20/11/2025: बिहार में चमत्कार पर पराकाला के कई सवाल | जैफरलो और अरुण कुमार भी | पुलिस ने बुद्धिजीवियों को ख़तरनाक बताया | न एफडीआई है, न मुख्य क्षेत्रों में ग्रोथ | नेहरू का ऑनलाइन होना | ट्रंप ममदानी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
अख़लाक़ लिंचिंग केस, मूड के हिसाब से नहीं चलेगा मुक़दमा.
विधेयकों पर सहमति, राज्यपाल-राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा नहीं.
अंबेडकर पर टिप्पणी, स्वामी आनंद स्वरूप पर मुक़दमा दर्ज.
बुद्धिजीवी ज़्यादा ख़तरनाक, दिल्ली पुलिस का सुप्रीम कोर्ट में तर्क.
उमर खालिद को समानता नहीं, सह-आरोपियों से अलग मामला.
महाराष्ट्र लिंचिंग, चार्जशीट में देरी, आरोपियों को ज़मानत.
अर्थव्यवस्था सुस्त, आठ प्रमुख क्षेत्रों में शून्य वृद्धि.
एफडीआई संकट, निवेश नीति पर सरकार का मंथन.
नेहरू के 100 ग्रंथ ऑनलाइन, आर्काइव का विस्तार जारी.
बिहार चुनाव, 1.77 लाख अतिरिक्त वोटों पर चुनाव आयोग से सवाल.
कुविकास की जीत, बिहार में नकदी हस्तांतरण का असर.
चुनाव में रिश्वतखोरी, बिहार के नतीजों पर विश्लेषण.
नीतीश कुमार 10वीं बार मुख्यमंत्री, एनडीए की भव्य शपथ.
एनडीए में परिवारवाद, कुशवाहा ने बेटे को बनाया मंत्री.
अल फलाह यूनिवर्सिटी जांच के घेरे में, 200 कर्मचारी रडार पर.
मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण, 9 दिसंबर को सुनवाई.
रॉबर्ट वाड्रा पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप पत्र दाख़िल.
कश्मीर टाइम्स पर छापे, अख़बार बोला- डराने की कोशिश.
‘ऑपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान भारी, अमेरिकी रिपोर्ट का दावा.
ट्रंप-ज़ोहरान की मुलाक़ात, तल्ख़ी के बाद व्हाइट हाउस में मिलेंगे.
तलाक़-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट सख़्त, बड़ी बेंच को भेजने पर विचार.
तमिलनाडु, जातीय अपमान से दलित छात्र ने की आत्महत्या.
दिल्ली प्रदूषण पर आरटीआई, 48 घंटे में जवाब की मांग.
आनंद तेलतुंबडे का जेल संस्मरण, भीमा कोरेगांव केस का सच.
अख़लाक़ लिंचिंग: “मूड’ के हिसाब से अभियोजन को चालू या बंद नहीं किया जा सकता
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा मोहम्मद अख़लाक़ लिंचिंग मामले में मुकदमा (अभियोजन) वापस लेने की कोशिश पर सवाल उठ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े एक महत्वपूर्ण लेख में कहते हैं, “अख़लाक़ मामले में आगे का रास्ता स्पष्ट है. कोर्ट को अभियोजन वापस लेने के कारणों का पूर्ण खुलासा करने की मांग करनी चाहिए. उसे अख़लाक़ के परिवार को अपनी बात रखने का उचित मौका देना चाहिए. कोर्ट को यह आकलन करना चाहिए कि क्या आवेदन जनहित पर आधारित है या राजनीतिक दबाव से प्रेरित है.
यदि कोर्ट को वापसी के लिए कोई वास्तविक आधार नहीं मिलता है, तो उसे सहमति देने से इनकार कर देना चाहिए. ऐसा आदेश जनता को आश्वस्त करेगा कि न्याय कोई मौसमी अभ्यास नहीं है. यह उनके परिवार के सदस्यों को इसके समापन की तलाश में मदद करेगा. यह राज्य को यह भी याद दिलाएगा कि “मूड’ के हिसाब से अभियोजन को चालू या बंद नहीं किया जा सकता.
एक गणतंत्र तभी स्थिर रहता है, जब उसकी संस्थाएं शांत शक्ति के साथ दबाव का विरोध करती हैं. अभियोजकों को याद रखना चाहिए कि वे किसकी सेवा करते हैं. न्यायाधीशों को उस वादे को याद रखना चाहिए जिसकी वे रक्षा करते हैं. पीड़ितों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए, न कि राजनीतिक सुविधा के लिए बाधाओं के रूप में. यदि अख़लाक़ अभियोजन अपने सही रास्ते पर चलता रहा, तो यह दिखाएगा कि जब सबसे ज़्यादा मायने रखता है, तब भी न्याय प्रणाली में दृढ़ता से खड़े रहने का साहस है.”
विधेयकों की सहमति के लिए राज्यपाल/राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा किए गए संदर्भ का उत्तर देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 नवंबर) को फैसला सुनाया कि कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 200/201 के तहत विधेयकों को सहमति देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं कर सकता है.
“लाइव लॉ” के अनुसार, कोर्ट ने आगे कहा कि समय-सीमा का उल्लंघन होने पर कोर्ट द्वारा विधेयकों को “मानित सहमति” घोषित करने की अवधारणा संविधान की भावना के विपरीत है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध है. कोर्ट द्वारा “मानित सहमति” घोषित करने की अवधारणा वस्तुतः राज्यपाल के लिए आरक्षित कार्यों को अपने हाथ में लेना है.
गुरुसिमरन कौर बख्शी के अनुसार, कोर्ट ने कहा, “हमें यह निष्कर्ष निकालने में कोई झिझक नहीं है कि न्यायिक रूप से निर्धारित समय-सीमा की समाप्ति पर अनुच्छेद 200 या 201 के तहत राज्यपाल, या राष्ट्रपति की मानित सहमति, वस्तुतः न्यायिक घोषणा के माध्यम से, न्यायपालिका द्वारा कार्यकारी कार्यों का अधिग्रहण और प्रतिस्थापन है, जो हमारे लिखित संविधान के दायरे में अस्वीकार्य है.”
साथ ही, कोर्ट ने टिप्पणी की कि यदि राज्यपाल द्वारा लंबे समय तक या अस्पष्टीकृत देरी होती है जो विधायी प्रक्रिया को विफल करती है, तो कोर्ट सीमित न्यायिक समीक्षा शक्ति का प्रयोग करके राज्यपाल को समय-बद्ध तरीके से निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है, हालांकि वह विधेयक के गुणों पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा.
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर की एक पीठ ने इस मामले की दस दिनों तक सुनवाई की और 11 सितंबर को अपनी राय सुरक्षित रख ली थी. तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में दो-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले के तुरंत बाद मई में राष्ट्रपति का संदर्भ दिया गया था, जिसने विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल के कार्य करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की थी.
अंबेडकर पर अपमानजनक टिप्पणी , स्वामी आनंद स्वरूप पर मुक़दमा
पुलिस ने गुरुवार को बताया कि भीमपुरा पुलिस स्टेशन में स्वामी आनंद स्वरूप के ख़िलाफ़ डॉ. बी.आर. अंबेडकर के विरुद्ध कथित रूप से ग़लत सूचना और अफ़वाह फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है. पुलिस के अनुसार, ज़िला पंचायत सदस्य धनपति देवी के एक प्रतिनिधि की शिकायत के आधार पर शंभवी पीठ के प्रमुख और काली सेना के संस्थापक स्वरूप के ख़िलाफ़ भारतीय न्याय संहिता की धारा 353(2) (सार्वजनिक शरारत के लिए बयान) और आईटी अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है. एफआईआर में, शिकायतकर्ता ने कहा कि भीमपुरा थाना क्षेत्र के कासेसर गांव के निवासी स्वामी आनंद स्वरूप, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक पर डॉ. बी.आर. अंबेडकर पर अत्यधिक आपत्तिजनक, भ्रामक और अपमानजनक टिप्पणी कर रहे हैं. यह भी आरोप लगाया गया कि स्वरूप यह झूठा प्रचार कर रहे हैं कि अंबेडकर संविधान के निर्माता नहीं थे. शिकायत में कहा गया है, “यह समाज में जातीय भेदभाव, घृणा और हिंसा भड़काने की एक निंदनीय मंशा को दर्शाता है. ये टिप्पणियाँ भारतीय संविधान की गरिमा का अपमान करती हैं और समाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे को बाधित करती हैं, जिससे सांप्रदायिक तनाव और जातीय घृणा पैदा होती है.” क्षेत्राधिकारी (रसड़ा) आलोक कुमार गुप्ता ने कहा कि पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और मामले की जाँच कर रही है.
