22/06/2025 | खामेनेई बंकर में, उत्तराधिकारी नामांकित | रुस-चीन का रुख | यूएपीए दागी भाजपा में शामिल | मोदी के पिछले साल 947 हेट क्राइम | ट्रम्प को नोबेल की चाह, पाकिस्तान ने सिफारिश लगाई
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ :
बंकर में छिपे खामेनेई, चुने 3 उत्तराधिकारी
अमेरिका ने अपने जहाज भेजे
मुस्लिम देशों की सभा में गरजे तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन, इजरायल की बदमाशी रोकने के लिए दिखानी होगी एकजुटता
अब यह साफ है, मैच फिक्स है, राहुल गांधी ने फिर लगाए चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप
दाऊद का संगी, यूएपीए का आरोपी बीजेपी में शामिल, पार्टी अध्यक्ष की भी नहीं सुनी
11 वर्षों में केवल "न्यूजरील" देखी, "असली फिल्म" अभी आना बाकी : गडकरी
गुजरात के पूर्व मंत्री के मुताबिक अंधाधुंध सत्ता की चाह में भाजपा पार्टी की पूरी संस्कृति बदली
जज वर्मा के बंगले में मिली नकदी की जानकारी सबसे पहले अमित शाह को मिली
सरकारी रसोइए को मारकर बस्तर पुलिस ने इनामी नक्सली बता दिया!
दलाई लामा 2 जुलाई को कर सकते हैं उत्तराधिकारी की घोषणा
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में 947 हेट क्राइम की घटनाएं : रिपोर्ट
मप्र में ईसाई स्कूलों को लेकर 'गंभीर इरादों' की आशंकाएं
गाजा पर सरकार की चुप्पी को लेकर सोनिया ने कलम उठाई
क्या मुकेश के बच्चों में भी है पिता जैसा जुनून।
रूस और चीन रुकवा पाएंगे नेतन्याहू की जंग ?
संदिग्ध चाल, चोले, चरित्र वाले ट्रम्प को भारत-पाक मध्यस्थता के लिए नोबेल पुरस्कार चाहिए और.. पाकिस्तान ने दे भी दिया
इजराइल - ईरान संघर्ष
बंकर में छिपे खामेनेई, चुने 3 उत्तराधिकारी
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने अपनी हत्या के डर से बंकर में शरण ली है और इलेक्ट्रॉनिक संचार बंद कर दिया है. खामेनेई ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए अपनी मौत की स्थिति में सत्ता के त्वरित हस्तांतरण के लिए तीन वरिष्ठ मौलवियों को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया है. अब केवल एक भरोसेमंद सहयोगी के माध्यम से ही अपने कमांडरों से बात कर रहे हैं. न्यू यार्क टाइम्स में पत्रकार फ़रनाज़ फ़ासिही ने लंबा डिस्पैच लिखा है.
युद्ध की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 86 वर्षीय खामेनेई ने एक ऐसा कदम उठाया है जो ईरान के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया. उन्होंने अपनी हत्या की स्थिति में देश को नेतृत्वहीन होने से बचाने के लिए तीन वरिष्ठ मौलवियों को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया है. यह कदम ईरान और उसके तीन दशक पुराने शासन के लिए इस नाज़ुक समय की सबसे बड़ी मिसाल है.
पिछले शुक्रवार को इजरायल द्वारा शुरू किए गए हमले 1980 के दशक में इराक के साथ हुए युद्ध के बाद ईरान पर हुआ सबसे बड़ा सैन्य हमला है. राजधानी तेहरान पर इसका प्रभाव विशेष रूप से विनाशकारी रहा है. कुछ ही दिनों में, इजरायली हमलों ने तेहरान में उतनी तबाही मचाई है, जितनी सद्दाम हुसैन अपने आठ साल के युद्ध में भी नहीं कर पाए थे. हालांकि, ईरान शुरुआती झटके से उबरता दिख रहा है और उसने इजरायल पर जवाबी हमले शुरू कर दिए हैं, जिसमें एक अस्पताल, हाइफ़ा तेल रिफाइनरी और कई अन्य इमारतों को निशाना बनाया गया है. आम तौर पर, ईरान में नए सर्वोच्च नेता को चुनने की प्रक्रिया में महीनों लग जाते हैं, लेकिन युद्ध के समय खामेनेई एक त्वरित और व्यवस्थित सत्ता हस्तांतरण सुनिश्चित करना चाहते हैं. उन्होंने देश की 'विशेषज्ञों की सभा' को निर्देश दिया है कि उनकी मृत्यु की स्थिति में उनके द्वारा दिए गए तीन नामों में से तुरंत किसी एक को चुन लिया जाए. अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया है कि खामेनेई के बेटे मुज्तबा, जिन्हें एक संभावित दावेदार माना जा रहा था, इन तीन नामों में शामिल नहीं हैं. ईरानी अधिकारी मान रहे हैं कि देश के सुरक्षा और खुफिया तंत्र में एक "बड़ी चूक" हुई है. ईरान की संसद के अध्यक्ष के एक वरिष्ठ सलाहकार ने एक ऑडियो रिकॉर्डिंग में कहा, "यह स्पष्ट है कि हमारी सुरक्षा में भारी चूक हुई है; इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता. हमारे वरिष्ठ कमांडरों की एक घंटे के भीतर हत्या कर दी गई." इजरायली जासूसों और उनके सहयोगियों के देश के भीतर सक्रिय होने के डर ने ईरानी सत्ता को हिला दिया है. इसी डर के कारण, खुफिया मंत्रालय ने अधिकारियों को सेलफोन या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग बंद करने का आदेश दिया है और सभी वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों व सैन्य कमांडरों को भूमिगत रहने के लिए कहा है.
इजरायली हमलों ने ईरान में एक अप्रत्याशित परिणाम दिया है. देश के भीतर गहरे राजनीतिक मतभेद रखने वाले गुट भी बाहरी खतरे के खिलाफ एकजुट हो गए हैं. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी, जो सरकार की मुखर आलोचक रही हैं, ने भी हमलों के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा, "लोकतंत्र हिंसा और युद्ध के माध्यम से नहीं आ सकता." ईरान के अंदर और बाहर कई लोगों में राष्ट्रवाद की भावना फिर से जाग उठी है. ईरान की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के एक खिलाड़ी सईद इज़्ज़तुल्लाही ने सोशल मीडिया पर लिखा, "परिवार की तरह, हम हमेशा सहमत नहीं हो सकते, लेकिन ईरान की मिट्टी हमारी लाल रेखा है."
अमेरिका ने अपने जहाज भेजे : अमेरिका ने मुख्यभूमि से अपने अत्याधुनिक B-2 स्टील्थ बमवर्षक विमानों को प्रशांत महासागर स्थित गुआम द्वीप की ओर रवाना कर दिया है. 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, ये बमवर्षक मिसौरी स्थित व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस से उड़ान भर चुके हैं. B-2 बमवर्षक की रेंज 6,000 समुद्री मील से अधिक है और यह 40,000 पाउंड से अधिक वजन के पारंपरिक व परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है.
इज़रायल का जवाबी हमला: इज़रायल ने तेहरान, इस्फहान और फोर्दो में ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए. इज़रायली सेना ने दावा किया कि नतांज़ परमाणु संयंत्र को भारी नुकसान पहुंचा, जहां 60% तक यूरेनियम संवर्धन होता था. ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर हुसैन सलामी और यूएवी कमांडर ताहिर पौर सहित कई शीर्ष सैन्य और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए.
