21/05/2025 : महीने भर बाद भी आतंकवादी लापता | संसदीय ब्रीफिंग में ट्रम्प को झूठा बताया | स्वर्ण मंदिर में तोपें लगाने की बात पर बवाल | वक़्फ़ पर बहस जारी | मनरेगा की बढ़ती मांग | भाजपा पोषित नफ़रत
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ
महमूदाबाद को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया, आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई मनरेगा के तहत काम की मांग बढ़ी, वास्तविक रोज़गार सृजन घटा
पहलगाम का बदला भारत के मुसलमानों से लेने में विहिप, बजरंग दल और भाजपा के नेता शामिल रहे
अडानी के निवेशकों को सेबी के नोटिस
हरतोष बल : पहलगाम पर कवरेज गलत सूचना, धोखा देने का प्रयास था,
इस्तांबुल नगर निगम की इमारत को अर्णब ने कांग्रेस का बताया
जयंत नार्लीकर का निधन
पहलगाम आतंकी हमला
एक महीने बाद भी सुराग नहीं
श्रीनगर से मीर अहसान ने हिंदुस्तान टाइम्स के लिए रिपोर्ट किया है कि पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के लगभग एक महीने बाद भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और जम्मू-कश्मीर पुलिस को तीनों आतंकवादियों (दो विदेशी और एक स्थानीय) की तलाश में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है, जांच से जुड़े अधिकारियों ने बताया. 22 अप्रैल को पहलगाम के बैसरन मैदान में हुए आतंकी हमले में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय व्यक्ति सहित कुल 26 लोगों की मौत हो गई थी. एनआईए के वरिष्ठ अधिकारी अब भी पहलगाम में डेरा डाले हुए हैं. जांच से जुड़े एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, "जांच जारी है और कई एजेंसियां सुराग पर काम कर रही हैं. जिन तीन आतंकवादियों के स्केच जारी किए गए थे, वे अब भी फरार हैं. उन्हें ढूंढ़ना समय का मामला है." उन्होंने आगे कहा, "सुरक्षा बलों को कई एजेंसियों से सुराग मिल रहे हैं और अधिकारी उन्हें ट्रैक करने के लिए मेहनत से काम कर रहे हैं." जानकारी के अनुसार, हमले के बाद आतंकवादी दक्षिण कश्मीर के जंगलों में भाग गए थे. एनआईए और पुलिस ने सैकड़ों स्थानीय लोगों, टूर ऑपरेटरों, आतंक पीड़ितों के परिवारों और हमले के समय बैसरन में मौजूद लोगों से पूछताछ की है.
घटना के एक माह बाद क्षेत्र में तैनात एक एनआईए अधिकारी ने कहा, "जांच चल रही है, और अधिकारी इस समय मामले के बारे में सब कुछ नहीं बता सकते, क्योंकि इससे जांच प्रभावित हो सकती है." शुक्रवार को विक्टर फोर्स के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल धनंजय जोशी ने कहा कि हमले के बाद, सुरक्षा बल दक्षिण कश्मीर के कई हिस्सों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. "पहलगाम हमले के बाद से, हमने कुछ क्षेत्रों को अपने फोकस एरिया के रूप में केंद्रित किया है. हमें जानकारी मिल रही थी कि बर्फ पिघलने के साथ आतंकी समूह जंगली इलाकों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक पहुंच गए थे," उन्होंने कहा.
कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) वी.के. बिरदी ने बताया कि सुरक्षा बलों ने दक्षिण कश्मीर में अपनी रणनीति की समीक्षा की है. 22 अप्रैल के आतंकी हमले के बाद, सेना और पुलिस ने दक्षिण कश्मीर और जम्मू डिवीजन के किश्तवाड़ जिले के जंगलों में कॉम्बिंग ऑपरेशन शुरू किया. पुलिस ने आतंकवादियों के बारे में जानकारी देने वालों के लिए 20 लाख रुपये का इनाम घोषित किया है. हमले के तुरंत बाद, जांचकर्ताओं ने तीन आतंकवादियों की संलिप्तता का पता लगाया और पुलिस ने दो विदेशियों और एक स्थानीय आतंकी का विवरण जारी किया. आरोपियों की पहचान आदिल हुसैन ठोकर, हाशिम मूसा और आदिल भाई के रूप में की गई है. मूसा उर्फ सुलेमान और अली भाई उर्फ तल्हा भाई पाकिस्तानी नागरिक हैं. पुलिस का कहना है कि दोनों पिछले एक या दो वर्षों से दक्षिण कश्मीर में सक्रिय हैं. लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के प्रॉक्सी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी.
न एटमी हथियारों का इशारा था, न सीज़ फायर के पीछे अमेरिका, ब्रीफिंग में सरकार ने ट्रम्प के दावे को नकारा
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने सोमवार को एक संसदीय समिति को बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के दौरान इस्लामाबाद द्वारा परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का कोई संकेत नहीं दिया गया था और गोलीबारी रोकने के फैसले में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल नहीं था. विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की स्थायी समिति को स्पष्ट किया कि सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) ने ‘पहला हमला’ किए जाने के बाद ही 'ऑपरेशन सिंदूर' के बारे में अपने पाकिस्तानी समकक्ष से बात की थी. मिसरी की यह टिप्पणी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के रविवार को दिए गए उस बयान के जवाब में आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि "हमारे हमले की शुरुआत में ही पाकिस्तान को सूचित करना अपराध था". राजनयिक ने यह भी जोर देकर कहा कि पाकिस्तान द्वारा चीनी निर्मित हथियार प्रणालियों का उपयोग ‘कोई मायने नहीं रखता था’, क्योंकि भारतीय सशस्त्र बल भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों और नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाने के पाकिस्तान के बढ़ते प्रयासों का जवाब देते हुए पड़ोसी देश के हवाई ठिकानों को ‘नष्ट’ करने में कामयाब रहे. हिंदू में ही देवेश पांडे की रिपोर्ट है कि भारत इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान में जिन आतंकवादी ठिकानों को उसने निशाना बनाया था, उससे संबंधित सबूत फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के अधिकारियों के साथ साझा करने की भी योजना बना रहा है, जिसने तीन साल पहले इस्लामाबाद को अपनी 'ग्रे लिस्ट' से हटा दिया था.
