20/05/2025| फ़ैज़ गाना भी गुनाह | महमूदाबाद और विजय शाह में फर्क | रेणु भाटिया कौन | पाखंड का मास्टरस्ट्रोक | जयशंकर की चुप्पी | आतंकवाद नहीं जाएगा पाकिस्तान से | यूट्यूबर्स, स्ट्राइक और लाखों की डील
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
जस्टिस वर्मा के केस पर सुनवाई होगी
एमजे अकबर को हटाने की मांग
प्रतिनिधिमंडल में किसी को नहीं भेजेगी टीएमसी
संभल मस्जिद विवाद : हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण के खिलाफ मस्जिद समिति की याचिका खारिज की
एक और अकादमिक पर कार्रवाई, निताशा कौल का ओसीआई दर्जा रद्द
गुजरात के मंत्री का दूसरा बेटा भी गिरफ्तार
हरियाणा की ज्योति के बाद यूपी के शहजाद को पकड़ा
चीन ने वायु रक्षा प्रणाली ठीक रखने में पाकिस्तान की मदद की
भारत शरणार्थियों के लिए कोई 'धर्मशाला' नहीं
भारतीय मीडिया के वॉर कवरेज की चर्चा
पत्थरों पर उकेरे प्राचीन चित्रों को वापस लाने की कोशिश
फ़ैज़ को गाना भी गुनाह हुआ भारत में!
‘हम देखेंगे ’ गाने पर राजद्रोह, वैमनस्य बढ़ाने, उपद्रव के लिए उकसाने वाली धाराएं
नागपुर में मुकदमा दर्ज
देश में अब फ़ैज़ की नज़्म गाना भी गुनाह हो गया है. फ़ैज़ अहमद फैज़ की जिस क्रांतिकारी नज़्म को कभी प्रतिरोध की आवाज़ के रूप में सराहा जाता था, नागपुर में कुछ युवाओं ने गाई तो आयोजकों पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. यूट्यूब पर इस गाने की रिकार्डिंग यहां है और आप को भी हमारी तरह इस बेहतरीन गाने को इकबाल बानो की आवाज़ में सुन ही लेना चाहिए. पता नहीं कहीं इस पर कार्रवाई हो जाए. मजेदार बात ये है कि इस नज्म से कभी पाकिस्तान के निजाम को भी खतरा था. अब शायद इधर भी ऐसा लग रहा है.
‘द वायर’ में सुकन्या शांता की रिपोर्ट है कि पिछले हफ्ते अभिनेता और कार्यकर्ता वीरा साथीदार की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में युवाओं के एक समूह ने फैज़ की प्रसिद्ध नज़्म 'हम देखेंगे' गाई थी. लेकिन, नागपुर पुलिस ने आयोजकों और कार्यक्रम के वक्ता पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 (देशद्रोह से संबंधित), धारा 196 (समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाना) और धारा 353 (सार्वजनिक उपद्रव के लिए बयान) के तहत मामला दर्ज किया है.
साथीदार, जो एक अभिनेता, लेखक, पत्रकार और राजनीतिक विचारक थे, का 13 अप्रैल 2021 को कोविड-19 से निधन हो गया था. उनकी पत्नी पुष्पा साथीदार उनकी स्मृति में हर साल यह कार्यक्रम आयोजित करती हैं. इस वर्ष सामाजिक कार्यकर्ता उत्तम जागीरदार को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था. एफआईआर में किसी का नाम स्पष्ट रूप से नहीं है, लेकिन आयोजक और वक्ता का उल्लेख है.
इस कार्यक्रम में जागीरदार ने महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी बिल, 2024 की आलोचना की, जिसे बीजेपी सरकार कानून बनाना चाहती है. कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों का मानना है कि यह बिल लागू हुआ तो मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा और असहमति जताने वालों को ‘अर्बन नक्सल’ कहा जा सकेगा.
एफआईआर स्थानीय निवासी दत्तात्रय शिर्के की शिकायत पर दर्ज हुई, जिसमें उन्होंने एक मराठी चैनल की खबर का हवाला दिया. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि जब देश पाकिस्तानी सेना से लड़ रहा था, तब नागपुर में वामपंथी फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म गा रहे थे. उन्होंने नज़्म की पंक्ति ‘तख्त हिलाने की ज़रूरत है’ को सरकार के लिए सीधा खतरा बताया, जबकि असल पंक्ति ‘सब तख्त गिराए जाएंगे’ है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 से राजद्रोह कानून (124-ए आईपीसी) के तहत सभी लंबित मामलों पर रोक लगा रखी है, फिर भी नागपुर पुलिस ने नए कानून BNS की धारा 152 के तहत केस दर्ज किया है, जो पुराने देशद्रोह कानून जैसी ही है, बस शब्द 'देशद्रोह' का प्रयोग नहीं करती.
इस माह नागपुर पुलिस द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कार्रवाई का यह दूसरा मामला है. इससे पहले केरल के 26 वर्षीय पत्रकार रेज़ाज एम. शीबा सिदीक को दो नकली बंदूकों के साथ फोटो पोस्ट करने और भारतीय सेना का विरोध करने पर गिरफ्तार किया गया था.
महमूदाबाद मामले जैसी फुर्ती सरकार, पुलिस ने विजय शाह के मामले में नहीं दिखाई.. और अदालत ने भी.. पता है न क्यों? क्योंकि धर्मनिरपेक्ष भारत में सब बराबर हैं
अक्सर कहा जाता है- देश में कानून सबके लिए बराबर है. कानून की नजर में कोई बड़ा-छोटा, अमीर-गरीब, ऊंचा-नाटा, सगा-सौतेला या स्त्री-पुरुष नहीं होता. लेकिन, भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी से जुड़े दो बयानों पर राजसत्ता की प्रतिक्रिया एक जैसी नहीं रही है. एक व्यक्ति - पेशे से प्रोफेसर - को इसलिए गिरफ्तार कर लिया जाता है, क्योंकि वह कहता है कि दो महिला सैनिकों द्वारा अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने की छवि महत्वपूर्ण है, लेकिन छवि को जमीन पर वास्तविकता में बदलना होगा, अन्यथा यह सिर्फ पाखंड है." वहीं मध्यप्रदेश के विजय शाह सबकुछ कह देने के बावजूद मंत्री की कुर्सी पर बने हुए हैं. बीजेपी, जिसकी केंद्र और राज्य, दोनों जगह सरकारें हैं, ने शाह के खिलाफ अब तक कोई कदम नहीं उठाया है. जबकि, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः उनके बयान का संज्ञान लिया था और मुकदमा भी उसके आदेश पर दर्ज हुआ. हाईकोर्ट ने शाह के बयान की भाषा को गटर की संज्ञा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके खिलाफ तीखी टिप्पणियां की थीं. लेकिन, आज उसने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. जांच के लिए एक एसआईटी के गठन का आदेश दिया, हालांकि माफी देने से इनकार कर दिया. दूसरी ओर, अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को गिरफ्तार करने में गजब की फुर्ती दिखाई गई. एक फ़ेसबुक पोस्ट पर आनन-फानन में हरियाणा के महिला आयोग ने उन्हें समन जारी कर दिया और भाजपा के एक कार्यकर्ता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी. मुकदमा दर्ज हो गया और लगे हाथ गिरफ्तारी भी हो गई. हालांकि अब प्रोफेसर महमूदाबाद का मामला भी सबसे बड़ी अदालत के पास पहुंच गया है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ के समक्ष कहा, “प्रोफेसर के खिलाफ पूरी तरह देशभक्ति से भरे बयान के लिए कार्रवाई की गई है.” सिब्बल ने अदालत से आग्रह किया कि यदि संभव हो तो 21 मई को इस मामले को सुना जाए.
