20/07/2025 : ट्रम्प ने कहा 5 जेट गिरे | महाराष्ट्र के कुरैशी गोरक्षकों से तंग | नौकरियां बिहार का चुनावी मुद्दा | मोदी के बाद क्या होगा, राम माधव की किताब | डोभाल की उम्र | ललन, मटन, सावन और भाजपा
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
24वीं बार भारत पाकिस्तान में सीज़फायर के दावे के साथ ट्रम्प ने कहा कि ‘ 5 जेट गिरे’
पहलगाम, ट्रम्प से लेकर बिहार की मतदाता सूची समेत आठ मुद्दे उठाएगा विपक्ष
गौरक्षकों की हिंसा से परेशान महाराष्ट्र के कुरैशियों ने मांस का कारोबार छोड़ने का एलान किया
नौकरियां बनीं सियासी जंग का केंद्र, नीतीश बनाम तेजस्वी की जोरदार टक्कर
ललन सिंह की "मटन पार्टी" और भाजपा का डबल स्टैंडर्ड
सुप्रीम कोर्ट में 22 जुलाई को राष्ट्रपति द्वारा की गई रेफरेंस पर सुनवाई
क्रिस्टोफ जैफ़रलो | मोदी युग के बाद की तैयारी
पुरी में 15 साल की नाबालिग लड़की को पेट्रोल डाल आग लगाई
ओडिशा के बाद ग्रेटर नोएडा में शिक्षकों से तंग छात्रा ने आत्महत्या की
जवान के साथ कांवड़ियों की हिंसा पर सवाल
आदित्य सिन्हा | मोदी के लिए अनिवार्य हैं बूढ़े डोभाल?
आजमगढ़ अस्पताल में ऑक्सीजन मास्क लगाए मरीज के फर्श पर बैठने से हंगामा
"मेरे साथ सिर्फ सोना चाहते थे, शादी नहीं!"
भारत छोड़ रहे करोड़पति: वेल्थ क्रिएटर्स का पलायन क्यों?
भारत की शिक्षा प्रणाली | एक मृत घाटी
गाजा में पहली बार परीक्षा दे रहे छात्र: युद्ध के बीच उम्मीद की मिसाल
टेस्ला की भारत में शुरुआत: क्या यह सफल होगी?
सेक्स टॉयज के साथ फ़ोटो खिंचवाकर प्रतिरोध जताने की मुहिम
24वीं बार भारत पाकिस्तान में सीज़फायर के दावे के साथ ट्रम्प ने कहा कि ‘ 5 जेट गिरे’
डोनाल्ड ट्रम्प के दावों और खुलासों के कारण नरेंद्र मोदी सरकार घिरती नज़र आ रही है. पाकिस्तान के साथ ऑपरेशन सिंदूर के बाद संघर्ष में हुए नुक़सान को लेकर शनिवार को वह फिर ट्रम्प के एक खुलासे के कारण घिर गई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि चार दिनों में पांच जेट को मार गिराया गया था. ट्रम्प के इस खुलासे पर विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने तुरंत लिखा, "मोदी जी, 5 जेट्स की सच्चाई क्या है? देश जानने का हक़ रखता है."
दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को कहा कि पहलगाम में इस्लामी आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष के दौरान पांच जेट विमान गिरे थे. “रायटर्स” के अनुसार, ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में कुछ रिपब्लिकन अमेरिकी सांसदों के साथ डिनर के दौरान यह टिप्पणी की, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि वे किस पक्ष (भारत या पाकिस्तान) के जेट विमानों की बात कर रहे थे. “असल में, विमान हवा में गिराए जा रहे थे. पांच, पांच, चार या पांच, लेकिन मुझे लगता है असल में पांच जेट मार गिराए गए,” ट्रम्प ने कहा. इतना ही नहीं, 24वीं बार भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष रुकवाने का दावा भी किया.
याद रहे, पाकिस्तान का दावा था कि उसने हवाई युद्ध में पांच भारतीय विमानों को गिराया. भारत के सर्वोच्च सैन्य अधिकारी ‘सीडीएस’ ने भी मई के अंत में कहा था कि संघर्ष के पहले दिन हवा में नुकसान झेलने के बाद भारत ने अपनी रणनीति बदली और युद्धविराम से पहले बढ़त बना ली थी. भारत ने भी दावा किया था कि उसने पाकिस्तान के “कुछ विमान” गिराए हैं. लेकिन, इस्लामाबाद ने अपने किसी भी विमान को खोने से इनकार करते हुए यह स्वीकार किया था कि उसके एयरबेस पर हमले हुए थे.
इस बीच ट्रम्प के दावों पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार से तीन सवाल किए हैं. पहला- क्या ट्रम्प ने वाकई संघर्ष विराम रुकवाया, जिसका वे 24 बार जिक्र कर चुके हैं. दूसरा- क्या ट्रम्प ने व्यापार की धमकी देकर जंग रुकवाई, तीसरा- जंग में 5 जेट विमान किसके गिरे?
कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा कि संसद का सत्र शुरू होने वाला है, प्रधानमंत्री को अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए. हमें कोई सब्स्टीट्यूट बल्लेबाज नहीं चाहिए. केवल प्रधानमंत्री को ही जवाब देना होगा. पीएम मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प की लंबे समय से दोस्ती रही है. फिर चाहे सितंबर 2019 में हाउडी मोदी और फरवरी 2020 में नमस्ते ट्रम्प का आयोजन हो, दोनों का गले मिलने का रिश्ता रहा है. अब पीएम मोदी को संसद में खुद बयान देना होगा.
कांग्रेस सांसद माणिक्कम टैगोर ने सवाल किया कि सरकार को “स्पष्टीकरण जारी करने” से कौन सी चीज़ रोक रही है और क्या वह “सच बताने से डरती है” कि भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता की समाप्ति कैसे हुई?
कांग्रेस सांसद माणिक्कम टैगोर ने सवाल किया कि सरकार को “स्पष्टीकरण जारी करने” से कौन सी चीज़ रोक रही है और क्या वह “सच बताने से डरती है” कि भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता की समाप्ति कैसे हुई?
दिलचस्प यह है कि ट्रम्प ने भले ही यह साफ़ न किया हो की पांच जेट में से कितने भारतीय और कितने पाकिस्तानी थे, लेकिन तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने दावा किया कि भारत ने कम से कम एक राफेल खोया है. “प्रत्येक राफेल विमान करदाताओं के 250 मिलियन डॉलर से खरीदा गया था. हमें पता है कि कम से कम 1 गिराया गया,” मोइत्रा ने पोस्ट किया. “अब @POTUS (अमेरिकी राष्ट्रपति) कहते हैं कि कुल 5 जेट (सभी राफेल नहीं) नीचे गिराए गए. क्या भारत को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद कोई ब्रीफिंग नहीं मिलनी चाहिए?”
पहलगाम, ट्रम्प से लेकर बिहार की मतदाता सूची समेत आठ मुद्दे उठाएगा विपक्ष
संसद का मानसून सत्र शुरू होने से पहले शनिवार को इंडिया गठबंधन के दलों के नेताओं ने एक ऑनलाइन बैठक की और आठ मुख्य मुद्दों पर चर्चा करने का फैसला किया, जिनमें शामिल हैं- पहलगाम आतंकी हमले के दोषियों को अभी तक पकड़ा नहीं गया है, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बार-बार किए गए दावे कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान 'सीज़फायर' करवाया, बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर), जिस पर विपक्ष का आरोप है कि यह जनता के मतदान अधिकारों के लिए खतरा है. इसके अलावा, विदेश नीति में विफलता, गाज़ा में अत्याचार, देश में डिलिमिटेशन (सीमा पुनर्निर्धारण) की प्रक्रिया और एससी/एसटी, महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों को "निशाना" बनाए जाने जैसे मुद्दे शामिल हैं.
कांग्रेस के राज्यसभा में उप नेता प्रमोद तिवारी ने मीडिया को बताया कि विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि प्रधानमंत्री संसद में मौजूद रहें और इन जरूरी मसलों पर जवाब दें. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान-भारत संघर्ष पर ट्रम्प के दावे और बिहार के मतदाता सूची विवाद समेत इन सभी विषयों पर सरकार से चर्चा और जवाबदेही माँगी जाएगी.
हेट क्राइम
गौरक्षकों की हिंसा से परेशान महाराष्ट्र के कुरैशियों ने मांस का कारोबार छोड़ने का एलान किया
'द वायर' के लिए सुकन्या शांता की रिपोर्ट है कि पिछले एक महीने से ज़्यादा समय से महाराष्ट्र भर में मुस्लिम क़ुरैशी समुदाय के कसाई एक अनोखे विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं. बीते एक दशक में कथित ‘गौ रक्षकों’ द्वारा हिंसक हमलों का सामना करने के बाद, इस समुदाय ने भैंस या अन्य मवेशियों के मांस का कारोबार अनिश्चितकाल के लिए बंद करने का फ़ैसला किया है. यह फ़ैसला मजबूरी में लिया गया है, भले ही यह उनकी आजीविका को सीधा प्रभावित करता है. माना जा रहा है कि पहली बार इस तरह का संगठित और व्यापक विरोध समुदाय के भीतर से देखने को मिला है.