स्वर्ण मंदिर में वायु रक्षा तोपें लगाने के फौजी दावे को हेड ग्रंथी और एसजीपीसी ने झूठ बताया
एक वरिष्ठ भारतीय सेना अधिकारी के उस बयान ने विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान ने 7 और 8 मई की रात को 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत सिखों के सबसे पवित्र धर्मस्थल - अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर - और पंजाब के कई अन्य शहरों को ड्रोन और मिसाइलों से निशाना बनाने की कोशिश की थी. इस दावे पर स्वर्ण मंदिर के हेड ग्रंथी और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया है.
द वायर के लिए कुसुम अरोरा ने रिपोर्ट की है कि 19 मई को अमृतसर में 15 इन्फेंट्री डिवीजन ने एक मीडिया ब्रीफिंग आयोजित की. इसमें पाकिस्तान से लॉन्च किए गए और भारतीय वायु रक्षा प्रणालियों द्वारा रोके गए ड्रोन और मिसाइलों के मलबे का प्रदर्शन किया गया. 15 इन्फेंट्री डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) मेजर जनरल कार्तिक सी. शेषाद्रि ने एएनआई को बताया कि पाकिस्तान ने सैन्य प्रतिष्ठानों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया था. उन्होंने कहा कि हमारी सेना ने इन हमलों को बहादुरी से नाकाम किया और स्वर्ण मंदिर पर कोई खरोंच नहीं आने दी. इससे पहले, आर्मी एयर डिफेंस के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डीकुन्हा ने एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर बात करते हुए कहा था कि हेड ग्रंथी की अनुमति से स्वर्ण मंदिर परिसर में वायु रक्षा तोपें तैनात की गई थीं और ड्रोन देखने के लिए मंदिर की लाइटें बंद की गई थीं.
हालांकि, स्वर्ण मंदिर के अतिरिक्त हेड ग्रंथी ज्ञानी अमरजीत सिंह और बाद में हेड ग्रंथी ज्ञानी रघुबीर सिंह ने लेफ्टिनेंट जनरल डीकुन्हा के बयान को ‘चौंकाने वाला असत्य’ बताया. उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रशासन के कहने पर शहरव्यापी ब्लैकआउट के कारण केवल बाहरी लाइटें बंद की गई थीं, न कि किसी सैन्य तैनाती के लिए. उन्होंने जोर देकर कहा कि सैन्य अधिकारियों द्वारा स्वर्ण मंदिर परिसर में कोई भी बंदूकें तैनात करने की अनुमति कभी नहीं दी गई और न ही ऐसी कोई घटना हुई. उन्होंने इस तरह का बयान जारी करने पर आश्चर्य जताया और केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा.
SGPC अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने भी सेना के दावों का खंडन किया. उन्होंने कहा कि प्रशासन से लाइटें बंद करने को लेकर संपर्क हुआ था, लेकिन किसी भी सैन्य अधिकारी ने बंदूकें लगाने के बारे में संपर्क नहीं किया था. उन्होंने कहा कि यदि ऐसी कोई तैनाती हुई होती तो हजारों श्रद्धालुओं ने इसे देखा होता. इस मामले पर पंजाब भाजपा नेताओं ने सेना को धन्यवाद दिया है. अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने कहा कि सेना द्वारा कही गई बातें सही नहीं लगतीं. एसजीपीसी और हेड ग्रंथी अपने रुख पर कायम हैं कि स्वर्ण मंदिर परिसर में कोई सैन्य तैनाती या बंदूकें लगाने की अनुमति नहीं दी गई थी.
हाथ नहीं मिलाएंगे, पर परेड चालू होगी : अटारी, हुसैनीवाला और सद्की सीमा चौकियों पर बीटिंग रिट्रीट समारोह फिर से शुरू हो रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के कारण लगभग दो हफ्ते के ब्रेक के बाद यह हो रहा है. बीएसएफ के एक अधिकारी ने कहा कि इसे अनिश्चित काल तक निलंबित नहीं रखा जा सकता था. सीमा पर हालात सामान्य हो रहे हैं. यह समारोह हालांकि छोटा होगा और पारंपरिक हैंडशेक नहीं होगा.
प्रतिनिधिमंडल में टीएमसी की तरफ से अभिषेक बनर्जी : भारत सरकार द्वारा आतंकवाद पर देश का रुख दुनिया के सामने रखने के लिए विदेश भेजे जा रहे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) भी शामिल होगी. पार्टी ने पहले केंद्र सरकार द्वारा इन प्रतिनिधिमंडलों में शामिल होने वाले प्रतिनिधियों के नाम ‘एकतरफा’ तय करने पर कड़ी आपत्ति जताई थी. अब टीएमसी के महासचिव और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी इन सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा होंगे. पार्टी सूत्रों ने बताया कि यह निर्णय तब आया, जब केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से संपर्क किया. ममता बनर्जी ने तब अभिषेक बनर्जी, जो पार्टी में वस्तुतः दूसरे नंबर के नेता हैं, को प्रतिनिधिमंडलों में शामिल करने की सिफारिश की. टीएमसी ने पहले इस घोषणा के एक दिन बाद ही केंद्र सरकार पर ‘एकतरफा’ निर्णय लेने का आरोप लगाया था. टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने तब कहा था कि जबकि पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर सरकार के ‘कंधे से कंधा’ मिलाकर खड़ी है, लेकिन भाजपा यह तय नहीं कर सकती कि टीएमसी की ओर से किसे भेजा जाएगा. उन्होंने कहा था, "केंद्र सरकार एकतरफा यह तय नहीं कर सकती कि किस पार्टी का प्रतिनिधित्व कौन करेगा. भाजपा सत्ता में है, वे देश चलाने के लिए जिम्मेदार हैं और वे अपनी पार्टी के लिए फैसला कर सकते हैं. लेकिन कांग्रेस, द्रमुक, आम आदमी पार्टी या समाजवादी पार्टी से कौन जाएगा, यह भाजपा तय नहीं कर सकती." उन्होंने आगे कहा था कि यदि केंद्र एक नाम मांगता है तो वे पांच नाम देंगे, लेकिन केंद्र को अपनी अच्छी मंशा दिखानी चाहिए और व्यापक विचार-विमर्श के लिए कहना चाहिए. शनिवार को रिजिजू ने सात टीमों के सदस्यों की घोषणा करते हुए प्रतिनिधिमंडल में टीएमसी सांसद यूसुफ पठान को शामिल किया था. इससे पहले कांग्रेस ने भी केंद्र सरकार द्वारा सात टीमों के लिए नाम चुनने पर आपत्ति जताई थी.
