22/05/2025 : भाजपा में गटर की भाषा | पहलगाम के लिए कांग्रेस ने अमित शाह को जिम्मेदार बताया | बस्तर में 27 माओवादी मारे गये | महमूदाबाद को जमानत | कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को बुकर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ :
आईबी चीफ डेका को फिर एक्सटेंशन
महमूदाबाद बनाम हरियाणा सरकार : सुप्रीम कोर्ट का आदेश को समझने की कोशिश
वक़्फ़ इस्लाम का अनिवार्य अभ्यास नहीं है : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
न्यूजलॉन्ड्री को चकला और वहां की महिला पत्रकारों को वेश्या बताने वाले अभिजीत अय्यर मित्रा पर 2 करोड़ रुपये के हर्जाने का मामला, अदालत ने कमेंट हटवाया
राजनीतिक और धार्मिक टैटू हटवा रहे हैं कश्मीरी
बढ़ रही हैं गर्म रातें
दिल्ली में तूफान, बारिश, तेज हवाएं, पारा 50 पार
भारतीय सुरक्षा बलों ने हमारे 10 सदस्यों को मार डाला : एनयूजी
इंटरनेट फ्रीडम पर तथ्य-जांच आरटीआई के आधार पर
हेट स्पीच : मोदी राज का सियासी “न्यू नॉर्मल”
नफ़रत और घिन वाली ‘गटर’ की भाषा भाजपा में सिर्फ विजय शाह की नहीं… एक लम्बी कतार है
राजेश चतुर्वेदी
घृणा और नफ़रत से भरी भाषा का इस्तेमाल करने वालों में मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह इकलौते नहीं हैं. भाजपा में ऐसे नामों की बड़ी लिस्ट है, जो शीर्ष के नेताओं से शुरू होती है और नीचे तक जाती है. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 14 मई को कहा था- विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के लिए गटर की भाषा का इस्तेमाल किया है. हालांकि, एक-डेढ़ दशक पहले तक अटल-आडवाणी युग में पार्टी के नेता-नुमाइंदे, विभाजनकारी, सांप्रदायिक और जहरीले जुमलों को इस्तेमाल करने में एहतियात बरतते थे. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में लिहाज, संकोच और परहेज का भाव टूटा, कमजोर पड़ा है. नफरती और जहर बुझे बयानों को ‘तरक्की की सीढ़ी’ मान लिया गया है. क्योंकि, रोका-टोका नहीं जाता, कार्रवाई नहीं होती. यही वजह है कि निरंकुशता बढ़ गई है और शायद इसीलिए विजय शाह जैसे लोग जो मन में आया, बक देते हैं. और, कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बताने से पहले एक बार भी नहीं सोचते कि “इसका मतलब क्या है?” और यह ख्याल भी नहीं करते कि इस ‘गटर बयान’ के बाद उनका खुद का क्या हश्र होगा? दरअसल, बीजेपी ने ‘कार्रवाई’ की ऐसी कोई मिसाल कायम नहीं की है, जो उसके नेताओं को ‘हेट स्पीच’ देने से पहले सौ बार सोचने के लिए विवश करे. विजय शाह का मामला भी सुप्रीम कोर्ट तक इसलिए पहुंच गया, क्योंकि मध्यप्रदेश की हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान ले लिया. वर्ना, पार्टी ने तो उनको अब तक मंत्री पद पर बरकरार रखा है. यदि कोर्ट ऐसा नहीं करती तो, मुमकिन था कि टीवी पर शाह के माफी मांगने भर से मामला सुलट जाता. चूंकि, अतीत में बीजपी ने किसी पर ऐसा कोई बड़ा एक्शन नहीं लिया, जो दूसरों के लिए नज़ीर बने या उन्हें डराए, लिहाजा मुसलमानों को टारगेट करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. अन्यथा, महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नितेश राणे ‘ईवीएम’ (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) का यह मतलब कतई नहीं समझाते कि- “एवरी वोट अगेंस्ट मुल्ला.” भले ही, बीजेपी की मातृ संस्था आरएसएस कहे कि “हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढ़ना,” लेकिन पार्टी के नेता अवसर को ‘ध्रुवीकरण’ की सियासत में तब्दील करने में अब शायद पारंगत हो गए हैं. कोई मौका हो, उनके बयान, भाषण, जुमले ‘हिंदू-मुसलमान’ किए बिना मुकम्मल नहीं होते. देखिए किसने क्या-क्या कहा? इनमें से किसके साथ पार्टी ने क्या किया? किसी को घर बैठाया? किसकी राजनीति बंद हुई? तो विजय शाह को कैसे घर बैठा देंगे? शायद, भाजपा का यह सियासी ‘न्यू नॉर्मल’ है. मोदी राज में.
विजय शाह, मंत्री मध्यप्रदेश : उन्होंने (आतंकियों ने) कपड़े उतार-उतार कर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा. अब मोदी जी कपड़े तो उतार नहीं सकते. इसलिए उनकी समाज की बहन को भेजा कि तुमने हमारी बहनों को विधवा किया है, तो तुम्हारे समाज की बहन आकर तुम्हें नंगा करके छोड़ेगी. देश का मान-सम्मान और हमारी बहनों के सुहाग का बदला तुम्हारी जाति, समाज की बहनों को पाकिस्तान भेजकर ले सकते हैं. मोदी जी ने कहा था कि घर में घुसकर मारूंगा. जमीन के अंदर कर दूंगा. आतंकवादी तीन मंजिला घर में बैठे थे. बड़े बम से छत उड़ाई, फिर बीच की छत उड़ाई और अंदर जाकर उनके परिवार की ऐसी की तैसी कर दी. यह 56 इंच का सीना वाला ही कर सकता है. (मई 2025)
ऊषा ठाकुर, पूर्व मंत्री मध्यप्रदेश : जिस कार्यक्रम में विजय शाह कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में शर्मनाक टिप्पणी कर रहे थे, वह मंच पर बैठी मुस्कुरा रही थीं. बाद में कहा, जो होना था, सो हो चुका. कई बार जुबान फिसल जाती है. मेरी भगवान से बात होती है, वोट बीजेपी को देना, नहीं तो अगले जन्म में ऊंट, भेड़-बकरी, कुत्ते-बिल्ली जैसे जानवर बनोगे. (19 अप्रैल 2025). मदरसों में सभी आतंकवादी पैदा होते हैं. मदरसों ने जम्मू-कश्मीर को आतंकवादी कारखाने में बदल दिया था. 8 सितंबर 2022- गरबा पंडाल लव जिहाद का बड़ा माध्यम बन चुके थे. इनमें आईडी कार्ड देखकर ही प्रवेश दिया जाए. (21 अक्टूबर 2020). किसी भी मुसलमान को दुर्गा पूजा पंडाल में नहीं आने देना चाहिए. (25 सितंबर 2015)