क्रमशः दोनों के बयान एक नज़र :-
प्रोफेसर महमूदाबाद : मैं बहुत खुश हूं कि इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं, लेकिन शायद वे उतनी ही जोर से यह भी मांग कर सकते हैं कि मॉब लिंचिंग, मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने और भाजपा की नफरत फैलाने वाली राजनीति के शिकार अन्य लोगों को भारतीय नागरिकों के रूप में संरक्षित किया जाए. दो महिला सैनिकों द्वारा अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने की छवि महत्वपूर्ण है, लेकिन छवि को जमीन पर वास्तविकता में बदलना होगा, अन्यथा यह सिर्फ पाखंड है."
विजय शाह : उन्होंने (आतंकियों ने) कपड़े उतार-उतार कर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा. अब मोदी जी कपड़े तो उतार नहीं सकते. इसलिए उनकी समाज की बहन को भेजा कि तुमने हमारी बहनों को विधवा किया है, तो तुम्हारे समाज की बहन आकर तुम्हें नंगा करके छोड़ेगी. देश का मान-सम्मान और हमारी बहनों के सुहाग का बदला तुम्हारी जाति, समाज की बहनों को पाकिस्तान भेजकर ले सकते हैं. मोदी जी ने कहा था कि घर में घुसकर मारूंगा. जमीन के अंदर कर दूंगा. आतंकवादी तीन मंजिला घर में बैठे थे. बड़े बम से छत उड़ाई, फिर बीच की छत उड़ाई और अंदर जाकर उनके परिवार की ऐसी की तैसी कर दी. यह 56 इंच का सीना वाला ही कर सकता है.
रेणु भाटिया आधे घंटे में 6 से ज्यादा बार पूछने पर भी बता नही पा रहीं कि महमूदाबाद के बयान में दिक्कत किस बात को लेकर है
जिन रेणु भाटिया ने महमूदाबाद को "देश-विरोधी" करार दिया और विश्वविद्यालय से उनकी बर्खास्तगी की मांग की, अब चर्चा में हैं. पर जब इस टीवी इंटरव्यू में रेणु भाटिया से एंकर ने बार-बार कागज़ों से पढ़कर कम से कम छह बार ये पूछा कि महमूदाबाद के बयान में आपत्तिजनक क्या है, तो वे यहां-वहां की बात करती, खांसती, आवाज न सुनाई देने की बात करती, टालती, बात को तोड़ते-मरोड़ते पाई गईं. पर रेणु भाटिया ये नहीं बता पाईं कि बात क्या है. वह सामने रखा हुआ कागज़ भी ठीक से नहीं पढ़ पा रही थी. और जो भी कोई उन्हें साइड से प्रोम्प्ट कर रहा था, अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा था. वे हकलाने लगी थी. उनकी बातें गड्डमड्ड होने लगी थी. और एंकर रेणु भाटिया को इस सवाल से बाहर निकलने नहीं दे रही थी. उनसे न अंग्रेजी बोलते बन रहा था, न हिंदी. फिर लीपापोती की दयनीय कोशिशें.
रेणु भाटिया इंडिया टुडे के इस शो मे इसी तरह की लग रही हैं जैसे उन्होंने ठान लिया है महमूदाबाद ने जो कहा है, वह गिरफ्तार करने ही लायक है. वे फंस गईं. और इससे हरियाणा सरकार, महिला आयोग, भारतीय जनता पार्टी, विक्रम मिसरी का भारत को लेकर दावा किसी की भी इज्जत नहीं बढ़ी. इस शो में भले वह बहुत सहूलियत में नहीं रहीं, पर पहले अपने बयानों के कारण वे विवादों में रही हैं.
आपको भी शायद लगे कि प्रोफेसर महमूदाबाद पर लगाए जा रहे आरोपों, और हरियाणा सरकार की उन पर की गई कार्रवाई का आधार कितना मजबूत या कमजोर है. आपको अंदाज़ा हो सकेगा कि रेणु भाटिया किस वैचारिक, सैद्धांतिक और सांस्कारिक गहराई से अपनी बात रख पा रही हैं. और उन कसौटियों पर खरी उतर रही हैं, जिनकी बुनियाद पर भाजपा, नायब सिंह सैनी और हरियाणा सरकार ने उन्हें हरियाणा की महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए रखा है. जब महमूदाबाद 14 मई को आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए, तो भाटिया ने अशोका विश्वविद्यालय का दौरा किया, और अंततः 18 मई को महमूदाबाद को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया गया. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की लंबे समय से सक्रिय सदस्य रेणु भाटिया का अध्यक्ष पद पर होना भी विवादित है. उन्हें 17 जनवरी 2022 को तीन साल के लिए नियुक्त किया गया था. एक्सटेंशन पर हैं, जिसे लेकर विवाद बताया जाता है. पार्टी और राज्य सरकार ने भाटिया की किन प्रतिभा और संभावनाओं को देखते हुए इस पद पर उन्हें रखा यह बहुत साफ नहीं है. वह खुद को स्किन थेरेपिस्ट के रूप में भी बताती हैं और एक लघु फिल्म में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो का किरदार निभाकर चर्चा में आई थीं. फरीदाबाद नगर निगम में डिप्टी मेयर के रूप में कार्य किया है और हरियाणा भाजपा में प्रवक्ता तथा महिला मोर्चा में प्रांतीय महासचिव और उपाध्यक्ष जैसे पदों पर अपनी सेवाएँ दी हैं. उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की है और आईटीईसी यूके से पोस्ट ग्रेजुएट है (जब गूगल किया तो यहां पर ब्यूटी केयर के कोर्स और फ्रेंचाइज वगैरह के लिंक थे).
2023 में भाटिया ने कहा था कि "लड़कियां ओयो होटल में हनुमान आरती करने नहीं जातीं," जिसके लिए उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा. बाद में उन्होंने हनुमान चालीसा के उल्लेख के लिए माफी मांगी, लेकिन अपने बयान पर अडिग रहीं. 2024 में रेणु भाटिया ने युवाओं को मोबाइल और अस्थायी प्रेम संबंधों से दूर रहने की सलाह दी और जींद एसपी के खिलाफ यौन शोषण मामले में कार्रवाई की बात कही. उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप कानून पर पुनर्विचार की वकालत की, यह कहते हुए कि यह महिलाओं के लिए अपमानजनक रहा है. उनकी बेनजीर भुट्टो जैसा बनकर बताने की कोशिश कर रही तस्वीर ये रही. शायद बिलावल को अपनी माँ की याद इसे देखकर आ जाए.
