20/08/2025: वोटचोरी के और मामले, संसद में बहस नहीं | आयोग की गिरती साख | मोदी की डिग्री पर फैसला आज? | बलात्कारी आसाराम को और जमानत | विपक्ष का तेलुगू कार्ड | चर्च उठाकर शिफ्ट किया
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
रूसी तेल पर मुनाफाखोरी को लेकर अमेरिका ने भारत पर साधा निशाना, चीन को बख्शा.
नए विधेयक के तहत 30 दिन हिरासत में रहने पर मंत्री और मुख्यमंत्री पद से हटाए जा सकेंगे.
कश्मीर में किताबों पर प्रतिबंध का उल्टा असर, सोशल मीडिया पर हुईं वायरल.
बिहार मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी के बाद 'वोट चोरी' संसद से सड़क तक बड़ा मुद्दा बना.
कांग्रेस का दावा: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में 27 से अधिक सीटों पर हुई 'वोट चोरी'.
राज्यसभा में आसंदी का निर्देश, कार्यवाही से हटाए गए हिस्से सोशल मीडिया पर साझा न किए जाएं.
अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया, कहा- कोर्ट संविधान को फिर से नहीं लिख सकता.
गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कारी आसाराम की अस्थायी जमानत फिर बढ़ाई.
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र से संबंधित याचिका खारिज की.
बाढ़ पीड़ितों को मांसाहारी बिरयानी परोसने के आरोप में ग्राम प्रधान और उसके बेटे गिरफ्तार.
गुजरात के एक गांव में आजादी के 78 साल बाद दलितों को बाल कटवाने का अधिकार मिला.
भाजपा द्वारा गोपाल मुखर्जी को अपनाने की कोशिश, परिवार ने फिल्म पर FIR दर्ज कराई.
विश्व-भारती विश्वविद्यालय ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन पर व्याख्यान की अनुमति नहीं दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री से जुड़े मामले में बुधवार को फैसला आने की संभावना.
अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ़ भारतीय निर्यातकों के लिए एक बड़ी चुनौती बनेंगे.
बिहार मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटने के बाद, आधार कार्ड से दावा दाखिल करने की अनुमति मिली.
बिहार मतदाता सूची की जमीनी पड़ताल में खुलासा: जिंदा लोगों को 'मृत' बताया गया.
एक रिपोर्ट में गुवाहाटी हाईकोर्ट की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि असम में नागरिकता एक जुआ बन गई है.
विपक्ष ने पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया.
उपराष्ट्रपति चुनाव: विपक्ष के तेलुगू उम्मीदवार ने NDA और सहयोगी TDP को मुश्किल में डाला.
अमेरिका और यूरोप यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी देने पर काम कर रहे हैं, जिसमें हवाई समर्थन भी शामिल हो सकता है.
चीन के दावे के बाद भारत का स्पष्टीकरण, ताइवान पर हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
डोभाल-वांग यी की मुलाकात से भारत-चीन संबंधों में सुलह के संकेत मिले.
स्वीडन में खदान के विस्तार के कारण 672 टन के ऐतिहासिक चर्च को 5 किलोमीटर दूर ले जाया जा रहा है.
मोदी की डिग्री क्या देश आज देख पाएगा?
कथित तौर पर, नरेंद्र मोदी की डिग्री मामले में फैसला बुधवार को घोषित होने की संभावना है. इस साल फरवरी में, दिल्ली विश्वविद्यालय ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि वह डिग्री प्रमाण पत्र कोर्ट को दिखाने के लिए तैयार है, लेकिन RTI के तहत अजनबियों को नहीं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तब कहा था कि कानून "स्वतंत्र लोगों" के लिए नहीं है जो "अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए निकले हैं." मुख्य सूचना आयुक्त ने बैचलर ऑफ आर्ट्स डिग्री का खुलासा करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
वोट चोरी
रास में 20 नोटिस खारिज, और राज्यों से भी निकले सुराग़, सीएसडीएस की माफ़ी, आईटी सेल हरकत में, आयोग पर घटता यक़ीन, नाम कटने के बाद अब आधार भी चलेगा
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया में चुनाव आयोग की भूमिका संदेह के घेरे में है. पूरी कवायद पर कई सवाल उठाए गए हैं. पुनरीक्षण में कथित गड़बड़ियों और अनियमितताओं के आरोप लगाए जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई याचिकाएं लगाईं गई हैं. हाल ही में उसने एक अंतरिम आदेश भी दिया है, लेकिन इसी बीच "वोट चोरी" का मुद्दा संसद से लेकर सड़क तक राजनीतिक विमर्श का बड़ा विषय बनता जा रहा है. बिहार में 'वोट अधिकार यात्रा' कर रहे राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और भाजपा पर हमला जारी रखा है. मंगलवार को उन्होंने कहा, "बिहार के युवा वोट चोरी नहीं होने देंगे. वोट हम सबका अधिकार है. भारत में गरीबों के पास सिर्फ वोट ही बचा हुआ है. यदि ये ही चला गया तो फिर सबकुछ चला जाएगा. भाजपा ने महाराष्ट्र, हरियाणा और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में वोट चोरी की है. चुनाव आयोग वोट चोरी करवा रहा है." मंगलवार को संसद में भी इस मुद्दे पर हंगामा हुआ. राज्यसभा में विपक्षी सदस्य इस बात से उत्तेजित थे कि उप सभापति हरिवंश ने विभिन्न विषयों पर चर्चा के लिए दिए गए सभी 20 नोटिसों को ख़ारिज कर दिया. लोकसभा में 'वोट चोरी' के नारों के कारण कार्यवाही नहीं चल सकी. इधर चुनाव विश्लेषक संजय कुमार द्वारा माफ़ी के साथ अपनी दो दिन पुरानी पोस्ट, जिसमें उन्होंने पांच माह की अवधि में महाराष्ट्र की दो विधानसभा सीटों में मतदाताओं की संख्या में भारी कमी होने का दावा किया था, को "एक्स" से हटा लेने के बाद बीजेपी ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर पलटवार किया. पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, "जिस संस्थान के आंकड़ों पर भरोसा कर राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के मतदाताओं को बदनाम किया, वह अब स्वीकार चुका है कि उसके आंकड़े गलत थे. तो, अब राहुल गांधी और कांग्रेस का कहां हैं, जिन्होंने बेशर्मी से चुनाव आयोग को निशाना बनाया." हालांकि इस बारे में कांग्रेस के पवन खेड़ा ने उत्तर दिया," वो तो सिर्फ दो सीटों की बात है. हम उनके आंकड़ों पर निर्भर नहीं थे. हमें इस पर प्रतिक्रिया क्यों देनी चाहिए?"
उधर, सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के तहत बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने अधिसूचना जारी कर कहा है कि जिनका नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटा दिया गया है, वे अपने आधार कार्ड का इस्तेमाल कर दावा दाखिल कर सकते हैं. हालांकि, संतोष सिंह के अनुसार, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ऐसे मतदाताओं को दुबारा सूची में नाम दर्ज कराने के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा अनिवार्य किए गए 11 दस्तावेज़ों में से कोई प्रस्तुत करना आवश्यक होगा या नहीं?
