22/04/2025 | हाल का सबसे प्रगतिशील पोप, शानदार इंसान | लड्डू के नोटिस ग्वालियर पंहुचे | चुनाव आयोग पर अमेरिका में सवाल | सौ बरस आरएसएस के | ट्रम्प पर चीनी पलटवार जारी | अहमदाबाद के चर्च पर हमला
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
“क्या हमारा आदेश, विधायी-कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं होगा?”
सुअर के साथ कुश्ती नहीं करनी चाहिए, कुरैशी का निशिकांत को जवाब
राहुल ने अमेरिका जाकर भारतीय चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए
झारखंड मुठभेड़ में आठ माओवादी मारे गए
तिरुपति मंदिर में ‘एनीमल फैट’ वाले लड्डू को लेकर ग्वालियर के व्यापारी को नोटिस
वक़्फ़ को गलत तरीके से पेश कर रही है भाजपा
परमाणु साझेदारियों में शर्तें ढीली करने की कवायद
हाल का सबसे प्रगतिशील पोप, शानदार इंसान
अहमदाबाद में ईस्टर कार्यक्रम में बजरंग दल, वीएचपी कार्यकर्ताओं ने मचाया उत्पात
हनुमान जयंती पर हिंसा, बीजेपी नेता पर मामला दर्ज करने वाले एसपी का ट्रांसफर
'सब याद रखा जाएगा' लिखने वाले आमिर अज़ीज़ को भूल गईं अनीता दुबे
सम्भल में लगे 'फ्री फिलीस्तीन' के पोस्टर
क्रिस्टोफ जेफरलो : आरएसएस के सौ बरस और उसकी सीमित बढ़त
एक तरफ चीन ने बोइंग जेट अमेरिका लौटाए, दूसरी तरफ स्टील्थ फाइटर जहाजों का परीक्षण
ऋग्वेद के देवता सीरिया की प्राचीन धरती पर
“क्या हमारा आदेश, विधायी-कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं होगा?”
“वैसे भी, हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में दखलंदाजी का आरोप लगाया जा रहा है: सुप्रीम कोर्ट” सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सोमवार को यह सवाल उठाया कि क्या केंद्र सरकार को आपातकालीन शक्तियां लागू करने और पश्चिम बंगाल को हिंसा से "सुरक्षित" करने का निर्देश देना न्यायिक हस्तक्षेप होगा, जो कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में आएगा? न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, जिन्हें भारत का अगला मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किए जाने की सिफारिश की गई है, ने अप्रत्यक्ष रूप से तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में 8 अप्रैल के फैसले के बाद न्यायपालिका पर सरकार और संसदीय क्षेत्रों में दखल देने की आलोचना का उल्लेख किया.
न्यायमूर्ति गवई ने वकील विष्णु शंकर जैन से कहा, आप चाहते हैं कि हम केंद्र सरकार को आदेश जारी करें ताकि वह अर्धसैनिक बलों की तैनाती करे... क्या यह विधायी और कार्यपालिका के क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं होगा? वैसे भी, हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने के आरोप लगाए जा रहे हैं.” यह टिप्पणी उस पृष्ठभूमि में आई है, जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की व्यापक शक्तियों की आलोचना की है और इसे 'सुपर संसद' और 'न्यूक्लियर मिसाइल' की संज्ञा दी है.
कभी सुअर के साथ कुश्ती नहीं करनी चाहिए, कुरैशी का निशिकांत को जवाब
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा "मुस्लिम कमिश्नर" कहे जाने पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाय कुरैशी ने सोमवार को कहा कि वे उस भारत के विचार में विश्वास करते हैं, जहां किसी व्यक्ति को उसकी धार्मिक पहचान से नहीं बल्कि उसके योगदान से परिभाषित किया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि "कुछ लोगों के लिए धार्मिक पहचान उनकी नफरत भरी राजनीति को आगे बढ़ाने का आधार है.” कुरैशी ने यह भी जोर देकर कहा कि भारत, अपने संवैधानिक संस्थानों और सिद्धांतों के लिए हमेशा से खड़ा रहा है, आज भी खड़ा है और आगे भी खड़ा रहेगा और लड़ेगा.
हालांकि, कुरैशी ने बिना किसी संदर्भ के “एक्स” पर यह भी पोस्ट किया था कि- “मैंने बहुत पहले सीख लिया था कि कभी सुअर के साथ कुश्ती नहीं करनी चाहिए. तुम गंदे हो जाते हो, और इसके अलावा, सुअर को यह पसंद है' -- जॉर्ज बर्नार्ड शॉ. महान लेखक का बहुत ही विवेकी उद्धरण!" इस बीच, दिल्ली प्रशासनिक अधिकारियों के अकादमिक मंच के मानद अध्यक्ष आईएएस के. महेश ने कुरैशी का समर्थन करते हुए कहा कि वह चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त दोनों के रूप में एक "अद्भुत व्यक्ति" हैं. इस बीच कई राजनीतिक दलों ने भी निशिकांत दुबे के बयान की मज़म्मत की है. लेकिन, खास बात यह है कि इनमें नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जद (यू) भी शामिल है. जद (यू) प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि कुरैशी के बारे में धार्मिक टिप्पणी करना कतई उचित नहीं है.
राहुल ने अमेरिका जाकर भारतीय चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान भी चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं. राहुल गांधी ने बोस्टन में एक कार्यक्रम में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों का उदाहरण दिया. आरोप लगाया कि चुनाव आयोग "मिला हुआ" है और "सिस्टम में कुछ गड़बड़ है." सरल शब्दों में, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में जितने लोगों ने मतदान किया, वे राज्य के मौजूदा वयस्क मतदाताओं की संख्या से अधिक थे. उन्होंने बताया कि शाम 5:30 बजे चुनाव आयोग ने मतदान का जो आंकड़ा दिया था, उसके बाद दो घंटे में 7:30 बजे तक 65 लाख मतदाता मतदान कर चुके थे, जो भौतिक रूप से असंभव है. क्योंकि एक मतदाता को मतदान में लगभग 3 मिनट लगते हैं. उन्होंने कहा कि अगर गणना करें तो मतदान केंद्रों पर रात 2 बजे तक कतारें होतीं, जो नहीं रहीं. जब मतदान की वीडियो रिकॉर्डिंग मांगी तो इसे नकार दिया गया और कानून भी बदल दिया गया ताकि अब वीडियो रिकॉर्डिंग मांगी न जा सके. इस बीच, चुनाव आयोग के बजाय भाजपा ने राहुल गांधी के आरोपों का जवाब दिया. पार्टी के प्रवक्ता और सांसद संबित पात्रा ने कहा कि विपक्ष के नेता ने विदेशी धरती पर भारतीय संस्थानों और लोकतंत्र का अपमान कर "देशद्रोही" होने का परिचय दिया है. पात्रा ने नेशनल हेराल्ड मामले में करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार के आरोपों का भी हवाला देते हुए कहा कि राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी जेल जाएंगे.
