20/04/2025 : परिसीमन की तलवार मुस्लिम और दलित पर | ठाकरे परिवार में एका | धनखड़ के बाद निशिकांत का मुंह खुला | अनुराग कश्यप का स्टंट | बिना जहर वाला सोशल मीडिया | टीएमसी का फेक न्यूज | नया रंग ओलो
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आज की सुर्खियां :
कर्नाटक शैक्षणिक संस्थानों में ‘रोहित वेमुला अधिनियम’ लागू होगा:
पुतिन ने 'ईस्टर युद्धविराम' की घोषणा की
कमाई से ज़्यादा खर्च कर रहीं हैं कंपनियाँ
दलित दूल्हा घोड़ी चढ़ा, सवर्णों ने किया हमला
होली नमाज पर बयान देने वाले अफसर को क्लीन चिट
राहुल गांधी खुद को राजनेता नहीं मानते
डिलिमिटेशन की चपेट में सिर्फ दक्षिण भारत नहीं, बल्कि आयेंगे दलित, अल्पसंख्यक भी चपेट में
परिसीमन को लेकर उत्तर-दक्षिण की चल रही बहस के बीच बनोज्योत्सना लाहिड़ी, नदीम खान और इमरान अंसार की एक रिपोर्ट स्क्रोल ने प्रकाशित की है, जिसमें डेटा के साथ बताया गया है कि जिस तरह से परिसीमन हो रहा है, उससे न सिर्फ दक्षिण भारत को नुकसान होगा, बल्कि इससे दलितों और मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में भी कमी आएगी. उनका भी नुकसान होगा.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने यह कहकर उत्तर बनाम दक्षिण की बहस खड़ी की है कि बढ़ती आबादी के हिसाब से निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की प्रक्रिया से अधिक समृद्ध दक्षिणी राज्यों को नुकसान होगा. ये राज्य अपनी संख्या को नियंत्रित करने में अधिक सफल रहे हैं, इसलिए यदि अगली जनगणना के परिणामों के अनुरूप परिसीमन किया जाता है, तो संसद में उनके प्रतिनिधियों का अनुपात अधिक आबादी वाले उत्तरी राज्यों की तुलना में कम होगा. मगर ऐसा नहीं है कि सिर्फ दक्षिणी राज्य ही नुकसान में रहेंगे, बल्कि जिस तरह से पहले परिसीमन किया गया है, उस पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि हाशिये के समुदाय दलित और मुसलमान भी प्रभावित होंगे.
परिसीमन क्या है? संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 में कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या को फिर से समायोजित किया जाना चाहिए. यह परिसीमन प्रक्रिया परिसीमन आयोग द्वारा की जाती है, जिसे संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था. परिसीमन प्रक्रिया यह भी निर्धारित करती है कि कोई निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए आरक्षित होगा या नहीं.
1951, 1961 और 1971 की जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया गया. हालांकि, 1976 में जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने के लिए इस प्रक्रिया को अगले 25 वर्षों के लिए रोक दिया गया था. यह निर्णय लिया गया कि निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या निर्धारित करने के लिए 1971 की जनसंख्या को आधार रेखा माना जाएगा. 2001 में, जब संविधान के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों के आकार को फिर से समायोजित करने और सीटें बढ़ाने का समय आया, तो वाजपेयी सरकार ने अपने गठबंधन की कमज़ोरी के कारण सीटों की संख्या बढ़ाने के फ़ैसले को अगले 25 वर्षों के लिए टालने का फ़ैसला किया.
हालांकि, 2002 में एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया, जिसका ध्यान केवल कई निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से बनाने और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित करने पर था. इसकी सिफारिशों को 2009 के आम चुनावों में लागू किया गया. सीटों की संख्या बढ़ाने के फ़ैसले को अगले 25 वर्षों के लिए रोक दिया गया. 2021 की जनगणना, जो अगले बदलावों का आधार बनेगी, को कोविड-19 महामारी और केंद्र सरकार की ओर से देरी के कारण स्थगित करना पड़ा. परिणामस्वरूप, अगली परिसीमन प्रक्रिया 2026 में शुरू होने की संभावना है.
इस बीच, दो पायलट प्रोजेक्ट हुए हैं : 2022 में जम्मू और कश्मीर में, जब संविधान के तहत इसका विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया था, और 2023 में असम में, जिसे 2009 में परिसीमन के दायरे से बाहर रखा गया था. इन पिछली कवायदों से पता चलता है कि परिसीमन के परिणामस्वरूप अक्सर अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभाव हुआ है. यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के हित को आगे बढ़ाने में भी विफल रहा है.
मुस्लिम प्रतिनिधित्व : भेदभाव के सबसे आम रूपों में से एक है गेरीमैंडरिंग : चुनावी सीमाएँ इस तरह से खींची जाती हैं कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को विभाजित कर दिया जाता है, जिससे उनकी मतदान शक्ति कम हो जाती है. इससे मुसलमानों को किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में पर्याप्त प्रभाव रखने से रोका जा सकता है, जिससे समुदाय के प्रतिनिधियों के लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो जाता है.
