22/07/2025 : 19 साल बाद बरी | ईडी की लुढ़कती साख | रोटी, बेटी का रिश्ता, वोट का सवाल | रोजगार बिहार का बड़ा मुद्दा | नये भाजपा अध्यक्ष के लिए एक और नाम | हड़बड़ी में धनखड़ | हनीट्रैप में महाराष्ट्र
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट : 19 साल बाद सभी 12 आरोपी बरी
ईडी की गिरती साख़ पर बढ़ते सवाल
वोटर लिस्ट और नेपाल से रोटी-बेटी का रिश्ता
58% से अधिक एससी मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी
यह व्यक्ति नया भाजपा अध्यक्ष हो सकता है?
बहुत जल्दी में जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा टिकाया
आदिवासी महिला को भी मिलेगा संपत्ति में बराबर
साइबर फ्रॉड: हर महीने लुटते हैं ₹1,000 करोड़
28 साल बाद बंद हुआ मुंबई फिल्म फेस्टिवल
200 से ज्यादा सांसदों ने जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव दिया
महाराष्ट्र के 72 नेता, अफसर 'हनी-ट्रैप' के चंगुल में
नागा पहाड़ियों पर कुकी समुदाय की आवाजाही पर रोक
भारत-चीन संबंधों को नई दिशा देने की तैयारी: कैलाश-मानसरोवर यात्रा फिर शुरू होगी, सीधी उड़ानों पर भी काम
मनी लॉन्ड्रिंग केस: ऑनलाइन सट्टेबाजी से जुड़े मामले में मेटा और गूगल के वरिष्ठ अधिकारियों को ईडी ने भेजा नया समन
वैज्ञानिकों पर दबाव डालकर बनी रिपोर्ट्स, अमूल्य वर्षावन को नष्ट करने की तैयारी में सरकार
वीएस अच्युतानंदन का निधन, यचुरी ने फिदेल कास्त्रो कहा था
बूढ़ा मगर अडिग: मोदी युग में अच्युतानंदन की विरासत और केरल मॉडल की याद
"एप्सटीन का भूत ट्रम्प की प्रेसीडेंसी को सता रहा है"
'डॉन' के निर्देशक चंद्र बरोट का निधन
2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट
19 साल बाद सभी 12 आरोपी बरी
बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया. अदालत ने विशेष मकोका (MCOCA) अदालत के फैसले को पलटते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया. निचली अदालत ने इनमें से पांच लोगों को मौत की सज़ा और सात को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी. इन सभी पर मुंबई की वेस्टर्न रेलवे लाइन पर हुए सिलसिलेवार बम धमाकों की साज़िश रचने और उन्हें अंजाम देने का आरोप था. इन धमाकों में 187 लोगों की जान चली गई थी.
जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक की विशेष बेंच ने सभी 12 दोषियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष (यानी जांच एजेंसी) आरोपियों के खिलाफ अपना केस साबित करने में "पूरी तरह नाकाम" रहा है. अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा, "यह मानना बहुत मुश्किल है कि इन आरोपियों ने यह अपराध किया है." यह फैसला महाराष्ट्र की एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (एटीएस) के लिए एक बड़ा झटका है, जिसने इस पूरे मामले की जांच की थी.
अदालत ने अपने 671 पन्नों के फैसले में जांच की कई खामियों को उजागर किया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह तक साबित नहीं कर पाया कि धमाकों में किस तरह के बमों का इस्तेमाल किया गया था. अदालत ने यह भी कहा कि जिन सबूतों के आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया गया, वे मज़बूत नहीं थे. फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा, "किसी अपराध के असली गुनहगार को सज़ा देना, अपराध को रोकने, कानून का राज बनाए रखने और नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक ज़रूरी कदम है. लेकिन किसी केस को सुलझाने का झूठा दिखावा करना और यह जताना कि दोषियों को पकड़ लिया गया है, एक भ्रामक तस्वीर पेश करता है. इससे जनता का भरोसा टूटता है और समाज को झूठी तसल्ली मिलती है, जबकि असली खतरा बाहर घूमता रहता है. यह केस इसी बात का उदाहरण है."
अदालत ने आरोपियों के इकबालिया बयानों को भी खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि ये बयान उन्हें टॉर्चर यानी यातना देकर लिए गए थे. बेंच ने पाया, "इकबालिया बयान अधूरे हैं और सच्चे नहीं लगते, क्योंकि उनके कुछ हिस्से एक-दूसरे की कॉपी-पेस्ट लगते हैं." अदालत ने गवाहों के बयानों को भी भरोसे के लायक नहीं माना. इसमें वे टैक्सी ड्राइवर भी शामिल थे, जिन्होंने कथित तौर पर आरोपियों को स्टेशन छोड़ा था और वे लोग भी, जिन्होंने आरोपियों को बम प्लांट करते या बनाते हुए देखने का दावा किया था.
गौरतलब है कि 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में 11 मिनट के अंदर सात धमाके हुए थे, जिसमें 187 लोग मारे गए और 824 घायल हुए थे. एटीएस ने दावा किया था कि आरोपी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के सदस्य थे और उन्होंने पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के साथ मिलकर यह साज़िश रची थी.
इस फैसले के बाद एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मांग की है कि महाराष्ट्र सरकार को उन एटीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, जिन्होंने इस मामले की जांच की थी. वहीं, शिवसेना सांसद मिलिंद देवड़ा और पूर्व एटीएस प्रमुख के.पी. रघुवंशी ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिए.
इस केस में एक आरोपी अब्दुल वाहिद शेख, जिन्हें निचली अदालत ने 2015 में ही बरी कर दिया था, ने कहा, "हम पहले दिन से कह रहे थे कि हम बेगुनाह हैं. हमें टॉर्चर किया गया, झूठे बयान लिए गए और झूठी बरामदगी दिखाई गई. आज यह सब गलत साबित हो गया." इन 12 लोगों की ज़िंदगी के करीब 19 साल जेल में गुज़र गए, और अब हाई कोर्ट के फैसले ने पूरी जांच पर ही एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.
ईडी की गिरती साख़ पर बढ़ते सवाल
"कृपया हमसे इस मामले में मुंह न खुलवाएं... वरना हमें ईडी के बारे में कुछ कठोर टिप्पणियां करनी पड़ेंगी." सीजेआई ने आगे कहा, "इस वायरस को पूरे देश में मत फैलाइए. राजनीतिक लड़ाइयां चुनाव में मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए... आपका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है?"
