20/01/2025 : आज से ट्रम्प फिर सत्तानशीं, राहुल पर एफआईआर, रामदेव का वारंट, गंदी गंगा में कुंभ, हिचकौलों के साथ गाजा समझौता लागू होना शुरू, कंगना रनौत की बेइमान भड़ास, सैफ मामला अब भी धुंध में
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां | 20 जनवरी 2025
कोटा की खुदकुशियों के पीछे प्यार के चक्कर: कोटा में एक और छात्र के आत्महत्या करने के बाद राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने अजीब और विवादास्पद बयान दिया है. दिलावर, जो कि अपनी उत्तेजक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं, का दावा है कि छात्रों के बीच “प्रेम संबंध” आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं. पिछले कुछ वर्षों में आत्महत्या के बढ़ते मामलों ने कोचिंग के केंद्र कोटा को हिलाकर रख दिया है. दिलावर ने अभिभावकों को भी अपने बच्चों की गतिविधियों पर बारीक नज़र रखने की सलाह दी है, ताकि वे गुमराह न हों और आत्महत्या जैसा गलत कदम न उठाएं. शिक्षा मंत्री का यह बयान इस माह अब तक आत्महत्या के तीन मामले सामने आने के बाद आया है. चूंकि पिछले कुछ वर्षों में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं, लिहाजा देश के सबसे बड़े कोचिंग हब के राजस्व में खासी कमी आती जा रही है.
गुवाहाटी में राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर भाजपा और आरएसएस पर आरोप लगाने के कारण गुवाहाटी के पान बाजार पुलिस स्टेशन में शनिवार को विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई. शिकायतकर्ता मोंजित चेतिया ने राहुल गांधी के इस बयान को भारत की अखंडता और स्थिरता के लिए चुनौती बताया है कि भाजपा और आरएसएस ने देश के हर संस्थान पर कब्जा कर लिया है और अब हम बीजेपी, आरएसएस और भारतीय राज्य से लड़ रहे हैं. राहुल के खिलाफ एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 और 197(1)d के तहत दर्ज की गई है.
रामदेव और बालकृष्ण के खिलाफ वारंट : केरल के दवा नियामकों द्वारा पतंजलि आयुर्वेद के स्वास्थ्य उत्पादों के कथित भ्रामक विज्ञापनों को लेकर दर्ज शिकायत के बाद, पालक्काड जिला अदालत ने रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण के खिलाफ जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. वारंट 16 जनवरी 2025 को दर्ज मामले के बाद जारी किया गया है. यह रामदेव के खिलाफ केरल में पहला वारंट-आधारित सम्मन है. यह मामला तीन साल पहले केरल के डॉक्टर के.वी. बाबू द्वारा केंद्र सरकार को पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों की शिकायत से शुरू हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप केरल में 10 और उत्तराखंड में एक मामला दर्ज किया गया. केरल ड्रग्स कंट्रोल विभाग ने नवंबर 2023 में पतंजलि के खिलाफ ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल एडवरटाइजमेंट्स) एक्ट, 1954 के तहत कार्रवाई शुरू की थी. यह अधिनियम कुछ विशिष्ट बीमारियों के इलाज का दावा करने वाले विज्ञापनों को प्रतिबंधित करता है. डॉ. के.वी. बाबू ने अप्रैल 2022 में केंद्र और राज्य प्राधिकरणों को पतंजलि के कथित भ्रामक विज्ञापनों की शिकायत की थी. जनवरी 2024 में प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई शिकायत के बाद उत्तराखंड अधिकारियों ने मामला दर्ज किया और हरिद्वार जिला और सत्र अदालत ने रामदेव और उनके सहयोगियों को सुनवाई के लिए तलब करना शुरू किया. गौरतलब है कि 15 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई न करने पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अवमानना कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी. न्यायमूर्ति अभय ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने स्पष्ट किया, "यदि हमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश द्वारा गैर-अनुपालन मिलता है, तो हमें संबंधित राज्यों के खिलाफ अवमानना अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई शुरू करनी पड़ सकती है." पीठ ने जुलाई 2024 में भी केंद्र और राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों को निर्देश दिया था कि वे भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ सक्रिय रूप से कार्रवाई करें.
अटकलबाजियों का केंद्र बनता जा रहा है सैफ़ पर हमले का मामला
पिछले कई दिनों से पुलिस सैफ के हमलावर के नाम पर संदिग्धों को पकड़ रही थी. अब उसने दावा किया है कि अभियुक्त पकड़ा गया. उसका नाम मोहम्मद शरीफुल इस्लाम शहजाद है. वह बांग्लादेशी है. भारत में बिजय दास बनकर रह रहा था. पुलिस ने उसे महाराष्ट्र के ठाणे शहर से गिरफ्तार किया है. उसका कहना है कि आरोपी ने 16 जनवरी की रात दो-ढाई बजे चोरी के इरादे से घुसा था. इसी दौरान उसने कई बार सैफ पर चाकू से वार किया था. मुंबई की एक अदालत ने रविवार को सैफ पर हमले के आरोपी को 24 जनवरी तक पुलिस हिरासत में भेज दिया.
वहीं आरोपी के वकील संदीप शेखाने का दावा है कि पुलिस ने उनके मुवक्किल पर जो आरोप लगाया है, वह निराधार है. उसके पास कोई सबूत नहीं कि शरीफुल इस्लाम शहजाद बांग्लादेशी है. गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने कहा था कि आरोपी छह महीने पहले ही बांग्लादेश से भारत आया था, जबकि संदीप का कहना है कि उनका मुवक्किल अपने परिवार के साथ सात साल से भी अधिक समय से मुंबई में रह रहा है. आरोपी के एक अन्य वकील दिनेश प्रजापति ने भी संदीप का समर्थन किया. प्रजापति ने कहा, "शहजाद के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ है, और पुलिस ने कोई भी ऐसा दस्तावेज पेश नहीं किया है, जो साबित करता हो कि वह बांग्लादेशी नागरिक है.
