावों से पहले के महत्वपूर्ण महीने एसआईआर के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने और कथित वोट-चोरी के ख़िलाफ़ लोगों को लामबंद करने में बिताए, बजाय इसके कि वह चुनावी लड़ाई की तैयारी करता.
विपक्ष के विपरीत, एनडीए ने उन महीनों का उपयोग कल्याणकारी उपायों को लागू करने के लिए किया. इनमें से कोई भी उतना प्रभावी नहीं था जितना कि चुनावों की घोषणा से 10 दिन पहले महिलाओं को 10,000 रुपये का हस्तांतरण. आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद भी, नीतीश कुमार सरकार ने भुगतान जारी रखा, जिससे विपक्ष ने आरोप लगाया कि मतदाताओं को उनके वोटों के लिए रिश्वत दी जा रही थी.
चुनाव आयोग का बिहार में महिलाओं को पैसे के हस्तांतरण को रोकने से इनकार करना उसकी अपनी नीति का उलटा है. उदाहरण के लिए, मार्च 2004 में, तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद, दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता द्वारा शुरू की गई किसानों द्वारा बिजली की खपत के लिए नक़द सहायता योजना के तहत पैसे का वितरण रोक दिया गया था. इसी तरह, मार्च 2011 में, चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम घोषित होते ही द्रविड़ मुनेत्र कड़गम सरकार की एक योजना, मुफ़्त रंगीन टीवी सेटों का वितरण रोक दिया था.
यह व्यापक रूप से माना जाता है कि महिलाओं को 10,000 रुपये के भुगतान ने ऐसा उत्साह पैदा किया कि बिहार के लोग कुमार के बारे में अपनी शंकाओं को भूल गए. बिहार कोई अकेला मामला नहीं है: नक़द सहायता को महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में भी बीजेपी की क़िस्मत पलटने का श्रेय दिया गया.
ऐसा लगता है कि डर के हथियारों, राज्य के वित्तीय संसाधनों और चुनाव आयोग की पक्षपातपूर्णता के साथ एक-दलीय प्रणाली का निर्माण किया जा रहा है.
यह तेज़ी से ऐसा होता जाएगा कि विपक्ष चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही हिम्मत हार जाएगा, और इस प्रक्रिया में राजनीति के व्याकरण के बारे में भूल जाएगा. यह बिहार में स्पष्ट था, जहाँ वोट-चोरी के मुद्दे के ख़िलाफ़ विपक्ष की यात्रा समाप्त होने के बाद इस मुद्दे को शायद ही कभी उठाया गया था. महागठबंधन के सहयोगियों ने सीटों को लेकर कई दिनों तक झगड़ा किया, यहाँ तक कि अपने अभियान में भी देरी की. ऐसा था मानो उन्हें विश्वास हो कि गठबंधन जीत नहीं सकता क्योंकि व्यवस्था उनके ख़िलाफ़ धांधली वाली थी.
इस दृष्टिकोण से, विधानसभा चुनाव में उनकी भागीदारी ने, विरोधाभासी रूप से, उन्हें कथित धांधली को वैध बनाने, यहाँ तक कि उस पर परोक्ष रूप से सहमति देने के लिए मजबूर किया है. अगर बिहार को वाक़ई चुरा लिया गया है, तो व्यापक बेचैनी होगी, जिसे विपक्ष को यह सुनिश्चित करने के लिए भुनाने की ज़रूरत है कि भारत एक-दलीय प्रणाली न बन जाए - और इसके साथ, एक निरंतर हिंदू राष्ट्र. वरना, वोट-चोरी चुनावी हार की व्याख्या करने के लिए एक लंगड़ा बहाना लगेगा.
कार्टून | राजेंद्र धोड़पकर
पीओके नेता का ‘लाल क़िला से कश्मीर’ का दावा, इस्लामाबाद की आतंक भूमिका पर फिर से ध्यान
टेलीग्राफ़ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, एक पाकिस्तानी राजनेता ने अपने एक भड़काऊ भाषण से इस्लामाबाद की कथित आतंक प्रायोजन को फिर से चर्चा में ला दिया है, जिसका वीडियो वायरल हो गया है.
एक वायरल वीडियो में, पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) के पूर्व “प्रधानमंत्री” चौधरी अनवरुल हक़ ने दावा किया कि पाकिस्तान से जुड़े आतंकी समूहों ने “लाल क़िले से लेकर कश्मीर के जंगलों तक” हमले किए.
पीओके विधानसभा में एक भाषण के दौरान, जो अविश्वास मत हारने के बाद का प्रतीत होता है, हक़ यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं, “मैंने पहले कहा था कि अगर आप बलूचिस्तान का ख़ून बहाते रहेंगे, तो हम भारत पर लाल क़िले से लेकर कश्मीर के जंगलों तक हमला करेंगे. अल्लाह की कृपा से, हमने यह कर दिखाया है और वे अभी भी शवों की गिनती नहीं कर पा रहे हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “कुछ दिनों बाद, सशस्त्र लोग घुस आए और (दिल्ली पर) हमला किया और उन्होंने शायद अब तक सभी शवों की गिनती भी नहीं की है.”
हक़ ने अपने दावे को दोहराते हुए कहा, “अगर आप (भारत) बलूचिस्तान का ख़ून बहाते रहेंगे, तो हम लाल क़िले से लेकर कश्मीर के जंगलों तक भारत पर हमला करेंगे, और हमारे शाहीन ने यह कर दिखाया है. वे अभी भी शवों की गिनती नहीं कर सकते.” टेलीग्राफ़ ने स्वतंत्र रूप से इस वीडियो की पुष्टि नहीं की है.
उनके लाल क़िले के संदर्भ का इशारा दिल्ली के स्मारक के पास 10 नवंबर को हुए कार बम धमाके की ओर है, जिसमें 14 लोग मारे गए थे. इस हमले का पता जैश-ए-मोहम्मद (JeM) से जुड़े एक “व्हाइट-कॉलर” मॉड्यूल से चला था, जिसे राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) और दिल्ली पुलिस ने विस्फोट से कुछ दिन पहले फ़रीदाबाद में पकड़ा था.
हक़ का “कश्मीर के जंगलों” का ज़िक्र अप्रैल में पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए हमले से मेल खाता है, जहाँ आतंकवादियों की गोलीबारी में 26 पर्यटक मारे गए थे.
फ़रीदाबाद मॉड्यूल की जाँच से पता चलता है कि लाल क़िले का धमाका एक बड़ी साज़िश का हिस्सा था. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, एजेंसियों ने पाया कि समूह ने आंतरिक रूप से अपनी योजना को “ऑपरेशन डी-6” कोडनेम दिया था, जिसका मक़सद बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी 6 दिसंबर को एक आत्मघाती हमला करना था.
पूछताछ से पता चला कि इस मॉड्यूल में नौ से दस सदस्य थे, जिनमें फ़रीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी के पाँच से छह डॉक्टर भी शामिल थे, जिन्होंने कथित तौर पर रसायनों और विस्फोटक सामग्री को ख़रीदने के लिए अपनी मेडिकल पहचान का इस्तेमाल किया. लाल क़िले का धमाका करने वाले डॉ. शाहीन शहीद और डॉ. उमर की पहचान मुख्य संचालकों के रूप में हुई. शाहीन को कथित तौर पर जमात-उल-मोमिनीन के बैनर तले भारत में जैश-ए-मोहम्मद की महिला विंग की स्थापना और नेतृत्व करने का काम सौंपा गया था, जो महिला भर्ती और संचालन के लिए एक नया नेटवर्क है.
