21/03/2025 : बस्तर में 30 नक्सली मारे गये, संसद में टीशर्ट बैन, मोदी के करीबी को भ्रष्ट कहने पर हमला, मिश्रा होने के कारण बच जाता है कपिल, शर्जील की जेल डायरी, दागी एंकर को डीडी देगा 14 करोड़!
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
ओम बिरला ने विपक्षी सांसदों से कहा, टी-शर्ट न पहनें
मस्क के “एक्स” का सरकार पर मुकदमा
जामिया का पूर्व छात्र अमेरिका में गिरफ्तार
दिशा सालियान : आदित्य ठाकरे के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका, शिवसेना बोली-ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी की डर्टी पॉलिटिक्स, औरंगज़ेब का मुद्दा चला नहीं
एनआई ने पहचान लिए अपने ही अज्ञात पुरुष
गुजरात : मोदी के खास को भ्रष्टाचारी बताने वाले बीजेपी नेता पर हमला
नागपुर हिंसा | चार नई एफआईआर में एक राजद्रोह की भी
कर्नाटक हनी ट्रैप | दोनों पक्षों के 48 नेताओं की सीडी
नेतन्याहू के खिलाफ सड़कों पर उतरे इजरायली
पीसीबी का घाटा रिकॉर्ड मुनाफे में बदला
धमाकों के बीच सरकती युद्धविराम की कथा
छत्तीसगढ़ में दो ऑपरेशन में 30 नक्सली और एक सुरक्षाकर्मी मारे गये : छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में गुरुवार 20 मार्च, 2025 को दो अलग-अलग माओवादी विरोधी अभियानों में कम से कम 30 माओवादी और एक सुरक्षाकर्मी के मारे जाने की खबर है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि इनमें से 26 नक्सलियों को दक्षिण बस्तर के बीजापुर-दंतेवाड़ा सीमा पर एक बड़ी मुठभेड़ में मार गिराया गया. वहीं उत्तर बस्तर के कांकेर-नारायणपुर सीमा पर हुई दूसरी मुठभेड़ में डीआरजी और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की संयुक्त पुलिस पार्टी और माओवादियों के बीच अब भी गोलीबारी जारी है. पुलिस ने बताया कि अब तक चार माओवादियों के शव बरामद किए गए हैं.
बढ़ती आमदनी और मुफ्त राशन में विरोधाभास
19 मार्च, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के "उच्च विकास दर" और "प्रति व्यक्ति आय" के दावों पर सवाल उठाए, जबकि कुछ राज्यों में 70% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है. जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने पूछा— "यह विरोधाभास कैसे? अगर 70% लोग BPL में हैं, तो उच्च प्रति व्यक्ति आय का दावा झूठा नहीं तो और क्या है?" कोर्ट ने सस्ते राशन की योजनाओं पर भी सवाल खड़े किए : "क्या यह सिर्फ़ गरीबों तक राशन पहुँचाने का नाटक है? या सरकारों की 'लोकप्रियता बटोरने' की चाल?" यह टिप्पणी प्रवासी मजदूरों को राशन कार्ड देने की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आई.
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कहा— "असमानता इतनी बढ़ गई है कि कुछ लोग करोड़पति हैं, जबकि ज़्यादातर 30-40 रुपए रोज़ पर गुज़ारा करते हैं." कोर्ट ने चिंता जताई कि क्या राशन कार्ड बनाने में भी "राजनीतिक गणित" काम करता है? जस्टिस सूर्यकांत ने कहा— "भ्रष्टाचार के बावजूद, गरीबों तक राशन पहुँचाना ज़रूरी है. यह उनका संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 21) है." केंद्र की ओर से एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 81.35% लोगों को राशन मिल रहा है. लेकिन भूषण ने आगाह किया— "2011 की जनगणना के आधार पर आँकड़े पुराने हैं. कोविड के बाद बेरोजगारी बढ़ी है, करोड़ों प्रवासी मजदूर राशन कार्ड से वंचित हैं." कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिए कि ई श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 8 करोड़ मजदूरों को तुरंत राशन कार्ड दिए जाएँ. कोर्ट ने जोर देकर कहा— "एक कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य है कि हर गरीब को दो वक्त की रोटी मिले. यह सिर्फ़ आँकड़ों का खेल नहीं, ज़िंदगी-मौत का सवाल है."
ओम बिरला ने विपक्षी सांसदों से कहा, टी-शर्ट न पहनें : नारे लिखी हुई टी-शर्टों के कारण गुरुवार को संसद में कोई कामकाज नहीं हुआ. राज्यसभा में शुरुआती मिनटों की कार्यवाही के बाद न तो कोई प्रश्न पूछा जा सका, न ही किसी विषय पर सदन में कोई चर्चा हुई. कुछ यही हाल लोकसभा का भी रहा. दोनों सदनों की कार्यवाही बाद में शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी गई. डीएमके सांसद सीमांकन (डिलिमिटेशन) का लगातार विरोध कर रहे हैं. संसद परिसर में उन्होंने पोस्टर-बैनर के साथ प्रदर्शन किया गया. लोकसभा में डीएमके सांसद सीमांकन के संबंध में नारे लिखी हुई टी-शर्ट पहनकर पहुंचे, लेकिन स्पीकर ओम बिरला को यह पसंद नहीं आया. बिरला ने कहा कि सदन की कार्यवाही में नारे लिखी टी-शर्ट पहनकर उपस्थित होना अस्वीकार्य है और यह संसदीय नियमों और शिष्टाचार के खिलाफ है. बिरला ने सदस्यों को निर्देश दिया कि वे सदन से बाहर जाएं और उचित वस्त्र पहनकर वापस आएं ताकि गरिमा बनाए रखी जा सके.
मस्क के “एक्स” का सरकार पर मुकदमा : एलन मस्क के स्वामित्व वाले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म “एक्स” (पहले ट्विटर) ने भारत सरकार के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में एक मुकदमा दायर किया है. इस मामले में एक्स ने गैरकानूनी सामग्री विनियमन और मनमाने सेंसरशिप को चुनौती दी है. एक्स का तर्क है कि यह नियम सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन करता है और ऑनलाइन स्वतंत्र अभिव्यक्ति को कमजोर करता है. “एक्स” का आरोप है कि सरकार आईटी एक्ट की धारा 79(3)बी का उपयोग समानांतर कंटेन्ट ब्लॉकिंग तंत्र बनाने के लिए कर रही है. एक्स ने दावा किया कि सरकार का मौजूदा दृष्टिकोण श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट की 2015 की उस रूलिंग का खंडन करता है, जिसमें कहा गया था कि किसी भी सामग्री को सिर्फ उचित न्यायिक प्रक्रिया या धारा 69ए के तहत कानूनी रूप से परिभाषित मार्ग के माध्यम से ही ब्लॉक किया जा सकता है. इस बीच सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसने कथित तौर पर अभद्र हिंदी इस्तेमाल करने के लिए ग्रोक या “एक्स” को कोई नोटिस नहीं भेजा है. कहा गया है कि आईटी मंत्रालय के अधिकारी “एक्स” और ग्रोक के अधिकारियों के साथ चर्चा कर कर रहे हैं, ताकि यह समझा जा सके कि किस स्तर पर कौन से भारतीय कानून का उल्लंघन हुआ है.
