19/12/2025: बांग्लादेश में फिर आग | नीतीश की हरकत, देश भर में निंदा | वोटर लिस्ट के साथ मनरेगा में भी लाखों नाम कटे | यूरोप का यूक्रेन को कर्ज देना रूस को नागवार गुज़रा | महिला शूटर से बलात्कार
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बांग्लादेश में भारी हिंसा: छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद बांग्लादेश में बवाल, प्रेस कार्यालयों पर हमले और देशव्यापी तनाव.
नीतीश कुमार और नक़ाब विवाद: बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा महिला डॉक्टर का नक़ाब हटाने पर जम्मू-कश्मीर में FIR की मांग और महबूबा मुफ्ती की तीखी प्रतिक्रिया.
अपूर्वानंद का विश्लेषण: “क्या नीतीश कुमार खुद को ‘माई-बाप’ समझ रहे हैं?” – महिला का हिजाब खींचने पर समाज की चुप्पी और मानसिक स्थिति पर कड़ा प्रहार.
तमिलनाडु मतदाता सूची: राज्य में बड़ा सफ़ाई अभियान, मतदाता सूची से कटे 97 लाख से अधिक नाम.
गुजरात वोटर लिस्ट: गुजरात में भी हटाए गए 73.73 लाख नाम, सुधार के लिए 18 जनवरी तक का समय.
फ़रीदाबाद बलात्कार कांड: होटल में महिला शूटर से दरिंदगी, पीड़िता की सूझबूझ से मुख्य आरोपी समेत तीन गिरफ्तार.
चीन बनाम भारत : भारत के आयात शुल्क और सौर सब्सिडी के खिलाफ चीन पहुँचा विश्व व्यापार संगठन, लगाया नियमों के उल्लंघन का आरोप.
केरल में मॉब लिंचिंग: “क्या तुम बांग्लादेशी हो?” पूछकर छत्तीसगढ़ी मज़दूर की पीट-पीटकर हत्या, पाँच आरोपी गिरफ्तार.
यूपी पुलिस विवाद: बहराइच में कथावाचक को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने पर हंगामा, डीजीपी ने एसपी से मांगा स्पष्टीकरण.
छत्तीसगढ़ में साम्प्रदायिक तनाव: कांकेर में शव दफनाने को लेकर हिंसा, दो चर्च फूंके गए, कई घायल.
जुबीन गर्ग मामला: भारत में हत्या की चार्जशीट दाखिल, लेकिन सिंगापुर पुलिस को किसी साज़िश का संदेह नहीं.
ईडी की बड़ी कार्रवाई: 1,000 करोड़ के सट्टेबाजी ऐप मामले में युवराज सिंह, सोनू सूद और अन्य सितारों की संपत्ति कुर्क.
कोलकाता झुग्गी आग कांड: जली हुई झोपड़ियों की राख में ‘रोहिंग्या’ तलाश रही भाजपा, टीएमसी ने बताया साज़िश.
साहित्य अकादमी विवाद: मंत्रालय के दखल के कारण रुकी साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा, स्वायत्तता पर संकट.
यूक्रेन को यूरोपीय ऋण: यूक्रेन की सुरक्षा के लिए यूरोपीय संघ का 90 अरब यूरो का भारी ऋण, रूसी संपत्तियां फिलहाल फ्रीज़ रहेंगी.
पुतिन की चेतावनी: रूसी संपत्तियों के इस्तेमाल की कोशिश को पुतिन ने बताया ‘डकैती’, यूरोप को गंभीर परिणामों की चेतावनी.
टैगोर की पेंटिंग का रिकॉर्ड: रवींद्रनाथ टैगोर की कृति ‘फ्रॉम अक्रॉस द डार्क’ ने रचा इतिहास, 10.73 करोड़ रुपये में हुई नीलामी.
बांग्लादेश में छात्र नेता शरीफ़ उस्मान हादी की मौत के बाद भारी बवाल और हिंसा
न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टों के अनुसार, बांग्लादेश के प्रमुख छात्र नेता और ‘इंक़लाब मंच’ के प्रवक्ता शरीफ़ उस्मान हादी की मौत के बाद पूरे देश में तनाव और हिंसा का माहौल पैदा हो गया है. 32 वर्षीय हादी की गुरुवार (18 दिसंबर 2025) को सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई. उन्हें 12 दिसंबर को ढाका के बिजोयनगर इलाके में अज्ञात हमलावरों ने उस समय सिर में गोली मार दी थी, जब वे आगामी संसदीय चुनावों के लिए अपना अभियान शुरू कर रहे थे. हादी जुलाई-अगस्त 2024 के उस जन-विद्रोह के प्रमुख चेहरे थे, जिसके कारण शेख़ हसीना को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था.
हादी की मौत की ख़बर फैलते ही ढाका की सड़कों पर हज़ारों लोग उतर आए. प्रदर्शनकारियों ने ‘प्रथम आलो’ और ‘डेली स्टार’ जैसे देश के बड़े अख़बारों के दफ़्तरों में तोड़फोड़ की और आग लगा दी. द हिंदू के लिए सोहम शाह की रिपोर्ट के मुताबिक, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ढाका और अन्य शहरों में बड़ी संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है. प्रदर्शनकारियों ने शाहबाग इलाके में राष्ट्रीय ध्वज के साथ प्रदर्शन किया और न्याय की माँग की. चटगाँव में भी भारतीय सहायक उच्चायोग पर हमले की ख़बरें सामने आई हैं.
अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफ़ेसर मुहम्मद यूनुस ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए शनिवार (20 दिसंबर) को राजकीय शोक घोषित किया है. उन्होंने कहा कि “दोषियों के प्रति कोई उदारता नहीं दिखाई जाएगी.” यूनुस ने इस हमले को चुनाव को पटरी से उतारने की एक साज़िश बताया. उन्होंने कहा, “साज़िशकर्ताओं का उद्देश्य चुनाव को रोकना है. यह हमला प्रतीकात्मक है—इसका उद्देश्य अपनी ताक़त दिखाना और पूरी चुनावी प्रक्रिया को बाधित करना है.” उन्होंने हादी को “पराजित ताक़तों और फासीवादी आतंकवादियों का दुश्मन” बताया, जो शेख़ हसीना की अवामी लीग की ओर एक इशारा माना जा रहा है.