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि उसका इस्तेमाल "राजनीतिक लड़ाइयों" के लिए क्यों किया जा रहा है. अदालत ईडी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती और राज्य के एक मंत्री बयराथी सुरेश के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले को फिर से शुरू करने की मांग की गई थी. कर्नाटक हाई कोर्ट ने पहले ही इस मामले को रद्द कर दिया था.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू से कहा, "कृपया हमसे इस मामले में मुंह न खुलवाएं... वरना हमें ईडी के बारे में कुछ कठोर टिप्पणियां करनी पड़ेंगी." सीजेआई ने आगे कहा, "इस वायरस को पूरे देश में मत फैलाइए. राजनीतिक लड़ाइयां चुनाव में मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए... आपका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है?"
मामले की सुनवाई शुरू होते ही सीजेआई ने साफ कर दिया कि वे इस मामले में दखल देने के इच्छुक नहीं हैं. उन्होंने कहा, "हम सुबह से कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट को राजनीतिक मंच के तौर पर इस्तेमाल न करें." अदालत ने ईडी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले में कोई गलती नहीं है.
यह मामला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा कथित तौर पर अवैध तरीके से भूखंडों (sites) के आवंटन से जुड़ा है. ईडी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती और मंत्री बयराथी सुरेश को समन भेजा था. इसके खिलाफ वे कर्नाटक हाई कोर्ट गए थे. उनकी दलील थी कि मनी लॉन्ड्रिंग का कोई सबूत नहीं है, क्योंकि पार्वती ने उन्हें आवंटित किए गए सभी 14 भूखंड सरेंडर कर दिए थे और उनके पास अपराध से जुड़ी कोई संपत्ति नहीं थी. कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी ईडी की कार्रवाई में जल्दबाज़ी पर सवाल उठाया था. ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि जांच सिर्फ 14 भूखंडों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सैकड़ों अवैध आवंटन शामिल हैं, जो रियल एस्टेट कारोबारियों, एजेंटों और प्रभावशाली लोगों को किए गए थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की दलीलें नहीं मानीं और याचिका खारिज कर दी.
बिहार
वोटर लिस्ट और नेपाल से रोटी-बेटी का रिश्ता
भारत का चुनाव आयोग (ECI) बिहार में वोटर लिस्ट को ठीक करने का काम कर रहा है. इस प्रक्रिया में उन गैर-नागरिकों के नाम हटाने की बात कही गई है, जो वोट देने के हकदार नहीं हैं. लेकिन जब आयोग ने खास तौर पर 'नेपालियों' का ज़िक्र किया, तो इससे भारत-नेपाल के सदियों पुराने रिश्तों में एक नई उलझन पैदा होने का खतरा खड़ा हो गया है. यह फैसला खासकर नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाले मधेसी समुदाय को नाराज कर सकता है, जिनकी भाषा, संस्कृति और रिश्तेदारी बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों से गहरी जुड़ी हुई है. मिड डे में सीनियर पत्रकार अयाज़ अशरफ ने इस पर विस्तार से लिखा है.
यह पूरा मामला 'रोटी-बेटी के रिश्ते' से जुड़ा है. नेपाल के मधेसी समुदाय और बिहार-यूपी के लोगों के बीच सीमा पार शादियां आम बात हैं. हज़ारों की संख्या में मधेसी लड़कियां शादी करके बिहार आती हैं और ठीक वैसे ही, बिहार की बेटियां बहू बनकर नेपाल जाती हैं. लेकिन यहां एक कानूनी पेच है. 1950 की भारत-नेपाल संधि के तहत, नेपाल के नागरिक भारत में बिना नागरिकता लिए रह सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं (कुछ नौकरियों को छोड़कर) और संपत्ति भी खरीद सकते हैं. यही छूट भारतीय नागरिकों को नेपाल में भी मिलती है. लेकिन इस संधि में वोट देने का अधिकार शामिल नहीं है, क्योंकि वोट सिर्फ देश के नागरिक ही डाल सकते हैं.
अब तक होता यह आया था कि जो मधेसी महिलाएं शादी करके बिहार आती थीं, वे भारतीय नागरिकता लेने की लंबी कानूनी प्रक्रिया में नहीं पड़ती थीं. उन्हें सांस्कृतिक रूप से पति के परिवार का हिस्सा मान लिया जाता था और इसी आधार पर उनके वोटर कार्ड भी बन जाते थे. इस पर कभी किसी ने, यहां तक कि सरकार ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई. यह एक तरह की सामाजिक सहमति थी. लेकिन अब चुनाव आयोग के इस नए कदम से यह व्यवस्था बदल सकती है. आयोग अब वोटर बनने के लिए नागरिकता का पक्का सबूत मांग रहा है.
यह फैसला भारत-नेपाल के संबंधों को इसलिए भी उलझा सकता है क्योंकि दोनों देशों में नागरिकता के कानून अलग-अलग हैं. भारत में, अगर कोई विदेशी किसी भारतीय से शादी करता है, तो उसे नागरिकता के लिए आवेदन करने से पहले सात साल तक भारत में रहना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ, नेपाल में अगर कोई विदेशी महिला (पुरुष नहीं) किसी नेपाली नागरिक से शादी करती है, तो उसे कुछ ज़रूरी कागज़ात जमा करने पर लगभग तुरंत नागरिकता मिल जाती है. वहां सात साल इंतज़ार करने का कोई नियम नहीं है.
अब भारत के इस कदम का असर नेपाल की राजनीति पर भी पड़ सकता है. नेपाल में एक बड़ा तबका हमेशा से यह मांग करता रहा है कि जैसे भारत में 7 साल का इंतज़ार करना पड़ता है, वैसा ही नियम नेपाल में भी भारतीय बहुओं के लिए लागू किया जाए. 2019 में जब नेपाल की सरकार नागरिकता कानून में बदलाव कर रही थी, तब यह 7 साल वाला नियम जोड़ा भी गया था. लेकिन मधेसी नेताओं के भारी विरोध के बाद इसे हटा दिया गया. मधेसी नेताओं का तर्क था, "जो महिला अपना सब कुछ छोड़कर एक नेपाली परिवार का हिस्सा बनने आती है, उसे सात साल तक नागरिकता से वंचित क्यों रखा जाए?"