इज़राइली सैन्य अधिकारियों के अनुसार, सईद इज़ादी, जो अल-क़ुद्स की फ़िलिस्तीन कोर के प्रमुख थे और हमास को हथियार और धन मुहैया कराने में मुख्य भूमिका निभा रहे थे, उन्हें ईरान के क़ोम शहर में एक फ्लैट पर हमले में मारा गया. इज़ादी पर आरोप है कि उन्होंने 7 अक्टूबर 2023 को इज़राइल पर हुए हमास हमले (जिसमें 1,200 लोग मारे गए थे) से पहले हमास को भारी समर्थन दिया था. इज़राइल ने यह भी दावा किया है कि बेनाम शहरीयारी, जो हिज़्बुल्ला को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदार थे, वे भी एक अलग हमले में मारे गए हैं.
ईरान का जवाबी हमला : शनिवार सुबह ईरान ने इज़राइल पर मिसाइलों की बौछार कर दी. इज़रायल के उत्तरी बंदरगाह शहर हाइफ़ा पर बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों से हमले तेज़ कर दिए हैं. 21 जून को हाइफ़ा में एक तेल रिफाइनरी और आंतरिक मंत्रालय मुख्यालय के पास मिसाइलें गिरीं, जिससे 23 लोग घायल हुए और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा. इज़रायल के आयरन डोम और एरो-3 डिफेंस सिस्टम ने कई मिसाइलों को रोका, लेकिन कुछ ने रक्षा प्रणाली को भेदकर नुकसान पहुंचाया.
हाइपरसोनिक मिसाइलों का उपयोग: ईरान ने पहली बार "फतह-1" और "सजील" हाइपरसोनिक मिसाइलों का उपयोग किया, जो ध्वनि की गति से पांच गुना तेज़ हैं. इन हमलों से तेल अवीव, हाइफ़ा और बीरशेबा में भारी तबाही मची.
अमेरिका की भूमिका: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान को चेतावनी दी कि परमाणु समझौता न करने पर और बड़े हमले होंगे. ट्रम्प प्रशासन ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए, जिसमें 20 संस्थाएं और पांच व्यक्ति शामिल हैं.
चाबहार पोर्ट पर खतरा: ईरान-इज़रायल संघर्ष से भारत के रणनीतिक चाबहार पोर्ट पर संकट मंडरा रहा है, जहां भारत ने 85 मिलियन डॉलर का निवेश किया है. अमेरिकी प्रतिबंध और युद्ध इस परियोजना को जटिल बना सकते हैं.
तेल आपूर्ति पर संकट: हाइफ़ा तेल रिफाइनरी और ईरान के साउथ पार्स गैस क्षेत्र पर हमलों से वैश्विक तेल और गैस आपूर्ति प्रभावित हो सकती है. होर्मुज़ स्ट्रेट पर खतरा मंडरा रहा है, जो विश्व के तेल व्यापार का प्रमुख मार्ग है. हाइफ़ा रिफाइनरी पर हमले से प्रदूषण का खतरा बढ़ गया है, जिसके खिलाफ स्थानीय कार्यकर्ता पहले से आवाज़ उठा रहे थे.
आर्थिक नुकसान: तेल अवीव स्टॉक एक्सचेंज और हाइफ़ा रिफाइनरी को हुए नुकसान से इज़रायल की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा, जबकि ईरान के सैन्य और परमाणु बुनियादी ढांचे को भारी क्षति पहुंची.
मुस्लिम देशों की सभा में गरजे तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन, इजरायल की बदमाशी रोकने के लिए दिखानी होगी एकजुटता
'अलजजीरा' की रिपोर्ट है कि तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोआन ने शनिवार को इस्तांबुल में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की बैठक को संबोधित करते हुए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को "क्षेत्रीय शांति का सबसे बड़ा रोड़ा" करार दिया. उन्होंने कहा कि ईरान के खिलाफ इज़रायल के हमले अमेरिका के साथ प्रस्तावित परमाणु वार्ता को विफल करने के लिए जानबूझकर किए गए हैं. उन्होंने कहा— “नेतन्याहू और उनकी सरकार कूटनीति के जरिये कोई समाधान नहीं चाहती. नेतन्याहू की यह ज़ायोनिस्ट महत्वाकांक्षा हमारे क्षेत्र और पूरी दुनिया को एक बड़े संकट में झोंकने की साज़िश है.” उन्होंने पश्चिमी नेताओं पर इज़रायल को “बिना शर्त समर्थन” देने का आरोप लगाया और कहा कि तुर्की मध्य पूर्व की सीमाओं को “खून से दोबारा खींचने” की इजाजत नहीं देगा. “यह ज़रूरी है कि हम केवल फ़िलिस्तीन ही नहीं, बल्कि सीरिया, लेबनान और ईरान में भी इज़राइल की बदमाशी को रोकने के लिए एकजुटता दिखाएं.”
तुर्की वर्तमान में OIC की अध्यक्षता कर रहा है और उसने खुद को इसरायल-ईरान संघर्ष में एक मध्यस्थ की भूमिका में रखा है. OIC, 57 देशों का संगठन है जिसका उद्देश्य मुस्लिम दुनिया के हितों की रक्षा करना और अंतरराष्ट्रीय शांति व सद्भाव को बढ़ावा देना है. तुर्की के विदेश मंत्री हाकान फिदान ने कहा— “इज़राइल, ईरान पर हमला करके पूरे क्षेत्र को तबाही की ओर ले जा रहा है. आज कोई फ़िलिस्तीनी, सीरियाई, लेबनानी या ईरानी समस्या नहीं है, असल समस्या इज़रायल है.”
OIC बैठक के मौके पर ईरान के विदेश मंत्री अराक़ची ने कहा- “हम तब तक अमेरिका से वार्ता नहीं कर सकते जब तक हमारे लोग अमेरिका समर्थित बमबारी में मारे जा रहे हैं.” अराक़ची ने चेतावनी दी कि अमेरिका का सैन्य हस्तक्षेप “बहुत ही खतरनाक” होगा. उन्होंने यह भी बताया कि वे सोमवार को मास्को जाएंगे.
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि एर्दोआन ने घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र की फिलीस्तीनी शरणार्थियों के लिए राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) अंकारा में एक कार्यालय खोलेगी. साथ ही उन्होंने मुस्लिम देशों से आग्रह किया कि वे इस एजेंसी को और अधिक समर्थन दें, खासकर उस समय जब इज़राइल ने UNRWA पर प्रतिबंध लगा दिया है. गौरतलब है कि इज़राइल ने पिछले साल UNRWA पर यह आरोप लगाते हुए प्रतिबंध लगाया था कि इसने हमास के उन सदस्यों को नियुक्त किया था जो अक्टूबर 2023 के इज़राइल पर हमले में शामिल थे. इस हमले से गाज़ा युद्ध की शुरुआत हुई थी.
तुर्की ने इज़राइल की गाज़ा पर सैन्य कार्रवाई को "नरसंहार" करार दिया है और UNRWA पर प्रतिबंध को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है. वर्तमान में गाज़ा गंभीर मानवीय संकट से गुजर रहा है, जहां लगभग पूरा इलाका मलबे में तब्दील हो चुका है और लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं.