महाराष्ट्र सेलिब्रिटीज के लिए कितना असुरक्षित होता जा रहा है, इसका एक उदाहरण है करीब तीन महीने पहले ही अक्टूबर 2024 में बांद्रा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता बाबा सिद्दीकी की दुस्साहसिक हत्या कर दी गई थी. पिछले साल अप्रैल में सलमान खान के बांद्रा स्थित घर पर बदमाशों ने गोलीबारी की थी. ताजा घटना गुरुवार की सुबह अभिनेता सैफ अली खान को उनके घर के भीतर घुसकर छह बार चाकू घोंपने का मामला है. तथ्य यह भी है कि एक साल के भीतर जिन तीन सेलिब्रिटियों को निशाना बनाया गया, वह सभी एक ही समुदाय के हैं. इस वजह से सैफ का मामला रहस्यमय लगता है. साथ ही इस चौंकाने वाली घटना में कई सवाल अब तक अनुत्तरित हैं.
मुंबई पुलिस के आधिकारिक बयान के अनुसार, एक घुसपैठिया रात करीब दो-ढाई के बीच में खान के बांद्रा स्थित आवास में घुसा था. जब स्टाफ के एक सदस्य ने शोर मचाया, तो खान बाहर भागकर आए. हाथापाई हुई. घुसपैठिए ने सैफ को छह बार चाकू मारा और भागने में सफल रहा.
ऐसी स्थिति में सबसे पहले पुलिस कंट्रोल रूम के लिए 100 नंबर डायल किया जाना चाहिए था. ऐसा क्यों नहीं किया गया? बिल्डिंग की सुरक्षा को क्यों नहीं अलर्ट किया गया?
सैफ कड़ी सुरक्षा वाले 12 मंजिला अपार्टमेंट में ऊपर की चार मंजिलों के मालिक हैं. बिल्डिंग की सुरक्षा तोड़कर रात 2 बजे एक अजनबी कैसे घुसा? इतनी बड़ी घटना के बाद भी वह सुरक्षित बाहर कैसे गया?
सुरक्षा गार्डों के अलावा, मुंबई की लगभग हर बिल्डिंग में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी है. सीसीटीवी लगे हैं. सोसाइटी में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति की मोबाइल ऐप-आधारित रिकॉर्डिंग प्रणाली थी. घुसपैठिया इन निगरानी प्रणालियों को पार कैसे किया?
घुसपैठिये को कैसे पता था कि उसे चार मंजिलों में से किस मंजिल पर और किधर जाना है? क्या घुसपैठिए को घर के लेआउट के बारे में जानकारी थी?
पुलिस दावे के अनुसार घुसपैठिया चोर था तो फिर उसने कुछ चुराने की कोशिश क्यों नहीं की? करीना ने पुलिस को बताया कि घर में खुले में आभूषण और कीमती सामान रखा था, मगर उसने उन्हें छुआ तक नहीं.
खान को जितनी गंभीर चोट लगी है और बार-बार हमला किये जाने से क्या ऐसा लगता है कि उसने बचकर भागने के लिए हमला किया? सामान्य तौर पर बार-बार हमला तो कोई जानबूझकर ही करेगा.
घर में मौजूद लोगों ने खान को अस्पताल क्यों नहीं पहुंचाया? खान परिवार के पास कई कारें और ड्राइवर हैं, तो उन्हें ऑटोरिक्शा में अस्पताल क्यों ले जाया गया? इस बात पर भी संशय है कि खान के साथ अस्पताल कौन गया था? कुछ रिपोर्ट बताते हैं कि सैफ का बड़ा बेटा इब्राहिम, जो कहीं और रहता है, वह उन्हें अस्पताल लेकर गया. जबकि अन्य रिपोर्टें बताती हैं कि ऑटोरिक्शा में खान के साथ सात वर्षीय तैमूर था.
मुंबई पुलिस ने जैसे ही कहा कि आरोपी बांग्लादेशी नागरिक है, बीजेपी और शिवसेना ने इस मुद्दे को लपक लिया. दोनों दल इसे अपनी विचारधारा को बल देने और समर्थकों के बीच लोकप्रिय मुद्दा बनाने का एक मौका मान रहे हैं.
महाकुंभ में सिलेंडर ब्लास्ट से लगी भीषण आग, 18 टेंट जलकर खाक : महाकुंभ मेले में सिलेंडर फटने से रविवार को भीषण आग लग गई. इससे सेक्टर 19 में 18 टेंट जलकर खाक हो गए. अधिकारियों ने बताया कि शाम करीब 4 बजे लगी आग पर 15 दमकल गाड़ियों ने एक घंटे में काबू पा लिया.
राजौरी में रहस्यमय बीमारी से 17 लोगों की मौत : जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में एक रहस्यमय बीमारी के कारण रविवार को एक और व्यक्ति की मौत हो गई, जिससे मरने वालों की संख्या 17 हो गई है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर एक उच्च-स्तरीय अंतर-मंत्रालयीन टीम जांच के लिए रविवार को राजौरी पहुंची. यह टीम बदहाल गांव में एक-दूसरे से जुड़े तीन परिवारों में हुई मौतों के कारणों का पता लगाएगी. मृतकों में ज्यादातर बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं.जम्मू-कश्मीर सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि जांच और नमूनों से पता चला है कि यह घटना किसी संक्रामक रोग के कारण नहीं हुई है और इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य का कोई पहलू नहीं है.
शाकिब हसन के खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट : बांग्लादेश क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और अवामी लीग के पूर्व सांसद शाकिब अल हसन की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. रविवार को ढाका की अदालत ने चेक बाउंस के मामले में उनके खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया है. शाकिब एक कृषि फार्म कंपनी के चेयरमैन हैं. आईएफआईसी बैंक ने दो चेक बाउंस होने पर उनके अलावा तीन अन्य व्यक्तियों के खिलाफ केस किया था. हसन और उनकी कंपनी के एमडी चूंकि आदेश के बावजूद कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए, इसलिए इन दोनों के खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट जारी कर दिया गया.
