21/04/2025 : भागवत के हिसाब से ऐसे होगी हिंदू एकता | बेतुके बयानों का भाजपाई आर्केस्ट्रा | पूर्व डीजीपी को मारने के बाद पत्नी बोली राक्षस था | 14 साल का आईपीएल स्टार | ऑस्ट्रेलिया में एडमिशन बैन |
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
निशिकांत फिर बोले
आकार पटेल | चीन का अपराध यह है कि कुछ सालों में वह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा
भारत के दंगलों से लेकर अंतरराष्ट्रीय पोडियम तक, ये है अजरबैजानी पहलवान की कहानी
कैसे टूट गई पत्रकारिता की 'रीढ़ की हड्डी'!
पुतिन का 'ईस्टर युद्धविराम': शांति की उम्मीद या कोरा दिखावा?
वरुण ग्रोवर : धर्म दुनिया की सबसे पहली एमवे स्कीम थी
विश्लेषण
बेतुके बयानों का भाजपाई आर्केस्ट्रा
राजेश चतुर्वेदी
निशिकांत दुबे कह रहे हैं कि उन्होंने सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट के बारे में अपनी राय व्यक्त करने से पहले पार्टी से बात नहीं की थी. दुबे जी से कोई पूछे कि महाराज, अगर आपने पार्टी से बात करने के बाद ये सब कहा होता तो क्या नड्डा जी आपके बयानों को खारिज करते? क्या आपके बयानों से पार्टी को अलग करते? क्या वह यह कहते कि भाजपा का आपके बयानों से कोई लेना देना नहीं है? जो कहा है, वो सब आपका निजी मत है, क्या ऐसा कहते नड्डा जी? क्या आप समेत बीजेपी के तमाम सांसदों और नेताओं को आइंदा ऐसी टिप्पणियां न करने की सख्त हिदायत देते? कतई नहीं. हो सकता है, आपको भी अहसास हो कि आपसे गलती हो गई. यदि पार्टी से “बात” करने के बाद अपनी बात कहते, तो बेहतर रहता. या तो आपको रोक दिया जाता, या फिर बताया जाता कि क्या कहना है और क्या नहीं? कहना है, तो कितना कहना है? किसके बारे में ज्यादा कहना है और किसके बारे में कम? कहने का आशय यह कि यदि पार्टी से “बात” करके अपनी बात रखते तो तय था कि नड्डा जी आपकी प्रशंसा करते, पार्टी में आपकी जय-जयकार होती. चार बार के सांसद हैं आप, तो संभव है आपको मंत्री पद नसीब हो जाता, पदोन्नति मिल जाती. पर क्या ही किया जाए? गलती है, हो गई. जानबूझकर थोड़े ही की है? भला आप क्यों चाहेंगे कि आपकी वजह से पार्टी या चला-चली की बेला में नड्डा जी को शर्मिंदा होना पड़े? आप ही बताइए, 45 वर्ष की आयु वाले संगठन के अध्यक्ष होने के नाते उन्हें यह बताना पड़ रहा है कि “बीजेपी हमेशा से न्यायपालिका का सम्मान करती आई है और सुप्रीम कोर्ट समेत सभी अदालतों के आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार करती है, क्योंकि ये देश के लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा हैं और संविधान की रक्षा करते हैं.” तो, आपको लगा तो होगा कि “बात” कर लेना थी? शर्तिया, नड्डा जी आपको रोक देते. शायद, यूपी वाले शर्माजी (दिनेश) भी यही सोच रहे हों. उनका बयान तो बाद में आया. हो सकता है, उनके “प्रेरणा पुंज” आप हों? उनका अपना मौलिक न रहा हो! वह भावुक हो गए हों. आपने तो फिर भी यह बता दिया कि पार्टी से “बात” नहीं की थी, शर्मा जी तो कुछ बोल ही नहीं रहे. वैसे, ग्लानि भाव अकसर मौन कर देता है. मनुष्य गलती का पश्चाताप मन ही मन करता है. कुछ गलतियां नादानी में हो जाती हैं. शर्मा जी की उसी श्रेणी की मानी जा सकती है. इसीलिए सुर्खियों में उनको उतना भाव भी नहीं मिला. एएनआई की वीडियो क्लिप्स में भी नहीं. तो क्या यह माना जाए कि जानबूझकर गलती की गई? बिल्कुल नहीं. यदि ऐसा होता तो नड्डा जी कोई नोटिस थमा देते. कारण पूछा जाता, कारण कि मामला देश की सबसे बड़ी अदालत और सीजेआई की गरिमा का है. ‘दोनों जी’ सत्तारूढ़ गठबंधन और पार्टी के सम्मानित सांसद हैं. जाहिर है, वे कुछ कहेंगे, करेंगे तो पार्टी और उसके शीर्ष नेतृत्व से सवाल किए जाने लगते हैं. नेतृत्व की मंशा और नीयत को कटघरे में घसीटा जाता है. शायद, इसीलिए नड्डाजी ने तुरंत दोनों के बयानों से पार्टी को “अलग” किया. हालांकि, यह अगर पाखंड है तो इसका प्रदर्शन सियासत की स्थाई परंपरा रही है. अधिकांश राजनीतिक दल बड़ी शिद्दत से इसका पालन करते रहे हैं. पीएम मोदी ने तो इस परंपरा को नया आयाम दिया है- “मन से माफ नहीं करने का.” गनीमत है, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आधिकारिक तौर पर किसी पार्टी से नहीं बंधे हैं और उनका ओहदा “निरपेक्ष” है, अन्यथा उनके बयान से भी “अलग” कर लिया जाता?