झारखंड मुठभेड़ में आठ माओवादी मारे गए : झारखंड के बोकारो जिले में सोमवार 21 अप्रैल को सीआरपीएफ और पुलिस के कोबरा कमांडो के साथ मुठभेड़ में आठ माओवादी मारे गए. इनमें एक शीर्ष माओवादी केंद्रीय समिति का सदस्य भी शामिल है. इस पर ₹1 करोड़ का इनाम था. अधिकारी ने बताया कि जिले के लालपनिया इलाके के लुगु हिल्स में सुबह करीब 5.30 बजे गोलीबारी शुरू हुई.

तिरुपति की लड्डू ट्रेल ग्वालियर पंहुची
आंध्रप्रदेश के प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के 'लड्डू प्रसाद' में मिलावटी घी के आरोपों की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मध्यप्रदेश के ग्वालियर के एक व्यापारी को नोटिस जारी किया है. सीबीआई ने नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तिरुपति लड्डू बनाने में पशुओं की चर्बी के उपयोग के आरोपों की जांच के लिए कमेटी गठित की थी. पांच सदस्यीय इस एसआईटी में सीबीआई, आंध्रप्रदेश पुलिस और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) के प्रतिनिधि शामिल हैं. फरवरी में इस मामले में घी के चार सप्लायरों की गिरफ़्तारी की गई थी. ग्वालियर के सीएसपी रॉबिन जैन ने कहा कि एसआईटी के कुछ सदस्य हाल ही में ग्वालियर आए थे. उन्हें इस मामले में दाल बाजार के एक व्यापारी का लिंक मिला था, जिसको नोटिस देने में हमारी मदद ली गई. एसआईटी इस संबंध में आगे की कार्रवाई करेगी. टीम ने ग्वालियर के दाल बाजार में तेल और घी कारोबारी राकेश कुमार, अजीत कुमार, मोहित अग्रवाल की फर्म सीपी ट्रेडिंग और मोनू अग्रवाल के संस्थान में जांच की. उल्लेखनीय है कि आंध्रप्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने दावा किया था कि वाईएस जगनमोहन रेड्डी के कार्यकाल में प्रसाद के लड्डू तैयार करने में “पशु चर्बी” का इस्तेमाल किया जाता था. 300 से भी ज्यादा वर्षों से तिरुपति के इस मंदिर में भगवान श्री वेंकटेश्वर को लड्डुओं का प्रसाद लगाने की भक्ति परंपरा है. लड्डुओं को बनाने के लिए गाय के लगभग 10 टन घी की रोजाना जरूरत पड़ती है. मंदिर में प्रतिदिन करीब 3 लाख लड्डुओं का वितरण किया जाता है.
वक़्फ़ को गलत तरीके से पेश कर रही है भाजपा
वरिष्ठ पत्रकार हैं और ‘भीमा कोरेगांव : चैलेंजिंग कास्ट’ के लेखक एजाज अशरफ ने मिड डे में लिखे अपने आर्टिकल में कहा है कि जैसा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कहना कि राज्य वक़्फ़ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित कर उसे हड़प सकती है, यह सरासर झूठ है. यह कथन 1995 के वक़्फ़ अधिनियम की धारा 40 को जानबूझकर गलत तरीके से पेश करने पर आधारित है. इसे मुस्लिम बंदोबस्ती पर नए कानून में हटा दिया गया है.
वक़्फ़ का पहला सिद्धांत यह है कि किसी व्यक्ति को अपनी निजी संपत्ति को विशिष्ट धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए हमेशा के लिए ईश्वर को समर्पित करना चाहिए. समर्पण वक़्फ़ विलेख में दर्ज होता है. इसे मुतवल्ली या वक़्फ़ प्रबंधक अपने वक़्फ़ को पंजीकृत करने के लिए आवेदन करते समय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करता है. 1995 के अधिनियम की धारा 36, जो अब भी नए कानून में बरकरार है, वक़्फ़ को पंजीकृत करने की एक विस्तृत प्रक्रिया बताती है. पंजीकरण का एक अन्य तरीका धारा 40 के तहत था, जो बोर्ड को ‘किसी भी संपत्ति के बारे में जानकारी एकत्र करने’ का अधिकार देता था, जिसके बारे में उसे विश्वास है कि वह वक़्फ़ है. जांच के माध्यम से जानकारी एकत्र करने के बाद, बोर्ड किसी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित कर सकता था. बोर्ड के फैसले को वक़्फ़ न्यायाधिकरण में चुनौती दी जा सकती थी, जिसके आदेश की समीक्षा हाई कोर्ट कर सकता था. भाजपा ने बोर्ड को भू-माफिया के रूप में चित्रित करने के लिए धारा 40 में ‘किसी भी संपत्ति’ को गलत तरीके से समझा है.
धारा 40 का इस्तेमाल केवल उन संपत्तियों के लिए किया जाता है, जो राजस्व रिकॉर्ड में सूचीबद्ध थीं - उदाहरण के लिए, मस्जिद, कब्रिस्तान, आदि - लेकिन बोर्ड के साथ पंजीकृत नहीं थीं. या उन्होंने ऐसा वक़्फ़ बाय यूजर श्रेणी की संपत्तियों के लिए किया, यानी, मुसलमानों द्वारा धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ‘प्राचीन काल’ से इस्तेमाल की जाने वाली जगहें. ऐसी संपत्तियों की प्राचीनता के कारण उनके कार्यों का पता नहीं लगाया जा सकता है या उन्हें निष्पादित ही नहीं किया गया था. उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति ने अपनी ज़मीन पर मस्जिद का निर्माण किया हो, लेकिन अपने जीवनकाल में वक़्फ़ डीड नहीं बनाई हो. पूरा लेख यहां पढ़ सकते हैं.
परमाणु साझेदारियों में शर्तें ढीली करने की कवायद
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि मोदी सरकार ने 2010 के सिविल न्यूक्लियर लायबिलिटी डैमेज एक्ट में एक संशोधन का मसौदा तैयार किया है. इस संशोधन के तहत, यदि किसी परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होती है, तो उस संयंत्र के आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी को उनके अनुबंध (contract) की राशि तक सीमित कर दिया जाएगा. वर्तमान कानून के तहत, यदि किसी दुर्घटना की वजह डिज़ाइन की खामी हो और दोष आपूर्तिकर्ता पर हो, तो उस पर अनियंत्रित हर्जाने की ज़िम्मेदारी डाली जा सकती है.
