20/02/2025 : मोदी-ट्रम्प में अबकी बार टैरिफ वॉर, गंगा के पानी पर योगी और विज्ञान अलग-अलग, यूएसएड डीप स्टेट और मोदी सरकार, यूक्रेन के बिना शांति मध्यस्थता, दशक में भारत और चीन का सफर
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आज की सुर्खियां | 20 फरवरी 2025
बहुत प्यार से बात नहीं हुई मोदी और ट्रम्प में
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साफ कर दिया है कि भारत को वाशिंगटन के जवाबी शुल्क से नहीं बख्शा जाएगा, इस बात पर जोर देते हुए कि टैरिफ ढांचे पर "कोई भी मुझसे बहस नहीं कर सकता".
ट्रम्प ने ये बातें हाल ही में ‘फॉक्स न्यूज’ के शॉन हैंनिटी के साथ एक इंटरव्यू के दौरान कही. ‘फॉक्स न्यूज’ ने मंगलवार रात (19 फरवरी, 2025) को राष्ट्रपति ट्रम्प और अरबपति इलोन मस्क के साथ एक संयुक्त टेलीविजन इंटरव्यू प्रसारित किया.
13 फरवरी को, व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री मोदी के साथ ट्रम्प की द्विपक्षीय बैठक से कुछ घंटे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति ने जवाबी शुल्क की घोषणा की थी.
योजना के तहत, ट्रम्प प्रशासन "प्रत्येक विदेशी व्यापार भागीदार के संबंध में एक जवाबी शुल्क के बराबर निर्धारण करके व्यापारिक भागीदारों के साथ गैर-जवाबी व्यापार व्यवस्था का मुकाबला करने के लिए जोरदार प्रयास करेगा."
हैंनिटी के साथ इंटरव्यू के दौरान, ट्रम्प ने अमेरिका और भारत सहित उसके भागीदारों के बीच मौजूदा टैरिफ संरचनाओं पर अपनी स्थिति दोहराई.
राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा, "मैंने कल प्रधानमंत्री मोदी से कहा - वे यहां थे - मैंने कहा, 'यहां हम क्या करने जा रहे हैं: जैसे आप, वैसे हम. आप जो भी टैरिफ लेते हैं, मैं वही शुल्क लूंगा."
ट्रम्प ने कहा, "वह (मोदी) कहते हैं, 'नहीं, नहीं, मुझे वह पसंद नहीं है.' 'नहीं, नहीं, आप जो भी शुल्क लेंगे, मैं वही शुल्क लूंगा.' मैं यह हर देश के साथ कर रहा हूं."
“भारत का अमेरिका से कुछ आयातों पर बहुत मजबूत शुल्क है, जैसे ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भारत 100% शुल्क लेता है.”
मस्क ने कहा, "यह 100% है - ऑटो आयात 100% है."
ट्रम्प ने कहा, "हां, यह तो कुछ भी नहीं. तो, बहुत अधिक. और - और अन्य भी. मैंने कहा, "यहां हम क्या करने जा रहे हैं: जैसे आप वैसे हम. आप जो भी टैरिफ लगाएंगे - लेंगे, मैं भी वही लूंगा." जवाबी टैरिफ प्रणाली के तहत, अमेरिका भारतीय आयातों पर उसी स्तर का शुल्क लगाएगा जो भारत अमेरिकी वस्तुओं पर लगाता है.
राष्ट्रपति ट्रम्प ने जोर देकर कहा, "कोई भी मुझसे बहस नहीं कर सकता." ट्रम्प ने कहा, "अगर मैं 25% कहता, तो वे कहते, 'ओह, यह भयानक है.' मैं अब वह नहीं कहता... क्योंकि मैं कहता हूं, 'वे जो भी शुल्क लेते हैं, हम लेंगे.' और आपको पता है क्या? वे रुक जाते हैं."
पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान, भारत पर जवाबी शुल्क पर एक सवाल का जवाब देते हुए, ट्रम्प ने कहा था, "भारत, हमारे लिए, दुनिया में कहीं भी सबसे अधिक टैरिफ वाला देश रहा है. टैरिफ पर उनका बहुत ज़ोर रहा है और मैं उन्हें दोष नहीं देता. जरूरी नहीं, लेकिन यह व्यवसाय करने का एक अलग तरीका है. भारत को बेचना बहुत मुश्किल है, क्योंकि उनके पास व्यापार बाधाएं और बहुत मजबूत शुल्क हैं."
उन्होंने कहा, "हम अभी एक रिस्पॉंसिव राष्ट्र हैं. हम - अगर यह भारत है या कोई और कम टैरिफ वाला है, तो हमारे पास वही होगा. हमारे पास वह होगा जो भारत लेता है; हम उनसे शुल्क ले रहे हैं. जो भी शुल्क किसी अन्य देश का है, हम उनसे शुल्क ले रहे हैं. तो, इसे जवाबी कहा जाता है, जो मुझे लगता है कि एक बहुत ही उचित तरीका है. हमारे पास वह नहीं था."
अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रम्प ने भारत को "टैरिफ किंग" के रूप में वर्णित किया और मई 2019 में, भारत को अमेरिका के लिए तरजीही बाजार पहुंच - सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (जीएसपी) - को समाप्त कर दिया, यह आरोप लगाते हुए कि भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को "अपने बाजारों तक न्यायसंगत और उचित पहुंच" नहीं दी है.
कार्टून | राजेन्द्र धोड़पकर
गंगा के गंदे पानी पर यूपी सरकार की धुलाई
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बुधवार को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और राज्य सरकार को गंगा नदी (प्रयागराज में) के जल में मल जीवाणु (फीकल कोलिफॉर्म) और ऑक्सीजन स्तर जैसे जल गुणवत्ता मानकों पर पर्याप्त जानकारी नहीं देने के लिए फटकार लगाई. अधिकरण ने राज्य सरकार को प्रयागराज में महा कुंभ मेला स्थल से गंगा के विभिन्न बिंदुओं के नवीनतम जल परीक्षण रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर पेश करने का निर्देश दिया.
पिछले आदेश की अनुपालना पर सुनवाई : एनजीटी की पीठ, जिसमें अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेन्थी वेल शामिल थे, दिसंबर 2023 के एक आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए सुनवाई कर रही थी. इस आदेश में, एनजीटी ने यूपी सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को निर्देश दिया था कि कुंभ के दौरान गंगा-यमुना का पीने और स्नान योग्य जल सुनिश्चित किया जाए.
सीपीसीबी की रिपोर्ट चौंकाने वाली : सोमवार को, सीपीसीबी ने दिसंबर के आदेश के अनुपालन में एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें जनवरी के दूसरे सप्ताह में लिए गए नमूनों में मल जीवाणु और जैवरासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) का स्तर स्नान के मानकों को पूरा नहीं करता था. एनजीटी ने इस रिपोर्ट को स्वीकार किया, लेकिन यूपीपीसीबी द्वारा 23 दिसंबर के आदेश के अनुसार कार्रवाई रिपोर्ट नहीं दाखिल करने पर नाराजगी जताई. पीठ ने कहा कि यूपी सरकार और यूपीपीसीबी गंभीरता से मामला नहीं ले रहे हैं. गंगा की सफाई और जल गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक सप्ताह की अंतिम अवधि दी गई है. यदि समय पर रिपोर्ट नहीं दी गई, तो कड़ी कार्रवाई की जा सकती है. कुंभ मेले जैसे विशाल आयोजनों के दौरान नदियों में प्रदूषण बढ़ने की आशंका रहती है. एनजीटी ने पहले ही राज्यों को नदियों की सफाई और रियल-टाइम मॉनिटरिंग के निर्देश दिए हैं, लेकिन अमल में ढिलाई बरकरार है.
