22/08/2025: बिहार में औरतों के नाम ज्यादा कटे | चीन को लेकर सवाल | असम में आधार कार्ड | नये कानून के निशाने पर कौन? | निजी कॉलेजों में आरक्षण | सिंदूर का गाजा बाजा, शहादत पर चुप्पी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियांँ
भारत-चीन संबंध: चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के बावजूद, सीमा विवाद और चीन को लेकर भारत की नीति पर गंभीर सवाल बने हुए हैं. इसके साथ ही, चीन ने पाकिस्तान के साथ कृषि और खनन में सहयोग बढ़ाने का वादा किया है, जिससे भारत की चिंताएँ बढ़ सकती हैं.
बिहार मतदाता सूची विवाद: बिहार की मतदाता सूची से पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक महिलाओं के नाम हटा दिए गए हैं, जिससे बड़े पैमाने पर महिलाओं के मताधिकार से वंचित होने का खतरा पैदा हो गया है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है.
ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल: 'ऑपरेशन सिंदूर' के लिए बड़ी संख्या में वीरता पदक दिए जाने और शहादत पर सरकार की चुप्पी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं.
असम में आधार कार्ड नियम: असम में अब 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए पहली बार आधार कार्ड बनवाना बंद कर दिया गया है, जिसका उद्देश्य अवैध प्रवासियों को रोकना है.
आपराधिक मामलों वाले मुख्यमंत्री: एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 10 मुख्यमंत्रियों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से सात विपक्षी दलों से हैं.
GST दरों में बदलाव का प्रस्ताव: GST परिषद के एक मंत्री समूह ने 12% और 28% की दरों को खत्म कर केवल 5% और 18% की दरें रखने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है.
रूस-यूक्रेन शांति वार्ता में गतिरोध: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बदलती बयानबाजी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की कड़ी शर्तों के कारण रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता रुक गई है.
अमेरिका ने रूसी तेल पर भारत पर टैरिफ लगाया: अमेरिका ने रियायती रूसी तेल खरीदने के लिए भारतीय सामानों पर 25% का अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है, जिस पर भारत ने हैरानी जताई है.
अडानी समूह की अमेरिका में लॉबिंग: रिश्वतखोरी के आरोपों के बाद, अडानी समूह ने अमेरिकी सरकार को प्रभावित करने के लिए वाशिंगटन डीसी में अपना लॉबिंग अभियान तेज कर दिया है
बेटे की हत्या की आरोपी महिला भारत से गिरफ्तार: एफबीआई ने अपने छह साल के बेटे की हत्या कर भारत भागने वाली महिला को गिरफ्तार कर लिया है
वांग यी की भारत यात्रा
7 बड़े सवाल : चीन को लेकर भारत के सामने
चीनी विदेश मंत्री वांग यी की अगस्त 2025 में दिल्ली की हाई-प्रोफाइल यात्रा ने सुर्खियां तो बटोरीं और आधिकारिक आशावाद भी जगाया, लेकिन यह भारत के सबसे जटिल द्विपक्षीय संबंधों को लेकर मोदी सरकार के दृष्टिकोण पर गहरे, अनसुलझे सवाल भी छोड़ गई है. द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों पक्ष भले ही राजनयिक चैनलों के फिर से शुरू होने और जुड़ाव के लिए नए मंचों का जश्न मना रहे हों, लेकिन भारत की सुरक्षा और भू-राजनीतिक स्थिति को निर्धारित करने वाले अंतर्निहित मुद्दे काफी हद तक अनसुलझे हैं.
यह यात्रा भारत-चीन संबंधों के भविष्य की दिशा तय करने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण है. अनसुलझे सवाल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमा अखंडता और रणनीतिक स्वायत्तता पर सीधे असर डालते हैं. मोदी सरकार के दृष्टिकोण में बदलाव और बिना किसी सार्वजनिक स्पष्टीकरण के रियायतें देने की चिंताएं बढ़ गई हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या भारत अपनी ज़मीन खो रहा है.
रिपोर्ट में सात अहम सवाल उठाए गए हैं.
पहला, क्या पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर अप्रैल 2020 की यथास्थिति बहाल हो गई है, क्योंकि भारत सीमा विवाद सुलझाए बिना संबंधों को सामान्य कर रहा है. दूसरा, चीन द्वारा स्टेपल वीज़ा नीति में बदलाव किए बिना भारत ने 'एक-चीन नीति' पर अपनी स्थिति क्यों दोहराई. तीसरा, सरकार ने चीन के 'अर्ली हार्वेस्ट' सीमा प्रस्ताव पर अपना रुख क्यों बदला, जिसे उसने 2019 में खारिज कर दिया था. चौथा, चीन ब्रह्मपुत्र पर बने अपने बांधों से केवल आपातकालीन हाइड्रोलॉजिकल डेटा क्यों साझा करेगा, न कि रीयल-टाइम डेटा. पांचवां, क्या चीन पाकिस्तान को सक्रिय सैन्य समर्थन देना बंद करेगा, खासकर 'ऑपरेशन सिंदूर' में चीनी हथियारों के इस्तेमाल के बाद. छठा, क्या चीन ने डीएपी उर्वरक और रेयर अर्थ जैसे रणनीतिक आयातों की आपूर्ति पर कोई आधिकारिक प्रतिबद्धता दी है. और सातवां, भारत के साथ अपने पक्ष में बड़े पैमाने पर व्यापार असंतुलन को चीन कैसे दूर करेगा.
रिपोर्ट का सार यह है कि मोदी सरकार का चीन के प्रति दृष्टिकोण अचानक बदलावों और अपारदर्शी समझौतों से गुज़रा है, जो एक मज़बूत जुड़ाव के बजाय एक रणनीतिक वापसी जैसा लगता है. स्पष्ट जवाबों की कमी रिश्ते में बढ़ती विषमता को उजागर करती है, जिसमें भारत क्षेत्र, कूटनीति और आर्थिक लाभ के मामले में ज़मीन खो रहा है, जबकि चीन से पारस्परिक प्रतिबद्धताएं हासिल करने में विफल रहा है.
अगर मोदी सरकार इन सवालों पर स्पष्टता और ठोस परिणाम नहीं देती है, तो चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने का कदम केवल कमज़ोरियों को उजागर करेगा, भारत की स्थिति को असुरक्षित करेगा और देश-विदेश में भारत की प्रतिष्ठा को कम करेगा.