मन की बात में चुनाव आयोग जिंदाबाद और अयोध्या सांस्कृतिक चेतना की पुनर्स्थापना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 19 जनवरी को विपक्ष की सारी आलोचनाओं को दरकिनार कर भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की सराहना की. उन्होंने कहा कि आयोग ने लोगों की ताकत को मजबूत करने के लिए प्रौद्योगिकी की शक्ति का उपयोग किया है. निष्पक्ष मतदान प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्धता भी दिखाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ प्रसारण में 25 जनवरी को आयोग के स्थापना दिवस से पहले इसकी प्रशंसा और प्रौद्धोगिकी की तारीफ कर ईवीएम के समर्थन में बयान दिया है. इस दिन को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के प्रथम वर्षगांठ समारोह से पहले अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा को ‘भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनर्स्थापना’ बताया. मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ में कहा, “प्राण-प्रतिष्ठा की यह द्वादशी भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनर्स्थापना की द्वादशी है.” 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या के राम मंदिर में नए रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की गई. इससे एक दशक पुराना विवाद खत्म हो गया. उन्होंने कहा, “विकास के पथ पर चलते हुए हमें अपनी विरासत को संरक्षित करना होगा और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ना होगा.” हालांकि लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की पार्टी अयोध्या से हार गई थी.
महाकुंभ के दौरान भी गंगा का प्रदूषण स्तर स्वीकार्य स्तर से ज्यादा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के निर्देशों के अनुसार, इन श्रद्धालुओं को उस पानी की गुणवत्ता के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए थी, जिसमें वे स्नान करने जा रहे थे. दिसंबर 2024 के आदेश में एनजीटी ने कहा था कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगा के पानी की पर्याप्त उपलब्धता के साथ ही इसकी गुणवत्ता पीने, आचमन और स्नान के लिए उपयुक्त होनी चाहिए. 'डाउन टू अर्थ' ने अपनी पड़ताल में पाया कि ऐसा नहीं किया जा रहा है. रिपोर्ट है कि मकर संक्रांति के दिन दोपहर 3 बजे तक संगम में करीब 2.5 करोड़ श्रद्धालु स्नान कर चुके थे, लेकिन असल में वो सब दूषित गंगा में डुबकी लगा रहे थे. लेकिन, मकर संक्रांति के अवसर पर लाखों लोगों की भीड़ के बावजूद, गंगा की छोटी सहायक नदियों को पूरी तरह से साफ नहीं किया गया. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के रीयल-टाइम वॉटर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम के अनुसार, 14 जनवरी 2025 को दोपहर 2 बजे संगम पर बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर 4 mg/L दर्ज किया गया, जो सामान्य सीमा 3 mg/L से अधिक था. यह उच्च बीओडी स्तर पानी में जैविक पदार्थों की उच्च सांद्रता और खराब जल गुणवत्ता को दर्शाता है. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के अनुसार, संगठित स्नान के लिए BOD का स्तर 3 mg/L से अधिक नहीं होना चाहिए. गंगा में लगातार पानी का डिस्चार्ज जारी होने के बावजूद यह परिणाम दर्शाता है कि सीवेज प्रबंधन और जल शोधन संयंत्र (STP) प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रहे हैं. NGT के निर्देश के अनुसार, श्रद्धालुओं को गंगा जल की गुणवत्ता के बारे में रीयल-टाइम में ऑनलाइन डिस्प्ले के माध्यम से 24 घंटे जानकारी मिलनी चाहिए थी, लेकिन सस्टेनेबिलिटी ऑफ रिवर गंगा वॉटर प्लेटफॉर्म, जो इसके लिए डिज़ाइन किया गया था, काम नहीं कर रहा है.
आज से नया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प
डोनल्ड ट्रम्प आज वाशिंगटन में दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. उद्घाटन दिवस की शुरुआत सेंट जॉन चर्च में एक सेवा के साथ होगी, जिसके बाद व्हाइट हाउस में चायपान होगा. डोनाल्ड ट्रम्प और उपराष्ट्रपति-निर्वाचित जेडी वेंस दोपहर 12 बजे शपथ लेंगे, जिसके बाद राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की आधिकारिक विदाई होगी.
इसके बाद ट्रम्प सीनेट कक्ष के पास राष्ट्रपति के कक्ष में जाएंगे, जहाँ नामांकन पर हस्ताक्षर करने की परंपरा है. हस्ताक्षर समारोह के बाद, उद्घाटन समारोह पर संयुक्त कांग्रेसी समिति द्वारा आयोजित एक दोपहर का भोजन होगा. फिर ट्रम्प राष्ट्रपति परेड की शुरुआत करेंगे, जो कैपिटल से पेन्सिलवेनिया एवेन्यू होते हुए व्हाइट हाउस तक जाएगी, जहाँ सैनिकों की समीक्षा होगी.