मंगलवार को, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एनआईए और दिल्ली पुलिस द्वारा दायर एफ़आईआर पर कार्रवाई करते हुए, मनी-लॉन्ड्रिंग जाँच के हिस्से के रूप में अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े 25 स्थानों पर छापे मारे.
बाबा सिद्दीकी हत्याकांड: अनमोल बिश्नोई भारत लाया गया, 11 दिन की एनआईए हिरासत
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के लिए हरप्रीत बाजवा की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के आरोपी अनमोल बिश्नोई को 11 दिन की राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) की हिरासत में भेज दिया है.
एनआईए ने गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के भाई और क़रीबी सहयोगी अनमोल को अमेरिका से प्रत्यर्पित किए जाने के बाद गिरफ़्तार किया और शाम क़रीब 5 बजे कड़ी सुरक्षा के बीच पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया. विशेष न्यायाधीश प्रशांत शर्मा ने एजेंसी की 15 दिन की हिरासत में पूछताछ की माँग पर अनमोल को 11 दिन की एनआईए हिरासत में भेज दिया.
इससे पहले, एनआईए ने जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के छोटे भाई और गिरोह के प्रमुख विदेशी संचालकों में से एक अनमोल बिश्नोई को गिरफ़्तार किया. उसे लगभग 200 अन्य भारतीय नागरिकों के साथ अमेरिका से प्रत्यर्पित किया गया था. पंजाब में वांछित दो अन्य भगोड़ों और 197 बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासियों को लेकर एक विशेष उड़ान आज सुबह दिल्ली पहुँची.
पंजाब के फ़ाज़िल्का का रहने वाला अनमोल विदेश में रहते हुए एन्क्रिप्टेड चैनलों के माध्यम से जबरन वसूली रैकेट चलाता था, धमकियाँ देता था और लॉरेंस बिश्नोई गिरोह के लिए काम का समन्वय करता था. उसे कथित तौर पर अप्रैल 2023 में कैलिफ़ोर्निया में एक पंजाबी शादी में देखा गया था. एनआईए के अनुसार, वह अमेरिका से ज़मीनी स्तर पर अपने गुर्गों का उपयोग करके “आतंकी सिंडिकेट” चलाना और “आतंकवादी कृत्यों” को अंजाम देना जारी रखे हुए था.
वह कई हाई-प्रोफ़ाइल मामलों में वांछित है, जिसमें मई 2022 में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या और पिछले साल 12 अक्टूबर को मुंबई के बांद्रा में गोली मारकर हत्या किए गए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या शामिल है. मुंबई पुलिस ने सिद्दीकी मामले में कठोर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के प्रावधान लागू किए हैं. बिश्नोई गिरोह से जुड़े लगभग 26 लोगों को अब तक गिरफ़्तार किया जा चुका है, जबकि अनमोल, शुभम लोंकर और ज़ीशान मोहम्मद अख़्तर को वांछित आरोपी के रूप में नामित किया गया था.
अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने पहले सिद्दीकी के परिवार को सूचित किया था कि अनमोल को संयुक्त राज्य अमेरिका से “हटा” दिया गया है. डीएचएस-वाइन सेवा से परिवार को भेजे गए एक ईमेल में कहा गया था, “यह ईमेल आपको सूचित करने के लिए है कि अनमोल बिश्नोई को संघीय सरकार द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका से हटा दिया गया है. अपराधी को 18 नवंबर, 2025 को हटाया गया.”
अमेरिकी हाउस पैनल
‘भारत के साथ संघर्ष में पाकिस्तान की सैन्य सफलता ने चीनी हथियारों का प्रदर्शन किया’
द वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, एक अमेरिकी कांग्रेसनल पैनल की नई रिपोर्ट ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल की शुरुआत में भारत के साथ चार दिवसीय सैन्य संघर्ष में पाकिस्तान की सफलता का एक बड़ा कारण उन्नत चीनी हथियार थे. यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन ने अपनी 2025 की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे बीजिंग ने इस संकट का उपयोग अपने अत्याधुनिक रक्षा निर्यातों का परीक्षण, ट्रायल और प्रचार करने के अवसर के रूप में किया.
पहलगाम में एक आतंकवादी हमले के बाद, मई 2025 का भारत-पाकिस्तान संघर्ष, दशकों में दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच सबसे तीव्र सैन्य टकरावों में से एक था. कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि “भारत के साथ अपने चार दिवसीय संघर्ष में पाकिस्तान की सैन्य सफलता ने चीनी हथियारों का प्रदर्शन किया”. पैनल का कहना है कि भले ही बीजिंग इस संघर्ष का सूत्रधार न रहा हो, लेकिन चीन ने “इस संघर्ष का अवसरवादी रूप से लाभ उठाया ताकि वह अपने हथियारों की परिष्कृतता का परीक्षण और विज्ञापन कर सके, जो भारत के साथ चल रहे सीमा तनाव के संदर्भ में उपयोगी है”.
रिपोर्ट में कहा गया है कि “पाकिस्तान द्वारा भारत द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फ़्रांसीसी रफ़ाल लड़ाकू विमानों को मार गिराने के लिए चीनी हथियारों का इस्तेमाल भी चीनी दूतावास के रक्षा बिक्री प्रयासों के लिए एक विशेष विक्रय बिंदु बन गया”. सबूत के तौर पर, पैनल नोट करता है कि “संघर्ष के बाद के हफ़्तों में, चीनी दूतावासों ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अपनी प्रणालियों की सफलताओं की सराहना की, ताकि हथियारों की बिक्री को बढ़ावा दिया जा सके.”
रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि “यह संघर्ष पहली बार था जब चीन की आधुनिक हथियार प्रणालियाँ, जिनमें HQ-9 वायु रक्षा प्रणाली, PL-15 हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें और J-10 लड़ाकू विमान शामिल हैं, सक्रिय युद्ध में इस्तेमाल की गईं, जो एक वास्तविक-विश्व क्षेत्र प्रयोग के रूप में काम कर रही थीं.”
कमीशन चेतावनी देता है कि यह प्रदर्शन बीजिंग की व्यावसायिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करता है. रिपोर्ट के अनुसार, “चीनी दूतावास के अधिकारियों ने इंडोनेशिया को रफ़ाल जेट की ख़रीद रोकने के लिए मना लिया, जो पहले से ही प्रक्रिया में थी, जिससे अन्य क्षेत्रीय अभिनेताओं की सैन्य ख़रीद में चीन की पैठ और बढ़ी.”
नागरिकता
‘हम 2015 में भारतीय बने, हमें 2002 की सूची से क्यों परखा जा रहा है?’
“हमने सरकार से कहा - आपने हमें 2015 में भारतीय बनाया, तो अब हमारे नामों का मिलान भारत की 2002 की मतदाता सूची से क्यों किया जाना चाहिए?”
