21/11/2025: अमेरिका, अडानी और मोदी सरकार | तेजस क्रैश | रुपये रिकॉर्ड नीचे | ऑस्ट्रेलिया में 16 से नीचे वालों के लिए सोशल मीडिया बैन | मालगाड़ी बना इंडियन एक्स्प्रेस | हड़प्पा की ख़ुराक
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
अडानी पर अमेरिकी धोखाधड़ी का केस एक साल से ठप, ट्रंप राज में बदली हवा?
लाल किला ब्लास्ट की साज़िश, डॉक्टर को भेजे गए बम बनाने के 42 वीडियो.
दुबई एयरशो में भारत का तेजस फाइटर जेट क्रैश.
अमेरिकी उपराष्ट्रपति की उम्मीद, ‘हिंदू पत्नी बन जाएं ईसाई’, भारत में मचा बवाल.
बिहार का सबक, पुराना विपक्ष खत्म, नया विपक्ष लापता.
‘देशद्रोहियों को मौत की सज़ा’, ट्रंप की डेमोक्रेट्स को खुली धमकी.
16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन, ऑस्ट्रेलिया का बड़ा फैसला.
राज्यपालों के लिए समय सीमा तय हो, स्टालिन बोले- संविधान संशोधन तक आराम नहीं.
अमेरिकी रिपोर्ट का दावा, बीजेपी-आरएसएस के गठजोड़ से भारत में भेदभाव को बढ़ावा.
रुपया धड़ाम, 93 पैसे गिरकर डॉलर के मुक़ाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर.
ईरान से तेल व्यापार पर अमेरिकी चाबुक, भारतीय कंपनियों और लोगों पर प्रतिबंध.
क्या ‘साहस की पत्रकारिता’ सत्ता की मालगाड़ी बन गई? श्रवण गर्ग का इंडियन एक्सप्रेस पर सवाल.
ट्रेन में हिंदी बोलने पर पिटाई? महाराष्ट्र में छात्र ने की आत्महत्या, पिता का आरोप.
कफ़ सिरप से बच्चों की मौत, क्या दवा बनाने वाले केमिकल में थी मिलावट?
नेता सोशल मीडिया पर वोटरों को कर रहे ब्लॉक, क्या यह लोकतंत्र का उल्लंघन है?
लाल क़िला धमाके के घायल की ‘फ़र्ज़ी पट्टी’? ऑल्ट न्यूज़ ने बताई वायरल दावे की सच्चाई.
प्राचीन व्यापार के सुराग खोजने मिस्र पहुँचे तमिलनाडु के पुरातत्वविद.
साढ़े चार हज़ार साल पहले क्या खाते थे हड़प्पावासी?
अडानी के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी का मामला कानूनी अधर में लटका
द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक साल पहले, पूर्व राष्ट्रपति जोसेफ आर. बाइडेन जूनियर के तहत अमेरिकी न्याय विभाग ने भारत के सबसे प्रमुख व्यवसायी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी गौतम अडानी पर वायर और सिक्योरिटीज़ धोखाधड़ी के आरोप लगाकर भारत को चौंका दिया था. लेकिन तब से, इस मामले में लगभग कोई प्रगति नहीं हुई है. अडानी के खिलाफ मामला, जिसकी घोषणा पिछले साल 20 नवंबर को राष्ट्रपति ट्रंप के फिर से चुनाव जीतने के दो हफ्ते बाद की गई थी, संघीय डॉकेट पर निष्क्रिय बना हुआ है.
रिपोर्ट के अनुसार, जहां मामले में बहुत कम बदलाव हुआ है, वहीं ट्रंप के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच संबंध काफी बदल गए हैं. व्हाइट हाउस में अब भारत के कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को तरजीह दी जा रही है. अमेरिका ने भारत के निर्यात पर भारी टैरिफ लगाए हैं, जिसमें रूसी तेल खरीदने के लिए एक विशेष जुर्माना भी शामिल है.
यह केवल अडानी और उनके सात सहयोगियों के खिलाफ पांच आपराधिक आरोप ही नहीं हैं जो रुके हुए हैं, बल्कि सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) द्वारा उनके खिलाफ दायर एक सिविल शिकायत का भी यही हाल है. अडानी कोई साधारण भारतीय व्यवसायी नहीं हैं. वह मोदी के साथ सत्ता के शिखर तक पहुंचे. अडानी समूह देश के सबसे बड़े बंदरगाहों, राजमार्गों, ऊर्जा परियोजनाओं और बहुत कुछ के पीछे प्रेरक शक्ति बन गया है.
यह स्पष्ट नहीं है कि मामला क्यों रुका हुआ है. अडानी का भाग्य तब तय हो रहा है जब ट्रंप भारत के साथ कई जटिल मुद्दों पर बातचीत कर रहे हैं. भारत को अभी तक व्हाइट हाउस के साथ कोई व्यापार सौदा नहीं मिला है, जिसका अर्थ है कि उसके उत्पादों पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगता है.
न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के संघीय अभियोजकों ने अडानी पर रिश्वतखोरी की साजिश रचने और निवेशकों को धोखा देने का आरोप लगाया था. उन्होंने दावा किया कि अडानी और उनके सहयोगियों ने एक सौर परियोजना के लिए अनुबंध हासिल करने के लिए भारत में एक राजनेता को रिश्वत देने का प्रयास किया और फिर न्यूयॉर्क में निवेशकों से इस योजना के बारे में झूठ बोला. अडानी समूह ने इन आरोपों से इनकार किया है.
मिशिगन विश्वविद्यालय में व्हाइट-कॉलर अपराध के विशेषज्ञ कानून के प्रोफेसर विक्रमादित्य खन्ना ने कहा, “इस तरह के मामले में कुछ समय लगता है, लेकिन आमतौर पर इतना लंबा समय नहीं लगता.” उन्होंने कहा कि व्यापार वार्ता, न्याय विभाग में कर्मचारियों की कमी और हाल ही में समाप्त हुई छह सप्ताह की सरकारी शटडाउन कार्यवाही में देरी कर सकती है.
जब से अडानी पर आरोप लगे हैं, उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा नहीं की है, जहां उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. उनका प्रत्यर्पण असंभावित है. कानूनी मुद्दों ने अडानी की कंपनियों की गति को धीमा नहीं किया है. वे हाई-प्रोफाइल अनुबंध जीतना जारी रखे हुए हैं, जिसमें अमेरिकी कंपनियों के साथ अनुबंध भी शामिल हैं. जब अडानी पर आरोप लगे थे, तो अडानी समूह की सात सूचीबद्ध कंपनियों का संयुक्त बाजार मूल्य 20 प्रतिशत गिर गया था. अब, उन कंपनियों का मूल्य आरोप लगने के समय से भी अधिक है.
लाल किला ब्लास्ट
विदेशी हैंडलर ने डॉक्टर को एन्क्रिप्टेड ऐप्स पर बम बनाने के 42 वीडियो भेजे
इंडियन एक्सप्रेस की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के लाल किला ब्लास्ट मॉड्यूल की जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियां अब उन विदेशी हैंडलर्स की भूमिका और पहचान की जांच कर रही हैं, जिन्होंने कथित तौर पर मॉड्यूल को बम बनाने में मदद की और उन्हें आत्मघाती हमले के लिए उकसाया. जांचकर्ता यह पता लगा रहे हैं कि क्या इन हैंडलर्स की हाल के दिनों में भारत में हुए इसी तरह के डू-इट-योरसेल्फ (DIY) बम विस्फोटों में कोई भूमिका थी.
दिल्ली मामले की जांच से जुड़े कर्नाटक के सूत्रों ने बताया कि तीन हैंडलर्स की पहचान “हंज़ुल्लाह”, “निसार” और “उकासा” के रूप में हुई है. यह माना जा रहा है कि ये उनके असली नाम नहीं, बल्कि छद्म नाम हो सकते हैं. पुलिस सूत्रों के अनुसार, “हंज़ुल्लाह” पहचान का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति ने कथित तौर पर 35 वर्षीय डॉ. गनई को बम बनाने के 40 से ज़्यादा वीडियो भेजे थे. डॉ. गनई पर मॉड्यूल द्वारा इस्तेमाल किए गए विस्फोटकों के भंडारण की व्यवस्था करने का आरोप है.
डॉ. गनई को ब्लास्ट से 10 दिन पहले गिरफ्तार किया गया था और उनके परिसर से 2,500 किलोग्राम से ज़्यादा विस्फोटक सामग्री बरामद की गई थी, जिसमें 350 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट भी शामिल था. इस मामले में एक और संदिग्ध मोहम्मद शाहिद फैसल का नाम भी सामने आया है, जो “कर्नल,” “लैपटॉप भाई,” और “भाई” जैसे छद्म नामों का इस्तेमाल करता है. माना जाता है कि उसने 2020 से कर्नाटक और तमिलनाडु में आतंकी मॉड्यूल के साथ मिलकर बम धमाकों को अंजाम दिया है.