कानून में बदलाव के बाद हालात बदतर : क़ुरैशी समुदाय के लोगों का कहना है कि उनकी हालत 1976 के महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम में मार्च 2015 में हुए संशोधन के बाद और बिगड़ गई. यह संशोधन तब लागू हुआ जब राज्य और केंद्र दोनों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई. संशोधित कानून में गाय वंश के पशुओं — बैल, बछड़े, बैलदों और गायों — के वध पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया. इस बदलाव के बाद ‘गौ रक्षा’ के नाम पर हिंदुत्व से जुड़े लोगों द्वारा की जाने वाली हिंसा में भारी इज़ाफा हुआ.
"लगभग हर कोई हमले का शिकार हो चुका है" : बेबस और निशाना बनाए गए क़ुरैशी समुदाय, जो कि एक हाशिए पर पड़ा मुस्लिम समुदाय है — ने ‘क़ुरैशी जमात’ के बैनर तले महाराष्ट्र के ज़िलों और तहसीलों में बैठकें की हैं, ताकि समुदाय के लोगों को इस पेशे को पूरी तरह छोड़ने के लिए तैयार किया जा सके. नांदेड़ में क़ुरैशी जमात के प्रमुख अज़ीज़ क़ुरैशी कहते हैं, “हमारी हालत पहले से ही बेहद खराब है. हमें यह कदम उठाना पड़ा है, ताकि सरकार को इसका असर दिखाया जा सके — न सिर्फ़ हमारे ऊपर बल्कि राज्य के किसानों पर भी.”
‘बहिष्कार आंदोलन’ नागपुर से शुरू हुआ : यह बहिष्कार आंदोलन नागपुर से शुरू हुआ और धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैल गया. लगभग हर दिन किसी न किसी ज़िले में इस मुद्दे को लेकर बैठकें और कार्यक्रम हो रहे हैं. समुदाय के लोग इस आर्थिक झटके से उबरने के रास्तों पर भी विचार कर रहे हैं. इस सप्ताह की शुरुआत में नांदेड़ में कई कसाई ज़िला मुख्यालय पर इकट्ठा हुए. अज़ीज़ का दावा है, “लगभग हर किसी को या तो गिरफ़्तार किया गया है, परेशान किया गया है या फिर हिंसक हमले का सामना करना पड़ा है.” वे कहते हैं कि ये हमले तब भी जारी रहे जब नांदेड़ के कसाई पहले ही गोमांस का व्यापार बंद कर चुके थे. “भैंसों पर तो प्रतिबंध नहीं है, लेकिन हमलावरों को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. उनके लिए इतना काफ़ी है कि कोई मुस्लिम मांस का कारोबार कर रहा है — और वे हमला कर देते हैं.” एक कसाई, जिसे पिछले साल बुरी तरह पीटा गया था, का कहना है कि पुलिस ने उसकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया, जबकि हमले के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे.
कानूनी जटिलताएं और पुलिस की मिलीभगत : संशोधित कानून के तहत भैंस का वध कुछ शर्तों पर ही किया जा सकता है. किसी भैंस को वध के लिए भेजने से पहले पशु चिकित्सक से यह प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य है कि वह भैंस दूध देने के लायक नहीं है और गर्भवती नहीं है. तभी उसे बूचड़खाने में भेजा जा सकता है.
किसान जो अपने खेत जोतने और दूध उत्पादन के लिए पशुओं पर निर्भर रहते हैं, वे बूढ़े पशुओं को बेचकर नए पशु खरीदते हैं — इसमें वे क़ुरैशी कसाइयों पर निर्भर होते हैं. अब जब क़ुरैशी समुदाय ने एकमत होकर यह पेशा छोड़ने का निर्णय लिया है, तो इसका सबसे ज़्यादा असर उन किसानों पर पड़ेगा, जिनके पास सीमित ज़मीन है और जो अधिकांशतः बहुजन समुदाय से आते हैं. महाराष्ट्र में किसान आत्महत्याओं की दर पहले ही बहुत अधिक है — सरकारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ़ जनवरी से मार्च 2025 के बीच 767 किसानों ने आत्महत्या की है.
कई लोगों का आरोप है कि सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से तालुका स्तर पर वधशालाएं बंद कर दी हैं और मुस्लिम बहुल इलाकों में पशु चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं की जा रही है. अज़ीज़ बताते हैं कि नांदेड़ ज़िले में पिछले 10 वर्षों से किसी भी तालुका स्तर पर पशु चिकित्सक की नियुक्ति नहीं हुई है — केवल ज़िला मुख्यालय में एक इकाई काम कर रही है. “जब न तो प्रमाण पत्र मिल रहा हो और न ही वैध वधशालाएं हों, तो कई कसाइयों को मजबूरन अपने घरों में ही वध करना पड़ता है.” — एक स्थानीय नेता बताते हैं. घर में मवेशी काटना अवैध है और मराठवाड़ा के कई हिस्सों में इस आधार पर सैकड़ों एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं.
बिहार
नौकरियां बनीं सियासी जंग का केंद्र, नीतीश बनाम तेजस्वी की जोरदार टक्कर
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले नौकरियां और प्रवास का मुद्दा सियासी मैदान का मुख्य गीत बन गया है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि उनकी सरकार बनने पर कोई बिहारी नौकरी के लिए राज्य से बाहर नहीं जाएगा, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के 12 लाख सरकारी नौकरियों के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए 2025-2030 तक 1 करोड़ और नौकरियां देने का वादा किया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस भी इस मुद्दे पर पीछे नहीं हैं, जिससे बिहार की राजनीति में नौकरियां और रोजगार इस बार अभूतपूर्व रूप से केंद्र में हैं.
तेजस्वी का 'रोजगार क्रांति' का नारा : मार्च 2024 में पटना के गांधी मैदान में जन विश्वास महारैली में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी और प्रवास को आरजेडी के अभियान का मूल बनाया. उन्होंने कहा, "बीजेपी झूठ की फैक्ट्री है, आरजेडी अधिकार, नौकरी और विकास के लिए खड़ा है." आरजेडी ने 10 लाख सरकारी नौकरियों, बेरोजगारी भत्ता, युवा आयोग और बिहारियों के लिए 100% डोमिसाइल नीति का वादा किया है.
तेजस्वी ने दावा किया कि उनकी 17 महीने की सरकार में 5 लाख नौकरियां दी गईं, जो एनडीए के 17 साल के शासन से ज्यादा है. उनकी रणनीति स्पष्ट है: बिहार की बेरोजगारी और प्रवास संकट को एनडीए की "कुशासन" का परिणाम बताकर आरजेडी को युवाओं की उम्मीद के रूप में पेश करना. तेजस्वी ने कहा, "20 महीने दीजिए, हम वह करेंगे जो एनडीए 20 साल में नहीं कर सका."
नीतीश का जवाब: 1 करोड़ नौकरियों का वादा : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी के हमले का जवाब नीतिगत उपायों और रोजगार अभियानों से दिया है. उन्होंने 13 जुलाई को दावा किया कि 2005-2020 में उनकी सरकार ने 8 लाख सरकारी नौकरियां दीं, और 2020-2025 तक 12 लाख सरकारी नौकरियां और 38 लाख अन्य रोजगार के अवसर दिए जाएंगे.
नीतीश ने 2025-2030 तक 1 करोड़ नौकरियों का लक्ष्य रखा, जिसमें निजी क्षेत्र, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों में अवसर शामिल हैं. इसके लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की जा रही है। साथ ही, जननायक कर्पूरी ठाकुर स्किल यूनिवर्सिटी की स्थापना और CM-PRAATYAY योजना (1 लाख इंटर्न्स को 4,000-6,000 रुपये स्टाइपेंड) जैसे कदमों से युवाओं को सशक्त करने की कोशिश की जा रही है. नीतीश ने महिलाओं के लिए सभी सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण की भी घोषणा की.
बीजेपी और कांग्रेस की रणनीति : बीजेपी ने एनडीए की उपलब्धियों पर जोर देते हुए आरजेडी के वादों को "पॉपुलिस्ट जुमला" करार दिया. उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश की सरकार ने पहले ही 10 लाख नौकरियां दी हैं और 2025 तक लक्ष्य पूरा होगा. दूसरी ओर, कांग्रेस ने "नौकरी दो या सत्ता छोड़ो" यात्रा के जरिए 5 लाख रिक्तियों और समान काम के लिए समान वेतन की मांग उठाई. राहुल गांधी और कन्हैया कुमार ने बेरोजगारी को असमानता और जातिगत अन्याय से जोड़ा. कन्हैया की "पलायन रोको-नौकरी दो" यात्रा ने भी युवाओं में जोश भरा.