महमूदाबाद को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया, आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सोनीपत की एक अदालत ने राजनीतिक विज्ञानी अली खान महमूदाबाद को सात दिन और हिरासत में रखने के हरियाणा पुलिस के अनुरोध को खारिज कर दिया और उन्हें दो सप्ताह के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया. यह मामला हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया की शिकायत पर उनके खिलाफ दर्ज मामले के संबंध में है, जिसमें उन पर (अन्य बातों के अलावा) युद्ध-विरोधी फेसबुक पोस्ट का उपयोग कर सशस्त्र बलों और सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाया गया है. सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ महमूदाबाद की याचिका पर सुनवाई करेगी.
स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता की शिकायत पर दर्ज मामले में महमूदाबाद पहले से ही न्यायिक हिरासत में हैं. बार एंड बेंच की रिपोर्ट है कि सुप्रीम कोर्ट बुधवार को महमूदाबाद की गिरफ्तारी के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर सकता है. पिछले सप्ताह उन्हें फेसबुक पोस्ट के लिए आयोग के समक्ष तलब भी किया गया था. रेणु भाटिया ने कहा कि वे निश्चित रूप से वह महमूदाबाद को दंडित करने का मामला बनाने में सक्षम होंगी? लेकिन जब इंडिया टुडे की एंकर प्रीति चौधरी ने उनसे उनके पोस्ट के आपत्तिजनक हिस्सों को इंगित करने के लिए कहा, तो वे कई मिनट तक केवल टालती रहीं और इधर-उधर घूमती रहीं. यहाँ उन्हें अपनी कला का अभ्यास करते और उलझते हुए देखा गया. इस बीच, अब भाटिया कह रही हैं कि उन्होंने सुना है कि महमूदाबाद के परिवार के किसी व्यक्ति ने ‘पाकिस्तान में फंडिंग की है’.
पीयूसीएल ने भी प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी की निंदा की है और उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को मनमानी तथा अनुचित बताया है. पीयूसीएल ने कहा, प्रोफेसर महमूदाबाद के बयान के सार से स्पष्ट है कि वह ‘उकसाने’ के दायरे में नहीं आता है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना है कि ‘किसी विशेष कारण की वकालत करना, चाहे वह कितना भी अलोकप्रिय क्यों न हो, अनुच्छेद 19(1) (ए) के मूल में है’ और वह सर्वोच्च संवैधानिक संरक्षण का हकदार है.
मनरेगा के तहत काम की मांग बढ़ी, वास्तविक रोज़गार सृजन घटा
ग्रामीण भारत में नए सिरे से आर्थिक संकट का संकेत देते हुए, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत अकुशल काम की मांग अप्रैल और मई में बढ़ी है. मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल में 20.12 मिलियन ग्रामीण परिवारों ने इस कार्यक्रम के तहत रोज़गार मांगा. हालांकि, सृजित किए गए कुल मानव दिवस 2023-24 में 289 करोड़ से घटकर 2024-25 में 268 करोड़ हो गए.
शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं के एक समूह, लिबटेक इंडिया की एक रिपोर्ट इस बात पर ज़ोर देती है कि हालांकि 2024-25 वित्तीय वर्ष के लिए पंजीकृत परिवारों में 8.6% की वृद्धि हुई है, वास्तविक रोज़गार प्रदान करने में कमी आई है, जिसमें मानव दिवसों में 7.1% की गिरावट आई है.
पिछले रुझानों से पता चलता है कि जब कृषि या वैकल्पिक रोज़गार के अवसर कम हो जाते हैं तो मनरेगा की मांग बढ़ जाती है. मांग में वृद्धि के बावजूद, केंद्र सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष से योजना के वित्त पोषण में वृद्धि नहीं की है. 2015 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा को "विपक्ष की विफलताओं का एक जीवित स्मारक" बताया था.
वक़्फ़ सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट की संवैधानिकता के बारे में पूछा, याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह वक़्फ़ संपत्तियों का ‘धीरे-धीरे अधिग्रहण’
सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ अधिनियम, 2025 के संशोधनों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई की शुरुआत सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के 145 पन्नों के नोट से हुई. उसमें उन्होंने कहा कि वक़्फ़ का मूल उद्देश्य समर्पित संपत्तियों को वैधानिक वैधता देना और कर्तव्यों को लागू करना है, न कि किसी धार्मिक प्रथा को प्रभावित करना. वहीं सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जी मसीह की पीठ ने कहा कि कानून पर रोक के लिए मजबूत, स्पष्ट मामला जरूरी है, क्योंकि हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का तर्क :
वक़्फ़ एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा, संपत्ति समर्पण से संबंधित, सभी धर्मों में समान.
वक़्फ़ अधिनियम का उद्देश्य : समर्पित संपत्तियों को वैधानिक वैधता देना, धार्मिक प्रथाओं को प्रभावित नहीं करना.