पर योगी आदित्यनाथ के मुताबिक संगम का जल पीने योग्य
लेकिन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है और कहा है कि संगम का जल "पीने योग्य" है. मुख्यमंत्री ने बुधवार को विधानसभा में कहा, "जब हम यहां चर्चा में भाग ले रहे हैं, प्रयागराज में 56.25 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पहले ही पवित्र डुबकी लगा चुके हैं... जब हम सनातन धर्म, मां गंगा, भारत या महाकुंभ के खिलाफ निराधार आरोप लगाते हैं या फर्जी वीडियो फैलाते हैं, तो यह इन 56 करोड़ लोगों की आस्था के साथ खेलने जैसा है."
टेस्ला भारत में एंट्री की तैयारी में : ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, इलोन मस्क की कंपनी टेस्ला भारत में भर्तियाँ कर रही है, जो इस बात का "स्पष्ट संकेत" है कि मस्क के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिका में हुई मुलाकात के बाद कंपनी भारतीय बाज़ार में जल्द कदम रखेगी. वहीं, रॉयटर्स के अनुसार, टेस्ला ने नई दिल्ली और मुंबई में अपने शोरूम्स के लिए स्थान चुन लिए हैं, जिससे कंपनी भारत में अपनी इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री के लंबे समय से लंबित योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के करीब पहुँच गई है. टेस्ला ने भारत में नौकरियों के लिए आवेदन मंगवाने शुरू किए हैं. ब्लूमबर्ग के मुताबिक, यह भारतीय बाज़ार में एंट्री का संकेत है. कंपनी का लक्ष्य भारत में इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार में उतारना है, जहाँ महिंद्रा, टाटा जैसी कंपनियों का दबदबा है. टेस्ला कई सालों से भारत में एंट्री की योजना बना रही है, लेकिन उच्च आयात शुल्क और स्थानीय उत्पादन को लेकर सरकार से मतभेद के कारण यह प्लान लटका हुआ था.
अमेरिका ने अडानी मामले में भारत से मांगी मदद : 'द हिंदू' की खबर है कि अमेरिका, भारत के अरबपति गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी को ढूंढ रहा है. अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) ने भारतीय अधिकारियों से अडानी समूह के संस्थापक गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी के खिलाफ कथित प्रतिभूति धोखाधड़ी और तकरीबन 2100 करोड़ की रिश्वत देने के मामले की जांच में भारत से सहायता मांगी है. एसईसी ने न्यूयॉर्क जिला न्यायालय को बताया कि गौतम और सागर अडानी को शिकायत सौंपने की कोशिश की जा रही है और इसके लिए वह भारत के कानून और न्याय मंत्रालय की मदद ले रहा है. अडानी समूह ने रॉयटर्स के अनुरोध पर इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और न अभी भारत सरकार ने ही इस मामले में कुछ कहा है. पिछले सप्ताह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी वाशिंगटन यात्रा के दौरान प्रेस के पूछने पर अडानी के मामले को व्यक्तिगत मुद्दा बताया था. इधर कांग्रेस ने गौतम अडानी की गिरफ्तारी की मांग करते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर उनके सौदों को "छुपाने" का आरोप लगाया है. हालांकि, भाजपा और अडानी दोनों ने इन आरोपों से इनकार किया है.
हाईकोर्ट ने पूछा, ‘बेशर्म’ लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण निजता का हनन कैसे
उत्तराखंड हाईकोर्ट में नए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण के खिलाफ एक अंतरधार्मिक जोड़े ने याचिका लगाई थी. 17 फरवरी को याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी ने कहा कि ऐसे रिश्तों में जोड़ों का सरकारी पंजीकरण कराना अनिवार्य होने से उनका मुवक्किल परेशान है, क्योंकि भारत में कई अंतरधार्मिक और अंतरजातीय जोड़ों को विरोध का सामना करना पड़ता है. नेगी ने अल्मोड़ा के जगदीश के मामले का उदाहरण दिया, जिसमें उनकी हत्या सिर्फ़ इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि उन्होंने एक उच्च जाति की महिला से शादी की थी. नेगी ने कहा कि गोपनीयता भंग होने पर हमारे मुवक्किल को भी खतरा हो सकता है. इस पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मौखिक टिप्पणी की, “जब जोड़े बिना शादी के ‘बेशर्मी से’ साथ रह रहे हैं, तो पंजीकरण की आवश्यकता को निजता का हनन कैसे माना जा सकता है.”
इस महीने की शुरुआत में भी इसी तरह की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इसी पीठ ने आवेदकों से पूछा था कि राज्य द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप को विनियमित करने में गलत क्या है.
हाईकोर्ट ने रेलवे से पूछा, अधिक टिकट क्यों बेचते हैं? : दिल्ली हाईकोर्ट ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ को लेकर दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर केंद्र सरकार, भारतीय रेलवे और रेलवे बोर्ड से जवाब मांगा है. याचिका में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय की मांग की गई है. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने रेलवे से कोच में निर्धारित सीट संख्या से अधिक टिकट बेचने पर सवाल उठाया. अदालत ने पूछा, “यदि आप कोच में यात्रियों की संख्या तय करते हैं, तो बेचे गए टिकटों की संख्या उससे अधिक क्यों होती है?.” खास बात यह है कि कोर्ट ने रेलवे एक्ट की धारा 57 का उल्लेख किया, जो कहती है कि रेल प्रशासन एक डिब्बे में अधिकतम यात्रियों की संख्या तय करेगा.
रेखा गुप्ता दिल्ली की मुख्यमंत्री
भाजपा ने शालीमार बाग से विधायक रेखा गुप्ता को दिल्ली का नया मुख्यमंत्री बनाया है.
दो सप्ताह से अधिक के इंतजार के बाद, रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला भाजपा ने किया है. वह पहली बार विधायक बनी हैं, दिल्ली में भाजपा के छात्र विंग और साथ ही इसकी महिला विंग की पूर्व नेता और एक पूर्व पार्षद हैं. गुप्ता लगातार दूसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी, जो आम आदमी पार्टी की आतिशी को सीएम के रूप में और दिल्ली चलाने वाली चौथी महिला के रूप में बदलेंगी. अन्य दो भाजपा की सुषमा स्वराज और कांग्रेस की शीला दीक्षित हैं.
भाजपा ने इस महीने की शुरुआत में 70 में से 48 सीटें जीतकर विधानसभा चुनाव जीता था, लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए कोई स्पष्ट दावेदार नहीं होने के कारण उच्च कमान, यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को वह करने को मिला जो वे करना पसंद करते हैं : एक वफादार को चुनना. स्पष्ट रूप से नाखुश दिखने वाले प्रवेश वर्मा को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि वह गुप्ता के चयन से खुश हैं. वर्मा - एक उपद्रवी नेता जिनके 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान और बाद में मुसलमानों के खिलाफ दिए गए नफरत भरे भाषणों को अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है - को उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. हालांकि इस बारे में कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है. वर्मा की तरह, रेखा गुप्ता भी विवादों के लिए कोई अजनबी नहीं हैं. आज, आप ने नगर परिषद के अंदर एक विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ करते हुए उनका एक वीडियो पोस्ट किया.