पूर्व राज्य के विशेष दर्जे को खत्म करने के बाद, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 ने विधानसभा सीटों को 83 से बढ़ाकर 90 करके नए सिरे से परिसीमन अनिवार्य कर दिया. जम्मू क्षेत्र में सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43 हो गई. इससे राज्य विधानसभा में क्षेत्र का प्रभाव मजबूत हुआ.
हालांकि, मुस्लिम बहुल घाटी में, परिसीमन के बाद, सीटों में केवल एक की वृद्धि हुई, जो बढ़कर 47 हो गई. इसके अलावा, नौ नई आरक्षित अनुसूचित जनजाति सीटों में से छह घाटी में हैं, जबकि तीन जम्मू में हैं. असम में, जब 2023 में नए सिरे से परिसीमन प्रक्रियाएँ शुरू की गईं, तो कुछ समस्याएँ स्पष्ट हुईं. उदाहरण के लिए, धुबरी और बारपेटा मुस्लिम बहुल सीटें हुआ करती थीं. दोनों में मुस्लिम आबादी 60% से अधिक थी और हमेशा मुस्लिम सांसद चुने जाते थे. परिसीमन के बाद, बारपेटा की तीन मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटें - चेंगा, बाघबार और जानिया - धुबरी में स्थानांतरित कर दी गईं, जिससे इसके मतदाता आधार में 10 लाख की भारी वृद्धि हुई.
परिणामस्वरूप, अब केवल धुबरी लोकसभा में ही मुस्लिम आबादी अधिक है, लेकिन बारपेटा को पुनर्गठित किया गया, जिससे मुस्लिम आबादी घटकर 35% रह गई. पश्चिम बंगाल में, कटवा लोकसभा सीट पर मुस्लिम आबादी लगभग 40% थी. 1952 से 2009 तक, इसने हमेशा एक मुस्लिम सांसद को चुना है. 2009 में, इस निर्वाचन क्षेत्र को दो लोकसभा सीटों - बर्धमान पुरबा और बर्धमान दुर्गापुर में विभाजित किया गया था. दोनों में अनुमानित मुस्लिम आबादी लगभग 20% है. इसके अलावा, बर्धमान पुरबा अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधि के लिए आरक्षित है. परिसीमन के बाद से, इनमें से किसी भी निर्वाचन क्षेत्र ने एक मुस्लिम सांसद को नहीं चुना है.
एससी/एसटी के लिए आरक्षित मुस्लिम बहुल सीटें : कुछ मामलों में, परिसीमन आयोग ने अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए सीटें आरक्षित की हैं. भले ही इन समुदायों के सदस्य कम हों और मुस्लिम निवासी अधिक हों. इसने प्रभावी रूप से विधानसभाओं से मुस्लिम संख्या को कम कर दिया है.
अनुसूचित जातियों और जनजातियों के खिलाफ भेदभाव : विडंबना यह है कि दलितों और आदिवासियों को लाभ पहुंचाने के लिए कुछ सीटें आरक्षित की गई हैं, लेकिन लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में कई सीटें ऐसी हैं, जिनमें इन समुदायों की आबादी काफी है, लेकिन वे अनारक्षित हैं और सभी समुदायों के लिए चुनाव लड़ने के लिए खुली हैं. इससे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रभावी सामुदायिक नेताओं के उभरने में बाधा उत्पन्न हुई है, जहां उनकी संख्या मजबूत है और वे इन समुदायों के मुद्दों को उठा सकते हैं. अक्टूबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने एक आदेश पारित किया, जिसमें परिसीमन आयोग के आदेशों की समीक्षा करने के न्यायालय के अधिकार को बरकरार रखा गया, यदि उन्हें मनमाना या संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन माना जाता है. इससे नागरिकों के लिए परिसीमन सिद्धांतों को चुनौती देने की उम्मीद की एक खिड़की खुली है, जो हाशिए पर पड़े समुदायों या कुछ राज्यों के प्रतिनिधित्व को सीमित करते हैं. हालांकि, न्यायिक हस्तक्षेप से ज़्यादा, इस प्रक्रिया में समानता सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा निर्णायक राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता होगी. केवल इस बात पर प्रकाश डालने के बजाय कि प्रक्रिया के बाद दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व कैसे कम हो जाएगा, विपक्ष को यह भी बताना चाहिए कि परिसीमन मुसलमानों और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सदस्यों के प्रतिनिधित्व को कैसे नुकसान पहुँचाएगा.
‘देश में गृह युद्धों के लिए सीजेआई जिम्मेदार’
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर हमला करते हुए आरोप लगाया है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना देश में हो रहे सभी गृह युद्धों के लिए जिम्मेदार हैं. दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को खारिज करने और राष्ट्रपति को निर्देश देने का आरोप लगाते हुए कहा कि कोर्ट अपनी सीमाएं पार कर रहा है और देश को अराजकता की ओर ले जा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा तो संसद और विधानसभा को बंद कर देना चाहिए.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बाद झारखंड से भाजपा के वरिष्ठ सांसद दुबे ने भी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन पर जारी शब्दयुद्ध में शनिवार (19 अप्रैल, 2025) को अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जाकर राष्ट्रपति को निर्देश दे रहा है, जो भारत के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं. उन्होंने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है और न्यायालय का काम केवल कानून की व्याख्या करना है. दुबे ने सुप्रीम कोर्ट को देश में धार्मिक युद्ध भड़काने का जिम्मेदार भी बताया. उनकी यह टिप्पणी उस समय आई है, जब सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिकता पर सुनवाई चल रही है और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं. "कानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए," यह बयान दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “एक्स” पर हिंदी में पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों पर अपनी आपत्ति जताई है, हालांकि उन्होंने संदर्भ या आपत्ति की प्रकृति स्पष्ट नहीं की.
