22/10/2025: अपराधियों को वोट क्यों? | तेजस्वी ने सीएम दीदियों की नौकरी पक्की करने का वादा किया | पैसा कहां से आता है आरएसएस के पास | प्रदूषण नापने में फर्जीवाड़ा | रूसी तेल खरीदना रोकेगा भारत?
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियाँ
बिहार में काम करवाने के लिए मतदाता अपराधियों को चुनते हैं.
सीट बंटवारे पर तनाव के बीच तेजस्वी के वादे, गहलोत लालू से मिले.
महागठबंधन ने 243 सीटों पर 253 उम्मीदवार उतारे, नीतीश ने मंच पर नेता को डांटा.
अभियान के पहले दिन नीतीश ने मंच पर संजय झा को फटकारा.
प्रशांत किशोर का आरोप, भाजपा मेरे उम्मीदवारों को डरा रही है.
कांग्रेस का सवाल, पंजीकृत नहीं तो आरएसएस को पैसा कहां से मिलता है.
कर्नाटक में हर फर्जी वोटर नाम हटाने के लिए 80 रुपये दिए गए.
दिल्ली की हवा पर भ्रम, सरकारी और विदेशी आंकड़ों में भारी अंतर.
वंतारा चिड़ियाघर पर खबरें दबाने के लिए फर्जी लॉ फर्म का इस्तेमाल.
डीपफेक से निपटने के लिए सरकार नए नियम लाएगी.
अमेजन 2030 तक 6 लाख नौकरियां रोबोट से बदल सकता है.
कनाडा में पंजाबी गायक तेजी कहलों को गोली मारी, गोदारा गैंग ने ली जिम्मेदारी.
जज के तबादले पर कॉलेजियम ने माना सरकार का सुझाव, स्वतंत्रता पर सवाल.
लखनऊ में बुजुर्ग दलित को गिरा पानी चखने पर किया मजबूर.
सोनी म्यूजिक ने इलैयाराजा को उनके गानों की कमाई का ब्योरा नहीं दिया.
ट्रंप का दावा, भारत रूस से तेल खरीदना कम करेगा.
बड़ी चोरी के तीन दिन बाद फिर से खुला लूव्र संग्रहालय.
जेल में पूर्व राष्ट्रपति सरकोजी की सुरक्षा में रहेंगे पुलिस अफसर.
बिहार:
मतदाता आपराधियों का समर्थन क्यों करते हैं?
जैसे-जैसे बिहार एक और चुनाव के दौर में प्रवेश कर रहा है, एक नया शोध बताता है कि राज्य के मतदाता कहीं ज़्यादा सोच-समझकर फ़ैसले ले रहे हैं. यह धारणा कि नागरिक केवल जाति के आधार पर उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं, और रोज़गार या विकास जैसे मुद्दों पर बहुत कम ध्यान देते हैं, शायद पूरी तरह सही नहीं है. बार्सिलोना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलो अभिनव खेमका के एक शोध पत्र “डायनेमिक्स ऑफ़ पॉलिटिकल क्रिमिनैलिटी, डायनेस्टीज़, एंड गवर्नेंस इन इंडियन डेमोक्रेसी” में ये निष्कर्ष सामने आए हैं.
स्क्रोल के लिए अर्घ्य भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार -शोध से पता चलता है कि कुछ मामलों में, मतदाता आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं, यह मानते हुए कि वे “काम करवा सकते हैं”. बिहार की राजनीति लंबे समय से अपने “बाहुबली युग” से प्रभावित रही है, जो 1970 के दशक में पैदा हुई एक घटना थी. खेमका का पेपर बताता है कि मतदाता इस विचार को अपनाते हैं कि आपराधिक राजनेता ही वो हैं जो “काम करवा सकते हैं”. वर्तमान में, बिहार विधानसभा में 70% विधायकों पर आपराधिक आरोप हैं. 2005 में यह संख्या 29% थी. इनमें से 50% विधायकों पर हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं.
खेमका ने अपने अध्ययन के लिए 2022 में बिहार के सीतामढ़ी और मुज़फ़्फ़रपुर ज़िलों के 10 विधानसभा क्षेत्रों में 2,000 मतदाताओं का एक क्षेत्रीय अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि जिन निर्वाचन क्षेत्रों में आपराधिक राजनेता जीते थे, वहां मनरेगा के तहत परियोजनाओं के पूरा होने की दर 68% तक गिर गई, लेकिन काम के आवंटन की दर में 36% की वृद्धि हुई. ये राजनेता आमतौर पर उन कल्याणकारी योजनाओं को लक्षित करते हैं जो सामग्री ख़रीदने की तुलना में मज़दूरों को काम पर रखने के लिए अधिक धन आवंटित करती हैं. इससे वे मतदाताओं के लिए अधिक रोज़गार पैदा कर पाते हैं, जिससे उन्हें सद्भावना हासिल करने और अपना चुनावी आधार मज़बूत करने में मदद मिलती है.