यह मसौदा मोदी सरकार के उस लक्ष्य की दिशा में एक कदम है जिसके तहत 2047 तक भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता को 12 गुना बढ़ाया जाना है. विश्लेषकों का कहना है कि इस संशोधन का पारित होना भारत-अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं को अंतिम रूप देने के लिए महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि अमेरिकी कंपनियां अब तक इस कानून में अनिश्चित और असीमित दायित्व के कारण भारत में निवेश करने से हिचक रही थीं. यदि यह संशोधन पारित हो जाता है, तो यह मोदी सरकार की 2015 की स्थिति से एक बड़ा यूटर्न होगा. 2015 में सरकार ने कहा था कि कानून में संशोधन की आवश्यकता नहीं है और विदेश मंत्रालय द्वारा कुछ स्पष्टीकरण दे देने से ही काम चल जाएगा.
विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल को सजा में नहीं गिना जा सकता : हाई कोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी दोषी को सजा सुनाए जाने से पहले की जेल की अवधि को सजा में छूट के तौर पर नहीं गिना जा सकता. यह टिप्पणी जस्टिस कौसर एदप्पगथ ने माओवादी कार्यकर्ता रूपेश की पत्नी की याचिका को खारिज करते हुए की, जो उन्होंने जेल प्रशासन के फैसले के खिलाफ दाखिल की थी. रूपेश वेल्लामुंडा माओवादी केस में दोषी करार दिया गया है. रूपेश की पत्नी ने कहा था कि उनके पति को 9 जुलाई 2015 को गिरफ्तार किया गया था और वह तब से 12 अप्रैल 2024 को दोष सिद्ध होने तक जेल में ही रहे. इस समय को उनकी सजा में छूट के तौर पर गिनना चाहिए. वहीं अदालत ने कहा कि जब तक किसी आरोपी को दोषी ठहराकर सजा के तहत जेल नहीं भेजा जाता, तब तक उसे सजा में छूट पाने का हक नहीं मिलता. अदालत ने कहा कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 428 (अब BNSS की धारा 468) के तहत ‘सेट-ऑफ’ का मतलब यह नहीं है कि ट्रायल से पहले की हिरासत को सजा के बराबर माना जाए. इसलिए सजा सुनाए जाने से पहले की जेल अवधि को न तो असली सजा का हिस्सा माना जा सकता है और न ही इसे सजा में छूट की गणना में शामिल किया जा सकता है.
88 वर्ष की आयु में पोप फ्रांसिस का निधन
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि वेटिकन ने सोमवार सुबह पुष्टि की कि पोप फ्रांसिस का निधन हो गया है. वे 88 वर्ष के थे और लम्बे समय से बीमार चल रहे थे. वेटिकन के कार्डिनल केविन फेरल ने कहा,'आज सुबह 7:35 बजे, रोम के धर्माध्यक्ष फ्रांसिस प्रभु के घर लौट गए. उनका सम्पूर्ण जीवन प्रभु और चर्च की सेवा में समर्पित रहा.' कार्डिनल ने आगे कहा, “उन्होंने हमें सिखाया कि हम सुसमाचार के मूल्यों को निष्ठा, साहस और सार्वभौमिक प्रेम के साथ जीयें, विशेष रूप से गरीबों और हाशिए पर रहने वालों के लिए. हम उनके जीवन के उदाहरण के लिए अत्यंत आभारी हैं और उनकी आत्मा को परमेश्वर की असीम करुणा में समर्पित करते हैं.” पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बेर्गोलियो था, 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में जन्मे थे. वे इतालवी अप्रवासियों के पुत्र थे. उन्होंने पहले एक केमिकल टेक्नीशियन के रूप में अध्ययन किया और फिर पुजारी बनने का निर्णय लेकर सोसाइटी ऑफ जीसस में प्रवेश किया. 13 मार्च 2013 को उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु के रूप में चुना गया, वे पहले लैटिन अमेरिकी पोप बने. अपने 12 वर्षों के पोपत्व में, उन्होंने कई सुधार करने की कोशिश की, हालांकि इस दौरान उन्हें कई विरोधों और चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा. उनकी मृत्यु ईस्टर रविवार के एक दिन बाद हुई, जब उन्होंने सेंट पीटर्स स्क्वायर में 35,000 लोगों को संबोधित किया, जो उनकी बीमारी के बाद सबसे बड़ी सार्वजनिक उपस्थिति थी. हाल ही में वे डबल निमोनिया से पीड़ित हुए थे और विशेषज्ञों की देखरेख में उनका इलाज चल रहा था. पोप ने अपने आखिरी संदेश में गाजा में सीजफायर की बात कही थी.
अब क्या होगा? पोप की मृत्यु के बाद, कैथोलिक चर्च एक विशेष शोक और संक्रमण के काल में प्रवेश करता है, जिसे “सेदे वाकांते” (जिसका अर्थ है "खाली गद्दी") कहा जाता है. इस अवधि में पोप का अंतिम संस्कार होता है और फिर कार्डिनल्स की एक गुप्त बैठक (कॉन्क्लेव) आयोजित की जाती है, जहां नए पोप का चुनाव किया जाता है. कॉन्क्लेव मृत्यु के 15 से 20 दिन बाद शुरू होना होता है. इस दौरान चर्च के नियमों के अनुसार नए पोप के चुनाव की पूरी प्रक्रिया चुपचाप और ध्यानपूर्वक सम्पन्न होती है.
हाल का सबसे प्रगतिशील पोप, शानदार इंसान
पोप फ्रांसिस हाल के सबसे तरक्कीपसंद धर्माध्यक्ष के रूप में जाने जाते हैं. उनका कार्यकाल परंपरा और समावेशी सुधारों का अनूठा मिश्रण था. वे पहले के बहुत से पोप से अलग थे.
यूरोप के बाहर का पोप: जॉर्ज मारियो बेर्गोगलियो यूरोप के बाहर से आने वाले पहले आधुनिक पोप, संत फ्रांसिस ऑफ असीसी के नाम पर पहले पोप, और पहले जेसुइट पोप. जेसुइट आध्यात्मिक अभ्यासों का प्रभाव उनके लेखन और दृष्टिकोण में साफ़ झलकता था, चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, असमानता या चर्च के भीतर दुर्व्यवहार के मामले.
समलैंगिकों पर बदलती राय: अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही उन्होंने कहा था, "अगर कोई समलैंगिक है और वह भगवान की खोज करता है, तो मैं कौन होता हूं उसका न्याय करने वाला?" उन्होंने बार-बार LGBTQ+ लोगों के प्रति प्रेम का आह्वान किया और उन्हें लक्षित करने वाले कानूनों के खिलाफ बोला. हालांकि, उन्होंने चर्च के सिद्धांतों में आमूल परिवर्तन नहीं किए, बल्कि सभी लोगों के लिए न्याय और सम्मान पर जोर दिया.