दक्षिणपंथियों का बड़ा जलसा
ट्रम्प ने कई विदेशी नेताओं को आमंत्रित किया है जिनसे उन्होंने फोन पर बात की है या फ्लोरिडा में अपने मार-ए-लागो निवास पर व्यक्तिगत रूप से स्वागत किया है, जैसे अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग. जबकि यूरोपीय मध्यमार्गी मुख्यधारा को दरकिनार कर दिया गया है - यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन को आमंत्रित नहीं किया गया है - अति-दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी राजनेताओं को बहुत जगह दी गई है. ब्रिटिश यूरोपीय संघ विरोधी लोकलुभावन निगेल फराज वहां होंगे, साथ ही फ्रांसीसी उग्रवादी एरिक ज़ेमोर, बेल्जियम के टॉम वान ग्रीकेन और पोलैंड के पूर्व प्रधान मंत्री माटेउज़ मोराविएकी भी होंगे, जिनका ब्रुसेल्स के साथ कानून के शासन विवाद में टकराव हुआ था. इनके बीच, कई मंत्री, राजनयिक और विदेशी राजनेता भी होंगे जो अगले अमेरिकी राष्ट्रपति के करीब आने के लिए उत्सुक हैं. उनके आमंत्रित लोगों में एक सामान्य वैचारिक सूत्र है: उनमें से कई राजनीतिक स्पेक्ट्रम के दक्षिणपंथी या यहां तक कि अति-दक्षिणपंथी से हैं, या ऐसे नेता हैं जिनकी ट्रम्प ने पहले प्रशंसा की है. ट्रम्प टीम ने अल साल्वाडोर के राष्ट्रपति नायिब बुकेले (अभी पुष्टि होना बाकी है) और इक्वाडोर के राष्ट्रपति डैनियल नोबोआ को भी निमंत्रण भेजा है, जो वाशिंगटन की एक संक्षिप्त यात्रा के दौरान समारोह में भाग लेंगे. ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो को भी एक निमंत्रण मिला है, लेकिन जांच के बीच उनका पासपोर्ट रद्द किए जाने के कारण वे इसमें भाग नहीं ले पाएंगे. एक्स अरबपति एलोन मस्क, अमेज़ॅन के संस्थापक जेफ बेजोस और मेटा प्रमुख मार्क जकरबर्ग के अलावा, फ्रांसीसी अरबपति और तकनीक उद्यमी जेवियर नील अपनी पत्नी के साथ मौजूद रहेंगे. ट्रम्प की टीम ने न केवल अमेरिका में ब्रिटिश राजदूत करेन पियर्स बल्कि रिफॉर्म पार्टी के नेता निगेल फराज को भी आमंत्रित किया है. ट्रम्प के करीबी सहयोगी मस्क के साथ सार्वजनिक विवाद के बावजूद, कट्टर ब्रेक्सिटर ने अपनी उपस्थिति की पुष्टि की है. फ्रांस से, आप्रवासन विरोधी राजनेता और प्रलयंकारी बेस्टसेलर "द फ्रेंच सुसाइड" के लेखक, ज़ेमोर ने अपनी उपस्थिति की पुष्टि की है, साथ ही उनकी साथी, यूरोपीय सांसद सारा क्नाफ़ो ने भी. स्पेन के अति-राष्ट्रवादी वोक्स पार्टी के नेता सैंटियागो अबास्कल को अति-दक्षिणपंथी यूरोपीय पैट्रियट्स पार्टी के अध्यक्ष के रूप में उनकी क्षमता से आमंत्रित किया गया है. पुर्तगाल से, दक्षिणपंथी लोकलुभावन चेगा पार्टी के प्रमुख आंद्रे वेंचुरा को अन्य कट्टर-दक्षिणपंथी यूरोपीय हस्तियों के साथ आमंत्रित किया गया था.
महिला और पुरुष दोनों टीम चैंपियन बनी : भारतीय महिला और पुरुष खो-खो टीम ने रविवार को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में खेला गया पहला खो-खो विश्वकप जीत लिया है. दोनों भारतीय टीमों का सामना फाइनल में नेपाल से हुआ. महिला टीम ने जहों 78-40 के स्कोर लाइन से मात दी, वहीं पुरुष टीम ने नेपाल को 54–36 के स्कोर से हराया.
भारत के बाजारों का हाल खराब ही रहने की उम्मीद अब ज्यादा है!
नीति आयोग के सदस्य और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविंद विरमानी ने शनिवार को कहा कि उन्होंने वित्त वर्ष 2025 के लिए भारत की जेडीपी वृद्धि का अनुमान वैश्विक अनिश्चितताओं और जोखिमों, खासकर अमेरिका और चीन से जुड़ी चिंताओं के कारण कम कर दिया है. विरमानी, जिन्होंने पहले जीडीपी वृद्धि दर को 6.5 से 7.5 प्रतिशत के बीच होने का अनुमान लगाया था, अब इसे घटाकर 6.5 से 7 प्रतिशत बता रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसके 7 प्रतिशत से कम रहने की संभावना ज्यादा अधिक है, क्योंकि वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों से जोखिम बढ़ गया है. "साल की शुरुआत में मेरा फोकस 7 प्रतिशत प्लस-माइनस 0.5 प्रतिशत था, जिसका मतलब है 6.5 से 7.5 प्रतिशत, लेकिन अब मैं इसे 6.5 से 7 प्रतिशत कर रहा हूं. विरमानी ने कहा कि अमेरिकी चुनावों से उत्पन्न राजनीतिक अनिश्चितताएं मेरी अपेक्षा से कहीं ज्यादा हैं. उन्होंने कहा, "अमेरिकी चुनावी अनिश्चितता का डोमिनो प्रभाव यूरोप, चीन और अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर भी असर डालता है." चीन की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण मंदी का जिक्र करते हुए उन्होंने इसे "अतार्किक" क्षमता निर्माण दृष्टिकोण बताया, जो कम क्षमता उपयोग के बावजूद जारी है.
धीमी अर्थव्यवस्था पर इतना ख़ामोश क्यों है भारत का मध्यवर्ग
7 जनवरी को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने मार्च में समाप्त हो रहे वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर केवल 6.4% रहने का अनुमान लगाया है. यदि ऐसा होता है तो यह न केवल चार वर्षों में सबसे धीमी वृद्धि होगी, बल्कि यह शुरुआती अनुमानित दर 6.5%-7% से भी कम है. इससे भी बदतर, इसका बड़ा कारण विनिर्माण क्षेत्र में मंदी है, जिसने भारत की विशाल आबादी को रोजगार देने के प्रयासों को और बाधित किया है. ‘स्क्रॉल’ के लिए शोएब दानियाल ने भारत की सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था की पड़ताल की है. शोएब ने लिखा कि भारत की अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है.
क्या यह एक चक्रीय मंदी है या अस्थायी गिरावट? निवेश बैंक यूबीएस ऐसा नहीं मानता. उसने विदेशी निवेश में कमी जैसे कारकों को जिम्मेदार ठहराया है. एचएसबीसी की मुख्य भारत अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी का मानना है कि अब तक देखी गई उच्च वृद्धि केवल कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था के सुधार का परिणाम थी. उन्होंने कहा— "मुझे लगता है कि आने वाले समय में जो वृद्धि दर हम देखेंगे, वह औसतन 6.5% के करीब होगी." 1990 के दशक की शुरुआत से भारत की अद्भुत विकास गाथा की हमेशा सराहना की गई है. तब इस मंदी को लेकर इतनी कम चिंता क्यों है? यह चुप्पी और भी आश्चर्यजनक है क्योंकि भारत का मध्यम वर्ग, जो खुद इस मंदी का प्रमुख शिकार है, इसके बारे में बोलने से कतराता है.