जामिया का पूर्व छात्र अमेरिका में गिरफ्तार : अमेरिका के आव्रजन (इमिग्रेशन) अधिकारियों ने एक भारतीय छात्र बदर खान सूरी को वर्जीनिया से गिरफ्तार किया है. उस पर अमेरिका में हमास के समर्थन में और इजरायल के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने का आरोप है. बदर सूरी स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी का छात्र है और सेंटर फॉर मुस्लिम-क्रिश्चियन अंडरस्टैंडिंग में पढ़ाई कर रहा है. अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग की अधिकारी ने “एक्स” पर पोस्ट में कहा कि सूरी सक्रिय तौर पर हमास का प्रचार कर सोशल मीडिया पर यहूदी विरोधी भावना को बढ़ावा दे रहा था. उसको अमेरिका से निर्वासित किया जा सकता है. वह नई दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी का छात्र रहा है. उसके वकील का कहना है कि सूरी की पत्नी का चूंकि फिलिस्तीन से संबंध है, इसलिए उसे सजा दी जा रही है.
दिशा सालियान : आदित्य ठाकरे के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका, शिवसेना बोली-ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी की डर्टी पॉलिटिक्स, औरंगज़ेब का मुद्दा चला नहीं
दिशा सालियान की मृत्यु के लगभग पांच साल बाद, उसके पिता सतीश सालियान ने बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया है. उन्होंने शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की है. सालियान की ओर से वकील निलेश सी. ओझा द्वारा पेश याचिका में आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार ने आदित्य ठाकरे को बचाने और मामले को दबाने का प्रयास किया था. ओझा ने कहा, “दिशा की हत्या के समय राज्य में उद्धव ठाकरे सरकार सत्ता में थी. चूंकि उनका बेटा आरोपी था, भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों ने मामले को दबा दिया. हमने सितंबर 2023 में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें एफआईआर दर्ज करने और कार्रवाई करने की मांग की गई थी. दिसंबर 2023 में शिंदे सरकार ने इस मामले में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया. 12 जनवरी 2024 को एक लिखित शिकायत दर्ज की गई, जिसमें आदित्य ठाकरे, सूरज पंचोली और अन्य पर सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया गया.”
इसके जवाब में शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने दावा किया कि दिशा सालियन मामले में याचिका दायर करने का उद्देश्य औरंगज़ेब विवाद से ध्यान भटकाना है. उन्होंने कहा, “पूरे राज्य को इस याचिका के पीछे की राजनीति का पता है. इन लोगों ने जो औरंगज़ेब का मुद्दा उठाया, वह इनके खिलाफ हो गया. अब वे दिशा सालियन मामले को हवा देकर औरंगज़ेब मुद्दे से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं. यह गंदी राजनीति हमारे राज्य का नाम बदनाम कर रही है. यह अच्छा काम करने वाले एक युवा नेता और हमारी पार्टी की छवि खराब करने का प्रयास है.”
पाठकों से अपील
फैक्ट चैक
एएनआई ने पहचान लिए अपने ही अज्ञात पुरुष
मोहम्मद जुबैर ने एएनआई की एक खबर की तथ्य-जांच की है. उन्होंने समाचार एजेंसी द्वारा हिंदुत्ववादी बर्बरता की एक घटना के कवरेज पर सवाल उठाया है. उन्होंने एक्स पर तस्वीर शेयर कर लिखा है- न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने बुधवार रात 10 बजे से पहले इंटरव्यू लिया. आज (गुरुवार) सुबह 6:58 बजे ‘अज्ञात पुरुषों’ का वीडियो ट्वीट किया, लेकिन इसके तुरंत बाद एएनआई ने जादुई तरीके से उन ‘अज्ञात पुरुषों’ की पहचान कर ली, जिनका उसने इंटरव्यू लिया था.
गुजरात : मोदी के खास को भ्रष्टाचारी बताने वाले बीजेपी नेता पर हमला
गुजरात भाजपा के वरिष्ठ नेता भीखाभाई कलाभाई गोहिल ने पूर्व सांसद दीनू बोगा सोलंकी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाकर पार्टी के भीतर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. दरअसल, पूर्व सांसद सोलंकी को नरेंद्र मोदी और अमित शाह का करीबी माना जाता है. गोहिल ने प्रधानमंत्री मोदी और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को लिखे पत्रों में जमीन कब्जाने और वित्तीय घोटालों के बारे में विस्तार से बताया है. एक इंटरव्यू में भ्रष्टाचार के आरोपों की सार्वजनिक रूप से चर्चा करने के कुछ दिनों बाद, 3 मार्च को गोहिल पर कोडिनार में अज्ञात हमलावरों ने हमला कर दिया. गोहिल के आरोपों ने गुजरात में मोदी के बहुप्रचारित दो आयोजनों को भी पीछे छोड़ दिया है, जिसमें गिर अभयारण्य के लिए ₹2,900 करोड़ की अनुदान राशि देना और अंबानी के निजी चिड़ियाघर का दौरा शामिल है. यानी, मोदी के कार्यक्रमों की बनिस्बत गोहिल के आरोपों की चर्चा ज्यादा हो रही है. यह पहली बार नहीं है, जब गुजरात भाजपा की भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतें मोदी तक पहुंची हैं. पिछले साल भी कम से कम दो बार भ्रष्टाचार के मामले मोदी के संज्ञान में लाए गए थे, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले उठाने वालों को हिंसक प्रतिशोध का सामना करना पड़ता है.