टिप्पणी
इस पाखंड का एक ही मास्टरस्ट्रोक है - दुनिया के लिए मुस्कुराओ, घर पर गुर्राओ!
प्रेम पणिक्कर
जब प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने फेसबुक पर ऑपरेशन सिंदूर पर मीडिया को ब्रीफ करने वाली महिला सैनिकों की छवि की प्रशंसा करते हुए, भाजपा की अल्पसंख्यक-विरोधी नफरत पर सवाल उठाया, तो राज्य ने उनके बिंदु को साबित कर दिया - उन्हें गिरफ्तार करके.
हरियाणा पुलिस ने प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद, एक इतिहासकार, कवि और अशोका विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख के दिल्ली वाले घर में घुसकर उन्हें गिरफ्तार किया. आरोप - संप्रभुता को खतरे में डालना, दुश्मनी को बढ़ावा देना - ऐसा शब्दजाल है, जिसकी आप एक ऐसे राज्य से उम्मीद कर सकते हैं, जो इतना असुरक्षित है, अपने दोमुंहे स्वभाव से इतना अवगत है कि वह अपने कामकाज पर पड़ने वाली हल्की सी आँच से भी नफरत करता है.
महमूदाबाद की पोस्ट उतनी ही ही राजद्रोही थीं, जितना कोई योग कैम्प या रिट्रीट. उन्होंने सेना की रणनीति को सराहा, कर्नल सोफिया कुरैशी जैसी महिला अधिकारियों को देश को ब्रीफ करने के लिए प्रशंसा की, लेकिन - हाय - इसी के साथ ये सुझाव भी दे दिया कि भारत को अपनी छवि को मॉब लिंचिंग के पीड़ितों के लिए वास्तविक न्याय के साथ जोड़ना चाहिए.
ओह, कितना भयानक! हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया, और एक भाजपा सरपंच, ने अपना आपा खो दिया; उनकी शिकायतों ने ऐसी एफआईआर दर्ज कराई, जिससे गिरफ्तारी हुई.
एफआईआर में महमूदाबाद पर भारतीय न्याय संहिता #152 (ऐसे कार्य जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालते हैं), #196 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और सद्भाव के रख-रखाव के लिए हानिकारक कार्य करना), #197 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आरोप, दावे), और #299 (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, जिनका उद्देश्य किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके आहत करना है) के तहत आरोप लगाए गए.
लेकिन एफआईआर वास्तव में जो चिल्ला रही हैं, वह है "हमें उनका नाम या उनका दिमाग पसंद नहीं है." एक ऐसे देश में जहां राजद्रोह "गद्दार" के लिए एक डॉग व्हिसल है, कांग्रेस ने जैसा नोट किया, महमूदाबाद की मुस्लिम पहचान उनका असली अपराध है. यह कानून प्रवर्तन से कम, बैज के साथ लिंचिंग मॉब अधिक है.
संदर्भ में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि मध्य प्रदेश के एक मंत्री ने कर्नल कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहा था, जिस पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा. मंत्री सुप्रीम कोर्ट में अपील में गए हैं, जो आज उनकी याचिका सुनने का समय निकालता है. कहा जाता है कि भाजपा ‘विकास पर नज़र’ रख रही है, यह देखने के लिए कि क्या वह अपने ही एक नेता द्वारा की गई घृणित बदनामी को सुरक्षित रूप से नजरअंदाज कर सकती है. (अपडेट : सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री की याचिका सुनी और स्पष्ट रूप से अप्रभावित है. ‘पूरा देश आपसे शर्मिंदा है,’ सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री को कहा. खैर, शायद ‘पूरा देश’ नहीं - शासक शासन ने निंदा में एक शब्द नहीं कहा है.)
वापस महमूदाबाद पर : सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार अभिव्यक्ति की आज़ादी का समर्थन किया है, विशेष रूप से श्रेया सिंघल (2015) में जहां उसने पुलिस को शांत रहने को कहा जब तक कि वास्तव में उकसावा न हो. तो सोनीपत के एक मजिस्ट्रेट लिंचिंग मॉब के साथ क्यों खेल रहा है, महमूदाबाद को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज रहा है? रिमांड का उद्देश्य क्या है? उनकी पोस्ट ऑनलाइन हैं, उनका पता कोई रहस्य नहीं है, और वे नार्निया भागने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. यह रिमांड न्यायिक कंधे उचकाने, एक त्याग, एक और न्यायिक "जो भी भाजपा चाहती है" क्षण के अलावा कुछ नहीं है, जो मजिस्ट्रेट के संविधान के प्रति वफादारी पर सवाल उठाता है.
फिर अशोका विश्वविद्यालय है, वह चमकदार लिबरल आर्ट्स पैलेस जहां सिद्धांत मरने जाते हैं. विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया? एक कमजोर ‘हम विवरण का पता लगा रहे हैं’ - जिसमें लगभग 60 सेकंड लगने चाहिए थे, वह समय जो आपको पोस्ट पढ़ने के लिए चाहिए.
फैकल्टी एसोसिएशन में इस गिरफ्तारी को ‘आधारहीन’ उत्पीड़न कहने की हिम्मत थी, लेकिन अशोका के बॉस अपनी डोनर लिस्ट को पॉलिश करने में बहुत व्यस्त हैं. यह कि विश्वविद्यालय की कायरता आश्चर्यजनक नहीं है - जैसा इंस्टाग्राम हैंडल चुरुमुरी इस पोस्ट में बताता है, विश्वविद्यालय के पास अपने संकाय और उन उदारवादी मूल्यों के लिए खड़े होने का एक लंबा इतिहास है, जिन्हें यह केवल अपने चमकदार ब्रोशर में व्यक्त करता है. एक ऐसी जगह के लिए जो अपने आप को हार्वर्ड के भारतीय जवाब के रूप में मार्केट करती है, अशोका ने बार-बार दिखाया है कि उसकी रीढ़ ज्यादा पकी हुई नूडल्स जितनी ही मजबूत है.
लेकिन यहां मुख्य बात है : भारतीय राज्य एक वैश्विक आकर्षण अभियान चलाने की प्रक्रिया में है, विभिन्न वैश्विक राजधानियों में टीमें भेज रहा है, ताकि दुनिया के सामने भारत का पक्ष पेश किया जा सके.
वह पक्ष क्या है? कि पाकिस्तान एक इस्लामिस्ट कट्टरपंथी राज्य है, जहां आतंक और दमन राज्य की नीति हैं, जबकि भारत एक परिपक्व लोकतंत्र है, जो बेमतलब संघर्षों में नहीं, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को सुपरचार्ज करने और अपने नागरिकों - सभी नागरिकों - के कल्याण को सुनिश्चित करने में रुचि रखता है. राजनयिकों को दुनिया को बताना होगा कि ऑपरेशन सिंदूर एकता का एक मास्टरक्लास है, हमारी सांस्कृतिक परंपराओं का प्रदर्शन है.