अक्टूबर में, नेस्ले इंडिया के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुरेश नारायणन ने खाद्य और पेय पदार्थ क्षेत्र की खराब प्रदर्शन की व्याख्या करने के लिए "सिकुड़ते हुए मध्यवर्ग" का हवाला दिया. यह स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि भारत में पहले से ही बड़ा मध्यवर्ग नहीं था. महामारी से पहले अमेरिकी अनुसंधान संस्था प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया था कि भारत में केवल 99 मिलियन लोग मध्यवर्गीय थे. महामारी ने इस संख्या को एक-तिहाई तक घटा दिया.
तुलना में चीन, जिसकी आबादी भारत से कम है, का मध्यवर्ग भारत के मुकाबले पांच गुना बड़ा है. महामारी के दौरान भी इसमें कोई कमी नहीं आई. महामारी के बाद भी भारत का कुछ मध्यवर्ग वापस उबरा होगा, लेकिन नौकरियों की कमी और उच्च मुद्रास्फीति जैसी समस्याओं ने यह सुनिश्चित किया है कि यह समूह अपनी जनसंख्या के अनुपात में छोटा ही बना रहे. 2014 तक, मध्यवर्गीय समस्याएं और अर्थव्यवस्था प्रमुख चर्चा के विषय थे, लेकिन मोदी सरकार का नियंत्रण इतना कड़ा है कि इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हो पा रही.
दानियाल के मुताबिक इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि भारत का मध्यवर्ग मोदी सरकार का एक वफादार वोट बैंक है. वह अपने राजनीतिक झुकाव के चलते अपनी समस्याओं पर चुप रहता है. दूसरा, हिंदुत्व का वैचारिक प्रभाव इस वर्ग के लिए प्राथमिक राजनीतिक प्रेरक है. इसके कारण, मध्यवर्ग आर्थिक नुकसान सहने के लिए तैयार है, ताकि उसकी वैचारिक स्थिति बनी रहे. इसके अलावा, भारत का प्रतिबंधात्मक राजनीतिक वातावरण, जो विरोधी आवाज़ों को संगठित होने से रोकता है, इस चुप्पी को और बढ़ा रहा है. मीडिया ने भी मोदी सरकार की आलोचना करने से परहेज किया है. 2014 से पहले, न्यायपालिका अक्सर भ्रष्टाचार के मामलों पर सरकार की आलोचना करती थी, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं. मोदी सरकार के दौरान, अडानी समूह के खिलाफ गंभीर आरोपों के बावजूद, न्यायपालिका ने नरमी दिखाई है.
गौरव नौड़ियाल | गाजा पर समझौता लागू होना शुरू तो हो गया, पर डगर बहुत लंबी है, पेचीदा भी
इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष विराम की घोषणा के बावजूद कई महत्वपूर्ण सवाल अब भी अनसुलझे खड़े हैं. गाजा में जश्न का माहौल है. सोशल मीडिया रील्स में आजादी का जश्न छाया हुआ है. क्या प्रेस क्या आम नागरिक सबके लिए सीजफायर का पहला दिन उम्मीदें लेकर आया, लेकिन मध्य पूर्व का इतिहास युद्धों, शांति प्रयासों और टूटे हुए समझौतों से भरा हुआ है. इसे ऐसे भी देख सकते हैं कि केवल तीन घंटे की देरी होने के चलते ही इजराइल ने सीजफायर के लागू होने वाले दिन ही 19 फिलिस्तीनियों को मार दिया. गाजा और इजराइल का इतिहास कहता है कि हर समझौते के असफल होने के साथ अविश्वास और गहरा होता है, क्रोध बढ़ता है और दोनों पक्षों के कट्टरपंथियों को मजबूती मिलती है. यह समझौता ऐसे वक्त में हुआ है जब गाजा पूरी तरह से तबाह हो चुका है और इज़राइल अक्टूबर 7 की घटना से गहरे जख्मों से भरा हुआ है.
इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके धुर दक्षिणपंथी सहयोगी किसी भी ऐसे रास्ते को रोकने का संकल्प ले चुके हैं, जो एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की ओर जाता हो. नेतन्याहू सीजफायर की घोषणा के बावजूद तीखे तेवर अख्तियार कर अपने समर्थकों को थामने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनकी पार्टी के कई लोगों ने सीजफायर का विरोध किया है.
(रविवार को विस्थापित फिलीस्तीनियों ने उत्तरी गाजा के तबाह हो चुके समुदायों की ओर पैदल लौटना शुरू किया. साभार : महमूद अल-बासोस/रॉयटर्स)
सीजफायर को लेकर इजराइल के मंसूबों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने अभी से फिलिस्तीनियों को ये कहना शुरू कर दिया है कि उनका राजनीतिक नेतृत्व, जो कि हमास के पास है, इजराइल को पसंद नहीं और उन्हें अपना नेतृत्व बदल लेना चाहिए. ये एक किस्म से शांति की नींव में बारूद रखने जैसी बात है. गाजा के नागरिकों ने इससे पहले हमास को चुनकर सरकार में बिठाया था, ऐसे में हमास की लोकप्रियता का अंदाजा भी लगाया जा सकता है.
सर्वेक्षणों में भी यह बात स्पष्ट हुई है कि केवल अल्पसंख्यक फिलिस्तीनी और इज़राइली यहूदी, इस समाधान में विश्वास करते हैं. एक अन्य सर्वेक्षण में पाया गया कि दोनों पक्षों के 60% से अधिक लोग क्षेत्रीय शांति, राज्य समाधान और सामान्यीकरण को प्राथमिकता देते हैं, अगर विकल्प कई मोर्चों पर युद्ध का हो.