20 साल बाद “ठाकरे बंधु” एक होंगे?
20 साल बाद महाराष्ट्र के “ठाकरे बंधु” एक हो रहे हैं? दरअसल, शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे ने शनिवार को पुनर्मिलन की संभावना को लेकर सकारात्मक संकेत दिए. “द इंडियन एक्सप्रेस” में मनोज दत्तात्रेय मोरे के अनुसार दोनों नेताओं ने कहा कि वे महाराष्ट्र के लोगों के बड़े हित के लिए अपने "छोटे-मोटे मतभेदों" को किनारे रखने को तैयार हैं.
खास बात यह है कि “मिलन की पहल” राज ठाकरे ने की, जब उन्होंने फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के साथ एक पॉडकास्ट, जो शनिवार को जारी हुआ, में कहा, “मेरे लिए महाराष्ट्र का हित सबसे बड़ा है, बाकी सब गौण है. मैं हमारे छोटे-छोटे विवादों को किनारे रख सकता हूं." उन्होंने आगे कहा, "मैं उद्धव (ठाकरे) के साथ काम करने को तैयार हूं, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह भी मेरे साथ काम करने को तैयार हैं?"
इसके जवाब में, उद्धव ठाकरे ने कहा, “मैं भी मराठी भाषा और महाराष्ट्र के लिए छोटे-मोटे विवादों को अलग रख साथ मिलकर काम करने को तैयार हूं, लेकिन उन्हें (राज) महाराष्ट्र विरोधी लोगों और पार्टियों की मेजबानी नहीं करनी चाहिए. उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने इस बात की शपथ लेनी चाहिए.”
इस ताज़ा घटनाक्रम पर शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, "वह (राज) ठाकरे हैं, उद्धव भी ठाकरे हैं. उनका रिश्ता स्थायी है. राजनीतिक मतभेदों के कारण उन्होंने अलग रास्ता चुना है. फिर भी, उद्धव ठाकरे ने हमेशा महाराष्ट्र के हित में कदम उठाए हैं. मैंने राज ठाकरे के बयान सुने हैं, उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र के हित के लिए वे सभी विवादों को किनारे रखने को तैयार हैं. उद्धव ने कहा है कि उनके और राज के बीच कोई विवाद नहीं है, और अगर हैं भी तो उन्हें सुलझाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. यह वही बात है जो उद्धव ठाकरे विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान कह रहे थे. "
राउत ने कहा कि राज ठाकरे को महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करने वालों से निपटना चाहिए. भाजपा “ठाकरे पहचान” को खत्म करना चाहती है. ऐसे में अगर दोनों ठाकरे सकारात्मक इरादे दिखाकर हाथ मिलाते हैं, तो महाराष्ट्र इसका स्वागत करेगा. हम इस घटनाक्रम को सकारात्मक रूप से देख रहे हैं. अब चूंकि उद्धव ठाकरे ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है, हम जवाब का इंतजार करेंगे."
“डेक्कन हेराल्ड” में मृत्युंजय बोस ने भी लिखा है कि महाराष्ट्र में उद्धव और राज ने अपने मतभेदों को भुलाकर राज्य के बड़े हितों के लिए काम करने के संकेत दिए हैं. महाराष्ट्र में मुंबई समेत नगर निगमों के चुनावों से पहले का यह घटनाक्रम सियासी तौर पर महत्वपूर्ण है. बता दें कि ठाकरे भाइयों का यह बयान महाराष्ट्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के तहत हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की पृष्ठभूमि में आया है, जिसके तहत कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाएगी.
होली नमाज पर बयान देने वाले अफसर को क्लीन चिट : उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने संभल में मुसलमानों से कहा था कि यदि मुसलमानों को लगता है कि रंगों से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं तो वे होली के दिन घर के अंदर ही रहें. संभल पिछले साल एक मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा का गवाह बना था. इस हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई थी. इस अधिकारी को जांच में क्लीन चिट दे दी गई है. पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने अधिकारियों के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी कि चौधरी की टिप्पणी सेवा मैनुअल का उल्लंघन है. उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस अधिकारी ने ‘जानबूझकर’ सांप्रदायिक टिप्पणी की, जिससे एक विशेष समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा हुई. शनिवार को एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “जांच में पाया गया कि टिप्पणी से किसी भी समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा नहीं हुई और पुलिस मैनुअल का कोई उल्लंघन नहीं हुआ.”