उनकी उम्र 50 साल है और वो ग्रेजुएट हैं. बहरहाल, बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली के लिए रेखा गुप्ता की उपलब्धियां क्या होती हैं, ये वक्त तय करेगा, लेकिन फिलवक्त तो उनके मिजाज और भूतकाल को समझने के लिए आप इस ट्वीट का प्रिंटशॉट देखिए.
अमेरिकी सपना : हथकड़ियों में लौटे 127 पंजाबी, डूब गए 43 करोड़
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि 127 पंजाबी अवैध प्रवासियों ने अमेरिका की जमीन चूमने के लिए एजेंटों पर 43 करोड़ रुपये से ज्यादा लुटाए. ये 127 वो पंजाबी थे, जिन्हें 332 भारतीयों के साथ अमेरिकी सरकार ने तीन बैचों में अमृतसर में 5, 15 और 16 फरवरी को सैन्य विमान से लाकर छोड़ा था. अमेरिकी, इन भारतीयों को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ कर भारत लाए थे, जिससे देश के नागरिकों में काफी रोष भी देखा गया. इस रकम का जिक्र राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा संकलित एक दस्तावेज़ में भी है. पंजाब सरकार के अधिकारियों ने जो आंकड़े जुटाए हैं, उसके मुताबिक अकेले पहले बैच में लौटे 31 निर्वासितों (जिसमें एक नाबालिग भी था) ने एजेंटों को 4.95 करोड़ रुपये का भुगतान किया था. जबकि दूसरे बैच में 65 लोगों ने 26.97 करोड़ रुपये का भुगतान किया और तीसरे बैच में 31 निर्वासितों ने 11.37 करोड़ रुपये का भुगतान अमेरिका पहुंचने के लिए किया था.
हथकड़ियां पहनकर गुजरात विधानसभा में प्रदर्शन
गुजरात विधानसभा में 19 फरवरी को जिग्नेश मेवाणी समेत कांग्रेस के विधायकों ने अवैध प्रवासियों के साथ हुए बर्ताव पर हथकड़ियां पहनकर विरोध जताया. मेवाणी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर विरोध प्रदर्शन का वीडियो अपलोड़ करते हुए लिखा- 'देशवासियों के सम्मान की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन केंद्र की नाकामी के चलते हमारे नागरिकों को विदेशों में अपमान का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती रहेगी!' एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा- 'अमेरिका से भेजे गए गुजराती इमिग्रेंट्स अंडरग्राउंड क्यों हो रहे हैं.'
उत्तराखंड में गैर-निवासियों के लिए कृषि भूमि खरीदना हुआ मुश्किल
बुधवार को उत्तराखंड कैबिनेट ने एक नए मसौदा कानून को मंजूरी दी, जिसमें राज्य के 13 जिलों में से 11 (हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर) में गैर-राज्य निवासियों के कृषि और बागवानी भूमि खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. इस नए मसौदा कानून को विधानसभा के मौजूदा बजट सत्र में पेश किया जाएगा. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक ट्वीट में इसे "ऐतिहासिक कदम" बताया. उन्होंने कहा, "हमारी सरकार राज्य, संस्कृति और मूल स्वरूप की रक्षक है." नए मसौदा कानून के तहत जिलाधिकारियों के पास अब भूमि खरीद को मंजूरी देने का अधिकार नहीं होगा. हालांकि, इस नए मसौदे को लेकर संशय भी बना हुआ है, गोयाकि पूर्व में भाजपा सरकार ने ही इस कानून को कमजोर करने का काम किया था.
फैक्ट चेकर्स ने उजागर किए मोदी सरकार और यूएसएड के रिश्ते…
अमेरिका में अरबपति एलन मस्क की अगुवाई में नवगठित सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) ने जब से यह घोषणा की है कि अमेरिका भारत में मतदाता भागीदारी को बेहतर बनाने के लिए 21 मिलियन डॉलर का आवंटन रद्द कर देगा, तब से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी "विदेशी प्रभाव" और "डीप स्टेट" पर सवाल उठाती रही है. क्योंकि डीओजीई ने ट्विटर/ एक्स पर अपनी पोस्ट में यह उल्लेख नहीं किया कि कौन सा भारतीय निकाय धन प्राप्त करता था, बीजेपी के 'आईटी सेल' प्रमुख अमित मालवीय और पूर्व मंत्री राजीव चंद्रशेखर उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने दावा किया कि पैसे ने अमेरिका के लिए भारत की चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का मार्ग प्रशस्त किया.
बीजेपी के टिप्पणीकारों ने 2012 में चुनाव आयोग और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के बीच हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन पर ध्यान आकर्षित किया, जो कंसोर्टियम फॉर इलेक्शंस एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग का एक भागीदार था, ताकि कांग्रेस पर उंगली उठाई जा सके, जो 2014 तक केंद्र में सत्तारुढ़ थी. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने कहा, "यह जानना अच्छा लगेगा कि भारत में 'मतदाता मतदान को बेहतर बनाने' के लिए खर्च किए गए यूएस $21 मिलियन किसे मिले." उन्होंने आगे कहा कि "यूएसएड मानव इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है."
लेकिन, ‘ऑल्ट न्यूज ‘के मोहम्मद ज़ुबैर और आदित्य ओझा जैसे फैक्ट चैकर्स ने इन दावों की पोल खोली है. तथ्यों को इकट्ठा कर मोदी सरकार के यूएसएड के रिश्तों को उजागर किया है. द वायर ने इस पर यहां रिपोर्ट किया है. यूएसएड या संयुक्त राज्य अमेरिका अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी की स्थापना जॉन एफ कैनेडी द्वारा अमेरिकी सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी के रूप में विश्व स्तर पर नागरिक विदेशी सहायता और विकास सहायता का प्रबंधन करने के लिए की गई थी. इन दोनों ने सबूतों के साथ दिखाया है कि सरकार, खुद नरेन्द्र मोदी, नीति आयोग, अमिताभ कांत, देवेन्द्र फड़नवीस, स्मृति ईरानी वगैरह के यूएसएड से कितने करीबी और मजबूत रिश्ते रहे हैं.
चुनाव आयोग की नियुक्तियों से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई टली
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को उस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई नहीं हो सकी, जो मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति में सरकार को प्रभावी भूमिका देता है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ अन्य मामलों में उलझी रही, जबकि केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई स्थगित करने की मांग की. मेहता ने तर्क दिया कि वे संविधान पीठ के सामने एक अन्य कोर्टरूम में मामला पेश कर रहे थे. याचिकाकर्ताओं की बार-बार की गई मौखिक गुहार के बावजूद, पीठ ने मामले को 19 मार्च तक के लिए टालने का संकेत दिया. नए नियुक्त ज्ञानेश कुमार ने बुधवार सुबह मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में पदभार संभाला. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एससी में सुनवाई से मुश्किल से 48 घंटे पहले ज्ञानेश कुमार की आधी रात को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के बाद सोमवार को एक असहमति नोट प्रस्तुत किया था. विपक्ष ने चयन पैनल पर सवाल उठाए हैं, तर्क दिया है कि सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले दो सदस्यों ने इसे एक फायदा दिया.