लेकिन, जितनी मासूमियत से “पानी को पप्पा और रोटी को हप्पा” कहा जा रहा है, वैसा सीधा-सपाट लगता नहीं है मामला. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच चल रही टसल की रोशनी में सुप्रीम कोर्ट का विधेयकों को रोककर रखे जाने के मामले में राज्यपाल और राष्ट्रपति को “टाइम लाइन” देना, इसके बाद धनखड़ साहब का जजों को इंगित कर “न्यूक्लियर मिसाइल और सुपर पार्लियामेंट” वाला बयान, इसी बीच पीएम मोदी की अचानक राष्ट्रपति से मुलाकात और फिर ‘दोनोंजी’ के मनोभाव का प्रकटीकरण, ये भी गौर करने योग्य ‘टाइम लाइन’ है. इरादे क्या हैं, “द इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक दुबेजी की इन वीडियो क्लिप्स से समझा जा सकता है. एक क्लिप में, वह कहते हैं कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम पर संसद के अगले सत्र में चर्चा होगी. संसद द्वारा 2014 में पारित एनजेएसी अधिनियम को अगले ही वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. दुबे कहते हैं, जब नया कानून बनेगा, जब संसद फिर बैठेगी, तो विस्तार से चर्चा होगी... एनजेएसी की. जजों को चुनने में आपका भाई-भतीजावाद अब काम नहीं करेगा." "एससी जज नहीं हैं, एसटी जज नहीं हैं, ओबीसी जज नहीं हैं. अधिकांश सवर्ण जज बैठे हैं.”
और गतांक से आगे...
दिलचस्प यह है कि दुबेजी ने नड्डाजी की सार्वजनिक पोस्ट के बाद कहा, “मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं. पार्टी जो कहेगी, उसी के अनुसार चलूंगा." और अगले ही पल (आज 20 अप्रैल) उन्होंने वक्फ मामले में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाय कुरैशी को लपेट लिया. “क्या अनुशासित सिपाही से पार्टी ने कहा था, कुरैशी के बारे में ऐसा कहने के लिए?” देखना होगा सोमवार को अब निशिकांत क्या बोलेंगे.
सीजेआई के बाद निशिकांत का कुरैशी पर निशाना आप चुनाव आयुक्त नहीं, मुस्लिम कमिश्नर थे
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के खिलाफ अपने बयान से हंगामा मचाने के बाद रविवार को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को भी निशाना बनाते हुए आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि कुरैशी चुनाव आयुक्त नहीं, बल्कि "मुस्लिम कमिश्नर" थे, क्योंकि उन्होंने वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम की आलोचना करते हुए इसे "सरकार की मुस्लिम जमीनें हथियाने की एक खतरनाक और नापाक योजना" बताया था.
दुबे ने कुरैशी को "चुनाव आयुक्त नहीं, मुस्लिम आयुक्त" कहकर निशाना बनाया और कहा कि उनके कार्यकाल में झारखंड के संथाल परगना में अधिकतम बांग्लादेशी घुसपैठियों को मतदाता बनाया गया. उन्होंने कहा कि पैगंबर मुहम्मद का इस्लाम भारत में 712 में आया था, और इससे पहले वक़्फ़ की सारी जमीनें हिंदू, आदिवासी, जैन या बौद्धों की थीं. दुबे ने अपने गांव विक्रमशिला का हवाला देते हुए कहा कि वह 1189 में बख्तियार खिलजी द्वारा जलाया गया था और विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने विश्व को अपना पहला उपकुलपति अतीश दीपंकर दिया था. उन्होंने देश को एकजुट करने और इतिहास पढ़ने की अपील की, साथ ही कहा कि पाकिस्तान का निर्माण देश को विभाजित करके हुआ था और अब कोई विभाजन नहीं होगा.
गौरतलब है कि दुबे ने कल शनिवार (19 अप्रैल 2025) को ही सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की भूमिका पर सवाल उठाए थे. बल्कि सीजेआई खन्ना को तो भारत में हो रहे "सभी गृह युद्धों" के लिए जिम्मेदार ठहराया था. यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद और विधानसभा को बंद कर देना चाहिए. बहरहाल, दुबे की विवादास्पद टिप्पणियों के कारण भाजपा को उनसे दूरी बनानी पड़ी. शनिवार रात बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने “एक्स” पर एक पोस्ट में कहा, “सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा द्वारा न्यायपालिका और मुख्य न्यायाधीश पर दिए गए बयानों से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है. ये उनके व्यक्तिगत बयान हैं, लेकिन भाजपा न तो ऐसे बयानों से सहमत है और न ही कभी ऐसे बयानों का समर्थन करती है. भाजपा इन बयानों को पूरी तरह खारिज करती है.”
नड्डा ने यह भी कहा कि भाजपा हमेशा से न्यायपालिका का सम्मान करती आई है और सुप्रीम कोर्ट समेत सभी अदालतों के आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार करती है, क्योंकि ये देश के लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा हैं और संविधान की रक्षा करते हैं. उन्होंने दोनों सांसदों और सभी पार्टी नेताओं को सख्त निर्देश दिए हैं कि भविष्य में ऐसी टिप्पणियां न करें, जो न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाएं.