इस्तांबुल में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की विदेश मंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति एर्दोआन ने कहा, “हम UNRWA को पंगु नहीं होने दे सकते, जो फिलीस्तीनी शरणार्थियों की देखभाल के मामले में एक अपरिवर्तनीय भूमिका निभाता है. हम OIC से और उसके हर सदस्य देश से अपील करते हैं कि वे इस एजेंसी को वित्तीय और नैतिक समर्थन प्रदान करें ताकि इज़राइल की चालों को विफल किया जा सके.”
तुर्की ने 2023 से 2025 के बीच हर साल UNRWA को 1 करोड़ डॉलर (USD 10 million) की सहायता दी है. वर्ष 2024 में, तुर्की ने अलग से 20 लाख डॉलर और अपनी आपदा प्रबंधन एजेंसी AFAD के जरिए 30 लाख डॉलर और भेजे.
अब तक गाज़ा के 23 लाख निवासियों को सहायता पहुंचाने का काम मुख्य रूप से UNRWA जैसे संयुक्त राष्ट्र संगठनों द्वारा किया जाता था, लेकिन इज़राइल ने हाल ही में सहायता वितरण की जिम्मेदारी गाज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (GHF) नामक एक नए अमेरिकी-समर्थित समूह को सौंप दी है, जो इज़राइली सेना द्वारा सुरक्षित किए गए तीन स्थलों से सहायता का वितरण करता है. संयुक्त राष्ट्र ने GHF की इस व्यवस्था को अस्वीकार कर दिया है, यह कहते हुए कि यह व्यवस्था न केवल अपर्याप्त और खतरनाक है, बल्कि मानवीय निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन भी करती है.
अब यह साफ है, मैच फिक्स है, राहुल गांधी ने फिर लगाए चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप
देश में निष्पक्ष चुनावों के सवाल पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और चुनाव आयोग एक बार फिर मीडिया के जरिए एक-दूसरे से मुखातिब हुए. राहुल ने चुनावों के वीडियो और फोटोग्राफ्स को संरक्षित रखने के आयोग के ताज़ा निर्देशों का हवाला देते हुए शनिवार (21 जून, 2025) को आरोप लगाया कि अब यह “दिन के उजाले की तरह साफ” है कि मैच “फिक्स” है. उन्होंने पिछले कुछ हफ्तों में दिए गए अपने तर्कों को आगे बढ़ाते हुए 2024 महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर सवाल उठाया, जिनके बारे में उन्होंने आरोप लगाया था कि वे “फिक्स” थे.
“द हिंदू” की खबर के अनुसार राहुल गांधी उन रिपोर्ट्स पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जिनमें कहा गया था कि चुनाव आयोग ने अब परिणाम घोषित होने के बाद वीडियो फुटेज और फोटोग्राफ्स को 45 दिनों तक संरक्षित रखने का निर्णय लिया है, जबकि पिछले साल सितंबर में तय की गई अवधि एक साल से यह कम है.
“एक्स” पर एक पोस्ट में गांधी ने चुनाव आयोग के कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यह कदम लोकतांत्रिक जवाबदेही को कमजोर करता है. हिंदी में लिखा, “मतदाता सूची? मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में नहीं देंगे. सीसीटीवी फुटेज? कानून बदलकर छुपा दिया. चुनाव की फोटो और वीडियो? अब 1 साल नहीं, 45 दिन में डिलीट कर देंगे. जो जवाब देने वाला था, वही सबूत मिटा रहा है. यह साफ है कि मैच फिक्स है. और, फिक्स चुनाव लोकतंत्र के लिए ज़हर है.”
वीडियो फुटेज वोटर्स को खतरे में डाल सकता है : आयोग
इधर, मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग फुटेज सार्वजनिक करने की मांग के बीच, चुनाव आयोग के अधिकारियों ने भी शनिवार (21 जून, 2025) को कहा कि ऐसा कदम उठाना मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि हालांकि, ऐसी मांग उनके (मांग करने वालों के) नैरेटिव के अनुकूल है, क्योंकि यह वास्तविक और मतदाताओं के हित तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के लिए आवश्यक प्रतीत होती है, लेकिन वास्तव में इसका उद्देश्य ठीक इसके “विपरीत” है. आयोग ने मतदान केंद्रों से सीसीटीवी फुटेज साझा न करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए यह दावा भी किया कि इसका प्रकाशन यह बताएगा कि किसने वोट डाला और किसने नहीं, जिससे राजनीतिक पार्टियों द्वारा लोगों को परेशान किया जा सकता है.
विवाद का कारण : चुनाव आयोग ने 30 मई को राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र लिखकर बताया था कि चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग, वेबकास्टिंग फुटेज और फोटोग्राफी को 45 दिनों के बाद नष्ट किया जा सकता है, बशर्ते उस अवधि में कोई चुनाव याचिका दायर न की गई हो. आयोग का यह भी कहना है कि चुनावी कानून ऐसी रिकॉर्डिंग को अनिवार्य नहीं करते. ये रिकॉर्डिंग चुनाव के दौरान पारदर्शिता और लॉजिस्टिक्स में मदद के लिए आंतरिक प्रबंधन उपकरण के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं.
दाऊद का संगी, यूएपीए का आरोपी बीजेपी में शामिल, पार्टी अध्यक्ष की भी नहीं सुनी
उसूलों-सिद्धांतों, शुचिता-नैतिकता जैसी बड़ी-बड़ी बातें करने वाली भाजपा ने राजनीतिक लाभ के लिए महाराष्ट्र में एक और ऐसे दागदार चेहरे को अपने साथ जोड़ लिया है, जो दाऊद इब्राहिम से संपर्क के कारण यूएपीए कानून के तहत आरोपी रहा है. “द इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट है कि अंदरूनी विरोध के बावजूद शिवसेना (यूबीटी) नेता सुधाकर बडगुजर को नासिक नगर निगम चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल कर लिया गया. बडगुजर एक विवादास्पद शख्सियत हैं. भाजपा ने पहले एक वीडियो को लेकर उनकी आलोचना की थी, जिसमें वे 1993 के मुंबई बम धमाकों के आरोपी सलीम 'कुत्ता' के साथ डांस करते नजर आए थे. इसी मामले में बडगुजर पर यूएपीए कानून के तहत आरोप भी लगे थे. इसीलिए नासिक से भाजपा विधायक सीमा हिराय ने सार्वजनिक रूप से बडगुजर की पार्टी में एंट्री का विरोध किया था, जबकि पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले और वरिष्ठ भाजपा नेता रविंद्र चव्हाण ने पहले इस बारे में 'कोई जानकारी नहीं' होने की बात कही थी. शिवसेना (यूबीटी) से असंतुष्ट बडगुजर ने हाल ही में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से मुलाकात की थी.
बावनकुले की नाराजगी पर भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि बावनकुले 2023 में उनके विवादित फोटो लीक होने के लिए बडगुजर को जिम्मेदार मानते हैं. ये तस्वीरें कथित तौर पर मकाऊ के एक केसिनो की थीं. एक भाजपा नेता ने कहा कि बावनकुले ने बडगुजर की एंट्री रोकने की कोशिश की, लेकिन गिरीश महाजन ने जोर लगाया और मुख्यमंत्री फडणवीस भी इसके पक्ष में थे.
इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर आंतरिक असंतोष और भ्रम की स्थिति थी, यह इसी से पता लगता है कि प्रदेश अध्यक्ष बावनकुले और कैबिनेट मंत्री रविंद्र चव्हाण ने शुरू में इस बारे में जानकारी से इनकार किया था. नागपुर में पत्रकारों से बात करते हुए बावनकुले ने कहा था, “भाजपा में किसी भी नेता को शामिल करने का निर्णय स्थानीय नेताओं, सांसदों और विधायकों से चर्चा के बाद ही लिया जाता है. इस मामले में हमारे नासिक नेतृत्व की स्पष्ट आपत्ति थी.” इस घटनाक्रम के दौरान स्थानीय भाजपा नेताओं, खासकर नासिक की विधायक सीमा हिराय और अन्य पदाधिकारियों ने भी बडगुजर को शामिल करने का विरोध किया, पर पार्टी नेतृत्व ने परवाह नहीं की.
11 वर्षों में केवल "न्यूजरील" देखी, "असली फिल्म" अभी आना बाकी : गडकरी
इस बीच केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक इंटरव्यू में कहा कि वह बडगुजर को नहीं जानते और न ही कभी उनसे मिले हैं. 2029 के आम चुनावों में अपनी भूमिका के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए गडकरी ने इसी इंटरव्यू में रहस्यमयी अंदाज़ में एक और बात कही कि पिछले 11 वर्षों में जो देखा गया वह केवल एक "न्यूजरील" था और "असली फिल्म" अभी आनी बाकी है.
गुजरात के पूर्व मंत्री के मुताबिक अंधाधुंध सत्ता की चाह में भाजपा पार्टी की पूरी संस्कृति बदली
सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी जो कर रही है, उसके खिलाफ पार्टी के भीतर से ही आवाजें उठने लगी हैं. गुजरात के पूर्व शिक्षा मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता नानुभाई वनानी ने पार्टी की आंतरिक संस्कृति पर तीखा हमला बोला है और चेतावनी दी है कि "सिद्धांतों को दरकिनार कर सत्ता हासिल करना" उल्टा पड़ सकता है. एक पत्र में उन्होंने पार्टी द्वारा सत्ता प्राप्त करने के तरीकों पर सवाल उठाए हैं. कहा है कि "जिस फॉर्मूले ने कांग्रेस का पतन किया, वही अब भाजपा के लिए भी खतरा बन गया है." वरिष्ठ भाजपा नेता ने अपनी ही पार्टी पर अंधाधुंध सत्ता की चाह में अपनी वैचारिक जड़ों को छोड़ने का आरोप लगाया है. कहा है कि "भारतीय जनता पार्टी की पूरी संस्कृति बदल चुकी है. अब पार्टी एक निर्मम मंत्र से चल रही है: "जो जीता वही सिकंदर." लेकिन वे पूछते हैं, "ये सिकंदर कहां से आए हैं? इनकी विचारधारा क्या है, इनकी नैतिकता क्या है, क्या अब किसी को फर्क पड़ता है?"
जज वर्मा के बंगले में मिली नकदी की जानकारी सबसे पहले अमित शाह को मिली
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा ने 14 मार्च की रात हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने के बाद वहां मिले चार या पांच अधजले बोरे भर नकदी की सूचना सबसे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दी. यह जानकारी एक आकस्मिक खोज के रूप में सामने आई जब रात के समय बंगले के स्टोररूम में आग लगी और दमकल विभाग को बुलाया गया. दमकलकर्मियों और पुलिसकर्मियों की टीम 14 मार्च की रात करीब 11:30 बजे तुगलक क्रेसेंट स्थित बंगले पर पहुंची. आग बुझाते समय उन्हें वहां मौजूद 500 रुपये के नोटों से भरे कुछ अधजले बोरे मिले. रात करीब 12 बजे के आसपास पहले उत्तरदाताओं ने इन नकदी से भरे बोरों के वीडियो बनाए और आग पूरी तरह 15 मार्च को तड़के 1 बजे बुझाई गई. इसके बाद, 15 मार्च को दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा ने सबसे पहले गृह मंत्री अमित शाह को इस घटना की जानकारी दी. बाद में उन्होंने यह रिपोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय को भी दी. दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को स्टोररूम में आग और वहां मिली नकदी की तस्वीरें और वीडियो भी दिखाए गए, जिनके आधार पर उन्होंने तत्कालीन भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को सूचित किया. इसके बाद इस चौंकाने वाली घटना की जांच के लिए एक समिति गठित की गई. जांच पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "संजय अरोड़ा ने 15 मार्च की दोपहर बाद, जब न्यायमूर्ति डी. के. उपाध्याय होली की छुट्टियों के चलते लखनऊ में थे, उन्हें इस घटना की सूचना दी. बताया गया कि केंद्रीय गृह मंत्री को भेजी गई रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख था कि घटनास्थल पर भारतीय मुद्रा से भरे चार या पांच अधजले बोरे पाए गए थे."
वैकल्पिक मीडिया | बस्तर टॉकीज़
सरकारी रसोइए को मारकर बस्तर पुलिस ने इनामी नक्सली बता दिया!
छत्तीसगढ़ में लगातार सशस्त्र सीमा बलों और नक्सलियों के बीच पिछले कई महीनों से मुठभेड़ की खबरें आ रही है. इस बीच सरकार की ओर से दंडकारण्य को नक्सल मुक्त करने के दावे भी सामने आए और बड़े पैमाने पर इस संघर्ष में नक्सली नेताओं और काडर की मौत भी हुई है, लेकिन अब सामने आ रही कई रिपोर्ट बताती हैं कि नक्सल मुक्त अभियान में झोल ही झोल है और इसकी कीमत आम लोगों को भी चुकानी पड़ी है. 'बस्तर टॉकीज' ने इसी मसले पर विस्तृत रिपोर्ट की है. इंद्रावती टाइगर रिज़र्व में हाल ही में हुई मुठभेड़ में बस्तर पुलिस ने सात नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया गया. इनमें सुधाकर और भास्कर जैसे शीर्ष माओवादी नेता भी शामिल बताए गए, लेकिन जिन 7 में एक नाम महेश कोडियम का है, उसे ग्रामीण एक स्कूल का सरकारी चपरासी बताते हैं, न कि नक्सली. महेश को सरकारी वेतन मिलता था, और वह अपने गांव के स्कूल में नियमित सेवा दे रहा था. उसके 7 बच्चे हैं, जिनमें से 4 भोपालपट्टनम में पढ़ाई कर रहे हैं. आरोप है कि पुलिस ने महेश को ज़िंदा पकड़ा, फिर उसे फर्जी मुठभेड़ में मार दिया. यानी कि महेश को मारा गया और खानापूर्ति कर उसे भी नक्सली बता दिया गया. इससे पहले भी ऐसी रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं, जो इन कार्रवाइयों पर संदेह पैदा करती हैं. ऐसे में सवाल उठने लाजिमी हैं कि क्या मुठभेड़ की आड़ में निर्दोषों की हत्या की जा रही है? बस्तर टॉकीज के लिए रानू तिवारी की रिपोर्ट-
दलाई लामा 2 जुलाई को कर सकते हैं उत्तराधिकारी की घोषणा
'द न्यू इंडियन एकसप्रेस' की रिपोर्ट है कि तिब्बती धर्मगुरु 14वें दलाई लामा आगामी 2 जुलाई को एक अहम घोषणा करने वाले हैं. यह घोषणा उनके पुनर्जन्म से जुड़ी हो सकती है. यह जानकारी केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सिक्योंग (राष्ट्रपति) पेंपा त्सेरिंग ने दी है. यह घोषणा दलाई लामा के 90वें जन्मदिन (6 जुलाई) से ठीक चार दिन पहले होगी. इस दौरान दलाई लामा धर्मशाला में तिब्बत की चार प्रमुख बौद्ध परंपराओं साक्य, काग्यु, ञिंगमा और गेलुग के वरिष्ठ धार्मिक नेताओं से 2 से 4 जुलाई के बीच मुलाकात भी करेंगे. दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर यह निर्णय सिर्फ तिब्बती समुदाय ही नहीं, बल्कि ल्हासा से लेकर अरुणाचल तक के हिमालयी क्षेत्रों के लोगों के लिए भी अत्यंत प्रतीक्षित है, जो उन्हें अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शक मानते हैं, लेकिन यह मुद्दा चीन के लिए अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है. बीजिंग दलाई लामा को अलगाववादी नेता और तिब्बती प्रतिरोध का प्रतीक मानता है और अगले दलाई लामा को चुनने का अधिकार सिर्फ चीन को होने का दावा करता है. हालांकि, दलाई लामा पहले ही साफ़ कह चुके हैं कि उनका उत्तराधिकारी स्वतंत्र दुनिया में जन्म लेगा. यह चीन के दावे के खिलाफ एक स्पष्ट संकेत है.