चीन-पाकिस्तान सहयोग कृषि और खनन में बढ़ेगा
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने गुरुवार को इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार से मुलाकात की. वांग ने कहा कि चीन पाकिस्तान के साथ उद्योग, कृषि और खनन में सहयोग करने को तैयार है. यह बैठक वांग की भारत यात्रा के ठीक बाद हुई. यह घटनाक्रम भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नई दिल्ली में उच्च-स्तरीय वार्ता के तुरंत बाद मज़बूत चीन-पाकिस्तान धुरी की पुष्टि करता है. वांग का यह कहना कि बीजिंग पाकिस्तान की राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में समर्थन करना जारी रखेगा, भारत की सुरक्षा चिंताओं के बीच एक निरंतर रणनीतिक संरेखण को उजागर करता है.
वांग ने कहा कि बीजिंग आतंकवाद से निपटने में भी पाकिस्तान का समर्थन करेगा और चीन अपनी क्षेत्रीय कूटनीति में पाकिस्तान को प्राथमिकता देना जारी रखेगा. दोनों देशों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अपग्रेड करने और एकतरफा दादागिरी का विरोध करने पर भी सहमति जताई. दिल्ली के ठीक बाद इस्लामाबाद का दौरा एक स्पष्ट संदेश देता है. जबकि भारत चीन से आश्वासन चाहता है, बीजिंग खुले तौर पर पाकिस्तान के साथ अपनी "सदाबहार" दोस्ती को मज़बूत कर रहा है. CPEC को अपग्रेड करने का वादा, जो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर से होकर गुज़रता है, भारत के संप्रभुता के दावों की सीधी अवहेलना है. चीन द्वारा पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य रूप से मज़बूत करना जारी रखने की संभावना है, जो भारत के लिए "दो-मोर्चे" की चुनौती को और मज़बूत करेगा. भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों के संबंध में अपनी कूटनीतिक और सैन्य रणनीति में इस अटूट समर्थन को ध्यान में रखना होगा.
बिहार मतदाता सूची
औरतों के नाम मतदाता सूची से ज्यादा कटे
द हिंदू के डेटा विश्लेषण के अनुसार, बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में, "स्थायी रूप से स्थानांतरित" (permanently shifted) श्रेणी के तहत पुरुषों की तुलना में काफी अधिक महिलाओं के नाम हटाए गए. यह बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं के मताधिकार से वंचित होने की गंभीर चिंता पैदा करता है. यह असमानता पुनरीक्षण प्रक्रिया में एक प्रणालीगत मुद्दे की ओर इशारा करती है जो महिलाओं, विशेष रूप से युवा, विवाहित प्रवासियों को असमान रूप से प्रभावित करती है.
यह प्रवृत्ति 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के लिए अधिक स्पष्ट थी. विश्लेषण किए गए शीर्ष नौ निर्वाचन क्षेत्रों में, "स्थायी रूप से स्थानांतरित" होने के कारण हटाए गए लोगों में से 62.6% महिलाएं थीं. 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि काम के लिए अधिक पुरुष प्रवास करते हैं, जबकि शादी के लिए कहीं अधिक महिलाएं प्रवास करती हैं.
डेटा प्रवास की सरल व्याख्या का खंडन करता है. सवाल यह है कि प्रवासी पुरुषों की तुलना में प्रवासी महिलाओं को अधिक दर से क्यों हटाया जा रहा है. क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुषों को पहले के संशोधनों में पहले ही हटा दिया गया था, या प्रक्रिया में कोई और पूर्वाग्रह है. मुख्य चिंता यह है कि क्या इन महिलाओं को हटाने से पहले कहीं और नामांकित किया जा रहा है. यह डेटा चुनाव आयोग की प्रक्रिया की और जांच का कारण बन सकता है. यह सवाल उठता है कि क्या इन विलोपनों से बड़े पैमाने पर मताधिकार का हनन होगा, खासकर उन महिलाओं के लिए जो शादी के बाद दूसरी जगह चली गई हैं.
वोट चोरी पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई
चुनाव आयोग ने 65 लाख हटाए गए नामों पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया
भारत के चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक अनुपालन हलफनामा दायर किया है. यह हलफनामा बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद मतदाता सूची के मसौदे से बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं की सूची प्रकाशित करने के बाद दायर किया गया. इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्य बागची की दो-न्यायाधीशों की बेंच शुक्रवार, 22 अगस्त को दोपहर 2 बजे करेगी.
14 अगस्त को पिछली सुनवाई में, अदालत ने SIR अभ्यास को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को पहचान के वैध प्रमाण के रूप में आधार कार्ड स्वीकार करने का निर्देश दिया था. यह फैसला महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई मतदाताओं ने आरोप लगाया था कि SIR प्रक्रिया के दौरान उनके आधार विवरण को नजरअंदाज कर दिया गया था. 65 लाख जैसी बड़ी संख्या में मतदाताओं को सूची से हटाने से नागरिकों के मताधिकार से वंचित होने की चिंता पैदा हो गई है.
अदालत बिहार एसआईआर अभ्यास की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही है. अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह मसौदा सूची से हटाए जाने के लिए प्रस्तावित लगभग 65 लाख मतदाताओं की जिलेवार सूची कारणों के साथ प्रकाशित करे. अदालत ने कहा, "हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के बारे में पारदर्शिता की आवश्यकता है ताकि लोग स्पष्टीकरण या सुधार की मांग कर सकें." बेंच ने चुनाव आयोग को जिला निर्वाचन अधिकारियों और बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइटों पर सूचियों को होस्ट करने का निर्देश दिया. इन सूचियों में हटाने के कारण—जैसे मृत्यु, प्रवास या डुप्लिकेट पंजीकरण—निर्दिष्ट होने चाहिए और एपिक नंबरों द्वारा खोजने योग्य होने चाहिए.
अदालत ने चुनाव आयोग को सार्वजनिक नोटिस जारी करने का भी निर्देश दिया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया हो कि बाहर किए गए व्यक्ति अंतिम सूची में शामिल होने के लिए दावा दायर करते समय आधार कार्ड जमा कर सकते हैं. याचिकाएं एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), योगेंद्र यादव, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल और मुजाहिद आलम द्वारा दायर की गई हैं. याचिकाकर्ताओं ने बिहार SIR पर चुनाव आयोग के 24 जून, 2025 के आदेश को रद्द करने की मांग की है.
सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करेगा, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा दायर अनुपालन हलफनामे की समीक्षा की जाएगी. अदालत यह देखेगी कि क्या उसके द्वारा दिए गए सभी निर्देशों, विशेष रूप से हटाए गए नामों की सूची के प्रकाशन और आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार करने के संबंध में, का पालन किया गया है. इस सुनवाई से बिहार में मतदाता सूची की अंतिम स्थिति और उन 65 लाख लोगों के मताधिकार का भविष्य तय होगा जिनके नाम सूची से हटा दिए गए थे.
विश्लेषण
योगेंद्र यादव : मतदाता सूची पर चुनाव आयोग का समाधान 'बीमारी से भी बदतर'
स्वराज इंडिया के सदस्य और भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने इंडियन एक्सप्रेस में मतदाता सूचियों में समस्याओं को स्वीकार करते हुए चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित 'विशेष गहन पुनरीक्षण' को गलत समाधान बताया है. उन्होंने तर्क दिया है कि एसआईआर (SIR) मतदाता सूची की खामियों को दूर करने के बजाय समस्या को और बढ़ा सकता है. यादव ने एसआईआर (SIR) को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की है.
लेखक का कहना है कि हमारी मतदाता सूची गंभीर रूप से दोषपूर्ण है, खासकर शहरी क्षेत्रों में सटीकता के मामले में. महाराष्ट्र और महादेवपुरा में हुए खुलासों ने इस गहरी समस्या पर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है. यादव इस बात से सहमत हैं कि मतदाता सूची को अद्यतन करने के मौजूदा तरीके, जैसे कि नियमित अपडेशन और वार्षिक सारांश पुनरीक्षण, अपर्याप्त साबित हुए हैं. उनका मानना है कि एक अधिक गहन और व्यवस्थित प्रक्रिया की आवश्यकता है, जिसमें घर-घर जाकर गणना की जाए.
हालांकि, यादव तर्क देते हैं कि चुनाव आयोग द्वारा घोषित एसआईआर (SIR) वह गहन पुनरीक्षण नहीं है जिसकी आवश्यकता है. यह दो ऐसी शर्तें लगाता है जिनका कानून में कोई आधार नहीं है. पहला, सभी संभावित मतदाताओं को एक गणना फॉर्म भरना आवश्यक है, ऐसा न करने पर वे स्वतः अयोग्य हो जाएंगे. यादव के अनुसार, यह भारतीय चुनावों के इतिहास में एक अभूतपूर्व मांग है और इससे गरीबों, अशिक्षितों, प्रवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं का पंजीकरण गंभीर रूप से कम हो सकता है.
दूसरी शर्त यह है कि प्रत्येक संभावित मतदाता को दस्तावेजों का एक सेट प्रस्तुत करके अपनी पात्रता साबित करनी होगी. यादव इसे भी अभूतपूर्व और कानूनी आधार से रहित बताते हैं, जो नागरिकता की उस अवधारणा को नकारता है जो अब तक हमारी चुनावी प्रणाली को नियंत्रित करती आई है. इन दोनों "विशेष" विशेषताओं का संचयी प्रभाव बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित करना हो सकता है, जैसा कि बिहार में इसके खराब निष्पादन से स्पष्ट है.
यादव इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि एसआईआर (SIR) को मतदाता सूची की सटीकता में सुधार के लिए क्या करना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. घर-घर गणना में नाम जोड़ने पर उतना ही ध्यान दिया जाना चाहिए था जितना नाम हटाने पर दिया गया है. बिहार में, 25 जून से 25 जुलाई के बीच, चुनाव आयोग ने 65 लाख से अधिक नाम हटाने की सूचना दी, जबकि एक भी नाम नहीं जोड़ा गया, जो इसे एक गहन विलोपन अभ्यास बनाता है. इसके अलावा, एसआईआर (SIR) को "मृत", "स्थायी रूप से चले गए", या "पता न लगने योग्य" जैसे मामलों में चुनाव आयोग के स्थापित प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए था.
आगे के लिए, यादव सुझाव देते हैं कि चुनाव आयोग को अपनी मतदाता सूचियों की गुणवत्ता का एक स्वतंत्र ऑडिट कराना चाहिए. उनका प्रस्ताव है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation) जैसी संस्था हमारी मतदाता सूचियों की 0.1 प्रतिशत नमूना जांच कर सकती है. अंत में, उनका तर्क है कि एसआईआर (SIR) जैसी प्रक्रिया के साथ मतदाता सूची में धोखाधड़ी के किसी भी गंभीर आरोप की निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच होनी चाहिए, जो उन लोगों द्वारा नहीं की जानी चाहिए जो मूल रूप से उन सूचियों को तैयार करने में शामिल थे.
निजी कॉलेजों में आरक्षण की सिफारिश
संसदीय समिति ने सरकार से देश के निजी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को आरक्षण प्रदान करने के लिए कानून लाने की अनुशंसा की है.
बसंत कुमार मोहंती के मुताबिक, शिक्षा संबंधी स्थायी समिति, जिसकी अध्यक्षता कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह कर रहे हैं, ने यह भी अनुशंसा की है कि निजी संस्थानों को सरकारी धन उपलब्ध कराया जाए, ताकि अतिरिक्त अधोसंरचना तैयार की जा सके. इसका उद्देश्य सीटों की संख्या बढ़ाना है, जिससे 15 प्रतिशत (एससी), 7.5 प्रतिशत (एसटी), 27 प्रतिशत (ओबीसी) और 10 प्रतिशत (ईडब्ल्यूएस) के संवैधानिक आरक्षण प्रावधानों को दाखिले में लागू किया जा सके.
गंभीर आपराधिक केसों का सामना कर रहे 10 में से 7 मुख्यमंत्री विपक्ष से
भारत के लगभग 42 प्रतिशत मुख्यमंत्रियों ने अपने विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी चुनावी हलफ़नामों में घोषित की है. ‘एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स’ (एडीआर) द्वारा किए गए विश्लेषण में यह तथ्य सामने आया है. यह खुलासा ऐसे समय में हुआ है, जब विपक्ष नरेंद्र मोदी सरकार पर यह आरोप लगा रहा है कि वह ऐसे विधेयक लाकर ‘तानाशाही’ थोपना चाहती है, जिनके माध्यम से गंभीर आरोपों पर गिरफ़्तार होने की स्थिति में मुख्यमंत्री, मंत्री और यहां तक कि प्रधानमंत्री तक को पद से हटाया जा सके.
बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान के 130वें संशोधन विधेयक को सदन में रखा, जिसमें यह प्रावधान शामिल है कि केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री अगर गंभीर आरोपों में गिरफ़्तार होकर 30 दिन तक जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकेगा.
विपक्ष का कहना है कि यह संशोधन ख़तरनाक है, क्योंकि इसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों को केवल आरोपों के आधार पर, बिना किसी अदालती सज़ा के भी पद से हटाने का आधार बना दिया गया है.
अर्नब गांगुली के अनुसार, “एडीआर” द्वारा दिसंबर 2024 में तैयार की गई एक रिपोर्ट में, जिसमें मुख्यमंत्रियों द्वारा चुनाव आयोग को दिए गए हलफ़नामों की जानकारी का अध्ययन किया गया, यह पाया गया कि 31 में से 13 मुख्यमंत्रियों ने अपने ऊपर आपराधिक मामलों की घोषणा की है.
इनमें से 10 मुख्यमंत्रियों के ख़िलाफ़ हत्या के प्रयास, अपहरण, रिश्वतख़ोरी और आपराधिक धमकी जैसे गंभीर आरोप हैं. इन 10 में से 7 मुख्यमंत्री विपक्ष-शासित राज्यों से हैं, 2 बीजेपी के सहयोगी दलों से और एक बीजेपी से है.
हालांकि, यह ध्यान रखना चाहिए कि कई बार राजनेताओं के खिलाफ छोटे मोटे विरोध प्रदर्शन जैसे कृत्यों के लिए भी केस दर्ज हो जाते हैं. साथ ही, कुछ मुख्यमंत्री (जैसे उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ) पर अपने खिलाफ केस वापस करवाने का आरोप भी लगे हैं.
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह सूची पेश की गई है कि वर्तमान में भारत के किन मुख्यमंत्रियों पर गंभीर आरोप हैं. “एडीआर” के अनुसार, गंभीर आरोप वे होते हैं, जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सज़ा हो सकती है; जो गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध हों; चुनावी अपराध हों; सरकारी ख़ज़ाने को नुकसान पहुंचाने से जुड़े हों; हमला, हत्या, अपहरण, बलात्कार जैसे अपराध हों; लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 के तहत सूचीबद्ध अपराध हों; भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध हों; तथा महिला और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराध हों.
निम्नलिखित मुख्यमंत्रियों पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं (2024):
तेलंगाना के मुख्यमंत्री : अनमुला रेवंत रेड्डी
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री : एम. के. स्टालिन (डीएमके) — कुल 47 मामले, 11 गंभीर धाराएं
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री : एन. चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी) — कुल 19 मामले, 32 गंभीर अपराध
कर्नाटक के मुख्यमंत्री : सिद्दारमैया (कांग्रेस) — 13 मामले, 6 गंभीर अपराध
झारखंड के मुख्यमंत्री : हेमंत सोरेन (जेएमएम) — 5 मामले, 7 गंभीर अपराध
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री : देवेंद्र फडणवीस (भाजपा) — 4 मामले, 2 गंभीर अपराध
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री : सुखविंदर सिंह (कांग्रेस) — 4 मामले, 1 गंभीर अपराध
केरल के मुख्यमंत्री : पिनराई विजयन (सीपीएम) — 2 मामले, 2 गंभीर अपराध
सिक्किम के मुख्यमंत्री : पी. एस. तमांग (एसकेएम) — 1 मामला, 1 गंभीर अपराध
पंजाब के मुख्यमंत्री : भगवंत सिंह मान—1 मामला, 1 गंभीर अपराध
नीतीश कुमार अगली पलटी न मारें, इसलिए भाजपा की यह चाल : कन्हैया कुमार
कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने गुरुवार को दावा किया कि 130वां संविधान संशोधन विधेयक भाजपा के सहयोगी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को “एक और पलटी” से रोकने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा, “बीजेपी सिर्फ अपने विरोधियों पर ही नहीं, बल्कि अपने सहयोगियों जैसे नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर भी दबाव बनाना चाहती है. वह नीतीश को संकेत दे रही है कि अगर आप फिर से पलटी मारने की सोचेंगे, तो हम आपको किसी केस में फंसा देंगे, 30 दिन जेल में रखेंगे और आपको मुख्यमंत्री पद से हटा देंगे. उसके बाद जेडीयू के सभी विधायक 'नरेंद्र मोदी ज़िंदाबाद' कहने लगेंगे. ”
उन्होंने कहा, “बीजेपी ने यह नई चाल इसलिए चली है क्योंकि विपक्षी दलों पर ईडी और सीबीआई छोड़ने, 'ऑपरेशन लोटस' के ज़रिए सरकार गिराने या पालतू चुनाव आयोग से वोटर लिस्ट में हेराफेरी करने जैसी रणनीति अब काम नहीं आ रही है.” कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने इस प्रस्ताव को “असाधारण” और “स्पष्ट रूप से असंवैधानिक” बताया. उन्होंने कहा, “अगर गिरफ्तार मुख्यमंत्री को 30 दिन में जमानत नहीं मिलती तो वे मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे! क्या आपने कभी और कहीं ऐसा कानून सुना है? न आरोप पत्र, न ट्रायल, न सजा, और सिर्फ गिरफ्तारी से लोकसभा या विधानसभा का जनादेश पलट जाएगा.” चिदंबरम ने कहा कि ट्रायल अदालतों से जमानत मिलना मुश्किल होता है और सुप्रीम कोर्ट में अपीलें लंबित रहती हैं, ऐसे में 30 दिन की सीमा सरकारों को अस्थिर करने का तरीका बन जाएगी.
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कहा कि यह विधेयक “विपक्ष शासित राज्य में सरकारों को गिराने, जनमत को दबाने और बीजेपी सरकार का रास्ता साफ करने की रणनीति है.” राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा, “2014 से हमने कई ऐसे कानून देखे हैं जिनका मकसद संविधान द्वारा दिए नागरिक अधिकारों को छीनना है. ऐसे कानून संविधान की संरचना के लिए दीमक की तरह हैं.”