कुल मिलाकर बिहार में नौकरियां और प्रवास का मुद्दा 2025 के चुनाव में अभूतपूर्व रूप से हावी है. तेजस्वी की युवा-केंद्रित रणनीति और नीतीश की अनुभवी नीतियां एक-दूसरे को टक्कर दे रही हैं. बीजेपी और कांग्रेस भी इस जंग में कूद पड़े हैं, लेकिन युवाओं की नजर में तेजस्वी की लोकप्रियता (C-Voter सर्वे में 35.5%) और नीतीश की विश्वसनीयता (15%) के बीच मुकाबला कांटे का है. यह देखना बाकी है कि कौन इस "नौकरी गीत" को वोटों में बदल पाता है.
ललन सिंह की "मटन पार्टी" और भाजपा का डबल स्टैंडर्ड
जहां बिहार में इन दिनों चुनावी मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया और हाल के सप्ताहों में हुईं हत्याओं के चलते कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर सियासत गर्म है, वहीं ताजा विवाद की वजह बना है केंद्रीय मंत्री और जद (यू) नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह द्वारा आयोजित एक लंच, जिसमें मटन (बकरे का मांस) परोसा गया था. इस कार्यक्रम ने भोजन, धर्म और राजनीति को लेकर बहस छेड़ दी है. विपक्षी दलों ने इसे श्रावण के पवित्र माह में “दोहरा मापदंड” करार दिया है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में हिमांशु हर्ष के अनुसार, बुधवार को, लखीसराय ज़िले के सुरजगढ़ा में विभिन्न सरकारी परियोजनाओं का शिलान्यास करने के बाद केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री अशोक चौधरी ने वहां आए लोगों के लिए बहुव्यंजन भोज का आयोजन किया. मेन्यू में शाकाहारी विकल्पों के साथ-साथ मांसाहारी व्यंजन, जिसमें मटन भी शामिल था, परोसा गया.
इस कार्यक्रम के एक वीडियो में ललन सिंह मंच से कहते सुने गए: “भोजन बना हुआ है, बढ़िया भोजन है, सावन का भी इंतज़ाम है… सावन वाला भी भोजन है और जो सावन माह को नहीं मानते हैं उनके लिए भी भोजन है.” इस घटना पर जबरदस्त सियासी बवाल मचा हुआ है और विपक्ष ‘दोहरा मापदंड’ बताते हुए भाजपा व जदयू पर सवाल उठा रहा है.
एनडीए और केंद्रीय मंत्री को निशाना बनाते हुए राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, “यह डबल स्टैंडर्ड का क्लासिक उदाहरण है. ये वही लोग हैं, जिन्होंने सावन के दौरान लालू और राहुल गांधी की खाने की पसंद पर सवाल उठाए थे, अब खुद मटन पार्टी कर रहे हैं. जब तेजस्वी यादव की मछली वाली फोटो या राहुल गांधी की लालू जी के साथ भोजन करते तस्वीरें वायरल हुई थीं, तब काफी हंगामा मचा था. अब प्रधानमंत्री और एनडीए नेताओं को इसका जवाब देना चाहिए.”
तिवारी ने उस राजनीतिक विवाद का जिक्र किया, जो दो साल पहले तब हुआ था जब राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने चंपारण मटन पकाकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को खिलाया था. यह अगस्त 2023 में सावन के दौरान लालू की बेटी मीसा भारती के दिल्ली निवास पर फिल्माया गया था और इसका वीडियो राहुल गांधी के सोशल मीडिया चैनल्स पर साझा किया गया था. पिछले साल, राजद नेता तेजस्वी यादव का नवरात्रि के दौरान मछली खाते वीडियो भी वायरल हुआ था, जिस पर भाजपा नेताओं ने उन्हें निशाना बनाया. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई भाजपा नेताओं ने विपक्षी नेताओं पर “सावन और नवरात्रि में मांसाहारी भोजन कर धार्मिक भावनाओं को आहत करने” का आरोप लगाया था.
सुप्रीम कोर्ट में 22 जुलाई को राष्ट्रपति द्वारा की गई रेफरेंस पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट 22 जुलाई को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा की गई उस रेफरेंस पर सुनवाई करेगा, जो राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की मंज़ूरी के लिए समयसीमा तय करने संबंधी शीर्ष अदालत के फैसले के बाद भेजा गया है. संविधान बेंच, जिसमें सीजेआई बी. आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदूरकर होंगे, इस मसले की सुनवाई करेगी.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले पर 14 सवाल रखे हैं. राष्ट्रपति ने जानना चाहा है कि क्या राज्यपालों और राष्ट्रपति के कार्य न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं और क्या संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था न होते हुए भी उन पर समयसीमा थोपी जा सकती है.
किताब
क्रिस्टोफ जैफ़रलो | मोदी युग के बाद की तैयारी
फ्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक, समाजशास्त्री और भारत-विज्ञ क्रिस्टोफ़ जैफ़रलो ने राम माधव की किताब “द न्यू वर्ल्ड: 21st सेंचुरी ग्लोबल ऑर्डर एंड इंडिया” की समीक्षा की है. उन्होंने लिखा है कि यह किताब केवल हिंदुत्व का वैश्वीकरण नहीं करती, बल्कि एक प्रकार की आत्मचिंतनात्मक समीक्षा भी है, जहां विचारधारा, वैश्विक कूटनीति, और व्यावहारिक उपलब्धियों के बीच की खाई उजागर होती है. यह किताब शायद उस युग का शिलान्यास करती है जो “मोदी युग” के बाद आएगा.
मोदी की नीतियों की आलोचना अगर किसी प्रमुख हिंदुत्ववादी नेता की ओर से आए, तो यह अभूतपूर्व है. लेकिन राम माधव की नई किताब में व्यक्त विचारों को उनकी भूमिका के संदर्भ में आत्मालोचना भी माना जा सकता है.
राम माधव जो भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े वरिष्ठ नेता हैं, उनकी नई किताब “द न्यू वर्ल्ड: 21st सेंचुरी ग्लोबल ऑर्डर एंड इंडिया” तीन स्तरों पर पढ़ी जा सकती है.
पहले हिस्से में वे मानव इतिहास की एक सामान्य सी कहानी सुनाते हैं, जो वर्णनात्मक है और यहां उसकी चर्चा नहीं की गई है. लेकिन दूसरे हिस्से में जब वे भारत पर बात करते हैं, तो अपने दृष्टिकोण को काफी दिलचस्प ढंग से सामने रखते हैं. वे भारत के "महाशक्ति" बनने की संभावनाओं पर संशय जताते हैं, सरकारी नीतियों की अप्रत्यक्ष आलोचना करते हैं, और पहली बार किसी संघ-नेता द्वारा कांग्रेस की विरासत को आंशिक रूप से पुनर्स्थापित करने का प्रयास करते हैं.
हिंदुत्व और “नेशनल कंज़र्वेटिविज़्म” : राम माधव को आज हिंदू राष्ट्रवाद के "ऑर्गेनिक इंटेलेक्चुअल" के रूप में देखा जाता है. लेकिन किताब में न तो सावरकर का ज़िक्र है, न ही संघ या इसके सहयोगी संगठनों का. उनका प्रयास हिंदुत्व को “नेशनल कंज़र्वेटिविज़्म” के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में एक संस्करण के रूप में पेश करने का है, एक ऐसी विचारधारा जो दुनिया भर में लोकप्रिय हो रही है.
वे दावा करते हैं कि “हिंदू और यूनानी सभ्यताओं” ने ईसा पूर्व में नैतिक व्यवस्था की नींव रखी. उसी दौरान “हिंदुओं ने वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों के ज़रिए एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की”. वे भारत को पहले सहस्त्राब्दी में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बताते हैं, यह अनदेखा करते हुए कि भारत की आर्थिक समृद्धि मुग़ल काल में चरम पर थी. लेकिन उनके लिए इस पतन का कारण है: “पहले मुग़लों और मध्य एशियाई आक्रमणकारियों द्वारा उपनिवेशवाद और फिर अंग्रेजों द्वारा 800 साल तक किया गया शोषण”.
सेमेटिक धर्मों के खिलाफ वैचारिक आक्रोश : माधव के अनुसार, भारत की प्राचीन समृद्धि का कारण “हिंदू धर्म की सहिष्णुता” है, जबकि इस्लाम और ईसाइयत ने दुनिया को “धर्मकेंद्रित तानाशाही में धकेल दिया”, एक ऐसी व्यवस्था जिसमें “धर्म के विरोध में कुछ भी नहीं टिक पाया”. यह कथन उस विरोधाभास को दर्शाता है कि हिंदुत्व में “धर्म” की बात तो होती है, लेकिन हिंदू को एक जातीय पहचान के रूप में देखा जाता है, जो कि “आर्य पूर्वजों” की संतान हैं और भारत “पुण्यभूमि” है. इस दृष्टिकोण की तुलना यहूदियों की ज़ायोनिस्ट पहचान से की जा सकती है.