एडवोकेट प्रशांत भूषण ने, जो याचिकाकर्ता एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (लोकतांत्रिक सुधारों के लिए संघ) की ओर से पेश हुए, मामले को जल्द सुनवाई के लिए गुहार लगाई. उन्होंने कहा कि यह मामला संवैधानिक महत्व का है और सुनवाई में केवल एक घंटा लगेगा. यह कानून सीईसी और ईसी की नियुक्ति में सरकार को निर्णायक भूमिका देता है, जिसे याचिकाकर्ता चुनावी संस्थाओं की स्वतंत्रता के लिए खतरा बता रहे हैं. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और विपक्ष के नेता की समिति की सिफारिश पर होनी चाहिए. हालांकि, केंद्र सरकार ने बाद में इस फैसले को पलटते हुए एक नया कानून पारित किया.
तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली कानूनी चुनौती का समर्थन करते हुए एक याचिका दायर की. उनका कहना है कि विवादित अधिनियम "स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार एक संस्था के स्वतंत्र कामकाज को हड़पने का एक जानबूझकर प्रयास है और सीधे तौर पर प्राथमिक संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है".
विश्लेषण
आकार पटेल : मोदी राज के एक दशक में चीन कहां से कहां पंहुच गया?
1990 में भारत और चीन आर्थिक सुधारों की शुरुआत में लगभग बराबर थे, लेकिन आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में छह गुना बड़ी है.
जिस दशक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विचारधारा ने भारत पर अपना कब्जा जमाया, उसी दौरान दुनिया में बाक़ी जगहों पर चीज़ें वैसी की वैसी नहीं रहीं. 2015 में, चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने ऐलान किया कि दस साल के भीतर चीन की निर्भरता विदेशी प्रौद्योगिकी पर कम की जाएगी और चीन को दुनिया की सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं (जर्मनी, ताइवान, जापान, कोरिया और अमेरिका) के मुकाबिल खड़ा किया जाएगा. इस योजना का नाम "मेड इन चाइना 2025" रखा गया. इस योजना के मुताबिक उन क्षेत्रों की पहचान की गई, जिनमें चीन को जोर लगाना था. ये थे सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, वाणिज्यिक विमान, ड्रोन, हाई-स्पीड रेल, इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी, उन्नत जहाज और सौर पैनल.
इसके बाद इन क्षेत्रों को इस आधार पर वर्गीकृत किया गया कि कहाँ चीन पीछे था, कहाँ "प्रतिस्पर्धी" और कहाँ "वैश्विक नेता". ब्लूमबर्ग के अनुसार, 2015 में चीनी ज्यादातर क्षेत्रों में पीछे थे, कुछ में प्रतिस्पर्धी (हाई-स्पीड रेल, बैटरी) और सिर्फ सौर पैनलों में अग्रणी थे. केकियांग के ऐलान के मुताबिक चीन का अरमान था कि दस साल में चीन इन सभी उद्योगों में प्रतिस्पर्धी हो या फिर अग्रणी.
इस योजना की घोषणा के बाद, अमेरिका और उसके सहयोगी गंभीर रूप से नाराज़ हो गये. अमेरिका को किसी अन्य देश का किसी भी चीज में "वैश्विक नेता" होना पसंद नहीं है, क्योंकि उसका मानना है कि दुनिया पर प्रभुत्व करने का ईश्वरीय अधिकार केवल उसी के पास है. अमेरिका के कान चीन की बढ़ती ताकत से खड़े हुए. चीन की अर्थव्यवस्था आज संयुक्त राज्य अमेरिका के आकार का लगभग दो-तिहाई है और संभवतः अगले कुछ दशकों में उसके बराबर हो जाएगी. ख़ैर, चीन को जैसे ही लगा कि अमेरिका को उसकी महत्वाकांक्षी योजना रास नहीं आ रही है, तो उसने "मेड इन चाइना 2025" के बारे में बात करना बंद कर दिया.
2017 में डोनाल्ड ट्रम्प के पहली बार पदभार संभालने के बाद, अमेरिका ने चीन पर टैरिफ लगाए. अगले साल, चीन की कंपनी हुआवेई पर प्रतिबंध लगाए गए. फिर, राष्ट्रपति जो बाइडेन के समय में, अमेरिका ने चीन को उच्च-स्तरीय कंप्यूटर चिप्स की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. ये सभी कदम आगे बढ़ते चीन के लिए अड़ंगे पैदा करने के लिए थे. इस कारण जो आर्थिक साझेदारी दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो सकती थी, टूटने लगी. आज हालात ये हैं कि ट्रम्प चीन की बढ़ती आर्थिक शक्ति को रोकने के लिए टैरिफ के जरिये अपने देशवासियों को ही सजा देने को तैयार हैं. टैरिफ बढ़ेंगे तो मुद्रास्फीति बढ़ेगी और इसी से लोगों की तक़लीफें भी.
अब चीन ने भले ही "मेड इन चाइना 2025" नाम का प्रचार नहीं किया, लेकिन योजना बदस्तूर जारी रही. 2025 में हाल यह है कि यह उन सभी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी हो गया है और आधों में वैश्विक नेता है. चीन आज उसी प्रकार के वाणिज्यिक विमानों को बनाता और उड़ाता है, जो केवल बोइंग और एयरबस बनाते हैं. चीनी निर्मित कोमैक विमानों का उपयोग पहले से ही दुनिया भर की एयरलाइनों द्वारा किया जा रहा है.
पिछले महीने डीपसीक ने दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चीनी क्षमताओं की धाक जमा दी. यह अमेरिका के लिए दो कारणों से सदमे के रूप में आया. पहला यह था कि चीन ने यह काम एनवीडिया से सबसे उन्नत चिप्स तक पहुंच के बिना कर दिखाया और वह भी अमेरिकी आईटी कंपनियों द्वारा इस तरह के काम में खर्च किये जाने वाले पैसों की तुलना में बहुत कम पैसे लगाकर. दूसरा कारण यह था कि सिलिकॉन वैली ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि प्रशांत महासागर के पार की कोई कंपनी उसके बराबर हो जाएगी.
अब आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस विकसित करने की दौड़ में केवल दो ही गंभीर दावेदार हैं, और वे अमेरिका और चीन हैं. न यूरोप न और कोई देश. निर्यात नियंत्रण का सामना करने के बावजूद, हुआवेई अब चिप्स बनाती है जो ताइवान में बनाए जा रहे सबसे उन्नत चिप्स से थोड़ी ही पीछे हैं. वे अत्याधुनिक नहीं हैं, लेकिन वे स्वदेशी हैं और डीपसीक के प्रदर्शन से पता चलता है कि चीनी प्रतिभा कम संसाधनों के साथ भी काम कर सकती है.
चीन अपने स्वयं के विमान वाहक बनाता है. सबसे बड़ा 2022 में तैनात किया गया था. चीन एलएनजी वाहक भी बनाता है. चीन ने जनवरी में दुनिया के कुछ सबसे उन्नत सैन्य विमानों को पेश किया. बेशक, इलेक्ट्रिक कारों, हाई-स्पीड रेल, सौर पैनल, बैटरी और ड्रोन में चीन का कोई मुकाबला नहीं है. वह इलेक्ट्रिक कारों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है. दुनिया के 80% सौर पैनल, दुनिया की 75% लीथियम आयन बैटरी (एक चीनी कंपनी सीएटीएल, अकेले वैश्विक बाजार का एक तिहाई नियंत्रित करती है) और दुनिया के 75% ड्रोन (फिर से एक चीनी कंपनी डीजेआई, वैश्विक बाजार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नियंत्रित करती है) बनाता है. चीन में दुनिया के हाई-स्पीड रेल नेटवर्क का दो-तिहाई हिस्सा है, लगभग 40,000 किमी (अहमदाबाद-मुंबई की दूरी 500 किमी है) और चीन का नेटवर्क अभी भी बढ़ रहा है.