दलित दूल्हा घोड़ी चढ़ा, सवर्णों ने किया हमला : आगरा जिले के ऐतमादपुर में गुरुवार शाम को एक दलित दूल्हे और उसके बारातियों पर कुछ ऊंची जाति के ग्रामीणों ने इसलिए हमला कर दिया, क्योंकि बारात के दौरान दूल्घोहा ड़ी पर सवार था और वे संगीत बजा रहे थे. दुल्हन प्रियंका कुमारी की मां अनीता देवी ने शुक्रवार को संवाददाताओं को बताया, “दूल्हे रोहित कुमार पर उस समय हमला किया गया, जब वह बारात लेकर कृष्णा मैरिज हॉल के पास पहुंचा. कुछ ऊंची जाति के लोगों ने बारात को रोक रोहित को घोड़े से उतार दिया और पीटना शुरू कर दिया. उनका म्यूजिक सिस्टम तोड़ दिया और बारात में शामिल महिला-पुरुषों पर हमला किया.” हमलावरों ने बारात का पीछा किया और उन्हें करीब दो घंटे तक बंद रखा. जब पुलिस पहुंची, तब तनावपूर्ण हालात में शादी हो पाई. अनीता देवी ने बताया, “एफआईआर में 10 लोगों के नाम हैं, बाकी 20 अज्ञात हैं.” दूल्हे रोहित ने बताया, “पुलिस दबाव में थी और एफआईआर दर्ज नहीं करना चाहती थी, लेकिन जब मामला मीडिया तक पहुंचा और कुछ दलित नेता मौके पर पहुंचे तो उन्होंने एफआईआर दर्ज कर ली.”
फैक्ट चैक
भाजपा ही नहीं फर्जी वीडियो उड़ा रहे तृणमूल कांग्रेस के नेता
अंड-बंड वीडियोज के जरिए सियासत का नैरेटिव सेट करने के खेल में तृणमूल कांग्रेस भी भाजपा से दो-दो हाथ करती दिख रही है. 'ऑल्ट न्यूज़' की रिपोर्ट है कि मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के बाद तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेताओं और कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने एक वीडियो को साझा किया, जिसमें दो बिहार के हिंदू युवक मुस्लिम के रूप में बंगाल में दाखिल होते हुए दिखाई दे रहे थे. उनका दावा था कि ये लोग राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के लिए भेजे गए थे, लेकिन यह वीडियो मार्च महीने का था, जो हिंसा से एक महीने पहले का था. कई तृणमूल कांग्रेस नेताओं ने यह दावा किया है कि बिहार के हिंदू युवक मुस्लिमों के रूप में बंगाल में प्रवेश कर रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य सागरिका घोष ने बांग्ला दैनिक 'खबर 365 दिन' से एक समाचार कलीपिंग ट्वीट की, जिसमें एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी जिसका शीर्षक था, “বিহার থেকে মুসলিম সেজে হিন্দু বহিরাগত” (अनुवाद: बिहार से मुस्लिम के रूप में हिंदू बाहरी). उन्होंने इस ट्वीट में #मुर्शिदाबाद हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए इसे हिंसा से जोड़ा. असल में यह वीडियो एक पुरानी घटना का हिस्सा था, जब इन व्यक्तियों को बिहार से अलीपुरद्वार में पकड़ा गया था. इस प्रकार, यह दावा कि यह घटना मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा से जुड़ी हुई थी, गलत साबित हुआ. इससे पहले 'हरकारा' के ही 15 अप्रैल के अंक में हमने आपको बताया था कि कैसे भाजपा ने मुर्शिदाबाद के तनाव को फेक फोटो-वीडियो के जरिए अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की थी.
आईसीआईसीआई बैंक का मुनाफा 18% बढ़ा : 'ब्लूमबर्ग' की रिपोर्ट है कि भारत के दूसरे सबसे बड़े निजी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक ने मार्च तिमाही के नतीजे जारी किए हैं, जिसमें बैंक का शुद्ध मुनाफा 18% बढ़कर ₹12,630 करोड़ (लगभग $1.5 बिलियन) पहुंच गया है. यह आंकड़ा विश्लेषकों के औसत अनुमान ₹11,670 करोड़ से कहीं अधिक है. बैंक ने कहा कि इस बढ़ोतरी के पीछे मुख्य कारण ब्याज से होने वाली आय में वृद्धि है. इसके अलावा मजबूत ऋण वृद्धि और बेहतर ऑपरेटिंग परफॉर्मेंस भी इस बढ़त की वजह बताई गई है. बैंक के इस प्रदर्शन ने बाजार को भी चौंका दिया है क्योंकि अधिकांश विश्लेषकों को उम्मीद नहीं थी कि यह आंकड़ा इतने ऊंचे स्तर तक पहुंचेगा.
कर्नाटक शैक्षणिक संस्थानों में ‘रोहित वेमुला अधिनियम’ लागू होगा : कर्नाटक शैक्षणिक संस्थानों में जाति आधारित अत्याचारों की रोकथाम के लिए सामाजिक भेदभाव के शिकार दलित छात्र रोहित वेमुला के नाम पर कानून लाने वाला पहला राज्य बनने की तैयारी कर रहा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखे जाने के बाद उन्होंने शुक्रवार को इसकी घोषणा की. वेमुला हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर थे. उन्होंने यूनिवर्सिटी कैम्पस में जातिगत भेदभाव से तंग आकर 17 जनवरी, 2016 को आत्महत्या कर ली थी. इसके बाद उच्च शिक्षा में जातिगत भेदभाव के बारे में व्यापक विरोध और राष्ट्रीय बहस छिड़ गई थी. तब से लेकर अब तक परिसरों में आत्महत्या के कई मामले सामने आए हैं. इनमें मुंबई के एक मेडिकल कॉलेज में पायल तड़वी और आईआईटी बॉम्बे में दर्शन सोलंकी की मौत शामिल है. विभिन्न राज्यों में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले छात्र समूह जाति-आधारित भेदभाव को रोकने के लिए वेमुला के नाम पर एक कानून बनाने की मांग कर रहे थे.