प्रतिनिधिमंडल हमारे देश से अभी निकले भी नहीं हैं; इस बीच, प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी की कहानी राष्ट्रीय और वैश्विक मीडिया में सुर्खियां बना रही है. इस पाखंड का एक मास्टरस्ट्रोक है - दुनिया के लिए मुस्कुराओ, घर पर गुर्राओ. सीपीआई (एम) और टीएमसी जैसे विपक्षी दल इसे देखते हैं, इस गिरफ्तारी में निहित कट्टरता को उजागर करते हैं - लेकिन सरकार परवाह नहीं करती. यह अपने लोकतंत्र के लाइफ सपोर्ट पर होने को देखे बिना सुपरपावर होने का दिखावा करने में बहुत व्यस्त है.
याद कीजिए कि विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने ऑपरेशन सिंदूर की एक ब्रीफिंग के दौरान क्या कहा था? उन्होंने कहा कि पहलगाम - जहां आतंकवादियों ने यह पता लगाने के बाद कि वे हिंदू हैं, पर्यटकों को मार डाला - भारत के भीतर सांप्रदायिक अशांति पैदा करने का प्रयास था. ऐसे प्रयास सफल नहीं होंगे, उन्होंने कहा.
लेकिन पाकिस्तान को परेशान क्यों होना चाहिए, जब सत्तारूढ़ दल और उसके साथी सांप्रदायिक अशांति पैदा करने का शानदार काम कर रहे हैं?
हालांकि यह सिर्फ महमूदाबाद के बारे में नहीं है. यह एक ऐसे राज्य के बारे में है, जो मजबूत दिखना चाहता है और प्रशंसा पाना चाहता है, लेकिन जो इतना नाजुक, इतना असुरक्षित है कि वह प्रोफेसरों और कवियों को जेल में डालता है, एक ऐसे विश्वविद्यालय के बारे में जो इतना कायर है कि वह अपनों को धोखा देता है, और एक ऐसी न्यायपालिका के बारे में जिसने अपना मूल कारण भुला दिया है.
निश्चित रूप से यह देश ऐसी तुच्छ तानाशाही (टिनपॉट टिरेनी) से बेहतर का हकदार है?
(लेखक क्रिकेट और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.)
पाकिस्तान को सूचित करने के बाद हमला करने वाले बयान पर राहुल ने फिर से पूछा
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमला तेज करते हुए सोमवार को एक बार फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर से यह सवाल दोहराया कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवादी ढांचे को निशाना बनाने की जानकारी पाकिस्तान को क्यों दी, और इस पर उनकी चुप्पी क्यों है?
‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए गांधी ने लिखा, ‘ईएएम जयशंकर की ‘पाकिस्तान को सूचना देने’ पर चुप्पी सिर्फ बताने वाली नहीं है - यह निंदनीय है. तो मैं फिर पूछूंगा : पाकिस्तान को पता होने के कारण हमने कितने भारतीय विमान खोए? यह कोई चूक नहीं थी. यह एक अपराध था. और देश को जानने का अधिकार है.”
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष गांधी जयशंकर के उस वीडियो क्लिप का हवाला दे रहे थे, जिसमें वे कहते हैं, ‘ऑपरेशन की शुरुआत में, हमने पाकिस्तान को संदेश भेजा था’.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाजपा को 'सिंदूर का सौदागर' कहा. उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री का एयर स्ट्राइक से पहले पाकिस्तान को जानकारी देना कोई गलती नहीं थी, बल्कि एक अपराध था, पाप था. देश को सच्चाई जानने का हक है.
इधर, राहुल के आरोपों पर विदेश मंत्रालय ने जवाब देते हुए कहा, 'विदेश मंत्री ने कहा था कि ऑपरेशन की शुरुआत में पाकिस्तान को चेतावनी दी थी. इसे अब ऐसे पेश किया जा रहा है, जैसे ऑपरेशन से पहले उन्हें जानकारी दी गई हो. तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. हम इसका विरोध करते हैं.'
जस्टिस वर्मा के केस पर सुनवाई होगी
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने सोमवार 19 मई को अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा से कहा कि हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा, जिनके आधिकारिक आवास में मार्च में आग लगने के बाद आधे जले हुए नोट मिले थे, के खिलाफ एफआईआर की मांग करने वाली उनकी याचिका को अदालत की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा, बशर्ते याचिका में दोषों को ठीक कर लिया जाए. मुख्य न्यायाधीश ने यह टिप्पणी तब की, जब निजी याचिकाकर्ता नेदुम्परा ने तत्काल सुनवाई की मांग की.
मुख्य न्यायाधीश गवई से पहले रहे सीजेआई संजीव खन्ना ने घटना की अंतिम जांच समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी थी, जब जस्टिस वर्मा ने स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होने या इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था.
एमजे अकबर को हटाने की मांग
7 मई 2025 को शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अंतरराष्ट्रीय जुड़ाव के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में एमजे अकबर को शामिल किए जाने का नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्लूएमआई) ने कड़ा विरोध किया है और उनका नाम प्रतिनिधिमंडल से वापस लेने की मांग की है. एमजे अकबर पर कई महिलाओं ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. इनमें से ज़्यादातर पत्रकार हैं. एनडब्लूएमआई ने कहा, “हमारा मानना है कि प्रतिनिधिमंडल में अकबर की मौजूदगी उन मूल्यों को कमज़ोर करती है, जिन्हें भारत विदेशों में पेश करना चाहता है.” पत्रकार हरिंदर बावेजा ने एक्स पर लिखा है, “ऑपरेशन सिंदूर को महिलाओं के सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए एक मिशन के रूप में पेश किया गया है. एमजे अकबर को इसमें शामिल करने से यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के बीच प्रतिगामी संदेश जाने का जोखिम है और लैंगिक न्याय के मुद्दों पर भारत की विश्वसनीयता को कम करता है. यह बहुत शर्मनाक है. वह #PriyaRamani केस हार गए थे.” ऑपरेशन सिंदूर को न केवल एक सैन्य प्रतिक्रिया के रूप में, बल्कि भारतीय महिलाओं की दृढ़ता के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में पेश किया गया था, क्योंकि पहलगाम आतंकी हमले में कई महिलाएं विधवा हो गई थीं. इस फ़्रेमिंग के आलोक में, यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोपों के इतिहास वाले एमजे अकबर जैसे व्यक्ति को प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने से लैंगिक न्याय के मुद्दों पर भारत की विश्वसनीयता को कम होगी. कई महिला पत्रकारों ने कहा कि वे पिछले कई सालों से एमजे अकबर के हिंसक व्यवहार, यौन उत्पीड़न और/या हमले का शिकार रही हैं. 2018 के आसपास भारत के #MeToo आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी बात रखी, जिसमें कम से कम 20 महिलाएँ उनके खिलाफ गवाही देने को तैयार थीं. ये आरोप विस्तृत हैं, और व्यापक रूप से रिपोर्ट किए गए और स्वीकार किए गए हैं. इसमें अकबर एक आरोप लगाने वाली के खिलाफ़ दायर मानहानि का मुकदमा हार गए. फरवरी 2021 में उस मामले में अदालत के फैसले को भारत में महिलाओं के अधिकारों और कार्यस्थल सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर माना गया.