पश्चिम में और विशेष रूप से अमेरिका में, चीन की निरंतर वृद्धि के बारे में संशय बना हुआ है और उनका मानना है कि यह जल्द ही लड़खड़ा जाएगा. हालांकि, यह दृष्टिकोण कम से कम 20 वर्षों से मौजूद है, लेकिन चीन ने उन्हें हमेशा निराश ही किया है.
विचार करें कि 1990 में भारत और चीन आर्थिक सुधारों की शुरुआत में लगभग बराबर थे, लेकिन आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में छह गुना बड़ी है.
2020 के बाद भारत और चीन के बीच संबंध टूटने, संयुक्त राज्य अमेरिका से टैरिफ और भारत से उन्नत चीनी वस्तुओं तक पहुंच देने में अनिच्छा का मतलब है कि भारतीयों को शायद ही पता है कि हमारे पड़ोसी ने कितनी तरक्की की है. चीन कई मायनों में अंतर्मुखी है और लोकप्रिय अंग्रेजी मीडिया की वहां अनुपस्थिति ने भी उनकी प्रगति की सराहना करना हमारे लिए आसान नहीं बनाया है. हमारे मीडिया की अज्ञानता या चीन की प्रगति में रुचि की कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया है.
दुनिया मानती है कि चीन एक उन्नत अर्थव्यवस्था बन गया है, एक योजना के माध्यम से जो सिर्फ एक दशक में तैयार और लागू की गई थी. ली केकियांग का 2023 में निधन हो गया, लेकिन चीन ने उनकी ऐलानिया योजनाओं को पूरा करने में जिस तरह की कामयाबी हासिल की, ऐसा कहा जा सकता है कि वह संतोष भाव के साथ गये होंगे.
यह वही दस साल थे, पाठकों को एक बार फिर याद दिलाने के लिए, जिसमें भाजपा और हमारे प्रधानमंत्री ने अपनी विचारधारा से भारत को जकड़ रखा था.
आकार पटेल एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के अध्यक्ष हैं.
टिमोथी स्नाइडर
यूक्रेन को कमरे से बाहर रख शांति बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं ट्रम्प और पुतिन
टिमोथी स्नाइडर एक अमेरिकी इतिहासकार हैं, जिनकी विशेषज्ञता यूरोप के इतिहास में है. वे दोनों महाद्वीपों (अमेरिका और यूरोप) में एक प्रख्यात सार्वजनिक बुद्धिजीवी भी हैं. उनकी प्रमुख पुस्तकों में ऑन टायरनी (तानाशाही पर) और ब्लडलैंड्स (रक्तभूमियाँ) शामिल हैं, जिनके नए संस्करण 2022 में प्रकाशित हुए. स्नाइडर का लेखन न केवल इतिहास को पुनर्जीवित करता है, बल्कि कला और संगीत को प्रेरित भी करता है. उनके विचार दुनिया भर में पढ़े और चर्चित होते हैं, जो सत्ता, नैतिकता और मानवीय संघर्षों पर गहन प्रकाश डालते हैं. यह लेख उनके सब्सटैक पेज पर प्रकाशित लेख से लिया गया है.
यूक्रेन में, रूसी सैनिक यूक्रेनियों पर हमला करेंगे. रूसी ड्रोन, बम और मिसाइलें यूक्रेनी घरों को निशाना बनाएंगी. एक आपराधिक आक्रामक युद्ध जारी रहेगा. उधर सऊदी अरब में, रूसी अधिकारी यूक्रेन के भविष्य पर मुट्ठी भर अमेरिकियों के साथ चर्चा करेंगे, जिन्हें एक ऐसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया गया है जिनकी सहानुभूति रूसी दृष्टिकोण के प्रति हैं. यूक्रेनियों की उपस्थिति के बिना यूक्रेन के बारे में बात करने का रूसियों को विलास होगा. तमाम सुर्खियां "शांति वार्ता" के बारे में हैं. लेकिन वास्तव में हो क्या रहा है? सऊदी अरब में इस असामान्य मुलाकात के बारे में हमें कैसे सोचना चाहिए? यहां दस सुझाव दिए गए हैं, जो तीन देशों के बीच संबंधों पर वर्षों के काम और म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कुछ हालिया व्यक्तिगत टिप्पणियों से लिए गए हैं.
परोसे जा रहे शब्दों के प्रति आलोचनात्मक रहें : "शांति" शब्द पर सवाल उठाएं. मीडिया में प्रयुक्त शब्द "शांति वार्ता" है. पर जंग अमेरिका और रूस के बीच नहीं है. रूस यूक्रेन के साथ युद्ध में है, लेकिन यूक्रेन को इन वार्ताओं के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है. रूसी अधिकारी, अपने हिस्से के लिए, आम तौर पर शांति की बात नहीं करते हैं. वे अमेरिका के साथ वार्ता को एक भू-राजनीतिक तख्तापलट के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो एक ही बात नहीं है. शीर्ष रूसी अधिकारियों ने बार-बार कहा है कि यूक्रेन के साथ उनके युद्ध का उद्देश्य जितना हो सके जीत लेना (मैक्सीमलिस्ट) और यूक्रेन का विनाश कर देना है. जानकार पर्यवेक्षक आम तौर पर मानते हैं कि रूस युद्धविराम का उपयोग अमेरिका और यूरोप का ध्यान बांटने, यूक्रेन को ढीला करने और फिर से हमला करने के लिए करेगा. यह एक ऐसी योजना नहीं है, जिसे रूसी छिपाने के लिए मेहनत कर रहे हैं. यह एक सीधी और साफ बात है, जो हमेशा कही जानी चाहिए. यूक्रेन में वास्तव में कल से ही शांति हो सकती है, अगर रूस केवल अपनी आक्रमणकारी सेना हटा ले.
अमेरिका की बातचीत की भयानक रणनीति पर विचार करें : यह इतनी ख़तरनाक तरीके से खराब है कि इस कोशिश को बातचीत मानने पर ही सवाल खड़े होते हैं. ट्रम्प और उनके आसपास का हर कोई इस बात पर जोर देता रहता है कि अमेरिका बहुत जल्दी में है. लेकिन कोई भी मध्यस्थ कभी ऐसा नहीं करेगा. जल्दबाजी को मानना दूसरे पक्ष को रियायतें बटोरने के लिए, मामले को घसीटने का मौका देना है. और रियायतें पहले से परोसी जा रही हैं! ट्रम्प प्रशासन के सदस्य और स्वयं ट्रम्प किसी भी वास्तविक वार्ता से पहले और सार्वजनिक रूप से रूस को जरूरी मुद्दों पर छूट देते रहे हैं. (जैसे क्षेत्र, नाटो सदस्यता, चुनावों का समय, यहां तक कि यूक्रेन का अस्तित्व). ये ऐसे मुद्दे हैं जो न केवल यूक्रेन के लिए आवश्यक हैं, बल्कि यूक्रेनी संप्रभुता के लिए भी बुनियादी हैं. इस तरह के अमेरिकी व्यवहार का एकमात्र तरीका समझ में आता है, यदि हम मानते हैं कि अमेरिकी रूसियों के रूप में बातचीत कर रहे हैं. लेकिन अगर सऊदी अरब में हर कोई एक ही तरफ है, तो ये मध्यस्थता नहीं है. इसके लिए "बातचीत" शब्द सुरक्षित विकल्प है.