द वायर के लिए जॉयदीप सरकार की रिपोर्ट है कि भारत-बांग्लादेश सीमा के पास हल्दीबाड़ी पुनर्वास शिविर के अंदर एक छोटे से दो कमरों के क्वार्टर में, 52 वर्षीय शिशिर रॉय अपने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) फ़ॉर्म को मोड़ते हैं और ग़ुस्से और थकावट से ऊपर देखते हैं.
भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौते को लागू हुए एक दशक बीत चुका है. पूर्व ‘एन्क्लेव्ज़’ (छिटमहल) के निवासियों को औपचारिक रूप से दोनों देशों में शामिल कर लिया गया, लेकिन जिन लोगों ने भारत में रहना चुना, उनका कहना है कि उनका जीवन अनिश्चितताओं से भरा रहा है - जिनमें से SIR सबसे ताज़ा है.
शिशिर कहते हैं, “हमारी दलील सुनने के बाद, सरकारी अधिकारियों ने हमसे कहा कि हमें अभी SIR फ़ॉर्म में इस बारे में कुछ भी लिखने की ज़रूरत नहीं है - वे चुनाव आयोग को सूचित करेंगे. यह मौजूदा स्थिति है, लेकिन अभी तक कुछ भी अंतिम नहीं है. यह हमारे लिए चिंता का एक नया स्रोत है.”
शिशिर 31 जुलाई, 2015 की रात को भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता (LBA) लागू होने के बाद बांग्लादेश के पंचगढ़ ज़िले से भारत के पश्चिम बंगाल के कूच बिहार ज़िले के निवासी बने. इस समझौते ने 68 साल पुराने “छिटमहल” के उलझाव को समाप्त किया और दोनों देशों के बीच 162 एन्क्लेव्ज़ की अदला-बदली की.
हल्दीबाड़ी की तरह, दो और पुनर्वास स्थल, दिनहाटा और चांगेरबांधा, पूर्व भारतीय एन्क्लेव्ज़ के उन लोगों को आश्रय देते हैं जिन्होंने 2015 में एन्क्लेव्ज़ के बांग्लादेश में विलय होने पर भारत आने का विकल्प चुना. उनके नए पते सरकारी ज़मीन पर कतारों में बने दो कमरों के फ़्लैट हैं, जो टिन, कंटीले तारों और अनिश्चितता से घिरे हैं.
इन शिविरों में रहने वाले कई लोगों में विश्वासघात की भावना व्याप्त है.
बैटरी चालित टोटो रिक्शा चलाकर अपना जीवनयापन करने वाले द्विजेंद्र बर्मन कहते हैं, “हमें भारत लाने के बाद, सरकार ने हर परिवार को एक घर, 5 लाख रुपये नक़द और पाँच कट्ठा ज़मीन देने का वादा किया था. 10 साल बाद भी हमें कुछ नहीं मिला. जिन फ़्लैटों में हमें रखा गया है, उनका कोई पंजीकृत स्वामित्व नहीं है. हमारे पास नागरिकता का कोई सबूत नहीं है. तो क्या हमारे साथ धोखा नहीं हुआ?”
इस अनिश्चितता के बीच, मतदाता सूची को पुरानी सूचियों से जोड़ने के लिए चुनाव आयोग के सत्यापन के ताज़ा दौर, यानी SIR फ़ॉर्म ने लोगों में दहशत पैदा कर दी है.
प्रदीप रॉय कहते हैं, “हमें भारतीय बने 10 साल हो गए हैं. अब हम सुनते हैं कि अगर हमारा नाम SIR में नहीं आया, तो वे हमें फिर से बांग्लादेश भेज देंगे. भेज दें. कम से कम यह डर की ज़िंदगी तो ख़त्म होगी.”
अब तक, चुनाव आयोग ने कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है कि SIR की जाँच पुनर्वास शिविरों के निवासियों पर कैसे लागू होगी - ऐसे लोग जो 2002 की किसी भी मतदाता सूची में मौजूद नहीं थे क्योंकि वे उस समय भारत के नागरिक नहीं थे. स्थानीय अधिकारी उनसे “इंतज़ार करने, कुछ भी अंतिम नहीं है” के लिए कहते हैं, लेकिन अस्पष्टता ने पुराने घावों को फिर से खोल दिया है.
अधिकार कार्यकर्ता दीप्तिमान सेनगुप्ता कहते हैं, “यह सच है कि इन लोगों के पास अभी भी कोई आधिकारिक नागरिकता प्रमाण पत्र नहीं है, न ही उन घरों के लिए कोई स्वामित्व दस्तावेज़ हैं जिनमें वे रहते हैं. यह सब जानबूझकर इन लोगों को दबाव, भय और चिंता में रखने के लिए किया जा रहा है.”
भारत क्या करे शेख हसीना का ?
मोदी सरकार पर बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना, जो अगस्त 2024 में भागकर भारत आ गई थीं, के प्रत्यर्पण की ढाका की मांग पर तुरंत प्रतिक्रिया देने का फिलहाल कोई दबाव नहीं है. एक औपचारिक प्रत्यर्पण प्रक्रिया अभी शुरू होनी बाकी है और इसमें यदि साल नहीं तो महीनों का वक्त तो लग सकता है. “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में जयंत जैकब ने अपनी रिपोर्ट में यह समझाया है कि प्रत्यर्पण के बारे में दोनों देशों की संधि क्या कहती है. उनके मुताबिक, ‘मानवता के खिलाफ अपराध’, जिसके लिए शेख हसीना और उनके गृह मंत्री को मौत की सजा सुनाई गई है- 2013 की भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के तहत प्रत्यर्पणीय अपराध है, बशर्ते कि अपराध दोनों देशों में दंडनीय हो. लेकिन क्या भारत में मानवता के खिलाफ अपराध दंडनीय हैं? जैकब का तर्क है, “भारत इस तरह के आरोपों की व्याख्या अलग ढंग से करता है. भारत यह तर्क दे सकता है कि आरोपित अपराध उसकी अपनी कानूनी प्रणाली के तहत प्रत्यर्पण के लिए आवश्यक परिभाषा में फिट नहीं होता है. “द हिंदू” में सुहासिनी हैदर भी कानूनी मुद्दों का मूल्यांकन कर निष्कर्ष निकालती हैं कि नई दिल्ली के पास कई विकल्प हैं. हैदर यह भी लिखती हैं कि नई दिल्ली को अभी तक कोई औपचारिक प्रत्यर्पण अनुरोध प्राप्त नहीं हुआ है. संधि “राजनीतिक अपराधों”, “अन्यायपूर्ण या दमनकारी आरोपों” के लिए अपवादों की अनुमति देती है; भारत प्रत्यर्पण मुकदमे के दौरान हसीना को अपनी बात रखने दे सकता है या आईसीटी (अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण, बांग्लादेश) की वैधता को अस्वीकार कर सकता है.
इस बीच, अंतर्राष्ट्रीय अधिकार संगठनों ने हसीना और असदुज्जमां कमाल को ढाका स्थित अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा दी गई मौत की सजा की आलोचना की है, जिसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि उनका अनुपस्थिति में किया गया मुकदमा अनुचित था. इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स नामक एक संगठन - जिसका नेतृत्व “नरेंद्र मोदी- ए करिश्माई और विजनरी स्टेट्समैन” के प्रशंसनीय लेखक और अधिवक्ता, आदिश सी अग्रवाल करते हैं- सजा के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग जाने की तैयारी कर रहा है.