प्रतिनिधिमंडल में किसी को नहीं भेजेगी टीएमसी
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने नरेंद्र मोदी सरकार को बताया है कि वह पाकिस्तान से पैदा हो रहे आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में वैश्विक समर्थन जुटाने के लिए केंद्र की घोषित बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों में यूसुफ पठान या किसी अन्य पार्टी के सांसद को नहीं भेजेगी. टीएमसी सांसद यूसुफ पठान को सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक के सदस्य के रूप में नामित किया है. पठान प्रतिनिधिमंडल में शामिल एकमात्र टीएमसी सदस्य हैं. सोमवार को कोलकाता एयरपोर्ट पर पत्रकारों से बात करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा, “केंद्र खुद से टीएमसी प्रतिनिधि का नाम तय नहीं कर सकती. अगर वे मातृ पार्टी से अनुरोध करते हैं, तो पार्टी नाम तय करेगी. यह प्रथागत है और यही व्यवस्था है. उन्होंने यह भी कहा, “हम विदेश नीति के मामले में पूरी तरह केंद्र के साथ हैं. आजकल, वे मातृ पार्टी को सूचित नहीं करते, केवल संसदीय दल को सूचित करते हैं. ममता ने कहा कि संसदीय दल केवल संसद सत्र के लिए काम करता है. वह नीतिगत निर्णय नहीं ले सकता. हमारे पास कोई अनुरोध नहीं आया.
ममता ने यह भी कहा, “हम पूरी तरह से देश के सर्वोत्तम हितों के पक्ष में हैं. यह कहना गलत है कि हम बहिष्कार कर रहे हैं या नहीं जा रहे हैं. उन्हें पार्टी को सूचित करने की जरूरत है."
संभल मस्जिद विवाद
हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण के खिलाफ मस्जिद समिति की याचिका खारिज की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें विवादित संभल मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया गया था. शाही जामा मस्जिद की प्रबंधन समिति ने मुकदमे और संभल अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था, जिसमें अधिवक्ता आयुक्त के माध्यम से सर्वेक्षण का निर्देश दिया गया था. वादी हरि शंकर जैन और सात अन्य ने संभल के सिविल जज सीनियर डिवीजन के समक्ष मुकदमा दायर किया, जिसमें कहा गया कि शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर ने 1526 में संभल में हरिहर मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया था. हाई कोर्ट ने पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी. मस्जिद समिति ने आरोप लगाया है कि मुकदमा 19 नवंबर, 2024 को दोपहर में दायर किया गया था और कुछ ही घंटों के भीतर, न्यायाधीश ने एक अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया और उसे मस्जिद में प्रारंभिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, जो उसी दिन और फिर 24 नवंबर, 2024 को किया गया. अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट 29 नवंबर तक उसके समक्ष दायर की जाए.
एक और अकादमिक पर कार्रवाई, निताशा कौल का ओसीआई दर्जा रद्द
ब्रिटिश शिक्षाविद निताशा कौल ने कहा है कि उनका ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) का दर्जा रद्द कर दिया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की ‘अल्पसंख्यक विरोधी और लोकतंत्र विरोधी नीतियों’ पर उनके विद्वत्तापूर्ण काम के कारण यह कार्रवाई की गई है. लंदन के वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में राजनीति, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन और आलोचनात्मक अंतःविषय अध्ययन की प्रोफेसर कौल ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय दमन का एक ‘दुर्भावनापूर्ण, प्रतिशोधी, क्रूर उदाहरण’ है. जन्म से कश्मीरी पंडित, लेखिका और शिक्षाविद ने ‘एक्स’ पर लिखा है कि केंद्र सरकार ने एक कथित संचार साझा कर उन पर ‘भारत विरोधी गतिविधियों’ में लिप्त होने का आरोप लगाया था, जिसके बारे में कहा गया था कि वे तथ्यों या इतिहास की अवहेलना से प्रेरित थे. “क्या भारत सरकार के विदेशी पीआर प्रतिनिधिमंडल बताएंगे कि ‘लोकतंत्र की माँ’ ने मुझे मेरी माँ से मिलने से क्यों रोका?” कौल ने एक ओर आतंकवाद पर अपना रुख बताने के लिए विदेश में बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के सरकार के फैसले और दूसरी ओर मोदी द्वारा भारत को लोकतंत्र की जननी कहने का जिक्र करते हुए पूछा.
यूट्यूबर्स, स्ट्राइक और लाखों की डील.. एएनआई का नया धंधा
सुमित (अनुरोध पर नाम बदला गया) के पास अपना यू ट्यूब चैनल बचाने के लिए सिर्फ़ सात दिन थे. ‘यू ट्यूब’ ने उन्हें सूचित किया था कि उनके कई वीडियो एएनआई द्वारा कॉपीराइट उल्लंघन के लिए फ्लैग किए गए हैं, क्योंकि उन्होंने एएनआई के विजुअल्स का इस्तेमाल किया था.
सुमित को एक साथ तीन से ज़्यादा कॉपीराइट स्ट्राइक मिल गईं. इन वीडियो को तुरंत ऑफ़ एयर कर दिया गया और “यू ट्यूब” ने उन्हें बताया कि उनका चैनल जल्द ही स्थायी रूप से डिलीट कर दिया जाएगा. “यू ट्यूब” तब किसी वीडियो को स्ट्राइक करता है जब उसे कॉपीराइट उल्लंघन की शिकायत मिलती है. तीन स्ट्राइक का मतलब है कि चैनल हमेशा के लिए बंद हो जाएगा. सुमित के पास इसे चुनौती देने के लिए सिर्फ़ सात दिन थे.
“द रिपोर्टर्स कलेक्टिव” के लिए आयुषी कर ने कॉपीराइट स्ट्राइक को लेकर “यू ट्यूब” क्रिएटर्स की तकलीफों और कॉपीराइट क्लेम्स के धंधे पर विस्तार से स्टोरी की है. अपनी इस लंबी रिपोर्ट में आयुषी ने बताया, “कई नौकरियां आज़माने के बाद, सुमित ने “यू ट्यूब” का रुख किया था, जहां वह भाजपा की आलोचना करने वाले राजनीतिक टिप्पणीकार के रूप में लोकप्रिय हुए. उनके सामने थी एएनआई, जो टीवी न्यूज़ और सोशल मीडिया क्रिएटर्स के लिए डेली वीडियो रिपोर्ट्स का मुख्य स्रोत बन चुकी है. सुमित ने बताया कि उन्होंने एएनआई से संपर्क किया. एएनआई ने उनसे कॉपीराइट पेनल्टी और लाइसेंस फीस के रूप में 15 से 18 लाख रुपये (वास्तविक राशि गोपनीयता के लिए नहीं बताई गई) मांगे, ताकि स्ट्राइक हटाई जा सके. सस्ते सौदे के लिए बार-बार अनुरोध करने के बावजूद एएनआई नहीं मानी.