मध्यप्रदेश में 27 से अधिक सीटों पर वोट चोरी : कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के मामले में भी “वोट चोरी” का दावा किया है. राज्य विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता उमंग सिंघार ने मंगलवार को कहा, “2023 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में 27 से अधिक सीटों पर "वोट चोरी" किए गए और सत्तारूढ़ भाजपा को "अनैतिक लाभ" दिया गया. सिंघार ने आंकड़ों और ग्राफिक्स के आधार पर यह भी दावा किया कि चुनाव से कुछ महीने पहले लाखों नए मतदाता जोड़े गए और जिन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवारों की बहुत कम अंतर से हार हुई, वहां मतदाताओं की बढ़ोतरी हार के अंतर से कहीं अधिक पाई गई. सिंघार ने दावा किया कि 5 जनवरी से 2 अगस्त, 2023 के बीच सात महीनों में मध्यप्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 4.64 लाख बढ़ी थी, जबकि सिर्फ दो महीनों (2 अगस्त से 4 अक्टूबर के बीच) में 16.05 लाख मतदाताओं की अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज की गई.
एक पते पर 24 मतदाता, ज़िंदा लोग मरे बताये
द वायर में तुषार धारा ने आरा से रिपोर्ट किया है. अगस्त के तीसरे हफ़्ते की एक सुबह, आरा शहर के गौसगंज में एक नुक्कड़ पर लकड़ी की मेज़ के चारों ओर कुछ लोग इकट्ठा थे. वे बारिश से बचने के लिए लगाए गए प्लास्टिक के तिरपाल के नीचे बैठे थे. मेज़ पर कागज़ों की शीटें फैली हुई थीं, जो शहर के बाहरी इलाक़े में मौजूद आरा विधानसभा क्षेत्र के बूथ संख्या 103 की मतदाता सूची थी. ये लोग भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के कैडर थे, जो बिहार में विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा है.
लिबरेशन की बिहार राज्य समिति के सदस्य क़यामुद्दीन अंसारी इस टीम का नेतृत्व कर रहे थे. उनकी टीम का काम मतदाता सूची में धोखाधड़ी का पता लगाना, हटाए गए नामों की पहचान करना और ड्राफ़्ट सूची का घर-घर जाकर सत्यापन करना था. हालांकि, मानसून के कारण कई मोहल्ले पानी में डूबे हुए हैं, जिससे भौतिक सत्यापन करना एक बड़ी चुनौती है.
क़यामुद्दीन और उनकी टीम – विश्वकर्मा पासवान और हिम्मत यादव – ड्राफ़्ट मतदाता सूची का गहराई से अध्ययन कर धोखाधड़ी के मामलों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं. एक मामले में, उन्होंने पाया कि मतदाता सूची में एक ही पते - मकान नंबर 10 - पर 24 मतदाता पंजीकृत थे. उन्होंने इसे धोखाधड़ी का मामला माना. वे इस नतीजे पर इसलिए पहुंचे क्योंकि सूची में ठाकुर, ब्राह्मण और बनिया समुदाय के नाम थे, जो उन्हें बिहार की जातीय सच्चाइयों को देखते हुए अजीब लगा. भला अलग-अलग समुदायों के सदस्य एक ही घर में कैसे रह सकते हैं? धोखाधड़ी का एक और संकेत एक पिता-पुत्री की जोड़ी थी, जिसमें पिता की उम्र 28 साल और बेटी की उम्र 29 साल बताई गई थी.
क़यामुद्दीन कहते हैं, "धोखाधड़ी की पुष्टि घर-घर जाकर नहीं की जा सकती, इसका पता केवल मतदाता सूची के गहन अध्ययन से ही चल सकता है." उन्होंने अपने फ़ोन में उन सैकड़ों लोगों के बयान दर्ज किए हैं जिनका आरोप है कि उनके नाम ग़लत तरीके से हटा दिए गए हैं. इसी तरह का एक मामला मिंटू पासवान का है, जिन्हें ड्राफ़्ट मतदाता सूची में 'मृत' घोषित कर दिया गया था, जबकि वह ज़िंदा हैं. मिंटू इस बात को साबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गवाह के तौर पर पेश होने के लिए नई दिल्ली भी गए थे.
आरा के एक दूसरे हिस्से में, लिबरेशन के नगर सचिव सुधीर कुमार भी इसी काम में लगे हैं. उनकी टीम ने अब तक 16 ऐसे मामले पकड़े हैं: छह लोगों को 'शिफ़्टेड' (स्थान बदल चुके) के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन वे आरा में ही रह रहे हैं, और 10 लोगों को 'मृत' घोषित किया गया था, लेकिन वे ज़िंदा हैं. पार्टी कार्यकर्ता इन मामलों का सत्यापन पड़ोसियों से बात करके और चुनाव आयोग के वोटर हेल्पलाइन ऐप का उपयोग करके कर रहे हैं. इस प्रक्रिया को इस बात ने और जटिल बना दिया है कि चुनाव आयोग ने एक ही समय में मतदान केंद्रों को विभाजित भी किया है, जिससे बूथ नंबर बदल गए हैं और भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है.
कई जानकार और एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (ADR) के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर का कहना है कि ये कुछ अलग-थलग त्रुटियां हो सकती हैं और किसी को व्यक्तिगत ग़लतियों के बजाय व्यवस्थागत धोखाधड़ी की तलाश करनी चाहिए. हालांकि, ज़मीन पर काम कर रही टीमों के लिए यह मुश्किल है, क्योंकि 9 अगस्त को चुनाव आयोग ने ड्राफ़्ट मतदाता सूची को ऑनलाइन स्कैन की हुई तस्वीरों से बदल दिया, जिससे बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों के पैटर्न को मशीन द्वारा पढ़ना मुश्किल हो गया. साथ ही, आयोग ने नाम हटाने के कारणों का ब्योरा भी नहीं दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को चुनाव आयोग को हटाए गए नामों की सूची कारणों के साथ प्रकाशित करने का निर्देश दिया है. लेकिन मानसून और कम समय को देखते हुए ज़मीनी स्तर पर काम कर रही टीमें अनियमितताओं को उजागर करने के लिए समय के ख़िलाफ़ दौड़ रही हैं. अंतिम मतदाता सूची 1 सितंबर को प्रकाशित होने वाली है. लिबरेशन का आरोप है कि यह उनके दलित और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के वोटरों को सूची से हटाने की एक साज़िश है, जिसे वे "अप्रत्यक्ष बूथ कैप्चरिंग" कहते हैं.