अब जब भारत में नेपाली बहुओं को वोटर लिस्ट से बाहर करने की बात हो रही है, तो नेपाल में उन लोगों को अपनी मांग उठाने का एक और मौका मिल जाएगा, जो भारत से आने वाली बहुओं के लिए 7 साल का नियम चाहते हैं. अगर ऐसा हुआ तो यह सीमा पार होने वाली शादियों को हतोत्साहित करेगा और दोनों देशों के लोगों के बीच पारिवारिक और सांस्कृतिक संबंधों को कमजोर करेगा. तब भारत भी नेपाल को ऐसा करने से रोकने की नैतिक स्थिति में नहीं होगा, क्योंकि वह खुद ऐसा ही कर रहा होगा.
एक अनुमान के मुताबिक, हर साल 10,000 से ज़्यादा भारतीय महिलाएं शादी करके नेपाल जाती हैं और वहां की नागरिकता लेती हैं. ठीक इसी तरह, हज़ारों की संख्या में नेपाली महिलाएं भी भारत में ब्याही जाती हैं. इनमें बड़ी संख्या यादव और मुस्लिम समुदायों की महिलाओं की होती है. लेखक अयाज़ अशरफ़ के मुताबिक, बिहार की राजनीति में यादव और मुस्लिम, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस गठबंधन का मुख्य वोट बैंक माने जाते हैं. ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि कहीं वोटर लिस्ट साफ करने की यह कवायद किसी खास राजनीतिक गठबंधन को फायदा पहुंचाने की कोशिश तो नहीं है?
कुल मिलाकर, चुनाव आयोग का यह फैसला जो सिर्फ एक प्रशासनिक कदम लगता है, उसके सामाजिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक असर बहुत गहरे हो सकते हैं. यह एक ऐसा कदम है, जो सरहदों के पार बसे एक ही संस्कृति के लोगों को बांट सकता है.
58% से अधिक एससी मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जारी एक नए सर्वे में यह सामने आया है कि बिहार के 27.4% से अधिक दलित मतदाताओं को भारत के चुनाव आयोग पर कोई भरोसा नहीं है. सर्वे में यह भी दिखा कि राज्य के 58% से अधिक अनुसूचित जाति मतदाताओं के लिए आगामी चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है.यह सर्वे राष्ट्रीय दलित-आदिवासी संगठनों के महासंघ ने करवाया, जिसमें राज्य के 18,581 अनुसूचित जाति के मतदाताओं की राय ली गई. 2022 की बिहार जातिगत जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जातियां राज्य की कुल आबादी का 19.65% हैं. सर्वे में यह भी पता चला है कि बिहार के दलित समुदाय के 71% से अधिक मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया के चलते अपने वोट खोने का डर महसूस करते हैं. चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण के कारण दलित मतदाताओं में असुरक्षा और अविश्वास की भावना पाई गई है. यह सर्वे 10 जून से 4 जुलाई के बीच किया गया था.
यह व्यक्ति नया भाजपा अध्यक्ष हो सकता है?
वह दौर बीत गया, जब भाजपा में नरेंद्र मोदी का फरमान बिना किसी चुनौती के चलता था. असलियत यह है कि अब पार्टी के भीतर से ही विरोध की आवाज़ उठ रही है. यही कारण है की भाजपा अब तक अपने नए अध्यक्ष का चुनाव या चयन नहीं कर पाई है. दरअसल, इस बार आरएसएस मोदी-शाह की जोड़ी के सामने झुकने को तैयार नहीं है. संघ ऐसा चेहरा चाहता है, जो महज अमित शाह का "नुमाइंदा" न हो. आरएसएस, घुटन भरी अवस्था से मुक्ति चाहता है, उसे आजादी चाहिए. वह भाजपा के रूप में एक राजनितिक दल चाहता है, न कि सिर्फ मोदी की हर बात को समर्थन देने वाली "व्यवस्था."
इसी खींचतान की वजह से पार्टी अध्यक्ष का चयन करने में देरी हो रही है. संघर्ष वास्तविक है और तीव्र भी है. इतना तीव्र कि संघ ने यहां तक सुझाव दे दिया कि संजय जोशी को अध्यक्ष पद के लिए नामित किया जाए. वही संजय जोशी जो नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी माने जाते हैं और जिन्हें एक समय राजनीतिक मुख्यधारा से अचानक और अपमानजनक तरीके से बाहर कर दिया गया था. बहुत से लोग मानते हैं कि ये सब एक गहरी साजिश के तहत हुआ था. जोशी, एक सभ्य और शालीन व्यक्ति माने जाते हैं, लेकिन एक नकली वीडियो, जिसमें उन्हें एक महिला के साथ यौन क्रिया में दिखाया गया था, ने उनकी छवि को बर्बाद कर दिया. आरएसएस जानता है कि जोशी ऐसे किसी अनैतिक कार्य में शामिल नहीं हो सकते. इतने वर्षों तक जोशी ने चुपचाप अपमान सहा, लेकिन संघ के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी.
ऐसा प्रतीत होता है कि आरएसएस उस हथियार की धार कुंद करने के लिए कटिबद्ध है, जो फरमानों को तुगलकी फरमान की तरह लागू कराता है. हरियाणा के लिए मनोहरलाल खट्टर, मध्य प्रदेश के लिए मोहन यादव और राजस्थान के लिए भजनलाल शर्मा! ये सज्जन कौन हैं? मनोहर, मोहन, भजन...? सवाल उठेंगे. “द वायर” में संजय के. झा ने लिखा है कि अगर कोई यह सोचता है कि सच्चाई 2014 में जम गई है, तो उसे फिर से सोचना होगा. याद रखिए, जो जम जाता है, वह सड़ने लगता है. झूठ सड़ते हैं.
बहुत जल्दी में जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा टिकाया
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को देर रात अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित इस्तीफे में स्वास्थ्य संबंधी कारणों और चिकित्सा देखभाल को प्राथमिकता देने की आवश्यकता का हवाला दिया है. उनका इस्तीफा तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. उनके करीबी सूत्रों ने “द इंडियन एक्सप्रेस” को बताया कि उनके मंगलवार को संसद सत्र में शामिल होने की संभावना नहीं है.
राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में धनखड़ ने उनकी "अडिग समर्थन" और उनके कार्यकाल के दौरान साझा किए गए "सुखद एवं सौहार्दपूर्ण कार्य संबंधों" के लिए आभार व्यक्त किया. उन्होंने लिखा, "मैंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत कुछ सीखा है," और यह भी जोड़ा कि सांसदों द्वारा दिखाया गया स्नेह और अपनापन उनकी स्मृतियों में हमेशा बना रहेगा.