भारत का कूटनीतिक स्वप्न और विरोधाभास : राम माधव भारत को “ब्रांड भारत” के रूप में वैश्विक मंच पर पेश करने की बात करते हैं और कहते हैं कि “सॉफ्ट पावर का युग बीत गया है, अब स्मार्ट पावर का समय है”. लेकिन वे यह भी स्वीकार करते हैं कि इस दिशा में प्रगति बहुत सीमित रही है. वे भारत के संभावित साझेदारों की परिभाषा “साझा दुश्मनों” के आधार पर करते हैं - जैसे “लिबरल्स”, “कल्चरल मार्क्सिस्ट्स”, “इस्लामिस्ट्स”, “वोक एक्टिविस्ट्स” और NGOs. जॉर्ज सोरोस का ज़िक्र डर के प्रतीक के रूप में आता है, जिसे किसान आंदोलन और अदानी विवाद जैसे मुद्दों से जोड़ कर देखा जाता है.
'धर्मतंत्र' का विचार और सामाजिक संरचना का समर्थन : माधव के अनुसार भारत को “धर्मतंत्र” (Dharmocracy) की ओर बढ़ना चाहिए— “डेमोक्रेसी, द भारत वे”. इसका अर्थ है कि सत्ता जनता को जवाबदेह नहीं बल्कि धर्म को होगी - जैसा कि ब्राह्मण राजगुरु करते थे. यह एक प्रकार की हिंदू थिओक्रेसी की वकालत है. इतना ही नहीं, वे जाति व्यवस्था को भी भारत की “विविधता” के अंग के रूप में वैध ठहराते हैं: “भारत की जातीय, भाषायी और धार्मिक विविधता उसे रंग-बिरंगी और उत्सवधर्मी बनाती है”. मुसलमानों के साथ भेदभाव की बात को नकारते हुए वे जनसंख्या वृद्धि (7.81%) को अल्पसंख्यकों की "सुविधा" का प्रमाण मानते हैं, जो एक सतही और भ्रामक सामाजिक विश्लेषण है.
प्रगतिशीलता पर संदेह और आत्मालोचना
किताब का दूसरा हिस्सा, जो भारत की विदेश नीति, रक्षा, और तकनीकी विकास पर केंद्रित है, चौंकाने वाली ईमानदारी से भरा है. मोदी सरकार की उपलब्धियों के संदर्भ में माधव सिर्फ प्रतीकों की बात करते हैं - जैसे सेंगोल का संसद में स्थापना करना, जबकि तकनीकी, आर्थिक और सैन्य क्षेत्रों में गंभीर कमियां गिनाते हैं.
वे कहते हैं कि भारत में:
“रिसर्च और इनोवेशन की संस्कृति नहीं है.”
“इंजीनियर्स की बजाय 'इमैजिनियर्स' चाहिए.”
“प्रतिलिपि करना नवाचार नहीं है, और नकल करना रचनात्मकता नहीं है.”
वे भारत की शिक्षा, R&D, क्वांटम टेक्नोलॉजी, रक्षा उत्पादन (जैसे तेजस लड़ाकू विमान), और नौसेना की कमजोरियों की गंभीर आलोचना करते हैं.
राम माधव की किताब का शायद सबसे चौंकाने वाला पक्ष है - कांग्रेस नेताओं की बार-बार की गई तारीफ:
नेहरू की नेपाल और श्रीलंका में कूटनीति की प्रशंसा
इंदिरा गांधी द्वारा बांग्लादेश की स्वतंत्रता में योगदान
नरसिंह राव की लुक ईस्ट नीति
मनमोहन सिंह की Indian Ocean Naval Symposium पहल
यह आंशिक स्वीकृति बताती है कि मोदी सरकार की विदेश नीति ने अब तक जो हासिल किया है, वह बेहद सीमित है.
'ब्रांड भारत' का स्वप्न और यथार्थ के बीच द्वंद्व : राम माधव अंततः स्वीकारते हैं कि भारत की “डेमोग्राफिक डिविडेंड” एक भ्रम बन सकती है, अगर स्किलिंग, इनोवेशन, और रोजगार के क्षेत्र में निर्णायक हस्तक्षेप न किया जाए. वे लाल बहादुर शास्त्री को उद्धृत करते हैं - “हम तभी दुनिया का सम्मान प्राप्त कर सकते हैं जब हम आंतरिक रूप से मजबूत हों और गरीबी-बेरोजगारी को दूर करें.” यह शायद यह संकेत है कि भाजपा को पहचान की राजनीति से ऊपर उठकर सामाजिक-आर्थिक समावेशन की ओर बढ़ना चाहिए.
पुरी में 15 साल की नाबालिग लड़की को पेट्रोल डाल आग लगाई
ओडिशा के पुरी में शनिवार को 15 साल की नाबालिग लड़की को तीन लोगों ने पेट्रोल डालकर आग लगा दी. पीड़िता को गंभीर हालत में एम्स भुवनेश्वर में भर्ती कराया गया है. उसकी हालत गंभीर बनी हुई है. घटना पुरी जिले के बायाबर गांव में उस वक्त हुई जब पीड़ित लड़की अपने दोस्त के घर जा रही थी. तीन हमलावरों ने उसे रास्ते में रोका और पेट्रोल डालकर आग लगा दी. तीनों आरोपी फरार हैं.छात्रा को आग क्यों लगाई, अभी तक इसकी कोई वजह सामने नहीं आई है. इससे पहले, 12 जुलाई को ओडिशा के बालासोर के फकीर मोहन कॉलेज में छात्रा के साथ यौन प्रताड़ना का मामला सामने आया था. जिसके बाद छात्रा ने खुद पर केरोसिन छिड़क लिया था और प्रिंसिपल ऑफिस के बाहर खुद को आग लगा ली थी. 14 जुलाई को इलाज के दौरान छात्रा की मौत हो गई थी.
ओडिशा के बाद ग्रेटर नोएडा में शिक्षकों से तंग छात्रा ने आत्महत्या की
इधर, उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा के एक निजी विश्वविद्यालय की छात्रा ने शिक्षकों द्वारा 'उत्पीड़न' का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली. पीड़िता, शारदा विश्वविद्यालय में बीडीएस की छात्रा थी. उसने एक सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें अपनी मौत के लिए अपने विभाग के दो शिक्षकों को जिम्मेदार ठहराया. इस मामले में दो शिक्षकों को निलंबित कर दिया गया है और विश्वविद्यालय ने जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति गठित की है. पुलिस ने दोनों शिक्षकों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है.
जवान के साथ कांवड़ियों की हिंसा पर सवाल
मशहूर कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य ने अपने एक्स अकाउंट (@satishacharya) पर एक व्यंग्यात्मक ट्वीट के जरिए उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान हुई हिंसा पर तंज कसा है. उन्होंने कांवडियों के द्वारा एक सैनिकल की पिटाई के वीडियो को जारी करते हुए, कैप्शन लिखा - "जय जवान! क्या/कौन देता है उन्हें इतना 'साहस'?" यह ट्वीट तेजी से वायरल हो गया. हाल ही में उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान कुछ कांवड़ियों द्वारा हिंसक व्यवहार की खबरें सामने आई हैं. एक अन्य एक्स पोस्ट (@PERFECTIONISTLJ) में दावा किया गया कि कांवड़ियों ने एक सैनिक पर हमला किया, जिसके बाद यह सवाल उठा कि जो लोग चुनावों के दौरान "जय जवान" का नारा लगाते हैं, वे अब उसी सैनिक पर हमला क्यों कर रहे हैं. इस पोस्ट में इसे "आस्था नहीं, उन्माद" करार दिया गया.
बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर रेलवे स्टेशन पर कांवडियों के गुस्से का शिकार हुआ सैनिक ड्यूटी पर मणिपुर लौट रहा था. इसी दौरान 50 वर्षीय सीआरपीएफ जवान गौतम पर सात कांवड़ियों ने हमला कर दिया. इसमें चार नाबालिग भी शामिल थे. जवान के बेटे की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई. पुलिस ने सभी आरोपियों को व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा किया, क्योंकि मामला गैर-संज्ञेय था. आरोपियों ने दावा किया कि जवान ने पहले गाली दी थी.
विश्लेषण
आदित्य सिन्हा | मोदी के लिए अनिवार्य हैं बूढ़े डोभाल?
फ्रंटलाइन में प्रकाशित अपने लेख में, लेखक आदित्य सिन्हा ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के आईआईटी मद्रास में दिए गए भाषण को आधार बनाकर उनकी बढ़ती उम्र और कथित विफलताओं पर सवाल उठाया है. लेख में इस बात पर विचार किया गया है कि क्या डोभाल की जगह लेने के लिए कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं है, जिसके कारण प्रधानमंत्री उन्हें सेवानिवृत्त नहीं कर रहे हैं.
आईआईटी मद्रास में, "अजीत डोभाल का हालिया 'मन-का-विचरण' चिंताजनक रूप से असंगत था और इसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 80 वर्षीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) को रिटायर क्यों नहीं कर देते. जाहिर है, पुराने जमाने के राजाओं की तरह मोदी को किसी और पर भरोसा नहीं है. अगर आपको यकीन नहीं है तो वीडियो देखिए या ट्रांसक्रिप्ट पढ़ लीजिए. कोई फर्क नहीं पड़ता अगर वह मार्गदर्शक मंडल में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य लोगों के साथ बस आराम कर रहे होते. लेकिन वह आराम नहीं कर रहे. वह जिम्मेदारी की सीट पर हैं और इस “अत्यंत केंद्रीकृत” सरकार में निस्संदेह नंबर 3 हैं.