राहुल गांधी खुद को राजनेता नहीं, सत्य का खोजकर्ता मानते हैं : पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार (19 अप्रैल 2025) को कहा कि वे जो कुछ भी कहना चाहते हैं कह सकते हैं, क्योंकि सच उनकी रक्षा करता है. उन्होंने यह भी कहा कि वह स्वयं को भी एक राजनेता के तौर पर नहीं, बल्कि सत्य के खोजकर्ता के रूप में देखते हैं. राजनीति उनके लिए सत्ता या छवि बनाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सच की तलाश है. राहुल गांधी ने अपने पूर्वज पंडित जवाहरलाल नेहरू से "सच और साहस" विरासत में पाया है, जिनकी शख्सियत ने उन्हें डर का सामना करने और सच के साथ खड़े रहने की शिक्षा दी. उन्होंने स्पष्ट किया कि वे सच बोलने से कभी नहीं डरेंगे, चाहे उन्हें कोई नुकसान ही क्यों न हो.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित के साथ एक पॉडकास्ट में राहुल गांधी ने कहा कि सच्चाई के लिए खड़े होना गांधी-नेहरू की परंपरा रही है. कहा- नेहरू ने हमें राजनीति नहीं सिखाई, बल्कि डर का सामना और सत्य के साथ खड़ा होना सिखाया. उन्होंने हिंदुस्तानियों को उत्पीड़न का विरोध और आजादी का दावा करने का साहस दिया. उनकी सबसे बड़ी विरासत सत्य की उनकी अथक खोज में निहित है. एक ऐसा सिद्धांत, जिसने उनकी समर्थित हर चीज को आकार दिया.
राहुल गांधी का कहना था कि गांधी, नेहरू, अंबेडकर, पटेल और बोस वास्तव में समाजवाद या राजनीति नहीं, सिर्फ साहस सिखा रहे थे. गांधी के पास सत्य के अलावा कुछ नहीं था, लेकिन उन्होंने एक साम्राज्य का डटकर सामना किया.
रूस की मदद से ईरान का अंतरिक्ष कार्यक्रम हो रहा है मजबूत : ‘ब्लूमबर्ग’ की रिपोर्ट है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान का अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ रहा है. रूस की तकनीकी मदद से ईरान अब न केवल उपग्रह और रॉकेट, बल्कि अमेरिका की चिंता के अनुसार, बैलेस्टिक मिसाइलें विकसित करने की क्षमता भी हासिल कर रहा है. दक्षिण-पूर्व ईरान का बंदरगाही शहर चाबहार, जो अपने सुंदर समुद्री किनारों और "मार्टियन पहाड़ियों" के लिए प्रसिद्ध है, अब जल्द ही एक नई पहचान के साथ उभरेगा, ईरान के अंतरिक्ष अभियानों के केंद्र के रूप में. सरकार यहां एक नया स्पेसपोर्ट बना रही है, जिसे अमेरिका के केप केनावेरल की तरह राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा. उम्मीद है कि यह सुविधा वर्ष 2025 के अंत तक शुरू हो जाएगी. 2024 में ईरान ने "सिमोर्ग" नामक रॉकेट का सफल प्रक्षेपण किया था, जो उसकी अंतरिक्ष क्षमता में एक नया अध्याय था.
कमाई से ज़्यादा खर्च कर रहीं हैं कंपनियाँ : ‘ब्लूमबर्ग’ की रिपोर्ट है कि वॉल स्ट्रीट पर अब कॉर्पोरेट अमेरिका की तिमाही आय से ज़्यादा ध्यान उस पर है कि कंपनियां कितना खर्च कर रही हैं, यानी उनका कैपिटल एक्सपेंडिचर कितना है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अस्थिर टैरिफ नीति के बीच निवेशकों में यह जानने की उत्सुकता है कि कंपनियां अपने व्यवसायों में भविष्य के लिए कितना निवेश कर रही हैं, चाहे वह अचल संपत्तियों में हो या फिर भारी मशीनरी और अधोसंरचना में. विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुझान कंपनियों के आर्थिक दृष्टिकोण का संकेत देगा. रिपोर्ट के अनुसार, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू उपकरण, मशीनरी, पेट्रोलियम और रसायन जैसे क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियां सबसे कमजोर आय अपडेट पेश कर सकती हैं. निवेशकों को अब तिमाही लाभ से ज़्यादा दिलचस्पी इस बात में है कि कंपनियां अपने संसाधनों का उपयोग विकास के लिए कैसे कर रही हैं. यह रुझान अर्थव्यवस्था की दिशा और कारोबारी भरोसे का बड़ा संकेतक माना जा रहा है.