रमेश बिधूड़ी 'ओए ..., ओए उग्रवादी, ऐ उग्रवादी बीच में मत बोलना, ये आतंकवादी-उग्रवादी है, ये मुल्ला आतंकवादी है... इसकी बात नोट करते रहना, अभी बाहर देखूंगा इस मुल्ले को.' ( 22 सितंबर 2023 संसद में तत्कालीन बसपा सांसद दानिश अली से बिधूड़ी)
निशिकांत दुबे देश में सभी गृह युद्धों के लिए सीजेआई संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं. सुप्रीम कोर्ट इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहता है. (19 अप्रैल 2025). पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी तो मुस्लिम आयुक्त थे. (20 अप्रैल 2025). आजकल कलमा सीख रहा हूं, पता नहीं कब जरूरत पड़े (पहलगाम आतंकी हमले के बाद) (24 अप्रैल 2025). सुप्रीम कोर्ट उन मामलों में भी हस्तक्षेप करता है, जिनमें उसे नहीं करना चाहिए. (24 मार्च 2025). आईएसआई और चीन वक़्फ़ बिल पर प्रतिक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं. (25 सितंबर 2024). राहुल गांधी संन्यासी हैं, उनकी कोई जाति नहीं है. (6 अगस्त 2024). कांग्रेस में पिछड़ा वर्ग का कोई मुख्यमंत्री नहीं बचा. (6 दिसंबर 2023). ‘दुबई दीदी’ महुआ मोइत्रा (27 अक्टूबर 2023). यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए रूस को पूरी तरह दोषी नहीं माना जाना चाहिए (21 मार्च 2022). हिंदी भाषी लोगों से तृणमूल कांग्रेस को एलर्जी है. मुझे बिहारी गुंडा कहा. (29 जुलाई 2021). जीडीपी को बाइबिल, रामायण और महाभारत की तरह नहीं मानना चाहिए. (3 दिसंबर 2019). बीजेपी उम्मीदवार का समर्थन करो, चाहे फिर वह अपंग हो, चोर, डकैत या अपराधी (अक्टूबर 2019). राहुल गांधी भूत हैं, आपने एक आत्मा को बोलने दिया (8 फरवरी 2023)
गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री : हमारे पुरखों ने 1947 में मुसलमानों को पाकिस्तान न भेजकर गलती कर दी. मुसलमानों को यहां से भेजना था और हिंदुओं को पाकिस्तान से ले आना था. ऐसा नहीं हुआ, जिसकी हमें भारी कीमत चुकानी पड़ी है. ( 21 फरवरी 2020). हिंदू स्वाभिमान यात्रा के दौरान किशनगंज में हिंदुओं से अपील कि वे आत्मरक्षा के लिए अपने घरों में भाला, त्रिशूल, तलवार रखें. लव जिहाद के कारण बिहार में महिलाएं असुरक्षित हैं. हर साल कई हिंदू लड़कियां लव जिहाद में फंसकर मुसलमान बन जाती हैं. (22 अक्टूबर 2024). नरेंद्र मोदी का विरोध करने वालों की जगह पाकिस्तान में है. पटना में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद उन्होंने कहा था: “मुझे हैरानी है कि नीतीश कुमार इतनी नीचता पर कैसे उतर सकते हैं? गांधी मैदान धमाकों के बाद कोई जांच नहीं कराई गई, इससे साफ है कि नीतीश कुमार मोदी को मरवाना चाहते थे.” जेडीयू ने उनके इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई थी, लेकिन राज्य भाजपा नेतृत्व ने उन्हें कोई फटकार नहीं लगाई. (21 अप्रैल 2014) और भी बयान.
प्रदीप कुमार सिंह (दो बार के भाजपा सांसद) : 22 अक्टूबर 2024- यदि किसी को अररिया में रहना है तो उसे हिंदू बनना पड़ेगा.
तेजस्वी सूर्या : भाजपा जयनगर उपचुनाव मुस्लिम वोटों के कारण हार गई. (जून 2018). जो मोदी का समर्थन नहीं करते, वे भारत विरोधी ताकतों के साथ हैं. (मार्च 2019). सीएए का विरोध पंक्चर वाले और जाहिल लोग कर रहे हैं. (दिसंबर 2019). यदि बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू) सतर्क नहीं रहा, तो देश में मुगलों का शासन लौट आएगा. (फरवरी 2020). धर्म के लिए कर्नाटक की सत्ता पर हिंदुओं का नियंत्रण आवश्यक है. (अगस्त 2020)
सुवेन्दु अधिकारी : बंद करो, “सबका साथ, सबका विकास.” पार्टी का यह नारा गलत है. मुसलमानों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया. पार्टी संगठन में अल्पसंख्यक मोर्चा को भी बंद कर देना चाहिए. (17 जुलाई 2024) हम पश्चिम बंगाल की सत्ता में आए तो मुस्लिम विधायकों को विधानसभा से बाहर फेंक देंगे. (12 मार्च 2025) बंगाल में हिंदुओं के लिए पृथक पोलिंग बूथ बनाए जाने चाहिए. (22 अप्रैल 2025)
हिमंत बिस्वा सरमा, असम के मुख्यमंत्री : (झारखंड चुनाव) - हम हारेंगे न तो ये पीताम्बर, नीलाम्बर, सिद्धू, कान्हू, बिरसा मुंडा की भूमि को अरफान, इरफ़ान, अंसारी, आलम गीर आलम लूट लेगा. हमारी बेटियों को लूटा, हमारी जमीन को लूटा, हमारी सरकार को लूटा, हमारे अंहकार को लूटा. हमें आवाज उठाना होगा. हमें एक होना है. हम बंटे तो ये इरफ़ान, अंसारी, आलम हमें लूट ले जाएंगे. (29 मार्च 2025). असम को मियां भूमि नहीं बनने दूंगा. मियां मुसलमानों से मछली न खरीदें. उनकी मछली दूषित होती है. 2 (सितंबर 2024). बीजेपी को 10 साल तक मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए. वे चाहें तो भगवा ब्रिगेड के पक्ष में नारे लगा सकते हैं, भले ही वोट न दें. (2 अक्टूबर 2023). सब्जियों के दाम मियां मुसलमान बढ़ा रहे हैं.(15 जुलाई 2023)
नितेश राणे, मंत्री, महाराष्ट्र : देखो यह घुसपैठी बांग्लादेशी मुंबई में क्या कर रहे है. देखो इनकी हिम्मत. पहले सड़क पर रहते थे, अब लोगों के घर में घुस रहे हैं. सैफ अली खान के घर में घुसे. शायद वे उसे (सैफ को) ले जाने आए थे. यह अच्छा है, कचरा हटा दिया जाना चाहिए. जब भी शाहरुख खान या सैफ अली खान जैसे किसी खान को चोट लगती है, तो हर कोई इसके बारे में बात करना शुरू कर देता है. जब सुशांत सिंह राजपूत जैसे हिंदू अभिनेता को प्रताड़ित किया जाता है, तो कोई भी कुछ कहने के लिए आगे नहीं आता है. (23 जनवरी 2025). हम गर्व से कह रहे हैं कि हम ईवीएम की वजह से चुनाव जीते हैं और हमने इस बात से कभी इनकार नहीं किया. लेकिन विपक्ष ईवीएम के अर्थ को समझने में नाकमयाब रहा. ईवीएम का मतलब है- ‘एवरी वोट अगेंस्ट मुल्ला.’ हमारे विरोधी ईवीएम को लेकर किस तरह चिल्लाते हैं. वे इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि कैसे हिंदू एकजुट होकर हिंदुओं को वोट दे रहे हैं. (11 जनवरी 2025). औरंगजेब का मकबरा गंदगी है वो यहां रखने लायक नहीं है. उसे शौचालय भी घोषित करेंगे तो गलत नहीं है. हमारे छत्रपति शिवाजी और संभाजी महाराज के साथ जो कुछ भी किया था, उसकी कोई भी गंदगी हमारे राज्य में रखने लायक नहीं है. (18 मार्च 2025). (पहलगाम आतंकी हमले के बाद) उन्होंने मारने से पहले हमारा धर्म पूछा. इसलिए हिंदुओं को भी कुछ खरीदने से पहले उनका धर्म पूछना चाहिए. ऐसा भी हो सकता है कि कुछ दुकानदार अपना धर्म नहीं बताएं या अपनी आस्था के बारे में झूठ बोलें. अगर वे कहते हैं कि वे हिंदू हैं तो उन्हें हनुमान चालीसा सुनाने के लिए कहें. अगर उन्हें हनुमान चालीसा नहीं आती तो उनसे कुछ भी न खरीदें. (26 अप्रैल 2025). केरल एक मिनी पाकिस्तान है. इसलिए राहुल गांधी और उनकी बहन वहां से चुनाव जीतते आ रहे हैं. सभी आतंकवादी उन्हें वोटिंग करते हैं. सभी आतंकवादियों को जोड़कर ही यह लोग सांसद बने हैं. (30 दिसंबर 2024). अगर हमारे रामगिरी महाराज के खिलाफ तुमने कुछ भी किया तो तुम्हारी मस्जिदों के अंदर आकर चुन-चुनके मारेंगे. इतना ध्यान रखना. (1 सितंबर 2024)
प्रज्ञा ठाकुर, पूर्व सांसद भाजपा : लव जिहाद करने वालों को लव जिहाद जैसा उत्तर दो. अपनी लड़कियों को सुरक्षित रखो. अपनी लड़कियों संस्कारित करो. अपने घर में हथियार रखो. कुछ नहीं तो सब्जी काटने वाला चाकू जरा तेज रखो. स्पष्ट बोल रही हूं कि हमारे घरों में भी सब्जी काटने के लिए हथियार तेज होना चाहिए. उन्होंने चाकू से हमारे हर्षा को गोदा था. उन्होंने हमारे वीरों को, हिंदू वीरों को, बजरंग दल के कार्यकर्ता, भाजपा के कार्यकर्ता, युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं को गोदा है, काटा है. तो हम भी सब्जी काटने वाले चाकुओं को जरा तेज रख लें. पता नहीं कब कैसा मौका आए. जब हमारी सब्जी अच्छे से कटेगी, तो निश्चित रूप से दुश्मनों के मुंह और सिर भी अच्छे से कटेंगे. (26 दिसंबर 2022)
यह फेहरिस्त पूरी नहीं हैं.
कांग्रेस बोली, पहलगाम हमला सुरक्षा में चूक, अमित शाह जिम्मेदार हैं
कांग्रेस ने बुधवार को आरोप लगाया कि पहलगाम आतंकी हमले में खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से फेल रही, जिसके लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जिम्मेदार हैं और उन्हें इसकी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए. पार्टी ने यह भी कहा कि देश की रक्षा बल सौ प्रतिशत सफल रहे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक नेता के रूप में ‘विफल’ रहे. एआईसीसी के पूर्व सैनिक विभाग के अध्यक्ष रोहित चौधरी ने उक्त बातें एक संवाददाता सम्मेलन में कही. उन्होंने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर एक पूर्ण सैन्य सफलता थी, जबकि मोदी की राजनीतिक विफलता थी."
पार्टी की ओर से यह भी कहा गया कि शाह ने हमले से दो सप्ताह पहले सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की थी और सब ठीक बताया था, लेकिन खुफिया सूचनाओं के कारण पीएम मोदी ने अपनी यात्रा रद्द कर दी थी. सवाल उठाया कि अगर सूचनाएं थीं तो सुरक्षा के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाए गए? आतंकवादी लोगों को एक-एक करके मारते हैं, सुरक्षित मार्ग ढूंढ़ते हैं और फिर भाग जाते हैं, यह सुरक्षा व्यवस्था की एक बड़ी विफलता है, जो गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है.
भारतीय रक्षा बलों ने पाकिस्तान पर पूरी श्रेष्ठता और प्रभुत्व स्थापित कर लिया था, लेकिन अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ‘सीजफायर’ की घोषणा के बाद राजनीतिक नेतृत्व, खासकर प्रधानमंत्री मोदी, दबाव में आकर विफल रहे. जबकि 1971 में इंदिरा गांधी और फील्ड मार्शल मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को दो हिस्सों में विभाजित किया था, और इस बार भी रक्षा बलों ने वही प्रभुत्व हासिल किया था, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व ने ‘सीजफायर’ स्वीकार कर हार मान ली.
कांग्रेस के मुताबिक, "हम जीत रहे थे, हमारी सेना पाकिस्तान के ड्रोन, मिसाइल और अन्य हमलों को नाकाम कर रही थी... लेकिन अचानक शाम को सीजफायर की घोषणा हो गई. यह सीजफायर अमेरिकी जमीन से घोषित हुआ, जो हमारे लिए शर्म की बात है. देश इस स्थिति में एकजुट था, पर सरकार ने हम पर सीजफायर थोप दिया." यह धोखा है. प्रधानमंत्री मोदी को ट्रम्प को इंदिरा गांधी की तरह जवाब देना चाहिए कि "हम मध्यस्थता स्वीकार नहीं करते, हम अपने फैसले खुद लेंगे.”
आईबी चीफ डेका को फिर एक्सटेंशन
इस बीच ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि कांग्रेस पहलगाम आतंकी हमले के लिए खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था को लाख दोष दे, लेकिन सरकार ऐसा नहीं मानती. उसने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) प्रमुख तपन डेका को एक और साल का विस्तार दे दिया है— जिससे उनका कार्यकाल चार साल का हो गया है, जो पिछले तीन दशकों में किसी भी आईबी प्रमुख का सबसे लंबा कार्यकाल है. सूत्रों के अनुसार, डेका के नेतृत्व में आईबी द्वारा कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की गई हैं, जिनमें पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी ठिकानों पर किए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रॉ (आर एंड एडब्ल्यू) के साथ समन्वय में विशिष्ट खुफिया जानकारी जुटाना शामिल है.