सूत्रों का मानना है कि फैसल का संबंध 23 अक्टूबर, 2022 को कोयंबटूर कार आत्मघाती बम विस्फोट, 20 नवंबर, 2022 को मंगलुरु ऑटोरिक्शा ब्लास्ट और 1 मार्च, 2024 को बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे ब्लास्ट से है. जांचकर्ताओं के अनुसार, फैसल उर्फ ज़ाकिर उस्ताद बेंगलुरु से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट है, जो 2012 में 28 साल की उम्र में लापता हो गया था. उसका नाम बेंगलुरु में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े एक आतंकी साजिश के खुलासे के बाद सामने आया था. पुलिस द्वारा साजिश में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में पहचाने जाने के बाद वह कथित तौर पर पाकिस्तान भाग गया था. हाल ही में, वह सीरिया-तुर्की सीमा पर चला गया था.
दिलचस्प बात यह है कि लाल किला आतंकी मॉड्यूल के एक हैंडलर “उकासा” के भी तुर्की में होने का अंदेशा है. कर्नाटक में सुरक्षा सूत्रों का कहना है कि रिमोट हैंडलर के माध्यम से दिल्ली की घटना का कर्नाटक और तमिलनाडु की हालिया घटनाओं से जुड़े होने की संभावना है. हैंडलर स्तर पर ऑपरेशन में समानताएं हैं, जिसका अध्ययन किया जा रहा है.
इन घटनाओं में कोयंबटूर कार आत्मघाती बम विस्फोट लाल किले के मामले से सबसे ज़्यादा मिलता-जुलता है, जहां 28 वर्षीय जेमेशा मुबिन की एक मंदिर के बाहर कार विस्फोट में मौत हो गई थी. दोनों मामलों में, मॉड्यूल को एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफॉर्म - सिग्नल, सेशन, टेलीग्राम - के माध्यम से विदेशों में स्थित हैंडलर्स द्वारा DIY बम बनाने की तकनीक और सामग्री पर ऑनलाइन वीडियो प्रसारित किए गए थे. एनआईए की जांच में पता चला कि मुबिन और उसके साथियों ने अमोनियम नाइट्रेट जैसे विस्फोटक बनाने के लिए यूरिया जैसी खाद खरीदी थी. दिल्ली ब्लास्ट के बाद से, सुरक्षा एजेंसियों ने कर्नाटक और तमिलनाडु की जेलों में बंद फैसल के आईएस-लिंक्ड मॉड्यूल के प्रमुख संदिग्धों से पूछताछ की है, ताकि दिल्ली ब्लास्ट में शामिल हैंडलर्स की पहचान की जा सके.
दुबई एयरशो में भारतीय वायु सेना का तेजस फाइटर जेट क्रैश
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार (21 नवंबर, 2025) को दुबई एयरशो के दौरान भारतीय वायु सेना (IAF) का एक तेजस लड़ाकू जेट दुर्घटनाग्रस्त हो गया. सोशल मीडिया पर इस दुखद दुर्घटना के वीडियो वायरल होने के कुछ ही पलों बाद आधिकारिक सूत्रों ने इसकी पुष्टि की.
यह विमान दुबई एयरशो 2025 के पांचवें दिन एक फ्लाइट डिस्प्ले प्रोग्राम के दौरान प्रदर्शन कर रहा था. यह एयरशो सोमवार (17 नवंबर) को शुरू हुआ था. दुर्घटना स्थानीय समयानुसार दोपहर लगभग 2:15 बजे एक प्रदर्शन उड़ान के दौरान हुई. यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो पाया कि पायलट विमान से सुरक्षित बाहर निकल पाया या नहीं.
यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय वायु सेना के तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) का पहला क्रैश 12 मार्च, 2024 को जैसलमेर में एक ऑपरेशनल ट्रेनिंग सॉर्टी के दौरान हुआ था.
स्वदेशी जेट तेजस ने 24 साल पहले 04 जनवरी, 2001 को अपनी पहली उड़ान भरी थी. लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA)-तेजस की परिकल्पना वर्ष 1984 में की गई थी. इस स्वदेशी सिंगल-इंजन 4.5 जेनरेशन मल्टी-रोल फाइटर जेट का नाम ‘तेजस’ तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मई 2003 में रखा था.
जेडी वेंस की पत्नी के धर्म पर टिप्पणी से भारत में विवाद, ईसाई धर्मांतरण की उम्मीद पर उठे सवाल
सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने हज़ारों लोगों से भरे एक स्टेडियम में कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि उनकी पत्नी एक दिन “ईसाई धर्म के सुसमाचार” से उसी तरह प्रभावित होंगी जैसे वह हुए थे, तो उन्होंने अनजाने में भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच धार्मिक स्वतंत्रता पर एक विवादास्पद बहस छेड़ दी. कुछ लोगों के लिए, यह टिप्पणी देश के ईसाई धर्मांतरण के जटिल अतीत की यादें ताज़ा कर गई.
पिछले महीने मिसिसिपी विश्वविद्यालय में टर्निंग पॉइंट यूएसए के एक कार्यक्रम में, एक दर्शक ने वेंस से ईसाई धर्म और अमेरिकी देशभक्ति के बारे में सवाल किया था. इसके जवाब में वेंस ने अपने अंतर-धार्मिक विवाह पर चर्चा की: “मेरी पत्नी ईसाई के रूप में बड़ी नहीं हुई. यह कहना उचित है कि वह एक हिंदू परिवार में पली-बढ़ी, लेकिन एक बहुत धार्मिक परिवार में नहीं.” वेंस 2019 में कैथोलिक बन गए थे, जबकि उनकी पत्नी उषा वेंस, जो भारतीय मूल की हैं, एक हिंदू परिवार में पली-बढ़ी हैं. वेंस ने कहा, “क्या मैं उम्मीद करता हूं कि वह भी उसी चीज़ से प्रभावित होंगी जिससे मैं चर्च में हुआ? मैं ईमानदारी से ऐसी कामना करता हूं क्योंकि मैं ईसाई सुसमाचार में विश्वास करता हूं.”
इन टिप्पणियों पर ऑनलाइन बहस बढ़ने के बाद, वेंस ने एक्स पर जवाब दिया कि “एक अंतर-धार्मिक विवाह में कई लोगों की तरह,” वह उम्मीद करते हैं कि उनकी पत्नी एक दिन चीज़ों को उनके नज़रिए से देखेंगी, लेकिन वह हमेशा उनका समर्थन करते रहेंगे. वेंस ने यह भी बताया कि जब वे मिले थे तब वे दोनों “अज्ञेयवादी या नास्तिक” थे और उन्होंने अपने बच्चों को ईसाई के रूप में पालने का फैसला किया.
वहीं, उषा वेंस ने जून में एक इंटरव्यू में कहा था कि वह कैथोलिक नहीं हैं और उनका धर्म बदलने का कोई इरादा नहीं है. उन्होंने कहा कि उनके बच्चे कैथोलिक स्कूल जाते हैं, लेकिन वे चुन सकते हैं कि वे बपतिस्मा लेना चाहते हैं या नहीं. वे अपने परिवार के माध्यम से हिंदू धर्म और परंपराओं से भी अवगत हैं.
वेंस की टिप्पणी ने भारत में कुछ लोगों को नाराज़ कर दिया है. सीएनएन-न्यूज़18 की संपादक शुभांगी शर्मा ने एक कॉलम में लिखा, “एक ऐसे राजनीतिक माहौल में जो भारतीय अप्रवासियों के खिलाफ इतना चार्ज है, यह सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है. यह राजनीतिक है. यह धर्मांतरण के लिए एक राष्ट्रपति का आह्वान है.” द हिंदू की पत्रकार अरीना अरोड़ा ने लिखा, “जब एक निर्वाचित नेता अपने विश्वास को अपनी पत्नी सहित सभी के लिए अंतिम आदर्श मानता है, तो यह व्यक्तिगत नहीं रह जाता.”
कुछ लोगों के लिए, वेंस की टिप्पणियां भारत के दर्दनाक औपनिवेशिक अतीत की याद दिलाती हैं, जहां ईसाई धर्मांतरण, पूर्वाग्रह और कभी-कभी जबरन धर्मांतरण भी हुआ. बटलर विश्वविद्यालय में धार्मिक अध्ययन के प्रोफेसर चैड बॉमन ने कहा कि वेंस की टिप्पणी कई हिंदुओं के उस रूढ़िवादी विचार की पुष्टि करती है कि “अमेरिका धार्मिक सहिष्णुता और बहुलवाद का देश नहीं है, बल्कि एक ऐसा देश है जो ईसाई धर्म को अन्य सभी धर्मों पर विशेषाधिकार देता है.”