2025 का संशोधन : 1923, 1954, या 1996 से पहले अपंजीकृत वक़्फ़ों (वक़्फ़-बाय-यूजर सहित) को मान्यता नहीं.
नीति तर्कसंगत, पंजीकृत वक़्फ़ संरक्षित, गैर-पंजीकृत का कोई कानूनी अस्तित्व नहीं.
याचिकाकर्ताओं के तर्क :
वकील कपिल सिब्बल
संशोधन वक़्फ़ संपत्तियों का ‘धीरे-धीरे अधिग्रहण’, अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन.
धारा 3सी : अतिक्रमणकारी को विवाद शुरू करने की छूट, बिना समय सीमा/प्रक्रिया के सरकारी जांच.
परिणाम : वक़्फ़ स्थिति खत्म, स्कूल/अस्पताल/कब्रिस्तान जैसे उपयोग बंद, सरकार संपत्ति को गैर-वक़्फ़ घोषित कर सकती है.
वक़्फ़ प्रशासन में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति : ‘मुस्लिम अधीनता’, अन्य धर्मों में ऐसी व्यवस्था नहीं.
धारा 3डी : प्राचीन स्मारक कानूनों के तहत वक़्फ़ संपत्ति शून्य, स्वामित्व-हरणकारी.
धारा 3(आर) : वक़्फ़ बनाने के लिए 5 साल तक इस्लाम पालन का प्रमाण मनमाना, मौलिक अधिकारों का हनन.
अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी
अधिनियम अपंजीकृत वक़्फ़-बाय-यूजर को अमान्य करता है, 50% से अधिक (करीब 8 लाख) वक़्फ़ प्रभावित.
सदियों पुराने वक़्फ़ों के पास दस्तावेज नहीं, फिर भी धर्मार्थ/धार्मिक उपयोग.
अदालत में चुनौती पर रोक, पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की सुरक्षा कमजोर.
अधिवक्ता राजीव धवन
धारा 3ई : अनुसूचित जनजातियों की भूमि को वक़्फ़ मानने पर रोक, भेदभावपूर्ण.
केंद्र सरकार 21 मई, 2025 को जवाब देगी.
अमेरिकी प्रतिबंध : अमेरिका ने कुछ भारतीय ट्रैवल एजेंसियों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है. यह कार्रवाई अवैध अप्रवासन को बढ़ावा देने के आरोप में की जा रही है. अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि उन्होंने भारत में ऐसे लोगों की पहचान की है. इसका मकसद अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन करने वालों को जवाबदेह ठहराना है. हालांकि, प्रतिबंधित किए जाने वाले लोगों या एजेंसियों के नाम जारी नहीं किए गए हैं.
अडानी के निवेशकों को सेबी के नोटिस : सेबी ने मॉरीशस स्थित दो फंडों को चेतावनी दी है. उन्हें दो साल से शेयरधारिता का विवरण न देने पर कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है. इस कार्रवाई में जुर्माना और लाइसेंस रद्द करना शामिल हो सकता है. ये फंड एलारा इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड और वेस्पेरा फंड हैं. इन फंडों ने अडानी समूह में निवेश किया है. सेबी ने अडानी समूह में 'केंद्रित स्थिति' के कारण उनसे शेयरधारकों का विवरण मांगा था. सेबी के अनुसार, फंडों ने अभी तक यह जानकारी नहीं दी है और न ही कोई कारण बताया है. इस देरी ने अडानी समूह में न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों की जांच में बाधा डाली है. अडानी समूह की जांच 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद से चल रही है.
हेट अलर्ट
पहलगाम का बदला भारत के मुसलमानों से लेने में विहिप, बजरंग दल और भाजपा के नेता शामिल रहे
एक तरफ भारत सरकार मुस्लिम फौजी अफसर को दुनिया के सामने दिखा कर भारत को सेक्युलर साबित करने की कोशिश कर रही थी और दूसरी तरफ पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ आग लगाया जा रहा था. ये तब था, जब कश्मीर और बाकी देश के मुस्लिमों ने एक आवाज़ में आतंकवादी हमले के खिलाफ़ पूरे देश का साथ दिया था. यह भी विचारणीय है कि किसी भी जिम्मेदार सरकारी पद पर बैठे केन्द्र सरकार के नेता ने इन मुस्लिम विरोधी बयानों और हरकतों की न तो निंदा की, न चुप करवाया, न कार्रवाई की. बल्कि भाजपा के मंत्री वह सब बोलते सुनाई पड़े जिसे हाईकोर्ट ने गटर कहा.
आर्टिकल 14 में कुणाल पुरोहित ने बहुत तसल्ली से बताया है कि पहलगाम के बहाने देश भर में किस तरह से मुसलमानों के खिलाफ ऑनलाइन और ऑफलाइन अभियान चलाए गये. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद के तीन हफ्तों में, भारत भर में मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे अपराधों और भाषणों की एक भयावह लहर देखी गई. रिपोर्ट के अनुसार, 22 अप्रैल को हुए हमले के बाद से 13 मई तक की अवधि में मुसलमानों को निशाना बनाने वाली ऐसी 113 से अधिक घटनाएं सामने आईं, जिनमें इस आतंकी घटना को बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया गया. इन घटनाओं के परिणामस्वरूप कम से कम दो मुसलमानों की जान चली गई और कई अन्य घायल हुए या उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.
सबसे चिंताजनक बात यह है कि रिपोर्ट में पाया गया कि इन नफरत भरे कृत्यों और भाषणों में से कई सीधे तौर पर सत्तारूढ़ भाजपा या विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे उसके सहयोगी हिंदुत्व संगठनों से जुड़े व्यक्तियों द्वारा किए गए थे. कम से कम 10 घटनाओं में भाजपा नेताओं की सीधी संलिप्तता थी, जिन्होंने आर्थिक बहिष्कार, मुस्लिम किरायेदारों को घर न देने या मुस्लिम विक्रेताओं से सामान न खरीदने जैसे जहरीले बयान दिए. इसके बावजूद, केंद्र सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी ने इस मुस्लिम विरोधी नफरत अभियान को रोकने के लिए कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाया, हालांकि उन्होंने हमले को सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश बताया था.