छत्तीसगढ़ : मुठभेड़ में शीर्ष नेता बसव राजू समेत 27 माओवादी मारे गए
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को घोषणा की कि छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में नक्सल विरोधी अभियान में प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसव राजू समेत 27 माओवादी मारे गए. पुलिस ने बताया कि मुठभेड़ में बस्तर के जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) का एक सदस्य मारा गया, जबकि कुछ अन्य घायल हो गए. ‘एक्स’ पर पोस्ट में बसव राजू को ‘नक्सल’ आंदोलन की रीढ़ बताते हुए शाह ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों के सीमावर्ती क्षेत्र में हुई मुठभेड़ को ऐतिहासिक उपलब्धि बताया. उन्होंने यह भी दोहराया कि देश से माओवाद के खात्मे के लिए केंद्र ने मार्च 2026 की समय सीमा तय की थी. शाह ने कहा कि नक्सलवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई के तीन दशकों में यह पहली बार है कि महासचिव रैंक के नेता को हमारे बलों ने बेअसर कर दिया है. उन्होंने यह भी बताया कि ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद, 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि केंद्रीय समिति या सीसी सीपीआई (माओवादी) की मुख्य राजनीतिक शाखा और सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है और बसव राजू इस साल मारे जाने वाले तीसरे सदस्य हैं. इससे पहले अप्रैल में झारखंड में प्रयाग मांझी उर्फ विवेक और रामचंद्र रेड्डी भी मारे गए थे. जनवरी में ओडिशा सीमा पर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में गारी प्रताप रेड्डी उर्फ चलपति की हत्या कर दी गई थी.
महमूदाबाद को दी अंतरिम जमानत, अदालत ने पोस्ट को 'डॉग-व्हिसलिंग' करार दिया
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजनीतिक विज्ञानी अली खान महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दे दी है. हालांकि अदालत ने उनके फेसबुक पोस्ट को ‘डॉग-व्हिसलिंग’ और ‘सस्ती लोकप्रियता’ हासिल करने का प्रयास करार दिया है. कोर्ट ने उनके पोस्ट की जांच पर रोक नहीं लगाई है और हरियाणा पुलिस प्रमुख को इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेष जांच दल गठित करने का निर्देश दिया है.
न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने टिप्पणी की कि महमूदाबाद ‘युद्ध के बारे में टिप्पणी करने’ के बाद ‘राजनीति की ओर मुड़ गए’. उन्होंने कहा कि हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाया कि क्या जिस समय उन्होंने अपना पोस्ट किया, वह ‘इतनी सांप्रदायिक बातें करने का समय था’. न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने महमूदाबाद को उनके खिलाफ मामलों के विषय या पहलगाम हमले और उस पर सरकार की प्रतिक्रिया के बारे में बोलने से रोक दिया है. अनंतकृष्णन जी ने इस पर रिपोर्ट तैयार की है.
इस बीच, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि महमूदाबाद की गिरफ्तारी और रिमांड प्रथम दृष्टया उनके मानवाधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन है.
महमूदाबाद के इस संकट के दौरान सभी शिक्षाविदों ने उनका समर्थन नहीं किया है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, गुजरात विश्वविद्यालय और राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों सहित 200 से अधिक विद्वानों और प्रशासकों ने एक बयान पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें उनके फेसबुक पोस्ट की इस आधार पर निंदा की गई है कि वे ‘सांप्रदायिक सद्भाव को अस्थिर करते हैं, संस्थागत अखंडता को कमजोर करते हैं और लैंगिक समानता को क्षीण करते हैं’. विधीशा कुंतामल्ला ने इस पर विस्तृत जानकारी दी है.
महमूदाबाद बनाम हरियाणा सरकार
सुप्रीम कोर्ट का आदेश को समझने की कोशिश
गौतम भाटिया
यह लेख यहाँ से साभार लिया गया है. लेखक इंडियन कॉन्टीट्यूशनल लॉ स्कॉलर और जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में प्रोफेसर के साथ-साथ विज्ञान कथा लेखक भी हैं.
अली खान महमूदाबाद बनाम हरियाणा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश बहुत-सी चीजें करता है. यह महमूदाबाद के अनुरोध को नामंजूर करता है कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर - जो ऑपरेशन सिंदूर के बारे में एक फेसबुक पोस्ट के जवाब में दर्ज की गई थीं - पर रोक लगा दी जाए. यह महमूदाबाद को अंतरिम जमानत देता है, ताकि वे अपने ही खिलाफ ‘चल रही जांच में सहयोग करें’. यह उनके फेसबुक पोस्टों की आगे जांच के लिए पुलिस अधिकारियों की तीन सदस्यीय विशेष जांच टीम (एसआईटी) के गठन का निर्देश देता है. यह महमूदाबाद को हाल के भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर कोई राय व्यक्त करने से प्रतिबंधित करता है. यह उनका पासपोर्ट जब्त करता है.
इतना दूरगामी आदेश, जो सीधे-सीधे अभिव्यक्ति की आजादी और आवाजाही की आजादी वाले अनुच्छेद 19 के अधिकारों को मिटा देता हो, बहुत ही मजबूत वजहों से जारी किया गया होगा. ऐसा सोचा जा सकता है. सोचा जा सकता है कि अदालत अपना इतना कड़क फैसला जारी करते हुए यह बताएगी कि एक फेसबुक पोस्ट जो भारतीय सशस्त्र बलों की पूरी तरह से प्रशंसा करता है, इससे पहले कि वह धीरे से सुझाव दे कि एक मुस्लिम महिला सेना अधिकारी को सेना के प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के दृश्य मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को संबोधित किए बिना केवल दृश्य ही रहेंगे, इस न्यायिक प्रतिक्रिया के लायक हैं. सोचा जा सकता है कि कोई बेकार ही खोजने की कोशिश करेगा कि सुप्रीम कोर्ट अपने दो पन्नों के हुक्म में महमूदाबाद के खिलाफ आरोपों के सार पर विचार नहीं करता है. इतना भी नहीं कि क्या उनका फेसबुक पोस्ट, सीधे-सीधे पढ़ने से, उन अपराधिक कसौटियों पर पूरा उतरता है, जिनका उन्हें आरोपी बनाया गया है. (और जिनके लिए उन्हें कैद किया गया है).