केंचुआ पर घटता भरोसा, सर्वे में खुलासा
देश के चुनाव आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्था पर आम जनता का विश्वास लगातार और तेजी से घट रहा है. यह चिंताजनक खुलासा लोकनीति-सीएसडीएस (Lokniti-CSDS) के एक हालिया सर्वेक्षण में सामने आया है. 'द वायर' के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, लोकनीति के सह-निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार ने पत्रकार करण थापर को बताया कि ये आंकड़े चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चेतावनी हैं और यह दर्शाते हैं कि संस्था में लोगों का विश्वास गंभीर रूप से कम हो रहा है.
आंकड़ों में भारी गिरावट : प्रोफेसर कुमार ने बताया कि आंकड़ों का विश्लेषण करने पर चुनाव आयोग में लोगों के विश्वास में एक "व्यवस्थित गिरावट" (systematic decline) साफ तौर पर दिखाई देती है. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों से तुलना करते हुए बताया कि जिन लोगों को चुनाव आयोग पर "बिल्कुल भरोसा नहीं" है, उनकी संख्या में भारी उछाल आया है.
सर्वे के मुताबिक, पिछले छह सालों में मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा 6% से बढ़कर 22% हो गया है. इसी तरह, दिल्ली में यह 11% से बढ़कर 30% और उत्तर प्रदेश में 11% से बढ़कर 31% पर पहुंच गया है. संजय कुमार ने इस उछाल को "बहुत बड़ा" बताते हुए कहा कि यह एक स्पष्ट संकेत है कि लोग चुनाव आयोग में अपना विश्वास कैसे खो रहे हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह डेटा चुनाव आयोग के लिए "आंखें खोलने वाला" (eye-opener) होना चाहिए.
विपक्ष ही नहीं, जनता का भरोसा भी टूटा प्रोफेसर कुमार ने इस धारणा को भी चुनौती दी कि केवल विपक्षी दल ही चुनाव आयोग पर अविश्वास जता रहे हैं. उन्होंने कहा, "यह सिर्फ विपक्ष का भरोसा नहीं है जो कम हुआ है, बल्कि आम लोगों के बीच भी आयोग के लिए विश्वास कम हुआ है." उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मध्य प्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा (क्रमशः 22%, 30% और 31%) अब चुनाव आयोग पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करता है. उनके अनुसार, लोग इस तरह का स्पष्ट जवाब तभी देते हैं, जब वे वास्तव में अपना विश्वास पूरी तरह खो चुके होते हैं. यह स्थिति भारतीय लोकतंत्र की एक प्रमुख संस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय है. देखिये ये वीडियो-
रूसी तेल
अमेरिका ने चीन को बख्शा, पर भारत को मुनाफाखोर कहा
कहा- कुछ अमीर परिवारों ने 16 बिलियन अतिरिक्त कमाए
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने मंगलवार को भारत पर रूस के तेल को पुनः बेचकर “मुनाफाखोरी” करने का आरोप लगाया, जबकि इसी मामले में उन्होंने चीन को बख्श दिया. उनका तर्क था कि चीन का तेल आयात अलग-अलग स्रोतों से है, इसलिए उसकी स्थिति भिन्न है. यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत-अमेरिका संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर कुल 50 प्रतिशत का शुल्क लगा दिया है. इसमें नई दिल्ली द्वारा रूस से तेल खरीदी पर 25 प्रतिशत का शुल्क भी शामिल है, जो 27 अगस्त से लागू होगा.
सीएनबीसी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कि रूस से तेल खरीदने के मामले में चीन और भारत के साथ अलग व्यवहार क्यों किया जा रहा है, बेसेंट ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद चीन का रूस से तेल आयात केवल 3 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि भारत का रूस से तेल आयात 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है. उन्होंने कहा, “भारत सिर्फ़ मुनाफ़ाखोरी कर रहा है, वे दुबारा बेच रहे हैं. भारत के कुछ सबसे अमीर परिवारों ने 16 बिलियन का अतिरिक्त मुनाफ़ा कमाया. यह एक बिल्कुल अलग मामला है.”
केंद्र शासित प्रदेशों पर सरकार का बड़ा कदम, 30 दिन हिरासत में रहे तो हटना पड़ेगा मंत्रियों को
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार शाम (19 अगस्त) को संसद के चल रहे मानसून सत्र में तीन महत्वपूर्ण विधेयक पेश करने के अपने इरादे के बारे में लोक सभा के महासचिव उत्पल कुमार सिंह को सूचित किया है. द वायर को मिली जानकारी के अनुसार, शाह बुधवार, 20 अगस्त को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025; केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025; और संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 पेश करेंगे.
जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने की सभी अटकलों के विपरीत, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक एक नया और सख़्त नियम पेश करता है. इसके अनुसार, यदि जम्मू-कश्मीर में किसी मंत्री को किसी ऐसे अपराध के आरोप में लगातार 30 दिनों तक गिरफ़्तार या हिरासत में रखा जाता है, जिसमें पांच साल या उससे ज़्यादा की सज़ा हो सकती है, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है. यह कार्रवाई उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर करेंगे, जो हिरासत के 31वें दिन तक देनी होगी. यह नया नियम निर्वाचित मुख्यमंत्री पर भी लागू होगा. विधेयक के पारित होने पर, यह केंद्र सरकार को किसी मुख्यमंत्री या उनके मंत्रिमंडल के सदस्य को हटाने के लिए अतिरिक्त प्रशासनिक शक्तियां प्रदान करेगा, भले ही उन पर लगे आरोप साबित न हुए हों.
इस नियम को लागू करने के लिए, शाह ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक भी प्रस्तावित किया है, जिसका उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन करना है. इस संशोधन का दायरा जम्मू-कश्मीर से कहीं ज़्यादा बड़ा है. यह राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह पर केंद्रीय मंत्रियों को हटाने की समान शक्ति देता है. प्रस्तावित संशोधन के अनुसार: “एक मंत्री, जो अपने पद पर रहते हुए किसी भी ऐसे अपराध के आरोप में लगातार तीस दिनों की अवधि के लिए गिरफ़्तार और हिरासत में रखा जाता है, जिसमें पांच साल या उससे अधिक की कैद की सज़ा हो सकती है, उसे प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटा दिया जाएगा.” यदि प्रधानमंत्री 31वें दिन तक सलाह नहीं देते हैं, तो मंत्री अपने आप पद से हट जाएगा. यही नियम प्रधानमंत्री पर भी लागू होगा, जिन्हें ऐसी स्थिति में 31वें दिन तक इस्तीफ़ा देना होगा, अन्यथा वे प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे. इसी तरह का प्रावधान राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए भी किया गया है.
द वायर को यह भी पता चला है कि शाह ने संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और विधि और न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग को भी पत्र की प्रति भेजी है. शाह ने एक अलग पत्र में महासचिव से अनुरोध किया है कि "समय की कमी" को देखते हुए सदन के नियमों में कुछ ढील दी जाए ताकि इन विधेयकों को चालू सत्र में पेश किया जा सके. उन्होंने लोक सभा के नियम 19 (ए) और 19 (बी) में छूट मांगी है, जो किसी विधेयक को पेश करने से पहले पूर्व सूचना देने और उसे सदस्यों के बीच प्रसारित करने से संबंधित हैं. देर शाम, सरकार ने संसदीय कार्य मंत्रालय के माध्यम से इन विधेयकों को लोक सभा की कार्य सूची में शामिल करके द वायर की रिपोर्ट की पुष्टि की.