चीन की बेचैनी और भारत का महत्व : तिब्बत मामलों के विशेषज्ञ क्लॉड आर्पी के अनुसार, “चीन आज जिस 'बौद्ध धर्म के चीनीकरण' की बात कर रहा है, उसका उद्देश्य तिब्बती क्षेत्र से भारतीय बौद्ध परंपरा को मिटाना है.” आर्पी कहते हैं, “दलाई लामा सिर्फ तिब्बतियों के नहीं, बल्कि लद्दाख से अरुणाचल तक के एक मिलियन भारतीय हिमालयन लोगों के भी आध्यात्मिक नेता हैं.” चीन की बेचैनी का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि हाल ही में चीनी पोलित ब्यूरो के सदस्य चेन वेनकिंग ने तिब्बत के पूर्व अम्दो प्रांत (अब चिंगहाई) का तीन दिवसीय दौरा किया. उन्होंने तिब्बत और शिनजियांग में “अलगाववाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई” की बात की, जो दलाई लामा को लक्ष्य बनाकर कही गई प्रतीत होती है.
आर्पी कहते हैं, “भारत में दलाई लामा की उपस्थिति दशकों से सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिरता का आधार रही है. यह निर्णय निश्चय ही आध्यात्मिक है, लेकिन इसका भूराजनीतिक असर चीन की तिब्बत नीति पर पड़ेगा.”
कार्टून | मंजुल

हेट क्राइम
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में 947 हेट क्राइम की घटनाएं : रिपोर्ट
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) और द क्विल फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई एक विस्तृत रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में हेट क्राइम (घृणा अपराध) और हेट स्पीच (घृणास्पद भाषण) की कुल 947 घटनाएं दर्ज की गईं. 7 जून, 2024 से 7 जून, 2025 तक की अवधि का विश्लेषण करती यह रिपोर्ट भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ बढ़ती शत्रुता और हिंसा के व्यवस्थित पैटर्न पर प्रकाश डालती है. रिपोर्ट बताती है कि ये घटनाएं न केवल संख्या में बढ़ी हैं, बल्कि उनकी तीव्रता भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है.
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों के अनुसार, दर्ज की गई 947 घटनाओं में 602 हेट क्राइम और 345 हेट स्पीच की घटनाएं शामिल हैं. इन 602 हेट क्राइम की घटनाओं में से 173 में अल्पसंख्यकों को लक्षित करते हुए शारीरिक हिंसा की गई, जिसके परिणामस्वरूप 25 लोगों की मौत हो गई. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन सभी 25 मामलों में पीड़ित मुस्लिम थे. इन घटनाओं से कुल 2964 व्यक्ति सीधे तौर पर प्रभावित हुए, जिनमें 1460 मुस्लिम और 1504 ईसाई शामिल थे. रिपोर्ट यह भी बताती है कि इन अपराधों का शिकार सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं हुए, बल्कि 25 हिंदू व्यक्ति भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए, जिन्हें या तो भीड़ का निशाना बनाया गया या वे किसी हमले के दौरान मौके पर मौजूद होने के कारण नुकसान का शिकार बने.
रिपोर्ट के अनुसार, हेट स्पीच के मामलों में राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों की भूमिका चिंताजनक है. कुल 345 हेट स्पीच की घटनाओं में से 178 भाषण भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े व्यक्तियों द्वारा दिए गए. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सार्वजनिक पदों पर बैठे निर्वाचित अधिकारियों द्वारा 139 नफरती भाषण दिए गए, जिनमें प्रधानमंत्री द्वारा 5, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा 63 और अन्य निर्वाचित व्यक्तियों द्वारा 71 भाषण शामिल हैं. रिपोर्ट में इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है कि न्यायपालिका से जुड़े दो न्यायाधीशों और एक राज्यपाल द्वारा भी हेट स्पीच दी गई, जो संस्थानों में बढ़ती घृणा की प्रवृत्ति को दर्शाता है.
भौगोलिक रूप से, रिपोर्ट में यह पाया गया है कि हेट क्राइम की घटनाएं उन राज्यों में अधिक केंद्रित हैं जहां भाजपा का शासन है. सबसे अधिक 217 घटनाएं उत्तर प्रदेश में दर्ज की गईं. रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया है कि जिन राज्यों में चुनाव अभियान चल रहे होते हैं, वहां हेट क्राइम और विशेष रूप से हेट स्पीच की घटनाओं में वृद्धि देखी जाती है. झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तराखंड में हुए चुनावों के दौरान इस पैटर्न को स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां चुनाव से ठीक पहले नफरती भाषणों में तेज उछाल आया.
रिपोर्ट में घटनाओं के समय और उनके कारणों का भी विश्लेषण किया गया है. यह पाया गया कि धार्मिक त्योहारों जैसे नवरात्रि, होली, राम नवमी और ईद के आसपास हेट क्राइम की घटनाएं बढ़ जाती हैं. अक्टूबर के महीने में उत्तर प्रदेश में नवरात्रि के दौरान गरबा कार्यक्रमों में मुस्लिम युवकों पर हमले और उनके प्रवेश पर रोक लगाने की घटनाएं देखी गईं. इसी तरह, मार्च के महीने में होली के दौरान मुसलमानों के खिलाफ 7 हेट क्राइम की घटनाएं हुईं. रिपोर्ट में पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में मुसलमानों के खिलाफ बने शत्रुतापूर्ण माहौल का भी विशेष उल्लेख है. इस हमले के बाद अप्रैल और मई के महीनों में हेट क्राइम की घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें 13 दिनों की अवधि में प्रतिदिन औसतन 7 घटनाएं हुईं.
रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि हेट क्राइम की अधिकांश घटनाएं कानून की पकड़ से बाहर रह जाती हैं. दर्ज की गई 602 हेट क्राइम की घटनाओं में से केवल 81 मामलों में (यानी 13%) प्राथमिकी (FIR) दर्ज होने की जानकारी मिल पाई है. यह आंकड़ा आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता और पीड़ितों के लिए न्याय की पहुंच पर गंभीर सवाल खड़े करता है.