इसके बजाय, लगता तो ये है कि कि यह काम एसआईटी का है. अदालत कहती है कि वह इस एसआईटी का गठन "प्रयुक्त शब्दावली की जटिलता को समग्र रूप से समझने के लिए और इन दो ऑनलाइन पोस्ट्स में उपयोग किए गए कुछ अभिव्यक्तियों के उचित मूल्यांकन के लिए" कर रही है. तो क्या हमारे पास तीन गंभीर पुलिस अफसर होंगे, जो एक डेस्क पर महमूदाबाद के फेसबुक पोस्ट का रंगीन प्रिंटआउट एक हाथ में और स्टेनली फिश की किताब ‘हाउ टू राइट अ सेंटेंस; एंड हाउ टू रीड वन’ की प्रति दूसरे हाथ में लेकर बैठे होंगे, जैसे वे महमूदाबाद के पाठ की ‘समग्र समझ’ निकालने के लिए परिश्रमपूर्वक काम कर रहे हों? यदि ऐसा है, तो गलत शब्द प्रयोग के लिए पहले से खबरदार रहें! शायद अदालत को इस टीम में एक साहित्यिक आलोचक जोड़ना चाहिए था? शायद, अगर अदालत में थोड़ा हास्य की भावना होती, तो वह टेरी ईगलटन के ऑस्कर वाइल्ड के मुकदमे की पुनर्कल्पना का संज्ञान ले सकती थी, जहां ईगलटन ने महान कलाकार को यह मांग करते हुए दिखाया है कि "मैं ... वकीलों के बजाय तत्वमीमांसकों द्वारा बचाव किया जाऊं, और मेरी जूरी मेरे समकक्षों से बनी होनी चाहिए - यानी, कवि, परवर्ट, आवारा और जीनियस". और इस तरह एसआईटी को बनाया गया होता. जाहिर है पुलिस अफसर तो हिस्सा होते ही.
इस आदेश में कानूनी तर्क की अनुपस्थिति में, हमें यह पता लगाने के लिए मौखिक कार्यवाही के अनौपचारिक रिकॉर्ड को देखना होगा कि अदालत के मन में क्या चल रहा होगा. अनौपचारिक रिकॉर्ड के अवलोकन पर, हम पाते हैं कि अदालत यह टिप्पणी करती है कि महमूदाबाद का पोस्ट एक "डॉग व्हिसल" के समान हो सकता है. (डिक्शनरी के मुताबिक लाक्षणिक रूप से, 'डॉग व्हिसल' एक कोडित संदेश है, जिसे शब्दों या वाक्यांशों के माध्यम से संप्रेषित किया जाता है, जिसे आम तौर पर एक विशेष समूह के लोग समझते हैं, लेकिन अन्य लोग नहीं.)
अब, डॉग व्हिसल के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है : पहला, एक सीटी. दूसरा, कुत्तों का एक समूह, जो सीटी को सुन सकते हैं, जब यह कुत्ते के कान की आवृत्ति पर बजाई जाती है. और तीसरा, वे सभी गैर-कुत्ते जो सीटी नहीं सुन सकते. और अगर महमूदाबाद का पोस्ट वास्तव में एक डॉगव्हिसल था (और इसलिए कानून का उल्लंघन), तो अदालत का यह कर्तव्य है कि वह हमें बताए कि इसका कौन सा हिस्सा सीटी बजा रहा था, कौन से कुत्ते हैं, जिन्हें सीटी आकर्षित करना चाहती थी, और कौन से सभी गैर-कुत्ते हैं, जो कुछ भी नहीं सुन पाएंगे. लेकिन अदालत ऐसा नहीं करती, इसलिए हम अंधेरे में छोड़ दिए जाते हैं. बाद में, अनौपचारिक रिकॉर्ड के अनुसार, अदालत नोट करती है कि "विश्लेषणात्मक दिमाग वाला कोई भी व्यक्ति, भाषा से परिचित होगा... प्रयुक्त शब्द, उत्तर तरफ छोड़े गए, दक्षिण तरफ को लक्षित करेंगे... कुछ शब्दों के दोहरे अर्थ हैं..."
‘दक्षिण तरफ’ कौन है, जिसे लक्षित किया जा रहा है, और किन शब्दों के ‘दोहरे अर्थ’ हैं? संभवतः, एसआईटी हमें बताएगी. लेकिन इस चरण पर, हम बहुत धीरे से सुझाव दे सकते हैं कि अगर महमूदाबाद ने इतनी अविश्वसनीय रूप से सूक्ष्म डॉग व्हिसल जारी करने के लिए अपने विश्लेषणात्मक दिमाग का उपयोग किया कि हमें यह बताने के लिए तीन पुलिस अधिकारियों की आवश्यकता है कि सीटी कहां थी और कुत्ते कौन थे, तो यह स्पष्ट रूप से एक वास्तव में भयानक डॉग व्हिसल थी. आप अयोग्यता के आधार पर मामला बंद कर सकते हैं.
अनौपचारिक मौखिक रिकॉर्ड के अवलोकन में एक दीवार से टकराने के बाद, हालांकि, एक और स्तर का अमूर्तन है, जिस पर हम ज़ूम आउट कर सकते हैं : हम देख सकते हैं कि महमूदाबाद के वकीलों ने उनके मामले को कैसे प्रस्तुत किया, क्योंकि - संभवतः - यह वह प्रस्तुति थी, जिससे अदालत आश्वस्त नहीं हुई थी. महमूदाबाद के वकीलों ने तर्क दिया कि फेसबुक पोस्ट निर्मल देशभक्ति का एक उदाहरण के अलावा कुछ नहीं था : यह, सबसे पहले, देशभक्तिपूर्ण भाषण था, और इसलिए दंडित होने के लायक नहीं था. यह समझ पाने की काफी वजहें हैं कि महमूदाबाद की कानूनी टीम अपने तर्कों को इस तरह से क्यों प्रस्तुत करेगी, लेकिन पर्यवेक्षकों के रूप में, हम उन बाधाओं के अधीन नहीं हैं. इसलिए इस तर्क के आधार की जांच करना महत्वपूर्ण है. क्या संविधान ‘अदेशभक्तिपूर्ण’ भाषण का निषेध करता है? आइए संवैधानिक पाठ को देखें : विशेष रूप से, अनुच्छेद 19(2). यह तुरंत स्पष्ट हो जाता है कि संविधान अदेशभक्तिपूर्ण भाषण का निषेध नहीं करता है, चाहे इस विषय पर हमारे व्यक्तिगत विचार कुछ भी हों.