जो किताबों में बैन है, डिजीटल पर वायरल
मोदी सरकार द्वारा कश्मीर में 25 किताबों को "झूठा" और "राजद्रोही" बताकर उन पर लगाए गए अजीब प्रतिबंध का उल्टा असर देखने को मिल रहा है. निक्की एशिया लिखता है, "हालांकि, इस आदेश ने एक 'स्ट्राइसैंड इफ़ेक्ट' को जन्म दिया. कई नेटिज़न्स ने प्रतिबंधित किताबों की सॉफ्ट कॉपियां सोशल मीडिया पर साझा करना शुरू कर दिया, और लाभार्थी इस सूची के लिए अधिकारियों को धन्यवाद दे रहे हैं, क्योंकि अब वे इन प्रसिद्ध रचनाओं को मुफ़्त में प्राप्त कर सकते हैं."
कार्टून

सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार
‘आप राष्ट्रपति के हाथ बांध रहे हैं, संविधान को फिर से लिखने की कोशिश नहीं कर सकता कोर्ट’
अटार्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणि ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय पर सवाल उठाया, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधानसभाओं में पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर करने (मंजूरी देने) की समय-सीमा तय की गई थी. उनका कहना था कि कोर्ट, कार्यपालिका की जिम्मेदारियां अपने हाथ में लेकर संविधान को "फिर से लिखने" का प्रयास नहीं कर सकता. एजी ने यह दलील संविधान बेंच, जिसकी अध्यक्षता सीजेआई बी. आर. गवई कर रहे थे, के समक्ष राष्ट्रपति के परामर्श से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान पेश की.
देश के सर्वोच्च विधिक अधिकारी ने कहा, "आप (सुप्रीम कोर्ट) राष्ट्रपति के हाथ बांध रहे हैं. राष्ट्रपति को यह सर्वोच्च विवेकाधिकार है कि वह विधेयक को स्वीकृति दें या न दें. लेकिन कोर्ट ने यहां ऐसा आदेश दिया मानो, वह किसी नियमन बनाने वाली शक्ति का प्रयोग कर रहा हो. राष्ट्रपति और राज्यपाल से उनका स्वतंत्र विवेक लगभग छीन लिया गया है. क्या कोर्ट इस हद तक जा सकता है कि कलम और कागज़ लेकर यह कहे कि मैं संविधान को ही दोबारा लिख दूं?" वेंकटरमणि ने 8 अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन की मांग की.
इससे पहले 8 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच—जिसमें जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन शामिल थे—तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि यदि राज्यपाल किसी विधेयक को रोके रखते हैं या उसे आरक्षित करते हैं, तो उन्हें अधिकतम तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा, और यदि कोई विधेयक पुनः पारित होता है, तो उस पर एक महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को प्राप्ति की तिथि से तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा.
सुचित्रा कल्याण मोहंती के अनुसार, मंगलवार की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि यदि राज्यपाल वर्षों तक विधेयकों को लंबित रखे रहते हैं, तो ऐसी स्थिति में "संवैधानिक रूप से स्वीकार्य उपाय" क्या होगा? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि भले ही यह स्थिति अवांछनीय हो, परंतु कोर्ट स्वयं राज्यपाल की कार्यप्रणाली अपने हाथ में लेकर विधेयकों को स्वीकृति प्रदान नहीं कर सकती. मामले की सुनवाई मंगलवार को पूरी नहीं हो सकी, लिहाजा इसे बुधवार को जारी रखा जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह दलील रखने पर कि 2020 से तमिलनाडु में विधेयक लंबित पड़े हैं, अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह बात सही है, लेकिन इसमें कुछ कारण बताए गए थे जिनको कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया. उन्होंने कहा, “कई कारण थे जिनकी वजह से राज्यपाल ने संभवतः अपनी स्वीकृति रोकी होगी. हम उन कारणों में नहीं जा रहे हैं.” वेंकटरमणि ने आगे तर्क दिया कि वह "कानून की स्थिति" पर बात कर रहे हैं, इसलिए उन कारणों में नहीं जा रहे.
बलात्कारी आसाराम की जमानत फिर बढ़ी
गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार (19 अगस्त) को बलात्कारी आसाराम बापू की अस्थायी जमानत को 3 सितंबर तक बढ़ा दिया है. “लाइव लॉ” के अनुसार, आसाराम को 2013 के एक दुष्कर्म मामले में गांधीनगर की सेशंस कोर्ट ने दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. आज की सुनवाई में जब आसाराम के वकील ने अस्थायी जमानत को अगली सुनवाई तक बढ़ाने का अनुरोध किया, तो जस्टिस वोरा ने इसका अनुमोदन सिर हिलाकर किया.
उल्लेखनीय है कि 3 जुलाई को हाईकोर्ट ने एक महीने के लिए उसकी अस्थायी जमानत बढ़ाई थी, तब उसके वकील ने कहा था कि आगे और विस्तार नहीं मांगा जाएगा. तब कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्वास्थ्य कारणों पर जमानत के लिए आगे कोई प्रार्थना सुनवाई में नहीं लाई जाएगी.
राज्यसभा में आसंदी ने कहा, सोशल मीडिया पर साझा न किया जाए विलोपित हिस्सा
बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया पर चर्चा की मांग के कारण हंगामे के बीच राज्यसभा में सदन की अध्यक्षता कर रहे घनश्याम तिवारी ने व्यवस्था दी कि सदन की कार्यवाही से हटाए गए (एक्सपंज्ड) हिस्सों को सोशल मीडिया पर साझा न किया जाए. दरअसल, भाजपा के राधा मोहन दास अग्रवाल ने कहा था कि जब भी किसी विधेयक पर चर्चा आती है, तो नेता प्रतिपक्ष “विधेयक पर बात नहीं करते और सीधे "एसआईआर" पर चले जाते हैं.” अग्रवाल ने कहा, “आप निर्देश देते हैं कि यह कार्यवाही में दर्ज न हो. लेकिन नेता प्रतिपक्ष के बोलने के तुरंत बाद उनका वीडियो सोशल मीडिया पर साझा कर दिया जाता है. “मेरा सवाल है कि अगर आपने कार्यवाही से किसी हिस्से को लिखित रूप से विलोपित कर दिया है तो वह सोशल मीडिया पर कैसे साझा हो रहा है?. इस पर तिवारी ने सदन से कहा, “ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि कार्यवाही का जो भाग विलोपित किया गया है, वह सोशल मीडिया पर साझा न हो. चाहे संसद टीवी के जरिए हो या किसी और माध्यम से, उसे रिकॉर्ड में नहीं आना चाहिए — इसके लिए प्रबंध किया जाना चाहिए.”
मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा मुस्लिम लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र से संबंधित मुद्दे पर दायर याचिका को खारिज कर दिया. अपनी याचिका में, NCPCR ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों के तहत एक 21 वर्षीय मुस्लिम पुरुष और 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की के बीच हुए प्रेम विवाह को वैध माना गया था. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पहले यह फैसला सुनाया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, एक लड़की युवावस्था प्राप्त करने या कम से कम 15 वर्ष की होने पर कानूनी रूप से विवाह कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की याचिका को भी खारिज कर दिया.
बाढ़ पीड़ितों को नॉन-वेज ग्राम प्रधान और उसके बेटे गिरफ़्तार
उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में पुलिस ने एक ग्राम प्रधान, उसके दो बेटों और एक अन्य व्यक्ति को गिरफ़्तार किया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने शनिवार को जन्माष्टमी के दिन शाकाहारी बाढ़ प्रभावित लोगों को मांसाहारी बिरयानी परोसी, जिससे तनाव पैदा हो गया. मनीष साहू से बात करते हुए पुलिस ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधान मोहम्मद शमी ने गांव में एक स्थान पर जमा हुए कई मुस्लिम बाढ़ पीड़ितों के साथ-साथ 'दूसरे समुदाय के सदस्यों' को भी भोजन के पैकेट बांटे, जिससे तनाव बढ़ा. मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि कुछ लोगों को परोसे गए भोजन में मांस मिला और उन्होंने इस पर आपत्ति जताई, जिसके बाद प्रधान ने उनके साथ गाली-गलौज की.
जाति भेद
आज़ादी के 78 साल बाद गुजरात के एक गांव में दलितों को मिला बाल कटवाने का अधिकार
एक ऐसे कार्य में जिसे किसी भी आधुनिक लोकतंत्र में सामान्य माना जाना चाहिए, गुजरात के एक गांव ने इस महीने "प्रगति" का जश्न मनाया, जब वहां की पांच नाई की दुकानों ने अंततः दलितों, यानी अनुसूचित जाति के सदस्यों के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए. यादों में पहली बार, एक पूरे समुदाय को बाल कटवाने जैसी बुनियादी चीज़ की अनुमति दी गई. इस ख़बर का स्थानीय स्तर पर ऐसे स्वागत किया गया मानो बेड़ियां टूट गई हों, जैसे फिर से आज़ादी मिली हो. लेकिन कड़वी सच्चाई यह है: 2025 में - भारत को औपनिवेशिक शासन से आज़ादी मिलने के अठहत्तर साल बाद, और संविधान द्वारा छुआछूत को ग़ैर-क़ानूनी घोषित किए जाने के दशकों बाद - दलित आज भी जातिगत रंगभेद से आज़ादी का इंतज़ार कर रहे हैं.
विवेक अग्निहोत्री पर मुखर्जी के परिवार की एफआईआर
सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद और प्राचीन राजा शशांक के बाद, नवीनतम ऐतिहासिक हस्ती जिसे भाजपा अपनाने का प्रयास कर रही है, वह गोपाल मुखर्जी हैं, जिन्हें कई विद्वान 1946 के कलकत्ता दंगों के दौरान हिंदुओं की रक्षा करने वाले एक स्थानीय बाहुबली के रूप में पहचानते हैं. अपनी सांप्रदायिक रूप से चार्ज की गई फ़िल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के लिए जाने जाने वाले विवेक अग्निहोत्री ने 'द बंगाल फाइल्स' नामक एक नई फ़िल्म बनाई है, जिसके ट्रेलर में मुखर्जी का परिचय 'एक कसाई था' (उनके बकरी के मांस के व्यापारी होने के पेशे का जिक्र करते हुए) शब्दों के साथ किया गया है; भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक इस परियोजना की घोषणा के बाद से इसके पीछे लामबंद हो गए हैं. लेकिन उनके परिवार ने इस आधार पर एक FIR दर्ज कराई है कि यह दंगों में उनकी भूमिका को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है. उनके पोते शांतनु ने जॉयदीप सरकार और अपर्णा भट्टाचार्य को बताया कि "यह सच है कि 1946 के दंगों के दौरान, मेरे दादाजी ने... हमलावरों का विरोध करने के लिए हथियार उठाए थे", "लेकिन उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों सहित सभी धर्मों के लोगों की रक्षा की थी."
विश्व-भारती ने अमर्त्य सेन पर व्याख्यान की अनुमति नहीं दी
अक्सर विवादों के केंद्र में रहने वाला पश्चिम बंगाल का विश्व-भारती विश्वविद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है - इस बार नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन पर अपने पुस्तकालय सभागार में एक व्याख्यान आयोजित करने की अनुमति नहीं देने के लिए. 'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ द्वारा दिया जाने वाला यह व्याख्यान, एक बंगाली लघु पत्रिका, 'अनुष्टुप' द्वारा आयोजित किया गया था और 14 अगस्त को होना था. विश्वविद्यालय के इनकार के बाद, व्याख्यान निर्धारित तिथि पर एक निजी सभागार में आयोजित किया गया. द्रेज़ ने अखबार को बताया, "अमर्त्य सेन शांतिनिकेतन पुस्तकालय और भारत के सबसे प्रतिष्ठित विद्वानों की संतान हैं. यह आश्चर्यजनक है कि उनके काम का जश्न मनाने वाले एक कार्यक्रम को पुस्तकालय से बोलपुर के एक स्थानीय हॉल में स्थानांतरित करना पड़ा. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए इतना ही बहुत है." हालांकि विश्व-भारती के पीआरओ अतिग घोष ने कहा कि व्याख्यान को रद्द कर दिया गया क्योंकि यह विश्वविद्यालय में आयोजित एक अन्य विरासत कार्यक्रम के साथ ओवरलैप हो रहा था, विश्व-भारती के प्रोफेसरों ने कहा कि ऐसा कोई ओवरलैप नहीं था. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि द्रेज़ के व्याख्यान के ठीक बाद, विश्वविद्यालय ने ए.के. दासगुप्ता सेंटर के अध्यक्ष, प्रोफेसर अपूर्व कुमार चट्टोपाध्याय को हटाने की एक अधिसूचना जारी की, जो व्याख्यान के आयोजकों में से थे.