यह घटनाक्रम बतौर राज्यसभा के सभापति उनके सदन की कार्यवाही में आखिरी बार भाग लेने के कुछ घंटों बाद ही हुआ. दिन की शुरूआत में मानसून सत्र को प्रारंभ करते हुए, धनखड़ ने सभी दलों के सदस्यों से आग्रह किया कि वे कटुता कम करें और रचनात्मक राजनीति करें. उन्होंने कहा, “एक सफल लोकतंत्र निरंतर कटुता को सहन नहीं कर सकता. राजनीतिक तनाव को कम किया जाना चाहिए, क्योंकि टकराव राजनीति का सार नहीं है.”
दिन के दौरान इस अप्रत्याशित फैसले का कोई सार्वजनिक संकेत नहीं था. बल्कि, धनखड़ ने सदन को सूचित किया था कि उन्हें 50 से अधिक सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित एक नोटिस प्राप्त हुआ है, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए समिति गठित करने की मांग की गई थी. उन्होंने बताया कि अब जांच समिति गठित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी और महासचिव आवश्यक कदम उठाएंगे.
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि दिसंबर 2024 में उन्हें 55 सांसदों द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर यादव को हटाने के लिए भी एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था. धनखड़ ने बताया, “मैंने इसे जांचा और पाया कि एक सांसद ने दो स्थानों पर हस्ताक्षर किए थे. इसलिए, प्रस्ताव में 55 सदस्यों का समर्थन दर्शाया गया था, जबकि वास्तव में केवल 54 सदस्यों का ही समर्थन था. इसके बाद जांच की गई कि किसने कथित रूप से दो बार हस्ताक्षर किए थे. संबंधित सदस्य ने दूसरे हस्ताक्षर से इनकार किया. इससे मामला और गंभीर हो गया. मेरे लिए आवश्यक था कि मैं इस मुद्दे की गहराई तक जाऊं. हस्ताक्षरों की सत्यता और प्रामाणिकता की जांच की प्रक्रिया शुरू की गई है और वह अभी भी जारी है.” 74 वर्षीय धनखड़ ने अगस्त 2022 में 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया था.
आदिवासी महिला को भी मिलेगा संपत्ति में बराबर
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी आदिवासी महिला को उसकी पैतृक संपत्ति में उसके भाइयों के बराबर हिस्सा देने से इनकार नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब कोई कानून ऐसा करने से रोकता न हो. अदालत ने कहा कि ऐसा करना लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देगा और समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा. यह मामला छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी महिला से जुड़ा था, जिसे निचली अदालतों ने यह कहकर संपत्ति में हिस्सा देने से मना कर दिया था कि ऐसा कोई रिवाज़ नहीं है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी ने यह भी साबित नहीं किया कि कोई ऐसा रिवाज़ है जो महिला को अधिकार देने से रोकता हो. बेंच ने कहा, "रीति-रिवाज़ भी कानून की तरह समय में अटके नहीं रह सकते... दूसरों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए रीति-रिवाजों की आड़ लेने की इजाज़त नहीं दी जा सकती."
साइबर फ्रॉड: हर महीने लुटते हैं ₹1,000 करोड़
गृह मंत्रालय (MHA) के अनुसार, भारतीय नागरिक हर महीने साइबर फ्रॉड में 1,000 करोड़ रुपये गँवा रहे हैं. मंत्रालय का अनुमान है कि भारतीयों को निशाना बनाने वाले इन साइबर घोटालों का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से संचालित होता है. यह आंकड़ा एक चेतावनी है कि ऑनलाइन दुनिया में हमें कितना सावधान रहने की ज़रूरत है.
28 साल बाद बंद हुआ मुंबई फिल्म फेस्टिवल
मुंबई का मशहूर और प्रतिष्ठित मामी (MAMI) मुंबई फिल्म फेस्टिवल, जो पिछले 28 सालों से हो रहा था, 2025 के लिए रद्द कर दिया गया है. आयोजकों ने सोमवार को यह घोषणा करते हुए कहा कि वे 2026 के संस्करण को एक नए रूप में पेश करने की तैयारी कर रहे हैं. इस फैसले की फिल्म निर्माता हंसल मेहता ने कड़ी आलोचना की है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "यह एक क्रूर विडंबना है कि भारत की आर्थिक और सिनेमाई राजधानी कहलाने वाला मुंबई अपने खुद के एक फिल्म फेस्टिवल को ज़िंदा नहीं रख सका. सिनेमा के स्व-नियुक्त ठेकेदारों ने इसे छोड़ दिया और अब वह छोटी सी लौ भी बुझ गई है. न कोई समारोह, न कोई गुस्सा, बस एक धीमी, खामोश भूल. जो एक सांस्कृतिक मील का पत्थर होना चाहिए था, वह अब उदासीनता का एक और शिकार बन गया है."
200 से ज्यादा सांसदों ने जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव दिया
संसद में, मानसून सत्र के पहले दिन दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा को हटाने की मांग वाला प्रस्ताव पेश करते समय पक्ष-विपक्ष के सदस्यों के बीच अभूतपूर्व एकता देखने को मिली. ये प्रस्ताव पार्टी लाइन से परे जाकर लोकसभा के 145 और राज्यसभा के 63 सांसदों ने पेश किया. यह प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपा गया. याद रहे, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक पैनल ने वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर संदिग्ध आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में नकदी बरामद होने के चौंकाने वाले आरोपों में ठोस आधार पाया था. 14 मार्च की इस घटना के बाद वर्मा का इलाहाबाद हाईकोर्ट तबादला कर दिया गया था. महीनों तक सरकार ने इस मामले को टालने और वर्मा को संरक्षण संरक्षण देने की कोशिश की, मगर अब बीजेपी के मंत्री अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद और राजीव प्रताप रूडी भी विपक्ष के नेताओं—जैसे राहुल गांधी (नेता प्रतिपक्ष), सुप्रिया सुले (एनसीपी-एसपी) और केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस)—के साथ जवाबदेही की मांग में शामिल हो गए हैं.
यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अंतर्गत पेश किया गया है, जिसके अनुसार किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए दोनों सदनों में साधारण बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है. चूंकि सभी दल इस कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए वर्मा का महाभियोग लगभग तय माना जा रहा है.
महाराष्ट्र के 72 नेता, अफसर 'हनी-ट्रैप' के चंगुल में
महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों एक 'हनी-ट्रैप' घोटाले को लेकर बवाल मचा हुआ है. कांग्रेस पार्टी पिछले एक हफ्ते से लगातार यह मुद्दा उठा रही है. पार्टी का दावा है कि इस जाल में राज्य के लगभग 72 बड़े नेता, अधिकारी और पूर्व अफसर फंस चुके हैं. इस मामले ने तब और तूल पकड़ लिया, जब शनिवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष विजय वडेट्टीवार ने एक और भी बड़ा और सनसनीखेज दावा किया. उनके मुताबिक, इसी हनी-ट्रैप की मदद से 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार को गिराया गया था.