बसपा प्रमुख मायावती ने लिखा, “जनता को डर है कि सत्ताधारी दल इसका ज़्यादातर इस्तेमाल अपने स्वार्थ और द्वेष के लिए करेगें. इसलिए हमारी पार्टी इस बिल से सहमत नहीं है.”
विश्लेषण
सुशांत सिंह : ऑपरेशन सिंदूर पर सम्मान की बौछार, लेकिन शहादत पर चुप्पी
द टेलीग्राफ इंडिया में प्रकाशित एक लेख में, येल विश्वविद्यालय के लेक्चरर सुशांत सिंह का तर्क है कि 'ऑपरेशन सिंदूर' के लिए दिए गए वीरता पदकों की बड़ी संख्या एक छोटे ऑपरेशन के लिए अत्यधिक लगती है और चिंताजनक है. उन्होंने शहीदों के बलिदान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया है. यह लेख राजनीतिक लाभ के लिए सैन्य सम्मानों के संभावित अवमूल्यन और सैन्य अभियानों के संबंध में सरकार से पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी पर महत्वपूर्ण सवाल उठाता है.
सिंह बताते हैं कि केवल चार दिनों तक चले ऑपरेशन के लिए 127 वीरता पदक और 40 विशिष्ट सेवा पुरस्कारों की घोषणा की गई. प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन की प्रशंसा की, लेकिन शहीद सैनिकों का नाम नहीं लिया या उनके परिवारों को स्वीकार नहीं किया. हताहतों के आंकड़े अभी भी वर्गीकृत हैं, जो स्वतंत्र भारत में अभूतपूर्व है. पहली बार, वीरता पुरस्कारों के लिए प्रशस्ति पत्र (citations) जारी नहीं किए गए (बीएसएफ को छोड़कर). लेखक का विश्लेषण बताता है कि सरकार हताहतों और परिचालन विवरण जैसे असुविधाजनक तथ्यों को छिपाते हुए पुरस्कारों के माध्यम से भारी सफलता का प्रदर्शन करना चाहती है ताकि जांच से बचा जा सके. यह तमाशे को तत्व पर प्राथमिकता देने के एक व्यापक राजनीतिक पैटर्न में फिट बैठता है. यह दृष्टिकोण राजनीतिक प्रचार में सच्ची वीरता के कार्यों के मूल्य को कम करने का जोखिम उठाता है और लोकतांत्रिक जवाबदेही के सिद्धांत को कमजोर करता है.
असम में 18 वर्ष से अधिक आयु वालों का पहली बार का आधार कार्ड नहीं बनेगा
असम में अक्टूबर से 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को पहली बार का आधार कार्ड नहीं मिलेगा, यह जानकारी मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद दी. उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने संशोधित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को अधिसूचित करने को मंज़ूरी दी है. इसका उद्देश्य अवैध प्रवासियों, विशेषकर बांग्लादेश से आए लोगों, के आधार कार्ड हासिल कर भारतीय नागरिकता लेने की संभावनाओं को समाप्त करना या कम करना है. हालांकि, यह नियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और चाय बागान मज़दूरों के लिए अधिसूचना लागू होने के बाद से एक वर्ष तक शिथिल रहेगा. इसका प्रभाव अक्टूबर के पहले सप्ताह से होगा.
“द हिंदू” के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने कहा, “हम लगातार एक वर्ष से बांग्लादेशी नागरिकों को रोक रहे हैं. कल 20 अगस्त 2025 को ही सात लोगों को वापस भेजा गया. हमें यह यक़ीन नहीं है कि हमने 100% सफलता पाई है, लेकिन हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि कोई भी व्यक्ति आधार कार्ड लेकर असम में प्रवेश न कर सके.”
हेट क्राइम
यूपी में मुस्लिम बैंड वालों से कहा, देवी-देवताओं के नाम न रखें
उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा मुस्लिम रेस्टोरेंट मालिकों पर उनके प्रतिष्ठानों पर अपने नाम लगाने के लिए दबाव डालने और उन्हें हिंदू नाम इस्तेमाल करने से रोकने की कोशिश के बाद अब एक नया विवाद खड़ा हो गया है. खासकर पश्चिमी यूपी में यह विवाद उन शादी-बैंड वालों को लेकर है, जो मुस्लिम हैं लेकिन अपने बैंड का नाम मुरादाबाद ज़िले में हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर रखते हैं.
शबी शर्मा नामक एक वकील ने 9 जुलाई को मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज की कि ज़िले में लगभग 15 से 20 मुस्लिम बैंड संचालक अपने कारोबार को हिंदू देवी-देवताओं के नाम से चला रहे हैं. शिकायत का संज्ञान लेते हुए ज़िला पुलिस हरकत में आई और मोरादाबाद के एसपी (सिटी) कुमार रणविजय सिंह ने कई बैंड संचालकों—जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम थे—को बुलाकर यह निर्देश दिया कि वे अपने बैंड का नाम हिंदू देवी-देवताओं पर न रखें. हालांकि, नमिता बाजपेई के अनुसार, क़ानूनी तौर पर किसी मुस्लिम बैंड मालिक द्वारा अपने बैंड का नाम किसी हिंदू देवता के नाम पर रखने में कोई गैरकानूनी बात नहीं है.
अभिसार शर्मा के खिलाफ एफआईआर : गुवाहाटी अपराध शाखा ने गुरुवार को पत्रकार और यूट्यूबर अभिसार शर्मा के खिलाफ एक स्थानीय निवासी की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की. शिकायत में आरोप लगाया गया था कि अभिसार ने एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें असम सरकार और केंद्र सरकार दोनों का उपहास किया गया था. यह जानकारी एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दी. एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 152 (राजद्रोह), 196 और 197 के तहत प्रावधान लगाए गए हैं. इसके पहले द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन और करन थापर के खिलाफ भी सेडिशन के मामले दर्ज किये गये हैं.
कटाक्ष
सबको “माय फ्रेंड” कहने का कोई फायदा नहीं हुआ
महेश्वर पेरी ने “एक्स” पर अपनी पोस्ट में लिखा है.