अक्टूबर में भारत का निर्यात 11.8% गिरा, व्यापार घाटा रिकॉर्ड बढ़कर 41.68 बिलियन डॉलर हुआ
“द ट्रिब्यून” में पीटीआई की खबर है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च शुल्कों के कारण, भारत का निर्यात अक्टूबर में 11.8% घटकर 34.38 बिलियन डॉलर हो गया. इसी तरह, व्यापार घाटा भी बढ़कर रिकॉर्ड 41.68 बिलियन डॉलर हो गया, जिसका मुख्य कारण सोने के आयात में वृद्धि है. सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, पीले धातु, चांदी, कपास कच्चा/अपशिष्ट, उर्वरक और सल्फर के उच्च अंतर्देशीय शिपमेंट के कारण देश का आयात 16.63% बढ़कर 76.06 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया. लगभग सभी श्रेणियों, जिनमें सूती धागा, कपड़ा, मेड-अप्स, मानव निर्मित फाइबर, जूट उत्पाद, कालीन और हस्तशिल्प शामिल हैं, में साल-दर-साल दो अंकों की गिरावट देखी गई. इस बीच, वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने मीडिया से कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद, “हम अपनी जमीन पर टिके हुए हैं.”
एक तरफ रूसी तेल खरीदी में कटौती, दूसरी तरफ पुतिन की भारत यात्रा की तैयारी
“द वायर” के अनुसार, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अगले माह दिसंबर में भारत यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मॉस्को में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से मुलाकात की है, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने पुतिन के शीर्ष सहयोगी निकोलाई पेत्रुशेव की मेजबानी की है. जयशंकर ने कहा कि भारत-रूस संबंधों का विकास दुनिया के लिए फायदेमंद है. लेकिन क्या कोई पूछ सकता है कि फिर रूस से तेल खरीदी में भारत कटौती क्यों कर रहा है? जयशंकर की टिप्पणी में तेल का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं था.
22 नवंबर से बगैर वीज़ा ईरान में प्रवेश बंद, तस्करी की चिंताओं के चलते छूट खत्म
भारत ने सोमवार को कहा कि ईरान 22 नवंबर से भारतीय यात्रियों के लिए अपनी वीज़ा-मुक्त प्रवेश योजना को बंद करने जा रहा है. उसका यह फैसला कई ऐसे मामलों के बाद आया है, जिनमें भारतीयों को फर्जी नौकरी के प्रस्तावों या आगे की यात्रा के वादों पर देश में उड़ान भरने के लिए फुसलाया गया और फिर फिरौती के लिए उनका अपहरण कर लिया गया. एक बयान में, विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने सामान्य पासपोर्ट धारकों के लिए उपलब्ध वीज़ा छूट का दुरुपयोग करने वाले एजेंटों द्वारा ईरान में फुसलाए गए भारतीय नागरिकों से जुड़ी “कई घटनाओं” पर ध्यान दिया है. बयान में कहा गया है कि ईरान पहुंचने पर, उनमें से कई का फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया.” मंत्रालय ने चेतावनी दी कि भारतीय नागरिकों को अब ईरान में प्रवेश या पारगमन करने के लिए वीज़ा की आवश्यकता होगी, जिसका उद्देश्य आपराधिक नेटवर्क द्वारा इस सुविधा का शोषण बंद करना है. यह घोषणा इस साल की शुरुआत में हुए उन मामलों के बाद आई है, जिनमें भारतीयों ने अवैध “डंकी” मार्ग के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया पहुंचने की कोशिश की थी, जो उन्हें वीज़ा-मुक्त प्रवेश के तहत ईरान ले गया था.
कार्नी को भारत की प्रतिबद्धता को लेकर सलाह मिली, लेकिन बात आगे बढ़ी नहीं
“नेशनल पोस्ट” में स्टेफ़नी टेलर और क्रिस्टोफर नार्डी की रिपोर्ट है कि जैसे ही कनाडा के प्रधान मंत्री मार्क कार्नी ने भारत के साथ अपने देश के संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिए कदम उठाया, उन्हें वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सलाह दी गई थी कि “देश द्वारा आपराधिक गतिविधि और हत्याओं की एक श्रृंखला के पीछे होने के दावों के बीच जवाबदेही उपायों पर भारत से एक सार्वजनिक प्रतिबद्धता” की आवश्यकता है. हालांकि, “महीनों बाद, कनाडा के यह कहने के बावजूद कि भारत ने अधिक सहयोग पर सहमति व्यक्त की है, ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसी कोई सार्वजनिक प्रतिबद्धता हासिल नहीं की गई है, क्योंकि हिंसा और दमन के डर से सिख समुदायों में चिंता गुस्से में बदल जाती है.”
लेह निकाय ने लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची पर ड्राफ्ट सौंपा
“द हिंदू” में पीरज़ादा आशिक़ की रिपोर्ट है कि, लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के बैनर तले सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक समूहों ने राज्य का दर्जा और लद्दाख के लिए छठी अनुसूची लागू करने की मांग करते हुए गृह मंत्रालय (एमएचए) को 29 पृष्ठों का मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया है, जिसमें जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक सहित हिरासत में लिए गए लद्दाख के स्थानीय लोगों को रिहा करने का आह्वान भी शामिल है. लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन (एलबीए) के अध्यक्ष और एलएबी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकबुक ने कहा, “हमने राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांगों पर जोर दिया है.” लकबुक ने कहा कि मसौदा प्रस्ताव में लेह में 24 सितंबर की हिंसा के बाद गिरफ्तार किए गए या जिन पर मामला दर्ज किया गया था, उन सभी के लिए सामान्य माफी भी मांगी गई है.
कुत्ता किसी जानवर का शव घसीट लाया, लेकिन गौ हत्या की अफवाह फैलाकर अल्पसंख्यकों की दुकानों में तोड़फोड़, उत्पात
उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में एक कुत्ते ने पास के जंगल से एक मृत जानवर का शव घसीट लिया और गुस्साए लोगों ने वक्त गंवाए बिना गाय की हत्या की अफवाह फैला दी. फिर क्या था, तनाव बढ़ने लगा. “द इंडियन एक्सप्रेस” में ऐश्वर्या राज की रिपोर्ट है कि सोशल मीडिया पर शव मिलने की खबर फैलने के बाद भीड़ जमा हो गई. भीड़ ने शहर के विभिन्न हिस्सों में अल्पसंख्यक समुदाय के स्वामित्व वाली दुकानों और अन्य संपत्तियों में तोड़फोड़ की. राहगीरों को पीटा भी गया. यह घटना रविवार की है. जानवर का शव एक मंदिर के नजदीक स्कूल के गेट पर पड़ा मिला था. हालांकि, पुलिस अधिकारियों ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज में एक कुत्ते को किसी जानवर के अंग लाते हुए देखा गया है. 40-50 अज्ञात लोगों के खिलाफ बरेली रोड सहित शहर के अन्य इलाकों में तोड़फोड़ और उत्पात मचाने के आरोप में केस दर्ज किया गया है.