इस बीच “द इंडियन एक्सप्रेस” से दुबे ने कहा कि उन्होंने अपनी राय व्यक्त करने से पहले पार्टी से बात नहीं की थी. नड्डा की सार्वजनिक पोस्ट के बाद दुबे ने यह भी कहा कि वह पार्टी की लाइन का पालन करेंगे. "मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हूं. पार्टी जो कहेगी, उसी के अनुसार चलूंगा." इस बयान के बाद विपक्ष ने भी निशिकांत दुबे और बीजेपी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भाजपा सांसदों द्वारा न्यायपालिका पर हमले के बाद भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के 'डैमेज कंट्रोल' प्रयास को 'पूरी तरह राजनीतिक पाखंड' बताते हुए इसे बेकार करार दिया है और पूछा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले में क्यों चुप हैं? कांग्रेस ने कहा कि भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ विवादित बयान जानबूझकर न्यायपालिका को कमजोर करने के लिए हैं और नड्डा का उनसे दूरी बनाना केवल दिखावा है. कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि ये सांसद नफरत फैलाने वाले 'रिपीट ऑफेंडर्स' हैं, जिन्हें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा समुदायों, संस्थानों और व्यक्तियों पर हमले के लिए इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने नड्डा के बयान को 'डैमेज कंट्रोल' करार देते हुए कहा कि इससे कोई धोखा नहीं खाएगा और यह “एंटायर पॉलिटिकल साइंस” का “संपूर्ण राजनीतिक पाखंड” है. साथ ही, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया कि अगर मोदी इन हमलों का समर्थन नहीं करते तो इन सांसदों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या पार्टी ने इन दोनों को नोटिस जारी किए हैं?
अटॉर्नी जनरल के पास पहुंचा मामला : इधर, वक़्फ़ संशोधन अधिनियम मामले में पैरवी कर रहे एडवोकेट अनस तनवीर ने रविवार को अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को चिट्ठी लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के लिए सहमति मांगी है. अनस ने चिट्ठी में लिखा है कि दुबे ने सर्वोच्च अदालत की गरिमा को कम करने के मकसद से टिप्पणी की थी. दुबे की यह टिप्पणी बेहद अपमानजनक और खतरनाक रूप से भड़काऊ है.
एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान के बिना संभव नहीं हिंदू एकता : मोहन भागवत
'डेक्कन हेराल्ड' की रिपोर्ट है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भगवत ने सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से “एक मंदिर, एक कुआं और एक दाह संस्कार स्थल” का सिद्धांत अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि हिंदुओं के बीच एकता और सामाजिक समरसता तभी संभव है जब हम एक कुआं, एक मंदिर और एक दाह संस्कार स्थल के सिद्धांत का पालन करें, जिससे समाज में मौजूद अंतर, भेदभाव और विभाजन को कम किया जा सके. भागवत, जो अलीगढ़ में पांच दिवसीय दौरे पर हैं, उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ताओं की शाखा समूहों को संबोधित करते हुए कहा, “सामाजिक सद्भाव तभी संभव है जब हम ‘एक कुआं, एक मंदिर, और एक दाह संस्कार स्थल’ का सिद्धांत अपनाएं. इससे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच के मतभेद और भेदभाव दूर होंगे और सभी में एकता को बढ़ावा मिलेगा.” उन्होंने आगे बताया कि यदि समाज में बड़े बदलाव लाने हैं, तो इसके लिए पांच परिवर्तनों (पंच परिवर्तनों) पर काम करना होगा, जिनमें शामिल हैं. पारिवारिक प्रबंधन, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण संरक्षण, आत्म-जागरूकता और नागरिक कर्तव्य. भागवत ने यह भी कहा कि आरएसएस ने अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर इन मुद्दों को एक व्यापक सामाजिक अभियान के रूप में अपनाया है और इसके लिए बड़े पैमाने पर रणनीतियां और योजनाएं भी बनाई हैं.
पूर्व डीजीपी की हत्या के बाद पत्नी ने दोस्त से वीडियो कॉल कर कहा - 'राक्षस को खत्म कर दिया है'
'द हिंदू' की खबर है कि कर्नाटक के पूर्व डीजीपी और 1981 बैच के आईपीएस अधिकारी ओम प्रकाश की रविवार शाम (20 अप्रैल) को बेंगलुरु के एच.एस.आर. लेआउट स्थित आवास पर हत्या कर दी गई. इस हत्या की मुख्य संदिग्ध उनकी पत्नी पल्लवी हैं, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया है. ओम प्रकाश बिहार के चंपारण जिले से थे और 1981 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. वे 2015 से 2017 तक कर्नाटक के डीजी और आईजीपी पद पर रहे. हिंदू ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि रविवार शाम पल्लवी ने राज्य के एक अन्य रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी की पत्नी को वीडियो कॉल कर बताया कि उन्होंने "राक्षस को खत्म कर दिया है." इस सूचना के बाद उस महिला मित्र ने तुरंत पुलिस को सूचित किया. जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची, तो ओम प्रकाश खून से लथपथ मृत पाए गए. उनके शरीर पर कई जगह चाकू से वार किए गए थे. पल्लवी और ओम प्रकाश के बीच लंबे समय से वैवाहिक तनाव की खबरें थीं. पल्लवी ने पहले अपने पति पर जान से मारने की कोशिश का आरोप भी लगाया था. पांच दिन पहले उन्होंने एक व्हाट्सऐप ग्रुप (जिसमें राज्य की वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की पत्नियां शामिल हैं) में यह दावा किया था कि ओम प्रकाश उन्हें ज़हर देकर मारने की कोशिश कर रहे हैं. पुलिस ने पल्लवी को हिरासत में लेकर एच.एस.आर. लेआउट पुलिस स्टेशन में पूछताछ शुरू की है. ओम प्रकाश के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए सेंट जॉन्स अस्पताल भेजा गया है. इस मामले में जांच अभी जारी है.
ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में गुजरात, यूपी समेत छह राज्यों के भारतीय छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध
छात्र वीज़ा धोखाधड़ी और शिक्षा प्रणाली के दुरुपयोग पर बढ़ती चिंताओं के बीच कई ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटीज ने छह भारतीय राज्यों से छात्रों को स्वीकार करने पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन राज्यों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और जम्मू और कश्मीर शामिल हैं. इन विश्वविद्यालयों ने या तो प्रभावित राज्यों से आवेदनों को संसाधित करना बंद कर दिया है या सख्त जांच और अतिरिक्त सत्यापन प्रक्रियाएं शुरू की हैं. ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने चिंता व्यक्त की है कि उनकी अंतरराष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली की अखंडता खतरे में है. ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़े स्रोतों में से एक भारत है.
हिंदू नेता की हत्या पर भारत ने बांग्लादेश की आलोचना की : शनिवार 19 अप्रैल को भारतीय विदेश मंत्रालय ने हिंदू अल्पसंख्यक नेता भाबेश चंद्र रॉय के अपहरण और हत्या पर गहरी चिंता व्यक्त की, इसे उत्पीड़न और परेशान करने वाले पैटर्न का हिस्सा बताया. मंत्रालय ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया.
वाईएसआरसीपी सांसद से 4,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में पूछताछ : विशेष जांच दल (एसआईटी) ने कथित 4,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले के सिलसिले में शनिवार को राजमपेट के सांसद और वाईएसआरसीपी नेता पीवी मिथुन रेड्डी से आठ घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की. पूछताछ के बाद मीडिया से बात करते हुए मिथुन रेड्डी ने कहा कि शराब मामला राजनीतिक प्रतिशोध का स्पष्ट उदाहरण है और वे इसका सामना साहसपूर्वक करेंगे.
डॉक्टर ने अस्पताल में 77 साल के बुजुर्ग को मारा-पीटा और घसीटा : 'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला अस्पताल में 17 अप्रैल को एक 77 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति के साथ डॉक्टर द्वारा की गई मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मामला सामने आया है. इस घटना में डॉक्टर राजेश मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने वृद्ध व्यक्ति को थप्पड़ मारा और अस्पताल परिसर में घसीटा. उधव सिंह जोशी नामक बुजुर्ग अपनी पत्नी के इलाज के लिए अस्पताल आए थे. उनका आरोप है कि जब वे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, तब डॉक्टर मिश्रा ने उनसे पूछताछ की और फिर उन्हें थप्पड़ मारा, चश्मा तोड़ा और पुलिस चौकी की ओर घसीटते हुए ले गए. इस दौरान उनकी पत्नी के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया. वीडियो वायरल होने के बाद, डॉक्टर राजेश मिश्रा को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है. इसके साथ ही, अस्पताल के प्रभारी सिविल सर्जन डॉ. जी. एल. अहिरवार को भी निलंबित कर दिया गया है. पुलिस ने डॉक्टर मिश्रा और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, हालांकि अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.
विश्लेषण
आकार पटेल | चीन का अपराध यह है कि कुछ सालों में वह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा
चीन का अपराध यह है कि अगले कुछ सालों में, शायद 2035 तक ही, वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी. उस समय, चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) संयुक्त राज्य अमेरिका से बड़ा होगा, अगर पिछले 15 वर्षों में दोनों देशों की औसत विकास दर बरकरार रहे.
यह अमेरिका के लिए अस्वीकार्य है, क्योंकि वह पिछली एक सदी से प्रमुख वैश्विक शक्ति रहा है. यह शक्ति मुख्य रूप से उसकी अर्थव्यवस्था के कारण मिली है, जो हमारी आंखों के सामने नंबर 1 से नंबर 2 पर जाने वाली है. यही चीन का अपराध है, और यही कारण है राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ आक्रोश का.
जिसे 'पश्चिम' कहा जाता है, यानी यूरोप और उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और इज़राइल में उसके बसाव उपनिवेशों का ऐसी दुनिया की कोई याद नहीं है, जहां वह शासक न रहा हो और बाकी हम 'शासित'. जिसे वे 'अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था' कहते हैं, वह तरीका है, जिसमें जो कभी उपनिवेशवाद और उसके विविधताओं के माध्यम से प्रत्यक्ष शासन था, उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक जैसे संस्थानों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है. G7 जैसे अनौपचारिक समूहों का उपयोग 'पश्चिमी' कार्रवाई के समन्वय के लिए किया जाता है.
हालांकि, 18वीं सदी में, दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चीन और भारत थीं.
यह एक ऐसी दुनिया थी, जहां अधिक मशीनें नहीं थीं, जिसमें राष्ट्रीय उत्पादकता और उत्पादन जनसंख्या पर निर्भर करता था और जहां अधिकांश लोग कृषि में लगे हुए थे. जितनी अधिक जनसंख्या किसी देश की थी, उतनी बड़ी उसकी अर्थव्यवस्था थी.
औद्योगिक क्रांति ने इसे बदल दिया, उत्पादकता शारीरिक मानव इनपुट से अलग होने लगी. 1800 के दशक से, 'पश्चिम' बड़े पैमाने पर इस तकनीकी परिवर्तन के अग्रणी रहा.
लेकिन पूर्व (जापान, चीन) तकनीक में पकड़ बना रहा है, और अब चीन आर्थिक रूप से पकड़ बना चुका है.