ये घटनाएं कई राज्यों में फैली हुई थीं. इनमें शारीरिक हमले, गांवों से निकाले जाने की धमकियां, आर्थिक बहिष्कार के आह्वान और अपमानजनक व्यवहार शामिल थे. उदाहरण के लिए, हरियाणा और महाराष्ट्र के कुछ गांवों में मुस्लिम परिवारों को गांव छोड़ने के लिए कहा गया. कर्नाटक में मानसिक रूप से अक्षम एक मुस्लिम व्यक्ति को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला. उत्तर प्रदेश में एक किशोर मुस्लिम लड़के को जबरन पाकिस्तान के झंडे पर पेशाब करने के लिए मजबूर किया गया. मुंबई में, भाजपा की एक स्थानीय नेता के नेतृत्व में भीड़ ने मुस्लिम स्ट्रीट वेंडरों पर हमला किया, उन्हें शहर से निकालने की मांग की और दावा किया कि यह आतंकी हमले का बदला है.
रिपोर्ट बताती है कि हमले के तुरंत बाद, एक सुनियोजित ऑनलाइन और ऑफलाइन अभियान शुरू हुआ, जिसका मुख्य संदेश यह था कि मुस्लिम हिंदुओं के लिए खतरा हैं और उन्हें दंडित किया जाना चाहिए. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घृणास्पद पोस्ट, भाषण, और यहां तक कि हिंदुत्व पॉप संगीत के माध्यम से भी इस संदेश को फैलाया गया, जिसमें मुसलमानों को 'देशद्रोही' बताया गया और हिंदुओं से उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से बॉयकाट करने का आग्रह किया गया.
यह नफ़रत केवल सड़कों तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि शिक्षाविदों और पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया. अशोका विश्वविद्यालय के एक मुस्लिम प्रोफेसर को सरकार की आलोचना करने वाले फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया, जिन पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी फैलाने का आरोप लगाया गया. दो व्यंग्यकारों पर भी सोशल मीडिया पोस्ट के लिए मामले दर्ज किए गए.
विशेषज्ञों का मानना है कि पहलगाम हमला देश में पहले से मौजूद बढ़ते मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह और इस्लामोफोबिया का फायदा उठाने का बहाना मात्र था. उन्होंने जोर देकर कहा कि मुसलमानों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है और यह नफरत सामान्य होती जा रही है. कुल मिलाकर, रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे एक आतंकवादी घटना का इस्तेमाल भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ घृणा, हिंसा और भेदभाव को बढ़ाने के लिए किया गया, जिसमें राजनीतिक तत्व भी शामिल थे और जिस पर सरकार की ओर से कोई प्रभावी प्रतिक्रिया नहीं आई. पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें.
मीडिया
हरतोष बल : पहलगाम पर कवरेज गलत सूचना, धोखा देने का प्रयास था, टेलीविजन पर एक प्रदर्शन - युद्ध के उत्सव या सर्कस जैसा था
हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव चरम पर पहुंचने और फिर युद्ध के कगार से लौटने के एक सप्ताह बाद, दोनों देशों ने अपने-अपने तरीके से इसे अपनी जीत बताया है. हालांकि, इस पूरी घटना के कई महत्वपूर्ण पहलू अब भी सवालों के घेरे में हैं. अल जजीरा के कार्यक्रम ‘द लिसनिंग पोस्ट’ में कैरेवन मैगज़ीन के कार्यकारी संपादक हरतोष बल ने भारतीय मीडिया के इस दौरान के कवरेज और इसकी व्यापक स्थिति पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया है.
इंटरव्यू में हरतोष बल बताते हैं कि भारतीय मीडिया परिदृश्य बहुत विशाल और शोरगुल वाला है. इसमें सैकड़ों मुख्यधारा के समाचार चैनल शामिल हैं, जिनमें से कई अपने अतिराष्ट्रवाद, सनसनीखेज रिपोर्टिंग और नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए कुख्यात हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के साथ ही ये प्रवृत्तियां खुलकर सामने आईं. इस माहौल में, कई वैकल्पिक मीडिया आउटलेट्स, जिनकी स्थापना अक्सर मुख्यधारा मीडिया से अलग हुए अनुभवी पत्रकारों द्वारा की गई है, ने विश्वसनीय जानकारी प्रदान कर इस खालीपन को भरने का प्रयास किया. हालांकि, उनकी पहुंच बड़े, बेहतर वित्त पोषित कॉर्पोरेट स्वामित्व वाले आउटलेट्स की तुलना में काफी सीमित बनी हुई है.
इस संकट के दौरान भारतीय मुख्यधारा समाचार मीडिया के प्रति लोगों का गुस्सा साफ तौर पर देखा गया. हरतोष बल के अनुसार, भारतीय आम तौर पर मुख्यधारा मीडिया पर पूरी तरह भरोसा नहीं करते, लेकिन जब युद्ध जैसी गंभीर स्थिति वास्तविक समय में सामने आ रही थी, तब उनके पास जानकारी के लिए टेलीविजन या मुख्यधारा मीडिया की ओर रुख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. यह हर भारतीय के लिए तनाव और चिंता का क्षण था. ऐसे में, उन्हें जो मिल रहा था, वह गलत सूचना, धोखा देने का प्रयास और टेलीविजन पर एक प्रदर्शन था - लगभग युद्ध का उत्सव या सर्कस जैसा. जब इसे लोगों ने अनुभव की जा रही वास्तविकता के साथ जोड़ा, तो मुख्यधारा मीडिया के प्रति यह गुस्सा बहुत स्वाभाविक था और अब भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है.