‘बुद्धिजीवी कार्यकर्ताओं से ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं’: दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में कहा
दिल्ली पुलिस ने गुरुवार, 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में 2020 की दिल्ली हिंसा के ‘व्यापक साज़िश’ मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य सहित कई आरोपियों की ज़मानत याचिकाओं का विरोध करते हुए अपनी ‘सत्ता परिवर्तन’ की दलील को आगे बढ़ाया. पुलिस ने कहा कि बुद्धिजीवी ज़मीनी स्तर के ‘कार्यकर्ताओं’ से ‘अधिक ख़तरनाक’ होते हैं. पुलिस की ओर से यह तर्क दिया गया कि डॉक्टरों और इंजीनियरों में राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का “ट्रेंड” है. ज़मानत मांग रहे मौजूदा आरोपियों में से केवल इमाम ही शिक्षा से इंजीनियर हैं. हालाँकि, यह हाल ही में लाल क़िला क्षेत्र विस्फोट मामले में हुई गिरफ़्तारियों का एक परोक्ष संदर्भ हो सकता है, जिसमें कथित तौर पर मेडिकल डॉक्टर शामिल थे.
इमाम और अन्य को 2020 की शुरुआत में 53 लोगों की मौत का कारण बनी दिल्ली के उत्तर-पूर्वी ज़िले की हिंसा से पहले और बाद में कई महीनों के दौरान अलग-अलग गिरफ़्तार किया गया था. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने गुरुवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार और एन.वी. अंजारिया की बेंच के सामने पुलिस की ओर से पेश होते हुए कहा कि बुद्धिजीवियों से देश को ख़तरा है और ज़मानत याचिकाओं का पुरज़ोर विरोध किया. अभियोजन पक्ष ने इमाम के भाषणों की क्लिप भी चलाईं जो उन्होंने कथित तौर पर नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान दिए थे. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि उनके ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह पैदा करने के लिए भाषणों का केवल एक ‘सूक्ष्म’ हिस्सा चलाया जा रहा है.
अभियोजन पक्ष ने अपने पहले के तर्क को भी दोहराया कि आरोपी व्यक्ति “सत्ता परिवर्तन” चाहते थे. राजू ने कहा कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आगमन के साथ अपने विरोध का समय निर्धारित किया ताकि विश्व स्तर पर भारत की छवि को धूमिल किया जा सके. उन्होंने अपनी दलील में बांग्लादेश में हाल के विरोध प्रदर्शनों को जोड़ा, जो दिल्ली में हुई हिंसा के लगभग पाँच साल बाद हुए, और कहा कि भारत में भी कुछ इसी तरह का लॉन्च करने की योजना थी. ASG ने न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया घरानों और सोशल मीडिया पर ज़मानत की सुनवाई से पहले आरोपियों के प्रति कथित रूप से सहानुभूति रखने पर भी नाराज़गी व्यक्त की.
उमर खालिद समानता की मांग नहीं कर सकता
दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि छात्र-कार्यकर्ता और शिक्षाविद् उमर खालिद, जिन पर 2020 के दिल्ली दंगों के पीछे एक “बड़ी साजिश” का हिस्सा होने का आरोप है, वह सह-आरोपियों देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा के समान व्यवहार की मांग नहीं कर सकते हैं. “लाइव लॉ” की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया कि उनके पक्ष में हाईकोर्ट का 2021 का जमानत आदेश गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की गलत व्याख्या पर पारित किया गया था.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि 2021 में, कलिता और अन्य को जमानत देते समय, हाई कोर्ट ने यह मानने में गलती की थी कि यूएपीए केवल “भारत की रक्षा” से संबंधित अपराधों पर लागू होता है. राजू ने तर्क दिया कि इसका मतलब यह था कि हाई कोर्ट ने आतंकवाद विरोधी कानून की धारा 43डी(5) के तहत जमानत पर लगे वैधानिक प्रतिबंध को गलत तरीके से लागू न होने योग्य माना. उन्होंने कोर्ट को बताया कि एक बार जब हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि यूएपीए लागू नहीं होता है, तो उसने धारा 437 के बजाय आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 439 का गलत तरीके से आव्हान किया.
महाराष्ट्र: चार्जशीट में देरी के बाद लिंचिंग के आरोपियों को ज़मानत, हिंदुत्व संगठन के मार्च में शामिल हुई पुलिस
महाराष्ट्र के जामनेर में 20 वर्षीय सुलेमान पठान की पीट-पीटकर हत्या किए जाने के तीन महीने बाद, एक स्थानीय अदालत ने चार मुख्य आरोपियों को ज़मानत दे दी - सबूतों की कमी के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि जामनेर की पुलिस 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाख़िल करने में विफल रही, जैसा कि क़ानून की आवश्यकता है. आर्टिकल 14 के लिए कुणाल पुरोहित ने लंबा रिपोर्ताज लिखा है. पुरोहित एक स्वतंत्र पत्रकार और ‘एच-पॉप: द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ़ हिंदुत्व पॉपस्टार्स’ पुस्तक के लेखक हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक आरोपियों में पठान के गाँव के क़रीबी दोस्त और हिंदू उग्रवादी संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान से जुड़े लोग शामिल थे. यह वही संगठन है जिसके इस साल 1 अक्टूबर को जामनेर में वार्षिक दशहरा मार्च का नेतृत्व जाँच दल के कुछ पुलिस अधिकारियों ने किया था, जिसमें मूल जाँच अधिकारी मुरलीधर कासर भी शामिल थे.
11 अगस्त, 2025 को, पठान पर हिंदू पुरुषों के एक समूह ने एक नाबालिग हिंदू लड़की के साथ कैफ़े में बैठने पर हमला किया था. भीड़ के सदस्य, जिसमें पठान के अपने दोस्त भी शामिल थे, शिव प्रतिष्ठान से जुड़े हैं. हमला पाँच घंटे तक चला, पठान का अपहरण किया गया, पीटा गया, कपड़े उतारे गए और पीट-पीटकर हत्या कर दी गई.
आरोपियों की रिहाई ने पठान के परिवार के लिए नई बेचैनी ला दी है. हत्या ने महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया और महाराष्ट्र सरकार ने हत्या की जाँच के लिए एक विशेष जाँच दल का गठन किया. पुलिस ने 90 दिन की अवधि समाप्त होने के क़रीब 11 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप दाख़िल किए, जैसा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 की आवश्यकता है.
चार आरोपियों - अभिषेक राजपूत (22), सूरज शर्मा (25), दीपक घिसाडी (20), और रंजन मटाडे (48) - को 11 नवंबर को जामनेर में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने ज़मानत पर रिहा कर दिया. राजपूत और शर्मा पठान के क़रीबी दोस्त थे.
ज़मानत पर चार आरोपियों की रिहाई के साथ, पठान के परिवार ने अपना डर व्यक्त किया. पठान के बहनोई महबूब ख़ान ने कहा, “हम सब फिर से बहुत तनाव महसूस कर रहे हैं.” पठान के परिवार ने पहले आरोप लगाया था कि पुलिस ने प्रमुख सबूतों को नज़रअंदाज़ किया और सभी पहचाने गए संदिग्धों पर आरोप लगाने में विफल रही. परिवार ने 17 व्यक्तियों के नाम बताए थे, लेकिन एफ़आईआर में केवल 5 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप दर्ज किए गए.
परिवार ने पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं, खासकर जब 1 अक्टूबर को, जामनेर के पुलिस अधिकारियों को शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के साथ वार्षिक दशहरा मार्च का नेतृत्व करते हुए देखा गया था. पुलिस अधिकारियों ने वर्दी और भगवा पगड़ी पहन रखी थी और ध्वजवाहक के रूप में मार्च का नेतृत्व कर रहे थे. महबूब ख़ान ने कहा कि उसी संगठन के लिए पुलिस अधिकारियों को ध्वजवाहक के रूप में देखना परिवार के लिए चौंकाने वाला था. उन्होंने सवाल किया, “हमें यह कैसे विश्वास हो सकता है कि यही पुलिसकर्मी उसी संगठन के लोगों पर मुक़दमा चलाने के लिए आवश्यक सबूत इकट्ठा करने के लिए पर्याप्त निष्पक्ष होंगे?”