वडेट्टीवार का आरोप है कि हनी-ट्रैप में फंसे लोगों की वीडियो रिकॉर्डिंग की सीडी का इस्तेमाल करके ही एकनाथ शिंदे सरकार सत्ता में आई. उन्होंने कहा, "यह एक बहुत गंभीर मामला है." आपको याद दिला दें कि जून 2022 में, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के 40 विधायकों ने बगावत कर दी थी, जिसके बाद MVA सरकार गिर गई थी. इसके बाद शिंदे ने बीजेपी के समर्थन से नई सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने.
हालांकि, राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ऐसे किसी भी हनी-ट्रैप की जानकारी होने से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई शिकायत नहीं मिली है. लेकिन वडेट्टीवार का कहना है कि मुख्यमंत्री भले ही मना कर रहे हों, पर सरकार और विपक्ष, दोनों के पास इस मामले की काफी जानकारी है. उन्होंने कहा, "हम अभी चुप हैं, क्योंकि हम किसी का करियर बर्बाद नहीं करना चाहते."
यह पूरा मामला नासिक के एक लक्ज़री होटल से जुड़ा है, जहां कथित तौर पर कई मंत्रियों और बड़े अधिकारियों को आपत्तिजनक हालत में कैमरे में कैद किया गया. कहा जा रहा है कि इन वीडियो टेप का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग यानी पैसे मांगने या अपनी बात मनवाने के लिए किया गया. शुरुआती जांच में करीब 72 लोगों के नाम सामने आए हैं.
वडेट्टीवार ने यह भी दावा किया कि इस जाल में सिर्फ नेता ही नहीं, बल्कि कई बड़े नौकरशाह भी फंसे हैं. उन्होंने कहा, "कई आईएएस अधिकारी, जो अभी सेवा में हैं और जो रिटायर हो चुके हैं, वे भी इसमें शामिल हैं. इसमें बड़े-बड़े लोग शामिल हैं."
विजय वडेट्टीवार ने कहा है कि उनके पास इसके पुख्ता सबूत हैं और उन्होंने चेतावनी दी है कि वे सही समय आने पर सब कुछ सामने लाएंगे. इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच महाराष्ट्र की राजनीति गरमा गई है और हर कोई यह जानना चाहता है कि क्या वाकई एक हनी-ट्रैप ने राज्य की सरकार गिराने में भूमिका निभाई थी.
नागा पहाड़ियों पर कुकी समुदाय की आवाजाही पर रोक
'द टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट है कि फुटहिल्स नागा कॉर्डिनेशन कमिटी (FNCC) ने नागा-बहुल पर्वतीय क्षेत्रों में कुकी समुदाय की आवाजाही पर अनिश्चितकालीन बंद का ऐलान किया है. यह कदम उन्होंने "पूर्वजों की भूमि, पहचान और सुरक्षा पर खतरे" के विरोध में उठाया है. समिति ने कहा कि यह बंद शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ विरोध का रूप है.
एफएनसीसी की आपत्ति का मुख्य कारण वह सड़क है, जिसे हाल के मणिपुर संघर्ष के दौरान निजी रूप से बनाया गया. यह सड़क चुराचांदपुर से कांगपोकपी तक जाती है और इसे 2024 में आमजन के लिए खोला गया था. यह सड़क कथित रूप से कुकी नेशनल फ्रंट-मिलिट्री काउंसिल (KNF-MC) के नेता जर्मन एच. कुकी के नाम पर 'जर्मन रोड' या 'टाइगर रोड' कहलाती है. एफएनसीसी के सचिव बी. रोबिन काबुई ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा कि इस सड़क ने नागा समुदाय के पारंपरिक क्षेत्रों से होकर गुजरने वाले इलाकों में बिना अनुमति प्रवेश किया है, जो पारंपरिक भूमि अधिकारों का खुला उल्लंघन है.
एफएनसीसी ने कहा कि यह सड़क नागा लोगों की पूर्वजों की भूमि पर उनके अधिकार को चुनौती देती है और बिना किसी पूर्व जानकारी या सहमति के उनके क्षेत्र में दखल है. समिति ने इसे “परंपरागत स्वामित्व अधिकारों की खुली अवहेलना” कहा है.
यह विवाद मणिपुर की जातीय राजनीति को और भड़काने की क्षमता रखता है. पहले से ही मणिपुर में मैतेई-कुकी संघर्ष के चलते सैकड़ों मौतें और हजारों विस्थापन हो चुके हैं. अब नगा-कुकी सीमाओं पर इस प्रकार के बंद और दावे भविष्य में तीन-तरफा संघर्ष की संभावना को जन्म दे सकते हैं.
भारत-चीन संबंधों को नई दिशा देने की तैयारी: कैलाश-मानसरोवर यात्रा फिर शुरू होगी, सीधी उड़ानों पर भी काम
'द हिन्दू' के लिए भारत में चीन के राजदूत शू फेईहोंग ने वरिष्ठ पत्रकार सुहासिनी हैदर को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि बीजिंग भारत के साथ "स्थिर और सकारात्मक" संबंध बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवादों को सुलझाने के लिए चीन “सीमा प्रबंधन और नियंत्रण नियमों” को परिष्कृत करने पर काम करने को तैयार है.
राजदूत शू ने द्विपक्षीय संबंधों को नया बल देने के लिए कैलाश-मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने का सुझाव भी दिया. उन्होंने कहा कि यह कदम “भारत-चीन संबंधों में नई ऊर्जा” भर सकता है और इसके बाद दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों को बहाल किया जा सकता है. गौरतलब है कि कैलाश-मानसरोवर यात्रा, जो तिब्बत क्षेत्र में पड़ती है, कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा तनाव के बाद स्थगित कर दी गई थी. इसके साथ ही, गलवान संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें भी रुक गई थीं.
चीन में भारत के लिए राजदूत शू फेइहोंग ने कहा है कि चीन भारत के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थायित्व बनाए रखने और सीमा प्रबंधन नियमों को परिष्कृत करने को तैयार है. उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया कि कैलाश-मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू किया जाए, ताकि द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा आ सके. इसके बाद जल्द ही भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानें भी शुरू हो सकती हैं.