विश्लेषण
अनुराग के बयान से मसला ज्योतिबा से भटक गया
राकेश कायस्थ
मैं यह बात कई बार लिख चुका हूं और अक्सर दोहराता हूं कि भारतीयों का मूल सांचा एक है. एक आम भारतीय भावुक, अतार्किक प्रतिक्रियावादी, अपने मामले में बेहद टची और दूसरों के मामलों में असंवेदनशील है.
मावा एक है.. गोल कर दोगे तो लड्डू बनेगा और चपटा करोगे तो बर्फी बन जाएगी. हाइवे के किसी डाबे पर जो ग्रेवी चिकेन मसाला की होती है, उसी में पनीर के दो टुकड़े डाल देने से पनीर मसाला बन जाता है.
इसीलिए मैं कभी भी किसी व्यक्ति का आकलन इस आधार पर नहीं करता कि वो किस तरफ खड़ा है. उसने कौन-सी विचारधारा का झंडा पकड़ रखा है. ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि वह क्या कह रहा है और क्या कर रहा है.
संदर्भ फिल्म मेकर अनुराग कश्यप का ब्राहणों को लेकर दिया गया बयान है. मेरे लिए यह मान पाना कठिन है कि यह बयान किसी भी तरह उस हेट कैंपेन की भाषा से अलग है, जो इस समय इस देश में मुसलमानों को लेकर चल रहा है.
फिर अनुराग कश्यप किस आधार पर `प्रोग्रेसिव’ माने जा सकते हैं? हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जब लोगों ने ब्राहणों को रात-दिन गालियां देकर सोशल मीडिया पर अपनी पहचान बनाई.
सुधा भारद्वाज जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के जेल जाने पर खुशी का इजहार सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि वो ब्राहण हैं. रवीश कुमार के खिलाफ उनकी जाति को लेकर व्यवस्थित कैंपेन चलाये. कला जैसे क्षेत्रों से जुड़े लोगों को मरने के बाद भी ब्राहण होने के नाते लानतें भेजी गईं और ऐसे करने वाले कई लोग दो टके का सरकारी प्रोजेक्ट मिलने के बाद दुनिया को अपना गोत्र बताने लगे.
मैं यह नहीं कह रहा कि अनुराग कश्यप भी ऐसा ही करेंगे. लेकिन बदजुबानी उनकी शैली रही है और ऐसा करके उन्होंने बहुत से फैन भी बनाये हैं. नये-नये अंबेडकराइट बने कई सवर्ण लोगों को मैंने ऐसी भाषा इस्तेमाल करते देखा है. हो सकता है, इससे उन्हें सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा फॉलोअर मिल जाये, लेकिन अंतत; वह मुद्दा पीछे चला जाएगा जिसके साथ खड़े होने का वो दावा कर रहे हैं.
सेंसरशिप एक बहुत बड़ा मुद्दा है, जो भी व्यक्ति सरकार के साथ नहीं है, उसे हरेक स्तर पर अपनी बात कहने से रोका जा रहा है. बहुजन नायकों को हड़पकर उनका संघीकरण करना एक दूसरा बड़ा मुद्दा है.
ये दोनों सवाल अब पार्श्व में चले जाएंगे और अगले कई दिनों तक देश में सिर्फ ब्राहणों के अपमान का मुद्दा गूंजेगा. कम्युनिकेशन बिजनेस में अपनी जिंदगी बिता देने वाले अनुराग कश्यप क्या यह बात जानते नहीं थे कि इस तरह के बयान पर प्रतिक्रियाएं कैसी होंगी?
अगर यह बयान जानबूझकर दिया गया है तो इसका मतलब यह है कि अनुराग कश्यप को किसी मुद्दे से ज्यादा बड़ी चिंता सुर्खियां बटोरने की है. अगर यह बयान किसी रिएक्शन में या अनजाने में दिया गया है तो इसका मतलब यह है कि कश्यप गंभीर किस्म के भावनात्मक असंतुलन के शिकार हैं, जो समय-समय पर उनकी प्रतिक्रियाओं में दिखाई देता है.
ऐसा व्यक्ति समाज और राजनीति से जुड़े बड़े सवालो को आगे बढ़ाने में भला किस तरह मददगार हो सकता है? देश में इस समय लड़ाई असली मुद्दों पर संवाद बनाने और उन्हें डीरेल करने की है. हर व्यक्ति जो यह चाहता है कि बुनियादी सवालों पर बात हो उसे भावुक प्रतिक्रियाओं से बचना चाहिए.
चीन में पहली बार इंसानों के साथ दौड़े रोबोट

'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि बीजिंग के यीझुआंग हाफ मैराथन में शनिवार को पहली बार 21 ह्यूमनॉइड रोबोट्स ने हज़ारों इंसानों के साथ 21 किलोमीटर की दौड़ में हिस्सा लिया. इन रोबोट्स को ड्रोइडवीपी, नोएटिक्स रोबोटिक्स जैसी चीनी कंपनियों ने तैयार किया है. ड्रोइडवीपी और नोएटिक्स रोबोटिक्स दोनों ही चीन की प्रमुख रोबोटिक्स कंपनियाँ हैं, जो मानवाकार रोबोट विकसित करने में सक्रिय हैं. कुछ रोबोट्स की ऊंचाई 1.2 मीटर थी, तो कुछ 1.8 मीटर तक के थे. एक कंपनी ने दावा किया कि उसका रोबोट इतना मानवीय दिखता है कि वह आंख मार सकता है और मुस्कुरा भी सकता है. बीजिंग के अधिकारियों ने इसे मोटर रेसिंग जैसा बताया, क्योंकि इसमें इंजीनियरिंग और नेविगेशन टीमों का भी योगदान था.