खेमका लिखते हैं कि आपराधिक राजनेता अपने मतदाताओं के साथ एक “ग्राहकवादी संबंध” बनाने की कोशिश करते हैं, जहां मतदाता अपराध को माफ़ करने को तैयार रहते हैं अगर उम्मीदवार उन्हें सक्षम लगता है. इस परिदृश्य में आपराधिकता केवल एक देनदारी नहीं है, बल्कि क्षमता का एक प्रतीक है. अध्ययन में वंशवादी विधायकों की एक निराशाजनक तस्वीर भी सामने आई है. केवल 4% विधायकों ने उन्हें ईमेल की गई मतदाता चिंताओं का जवाब दिया, जिसमें वंशवादी नेता अपने ग़ैर-वंशवादी समकक्षों की तुलना में 6.8% कम उत्तरदायी थे. ऐसा लगता है कि वे केवल तभी कार्रवाई करने को तैयार थे जब कोई स्पष्ट चुनावी लाभ हो.
तेजस्वी के वादे और सीट बंटवारे पर बढ़ते तनाव के बीच लालू से मिले गहलोत
इंडियन एक्सप्रेस और द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार - बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ हफ़्ते पहले, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के बीच सीट-बंटवारे को लेकर तनाव की ख़बरें आ रही हैं. इसी बीच, विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने जीविका कार्यकर्ताओं के लिए स्थायी नौकरी और महिला कल्याण योजनाओं जैसे नए वादे किए हैं, तो वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने मामले को सुलझाने के लिए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से मुलाक़ात की है.
एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में तेजस्वी यादव ने राजद और कांग्रेस के बीच किसी भी तरह के मतभेद की अफ़वाहों को ख़ारिज कर दिया.
उन्होंने घोषणा की, “कम्युनिटी मोबिलाइज़र (CM) दीदियां बहुत सारी ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाती हैं. हम उन्हें 30,000 रुपये प्रति माह के वेतन पर स्थायी नौकरी देंगे. हम जीविका कार्यकर्ताओं को दिए गए कर्ज़ पर ब्याज भी माफ़ करेंगे. इसके अलावा, हम उनमें से हर एक को 5 लाख रुपये का कवर देंगे.” उन्होंने ‘मां’ (मकान, अन्न और आमदनी) और ‘बेटी’ (बेनिफिट, एजुकेशन, ट्रेनिंग, इनकम) योजनाओं की भी घोषणा की. तेजस्वी पहले ही राज्य के 2.5 करोड़ परिवारों में से हर एक को सरकारी नौकरी देने का वादा कर चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए तेजस्वी ने कहा, “अमित शाह ने 1.21 करोड़ महिलाओं को दिए गए 10,000 रुपये को ‘सीड मनी’ कहा. इसका मतलब है कि यह एक कर्ज़ है. शाह ही बता सकते हैं कि 10,000 रुपये से कोई किस तरह का व्यवसाय शुरू कर सकता है. लेकिन हम हर महिला को 2,500 रुपये प्रति माह देने के लिए ‘माई-बहिन योजना’ शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.”
दूसरी ओर, चुनाव वाले राज्य बिहार में इंडिया ब्लॉक में मची उथल-पुथल को शांत करने के लिए कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने बुधवार (22 अक्टूबर, 2025) को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से मुलाक़ात की. बैठक के बाद गहलोत ने कहा कि बिहार जीतना विपक्षी गठबंधन के लिए “बेहद ज़रूरी” है, लेकिन जब उनसे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने सीधा जवाब देने से परहेज़ किया. उन्होंने कहा, “आप मुझसे ऐसी घोषणा क्यों करवाना चाहते हैं?” अटकलें लगाई जा रही हैं कि कांग्रेस की अनिच्छा ने राजद को नाराज़ कर दिया है.