अमेरिकी टैरिफ़ भारतीय निर्यातकों के लिए बड़ी चुनौती, छोटे कारोबारियों पर पड़ेगा असर
अतिरिक्त 25% टैरिफ़, जो भारत पर कुल शुल्क को 50% तक ले जाएगा, कालीन, कपड़ा और परिधान, झींगा और फर्नीचर का निर्यात करने वाले कई भारतीय खिलाड़ियों के लिए बहुत बड़ा झटका हो सकता है. न्यूयार्क टाइम्स में एलेक्स ट्रैवेली ने उत्तर प्रदेश स्थित कालीन निर्यातक इश्तियाक अहमद खान की दुर्दशा की ओर इशारा किया है: उनकी कंपनी के लगभग 80% कर्मचारी किसान के रूप में भी काम करते हैं, जो बड़े पैमाने पर राशन पर निर्भर हैं, लेकिन कालीन फर्म में अर्जित लगभग 14,000 रुपये के अतिरिक्त लाभ से उन्हें फ़ायदा होता है. ट्रैवेली लिखते हैं, "यह केवल सरकारी राशन पर जीवित रहने और अपने बच्चों को स्कूल भेजने, उपभोक्ता सामान खरीदने और अपने क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को बढ़ाते रहने के बीच का अंतर है." इस बीच, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अजय श्रीवास्तव ने कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों ने राज्य सरकारों से "अपनी कंपनियों की देखभाल खुद करने" के लिए कहा है, और यह भी जोड़ा कि बैंक भी 50% अमेरिकी टैरिफ़ का सामना कर रही फर्मों द्वारा लिए गए ऋण को माफ़ करने की संभावना नहीं रखेंगे.
गुवाहाटी हाई कोर्ट की भूमिका पर सवाल: क्या असम में नागरिकता एक जुआ बन गई है?
असम में नागरिकता को लेकर चल रहा क़ानूनी और मानवीय संकट दुनिया के सबसे जटिल संकटों में से एक है. यहां फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (FT) द्वारा 1,65,000 से अधिक लोगों को पहले ही "विदेशी" घोषित किया जा चुका है और लगभग 1,00,000 मामले अभी भी लंबित हैं. ये अर्द्ध-न्यायिक निकाय, जिनकी मनमानी प्रक्रियाओं के लिए लंबे समय से आलोचना होती रही है, यह तय करते हैं कि कौन देश का नागरिक है और कौन नहीं. अक्सर ये फ़ैसले मामूली लिपिकीय त्रुटियों या कमज़ोर पुलिस जांच के आधार पर लिए जाते हैं. आर्टिकल-14 में मोहसिन आलम भट और आरुषि गुप्ता ने रिपोर्ट लिखी है.
एक नई रिपोर्ट, "अनमेकिंग सिटिज़न्स," इस मुद्दे को एक व्यवस्थागत समस्या के रूप में देखती है और तर्क देती है कि यह पूरी न्यायनिर्णयन मशीनरी संरचनात्मक रूप से लोगों को बाहर करने के लिए डिज़ाइन की गई है. इस व्यवस्था के केंद्र में गुवाहाटी हाई कोर्ट है, जिसने संवैधानिक जांच के रूप में कार्य करने के बजाय, उन ख़ामियों को और मज़बूत करने में भूमिका निभाई है जिन्हें उसे सुधारना था. रिपोर्ट के अनुसार, हाई कोर्ट के फ़ैसलों ने एक क़ानूनी शून्य पैदा किया है, जिसमें असंगतता, तदर्थ तर्क और अपने अधिकार क्षेत्र का सार्थक रूप से उपयोग करने में विफलता शामिल है.
इस संकट में एक महत्वपूर्ण मोड़ 2013 में गुवाहाटी हाई कोर्ट के 'बहाउद्दीन शेख बनाम भारत संघ' मामले में दिए गए फ़ैसले से आया. इस फ़ैसले में, हाई कोर्ट ने नागरिकता विवादों पर फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (FT) को विशेष अधिकार क्षेत्र दे दिया, जिससे सामान्य सिविल अदालतों के दरवाज़े बंद हो गए. यह एक गंभीर ग़लती थी क्योंकि FT को कभी भी क़ानून की अदालतों के रूप में डिज़ाइन नहीं किया गया था. वे प्रशासनिक निकाय थे जिन्हें ग़ैर-बाध्यकारी राय देने के लिए बनाया गया था, और उनमें न्यायिक मंचों के लिए आवश्यक सुरक्षा, स्वतंत्रता और प्रक्रियात्मक ढांचे का अभाव था.
गुवाहाटी हाई कोर्ट की सबसे परेशान करने वाली विफलताओं में से एक, फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल प्रणाली में मौजूद बुनियादी अधिकार क्षेत्र की ख़ामियों को दूर करने से इनकार करना रहा है. अपने ही एक फ़ैसले 'असम राज्य बनाम मोसलेम मंडल' (2013) में, कोर्ट ने कहा था कि एक FT केवल सीमा पुलिस से वैध संदर्भों के आधार पर ही कार्य कर सकता है, जो तर्कपूर्ण जांच और सबूतों पर आधारित होने चाहिए. व्यवहार में, इसे व्यवस्थित रूप से नज़रअंदाज़ किया गया है. वकीलों का कहना है कि 90% मामलों में जांच रिपोर्ट या तो होती नहीं है या फ़र्ज़ी होती है. फिर भी, हाई कोर्ट ने इस दुरुपयोग को संबोधित करने में बहुत कम रुचि दिखाई है और याचिकाओं को "समय बर्बाद करने वाली" रणनीति बताकर ख़ारिज कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में 'रहीम अली बनाम भारत संघ' मामले में इस सिद्धांत की पुष्टि की थी, लेकिन इसके बावजूद गुवाहाटी हाई कोर्ट ने इस पर ध्यान नहीं दिया है. हाई कोर्ट ने दस्तावेज़ों में नामों और उम्र में मामूली विसंगतियों जैसे मामलों में भी परस्पर विरोधी दृष्टिकोण अपनाया है. कुछ मामलों में, मामूली लिपिकीय त्रुटियों को स्वीकार किया गया, जबकि समान तथ्यों वाले दूसरे मामलों में, उन्हीं त्रुटियों के आधार पर लोगों के दावों को ख़ारिज कर दिया गया. उदाहरण के लिए, 'सुभा दास' (2015) के मामले में नाम की भिन्नता को स्वीकार किया गया, लेकिन 'राजेंद्र दास' (2010) के मामले में एक समान मामूली विसंगति को घातक माना गया.
यह मनमानापन और असंगतता एक ऐसा क़ानूनी माहौल बनाती है जहां वादियों का भाग्य सबूत और क़ानून के बजाय एक व्यक्तिगत न्यायाधीश की सोच पर अधिक निर्भर करता है. हाई कोर्ट नागरिकता के मामलों में स्पष्ट साक्ष्य मानक स्थापित करने में विफल रहा है, जिससे FT को मनमाने ढंग से दस्तावेज़ों को ख़ारिज करने की शक्ति मिल गई है. यह अप्रत्याशितता उन मामलों में असहनीय है जहां दांव पर नागरिकता जैसा मौलिक अधिकार हो. इस दृष्टिकोण ने नागरिकता को एक प्रशासनिक जुए में बदल दिया है, जिससे लोगों को राज्यविहीनता के गंभीर ख़तरे का सामना करना पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक सदस्यता, सुरक्षा और सम्मान का नुक़सान होता है.