ब्लूस्काई बचा पाएगा सोशल मीडिया को ज़हर से?
ट्विटर (अब X) और फेसबुक जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर उपयोगकर्ताओं का अनुभव अरबपतियों (जैसे एलन मस्क, मार्क जुकरबर्ग) की नीतियों से नियंत्रित होता है. इन प्लेटफ़ॉर्म्स पर नफ़रत, गलत सूचना, और विषाक्तता बढ़ी है, जिससे लोगों ने वैकल्पिक प्लेटफ़ॉर्म्स की तलाश शुरू की. ब्लूस्काई, जिसकी सीईओ जे ग्रेबर हैं, एक ..विकेंद्रीकृत सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है. यहाँ उपयोगकर्ताओं को अपने फ़ीड, कंटेंट मॉडरेशन, और एल्गोरिदम को कस्टमाइज़ करने की स्वतंत्रता है. इसकी बुनियाद एटी प्रोटोकॉल पर बनी है, जो एक ओपन-सोर्स तकनीक है, जिससे कोई भी नए ऐप्स या टूल्स बना सकता है. न्यू यॉर्कर ने ब्लू स्काई प्लेटफार्म और उसकी प्रमुख जे ग्रेबर के बारे में लंबा लेख लिखा है.
इलोन मस्क द्वारा ट्विटर खरीदने के बाद, वह प्लेटफॉर्म दक्षिणपंथी षड्यंत्र के सिद्धांतों का अड्डा बन गया, जिससे कई उदारवादी यूजर्स ने उसे छोड़ दिया. इसी तरह, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म भी अपने मालिकों (जैसे मार्क जुकरबर्ग) की नीतियों और एल्गोरिदम से नियंत्रित होते हैं. ये एल्गोरिदम अक्सर तय करते हैं कि यूजर क्या देखेगा, और कंटेंट मॉडरेशन (आपत्तिजनक सामग्री हटाना) के नियम भी कंपनी के हाथ में होते हैं. इस केंद्रीकृत मॉडल में, सारी ताकत कंपनी और उसके मालिक के पास होती है, यूजर के पास नहीं. इसे जे ग्रेबर "टेक सम्राट" का राज कहती हैं, जहां एक व्यक्ति अपनी मनमर्जी से पूरे प्लेटफॉर्म का अनुभव बदल सकता है. 2024 तक ब्लू स्काई के 3 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता बन गए. प्लेटफ़ॉर्म को अभी भी X (50 करोड़ उपयोगकर्ता) या थ्रेड्स जैसे विशाल प्लेटफ़ॉर्म्स से प्रतिस्पर्धा करनी है.
ब्लूस्काई इस समस्या का हल 'विकेंद्रीकरण' में देखता है. यह प्लेटफॉर्म एक 'एटी प्रोटोकॉल' नामक ओपन-सोर्स तकनीक पर बनाया गया है. ओपन-सोर्स का मतलब है कि यह तकनीक सबके लिए खुली है, कोई भी इसे देख सकता है, इस्तेमाल कर सकता है और इस पर कुछ बना सकता है. अभी तक ब्लू स्काई अलग है एक्स यानी ट्वविटर से.
ब्लूस्काई पर यूजर चुन सकते हैं कि वे अपनी फ़ीड में कंटेंट देखने के लिए कौन सा एल्गोरिदम इस्तेमाल करना चाहते हैं. वे दूसरों द्वारा बनाए गए कस्टम फ़ीड्स (जैसे सिर्फ विज्ञान, या सिर्फ कवक की तस्वीरें दिखाने वाले फ़ीड) चुन सकते हैं. वे कंटेंट मॉडरेशन के लिए भी अपने नियम बना सकते हैं या दूसरों द्वारा बनाए गए लेबलिंग सिस्टम (जैसे नस्लवाद को फ़िल्टर करने वाले) का उपयोग कर सकते हैं.
अगर किसी यूजर को ब्लूस्काई पसंद नहीं आता, तो वह अपने फॉलोअर्स, अपनी पहचान और अपने सारे पोस्ट्स का डेटा लेकर उसी एटी प्रोटोकॉल पर बने किसी दूसरे सोशल नेटवर्क पर जा सकता है. आपकी ऑनलाइन पहचान और रिश्ते किसी एक कंपनी की संपत्ति नहीं रह जाते.
कोई भी डेवलपर एटी प्रोटोकॉल का उपयोग करके अपना खुद का सोशल ऐप या टूल बना सकता है जो ब्लूस्काई के साथ काम करेगा. ब्लूस्काई की शुरुआत ट्विटर के अंदर ही एक प्रोजेक्ट के रूप में हुई थी, जिसे जैक डोर्सी का समर्थन प्राप्त था. लेकिन मस्क के ट्विटर खरीदने के बाद, ब्लूस्काई एक स्वतंत्र कंपनी बन गई. एक्स से निराश यूजर्स, खासकर उदारवादी और हाशिए पर मौजूद समूह (जैसे ट्रांस लोग, अश्वेत समुदाय), एक सुरक्षित और कम ज़हरीले माहौल की तलाश में ब्लूस्काई पर आने लगे. लेख के अनुसार (जो भविष्य की काल्पनिक तारीख पर आधारित है), डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा चुने जाने और मस्क को सरकारी पद मिलने के बाद ब्लूस्काई पर यूजर्स की बाढ़ आ गई, और इसके यूजर्स की संख्या 3 करोड़ से ज़्यादा हो गई.