अक्टूबर 2025 में आठ प्रमुख क्षेत्रों की गतिविधि में कोई वृद्धि नहीं, 14 महीनों में सबसे ख़राब प्रदर्शन
आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, अर्थव्यवस्था के आठ प्रमुख क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधि में वृद्धि अक्टूबर 2025 में सपाट रही, जो 14 महीनों में सबसे ख़राब प्रदर्शन है.आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक में वृद्धि अक्टूबर 2025 में 0% रही, जो पिछले साल अक्टूबर में 3.8% और इस साल सितंबर में 3% थी. अक्टूबर का प्रदर्शन पिछले साल अगस्त के बाद सबसे ख़राब है, जब सूचकांक में 1.5% का संकुचन हुआ था. आठ प्रमुख उद्योग - कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली - मिलकर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) का 40.27% हिस्सा हैं. अक्टूबर में सपाट चाल मुख्य रूप से इस्पात, सीमेंट, उर्वरक और रिफाइनरी उत्पाद क्षेत्रों में वृद्धि के कारण थी, जो कोयला, बिजली, प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल क्षेत्रों में संकुचन से संतुलित हो गई.
इस्पात क्षेत्र अक्टूबर 2025 में 6.7% बढ़ा, जो आठ प्रमुख क्षेत्रों में दूसरा सबसे अधिक होने के बावजूद, इस्पात क्षेत्र के लिए छह महीने का निचला स्तर था. सीमेंट क्षेत्र अक्टूबर 2025 में 5.3% की दर से बढ़ा, जो पिछले साल अक्टूबर में 3.1% की वृद्धि के साथ-साथ सितंबर 2025 में 5% की वृद्धि से भी तेज़ था. उर्वरक क्षेत्र आठ प्रमुख क्षेत्रों में सबसे तेज़ी से 7.4% की दर से बढ़ा, जो सात महीनों में सबसे तेज़ था. रिफाइनरी उत्पाद क्षेत्र अक्टूबर 2025 में 4.6% बढ़ा, जो इस क्षेत्र का नौ महीनों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था.
दूसरी ओर, कोयला क्षेत्र में अक्टूबर 2025 में 8.5% का संकुचन हुआ, जो लंबे समय तक मानसून और ठंडे मौसम की शुरुआत के बाद आया, जिसके कारण बिजली की मांग कम हुई और खनन गतिविधि में कमी आई. यह अक्टूबर 2025 के दौरान बिजली क्षेत्र में 7.6% के संकुचन में दिखा. प्राकृतिक गैस क्षेत्र में भी 5% की गिरावट आई, जो सात महीनों में इसका सबसे ख़राब प्रदर्शन था, जबकि कच्चे तेल के उत्पादन में 1.2% की गिरावट आई.
रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर के अनुसार, खनन और बिजली क्षेत्रों के प्रदर्शन में गिरावट को देखते हुए, आईआईपी वृद्धि अक्टूबर में सितंबर के 4% से घटकर लगभग 2.5-3.5% हो सकती है.
एफडीआई संकट, निवेश तंत्र में छेद, दावा खोखला
बंद कमरा बैठक में, वाणिज्य मंत्रालय ने भारत के चरमराते निवेश तंत्र को “पुनः ठीक करने” के लिए उद्यम पूंजी दिग्गजों और नियामकों के साथ मंथन किया – लेकिन इस तीन घंटे की कवायद ने केवल इस बात को रेखांकित किया कि यह प्रणाली कितनी “अव्यवस्थित” हो गई है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में पुष्पिता डे की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार अब भारत के पड़ोसी देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को नियंत्रित करने वाली एक प्रमुख नीति (पीएन3) पर सुझावों के लिए संघर्ष कर रही है. पीएमओ द्वारा हाल ही में पीएन3 की समीक्षा, उलझी हुई स्वीकृतियों और सुस्त एफडीआई प्रवाह पर बढ़ते असंतोष का संकेत देती है.
आरबीआई, सेबी और अन्य नियामकों के वरिष्ठ अधिकारियों के बोर्ड पर होने के बावजूद, चर्चाएं उन्हीं पुरानी समस्याओं के इर्द-गिर्द घूमती रहीं, जैसे- अस्पष्ट प्रक्रियाएं, पुरानी देरी और विदेशी पूंजी के प्रति शत्रुतापूर्ण नौकरशाही. डे लिखती हैं कि जैसे-जैसे सरकार उस गड़बड़ी को देर से ठीक करने की कोशिश कर रही है, जिसे उसने खुद बनाया है, भारत का एक निवेश केंद्र होने का वादा तेजी से खोखला होता जा रहा है.
नेहरू के 100 ‘सलेक्टेड वर्क्स’ के खंड पूरी तरह से ऑनलाइन हुए
जवाहरलाल नेहरू के ‘सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू’ के 100 खंडों का एक सेट, जिसमें लगभग 35,000 दस्तावेज़ और लगभग 3,000 चित्र हैं, अब पूरी तरह से ऑनलाइन उपलब्ध है. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड (जेएनएमएफ) द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, “जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड को यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि ‘सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू’ अब पूरी तरह से ऑनलाइन उपलब्ध है, जैसा कि 14 नवंबर, 2024 को वादा किया गया था. वेबसाइट ‘द नेहरू आर्काइव’ nehruarchive.in पर उपलब्ध (https://nehruarchive.in/) है.”
बयान में कहा गया है कि 100 खंडों के पूरे सेट को डिजिटल कर दिया गया है; उन्हें खोजा और मुफ़्त में डाउनलोड किया जा सकता है, और उन्हें मोबाइल और लैपटॉप पर समान आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश, जो इस अभ्यास को करने वाले जेएनएमएफ के ट्रस्टी हैं, ने कहा कि आर्काइव का विस्तार अधिक पाठ, तस्वीरों, ऑडियो और फ़िल्मों को कवर करने के लिए होता रहेगा. रमेश ने कहा कि दूसरे चरण में नेहरू के पत्रों का पता लगाने के प्रयास शामिल होंगे. उन्होंने कहा कि गांधी-नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल-नेहरू और सुभाष चंद्र बोस-नेहरू के बीच पत्राचार काफी व्यापक है, लेकिन कुछ अन्य पत्राचारों जैसे विंस्टन चर्चिल-नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर-नेहरू के मामले में ऐसा नहीं है और इसे शामिल करना नेहरू आर्काइव के लिए सबसे बड़ा मूल्यवर्धन होगा. यह पूछे जाने पर कि क्या आर्काइव वर्तमान सरकार द्वारा नेहरू के ख़िलाफ़ बनाए गए किसी भी नैरेटिव का मुक़ाबला करने का प्रयास करेगा, कांग्रेस नेता ने कहा, “निहित नैरेटिव पारदर्शिता है. इसमें कुछ भी छिपा नहीं है क्योंकि यह नेहरू के जीवनकाल के दौरान उनके प्रामाणिक और पूरी तरह से पारदर्शी, अनसेंसर्ड कार्य हैं.” जेएनएमएफ सचिव, प्रोफेसर माधवन पलाट के अनुसार, “इसके बाद नए आइटम चरणों में जोड़े जाएंगे. ये तस्वीरें, ऑडियो, वीडियो, नेहरू की किताबें, नेहरू पर उनके जीवनकाल में प्रकाशित किताबें और अन्य प्रकाशन, सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कोई अन्य दस्तावेज़, उनके भाषणों का मूल हिंदी संस्करण जो चयनित कार्यों में प्रकाशित नहीं हुए थे, और अन्य समान आइटम हैं.”
बिहार | तीन विश्लेषण
पराकाला प्रभाकर के बिहार ‘चमत्कार’ को लेकर चुनाव आयोग पर कई सवाल
राजनैतिक अर्थशास्त्री पराकला प्रभाकर ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर 12-भाग के एक तीखे थ्रेड में भारत के चुनाव आयोग (ECI) पर बिहार के हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों को संभालने में अपारदर्शिता और संभावित अक्षमता का आरोप लगाया है. उन्होंने आधिकारिक तौर पर डाले गए वोटों की तुलना में गिने गए 177,000 से अधिक वोटों के हैरान करने वाले अधिशेष पर प्रकाश डाला है. कुछ ही घंटे पहले साझा किए गए इन खुलासों ने राज्य की चुनावी प्रक्रिया की अखंडता के बारे में ऑनलाइन बहस छेड़ दी है, और प्रभाकर ने चुनाव निकाय से तत्काल जवाब की मांग की है.