चीन जल्द ही पूरे पश्चिम को पीछे छोड़ देगा.
सिटीग्रुप ने जनवरी 2023 में 'व्हेन विल चाइनाज़ जीडीपी सरपास द यूएस? एंड व्हाट विल इट मीन?' नामक एक पेपर प्रकाशित किया, जिसका निष्कर्ष था:
'इसलिए कई मापदंडों में यह पकड़ 2030 के दशक के दौरान, संभवतः दशक के मध्य में होने वाली है.
'जब यह अंततः होता है, तो यह प्रेस में और संभवतः राजनीतिक विमर्श में व्यापक रूप से नोट किया जाएगा. यह मुख्य रूप से प्रतीकात्मक हो सकता है, लेकिन कुछ भू-राजनीतिक प्रभाव और प्रतिष्ठा भी हो सकती है जो, जीडीपी के मामले में सबसे बड़े देश को प्राप्त होती है.
'उदाहरण के लिए, एक अर्थव्यवस्था का समग्र आकार आईएमएफ के कोटा सूत्र में प्रवेश करता है और मतदान हिस्सेदारी निर्धारित करने में मदद करता है. इसके अलावा, कुछ गतिविधियां — ओलंपिक टीमें, अंतरिक्ष कार्यक्रम, और (सबसे महत्वपूर्ण) सैन्य — राष्ट्रीय स्तर पर वित्तपोषित हैं, और एक बड़ी अर्थव्यवस्था का मतलब है बढ़े हुए संसाधन. इन प्रत्येक प्रयासों में, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था गैर-रेखीय प्रभाव, ताकत, और अन्य लाभ प्राप्त कर सकती है.'
इसमें से बहुत कुछ पहले ही हो चुका है.
चीनी नौसेना में अमेरिकी नौसेना से अधिक जहाज हैं. चीन ने एक स्वतंत्र अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन किया जो अमेरिका और रूस के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की बराबरी करता है. चीन, हांगकांग सहित, पिछले साल पेरिस ओलंपिक में अमेरिका (40) से अधिक स्वर्ण पदक (42) जीता.
सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अपने उत्थान से पहले भी, चीन ने पिछले दशक में दुनिया का सबसे बड़ा बुनियादी ढांचा परियोजना, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव शुरू किया है, और यह 120 देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि अमेरिका के लिए यह संख्या 70 है.
सिटीग्रुप जैसे आंतरिक रिपोर्टों की एक शृंखला राष्ट्रपति ओबामा, ट्रम्प (उनके पहले कार्यकाल में) और फिर बाइडन के डेस्क पर पहुंची है. उनकी प्रतिक्रिया चीन को अक्षम करने की कोशिश करना रही है, पहले ताइवान-निर्मित सेमीकंडक्टर चिप्स तक उसकी पहुंच को प्रतिबंधित करके जो अमेरिका में डिज़ाइन किए गए थे. इसका उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता में अमेरिकी बढ़त को संरक्षित करना था, जिसे कई लोग ऐसी तकनीक के रूप में देखते हैं, जो बिजली की तरह परिवर्तनकारी होगी.
पर यह तरकीब काम नहीं कर सकी. जैसा कि एक अज्ञात चीनी फर्म द्वारा निर्मित सुरुचिपूर्ण एआई डीपसीक ने दिखाया. अच्छे उपाय के लिए, चीनी फर्म ने डीपसीक को ओपन-सोर्स यानी मुफ्त बना दिया, जिससे प्रौद्योगिकी पर एकाधिकार करने के अमेरिकी प्रयासों को विफल कर दिया गया.
हुआवेई को 2019 में पश्चिम द्वारा प्रतिबंधित किया गया था, बाजारों और हार्डवेयर तक पहुंच से वंचित किया गया था; लेकिन यह विनिर्माण में चला गया और कुछ अनुमानों के अनुसार, सेमीकंडक्टर क्षेत्र में दो नेताओं, ताइवान के टीएसएमसी और डच फर्म एएसएमएल से सबसे उन्नत चिप्स बनाने में केवल कुछ वर्ष पीछे है. यहां जिस चीज़ की आवश्यकता है, वह औद्योगिक डिज़ाइन और विनिर्माण है, और ये दो चीज़ें ऐसी हैं, जिनमें चीनी कंपनियों ने स्वयं को श्रेष्ठ दिखाया है, इसलिए हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए, अगर वे जल्द ही पकड़ बना लें.
टैरिफ युद्ध, पश्चिम और उसकी अर्थव्यवस्थाओं को चीन से पूरी तरह से अलग करने की कोशिश, पूर्व को रोकने की नवीनतम और शायद अंतिम कोशिश है. अगर यह विफल होता है, तो एकमात्र विकल्प सैन्य शक्ति का उपयोग करना होगा और वाशिंगटन में कई लोग पहले से ही इसके बारे में आकस्मिक रूप से बात कर रहे हैं.
टैरिफ को एक अजीब 245 प्रतिशत तक बढ़ाने के बाद चीनी जहाज अमेरिकी बंदरगाहों से मुड़ने लगे हैं. 2 मई से, 2 सप्ताह से भी कम समय में, 800 अमेरिकी डॉलर से कम मूल्य के चीन से आने वाले पैकेज को दी गई शुल्क-मुक्त छूट समाप्त हो जाती है. उस बिंदु पर, व्यापार के ठहराव के साथ, चीन से आने वाले कुछ मध्यवर्ती और तैयार माल के प्रभाव को पूरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में महसूस किया जाएगा.