रिपोर्ट के लेखकों ने स्वीकार किया है कि उनके निष्कर्ष मीडिया रिपोर्टों और सोशल मीडिया जैसे द्वितीयक स्रोतों पर आधारित हैं और कई घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं. इसलिए, यह रिपोर्ट समस्या की भयावहता का केवल एक सांकेतिक चित्र प्रस्तुत करती है, न कि संपूर्ण लेखा-जोखा. रिपोर्ट का उद्देश्य भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के दस्तावेजीकरण में मौजूद कमी को पूरा करना है ताकि इस समस्या के समाधान के लिए एक ठोस नीतिगत ढांचा तैयार किया जा सके.
मप्र में ईसाई स्कूलों को लेकर 'गंभीर इरादों' की आशंकाएं
पिछले दो वर्षों में मध्य प्रदेश के चार अलग-अलग मामलों की पड़ताल करते हुए ‘न्यूजलॉन्ड्री’ के पत्रकार प्रतीक गोयल ने पाया है कि राज्य में ईसाई स्कूलों को बार-बार हिंदुत्व समूहों और सरकारी अधिकारियों के हस्तक्षेप का सामना करना पड़ रहा है और कई स्कूलों का मानना है कि इसके पीछे कुछ “और गहरी बात” छिपी है. इस तफ्तीश के दौरान पता चला कि गुना स्थित एक स्कूल ने आरोप लगाया कि एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के सदस्यों ने स्कूल प्रशासन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मोहन यादव की तस्वीरें स्कूल में लगाने का दबाव डाला. वहीं सीहोर में एक स्कूल पर "अवैध फीस वृद्धि" के आरोप में प्रशासन ने छापा मारा, जिसमें एबीवीपी के सदस्य भी मौजूद थे. रिपोर्ट में बताया गया कि वे स्कूल के कंप्यूटर और अन्य उपकरण कूड़े के ट्रकों में फेंक रहे थे. ऐसे ही एक अन्य मामले में, जावरा के एक स्कूल में जब एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने मदर मैरी की तस्वीर हटाकर उसकी जगह भारत माता और सरस्वती की तस्वीरें लगाईं, तो पुलिसकर्मी वहां मौजूद होते हुए भी उन्हें रोकने में विफल रहे. जबलपुर में भी कमोबेश यही हुआ, जब एक मिशनरी स्कूल को फीस कानून के पालन को लेकर प्रशासन ने कठघरे में खड़ा किया, लेकिन बाद में कोर्ट ने प्रशासन की कार्रवाई की आलोचना की. स्कूल प्रशासन का कहना है कि यह "चयनात्मक निशाना साधने" का मामला है. इन सभी घटनाओं को लेकर कई ईसाई स्कूलों का मानना है कि ये सब केवल सतही घटनाएं नहीं हैं, बल्कि “किसी गहरे एजेंडे” का हिस्सा हैं, जो शिक्षा के नाम पर धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है. पढ़िए यह रिपोर्ट.
गाजा पर सरकार की चुप्पी को लेकर सोनिया ने कलम उठाई
"यह युद्ध का युग नहीं है" - यह एक ऐसा पसंदीदा जुमला है जिसे नरेंद्र मोदी अक्सर दोहराते रहते हैं, भले ही पूरे यूरेशिया में युद्ध छिड़े हुए हैं. हिंसा और पीड़ा फैलाने वालों की आलोचना करने में उनकी असमर्थता और अनिच्छा के कारण भारत ने ग्लोबल साउथ के नेतृत्व के अपने दावों को गँवा दिया है. आज, यह बात कहने की ज़िम्मेदारी कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी पर आ पड़ी. 'द हिंदू' में लिखे एक लेख में उन्होंने लिखा कि गाज़ा में तबाही और ईरान के खिलाफ शत्रुता पर सरकार की "चुप्पी भारत की नैतिक और राजनयिक परंपराओं से एक चिंताजनक विचलन है" और "यह न केवल आवाज़ खोने का, बल्कि मूल्यों के आत्मसमर्पण का भी प्रतीक है." इज़राइल द्वारा "ईरान और उसकी संप्रभुता के खिलाफ किए गए बेहद परेशान करने वाले और गैर-कानूनी हमले" की निंदा करते हुए उन्होंने कहा, "इज़राइल की हाल की कई कार्रवाइयों की तरह, जिसमें गाज़ा में उसका क्रूर और अनुपातहीन अभियान भी शामिल है, इस ऑपरेशन को भी आम नागरिकों के जीवन और क्षेत्रीय स्थिरता की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए अंजाम दिया गया. ये कार्रवाइयाँ केवल अस्थिरता को और गहरा करेंगी और आगे के संघर्ष के बीज बोएँगी."
हरकारा डीपडाइव
सत्यपाल मलिक: सवाल उठाने की सज़ा
(हरकारा ने अब डीपडाइव नाम से नई पहल शुरु की है, जिसमें आप जरूरी मुद्दों को वीडियो और टैक्स्ट की शक्ल में देख सकते हैं.)
सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीति में एक ऐसे अनूठे व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने सरकार का हिस्सा होते हुए भी उसके खिलाफ आवाज़ उठाने का साहस दिखाया. एक व्हिसल-ब्लोअर की भूमिका निभाते हुए उन्होंने कई गंभीर मुद्दों को उजागर किया है, जिससे उनकी अहमियत और बढ़ जाती है. हाल ही में, किडनी की गंभीर समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती मलिक ने एक संदेश जारी कर कहा कि वे देशवासियों को कुछ सच्चाइयां बताना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि वे बचेंगे या नहीं.
पांच दशकों से अधिक के राजनीतिक सफर में मलिक ने छात्र राजनीति से लेकर विभिन्न दलों के माध्यम से विधायक और सांसद तक का सफर तय किया. 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने और बाद में बिहार, जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय के राज्यपाल रहे.
उनका जम्मू-कश्मीर का कार्यकाल सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद साबित हुआ. इसी दौरान उन्होंने दो बड़े खुलासे किए, जिन्होंने सरकार को असहज कर दिया. पहला, पुलवामा आतंकी हमले को लेकर था. मलिक ने दावा किया कि CRPF ने जवानों को ले जाने के लिए विमान की मांग की थी, जिसे गृह मंत्रालय ने अस्वीकार कर दिया. उन्होंने इसे एक बड़ी खुफिया विफलता बताया, क्योंकि 300 किलो RDX से लदी कार कई दिनों तक कश्मीर की सड़कों पर घूमती रही और किसी को पता नहीं चला. मलिक के अनुसार, जब उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को बताया कि यह "हमारी गलती" से हुआ, तो प्रधानमंत्री ने उन्हें इस पर "चुप रहने" को कहा.
दूसरा बड़ा खुलासा भ्रष्टाचार से जुड़ा था. मलिक ने बताया कि उन्हें दो फाइलों को पास करने के लिए 150 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. उन्होंने एक टेंडर में भ्रष्टाचार की जानकारी प्रधानमंत्री को दी और उसे खुद रद्द कर दिया, लेकिन उनके तबादले के बाद उसी टेंडर को दोबारा मंजूरी दे दी गई.
मलिक का विरोध केवल इन्हीं मुद्दों तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के रवैये को "घमंडी" बताया. उन्होंने महिला पहलवानों के संघर्ष में भी उनका साथ दिया.