यह विवाद बिहार के नवंबर 2025 के विधानसभा चुनावों पर केंद्रित है, जहाँ चुनाव आयोग ने 74,526,858 के कुल मतदाताओं के आधार पर 243 निर्वाचन क्षेत्रों में 67.13% मतदान घोषित किया था. जैसा कि प्रभाकर बताते हैं, साधारण अंकगणित से डाले गए वोटों की कुल संख्या 50,029,880 होती है. फिर भी, जब प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से अंतिम गणना (सीधे चुनाव आयोग की घोषणाओं से प्राप्त) को जोड़ा जाता है, तो कुल संख्या बढ़कर 50,207,553 हो जाती है. यह अंतर 177,673 अतिरिक्त वोटों का है, जिसने इस बात पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं कि ये वोट कैसे और क्यों सामने आए.
प्रभाकर ने अपने शुरुआती पोस्ट में कटाक्ष करते हुए लिखा, “यह बिहार का चमत्कार है.” उन्होंने चुनाव आयोग को टैग करते हुए आग्रह किया कि वह “देश को बताए कि उसने डाले गए वोटों से 1,77,673 अधिक वोटों की गिनती कैसे की.” उन्होंने आगे सवाल किया कि आयोग ने अपने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभ्यास के बाद कुल मतदाताओं के आंकड़े को दो बार क्यों संशोधित किया - पहले 30 सितंबर को लगभग 7.42 करोड़, फिर 6 अक्टूबर को सेवा मतदाताओं को शामिल करने के बाद इसे 74,355,976 तक बढ़ाया, और अंत में मतदान के बाद 11 नवंबर को इसे 74,526,858 कर दिया. मतदान के अनुमान भी बदले, जो शुरुआती 66.91% से अगले दिन अंतिम रूप से 67.13% हो गए.
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से पीएचडी और शासन की अपनी आलोचनाओं के लिए जाने जाने वाले प्रभाकर ने प्रमुख डेटा को रोके रखने के लिए चुनाव आयोग की निंदा की. उन्होंने पूछा, “चुनाव आयोग ने राज्य में डाले गए वोटों की कुल संख्या की घोषणा क्यों नहीं की? उन्होंने प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वोटों की कुल संख्या का खुलासा क्यों नहीं किया?” उन्होंने बताया कि जहाँ प्रतिशत नियमित रूप से जारी किए जाते हैं, वहीं पूर्ण आंकड़े - जो स्वतंत्र सत्यापन को सक्षम करेंगे - मायावी बने हुए हैं. “जब चुनाव आयोग प्रतिशत मतदान के आंकड़े दे सकता है, तो उसे राज्य-व्यापी और निर्वाचन क्षेत्र-वार सकल मतदान के आंकड़ों की घोषणा करने में क्या कठिनाई होती है?”
यह थ्रेड, जिसने एक दिन से भी कम समय में 1,500 से अधिक लाइक, 850 रीपोस्ट और 114,000 व्यूज़ प्राप्त किए हैं, व्यापक निहितार्थों की ओर बढ़ता है. प्रभाकर अनुमान लगाते हैं कि क्या यह चूक “मासूम गड़बड़ी,” “अक्षमता,” “लापरवाही,” या “किसी पार्टी को लाभ पहुँचाने के लिए एक पक्षपाती स्मोकस्क्रीन/अपारदर्शिता” से हुई है. वह यह भी सोचते हैं कि क्या सत्ताधारी दल, जो किसी भी बढ़े हुए जनादेश का संभावित लाभार्थी हो सकता है, “मासूम और अनजान” है या वास्तव में मानता है कि उसकी बिहार की जीत लोकप्रिय इच्छा को दर्शाती है.
अभी तक, न तो चुनाव आयोग और न ही प्रमुख राजनीतिक दलों ने थ्रेड के आरोपों का जवाब दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के लिए उच्च दांव के बीच हुए बिहार के चुनावों में मजबूत भागीदारी देखी गई, लेकिन यह लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों और प्रशासनिक पारदर्शिता पर चिंताओं का केंद्र रहे हैं. प्रभाकर का पोस्ट परिणामों के कुछ ही दिनों बाद एक संवेदनशील मोड़ पर आया है, और अगर इसे सोशल मीडिया से परे कर्षण मिलता है तो यह पुनर्गणना या ऑडिट की मांग को बढ़ावा दे सकता है.
भारत की लोकतांत्रिक नींव को बनाए रखने का काम करने वाले चुनाव आयोग ने अतीत में विसंगतियों को डाक मतपत्रों या लिपिकीय त्रुटियों के लिए नियमित समायोजन के रूप में बचाव किया है. लेकिन प्रभाकर द्वारा सबूत के तौर पर सभी 243 निर्वाचन क्षेत्रों की घोषणाओं के स्क्रीनशॉट का वादा करने के साथ, एक त्वरित, विस्तृत खंडन के लिए दबाव बढ़ गया है. संस्थानों में गहरे अविश्वास के इस युग में, यह “बिहार चमत्कार” केवल गणित से अधिक का परीक्षण कर सकता है - यह जवाबदेही के अंकगणित की ही जांच कर सकता है.
जैफरलो: कुविकास की विरोधाभासी जीत
द वायर में क्रिस्टोफ़ जैफ़रलो का कहना है कि बिहार का जनादेश दरअसल विकास के पक्ष में नहीं उसके विपरीत दिखलाई देता है.
सोशल मीडिया पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समझाया कि बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की जीत भारतीय जनता पार्टी-जनता दल (यूनाइटेड) (बीजेपी-जेडी(यू)) गठबंधन के नेतृत्व में विकास के मामले में राज्य की उपलब्धियों के कारण हुई. यह व्याख्या अनुभवजन्य साक्ष्यों द्वारा वास्तव में समर्थित नहीं है, लेकिन एनडीए के चुनावी प्रदर्शन को आंशिक रूप से समझाने के लिए बिहार के कुविकास के पथ को अभी भी ध्यान में रखना होगा.
बिहार के अधिकांश सामाजिक संकेतक दर्शाते हैं कि यह लगभग व्यवस्थित रूप से भारतीय संघ के अन्य राज्यों, यहाँ तक कि हिंदी पट्टी में भी पीछे है. जीवन स्तर के समय के साथ तुलना के लिए, मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एमपीसीई) एक अधिक सटीक साधन है. इस दृष्टिकोण से, बिहार शहरों में 4,768 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 3,384 रुपये के साथ अंतिम स्थान पर आता है.
यह आंशिक रूप से इस तथ्य के कारण था कि बिहार एक ग्रामीण राज्य बना हुआ है और गाँवों में बहुत से ग़रीब लोग हैं. यहाँ, ग़रीबी का स्तर आंशिक रूप से मज़दूरी के स्तर का एक कार्य है. 2022-23 में, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि मज़दूरों के रूप में काम करने वाले पुरुषों की औसत दैनिक मज़दूरी बिहार में केवल 308 रुपये थी.
लेकिन विकास का मतलब शिक्षा भी है, और इस क्षेत्र में बिहार का रिकॉर्ड सीमित बना हुआ है: इसकी साक्षरता दर, 74.3%, आंध्र प्रदेश (72.6%) को छोड़कर भारत के बड़े राज्यों में सबसे कम है. उच्च शिक्षा क्षेत्र में, 2018-19 में, बिहार का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) भारत में सबसे कम, 14 था, जबकि तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना ने 35 से ऊपर जीईआर दर्ज किया.
किसी भी विकास नीति का एक और स्तंभ स्वास्थ्य है, और बिहार वहाँ भारत के अधिकांश अन्य राज्यों की तरह अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है. शिशु मृत्यु दर तमिलनाडु की तुलना में बिहार में दोगुनी है, जहाँ शिशु मृत्यु दर 27 प्रति 1000 है. इसी तरह, प्रसव में मरने वाली महिलाओं का अनुपात बिहार (1,18,000 पर 118) में तमिलनाडु (54) और गुजरात (57) की तुलना में दोगुने से अधिक है.