यह समझौता अन्य समझौतों से अलग हो सकता है, क्योंकि इस बार क्षेत्रीय शक्तियां पहले से कहीं अधिक सक्रिय हैं. अमेरिका, जिसने हमेशा एक निर्णायक भूमिका निभाई है, जल्द ही ऐसे राष्ट्रपति के नेतृत्व में होगा जिसने पहले ही युद्ध रोकने के लिए दबाव डालने की अपनी क्षमता साबित की है. यह स्पष्ट है कि शांति केवल तभी स्थायी हो सकती है जब इसे दोनों संघर्षरत पक्ष खुद सुनिश्चित करें. हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयास इस चक्र को समाप्त करने में कितने सफल होंगे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि गाजा में तबाही के कारण भारी मात्रा में धूल और मलबा हवा और पानी में मिल रहा है. इससे गाजा की आबादी को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ गया है. नष्ट हुई इमारतों से निकलने वाले मलबे में खतरनाक सामग्री पाई गई है. प्रदूषित हवा और पानी से श्वसन संबंधी बीमारियां, त्वचा संक्रमण, और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा है. गाजा पट्टी के उत्तरी गवर्नरेट्स सबसे अधिक प्रभावित हैं. इस क्षेत्र में तबाही की सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं, जहां पहले महीनों में इज़राइली सेना ने गाजा शहर को घेरने के बाद निवासियों को वहां से भागने का आदेश दिया था. गाजा सिटी, जो संघर्ष से पहले इस इलाके का सबसे बड़ा शहर था, अब भारी विनाश के केंद्र में है.
इधर, संघर्ष विराम के बाद हमास की राजनीतिक और सैन्य स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं. क्या हमास अपनी सैन्य क्षमताओं को पुनः स्थापित करेगा या राजनीतिक वार्ताओं में शामिल होगा? यह भी देखा जाना बाकी है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हमास के साथ कैसे व्यवहार करेगा, यह भी एक प्रश्न है क्योंकि इजराइल हमास के नेतृत्व को बदलने की बात करता है.
हमास के सामने अब गाजा में व्यापक विनाश के बाद पुनर्निर्माण की बड़ी चुनौती है. गाजा में मानवीय सहायता की आवश्यकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि यह सहायता सही हाथों में पहुँचे और पुनर्निर्माण में पारदर्शिता बनी रहे. नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल का कहना है कि गाजा संघर्षविराम को एक स्थायी शांति प्रक्रिया में बदलने और मानवीय सहायता के विस्तार की आवश्यकता है. युद्ध के कारण भारी तबाही और विस्थापन हुआ है, और राहत कार्यों के लिए त्वरित और बड़े पैमाने पर प्रयासों की आवश्यकता है. हालांकि, फिलिस्तीनी नेतृत्व में विभाजन और आंतरिक संघर्ष जारी हैं. हमास और फतह के बीच मतभेद और फिलिस्तीनी प्राधिकरण की वैधता पर सवाल, शांति प्रक्रिया में बाधा डाल सकते हैं.
इधर, इज़राइल में धुर दक्षिणपंथी गुट संघर्ष विराम के खिलाफ हैं. वे नेतन्याहू पर दबाव डाल सकते हैं और भविष्य में शांति प्रयासों में बाधा डाल सकते हैं. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गाजा के बहाने अपने खिलाफ इजराइलियों के रोष को दबाने का काम भी इस बीच किया है. संघर्ष विराम के निर्णय से उनकी राजनीतिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह इज़राइली जनता और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करेगा. इजराइल के दक्षिणपंथी नेताओं के चलते सीजफायर में भी देरी हुई है.
संघर्ष विराम समझौते के तहत, इज़राइली सेना गाजा के कुछ हिस्सों से पीछे हटेगी. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि कौन से क्षेत्र खाली किए जाएंगे और कितने समय तक ये स्वतंत्र रहेंगे. यह भी देखा जाना बाकी है कि क्या इज़राइल कुछ क्षेत्रों पर कब्जा बनाए रखेगा. अभी गाजा के समुद्री इलाकों से लेकर उत्तरी गाजा के कई इलाकों में इजराइलियों की बस्तियों का विस्तार हुआ है.
इस संघर्ष में गाजा ही तबाह नहीं हुआ है, बल्कि इज़राइल ने गाजा पर अपनी जनसंहार युद्ध के परिणामस्वरूप 67 अरब डॉलर के नुकसान का खुलासा किया है. इन नुकसानों में से 34 अरब डॉलर सैन्य हानियों के रूप में और 40 अरब डॉलर सामान्य बजट को हुए नुकसान के रूप में हैं, जो कब्जे के इतिहास में सबसे बड़ा नुकसान है. इजराइल ने पिछले वर्ष के दौरान लगभग 60,000 कंपनियाँ बंद हो गईं, जो 2023 की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक थीं, जबकि पर्यटकों की संख्या में 70 प्रतिशत की गिरावट आई, जिससे पर्यटन क्षेत्र को 5 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ. इसके अलावा, निर्माण क्षेत्र ने 4 अरब डॉलर का नुकसान उठाया, और इस क्षेत्र की 70 से अधिक कंपनियाँ बंद हो गईं. आंकड़ों से पता चलता है कि इज़राइली कब्जे की जनसंख्या का एक तिहाई हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है, जबकि एक चौथाई जनसंख्या खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है. नेतन्याहू ने इन लोगों के असंतोष और खराब नीतियों से बचने के लिए भी गाजा में नरसंहार की आग को जलाए रखा था.
48 हजार मौतों के बाद समझौते के तीन चरण
पहला चरण: (42 दिन)
सभी हिंसक गतिविधियाँ रोक दी जाएंगी.
गाजा से इजराइली सेना की वापसी होगी और वो एक "बफर ज़ोन" में ले जाई जाएगी.
33 इज़राइली बंधकों और 1,700 फिलिस्तीनी कैदियों की अदला-बदली.
गाजा में 600 ट्रकों में राहत सामग्री की दैनिक आपूर्ति. विस्थापित फिलिस्तीनियों को गाजा में स्वतंत्र रूप से यात्रा करने की अनुमति होगी.