यह न भूलें कि कानून और नैतिकता वास्तविकता का हिस्सा हैं : अमेरिका ने पीड़ितों का समर्थन करने के बजाय आक्रमणकारियों के साथ मध्यस्थता करना चुना है (रूसी संघ के राष्ट्रपति पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाया गया है). व्लादिमीर पुतिन तक पहुंचकर, रूसी नेता का अंतरराष्ट्रीय अलगाव डोनाल्ड ट्रम्प ने समाप्त कर दिया है. बजाय 1945 के बाद सबसे खूनी युद्ध में आक्रमणकारी के रूप में पेश करने के या ऐसे व्यक्ति के रूप में जिस पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाया गया है, पुतिन को ऐसे व्यक्ति के रूप में बताना जो कथित तौर पर शांति चाहता है, ट्रम्प उस व्यक्ति के नैतिक दाग को साफ करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसने दूसरे देश पर आक्रमण करके अंतरराष्ट्रीय कानूनों में सबसे बुनियादी कानून तोड़ा है. अगर बातचीत का कोई नतीजा नहीं भी निकलता है, तब भी जिस तरह से ट्रम्प ने पुतिन का पुनर्वास किया है, रूस के लिए एक सार्थक उपलब्धि है.
यूक्रेन की अनुपस्थिति पर जोर दें : यह अंतरराष्ट्रीय इतिहास की एक सच्चाई है, साथ ही सरल सामान्य ज्ञान भी है, कि यदि आप टेबल पर नहीं हैं तो आप मेनू पर हैं. यूक्रेन के बारे में रूस के साथ यूक्रेन के बिना चर्चा एक ऐसी संरचनात्मक स्थिति पैदा करती है जिसमें यूक्रेन और यूक्रेनियन लोगों के बुनियादी हितों का प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता है. कोई भी ऐतिहासिक सादृश्य परिपूर्ण नहीं है, निश्चित रूप से; लेकिन यूरोप में इस तरह के व्यवहार के उदाहरणों में 1938 के म्यूनिख समझौते और 1939 की मोलोटोव-रिबेंट्रॉप संधि शामिल हैं. एक लंबा रिकॉर्ड उपनिवेशवाद के इतिहास में पाया जा सकता है.
याद रखें कि यूक्रेन एक संप्रभु राज्य है और युद्ध का शिकार है. इस तरह की वार्ताओं के आसपास आडंबर और रहस्य का संयोजन उनके प्रतिभागियों को कहानी के केंद्रीय अभिनेता के रूप में ऊंचा करता है. यदि शिखर सम्मेलन की कहानी लापरवाही से कही जाती है, तो यह धारणा पैदा कर सकती है कि रूस और अमेरिका के पास किसी तरह यूक्रेन के भविष्य का फैसला करने का अधिकार है. यह बहुत संभव है कि वे यूक्रेन को कुछ भी करने के लिए मजबूर करने की कोशिश करेंगे, जबरदस्ती या ब्लैकमेल का उपयोग करके, और यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि यूक्रेन के बिना यूक्रेन के बारे में किसी भी समझौते में क्या निहित है. रूस और अमेरिका के बीच किसी भी समझौते का यूक्रेन पर कानूनी प्रभाव नहीं है. यह निश्चित रूप से जानने और उल्लेख करने योग्य है कि यूक्रेन ने धैर्यपूर्वक अपने शांति सूत्र के आसपास सहमति बनाई है. यदि केवल बुनियादी मुद्दों की पृष्ठभूमि जानकारी के लिए ही सही, तो इसकी समीक्षा करना उचित है.
इस पर विचार करें कि हम शक्ति के बारे में क्या जानते हैं : युद्ध में, विजेता और हारने वाले होते हैं. आक्रमणकारी तब शांति बनाते हैं, जब उन्हें लगता है कि उनका आक्रमण अब उनके हित में नहीं है. बात करना इसके लिए आकस्मिक है. यह सुनकर आश्चर्य होता है कि ट्रम्प के लोग, जो ताकत के बारे में इतनी बातें करते हैं, बार-बार वामपंथी ग्रीष्मकालीन-शिविर बिंदु बना रहे हैं कि शांति के लिए हमें वास्तव में एकजुट होने और बात करने की आवश्यकता है. यदि ट्रम्प प्रशासन जल्दी से शांति स्थापित करने के बारे में गंभीर है, तो वे रूस पर दबाव डालेंगे और यूक्रेन के लिए समर्थन में तेजी लाएंगे. चूंकि वे इनमें से कोई भी काम नहीं कर रहे हैं, इसलिए या तो वे शक्ति को गलत समझते हैं या वे शांति का लक्ष्य नहीं रख रहे हैं.
रूसी प्रचार का विरोध करें : रूस के लिए ये वार्ताएं उनकी बातों को फैलाने का एक अवसर हैं. रूसी प्रचारक यूक्रेनी राज्य की वैधता, यूक्रेनी इतिहास के पैटर्न, यूक्रेन पर शासन करने वाले लोगों आदि के बारे में कुछ न कुछ कहते रहेंगे. इस तरह की वार्ताएं अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों के जरिये उन दावों को दोहराने के लिए उनको अवसर देंगी.
अमेरिकी प्रोपोगंडा के प्रति भी आलोचनात्मक रहें : रूसियों को यूक्रेन में कथित कचरे के बारे में कहानियां फैलाना पसंद रहा है. ट्रम्प के लोगों के लिए इस बात का अपना उपयोग है. यह उनकी शिकायत की भावना के अनुरूप है, जिसके साथ वे हर विषय को एप्रोच करते हैं. ट्रम्प के लोगों ने यूक्रेन को अमेरिकी सहायता की "लागत वसूलने" के विचार पर ध्यान केंद्रित किया है. यह गैर-गंभीर और भ्रामक है. अमेरिकी बजटीय समस्या यह है कि अमीर अपने करों का भुगतान नहीं करते हैं. इस अरबपति-प्रधान प्रशासन की लागत वसूलने की सभी बातें अकेले उस कारण से संदिग्ध हैं. यूक्रेन में अमेरिकी सैन्य योगदान का अधिकांश हिस्सा अमेरिका में रहता है, कारखानों को चालू रखता है और अमेरिकी श्रमिकों को भुगतान करता है. सामान्य तौर पर, अमेरिका ने यूक्रेन को जो हथियार भेजे हैं, वे अप्रचलित थे और कभी इस्तेमाल किए बिना अमेरिकी करदाताओं की लागत पर नष्ट कर दिए जाते. अमेरिका ने यूरोप की तुलना में यूक्रेन में कम योगदान दिया है. सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में, अमेरिका उन देशों से बहुत पीछे है जिनकी ट्रम्प के लोग लगातार आलोचना करते हैं. यूरोपीय लोगों के लिए प्रभावी लागत वास्तव में बहुत अधिक रही है, क्योंकि रूस पर प्रतिबंधों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तुलना में यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ा. यूक्रेन में युद्ध की आवश्यक लागत यूक्रेनियन द्वारा वहन की गई है, न केवल भारी आर्थिक नुकसान में, बल्कि इसमें लाखों जबरन पलायन, सैकड़ों हजारों चोटें और हजारों लोगों की जान गंवाना भी शामिल है. रूस का विरोध करके, यूक्रेन ने अमेरिका को जबरदस्त आर्थिक और सुरक्षा लाभ भी प्रदान किए हैं. यूक्रेनियन से आधुनिक युद्ध के बारे में अमेरिका ने जो सीखा है - और वह कई लाभों में से सिर्फ एक है - सबसे संकीर्ण सुरक्षा शर्तों में भी लागत को आसानी से उचित ठहराता है.