कभी अपनी नई अनुभव आधारित सोच के लिए प्रशंसित डोभाल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने असहाय नज़र आते हैं, जिन्होंने बीते 60 दिनों में 21 बार भारत-पाकिस्तान के बीच 7 से 10 मई की सैन्य मुठभेड़ को खत्म कराने का श्रेय खुद को दिया है. सही है, ट्रम्प वाकई चुनौतीपूर्ण हैं. फिर भी, हाल के दिनों में भारत, पाकिस्तान की तुलना में — जिसने ट्रम्प को नोबेल प्राइज के लिए नामांकित कर इस दुनिया के ताकतवर नेता की अनंत कृपा पा ली— ठगा-सा, हेडलाइट में फंसे हिरण जैसा दिख रहा है. यह एक लाइव नीति मुद्दा है और भारत के एनएसए का पूरा ध्यान मांगता है. फिर भी इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के गलियारों में, जहां डोभाल ने अपना करियर बनाया, वहां अधिकारी खुलेआम अपने पूर्व निदेशक की बौद्धिक क्षमता में गिरावट की चर्चा करते हैं.
डोभाल ने जून 2020 में गलवान घाटी की घटना, जब भारतीय सैनिक लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों से टकराए थे, के बाद सरकार को 5जी नेटवर्क संचार के घरेलू विकल्प खोजने की सलाह देने का श्रेय आईआईटी के निदेशक वी. कमकोटि को दिया. हालांकि, डोभाल ने ‘चीन’ का संदिग्ध रूप से उल्लेख नहीं किया. यह समझना पड़ा कि चीन इसमें शामिल था और उसने हमें हराया.
डोभाल चीन के साथ सीमा वार्ता में विशेष प्रतिनिधि हैं, जहां वह जीवन भर की चालाकियों के बावजूद चीनी पक्ष को स्थिति से हटने पर मजबूर नहीं कर सके हैं. इसके बावजूद कि, आईबी और इसके बाहरी समकक्ष, अनुसंधान और विश्लेषण विंग (रॉ), डोभाल को रिपोर्ट करते हैं. वह उन्हें उत्तरी अमेरिका में 'काउबॉय मिशनों' पर भेजते हैं, शायद 1980 और 1990 के दशक के अपने भूतों को खत्म करने के लिए. तार्किक रूप से, उन्हें पहले ही सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए था. खासकर, पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा यह याद दिलाने के कारण कि 75 वर्ष की आयु में आराम करने का समय होता है. डोभाल की सेवानिवृत्ति को लेकर बीच-बीच में अफवाहें उठती रहती हैं, संभवतः उन्होंने स्वयं ऐसा कदम रोकने के लिए फैलाई हैं. उनको लेकर अस्थिर घुटनों जैसी विकलांगताओं की भी अफवाहें हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ती अन्य बीमारियों का संकेत देती हैं.
डोभाल के उत्तराधिकारी के चयन में जटिलता है, क्योंकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर की यह इच्छा है कि यह पद एक पूर्व राजनयिक को ही मिले—जैसे पहले एनएसए ब्रजेश मिश्रा या डोभाल के पूर्ववर्ती शिव शंकर मेनन. अफवाह है कि पसंदीदा उम्मीदवार उप-एनएसए और पूर्व रॉ प्रमुख राजिंदर खन्ना हो सकते हैं. दुर्भाग्य से, खन्ना, डोभाल जितने चतुर नहीं हैं, इसलिए शायद 'श्री धोखा ऑपरेशन' ने यह अफवाह खुद फैलाई है.
कोई यह भी मान सकता है कि डोभाल इतने असाधारण रूप से कुशल हैं कि उनकी जगह कोई नहीं ले सकता. लेकिन यह कुशलता 22 अप्रैल के पहलगाम हमले के आतंकवादियों को पकड़ने में अब तक नाकाम रही है, वही हमला जिसके कारण हुए सैन्य टकराव और उसके समाधान का श्रेय ट्रम्प बार-बार खुद को देते हैं. या, अगर पहलगाम हमले के दोषियों को पकड़ने के लिए अभी समय चाहिए, तो 1993 मुंबई धमाकों के कथित मास्टरमाइंड दाउद इब्राहिम का क्या, जो कहा जाता है कि पाकिस्तान में मेहमान बनकर रह रहा है?
क्या ये असफलताएं इस बात का संकेत हैं कि इंटरनेट पर डोभाल की प्रशंसा में चल रही चर्चाएं, यू ट्यूब वीडियो और फेसबुक फैन पेज, जो उन्हें आधुनिक नेताजी पालकर (शिवाजी के विश्वासपात्र सेनापति) बताते हैं, असल में सिर्फ फैन फिक्शन हैं? लेकिन चलिए, उन्हें संदेह का लाभ देते हैं. हर योद्धा उम्र के साथ सुस्त हो जाता है (अगर वह हर रात टीवी न्यूज़ रूपी यौवन जल नहीं पीता), और डोभाल भी आखिर इंसान हैं. शायद सरकार को उनका कोई ठीक-ठाक विकल्प मिल ही नहीं रहा.
इस हफ्ते, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर भेजा गया—यह स्पष्ट है कि वह शायद 'शून्य' तो नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी नहीं बनने वाले. पीएम मोदी के अधीन रहे अन्य योग्य पूर्व विदेश सचिव या खुफिया प्रमुख हल्की श्रेणी के हैं—अपने काम में सक्षम, लेकिन जोश की कमी है.
डोभाल चाहें तो चुपचाप अपना काम जारी रखते, भले ही आईबी के गलियारों में खिल्ली उड़ती रहे, लेकिन उन्होंने चेन्नई जाकर गलती कर दी. आईआईटी में दिया गया भाषण उस व्यक्ति का था जो भाषा और यादों की धुंध में खो गया हो, जिसे कुछ तथ्य और आंकड़े दिए गए थे, जिन्हें उन्होंने पढ़कर सुनाया, लेकिन फिर विषय से भटकते हुए उपवाक्यों, अधूरे वाक्यांशों और निरर्थक तुकबंदी के जंगल में चले गए.
डोभाल ने फोटॉन (“क्वांटम कंप्यूटिंग क्लासिकल कंप्यूटिंग को अप्रासंगिक कर देगा. बस फोटॉनों के बारे में सोचिए...”) की चर्चा ऐसे की, मानो फोटॉन आतंकी हों. उन्होंने फोटो की भी बात की: “मुझे बताइए कोई एक फोटो, कोई एक छवि, आजकल ये तस्वीरें सारी दुनिया के सैटेलाइट्स से आ रही हैं.” अंत में उन्होंने 'खिड़कियों' का उल्लेख किया-“ये वह चीज है, जिसमें दिख जाता है कि किसी भारतीय को नुकसान हुआ है, चाहे एक काँच का शीशा ही क्यों न टूटा हो.” शायद उनके मेज़बान—जिन्होंने कभी कहा था कि गौमूत्र से इरिटेबल बाउल सिंड्रोम का इलाज हो सकता है—को डोभाल को हिंदुत्व के 'कूल-एड' की एक खुराक दे देनी चाहिए थी.
इसी बीच, सवाल उठता है कि क्या उनके बॉस, मोदी, भागवत की सटीक सलाह मानकर अगले दो महीनों में इस्तीफा देंगे—शायद यही एकमात्र तरीका है, जिससे डोभाल रिटायर हों, और भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा मस्तिष्क फिर से दुरुस्त हो सके. या शायद नहीं. मोदी शायद टिके रहें, और उन्हें डोभाल की जरूरत है. मध्यकालीन राजाओं की तरह, मोदी अपने चारों ओर चापलूस दरबारियों के बीच साज़िशें तलाशते रहते हैं. केवल डोभाल ही इन साज़िशों को समय रहते पहचान सकते हैं और योजनाकारों को नाकाम कर सकते हैं, इसीलिए मोदी के लिए वे अनिवार्य हैं.
(फ्रंटलाइन में प्रकाशित आदित्य सिन्हा का लेख)
आजमगढ़ अस्पताल में ऑक्सीजन मास्क लगाए मरीज के फर्श पर बैठने से हंगामा
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिला अस्पताल में एक मरीज का ऑक्सीजन मास्क लगाए फर्श पर बैठे होने का वीडियो शनिवार (19 जुलाई 2025) को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह स्थिति कथित तौर पर बेड और चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण थी. इस वीडियो ने उत्तर प्रदेश सरकार के विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं के दावों पर सवाल उठाए, जिसके बाद विपक्षी दलों और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने सरकार की आलोचना की. सोशल मीडिया उपयोगकर्ता भानु नंद ने एक्स पर लिखा, "बीजेपी सरकार के तहत स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी खराब हो चुकी है कि मरीजों को खुद अपना इलाज करना पड़ रहा है. ऐसी तस्वीर देखकर लगता है कि सिस्टम और सरकार दोनों आंखें बंद करके लोगों की मौत का इंतजार कर रहे हैं. बीजेपी सरकार ने अस्पतालों की हालत पूरी तरह बर्बाद कर दी है; स्वास्थ्य व्यवस्था हर दिन ढहती नजर आ रही है."