243 सीटों वाली विधानसभा में, राजद और कांग्रेस क्रमशः 143 और 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन दोनों पार्टियां कम से कम पांच निर्वाचन क्षेत्रों - वैशाली, नरकटियागंज, सिकंदरा, कहलगांव और सुल्तानगंज - में “दोस्ताना मुक़ाबले” की ओर बढ़ रही हैं. इसके अलावा, कांग्रेस उम्मीदवार तीन अन्य सीटों पर एक और सहयोगी CPI के ख़िलाफ़ भी मैदान में हैं. गहलोत ने कहा, “पांच या दस सीटों पर दोस्ताना मुक़ाबला कोई बड़ी बात नहीं है.” उन्होंने उम्मीद जताई कि नामांकन वापस लेने की आख़िरी तारीख़ तक मामले सुलझा लिए जाएंगे.
इस बीच “पीटीआई” के अनुसार गहलोत को राजद के साथ तनाव कम करने का जिम्मा सौंपा गया है, जिसके कारण चुनाव वाले बिहार में ‘इंडिया’ ब्लॉक में उथल-पुथल मची हुई है. बैठक के बाद बाहर निकलकर, गहलोत ने कहा कि महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य में करारी हार के बाद विपक्षी गठबंधन के लिए बिहार जीतना “अत्यंत महत्वपूर्ण” है, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या कांग्रेस तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के लिए तैयार है, तो उन्होंने सीधे जवाब से परहेज किया. गहलोत ने सीट-बंटवारे की सही संख्या बताने से इनकार कर दिया, यह दावा करते हुए कि सहयोगियों के बीच 5-10 सीटों पर ‘फ्रेंडली फाइट’ हो सकती है. उन्होंने कहा कि कल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस है. कल हर भ्रम दूर हो जाएगा. महागठबंधन मिलकर चुनाव लड़ रहा है. गठबंधन सहयोगियों के बीच फ्रेंडली मुकाबले को अन्यथा नहीं समझा जाना चाहिए.
सीटें 243, लेकिन महागठबंधन ने उतारे 253, नीतीश कुमार का विवाद और वंशवादी राजनीति
बिहार में इस बार महागठबंधन (विपक्षी गठबंधन) कितनी गफ़लत का शिकार है कि उसने 253 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं, जबकि बिहार विधानसभा की कुल सीटों की संख्या 243 है. यानी महागठबंधन ने दस अधिक उम्मीदवार उतार दिए हैं है. छोटे सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस दोनों पर बातचीत को अंतिम समय तक खींचने का आरोप लगा रहे हैं, जिससे दूसरों के लिए गुंजाइश कम रह गई.
इस बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुजफ्फरपुर जिले की मीनापुर और कांटी विधानसभा सीटों पर चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए अपनी ही पार्टी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय झा को डांटने के बाद विवाद खड़ा कर दिया. यह घटना तब हुई जब बिहार के मुख्यमंत्री कुमार भाजपा उम्मीदवार रमा निषाद को माला पहना रहे थे. तभी झा ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें रोका, जिसके कारण दोनों के बीच मंच पर ही मौखिक बहस हो गई.
“द हिंदू” की रिपोर्ट है कि शीर्ष नेताओं द्वारा वंशवादी राजनीति को लोकतंत्र के ताने-बाने को खराब करने वाला बताया जाता है और बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, लेकिन हकीकत में इसके उलट स्थिति है. बिहार की अधिकांश प्रमुख राजनीतिक पार्टियां उन लोगों के रिश्तेदारों को टिकट देना जारी रखे हुए हैं, जिनका अपनी पार्टियों या गठबंधनों पर प्रभाव है. विभिन्न राजनीतिक दलों में, राजनेताओं के बेटे, बेटियां, पत्नियां, बहुएं, दामाद और भतीजे चुनावी मैदान में हैं.
अभियान के पहले दिन नीतीश कुमार ने जदयू नेता संजय झा को फटकारा, विवाद खड़ा हुआ
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार (21 अक्टूबर, 2025) को अपने चुनाव अभियान के पहले दिन ही एक विवाद खड़ा कर दिया. मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में एक रैली के दौरान उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय झा को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई. यह घटना तब हुई जब मुख्यमंत्री, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उम्मीदवार रामा निषाद को माला पहना रहे थे. जैसे ही उन्होंने माला पहनाने की कोशिश की, झा ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें रोकने का प्रयास किया. इस पर नीतीश कुमार ने अपना हाथ झटक लिया, माला पहनाई और फिर पोडियम पर जाकर झा की ओर इशारा करते हुए कहा, “ई गजब आदमी है भाई, हाथ काहे पकड़े?” (यह कैसा अजीब आदमी है, भाई, हाथ क्यों पकड़ा?).