नागपुर हिंसा | चार नई एफआईआर में एक राजद्रोह की भी : नागपुर हिंसा के संबंध में दर्ज पांच एफआईआर के अलावा, साइबर पुलिस ने वृहस्पतिवार को चार और मामले दर्ज किए, जिनमें से एक राजद्रोह का मामला है. इस मामले में माइनॉरिटीज़ डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के शहर अध्यक्ष फहीम खान और पांच अन्य को आरोपी बनाया गया है. यह मामला सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर दर्ज किया गया है. पुलिस ने अब तक 84 लोगों को गिरफ्तार किया है, इनमें विहिप और बजरंग दल के भी आठ कार्यकर्ता शामिल हैं. साइबर सेल ने अफवाह फैलाने और हिंसा भड़काने के आरोप में 34 सोशल मीडिया अकाउंट पर भी कार्रवाई की है और 10 एफआईआर दर्ज की हैं. उधर कुछ इलाकों से कर्फ्यू हटा लिया गया है.
कर्नाटक हनी ट्रैप | दोनों पक्षों के 48 नेताओं की सीडी : कर्नाटक के सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने कहा है कि उनको हनी ट्रैप में फँसाने की कोशिश की गई है. राज्य विधानसभा के बजट सत्र के दौरान उन्होंने दावा किया कि 48 नेताओं की सीडी और पेन ड्राइव बनाई गई हैं. इनमें पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ के केंद्र और राज्य के नेता शामिल हैं. राजन्ना की मांग पर गृह मंत्री जी परमेश्वर ने आश्वस्त किया कि सरकार इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश जारी करेगी.
न्याय और व्यवस्था
क्या मिश्रा होने के कारण बच जाता है कपिल, और नहीं बच पाते मुस्लिम आरोपी?
फरवरी 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्व इलाके में भड़के सांप्रदायिक दंगों के पीछे भाजपा नेता व दिल्ली सरकार के कानून मंत्री कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषणों को मुख्य कारण माना जाता है. मगर, पुलिस ने मिश्रा के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की, जबकि दंगों का दोषारोपण मुख्यतः गरीब मुस्लिम महिलाओं समेत एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों पर किया गया. 'आर्टिकल 14' की ताज़ा रिपोर्ट में बेतवा शर्मा ने इस पुलिसी पक्षपात और न्यायिक प्रक्रिया में देरी को उजागर किया है.
23 फरवरी 2020 को मौजपुर मेट्रो स्टेशन पर एक सभा को संबोधित करते हुए मिश्रा ने पुलिस को तीन दिन का अल्टीमेटम दिया : "जाफराबाद और चांद बाग की सड़कें खाली करो, नहीं तो हम पुलिस की नहीं सुनेंगे." इसी दिन उन्होंने ट्वीट कर लोगों से "सीएए का समर्थन करने सड़कों पर उतरने" का आह्वान किया. कुछ घंटों बाद दंगे भड़क गए, जिनमें 50 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें 75% मुस्लिम थे.
हालाँकि, दिल्ली पुलिस ने मिश्रा के इन भाषणों और ट्वीट्स के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया. इसके विपरीत, एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों, खासकर मुस्लिम महिलाओं, पर दंगा भड़काने, साजिश रचने और आतंकवाद जैसे गंभीर आरोप लगाए गए.
इस साल मार्च में दिल्ली के दो अदालतों ने मिश्रा के खिलाफ 2020 के सांप्रदायिक ट्वीट्स को लेकर चल रही कानूनी कार्यवाही रोकने से इनकार कर दिया. जज जितेंद्र सिंह ने टिप्पणी की : "मिश्रा ने 'पाकिस्तान' शब्द का इस्तेमाल कर चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया." वहीं, दंगों से जुड़े मामले में पुलिस ने मिश्रा से महज़ कुछ सवाल पूछकर ही मामला बंद कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने मिश्रा की पूछताछ में नरमी दिखाई, जबकि एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ साजिश केस (एफआईआर 59/2020) में गढ़े गए, सबूत पेश किए. सुप्रीम कोर्ट वकील शाहरुख आलम ने कहा, "यह कानून का दोहरा मापदंड है. अगर कोई मुस्लिम यही बोलता, तो उसे आतंकवादी ठहराया जाता."
दंगा पीड़ितों में शामिल मोहम्मद वसीम (अब 23 वर्ष) ने बताया कि दंगों के दौरान पुलिस ने उन्हें पीटा और राष्ट्रगान गाने को मजबूर किया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मिश्रा को करदमपुरी पुल पर पुलिस की मौजूदगी में एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाते देखा गया. वहीं, तथाकथित "बड़ी साजिश" केस में शर्जील इमाम और उमर खालिद जैसे आरोपियों को बिना ठोस सबूतों के जेल में डाल दिया गया. दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, दंगों की शुरुआत मिश्रा के भाषण के कुछ घंटों बाद हुई, जहाँ हिंदू भीड़ ने पेट्रोल बम और हथियारों से हमला किया. मगर, पुलिस का फोकस केवल मुस्लिम प्रदर्शनकारियों पर रहा. दंगों के पाँच साल बाद भी मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिकाएँ अदालतों में लटकी हैं. पुलिस ने इन याचिकाकर्ताओं पर "छिपे एजेंडे" का आरोप लगाया है. जबकि, मिश्रा 2023 में दोबारा विधायक बनकर मंत्री पद तक पहुँच गए. दिल्ली दंगों का सच सिर्फ़ हिंसा नहीं, बल्कि संस्थागत पक्षपात और न्यायिक देरी की कहानी है. जहाँ एक तरफ सत्ता के नज़दीकी नेता कानूनी जाल से बच निकलते हैं, वहीं आम नागरिकों को बिना सबूतों के सज़ा झेलनी पड़ रही है.
शर्जील इमाम के जेल में पांच साल और बिल्लियों के संग दोस्ती के बीच मां और दुनिया की फिक्र
इस साल जनवरी में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र शर्जील इमाम ने जेल में पांच साल पूरे किए. इस बीच दिल्ली दंगों (बड़ी साजिश) मामले में उनकी जमानत याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में 2022 से लंबित है. यह मामला FIR 59/2020 के तहत दर्ज किया गया है, जिसमें इमाम और 18 अन्य लोगों पर कठोर गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है. उनकी गिरफ्तारी के बाद से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इमाम के बारे में काफी चर्चा हुई है. हालांकि, 'द क्विंट' के लिए मेखला शरण से इस विशेष साक्षात्कार में जो तिहाड़ जेल की सलाखों के पीछे से लिखित रूप में किया गया है, 37 वर्षीय इमाम ने जेल में बिताए समय, पढ़ी जा रही किताबों, जेल में बने साथियों और दोस्त बने बिल्लियों के बारे में बात की है. वह दुनिया के साथ कदम मिलाने (वह AI टेक में हुए विकास से प्रभावित हैं और अपनी पीएचडी पूरी करने की उम्मीद करते हैं) और अपनी मां की पीड़ा पर दुख जताते हैं.