अख़लाक़ के हत्यारों को आज़ाद करने की यूपी सरकार की योजना पर भयावह चुप्पी
द वायर में प्रकाशित आशुतोष भारद्वाज की रिपोर्ट के अनुसार, 28 सितंबर, 2015 को ग्रेटर नोएडा के एक गाँव में मोहम्मद अख़लाक़ की पीट-पीटकर हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप हटाने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटा रही है. यह रेखांकित करना शिक्षाप्रद है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का फ़ैसला इस हत्या के प्रति संघ परिवार के दृष्टिकोण के साथ पूरी तरह से मेल खाता है.
यह उन शुरुआती उदाहरणों में से एक था जब किसी मुसलमान को गोमांस ले जाने के संदेह में पीट-पीटकर मार दिया गया था. इस मामले ने देश को झकझोर दिया था और ‘अवार्ड वापसी’ आंदोलन को जन्म दिया था - लेखकों, कवियों और कार्यकर्ताओं ने विरोध में प्रतिष्ठित सरकारी पुरस्कार लौटा दिए थे.
लेकिन संघ परिवार तुरंत अपराधियों का बचाव करने के लिए सामने आ गया था. शुरुआत में, तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, जिनके लोकसभा क्षेत्र में यह गाँव आता है, ने तर्क दिया था कि “गोमांस को देखते ही हमारी आत्मा कांपने लगती है”. उन्होंने उन काल्पनिक गाय तस्करों को दोषी ठहराने की कोशिश की जिनके कृत्यों ने हिंदुओं को नाराज़ किया था. अख़लाक़ के घर में घुसने वाले हिंदुओं को चरित्र प्रमाण पत्र देते हुए, मंत्री ने वाराणसी में इस रिपोर्टर को बताया: “उस घर में एक 17 साल की बेटी भी थी. किसी ने उसे उंगली नहीं लगाई.”
इसके तुरंत बाद, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने यह प्रस्ताव रखा कि अगर मुसलमान गोमांस खाना चाहते हैं तो उन्हें भारत छोड़ देना चाहिए. फिर, आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य ने एक कवर स्टोरी प्रकाशित की, जिसमें वेदों का हवाला देते हुए उन ‘पापियों’ का विनाश करने की माँग की गई जो गायों का वध करते हैं. “वेद का आदेश है कि गौ-हत्या करने वाले पताकी के प्राण ले लो.”
जब ये टिप्पणियाँ की गईं, तब तक यह भी स्पष्ट नहीं था कि अख़लाक़ के घर पर मिला मांस वास्तव में गोमांस था या नहीं. बाद की जाँच से यह स्थापित हो गया कि यह गाय का मांस बिल्कुल नहीं था, लेकिन पांचजन्य की कवर स्टोरी ने उन्हें दोषी घोषित कर दिया था.
उसमें लिखा था, “आपको अख़लाक़ द्वारा की गई गौ-हत्या नहीं दिखाई दी… न्यूटन ने 1687 में किसी भी क्रिया की प्राकृतिक प्रतिक्रिया का सिद्धांत प्रतिपादित किया था.” आगे लिखा गया, “यदि आप 80% बहुमत की भावनाओं का सम्मान नहीं करते हैं, तो ऐसी प्रतिक्रियाओं को कैसे रोका जा सकता है.”
अख़लाक़ की लिंचिंग ने नरेंद्र मोदी सरकार के तहत बढ़ती असहिष्णुता के ख़िलाफ़ लेखकों के एक सहज आंदोलन को भी जन्म दिया. इसकी शुरुआत हिंदी लेखक उदय प्रकाश से हुई, जिन्होंने उसी साल अगस्त में साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता कन्नड़ लेखक एम.एम. कलबुर्गी की हत्या के विरोध में 4 सितंबर को अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया. 6 अक्टूबर को, नयनतारा सहगल ने अपना अकादमी पुरस्कार लौटाया. कुछ ही घंटों बाद, अशोक वाजपेयी ने भी अपना पुरस्कार लौटा दिया. जल्द ही कश्मीर से लेकर केरल और मणिपुर तक, देश भर से कई और लेखक और कलाकार इसमें शामिल हो गए. लगभग सभी ने अख़लाक़ की लिंचिंग और बढ़ती असहिष्णुता का हवाला दिया.
बिहार विधानसभा चुनाव में एक महीने से भी कम समय बचा था, और बीजेपी अंततः वह चुनाव हार गई. मोदी सरकार इस अभियान से हिल गई थी और उसने ‘वामपंथी’ लेखकों के इस अभियान को ‘प्रायोजित’ करार दिया.
उन दिनों को विस्तार से याद करने की ज़रूरत है क्योंकि एक दशक बाद आदित्यनाथ सरकार द्वारा आरोप वापस लेने के क़दम पर शायद ही कोई हलचल हुई है. एक घटना जिसने भगवा असहिष्णुता के ख़िलाफ़ वास्तविक ग़ुस्से को जन्म दिया था, एक हत्या जिसने ऐसी कई भयावह घटनाओं की एक श्रृंखला को जन्म दिया, अब बिहार में जीत के नारों के तले दब गई है. आज अपना प्रतिरोध दर्ज कराने के लिए बहुत कम आवाज़ें हैं. इसका कारण यह नहीं है कि वे बदल गए हैं, बल्कि एक असहाय निराशा की भावना घर कर गई है.
निवर्तमान सीजेआई का ‘वनशक्ति’ फैसले को वापस लेना निराशाजनक
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पर्यावरण से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले पर प्रतिक्रिया देने में जरा भी प्रतीक्षा नहीं की और “एक्स” पर लिखा, “यह सबसे निराशाजनक है कि निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ के 16 मई, 2025 के “वन शक्ति” फैसले की समीक्षा के लिए एक द्वार खोल दिया है, जिसने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय अनुमोदनों पर रोक लगा दी थी.” मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन द्वारा लिखा गया बहुमत का फैसला, विवादास्पद प्रश्न को एक नई पीठ के समक्ष रखता है. उन्होंने टिप्पणी की कि सिर्फ एक दिन पहले, मुख्य न्यायाधीश ने उत्तराखंड को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व को बहाल करने और पारिस्थितिक नुकसान की दुरुस्त करने का आदेश दिया था, जहां पिछले साल अवैध रूप से लगभग 6,000 पेड़ काटे गए थे. पीठ ने तीन महीने के भीतर सभी अनाधिकृत ढांचों को गिराने का निर्देश दिया था. आगे केवल इको-टूरिज्म की अनुमति दी जाएगी. सीजेआई ने कहा था, “संक्षेप में, हमने यह माना है कि यदि पर्यटन को बढ़ावा देना है, तो वह इको-टूरिज्म होना चाहिए.”