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार इस घटना का वीडियो विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने मुख्यमंत्री का मज़ाक़ उड़ाने के लिए इस्तेमाल किया. राजद नेता तेजस्वी यादव ने वीडियो को अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट करते हुए लिखा, “ई गजब आदमी है भाई.” राजद के आधिकारिक हैंडल से भी वीडियो पोस्ट किया गया और सवाल उठाया गया कि क्या नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहने के लिए फिट हैं.
इससे पहले, नीतीश कुमार ने अपनी रैलियों में राजद के शासनकाल पर हमला बोला. उन्होंने दावा किया कि लालू प्रसाद यादव और उनकी सरकार ने बिहार के विकास के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने लालू यादव पर वंशवाद की राजनीति करने का भी आरोप लगाया और कहा कि उन्होंने चारा घोटाला मामले में जेल जाने पर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया और अब अपने बेटों और बेटी को राजनीति में बढ़ावा दे रहे हैं. नीतीश ने कहा, “क्या आपने मुझे कभी परिवार के बारे में बात करते सुना है? मैं ऐसा कभी नहीं करता; मैं लोगों के लिए काम करता हूं.”
इसी बीच, सुगौली विधानसभा क्षेत्र में विपक्षी INDIA ब्लॉक को एक बड़ा झटका लगा, जब विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के उम्मीदवार शशि भूषण सिंह का नामांकन चुनाव आयोग ने ख़ारिज कर दिया. सिंह मौजूदा विधायक हैं और 2020 में राजद के टिकट पर चुने गए थे. उनका नामांकन इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि उन्होंने आवश्यक 10 प्रस्तावकों के बजाय केवल एक प्रस्तावक के साथ पर्चा दाख़िल किया था.
प्रशांत किशोर का आरोप: भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मेरे उम्मीदवारों को नाम वापस लेने के लिए डराया
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह और धर्मेंद्र प्रधान शामिल हैं, ने उनके उम्मीदवारों को बिहार विधानसभा चुनाव से नाम वापस लेने के लिए डराया-धमकाया. किशोर ने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “अगर आप उम्मीदवारों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते, तो आप मतदाताओं की रक्षा कैसे करेंगे?” भाजपा ने अभी तक इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार किशोर ने दावा किया कि दानापुर में, भाजपा ने जन सुराज के उम्मीदवार अखिलेश कुमार उर्फ़ मुतुर शाह को हिरासत में लिया और उन्हें अपना नामांकन दाख़िल करने से रोका. उनके अनुसार, शाह को कथित तौर पर पूरे दिन गृह मंत्री और राज्य चुनाव प्रभारी सहित वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ रखा गया. किशोर ने कहा, “यह भाजपा का असली चेहरा और आचरण है.”
किशोर ने धर्मेंद्र प्रधान पर तीन जन सुराज उम्मीदवारों को नाम वापस लेने के लिए मजबूर करने में “मुख्य भूमिका” निभाने का आरोप लगाया. उन्होंने एक तस्वीर भी जारी की जिसमें कथित तौर पर प्रधान, जन सुराज के ब्रह्मपुर के उम्मीदवार डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी के साथ दिख रहे हैं. किशोर ने आरोप लगाया, “ब्रह्मपुर में, हमारे उम्मीदवार डॉ. तिवारी, जो एक सम्मानित डॉक्टर हैं, तीन दिनों तक प्रचार करने के बाद अचानक हट गए. धर्मेंद्र प्रधान के साथ उनके घर पर उनकी तस्वीर उन पर डाले गए दबाव का सबूत है.”
जन सुराज के संस्थापक ने यह भी आरोप लगाया कि गोपालगंज में भाजपा नेताओं ने पार्टी के उम्मीदवार डॉ. शशि शेखर सिन्हा पर नाम वापस लेने का दबाव डाला. इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि कुम्हरार के उम्मीदवार प्रोफ़ेसर के.सी. सिन्हा को भी बार-बार धमकी दी जा रही है, लेकिन उन्होंने झुकने से इंकार कर दिया है. किशोर ने यह भी बताया कि वाल्मीकिनगर के उम्मीदवार डॉ. नारायण प्रसाद को स्थानीय अधिकारी यह कहकर डरा रहे हैं कि उनका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया गया है और वह चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं.