सोशल मीडिया पर भी कई यूज़र्स ने वेंस की आलोचना की. एक यूज़र ने लिखा कि यह अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ है. हालांकि, कुछ लोगों ने उनका बचाव भी किया. कैलिफोर्निया के डेमोक्रेटिक सांसद रो खन्ना, जो खुद हिंदू हैं, ने एक्स पर लिखा: “उनकी नीतियों पर हमला करें. उनके परिवार को इससे बाहर रखें.”
बिहार का नतीजा: पुराना विपक्ष बाहर, नए विपक्ष का कोई अता-पता नहीं
सुहास पलशीकर द्वारा इंडियन एक्सप्रेस में लिखे गए एक कॉलम के अनुसार, 2014 के चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद से ही बिहार उसके रास्ते में एक बाधा बना हुआ था. पार्टी को वहां लगभग 20 प्रतिशत वोट ही मिल रहे थे. उसकी सोशल इंजीनियरिंग और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राह, दोनों को पिछले 10 वर्षों में बहुत कम सफलता मिली. लेकिन अब ऐसा नहीं है. तो, जबकि इस चुनाव में एकमात्र मुकाबला जद(यू) और भाजपा के बीच था (और चुनाव के बाद भी रहेगा), भविष्य में जद(यू) की अप्रासंगिकता सामने आएगी. यह भाजपा द्वारा सामाजिक क्षेत्र पर गहरे नियंत्रण का दौर भी होगा. इसलिए, इस बात पर अनुमान लगाना व्यर्थ है कि भाजपा को अपने दम पर बिहार पर शासन करने में कितना समय लगेगा; वह वैसे भी यहां से बिहार को अपनी शर्तों पर चलाएगी.
यह परिणाम बिहार की सीमाओं से परे देखा जाना चाहिए. अगले छह महीनों में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में चुनाव होने हैं, ऐसे में बिहार का नतीजा पार्टी द्वारा व्यापक और अधिक पूर्ण प्रभुत्व का संकेत हो सकता है. कम से कम पूर्वी क्षेत्र के लिए, बिहार ने दरवाजे खोल दिए हैं.
बिहार की तरह, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी कांग्रेस एक प्रमुख खिलाड़ी नहीं है, और ऐसे में, भाजपा का सामना करने का बोझ पूरी तरह से क्षेत्रीय खिलाड़ी पर पड़ेगा. बिहार में, जद(यू)-भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के बावजूद राजद विफल रहा. दोनों राज्यों में जो चुनाव में जाएंगे, क्षेत्रीय सत्ताधारी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा, साथ ही केंद्र में एक प्रतिकूल सरकार की शक्ति का भी सामना करना पड़ेगा. बिहार, पहले के ओडिशा की तरह, दिखा चुका है कि जब मुकाबला एक राज्य-स्तरीय ताकत और भाजपा के बीच होता है, तब भी भाजपा के पास जीतने की क्षमता होती है.
बिहार के परिणाम का एनडीए की आंतरिक गतिशीलता पर भी प्रभाव पड़ेगा. बेशक, 2024 से, भाजपा अपने गठबंधन सहयोगियों से बंधी नहीं है. अब, बिहार के बाद, एनडीए के सहयोगी दलों को नोटिस पर रखा जाएगा. पिछले दशक ने दिखाया है कि भाजपा और मोदी का प्रभुत्व दो अनिवार्यताओं पर आधारित था - सरकारी मशीनरी पर पूर्ण नियंत्रण और एक वास्तविक हिंदू राष्ट्र की ओर धकेलना. अगर पिछले 18 महीनों में भाजपा ने इन दो मामलों पर कोई रियायत नहीं दी, तो अब वह एनडीए के सहयोगियों के साथ और अधीर हो सकती है.
अंत में, बिहार के नतीजे 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम को अवास्तविक बना देंगे. इंडिया ब्लॉक जिन दो पैरों पर चलने की कोशिश कर रहा था - कांग्रेस और राज्य की पार्टियां - दोनों ही ताकत हासिल करने में विफल रही हैं. बिहार चुनावों ने दिखाया है कि पुराना विपक्ष बाहर हो रहा है लेकिन एक नया विपक्ष नज़र नहीं आ रहा है. यह भाजपा को अपनी पार्टी की आंतरिक राजनीति का संचालन करने और आरएसएस के साथ अपने समीकरणों को सुलझाने के लिए और अधिक गुंजाइश देगा. लेकिन बिहार से परे बड़ी तस्वीर यह है कि यह परिणाम मोदी को पार्टी, नौकरशाही और समाज पर अधिक नियंत्रण रखने और राजनीति से परे कल्पना, संस्कृति और संवेदनाओं को आकार देने वाली कहानियों को मजबूत करने की अनुमति देता है.
‘मौत की सज़ा’: ट्रंप ने डेमोक्रेट्स को देशद्रोह के आरोप में दी धमकी
एलिसन ग्रिनर की अल जज़ीरा में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेटिक कांग्रेस के सदस्यों के एक समूह के लिए मौत की सज़ा की संभावना जताई है, जिन्होंने सैन्य और खुफिया समुदाय से किसी भी “अवैध आदेश” को अस्वीकार करने का आह्वान किया था. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि वह डेमोक्रेट्स को उनके बयान के लिए जेल में डालने के पक्ष में होंगे.
ट्रंप ने गुरुवार को अपने प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, “यह वास्तव में बुरा और हमारे देश के लिए खतरनाक है. उनके शब्दों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. देशद्रोहियों का राजद्रोही व्यवहार!!! उन्हें बंद कर दो???” इसके लगभग 40 मिनट बाद प्रकाशित एक अन्य संदेश में केवल पांच शब्द थे: “राजद्रोही व्यवहार, मौत की सज़ा!”
ट्रंप की यह धमकी 18 नवंबर को प्रकाशित एक वीडियो के जवाब में आई, जिसमें छह डेमोक्रेटिक सीनेटरों और प्रतिनिधियों के क्लिप थे, जो सभी अमेरिकी सेना या उसकी खुफिया सेवाओं के पूर्व सैनिक हैं. वीडियो में, कांग्रेस सदस्यों ने सशस्त्र बलों और खुफिया समुदाय में अपने सहयोगियों को “अवैध आदेशों को अस्वीकार करने” के उनके कर्तव्य की याद दिलाई.
यूनिफ़ॉर्म कोड ऑफ़ मिलिट्री जस्टिस के तहत, सेवा सदस्यों के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी के आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा करना अवैध है. लेकिन ऐसे आदेश तभी वैध होते हैं जब वे “संविधान, संयुक्त राज्य अमेरिका के कानूनों या वैध वरिष्ठ आदेशों के विपरीत” न हों. अमेरिकी कानून के तहत यह व्यापक रूप से समझा जाता है कि सैनिकों और सेवा सदस्यों का दायित्व है कि वे उन आदेशों को अस्वीकार कर दें जिन्हें वे अवैध समझते हैं.
डेमोक्रेट्स द्वारा जारी वीडियो में कहा गया है कि सेवा सदस्य आज ऐसी स्थिति का सामना कर रहे हैं. वीडियो में सीनेटर मार्क केली और एलिसा स्लोटकिन सहित कई कांग्रेस सदस्यों ने सैन्य और खुफिया कार्यकर्ताओं से अवैध मांगों के खिलाफ खड़े होने की अपील की.
हालांकि, कुछ रिपब्लिकन ने इस वीडियो को राजनीतिक आधार पर आदेशों की अवहेलना करने का आह्वान माना है. ट्रंप के होमलैंड सिक्योरिटी सलाहकार स्टीफन मिलर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि “डेमोक्रेट सांसद अब खुले तौर पर विद्रोह का आह्वान कर रहे हैं.”
डेमोक्रेट्स ने पलटवार करते हुए तर्क दिया कि वे केवल मौजूदा सैन्य कानून और अदालती मिसालों की ओर इशारा कर रहे थे. यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के सामने कारावास या मौत की संभावना जताई है. 2016 के अपने सफल राष्ट्रपति अभियान के दौरान, ट्रंप ने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन को जेल में डालने की संभावना को एक लोकप्रिय नारे में बदल दिया था. उनकी रैलियों में भीड़ “उसे बंद करो! उसे बंद करो!” के नारे लगाती थी. सत्ता में लौटने के बाद भी, आलोचकों का कहना है कि उन्होंने अपने कुछ खतरों को पूरा करने का प्रयास किया है, जिसमें उनके आलोचकों के खिलाफ आपराधिक मामले भी शामिल हैं.
ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध, जानें कैसे करेगा काम
बीबीसी के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया 10 दिसंबर से 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने जा रहा है. यह दुनिया में अपनी तरह की पहली नीति है, जिसके तहत सोशल मीडिया कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए “उचित कदम” उठाने होंगे कि 16 साल से कम उम्र के बच्चे उनके प्लेटफॉर्म पर अकाउंट न बना सकें और मौजूदा अकाउंट्स को निष्क्रिय या हटा दिया जाए.
सरकार का कहना है कि इस प्रतिबंध का उद्देश्य बच्चों को सोशल मीडिया पर “दबाव और जोखिम” से बचाना है. ये जोखिम उन “डिज़ाइन सुविधाओं” से आते हैं जो उन्हें स्क्रीन पर अधिक समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, और ऐसी सामग्री परोसती हैं जो उनके स्वास्थ्य और कल्याण को नुकसान पहुंचा सकती हैं. सरकार द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 10-15 साल की उम्र के 96% बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं और उनमें से 10 में से 7 हानिकारक सामग्री के संपर्क में आए थे. सरकार ने अब तक दस प्लेटफॉर्म्स को प्रतिबंध में शामिल किया है: फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, थ्रेड्स, टिकटॉक, एक्स, यूट्यूब, रेडिट और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म किक और ट्विच. व्हाट्सएप और यूट्यूब किड्स जैसे प्लेटफॉर्म को शामिल नहीं किया गया है.
नियमों का उल्लंघन करने पर बच्चों या माता-पिता को दंडित नहीं किया जाएगा. इसे लागू करने की ज़िम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की होगी, और गंभीर या बार-बार उल्लंघन करने पर उन्हें 49.5 मिलियन डॉलर (लगभग 32 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक का जुर्माना हो सकता है. कंपनियों को बच्चों को अपने प्लेटफॉर्म से दूर रखने के लिए “उचित कदम” उठाने होंगे और आयु सत्यापन तकनीकों का उपयोग करना होगा, जैसे कि सरकारी आईडी, चेहरे या आवाज़ की पहचान.
इस पर चिंताएं जताई गई हैं कि आयु सत्यापन तकनीकें कुछ योग्य उपयोगकर्ताओं को गलत तरीके से ब्लॉक कर सकती हैं, जबकि कम उम्र के अन्य लोगों को पहचानने में विफल हो सकती हैं. आलोचकों का यह भी तर्क है कि प्रतिबंध बच्चों के लिए ऑनलाइन नुकसान को वास्तव में कम नहीं करेगा क्योंकि डेटिंग वेबसाइट, गेमिंग प्लेटफॉर्म और एआई चैटबॉट इसमें शामिल नहीं हैं.
आलोचकों ने उपयोगकर्ताओं की उम्र सत्यापित करने के लिए आवश्यक डेटा के बड़े पैमाने पर संग्रह और भंडारण और इसके संभावित दुरुपयोग के बारे में भी चिंता जताई है. हालांकि, सरकार का कहना है कि कानून में व्यक्तिगत जानकारी के लिए “मजबूत सुरक्षा” शामिल है. सोशल मीडिया कंपनियों ने शुरू में इस घोषणा पर निराशा व्यक्त की, लेकिन अब वे इसका पालन करने के लिए तैयार हैं. मेटा, जो फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स का मालिक है, ने घोषणा की है कि वह 4 दिसंबर से किशोरों के अकाउंट बंद करना शुरू कर देगा.
यह दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रतिबंध है और अन्य देश इस पर करीब से नज़र रखेंगे. इस बीच, ऑस्ट्रेलिया में किशोरों ने कथित तौर पर प्रतिबंध से बचने के लिए नकली उम्र के साथ नए खाते खोलना या वीपीएन (VPN) का उपयोग करने की योजना बनाना शुरू कर दिया है.
स्टालिन ने कहा, ‘राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करने हेतु संविधान में संशोधन होने तक कोई आराम नहीं’
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने शुक्रवार को ज़ोर देकर कहा कि राज्यपालों द्वारा विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए समय सीमा तय करने हेतु संविधान में संशोधन होने तक “कोई आराम नहीं होगा.” राष्ट्रपति संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट की सलाहकार राय पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में, उन्होंने कहा, “राज्य के अधिकारों और सच्चे संघवाद के लिए हमारी लड़ाई जारी रहेगी.”
“पीटीआई” के अनुसार, एक बयान में, स्टालिन ने कहा कि राष्ट्रपति संदर्भ के जवाब में उच्चतम न्यायालय की राय का ‘स्टेट ऑफ तमिलनाडु बनाम गवर्नर ऑफ तमिलनाडु’ मामले में 8 अप्रैल, 2025 के फैसले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. वास्तव में, मुख्यमंत्री ने कहा कि सलाहकार राय देने वाली पीठ ने कई प्रमुख सिद्धांतों की पुष्टि की है. इसमें यह ज़ोर देकर कहा गया है कि चुनी हुई सरकार को नेतृत्व की भूमिका में होना चाहिए, और राज्य में दो कार्यकारी शक्ति केंद्र नहीं हो सकते.
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भी पुन: पुष्टि किए गए सिद्धांतों में से था कि संवैधानिक पदाधिकारियों को संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करना चाहिए – कभी भी इससे ऊपर नहीं, राज्यपाल के पास विधेयक को ‘खत्म’ करने या ‘पॉकेट वीटो’ (जैसा कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा किया गया था) का प्रयोग करने का कोई चौथा विकल्प नहीं है, और उनके पास विधेयक को “सीधे तौर पर रोकने” का भी कोई विकल्प नहीं है. शीर्ष अदालत ने यह भी फिर से पुष्टि की कि राज्यपाल विधेयकों पर कार्रवाई में अनिश्चित काल तक देरी नहीं कर सकते.
विधेयक पर विचार करने में राज्यपाल द्वारा लंबी, अस्पष्ट, और अनिश्चित देरी के मामलों में, राज्य संवैधानिक न्यायालयों का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं और राज्यपालों को उनकी जानबूझकर की गई निष्क्रियता के लिए जवाबदेह ठहरा सकते हैं.
अहमदाबाद सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज सोसाइटी बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (1974) 1 SCC 717 (पैरा 109) में नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा,“न्यायालय की सलाहकार राय का प्रभाव कानून अधिकारियों की राय से ज़्यादा नहीं होगा.”
20 नवंबर को दी गई उच्चतम न्यायालय की राय ने तमिलनाडु के राज्यपाल के ‘पॉकेट वीटो’ के सिद्धांत और इस दावे को फिर से खारिज कर दिया है कि विधेयकों को राजभवन द्वारा ‘मारा’ या ‘दफनाया’ जा सकता है. मुख्यमंत्री ने कहा, “अपनी कानूनी लड़ाई के माध्यम से, हमने अब तमिलनाडु के राज्यपाल सहित देश भर में चुनी हुई सरकार के विरोध में खड़े राज्यपालों को, चुनी हुई सरकार के अनुरूप काम करने और कानून के माध्यम से लोगों की इच्छा के जवाब में अपनी जानबूझकर की गई निष्क्रियता के लिए जवाबदेह होने के लिए मजबूर किया है.”
यूएससीआईआरएफ़ की रिपोर्ट
बीजेपी और आरएसएस के संबंध भारत में भेदभावपूर्ण कानूनों को बढ़ावा देते हैं
यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (यूएससीआईआरएफ़) ने अपनी नवीनतम अपडेट ब्रीफ़ में कहा है कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ भेदभाव को बढ़ावा देती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच संबंध “भेदभावपूर्ण” कानूनों को सक्षम बनाते हैं.
अमेरिकी कांग्रेस समर्थित इस द्विदलीय निकाय ने भारत पर एक विशेष अपडेट जारी किया, जिसमें दावा किया गया है कि “राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय कानूनों के कार्यान्वयन से देश भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगते हैं.“ केंद्र सरकार की ओर से इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि, इस साल मार्च में यूएससीआईआरएफ़ द्वारा 2025 की वार्षिक रिपोर्ट जारी करने के बाद, विदेश मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया था और दावा किया था कि अमेरिकी निकाय “पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित आकलन जारी करने के अपने पैटर्न को जारी रख रहा है.”
रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि “धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता (FoRB) के लिए कुछ संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के बावजूद, भारत की राजनीतिक व्यवस्था धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति भेदभाव के माहौल को सुगम बनाती है.” इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि बीजेपी और आरएसएस, जिसे यह एक “हिंदू राष्ट्रवादी समूह” के रूप में वर्णित करता है, के बीच “अंतर्संबंधित संबंध” ने “नागरिकता, धर्मांतरण विरोधी और गोहत्या कानूनों सहित कई भेदभावपूर्ण कानूनों के निर्माण और प्रवर्तन को जन्म दिया है.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 से, बीजेपी ने “सांप्रदायिक नीतियों को लागू किया है जो भारत को एक स्पष्ट हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित करना चाहती हैं, जो संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विपरीत है.” यूएससीआईआरएफ़ ने जोर देकर कहा कि इन कानूनों का प्रवर्तन “धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके धर्म या विश्वास का स्वतंत्र रूप से पालन करने की उनकी क्षमता को असंगत रूप से लक्षित और प्रभावित करता है.”
आयोग ने पाया कि “आरएसएस का प्राथमिक मिशन ‘हिंदू राष्ट्र’ का निर्माण करना है” और यह “इस धारणा को बढ़ावा देता है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, यहूदी, बौद्ध, पारसी और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल नहीं हैं.” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले सप्ताह एक अमेरिकी मीडिया आउटलेट ने बताया था कि आरएसएस ने संयुक्त राज्य अमेरिका में सत्ता के गलियारों में एक लॉबिंग अभियान शुरू किया है, जिसके लिए एक फर्म को 2025 की पहली तीन तिमाहियों के दौरान 330,000 डॉलर का भुगतान किया गया.
रिपोर्ट में उमर खालिद के मामले का भी हवाला दिया गया है, जिन्हें धार्मिक रूप से भेदभावपूर्ण नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का विरोध करने वाले शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का नेतृत्व करने के लिए 2020 से हिरासत में रखा गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की संघीय राजनीतिक व्यवस्था के कारण राज्य-प्रायोजित मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए सीमित जवाबदेही है.
अपनी 2025 की वार्षिक रिपोर्ट में, यूएससीआईआरएफ़ ने छठी बार सिफारिश की थी कि अमेरिकी विदेश विभाग भारत को व्यवस्थित, चल रहे और गंभीर धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए “विशेष चिंता का देश” (Country of Particular Concern) के रूप में नामित करे. विदेश विभाग ने अब तक इस सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं की है.
रुपया 93 पैसे गिरकर 89.61 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार (21 नवंबर, 2025) को भारतीय रुपये में तीन महीने से अधिक समय में सबसे बड़ी एक-दिवसीय गिरावट देखी गई. यह पहली बार 89 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया और अंततः 93 पैसे की गिरावट के साथ 89.61 (अनंतिम) पर बंद हुआ. घरेलू और वैश्विक इक्विटी बाजारों से मिले नकारात्मक संकेतों और व्यापार-संबंधी अनिश्चितताओं के कारण यह गिरावट आई.
विदेशी मुद्रा विश्लेषकों (Forex analysts) ने भारतीय मुद्रा में इस तेज गिरावट का कारण वैश्विक आईटी शेयरों में भारी बिकवाली, जोखिम से बचने की भावना (risk-off sentiment) और प्रस्तावित भारत-अमेरिका व्यापार सौदे पर स्पष्टता की कमी को बताया है.
इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में, रुपया 88.67 पर खुला और 89.65 के अपने अब तक के सबसे निचले इंट्रा-डे स्तर तक गिर गया, और सत्र के अंत में 89.61 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद के मुकाबले 93 पैसे की गिरावट है. गुरुवार (20 नवंबर, 2025) को रुपया 20 पैसे की गिरावट के साथ 88.68 प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ था. इससे पहले रुपये ने 30 सितंबर को 88.85 का सर्वकालिक इंट्रा-डे निचला स्तर दर्ज किया था.
कोटक सिक्योरिटीज के रिसर्च हेड अनिंद्य बनर्जी ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी और एआई-लिंक्ड टेक्नोलॉजी शेयरों में रात भर की तेज बिकवाली के बाद वैश्विक जोखिम से बचने की भावना करेंसी बाजारों में भी फैल गई है. उन्होंने कहा, “जोखिम वाले ट्रेडों की अचानक बिकवाली भारतीय रुपये सहित उभरते बाजारों की मुद्राओं पर दबाव डाल रही है. प्रस्तावित भारत-अमेरिका व्यापार सौदे को लेकर बनी अनिश्चितता से भी दबाव बढ़ रहा है.”
इस बीच, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने गुरुवार को कहा कि केंद्रीय बैंक रुपये के लिए किसी भी स्तर को लक्षित नहीं करता है, और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले घरेलू मुद्रा में हालिया गिरावट मुख्य रूप से अमेरिकी प्रशासन द्वारा टैरिफ लगाए जाने के बाद व्यापार अनिश्चितताओं के कारण है. उन्होंने विश्वास जताया कि भारत अमेरिका के साथ एक अनुकूल व्यापार सौदा हासिल करेगा, जिससे चालू खाते पर दबाव कम करने में मदद मिलेगी.
इस बीच, डॉलर इंडेक्स, जो छह मुद्राओं की एक टोकरी के मुकाबले ग्रीनबैक की ताकत को मापता है, 0.09% बढ़कर 100.17 पर था. वैश्विक तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 2.18% गिरकर 62.00 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था. घरेलू शेयर बाजार में, सेंसेक्स 400.76 अंक गिरकर 85,231.92 पर और निफ्टी 124.00 अंक गिरकर 26,068.15 पर बंद हुआ.
अमेरिका ने ईरानी पेट्रोलियम बिक्री में शामिल भारतीय संस्थाओं, व्यक्तियों पर लगाए प्रतिबंध
ट्रम्प प्रशासन ने ईरान के पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री में शामिल भारत की संस्थाओं और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. प्रशासन का कहना है कि इस व्यापार से प्राप्त धन तेहरान के क्षेत्रीय आतंकवादी छद्म समूहों का समर्थन करता है और हथियार प्रणालियों की खरीद करता है, जो अमेरिका के लिए “सीधा खतरा” हैं.
“द ट्रिब्यून” के अनुसार, जिन लोगों पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें भारतीय नागरिक ज़ायर हुसैन इक़बाल हुसैन सैयद, जुल्फिकार हुसैन रिज़वी सैयद, महाराष्ट्र स्थित आरएन शिप मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड और पुणे स्थित टीआर6 पेट्रो इंडिया एलएलपी शामिल हैं.
प्रशासन ने कहा कि विदेश विभाग ईरान के पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री में शामिल कई देशों, जिनमें भारत, पनामा, और सेशेल्स शामिल हैं, में 17 संस्थाओं, व्यक्तियों और जहाजों को नामित कर रहा है.
इसके साथ ही, वित्त विभाग 41 संस्थाओं, व्यक्तियों, जहाजों और विमानों को नामित कर रहा है, जिससे ईरान के पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल निर्यात के खिलाफ उसके प्रयास तेज़ हो गए हैं और ईरान की दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों का समर्थन करने वाले वित्तीय प्रवाह और वाणिज्यिक संचालकों को बाधित किया जा रहा है.
अमेरिकी प्रशासन ने कहा कि टीआर6 पेट्रो भारत स्थित पेट्रोलियम उत्पाद व्यापारी है, जिसने अक्टूबर 2024 और जून 2025 के बीच कई कंपनियों से 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य का ईरानी मूल का बिटुमेन आयात किया था. इसे ईरान से पेट्रोलियम या पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद, अधिग्रहण, बिक्री, परिवहन, या विपणन के लिए जानबूझकर एक महत्वपूर्ण लेनदेन में शामिल होने के लिए नामित किया जा रहा है.
विदेश विभाग ने कहा कि ईरानी शासन अपनी अस्थिरता फैलाने वाली गतिविधियों को वित्त पोषित करने के लिए मध्य पूर्व में संघर्ष को बढ़ावा देना जारी रखे हुए है. यह व्यवहार ईरान को अपने परमाणु विस्तार को वित्त पोषित करने, आतंकवादी समूहों का समर्थन करने और वैश्विक समृद्धि तथा आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण जलमार्गों में व्यापार प्रवाह और नौवहन की स्वतंत्रता को बाधित करने में सक्षम बनाता है. प्रशासन ने कहा कि अमेरिका ईरानी कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन में शामिल समुद्री सेवा प्रदाताओं, डार्क फ्लीट ऑपरेटरों और पेट्रोलियम उत्पाद व्यापारियों के नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई जारी रखेगा.
हरकारा डीप डाइव | मोदी का रामनाथ गोयनका भाषण
श्रवण गर्ग : इंडियन एक्सप्रेस का ‘जर्नलिज़्म ऑफ करेज’ सत्ता की मालगाड़ी हो गया?