इमाम ने बताया है कि उनकी मां उनके जल्द रिहा होने की उम्मीद में हैं, लेकिन उनकी सेहत बिगड़ रही है. उन्हें हफ्ते में तीन बार पांच मिनट का फोन और एक 15 मिनट का वीडियो कॉल करने की अनुमति है. उनके भाई ने पिछले पांच साल से परिवार का सहारा बनकर उनकी मां और उनकी देखभाल की है. इमाम ने कहा कि उनके भाई ने शादी करने से इनकार कर दिया है, यह कहते हुए कि वह तब तक शादी नहीं करेंगे, जब तक कि इमाम रिहा नहीं हो जाते.
जेल में बिताए समय और पढ़ाई : इमाम ने बताया कि वह जेल में कई किताबें पढ़ रहे हैं, जिनमें इस्लामिक स्कॉलर रशीद शाज़ की किताबें, ओरहान पामुक की 'स्नो', जॉन मोर्टिमर की 'फॉरएवर रम्पोल', अकबर इलाहाबादी की कविताएं, विलियम डैलरिम्पल की 'फ्रॉम द होली माउंटेन' और मैक्स जैमर की 'कॉन्सेप्ट्स ऑफ स्पेस' शामिल हैं. उन्होंने जर्मन साहित्य में थॉमस मान की 'डेर टोड इन वेनेडिग' (डेथ इन वेनिस) भी पढ़ी है.
जेल में बदलाव और अनुभव : इमाम ने कहा कि जेल में रहने से उन्होंने उन चीजों की कद्र करना सीखा, जिन्हें वह पहले हल्के में लेते थे, जैसे परिवार, दोस्त, किताबें और इंटरनेट. उन्होंने कहा कि जेल में रहने से उनका मानवीय विश्वास कम हुआ है, क्योंकि जेल में लोग अपने बारे में सच नहीं बताते. हालांकि, उन्होंने कहा कि जेल में गरीब कैदियों और अंडरट्रायल्स के साथ बातचीत ने उनकी समझ को और समृद्ध किया है. उन्होंने कहा कि जेल में समय का मूल्य समझ में आया है, क्योंकि पांच साल जेल में बिताने के बाद वह खुद से सवाल करते हैं कि उन्होंने इन पांच सालों में क्या हासिल किया है.
जेल में दोस्ती और बिल्लियों का साथ : इमाम ने बताया कि जेल में उन्होंने कई लोगों के साथ दोस्ती की है, लेकिन जेल में दोस्ती करना मुश्किल है, क्योंकि लोगों को रिहा कर दिया जाता है या दूसरी जेलों में ट्रांसफर कर दिया जाता है. उन्होंने कहा कि उनके सेल में दो बिल्लियां रहती हैं, चोटू और लिसा, जो उनकी सबसे अच्छी दोस्त हैं. उन्होंने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि जब वह रिहा होंगे, तो इन बिल्लियों को भी अपने साथ ले जाएंगे.
रिहा होने के बाद की योजनाएं : इमाम ने कहा कि वह रिहा होने के बाद अपनी मां और भाई के साथ समय बिताने के लिए तत्पर हैं. वह एआई टेक में हुए विकास के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं और अपनी पीएचडी थीसिस को पूरा करना चाहते हैं, जो 'गो हत्या और सांप्रदायिक संघर्ष' पर आधारित है. उन्होंने कहा कि वह सीखने और संघर्ष करने वाले जीवन की ओर देख रहे हैं, जो इंशाअल्लाह बहुत फलदायी होगा.
मीडिया की मुख्य धारा
14 करोड़ रु. में डीडी न्यूज़ को रोज सुधीर चौधरी का घंटा
न्यूजलॉन्ड्री ने सूत्रों के हवाले से खबर की है कि प्रसार भारती ने डीडी न्यूज पर दो घंटे के एक शो के लिए आजतक के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी के साथ एक डील साइन की है. चौधरी से न्यूजलॉन्ड्री ने इस बारे में पूछा था तो उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया. पत्रकारिता को लेकर सुधीर की प्रतिबद्धता जगजाहिर इस तरह से भी है कि एक उद्योगपति से अपने चैनल के लिए सौ करोड़ उगाहने के लिए चौधरी को तिहाड़ जाना पड़ गया था. ये अलग बात है कि नवीन जिंदल भी अब सत्तारूढ़ पार्टी का हिस्सा हैं.
सूत्रों ने बताया कि चौधरी का केबिन दसवीं मंजिल पर बनाया जा रहा है. डीडी कर्मचारियों की एक टीम को उनके शो के लिए पहले से ही विशिष्ट भूमिकाएँ सौंप दी गई है. एक शीर्ष अधिकारी ने इसकी पुष्टि की कि चौधरी मार्च के अंत rd प्रसार भारती से जुड़ जाएंगे, साथ में यह भी बताया कि पूर्णकालिक रूप से डीडी न्यूज को अपनी सेवा नहीं देंगे. पहले यह बताया गया था कि अनुबंध में चौधरी को लगभग 14 करोड़ रुपये की पेशकश की गई है, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने रकम पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने यह भी दावा किया कि चौधरी पर होने वाला खर्च एक थर्ड पार्टी उठाएगी.
एक वरिष्ठ कर्मचारी ने चुटकी लेते हुए कहा कि ‘गढ़’ के संकेत स्पष्ट हैं. अगर सुधीर एक कमरा भी मांगता है तो उसे एक मंजिल दी जाएगी. हमने यहाँ ऐसा कभी नहीं देखा.
औरंगजेब और प्राइम टाइम एंकरों पर अतुल चौरसिया की टिप्पणी
इसी के साथ औरंगजेब को लेकर इधर न्यूजलॉण्ड्री के लिए अतुल चौरसिया ने फिक्शन के जरिये बात रखी है. इसमें औरंगजेब के शासनकाल की वर्तमान सरकार से तुलना जैसा भी कुछ है. इस रिपोर्ट में औरंगजेब, सावरकर, महात्मा गांधी समेत देश के कई मशहूर ऐतिहासिक किरदारों की बातचीत के जरिये व्यंग्यात्मक टिप्पणी की गई है. इस रिपोर्ट में वंतारा की खबर के उड़ जाने से लेकर प्रोपगैंडा मीडिया तक पर बातचीत की गई है, जो ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ सुधीर चौधरी तक पहुंचती है.