हां, चीन भी इससे प्रभावित होगा, लेकिन ज्यादा नहीं : अमेरिका को निर्यात उसके सकल घरेलू उत्पाद का 2 प्रतिशत है. अमेरिका अधिक प्रभावित होगा.
जीन बैप्टिस्ट से का बाजार का नियम कहता है कि आपूर्ति अपनी मांग पैदा करती है. अर्थात, एक अर्थव्यवस्था जो वस्तुओं के उत्पादन पर केंद्रित है, अंततः बिक्री के लिए कुछ बाजार खोज लेगी, जिसमें एक आंतरिक बाजार भी शामिल है, क्योंकि वस्तुओं का उत्पादन करने वाले श्रमिक उन्हें खरीद सकते हैं और वह बाजार चीन है, दुनिया का सबसे बड़ा वस्तु उत्पादक और एकमात्र विनिर्माण महाशक्ति.
अमेरिका एक उपभोक्ता है. उसके सामने अब यह कठिन कार्य है कि वह उत्पादन शुरू करे जिसका वह उपभोग करना चाहता है और ऐसा करने के लिए उसे आर्थिक पीड़ा और अनिश्चितता से गुजरना होगा, सिर्फ इसलिए कि वह किसी और को नंबर 1 पर देखना बर्दाश्त नहीं कर सकता.
वैभव सूर्यवंशी : आईपीएल के जन्म के बाद पैदा हुआ 14 साल का चमत्कारी क्रिकेटर

पूरे क्रिकेट जगत की नजरें अब भारत के एक 14 वर्षीय खिलाड़ी पर टिकी हैं, जिसका नाम है वैभव सूर्यवंशी. 'अलजजीरा' ने वैभव सूर्यवंशी का प्रोफाइल किया है. इस शर्मीले से स्कूली छात्र ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में डेब्यू करते ही इतिहास रच दिया है. राजस्थान रॉयल्स के लिए खेलते हुए उसने पहली ही गेंद पर छक्का जड़कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया और 20 गेंदों में 34 रन (3 छक्के, 2 चौके) बनाए. वैभव सूर्यवंशी अब आईपीएल में खेलने वाला सबसे कम उम्र का खिलाड़ी बन गया है. जब उन्होंने 5 अप्रैल 2025 को पंजाब किंग्स के खिलाफ मोहाली में पदार्पण किया, तब उनकी उम्र सिर्फ 14 साल और 23 दिन थी. वैभव भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक, बिहार से आते हैं. उनके पिता संजीव सूर्यवंशी एक किसान और पार्ट-टाइम पत्रकार हैं. भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वैभव की यात्रा गांव के मैदानों से आईपीएल की चमक-दमक तक एक असाधारण कहानी है. वैभव ने सिर्फ 12 साल की उम्र में रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया था और फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अंडर-19 टेस्ट में 58 गेंदों में शतक जड़कर सबका ध्यान खींचा. यह यूथ टेस्ट क्रिकेट में दूसरा सबसे तेज शतक था, पहले नंबर पर इंग्लैंड के मोईन अली हैं. नवंबर 2024 की नीलामी में वैभव की बोली $130,500 (लगभग ₹1.08 करोड़) तक पहुंची, जब वह महज 13 साल के थे. राजस्थान रॉयल्स ने उन्हें चुना और अब वे संजू सैमसन, यशस्वी जायसवाल, रियान पराग जैसे युवा सितारों की सूची में शामिल हो गए हैं, जिन्हें रॉयल्स ने संवार कर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया.
राजस्थान रॉयल्स के कोच राहुल द्रविड़ ने ट्रायल्स में ही उनकी प्रतिभा को पहचान लिया था. वहीं, पिता संजीव कहते हैं, "मैं तो स्तब्ध हूं... सोचा था चुना जाएगा, पर इतनी बड़ी बोली की उम्मीद नहीं थी." उनके कोच प्रमोद कुमार के मुताबिक, “वैभव शायद क्रिकेट के लिए ही जन्मा है. वो शांत है, लेकिन क्रिकेट की बात करें तो घंटों बोल सकता है.” एक दिलचस्प बात यह भी है कि वैभव सूर्यवंशी आईपीएल के जन्म (2008) के बाद पैदा हुए पहले खिलाड़ी हैं. उनका जन्म 27 मार्च 2011 को हुआ.
भारत के दंगलों से लेकर अंतरराष्ट्रीय पोडियम तक, ये है अजरबैजानी पहलवान की कहानी
'इंडियन एक्सप्रेस' के लिए मिहिर वासवड़ा ने भारतीय दंगल से यूरोपीय चैम्पियन तक का सफर करने वाले जॉर्जी मेशविल्दिशविली की दिलचस्प यात्रा के कुछ हिस्सों को खंगाला है. मिहिर ने लिखा है कि दुनिया उन्हें अज़रबैजान के हैवीवेट सुपरस्टार के रूप में जानती है, लेकिन भारत के मशहूर मिट्टी के अखाड़ों में वे बस "जॉर्जी जॉर्जियन" हैं. जॉर्जी मेशविल्दिश्विली, जिन्होंने अपनी राष्ट्रीयता बदली, को इससे कोई आपत्ति नहीं है. इस महीने की शुरुआत में, जॉर्जी ने 125 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में यूरोपीय चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक जीता. यह महाद्वीपीय स्वर्ण पदक पेरिस ओलंपिक में कांस्य जीतने के कुछ ही महीनों बाद आया. हालांकि वह अभी भी इन दोनों पदकों की चमक में डूबे हुए हैं, लेकिन 32 वर्षीय जॉर्जी भारत में जीते अपने कुछ खास इनामों, जिनमें एक ट्रैक्टर, एक बैल और एक बुलेट मोटरसाइकिल है, उसे लेकर बेहद उत्साहित हैं. “बहुत-बहुत खास,” वे कहते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कदम रखने से पहले जॉर्जी ने पंजाब, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के मिट्टी के अखाड़ों में कुश्ती का अनुभव लिया. "मैं भारत तीन बार आया और मेरा अनुभव बहुत ही शानदार रहा," जॉर्जी ने कहा. “दंगल जबरदस्त थे. मैंने जशा पट्टी, सिकंदर (शेख) और पृपाल (फगवाड़ा) जैसे मजबूत पहलवानों के खिलाफ मुकाबला किया... सभी बहुत ही ताकतवर थे.” जशकंवर सिंह गिल, जिन्हें कुश्ती जगत में 'जशा पट्टी' कहा जाता है, को अक्सर “आधुनिक दारा सिंह” और “मिट्टी की कुश्ती का विराट कोहली” जैसे उपनामों से जाना जाता है.