ट्रम्प की कमजोरियों का आकलन करें : दशकों से ट्रम्प सोवियत और फिर रूसी नेताओं की बातों को दोहराते रहे हैं. वह पुतिन से नियमित रूप से बात करते हैं और उन्होंने अपनी दिलचस्पी जाहिर की है. वह युद्ध पर रूसी बातों को दोहराते हैं. यह धारणा कि युद्ध अमेरिका के लिए महंगा है, एक ऐसा मुद्दा है जहां पुतिनवादी और ट्रम्पवादी प्रोपोगंडा ओवरलैप करते हैं, और ट्रम्प के जुनून में से एक को लक्षित करते हैं कि उन्हें लूटा जा रहा है. यूक्रेन, निश्चित रूप से, वह पार्टी है जिसने आर्थिक लागतों का सामना किया है. लेकिन युद्ध को फिर से परिभाषित करना अमेरिका के लिए पैसे कमाने के अवसर के रूप में ट्रम्प को हेरफेर करने के लिए डिज़ाइन किया गया प्रतीत होता है.
उपनिवेशवाद पर विचार करें : यूक्रेन के खिलाफ रूस का युद्ध स्पष्ट रूप से औपनिवेशिक रहा है, हर मायने में. मास्को इस बात से इनकार करता है कि यूक्रेन एक राज्य है, कि यूक्रेनियन एक लोग हैं, कि उनके निर्वाचित नेता वैध हैं. ऐसी औपनिवेशिक विचारधारा में लिपटे युद्ध से चुराए गए यूक्रेनी संसाधनों का शोषण संभव हो जाता है, जिसमें चुराए गए बच्चे भी शामिल हैं. हाल के हफ्तों में, अमेरिकियों ने यूक्रेन के खनिज संसाधनों में बहुत रुचि के साथ बात करना शुरू कर दिया है. म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में, अमेरिकियों ने यूक्रेनी राष्ट्रपति से आज सिर पर थपथपाने के बदले में अपने देश के खनिज धन का आधा हिस्सा हमेशा के लिए देने की शर्त स्वीकार करने के लिए कहा. ऐसा हो सकता है कि अमेरिका यूक्रेनी धन को जब्त करने के लिए रूसी हिंसा के खतरे का उपयोग करने का इरादा रखता है - "हम युद्ध को रोक सकते हैं, लेकिन हमें पहले आपके संसाधनों की आवश्यकता है." दूसरे शब्दों में, एक प्रोटेक्शन रैकेट.
तो "शांति वार्ता" की धारणा को दोहराकर क्या हम एक नौटंकी में हिस्सेदार नहीं बन रहे हैं? ऊपर दिये गए तथ्यों से, रूसी-अमेरिकी वार्ताओं के तीन संभावित ढांचे सामने आते हैं. पहला, अमेरिकी ईमानदारी से शांति चाहते हैं, लेकिन वे आश्चर्यजनक रूप से अक्षम हैं. दूसरा, यह अक्षमता जानबूझकर है; खेल रूस और अमेरिका के बीच एक समझौते को उत्पन्न करने के लिए रिग्ड है जो यूक्रेन को अस्वीकार्य है. तीसरा, पुतिन और ट्रम्प ने पहले ही यूक्रेन पर औपनिवेशिक वर्चस्व के लिए साझा साजिश पर काम कर लिया है और वार्ता केवल दिखावा है.
नौकरी लायक नौजवानों की कमी
दिल्ली में जारी हुई रिपोर्ट मर्सर-मेटल इंडिया ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स 2025 में बताया गया है कि पिछले साल केवल 42.6% भारतीय स्नातक नौकरी पाने के योग्य थे, जो 2023 में 44.3% से कम है. यह गिरावट मुख्य रूप से गैर-तकनीकी कौशल की कमी के कारण हुई है. तकनीकी भूमिकाओं में रोजगार योग्यता (एंप्लायबिलिटी) में वृद्धि देखी गई है. रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दिखाती है कि भारतीय स्नातकों को नौकरी पाने के लिए अपने गैर-तकनीकी कौशल और सॉफ्ट स्किल्स पर ध्यान देना होगा. इसके साथ ही, एआई और एमएल जैसे नवीनतम तकनीकी क्षेत्रों में भी महारत हासिल करना आवश्यक है. कॉलेजों को भी अपने पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार अपडेट करना होगा ताकि छात्र नौकरी पाने के लिए तैयार हो सकें. द प्रिंट ने इस पर विस्तार से लिखा है. रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
रोजगार योग्यता में शीर्ष राज्य : दिल्ली (53.4%), हिमाचल प्रदेश और पंजाब (51.1%)
अधिकतर भारतीय स्नातकों में कमी : विश्लेषक, मानव संसाधन (एचआर), और डिजिटल मार्केटिंग जैसे गैर-तकनीकी क्षेत्रों में रोजगार योग्यता में गिरावट.
आवश्यक कौशल : तकनीकी और गैर-तकनीकी कौशल का विविध संयोजन, साथ ही सॉफ्ट स्किल्स.
तकनीकी भूमिकाओं में स्थिति : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) भूमिकाओं में सबसे अधिक रोजगार योग्यता. डेटा वैज्ञानिक और बैक-एंड डेवलपर भूमिकाओं में सबसे कम.
सॉफ्ट स्किल्स का महत्व : संचार कौशल, महत्वपूर्ण सोच और नेतृत्व कौशल में उच्च रोजगार योग्यता. रचनात्मकता में सुधार की गुंजाइश.
लैंगिक असमानता : पुरुष स्नातकों की रोजगार योग्यता महिला स्नातकों से थोड़ी अधिक. एआई और एमएल और डेटा वैज्ञानिक भूमिकाओं में पुरुष और महिला स्नातक समान रूप से योग्य.
कॉलेज का स्तर : टियर 1 कॉलेजों में सबसे अधिक रोजगार योग्यता, उसके बाद टियर 2 और टियर 3 कॉलेज.
क्षेत्रीय भिन्नता : दिल्ली में समग्र रोजगार योग्यता सबसे अधिक. शीर्ष शैक्षिक संस्थान कुछ भागों या राज्यों में केंद्रित हैं.
नए प्रतिभा केंद्र : टियर 2 और टियर 3 शहर नए प्रतिभा केंद्र के रूप में उभर रहे हैं.