विपक्ष का तेलुगू कार्ड
पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी वीपी के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार
भारत के अगले उपराष्ट्रपति के लिए चुनावी बिसात बिछ चुकी है. मंगलवार को विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' (INDIA bloc) ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया है. यह फैसला कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर हुई एक बैठक के बाद लिया गया, जिसमें गठबंधन के तमाम बड़े नेता शामिल हुए. जस्टिस रेड्डी का मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार और महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन से होगा.
विपक्षी नेताओं ने जस्टिस रेड्डी को एक "प्रगतिशील न्यायविद" (progressive jurist) के रूप में प्रस्तुत किया है, जिनका कानूनी और सामाजिक मुद्दों पर एक लंबा और प्रतिष्ठित करियर रहा है. आंध्र प्रदेश से आने वाले जस्टिस रेड्डी ने गौहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी काम किया है. उनके नाम की घोषणा करते हुए, मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस चुनाव को एक "वैचारिक लड़ाई" बताया और कहा कि देश में "लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला" हो रहा है. उम्मीदवार घोषित होने के तुरंत बाद, जस्टिस रेड्डी ने एनडीए सहित सभी दलों से अपनी उम्मीदवारी का समर्थन करने की अपील की, जिससे इस मुकाबले में एक नैतिक और सैद्धांतिक आयाम जुड़ गया है.
दूसरी ओर, एनडीए ने अपने उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन के लिए सर्वसम्मति बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए संसदीय दल की बैठक में विपक्ष से राधाकृष्णन का सर्वसम्मति से चुनाव करने की अपील की. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.एनडीए अपने उम्मीदवार की जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहा है, लेकिन विपक्ष ने जस्टिस रेड्डी जैसे मजबूत और गैर-राजनीतिक चेहरे को मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है.
यह चुनाव केवल दो व्यक्तियों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि दो अलग-अलग विचारधाराओं का टकराव है. जहाँ एनडीए अपने राजनीतिक उम्मीदवार के माध्यम से अपनी ताकत दिखाना चाहता है, वहीं विपक्ष ने एक पूर्व न्यायाधीश को नामांकित करके कानून, संविधान और संस्थागत स्वायत्तता जैसे मुद्दों को बहस के केंद्र में लाने की कोशिश की है. जस्टिस रेड्डी का चयन दक्षिण भारत, विशेष रूप से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी एक राजनीतिक संदेश देता है. यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि तृणमूल कांग्रेस (TMC) और अन्य कुछ क्षेत्रीय दल इस पर क्या रुख अपनाते हैं, क्योंकि उनकी भूमिका इस चुनाव में निर्णायक हो सकती है. आगामी 9 सितंबर को होने वाला यह चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक और बड़े शक्ति प्रदर्शन का मंच बन गया है.
इस घोषणा ने रेड्डी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार, महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन के बीच मुकाबले की ज़मीन तैयार कर दी है. सोमवार को, 11 सांसदों वाली युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (YSRCP) ने NDA उम्मीदवार को अपना समर्थन देने की घोषणा की. हालांकि, रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाकर, 'INDIA' ब्लॉक अब 'तेलुगु गौरव' का आह्वान करने की स्थिति में है - एक ऐसा कदम जो NDA की सहयोगी और आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी, तेलुगु देशम पार्टी (TDP) को मुश्किल में डाल सकता है. रेड्डी का चयन जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली YSRCP के राधाकृष्णन को समर्थन देने के फैसले को भी आंध्र प्रदेश में राजनीतिक रूप से कम फ़ायदेमंद बनाता है. 782 सांसदों वाले निर्वाचक मंडल में बहुमत का आंकड़ा 394 है. YSRCP के समर्थन से, NDA के पास 438 सांसद हैं जबकि 'INDIA' ब्लॉक के पास 323 हैं. और फिर भी, जहां भाजपा द्वारा राधाकृष्णन का चयन द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) को घेरने के लिए एक 'तमिल गौरव' का 'मास्टरस्ट्रोक' माना गया था, क्या 'INDIA' ब्लॉक द्वारा तेलुगु गौरव को एकजुट करने के लिए सुदर्शन रेड्डी का चयन NDA की सहयोगी TDP को मुश्किल में डालने जैसा है?
यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी: रूबियो करेंगे बातचीत का नेतृत्व, ट्रम्प ने हवाई समर्थन का वादा किया
अमेरिका, यूक्रेन और कई यूरोपीय देशों के वरिष्ठ अधिकारी आने वाले दिनों में यूक्रेन के लिए एक विस्तृत सुरक्षा गारंटी प्रस्ताव पर काम करने वाले हैं, जिसमें अमेरिकी हवाई शक्ति को शामिल किए जाने की संभावना है. एक्सियोस को चर्चा की जानकारी रखने वाले दो स्रोतों ने यह बताया है. यह यूक्रेन की एक प्रमुख मांग है और महीनों तक इस मुद्दे पर चर्चा से इनकार करने के बाद, राष्ट्रपति ट्रम्प ऐसी योजना में अमेरिकी भागीदारी के विचार पर सहमत हो गए हैं. फॉक्स न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में, ट्रम्प ने जोर देकर कहा कि यूक्रेन में ज़मीन पर कोई अमेरिकी सैनिक नहीं होगा, लेकिन उन्होंने कहा कि वह यूक्रेन में तैनात किसी भी यूरोपीय सैन्य बल को अमेरिकी सैन्य हवाई सहायता प्रदान करने के लिए तैयार हैं. ट्रम्प ने यह भी कहा कि उन्हें लगता है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन के लिए अमेरिकी-यूरोपीय सुरक्षा गारंटी स्वीकार करेंगे, "लेकिन हमें अगले कुछ हफ्तों में पता चल जाएगा". वहीं, रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह यूक्रेन के अंदर "नाटो देशों की भागीदारी वाले सैन्य दल" की संभावना को "स्पष्ट रूप से" खारिज करता है. ट्रम्प और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के बीच हुई बातचीत में सुरक्षा गारंटी एक प्रमुख विषय था. ट्रम्प "आर्टिकल 5-जैसे" सुरक्षा गारंटी पर यूरोपीय नेताओं के साथ मिलकर काम करने पर सहमत हुए, जो नाटो के सामूहिक रक्षा सिद्धांत को संदर्भित करता है. सुरक्षा गारंटी पर एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने के लिए एक संयुक्त अमेरिका-यूरोपीय-यूक्रेनी आयोग का गठन किया गया है, जिसका नेतृत्व विदेश मंत्री मार्को रूबियो करेंगे. एक यूक्रेनी अधिकारी ने कहा, "आने वाले दिनों में हर कोई सुरक्षा गारंटी पर सुबह से शाम तक काम करेगा. शायद सप्ताह के अंत तक हमारे पास कुछ स्पष्ट ढांचा होगा". इस बीच, ज़ेलेंस्की के लिए सबसे मुश्किल मुद्दा क्षेत्रीय रियायतें हो सकती हैं. ट्रम्प ने पुतिन से ज़ेलेंस्की के साथ सीधे मिलने और क्षेत्रीय मांगों पर "यथार्थवादी" होने का आग्रह किया है.