आजमगढ़ के कांग्रेस नेता अनिल यादव ने कहा, "यह डबल इंजन सरकार की 'स्वास्थ्य क्रांति' की असली तस्वीर है, जहां आजमगढ़ के सदर अस्पताल में एक मरीज ऑक्सीजन मास्क लगाए फर्श पर बैठा है. कहीं कोई इंतजाम नहीं है, न बेड, न साफ-सुथरा माहौल, न ही बुनियादी सुविधाएं. यूपी सरकार विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं का दावा करती है, लेकिन हकीकत सबके सामने है."
वैकल्पिक मीडिया
"मेरे साथ सिर्फ सोना चाहते थे, शादी नहीं!"
दलित महिला की डेटिंग कहानी ने उंची जाति के युवकों की असलियत खोल दी
भारत में जातिगत भेदभाव सिर्फ सामाजिक या आर्थिक दायरे तक सीमित नहीं है — यह आज भी रिश्तों की नींव तक को प्रभावित करता है. 'द मूकनायक' की रिपोर्ट है कि हाल ही में सोशल मीडिया मंच Reddit पर एक दलित महिला ने अपने डेटिंग अनुभव साझा किए, जिसने इंटरनेट पर हलचल मचा दी. उन्होंने बताया कि कैसे भारतीय पुरुषों ने उन्हें एक समान और सम्मानजनक साथी की तरह नहीं, बल्कि एक 'सेक्शुअल ऑब्जेक्ट' की तरह देखा.
इस महिला ने लिखा कि शुरुआत में पुरुष उनकी सुंदरता और बुद्धिमत्ता की तारीफ करते, लेकिन जैसे ही उन्हें उनकी जाति के बारे में पता चलता, उनका व्यवहार पूरी तरह बदल जाता. अधिकतर पुरुषों ने 'पारिवारिक दबाव' का हवाला देकर संबंध तोड़ दिए. उसने बताया, “वे कहते थे, ‘तुम में कोई कमी नहीं है, लेकिन हमारे परिवार इसे स्वीकार नहीं करेंगे.’ या फिर: ‘तुम किसी ऐसे को डिज़र्व करती हो जिसे इतना संघर्ष न करना पड़े.’”
महिला ने यह भी बताया कि उन्हें कई बार अपमानजनक टिप्पणियां सुननी पड़ीं जैसे— “तुम दलित जैसी नहीं दिखतीं”. उन्होंने लिखा कि उन्हें सिर्फ 'सेक्सुअल एक्सपेरिमेंट' की तरह इस्तेमाल किया गया, कभी जीवनसाथी की तरह नहीं देखा गया.
महिला ने आगे बताया, “दलित महिलाएं ‘ज्यादा वाइल्ड’ होती हैं, ‘बेड में बेहतर’ होती हैं — मुझे बार-बार इस तरह से फेटिश किया गया. मैं उनके लिए एक रोमांच हूं, लेकिन स्थायी रिश्ता नहीं. मुझे लगता है कि मैं एक ऐसा 'छुपा हुआ फेज़' हूं, जिससे वे गुज़रते हैं लेकिन कभी ज़िक्र नहीं करते.”
केवल व्यक्तिगत रिश्तों में ही नहीं, बल्कि उनके करियर को लेकर भी पुरुषों की सोच भेदभावपूर्ण रही. महिला ने लिखा कि उनकी उपलब्धियों को आरक्षण का परिणाम बताया गया, न कि उनकी मेहनत का. उसने कहा, “मैंने पढ़ाई की, करियर बनाया, खुद को संभाला — लेकिन वो कभी पर्याप्त नहीं था.”
इस भावनात्मक और कड़वे अनुभव के बाद, महिला ने अब डेटिंग से किनारा कर लिया है.
वह कहती है, “मैंने प्यार में विश्वास करना नहीं छोड़ा, लेकिन खुद को बार-बार इस दर्दनाक चक्र से गुज़रने देना बंद कर दिया. मैं किसी की एक्सपेरिमेंट नहीं हूं, किसी का थ्रिल या छिपा हुआ फेज़ नहीं हूं. हम 'डिस्पोजेबल' नहीं हैं. हम किसी की ज़िंदगी की छुपी हुई कहानियां नहीं हैं.”
उन्होंने अंत में सभी महिलाओं से अपील की कि वे खुद को समझें, सम्मान करें और अपनी गरिमा से समझौता न करें.
हरकारा डीपडाइव
भारत छोड़ रहे करोड़पति: वेल्थ क्रिएटर्स का पलायन क्यों?
भारत छोड़कर जा रहे करोड़पति — क्या इसका मतलब यह है कि भारत से वेल्थ क्रिएटर्स का पलायन हो रहा है? इस मसले को लेकर निधीश त्यागी ने सामाजिक कार्यकर्ता पंकज कुमार से हरकारा डीपडाइव के नए अंक में बातचीत की है. हाल की रिपोर्टों के मुताबिक़, 2024 में भारत से सबसे ज़्यादा हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स (HNWIs) ने दूसरे देशों में बसने का फैसला किया. 2023 में 5100 और 2024 में अनुमानित 3500 करोड़पति भारत छोड़ चुके हैं. सिर्फ धन नहीं, नागरिकता और ब्रेन पावर भी जा रही है. यह सिर्फ माइग्रेशन नहीं, एक सिस्टम पर गंभीर सवाल है. आखिर वजहें क्या हैं — टैक्स, शिक्षा, बेहतर जीवनशैली, या कुछ और?
पंकज कुमार ने बताया कि यह पलायन नया नहीं है. आजादी से पहले बिहार और यूपी से मजदूरों को खदानों में काम के लिए भेजा गया (फोर्स्ड माइग्रेशन), जबकि 1980 के दशक में 'ब्रेन ड्रेन' शुरू हुआ, जब डॉक्टर और इंजीनियर उच्च शिक्षा और आकर्षक अवसरों के लिए विदेश गए. 2000 के बाद यह 'वेल्थ ड्रेन' में बदल गया, जहां अमीर लोग और उनकी संपत्ति दोनों देश छोड़ रहे हैं. 2010 से 2023 तक 18 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी, जो 2023-24 में 2 लाख से ऊपर पहुंच गई. चर्चा में पंकज ने सरकार की नीतियों, जैसे भारी कराधान, नौकरशाही, और कारोबारी बाधाओं (नोटबंदी, GST की जटिलता) को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि सरकार इस संकट से वाकिफ है, लेकिन कार्रवाई का अभाव है. विदेशी निवेश (FDI) में कमी (2016 में 1.7% से 2024 में 0.5% GDP) और खराब इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे दिल्ली में प्रदूषण, ट्रैफिक जाम) भी कारण हैं. यहां देखिए पूरी बातचीत..
भारत की शिक्षा प्रणाली | एक मृत घाटी
प्रोफेसर इंदिरा मुंशी ने स्क्रोल में एक लेख के जरिए भारत की शिक्षा प्रणाली की खामियों और प्रसिद्ध शिक्षा विचारक केन रॉबिन्सन के दृष्टिकोण की चर्चा की है. उन्होंने लिखा — 30 वर्षों तक शिक्षक रहने के बाद, यह बात मेरे लिए साफ़ हो गई कि स्कूल और कॉलेज से निकलने वाले छात्र एक तय साँचे से निकलते हैं, जहाँ उन्हें सवाल पूछने, बहस करने, असहमति जताने, पाठ्यक्रम से बाहर पढ़ने, अपने विचार व्यक्त करने या अलग तरीके से सोचने के लिए हतोत्साहित किया जाता है.
मेरे द्वारा पढ़ाए गए विषय समाजशास्त्र को अधिकतर छात्रों ने इसलिए चुना क्योंकि यह “सॉफ्ट” विषय माना जाता था, जिसमें आसानी से दाखिला और पास होने की संभावना होती थी. इसके अलावा, इसकी क्लासों का समय भी सुविधाजनक होता था.
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मैंने जिन शिक्षकों और छात्रों के साथ काम किया, उनमें से कई पढ़ाने और सीखने की प्रक्रिया से ऊब चुके थे, थके हुए थे और उससे कटे हुए महसूस करते थे.
मुंबई के सरकारी स्कूलों के साथ मेरा जुड़ाव भी यही चिंताएं सामने लाया. एडीएचडी (अत्यधिक सक्रियता), अनुशासनहीनता, आक्रामकता या सीखने में कठिनाई जैसी समस्याएं दरअसल बच्चों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में छिपी होती हैं – गरीबी, असुरक्षा, गंदे और भीड़भाड़ वाले रहने के हालात, परिवार में कलह और आत्मसम्मान की कमी.
केन रॉबिन्सन की दृष्टि : शिक्षा प्रणाली की समस्याएं नई नहीं हैं, लेकिन शायद ही किसी ने इन्हें बदलने के लिए केन रॉबिन्सन जितनी गहराई और जुनून से प्रयास किया हो. वे एक ब्रिटिश शिक्षाविद, लेखक और सलाहकार थे. उनका मानना था कि दुनिया भर की शिक्षा प्रणाली – कुछ अपवादों को छोड़कर – एक पुरानी और सीमित सोच पर आधारित है जो बच्चों की आवश्यकताओं और क्षमताओं से मेल नहीं खाती.