यह सब कल ही हुआ. नेपाल, जो एकमात्र हिंदू देश है, भारत के कब्ज़े वाले क्षेत्र — कालापानी-लिपुलेख-लिम्पियाधुरा क्षेत्र — पर दावा कर रहा है और कहता है कि यह इलाका नेपाल का है.
बांग्लादेश, जो भारत का पक्का मित्र और एक ऐसा देश है, जिसे हमने आज़ाद कराया था, ने यह आरोप लगाया कि "भारत की धरती से ही बांग्लादेश विरोधी गतिविधियां चलाई जा रही हैं."
अमेरिका, जो भारत का करीबी मित्र माना जाता है, ने "टैरिफ़" (शुल्क) की जगह ‘प्रतिबंध’ (सैंक्शंस) शब्द का इस्तेमाल किया. ‘प्रतिबंध’ वास्तव में एक विदेश नीति का उपकरण है, जिसका इस्तेमाल किसी देश को उसके व्यवहार में बदलाव लाने के मकसद से ‘दबाव’ डालने के लिए किया जाता है.
चीन, जो भारत का विरोधी है — ऑपरेशन सिंदूर के तुरंत बाद जब चीन का बहिष्कार करने की बात हो रही थी, अब हालात ये हैं कि एनएसए अजित डोभाल और प्रधानमंत्री मोदी दोनों ही वहां की यात्रा कर रहे हैं.
हमने मालदीव का बहिष्कार करने की बात की थी, लेकिन अब उनके राष्ट्रपति हमारे मुख्य अतिथि बने.
हम पाकिस्तान से लड़ रहे थे, और उसी समय आईएमएफ (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) के सभी सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से पाकिस्तान को ऋण मंज़ूर कर दिया.
हम अपने रिश्तों को लेकर बहुत उलझन में दिखते हैं. सब कुछ सिर्फ़ ‘लेन-देन’ जैसा हो गया है — जैसे नफ़ा-नुक़सान का लेखा-जोखा. हर देश के प्रमुख को “माय फ्रेंड” कहने से कोई फ़ायदा नहीं हुआ. भरोसा दरकिनार कर दिया गया है. दुनिया अब यह मानती है कि हम केवल फ़ायदा देखते हैं, मज़बूत सिद्धांतों पर रिश्ते बनाने की इच्छा नहीं रखते.
हम अब एक राष्ट्र कम और एक व्यापारिक साझेदार ज़्यादा नज़र आते हैं.
“ऐसा लगता है कि हमने कुछ डॉलर के लिए सारे दोस्तों को खो दिया. और अब हालात ऐसे हैं कि वे डॉलर भी हमसे दूर होते जा रहे हैं,”
जीएसटी के दो-दर प्रस्ताव को मंज़ूरी
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद द्वारा गठित दर युक्तिकरण पर मंत्री समूह (जीओएम) ने जीएसटी के लिए केंद्र के दो-दर संरचना प्रस्ताव को स्वीकार करने का निर्णय लिया है. मंत्री समूह के अध्यक्ष और बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने गुरुवार (21 अगस्त, 2025) को कहा कि इसकी सिफ़ारिश जीएसटी परिषद से की जाएगी.
इन प्रस्तावों को लागू होने से पहले दो चरणों से गुज़रना होगा, जिसमें यह पहला कदम है. दूसरा कदम जीएसटी परिषद द्वारा इन बदलावों को स्वीकार करना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में घोषणा की थी कि "अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधार" केंद्र की ओर से "दीपावली का तोहफ़ा" होंगे. उन्होंने कहा कि इन सुधारों से "आम आदमी पर टैक्स का बोझ" कम होगा. चौधरी ने संवाददाताओं से कहा, "यह जीएसटी के दो स्लैब, 12% और 28% स्लैब को खत्म करने का केंद्र का प्रस्ताव था. हमने उस प्रस्ताव पर चर्चा की और उसका समर्थन किया है. हमने इसकी सिफ़ारिश की है, और अब जीएसटी परिषद इस पर निर्णय लेगी". केंद्र के प्रस्ताव में मौजूदा जीएसटी संरचना में केवल 5% और 18% स्लैब को बनाए रखना और 12% और 28% स्लैब को खत्म करना शामिल है. इसके तहत 12% स्लैब की 99% वस्तुएं 5% में और 28% स्लैब की 90% वस्तुएं 18% में आ जाएंगी.
28% स्लैब में बची हुई वस्तुएं - जिनमें 'सिन' गुड्स और सेवाएं जैसे तंबाकू, सिगरेट और ऑनलाइन रियल-मनी गेमिंग शामिल हैं - को एक उच्च 40% स्लैब में स्थानांतरित कर दिया जाएगा.हालांकि, वर्तमान में 28% स्लैब की वस्तुओं पर लगाया जाने वाला मुआवज़ा उपकर अब लागू नहीं होगा. ग्रांट थॉर्नटन भारत के पार्टनर और टैक्स कंट्रोवर्सी मैनेजमेंट लीडर मनोज मिश्रा ने कहा, "प्रस्तावित बदलाव से घरों और एमएसएमई को ठोस राहत का वादा किया गया है". हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि राजस्व तटस्थता बनाए रखने और मुद्रास्फीति के दबाव से बचने के लिए "सावधान अंशांकन" की आवश्यकता है. मंत्री समूह की सिफ़ारिशों को अब अंतिम निर्णय के लिए जीएसटी परिषद के समक्ष रखा जाएगा. केंद्र ने अभी तक अगली जीएसटी परिषद की बैठक की तारीख़ की घोषणा नहीं की है, हालांकि इसके सितंबर की शुरुआत में होने की उम्मीद है.
जयशंकर ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात की
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात की और माना जाता है कि उन्होंने भारत-रूस संबंधों को और विस्तार देने के तरीक़ों पर चर्चा की. यह बैठक जयशंकर द्वारा रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ व्यापक बातचीत के कुछ घंटों बाद हुई, जो बड़े पैमाने पर दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों के विस्तार पर केंद्रित थी. जयशंकर ने लावरोव के साथ एक संयुक्त मीडिया ब्रीफ़िंग में कहा, "हमारा मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत और रूस के बीच संबंध दुनिया के प्रमुख संबंधों में सबसे स्थिर रहे हैं". उन्होंने कहा, "भू-राजनीतिक अभिसरण, नेतृत्व संपर्क और लोकप्रिय भावना इसके प्रमुख चालक बने हुए हैं".