विश्लेषण
ट्रम्प का टैरिफ निज़ाम क्या भारत के अरबपति राज को निगल जाएगा?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 2 अप्रैल की समयसीमा - जब वे आयात पर पारस्परिक कर लगाने का फैसला कर सकते हैं - में अभी दो सप्ताह बाकी हैं. लेकिन नई दिल्ली पहले ही नुकसान नियंत्रण की मोड में आ गई लगती है, जैसे सबसे बुरे की आशंका हो. एंडी मुखर्जी ने ब्लूमबर्ग में लिखा है कि ट्रम्प का ये कदम, भारत में अरबपति राज खत्म कर सकता है और कई तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकार के लिए ये अच्छी खबर नहीं है.
पिछले हफ्ते के 24 घंटों के भीतर, भारत के दो सबसे बड़ी वायरलेस कैरियर कंपनियों ने अपना रवैया बदल लिया. उनके अरबपति मालिक इलोन मस्क को बाजार में प्रवेश की मुफ्त छूट देने के खिलाफ अब तक अड़े हुए थे. उन्होंने ही स्वतंत्र रूप से मस्क की स्टारलिंक के साथ साझेदारी की घोषणा कर दी. एक शीर्ष सरकारी मंत्री ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर स्वागत संदेश भी पोस्ट किया, बाद में हटा भी दिया, हालांकि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा को अभी तक स्थानीय नियामक मंजूरी नहीं मिली है.
नरेंद्र मोदी ने विपक्षी कांग्रेस पार्टी के इस आरोप का जवाब नहीं दिया कि ये सौदे उनकी सरकार द्वारा "ट्रम्प के साथ सौहार्द खरीदने" के लिए किए गए हैं. लेकिन पिछले महीने प्रधानमंत्री के व्हाइट हाउस दौरे के दौरान यह खबर भी आई कि भारत टेस्ला की कारों के आयात पर वर्तमान 110% के बजाय कम शुल्क लगा सकता है. इन सबको मिलाकर साफ है कि नई दिल्ली व्यापार और उद्योगपतियों के प्रति अपना रुख बदल रही है.
पिछले 10 वर्षों में, मोदी की आर्थिक रणनीति कुछ चुनिंदा 'राष्ट्रीय चैंपियन' कंपनियों पर निर्भर रही है. 2011 में जो आयात शुल्क चीन के 7% के स्तर तक गिर चुके थे, उन्हें 2022 तक बढ़ाकर 12% कर दिया गया, जो दुनिया में सबसे अधिक है. विदेशी प्रतिस्पर्धा से इन कंपनियों को बचाने के लिए भारी शुल्क, सरकारी अनुबंधों और गैर-टैरिफ बाधाओं (जैसे विदेशी वाणिज्य के लिए जटिल नियम) का यह पक्षपात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता रहा है. ट्रम्प 1.0 के दौरान अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर ने नई दिल्ली से बातचीत करते समय अपनी मेज पर 15 भारतीय उद्योगपतियों की जीवनियाँ रखी थीं. अपनी 2023 की किताब में उन्होंने लिखा, "भारत सरकार की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए मैं इन लोगों के कारोबारी हितों को देखता था."
शैक्षणिक शोधों ने भी मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, टाटा समूह, सीमेंट किंग कुमार मंगलम बिड़ला और टेलीकॉम टाइकून सुनील मित्तल जैसे उद्योगपतियों के बढ़ते प्रभाव की पुष्टि की है. शीर्ष पांच समूहों की गैर-वित्तीय संपत्ति की हिस्सेदारी 1991 के 10% से बढ़कर 2021 में 18% हो गई.
2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह विस्तार और तेज हुआ. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले पूर्व केंद्रीय बैंक डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के अनुसार, इस दौरान ये कॉन्ग्लोमेरेट्स "अपने मौजूदा क्षेत्रों में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने लगे." आचार्य ने 2023 के अपने अध्ययन में कहा, "उच्च शुल्क के कारण, बड़े समूहों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता." न ही उन्हें विदेशों में अपनी ताकत आजमानी पड़ती है. उनकी अधिकांश आय दूरसंचार, मीडिया, रिटेल, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, निर्माण सामग्री और ऑटो जैसे घरेलू क्षेत्रों से आती है.
ट्रम्प 2.0 के दौर में, भारत का यह 'अरबपति राज' थम सकता है. मोदी सरकार ने 2 अप्रैल की तैयारी शुरू कर दी है. वाणिज्य मंत्री ने निर्यातकों से "संरक्षणवादी मानसिकता से बाहर निकलने" को कहा है. लेकिन असल बदलाव की जरूरत उद्योगपतियों को नहीं, सरकार को है.
ट्रम्प प्रशासन ने भारत पर अमेरिकी कृषि उत्पाद खरीदने का दबाव बनाया है, जिन पर भारत 39% शुल्क लगाता है - अमेरिका से आठ गुना अधिक. लेकिन मोदी का उत्तर भारत के किसानों से रिश्ता पहले से ही खराब है. किसानों ने बाजार-आधारित मूल्य प्रणाली के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है और अधिक सरकारी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. कृषि पर कोई रियायत राजनीतिक रूप से महंगी पड़ सकती है. शायद ट्रम्प के नये रवैये का बोझ स्थानीय अरबपतियों पर डालना सुरक्षित होगा.
लेकिन उद्योगपति भी अपने हितों की लॉबी करेंगे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत ने निर्माताओं से चीनी पुर्जों और कच्चे माल को अमेरिकी विकल्पों से बदलने को कहा जा रहा है. यह महंगा विकल्प है. अगर सरकार इसे जबरदस्ती लागू करती है, तो विरोध होगा. नौकरशाही हलकों में यह बात उभर रही है कि भारत पश्चिम के साथ इतना जुड़ गया है कि वह अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता का मोहरा बन गया है. शायद अब पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने का वक्त आ गया है. अगर टेस्ला को लाल कार्पेट दिया जा रहा है, तो चीन की बीवाईडी कंपनी की भारत में इलेक्ट्रिक कार निर्माण की लंबित अर्जी क्यों नहीं मंजूर की जाती - किसी स्थानीय भागीदार के साथ?