बल इस कवरेज में उभरी हुई संपादकीय 'रेड लाइनों' या वर्जित विषयों पर भी प्रकाश डालते हैं. उनके अनुसार, इस तनावपूर्ण अवधि के दौरान भारतीय पक्ष को हुए संभावित नुकसान, विशेष रूप से पाकिस्तान पर पहले हवाई हमले के दौरान भारतीय विमानों को क्या हुआ, इस पर रिपोर्टिंग करना एक स्पष्ट वर्जित विषय था. उन्होंने 'द वायर' नामक एक वैकल्पिक आउटलेट का उदाहरण दिया, जिसने इस विषय पर सीएनएन के एक लेख का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसका नतीजा यह हुआ कि पूरी वेबसाइट को बिना किसी उचित प्रक्रिया के बंद कर दिया गया. वेबसाइट को तभी बहाल किया गया जब उस विशिष्ट लेख को हटा दिया गया. यह घटना दर्शाती है कि आज भी किस तरह की 'रेड लाइनें' मौजूद हैं. बल बताते हैं कि भारतीय मुख्यधारा के किसी भी चैनल या अखबार में आज तक इस चिंता को संबोधित नहीं किया गया है कि पहले दिन भारतीय हवाई हमले में भारत को क्या नुकसान हुआ हो सकता है. इस पर सवाल पूछना या जांच करना स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है.
हरतोष बल मोदी सरकार के पिछले दस वर्षों में भारतीय मीडिया परिदृश्य को आकार देने के तरीकों पर भी विस्तार से बात करते हैं. इस दौरान बड़े मीडिया आउटलेट्स को बड़े व्यवसायों द्वारा खरीदा गया, जिनके स्पष्ट राजनीतिक हित थे और जो अक्सर सत्तारूढ़ भाजपा के राजनीतिक सहयोगी हैं. सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिससे सरकार को जवाबदेह ठहराने की कीमत काफी बढ़ गई है. बल का मानना है कि इन सब के बावजूद, पिछले कुछ हफ्तों में मुख्यधारा के टीवी आउटलेट्स वास्तव में मोदी सरकार के लिए बोझ साबित हुए हैं. सार्वजनिक धारणा में और बाहरी पर्यवेक्षकों के लिए यह स्पष्ट था. उनके द्वारा पैदा की गई अतिरंजना, प्रचार और उच्च अपेक्षाओं ने सरकार को रणनीतिक रूप से ऐसे कोने में धकेल दिया, जहां से बाहर निकलना मुश्किल था. सरकार के कार्यों पर भी एक दशक से उन्होंने जिस तरह का मीडिया कवरेज तैयार किया है, उसका दबाव पड़ा है. बल के अनुसार, यह सरकार पिछले दस वर्षों से जो बढ़ावा दे रही है, उसी का विस्तार है. हालांकि, सरकार खुद इसे नुकसानदायक नहीं मानती. मीडिया के कारण भारतीय प्रचार के बारे में संदेह पैदा हुआ, जबकि आधिकारिक ब्रीफिंग में कही गई बातों पर शायद इतना नहीं. फिर भी, सरकार इसे नुकसान के रूप में नहीं देखती. इस दृष्टिकोण का प्रमाण भाजपा द्वारा इन टेलीविजन समाचार आउटलेट्स का स्पष्ट रूप से समर्थन करने में देखा जाता है.
बल बताते हैं कि भाजपा इन मीडिया आउटलेट्स का समर्थन करती है क्योंकि पिछले दस वर्षों में मीडिया परिदृश्य इसी तरह से आकार दिया गया है. इस मीडिया का उपयोग सरकार को मजबूत करने के साथ-साथ उन सभी लोगों की आलोचना करने और उन पर हमला करने के लिए किया गया है जो किसी भी प्रचार कथा पर सवाल उठाते हैं. यह उन लोगों के खिलाफ निर्देशित है, जो सवाल पूछते हैं, सच्चाई जानना चाहते हैं, विश्लेषण करना चाहते हैं, अपनी स्थिति का आकलन करना चाहते हैं, और सरकार के रणनीतिक हितों को समझना चाहते हैं. इसका संकेत मीडिया के अन्य हिस्सों में भी देखा जाता है. बल एक ऐसे पत्रकार का उदाहरण देते हैं, जो भाजपा के काफी करीब माने जाते हैं और जिन्होंने हाल ही में एक लेख में लिखा था कि भारत 'ढाई मोर्चों' पर युद्ध लड़ रहा है - पाकिस्तान, चीन और 'आधा मोर्चा' वे लोग हैं, जो अंदर से सवाल पूछ रहे हैं. ये वे लोग हैं, जिन्हें कथित तौर पर सवाल पूछकर, युद्ध के उद्देश्य पर सवाल उठाकर, भारत को अंदर से कमजोर करने वाला माना जाता है. बल कहते हैं कि यह वही कथा है, जिसे भाजपा ऐसे वीडियो के माध्यम से बढ़ावा दे रही है.
पाकिस्तानी मीडिया से तुलना के बारे में पूछे जाने पर, बल स्वीकार करते हैं कि उन्हें पाकिस्तानी मीडिया की गहरी जानकारी नहीं है, लेकिन उनका कहना है कि पाकिस्तानी मीडिया पूरी तरह से पाकिस्तान सरकार की लाइन दोहराता है. पाकिस्तान के मामले में, गलत सूचना और स्पिन आधिकारिक ब्रीफिंग से ही आ रही थी. बल के अनुसार, पाकिस्तान में छोटे वैकल्पिक आउटलेट्स में भी किसी बिंदु पर कोई सवाल नहीं पूछा गया. उनका कहना है कि मूल रूप से एक गलत सूचना का युद्ध चल रहा था.