इंडियन एक्सप्रेस के रामनाथ गोयनका लेक्चर में प्रधानमंत्री की मौजूदगी ने पत्रकारिता जगत में तीख़ी बहस छेड़ दी है. वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग का कहना है कि यह घटना सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारतीय मीडिया की बदलती दिशा का बड़ा संकेत है. वे हरकारा डीपडाइव में पत्रकारिता के संकट पर निधीश त्यागी से बात कर रहे थे. श्रवण गर्ग याद दिलाते हैं कि इंडियन एक्सप्रेस को हमेशा “जर्नलिज़्म ऑफ करेज” यानी साहस की पत्रकारिता के प्रतीक के रूप में देखा गया था. इमरजेंसी के समय रामनाथ गोयनका ने सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष किया था और कई पत्रकारों ने प्रेस की आज़ादी के लिए जोखिम उठाए थे.
उन्होंने बताया कि पहले उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि इंडियन एक्सप्रेस ऐसा करेगा. बाद में उन्हें लगा कि या तो अख़बार किसी दबाव में है या फिर किसी वजह से उसने खुद यह फैसला लिया है. श्रवण गर्ग कहते हैं कि यह घटना बताती है कि उत्तर भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता जिस तरह सिकुड़ रही है, वह बेहद चिंताजनक है. उन्होंने याद किया कि 1970 के दशक में इंडियन एक्सप्रेस में कुलदीप नायर, अरुण शौरी, अजीत भट्टाचार्य, एस. मुलगाँकर और अबू अब्राहम जैसे नाम काम करते थे, जो सत्ता के ख़िलाफ़ खड़े होने के लिए जाने जाते थे. लेकिन आज वही संस्थान ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां सत्ता पक्ष के लिए मंच तैयार किया जाता दिख रहा है. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि जब राहुल गांधी ने महाराष्ट्र की चुनावी “मैच फिक्सिंग” पर इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखा था, तो अगले ही दिन अखबार के दो संवाददाताओं ने उस लेख का पोस्टमार्टम प्रकाशित किया और उसके बिंदुओं पर सवाल उठाए. यही नहीं, उसके साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का लेख भी छापा गया, जिसमें राहुल गांधी के दावों का विरोध किया गया था. श्रवण गर्ग इसे प्रेस की आज़ादी पर गंभीर सवाल बताते हैं.
श्रवण गर्ग ने कहा कि उत्तर भारत में कोई बड़ा अख़बार ऐसा नहीं बचा है जो वास्तव में “जर्नलिज़्म ऑफ करेज” कर रहा हो. उन्होंने स्वीकार किया कि दक्षिण भारत में द हिंदू, डेक्कन हेराल्ड, डेक्कन क्रॉनिकल जैसे अख़बार अभी भी स्वतंत्रता और संतुलन बनाए हुए हैं, लेकिन उत्तर भारत में अख़बार और टीवी चैनल दिन-रात सत्ता के पक्ष में माहौल बनाते हैं. उन्होंने कहा कि पिछले 11 सालों में प्रेस की स्वतंत्रता, आरटीआई व्यवस्था और सरकारी पारदर्शिता पर लगातार दबाव बढ़ा है. कई डिजिटल मीडिया संस्थानों पर छापे और मामले दर्ज हुए हैं. उनका कहना है कि जब मीडिया ही निष्पक्ष न रहे, तो लोकतंत्र की दिशा और जनमत दोनों भटक जाते हैं. श्रवण गर्ग ने यह भी चिंता जताई कि पत्रकारिता सीखने और मीडिया स्कूलों में पढ़ने वाले युवा अब वही देख और समझ रहे हैं जो सत्ता के अनुकूल दिखाया जा रहा है. उन्हें डर है कि इसका असर आने वाली पत्रकार पीढ़ी और लोकतंत्र दोनों पर पड़ेगा.
महाराष्ट्र में छात्र ने आत्मा हत्या की, पिता का आरोप- ट्रेन में हिंदी बोलने पर पीटा गया
महाराष्ट्र के कल्याण में 19 साल के एक कॉलेज छात्र ने आत्महत्या कर ली. मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ उसके पिता का आरोप है कि बेटे के साथ लोकल ट्रेन में सिर्फ इसलिए मारपीट की गई क्योंकि वह मराठी की जगह हिंदी बोल रहा था. कोलसेवाड़ी पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज किया है और छात्र के पिता जितेंद्र खैरे का बयान दर्ज कर लिया है.
पुलिस के मुताबिक़ , अरनव खैरे मुलुंड के एक कॉलेज में बीएससी फर्स्ट ईयर का छात्र था और 18 नवंबर को भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेन से कॉलेज जा रहा था. धक्का लगने पर उसने हिंदी में कहा, “धक्का मत दो, तुम बहुत ज़्यादा भार दे रहे हो. यह बात सुनकर कुछ सहयात्रियों ने उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया और कहा कि उसे मराठी बोलनी चाहिए. पिता के मुताबिक़, अरनव ने बताया कि वह खुद मराठी है, लेकिन 4–5 लोगों ने उस पर सवाल उठाते हुए मारपीट शुरू कर दी.
अरनव घर लौटा तो सदमे में था और उसी शाम उसने आत्महत्या कर ली. पुलिस ने उसका फोन क़ब्ज़े में लेकर मैसेज की जांच शुरू कर दी है.वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वे रेलवे पुलिस के साथ मिलकर सीसीटीवी फुटेज देख रहे हैं ताकि आरोपियों की पहचान हो सके. डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस अतुल ज़ेंडे ने कहा कि जांच शुरुआती चरण में है और पिता की बातों की अभी पुष्टि नहीं हुई है. अगर यह साबित हुआ कि भाषा को लेकर हमला हुआ था, तो सख़्त कार्रवाई की जाएगी.
कफ़ सिरप से बच्चों की मौत के पीछे क्या वजह? रसायनों की सप्लाई में बड़ी लापरवाही का शक
हाल के महीनों में कम से कम 24 बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य अधिकारी यह जांच कर रहे हैं कि कहीं खांसी की दवाई में इस्तेमाल होने वाली दवा-निर्माण सामग्री में हुई गड़बड़ी इसकी वजह तो नहीं. तमिलनाडु के स्वास्थ्य और दवा सुरक्षा अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि कोल्ड्रिफ नाम की खांसी की सिरप बनाने में जिस सॉल्वेंट का इस्तेमाल हुआ था.
रॉयटर्स के मुताबिक, जांच अधिकारियों का शक है कि कोल्ड्रिफ नाम की खांसी की सिरप बनाने में इस्तेमाल हुए प्रोपाइलीन ग्लाइकोल सॉल्वेंट में ज़हरीला केमिकल मिल गया था. यह दवाई स्रेसन फ़ार्मास्यूटिकल (Sresan Pharmaceutical Manufacturer) नाम की कंपनी ने बनाई थी. जांच में सामने आया है कि स्रेसन ने यह रसायन 25 मार्च को सनराइज़ बायोटेक नाम के स्थानीय डिस्ट्रीब्यूटर से ख़रीदा था, जिसने यह सॉल्वेंट उसी दिन जिंकुशल अरोमा नाम की एक छोटी केमिकल कंपनी से लिया था. अधिकारियों ने बताया कि बाद में इस सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकोल नाम का बेहद ख़तरनाक औद्योगिक केमिकल पाया गया, जो बच्चों की किडनी फेल होने और मौत का कारण बन सकता है.
रॉयटर्स की जांच में यह भी सामने आया कि प्रोपाइलीन ग्लाइकोल को लेकर गंभीर सुरक्षा नियमों का पालन नहीं हुआ. सामान्य तौर पर यह रसायन सील्ड कंटेनरों में दिया जाता है, ताकि उसमें कोई गंदा या हानिकारक पदार्थ न मिल सके. लेकिन सनराइज़ बायोटेक ने माना है कि उसने यह केमिकल बिना सील वाले छोटे कंटेनरों में स्रेसन को भेजा. ख़ास बात यह है कि न तो जिंकुशल अरोमा और न ही सनराइज़ बायोटेक के पास ऐसे औषधीय सामग्री को बेचने का लाइसेंस था, फिर भी दोनों ने प्रोपाइलीन ग्लाइकोल की सप्लाई की. जांच रिपोर्ट में स्रेसन की फैक्ट्री में भारी गड़बड़ियां मिलीं, जैसे ग़ैर स्वच्छ जगहों पर दवाइयों का स्टोर होना, रिकॉर्ड में हेराफेरी, और ऐसी सैकड़ों बड़ी” व “गंभीर कमियां. हालांकि रिपोर्ट ने इन कमियों को सीधे बच्चों की मौत से नहीं जोड़ा. कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है और इसके संस्थापक जी. रंगनाथन को गिरफ्तार किया गया है.
तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट ने अपनी जांच पर टिप्पणी के लिए बार-बार किए गए सवालों का जवाब नहीं दिया. अधिकारियों का कहना है कि कोल्डरिफ कफ सिरप में बड़ी मात्रा में डाईएथिलीन ग्लाइकोल मिला था, जो एक ज़हरीला इंडस्ट्रियल केमिकल है. अब जांच यह पता लगाने पर है कि यह ज़ेहरीला पदार्थ PG में कैसे मिला, जबकि प्रोपाइलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल कफ सिरप में दवा की सामग्री घोलने के लिए किया जाता है.
स्रेसन पर पहले भी कार्रवाई हो चुकी है. चार अधिकारियों के मुताबिक़ 2020 और 2022 में उसके उत्पादों को लेकर चिंता के कारण उसके संस्थापक को एक-एक दिन जेल हुई थी और बाद में जुर्माना लगाया गया था. हाल में तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री ने विधानसभा में बताया था कि कंपनी को 2021 और 2023 में “छोटे उल्लंघनों” के लिए दंडित किया गया था. दो स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि नियमों के अनुसार हर साल निरीक्षण ज़रूरी है, लेकिन कंपनी की फैक्ट्री की 2023 के बाद से कोई जांच नहीं हुई थी. रॉयटर्स यह स्वतंत्र रूप से नहीं पता लगा सका कि मौतों से पहले आखिरी निरीक्षण कब हुआ था. सितंबर से शुरू हुई इन बच्चों की मौतों ने भारत की 50 बिलियन डॉलर की दवा उद्योग की सुरक्षा पर फिर सवाल खड़े किए हैं. इससे पहले 2022 और 2023 में अफ्रीका और सेंट्रल एशिया में 140 से अधिक बच्चों की मौत भारत में बनी ज़हरीली कफ सिरप से हुई थी. उन घटनाओं के बाद भारत सरकार ने गुणवत्ता नियंत्रण सख़्त करने का वादा किया था. अब ताज़ा मौतों ने फिर दवाइयों में होने वाली मिलावट और ढीली निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
कनाडा में नेता सोशल मीडिया पर मतदाताओं को ब्लॉक कर रहे हैं, क्या यह लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है?
पूरी दुनिया की तरह कनाडा में भी राजनेता सोशल मीडिया का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. वे चुनाव प्रचार, नीतियों की जानकारी, आपातकालीन अपडेट और जनता से संवाद, सब कुछ इन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये करते हैं.लेकिन विक्टोरिया मैकआर्थर की द कन्वर्सेशन में छपी रिपोर्ट के अनुसार, लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिनमें नेता अपने ही मतदाताओं को सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर रहे हैं. कई नागरिकों का आरोप है कि सिर्फ़ सरकारी नीतियों की आलोचना भर से उन्हें ब्लॉक कर दिया जाता है. वहीं कुछ नेता दावा करते हैं कि उन्हें ऑनलाइन उत्पीड़न, बदसलूकी और धमकियों से बचने के लिए यह करना पड़ता है.
कनाडा में हाल के वर्षों में कई हाई-प्रोफ़ाइल मामले सामने आए हैं. 2023 में पर्यावरण मंत्री स्टीवन गिलबो से X (पहले ट्विटर) पर पत्रकार एज़रा लेवांट को अनब्लॉक करने की मांग उठी थी. उसी साल अल्बर्टा की प्रीमियर डैनियल स्मिथ ने भी कई नागरिकों को ब्लॉक किया. 2024 में मॉन्ट्रियल की मेयर वैलेरी प्लांट ने X और इंस्टाग्राम पर कमेंट्स ब्लॉक कर दिए थे और 2018 में ओटावा के मेयर जिम वॉटसन पर तीन एक्टिविस्टों ने मुक़दमा किया था, क्योंकि उन्होंने उन्हें ब्लॉक कर दिया था.
रिसर्च बताती है कि कनाडा में नेताओं को सोशल मीडिया पर हद से ज़्यादा बदतमीज़ी और धमकियों का सामना करना पड़ता है. फ़र्ज़ी अकाउंट और एआई बॉट्स राजनीतिक बहस को और ज़हरीला बना रहे हैं और सार्वजनिक राय को प्रभावित कर रहे हैं. हाल ही में कनाडा की राष्ट्रीय पुलिस RCMP को सांसद क्रिस ड’एंट्रेमोंट के ख़िलाफ़ आयी ऑनलाइन धमकियों की जांच शुरू करनी पड़ी.
लेकिन इससे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी चुने हुए नेता को अपने ही मतदाताओं को ब्लॉक करने का अधिकार होना चाहिए? और क्या इससे कनाडाई चार्टर ऑफ़ राइट्स एंड फ्रीडम्स के उस सिद्धांत का उल्लंघन होता है, जो नागरिकों को सरकार से संबंधित जानकारी पाने और उस पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार देता है? अदालत पहले भी इस दिशा में संकेत दे चुकी है, जब गिलबो को लेवांट को अनब्लॉक करना पड़ा था, क्योंकि माना गया कि वे अपने X अकाउंट का इस्तेमाल आधिकारिक जानकारी साझा करने के लिए कर रहे थे.
ओंटारियो में ‘इंटीग्रिटी कमिश्नर’ ने भी यह निर्देश दिया है कि सांसद अपने सोशल मीडिया अकाउंट का उपयोग किस तरह करें, लेकिन यह दिशा-निर्देश मुख्य रूप से चुनावी नियमों और पार्टी-संबंधी सामग्री पर केंद्रित हैं. दूसरी ओर, कनाडाई सिविल लिबर्टीज एसोसिएशन कहती है कि नेताओं को आलोचनात्मक आवाज़ों को चुप कराने का प्रलोभन अधिक होता है, ताकि वे सोशल मीडिया पर अपनी छवि नियंत्रित कर सकें.
समस्या यह है कि सोशल मीडिया कंपनियाँ ऑनलाइन उत्पीड़न को रोकने में लगातार विफल रही हैं. ऐसे में नेता और उनका स्टाफ ही ट्रोल्स और धमकियों से निपटते हैं. लेकिन फिर सवाल उठता है कि आम नागरिक, जो सिर्फ़ नेता के फ़ैसलों की आलोचना करना चाहता है, वह अपनी बात कहाँ कहे? जब सोशल मीडिया पारदर्शिता और संवाद का बड़ा मंच बन चुका है, तो क्या वहां से मतदाताओं को हटाना लोकतांत्रिक बहस को खत्म करना नहीं है?
कनाडा में इस मुद्दे पर अभी स्पष्ट क़ानून नहीं है. लेवांट और गिलबो के मामले में फैसला एक समझौता था, न कि कोई आधिकारिक न्यायिक मिसाल. ओटावा के मेयर जिम वॉटसन को भी तब अनब्लॉक करना पड़ा जब यह माना गया कि उनका ट्विटर अकाउंट आधिकारिक कर्तव्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था.
जैसे-जैसे राजनीति सोशल मीडिया से और गहराई से जुड़ती जा रही है, कनाडा में यह विवाद भी बढ़ रहा है कि नेताओं और नागरिकों के बीच डिजिटल संवाद का दायरा कौन तय करेगा. फिलहाल, यह सवाल अभी भी खुला है कि नेता सोशल मीडिया पर कितनी सुरक्षा चाहते हैं और नागरिक कितनी आज़ादी चाहते हैं, और दोनों के बीच सही संतुलन आखिर कैसे बनेगा.
लाल क़िला धमाका: घायल मरीज़ की ‘फ़र्ज़ी पट्टी’ वाला दावा झूठा निकला
दिल्ली लाल क़िला विस्फ़ोट के कुछ दिन बाद आम आदमी पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष सौरभ भरद्वाज ने कुछ तस्वीरें साँझा की थी, जिसमे दवा किया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की एक मरीज़ के साथ ली गयी तस्वीर फ़र्ज़ी है और मरीज़ की चोटें बनावटी है. ऑल्ट न्यूज़ ने इस तस्वीर के पीछे की असलियत सामने लायी है और अपनी जाँच में पाया कि सौरभ भरद्वाज का यह दवा ग़लत है.
10 नवंबर की शाम को दिल्ली में लाल क़िले के पास कार में विस्फ़ोट होने के बाद घायलों को लोक नायक जय प्रकाश (एलऐनजीपी ) अस्पताल ले जाया गया, जहां बाद में कई राजनीतिक हस्तियों ने वहां का दौरा किया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विस्फ़ोट स्थल का दौरा किया और मरीज़ों से मुलाक़ात की. जिसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और 12 नवंबर को प्रधानमंत्री भी भूटान से लौटने के बाद अस्पताल जाकर ज़ख़्मियों से मुलाक़ात की.