कोई यह तर्क दे सकता है कि चीज़ों में सुधार हुआ है. लेकिन एनडीए की चुनावी उपलब्धि को समझने के लिए शायद एक और चर को ध्यान में रखना होगा: अंतिम समय में नकद हस्तांतरण. पिछले महीने, इसी तरह, बीजेपी-जेडी(यू) सरकार ने चुनावों की घोषणा से ठीक पहले मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना शुरू की, जिसमें एक करोड़ से अधिक ग़रीब महिलाओं में से प्रत्येक को 10,000 रुपये दिए गए. यह बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष लाभ, जिसमें 14,000 करोड़ रुपये तुरंत वितरित किए गए, एक नए प्रकार के राज्य संरक्षणवाद के निर्माण को दर्शाता है. इस संदर्भ में, ग़रीबी मदद करती है और विकास नहीं क्योंकि मतदाता जितने अधिक असुरक्षित होते हैं, उन्हें इस वित्तीय सहायता की उतनी ही अधिक आवश्यकता होती है. विरोधाभासी रूप से, सरकारों को अधिक असमानताओं के परिणामस्वरूप होने वाली नीतियों के लिए दंडित नहीं किया जाता है क्योंकि ग़रीबों को उनकी अधिक आवश्यकता होती है.
अरुण कुमार: बड़े पैमाने पर काम कर रही रिश्वतखोरी
द वायर में ही अरुण कुमार अपने विश्लेषण में लिखते हैं कि बिहार के नतीजे चौंकाने वाले हैं, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 243 में से अभूतपूर्व 202 सीटें (83%) जीती हैं. चुनावों को कवर करने वाले राजनीतिक विश्लेषकों और संवाददाताओं ने पूरी तरह से ग़लत साबित कर दिया है. उनमें से अधिकांश ने इसे एक क़रीबी लड़ाई होने की उम्मीद की थी.
कहा जाता है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद), प्रमुख विपक्षी दल, अपने ‘जंगल राज’ के पिछले रिकॉर्ड के कारण हार गया था. और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पिछले दो दशकों में उनके बेहतर प्रदर्शन (सुशासन) और उनके गिरते स्वास्थ्य के कारण सहानुभूति वोट के कारण एनडीए को अधिक वोट मिले.
लेकिन इन दोनों में से कोई भी कारण इस भारी जनादेश को समझाने के लिए पर्याप्त नहीं है. आख़िरकार, राजद 20 साल पहले सत्ता में थी. और अगर यह मतदान विकल्पों में एक कारक था, तो यह 2020 में अब की तुलना में एक मज़बूत कारक होना चाहिए था, जो ‘जंगल राज’ के समय से पाँच साल दूर है.
तुलनात्मक रूप से, बिहार भारत का सबसे ग़रीब बड़ा राज्य बना हुआ है. बेरोज़गारी अधिक और बढ़ती जा रही है. रोज़गार के लिए कृषि पर निर्भरता जारी है, उद्योग और सेवाओं में काम में बहुत कम वृद्धि हुई है. शिक्षितों को रोज़गार की तलाश में बड़ी संख्या में अन्य राज्यों में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
तो, 2020 और 2025 के बीच ऐसा क्या बदला कि जिसे पहले एक क़रीबी दौड़ माना जा रहा था, वह विपक्ष के लिए एक हार में बदल गई? बिहार में औसत व्यक्ति की स्थिति मुश्किल से बदली है. लेकिन सत्तारूढ़ एनडीए के लिए वोटों का प्रतिशत 37.3% से बढ़कर 46.6% हो गया है.
मुख्य अंतर यह है कि एनडीए ने चुनावों से ठीक पहले मतदाताओं को अभूतपूर्व रिश्वत की पेशकश की. 125 यूनिट तक मुफ़्त बिजली, सामाजिक सुरक्षा पेंशन को तीन गुना करना और 75 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये का हस्तांतरण. एक करोड़ नौकरियों का वादा भी है. विपक्ष ने भी कई वादे किए, लेकिन वह हाथ में आई चिड़िया नहीं है.
चुनाव-पूर्व उपहारों के इस मॉडल ने हाल ही में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल के लिए काम किया, जहाँ विपक्ष, जिसे जीतना माना जा रहा था, हार गया था. इस तरह के उपहारों ने राज्यों के बजट पर दबाव डाला है. वे बिहार की पहले से ही कमज़ोर वित्तीय स्थिति पर दबाव डालने जा रहे हैं. लेकिन यह सत्तारूढ़ दल के लिए अप्रासंगिक है क्योंकि उसे ज़बरदस्त जीत मिली है. अरुण कुमार जेएनयू से अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए और ‘इंडियन इकोनॉमी’ज ग्रेटेस्ट क्राइसिस: इम्पैक्ट ऑफ़ द कोरोना वायरस एंड द रोड अहेड, 2020’ के लेखक हैं.
नीतीश ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली
“द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, नीतीश कुमार ने गुरुवार को रिकॉर्ड दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा लिया. उनके साथ 26 मंत्रियों ने भी शपथ ली, जबकि कैबिनेट की अधिकतम संख्या 36 हो सकती है. यह भव्य शपथ ग्रहण समारोह पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा और एनडीए शासित 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों, जिनमें उत्तरप्रदेश के योगी आदित्यनाथ और आंध्रप्रदेश के एन. चंद्रबाबू नायडू शामिल थे, की उपस्थिति रही.
एनडीए की 202 सीटों की जीत नीतीश कुमार के करियर का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है – इससे पहले 2010 के चुनावों में उन्हें 206 सीटें मिली थीं. वरिष्ठ भाजपा नेताओं सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री के रूप में अपना पद बरकरार रखा. जद (यू) ने अपने दिग्गज नेताओं बिजेंद्र प्रसाद यादव, विजय कुमार चौधरी और श्रवण कुमार को कैबिनेट में बनाए रखा, तो भाजपा ने भी मंगल पांडे, प्रमोद कुमार और नितिन नवीन के साथ छेड़छाड़ नहीं की. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भी मंत्री के रूप में वापसी की. नए मंत्रिमंडल में तीन महिला मंत्री हैं– जद (यू) की लेसी सिंह, और भाजपा की रमा निषाद और श्रेयसी सिंह.
ना...ये ‘परिवारवाद’ नहीं है?
भाजपा और उसका नेतृत्व परिवारवाद का बड़ा शोर मचाता है, खासतौर पर इस मामले में विपक्षी दलों के खिलाफ एक राजनीतिक आख्यान हमेशा बरकरार रखता है, लेकिन आज पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान पर जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने शपथ लेने वाले मंत्रियों के नाम पुकारे गए तो “पाखंड” सबके सामने आ गया. सबसे बड़ा उदाहरण एनडीए के घटक दल आरएमएल का है. नए मंत्रिमंडल में आरएलएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी से अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री पद दिलवाया. दीपक विधायक नहीं हैं और उन्हें छह महीने के भीतर एमएलसी का पद दिया जा सकता है. हालांकि, कुशवाहा की पत्नी, स्नेहलता, उन चार आरएलएम विधायकों में से हैं, जिन्होंने इस बार चुनाव जीता है. लेकिन, कुशवाह ने बेटे को मंत्री बनवाया. उनकी पत्नी विधायक रहेंगी और बेटा मंत्री हो गया है. इसी तरह हम (एस) ने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन को मंत्री बनाया है. जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय कैप्टन जयनारायण निषाद की बहू रमा निषाद और स्वर्गीय केंद्रीय राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी श्रेयसी सिंह भाजपा की ओर से मंत्री बनी हैं.
एलजेपी (राम विलास), जिसे दो कैबिनेट बर्थ मिलीं, ने संजय कुमार सिंह और संजय कुमार को चुना. सिंह ने वैशाली की पारंपरिक महुआ सीट राजद के मुकेश कुमार रोशन को हराकर छीनी. इस सीट पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद के बेटे तेज प्रताप यादव तीसरे स्थान पर रहे. केंद्रीय मंत्री के रूप में काम कर चुके राम कृपाल यादव को भी मंत्री बनाया गया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र से मीसा भारती से हारने के बाद से वह हाशिये पर थे. मुख्यमंत्री सहित 27 सदस्यीय मंत्रिमंडल में, आठ उच्च जाति से हैं, पांच दलित हैं, और 14 ओबीसी और ईबीसी से हैं. प्रमुख नाम जिन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली, वे हैं- नीतीश मिश्रा, जीवेश मिश्रा और संजय सरावगी.
‘अल फलाह’ के 200 डॉक्टर-कर्मचारी जांच के दायरे में, उमर को कमरा देने वाली आंगनवाड़ी वर्कर से पूछताछ
अल फलाह विश्वविद्यालय में जांच तेज़ हो गई है, क्योंकि विश्वविद्यालय में काम करने वाले लगभग 200 डॉक्टर और कर्मचारी लालकिला विस्फोट के कथित आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर नबी से संभावित संबंधों के लिए जांच एजेंसियों की निगरानी में हैं.