माफी मांगना : पोप फ्रांसिस ने कई बार चर्च की ओर से माफी मांगी - विशेष रूप से कनाडा के आवासीय स्कूल प्रणाली में स्वदेशी बच्चों के साथ हुए दुर्व्यवहार के लिए. उनकी माफी एक महत्वपूर्ण शुरुआती बिंदु थी क्षमा और उपचार के मार्ग पर.
सुनने वाला चर्च : पोप फ्रांसिस ने "सिनोड ऑन सिनोडैलिटी" नामक एक बहु-वर्षीय, विश्वव्यापी संवाद आयोजित किया, जहां कैथोलिक अपनी चिंताएं और चुनौतियां स्थानीय चर्च नेताओं के साथ साझा कर सकते थे. पहली बार, मतदान सदस्यों में बिशप के साथ-साथ आम कैथोलिक भी शामिल थे. यह प्रक्रिया कैथोलिक चर्च को एक ऊपर से नीचे वाले पदानुक्रम के बजाय एक खुले संवाद के रूप में दर्शाती थी.
वैश्विक नृत्य : अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स से आने वाले पोप फ्रांसिस को "टैंगो के धर्मशास्त्री" के रूप में भी जाना जाता था. उनकी चर्च की दृष्टि "विश्वास और एकजुटता के संबंधों" पर आधारित थी, ठीक उसी तरह जैसे नृत्य के जोड़ीदार एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं. पोप फ्रांसिस "आइवरी टावर धर्मशास्त्र की तुलना में सड़कों पर लोगों के विश्वास" में अधिक रुचि रखते थे - जहां अर्जेंटीना का प्रिय नृत्य टैंगो जन्मा था. पोप फ्रांसिस ने अपने कार्यकाल में परंपरा और आधुनिकता के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखा, और एक अधिक समावेशी, करुणामय और सुनने वाले चर्च के लिए प्रयास किया. टू पोप्स के इस दृश्य में देखिये फ्रांसिस उल समय के पोप बेनेडिक्ट को टैंगो सिखाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे हैं.
हेट क्राइम
अहमदाबाद में ईस्टर कार्यक्रम में बजरंग दल, वीएचपी कार्यकर्ताओं ने मचाया उत्पात
प्रधानमंत्री ने पोप फ्रांसिस के निधन पर अपने फाइल फोटो पोस्ट करते हुए श्रृद्धांजलि अर्पित की. पर ईस्टर के दिन उन्हीं के शहर मे गिरिजाघर पर जो विश्व हिंदु परिषद और बजरंग दल के सदस्यों ने चाकुओं और लाठियों के साथ हमला बोला, उसके बारे में उनका स्टाफ शायद बताना भूल गया. ये भी कि वहां मौजूद औरतों और बच्चों से जय श्री राम के नारे लगवाए गये.
'स्क्रोल' की रिपोर्ट है कि हिंदुत्व समूह विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने रविवार को गुजरात के अहमदाबाद ज़िले में एक निजी हॉल में आयोजित ईसाई त्योहार ईस्टर की प्रार्थना सभा में यह दावा करते हुए घुसपैठ की कि वहां धर्मांतरण किया जा रहा था.इस घटना के बाद अहमदाबाद पुलिस ने सोशल मीडिया साइट एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर बताया कि 10 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और जांच भी चल रही है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं किया गया कि प्राथमिकी किसके खिलाफ दर्ज की गई है. यह कार्रवाई उस वीडियो के वायरल होने के बाद हुई जिसमें देखा गया कि इन हिंदुत्व संगठनों के कार्यकर्ता हाथों में लाठियां लिए हॉल में “जय श्री राम” और “हर हर महादेव” के नारे लगाते हुए घुस आए. इंस्पेक्टर पीएन जिनजुवाडिया ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह घटना रविवार सुबह ओढव क्षेत्र में हुई, जब लगभग 100 ईसाई एक हॉल में ईस्टर कार्यक्रम में भाग ले रहे थे. कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि कार्यक्रम में धर्मांतरण किया जा रहा था और उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि वहां मौजूद लोगों में से कितने हिन्दू हैं. जिनजुवाडिया के अनुसार वीएचपी और बजरंग दल की ओर से भी शिकायत दर्ज कराई गई, और उपासकों (प्रार्थना में शामिल लोगों) की ओर से भी. हालांकि, अधिकारी ने बताया कि पुलिस को मौके पर धर्मांतरण के कोई प्रमाण नहीं मिले.
हनुमान जयंती पर हिंसा, बीजेपी नेता पर मामला दर्ज करने वाले एसपी का ट्रांसफर
मध्यप्रदेश के गुना में पुलिस द्वारा भाजपा नेता और पार्षद के खिलाफ हनुमान जयंती के अवसर पर एक मस्जिद के सामने जुलूस निकालने और उत्तेजक नारे लगाने के आरोप में मामला दर्ज करने के कुछ दिन बाद, जिले के एसपी संजीव कुमार सिन्हा का ट्रांसफर कर दिया गया है.
12 अप्रैल को, गुना जिले के कर्नलगंज में ओमप्रकाश उर्फ गब्बर कुशवाह के नेतृत्व में हनुमान जयंती पर जुलूस के दौरान डीजे बजाने को लेकर विवाद हुआ, जिसके बाद हिंसा भड़क गई थी. इस दौरान मस्जिद के सामने जुलूस रुक गया, जोर से डीजे बजाया गया और एक समुदाय के खिलाफ उत्तेजक नारे लगाए गए. कुशवाह ने कहा था, "आप लोग ऐसे नहीं समझेंगे, आपको पाकिस्तान भेजना पड़ेगा." इस घटना के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के 13 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
पुलिस ने कुशवाह के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धाराओं 191(2), 299 और 132 के तहत गैरकानूनी सभा, धार्मिक भावनाओं को आहत करने और सरकारी कर्मचारियों के काम में बाधा डालने के आरोप में मामला दर्ज किया था. साथ ही, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी हिंसा के आरोप में मामला दर्ज किया गया था.
कोर्ट रूम में दोषी और वकील ने महिला जज को धमकाया : दिल्ली में छह साल पुराने चेक बाउंस मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद दोषी और उसके वकील अतुल कुमार ने द्वारका कोर्ट की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (एनआई एक्ट) शिवांगी मंगला को उसी दिन कोर्ट रूम में धमकाया, "तू है क्या चीज... तू बाहर मिल देखता हूं कैसे जिंदा घर जाती है." इसके साथ ही दोषी ने जज के ऊपर हाथ में पकड़ी वस्तु उन पर फेंकने की कोशिश की.