इस घटना ने भारत और बांग्लादेश के कूटनीतिक संबंधों में भी तनाव पैदा कर दिया है. बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा को तलब कर अपनी “गंभीर चिंता” ज़ाहिर की है. मंत्रालय ने आशंका जताई है कि हादी की हत्या के संदिग्ध हमलावर भारत में शरण ले सकते हैं. उन्होंने भारत से सहयोग माँगते हुए कहा कि संदिग्धों को पकड़कर प्रत्यर्पित किया जाए. दूसरी ओर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने ढाका में अपने राजनयिक मिशनों की सुरक्षा बढ़ाने की माँग की है. नेशनल सिटीज़न पार्टी (एनसीपी) के नेता सरजिस आलम ने तो यहाँ तक कह दिया कि जब तक भारत हमलावरों को वापस नहीं करता, तब तक बांग्लादेश में भारतीय उच्चायोग को बंद रखा जाना चाहिए.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने पत्रकारों और अख़बारों के दफ़्तरों पर हुए हमलों के लिए माफ़ी माँगी है और इसे “सच्चाई पर हमला” बताया है. सरकार ने लोगों से शांति बनाए रखने और “भीड़ की हिंसा” का विरोध करने की अपील की है. हादी भारत की नीतियों के कड़े आलोचक थे और आगामी 12 फ़रवरी 2026 के चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ने वाले थे. उनकी मौत ने बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
नीतीश द्वारा महिला डॉक्टर का नक़ाब हटाने पर जम्मू-कश्मीर में FIR की मांग, तीखी प्रतिक्रियाएं
पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता इल्तिजा मुफ़्ती ने शुक्रवार (19 दिसंबर 2025) को श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर पुलिस के पास एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है. यह मामला 15 दिसंबर को पटना में एक आधिकारिक कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार द्वारा एक महिला डॉक्टर के चेहरे से नक़ाब हटाने की कोशिश से जुड़ा है. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद में मुख्य मौलवी मीरवाइज़ उमर ने इस कृत्य की कड़ी निंदा की. उन्होंने इसे व्यक्तिगत गरिमा और नैतिक सीमाओं का गंभीर उल्लंघन बताया. इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी नीतीश कुमार पर कड़ा प्रहार किया था. उन्होंने कहा कि नीतीश जी को व्यक्तिगत रूप से जानने और उनका सम्मान करने के बावजूद, एक युवा मुस्लिम महिला का नक़ाब हटाते देख उन्हें गहरा धक्का लगा है. महबूबा मुफ़्ती ने सवाल उठाया कि क्या इसे बढ़ती उम्र का असर माना जाए या फिर सार्वजनिक रूप से मुसलमानों को अपमानित करने की सामान्य होती प्रवृत्ति. उन्होंने कहा कि शायद अब नीतीश कुमार के इस्तीफ़ा देने का समय आ गया है क्योंकि उनके आसपास के लोग इस घटना को मनोरंजन की तरह देख रहे थे.
पुणे लिटरेचर फेस्टिवल में प्रसिद्ध लेखिका और कार्यकर्ता बानू मुश्ताक़ ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बानू मुश्ताक़ ने कहा कि हालांकि वे चेहरा ढंकने की प्रथा की विरोधी हैं, लेकिन एक मुख्यमंत्री द्वारा सार्वजनिक मंच पर किसी महिला का हिजाब या नक़ाब ज़बरदस्ती खींचना बेहद निंदनीय है. उन्होंने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में व्यक्तिगत विश्वास और लोकतांत्रिक स्थान के बीच टकराव नहीं होना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम में चेहरा ढंकने की कोई धार्मिक अनिवार्यता नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री को किसी की निजता का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है. वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले अपूर्वानंद ने अपने विश्लेषण में लिखा कि नीतीश कुमार का यह व्यवहार समाज की संवेदनहीनता को भी उजागर करता है. उन्होंने लिखा कि आज के समय में सरकारी नौकरी मिलना एक ‘प्रसाद’ की तरह हो गया है, जिसे देने वाले खुद को ‘माई-बाप’ समझने लगे हैं. अपूर्वानंद ने कहा कि मुख्यमंत्री का यह कृत्य उनकी मानसिक स्थिति पर भी सवाल उठाता है, और बिहार के लोगों को इस बारे में चिंतित होना चाहिए.
अपूर्वानंद : नीतीश कुमार के घटिया कृत्य ने समाज के घटियापन को उजागर किया
पिछले हफ़्ते, लाखों लोगों ने एक वीडियो देखा जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार, एक आधिकारिक कार्यक्रम में अपने सामने खड़ी एक महिला का हिजाब खींचते हुए दिखाई दे रहे हैं. अवसर आयुष योजना के तहत नव नियुक्त डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र वितरण के लिए एक सरकारी कार्यक्रम था. महिला, वहाँ उपस्थित अन्य लोगों की तरह, उस दस्तावेज़ को प्राप्त करने आई थी जो रोज़गार में उसके प्रवेश को चिह्नित करता था.
हमारे समय में, सरकारी नौकरी पाना खुद में एक घटना बन गई है - कुछ दुर्लभ, लगभग असाधारण, और इसलिए एक प्रदर्शनकारी कृत्य होना चाहिए. अब, नियुक्ति पत्र वितरित करने के लिए औपचारिक समारोह आयोजित किए जाते हैं. जिन्हें नौकरियाँ मिलती हैं वे मुख्यमंत्रियों या प्रधानमंत्री से अपने नियुक्ति पत्र प्राप्त करने के लिए पंक्तिबद्ध होते हैं, मानो ये उनके द्वारा प्रदान किए गए एक प्रकार के ‘प्रसाद’ हों. अब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नौकरियाँ ‘देते’ हैं और राशन ‘देते’ हैं. यह अपने आप में गहराई से अपमानजनक है, लेकिन अब कोई इसके बारे में बात नहीं करता. यह इसलिए है क्योंकि व्यक्तिगत गरिमा का विचार भारत में लगातार ज़मीन खो रहा है. शासक इसे कुचल रहे हैं, और समाज ने भी अनुपात की सारी समझ खो दी है. शासक को एक पिता या माँ के रूप में देखा जाने लगा है. लोग उनके बच्चे बन गए हैं.
भारतीय माता-पिता लंबे समय से बच्चों के साथ मनमाने ढंग से और बिना किसी संयम के व्यवहार करने के आदी रहे हैं. ज़बरदस्ती एक बच्चे को पकड़ना, उन्हें अपनी गोद में खींचना, उनकी सहमति के बिना उन्हें चूमना - यह सब हमारी सामाजिक आदतों और रोज़मर्रा के आचरण का हिस्सा है. यदि आप कहते हैं कि एक बच्चे की अपनी इच्छा है, अपनी स्वायत्तता है, अपनी गरिमा है, तो लोग आपको इस तरह घूरेंगे जैसे आपने पूरी तरह से अपना दिमाग़ खो दिया हो. कि एक बेटी या बेटा अपना जीवन चुन सकता है यह कई लोगों के लिए अस्वीकार्य है, और इस “अपराध” के लिए माता-पिता उस जीवन को छीनने की हद तक चले गए हैं जो उनका मानना है कि उन्होंने खुद दिया है.
शासक ‘माई-बाप’ है, इसलिए, वह अपनी प्रजा के साथ जैसे चाहे और जैसे वह चुनता है वैसे व्यवहार कर सकता है. जो लोग पितृतुल्य स्नेह चाहते हैं उन्हें पिता के क्रोध, उसकी रूखाई, या उसकी घटियापन को सहना भी सीखना चाहिए.