इन सनसनीखेज खुलासों के बाद सरकार की प्रतिक्रिया और भी चौंकाने वाली रही. मलिक के सवालों का जवाब देने या आरोपों की जांच करने के बजाय, सरकार ने उन पर ही सीबीआई जांच शुरू कर दी. यह एक असाधारण कदम था, क्योंकि आमतौर पर जांच एजेंसियां विपक्षी नेताओं को निशाना बनाती हैं.
सत्यपाल मलिक का महत्व कई कारणों से है. पहला, वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो सत्ता के शीर्ष पर रहते हुए सच बोलने से नहीं डरे. दूसरा, उन्होंने जो सवाल उठाए, वे निजी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, भ्रष्टाचार और किसान कल्याण जैसे राष्ट्रीय हित के हैं. उनकी विश्वसनीयता इस बात से भी बढ़ती है कि 50 वर्षों के लंबे राजनीतिक जीवन और बड़े पदों पर रहने के बावजूद, वे आज एक साधारण जीवन जी रहे हैं.
क्या मुकेश के बच्चों में भी है पिता जैसा जुनून।
'फायनेंशियल टाइम्स' से बात करने वाले कई लोगों ने यह सवाल उठाया कि क्या अंबानी भाई-बहनों में अपने पिता मुकेश अंबानी जैसा कारोबारी कौशल और जुनून है. एक फंड मैनेजर ने कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि अंबानी बच्चों को लेकर क्या राय बनाऊं. वे सार्वजनिक मंचों पर जरूर दिखते हैं, लेकिन उन्होंने इतनी स्पष्टता से कुछ कहा नहीं है, जिससे हम उनके नेतृत्व और क्षमताओं का स्वतंत्र मूल्यांकन कर सकें.” उन्होंने रिलायंस उत्तराधिकार की स्थिति को कॉर्पोरेट इंडिया के सबसे “जटिल और उलझे हुए” मामलों में से एक बताया. मुकेश अंबानी अपनी उम्र के सातवें दशक के अंत की ओर बढ़ रहे हैं, वे रिलायंस को एक लो-कार्बन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस संचालित भविष्य की ओर ले जाने की योजना बना रहे हैं, जो भारत की महत्वाकांक्षाओं को भी दर्शाता है. जामनगर में 5,000 एकड़ में फैले पांच गीगा फैक्ट्रियों का प्रस्ताव है, जहां सोलर पैनल, बैटरी, ईंधन सेल और ग्रीन हाइड्रोजन के लिए इलेक्ट्रोलाइज़र बनाए जाएंगे. इसी के साथ मुकेश ने अगली पीढ़ी को उत्तराधिकार सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अपने पिता की मृत्यु के बाद भाई अनिल के साथ हुए विवाद से सबक लेते हुए उन्होंने सत्ता के शांत और व्यवस्थित हस्तांतरण की योजना बनाई है. 2023 में उन्होंने घोषणा की थी कि अगले पांच वर्षों में वे अपने बच्चों को पूरी तरह से तैयार करेंगे. उसी वर्ष उनके तीनों बच्चे रिलायंस के बोर्ड में शामिल हुए और कंपनी की तीन मुख्य इकाइयों की जिम्मेदारियां साफ़-साफ़ बांटी गईं.
आकाश और ईशा, 33 वर्षीय जुड़वाँ, डिजिटल और रिटेल कारोबार संभाल रहे हैं और पिछले दस वर्षों से इसकी सहायक कंपनियों के बोर्ड में हैं, जबकि 30 वर्षीय सबसे छोटा बेटा अनंत, ऊर्जा कारोबार की ज़िम्मेदारी देख रहा है और रिलायंस का एकमात्र कार्यकारी निदेशक है. लेकिन... क्या इन तीनों में अपने पिता जैसी दूरदर्शिता और अथक परिश्रम की क्षमता है?
एक वरिष्ठ भारतीय कार्यकारी के शब्दों में, “मुकेश में एक असाधारण मिशनरी जोश है, जिसकी बराबरी करना मुश्किल है... यह पीढ़ीगत ट्रांसफर आसान नहीं होगा.” रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का लक्ष्य इस दशक के अंत तक अपने कारोबार को दोगुना करना, वैश्विक स्तर पर अपने पांव पसारना और कई क्षेत्रों में विविधीकरण करना है. इन महत्वाकांक्षी योजनाओं के चलते लोगों की नज़र अब अंबानी परिवार की अगली पीढ़ी आकाश, ईशा और अनंत अंबानी पर टिक गई है. कुछ लोगों ने धीरूभाई और मुकेश अंबानी की शुरुआती सादगीभरी और संघर्षपूर्ण जीवनशैली की तुलना वर्तमान पीढ़ी की भव्य परवरिश से की. एक सूत्र ने तो यहां तक कहा कि संभव है कि ये तीनों सिर्फ समूह का “चेहरा” बनकर रहें और असली संचालन की ज़िम्मेदारी पेशेवर गैर-परिवार प्रबंधकों को दे दी जाए. एक स्थानीय व्यापारी कहते हैं, “रिलायंस में अभी निवेश का समय नहीं है... वे खुद को बहुत ज्यादा फैला रहे हैं.” और उत्तराधिकार को लेकर वह एक पुरानी गुजराती कहावत याद करते हैं- “पहली पीढ़ी मेहनत करती है, दूसरी विलास करती है... और तीसरी सब बर्बाद कर देती है.”
विश्लेषण | इज़राइल-ईरान
रूस और चीन रुकवा पाएंगे नेतन्याहू की जंग ?
चीन और रूस अपने आप को विवेकशील आवाज़ों के रूप में पेश कर रहे हैं, उस संघर्ष के शांतिकरण की मांग कर रहे हैं जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल होने पर विचार कर रहा है. गुरुवार को शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के फोन कॉल के दौरान यही छवि प्रस्तुत करने की कोशिश की गई. जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ईरान पर हमले में इज़राइल के साथ जुड़ने पर विचार कर रहे हैं, तो मध्य पूर्व के दो कट्टर दुश्मनों के बीच तेज़ी से बढ़ता संघर्ष बीजिंग और मास्को के लिए अमेरिकी शक्ति के विकल्प के रूप में खुद को पेश करने का एक और अवसर बन गया है. सीएनएन के नैक्टर गैन ने इस पर विश्लेषण किया है, उसके प्रमुख अंश.
रूस और चीन की रणनीति : क्रेमलिन के अनुसार, अपनी बातचीत में पुतिन और शी ने इज़राइल के कार्यों की कड़ी निंदा की, इन्हें संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय कानून के अन्य मानदंडों का उल्लंघन बताया. (यहां दिक्कत और दुहरे मापदंड की बात यह है कि रूस यूक्रेन के खिलाफ अपने चल रहे युद्ध में खुद अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहा है - जिसकी निंदा करने से बीजिंग ने लगातार इनकार किया है.) बीजिंग की रिपोर्ट में, शी ने अधिक संयमित स्वर अपनाया और स्पष्ट रूप से इज़राइल की निंदा करने से बचे - अपने विदेश मंत्री के विपरीत, जिन्होंने पिछले सप्ताह अपने ईरानी समकक्ष के साथ कॉल में ऐसा किया था. इसके बजाय, चीनी नेता ने युद्धरत पक्षों, "विशेषकर इज़राइल" से आग्रह किया कि वे आगे की वृद्धि और क्षेत्रीय फैलाव से बचने के लिए जल्द से जल्द युद्धविराम करें. ट्रम्प को एक छुपे संदेश में, शी ने जोर दिया कि "प्रमुख शक्तियों" का, जिनका संघर्ष के पक्षों पर विशेष प्रभाव है, "स्थिति को ठंडा करने का काम करना चाहिए, इसके विपरीत नहीं."