सुमित ने कहा कि उन्होंने 'पूरी राशि' चुका दी, ताकि कॉपीराइट क्लेम सुलझ जाए और उनका चैनल बच जाए. इसके बदले एएनआई ने कॉपीराइट स्ट्राइक हटा दी और सुमित को अपने ऑडियो-विज़ुअल और लिखित न्यूज़ कंटेंट का एक साल के लिए एक्सेस दे दिया. सुमित अकेले नहीं हैं, जो एएनआई के आक्रामक कॉपीराइट क्लेम्स का सामना कर रहे हैं. एएनआई ने भारत में “यू ट्यूब” की कॉपीराइट पॉलिसी का सख्ती से इस्तेमाल करते हुए रेवेन्यू कमाने का नया तरीका अपनाया है. “यू ट्यूब” की पॉलिसी के 'डेथ क्लॉज' और भारत के अस्पष्ट 'फेयर यूज़' नियमों का फायदा उठाकर एएनआई “यू ट्यूब” क्रिएटर्स को महंगे सालाना लाइसेंस खरीदने के लिए मजबूर कर रही है.
एएनआई की रणनीति यह है कि वह यूट्यूबर्स के साथ महंगे लाइसेंसिंग सौदे पर बातचीत करती है, जिनमें कई भाजपा के आलोचक भी शामिल हैं, जबकि “यू ट्यूब” कई कॉपीराइट क्लेम्स के चलते क्रिएटर्स के चैनल पर तलवार लटकाए रखता है. सुमित के अलावा, “द कलेक्टिव” ने तीन और यूट्यूबर्स से बात की, जिन्होंने कॉपीराइट स्ट्राइक मिलने के बाद एएनआई के साथ डील साइन की है या प्रक्रिया में है. एएनआई ने इन यूट्यूबर्स से स्ट्राइक हटाने के लिए शुरू में 15 से 25 लाख रुपये तक की रकम बताई. इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार, कुछ मामलों में यह रकम 40 लाख रुपये तक भी गई. हालांकि एएनआई इसे कानूनी और उचित व्यापार मानती है, लेकिन इस घटना ने भारत में कॉपीराइट कानूनों और फेयर यूज़ अधिकारों को लेकर बड़ी चिंता खड़ी कर दी है. कई कंटेंट क्रिएटर्स को डर है कि कहीं “यू ट्यूब” की पॉलिसी और कॉपीराइट मालिकों की सख्ती के बीच उनकी सालों की मेहनत और रोज़गार ही न छिन जाए.
प्रसिद्ध पत्रकार रवीश कुमार ने भी चिंता जताई कि सिर्फ़ तीन स्ट्राइक पर चैनल बंद कर देना उचित नहीं है. उनका कहना है कि अगर किसी क्रिएटर से स्ट्राइक के नाम पर लाखों रुपये वसूले जा रहे हैं, तो यह उचित व्यापारिक प्रथा नहीं है. सज़ा का अनुपात उल्लंघन के अनुरूप होना चाहिए, और तीन उल्लंघन पर किसी की आजीविका और सालों की मेहनत छीन लेना सही नहीं है. यह संभवतः पहली बार है जब किसी बड़े न्यूज़ आउटलेट द्वारा न्यूज़ और राजनीतिक व्यंग्य के क्षेत्र में यूट्यूब क्रिएटर्स के खिलाफ़ बड़े पैमाने पर कॉपीराइट क्लेम्स लगाए गए हैं. एएनआई ने अपने बचाव में कहा कि वह अपने कॉपीराइट की रक्षा करना कानूनी अधिकार मानती है और यह जबरन वसूली नहीं, बल्कि संपत्ति की वैध सुरक्षा है. कोई भी चाहे तो कानूनी रास्ता अपना सकता है. “यू ट्यूब” का कहना है कि वह कॉपीराइट होल्डर्स और क्रिएटर्स दोनों के अधिकारों का संतुलन बनाने की कोशिश करता है, लेकिन वास्तव में “यू ट्यूब” पहले दावे को मान लेता है और फिर क्रिएटर पर छोड़ देता है कि वह क्लेम को चुनौती दे या दावेदार से समझौता करे. भारत में 'फेयर यूज़' की अस्पष्टता और “यू ट्यूब” की नीति से छोटे क्रिएटर्स के लिए कानूनी लड़ाई लड़ना मुश्किल हो जाता है, इसलिए ज़्यादातर मामलों में स्ट्राइक लगी ही रह जाती है.
मनरेगा घोटाला
गुजरात के मंत्री का दूसरा बेटा भी गिरफ्तार
“न खाऊंगा, न खाने दूंगा” का वादा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात के कृषि और पंचायत मंत्री बाछु भाई खाबड़ का दूसरा बेटा भी गिरफ्तार कर लिया गया है. वह फरार था. दाहोद पुलिस ने मनरेगा में 75 करोड़ रुपये के कथित घोटाले के सिलसिले में सोमवार को उसकी गिरफ्तारी की. इसी घोटाले में बड़े बेटे बलवंत सिंह खाबड़ को शनिवार को गिरफ्तार किया गया था. किरण खाबड़ के साथ पुलिस ने तीन अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया, जिनमें- रासिक राठवा, जो वर्तमान में दाहोद के उप जिला विकास अधिकारी (डीडीओ) हैं; दिलीप चौहान, पूर्व असिस्टेंट प्रोग्राम ऑफिसर (एपीओ); और प्रतीक बारिया, जो इस योजना में शामिल एक अन्य कर्मचारी हैं. इस मामले में अब तक कुल 10 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. हालांकि “जनरपट” के मुताबिक अब तक 11 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
पुलिस के अनुसार आरोपियों ने जनवरी 2021 से दिसंबर 2024 के बीच अनियमितताओं को अंजाम दिया. मंत्री के दोनों बेटों बलवंतसिंह खाबड़ और किरण पर आरोप है कि उनकी एजेंसियों ने कथित तौर पर धानपुर और देवगढ़ बारिया तालुकाओं के दूरदराज गांवों में मनरेगा सड़क परियोजनाओं के लिए कच्चा माल सप्लाई किया था. अधिकारियों का कहना है कि देवगढ़ बारिया में 28 अवैध एजेंसियों को उचित टेंडर प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए कुल 60.90 करोड़ रुपये के ठेके दिए गए. धनपुर में भी ऐसी सात एजेंसियों को 10.10 करोड़ रुपये के ठेके मिले. राज ट्रेडर्स और एनएल ट्रेडर्स, जिन्हें खाबड़ बंधु चलाते हैं, भी इनमें शामिल बताए जाते हैं.
जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण (डीआरडीए) के निदेशक बी. एम. पटेल की शिकायत पर 24 अप्रैल को दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि सामग्री आपूर्ति के लिए निविदा जीतने वाली कंपनियों को दरकिनार कर "प्रक्रिया को विकृत" करते हुए ठेके दिए गए और उन कंपनियों के बिल भी पास कर दिए गए, जिनकी परियोजनाएं केवल कागजों पर मौजूद थीं. देवगढ़ बारिया के कुवा गांव में स्थानीय निवासियों ने इन "अनियमितताओं" की जानकारी जिला प्रशासन को दी थी.