नीतीश कुमार मुस्कुरा रहे हैं जब वे महिला के चेहरे से घूंघट खींच रहे हैं. उनके क़रीब खड़े अधिकारी और नेता भी मुस्कुरा रहे हैं, क्षण में साझा कर रहे हैं. कोई हँसी देख सकता है. महिला स्तब्ध और स्पष्ट रूप से हिल गई है. यह रिपोर्ट किया गया है कि वह नीतीश कुमार के कृत्य से इतनी विचलित हो गई है कि वह बिहार में इस नौकरी को लेने के विचार पर ही पुनर्विचार कर रही है. कहा जाता है कि वह पूर्ण भ्रम की स्थिति में है और यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि एक सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा एक महिला के साथ इस तरह का व्यवहार कैसे किया जा सकता है. नीतीश कुमार ने अब तक कोई खेद व्यक्त नहीं किया है; माफ़ी स्पष्ट रूप से पूरी तरह से सवाल से बाहर है. उनकी सरकार और पार्टी के प्रवक्ता यह कहकर घटना को एक तरफ़ झटकने की कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश सम्मानित और बुज़ुर्ग हैं और केवल चाहते थे कि महिला का चेहरा स्पष्ट रूप से दिखाई दे. लेकिन यही तो बात है. महिला उन्हें अपना चेहरा नहीं दिखाना चाहती थी. अन्यथा, वह घूंघट क्यों पहने होती? क्या एक मुख्यमंत्री को किसी के चेहरे को उनकी इच्छा के ख़िलाफ़ देखने और प्रदर्शित करने का अधिकार है? या किसी को जानबूझकर ऐसी असुविधा और अपमान में डालने का अधिकार?
आगे बढ़ने से पहले, यह कहना ज़रूरी है कि यह नीतीश कुमार के ऐसे रूखे या घटिया व्यवहार का पहला उदाहरण नहीं है. पहले भी, उन्हें सार्वजनिक मंचों पर पूर्ण सार्वजनिक दृश्य में महिलाओं को खींचते और झकझोरते देखा गया है. एक पुलिस अधिकारी ने एक बार मुझे बताया कि अब नीतीश के चारों ओर एक घेरा बनाए रखा जाता है क्योंकि उनके शारीरिक व्यवहार की भविष्यवाणी करना या उनके कार्यों का अनुमान लगाना असंभव है. उनका अब खुद पर नियंत्रण नहीं रहा. इसलिए, हमें बताया जाता है, इस कृत्य को भी उनकी बिगड़ती मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुए माफ़ किया जाना चाहिए. माफ़ी के सवाल को छोड़ते हुए, बिहार के लोगों को चिंतित होना चाहिए कि उनके मुख्यमंत्री एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी इंद्रियाँ अब उनके नियंत्रण में नहीं हैं और जो शायद अस्वस्थ हैं. एक पूरे राज्य के लिए नीति निर्माण और इसके कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी ऐसे व्यक्ति पर कैसे छोड़ी जा सकती है?
क्या नीतीश कुमार के स्पष्ट मानसिक असंतुलन के बारे में जानकारी बिहार के लोगों को पारदर्शी तरीक़े से ठीक से बताई गई थी? क्या मतदाताओं ने इस तथ्य को जानते हुए भी उनके पक्ष में मतदान किया? यह हमारे लोकतंत्र और इसकी संस्थाओं के स्वास्थ्य के बारे में हमें क्या बताता है?
यदि नीतीश कुमार का दिमाग़ वास्तव में अस्थिर है, तो कोई इस कारण से और उनकी स्थिति के लिए उनके प्रति सहानुभूति महसूस कर सकता है. लेकिन फिर उन्हें उपचार प्राप्त करना चाहिए और सार्वजनिक ज़िम्मेदारियों और सार्वजनिक मंचों से दूर रखा जाना चाहिए. लेकिन बीमारी किसी की गरिमा का उल्लंघन करने का बहाना नहीं हो सकती. इस घटना के बाद की प्रतिक्रियाएँ, हालांकि, हमारे समाज के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी कुछ गहराई से परेशान करने वाला प्रकट करती हैं. नीतीश कुमार की पार्टी से एक भी व्यक्ति ने महिला की असुविधा और अपमान के लिए खेद व्यक्त नहीं किया. उन्होंने यह भी नहीं कहा कि उनका दिमाग़ अब ठीक से काम नहीं कर रहा है और जो उन्होंने किया वह पूर्ण चेतना में नहीं किया गया था, और इसलिए, उन्हें माफ़ किया जाना चाहिए. इसके बजाय, वे मुख्यमंत्री की अशिष्टता के बचाव में तर्क दे रहे हैं. वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री को महिला-विरोधी या मुस्लिम-विरोधी नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन्होंने दोनों के हित में बहुत कुछ किया है. यदि आपने मेरी किसी तरह से मदद की है, तो क्या इससे आपको मेरे साथ अशिष्टता से व्यवहार करने का अधिकार मिल जाता है? और दूसरा, वह महिला एक स्वतंत्र व्यक्ति है, एक अलग व्यक्ति; उसका शरीर उसका अपना शरीर है. मुसलमानों का शुभचिंतक होने के नाम पर, आप एक मुस्लिम महिला की व्यक्तिगतता का उल्लंघन नहीं कर सकते.
न तो नीतीश के सहयोगी, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने, न ही सरकार में किसी मंत्री ने मुख्यमंत्री की सार्वजनिक अशिष्टता और दुर्व्यवहार पर खेद व्यक्त किया है. अब तक, हमने एक भी अख़बार का संपादकीय नहीं पढ़ा है जो इस कृत्य की निंदा करता हो या इसे गंभीरता से सवाल करता हो. हालांकि, सोशल मीडिया पर, कई लोग - जो हिंदू प्रतीत होते हैं - अवसर का उपयोग ऐसे पाठ देने के लिए कर रहे हैं कि मुस्लिम महिलाओं को घूंघट और हिजाब से खुद को मुक्त करना चाहिए. कई लोग ईरानी महिलाओं का हवाला दे रहे हैं, यह बताते हुए कि उन्होंने हिजाब के ख़िलाफ़ कितनी शक्तिशाली तरीक़े से विरोध किया - मानो नीतीश भारत में उसी आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे और इसके नाम पर कार्य कर रहे थे.
इसके बाद, हमने प्रदर्शनों की रिपोर्टें देखी हैं जिनमें विश्व हिंदू परिषद के लोग शैक्षिक संस्थानों में हिजाब पहनने वाली मुस्लिम लड़कियों का विरोध कर रहे हैं. पहले, एक जगह पर, हिंदू लड़कों ने मुस्लिम लड़कियों के हिजाब के विरोध में अपने गले में भगवा दुपट्टे लपेटे थे. कोई पूछ सकता है: मुस्लिम महिलाओं के हिजाब से हिंदुओं के कौन से अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है? वे जवाब में भगवा पहनकर उनसे प्रतिस्पर्धा क्यों कर रहे हैं?
नीतीश कुमार की बीमारी से अलग यह हिंदू समाज के भीतर फैलती मानसिक बीमारी है - उनकी बीमारी से अधिक ख़तरनाक और अधिक व्यापक. कोई इसे सुधारवादी बीमारी या सुधारवादी उन्माद कह सकता है. लेकिन यह सुधारवाद केवल मुसलमानों के लिए आरक्षित है. हिंदुओं का मानना है कि उन्हें मुस्लिम महिलाओं को उनके धर्म से और उनके पुरुषों के उत्पीड़न से मुक्त करने का अधिकार है, या यहाँ तक कि कर्तव्य है. इस प्रक्रिया में, वे मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना भी अपना अधिकार मानते हैं.