इसके कारण दो हैं, और वे महत्वपूर्ण हैं. पहला, जो ‘देशभक्ति’ का गठन करता है वह गहराई से व्यक्तिपरक है, और न्यायिक मानकों के लिए बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है - निश्चित रूप से एक आदमी को कैद करने के लिए पर्याप्त नहीं है. सैमुअल जॉनसन की प्रसिद्ध पंक्ति, ‘देशभक्ति धूर्त लोगों की अंतिम शरण है’. ‘सच्चे’ देशभक्तों को ‘झूठे’ लोगों से अलग करने का उनका अपना प्रयास, इसका प्रमाण है. लेकिन दूसरा, देशभक्ति (और राष्ट्रवाद) की अवधारणा बहुत लंबे समय से विवादित रही है. ई.एम. फॉर्स्टर ने प्रसिद्ध रूप से लिखा, "मुझे कारणों के विचार से नफरत है, और अगर मुझे अपने देश को धोखा देने और अपने दोस्त को धोखा देने के बीच चुनाव करना पड़े तो मुझे उम्मीद है कि मेरे पास अपने देश को धोखा देने की हिम्मत होगी." इस दृष्टिकोण के अपरंपरागत स्वभाव से अवगत, उन्होंने आगे विस्तार से बताया : "ऐसा चुनाव आधुनिक पाठक को हैरान कर सकता है, और वह तुरंत टेलीफोन तक अपना देशभक्तिपूर्ण हाथ फैला सकता है और पुलिस को फोन कर सकता है. हालांकि यह दांते को आश्चर्यचकित नहीं करता. दांते ब्रूटस और कैसियस को नरक के सबसे निचले घेरे में रखता है, क्योंकि उन्होंने अपने देश रोम के बजाय अपने दोस्त जूलियस सीज़र को धोखा देने का चुनाव किया था." हाल ही में, महान सर्बो-क्रोएट लेखिका, दुब्रावका उग्रेसिक, जिन्होंने राष्ट्रवादी युद्ध के भयावहता का व्यक्तिगत अनुभव किया था, ने अपनी आत्मकथा में देशभक्ति की अवधारणा की सीधे आलोचना की.
बात यह नहीं है कि हम फॉर्स्टर या उग्रेसिक से सहमत हैं या नहीं, बल्कि बात यह है कि संविधान बहुत ही समझदारी से ‘अदेशभक्तिपूर्ण’ भाषण को अवैध नहीं ठहराता है : इसने, और इसके निर्माताओं ने पहचाना कि विवादित अवधारणाओं को अस्तित्व से बाहर करने के लिए अपराधी बनाने का प्रयास करना व्यर्थ है. मुझे लगता है कि यह बिंदु बनाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि कभी-कभी एक विशेष मामले में अच्छी कानूनी रणनीति का प्रभाव सभी अन्य मामलों के लिए संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं की सीमाओं को संकुचित करना हो सकता है. इस प्रकार, महमूदाबाद की देशभक्ति की पुष्टि करने की हमारी इच्छा में, यह समान रूप से आवश्यक है कि पुष्टि की जाए कि संविधान देशभक्ति को मजबूर करने के व्यवसाय में नहीं है; यह केवल तब हस्तक्षेप करता है जब भाषण हिंसा या सार्वजनिक अव्यवस्था के लिए उकसावा होता है, और उससे पहले नहीं.
इसलिए मुझे सम्मानपूर्वक सुझाव देना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश कानून में पूरी तरह से सही नहीं हो सकता है. एसआईटी के गठन के कारण भ्रामक हैं. गैग ऑर्डर अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. पासपोर्ट की जब्ती अत्यधिक लगती है. इस बीच, यह सूचित किया गया है कि महमूदाबाद का लैपटॉप जब्त कर लिया गया है, और इसलिए आशा की जाती है कि अदालत का आदेश पुलिस द्वारा एफआईआर के दायरे से बाहर जाकर कुछ और ही ताकने- तलाशने का बहाना नहीं बनेगा.
और यह सब, एक फेसबुक पोस्ट के लिए!
वक़्फ़ इस्लाम का अनिवार्य अभ्यास नहीं है : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा
बुधवार 21 मई को सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर सुनवाई के दौरान केंद्र का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक़्फ़ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं. यह धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर आधारित है. सीजेआई बीआर गवई के केंद्र से पूछा कि धारा 3सी केवल कागजी प्रविष्टि है या कब्जा लेने का अधिकार देती है? क्या जांच के दौरान संपत्ति हस्तांतरित हो सकती है? एसजी ने कहा, यथास्थिति बनी रहेगी. क्या सक्षम न्यायालय के निर्णय से पहले कब्जा लिया जा सकता है? एसजी ने कहा, नहीं.
केंद्र सरकार की दलीलें (सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता)
वक़्फ़ इस्लाम का अनिवार्य धार्मिक अभ्यास नहीं, बल्कि दान की तरह है, जो सभी धर्मों में होता है.
यह मौलिक अधिकार नहीं, क्योंकि कई इस्लामी देशों में वक़्फ़ की जगह ट्रस्ट हैं.
संशोधन संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के विस्तृत विचार-विमर्श और देशभर के हितधारकों से परामर्श के बाद पारित.
धारा 3सी (वक़्फ़ संपत्ति की जांच) : यह प्रावधान केवल राजस्व रिकॉर्ड को सही करता है, न कि संपत्ति का अंतिम स्वामित्व निर्धारित करता. नामित अधिकारी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की जांच करेगा. शीर्षक का निर्णय वक़्फ़ ट्रिब्यूनल या उच्च न्यायालय करेगा.
धारा 3सी के तहत कब्जा नहीं लिया जा सकता. सरकार को स्वामित्व के लिए मुकदमा दायर करना होगा.
राजस्व रिकॉर्ड में वक़्फ़ का चरित्र केवल निलंबित होता है, संपत्ति हस्तांतरण नहीं हो सकता.
वक़्फ़-बाय-यूजर : इसे खत्म करना उचित, क्योंकि इसके नाम पर सरकारी संपत्तियों पर अनुचित दावे हो रहे हैं. यह केवल वैधानिक मान्यता है, न कि मौलिक अधिकार.
1923 और 1954 के वक़्फ़ अधिनियमों में पंजीकरण अनिवार्य था. गैर-पंजीकृत वक़्फ़ को वैध नहीं माना जा सकता. नया कानून छह महीने की पंजीकरण अवधि देता है, जिससे पुराने वक़्फ़ भी पंजीकृत हो सकते हैं.
गैर-मुस्लिम सदस्यों (अधिकतम 2) की उपस्थिति उचित, क्योंकि वक़्फ़ मस्जिद, दरगाह, स्कूल, अनाथालय जैसे धर्मनिरपेक्ष/धर्मार्थ कार्यों से जुड़ा है. गैर-मुसलमान भी वक़्फ़ से लाभार्थी, प्रभावित या पीड़ित हो सकते हैं.
धारा 3डी : प्राचीन स्मारकों पर वक़्फ़ घोषणा पर रोक, एएसआई चिंताओं को ध्यान में रखकर.
धारा 3ई : अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में वक़्फ़ निर्माण पर रोक, संविधान की विशेष सुरक्षा के अनुरूप. इन प्रावधानों को चुनौती 'शैक्षणिक', क्योंकि कोई अनुसूचित जनजाति सदस्य ने विरोध नहीं किया.
हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती से तुलना अनुचित, क्योंकि वक़्फ़ का दायरा व्यापक और धर्मनिरपेक्ष है.
पंजीकरण न करने का परिणाम केवल मुतवल्ली पर जुर्माना नहीं, बल्कि गैर-पंजीकृत वक़्फ़ की वैधता पर सवाल.