स्वतंत्र पत्रकारिता पर सरकारी दबाव
'आर्टिकल 14' ने एक रिपोर्ट की है जो भारत में प्रेस पर बढ़ते हमलों का जिक्र करती है. रिपोर्ट में जिक्र है कि सरकार की नई कार्रवाई ने स्वतंत्र समाचार वेबसाइटों जैसे कि द फाइल और द रिपोर्टर्स कलेक्टिव को आर्थिक अनिश्चितता और बंद होने की कगार पर पहुंचा दिया है. इससे उनकी रिपोर्टिंग की क्षमता कमजोर हो रही है. ऐसे और भी कई संस्थान हैं, जो सवाल पूछने की वजह से दबाव झेल रहे हैं. इसके अलावा कुछ पत्रकारों को जेल में डालने की धमकी का सामना भी करना पड़ रहा है, जबकि कई और संगठन कानून, कर निरीक्षण, नियामक और वित्तीय दबावों के तहत धीरे-धीरे दबाव का सामना कर रहे हैं. मसलन द फाइल नाम की एक कन्नड़ समाचार वेबसाइट ने दिसंबर 2024 में अपने यूट्यूब चैनल पर चुप्पी साध ली थी, जबकि इसके 1,500 से अधिक वीडियो 9.6 मिलियन दर्शकों द्वारा देखे गए थे. दिसंबर 2024 में आयकर विभाग ने द फाइल का गैर-लाभकारी दर्जा रद्द कर दिया, जिसके बाद वेबसाइट पर सामग्री प्रकाशित नहीं हो पाई.
‘द फाइल’ के संस्थापक-संपादक, अनुभवी जांच पत्रकार जी महंतेश ने "आर्टिकल 14" से कहा कि अब वे अपना काम जारी रखने के लिए अपनी टीम को भुगतान करने का खर्च नहीं उठा पा रहे थे. आयकर विभाग ने द फाइल को वाणिज्यिक साइट और मनोरंजन साइट घोषित किया, जो पूरी तरह से गलत था, महंतेश ने कहा. ऐसे ही "द रिपोर्टर्स कलेक्टिव" को भी आयकर विभाग की कार्रवाई का सामना करना पड़ा. 28 जनवरी 2025 को इस संगठन ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि उनका गैर-लाभकारी दर्जा रद्द करने का आदेश उनकी कार्यक्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और स्वतंत्र पत्रकारिता की स्थिति को और खराब करता है.
आपबीती
“डर है कि कहीं जाऊं, वे मुझे पकड़ लें, पूछताछ करें, बंद कर दें या फिर से पीटें ”
'यह मैं हूं, पीले जूते वाला', मोहम्मद वसीम ने एक वीडियो को देखते हुए कहा, जिसमें उसके साथ चार और मुसलमान थे. वो घायल होकर, खून से सने, सड़क के किनारे पड़े थे और पुलिसकर्मी उन्हें अपनी लाठियों से ठोक रहे थे और राष्ट्रीय गान गाने के लिए मजबूर कर रहे थे. कुछ ऐसे ही बेतवा शर्मा ने 'आर्टिकल 14' में लिखे अपने लेख में भारतीय मुसलमानों की स्थिति का जिक्र किया है.
"ठीक से गाओ" एक पुलिसकर्मी वीडियो में कहता है, जो फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे शुरू होने पर वायरल हुआ था. वसीम ने बताया, "मैं खुश हूं, लेकिन मुझे डर भी है. अब मुझे डर है कि वे और गुस्से में होंगे. मुझे डर है कि अगर मैं कहीं जाऊं, तो अगर वे मुझे पकड़ लें या पूछताछ करें, मुझे बंद कर दें या फिर से पीटें. यह डर हमेशा रहता है और कोई मेरी रक्षा नहीं कर सकता." रिपोर्ट में जिक्र है कि पांच साल बाद भी वीडियो में दिख रहे पुलिसकर्मी पहचाने नहीं जा सके हैं, इसलिए उन्हें अभियुक्त भी नहीं बनाया गया है.
वसीम के पिता अताउल्लाह, जो एक इलेक्ट्रीशियन हैं, मायूस होकर कहते हैं कि हमें केस दर्ज करवाने का आदेश पाने में ही पांच साल लग गए. यह विश्वास करना मुश्किल है कि हमने इस मामूली बात का भी आखिरकार जश्न मनाया. क्या वे कोई कार्रवाई करेंगे? हमें नहीं पता! हम बस कोशिश करते हैं और उम्मीद रखते हैं. पाँच साल बाद, वसीम ने कहा- 'मैं अब भी पूरी वीडियो नहीं देख सकता. अगर मैं उसे देखता हूं, तो मेरे पूरे शरीर में गुस्से का एक विस्फोट होता है.' वसीम बेरोजगार है और कुल जमा 10वीं तक पढ़ा है.
वसीम की मां शमीमा तो पड़ोस से हौसला पाती हैं और कहती हैं- 'फ़ैज़ान की मां ने अपना बेटा खो दिया, और वह अब भी लड़ रही हैं. हम उनके सामने कुछ भी नहीं हैं. हमने बहुत सारे लोगों से मदद की उम्मीद की थी, लेकिन इस अनुभव ने हमें लोगों के "बड़े वादों" से सावधान कर दिया. जिंदगी चलती रहती है, कुछ नहीं रुकता.'
चलते-चलते
85 साल की बोआ के साथ 65 हजार साल पुरानी भाषा भी चली गई, रिकॉर्डिंग सुनेंगे?

भारतीय अंडमान द्वीप समूह की बोआ सीनियर, 40 वर्षों तक बो भाषा बोलने वाली इकलौती इंसान थीं, जिसे करीब 65000 साल पुरानी भाषा बताया जाता है. 85 वर्ष की आयु में उनका निधन 2010 में हो गया. उनकी मृत्यु से पहले, भाषाविद प्रोफेसर अन्विता अब्बी ने इस मरती हुई भाषा को सीखने का प्रयास करते हुए कई साल बिताए. अपने परिवार या दोस्तों के बिना जो उन्हें समझ सकें, बोआ पक्षियों से बात करने लगीं. बोआ कहती थीं कि वे उनके पूर्वज थे. आखिरकार उन्होंने अन्विता के लिए अपने दिल के दरवाजे खोले, गाने गाए और प्राचीन कहानियाँ साझा कीं. अन्विता, बोआ की आवाज को रिकॉर्ड करने वाली पहली और आखिरी व्यक्ति हैं. वह बो सीनियर की मृत्यु और कैसे इसने जीवन के एक पूरे तरीके को बदल दिया, इस बारे में नताशा फर्नांडीस से बात करती हैं. बीबीसी के इस लिंक पर जाकर आप सुन सकते हैं, बोआ को अपनी भाषा में बात करते हुए. अन्विता अब्बी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान पढ़ाती हैं. ‘द हिंदू’ में आप उनका इंटरव्यू यहां पढ़ सकते हैं. प्रोफेसर अब्बी का कहना है, "राज्य की भाषा का वर्चस्व कई बोलियों के लिए मौत की घंटी है. मैंने भारत की छोटी और आदिवासी भाषाओं, मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषाओं पर, ‘आवाजों का घर’ बनाने की योजना शुरू की है. आज, मौखिक परंपराओं को सुनने का कोई व्यवस्थित तरीका नहीं है, जिनमें अपार मूल्य और सांस्कृतिक इतिहास है. जनजातियों और हाशिए पर रहने वाले अल्पसंख्यकों की भाषाओं को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता है. इससे साक्षरता अभियान में मदद मिलेगी, जो अन्यथा अधूरा रहेगा." बो सीनियर का यहाँ एक वीडियो भी है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.