पिछले ग्यारह वर्षों में, हमने इस प्रवृत्ति को हिंदू समुदाय के भीतर लगातार बढ़ते देखा है. मुस्लिम महिलाओं को अपमानित करना, मुस्लिम पुरुषों की टोपियाँ छीनना, उनकी दाढ़ी खींचना - इसका अधिकांश अब कई जगहों पर रिपोर्ट नहीं होता और बिना टिप्पणी के गुज़र जाता है. कुछ लोगों ने यहाँ तक शिकायत करना शुरू कर दिया है कि हिजाब और टोपी-दाढ़ी उन्हें डराती है और उन्हें बेचैन करती है.
नीतीश कुमार के मानसिक असंतुलन ने एक बार फिर हिंदू समाज के एक वर्ग की विकृति को उजागर किया है. नीतीश के साथ, यह भी तत्काल उपचार और गंभीर आत्मनिरीक्षण की तत्काल आवश्यकता में है.
अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाते हैं. उनका मूल लेख अंग्रेजी में इंडिया केबल में प्रकाशित हुआ है.
तमिलनाडु मतदाता सूची: सफ़ाई अभियान में 97 लाख से अधिक नाम काटे गए
तमिलनाडु में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद जारी किए गए नए ड्राफ्ट रोल ने राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हलचल पैदा कर दी है. न्यू इंडियन एक्सप्रेस के लिए टी मुरुगानंदम की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की मौजूदा मतदाता सूची से 97.4 लाख से अधिक नाम हटा दिए गए हैं. इस भारी कटौती के बाद तमिलनाडु के मतदाताओं की संख्या 15.2% घटकर अब 5.4 करोड़ रह गई है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, सबसे बड़ी गिरावट चेन्नई ज़िले में देखी गई, जहाँ लगभग 14.25 लाख नाम हटाए गए, जो कुल मतदाताओं का 35.6% है. इसके अलावा चेंगलपट्टू, तिरुपुर और कोयंबटूर जैसे ज़िलों में भी मतदाताओं की संख्या में भारी कमी आई है. मुख्य निर्वाचन अधिकारी अर्चना पटनायक ने बताया कि यह कार्रवाई मतदाता सूची को पूरी तरह शुद्ध और पारदर्शी बनाने के लिए की गई है ताकि आगामी चुनावों में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो.
मतदाता सूची से नाम हटाए जाने के कारणों का भी विस्तृत विवरण दिया गया है. हटाए गए 97.4 लाख नामों में से लगभग 53 लाख (54%) लोग ऐसे पाए गए जो अपना पता बदल चुके हैं. वहीं, 27 लाख (28%) मतदाता मृत पाए गए हैं. लगभग 13.6 लाख लोग अपनी जगह पर मौजूद नहीं थे या उनका पता नहीं चल सका. इसके अलावा 3.98 लाख नाम डुप्लिकेट होने के कारण सूची से बाहर किए गए हैं. चुनाव आयोग का कहना है कि यह संशोधन प्रक्रिया 14 दिसंबर को पूरी हुई थी और इसके नतीजे अब सार्वजनिक किए गए हैं. राजनीतिक दलों ने इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने पर चिंता ज़ाहिर की है और अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि किसी भी वास्तविक मतदाता का नाम न छूटे. आगामी दिनों में मतदाता सूची को लेकर और भी दावे और आपत्तियाँ दर्ज की जा सकती हैं.
गुजरात में भी 73.73 लाख से अधिक नाम हटाए गए
अखबार के अनुसार, गुजरात में भी मतदाता सूची से 73.73 लाख से अधिक नाम हटा दिए गए हैं. इसके साथ ही, आपत्तियों के लिए 18 जनवरी 2026 तक एक महीने की खिड़की खोल दी गई है.
अब सारा ध्यान गणना से हटकर सुधार पर केंद्रित हो गया है. जिन मतदाताओं के नाम गायब हैं या गलत तरीके से शामिल किए गए हैं, उन्हें अपनी आपत्ति दर्ज करने या नाम शामिल करवाने के लिए 18 जनवरी 2026 तक का समय दिया गया है. ‘एसआईआर’ शुरू होने से पहले, गुजरात में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 5,08,43,436 थी, लेकिन मसौदा सूची तैयार होने के बाद यह आंकड़ा अब 4,34,70,109 रह गया है.
फ़रीदाबाद: महिला शूटर से बलात्कार के मामले में तीन गिरफ़्तार, पीड़िता की हिम्मत की सराहना
हरियाणा के फ़रीदाबाद में एक शर्मनाक घटना सामने आई है, जहाँ एक 23 वर्षीय महिला शूटर के साथ होटल में बलात्कार किया गया. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता एक खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए फ़रीदाबाद आई थी. पुलिस ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए मुख्य आरोपी सत्येंद्र, उसके दोस्त गौरव और पीड़िता की ही एक महिला सहेली को गिरफ़्तार कर लिया है. शिकायत के अनुसार, यह घटना बुधवार (17 दिसंबर 2025) की शाम की है. पीड़िता अपनी सहेली के साथ होटल में ठहरी थी. सहेली ने अपने परिचित गौरव को बुलाया और फिर चारों ने होटल में ही पार्टी करने का फ़ैसला किया. जब सहेली और गौरव कुछ काम से नीचे गए, तब कमरे में अकेले मौजूद सत्येंद्र ने महिला शूटर के साथ बलात्कार किया.
पीड़िता ने इस कठिन स्थिति में भी असाधारण साहस का परिचय दिया. बलात्कार के बाद उसने आरोपी को चालाकी से कमरे के अंदर ही बंद कर दिया और तुरंत पुलिस को सूचित किया. सराय ख्वाजा पुलिस स्टेशन के SHO राकेश कुमार ने बताया कि सूचना मिलते ही पुलिस टीम होटल पहुँची और तीनों आरोपियों को हिरासत में ले लिया. पुलिस के मुताबिक, महिला सहेली और गौरव पर भी साज़िश में शामिल होने या घटना को नज़रअंदाज़ करने के आरोप हैं. आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहाँ से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. पुलिस इस मामले की गहराई से जाँच कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह पहले से रची गई कोई साज़िश थी. खेल जगत में इस घटना के बाद महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा को लेकर एक बार फिर चिंता ज़ाहिर की जा रही है.
चीन ने भारतीय शुल्क और सौर सब्सिडी के खिलाफ डबल्यूटीओ में मामला दर्ज किया
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा कि चीन ने सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उत्पादों पर भारत के आयात शुल्क और भारतीय फोटोवोल्टिक (सौर ऊर्जा) सब्सिडी के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (डबल्यूटीओ) में मामला दर्ज किया है.
“रॉयटर्स” के मुताबिक, मंत्रालय ने कहा कि भारतीय शुल्क और सब्सिडी “भारत के घरेलू उद्योगों को अनुचित प्रतिस्पर्धी लाभ देते हैं, जिससे चीनी हितों को नुकसान पहुंचता है” और ये डबल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन हैं.
मंत्रालय ने आगे कहा, “हम एक बार फिर भारत से आग्रह करते हैं कि वह डबल्यूटीओ में अपनी संबंधित प्रतिबद्धताओं का पालन करे और अपनी त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणालियों में तुरंत सुधार करे.”