यह सिर्फ एक उदाहरण है. राष्ट्रीय हितों को परिभाषित करने और बचाने में कोई गलती पूरे मॉडल को ध्वस्त कर सकती है, जिसमें चीन जैसी आर्थिक सफलता की नकल करने के लिए कुछ 'राष्ट्रीय चैंपियन' तैयार किए गए थे. लेकिन यह लक्ष्य अभी दूर है. 1960 के बाद से कारखाना उत्पादन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हिस्सा सबसे कम 13% है. वहीं, चीन के साथ व्यापार घाटा पिछले दशक में दोगुना हो गया है, जो भारत की बड़ी अर्थव्यवस्था पर निर्भरता को दर्शाता है.
मोदी के लिए यह 100 अरब डॉलर के वार्षिक घाटे से निपटने से पहले ही, ट्रम्प भारत के अमेरिका के साथ 50 अरब डॉलर के व्यापार अधिशेष को निशाने पर ले चुके हैं - जो भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है. यह समय सबसे खराब है. घरेलू मांग तेजी से घट रही है, और शेयर बाजार 1.3 ट्रिलियन डॉलर की गिरावट से जूझ रहा है. नई दिल्ली की सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि पारस्परिक शुल्कों की धमकी को टालकर, खासकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील कृषि उत्पादों पर, वाशिंगटन के साथ व्यापक वार्ता के लिए समय खरीदा जाए. ट्रम्प की सरकारी कुशलता के प्रमुख (एलन मस्क) के व्यवसायों के प्रति अचानक जगी यह उत्सुकता भारत के लाड़ले अरबपतियों के लिए एक स्पष्ट संदेश है: अब उन्हें अपने बल पर तैरना होगा.
सबसे ज्यादा ड्रग्स अडानी के पोर्ट से बरामद
'द प्रिंट' की रिपोर्ट है कि 2020 से 2024 के बीच बंदरगाहों पर 19 मामलों में ड्रग्स की बरामदगी हुई, जिनमें से 10 मामले 2022 में हुए, जबकि सबसे बड़ी जब्ती 2021 में अडानी के नियंत्रण वाले बंदरगाह पर हुई. मंगलवार को लोकसभा को सूचित किया गया कि 2020 से 2024 के बीच बंदरगाहों पर ड्रग्स की बरामदगी के 19 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 10 मामले 2022 में हुए. सबसे बड़ी जब्ती 2021 में अडानी बंदरगाह पर हुई थी. 2020 में ऐसा एक मामला दर्ज किया गया था, जबकि 2021 में बंदरगाहों पर ड्रग्स की जब्ती से जुड़े चार मामले सामने आए. 2023 और 2024 में ऐसे मामलों की संख्या क्रमशः एक और तीन रही. गृह मंत्रालय (MHA) ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी के सवालों के जवाब में बताया कि जब्त किए गए ड्रग्स में कोकीन, हेरोइन, मेथामफेटामाइन और ट्रामाडोल टैबलेट शामिल हैं. 2021 में गुजरात के मुंद्रा स्थित अडानी बंदरगाह पर सबसे बड़ी ड्रग्स जब्ती हुई, जिसकी कीमत 5,976 करोड़ रुपये थी. राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने उस समय 2,988 किलोग्राम हेरोइन जब्त की थी. 2021 में तमिलनाडु के तूतीकोरिन स्थित वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह पर 303 किलोग्राम कोकीन जब्त की गई, जिसकी कीमत 1,515 करोड़ रुपये थी. 2020 में मुंबई के जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह (JNPT) से 191 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई, जिसकी कीमत 382 करोड़ रुपये थी. 2021 में मुंद्रा और वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाहों पर जब्ती के अलावा, जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह से दो बार हेरोइन जब्त की गई (294 किलोग्राम और 25 किलोग्राम).
नेतन्याहू के खिलाफ सड़कों पर उतरे इजरायली
'द गार्डियन' की खबर है कि हजारों इजरायलियों ने गाजा में बेंजामिन नेतन्याहू सरकार के युद्धविराम को तोड़कर हमला शुरू करने और दक्षिणपंथी सरकार द्वारा देश के लोकतंत्र पर हमले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने जेरूसलम और तेल अवीव में प्रमुख राजमार्गों को अवरुद्ध कर दिया. पुलिस ने कम से कम 12 लोगों को गिरफ्तार किया है. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि आने वाले दिनों में और विरोध प्रदर्शन होने की उम्मीद है क्योंकि अभियान "गति और ऊर्जा प्राप्त कर रहा है." विरोध का तात्कालिक कारण नेतन्याहू द्वारा आंतरिक सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख रोनेन बार को बर्खास्त करने का प्रयास था, लेकिन प्रधानमंत्री के गाजा में दो महीने पुराने युद्धविराम को तोड़ने और घातक हवाई हमलों को शुरू करने के फैसले ने प्रदर्शनों को और बढ़ावा दिया है. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार राजनीतिक कारणों से युद्ध जारी रख रही है और 59 बंधकों (जिनमें से लगभग 24 को जीवित माना जाता है) की दुर्दशा को नजरअंदाज कर रही है, जो हमास द्वारा तबाह फिलिस्तीनी क्षेत्र में बंदी बनाए गए हैं. "ब्रदर्स इन आर्म्स" प्रदर्शन आंदोलन के प्रमुख एतान हर्जेल ने कहा,
"इस सरकार ने एक बार फिर खुद को बचाने के लिए युद्ध शुरू किया है, ताकि इजरायल की जनता की चिंताओं से ध्यान हटाया जा सके. सरकार ने हर स्तर पर अपनी वैधता खो दी है... वे विफल हो रहे हैं." गौरतलब हे कि बुधवार को हजारों लोग नेतन्याहू के आधिकारिक निवास के पास जेरूसलम के केंद्र में सड़कों पर उमड़ पड़े. कई लोग इजरायली झंडे और गाजा में बंधक बने लोगों के समर्थन में नारे लिखे प्लेकार्ड लेकर आए. इधर नेतन्याहू ने फिर से वही राग अलापा है- उनके खिलाफ एक "गहरी वामपंथी साजिश" काम कर रही है.