न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, “इसके बाद फिर से उन दोनों (दोषी और वकील) ने मुझे नौकरी से इस्तीफा देने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया और आरोपी को बरी करने के लिए परेशान किया और धमकी दी कि ऐसा न करने पर वे मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज करेंगे और जबरन मेरा इस्तीफा दिलवाएंगे.”
'सब याद रखा जाएगा' लिखने वाले आमिर अज़ीज़ को भूल गईं अनीता दुबे
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि मुंबई के कवि आमिर अज़ीज़ ने आरोप लगाया है कि कलाकार अनीता दुबे ने उनकी प्रसिद्ध कविता ‘सब याद रखा जाएगा’ की पंक्तियों का उपयोग उनके “ज्ञान, अनुमति, श्रेय या पारिश्रमिक” के बिना अपने कला-प्रदर्शन में किया है. आमिर अज़ीज़ ने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह स्पष्ट रूप से सांस्कृतिक शोषण और लूट है. ऐसे लेखकों की स्वायत्तता छीनना जो हाशिये से आते हैं और उनके स्वर से लाभ कमाना. उनके कार्यों का उपयोग उनकी जानकारी के बिना इसलिए किया जाता है ताकि उन्हें उस संपत्ति से बाहर रखा जा सके जो उनके काम से पैदा होती है.” उन्होंने बताया कि उन्हें अपने कार्य के उपयोग की जानकारी 18 मार्च को मिली, जब उनके एक मित्र ने दिल्ली में वधेरा आर्ट गैलरी में आयोजित अनीता दूबे की प्रदर्शनी ‘थ्री स्टोरी हाउस’ में इसे देखा और उन्हें इसकी सूचना दी. आमिर ने लिखा, “यह मेरी कविता है - मखमली कपड़े पर लिखी हुई, एक अन्य लकड़ी में उकेरी हुई, एक वाणिज्यिक सफेद दीर्घा में टांगी गई, नए नाम से प्रस्तुत की गई, दोबारा ब्रांड बनाई गई और भारी कीमत पर बेची जा रही है और मुझे इसकी जानकारी तक नहीं दी गई.” इसके साथ उन्होंने उन कलाकृतियों की तस्वीरें भी साझा कीं. उन्होंने आगे लिखा,- “मैंने कानूनी नोटिस भेजे हैं. जवाब मांगे हैं. जवाबदेही की मांग की है. बदले में मिला है - चुप्पी, अधूरे सच, और अपमानजनक प्रस्ताव. मैंने उनसे वह काम हटाने को कहा. उन्होंने मना कर दिया. अब यह प्रदर्शनी 26 अप्रैल तक बढ़ा दी गई है.”
वढेरा आर्ट गैलरी ने भी इस विवाद पर अपनी सफाई पेश करते हुए इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा है - 'हम आमिर अज़ीज़ और उनके कानूनी प्रतिनिधियों के संपर्क में एक महीने से अधिक समय से हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जिसे हमने बहुत गंभीरता से लिया है. हमने तुरंत यह सुनिश्चित किया कि वे कलाकृतियां, जिन पर आमिर अज़ीज़ को आपत्ति थी, बिक्री के लिए प्रस्तुत न की जाएं. हमें उम्मीद है कि आमिर अज़ीज़ और अनीता दुबे के बीच जो बातचीत चल रही है, वह सौहार्दपूर्ण और रचनात्मक तरीके से सुलझ सकेगी. हम सभी कलाकारों और उनकी रचनात्मक अभिव्यक्तियों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और कला समुदाय में सम्मानजनक संवाद को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं.'
सम्भल में लगे 'फ्री फिलीस्तीन' के पोस्टर
'द टेलिग्राफ' की रिपोर्ट है कि रविवार को उत्तर प्रदेश के सम्भल ज़िले के चंदौसी क्षेत्र में कई घरों, दुकानों, मस्जिदों, मंदिरों और यहां तक कि पुलिस थानों की दीवारों पर इज़राइल विरोधी पोस्टर चिपके पाए गए. इन पोस्टरों में हिंदी में “फ़्री ग़ाज़ा, फ़्री फ़िलिस्तीन” जैसे नारे लिखे थे और मुसलमानों से अपील की गई थी कि वे इज़राइल से संबंधित किसी भी सामान का बहिष्कार करें. एक पोस्टर में लिखा था - “याद रखो, अगर हम अपने फ़िलिस्तीनी भाई-बहनों की मौत देखकर भी रो नहीं पा रहे, तो हम मर चुके हैं.” कुछ पोस्टरों में दुकानदारों से अपील की गई थी कि वे इज़रायली वस्तुएं न बेचें. चंदौसी के पुलिस निरीक्षक रामवीर सिंह ने कहा - “हम सीसीटीवी फुटेज एकत्र कर रहे हैं, ताकि यह पता चल सके कि ये पोस्टर किसने लगाए. ये पोस्टर भड़काऊ हैं और ज़िले के माहौल को खराब कर सकते हैं. हम कुछ लोगों से पूछताछ भी कर रहे हैं.” सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें दो अज्ञात लोग इन पोस्टरों को दीवारों पर चिपकाते हुए दिखाई दे रहे हैं.
एक्सप्लेनर
आरएसएस के सौ बरस और उसकी सीमित बढ़त पर क्रिस्टोफ जेफरलो
1925 में के.बी. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की, जिसे वे "लघु हिंदू राष्ट्र" के रूप में देखते थे. आज संघ एक विशाल संस्था बन गई है, जिसकी 73,117 शाखाएँ हैं और देश के 45,600 स्थानों में उपस्थिति है.न्यू इंडियन एक्सप्रेस में क्रिस्टोफ जेफरलो ने आरएसएस के सौ साल होने पर लिखा है.
जेफरलो लिखते हैं, कि संघ परिवार के अनेक अंग विकसित हुए हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 4.5 मिलियन (45 लाख) सदस्य हैं, भारतीय मजदूर संघ के 10 मिलियन (1 करोड़), भारतीय किसान संघ के 1 मिलियन (10 लाख). विद्या भारती के 14,000 स्कूलों में 73,000 शिक्षक 3.2 मिलियन (32 लाख) छात्रों को पढ़ाते हैं. हाल के वर्षों में अधिवक्ताओं और पूर्व सैनिकों के लिए भी संगठन स्थापित किए गए हैं. लेखक के अनुसार, संघ परिवार की वृद्धि तीन कारणों से है:
पहला, इसकी वृद्धि केवल हिंदुत्व को बढ़ावा देने से नहीं, बल्कि विशेष रूप से मुस्लिमों के विरुद्ध भय और क्रोध पैदा करने से भी हुई है. 1980 के बाद से, संघ ने हिंदू समुदाय की व्यापक गोलबंदी शुरू की, जिसका परिणाम राम जन्मभूमि आंदोलन के रूप में सामने आया. संघ ने बजरंग दल जैसे संगठनों को साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने का काम सौंपा, जिससे वह अपनी साफ छवि बनाए रख सके.