केरल: चोरी के शक में छत्तीसगढ़ी मजदूर की पीटकर हत्या, पूछा, “क्या तुम बांग्लादेशी हो?”
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” की खबर है कि केरल के पलक्कड़ जिले में वालयार के पास स्थानीय निवासियों के एक समूह द्वारा चोरी के संदेह में बेरहमी से की गई पिटाई के बाद छत्तीसगढ़ के 31 वर्षीय एक प्रवासी मजदूर की मौत हो गई. मृतक की पहचान रामनारायण भयर (31) के रूप में हुई है, जो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर का रहने वाला था और कांजीकोड में रह रहा था. पुलिस ने बताया कि यह घटना बुधवार (17 दिसंबर) शाम को अट्टापल्लम ईस्ट में हुई, जब कुछ लोगों ने भयर पर जानलेवा हमला कर दिया. गंभीर रूप से घायल भयर को पलक्कड़ जिला सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहां उसी रात उसने दम तोड़ दिया. इधर, “मकतूब मीडिया” में रिपोर्ट है कि हमले के एक वीडियो के अनुसार, हमलावरों ने उसे ‘चोर’ करार दिया था और उससे सवाल किया था, “क्या तुम बांग्लादेशी हो?”
स्थानीय निवासियों का दावा है कि भयर कथित तौर पर चोरी की नीयत से इलाके के कई घरों में घुसा था, जिसके बाद दोपहर करीब 3 बजे यह घटना हुई. हालांकि, मृतक के एक रिश्तेदार ने बताया कि भयर काम की तलाश में केवल चार दिन पहले ही केरल आया था और सही काम न मिलने पर वापस घर जाने की योजना बना रहा था. रिश्तेदार ने कहा, “वह इलाके में नया था, रास्ते नहीं जानता था और भटक गया था. इसी वजह से वह उस जगह पहुंच गया, जहां यह घटना हुई.” भयर का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और उसके परिवार में 8-10 साल के दो बच्चे हैं.
पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है. उन पर भारतीय न्याय संहिता के तहत हत्या का मामला दर्ज किया गया है और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. राज्य मानवाधिकार आयोग ने इस घटना पर स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं और पलक्कड़ जिला पुलिस प्रमुख को तीन सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है.
इस घटना ने 2018 में अट्टापडी के आदिवासी युवक मधु की लिंचिंग की यादें ताजा कर दी हैं, जिसकी चोरी के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. उस घटना के बाद देशभर में आक्रोश फैल गया था और 14 में से 13 आरोपियों को सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी.
यूपी में कथा वाचक को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने पर विवाद, डीजीपी ने एसपी से स्पष्टीकरण मांगा
उत्तरप्रदेश के बहराइच में पुलिस रंगरूटों द्वारा एक कथावाचक को औपचारिक ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देने का वीडियो वायरल होने के बाद बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. संवैधानिक उल्लंघन के आरोपों के बीच राज्य के डीजीपी राजीव कृष्णा ने संबंधित जिले के पुलिस अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा है.
नमिता बाजपेयी के अनुसार, यूपी पुलिस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट किया: “यह स्पष्ट किया गया है कि पुलिस परेड ग्राउंड का उपयोग निर्धारित मानदंडों के अनुसार सख्ती से केवल पुलिस प्रशिक्षण, अनुशासन और आधिकारिक समारोहों के लिए किया जाना चाहिए. इन निर्धारित मानदंडों के उल्लंघन को देखते हुए, संबंधित पुलिस अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा गया है.”
इस बीच बहराइच पुलिस ने इस आयोजन के पीछे का तर्क देते हुए कहा कि आचार्य पुंडरीक गोस्वामी को रंगरूटों की काउंसलिंग, ध्यान और योग कार्यशाला के लिए आमंत्रित किया गया था. पुलिस का दावा है कि प्रशिक्षण के दौरान अत्यधिक मानसिक और शारीरिक तनाव के कारण 28 रंगरूटों ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद यह कदम उठाया गया. अधिकारियों ने दावा किया कि गोस्वामी का प्रवचन “उपयोगी” रहा और इससे रंगरूटों का तनाव दूर हुआ और कर्तव्य के प्रति उनका आत्मविश्वास बढ़ा.
वायरल वीडियो में कथित तौर पर दिख रहा है कि बहराइच के पुलिस अधीक्षक आर.एन. सिंह और अन्य पुलिसकर्मी रेड कारपेट बिछाकर पुंडरीक गोस्वामी का स्वागत कर रहे हैं. वीडियो में यह भी दिखाया गया है कि गोस्वामी रंगरूटों से सलामी स्वीकार कर रहे हैं और एसपी उनके बगल में खड़े हैं.
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश में अपराध और माफिया राज फल-फूल रहा है, जबकि सरकार ‘सलामी’ के खेल में व्यस्त है. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या कोई इस मामले का संज्ञान लेगा. वहीं, सांसद चंद्रशेखर आजाद ने इस घटना को संविधान पर हमला बताते हुए कहा, “सलामी और परेड संप्रभुता के प्रतीक हैं,” और इनका उपयोग इस तरह नहीं किया जाना चाहिए.
छत्तीसगढ़ के कांकेर में शव दफनाने के विवाद पर हिंसा; दो चर्च फूंके, कई घायल
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के अंतागढ़ ब्लॉक के आमाबेड़ा गांव में गुरुवार को विवादित अंतिम संस्कार को लेकर तनाव बढ़ गया, जिसके बाद हिंसा भड़क उठी. इस हिंसा में कई लोग घायल हो गए, दो चर्चों को आग लगा दी गई और कई संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया.
“मकतूब मीडिया” की रिपोर्ट के अनुसार, शुरुआत रायपुर से लगभग 150 किमी दक्षिण में स्थित बड़े तेवड़ा ग्राम पंचायत में हुई, जहां 70 वर्षीय चमरा राम सलाम के शव को उनके परिवार के स्वामित्व वाली निजी भूमि पर दफनाया गया था. चमरा राम, जिनका 15 दिसंबर को इलाज के दौरान निधन हो गया था, स्थानीय सरपंच राजमन सलाम के पिता थे.
पुलिस के अनुसार, ग्रामीणों के एक वर्ग ने दफनाने पर आपत्ति जताई और आरोप लगाया कि इसे गुपचुप तरीके से किया गया और पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों का पालन नहीं किया गया. कुछ निवासियों ने दावा किया कि सरपंच ने ईसाई धर्म अपना लिया था और परिवार पर ईसाई रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया, जिससे विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया.
‘यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम’ ने आरोप लगाया कि एक बड़ी भीड़ ने ग्रामीणों को यह कहकर उकसाया कि ‘पेसा अधिनियम’ के तहत उन्हें शव निकालने का अधिकार है. उन्होंने दावा किया कि वह भूमि एक स्थानीय देवता की है और इसलिए वहां ईसाई रीति से दफन करना वर्जित है.
ग्रामीणों की शिकायतों के आधार पर, एक कार्यपालक मजिस्ट्रेट ने गुरुवार को शव को कब्र से बाहर निकालने का आदेश दिया. पुलिस ने कहा कि अवशेषों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाएगा और जांच के नतीजों के आधार पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि दंगे जैसी स्थिति के दौरान कम से कम दो चर्चों में आग लगा दी गई और ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के घरों पर हमला किया गया.