हरप्रीत बाजवा के अनुसार, जांच एजेंसियों ने गोलपुरी गांव की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अफसाना को हिरासत में लिया है. वह अपने पिता के घर का प्रबंधन करती है और उसने नूंह की हिदायत कॉलोनी में एक कमरा उमर को किराए पर दिया था. यह कमरा विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रीशियन के रूप में काम करने वाले उसके रिश्तेदार शोएब की सिफारिश पर किराए पर दिया गया था. वह 10 नवंबर के विस्फोट के बाद से फरार थी, और उसके परिवार से भी पूछताछ की जा रही है.
एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि विस्फोट के बाद विश्वविद्यालय से कितने लोग गए, और उनकी पहचान करने का प्रयास कर रही हैं. कुछ पर आतंकवादियों से संबंध होने का संदेह है, और कई व्यक्तियों ने मोबाइल डेटा हटा दिया है. 1,000 से अधिक लोगों से पूछताछ की गई है, और पुलिस छात्रावासों और कैंपस से बाहर रहने वाले छात्रों के कमरों की तलाशी ले रही है.
विश्वविद्यालय में बार-बार की जा रही जाँचों ने छात्रों और कर्मचारियों के बीच चिंताएं बढ़ा दी हैं. बुधवार को कई कर्मचारियों को सामान पैक करके परिसर छोड़ते हुए देखा गया. जांचकर्ता यह भी जांच कर रहे हैं कि क्या उमर का अल फलाह विश्वविद्यालय में कोई आंतरिक हैंडलर था, क्योंकि कथित तौर पर उमर को विश्वविद्यालय में “विशेष व्यवहार” मिलता था. अप्रेंटिसशिप कर रहे दो डॉक्टरों ने बताया कि उमर 2023 में बिना किसी छुट्टी या सूचना के लगभग छह महीने अनुपस्थित रहा, फिर भी बिना किसी कार्रवाई के ड्यूटी पर वापस आ गया. वह शायद ही कभी कक्षाओं में आता था, केवल 15-20 मिनट तक चलने वाले छोटे व्याख्यान देकर अपने कमरे में लौट जाता था, जिससे अन्य व्याख्याताओं को कथित तौर पर नाराजगी थी. उसे अस्पताल में अधिकतर शाम या रात की शिफ्ट ही मिलती थी.
एजेंसियां उमर के संबंधों का पता लगाने के लिए नूंह में सात अन्य लोगों से भी पूछताछ कर चुकी हैं. इस विवाद ने अल फलाह मेडिकल कॉलेज अस्पताल को भी प्रभावित किया है, जहां विश्वविद्यालय के आतंकवाद से संदिग्ध संबंधों की रिपोर्ट के बाद ओपीडी की संख्या प्रतिदिन लगभग 200 से घटकर 100 से भी कम हो गई है. इस बीच, तीन अन्य लोगों – सोहना मस्जिद के एक मौलवी, उनके 18 वर्षीय बेटे और एक मदरसा शिक्षक – को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है. जांचकर्ताओं ने मस्जिद से सीसीटीवी रिकॉर्डिंग वाला डीवीआर भी जब्त कर लिया है, जो उस कमरे के पास स्थित है जिसे उमर ने किराए पर लिया था.
मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई 9 दिसंबर को
भगोड़े हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई बेल्जियम की सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 9 दिसंबर को होगी. चोकसी ने एंटवर्प कोर्ट ऑफ अपील के 17 अक्टूबर के उस फैसले को बेल्जियम की शीर्ष अदालत में चुनौती दी है, जिसमें भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को “लागू करने योग्य” बताते हुए उसे बरकरार रखा गया था. ‘पीटीआई’ द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में, एडवोकेट जनरल हेनरी वैनडरलिनडेन ने कहा कि कोर्ट केवल कोर्ट ऑफ अपील के फैसले की जांच “कानूनी पहलुओं” पर करता है, जैसे कि क्या कोर्ट ऑफ अपील ने कानूनी प्रावधानों को सही ढंग से लागू किया है, और क्या उन्होंने सही प्रक्रिया का पालन किया है. उन्होंने कहा, “इसलिए, नए तथ्य या सबूत पेश नहीं किए जा सकते.”
ईडी ने रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोप पत्र दाखिल किया
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति व्यवसायी रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ यूके स्थित हथियार सलाहकार संजय भंडारी से जुड़े एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोप पत्र दाखिल किया है. अधिकारियों ने “पीटीआई” को बताया कि अभियोजन शिकायत यहां एक विशेष धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) अदालत के समक्ष दायर की गई है.
वाड्रा के खिलाफ यह दूसरा मनी लॉन्ड्रिंग आरोप पत्र है. जुलाई में, हरियाणा के शिकोहपुर में एक भूमि सौदे में कथित अनियमितताओं से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था. 56 वर्षीय वाड्रा से अतीत में भंडारी से जुड़े इस मामले में ईडी द्वारा पूछताछ की जा चुकी है. संजय भंडारी को जुलाई में दिल्ली की एक अदालत द्वारा भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया गया था. ईडी ने फरवरी 2017 में पीएमएलए के तहत भंडारी और अन्य के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया था.
‘कश्मीर टाइम्स’ पर जांच एजेंसी के छापे, अख़बार बोला- हमें डराकर चुप कराने की कोशिश
‘कश्मीर टाइम्स’ के दफ्तर पर स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एसआईए) की छापेमारी के बाद अख़बार के संपादकों ने गुरुवार को कड़ी निंदा की और कहा कि उन पर लगाए गए “राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों” के आरोप बेबुनियाद हैं और स्वतंत्र पत्रकारिता को चुप कराने की कोशिश हैं. रिपोर्टों के मुताबिक ‘एसआईए’ ने अख़बार और संपादक व वरिष्ठ पत्रकार–लेखिका अनुराधा भसीन पर एक मामला दर्ज किया है, जिसमें उन पर भारत की “संप्रभुता को ख़तरा पहुंचाने वाली गतिविधियों” के आरोप की जांच की जा रही है. मकतूब मीडिया के मुताबिक़ पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने इन छापों की कड़ी आलोचना की है.
1954 में वेद भसीन द्वारा स्थापित कश्मीर टाइम्स ने कहा कि वह दशकों से राजनीतिक हालात, शासन की नाकामियां और हाशिये पर पड़े लोगों की आवाज़ को दर्ज करता आया है, इसी कारण उसे निशाना बनाया जा रहा है. अख़बार ने कहा, “ये आरोप हमें डराने और चुप कराने के लिए लगाए गए हैं, लेकिन हम चुप नहीं रहेंगे. ” छापेमारी और दबाव के बावजूद, ‘कश्मीर टाइम्स’ ने बताया कि प्रिंट संस्करण 2021–22 में रोका गया था, पर वह अब भी डिजिटल रूप में लगातार काम कर रहा है. संपादकों प्रभोध जमवाल और अनुराधा भसीन ने बयान पर हस्ताक्षर किए.
अमेरिकी रिपोर्ट में दावा, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के वक्त भारत पर भारी रहा था पाकिस्तान
अमेरिका की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत–पाकिस्तान के बीच मई 2025 में हुए चार दिन के सैन्य संघर्ष में चीनी हथियारों और खुफिया जानकारी की मदद से “भारत पर सैन्य बढ़त’ हासिल की थी. द टेलीग्राफ के मुताबिक़ यह रिपोर्ट अमरीका चीन इकनोमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यु कमीशन की है, जो हर साल अमेरिकी संसद (कांग्रेस) को चीन से जुड़ी सुरक्षा स्थिति पर रिपोर्ट देती है. रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार पर निशाना साधा और कहा कि अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट में लिखी बातें “हैरान करने वाली” हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक 7 से 10 मई 2025 के बीच ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान ने 50 वर्षों में पहली बार एक-दूसरे की सीमा के अंदर घुस कर हमला किया. आयोग ने दावा किया कि इस झड़प में पाकिस्तान ने चीन के हथियारों और ख़ुफ़िया जानकारी का इस्तेमाल किया और इस संघर्ष में “भारत पर सैन्य बढ़त” हासिल की.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पाकिस्तान ने चीन के HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम, PL-15 एयर-टू-एयर मिसाइल और J-10 लड़ाकू विमान का पहली बार इस्तेमाल किया. इसके साथ ही एक और विवादित दावा सामने आया है कि पाकिस्तानी सेना ने इन चीनी हथियारों की मदद से भारत के तीन लड़ाकू विमानों को गिराया, जिनमें से कुछ को राफेल बताया गया, हालांकि रिपोर्ट खुद मानती है कि इन सबूतों की पुष्टि नहीं हुई है.