वक़्फ़ बोर्ड का धार्मिक चरित्र नहीं बदलता, क्योंकि यह धार्मिक समारोहों में हस्तक्षेप नहीं करता.
याचिकाकर्ताओं की दलील
धारा 3सी पर चिंता : सरकार को वक़्फ़ संपत्तियों पर एकतरफा कब्जा करने का अधिकार देता है.
कलेक्टर द्वारा जांच शुरू होने पर संपत्ति का वक़्फ़ चरित्र खत्म हो जाता है, और जांच पूरी होने पर कब्जा लिया जा सकता है.
अधिनियम संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है.
वक़्फ़ की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को खतरा.
कानून लागू होने पर वक़्फ़ संपत्तियों और मुस्लिम समुदाय को अपूरणीय क्षति.
सुनवाई को 22 मई को भी जारी रहेगी.
न्यूजलॉन्ड्री को चकला और वहां की महिला पत्रकारों को वेश्या बताने वाले अभिजीत अय्यर मित्रा पर 2 करोड़ रुपये के हर्जाने का मामला, अदालत ने कमेंट हटवाया
दिल्ली हाईकोर्ट ने इंटरनेट पर्सनैलिटी और ओपइंडिया के कॉलमिस्ट अभिजीत अय्यर-मित्रा को डिजिटल न्यूज़ आउटलेट न्यूज़लॉन्ड्री की महिला पत्रकारों के खिलाफ किए गए यौन अपमानजनक पोस्ट को हटाने का आदेश दिया है. न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने अय्यर-मित्रा के ‘शब्दों के चयन’ की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह ‘सभ्य समाज में अस्वीकार्य’ है. न्यूज़लॉन्ड्री की नौ महिला पत्रकारों ने अय्यर-मित्रा के खिलाफ 2 करोड़ रुपये के हर्जाने का दावा करते हुए मुकदमा दायर किया था. शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि अय्यर-मित्रा ने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से महिला पत्रकारों को ‘वेश्या’ और उनके कार्यस्थल को ‘वेश्यालय’ कहकर ‘झूठे और दुर्भावनापूर्ण’ तरीके से निशाना बनाया था. अदालत ने अय्यर-मित्रा को पाँच घंटे के भीतर आपत्तिजनक पोस्ट हटाने का निर्देश दिया. न्यायाधीश ने चेतावनी दी कि अगर पोस्ट नहीं हटाए गए तो वे अय्यर-मित्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे सकते हैं. न्यायमूर्ति कौरव ने स्पष्ट रूप से कहा, "ऐसी भाषा और शब्द एक सभ्य समाज में अनुमति योग्य नहीं हैं. पहले आप पोस्ट हटाएँ फिर हम आपकी सुनवाई करेंगे." जब अय्यर-मित्रा के वकील ने तर्क दिया कि न्यूज़लॉन्ड्री एक समाचार संगठन नहीं है और उनके पोस्ट केवल उनके ‘संदिग्ध आय स्रोतों’ को उजागर करते हैं, तो अदालत ने जवाब दिया : "उनकी संदिग्ध आय जो भी हो सकती है, वह हमारे समक्ष चुनौती के अधीन नहीं है. हम केवल वही परीक्षण कर सकते हैं, जो कानूनी रूप से चुनौती दी गई है." अदालत ने यह भी कहा, "क्या किसी ऐसे व्यक्ति को जो संदिग्ध स्रोतों से वित्तीय सहायता ले रहा है, वेश्यालय कहा जा सकता है? आपके वादियों के खिलाफ कई शिकायतें और यहां तक कि उचित टिप्पणियां भी हो सकती हैं, लेकिन शब्दों का चयन एक सभ्य समाज में अस्वीकार्य है."
राजनीतिक और धार्मिक टैटू हटवा रहे हैं कश्मीरी
कश्मीर में लोग अब राजनीतक और धार्मिक संदेश वाले टैटू हटवा रहे हैं, जो कभी यहां अभिव्यक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता था. हालांकि टैटू हटाने का चलन पहले से ही चल रहा था, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद इसमें तेजी आ गई है. ऐसे तनावपूर्ण माहौल में, कई कश्मीरी युवा कहते हैं कि वे खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं - और अभिव्यक्ति के सबसे व्यक्तिगत रूपों पर भी जांच को लेकर अधिक असुरक्षित महसूस करते हैं.
लोगों ने कहा, “स्पष्ट टैटू वाले लोग - विशेष रूप से वे जो पिछले राजनीतिक जुड़ावों का संकेत देते हैं - अचानक चिंतित हो गए हैं कि उनका प्रोफ़ाइल बनाया जा सकता है, उनसे पूछताछ की जा सकती है - या इससे भी बदतर." टैटू से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे कुछ कश्मीरियों का कहना है कि यह उनके व्यक्तिगत विकास और वृद्धि का हिस्सा है.
टैटू हटाने का कारण सिर्फ़ सुरक्षा बल ही नहीं हैं. कुछ लोगों के लिए टैटू अशांत अतीत की दर्दनाक याद बन गई है. इसके साथ ही यहां के लोगों के लिए ‘टैटू’ हटवाने के पीछे सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक कारण भी जुड़े हैं. अलजजीरा की रिपोर्ट.
बढ़ रही हैं गर्म रातें
ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 60% से कुछ कम जिले, जिनमें हमारी कुल आबादी के तीन चौथाई से अधिक लोग रहते हैं, या तो ‘उच्च’ या ‘अत्यधिक’ ताप जोखिम का सामना करते हैं. इसने नोट किया है कि पिछले दशक में बहुत गर्म रातों की संख्या बहुत गर्म दिनों की संख्या की तुलना में तेजी से बढ़ी है. इसमें ठंडे हिमालयी जिले भी शामिल हैं. ऐसी गर्म रातें – जो ‘शहरी ताप द्वीप प्रभाव’ के कारण शहरों में आम हैं – एक समस्या हैं, क्योंकि वे मानव शरीर को ठंडा नहीं होने देतीं. इसने उत्तर भारत भर में सापेक्षिक आर्द्रता में भी वृद्धि पाई, जिसमें आमतौर पर शुष्क क्षेत्र भी शामिल हैं, जो शरीर के लिए गर्मी खोना कठिन बनाता है.
ताप जोखिम का एक अनदेखा पहलू है, घर के अंदर की गर्मी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है, क्योंकि एक शोधकर्ताओं के अनुसार, उन्हें “घरेलू काम के साथ-साथ वेतनभोगी काम भी करना पड़ता है, बिना हवादार स्थानों में खाना बनाते समय लंबे समय तक खुले में रहना पड़ता है, और अक्सर सबसे आखिर में या अपर्याप्त खाना खाना पड़ता है.”