कुछ हफ्ते पहले ही, यूरोपीय चैंपियनशिप के फाइनल में जॉर्जी ने जॉर्जिया के सोलोमन मानाशविली (125 किलो) को कमर से उठाकर सिर के ऊपर से घुमाकर पटखनी दी और 7 सेकंड बाकी रहते गोल्ड जीत लिया. इस जबरदस्त ताकत और तकनीक ने सबको चौंका दिया. भारत में जॉर्जी की पहली यात्रा 2016 में हुई थी, जब वे पंजाब के दिलावरपुर गांव में दंगल खेलने आए. इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश के कई दंगलों में हिस्सा लिया. मुल्लांपुर में एक अखाड़ा चलाने वाले गोलू पहलवान ने जॉर्जी की पहली भारत यात्रा की व्यवस्था की थी. "हमारे एक कोच कुछ जूनियर पहलवानों को जॉर्जिया कैंप में लेकर गए थे, वहीं जॉर्जी से मुलाकात हुई और भारत के दंगलों की बात हुई," गोलू बताते हैं. उस समय जॉर्जी जॉर्जिया के लिए अंडर-23 यूरोपीय चैंपियनशिप में रजत पदक जीत चुके थे और सीनियर स्तर पर ब्रेक का इंतजार कर रहे थे. भारत में उन्होंने जशा पट्टी जैसे दिग्गजों से मुकाबले किए. जशा याद करते हैं कि 2016 में दिलावरपुर दंगल में जॉर्जी को हराकर उन्हें पहला बड़ा इनाम, एक ट्रैक्टर मिला था. “हमारे छह-सात मुकाबले हुए हैं. एक-दूसरे को एक बार हराया है, बाकी बराबरी के रहे,” वे बताते हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर लंबा फ़ीचर लिखा है.
कैसे टूट गई पत्रकारिता की 'रीढ़ की हड्डी'!
'रिपोर्ट्स कलेक्टिव' के संस्थापक और स्वतंत्र पत्रकार नितिन सेठी से पत्रकारिता के आज के हालात पर 'कड़वी कॉफी' के ताज़ा अंक के लिए निधीश त्यागी ने लंबी बातचीत की है. नितिन ने इस दौरान 'रिपोर्ट्स कलेक्टिव' के शुरू होने के ख्याल से लेकर इसकी अब तक की यात्रा और अब सरकार के उनकी पत्रकारिता को जनहितकारी न मानते हुए टैक्स रिबेट देने से इनकार करने जैसे मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की है. नितिन ने बताया कि कैसे भारत में पत्रकारिता के सामने चुनौतियां आई और वो इससे कैसे निपट रहे हैं. इस बातचीत में भारत में इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म में उभरे नए संकट पर भी विस्तार से बात की गई है. नितिन ने कहा कि उनकी शुरुआत से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. लिखना मुश्किल होता जा रहा है. पत्रकारिता अब ज्यादा मुश्किल हो चली है और पिछले 8-10 सालों में तो नए लोग जो इस पेशे में आए हैं, वो तो पत्रकारिता कर ही नहीं पाए. नितिन ने कहा कि अब वो जगहें लुप्त हो गई हैं, जहां रिपोर्ट्स छपा करती थी. नितिन ने 'रिपोर्ट्स कलेक्टिव' कैसे शुरू हुआ के सवाल पर कहा कि इसे मजबूरी से ही उन्होंने शुरू किया. वो भी नौकरीपेशा पत्रकार ही रहना चाहते थे, लेकिन रहने नहीं दिया गया. यहां सुनिए पूरी बातचीत..
एक्सप्लेनर
पुतिन का 'ईस्टर युद्धविराम' : शांति की उम्मीद या कोरा दिखावा?
हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा घोषित 30 घंटे के 'ईस्टर युद्धविराम' ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदेह और सवालों को जन्म दिया है. यह घोषणा तब हुई जब यूक्रेन में रूसी हमले तेज हो रहे थे और शांति के लिए कूटनीतिक प्रयास भी चल रहे थे. पुतिन ने इसे "मानवीय" आधार पर उठाया गया कदम बताया, लेकिन यूक्रेन और कई पश्चिमी विश्लेषकों ने इसे संदेह की दृष्टि से देखा. यह 30 घंटे का युद्धविराम बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गया और इसने शांति प्रक्रिया में विश्वास बढ़ाने के बजाय संदेह को और गहरा किया है. एक वास्तविक युद्धविराम के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत, तैयारी और आपसी सहमति आवश्यक है. इस एकतरफा और अल्पकालिक घोषणा ने कूटनीति की भूमिका को शायद और जटिल बना दिया है. यूक्रेन अब भी अमेरिका द्वारा प्रस्तावित 30-दिवसीय पूर्ण युद्धविराम के लिए तैयार है, लेकिन रूस की ओर से कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिला है.