रिपोर्ट यह भी कहती है कि फ्रांस की ख़ुफ़िया एजेंसियों के अनुसार चीन ने राफेल की छवि खराब करने के लिए सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी वीडियो गेम की तस्वीरें और एआई जनरेटेड मलबा पोस्ट कर एक गलत सूचनाओं का अभियान चलाया.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोई गोपनीय रिपोर्ट नहीं है और कई दावे मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित हैं, जिनमें विमानों के गिरने संबंधी आंकड़े भी शामिल हैं. भारत सरकार ने आज तक आधिकारिक रूप से यह नहीं बताया है कि ऑपरेशन सिंदूर में कितने विमान गिरे थे. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पहले दावा कर चुके हैं कि 8–9 विमान गिराए गए, लेकिन उन्होंने भी यह नहीं बताया कि किस देश के.
कुल मिलाकर, अमेरिकी रिपोर्ट ने 2025 के भारत–पाकिस्तान संघर्ष पर नई धुंध खड़ी कर दी है, दावे कई हैं, पर पक्के सबूत अभी भी धुंध में लिपटे हुए हैं.
ट्रंप ज़ोहरान से मिलेंगे
बीबीसी के मुताबिक न्यूयॉर्क के नवनिर्वाचित मेयर, ज़ोहरान ममदानी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुक्रवार को व्हाइट हाउस में मिलने की योजना बना रहे हैं. शहर के हालिया चुनाव के दौरान महीनों तक एक-दूसरे पर ताने और अपमान कसने के बाद यह मुलाक़ात हो रही है. 34 वर्षीय डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ममदानी ने इस महीने की शुरुआत में न्यूयॉर्क शहर के मेयर का चुनाव जीता था, जिसमें उन्होंने पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को नौ अंकों से हराया था. ट्रंप ने एक बयान में कहा कि “कम्युनिस्ट मेयर” ने बैठक का अनुरोध किया था, जो ओवल ऑफ़िस में होगी. मेयर-निर्वाचित के प्रवक्ता ने कहा कि ट्रंप के साथ बैठक एक आने वाले मेयर प्रशासन के लिए प्रथागत थी. प्रवक्ता डोरा पेकेक ने कहा, “मेयर-निर्वाचित सार्वजनिक सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा और सामर्थ्य एजेंडे पर चर्चा करने के लिए वाशिंगटन में राष्ट्रपति से मिलने की योजना बना रहे हैं, जिसके लिए दो हफ़्ते पहले दस लाख से अधिक न्यूयॉर्क वासियों ने मतदान किया था.” दो-कार्यकाल के राष्ट्रपति और तेज़ी से उभरते राजनीतिक नवागंतुक के बीच कटुता ममदानी के जून में डेमोक्रेटिक प्राइमरी जीतने के तुरंत बाद से बननी शुरू हो गई थी. ट्रंप ने ममदानी को डेमोक्रेटिक पार्टी के “कम्युनिस्ट” भविष्य के रूप में निंदा की है और उनकी जीत के कारण अमेरिका के सबसे बड़े शहर को अरबों डॉलर की संघीय निधि रोकने की धमकी दी है. ममदानी के चुनाव से पहले के हफ़्तों में, न्यूयॉर्क में जन्मे और पले-बढ़े ट्रंप ने अक्सर मेयर-निर्वाचित को एक चरमपंथी के रूप में चित्रित किया, जिसने “अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से एक दिन भी काम नहीं किया है”. एक असामान्य अंतिम-मिनट के क़दम में, रिपब्लिकन राष्ट्रपति ने ममदानी के प्रतिद्वंद्वी, कुओमो का समर्थन किया, जो एक डेमोक्रेट थे और एक स्वतंत्र के रूप में चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव के दिन अपने विजय भाषण में, ममदानी ने ट्रंप को ताना मारा, और उनसे अपने टेलीविज़न पर “आवाज़ तेज़ करने” के लिए कहा. कुछ मिनट बाद, ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया साइट ट्रुथ सोशल पर जवाब दिया: “...और इस तरह यह शुरू होता है!” ममदानी ने ट्रंप का मुक़ाबला करने की कसम खाई है, और उन्होंने क़ानूनी चुनौतियों को दाख़िल करने की तैयारी के लिए अतिरिक्त वकीलों को काम पर रखा है और वादा किया है कि न्यूयॉर्क “आप्रवासियों का शहर बना रहेगा” क्योंकि ट्रंप देश भर में अपनी आप्रवासन कार्रवाई कर रहे हैं.
तलाक़ -ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी, बड़ी बेंच को मामला भेजने पर विचार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 19 नवंबर 2025 को कहा कि तलाक़-ए-हसन की क़ानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वह पांच जजों की बड़ी संविधान पीठ को भेजने पर विचार कर सकता है. कोर्ट ने इस प्रक्रिया की आलोचना भी की, ख़ासकर उस तरीक़े की जिसमें पति खुद नोटिस देने के बजाय किसी वकील या किसी और व्यक्ति को अपनी पत्नी को तलाक़ नोटिस भेजने का अधिकार दे देता है. तलाक़ -ए-हसन से जुड़े मामले पर द हिन्दू ने इस मुद्दे पर विस्तार से रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें अदालत की कार्यवाही, याचिकाकर्ताओं की दलीलें और इस प्रथा को लेकर उठ रहे संवैधानिक सवालों का विस्तृत विश्लेषण शामिल है
तलाक़ -ए-हसन में पति महीने में एक बार “तलाक़ ” बोलकर तीन महीने की अवधि में निकाह को ख़ारिज कर सकता है. अगर पहली या दूसरी बार तलाक़ कहने के बाद पति-पत्नी साथ रहने लगते हैं, तो तलाक़ अमान्य माना जाता है. लेकिन तीसरी बार बोलने पर तलाक़ होजाता है.
2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक़ को मनमाना और मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए असंवैधानिक ठहराया था.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, उज्जल भूयान और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने तलाक़-ए-हसन के दौरान अपनाई जा रही उस रिवायत पर आपत्ति जताई जिसमें पति की तरफ से कोई और व्यक्ति तलाक़ का नोटिस पत्नी को भेजता है. कोर्ट ने कहा कि क्या किसी आधुनिक और सभ्य समाज में ऐसी प्रक्रिया को स्वीकार किया जा सकता है.
पीठ ने तलाक़ की विभिन्न इस्लामी प्रक्रियाओं पर लिखित नोट देने को कहा और स्पष्ट किया कि यह किसी धार्मिक प्रथा को ख़त्म करने का मामला नहीं, बल्कि इसे संविधान की भावना के अनुरूप कैसे नियंत्रित किया जाए, यह सवाल है.
कोर्ट ने कहा कि वह यह भी देखना चाहती है कि क्या इस मामले को पांच-जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की ज़रूरत है. यह सिर्फ कानूनी विवाद नहीं है, बल्कि समाज पर गहरा असर डालने वाला मुद्दा है और अदालत को सुधारात्मक कदम उठाने पड़ सकते हैं.
याचिकाकर्ता और पत्रकार बेनज़ीर हीना ने कोर्ट को बताया कि उनके पति ने तलाक़-ए-हसन का नोटिस किसी तीसरे व्यक्ति से भेजवाया. पति ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन वह अपने ही तलाक़ को साबित नहीं कर पा रही हैं. इसके कारण उनका पासपोर्ट और बच्चे के स्कूल से जुड़े ज़रूरी काम अटक गए हैं. उनकी बात सुनते हुए अदालत ने कहा कि अगर दिल्ली और गाज़ियाबाद में यह स्थिति है, तो दूरदराज के इलाकों में क्या हो रहा होगा.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि समाज इसमें शामिल है और अगर प्रक्रिया भेदभावपूर्ण है तो अदालत को हस्तक्षेप करना होगा.
अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर तलाक धार्मिक प्रक्रिया के अनुसार देना है, तो पूरी प्रक्रिया वैसी ही होनी चाहिए जैसा नियमों में है. कोर्ट ने कहा कि क्या अब वकील तलाक देने लगेंगे और अगर कोई पति बाद में वकील से रिश्ते से इनकार कर दे तो क्या होगा. हीना की ओर से वकील रिजवान अहमद ने कहा कि चूंकि तलाक नोटिस किसी और के हस्ताक्षर से भेजा गया था, इसलिए भविष्य में हीना पर बहुविवाह का आरोप तक लगाया जा सकता है.