राजदूत ने कहा कि यात्रा धार्मिक भावनाओं का सम्मान है और दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देगा. वहीं, चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर भारत के नेताओं की टिप्पणियों को लेकर आपत्ति जताई और इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया.
चीन ने यह भी कहा कि वह दलाई लामा से केवल व्यक्तिगत भविष्य पर बातचीत को तैयार है, बशर्ते वे चीन विरोधी गतिविधियों से पूरी तरह विराम लें और तिब्बत-ताइवान को चीन का अभिन्न हिस्सा मानें.
इसके साथ ही, चीन ने भारत-पाकिस्तान तनाव पर भी टिप्पणी की और कहा कि उसका पाकिस्तान से सैन्य सहयोग किसी तीसरे पक्ष को लक्षित नहीं करता.
मनी लॉन्ड्रिंग केस: ऑनलाइन सट्टेबाजी से जुड़े मामले में मेटा और गूगल के वरिष्ठ अधिकारियों को ईडी ने भेजा नया समन
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में मेटा और गूगल के वरिष्ठ अधिकारियों को फिर से समन जारी किया है. यह मामला अवैध ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए के प्लेटफॉर्म्स से जुड़ा हुआ है. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, दोनों टेक कंपनियों के प्रतिनिधियों को 21 जुलाई को पूछताछ के लिए पेश होना था, लेकिन उन्होंने दस्तावेज़ जुटाने के लिए और समय की मांग करते हुए पेशी को टालने का अनुरोध किया. इसके जवाब में ईडी ने उन्हें एक सप्ताह की मोहलत दी है और अब 28 जुलाई को हाज़िर होने का निर्देश दिया गया है.
ग्रेट निकोबार
वैज्ञानिकों पर दबाव डालकर बनी रिपोर्ट्स, अमूल्य वर्षावन को नष्ट करने की तैयारी में सरकार
'आर्टीकल 14' की रिपोर्ट है कि ग्रेट निकोबार आयलैंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (₹81,000 करोड़) के तहत लगभग 130 वर्गकिमी पुराने वर्षावन, जिसमें लाखों वृक्ष और जैवविविधता (जिनमें लेदरबैक कछुआ, जो दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री कछुआ है, निकोबार मेगापोड, कोरल रीफ आदि शामिल हैं) शामिल हैं, उसे अब खुर्द-बुर्द करने की तैयारी सरकार ने कर ली है. देश की शीर्ष संस्थानों जैसे वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और SACON को व्यापक दबाव में रखा गया कि वे इस परियोजना के पक्ष में रिपोर्ट तैयार करें.
इन्हें गैग ऑर्डर, तेज़ डेडलाइन और एनडीए (गोपनीयता समझौते) पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया. जहां धरातलीय मूल्यांकन केवल 6 दिनों में हुआ, वहीं प्रमुख वैज्ञानिकों को अपनी काम छोड़ने जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ा. मसलनल वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के के. शिवकुमार ने प्रोजेक्ट की आलोचना कर 2022 में इस्तीफ़ा दे दिया.
लेदरबैक कछुओं की रक्षा के लिए रिपोर्ट में गैलाथिया बे में “नॉटच्यूआएंग नेस्ट्स” खोजे नहीं गए, क्योंकि जांच कछुओं के चक्र में ही सीमित थी. जेडएसआई की रिपोर्ट ने निकोबार मेगापोड और कोरल रीफ को “स्थानांतरित” योग्य बताया, जबकि विशेषज्ञ इसे व्यवहारिक रूप से असंभव मानते हैं. पर्यावरण नीति विशेषज्ञों ने इस प्रक्रिया को “गंभीर रूप से दोषपूर्ण” एवं “एकतरफा विकास एजेंडे” के मुताबिक़ बताया.
आदिवासी समुदायों का विस्थापन शोम्पेन और निकोबरेसी जैसे आदिवासी समूहों के दैनिक-आश्रित इलाकों को ज़िले के नक्शों से हटाकर “बेजमीन” करार दिया गया और उनकी स्वीकृति तक बेईमान तरीके से ली गई. इतना ही नहीं ईएसी और एनबीडब्ल्यूएल ने वैज्ञानिक रिपोर्टों की परख किए बिना, बिना समय लिए मंज़ूरी दे दी. नामकरणों (EIA, SIA) और नक्शा-नक़्क़ाशी में पारदर्शिता का अभाव रहा और मंत्रालयों से कोई जवाब नहीं मिला.
वीएस अच्युतानंदन का निधन, यचुरी ने फिदेल कास्त्रो कहा था
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रमुख नेता वी.एस. अच्युतानंदन का सोमवार (21 जुलाई, 2025) को तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वे 101 वर्ष के थे. अच्युतानंदन ने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था. 2016 में जब पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो सीताराम यचुरी ने कहा था कि “वीएस हमारे फिदेल कास्त्रो हैं.” 2019 में उन्हें मामूली स्ट्रोक आया था, जिसके बाद वे सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए थे और अपने बेटे वी. अरुण कुमार के साथ तिरुवनंतपुरम में रहते थे.
कम्युनिस्ट आंदोलन के दिग्गज, स्वतंत्रता सेनानी और समाज के वंचित वर्गों के लिए संघर्ष करने वाले अच्युतानंदन आठ दशकों तक सक्रिय राजनीति में रहे. वे 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद बने सीपीआई (एम) के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे.
राज्य की राजनीति में उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली माना जाता था. वे विपक्ष के नेता के रूप में पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता, दलदली भूमि की रक्षा, नर्सों को बेहतर वेतन, ट्रांसजेंडर अधिकार और मुक्त सॉफ़्टवेयर जैसे मुद्दों के लिए हमेशा संघर्षरत रहे.
अच्युतानंदन को 23 जून को दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था और तब से वे वेंटिलेटर पर थे. उनकी उम्रजनित समस्याएं भी काफी बढ़ गई थीं. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया और उनकी सार्वजनिक जीवन में दीर्घकालिक सेवा को याद किया.
स्मृति शेष
बूढ़ा मगर अडिग: मोदी युग में अच्युतानंदन की विरासत और केरल मॉडल की याद
गौरव नौड़ियाल
कुछ बूढ़े अलहदा होते हैं... उनसे लोग मोहब्बत करते हैं. ख़ासकर उन बूढ़ों की, जिनकी पीठ झुक जाती है, मगर जिनकी आवाज़ में लोगों के सवाल गूंजते हैं. व्यापक जनसुमदाय के लिए जो ताउम्र खपे रहते हैं, जिनके भीतर अभी भी वही जिद और वही उम्मीद बची होती है.