किशोर ने दावा किया कि जन सुराज के 14 उम्मीदवारों को धमकी और दबाव का सामना करना पड़ा है, जबकि 240 अन्य उम्मीदवार मज़बूती से खड़े हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा, महागठबंधन के उम्मीदवारों से नहीं, बल्कि जन सुराज के उम्मीदवारों से चिंतित है क्योंकि वे “अच्छे पेशेवर, डॉक्टर और व्यवसायी हैं.”
जन सुराज पार्टी (जेएसपी) उम्मीदवारों द्वारा अन्य राजनीतिक दलों में शामिल होने के लिए अपना नामांकन पत्र वापस लेने की अफ़वाहों के बीच, पार्टी के संस्थापक और पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मंगलवार (21 अक्टूबर 2025) को भाजपा पर अपने पार्टी के नामांकित व्यक्तियों को चुनावी दौड़ से हटने के लिए “दबाव डालने और धमकी देने” का आरोप लगाया. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा “दबाव की रणनीति” का इस्तेमाल कर रही है, क्योंकि उसमें “लड़ने का साहस” नहीं है.
अमरनाथ तिवारी के अनुसार, जन सुराज पार्टी के तीन उम्मीदवारों — अखिलेश कुमार शाह उर्फ मुटुर शाह (दानापुर), सत्य प्रकाश तिवारी (ब्रह्मपुर), और शशि शेखर सिन्हा (गोपालगंज) — ने हाल ही में अलग-अलग कारणों का हवाला देते हुए अपने नामांकन पत्र वापस ले लिये. पत्रकारों से बात करते हुए, प्रशांत किशोर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं की उन जेएसपी उम्मीदवारों के साथ की तस्वीरें दिखाईं, जिन्होंने हाल ही में अपना नामांकन वापस लिया है. उन्होंने सवाल किया, “क्या किसी ने कभी किसी चुनाव में देखा है कि एक पार्टी के वरिष्ठ नेता दूसरी पार्टी के उम्मीदवारों के साथ पूरे दिन बैठें?” किशोर ने जोड़ा, “वे (भाजपा) महागठबंधन को वास्तविक दावेदार नहीं मानते, इसलिए हमें कुचलने की कोशिश कर रहे हैं.” उन्होंने यह भी कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार लगभग 14 उम्मीदवार भाजपा के दबाव में थे, लेकिन उनमें से कई ने दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है.
आरएसएस पंजीकृत संगठन नहीं, तो पैसा कहाँ से आ रहा है? कांग्रेस ने पूछा
कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे और वरिष्ठ कांग्रेस नेता बी. के. हरिप्रसाद ने बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की फ़ंडिंग को लेकर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने आरोप लगाया कि यह संगठन क़ानूनी रूप से पंजीकरण के बिना काम करता है ताकि वह सरकार के क़ानूनों और नियमों का पालन करने से बच सके.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार प्रियांक खड़गे ने कहा, “...आरएसएस एक पंजीकृत संगठन है, यह कहकर मेरे मुँह पर पंजीकरण का कागज़ फेंक दो. मामला वहीं ख़त्म हो जाता है.” उन्होंने सवाल किया, “...इस अपंजीकृत संगठन के लिए पैसा कहाँ से आ रहा है? कपड़े सिलने, मार्च निकालने, ड्रम और तुरहियां ख़रीदने, इमारतें बनाने के लिए पैसा कहाँ से आ रहा है? अगर आप (आरएसएस) अपंजीकृत हैं, तो आपको पैसा कैसे मिल रहा है?”
मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आरएसएस क़ानून से बचने के लिए एक अपंजीकृत संगठन बना हुआ है. उन्होंने कहा, “अगर आप पंजीकृत हैं, तो आपको टैक्स देना होगा, कंपनी रजिस्ट्रार, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, एनजीओ अधिनियम के तहत अनुपालन सुनिश्चित करना होगा. उन्हें विदेशी और निजी दान, और घरेलू फ़ंडिंग के बारे में जानकारी साझा करनी होगी. इसलिए वे पंजीकृत नहीं हो रहे हैं.”
खड़गे की चिंताओं को दोहराते हुए, कांग्रेस नेता हरिप्रसाद ने कहा कि आरएसएस अपनी फ़ंडिंग और गतिविधियों के बारे में क़ानूनी और सार्वजनिक जांच से बचने में सक्षम रहा है क्योंकि यह पंजीकृत नहीं है. उन्होंने कहा कि विजयादशमी के दौरान, संगठन को “गुरु दक्षिणा” के रूप में लिफ़ाफ़े में पैसा दिया जाता है, और सवाल किया कि क्या संगठन ने सौ वर्षों में एकत्र किए गए ऐसे धन का हिसाब दिया है.