इसका मतलब, भारत ‘दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था’ नहीं है
नीति आयोग के प्रमुख बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने अप्रैल में भारत को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित करने में जल्दबाजी कर दी होगी, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने अक्टूबर ‘आउटलुक’ में 2025 के लिए भारत और जापान के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुमानों को संशोधित किया है – जबकि पहले इसने पूर्व का मूल्य $4.197 बिलियन और बाद का $4.196 बिलियन अनुमानित किया था. वित्त और आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव सुभाष चंद्र गर्ग बताते हैं कि इसने इन्हें क्रमशः $4.125 ट्रिलियन और $4.280 ट्रिलियन तक सही किया है. वह लिखते हैं, “कुछ वर्षों से भारत के लिए आईएमएफ के सकल घरेलू उत्पाद अनुमानों में एक आशावादी पूर्वाग्रह रहा है; जापान के मामले में, यह इसके विपरीत है.” सवाल इस बात का है कि प्रधानमंत्री मोदी का 2029 तक भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के वादे का क्या होगा? आज तक के आईएमएफ के पूर्वानुमानों को देखते हुए, गर्ग एक ऐसा मामला बनाते हैं कि क्यों “मोदी की गारंटी विफल होने की संभावना है.”
‘बाप बोल मुझे’:शाहजहांपुर में दलित सब्ज़ी विक्रेता की बर्बरता से पिटाई
उत्तरप्रदेश के ज़िला शाहजहांपुर में दलित सब्ज़ी विक्रेता के साथ बेरहमी से पिटाई करने का मामला सामने आया है. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पुलिस प्रशासन हरकत में आया और कार्रवाई शुरू की.
द मूकनायक की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यह घटना सिधौली थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव पैना बुजुर्ग की है. यहाँ एक स्थानीय दबंग छुटक्के सिंह ने सब्ज़ी बेचने आए एक युवक पर लाठियां बरसा दीं. युवक की पहचान अचल कुमार के तौर पर हुई है.
पीड़ित का आरोप है की उसका क्षेत्र के कुछ सवर्ण जाति के लोगों के साथ पुराना कानूनी विवाद चल रहा था. रविवार को अचल सब्ज़ी बेचते हुए गलती से पैना बुजुर्ग गांव में दाख़िल होगया. वहां मौजूद छुटक्के सिंह और उसके साथियों ने उसे घेर लिया और उस पर हमला बोल दिया और उसे ज़बरदस्त “बाप” कहने के लिए मजबूर कर रहा है. इस वीडियो को देखने के बाद लोगों में भारी आक्रोश फैल गया, पुलिस ने मामले के आरोपी को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
डीयू के गैया प्रेम पर सीएनएन ने ख़बर बनाई
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक, दिल्ली विश्वविद्यालय पर अपनी अकादमिक स्वतंत्रता से समझौता करने का आरोप लगाया गया है. विश्वविद्यालय ने लोकतंत्र पर एक सेमिनार को उसी दिन रद्द कर दिया, जिस दिन उसने कर्मचारियों को गाय कल्याण पर एक शिखर सम्मेलन को बढ़ावा देने का निर्देश जारी किया.
कई हिंदुओं द्वारा गायों को पवित्र माना जाता है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपने हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में गोवंश के प्रति भारत की भक्ति का उपयोग कर रही है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसरों और छात्रों का कहना है कि यह निर्देश मोदी सरकार द्वारा शैक्षणिक संस्थानों पर डाले गए दबावों का एक और उदाहरण है.
डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने एक बयान में कहा, “एक महत्वपूर्ण सामाजिक विज्ञान सेमिनार के दमन के साथ इस संदिग्ध कार्यक्रम को बढ़ावा देना, वैज्ञानिक सोच के ख़िलाफ़ एक स्पष्ट पूर्वाग्रह को उजागर करता है.”
रद्द किया गया सेमिनार, जिसका शीर्षक “भूमि, संपत्ति और लोकतांत्रिक अधिकार” था, दिल्ली विश्वविद्यालय में छह दशकों से चल रही एक व्याख्यान श्रृंखला का हिस्सा था. 31 अक्टूबर के कार्यक्रम को रद्द करने के प्रशासन के फ़ैसले की सूचना उसी दिन आई, जिस दिन कॉलेज के डीन, बलराम पाणि ने प्राचार्यों को छात्रों और संकाय सदस्यों को “राष्ट्रीय गोधन शिखर सम्मेलन” में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने का निर्देश दिया था.
पाणि ने स्थानीय समाचार आउटलेट टाइम्स नाउ को बताया कि विश्वविद्यालय गाय शिखर सम्मेलन का समर्थन कर रहा है, उसे बढ़ावा नहीं दे रहा है. उन्होंने कहा, “अगर कोई राष्ट्रहित में काम कर रहा है - आर्थिक विकास का समर्थन कर रहा है और पर्यावरण में सुधार कर रहा है - तो हमें उसका समर्थन क्यों नहीं करना चाहिए? हालाँकि, हम इस कार्यक्रम का प्रचार नहीं कर रहे हैं.”
रद्द किए गए सेमिनार की संयोजक और समाजशास्त्र की प्रोफ़ेसर नंदिनी सुंदर ने सरकार पर एक जानबूझकर वैचारिक कार्रवाई का आरोप लगाया. उन्होंने सीएनएन को बताया, “(वे) सार्वजनिक विश्वविद्यालयों, आलोचनात्मक सोच को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं, केवल हिंदुत्व की सोच को अनुमति देते हैं.”
स्थानीय मीडिया आउटलेट्स ने बताया कि रजिस्ट्रार ने कहा कि सेमिनार इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि पूर्व अनुमति नहीं माँगी गई थी. सुंदर ने अपने बयान में कहा, “पिछले 60 वर्षों से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं पड़ी है.”
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष आर्यन मान ने कहा कि आरएसएस जैसे संगठनों का विश्वविद्यालय के प्रशासन पर कोई प्रभाव नहीं है और इसके विभाग स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं.
एक पीएचडी स्कॉलर ने नाम न छापने की शर्त पर सीएनएन को बताया, “पहले, आप कम से कम विरोध कर सकते थे... लेकिन अब किसी भी छात्र आंदोलन पर पुलिस की कार्रवाई तेज़ और तत्काल होती है. उन्होंने हमारी अकादमिक स्वतंत्रता छीन ली है.”
इस बीच, इंडियन एकेडमिक फ़्रीडम नेटवर्क ने नोट किया कि विश्वविद्यालयों ने पिछले एक साल में हिंदुत्व पर या बीजेपी की नीतियों को बढ़ावा देने वाले 50 से अधिक कार्यक्रमों और व्याख्यानों की मेज़बानी की. नेटवर्क ने पाठ्यक्रम में हस्तक्षेप के दर्जनों उदाहरणों का भी दस्तावेज़ीकरण किया, जिसमें सरकार की आलोचनात्मक मानी जाने वाली किताबों पर प्रतिबंध लगाना और लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे विषयों पर सेमिनार की अनुमति से इनकार करना शामिल है.
नए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम के नियमों के ख़िलाफ़ एडिटर्स गिल्ड और डिजीपब भी
टेलीग्राफ़ के अवर वेब डेस्क की रिपोर्ट के अनुसार, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने चेतावनी दी है कि केंद्र सरकार के हाल ही में अधिसूचित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण नियम 2025 का ढाँचा पत्रकारिता को ‘डेटा प्रोसेसिंग’ के रूप में वर्गीकृत कर सकता है, जिसके लिए समाचार संग्रह के लिए भी सहमति की आवश्यकता होगी. गिल्ड ने आगाह किया कि ऐसी व्याख्या खोजी पत्रकारिता और जनहित रिपोर्टिंग को कमज़ोर कर सकती है.