दूसरा, भाजपा को सत्ता में लाने में मदद करके, संघ नेताओं ने राजनीतिक क्षेत्र में पहल खो दी है. 2014 तक, नागपुर का भाजपा की रणनीति पर प्रभाव था. लेकिन, नरेंद्र मोदी के तहत चीजें बदल गईं, जिन्होंने संघ से स्वतंत्र होकर अपनी समानांतर शक्ति संरचना बनाई. तीसरा, हिंदुत्व परिवेश ने वह नैतिक अधिकार खो दिया है, जो इसके नेताओं ने आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में हासिल किया था. आज के संघ परिवार के नेता त्याग और सादगी के आदर्शों को पूरा नहीं करते, जो पहले के नेता मानते थे.
लेखक निष्कर्ष निकालते हैं कि आरएसएस की मूल विचारधारा अपरिवर्तित रही है - भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलना आज भी इसका प्रमुख उद्देश्य है. इस अर्थ में, आरएसएस नहीं बदला है, लेकिन इसने भारत को बदल दिया है, गांधी और नेहरू की विरासत को कमजोर कर दिया है.
फडणवीस सरकार की कमेटी ही हिंदी को अनिवार्य बनाने के खिलाफ : महाराष्ट्र सरकार द्वारा नियुक्त भाषा परामर्श समिति ने कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने के सरकार के फैसले को खारिज कर दिया है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लिखे पत्र में समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने फैसले का विरोध करते हुए कहा कि तीन-भाषा फार्मूला सिर्फ उच्च माध्यमिक स्तर से लागू किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह निर्णय शिक्षकों के बोझ को बढ़ाएगा तथा बच्चों के मस्तिष्क पर दबाव डालेगा. यह भी दावा किया कि हिंदी भाषी शिक्षकों का चयन मराठी भाषी शिक्षकों के अवसरों को कम करेगा. पत्र में कहा गया, यदि उत्तर भारत के लोग महाराष्ट्र में प्रवासी होने के बावजूद मराठी नहीं बोलते हैं, तो हिंदी को अनिवार्य बनाना मराठी भाषा और उसके बोलने वालों का अपमान है.
भारतीय छात्रों को वीज़ा निरस्त करने के नोटिस, सरकार चिंतित : अमेरिका में भारतीय छात्रों को वीज़ा निरस्त करने के नोटिस मिलने पर भारत ने चिंता जताई है. भारतीय अधिकारियों ने अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से अपनी चिंता को व्यक्त किया है. “द हिंदू” में सुहासिनी हैदर ने सरकारी सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट किया है कि पिछले सप्ताह, अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन ने 327 मामलों का सर्वे किया, जिनमें से 50% मामले भारतीय छात्रों के थे.
चावल धीरे-धीरे अधिक विषैला होता जाएगा : जॉर्जिना गुस्टिन ने “द लैंसेट” में प्रकाशित एक नए शोध की रिपोर्ट दी है, जिसमें बताया गया है कि दुनिया भर में अरबों लोग जो चावल खाते हैं, वह जलवायु परिवर्तन के चलते धीरे-धीरे अधिक विषैला होता जाएगा. वैज्ञानिकों ने पाया है कि बढ़ता हुआ तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर चावल में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ा देते हैं, जो एक कार्सिनोजन (कैंसर उत्पन्न करने वाला तत्व) है और विभिन्न प्रकार के कैंसर और बीमारियों से जुड़ा हुआ है. छह वर्षों के इस अध्ययन ने दिखाया कि इस जलवायु-प्रेरित आर्सेनिक वृद्धि से एशिया के सात प्रमुख चावल-खपत वाले देशों की आबादी के स्वास्थ्य के लिए गंभीर किस्म के खतरे पैदा होंगे.
बीसीसीआई वार्षिक अनुबंध 2024-25 में अय्यर, किशन की वापसी
सोमवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने बहुप्रतीक्षित खिलाड़ियों की वार्षिक अनुबंधों की लिस्ट जारी की. इसमें श्रेयस अय्यर और ईशान किशन की वापसी हुई है तो पहली बार सरफराज खान और नीतीश कुमार रेड्डी को शामिल किया गया है.
ग्रेड में कोई चौंकाने वाला नाम नहीं शामिल किया गया है. हां, हार्दिक पांड्या को प्रमोशन जरूर हुआ है. वह ग्रेड बी से ए में पहुंच गए हैं और संन्यास लेने के कारण रविचंद्रन अश्विन का नाम हटा दिया गया है. ग्रेड ए+ में रोहित शर्मा, विराट कोहली, जसप्रीत बुमराह और रवींद्र जडेजा बने हुए हैं. ग्रेड ए+ में चार, ए में 6, बी में 4 और सी में 19 खिलाड़ियों के नाम शामिल हैं. पूरी लिस्ट यहां देख सकते हैं.
नाबालिगों को स्वतंत्र रूप से बैंक खाते संचालित करने की अनुमति दी : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को बैंकों को 10 वर्ष से अधिक आयु के नाबालिगों को स्वतंत्र रूप से बचत/सावधि जमा खाते खोलने और संचालित करने की अनुमति दे दी. आरबीआई ने वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों को संबोधित एक परिपत्र में कहा कि किसी भी उम्र के नाबालिगों को अपने प्राकृतिक या कानूनी अभिभावक के माध्यम से बचत और सावधि जमा खाते खोलने और संचालित करने की अनुमति दी जा सकती है. उन्हें मां को अभिभावक बनाकर भी ऐसे खाते खोलने की अनुमति दी जा सकती है.
ईडी का द हिंदू के रिपोर्टर के खिलाफ आरोप पत्र : प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को जानकारी दी कि गुजरात में 'द हिंदू' अखबार के संवाददाता महेश लांगा के खिलाफ 17 अप्रैल को अहमदाबाद में विशेष धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) अदालत के समक्ष कथित धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और जबरन वसूली के आरोपों में दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर अदालत में आरोप पत्र दायर किया है. फरवरी में ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया था और वर्तमान में न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं. ईडी ने कहा कि लांगा “मीडिया में अपने कथित संबंधों का लाभ उठाकर धोखाधड़ी और धन उगाही में शामिल था.” जांच के तहत अप्रैल में ईडी ने अहमदाबाद स्थित उनके कार्यालय परिसर को जब्त कर लिया था.