कॉमरेड वी.एस. अच्युतानंदन भी ऐसे ही थे - बूढ़ा मगर अडिग, थका मगर झुका नहीं.
बारिश, लाल झंडे और एक मुलाकात : उस दिन त्रिवेंद्रम सचिवालय में रंजीत से मिला. बाहर तेज़ बारिश हो रही थी. ऐसी बरसात जो सिर्फ़ केरल की होती है. हवाओं में आयुर्वेद की खुशबू, भीगती हुई लाल झंडियां और काली दीवारों पर इतिहास की गूंज. साफ सुथरे बस स्टैंड और सिगरेट पीने के लिए कुछ खास चुनिंदा जगहें. चाय के खोमचों से पीछे कहीं दूर...रंजीत मुझे केरल के कम्युनिस्ट आंदोलन के बारे में बता रहा था.
अचानक ड्राइवर ने कहा - “दादा, अच्युतानंद सर जहां चाय पीने आते थे, चलें वहां?” वो हमारी बातें ही सुन रहा था. रंजीत ने तुरंत कहा - 'हां-हां ले लो'. कह दिया और मेरी ओर देखकर कहा ..वो पक्का कॉमरेड है!
गाड़ी हमें इंडियन कॉफी हाउस ले गई, जहां वाम आंदोलन की योजनाएं चाय की चुस्की में जन्मती थीं. मैं चुपचाप सुनता रहा. रंजीत फोन पर मशगूल था. वो राजनीति का अहम खिलाड़ी है...उस व्यवस्था का हिस्सा. बुज़ुर्ग, मोदी मॉडल की बातें कर रहे थे. मुझे बस कुछ कुछ चीजें ही समझ आई... मोदी, पिनरई, शैलजा... मॉडल.. योगी... हिन्दुत्व.. आरएसएस! गंभीर चर्चा जारी थी.
रंजीत ने कहा - “तुम्हें मालूम.. केरल की के.के. शैलजा को WHO‑UN ने COVID‑प्रबंधन के लिए सम्मानित किया था, जबकि योगी का स्टेट में गंगा किनारे डेड बॉडी बह रहा था. हजारों...” वाकई में उसी दौरान (जुलाई 2021) बिहार-यूपी में शवों की रिपोर्ट आई, जबकि लैंसेट और 'द गार्डियन' ने केरल मॉडल की प्रशंसा की.
संस्थाएं बनाम मॉडल : “पहले संस्थाएं वैचारिक छतरी होती थीं,” रंजीत बोला. वह चुनाव आयोग, विश्वविद्यालय, मीडिया, ज्यूडिशियरी की ओर इशारा कर रहा था. अच्युतानंदन के दौर में केरल ने 1969 में भूमि सुधार लागू किए, जिससे 15 लाख+ छोटे किसान ज़मींदार बन पाए. 1996 में शुरू हुआ पीपल्स प्लान कैंपेन विकेंद्रीकरण की क्रांति था.
मोदी युग में, योजना आयोग खत्म होकर नीति आयोग बना. एक ऐसा संस्थान जो राज्यों से सुझाव लेता है, पर फैसले केंद्र में ही होते हैं, रंजीत ने कहा.
सादगी, नफ़ा और जनप्रतिष्ठा : “वह आदमी,” किसी बुज़ुर्ग ने बीच में हमारी बात काटते हुए कहा, “दस साल मुख्यमंत्री रहा, फिर भी एक फ्लैट नहीं लिया.”
कॉमरेड वीएस ने 2006–2011 के कार्यकाल में ICTT कोच्चि, टेक्नो पार्क , कोल्लम जैसे प्रोजेक्ट्स तेज़ी से आगे बढ़ाए. भूमि अतिक्रमण, वन-संरक्षण और वैकल्पिक विकास मॉडल पर उन्होंने सख्ती से काम किया. उसने कहा - जहां आज नेता मंदिर, अस्पताल, स्कूल पर अपने बोर्ड लगाते हैं, वह जनता के पुराने ग्राहक बनकर पुट्टु और कांजी पसंद करने वाले नेता थे.
वापसी के समय ड्राइवर ने इशारा किया - “दादा, वो रहा अच्युतानंद अन्ना का घर.” एक साधारण मकान, खुला दरवाज़ा, तुलसी का पौधा, किसी पुरानी मलयाली धुन की आहट, बिना सुरक्षाबेल्ट, सिर्फ़ जनता के बीच सादगी से जीने वाला घर.
खैर, हम आगे बढ़ गए. बारिश अब भी पड़ रही थी. आज जब त्रिवेंद्रम की गलियों में लाल झंडा मद्धम रोशनी में लहराता है तो ऐसा लगता है जैसे अतीत की गूंज सुनाई दे - “कॉमरेड अच्युतानंद… बूढ़ा मगर अडिग, थका मगर झुका नहीं.” एक नेता जिसने भ्रष्टाचार, प्रकृति विनाश, सामाजिक अन्याय पर लगातार आवाज़ उठाई. उन्होंने कांग्रेस और बीजेपी, दोनों से लड़ने का संतुलन बनाए रखा.
एपस्टीन और ट्रम्प: आरोप लगाने वाली महिला ने दो दशक पहले ही एफबीआई को चेताया था
'द गार्डियन' की एक नई रिपोर्ट के अनुसार कलाकार मारिया फार्मर, जिन्होंने लगभग तीन दशक पहले जेफरी एपस्टीन और उसकी साथी गिसलेन मैक्सवेल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, उन्होंने 1996 में ही डोनाल्ड ट्रम्प का नाम भी एफबीआई को बताया था और जांच की मांग की थी.
फार्मर ने बताया कि 1995 में एपस्टीन के कार्यालय में देर रात एक घटना घटी थी, जिसमें ट्रम्प भी मौजूद थे. वह उस समय रनिंग शॉर्ट्स पहने हुए थीं, और ट्रम्प ने उनके पैरों को घूरा, जिससे वह असहज हो गईं. फार्मर का दावा है कि उन्होंने तब भी और बाद में 2006 में एफबीआई से दोबारा पूछताछ के दौरान ट्रम्प का नाम स्पष्ट रूप से लिया था. फार्मर ने कहा, "मैंने हमेशा सोचा कि मेरी शिकायतों को एजेंसियों ने कैसे संभाला."