दिल्ली में तूफान, बारिश, तेज हवाएं, पारा 50 पार
मंगलवार शाम को दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में शक्तिशाली तूफान आया, जिसके कारण बारिश, तेज हवाएं चलीं और बड़े पैमाने पर बिजली गुल हो गई. मनीकंट्रोल के अनुसार, मौसम विभाग ने कई जिलों में 'रेड अलर्ट' जारी किया है, जिसमें हल्की से मध्यम बारिश के साथ-साथ आंधी, धूल भरी आंधी और तेज़ हवाएं चलने का अनुमान है. आसमान में बादल छाने के साथ ही शहर के कई इलाकों में भारी बारिश हुई. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, 10 फ्लाइट का रूट डायवर्ट कर दिया गया है और पचासों उड़ाने समय से नहीं चल सकीं. मौसम में आए इस बदलाव से दिल्लीवासियों को भीषण गर्मी से राहत मिली है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी में दिन में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया. राष्ट्रीय राजधानी के कई हिस्सों में बहुत से पेड़ उखड़ गए और होर्डिंग्स लहराकर गिर गए हैं.
भारतीय सुरक्षा बलों ने हमारे 10 सदस्यों को मार डाला : एनयूजी
म्यांमार के प्रतिरोधी समूह 'नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट' (एनयूजी) ने आरोप लगाया है कि उसके दस सदस्यों को भारतीय सुरक्षा बलों ने पकड़कर, यातना देकर फौरन फांसी दे दी. एनयूजी के अनुसार, पिछले सप्ताह मणिपुर में भारत-बर्मा सीमा के पास भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए दस लोग पीपुल्स डिफेंस ऑर्गनाइजेशन (पीडीओ) के सदस्य थे, जो एनयूजी के तहत काम करता है. एनयूजी का आरोप है कि ये दस लोग किसी मुठभेड़ में नहीं मारे गए (जैसा कि भारतीय सेना ने दावा किया है), बल्कि उन्हें पहले से सूचना देने के बावजूद भारतीय बलों ने पकड़ा, यातना दी और फिर मार डाला. एनयूजी ने भारत सरकार से उन इलाकों में सीमा पर बाड़ लगाने का काम अस्थायी रूप से रोकने की मांग की है, जहां सीमा स्पष्ट रूप से चिन्हित नहीं है.
इंटरनेट फ्रीडम पर तथ्य-जांच आरटीआई के आधार पर
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने आरटीआई का उपयोग कर विश्लेषण किया कि है कि भारतीय राज्य इंटरनेट पर गलत सूचनाओं पर कैसे नज़र रखते हैं. इसने पाया कि कुछ राज्य सक्रिय दृष्टिकोण अपनाते हैं, (जहाँ वे सक्रिय रूप से सोशल मीडिया की जाँच करते हैं) जबकि अन्य अधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं. हर राज्य में प्रतिक्रिया का तरीका अलग-अलग होता है, जिसमें एक चरम पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह है, जो गलत सूचना के कुछ मामलों में इंटरनेट बंद कर देता है. कई राज्यों ने गलत सूचना के जवाब में कड़े कानून लागू किए हैं और कानून में अस्पष्ट भाषा के कारण मनमाने ढंग से लागू किए जाने का जोखिम रहता है.
चलते-चलते
कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक की किताब 'हार्ट लैंप' ने जीता अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025
कन्नड़ लेखिका, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक की पुस्तक 'हार्ट लैंप' ने 2025 का प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है. दीपा भस्ती द्वारा अनुवादित यह किताब अनुदित कथा साहित्य के लिए दिए जाने वाले इस पुरस्कार को जीतने वाला पहला कहानी संग्रह बन गया है. यह पहली कन्नड़ पुस्तक और भारत तथा दक्षिण एशिया से दूसरी ऐसी किताब है, जिसने यह पुरस्कार जीता है. बुकर पुरस्कार यूके और आयरलैंड में प्रकाशित अनुदित कथा साहित्य को दिया जाता है. निर्णायक मंडल के अध्यक्ष मैक्स पोर्टर ने इस पुस्तक को ‘अंग्रेजी पाठकों के लिए वास्तव में कुछ नया : एक क्रांतिकारी अनुवाद’ और ‘सुंदर, जीवंत, जीवन की पुष्टि करने वाली कहानियां’ बताया है. 'हार्ट लैंप' की 12 कहानियां दक्षिण भारत के पितृसत्तात्मक समुदायों में महिलाओं के जीवन का वर्णन करती हैं. इन कहानियों का चयन और अनुवाद दीपा भस्ती ने किया है, जो इस पुरस्कार को जीतने वाली पहली भारतीय अनुवादक बन गई हैं. उन्होंने मुश्ताक द्वारा 30 वर्षों की अवधि में लिखे गए छह संग्रहों की लगभग 50 कहानियों में से इन कहानियों का चयन किया था. 2022 में, गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि', जिसका अंग्रेजी में डेज़ी रॉकवेल ने 'टॉम्ब ऑफ़ सैंड' के रूप में अनुवाद किया था, ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता था. लंदन में बीबीसी के निखिल इनामदार से बात करते हुए मुश्ताक ने दुनिया भर में और भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए घटते स्थान के बारे में भी बात की और बताया कि कैसे संस्कृति - कहानी कहना, गाना, नृत्य - लोगों को एकजुट कर सकती है.
पुरस्कार प्राप्त करते हुए मुश्ताक ने कहा, “यह जीत निजी उपलब्धि से कहीं अधिक है. यह इस बात की पुष्टि है कि हम व्यक्ति के रूप में और एक वैश्विक समुदाय के रूप में तभी फल-फूल सकते हैं, जब हम विविधता को अपनाएं. अपनी भिन्नताओं का जश्न मनाएं और एक-दूसरे को ऊपर उठाएं." उन्होंने आगे कहा, "एक ऐसी दुनिया में, जो अक्सर हमें विभाजित करने की कोशिश करती है, साहित्य उन खोए हुए पवित्र स्थानों में से एक है, जहां हम एक-दूसरे के दिमाग के अंदर रह सकते हैं." बीबीसी के अनुसार मुश्ताक "एक प्रमुख स्थानीय टैब्लॉइड में रिपोर्टर के रूप में काम करती थीं और बंदाय आंदोलन से भी जुड़ी थीं - जो साहित्य और कार्यवाद के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक अन्याय को संबोधित करने पर केंद्रित था. एक दशक बाद पत्रकारिता छोड़ने के बाद, उन्होंने अपने परिवार का समर्थन करने के लिए वकील के रूप में काम शुरू किया." उनके खिलाफ फतवा जारी किया गया था और एक व्यक्ति ने उन पर चाकू से हमला करने की कोशिश भी की थी, लेकिन उनके पति ने उसे काबू कर लिया था. लेकिन इन घटनाओं ने मुश्ताक को विचलित नहीं किया, जो निडर ईमानदारी के साथ लिखती रहीं. कई दशकों के शानदार करियर में, उन्होंने भारी मात्रा में काम प्रकाशित किया है; जिसमें छह कहानी संग्रह, एक निबंध संग्रह और एक उपन्यास शामिल हैं.
पाठकों से अपील-
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.