पुतिन ने शनिवार शाम 6 बजे (मॉस्को समय) से रविवार मध्यरात्रि तक एकतरफा युद्धविराम का आदेश दिया. यह कदम अचानक था और इसकी कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी. दिलचस्प बात यह है कि कुछ समय पहले ही अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन ने 30 दिनों के व्यापक युद्धविराम का प्रस्ताव रखा था, जिसे यूक्रेन ने स्वीकार कर लिया था, लेकिन रूस ने कई शर्तें रखते हुए इसे लगभग खारिज कर दिया था. अब 30 दिन के बजाय रूस ने केवल 30 घंटे का विराम दिया.
युद्धविराम लागू होते ही दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर उल्लंघन के आरोप लगाए. यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा कि रूस "युद्धविराम का आभास" पैदा करने की कोशिश कर रहा है, जबकि उसके सैनिक कुछ क्षेत्रों में हमले और आगे बढ़ने की कोशिशें जारी रखे हुए थे. उन्होंने रविवार दोपहर तक रूसी हमलों, खासकर भारी हथियारों और ड्रोन के इस्तेमाल में वृद्धि की सूचना दी. ज़ेलेंस्की के अनुसार, या तो पुतिन का अपनी सेना पर पूरा नियंत्रण नहीं है, या रूस वास्तव में युद्ध समाप्त करने का इरादा नहीं रखता और केवल अच्छा प्रचार चाहता है. यूक्रेनी सेना की एक ब्रिगेड ने यह भी आरोप लगाया कि रूस ने युद्धविराम का उपयोग सैन्य साजो-सामान के लिए रास्ते तैयार करने में किया.
वहीं, रूसी रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि उसके सैनिकों ने युद्धविराम का "कड़ाई से पालन" किया है और यूक्रेन ने ही 1,000 से अधिक बार इसका उल्लंघन किया, जिसमें गोलाबारी और ड्रोन हमले शामिल हैं, जिससे नागरिक हताहत हुए. क्रेमलिन ने यह भी स्पष्ट किया कि युद्धविराम को बढ़ाने की कोई योजना नहीं है. विश्लेषकों का मानना है कि इस संक्षिप्त और अचानक युद्धविराम के पीछे कई कारण हो सकते हैं.
अमेरिकी दबाव : यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और विदेश मंत्री मार्को रुबियो के उस बयान के ठीक बाद आया, जिसमें उन्होंने रूस से शांति के प्रति गंभीरता का तत्काल संकेत देने की मांग की थी. ट्रम्प प्रशासन शांति प्रयासों में प्रगति न होने पर हटने की धमकी दे चुका था. ऐसे में, पुतिन शायद यह दिखाना चाहते थे कि शांति के लिए रूस प्रतिबद्ध है, यूक्रेन नहीं.
पीआर स्टंट : इसे पुतिन द्वारा अपनी छवि सुधारने और यूक्रेन पर युद्ध जारी रखने का दोष मढ़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. छोटी अवधि और एकतरफा घोषणा इसे शांति की गंभीर पहल के बजाय एक दिखावा बनाती है.
सैन्य रणनीति? कुछ यूक्रेनी अधिकारियों का मानना है कि रूस ने इस विराम का उपयोग अपनी सैन्य स्थिति मजबूत करने या सैनिकों को पुनर्गठित करने के लिए किया होगा, जैसा कि 2023 में क्रिसमस युद्धविराम के दौरान भी संदेह जताया गया था.
कूटनीतिक खिड़की? एक आशावादी दृष्टिकोण यह भी है कि पर्दे के पीछे चल रही गहन कूटनीतिक बातचीत (जिसमें अमेरिकी और रूसी दूतों की मुलाकातें शामिल हैं) के संदर्भ में यह कोई छोटा कदम हो सकता है. हालांकि, इसकी संभावना कम दिखती है.
चलते-चलते
वरुण ग्रोवर : धर्म दुनिया की सबसे पहले एमवे स्कीम थी
कॉमेडियन और लेखक वरुण ग्रोवर ने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर स्मृति व्याख्यान में तर्कशीलता और वैज्ञानिक चेतना पर एक भाषण दिया. उन्होंने डॉ. दाभोलकर को याद करते हुए कहा कि कैसे अंधश्रद्धा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए उनकी हत्या की गई, और विडंबना यह कि हत्यारों ने विज्ञान (बंदूक) का ही सहारा लिया यह साबित करने के लिए कि विज्ञान कुछ नहीं है. ग्रोवर ने आस्था (खासकर संगठित धर्म) और विज्ञान के टकराव पर बात की, आस्था की तुलना 'एमवे स्कीम' से और विज्ञान की 'किराने की दुकान' से की, जहाँ सवाल पूछने की स्वतंत्रता है. उन्होंने बचपन से सवाल न पूछने की सिखाई गई प्रवृत्ति और कोविड के दौरान फैले अंधविश्वासों की तीखी आलोचना की. अंत में, उन्होंने कलाकार की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया कि वह कला के ज़रिए सहानुभूति, करुणा जगाए, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे, और आस्था-विज्ञान के बीच सेतु का काम करे.
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