"एप्सटीन का भूत ट्रम्प की प्रेसीडेंसी को सता रहा है"
डेविड स्मिथ ने अपने लेख में बताया है कि जेफरी एप्सटीन, एक दोषी सेक्स अपराधी और धनी फाइनेंसर, से जुड़ा विवाद डोनाल्ड ट्रम्प की प्रेसीडेंसी को परेशान कर रहा है. ट्रम्प ने अपने 2024 के चुनाव अभियान में वादा किया था कि वे एप्सटीन से जुड़े "क्लाइंट लिस्ट" और अन्य दस्तावेज़ सार्वजनिक करेंगे, जो कथित तौर पर शक्तिशाली लोगों को ब्लैकमेल करने से संबंधित थे. लेकिन जुलाई 2025 में, जस्टिस डिपार्टमेंट और एफबीआई ने एक मेमो जारी किया, जिसमें कहा गया कि कोई "क्लाइंट लिस्ट" नहीं है और एप्सटीन ने 2019 में जेल में आत्महत्या की थी, न कि उनकी हत्या हुई थी.
इससे ट्रम्प के MAGA समर्थकों में भारी नाराजगी फैल गई, जो इसे "डीप स्टेट" की साजिश मानते हैं. समर्थकों का मानना था कि ट्रम्प "भ्रष्ट अभिजात वर्ग" को बेनकाब करेंगे, लेकिन अब वे ट्रम्प पर ही सवाल उठा रहे हैं. समर्थकों ने ट्रम्प पर वादा तोड़ने का आरोप लगाया. टकर कार्लसन, लॉरा लूमर और स्टीव बैनन जैसे प्रभावशाली लोग जस्टिस डिपार्टमेंट की पारदर्शिता की कमी पर सवाल उठा रहे हैं. कुछ ने तो MAGA टोपियां जलाकर विरोध जताया. ट्रम्प ने इसे "रैडिकल लेफ्ट" और डेमोक्रेट्स की साजिश बताया, बिना सबूत के दावा किया कि बराक ओबामा, जो बाइडेन और जेम्स कोमी ने फाइल्स बनाईं. उन्होंने अपने समर्थकों को "कमजोर" कहा और कहा कि वे उनकी सहायता नहीं चाहते. इधर मस्क ने एक्स पर पोस्ट्स के जरिए ट्रम्प पर दबाव डाला, यह दावा करते हुए कि ट्रम्प खुद फाइल्स में हैं (बाद में पोस्ट हटाई. माइक पेंस और माइक जॉनसन जैसे रिपब्लिकन नेताओं ने भी पारदर्शिता की मांग की. डेमोक्रेट्स, जैसे रो खन्ना ने इसे अवसर के रूप में देखा, यह कहते हुए कि ट्रम्प शक्तिशाली लोगों को बचा रहे हैं.
भारी दबाव के बाद, ट्रम्प ने 18 जुलाई 2025 को घोषणा की कि वे न्यूयॉर्क कोर्ट से एप्सटीन के ग्रैंड जूरी टेस्टिमनी को अनसील करने की मांग करेंगे, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह सीमित जानकारी होगी और विवाद को शांत नहीं करेगी.
लेख में चार्ली साइक्स का हवाला दिया गया है, जो कहते हैं कि ट्रम्प ने वर्षों तक साजिश सिद्धांतों को बढ़ावा दिया और अब वही सिद्धांत उनकी प्रेसीडेंसी को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह "जेडी माइंड ट्रिक" की तरह है, जहां ट्रम्प अपने समर्थकों को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं.
'डॉन' के निर्देशक चंद्र बरोट का निधन
1978 में आई अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म 'डॉन' का निर्देशन करने वाले दिग्गज फिल्म निर्माता चंद्र बरोट का रविवार को मुंबई के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वे 86 वर्ष के थे और फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे थे. इस दुखद खबर के बाद अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में उन्हें याद करते हुए लिखा, "एक और दुखद पल. मेरे प्यारे दोस्त और 'डॉन' के निर्देशक चंद्रा बरोट आज सुबह नहीं रहे. उनके जाने के नुकसान को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. हमने साथ में काम ज़रूर किया, लेकिन वो एक सहकर्मी से कहीं ज़्यादा, परिवार के दोस्त थे. मैं सिर्फ़ प्रार्थना कर सकता हूँ."
चंद्रा बरोट का नाम हमेशा 1978 की सुपरहिट फ़िल्म 'डॉन' के साथ जुड़ा रहेगा. यह फ़िल्म इतनी बड़ी हिट हुई कि इसने एक पंथ का दर्जा हासिल कर लिया. इसी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 2006 में फरहान अख्तर ने शाहरुख खान के साथ 'डॉन' का रीमेक बनाया. फरहान ने बरोट को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें "असली डॉन का निर्देशक" कहा. 'डॉन' ने अमिताभ बच्चन को उनकी 'एंग्री यंग मैन' वाली छवि से निकालकर एक यादगार डबल रोल दिया था. एक तरफ़ वो खूंखार डॉन थे तो दूसरी तरफ़ एक सीधा-सादा, गली में नाचने-गाने वाला विजय.
'डॉन' को बनाने की कहानी भी किसी फ़िल्म से कम नहीं है. बरोट उन दिनों मनोज कुमार के असिस्टेंट हुआ करते थे. फ़िल्म के निर्माता नरीमन ईरानी के पास बीच में ही पैसे खत्म हो गए और एक दुर्घटना में उनका निधन भी हो गया. तब चंद्रा बरोट, अमिताभ बच्चन और बाकी कलाकारों ने मिलकर पैसे जुटाए और फ़िल्म को पूरा किया. फ़िल्म का मशहूर डायलॉग "डॉन का इंतज़ार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है..." आज भी लोगों की ज़ुबान पर है. इसके गाने 'खइके पान बनारस वाला', 'मैं हूं डॉन' और 'ये मेरा दिल' आज भी उतने ही ताज़े लगते हैं. 'खइके पान बनारस वाला' गाना तो मनोज कुमार के कहने पर फ़िल्म में डाला गया था, क्योंकि उन्हें फ़िल्म का दूसरा हिस्सा बहुत गंभीर लग रहा था. यह गाना देव आनंद की फ़िल्म 'बनारसी बाबू' के लिए बना था, लेकिन वहाँ इसे खारिज कर दिया गया था.
'डॉन' की ज़बरदस्त सफलता के बावजूद चंद्रा बरोट का करियर वैसी उड़ान नहीं भर पाया. उन्होंने कुछ ही फ़िल्में बनाईं, लेकिन 'डॉन' के ज़रिए उन्होंने हिंदी सिनेमा को एक ऐसा हीरा दिया, जिसकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ेगी.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.
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