अमेरिकी टैरिफ पर जयशंकर ने कहा- 'हम हैरान हैं'
अमेरिका ने रियायती रूसी तेल से "मुनाफाखोरी" करने के लिए भारतीय सामानों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगा दिया है, जबकि चीन को इससे छूट दी गई है. इसके साथ ही कुल टैरिफ 50% हो गया है. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस तर्क पर "हैरानी" व्यक्त की है. यह एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक बदलाव और भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव का प्रतीक है. यह अमेरिकी प्रतिबंध नीति में कथित विसंगतियों को उजागर करता है और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और ऊर्जा सुरक्षा को केंद्र में लाता है.
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने भारत के आयात में उछाल (1% से कम से 42% तक) की तुलना चीन की मामूली वृद्धि से की. इसके जवाब में, विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार नहीं है और उसकी खरीद वैश्विक ऊर्जा कीमतों को स्थिर करने में मदद करती है, जिसे अमेरिका ने खुद प्रोत्साहित किया था. अमेरिका का चयनात्मक दृष्टिकोण आर्थिक गणनाओं से प्रेरित होने की संभावना है, क्योंकि चीन पर प्रतिबंध लगाने से वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों और महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है. यह भारत को एक मुश्किल कूटनीतिक स्थिति में डालता है. टैरिफ भारतीय निर्यातकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और व्यापार संबंधों में तनाव पैदा कर सकते हैं. भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करते हुए पश्चिम और रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना जारी रखेगा.
अमेरिकी आरोपों के बाद अडानी ग्रुप ने अमेरिका में तेज़ किया लॉबिंग अभियान
द वायर में पत्रकार आनंद मंगनाले की एक रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2024 में अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) द्वारा गौतम अडानी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर भारत में ऊर्जा अनुबंध जीतने के लिए एक "बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी योजना" का आरोप लगाने के बाद, अडानी समूह ने वाशिंगटन डीसी में एक बड़ा और महंगा लॉबिंग अभियान शुरू किया है.
यह कहानी बताती है कि कैसे भारत का प्रमुख औद्योगिक समूह गंभीर कानूनी संकट के प्रबंधन के लिए अमेरिका में वित्तीय और राजनीतिक प्रभाव का उपयोग कर रहा है. यह एक सामान्य व्यावसायिक लॉबिंग से शीर्ष स्तरीय कानूनी फर्मों को शामिल करने वाले उच्च-दांव वाले कानूनी और राजनीतिक रक्षा अभियान में बदल गया है, जो आरोपों की गंभीरता और उनसे निपटने के लिए समूह की रणनीति को दर्शाता है. रिपोर्ट में 2023 से 2025 तक तीन-चरणों की लॉबिंग रणनीति का खुलासा किया गया है. 2023 में, लॉबिंग पर केवल 40,000 डॉलर खर्च किए गए. नवंबर 2024 में DOJ के अभियोग के बाद, खर्च लगभग दोगुना होकर 70,000 डॉलर हो गया और एक बड़ी लॉ फर्म को काम पर रखा गया. 2025 की पहली छमाही में, खर्च बढ़कर 150,000 डॉलर हो गया और अमेरिका की दो सबसे शक्तिशाली कानूनी रक्षा फर्मों - किर्कलैंड एंड एलिस और क्विन इमानुएल को काम पर रखा गया. उनका स्पष्ट उद्देश्य "आपराधिक और नागरिक मामलों" पर लॉबिंग करना था.
समूह की रणनीति स्पष्ट रूप से संकट प्रबंधन पर केंद्रित है. सरकार के अंदरूनी अनुभव वाले लॉबिस्टों और शीर्ष कानूनी रक्षा वकीलों को काम पर रखना यह दर्शाता है कि यह केवल व्यापार को बढ़ावा देने के बजाय अभियोग के आसपास के कानूनी और राजनीतिक माहौल को प्रभावित करने का एक प्रयास है. लॉबिंग का लक्ष्य केवल विदेश विभाग पर केंद्रित करना यह बताता है कि रिश्वतखोरी के आरोपों की अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति उनकी रक्षा रणनीति के केंद्र में है. अडानी समूह द्वारा DOJ अभियोग से होने वाले कानूनी और प्रतिष्ठा संबंधी नुकसान को कम करने के लिए अपने उच्च-व्यय वाले लॉबिंग प्रयासों को जारी रखने की संभावना है. इस लॉबिंग और कानूनी मामले के परिणाम का समूह और उसके अंतर्राष्ट्रीय संचालन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा.
रूस-यूक्रेन
शांति वार्ता अधर में: ट्रम्प की बयानबाज़ी, पुतिन की कड़ी शर्तें और बड़ी होती खाई
यूक्रेन और रूस के बीच शांति वार्ता की गति धीमी पड़ने के साथ, युद्ध को लेकर बयानबाज़ी तेज़ हो गई है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जिन्होंने इस युद्ध को घंटों में समाप्त करने का दावा किया था, अब यूक्रेन को रूस के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख़ अपनाने की सलाह दे रहे हैं. वहीं, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शांति के लिए ऐसी कड़ी शर्तें रखी हैं जिन्हें मानना यूक्रेन के लिए लगभग असंभव है. इन सबके बीच, शांति स्थापित करने के प्रयास क्षेत्रीय विवादों, सुरक्षा गारंटी और नेताओं के बीच अविश्वास जैसी बड़ी बाधाओं का सामना कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि ट्रम्प की शुरुआती उम्मीदों के बावजूद दोनों देश शांति समझौते से मीलों दूर हैं.