महादेव सट्टेबाजी ऐप मामला : ईडी ने 573 करोड़ रुपये मूल्य की प्रतिभूतियां, बांड जब्त किए : प्रवर्तन निदेशालय ने सोमवार को कहा कि उसने महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप से जुड़े धन शोधन मामले में पिछले सप्ताह नए दौर की तलाशी के बाद 573 करोड़ रुपये मूल्य की प्रतिभूतियां, बांड और डीमैट खाते जब्त किए हैं. संघीय जांच एजेंसी ने एक बयान में बताया कि उसने पाया है कि सट्टेबाजी मंच और उससे जुड़े सिंडिकेट इससे अर्जित आय देश से बाहर ले गए और बाद में इसे ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के नाम पर भारतीय शेयर बाजारों में निवेश कर दिया. ईडी के अनुसार, “16 अप्रैल को दिल्ली, मुंबई, इंदौर, अहमदाबाद, चंडीगढ़, चेन्नई और ओडिशा के संबलपुर में परिसरों में तलाशी ली गई. तलाशी में 3.29 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की गई और 573 करोड़ रुपये से अधिक की प्रतिभूतियों, बांड और डीमैट खातों को फ्रीज किया गया, साथ में विभिन्न आपत्तिजनक दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड जब्त किए गए.” महादेव सट्टेबाजी ऐप मामला तब सुर्खियों में आया, जब एजेंसी ने कुछ साल पहले दावा किया कि छत्तीसगढ़ के कई उच्च पदस्थ राजनेता और नौकरशाह इस ऐप से जुड़े अवैध संचालन और उसके बाद के मौद्रिक लेनदेन में कथित रूप से शामिल थे.
मीरा नायर का बेटा बन पाएगा न्यूयॉर्क का मेयर? वह एक क्रिकेटर, काउंसलर और 'मिस्टर कार्डमम' के नाम से पहचाने जाने वाले रैपर रह चुके हैं, लेकिन आज ज़ोहरान मामदानी न्यूयॉर्क मेयर चुनावों से पहले डेमोक्रेटिक प्राइमरी में एंड्रयू क्यूमो के खिलाफ मुकाबला करने की तैयारी कर रहे हैं. मामदानी, जो किराया फ्रीज करने, बिग एप्पल में मुफ्त परिवहन लागू करने और कोलंबिया तथा एनवाईयू के लिए टैक्स छूट खत्म करने का समर्थन करते हैं, ने हाल ही में डेमोक्रेटिक मतदाताओं के एक सर्वे में 36% समर्थन प्राप्त किया, जबकि क्यूमो को 64% समर्थन मिला. भारतीयों के लिए उनकी एक और पहचान है और वो यह कि वह “सलाम बॉम्बे” समेत कई हिंदी फिल्मों की निर्देशक मीरा नायर और युगांडा के प्रमुख विद्वान महमूद मामदानी के बेटे भी हैं.
पुस्तक चर्चा
गोपाल गांधी की पुस्तक: 'द अनडायिंग लाइट'
'द टेलिग्राफ' में रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि गोपाल गांधी ने मुझे एक बार फिर ऋणी बना दिया है, इस बार एक अत्यंत शिक्षाप्रद पुस्तक के माध्यम से, जो उस गणराज्य की प्रगति के साथ-साथ उसके पतन की भी गहराई से पड़ताल करती है, जिसका सफर उनके अपने जीवन के समानांतर चला है. गोपालकृष्ण गांधी के 80वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर उनकी नई पुस्तक 'द अनडाइंग लाइट: अ पर्सनल हिस्ट्री ऑफ इंडिपेंडेंट इंडिया’ प्रकाशित हुई है. यह किताब स्वतंत्र भारत की यात्रा और उनके व्यक्तिगत अनुभवों का समन्वित चित्रण प्रस्तुत करती है.
स्वतंत्रता और विभाजन के समय जन्मे गोपाल गांधी का विकास उनके माता-पिता देवदास और लक्ष्मी गांधी के मार्गदर्शन में हुआ. पुस्तक में उनके नाना चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (राजाजी) का प्रभावशाली चित्रण है, जिन्हें लेखक अपने जीवन के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत मानते हैं. अन्य प्रभावशाली व्यक्तित्वों में गायिका एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी और समाजसेवी जयप्रकाश नारायण शामिल हैं.
किताब स्वतंत्रता के पहले वर्षों, महात्मा गांधी के अंतिम दिनों, नेहरू-पटेल संबंधों से शुरू होकर क्रमबद्ध रूप से भारत के इतिहास की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करती है. लेखक के प्रशासनिक अनुभव, राष्ट्रपति के सचिव और बंगाल के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल तथा विदेशी पदस्थापनाओं का भी उल्लेख है.
गोपाल गांधी भारतीय विविधता को गहराई से समझते हैं, विशेषकर तमिल, बंगाली और दिल्ली की संस्कृतियों को. वे अपने पारिवारिक विशेषाधिकारों के प्रति भी सजग रहे हैं, जैसे उनके विस्तृत परिवार के अनेक अंतरराष्ट्रीय मित्र थे, पर एक भी दलित मित्र नहीं था.
किताब में राजनीतिक विश्लेषण भी प्रस्तुत किए गए हैं. नेहरू से इंदिरा गांधी के संक्रमण को वे "सेवा के युग से सत्ता के अभिनय का युग" बताते हैं. मोदी के बारे में लिखते हैं कि वे "एक नए जहाज़ के खेवनहार हैं, जिसकी शक्ति का स्रोत अब लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता नहीं, बल्कि बहुसंख्यक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व है."
अंत में, लेखक वर्तमान समस्याओं - पर्यावरणीय विनाश, सांप्रदायिकता, संस्थाओं की स्वतंत्रता का क्षरण, और इतिहास के राजनीतिकरण को चिन्हित करते हैं. फिर भी, वे आशावादी स्वर में कहते हैं: "भारत का उजाला मद्धम हो सकता है; लेकिन वह कभी बुझेगा नहीं."