कोर्ट ने सभी पक्षों को निर्देश दिया कि वे उन मुद्दों की सूची दें जिन्हें अदालत को तय करना है और यह भी बताएं कि अदालत इन धार्मिक प्रक्रियाओं में कितनी हस्तक्षेप कर सकती है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और समस्थ केरल जमीअतुल उलेमा को भी इस मामले में पक्षकार बनने की अनुमति दी गई है. कोर्ट ने पहले ही राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग की राय भी मांगी है.
तमिलनाडु: जातीय अपमान से आहत दलित छात्र ने की आत्महत्या
द मूकनायक की रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में जातिगत भेदभाव का एक दर्दनाक मामला सामने आया है, जहां 18 वर्षीय दलित छात्र एस. गजनी ने कथित तौर पर जातिसूचक गालियों और मारपीट के अपमान के बाद आत्महत्या का प्रयास किया था. वह 10 दिनों तक आईसीयू में भर्ती रहा और मंगलवार को उसकी मौत हो गई. गजनी ‘गवर्नमेंट अरिग्नार अन्ना आर्ट्स कॉलेज’ में इतिहास के प्रथम वर्ष का छात्र था. घटना 6 नवंबर की बताई जा रही है, जब गजनी को वन्नियार समुदाय के तीन लोगों ने बाइक से टक्कर मारी और उसके दलित होने का पता चलने पर गालियां व मारपीट की. परिवार का कहना है कि गजनी ने एक आरोपी की पहचान की थी, लेकिन पुलिस ने अब तक गिरफ्तारी नहीं की है.
मूकनायक की रिपोर्ट बताती है कि गजनी ने इस अपमान के तीन दिन बाद घर पर आत्महत्या का प्रयास किया, जिसके बाद उसे गंभीर हालत में मुंडियाम्बक्कम के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया. पुलिस ने तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ SC-ST एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है, लेकिन परिवार का आरोप है कि जांच धीमी है. मृतक के पिता ने कहा कि पुलिस टावर लोकेशन से भी आरोपियों का पता लगा सकती थी. इस बीच जिला प्रशासन ने परिवार को 6 लाख रुपये का मुआवज़ा मंज़ूर किया है. छात्र की मौत के बाद इलाके में गम और गुस्से का माहौल है और परिवार न्याय की मांग कर रहा है.
दिल्ली प्रदूषण पर जन्तर-मन्तर में विरोध, 70 लोगों ने डाली ‘जीवन-स्वतंत्रता’ RTI, 48 घंटे में जवाब की मांग
दिल्ली में ख़तरनाक वायु प्रदूषण के ख़िलाफ़ जन्तर-मन्तर पर आयोजित प्रदर्शन में 70 नागरिकों ने एक अनोखा क़दम उठाते हुए सामूहिक रूप से 70 आरटीआई दायर की हैं. जर्नलिस्ट सौरव दस ने एक ट्वीट में इसकी जानकारी दी, इन सभी RTI आवेदनों को आरटीआई एक्ट की धारा 7(1) यानी ‘जीवन और स्वतंत्रता’ वाले प्रावधान के तहत दाख़िल किया गया है, जिसमें सरकार को 48 घंटे के भीतर जवाब देना अनिवार्य होता है, अन्यथा आर्थिक दंड और कार्रवाई हो सकती है. उन्होंने ने अपने ट्वीट में बताया कि नागरिकों के लिए दिल्ली की ज़हरीली हवा सीधा ख़तरा बन चुकी है, इसलिए यह मामला तुरंत ध्यान देने योग्य है. इन आवेदनों में उन्होंने रॉ AQI डेटा, रियल-टाइम मॉनिटरिंग रिपोर्ट, प्रदूषण रोकथाम के उपाय, फंड के उपयोग, प्रवर्तन कार्रवाई और नियमों के पालन जैसे अहम सवाल पूछे हैं. RTI दाख़िल करने वाले समूह का कहना है कि यह जानकारी केवल रिकॉर्ड के लिए नहीं, बल्कि लोगों की तत्काल स्वास्थ्य सुरक्षा और सरकारी जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है. 70 में से 31 आवेदन दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) को भेजे गए, जबकि बाकी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को दायर किए गए. नागरिकों ने इसे “जीवन बचाने के लिए RTI का प्रयोग” बताया और कहा कि यह सामूहिक कदम सरकार को प्रदूषण के मुद्दे पर तत्काल पारदर्शिता और कार्रवाई के लिए मजबूर करने का प्रयास है.
किताब | आनंद तेलतुंबडे का जेल संस्मरण ‘द सेल एंड द सोल’
“हममें से छह अभी भी जेल में सड़ रहे हैं, अब अपने छठे से आठवें साल में. आरोप अभी तक तय नहीं किए गए हैं.”
शिक्षाविद और पूर्व कॉर्पोरेट सीईओ, आनंद तेलतुंबडे, ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘द सेल एंड द सोल’ में 2018 के भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में एक विचाराधीन क़ैदी के रूप में तलोजा सेंट्रल जेल में अपने 31 महीने के प्रवास का संस्मरण लिखा है. तेलतुंबडे, जो बी.आर. अंबेडकर की पोती से विवाहित हैं, को अन्य कार्यकर्ताओं के साथ 2020 में भीमा कोरेगांव मामले के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था और 2022 में ज़मानत पर रिहा किया गया था. उनकी हालिया पुस्तक ‘द सेल एंड द सोल’ (ब्लूम्सबरी) के प्रकाशन पर उनसे हुई बातचीत के अंश न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित किये हैं.
यह पुस्तक राजनीतिक क़ैदियों द्वारा लिखे गए संस्मरणों की लंबी परंपरा में एक जेल संस्मरण है. इसमें मेरे 31 महीने के क़ैद के दौरान लिखे गए सौ से अधिक नोटों में से 22 शामिल हैं. तेलतुंबडे ने कहा, “ये नोट मेरी उत्तरजीविता की रणनीति का हिस्सा थे, इस जागरूकता के साथ लिखे गए कि वे एक दिन जनता तक पहुँच सकते हैं.” अपनी गिरफ़्तारी से “स्तब्ध” होने के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा, “मैं पुणे पुलिस द्वारा अपनी पहली प्रेस कॉन्फ़्रेंस में प्रस्तुत किए गए ज़ाहिर झूठ से स्तब्ध था, जो मेरे ख़िलाफ़ आरोप का आधार बना. मुझे यक़ीन था कि ये अदालत में ढह जाएँगे. लेकिन जैसे-जैसे मामले को रद्द करने की मेरी याचिका बार-बार ख़ारिज होती गई, मैं प्रक्रिया से ही भयभीत हो गया.”
पुस्तक में, उन्होंने अंबेडकरवादी प्रतीकवाद और उनके ‘प्रतिरोध’ के तरीक़े पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा, “अंबेडकरवादी प्रतीकवाद ने मुझे हमेशा पीड़ा दी है, क्योंकि यह परिवर्तन की एक शक्तिशाली क्षमता को यथास्थिति के प्रतिक्रियावादी शिविर में मोड़ देता है.” ऑपरेशन ग्रीन हंट और भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले के बीच समानता पर, उन्होंने कहा कि दोनों में लक्ष्य की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. ऑपरेशन ग्रीन हंट में, ‘नक्सली’ के लेबल का इस्तेमाल निर्दोष आदिवासियों को तबाह करने के लिए किया गया था; एल्गार परिषद मामले में, “शहरी नक्सल” के नव-निर्मित ऑक्सीमोरोन को लोकतंत्र, संविधान और मानवाधिकारों के लिए खड़े होने वाले किसी भी व्यक्ति को अपराधी बनाने के लिए तैनात किया गया था. उनके भाई मिलिंद पर एक अध्याय पर, उन्होंने उस अवर्णनीय बोझ के बारे में बात की जो एक कार्यकर्ता के परिवार को तब उठाना पड़ता है जब राज्य पूरे परिवार को “माओवादी” के रूप में ब्रांड करता है. उनके मामले की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा, “कहीं नहीं. हममें से छह अभी भी जेल में सड़ रहे हैं, अब अपने छठे से आठवें साल में. आरोप अभी तक तय नहीं किए गए हैं.”
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