गिल्ड ने कहा कि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 के तहत पेश किए गए नियम कई अस्पष्टताओं को बनाए रखते हैं जो समाचार संग्रह, खोजी रिपोर्टिंग और नियमित संपादकीय प्रक्रियाओं को ख़तरे में डालते हैं. गिल्ड ने कहा कि यह क़ानून सूचना का अधिकार (आरटीआई) ढाँचे को कमज़ोर करता है और स्पष्ट पत्रकारिता छूट प्रदान नहीं करता है.
गिल्ड ने याद दिलाया कि इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने जुलाई 2025 में मीडिया निकायों से मुलाक़ात की थी और मौखिक रूप से उन्हें आश्वासन दिया था कि पत्रकारिता गतिविधि क़ानून के दायरे में नहीं आएगी. लेकिन कोई लिखित स्पष्टीकरण नहीं आया.
प्रमुख आशंकाओं में से एक यह है कि पत्रकारिता के काम को डेटा प्रोसेसिंग के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसके लिए समाचार संग्रह के लिए भी सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होगी. गिल्ड ने सरकार से एक तत्काल स्पष्टीकरण जारी करने का आग्रह किया है जिसमें वास्तविक पत्रकारिता के काम को क़ानून से छूट दी जाए, यह कहते हुए कि प्रेस की स्वतंत्रता और जनता के सूचना के अधिकार को डेटा सुरक्षा के साथ समान सुरक्षा मिलनी चाहिए.
DIGIPUB न्यूज़ इंडिया फ़ाउंडेशन ने भी मंगलवार को एक बयान जारी कर तर्क दिया कि नए नियम पत्रकारिता को ख़तरे में डालते हैं और सूचना का अधिकार अधिनियम को कमज़ोर करके भारत की पारदर्शिता व्यवस्था को कमज़ोर करते हैं. DIGIPUB ने कहा, “वे स्रोत की गोपनीयता को ख़तरे में डालते हैं, जनहित जाँच में बाधा डालते हैं, भ्रष्टाचार-विरोधी खुलासों में बाधा डालते हैं, और लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए आवश्यक सूचना ढाँचे को कमज़ोर करते हैं.”
DIGIPUB ने कहा कि उसने पहले अधिनियम से पत्रकारिता छूट को हटाने का विरोध किया था और बताया था कि धारा 44(3) आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(j) को बदल देती है. यह प्रतिस्थापन जन-हित ओवरराइड को समाप्त कर देता है और सूचना तक पहुँच को और प्रतिबंधित करता है.
सबसे ज़्यादा बहस वाले पहलुओं में से एक नियम 23 है, जो सरकार को नागरिक की सहमति के बिना किसी भी डेटा फिड्यूशरी से व्यक्तिगत डेटा माँगने के लिए अधिकृत करता है. इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता, भारत की अखंडता, सार्वजनिक व्यवस्था या क़ानून के किसी भी कार्य का हवाला दिया गया है.
मोदीनगर–गाज़ियाबाद ब्लास्ट: 29 साल बाद इलियास आज़ाद, कोई ठोस सबूत नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहम्मद इलियास को 1996 के मोदीनगर–गाज़ियाबाद बस विस्फोट मामले में बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इलियास के ख़लाफ़ कोई भी ठोस और कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत पेश करने में नाकाम रहा है. बता दें कि इस हमले में 18 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी.
जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने यह फैसला सुनते हुए कहा कि अभियोजन “बुरी तरह असफल” रहा और इलियास के ख़िलाफ़ साज़िश से जुड़े आरोप साबित नहीं हुए. अदालत ने साफ़ कहा कि पुलिस की मौजूदगी में रिकॉर्ड किया गया कथित बयान सबूत के रूप में स्वीकार ही नहीं किया जा सकता, क्योंकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 पुलिस के सामने दिए गए किसी भी बयान को अदालत में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देती है.
10 नवंबर को दिए गए आदेश में अदालत ने कहा कि वे “भारी मन से” इलियास को बरी कर रहे हैं क्योंकि यह हमला समाज को झकझोर देने वाला “आतंकी हमला” था. लेकिन अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कमज़ोर सबूतों के आधार पर सज़ा नहीं दी जा सकती.
इसके अलावा इस फैसले में यह भी कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने पुलिस की मौजूदगी में रिकॉर्ड किए गए ऑडियो कैसेट पर भरोसा करके “गंभीर कानूनी गलती” की है. अगर इस कथित बयान को हटा दिया इलियास के ख़िलाफ़ ऐसा कोई ठोस सबूत बचता ही नहीं है, जिसके मद्देनज़र उसे कोई सज़ा दी जाये.
अदालत ने यह भी कहा कि जिन गवाहों को इलियास और सह–आरोपी तस्लीम के कथित बयानों की तस्दीक़ करनी थी, वे अदालत में अपने पहले के बयान से मुकर गए और अभियोजन का साथ नहीं दिया.
ख़याल में रहे कि यह विस्फोट 27 अप्रैल 1996 को हुआ था, जब दिल्ली से चली बस मोदीनगर पुलिस स्टेशन पार ही कर रही थी, ड्राइवर की सीट के पास रखे गए आरडीएक्स में रिमोट से विस्फोट किया गया दस लोग मौके पर मारे गए और 48 लोग गंभीर रूप से घायल हुए.
जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया था कि यह हमला अब्दुल मतीन उर्फ़ इक़बाल ,जिसे पाकिस्तानी नागरिक बताया गया और हर्कत-उल-अंसार से जुड़ा माना गया, ने इलियास और तस्लीम के साथ मिलकर यह वारदात अंजाम दिया था. अभियोजन ने दावा किया था कि अभियोजन का कहना था कि इलियास को जम्मू–कश्मीर में इस घटना के लिए उकसाया गया था और चरमपंथी सोच दी गई थी.
2013 में ट्रायल कोर्ट ने तस्लीम को बरी कर दिया था, जबकि इलियास और मतीन को आईपीसी और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत उम्रकैद और अन्य सजाएँ सुनाई थीं. राज्य सरकार ने तस्लीम की बरी होने के ख़िलाफ़ कोई अपील नहीं की. मतीन ने अपील की या नहीं, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है. हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद इलियास अब इस मामले के सभी आरोपों से बरी हो चुका है.
भारत का नन्हा फाल्कन 5 दिन में 5,000 किमी पार कर सोमालिया पहुँचा, वैज्ञानिक भी दंग
मणिपुर के आसमान से उड़ान भरने वाले तीन छोटे-से अमूर फाल्कन इस साल प्रवासन की दुनिया में एक अद्भुत रचना रचने जा रहे हैं. 11 नवंबर 2025 को मणिपुर अमूर फाल्कन ट्रैकिंग प्रोजेक्ट (फेज़-2) के तहत वैज्ञानिकों ने तीन पक्षियों, अपापंग (वयस्क नर), अलांग (युवा मादा) और आहू (वयस्क मादा), को सैटेलाइट टैग किया गया.