‘यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम’ ने साल 2025 में दफनाने से संबंधित 23 घटनाएं दर्ज की हैं, जिनमें से 19 छत्तीसगढ़ में, दो झारखंड में और एक-एक ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल में हुई हैं. इससे पहले 2024 में भी ऐसे लगभग 40 मामले सामने आए थे, जिनमें छत्तीसगढ़ में 30, झारखंड में छह और अन्य मामले बिहार व कर्नाटक में दर्ज किए गए थे.
हालिया रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि ईसाइयों को उनकी पैतृक भूमि पर दफनाने के अधिकार से तेजी से वंचित किया जा रहा है, जिससे पादरियों और परिवारों के बीच भय का माहौल बन गया है. सबसे अधिक प्रभावित गांवों में ईसाइयों के लिए अलग से कोई निर्दिष्ट कब्रिस्तान नहीं है, और ऐतिहासिक रूप से साझा किए जाने वाले सामुदायिक श्मशानों को अब तेजी से केवल ‘हिंदू-विशिष्ट’ स्थानों के रूप में माना जा रहा है.
उन्होंने आरोप लगाया कि जो परिवार अपने मृतकों को अपने ही गांवों में दफनाने की कोशिश करते हैं, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता है—उन जगहों पर भी जहां वे पीढ़ियों से अपने रिश्तेदारों को दफनाते आए हैं. वहीं, जहां केवल ईसाइयों के लिए कब्रिस्तान मौजूद हैं, वे अक्सर आदिवासी बस्तियों से बहुत दूर स्थित होते हैं.
ज़ुबीन गर्ग: भारत में मर्डर की चार्जशीट, लेकिन सिंगापुर पुलिस को किसी साजिश का संदेह नहीं
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भले ही गायक जुबीन गर्ग की मृत्यु को “सीधी सीधी हत्या” करार दिया हो, और एसआईटी ने 3500 पन्नों की चार्जशीट पेश कर दी हो, लेकिन सिंगापुर पुलिस ने कहा है कि जुबीन की मृत्यु की जांच अभी जारी है, और लेकिन अब तक की जांच में किसी भी तरह की साजिश का संदेह नहीं पाया गया है.
“पीटीआई” के मुताबिक, सिंगापुर पुलिस बल (एसपीएफ) ने गुरुवार को बताया कि इस मामले की जांच फिलहाल सिंगापुर कोरोनर्स एक्ट 2010 के अनुसार की जा रही है.
एसपीएफ ने अपने बयान में कहा, “अब तक की हमारी जांच के आधार पर, पुलिस को गर्ग की मृत्यु में किसी साजिश का संदेह नहीं है.” जांच पूरी होने के बाद, रिपोर्ट सिंगापुर के ‘स्टेट कोरोनर’ को सौंपी जाएगी, जो जनवरी और फरवरी 2026 में ‘कोरोनर इंक्वायरी’ (सीआई) करेंगे.
एसपीएफ के अनुसार, कोरोनर इंक्वायरी मौत के कारणों और परिस्थितियों का पता लगाने के लिए कोरोनर के नेतृत्व में की जाने वाली एक तथ्यात्मक प्रक्रिया है. इसकी रिपोर्ट जांच पूरी होने पर सार्वजनिक की जाएगी. पुलिस ने कहा कि वे इस मामले की गहन और पेशेवर जांच के लिए प्रतिबद्ध हैं. बयान में आगे कहा गया, “हम इसमें शामिल पक्षों से धैर्य और समझदारी की अपील करते हैं. इस बीच, हम जनता से आग्रह करते हैं कि वे अटकलें न लगाएं और अपुष्ट जानकारी न फैलाएं.”
दूसरी ओर भारत में जुबीन गर्ग की मौत की जांच कर रही एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने पिछले हफ्ते अदालत में दाखिल आरोप-पत्र में गायक के सचिव सिद्धार्थ शर्मा और महोत्सव आयोजक श्यामकानु महंत सहित चार आरोपियों पर हत्या का आरोप लगाया है. उल्लेखनीय है कि जुबीन गर्ग की 19 सितंबर को सिंगापुर में समुद्र में तैराकी के दौरान रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी.
1,000 करोड़ के अवैध सट्टेबाजी ऐप मामले में युवराज सिंह, सोनू सूद और अन्य की संपत्ति कुर्क
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के अनुमानित अवैध सट्टेबाजी ऐप से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह और रॉबिन उथप्पा, तृणमूल कांग्रेस की पूर्व सांसद और अभिनेत्री मिमी चक्रवर्ती और अभिनेता सोनू सूद की संपत्तियां कुर्क की हैं.
“द टेलीग्राफ” में पीटीआई के हवाले से खबर है कि केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अंतिम आदेश जारी किए जाने के बाद अभिनेत्री नेहा शर्मा, मॉडल उर्वशी रौतेला की मां और बंगाली अभिनेता अंकुश हाजरा की संपत्तियां भी कुर्क की गई हैं.
कुर्क की गई संपत्तियों का विवरण इस प्रकार है: सोनू सूद-लगभग 1 करोड़ रुपये, युवराज सिंह: 2.5 करोड़ रुपये, नेहा शर्मा: 1.26 करोड़ रुपये, रॉबिन उथप्पा: 8.26 लाख रुपये, मिमी चक्रवर्ती: 59 लाख रुपये, अंकुश हाजरा: 47 लाख रुपये और उर्वशी रौतेला की मां: 2.02 करोड़ रुपये.
जानकारी के अनुसार, इन सभी हस्तियों से पूर्व में ईडी द्वारा पूछताछ की जा चुकी है. कुर्क की गई इन संपत्तियों को “1xbet” नामक कथित अवैध सट्टेबाजी ऐप (जो कुराकाओ में पंजीकृत है) से जुड़े मामले में पीएमएलए के तहत “अपराध की कमाई” के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इसी जांच के हिस्से के रूप में, एजेंसी ने पहले पूर्व क्रिकेटर शिखर धवन और सुरेश रैना की 11.14 करोड़ रुपये की संपत्ति भी कुर्क की थी.
झोपड़ियों के जले हुए अवशेषों के बीच, भाजपा अब भी रोहिंग्या शरणार्थियों की तलाश कर रही
17 दिसंबर को कोलकाता के न्यू टाउन इको पार्क के पास स्थित घुनी झुग्गी बस्ती में लगी भीषण आग ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है. पश्चिम बंगाल की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी इस बस्ती को “अवैध आप्रवासियों का केंद्र” कहती है, लेकिन देबायन दत्ता अपनी रिपोर्ट में कहते हैं कि “जमीनी वास्तविकता” भाजपा के दावे से ‘बिल्कुल अलग’ है. हालांकि, लगभग 300 अस्थायी झोपड़ियों के जले हुए अवशेषों के बीच, भाजपा अब भी रोहिंग्या शरणार्थियों की तलाश कर रही है. न्यू टाउन इको पार्क के गेट नंबर 6 के पास स्थित ‘घुनी बस्ती’ में भीषण आग लगने के 12 घंटे बाद, भाजपा के आईटी सेल प्रमुख और बंगाल के सह-प्रभारी अमित मालवीय ने दावा किया कि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने इस आग की साजिश रची थी. यह आग बुधवार शाम से गुरुवार सुबह तक धधकती रही.