अपने दो बेटों की गिरफ्तारी के बावजूद इस मामले में अब तक बाछु भाई खाबड़ की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. वह ओबीसी के बड़े नेता हैं. सत्तारुढ़ भाजपा की तरफ से भी कोई खाबड़ के इस्तीफे या मंत्री पद से उनको रुखसत करने के बारे में संकेत नहीं हैं.
हरियाणा की ज्योति के बाद यूपी के शहजाद को पकड़ा
उत्तरप्रदेश में एक व्यक्ति को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंट के रूप में काम करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. आरोपी की पहचान रामपुर जिले के टांडा क्षेत्र के शहजाद के रूप में हुई है, जिसे रविवार को एसटीएफ की मुरादाबाद यूनिट ने हिरासत में लिया. उस पर आईएसआई के लिए सीमा पार तस्करी और जासूसी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है. अधिकारियों का आरोप है कि शहजाद ने कई बार पाकिस्तान की यात्रा की थी, जहां वह कॉस्मेटिक्स, कपड़े और मसालों जैसी वस्तुओं की तस्करी के बहाने गया था. उसने इन यात्राओं के दौरान कथित तौर पर आईएसआई के एजेंटों से संपर्क स्थापित किया और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारी साझा की.
पुलिस के अनुसार, शहजाद रामपुर और उत्तरप्रदेश के अन्य हिस्सों से लोगों की भर्ती में भी शामिल था, जिन्हें तस्करी के बहाने पाकिस्तान भेजा जाता था. वहां पहुंचने के बाद, आईएसआई हैंडलर उनके वीजा और यात्रा दस्तावेज़ों की व्यवस्था करते थे और उन्हें अपने नेटवर्क में शामिल कर लेते थे.
शहज़ाद की गिरफ्तारी पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में देशभर में चल रही कार्रवाई का हिस्सा है. दो दिन पहले शनिवार को हरियाणा की यूट्यूबर और ट्रैवल व्लॉगर ज्योति मल्होत्रा को भी जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
विश्लेषण | हुसैन हक्कानी
"भले ही पाकिस्तान आज इन आतंकवादी समूहों को बंद करने का फैसला कर ले फिर भी कुछ समूह ऐसे होंगे जो अभी भी वह काम करेंगे."
द वायर के लिए पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और कूटनीति विशेषज्ञ हुसैन हक्कानी का करण थापर के साथ 37 मिनट का साक्षात्कार विवादास्पद रहा और अंततः हक्कानी के बीच में ही छोड़कर जाने के साथ समाप्त हुआ. इस वार्तालाप ने भारत-पाकिस्तान संबंधों और आतंकवाद के मुद्दे पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की.
सैन्य कार्रवाई अप्रभावी और हानिकारक : हक्कानी ने पहलगाम हमले के बाद भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' की आलोचना करते हुए कहा कि ‘इस तरह के हमले रुकने वाले नहीं हैं’ और ये आतंकवादियों के संकल्प को बढ़ाएंगे. उनका तर्क था कि सैन्य प्रतिक्रिया रणनीतिक गलती है जो आतंकवाद को रोकने के बजाय भविष्य में हिंसा की संभावना बढ़ाती है.
भारत ने जल्दबाजी भरी कार्रवाई की : हक्कानी ने सुझाया कि पहलगाम हमले के बाद भारत ने ‘बंदूक चलाने में जल्दबाजी की’ - ठोस सबूतों के बिना पाकिस्तान पर आरोप लगाकर तुरंत सैन्य कार्रवाई शुरू की. उन्होंने 2008 के मुंबई हमलों का उदाहरण देते हुए कहा कि तब ठोस सबूतों (जैसे अजमल कसाब की गिरफ्तारी) ने पाकिस्तान पर ‘जबरदस्त दबाव’ डाला था. उनके अनुसार, भारत ने अगर सबूत इकट्ठा करने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को शामिल करने के लिए समय लिया होता, तो उसे अधिक समर्थन मिल सकता था. इसके बजाय, भारत की तेज़ सैन्य प्रतिक्रिया ने अंतरराष्ट्रीय चिंता को आतंकवाद से हटाकर संभावित परमाणु युद्ध की ओर मोड़ दिया.
बहुआयामी समाधान की आवश्यकता : हक्कानी ने दृढ़ता से तर्क दिया कि भले ही पूर्व प्रयास विफल रहे हों, आतंकवाद पर शांतिपूर्ण चर्चा ही सबसे प्रभावी समाधान है. उन्होंने ‘बहुआयामी दृष्टिकोण’ का आह्वान किया जो ज्यादा ‘खुफिया जानकारी आधारित’ हो, विशेष रूप से आतंकवादी व्यक्तियों को लक्षित करे और पूरे देश पर आरोप लगाने और हमला करने से बचे. उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच ‘इतिहास के छोटे स्नैपशॉट लेने’ और ‘धैर्य की कमी’ को ‘दक्षिण एशियाई बीमारी’ बताया. उनका सुझाव था कि ‘भावनाओं को कम करना होगा, बढ़ाना नहीं’, और दीर्घकालिक शांति के लिए संबंधों को फिर से स्थापित करने एवं आतंकवाद के मूल कारणों को संबोधित करने की आवश्यकता है.
पाकिस्तान के भीतर जटिलता और विवादास्पद बयान : साक्षात्कार का सबसे विवादास्पद क्षण तब आया, जब हक्कानी ने कहा: "भले ही पाकिस्तान आज इन समूहों को बंद करने का फैसला कर ले, फिर भी कुछ समूह ऐसे होंगे, जो अब भी काम करेंगे." उन्होंने तर्क दिया कि आतंकवाद का मुद्दा सिर्फ राज्य के समर्थन का मामला नहीं है, बल्कि इसमें ऐसे समूह भी शामिल हैं, जिन्होंने एक विचारधारा विकसित की है, जो पाकिस्तान को भी निशाना बनाती है. जब करण थापर ने पूछा कि क्या यह सुझाव नहीं देता कि पाकिस्तान एक 'असफल और लड़खड़ाता हुआ राज्य' है, तो हक्कानी ने आरोप लगाया कि थापर उनके शब्दों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं और साक्षात्कार छोड़ दिया.
चीन ने वायु रक्षा प्रणाली ठीक रखने में पाकिस्तान की मदद की
ब्लूमबर्ग के अनुसार, ऐसा दावा किया गया है कि चीन ने इस महीने की शुरुआत में भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराने से पहले पाकिस्तान को उपग्रहों को स्थानांतरित करने और अपनी वायु रक्षा प्रणालियों को फिर से व्यवस्थित करने में मदद की.
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर जॉइंट वारफेयर स्टडीज के महानिदेशक अशोक कुमार के अनुसार, दोनों देशों ने भारत द्वारा सैन्य तैनाती और हवाई गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए पाकिस्तान के रडार और वायु रक्षा प्रणालियों को पुनर्गठित करने के लिए मिलकर काम किया. उन्होंने कहा, "चीन ने पाकिस्तान को अपने वायु रक्षा रडार को फिर से तैनात करने में मदद की, ताकि भारत हवाई मार्ग से जो भी कार्रवाई करें, वह उन्हें पता हो.” कुमार, जिनका अनुसंधान समूह भारतीय रक्षा मंत्रालय के तहत काम करता है, ने कहा कि चीनी सैन्य सलाहकारों ने पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत पर अपने उपग्रह कवरेज को फिर से व्यवस्थित करने में पाकिस्तान की मदद की. इस बीच, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा है कि चीन ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति पहले ही स्पष्ट कर दी है. ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, माओ ने कहा, “हम भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ संचार बनाए रखने के लिए तैयार हैं, उन्हें एक स्थायी युद्धविराम प्राप्त करने के लिए शांत रहने और संयम बरतने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और संयुक्त रूप से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की रक्षा करते हैं.”