एक तरफ चीन ने बोइंग जेट अमेरिका लौटाए, दूसरी तरफ स्टील्थ फाइटर जहाजों का परीक्षण
अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव अब आर्थिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर साफ दिख रहा है. एक ओर जहां पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू किए गए टैरिफ युद्ध के कारण चीन के लिए बना एक नया बोइंग विमान अमेरिका वापस लौट आया है, वहीं दूसरी ओर चीन अपने दो अति-आधुनिक छठी पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमानों का परीक्षण तेज कर रहा है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन की ज़ियामेन एयरलाइंस के लिए तैयार एक बोइंग 737 मैक्स विमान, जो ज़ियामेन एयरलाइंस के रंगों में रंगा था, रविवार को अमेरिका के सिएटल स्थित प्रोडक्शन हब वापस लौट आया. करीब 8,000 किलोमीटर की यह वापसी यात्रा गुआम और हवाई में ईंधन भरने के बाद पूरी हुई. इसका मुख्य कारण ट्रंप द्वारा चीनी आयातों पर टैरिफ को बढ़ाकर 145% करना और बदले में चीन द्वारा अमेरिकी सामानों पर 125% टैरिफ लगाना माना जा रहा है. एक नए 737 मैक्स की कीमत लगभग 55 मिलियन डॉलर होती है, और इतने भारी टैरिफ के साथ इसे खरीदना एयरलाइन के लिए वित्तीय रूप से अव्यवहारिक हो जाता है. इस घटना ने बोइंग के लिए चिंता बढ़ा दी है, जिसके सैकड़ों विमान चीनी कंपनियों द्वारा ऑर्डर किए गए हैं. बोइंग के सीईओ केली ओर्टबर्ग ने पहले ही चेतावनी दी थी कि टैरिफ युद्ध से अमेरिकी कंपनियों के लिए बाजार बंद हो सकते हैं.
यह आर्थिक खींचतान ऐसे समय में हो रही है जब चीन अपनी सैन्य तकनीकी क्षमताओं, खासकर हवाई ताकत, में तेजी से इज़ाफ़ा कर रहा है. हाल के हफ्तों में, चीन के दो नए छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों, जिन्हें अनौपचारिक रूप से J-36 (चेंगदू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन) और J-50 (शेनयांग एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन) कहा जा रहा है, के परीक्षणों की कई खबरें, तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं.
इन वीडियो में विमानों को तेज कलाबाजियां करते और कम ऊंचाई पर उड़ते देखा गया है. सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार, इन विमानों का अनूठा बिना पूंछ (tailless) वाला डिजाइन, एडवांस्ड फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम और संभवतः वेक्टर थ्रस्टिंग इंजन इन्हें बेहतर स्टील्थ क्षमता और 'सुपर-मैन्युवरेबिलिटी' प्रदान करते हैं. ये विमान चीन की सैन्य प्रौद्योगिकी में तेज प्रगति के प्रतीक माने जा रहे हैं. यह घटनाक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका भी अपने नेक्स्ट जेनरेशन फाइटर जेट F-47 और नेवी के लिए अलग छठी पीढ़ी के विमान विकसित कर रहा है. ये दोनों घटनाएं दर्शाती हैं कि अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा व्यापार और प्रौद्योगिकी से लेकर सैन्य शक्ति तक कई स्तरों पर लगातार तीव्र हो रही है.
चलते-चलते
ऋग्वेद के देवता सीरिया की प्राचीन धरती पर

प्राचीन काल में, जब ऋग्वेद की रचना हुई थी, तब कोई नहीं जानता था कि इसके देवता सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रहेंगे. 1913 की गर्मियों में, सीरिया की जलती धरती पर पुरातत्वविदों ने एक मिट्टी की टेबलेट खोजी, जिसमें दो राजाओं के बीच शांति संधि लिखी थी. इस टेबलेट पर 1350 ईसा पूर्व में लिखे गए शब्दों में वैदिक संस्कृत का प्रयोग था - वही पवित्र भाषा जिसमें ऋग्वेद की रचना हुई थी. और इसमें हिंदू देवताओं - इंद्र, वरुण, अग्नि, मित्र और नासत्य का उल्लेख था! यह टेबलेट मिट्टानी और हिट्टाइट राज्यों के बीच हुई संधि का प्रमाण थी. मिट्टानी साम्राज्य, जो आज के सीरिया, उत्तरी इराक और तुर्की के क्षेत्रों में फैला था, उसके शासकों के नाम वैदिक संस्कृत पर आधारित थे.
राजा तुश्रत्त का नाम संस्कृत के "त्वेष-रथ" से आया था, जिसका अर्थ है "भयानक रथ वाला". मिट्टानी राज्य का नाम भी संस्कृत के "मिथ्" (एकजुट करना) से आया था. लेकिन ये वैदिक शब्द और देवता यूफ्रेटीस नदी के किनारे कैसे पहुंचे? विद्वान डेविड एंथनी के अनुसार, संभवत: प्रोटो-वैदिक बोलने वाले सैनिकों का एक समूह पश्चिम की ओर गया होगा. वे संभवतः हुर्रियन भाषी राजा की सेवा में गए थे. समय के साथ, इन सैनिकों ने वहां शक्ति हासिल की, और शासक बन गए. शासक बनने के बाद भी उन्होंने अपने प्रोटो-वैदिक राजसी नाम, अपने देवताओं के नाम, और घुड़सवारी से जुड़े महत्वपूर्ण शब्द बनाए रखे.
मिट्टानी की सैन्य कुलीनता मुख्य रूप से रथ योद्धाओं से बनी थी, जिन्हें "मर्यन्नु" कहा जाता था. यह शब्द संस्कृत के "मर्य" से आया माना जाता है, जिसका अर्थ है "युवा" या "योद्धा". मिट्टानी में घोड़ों का महत्व इतना अधिक था कि दुनिया का सबसे पुराना घोड़ा प्रशिक्षण मैनुअल एक मिट्टानी प्रशिक्षक किक्कुली द्वारा लिखा गया था. इस मैनुअल में कई वैदिक शब्द जैसे 'अश्व' (घोड़ा), 'एक' (एक), 'पंच' (पांच), और 'सत्त' (सात) शामिल थे. मिट्टानी का प्रभाव इतना व्यापक था कि वे मिस्र के फिरौनों के साथ संबंध रखते थे. अमेनहोटेप तृतीय ने मिट्टानी की राजकुमारी गिलु-हेपा से विवाह किया. उनके बेटे अखनातेन ने भी एक मिट्टानी राजकुमारी - कीया से विवाह किया. तुतनखामेन, जो दुनिया के सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक व्यक्तियों में से एक बने, संभवत: अपनी मातृ पक्ष से वैदिक योद्धाओं के वंशज हो सकते हैं. यदि वह मिट्टानी राजकुमारी से वंशज नहीं भी थे, तो भी उनकी सौतेली मां निश्चित रूप से मिट्टानी थी. इस प्रकार तुतनखामेन संभवतः अग्नि, इंद्र, वरुण और मित्र जैसे मिट्टानी के अजीब देवताओं से परिचित थे. कांस्य युग का यह एक अद्भुत संसार था - जहां हमारे वैदिक देवता सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि दूर-दूर तक अपना प्रभाव फैलाए हुए थे.
पाठकों से अपील
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