उनके विचार मेरी वर्षों की शैक्षणिक यात्रा से पूरी तरह मेल खाते हैं. रॉबिन्सन ने शिक्षा प्रणाली में एक पूरी मानसिकता की क्रांति की आवश्यकता पर बल दिया.
उनके चर्चित व्याख्यानों के शीर्षक ही बहुत कुछ कह देते हैं:
“स्कूल रचनात्मकता को मारता है”
“लर्निंग क्रांति लाई जाए”
“मैं होम-स्कूलिंग का समर्थक हूं”
“शिक्षा की डेथ वैली से कैसे बाहर निकलें”
उनका तर्क था कि रचनात्मकता और कल्पना मनुष्य की मौलिक क्षमताएं हैं, जो सिर्फ कला, संगीत, साहित्य, नृत्य आदि में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर कार्य में अभिव्यक्त होती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि रचनात्मकता कोई जन्मजात गुण नहीं है – इसे सीखा और सिखाया जा सकता है, बशर्ते माहौल सही हो.
पुरानी सोच, नई दुनिया : रॉबिन्सन के अनुसार वर्तमान शिक्षा मॉडल 18वीं सदी के औद्योगिक क्रांति और ज्ञानोदय काल की आवश्यकताओं पर आधारित है – जिसमें फैक्ट्री जैसी व्यवस्था थी: उम्र के हिसाब से बच्चों का विभाजन, विषयों का अलगाव, एक जैसा पाठ्यक्रम और परीक्षा की मानकीकरण. यह मॉडल कुछ छात्रों के लिए लाभकारी था, लेकिन अधिकांश के लिए नहीं. रॉबिन्सन का मानना था कि मानव बुद्धि का मूल स्वभाव विविधता, सहयोग और नवाचार है , जो छोटे बच्चों में साफ दिखाई देता है, इससे पहले कि वे स्कूल व्यवस्था में ढल जाएं. उनका यह भी कहना था कि शिक्षा से बच्चे भले ही बाहरी दुनिया को समझ जाएं, लेकिन वे अपनी भीतरी दुनिया, अपनी क्षमताएं, रुचियां और जुनून नहीं खोज पाते.
सच्ची शिक्षा का उद्देश्य: उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह विद्यार्थियों को अपने अंदर छिपी क्षमताओं को पहचानने में मदद करे. एक संतुलित और तृप्त जीवन जीने के लिए तैयार करे. जिज्ञासा, करुणा, रचनात्मकता और सहयोग की भावना पैदा करे. उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम, और संवेदनशील नागरिक बनाए
इसके लिए कला, संगीत, कहानी, चित्रकला जैसे "क्रिएटिव" विषय सिर्फ अतिरिक्त गतिविधि नहीं, बल्कि शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा होने चाहिए.
उनकी पुस्तक द इलिमेंट : हाउ फाइंंडिंग योर पैशन चेंजेस एवरीथंग बताती है कि जब व्यक्ति अपने “एलिमेंट” में होता है – यानी अपनी असली क्षमता में – तभी वह पूर्ण रूप से जीवंत, अर्थपूर्ण और खुश होता है.
भारत के संदर्भ में : भारत की शिक्षा व्यवस्था को भी यह समझना होगा कि हर बच्चा अलग है – उसकी पृष्ठभूमि, क्षमताएं, पसंद-नापसंद, और सोचने का तरीका अलग है. जब हम सबको एक ही तरीके से आंकते हैं, तो रचनात्मक सोच की संभावना खत्म हो जाती है.
आज की शिक्षा में अधिक ध्यान मानकीकृत परीक्षा पर है. इससे कुछ विषय (जैसे विज्ञान, गणित, वाणिज्य) को आर्थिक लाभ के आधार पर अहम माना जाता है, जबकि कला, मानविकी और सामाजिक विज्ञान को कमतर.
रॉबिन्सन मानते थे कि यह विभाजन शिक्षा के असली उद्देश्य को ही नकारता है, जो है – मनुष्य की बहुआयामी क्षमताओं को जोड़ना, जीवन और समाज की समग्र समझ विकसित करना.
बच्चों में संभावनाओं की तलाश : रॉबिन्सन ने दो उदाहरण साझा किए. एक प्रयोग में बच्चों से पूछा गया कि कागज की क्लिप के कितने उपयोग हो सकते हैं – उन्होंने 200 तरीके बताए. एक लड़की जिसे एडीएचडी (ADHD) बताया गया, डांस करते समय पूरी तरह आत्ममुग्ध और प्रवीण थी. स्कूल ने उसे विशेष विद्यालय भेजने को कहा, लेकिन एक प्रिंसिपल ने उसके डांस कौशल को पहचाना और उसे नृत्य स्कूल में भर्ती कराया. बाद में वह खुद एक प्रसिद्ध डांस अकादमी की संस्थापक बनी.
गाजा में पहली बार परीक्षा दे रहे छात्र: युद्ध के बीच उम्मीद की मिसाल
एक ओर गाजा में नवजात तक भूख से मर रहे हैं और दूसरी ओर उम्मीदों का सूरज भी इस युद्ध की छाया के बीच ही परवान चढ़ रहा है. 'अल जज़ीरा' की रिपोर्ट है कि गाजा पट्टी के सैकड़ों छात्र शनिवार को एक बेहद अहम परीक्षा में शामिल हुए, जो 2023 में अक्टूबर में शुरू हुए युद्ध के बाद से पहली बार आयोजित की जा रही है. यह परीक्षा माध्यमिक शिक्षा के अंत की होती है, जिसे पूरा करने के बाद छात्र विश्वविद्यालय में दाख़िला ले सकते हैं.
गाजा की शिक्षा मंत्रालय ने इस महीने की शुरुआत में घोषणा की थी कि यह परीक्षा 1,500 छात्रों के लिए आयोजित की जा रही है और यह पूरी तरह ऑनलाइन होगी. मंत्रालय ने बताया कि परीक्षा के लिए विशेष सॉफ्टवेयर और तकनीकी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. कुछ छात्र घरों से परीक्षा दे रहे हैं, तो कुछ अपने-अपने क्षेत्र में बनाए गए सुरक्षित परीक्षा केंद्रों से शामिल हो रहे हैं.
अल जज़ीरा के संवाददाता तारिक अबू अज्ज़ूम ने दीर अल-बलाह से बताया, “गाजा के छात्र, बिना कक्षा, बिना किताब और कमजोर इंटरनेट के बावजूद, परीक्षा में शामिल हो रहे हैं. वे युद्ध के बावजूद अपने भविष्य को मिटने नहीं देना चाहते.”
इस परीक्षा का परिणाम छात्रों को विश्वविद्यालयों में आगे पढ़ाई का रास्ता देगा, जो पिछले एक साल से रुका हुआ था. युद्ध के कारण गाजा का शैक्षणिक ढांचा पूरी तरह नष्ट हो चुका है, और 95% शैक्षणिक इमारतें बर्बाद हो चुकी हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इससे 6.6 लाख से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर हो चुके हैं - जो गाजा के लगभग सभी स्कूली बच्चों की संख्या है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को सौंपी गई एक रिपोर्ट में बताया गया कि इसरायली सेना ने गाजा में शिक्षा ढांचे को योजनाबद्ध तरीक़े से निशाना बनाया. रिपोर्ट के अनुसार, यह संभावित युद्ध अपराध हो सकते हैं. कई पूर्व UN स्कूल अब विस्थापित लोगों के लिए शरणस्थल बन चुके हैं और लगातार इसरायली हमलों का निशाना बन रहे हैं.
104 फिलीस्तीनी मारे गए, भूख से नवजात की मौत : 19 जुलाई को इसरायली हमलों में कम से कम 104 फिलीस्तीनी मारे गए, जिनमें 37 लोग राफा में खाद्य सहायता केंद्रों के पास मारे गए. अल-शिफा अस्पताल के निदेशक ने बताया कि भुखमरी से एक नवजात शिशु समेत दो और फिलीस्तीनियों की मौत हो गई है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि हजारों लोग "भीषण भुखमरी की कगार" पर हैं. इधर, हमास का कहना है कि इसरायल ने कैदियों की रिहाई के प्रस्ताव के साथ युद्धविराम खारिज कर दिया.
टेस्ला की भारत में शुरुआत: क्या यह सफल होगी?
इलोन मस्क ने 13 फरवरी 2025 को वॉशिंगटन डीसी, अमेरिका में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. यह तस्वीर सोशल मीडिया से प्राप्त हुई है. स्रोत: [@narendramodi द्वारा X (पूर्व ट्विटर) के माध्यम से]
'अल जजीरा' के लिए यशराल शर्मा ने टेस्ला के भारत में प्रवेश के बाद उसके लिए बाजार के गणित को समझने की कोशिश की है. टेस्ला का भारत में प्रवेश तब हुआ है जब वैश्विक बाजारों में इसकी बिक्री में गिरावट आई है. अमेरिका में दूसरी तिमाही में बिक्री 6.3% घटी, यूरोप में 1.8% से 1.2% बाजार हिस्सेदारी गिरी और चीन में डिलीवरी 12% कम हुई. भारत में मॉडल वाई को मिड-रेंज लग्जरी सेगमेंट में लॉन्च किया गया है, जो मर्सिडीज-बेंज EQB, BMW iX1, और किआ EV6 जैसे प्रीमियम EV से मुकाबला करेगा.