भारत ने ज़ुबान खोली : 'द वायर' की रिपोर्ट है कि इजरायली हवाई हमलों में गाजा में 400 से अधिक फिलीस्तीनियों की मौत के एक दिन बाद, भारत ने एक संक्षिप्त बयान जारी कर स्थिति को "चिंताजनक" बताया और सभी बंधकों की रिहाई तथा बिना रुकावट मानवीय सहायता की मांग की. इधर अरब और यूरोपीय नेताओं ने इजरायल के युद्धविराम को तोड़ने की कड़ी निंदा की है. भारत ने फिलीस्तीनियों के लिए केवल मानवीय राहत की बात करते हुए सीधी आलोचना से बचने की अपनी रणनीति बनाए रखी है. जनवरी में भारत ने युद्धविराम समझौते की घोषणा का स्वागत किया था, यह कहते हुए कि नई दिल्ली ने "लगातार सभी बंधकों की रिहाई, युद्धविराम और वार्ता एवं कूटनीति के रास्ते पर लौटने का आह्वान किया है." उल्लेखनीय है कि भारत के नवीनतम बयान में इजरायल का कोई जिक्र नहीं था. न ही इसमें हिंसा को समाप्त करने, युद्धविराम को फिर से शुरू करने या बातचीत की मांग की गई थी. "भाई, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया में कितने लोग आपके साथ खड़े हैं, युद्ध के मैदान में कभी कोई समाधान नहीं निकलेगा," नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से यह बात कही. हालांकि, इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को इस भाईचारे वाली सलाह देने का कोई रिकॉर्ड नहीं है.
एक फिलीस्तीनी छात्र का दर्द
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय में, भारत फिलीस्तीनी मुद्दे का प्रमुख समर्थक माना जाता था. इंदिरा गांधी यासिर अराफात और पीएलओ की दोस्त थीं (हालांकि उन्होंने इजरायल के साथ गुप्त सैन्य संबंध भी बनाए रखे). इस संबंध के कारण 1970 और 1980 के दशक में हजारों फिलीस्तीनी छात्र उच्च शिक्षा के लिए भारत आए. कई लोग पढ़ाई पूरी करने के बाद यहीं रुक गए, कुछ नौकरी के लिए, तो कुछ घर वापस नहीं जा सके, लेकिन पिछले एक दशक में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद, भारत में फिलीस्तीनियों के प्रति रवैया बदल गया है. गाजा में इजरायल के नरसंहार की शुरुआत के साथ, भारत में रहना और भी मुश्किल और कई बार असहनीय हो गया है. दिल्ली में रहने वाले एक भारतीय-फिलीस्तीनी, रज़ीन ने इस बारे में एक साहसिक रिपोर्ट लिखी है. पिछले कई सालों में, हजारों फिलीस्तीनी छात्रों ने इजरायली कब्जे के कारण विस्थापन और राजनीतिक उथल-पुथल से परेशान होकर भारत में शरण ली. भारत सरकार के अनुसार, इन वर्षों में कम से कम 12,000 फिलीस्तीनी छात्रों ने भारतीय विश्वविद्यालयों से स्नातक किया है, जबकि अधिकांश छात्र डिग्री पूरी करने के बाद चले गए, कई लोग यहीं रुक गए. कुछ नौकरी के कारण, तो कुछ घर वापस नहीं जा सके. रज़ीन के पिता ने भारत में प्यार और साथी मिलने के बाद यहीं रहने का फैसला किया.
पीसीबी का घाटा रिकॉर्ड मुनाफे में बदला : पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने नुकसान की रिपोर्ट्स के बाद आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 की मेजबानी से रिकॉर्ड मुनाफा कमाने की घोषणा की है. अधिकारियों ने बताया कि बोर्ड ने PKR 3 अरब (₹92.44 करोड़) का लाभ अर्जित किया, यह घोषणा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा ट्रॉफी जीतने वाले अपने खिलाड़ियों के लिए ₹58 करोड़ के पुरस्कारों की घोषणा के कुछ घंटों बाद की गई. पीसीबी के सलाहकार आमिर मीर ने यह भी कहा कि चैंपियंस ट्रॉफी के कारण पाकिस्तान क्रिकेट को घाटा होने की खबरें केवल प्रोपेगेंडा (दुष्प्रचार) हैं.
यूक्रेन
धमाकों के बीच सरकती युद्धविराम की कथा
रूस और यूक्रेन ने लगातार एक दूसरे के इलाकों पर हवाई हमले किए. इससे इस हफ्ते अमेरिका की मध्यस्थता से हुए सीमित युद्धविराम संधि के समय और शर्तों को लेकर अनिश्चितता बनी रही. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा कि रूस ने रातभर लगभग 200 ईरानी शाहेद ड्रोन लॉन्च किए, जिससे कम से कम 10 लोग घायल हुए. इनमें चार बच्चे शामिल हैं. आवासीय इमारतों, एक चर्च और बुनियादी ढांचे को भी हमले में नुकसान पहुंचा. ज़ेलेंस्की ने टेलीग्राम पर एक बयान में कहा कि रूस के हमले यूक्रेन पर उसके शांति के प्रचार के बावजूद जारी हैं... हर लॉन्च के साथ, रूसी दुनिया को शांति के प्रति अपना असली रवैया दिखाते हैं. रूसी बलों ने सुमी क्षेत्र के एक गांव पर भी हमला किया और खार्किव शहर के पास के एक कस्बे पर कई हवाई हमले किए. यूक्रेन ने रूस पर अपना बड़ा ड्रोन हमला किया, जो मोर्चे से लगभग 700 किमी दूर एक प्रमुख एयरबेस के पास के एयरफील्ड को निशाना बनाता प्रतीत हुआ.
इधर रूस के सारातोव क्षेत्र के गवर्नर रोमन बुसर्गिन ने टेलीग्राम पर लिखा- "एंगेल्स ने आज अब तक का सबसे बड़ा यूएवी हमला झेला." बुसर्गिन ने कहा कि इस हमले से एक एयरफील्ड में आग लग गई और आसपास के निवासियों को निकाला गया. उन्होंने विशेष रूप से एंगेल्स बेस का उल्लेख नहीं किया, लेकिन यह क्षेत्र में मुख्य एयरफील्ड है. रूसी टेलीग्राम चैनलों द्वारा साझा की गई छवियों में एयरफील्ड के पश्चिम में एक क्षेत्र से घना धुआं उठता हुआ दिखा, जिसमें रिपोर्टों ने सुझाव दिया कि एक गोला-बारूद डिपो क्रूज मिसाइल विस्फोट हो गया था. क्षेत्रीय अधिकारियों ने कहा कि इस हमले में 10 लोग घायल हुए.