अलास्का में ट्रम्प के साथ हुई शिखर बैठक के दौरान, व्लादिमीर पुतिन ने शांति के लिए अपनी मांगें स्पष्ट कर दीं. क्रेमलिन के सूत्रों के अनुसार, पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन पूर्वी डोनबास क्षेत्र को पूरी तरह से छोड़ दे, नाटो में शामिल होने की अपनी महत्वाकांक्षाओं को त्याग दे, तटस्थ रहे और किसी भी पश्चिमी सैनिक को अपनी धरती पर तैनात न होने दे. हालांकि ये मांगें जून 2024 की उनकी पिछली मांगों से थोड़ी नरम हैं, जब उन्होंने चार यूक्रेनी प्रांतों को पूरी तरह से सौंपने की मांग की थी, फिर भी वे कीव के लिए अस्वीकार्य हैं. नए प्रस्ताव के तहत, रूस डोनबास पर अपनी मांग पर अड़ा हुआ है, लेकिन बदले में ज़ापोरिज्जिया और खेरसॉन में मौजूदा मोर्चे को रोकने पर सहमत हो सकता है. लेकिन यूक्रेन के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त क्षेत्र को छोड़ना और नाटो में शामिल होने के अपने संवैधानिक उद्देश्य को त्यागना संभव नहीं है. विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन का यह प्रस्ताव ट्रम्प को यह दिखाने का एक प्रयास हो सकता है कि वह शांति के लिए तैयार हैं, जबकि असल में यह रूस की एक लंबी युद्ध की रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगियों को थकाना है.
शांति वार्ता की गति रुकने से हताश, डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में यूक्रेन को आक्रामक होने का तर्क दिया. उन्होंने कहा, "एक हमलावर देश पर हमला किए बिना युद्ध जीतना बहुत मुश्किल है, अगर असंभव नहीं है." उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर वह राष्ट्रपति होते तो यह युद्ध कभी नहीं होता. यह टिप्पणी मॉस्को को नाराज़ कर सकती है, जो अपनी ज़मीन पर किसी भी यूक्रेनी हमले को "रेड लाइन" मानता है. ट्रम्प का यह बयान रूस के साथ बातचीत में दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है, लेकिन इसने तनाव को और बढ़ा दिया है.
दिलचस्प बात यह है कि ट्रम्प अब रूस और यूक्रेन के नेताओं के बीच सीधी बैठक कराने की अपनी भूमिका से भी पीछे हटते दिख रहे हैं. प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार, ट्रम्प अब चाहते हैं कि व्लादिमीर पुतिन और वलोडिमिर ज़ेलेंस्की पहले आपस में एक द्विपक्षीय बैठक करें. ट्रम्प ने सलाहकारों से कहा है कि वह दोनों नेताओं के साथ त्रिपक्षीय बैठक तभी करेंगे जब वे पहले मिल चुके होंगे. यह उनकी रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव है और यह इस बात की स्वीकृति हो सकती है कि युद्ध समाप्त करना उनकी अपेक्षा से कहीं अधिक कठिन साबित हो रहा है.
ट्रम्प प्रशासन के आशावादी बयानों और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच एक बड़ा अंतर है. अलास्का शिखर सम्मेलन के लगभग एक सप्ताह बाद भी, किसी भी महत्वपूर्ण सफलता का कोई संकेत नहीं है. प्रमुख मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच की खाई बहुत बड़ी है:
क्षेत्र: पुतिन डोनबास पर पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं, जबकि ज़ेलेंस्की ने स्पष्ट कर दिया है कि यूक्रेन किसी भी यूक्रेनी भूमि पर रूसी संप्रभुता को मान्यता नहीं देगा.
सुरक्षा गारंटी: इस पर कोई सहमति नहीं है कि शांति समझौते के बाद यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी कौन और कैसे देगा. ट्रम्प ने यूक्रेन में अमेरिकी सैनिकों को तैनात करने से इनकार कर दिया है, जिससे किसी भी गारंटी की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है.
शिखर सम्मेलन: ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित पुतिन-ज़ेलेंस्की बैठक पर क्रेमलिन ने ठंडा पानी डाल दिया है. पुतिन ज़ेलेंस्की को एक वैध नेता नहीं मानते हैं और उनसे तभी मिलेंगे जब ज़ेलेंस्की आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार हों.
फिलहाल, न तो युद्धविराम और न ही कोई शांति समझौता निकट भविष्य में संभव दिख रहा है, जबकि रूस यूक्रेन पर अपने हमले जारी रखे हुए है. ट्रम्प के पीछे हटने के बाद, गेंद अब सीधे पुतिन और ज़ेलेंस्की के पाले में है, लेकिन व्हाइट हाउस की सीधी भागीदारी के बिना उनके लिए बैठक करना और भी मुश्किल हो सकता है.
एफबीआई की 'टॉप 10 मोस्ट वांटेड' सूची में शामिल महिला बेटे की हत्या कर भारत भागने के आरोप में गिरफ़्तार
एफबीआई ने एजेंसी की '10 मोस्ट वांटेड भगोड़ों' की सूची में शामिल एक महिला को गिरफ़्तार किया है, जिस पर अपने छह साल के बेटे की हत्या करने और मुक़दमे से बचने के लिए भारत भागने का आरोप है. एफबीआई निदेशक काश पटेल ने बुधवार को एक्स (X) पर एक पोस्ट में कहा कि 40 वर्षीय सिंडी रोड्रिग्ज सिंह पर अपने बेटे की हत्या के राज्य आरोपों में वांछित थीं.
फॉक्स न्यूज़ ने बताया कि सिंह को एफबीआई ने भारतीय अधिकारियों और इंटरपोल के समन्वय से भारत में गिरफ़्तार किया. उसे अमेरिका ले जाया गया है और टेक्सास के अधिकारियों को सौंप दिया जाएगा.मार्च 2023 में, टेक्सास के अधिकारियों ने सिंह के विशेष ज़रूरतों वाले बेटे नोएल रोड्रिगेज-अल्वारेज़ की खोज की, जिसे अक्टूबर 2022 से नहीं देखा गया था. सिंह ने कथित तौर पर उसके ठिकाने के बारे में झूठ बोला था. दो दिन बाद, वह अपने पति - लड़के के भारतीय मूल के सौतेले पिता - और छह अन्य बच्चों के साथ भारत के लिए एक उड़ान में सवार हुई और कभी नहीं लौटी.उसके बेटे को कई स्वास्थ्य और विकासात्मक समस्याएं थीं. सिंह पर अक्टूबर 2023 में टेक्सास की एक ज़िला अदालत में औपचारिक रूप से आरोप लगाया गया था. पटेल की पोस्ट के अनुसार, उसे 'अभियोजन से बचने के लिए ग़ैरक़ानूनी उड़ान' और '10 साल से कम उम्र के व्यक्ति की संगीन हत्या' के आरोपों का सामना करना पड़ेगा.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.