मॉडल वाई की विशेषताएं जैसे 622 किमी रेंज, 201 किमी/घंटा की गति और ड्राइवर-असिस्टेंस टेक्नोलॉजी इसे आकर्षक बनाती हैं. टेस्ला भारत में सिर्फ कारें नहीं बेचना चाहती; यह चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और EV इकोसिस्टम विकसित करना चाहती है, जो भारत के 2030 तक 30% EV अपनाने के लक्ष्य को बढ़ावा दे सकता है.
हालांकि, टेस्ला को भारत की खराब सड़कों, ट्रैफिक अनुशासन की कमी और सीमित चार्जिंग नेटवर्क जैसी बाधाओं का सामना करना होगा. इसके अलावा, अमेरिका में टेस्ला को सब्सिडी खत्म होने का खतरा है, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रम्प ने $7,500 EV टैक्स क्रेडिट को खत्म करने की धमकी दी है. बहरहाल, टेस्ला की भारत में सफलता इसकी स्थानीय विनिर्माण रणनीति और इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश पर निर्भर करेगी.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार है, लेकिन टेस्ला की $70,000 की कीमत इसे भारत के लिए महंगा बनाती है. भारत में उच्च आयात शुल्क (110% से घटकर 15% उन कंपनियों के लिए जो स्थानीय विनिर्माण में निवेश करें) टेस्ला की कीमतों को बढ़ाते हैं, जो इसे अमेरिका ($44,990), चीन ($36,700), और जर्मनी ($53,700) जैसे बाजारों से महंगा बनाता है.
भारत का इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार तेजी से बढ़ रहा है, जो 2029 तक $111 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, लेकिन अभी केवल 2.5% वाहन बिक्री EV की है. टेस्ला को टाटा, एमजी, और महिंद्रा जैसे स्थानीय निर्माताओं से सस्ते विकल्पों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, भारत-चीन तनाव के कारण चीनी EV कंपनियों जैसे BYD को सीमित पहुंच मिली है, जो टेस्ला के लिए फायदेमंद है.
सेक्स टॉयज के साथ फ़ोटो खिंचवाकर प्रतिरोध जताने की मुहिम
इटैलियन फोटोग्राफर गैब्रिएल गैलिम्बर्टी का प्रोजेक्ट ‘माय टॉयज़’ दुनिया भर के लोगों को उनके सेक्स टॉयज़ के साथ चित्रित करता है, जो यौन आनंद और स्वतंत्रता का उत्सव है. यह समाज में यौन इच्छाओं और सेक्स टॉयज़ के प्रति कलंक को चुनौती देता है, जहां यौनिकता को निजी और शर्मनाक माना जाता है.
गैलिम्बर्टी के चित्रों में लोग आत्मविश्वास के साथ अपने टॉयज़ प्रदर्शित करते हैं, जो विविध आकारों और प्रकारों में व्यवस्थित हैं. यह प्रोजेक्ट उनकी निजी यौनिकता को साझा करने की हिम्मत को दर्शाता है. लेखिका रॉक्सेन गे कहती हैं कि सेक्स टॉयज़ हमें अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने और यौन अन्वेषण में विस्तार करने की आजादी देते हैं.
हालांकि, कई संस्कृतियों में विशेष रूप से थाईलैंड, मालदीव और अमेरिका के कुछ राज्यों जैसे टेक्सास में सेक्स टॉयज़ अवैध या सीमित हैं, जो नियंत्रण और सामाजिक दबाव को दर्शाता है. यह प्रोजेक्ट न केवल आनंद को सामान्य करने की कोशिश करता है, बल्कि यौन स्वतंत्रता को एक राजनीतिक कार्य के रूप में प्रस्तुत करता है, जो पितृसत्ता और दमनकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक है.
‘माय टॉयज़’ में शामिल लोगों की कहानियां उनकी विविध यौनिकता और अनुभवों को उजागर करती हैं. कजाकिस्तान की गुलिम (41) अपने टॉयज़ को सेक्स में रुचि बनाए रखने का साधन मानती हैं और मोटी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रहों को तोड़ना चाहती हैं. थाईलैंड की कोको (30) कहती हैं कि सेक्स टॉयज़, जो वहां अवैध हैं, उनकी स्वायत्तता और पितृसत्तात्मक नियंत्रण के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक हैं. इटली की फ्रिडा (37), एक सेक्स शॉप मालिक, यौनिकता को सामान्य बनाने के लिए काम करती हैं, जबकि नीदरलैंड्स की जेसिका (35) अपनी मां की प्रेरणा से टॉयज़ का उपयोग शुरू करती हैं.
ये कहानियां दर्शाती हैं कि सेक्स टॉयज़ न केवल व्यक्तिगत आनंद के लिए हैं, बल्कि आत्म-जागरूकता और सामाजिक बदलाव का साधन भी हैं. हालांकि, पुरानी पीढ़ियों और रूढ़िवादी समाजों में यौनिकता पर खुली चर्चा अभी भी मुश्किल है. गैलिम्बर्टी का प्रोजेक्ट इस कलंक को तोड़ने और लोगों को अपनी यौनिकता को बिना शर्म के अपनाने के लिए प्रेरित करता है, जो व्यक्तिगत और सामूहिक सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम है.
चलते-चलते
प्राडा और अन्य लक्जरी ब्रांड्स: भारत को समझने में क्यों चूक रहे हैं?
‘बीबीसी’ की रिपोर्ट है कि इटैलियन लक्जरी ब्रांड प्राडा हाल ही में उस समय विवादों में घिर गया जब उसने मिलान में अपने रनवे पर कोल्हापुरी चप्पल जैसे दिखने वाले टो-ब्रेडेड सैंडल प्रदर्शित किए. कोल्हापुर, महाराष्ट्र में सदियों से बनने वाली ये हस्तनिर्मित चमड़े की चप्पलें हैं, लेकिन प्राडा ने इसके मूल का उल्लेख नहीं किया, जिससे आलोचना शुरू हुई.
विवाद बढ़ने पर प्राडा ने माना कि सैंडल की प्रेरणा कोल्हापुरी चप्पल से थी और उसने कोल्हापुर के कारीगरों से मुलाकात की. प्राडा ने भविष्य में सहयोग की संभावना जताई है. यह घटना दर्शाती है कि वैश्विक फैशन ब्रांड्स अक्सर भारत और दक्षिण एशिया की समृद्ध परंपराओं से प्रेरणा लेते हैं, लेकिन स्रोत को श्रेय देने में विफल रहते हैं. उदाहरण के लिए, डायर की हालिया पेरिस कलेक्शन में मुकैश कढ़ाई, जो उत्तर भारत की सदियों पुरानी तकनीक है, का उपयोग हुआ, लेकिन इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया.
विशेषज्ञों का कहना है कि सांस्कृतिक उधार गलत इरादे से नहीं होता, लेकिन सम्मान और श्रेय देना जरूरी है. भारत का लक्जरी बाजार 2032 तक $14 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, लेकिन ब्रांड्स भारत को अभी भी एक प्रमुख बाजार के रूप में नहीं देखते, जिसके कारण सांस्कृतिक संवेदनशीलता की कमी बनी रहती है.
भारत में लक्जरी फैशन बाजार तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन प्राडा जैसे ब्रांड्स के लिए यह अभी भी प्राथमिक बाजार नहीं है. दिल्ली के डिजाइनर आनंद भूषण के अनुसार, भारत हमेशा से उत्पादन केंद्र रहा है, जहां पेरिस और मिलान के बड़े ब्रांड्स भारतीय कारीगरों से कढ़ाई और कपड़े बनवाते हैं, लेकिन बिना संदर्भ के इनका उपयोग करते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी ब्रांड्स में विविधता की कमी के कारण वे भारत को विदेशी नजरिए से देखते हैं, जिससे सांस्कृतिक गलतियां होती हैं. दूसरी ओर, भारत में कारीगरों को उचित सम्मान, पारिश्रमिक, या बौद्धिक संपदा संरक्षण नहीं मिलता. लैला त्याबजी, दस्तकार की अध्यक्ष, कहती हैं कि भारत में सैकड़ों शिल्प तकनीकें हैं, लेकिन हम खुद अपने कारीगरों का सम्मान नहीं करते, जिससे विदेशी ब्रांड्स उनका शोषण करते हैं. उदाहरण के लिए, हस्तनिर्मित जूतियों को कम कीमत पर खरीदा जाता है, जबकि मशीन से बने नाइक ट्रेनर्स को 10 गुना कीमत पर आसानी से स्वीकार किया जाता है. प्राडा विवाद ने जवाबदेही की मांग को बढ़ाया है, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब भारत अपने शिल्प और कारीगरों को संरक्षण और सम्मान देगा.
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