बीजिंग के दावे के बाद सरकार का स्पष्टीकरण, ताइवान पर नीति में कोई बदलाव नहीं
भारत सरकार ने मंगलवार (19 अगस्त, 2025) को इस बात पर जोर दिया कि ताइवान पर उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. यह स्पष्टीकरण चीनी विदेश मंत्रालय के एक बयान के बाद आया जिसमें दावा किया गया था कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ अपनी बैठक में कहा था कि "ताइवान चीन का हिस्सा है". विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा वांग की यात्रा के अंत में जारी एक बयान में कहा गया कि चीनी पक्ष ने ताइवान का मुद्दा "उठाया था". बयान के अनुसार, "भारतीय पक्ष ने रेखांकित किया कि इस मुद्दे पर उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. यह बताया गया कि, दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह, भारत के ताइवान के साथ आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने वाले संबंध हैं और यह जारी रहेगा". यह समझा जाता है कि जयशंकर ने ताइवान के साथ भारत के संबंधों पर चर्चा की थी, लेकिन उन्होंने उस वाक्यांश का उपयोग नहीं किया था जो उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया था. गौरतलब है कि भारत ने मूल रूप से 'वन चाइना पॉलिसी' को स्वीकार किया था, लेकिन 2010 के बाद से सीधे तौर पर इसे दोहराने से बचता रहा है. तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के भारतीयों के लिए 'स्टेपल वीजा' जारी करने के विरोध में 'वन चाइना पॉलिसी' की पुष्टि करना बंद कर दिया था. 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भी यह नीति जारी रही. अधिकारियों के अनुसार, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने चीनी समकक्ष से यह तक कहा था कि यदि चीन चाहता है कि भारत 'वन चाइना पॉलिसी' की पुष्टि करे तो उसे 'वन इंडिया पॉलिसी' का सम्मान करना चाहिए.
भारत-चीन संबंधों में 'महत्वपूर्ण अवसर', डोभाल-वांग यी की मुलाकात में सुलह के संकेत
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने मंगलवार (19 अगस्त, 2025) को सुलह का संकेत देते हुए कहा कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध अब एक "महत्वपूर्ण अवसर" का सामना कर रहे हैं. भारत-चीन सीमा प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधियों (SR) के बीच 24वीं बैठक में बोलते हुए, वांग ने 2020 की गलवान झड़पों के नकारात्मक प्रभाव का परोक्ष रूप से उल्लेख किया और कहा कि हाल के "झटके" दोनों देशों के हितों को आगे नहीं बढ़ाते हैं. चीनी पक्ष की सकारात्मक भावना का जवाब देते हुए, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने पुष्टि की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करेंगे. वांग ने पिछले साल कज़ान (रूस) में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी के बीच हुई बैठक को याद करते हुए कहा, "उस बैठक ने हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए दिशा दिखाई और सीमा प्रश्न के उचित समाधान के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया". डोभाल ने चीन में हुई पिछली विशेष प्रतिनिधि-स्तरीय वार्ता को "शानदार" बताया और कहा कि हाल के महीनों में भारत-चीन संबंधों में "सुधार की प्रवृत्ति" रही है. वांग ने सोमवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ भी बैठक की थी, जिन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को "आगे बढ़ाने" की आवश्यकता पर जोर दिया. सूत्रों ने कहा कि वांग ने जयशंकर को आश्वासन दिया कि चीन उर्वरकों, दुर्लभ खनिजों (rare earths) और टनल बोरिंग मशीनों के लिए भारत की जरूरतों को पूरा करेगा.
672 टन के ऐतिहासिक चर्च को उठाकर 5 किलोमीटर दूर शिफ़्ट किया जा रहा
स्वीडन के किरुना शहर में एक ऐतिहासिक चर्च को उसकी जगह से 5 किलोमीटर दूर ले जाने का एक अद्भुत और विशाल ऑपरेशन मंगलवार को शुरू हो गया. यह क़दम यूरोप की सबसे बड़ी भूमिगत लौह अयस्क खदान के विस्तार के कारण उठाया जा रहा है, जिसकी वजह से शहर की ज़मीन कमज़ोर हो रही है और उसके खदान में समा जाने का ख़तरा पैदा हो गया है. द गार्डियन के मुताबिक आठ साल की योजना और लगभग 500 मिलियन क्रोनर (£39 मिलियन) की अनुमानित लागत के बाद, 672 टन के किरुना चर्च की धीमी यात्रा शुरू हुई. 1912 में बने इस चर्च को दो दिनों में, आधे किलोमीटर प्रति घंटे की बेहद धीमी रफ़्तार से अपनी नई जगह पर पहुंचाया जाएगा. यह सिर्फ़ एक चर्च को बचाने की बात नहीं है, बल्कि यह एक बड़े बहु-दशक के ऑपरेशन का हिस्सा है, जिसमें पूरे आर्कटिक शहर को ही धीरे-धीरे स्थानांतरित किया जा रहा है. स्वीडन के राजा कार्ल XVI गुस्ताफ़ सहित 10,000 से ज़्यादा लोगों के इस ऐतिहासिक पल को देखने के लिए सड़कों पर इकट्ठा होने की उम्मीद है, जिन्हें चर्च को ले जाने के लिए विशेष रूप से चौड़ा किया गया है. इस पूरी घटना का सीधा प्रसारण किया जा रहा है, जिसे स्वीडिश ब्रॉडकास्टर एसवीटी "डेन स्टोरा किर्कफ्लिटन" (द बिग चर्च मूव) कह रहा है.
गुस्ताफ़ विकमैन द्वारा डिज़ाइन किया गया यह चर्च स्वीडन की सबसे पसंदीदा इमारतों में से एक है, जिसकी वास्तुकला एक पारंपरिक सामी झोपड़ी (lávvu) जैसी दिखती है. इस बड़े ऑपरेशन के लिए चर्च के अंदर की कीमती चीज़ों, जैसे कि वेदी पर लगी पेंटिंग और 2,000 से ज़्यादा पाइप वाले ऑर्गन को सावधानी से पैक किया गया है. चर्च को बीम और ट्रेलरों के एक जटिल सिस्टम पर रखकर उठाया गया है. खदान का संचालन करने वाली सरकारी कंपनी एलकेएबी ने इसे "विश्व इतिहास की एक अनूठी घटना" बताया है. हालांकि, कुछ सामी लोगों ने इस विस्तार की आलोचना भी की है, क्योंकि उन्हें डर है कि ज़मीन के इस तरह इस्तेमाल से उनके बारहसिंगा पालन के काम में मुश्किल आएगी. चर्च अगले साल के अंत तक अपने नए स्थान पर फिर से खुल जाएगा, जबकि पूरे शहर का स्थानांतरण 2035 तक पूरा होने की उम्मीद है.
पाठकों से अपील :
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