इस मुलाक़ात के बाद सौरभ भारद्वाज ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ ली गयी एक मरीज़ की तस्वीर को शेयर करते हुए कहाकि हर तस्वीर में मरीज़ के पास नए कपड़े और नया प्लास्टर लगा हुआ है. ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी जांच में पाया की उस मरीज़ का नाम मोहम्मद शाहनवाज़ है और उनसे बात की.
शाहनवाज़ ने बताया की यह वायरल हो रही तस्वीर उनकी ही है और वो एक कैब ड्राइवर हैं, और हादसे वाले दिन वो भी लाल क़िला के पास मजूद थे. उन्होंने बताया की विस्फोट इतना ज़्यादा ख़तरनाक था कि वह अपनी कार से 7 फीट दूर जा गिरे. शाहनवाज़ ने ज़िक्र किया कि जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था तब जिंदा बचे लोगों की संख्या अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों से ज़्यादा थी. डॉक्टर एक एक करके जांच कर रहे थे इसीलिए इलाज में समय लगा.
उन्होंने अपने साथ हुए इलाज का भी ज़िक्र किया. “मेरे बाएं पैर पर पट्टी बंधी हुई थी, और मेरे बाएं हाथ में जले हुए छाले हो गए थे, इसलिए डॉक्टरों ने मरहम लगाया. लेकिन बाद में मेरे पैर से अभी भी खून बह रहा था, इसलिए चोट का आकलन करने के लिए पट्टी हटा दी गई.
शाहनवाज़ ने बताया कि अमित शाह ज़ख़्मियों से सबसे पहले मिलने आये. फिर उसी रात रेखा गुप्ता हमसे मिलने आयीं. इसके बाद मेरे हाथ पर पट्टी बांधी गई.
उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका एक्स-रे हुआ, जिसके बाद उन्हें बेड नंबर 3 पर ट्रांसफ़र कर दिया गया. हमारे अस्पताल के कपड़े रोजाना बदले जाते हैं.” शाहनवाज़ ने इन आरोपों से साफ तौर पर इनकार किया कि उनकी पट्टियां कोई प्रचार स्टंट का हिस्सा नहीं हैं.
तमिलनाडु का मिस्र कनेक्शन: प्राचीन व्यापार के सबूत खोजने मिस्र पहुँचे तमिलनाडु के पुरातत्वविद
तमिलनाडु के दो पुरातत्वविदों ने मिस्र के बेरेनिके शहर में शुरू हुई खुदाई में हिस्सा लिया है, जहाँ पहले तमिल-ब्राह्मी लिखावट वाले मृदभांड मिले थे. इन खोजों से प्राचीन तमिलों और रोमनों के बीच समुद्री व्यापार संबंधों के मजबूत सबूत मिले थे.
तमिलनाडु स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी (TNSDA) के संयुक्त निदेशक आर. शिवानंथम और कीलाड़ी उत्खनन टीम के सदस्य एम. रमेश, पोलैंड और अन्य देशों के 30 विशेषज्ञों की टीम के साथ इस खुदाई में शामिल हुए हैं.
द हिंदू से बात करते हुए शिवानंथम ने बताया कि बेरेनिके, लाल सागर तट का एक महत्वपूर्ण प्राचीन बंदरगाह था. इस खुदाई का उद्देश्य तमिलों और भूमध्यसागरीय देशों के बीच प्राचीन व्यापार संबंधों के और प्रमाण खोजना है.
1995 में बेरेनिके में तमिल-ब्राह्मी लिखावट ‘कोर्रपुमन’ वाला मृदभांड मिला था. वहीं कुसेर अल-क़दीम से ‘कनन’ और ‘सटन’ जैसे शिलालेख मिले थे. नई खुदाई 17 नवंबर से शुरू हुई है और 17 दिसंबर तक जारी रहेगी.
चलते चलते
हड़प्पा सभ्यता के लोग क्या खाते थे?
“इंडियन हिस्ट्री: थाली बाई थाली” नामक यूट्यूब कार्यक्रम की एक कड़ी में, पुरातत्वविद् डॉ. जया मेनन और डॉ. सुप्रिया वर्मा ने हड़प्पा सभ्यता के लोगों के खान-पान और जीवन शैली पर प्रकाश डाला. उनके दशकों के शोध से पता चलता है कि लगभग साढ़े चार हज़ार साल पहले सिंध घाटी सभ्यता के लोग क्या खाते थे. पहले यह माना जाता था कि ज्वार, बाजरा और रागी जैसे बाजरा केवल उत्तर-हड़प्पा काल के लोग खाते थे. लेकिन हाल के शोध से पता चलता है कि हड़प्पा काल के लोग भी बाजरा का सेवन करते थे. पुरातत्वविदों को जले हुए बीज घरों के अंदर, विशेषकर खाना पकाने वाले क्षेत्रों और चूल्हों के पास मिले हैं. बीजों का पता लगाने के लिए “फ्लोटेशन” नामक तकनीक का भी उपयोग किया जाता है, जिसमें मिट्टी के नमूनों को पानी में घोला जाता है, जिससे हल्के पौधे के अवशेष ऊपर तैरने लगते हैं. शोध से पता चलता है कि हड़प्पावासी लहसुन, अदरक, सेम, मटर, विभिन्न प्रकार की दालें जैसे मूंग दाल, कुल्थी और चना खाते थे. फलों में केला, अंगूर, आम, गन्ना, खजूर, बेर और अखरोट के सबूत मिले हैं. मसालों में हल्दी, मेथी, खसखस और पोस्ता दाना का उपयोग होता था. तिल और सरसों का उपयोग स्वाद और तेल दोनों के लिए किया जाता था. आलू, टमाटर और मिर्च जैसी चीज़ें बाद में आईं, इसलिए वे हड़प्पा के व्यंजनों का हिस्सा नहीं थे. मांस के सेवन के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं. जानवरों की हड्डियों पर कट के निशान बताते हैं कि मांस का सेवन किया जाता था. इनमें मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी और सुअर शामिल हैं. जंगली जानवरों की हड्डियां भी मिली हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि या तो वे खुद शिकार करते थे या समकालीन शिकारी-संग्राहक समाजों के साथ अनाज के बदले मांस का व्यापार करते थे.
मछली की हड्डियां बताती हैं कि समुद्री और नदी दोनों तरह की मछलियां खाई जाती थीं. दिलचस्प बात यह है कि हड़प्पा जैसे अंतर्देशीय स्थल पर समुद्री मछली के अवशेष मिले हैं, जो समुद्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर है. यह सवाल उठता है कि बिना रेफ्रिजरेशन के वे समुद्री मछली को इतनी दूर तक कैसे ले जाते थे? लोगों का आहार इस बात पर निर्भर करता था कि वे कहाँ रहते हैं. उदाहरण के लिए, गुजरात के गोला धोरो में, किलेबंद क्षेत्र के अंदर रहने वाले लोग मटन, सूअर का मांस और मछली खाते थे, जबकि बाहर रहने वाले लोग बीफ़ और केकड़ा पसंद करते थे. यह विभिन्न समुदायों की भोजन वरीयताओं का संकेत हो सकता है. समाज में स्तरीकरण के भी प्रमाण मिलते हैं. जल निकासी प्रणालियों से पता चलता है कि कुछ घर दूसरों से बेहतर थे, और नालियों की सफाई कौन करता था, यह भी सामाजिक विभाजन का संकेत देता है. कब्रिस्तान में मिले कंकालों से कुपोषण के सबूत भी मिले हैं, जिससे पता चलता है कि सभी को हर तरह का भोजन उपलब्ध नहीं था. मिट्टी के बर्तन आज की थाली, कटोरी और हांडी जैसे दिखते थे. धातु के बर्तन बहुत दुर्लभ थे, क्योंकि तांबा और टिन जैसे धातु हड़प्पा क्षेत्र में उपलब्ध नहीं थे और उन्हें बाहर से लाना पड़ता था. अंत में, हम जानते हैं कि हड़प्पावासी क्या उगाते और शिकार करते थे, लेकिन हम यह नहीं जानते कि वे इसे कैसे पकाते थे. हम उनके स्थानीय और मौसमी भोजन के बारे में जानते हैं, लेकिन इसका स्वाद कैसा था, यह नहीं जानते. अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है, और शायद इतिहास का असली स्वाद यही है कि हम अभी भी और जानने के लिए उत्सुक हैं.
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