इस इलाके को अक्सर “मिनी बांग्लादेश” कहकर पुकारा जाता रहा है. मीडिया में ऐसी खबरें थीं कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के डर से यहां रहने वाले “घुसपैठिए” सामूहिक रूप से भाग रहे हैं. हालांकि, स्थानीय निवासियों का कहना है कि पलायन की खबरें बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई हैं. कई लोग केवल अपने गांव फॉर्म भरने गए थे या सुबह काम पर होने के कारण उनके घर बंद मिले, जिसे मीडिया ने ‘पलायन’ समझ लिया.
मीडिया की भूमिका और निवासियों का उत्पीड़न
निवासियों ने मीडिया पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनके अनुसार, संवाददाताओं ने बिना अनुमति के उनके घरों और दफ्तरों में घुसकर उन्हें ‘बांग्लादेशी’ कहकर प्रताड़ित किया और कागजात दिखाने का दबाव बनाया. विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लोगों को संदिग्ध दृष्टि से देखा गया. स्थानीय ठेकेदार मोहम्मद सामोन अली जैसे निवासियों ने बताया कि वे पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं, फिर भी उन्हें परेशान किया गया. स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि कई जगहों पर स्थानीय लोगों ने मीडिया को खदेड़ दिया.
जाहिर है, इस मामले ने बंगाल की राजनीति में ‘घुसपैठ’ के मुद्दे को फिर से गरमा दिया है. भाजपा नेता अमित मालवीय ने दावा किया कि घुनी बस्ती की आग एक सोची-समझी साजिश थी। उनका आरोप है कि वहां रहने वाले विदेशी नागरिकों ने ज्वलनशील वस्तुएं जमा कर रखी थीं. पार्टी के नेता शुभेंदु अधिकारी ने पूर्व में दावा किया था कि बंगाल में एक करोड़ से अधिक बांग्लादेशी और रोहिंग्या मतदाता हैं. मालवीय ने दमकल विभाग की देरी को राज्य सरकार की विफलता और “आग से खेलने” जैसा बताया.
वहीं तृणमूल नेता अभिषेक बनर्जी ने भाजपा के दावों को खारिज करते हुए कहा कि चुनाव आयोग की नई मतदाता सूची ने उनके ‘एक करोड़ घुसपैठियों’ के दावों की पोल खोल दी है. उन्होंने भाजपा से बंगाल की जनता से माफी मांगने की मांग की.
दरअसल, निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित प्रारूप मतदाता सूची के अनुसार, बंगाल में कुल 58.17 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं. इनमें से सबसे अधिक नाम कोलकाता और उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिलों से हटाए गए हैं. हालांकि, आयोग ने किसी को ‘विदेशी’ नहीं कहा है, बल्कि उन्हें ‘मृत’, ‘लापता’ या ‘स्थानांतरित’ (अपात्र) के रूप में वर्गीकृत किया है.
कुलमिलाकर, दत्ता की रिपोर्ट बताती है कि यह मामला केवल एक दुर्घटना या प्रशासनिक प्रक्रिया का नहीं है, बल्कि यह पहचान की राजनीति और ‘सांप्रदायिक नैरेटिव’ का मुद्दा बन गया है. जहां एक ओर राजनीतिक दल इसे अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय गरीब निवासी मीडिया ट्रायल और सामाजिक कलंक का सामना कर रहे हैं.
साहित्य अकादमी पुरस्कारों पर सरकार का नियंत्रण: मंत्रालय के निर्देश से घोषणा रुकी
साहित्य अकादमी के वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा को लेकर अकादमी और केंद्र सरकार के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. द टेलीग्राफ के पत्रकार फ़िरोज़ एल विंसेंट की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को नई दिल्ली के रवींद्र भवन में पुरस्कारों की घोषणा के लिए पूरी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन एन वक़्त पर प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द कर दी गई. अकादमी के कार्यकारी बोर्ड ने सभी 24 भाषाओं के विजेताओं के नामों को अंतिम रूप दे दिया था, लेकिन संस्कृति मंत्रालय ने एक निर्देश जारी कर कहा कि जब तक पुरस्कारों के पुनर्गठन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, बिना मंत्रालय की मंज़ूरी के कोई घोषणा नहीं की जाएगी. बोर्ड के एक सदस्य ने बताया कि मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव अमिता प्रसाद सरभई ने नामों की समीक्षा करने का सुझाव दिया था, जिसे बोर्ड के सदस्यों ने सर्वसम्मति से ठुकरा दिया. सदस्यों का कहना है कि अकादमी एक स्वायत्त संस्था है और मंत्रालय को जूरी द्वारा चुने गए नामों की समीक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है.
साहित्यिक हलकों में इस घटना को अकादमी की स्वायत्तता और पारदर्शिता पर हमले के रूप में देखा जा रहा है. यह पहली बार है जब साहित्य अकादमी अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने में असमर्थ रही है. मंत्रालय का कहना है कि 2025-26 के लिए हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoU) के तहत पुरस्कारों में पारदर्शिता लाने के लिए यह पुनर्गठन आवश्यक है. हालांकि, बोर्ड के सदस्यों ने साफ़ किया है कि जूरी की सिफ़ारिशें निष्पक्ष हैं और उनमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता. अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक और उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने फिलहाल इस मुद्दे पर विस्तृत टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. इस देरी से देशभर के साहित्यकारों में रोष है, क्योंकि अकादमी की पहचान उसकी स्वतंत्रता से जुड़ी रही है. मंत्रालय के इस हस्तक्षेप को संस्था के कामकाज में अनावश्यक दख़ल माना जा रहा है.
यूरोपीय संघ का यूक्रेन को भारी ऋण का फ़ैसला: रूसी संपत्ति पर पेंच बरकरार
यूरोपीय संघ (EU) के नेताओं ने यूक्रेन की सैन्य क्षमता को सुदृढ़ करने के लिए एक बड़ा वित्तीय फ़ैसला लिया है. रॉयटर्स के लिए एंड्रयू ग्रे की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को ब्रुसेल्स में हुई शिखर बैठक में यूक्रेन को अगले दो वर्षों के लिए 90 अरब यूरो ($105 बिलियन) का ऋण देने पर सहमति बनी है. यह राशि सीधे यूरोपीय संघ के बजट से ली जाएगी. शुरुआत में यह विचार था कि यूक्रेन को रूसी ज़ब्त संपत्तियों के ब्याज से पैसा दिया जाए, लेकिन कानूनी जटिलताओं और बेल्जियम के विरोध के कारण ‘प्लान-बी’ अपनाना पड़ा. बेल्जियम में रूस की लगभग 185 अरब यूरो की संपत्ति फ़्रीज़ है, और वहां की सरकार को डर है कि इस पैसे के इस्तेमाल से रूस जवाबी कानूनी या वित्तीय कार्रवाई कर सकता है.