वाशिंगटन पोस्ट का कहना है कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीनी अधिकारियों के बीच बेचैनी दक्षिण एशिया में एक उभरती हुई छद्म सैन्य शक्ति के रूप में बीजिंग की नाजुक भूमिका को रेखांकित करती है.
भारत शरणार्थियों के लिए कोई 'धर्मशाला' नहीं
भारत दुनिया भर से आने वाले शरणार्थियों की मेजबानी करने वाली ‘धर्मशाला’ नहीं है, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक की हिरासत में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए मौखिक रूप से कहा. "क्या भारत दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करेगा? हम पहले ही 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं. यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम दुनिया भर के विदेशी नागरिकों का मनोरंजन कर सकें," जस्टिस दीपांकर दत्ता ने टिप्पणी की. जस्टिस के. विनोद चंद्रन के साथ बेंच मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA मामले में लगी 7 साल की सजा पूरी होने के तुरंत बाद भारत छोड़ देना चाहिए. याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि वह श्रीलंकाई तमिल है, जो वीजा पर यहां आया था और उसके देश में उसके जीवन को खतरा है. उन्होंने बताया कि बिना किसी निर्वासन प्रक्रिया के याचिकाकर्ता लगभग तीन साल से हिरासत में है. जब वकील ने बताया कि याचिकाकर्ता को अपने देश में जीवन का खतरा है, तो जस्टिस दत्ता ने कहा, "किसी अन्य देश में जाइए." हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन में हस्तक्षेप करने से भी इनकार कर दिया था.
भारतीय मीडिया के वॉर कवरेज की चर्चा
भारत-पाकिस्तान के बीच हाल के सैन्य टकराव के दौरान भारतीय मीडिया में कई गलत और अप्रमाणित खबरें प्रसारित की गईं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, युद्ध के चार दिनों के दौरान कई प्रतिष्ठित समाचार चैनलों ने राष्ट्रवादी जोश में बिना सत्यापन के ख़बरें दिखाईं. मीडिया ने दावा किया कि भारत ने पाकिस्तान के परमाणु अड्डे पर हमला किया, दो पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को मार गिराया और कराची बंदरगाह को निशाना बनाया. बाद में इन सभी दावों को गलत साबित किया गया. सोशल मीडिया पर तो झूठी खबरें थीं ही, लेकिन इस बार प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने भी इन्हें बिना जांच-पड़ताल के प्रसारित किया. इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई को गलत खबरों के लिए दर्शकों से माफी मांगनी पड़ी. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में मीडिया के स्वतंत्र माहौल में लगातार गिरावट आई है और कई बड़े समाचार चैनल सरकार की नीतियों को बढ़ावा देते हैं, जबकि कुछ छोटे स्वतंत्र ऑनलाइन पोर्टल्स अधिक जिम्मेदार पत्रकारिता का पालन करते हैं.
चलते-चलते
पत्थरों पर उकेरे प्राचीन चित्रों को वापस लाने की कोशिश
दक्षिण अफ्रीका के रहस्यमय पर्वतों में छिपी प्राचीन शिला चित्रकला को बचाने का एक अनोखा प्रयास चल रहा है. स्टीफन टाउनली बैसेट नामक कलाकार लगभग 10,000 वर्ष पुरानी इस कला को उन्हीं प्राचीन तकनीकों से पुनर्निर्मित कर रहे हैं जिनका उपयोग मूल शिकारी-संग्रहकर्ता सान लोगों ने किया था. 14 वर्ष की उम्र में एक गुफा में देखे गए लाल और पीले रंगों के अर्ध-मानव, अर्ध-पशु चित्रों से प्रभावित होकर बैसेट ने अपना जीवन इन चित्रों के संरक्षण को समर्पित कर दिया. 1998 में अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर, वे इन प्राचीन कलाकृतियों का मिलीमीटर-सटीक दस्तावेजीकरण करने लगे. "मैं किसी और की कला का डॉक्यूमेंटिस्ट हूँ," बैसेट कहते हैं. "मैं केवल प्रतिलिपि नहीं बनाना चाहता, बल्कि ऐसी सटीक कृतियाँ बनाना चाहता हूँ जिन्हें शोधकर्ता संदर्भ सामग्री के रूप में उपयोग कर सकें."
सीएनएन के मुताबिक सब-सहारा अफ्रीका में सान लोगों द्वारा बनाई गई शिला कला हजारों वर्षों से मौजूद है, केवल सीडरबर्ग पर्वतों में ही 7,000 से अधिक स्थलों पर. ये चित्र केवल सजावट नहीं थे – इनके पीछे आध्यात्मिक महत्व था. शमन अपनी आत्म-विस्मृत अवस्था में देखे गए दृश्यों को इन चित्रों के माध्यम से समुदाय के साथ साझा करते थे.
बैसेट प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करते हैं – अंडे, रक्त, पशु मज्जा वसा जैसे बाइंडिंग एजेंट, और रंगों के लिए ओकर मिट्टी, कोयला और काओलिन. उन्होंने नरकट शाफ्ट और जमीनी गिलहरी के बालों से बने ब्रश भी विकसित किए हैं. प्राकृतिक क्षरण और मानव हस्तक्षेप से इस अमूल्य धरोहर को खतरा है. दक्षिणी अफ्रीका के ठाबाथानी त्साका जैसे पर्यटन उद्यमी और बैसेट जैसे कलाकार जागरूकता बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं. "जब आप शिला कला स्थल पर होते हैं, तो यह चर्च में होने जैसा है," त्साका कहते हैं. "ये चित्र हमारे जीवन के लिए समृद्ध अर्थ रखते हैं क्योंकि ये हमारे पूर्वज हैं." नेल्सन मंडेला ने एक बार शिला कला को "संपूर्ण मानवता की साझी विरासत" कहा था. इस विरासत के संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है.
Rock art made by the San in Sub-Saharan Africa stretches back thousands of years. But whether through time or human defacement, some historic art is under threat. CNN
पाठकों से अपील-
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.
कहानी को चश्मे की एक ही नज़र से क्यों देखा जाय, सीधे सीधे मोदी विरोधी गतिविधियां ही रिपोर्ट/कहानी की शक्ल में आखिर क्यों, रिपोर्ट के लिए रिपोर्ट लग रहा है यह तो सभी लिख रहे हैं ,जो तथ्यों की गहराई में नहीं है ,अंतिम रिपोर्ट बढ़िया है ,अंतिम सवाल/बात (राहुल प्रधान मंत्री होते तो क्या यही परिदृश्य होता आतंकवाद के संदर्भ में )