जे ग्रेबर का लक्ष्य सिर्फ एक और सोशल मीडिया ऐप बनाना नहीं है, बल्कि एक ऐसा सिस्टम बनाना है जो टेक कंपनियों के एकाधिकार को तोड़े और ताकत यूजर्स को वापस दे. उनका नारा है "कंपनी भविष्य की दुश्मन है" - यानी सिस्टम को ऐसा बनाना कि अगर भविष्य में कंपनी का नेतृत्व बदल भी जाए, तो भी वह यूजर्स के हितों के खिलाफ काम न कर सके. हालांकि, ब्लूस्काई अभी भी एक्स या मेटा के थ्रेड्स से बहुत छोटा है. इसे पैसे कमाने के तरीके भी खोजने होंगे (वे विज्ञापन मॉडल से बचना चाहते हैं) और यह सुनिश्चित करना होगा कि अलग-अलग कस्टम समुदायों के कारण यह सिर्फ इको चैंबर बनकर न रह जाए.
चलते-चलते
एक नये रंग ओलो की खोज

वैज्ञानिकों ने एक ऐसे नए रंग की खोज का दावा किया है जिसे मानव आंखों ने पहले कभी नहीं देखा. यह नीले-हरे रंग का एक अत्यधिक संतृप्त शेड है, जिसे 'ओलो' नाम दिया गया है. इस अद्भुत खोज के पीछे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का समूह है. इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पांच प्रतिभागियों की आंखों में लेजर किरणें डालीं. प्रोफेसर रेन एनजी, जो स्वयं भी इस प्रयोग के प्रतिभागियों में से एक थे, ने बीबीसी रेडियो 4 को बताया, "ओलो वास्तविक दुनिया में देखे जाने वाले किसी भी रंग से अधिक संतृप्त है." उन्होंने इसकी तुलना हल्के गुलाबी रंग के उदाहरण से समझाई : "मान लीजिए आप पूरे जीवन में केवल हल्का गुलाबी, बेबी पिंक ही देखते हैं. फिर एक दिन आप कार्यालय जाते हैं और कोई एक शर्ट पहने हुए है, जो अब तक का सबसे तीव्र गुलाबी रंग है, और वे कहते हैं कि यह एक नया रंग है जिसे हम लाल कहते हैं." अध्ययन के दौरान, शोधकर्ताओं ने 'ओज़' नामक एक उपकरण का उपयोग किया, जिसमें दर्पण, लेजर और ऑप्टिकल डिवाइस शामिल हैं. इस उपकरण को पहले से ही कुछ शोधकर्ताओं द्वारा डिज़ाइन किया गया था और इस अध्ययन के लिए अपडेट किया गया था.
रेटिना आंख के पीछे का एक प्रकाश-संवेदनशील ऊतक है जो दृश्य जानकारी प्राप्त करने और संसाधित करने के लिए जिम्मेदार है. यह प्रकाश को विद्युत संकेतों में परिवर्तित करता है, जो फिर ऑप्टिक तंत्रिका के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचते हैं, जिससे हम देख पाते हैं. रेटिना में कोन कोशिकाएं होती हैं, जो रंग को महसूस करने के लिए जिम्मेदार होती हैं. आंख में तीन प्रकार की कोन कोशिकाएं होती हैं - एस, एल और एम - और प्रत्येक क्रमशः नीले, लाल और हरे रंग की अलग-अलग तरंगदैर्ध्य के प्रति संवेदनशील होती है.
शोध पत्र के अनुसार, सामान्य दृष्टि में, "कोई भी प्रकाश जो एम कोन कोशिका को उत्तेजित करता है, उसे अपने पड़ोसी एल और/या एस कोन को भी उत्तेजित करना चाहिए," क्योंकि इसका कार्य उनके साथ ओवरलैप करता है. हालांकि, अध्ययन में, लेजर ने केवल एम कोन को उत्तेजित किया, "जो सिद्धांत रूप में मस्तिष्क को एक ऐसा रंग संकेत भेजेगा, जो प्राकृतिक दृष्टि में कभी नहीं होता." इसका मतलब है कि विशिष्ट उत्तेजना की मदद के बिना ओलो रंग के व्यक्ति की नग्न आंख से वास्तविक दुनिया में नहीं देखा जा सकता. टीम इस खोज का अध्ययन कर रही है कि इसका संभावित रूप से रंगांध लोगों के लिए क्या मतलब हो सकता है, जिन्हें कुछ रंगों के बीच अंतर करने में कठिनाई होती है. यह खोज शुक्रवार को विज्ञान पत्रिका 'साइंस एडवांसेज' में प्रकाशित की गई थी और इसे अध्ययन के सह-लेखक, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रेन एनजी द्वारा "उल्लेखनीय" बताया गया है.
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