बैठक में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन के रुख़ पर सबकी नज़रें थीं. ओर्बन, जो अक्सर यूक्रेन की सहायता का विरोध करते हैं, इस बार इस शर्त पर मान गए कि उनके देश पर इसका कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा. चेक गणराज्य और स्लोवाकिया ने भी इसी शर्त पर समर्थन दिया. यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है, हालांकि उन्होंने रूसी संपत्तियों का पूर्ण उपयोग करने की अपनी मांग दोहराई है. यूरोपीय संघ के नेताओं ने साफ़ किया है कि जब तक रूस युद्ध के हर्जाने का भुगतान नहीं करता, उसकी संपत्तियां फ़्रीज़ ही रहेंगी. EU के विदेश नीति प्रमुख काजा कलास ने कहा कि यूक्रेन की आर्थिक मदद में देरी का मतलब रूस की जीत होगी, जो पूरे यूरोप के लिए ख़तरा है. ऋण की यह राशि यूक्रेन को 2026 और 2027 के दौरान अपनी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने में मदद करेगी.
पुतिन ने रूसी संपत्ति फ्रीज करने पर यूरोपीय संघ को दी चेतावनी: “यह डकैती है”
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूरोपीय संघ (EU) के उन प्रयासों की कड़ी निंदा की है, जिसके तहत यूक्रेन को वित्तीय सहायता देने के लिए फ्रीज की गई रूसी संपत्तियों का उपयोग करने की योजना बनाई गई थी. हालांकि, बेल्जियम के कड़े विरोध के बाद यह योजना सफल नहीं हो सकी, लेकिन पुतिन ने इसे “डकैती” करार देते हुए भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी दी है.
पॉलिटिको और न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाताओं इवान नेचेपुरेंको और पॉल सोने की रिपोर्ट के अनुसार, पुतिन ने पत्रकारों और जनता के सवालों का जवाब देते हुए कहा, “यह डकैती है, लेकिन वे इसे अंजाम क्यों नहीं दे पा रहे? क्योंकि लुटेरों के लिए इसके परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं.” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यूरोप ने रूसी संपत्तियों को जब्त किया, तो इससे यूरोज़ोन में निवेशकों का भरोसा खत्म हो जाएगा. पुतिन ने साफ़ कहा कि रूस अपने हितों की रक्षा अदालतों में करेगा और जब्त की गई संपत्ति को वापस लेना जानता है.
यूक्रेन युद्ध के संबंध में पुतिन ने अपना सख्त रुख दोहराते हुए कहा कि रूस तब तक युद्ध जारी रखेगा जब तक उसकी सभी शर्तें पूरी नहीं हो जातीं. उन्होंने कहा कि सामरिक पहल पूरी तरह से रूसी सेना के हाथों में है और वे शांति वार्ता के लिए तभी तैयार हैं जब यूक्रेन उनके द्वारा दावा किए गए पूर्वी क्षेत्रों से अपना अधिकार छोड़ दे. पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के उस वीडियो का भी मज़ाक उड़ाया जिसमें वह कुपियांस्क शहर के साइनबोर्ड के पास खड़े थे. पुतिन ने कहा, “वह बोर्ड शहर से बाहर है, अगर हिम्मत है तो शहर के अंदर आइए.”
रूस की अर्थव्यवस्था पर बात करते हुए पुतिन ने दावा किया कि विकास में धीमी गति सरकार और केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था को ‘ओवरहीटिंग’ से बचाने के लिए उठाया गया एक जानबूझकर किया गया कदम था. हालांकि, प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आम नागरिकों ने आर्थिक समस्याओं पर सवाल उठाए. एक महिला ने शिकायत की कि उनकी पेंशन मात्र 16,000 रूबल (लगभग 200 डॉलर) है, जिस पर पुतिन ने बजट को संतुलित करने की बात कही. जानकारों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद पुतिन ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि रूस एक लंबे युद्ध के लिए आर्थिक और सैन्य रूप से तैयार है.
रवींद्रनाथ टैगोर की ‘फ्रॉम अक्रॉस द डार्क’ रिकॉर्ड ₹10.73 करोड़ में बिकी
अस्तागुरु की हाल ही में संपन्न “ऐतिहासिक कालजयी कृतियों” की नीलामी में रवींद्रनाथ टैगोर की 1937 की उत्कृष्ट कृति, “फ्रॉम अक्रॉस द डार्क” ने ₹10.73 करोड़ की रिकॉर्ड राशि हासिल की है. यह कलाकार की किसी भी कृति के लिए अब तक की सबसे ऊंची कीमत है. 14-17 दिसंबर तक चली इस नीलामी में सभी 87 लॉट बिक गए (100% सेल-आउट रेट), जिससे कुल ₹163.65 करोड़ से अधिक की बिक्री हुई. नीलामी में सबसे महंगी बिकने वाली कृति तैयब मेहता की “अनटाइटल्ड (जेस्चर)” रही, जो लगभग ₹53.54 करोड़ में बिकी.
“पीटीआई” के अनुसार, टैगोर की यह पेंटिंग अंधेरे, प्रकाश, दुख और सांत्वना जैसे गहन विषयों के साथ उनके जुड़ाव को दर्शाती है. नीलामी घर ने एक बयान में कहा, “यह कृति असाधारण ऐतिहासिक और भावनात्मक गूंज रखती है. जून 1937 में अल्मोड़ा प्रवास के दौरान चित्रित यह कलाकृति उनके अंतिम काल की अंतर्मुखी और वायुमंडलीय शैली को दर्शाती है. अंधेरे में बैठे एक अकेले व्यक्ति और परछाइयों से बाहर निकलते दूसरे व्यक्ति का चित्रण उस मनोवैज्ञानिक तीव्रता को दर्शाता है, जो उम्र, एकांत और व्यक्तिगत क्षति के लंबे अनुभव से आकार लेती है. “
टैगोर के अलावा कई अन्य प्रमुख कलाकारों ने भी नीलामी में अपने व्यक्तिगत रिकॉर्ड बनाए. कृष्ण खन्ना: उनकी बाइबिल विषय पर आधारित कृति “द लास्ट सपर” ₹10.22 करोड़ से अधिक में बिकी. इसमें उन्होंने अपनी विशिष्ट मानवतावादी और अभिव्यंजक संवेदनशीलता का परिचय दिया है. सदानंद के. बाकरे: उनकी दुर्लभ आकृतियुक्त कृति “मोनालिसा” ने ₹2.30 करोड़ से अधिक की कीमत के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया. वाल्टर लैंगहैमर: पुराने बॉम्बे के तटीय परिदृश्य को दर्शाने वाली उनकी एक पेंटिंग ₹56.96 लाख से अधिक में बिकी, जो इस कलाकार के लिए अब तक की सबसे अधिक कीमत है.
अस्तागुरु के मार्केटिंग डायरेक्टर मनोज मनसुखानी ने कहा कि संग्रहकर्ताओं की इस मजबूत प्रतिक्रिया ने आधुनिक भारतीय कलाकृतियों के प्रति बढ़ते वैश्विक रुझान और रुचि की पुष्टि की है. इस नीलामी में मंजीत बावा, जे. स्वामीनाथन, एफ.एन. सूजा, जैमिनी रॉय, विकास भट्टाचार्य, सोमनाथ होरे, राम कुमार, के.एच. आरा, हिम्मत शाह और गणेश पाइन जैसे दिग्गज आधुनिक भारतीय कलाकारों की कृतियां भी प्रदर्शित की गईं.
अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.