पहले दिन तीन इज़राइली महिलाएं (रोमी गोनेन, डोरोन स्टीनब्रेखर, एमिली डमारी) और 95 फिलिस्तीनीयों की रिहाई हुई.
दूसरा चरण:
बंधकों की पूरी रिहाई और कैदियों की अदला-बदली.
इज़राइल की पूरी वापसी: केवल बफर ज़ोन तक सीमित.
राफा क्रॉसिंग खुलेगी और गाजा से घायल और बीमार व्यक्तियों को मिस्र जाने की अनुमति.
तीसरा चरण:
मृत शरीरों की अदला-बदली.
गाजा का पुनर्निर्माण शुरू होगा और अंतरराष्ट्रीय समर्थन से पुनर्निर्माण योजनाएं.
फिलिस्तीनी अथॉरिटी को गाजा में लौटने का प्रस्ताव, जिसे इज़राइल ने खारिज कर दिया.
मूल सवाल जो अभी भी बाकी हैं:
क्या यह समझौता दीर्घकालिक समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा?
क्या नेतन्याहू और उनकी सरकार की कट्टर नीति इस शांति प्रयास को पटरी से उतार देगी?
और क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस समझौते को सफल बनाने के लिए पर्याप्त दबाव बना पाएगा?
नेतन्याहू के दक्षिणपंथी सहयोगी किसी भी स्थायी समझौते का विरोध कर सकते हैं. इसके अलावा बफर ज़ोन और राफा क्रॉसिंग पर इज़राइल का रुख अस्पष्ट है. नवंबर 2023 में इसी प्रकार का समझौता एक हफ्ते में टूट गया था. दोनों पक्षों पर समझौते की शर्तों का पालन करने का दबाव रहेगा. अधिकांश विशेषज्ञ मानते हैं कि समझौते के अंतिम दो चरणों की अनिश्चितता इसे भंग कर सकती है. बहरहाल इज़राइल के अंदरूनी राजनीतिक तनाव और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच, यह देखना बाकी है कि यह समझौता लंबे समय तक प्रभावी रह पाएगा या नहीं. फिलवक्त तो गाजा में धमाकों की गूंज बंद हो गई है और टूटे-उजड़े घरों की ओर लोगों की दौड़ शुरू. एक हिस्सा उन मरीजों का भी है जो अब अस्पताल तबाह होने के चलते इलाज के लिए देश से बाहर निकलने के इंतजार में हैं. गाजा ने कई दिनों बाद शांति महसूसी है...फिलिस्तीन में शांति का नया सूर्य उगा है.
ब्लिप के बाद टिकटॉक अमेरिका में वापस
अमेरिका में लगभग 12 घंटे बंद रहने के बाद टिकटॉक 17 करोड़ अमेरिकी यूजर्स में से कइयों के लिए वापस आ गया है. ऐसा राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ऐप को बचाने के कदम के कारण हुआ है. शनिवार देर रात टिकटॉक अमेरिकी टिकटॉक का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे. ट्रम्प ने रविवार को कहा कि वे सोमवार को अपने पदभार ग्रहण करने के बाद एक आदेश जारी करेंगे, जिससे विभाजन-या-प्रतिबंध कानून का प्रवर्तन स्थगित हो जाएगा. इसके कुछ घंटों बाद ही, अमेरिकी उपयोगकर्ताओं के लिए टिकटॉक ऐप और वेबपेज पर एक्सेस वापस आ गया. टिकटॉक के के लिए यह खबर राहत लेकर आई है, जो ऐप का इस्तेमाल मनोरंजन, समाचार और समुदाय के लिए करते हैं. कई लोग तो इस ऐप से अपना जीवन यापन भी करते हैं.
टिकटॉक ने एक बयान में कहा कि ट्रम्प के ऐप को बचाने के वादे से अमेरिकी उपयोगकर्ताओं को एक्सेस बहाल करने में मदद मिली है. कंपनी ने कहा कि वे ट्रम्प के साथ मिलकर टिकटॉक को अमेरिका में बनाए रखने के लिए एक दीर्घकालिक समाधान पर काम करेंगे.
टिकटॉक का भविष्य अभी भी अनिश्चित है. ट्रम्प ने कहा कि वे टिकटॉक की मौजूदा पैरेंट कंपनी, चीन स्थित बाइटडांस और एक नए अमेरिकी मालिक के बीच 50-50 के संयुक्त उद्यम पर काम करेंगे. टिकटॉक पर अमेरिकी कांग्रेस का आरोप है कि उसके तार चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी और सरकार से जुड़े हैं, इसलिए अमेरिकियों का डाटा सुरक्षित नहीं है.
ओम थानवी | इतिहास नहीं, बेईमान भड़ास है कंगना रनौत की फ़िल्म ‘इमरजेंसी’
एक खाली से सिनेमा हॉल में वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने कंगना रनौत की फ़िल्म इमरजेंसी जा कर देखी और यह समीक्षा लिखी है. फिल्म देखते हुए लेखक ने लगे हाथ खाली हॉल और फिल्म की कुछ तस्वीरें भी उतार लीं.
मैं उस घोषित इमरजेंसी का घनघोर निंदक था. आज भी हूँ. जब कंगना ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी फ़िल्म की प्रशंसा की सूची दी तो संदेह के वशीभूत 'इमरजेंसी' देखने यह सोचते हुए गया कि फ़िल्म को फ़िल्म की तरह देखूँगा. लेकिन यह सरासर बेईमान फ़िल्म निकली. निर्देशक कंगना रनौत (अब भाजपा सांसद) की अपनी राजनीतिक भड़ास. इंदिरा गांधी को आरम्भ में "सम्मानित नेता" बताकर निरंतर कलंकित करने की कोशिश.