चीनी विशेषज्ञों का विश्लेषण : बीजिंग लंबे समय से वाशिंगटन पर मध्य पूर्व में अस्थिरता और तनाव का स्रोत होने का आरोप लगाता रहा है - और कुछ चीनी विद्वान अब ईरान संकट का उपयोग इस बात को रेखांकित करने के लिए कर रहे हैं. शंघाई इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी के मध्य पूर्व विशेषज्ञ लियू झोंगमिन ने नवीनतम भड़कने का श्रेय ट्रम्प की दूसरी राष्ट्रपति पदावधि से पैदा अनिश्चितता और उनकी मध्य पूर्व नीति की अराजक, अवसरवादी और लेन-देन प्रकृति को दिया. "(ट्रम्प) ने मध्य पूर्व में अमेरिकी नीति के अधिकार और विश्वसनीयता को गंभीर रूप से कमजोर किया है, अपने सहयोगियों के बीच अमेरिका के नेतृत्व और छवि को क्षतिग्रस्त किया है, साथ ही क्षेत्रीय विरोधियों को धमकाने और रोकने की क्षमता भी कमजोर की है," लियू ने इस सप्ताह राज्य मीडिया में लिखा.
चीन की रणनीतिक चिंताएं : बीजिंग का ईरान के खिलाफ व्यापक युद्ध देखने में कोई हित नहीं है जो शासन को गिरा सके. सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई के तहत, ईरान मध्य पूर्व में एक दुर्जेय शक्ति और अमेरिकी प्रभुत्व के लिए एक महत्वपूर्ण संतुलनकारी के रूप में उभरा है - ठीक जब चीन क्षेत्र में अपना राजनयिक और आर्थिक प्रभाव बढ़ाने पर काम कर रहा है. 2023 में, बीजिंग ने कट्टर प्रतिद्वंद्वियों सऊदी अरब और ईरान के बीच एक आश्चर्यजनक सुलह में मध्यस्थता करने में मदद की - यह एक समझौता था जो क्षेत्र में एक नए शक्ति-दलाल के रूप में उभरने की इसकी महत्वाकांक्षा का संकेत था. चीन लंबे समय से निरंतर तेल आयात और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी सीट के माध्यम से ईरान का समर्थन करता आया है. हाल के वर्षों में, दोनों देशों ने रूस के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास सहित अपने रणनीतिक संबंधों को गहरा किया है.
मध्यस्थता की भूमिका : रूस की तरह, चीन ने भी इज़राइल-ईरान संघर्ष में संभावित मध्यस्थ होने की पेशकश की है, अपनी भूमिका को शांति दलाल और अमेरिकी नेतृत्व के विकल्प के रूप में पेश किया है. पुतिन के साथ अपनी बातचीत के दौरान, शी ने तनाव कम करने के लिए चार व्यापक प्रस्ताव रखे, जिसमें संवाद के माध्यम से ईरान परमाणु मुद्दे को हल करना और नागरिकों की सुरक्षा करना शामिल था. इस बीच, शी के विदेश मंत्री वांग यी का इस सप्ताह फोन पर व्यस्त समय रहा, उन्होंने ईरान, इज़राइल, मिस्र और ओमान में अपने समकक्षों से लगातार बात की.
चुनौतियां और सीमाएं फिर भी यह स्पष्ट नहीं है कि बीजिंग वास्तव में संघर्ष की मध्यस्थता के लिए क्या करने को तैयार और सक्षम है. मध्य पूर्व में शांति की दलाली एक कठिन काम है, खासकर उस देश के लिए जिसके पास लंबे समय तक चलने वाले, जटिल संघर्षों की मध्यस्थता में कम अनुभव या विशेषज्ञता है. फिर भी, ऐसे समय में जब अमेरिका की वैश्विक नेतृत्व की भूमिका बढ़ती जांच के दायरे में है, विशेषकर ग्लोबल साउथ की नज़रों में, ईरान संघर्ष में संयम की आवाज़ के रूप में खुद को पेश करना बीजिंग के लिए पहले से ही एक प्रतीकात्मक जीत मानी जा सकती है.
संदिग्ध चाल, चोले, चरित्र वाले ट्रम्प को भारत-पाक मध्यस्थता के लिए नोबेल पुरस्कार चाहिए और.. पाकिस्तान ने दे भी दिया
हम एक बेइंतहा दिलचस्प दुनिया में रह रहे हैं. एक ऐसे व्यक्ति को नोबेल शांति पुरस्कार का हकदार माना जा रहा है, जिसने एक झटके में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, वहां के उद्योग, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी सेवाएं, वाणिज्य को तहस नहस कर दिया. जो न रूस यूक्रेन के बीच जंग रुकवा सका, जो न इजराइल को गाजा को जमींदोज करने से नहीं रोक सका, जो इजरायल और ईरान के बीच जंग रुकवाने को लेकर बयान तो देता दिखलाई दे रहा है, पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं. उधर मनमाने टैरिफ लगाकर उसने दुनिया के हर उस देश को जो अमेरिका के साथ आर्थिक संबंध में अजीब पसोपेश में डाल दिया. पहले देखते हैं नोबेल शांति पुरस्कार मिलता किन लोगों को है. और एक ऐसा देश उन्हें नामांकित कर रहा है, जो बहुत सी बातों के लिए दुनिया में जाना जाता है, पर शांति शब्द उसमें कहीं दिखलाई नहीं पड़ता.
पाकिस्तान ने कहा है कि वह हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष को सुलझाने में मदद के लिए डोनाल्ड ट्रंप की नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सिफारिश करेगा. शनिवार को घोषित इस कदम के साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हमला करने में इज़राइल के साथ शामिल होने पर विचार कर रहे हैं.पाकिस्तान ने एक बयान में कहा. "राष्ट्रपति ट्रंप ने इस्लामाबाद और नई दिल्ली दोनों के साथ मजबूत राजनयिक संलग्नता के माध्यम से महान रणनीतिक दूरदर्शिता और शानदार राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया. जिससे तेजी से बिगड़ती स्थिति में कमी आई". "यह हस्तक्षेप एक वास्तविक शांतिदूत के रूप में उनकी भूमिका के प्रमाण के रूप में खड़ा है". सरकारें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए लोगों को नामांकित कर सकती हैं. वाशिंगटन की ओर से तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. भारत सरकार के एक प्रवक्ता ने टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया.
नोबेल पुरस्कार के मूल सिद्धांत : नोबेल पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की इच्छा के अनुसार उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने "मानवता की सबसे बड़ी भलाई" में योगदान दिया हो. नोबेल शांति पुरस्कार विशेष रूप से उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा दिया हो, शांति सम्मेलनों का आयोजन किया हो या उन्हें आगे बढ़ाया हो, सेनाओं को कम करने या समाप्त करने में योगदान दिया हो. नोबेल पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं से उच्च नैतिक आचरण की अपेक्षा की जाती है, व्यक्तिगत जीवन में गरिमा और सत्यनिष्ठा आवश्यक मानी जाती है, न्यायालयीन दोषसिद्धि एक गंभीर बाधा है.
इस बारे में निधीश का लंबा लेख आप हरकारा के सब्सटैक पर पढ़ सकते हैं.
चलते चलते | योग दिवस पर डॉ हेमंत मोरपारिया
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.