टैगिंग के कुछ ही घंटों बाद इन पक्षियों ने ऐसी अविश्वसनीय उड़ान भरी की, कि अनुभवी शोधकर्ता भी हैरान रह गए. महज़ 150 ग्राम वज़न वाला अपापंग 76 घंटे में 3,100 किलोमीटर से अधिक की लगातार उड़ान भर चुका था. उसने मणिपुर से मध्य भारत, फिर गुजरात के ऊपर से होते हुए सीधे अरब सागर तक लगभग 1,000 किमी प्रतिदिन की औसत रफ़्तार से अपनी उड़न जारी रखते हुए अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ रहे हैं.
लेकिन यह उनकी परवाज़ का पहला पड़ाव है, तीनों फाल्कन भारत से सोमालिया तक लगभग 6,000 किलोमीटर की उस समुद्री यात्रा पर निकल पड़े हैं, जहाँ वह न ही आराम करने के लिए रुक सकते हैं, न ही दाना पानी के लिए और न वापस मुड़ने की गुंजाइश है. 2,400 किलोमीटर वसी अरब सागर के ऊपर लगातार उड़ान भरना दुनिया की सबसे कठिन प्रवासी यात्राओं में गिनी जाती है, और अमूर फाल्कन दुनिया के उन्हीं चुनिंदा पक्षियों में हैं जो इतनी लंबी समुद्री यात्रा बिना रुके तय कर पाते हैं.
इस बीच बड़ी खबर यह है कि अपापंग इस जोखिम भरी यात्रा को सफलतापूर्वक पार कर चुका है. वह केवल 5 दिन 15 घंटे में लगभग 5,400 किलोमीटर उड़कर सोमालिया पहुंच गया. तमिलनाडु सरकार की वरिष्ठ अधिकारी सुप्रिया साहू ने सोशल मीडिया पर इस उपलब्धि की पुष्टि करते हुए कहा कि अपापंग पहले भी कई बार ऐसी कठिन समुद्री यात्राएं पूरी कर चुका है. वैज्ञानिक अब अलांग और आहू की हर हलचल सैटेलाइट से मॉनिटर कर रहे हैं, क्योंकि दोनों अरब सागर के सबसे ख़तरनाक हिस्से को पार कर रही हैं.
मणिपुर , जहां कभी इन पक्षियों का बड़े पैमाने पर शिकार होता था, आज सामुदायिक प्रयासों की वजह से वैश्विक स्तर पर संरक्षण का एक मज़बूत मॉडल बन चुका है. स्थानीय गांव अब फाल्कन सीज़न को गर्व और सहअस्तित्व के प्रतीक के रूप में देखते हैं. इन तीन टैग किए गए पक्षियों की यात्रा न केवल वैज्ञानिकों के लिए उत्सुकता का विषय है, बल्कि यह भी दिखाती है कि प्रकृति के ये छोटे-से जीव किस तरह अद्भुत सहनशक्ति, दिशा-बोध और हिम्मत के सहारे विशाल महासागरों और महाद्वीपों को पार कर लेते हैं.
मणिपुर के जंगलों से अफ्रीका की सवाना तक की यह उड़ान धरती की सबसे साहसिक प्राकृतिक घटनाओं में से एक है,जो फिर साबित करती है कि प्रकृति में चमत्कार आकार से नहीं, साहस और लगातार आगे बढ़ने की क्षमता से तय होते हैं.
चुंबन 2.1 करोड़ साल प्राचीन है
बीबीसी न्यूज़ की विज्ञान संवाददाता विक्टोरिया गिल की रिपोर्ट के अनुसार, इंसान करते हैं, बंदर करते हैं, यहाँ तक कि ध्रुवीय भालू भी करते हैं. और अब शोधकर्ताओं ने चुंबन की विकासवादी उत्पत्ति का पुनर्निर्माण किया है.
उनके अध्ययन से पता चलता है कि मुँह-से-मुँह का चुंबन 2.1 करोड़ साल से भी पहले विकसित हुआ था, और यह कुछ ऐसा था जिसे मनुष्यों और अन्य महान वानरों (great apes) के सामान्य पूर्वज शायद करते थे. इसी शोध ने यह निष्कर्ष निकाला कि निएंडरथल भी शायद चूमते थे - और यह कि मनुष्यों और निएंडरथल ने एक-दूसरे को चूमा भी हो सकता है.
वैज्ञानिकों ने चुंबन का अध्ययन किया क्योंकि यह एक विकासवादी पहेली प्रस्तुत करता है - इसका कोई स्पष्ट उत्तरजीविता या प्रजनन लाभ नहीं है, और फिर भी यह कुछ ऐसा है जो न केवल कई मानव समाजों में, बल्कि पूरे पशु जगत में देखा जाता है.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे विभिन्न प्रजातियों में एक ही व्यवहार की तुलना कर रहे थे, शोधकर्ताओं को “चुंबन” को एक बहुत ही सटीक - और कुछ हद तक अरोमांटिक - परिभाषा देनी पड़ी. इवोल्यूशन एंड ह्यूमन बिहेवियर जर्नल में प्रकाशित अपने अध्ययन में, उन्होंने चुंबन को गैर-आक्रामक, निर्देशित मौखिक-मौखिक संपर्क के रूप में परिभाषित किया “जिसमें होंठों या मुख के हिस्सों की कुछ गति होती है और कोई भोजन हस्तांतरण नहीं होता है”.
ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय की एक विकासवादी जीवविज्ञानी और प्रमुख शोधकर्ता डॉ. मटिल्डा ब्रिंडल ने समझाया, “मनुष्य, चिंपैंजी, और बोनोबोस सभी चूमते हैं.” इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “यह संभावना है कि उनके सबसे हाल के सामान्य पूर्वज भी चूमते थे.” उन्होंने कहा, “हम सोचते हैं कि चुंबन शायद लगभग 2.15 करोड़ साल पहले बड़े वानरों में विकसित हुआ था.”
इस अध्ययन में, वैज्ञानिकों को भेड़ियों, प्रेयरी कुत्तों, ध्रुवीय भालुओं (बहुत गीला - बहुत सारी जीभ का उपयोग), और यहाँ तक कि अल्बाट्रोस में भी उनके वैज्ञानिक परिभाषा से मेल खाने वाला व्यवहार मिला.
निएंडरथल डीएनए पर एक पिछले शोध ने यह भी दिखाया था कि आधुनिक मनुष्यों और निएंडरथल में एक मौखिक माइक्रोब साझा था - हमारी लार में पाया जाने वाला एक प्रकार का बैक्टीरिया. डॉ. ब्रिंडल ने समझाया, “इसका मतलब है कि दोनों प्रजातियों के अलग होने के बाद सैकड़ों-हज़ारों वर्षों तक वे लार का आदान-प्रदान कर रहे होंगे.”
जबकि इस अध्ययन ने यह बताया कि चुंबन कब विकसित हुआ, यह इस सवाल का जवाब नहीं दे सका कि क्यों. पहले से ही कई सिद्धांत हैं - कि यह हमारे वानर पूर्वजों में सौंदर्य व्यवहार (grooming) से उत्पन्न हुआ या यह एक साथी के स्वास्थ्य और यहाँ तक कि अनुकूलता का आकलन करने का एक अंतरंग तरीक़ा प्रदान कर सकता है.
अपील :
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