गौरतलब है कि बुधवार को ज़ेलेंस्की ने कहा कि उन्होंने ट्रम्प के साथ एक आंशिक युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए, जिस पर ट्रम्प ने एक दिन पहले व्लादिमीर पुतिन के साथ सहमति व्यक्त की थी. हालांकि, इस बात को लेकर भ्रम था कि ट्रम्प और पुतिन ने वास्तव में किस पर सहमति जताई थी, क्योंकि इसके बाद मास्को और वाशिंगटन ने बहुत अलग बयान दिए. ट्रम्प ने अपनी प्रारंभिक पोस्ट में कहा कि आंशिक युद्धविराम "ऊर्जा और बुनियादी ढांचे" पर लागू होगा, जिससे यह धारणा बनी कि यह सभी नागरिक बुनियादी ढांचे तक विस्तारित होगा. ज़ेलेंस्की ने ट्रम्प के साथ अपनी कॉल के बाद "ऊर्जा और अन्य नागरिक बुनियादी ढांचे पर हमले समाप्त करने" की बात की. हालांकि, पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने बुधवार को कहा कि युद्धविराम केवल ऊर्जा क्षेत्र पर लागू होगा और बुधवार को व्हाइट हाउस के एक बयान ने भी केवल ऊर्जा का ही उल्लेख किया. मतलब कि बाकी जगह मारकाट और गोला बारूद के धमाके जारी रहेंगे.
सुनीता विलियम्स
उसका मन था ढोर डॉक्टर बनने का, पहुंच गई नासा
दिनेश सी शर्मा की नई किताब "स्पेस: द इंडिया स्टोरी" जिसे ब्लूम्सबरी इंडिया ने प्रकाशित किया है, भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और एक विकासशील राष्ट्र की कहानी को दर्शाता है, जिसने 20वीं सदी की समस्याओं से जूझते हुए भी मितव्ययिता और नवाचार के साथ इस दौड़ में अपनी जगह बनाई. शर्मा अपनी किताब में छह दशकों से अधिक की यात्रा का पता लगाते हैं, जिसमें मिशनों, प्रौद्योगिकी और उन भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्रियों की कहानियां शामिल हैं, जिन्होंने भारत को अंतरिक्ष के मानचित्र पर स्थापित करने में मदद की. इसमें सुनीता विलियम्स के जीवन, उनके करियर और नासा तक के सफर को भी खूबसूरती से चित्रित किया गया है. सुनीता नौ महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद कुछ ही घंटो पहले धरती पर वापस लौटी हैं. 'द टेलीग्राफ इंडिया' पर आप इसे विस्तार से पढ़ सकते हैं.
जून 2024 में एक मानव अंतरिक्ष मिशन ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया, खासकर भारत में जब बोइंग स्टारलाइनर यान को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए भेजा गया. यह स्टारलाइनर की पहली मानवयुक्त उड़ान थी, लेकिन यान में तकनीकी समस्याओं के चलते लौटने में देरी हुई. इस मिशन में अनुभवी नासा अंतरिक्षयात्री बुच विलमोर और सुनीता विलियम्स शामिल थीं, जिनकी भारतीय जड़ों के कारण भारत में उनकी यात्रा को लेकर खास रुचि देखी गई.
सुनीता ने बताया कि उनके सबसे बड़े प्रेरणास्रोत उनके माता-पिता हैं. उनके पिता दीपक पंड्या, गुजरात के महेसाणा जिले के झूलासन गांव से थे, जबकि उनकी मां उर्सलीन बोनी ज़ालोकर स्लोवेनियाई मूल की थीं. दीपक एक न्यूरोएनाटॉमी विशेषज्ञ थे और उन्होंने अमेरिका में प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया. सुनीता का बचपन एक बहुसांस्कृतिक माहौल में बीता, जहां रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाई जाती थीं, तो वहीं क्रिसमस भी धूमधाम से मनाया जाता था.
सुनीता ने शुरुआत में पशु चिकित्सक बनने की सोची थी, लेकिन उनके भाई जय, जो अमेरिकी नौसेना अकादमी से स्नातक थे, उनके सुझाव पर उन्होंने वहां प्रवेश लिया. सुनीता ने 1987 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और अमेरिकी नौसेना में शामिल हो गईं. उन्हें हेलीकॉप्टर पायलट के रूप में प्रशिक्षित किया गया और उन्होंने ऑपरेशन डेजर्ट शील्ड और हरीकेन एंड्रयू जैसी मानवीय सहायता मिशनों में भाग लिया.
नासा के अंतरिक्ष यात्री बनने का सफर संयोगों से भरा था. टेस्ट पायलट बनने के दौरान उन्हें नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर (JSC) जाने का मौका मिला, जहां चंद्रमा पर कदम रखने वाले जॉन यंग ने उन्हें प्रेरित किया. इसके बाद उन्होंने फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली और नासा में आवेदन किया. साल 1998 में ग्यारह वर्षों तक नौसेना में सेवा करने के बाद, सुनीता को नासा के 18वें अंतरिक्ष यात्री समूह में शामिल किया गया.
चलते-चलते
एमएफ हुसैन की ‘ग्राम यात्रा’ सबसे महंगी भारतीय कलाकृति बनी, 1 अरब 19 करोड़ में बिकी
एमएफ हुसैन की कलाकृति ‘ग्राम यात्रा’
19 मार्च को न्यूयॉर्क में क्रिस्टी नीलामी में मकबूल फिदा हुसैन की कलाकृति 'ग्राम यात्रा' सबसे महंगी भारतीय कलाकृति बन गई. यह कलाकृति 13.8 मिलियन डॉलर (1 अरब 19 करोड़ रुपये से भी ज्यादा) में बिकी. इससे पहले यह रिकॉर्ड अमृता शेरगिल की 1937 की कलाकृति 'द स्टोरी टेलर' के पास था. 2023 में मुंबई में हुई नीलामी में शेरगिल की कलाकृति की कीमत 7.4 मिलियन डॉलर (63 करोड़ 89 लाख रुपये से ज्यादा) लगी थी, जो हुसैन की कलाकृति की कीमत से करीब आधी है.
एमएफ हुसैन की 1954 की इस पेंटिंग को उसी साल यूक्रेन में जन्मे नॉर्वे के डॉक्टर लियोन एलियास वोलोडार्स्की खरीद कर अपने साथ ले गए थे. इसके बाद से यह बहुत हद तक अनदेखी ही रह गई थी. वोलोडार्स्की ने 1964 में पेंटिंग को ओस्लो यूनिवर्सिटी अस्पताल को दे दिया था. बताया जाता है कि ‘ग्राम यात्रा’ की बिक्री से प्राप्त आय संस्थान में डॉक्टरों की भावी पीढ़ियों के प्रशिक्षण में खर्च की जाएगी. इससे पहले, हुसैन की सबसे महंगी पेंटिंग ‘पुनर्जन्म’ पिछले साल लंदन में 3.1 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 25.7 करोड़ रुपये) में बिकी थी.
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