भविष्य को लेकर, हरतोष बल भारतीय मीडिया के कवरेज में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करते. उनका कहना है कि वे निश्चित रूप से निराश हो चुके हैं. वे इसका विरोध करते रहेंगे, लेकिन उन्हें कुछ भी बदलने की उम्मीद नहीं है. उनके अनुसार, इस तरह के मीडिया के कारण पत्रकारिता को जो नुकसान हुआ है, वह जारी रहेगा. यह न केवल इसलिए जारी रहेगा, क्योंकि मोदी सरकार ऐसा चाहती है, बल्कि इसलिए भी कि प्रचार के इन मूल्यों को मीडिया परिदृश्य ने खुद आंतरिकृत कर लिया है. बल के शब्दों में, "यह यहां रहने के लिए है."
फैक्ट चेक/ फेक न्यूज
अर्णब गोस्वामी की फे़क न्यूज़ अमित मालवीय ने फैलाई
ऑल्ट न्यूज ने अर्णब गोस्वामी के फेक न्यूज फैलाने का एक और मामला पकड़ा है. इतना ही नहीं, उसके आधार पर अर्णब एक लंबी स्पीच भी दे डालते हैं. भाजपा आईटी सेल के अमित मालवीय, और उनके कई सोशल मीडिया संगतकार भी इसी फेक क्लिप को ट्वीट करते हैं. 15 मई को एक प्राइम टाइम शो में, रिपब्लिक के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी, जो शो की मेजबानी भी कर रहे थे, ने दावा किया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) का तुर्कीये में एक पंजीकृत कार्यालय है. इस सेगमेंट में, उन्होंने इस्तांबुल कांग्रेस सेंटर की एक तस्वीर दिखाई, जिसे उन्होंने आईएनसी का पंजीकृत कार्यालय बताया. गांधी परिवार का जिक्र करते हुए, गोस्वामी ने कहा कि ‘परिवार’ ने बार-बार राष्ट्रीय हितों से समझौता किया है. हालिया भू-राजनीतिक घटनाक्रमों, खासकर तुर्कीये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन द्वारा खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किए जाने के आलोक में, कांग्रेस के तुर्कीये के साथ कथित तालमेल पर चिंता व्यक्त करते हुए, गोस्वामी ने इसे राष्ट्रीय अखंडता का मुद्दा बताया. उन्होंने कहा, "दुश्मन का दोस्त दुश्मन होता है," और दर्शकों से कांग्रेस पार्टी का बहिष्कार करने का आग्रह किया और प्रतिबंध की मांग की.
भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने 17 मई को रिपब्लिक का वह सेगमेंट साझा किया, और राहुल गांधी से पूछा कि उन्हें यह ‘कदम उठाने’ की आवश्यकता क्यों महसूस हुई. सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ऋषि बागड़ी (@rishibagree) ने भी ‘एक्स’ पर वही वीडियो साझा किया और सवाल उठाया कि जब वहां केवल 300 भारतीय रह रहे हैं तो कांग्रेस को वहां कार्यालय रखने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई. उन्होंने कहा, "क्या एर्दोगन कांग्रेस के नए खलीफा हैं, जो इसके खुलेआम इस्लामीकरण का नेतृत्व कर रहे हैं?" एक अन्य एक्स उपयोगकर्ता, जयपुर डायलॉग्स (@JaipurDialogues) ने भी वही वीडियो साझा किया और आश्चर्य व्यक्त किया कि पार्टी का उस देश में कार्यालय क्यों है. रिपब्लिक सेगमेंट में दिखाई गई इमारत, जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का तुर्कीये में पंजीकृत कार्यालय बताया गया है, वास्तव में इस्तांबुल कांग्रेस सेंटर है. यह तुर्कीये के इस्तांबुल शहर के सिसली जिले के हरबिये इलाके में स्थित एक कन्वेंशन सेंटर है. इसका उद्घाटन 17 अक्टूबर 2009 को हुआ था, और यह इस्तांबुल मेट्रोपॉलिटन नगर पालिका के स्वामित्व में है. इस कांग्रेस (कन्वेंशन सेंटर) का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जो एक राजनीतिक दल है, से कोई लेना-देना नहीं है.
आल्ट न्यूज के मुताबिक इस संदर्भ में मालवीय का ‘एक्स’ पोस्ट असामान्य लग रहा है, क्योंकि भाजपा की भी भारत के बाहर इकाइयाँ हैं, जिनमें तुर्कीये भी शामिल है. ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी (ओएफबीजेपी) ने यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, नीदरलैंड और अन्य देशों में केंद्र स्थापित किए हैं. कई समाचार रिपोर्टों और लेखों से संकेत मिलता है कि ओएफबीजेपी की तुर्कीये में उपस्थिति है. इन रिपोर्टों में दीपांकर गांगुली को तुर्कीये से संयोजक के रूप में नामित किया गया था. अगस्त 2018 में, विजय जॉली, जो तब वरिष्ठ भाजपा नेता और ओएफबीजेपी के वैश्विक संयोजक थे, उन्होंने अंकारा में तुर्कीये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन से मुलाकात भी की थी और उन्हें भाजपा के कमल के निशान वाला एक स्कार्फ भेंट किया था.
चलते-चलते
प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक जयंत नार्लीकर का निधन
प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक, विज्ञान संचारक और पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर का 87 वर्ष की उम्र में मंगलवार को पुणे में निधन हो गया.
भारतीय विज्ञान के क्षेत्र के महान हस्ती डॉ. नार्लीकर को ब्रह्मांड विज्ञान में उनके अग्रणी योगदान, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के उनके प्रयासों और देश में प्रमुख शोध संस्थानों की स्थापना के लिए व्यापक रूप से जाना जाता था. हाल ही में उनके कूल्हे की सर्जरी हुई थी. 19 जुलाई, 1938 को जन्मे डॉ. नार्लीकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के परिसर में पूरी की, जहाँ उनके पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर प्रोफेसर और गणित विभाग के प्रमुख थे. वे उच्च अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज चले गए, जहाँ वे गणितीय ट्रिपोस में रैंगलर और टायसन पदक विजेता बने.
वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (1972-1989) में शामिल होने के लिए भारत लौट आए, जहाँ उनके नेतृत्व में, सैद्धांतिक खगोल भौतिकी समूह का विस्तार हुआ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई. 1988 में, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने डॉ. नार्लीकर को प्रस्तावित अंतर-विश्वविद्यालय खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी केंद्र (आईयूसीएए) के संस्थापक निदेशक के रूप में स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया.
उन्होंने 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति तक आईयूसीएए के निदेशक का पद संभाला. उनके निर्देशन में आईयूसीएए ने खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी में शिक्षण और अनुसंधान में उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में दुनिया भर में ख्याति प्राप्त की है. वे आईयूसीएए में एमेरिटस प्रोफेसर थे. 2012 में, तृतीय विश्व विज्ञान अकादमी ने विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए मानक स्थापित करने के लिए डॉ. नार्लीकर को पुरस्कार दिया.
अपने वैज्ञानिक अनुसंधान के अलावा, डॉ. नार्लीकर अपनी पुस्तकों, लेखों और रेडियो/टीवी कार्यक्रमों के माध्यम से विज्ञान संचारक के रूप में प्रसिद्ध थे. वे अपनी विज्ञान कथा कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं. इन सभी प्रयासों के लिए, उन्हें 1996 में यूनेस्को द्वारा लोकप्रिय विज्ञान कार्यों के लिए कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
डॉ. नार्लीकर को 1965 में 26 वर्ष की छोटी उम्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था. 2004 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया और 2011 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, महाराष्ट्र भूषण से सम्मानित किया. 2014 में, भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्था साहित्य अकादमी ने क्षेत्रीय भाषा (मराठी) लेखन में अपने सर्वोच्च पुरस्कार के लिए उनकी आत्मकथा का चयन किया.
‘भारत के लिए चुनौती अपनी वास्तविक समस्याओं का सामना करने और उन्हें तार्किक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से हल करने में निहित है’
उनके द्वारा लिखी गई प्रस्तावना है द रिपब्लिक ऑफ रीजन के लिए, जिसमें मारे गए तर्कवादियों गोविंद पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर, एम.एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश के चुनिंदा लेख शामिल थे.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अंधविश्वास और असहिष्णुता का प्रतिकार हो सकता है और हाल के घटनाक्रम जिसमें तर्कवादियों और अन्य लोगों पर हमले शामिल हैं, हमें याद दिलाते हैं कि भारत को, 21वीं सदी के शुरुआती दौर में भी, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए गहन अभियानों की आवश्यकता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण केवल पेशेवर वैज्ञानिकों का विशेष गुण नहीं होना चाहिए. समाज में प्रगति तब होती है जब वैज्ञानिक दृष्टिकोण अंतर्निहित रूढ़िवादिता पर हावी हो जाता है. मुझे उन लोगों पर हुए हमलों से आघात लगा है, जिन्होंने तर्कवाद की वकालत की है और हाल के महीनों में देश भर में हुई अन्य घटनाएं. ये हमारे समाज में अंधविश्वासों और असहिष्णुता के बने रहने को दर्शाती हैं. ऐसी घटनाओं से बचने के लिए, हमें समाज को बदलने की जरूरत है, जिसमें अधिक से अधिक लोगों को - यहां तक कि गैर-वैज्ञानिकों को भी - वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण अपनाने और उसके लिए अभियान चलाने के लिए प्रेरित करना शामिल है. हालांकि, हमें यह एहसास होना चाहिए कि यह हासिल करना आसान नहीं हो सकता.
प्राचीन परंपराएं और सोच के तरीके हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में गहराई से जुड़े हुए हैं. वे विज्ञान और तार्किकता के प्रवेश में बाधा बनते हैं. समाज में बड़े लोगों की मानसिकता को बदलना मुश्किल है. इसलिए हमें छोटे लोगों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, स्कूल जाने वाले बच्चों से शुरुआत करते हुए.
वैज्ञानिक समुदाय को स्वयं अधिक मुखर होना चाहिए, न सिर्फ ऐसी घटनाओं के संदर्भ में. वैज्ञानिकों को हर समय तार्किक सोच की आवश्यकता पर अपनी बात रखनी चाहिए. व्यक्तिगत रूप से, या एक बड़े समूह के हिस्से के रूप में, मनुष्य अक्सर पारंपरिक विश्वासों के तहत रहे हैं. ये किताबें सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से अनिवार्य रूप से जुड़ी हुई हैं. संघर्ष तब उत्पन्न होते हैं, जब वैज्ञानिक स्वभाव में निहित आलोचनात्मक मूल्यांकन इन विश्वासों पर लागू किया जाता है.
मेरी 2003 की किताब, साइंटिफिक एज में, मैंने जवाहरलाल नेहरू को वैज्ञानिक स्वभाव का इस प्रकार वर्णन करते हुए उद्धृत किया था : "विज्ञान और आधुनिक दुनिया के प्रभाव ने तथ्यों की अधिक सराहना, एक अधिक आलोचनात्मक क्षमता, सबूतों का मूल्यांकन, परंपरा को केवल इसलिए अस्वीकार करना, क्योंकि यह परंपरा है ... मैं… लेकिन आज भी यह अजीब है कि हम अचानक परंपरा से अभिभूत हो जाते हैं, और बुद्धिमान पुरुषों की भी आलोचनात्मक क्षमताएं कार्य करना बंद कर देती हैं..." यह ब्रिटिश राज के दौरान लिखा गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि हम अब भी उस वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्राप्त करने से बहुत दूर हैं, जिसे नेहरू ने हमारे भविष्य के कल्याण के लिए इतना आवश्यक माना था.
भारत के लिए चुनौती अपनी वास्तविक समस्याओं का सामना करने और उन्हें तार्किक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से हल करने में निहित है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.