कहना न होगा कि इस फेर में कंगना ने फ़िल्मजगत को ही कलंकित किया है. वे तथ्यहीनता की हदें लांघ गई हैं. इमरजेंसी के बहाने नेहरू, विजयलक्ष्मी, फ़ीरोज़ गांधी, पुपुल जयकर, निक्सन, जॉर्ज पोंपीदू, मुजीबुर्रहमान, मानेकशॉ, रामन्ना, जे कृष्णमूर्ति आदि के बीच "इन्दु" को संकीर्ण, ख़ुदगर्ज़, झगड़ालू ही नहीं, षड्यंत्रकारी तक बता डाला है. कहीं उनमें करुणा झलकती दिखा भी दी तो आगे चालाकी से कुटिलता की ओर मोड़ दिया.
यों बताया है जैसे इमरजेंसी में नहीं, शुरू से अंत तक वे तानाशाह प्रकृति की थीं. एक प्रसंग में उनके सपने में डायन आती है. प्रधानमंत्री के घर में रात सेवक से आईने के सामने कहलवा दिया कि ये तो आप हैं.
तथ्यों का कोई सिरा नहीं. शास्त्रीजी की शपथ से परदे पर इंदिरा आहत हैं; अगले दृश्य में ताशकंद में "रहस्यमय" मृत्यु; अगले दृश्य में इंदिरा गांधी की शपथ. 1971 के युद्ध से बड़ी "बांग्लादेशियों" की आमद है. पोकरण के परमाणु परीक्षण को विपक्ष को ध्वस्त करने की रणनीति बताया है. वाइट हाउस में इंदिरा के बोल कड़े हैं, पर घबराहट में मानो कांप रही हैं. दिल्ली में निक्सन का फ़ोन आता है तो खड़ी हो जाती हैं.
हाँ, अतिरंजना (जो पूरी फ़िल्म में भरी पड़ी है) के बावजूद संजय गांधी की बुराइयों का बचाव कोई नहीं कर सकता. उनका समांतर सत्तारूप कमोबेश ऐसा ही था. उनकी सनक ने ज़्यादतियों का अंबार खड़ा कर दिया. मीडिया ही नहीं, हर तरह की स्वाधीन अभिव्यक्ति को दबा दिया गया, लेकिन उनकी मौत की उड़ान को माँ की डाँट से जोड़ना छिछला काम है. यों चित्रित किया है मानो स्मृतिदृश्यों की विचलित अवस्था में उन्होंने विमान का नियंत्रण खो दिया.
संजय गांधी से भिंडरावाले आकर मिले, यह भी फ़िल्म ही बताती है. हमने तो नहीं सुना. मैं दस साल चंडीगढ़ में रह भी आया हूँ. फ़िल्म में "इंदिरा इज़ इंडिया इंडिया इज़ इंदिरा" देवकांत बरुआ नहीं कहते, इंदिरा गांधी ख़ुद अपने बारे में बुदबुदाती हैं. धीरेंद्र ब्रह्मचारी फ़िल्म में नहीं, पर जे कृष्णमूर्ति को इतना क़रीब बता दिया जो कि वे कभी न थे. और तो और एक जगह कृष्णमूर्ति भी कह रह हैं "इंदिरा इज़ इंडिया". यह तो बेवक़ूफ़ी भरे चित्रण की इंतिहा हुई.
हिंसा का चित्रण अपार है. त्रिपुरा हो चाहे इमरजेंसी. जॉर्ज फ़र्नांडीज़ को जेल इस तरह पीटा गया, या विपक्षी नेता - राजनीतिक बंदी - जेल में तीसरे दरज़े के अपराधियों सा जीवन बिता आए कभी सुना नहीं. जेपी तो पीजीआई, चंडीगढ़ में भरती रखे गए थे. रघु राय ने वहाँ उनकी अनेक तसवीरें खींची थीं.
बायोपिक में अंत में तथ्यों की (अगर हों) तो संदर्भ-सूची देनी चाहिए. हालाँकि झूठ ज़्यादा समय टिकता नहीं. पर अंदाज़ा लगाइए कि जिस पीढ़ी को देश के अतीत के बारे में ज़्यादा नही पता, वे इसे "इतिहास" समझकर अपना कितना नुक़सान करेंगे.
हैरानी की बात नहीं कि निर्देशक के नाते कंगना ने निराश किया है. जरा सोचिए, जेपी, वाजपेयी, मानेकशॉ गाना गाते हुए कैसे लगते होंगे. कलाकारों का चुनाव भी सही नहीं है. कंगना अच्छी अभिनेत्री रही हैं. पर चरित्र को निभाने में बिखर गईं. मेकअप वालों ने नाक मिला दी, पर क़द-काठी कहाँ से लाते. आवाज़ तो उनकी यों है जैसे होठों में फ़ेविकोल लगा हो.
अनुपम खेर ने ज़रूर जेपी की भूमिका बेहतर निभाई है. सतीश कौशिक (अब नहीं रहे) तो जगजीवन राम की भूमिका में सर्वश्रेष्ठ कहे जा सकते हैं. हालाँकि उनके संवादों में जो है, वह पटकथा का झूठ है।. वाजपेयी के रूप में श्रेयस तलपड़े कार्टून लगते हैं. विशाक नायर (संजय गांधी), मिलिंद सोमण (मानेकशॉ) और महिमा चौधरी (पुपुल जयकर) जम गए. एक दृश्य में अतिथि भूमिका में मेरे मित्र अरविंद गौड़ भी दिखाई दिए, जो कंगना के गुरु रहे हैं. बालकृष्ण मिश्र एमएफ़ हुसेन हैं, जिन्होंने श्रीमती गांधी को शेर पर सवार 'दुर्गा' चित्रित कर दिया था. आगे जाकर कांग्रेस ने ही उन्हें देश छोड़ने को विवश किया.
सबसे बड़ा सरदर्द है फ़िल्म का “संगीत”. अनवरत शोर है, मानो हर घड़ी जंग के नगाड़े बज रहे हों. हाँ, यह बताना तो भूल ही गया कि सिनेमाघर लगभग ख़ाली पड़ा था. हमारे आगे की सीटों पर तो एक भी दर्शक नहीं था. द्वारपाल से पूछा तो उसने बताया कि यही हाल पिछले ‘शो’ का था. .. तसवीर साझा करता हूँ…
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