इस बीच, खड़गे की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए, भाजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सी. एन. अश्वथ नारायण ने दावा किया कि हर संगठन के लिए पंजीकृत होना ज़रूरी नहीं है. उन्होंने कहा, “हर व्यक्ति और संगठन को लोकतंत्र में क़ानूनी और संवैधानिक रूप से अपनी गतिविधियाँ करने की आज़ादी है... ऐसा कुछ नहीं है कि यह एक पंजीकृत संगठन होना चाहिए. आरएसएस सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक रूप से देश के निर्माण के लिए एक स्वैच्छिक संगठन है.”
आलंद सीट में हर फ़र्ज़ी मतदाता विलोपन आवेदन के लिए 80 रुपये दिए गए: कर्नाटक एसआईटी
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार - कर्नाटक पुलिस की विशेष जांच दल (SIT) की जांच के अनुसार, 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले आलंड सीट पर चुनाव आयोग को दिए गए हर फ़र्ज़ी मतदाता विलोपन (वोटर डिलीशन) आवेदन के लिए एक डेटा सेंटर ऑपरेटर को 80 रुपये का भुगतान किया गया था. इस सीट पर दिसंबर 2022 और फ़रवरी 2023 के बीच कुल 6,018 ऐसे आवेदन किए गए थे, जिससे कुल 4.8 लाख रुपये का भुगतान हुआ. कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की थी और राहुल गांधी ने इसे “वोट चोरी” का उदाहरण बताया था.
सूत्रों ने कहा कि SIT ने उस डेटा सेंटर की पहचान कर ली है जो कलबुर्गी ज़िला मुख्यालय में स्थित है, जहाँ से ये आवेदन जमा किए गए थे. जांच में एक स्थानीय निवासी, मोहम्मद अश्फ़ाक़ की संलिप्तता की ओर इशारा किया गया है. अश्फ़ाक़ से 2023 में पूछताछ की गई थी, लेकिन बाद में वह दुबई चला गया. अब SIT ने इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड और अश्फ़ाक़ से ज़ब्त किए गए उपकरणों की जांच के बाद पाया है कि वह इंटरनेट कॉल के ज़रिए एक सहयोगी, मोहम्मद अकरम, साथ ही जुनैद, असलम और नदीम के संपर्क में था.
पिछले हफ़्ते, SIT ने इन लोगों से संबंधित संपत्तियों पर तलाशी ली और कथित तौर पर कलबुर्गी क्षेत्र में मतदाता सूची में हेरफेर के लिए एक डेटा सेंटर के संचालन और प्रति विलोपन 80 रुपये के भुगतान को स्थापित करने वाली सामग्री पाई. जांच में कथित तौर पर पाया गया है कि डेटा सेंटर मोहम्मद अकरम और अश्फ़ाक़ द्वारा संचालित किया जा रहा था, जबकि अन्य डेटा एंट्री ऑपरेटर थे. इन बरामदगी के बाद, SIT ने 17 अक्टूबर को भाजपा नेता गुट्टेदार, उनके बेटों और उनके चार्टर्ड एकाउंटेंट सहयोगी की संपत्तियों पर तलाशी ली.
जांच में कथित तौर पर पाया गया कि आलैंड की मतदाता सूचियों में बदलाव के अनुरोध करने के लिए चुनाव आयोग के पोर्टल पर पंजीकरण के लिए 75 मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल किया गया था. ये नंबर मुर्गी फ़ार्म के कर्मचारी से लेकर पुलिसकर्मियों के रिश्तेदारों तक के थे. आलंड से चार बार के विधायक रहे गुट्टेदार ने मतदाता विलोपन से किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया है.
दिल्ली की हवा
प्रदूषण नापने में भी फर्जीवाड़ा ? वैश्विक ऐप्स ने एक्यूआई 2,000 दिखाया, लेकिन सीपीसीबी ने 400 से कम?
मंगलवार को दिल्ली के कई निवासियों को दिल्ली के प्रदूषण स्तर को लेकर भारी उलझन हुई. “द टाइम्स ऑफ इंडिया” में कुशाग्र दीक्षित और प्रियांगी अग्रवाल की रिपोर्ट है कि एक ओर जहां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने मंगलवार को कई स्थानों पर एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) को 400 से नीचे बताया, वहीं ‘आईक्यूएयर’ जैसे अंतर्राष्ट्रीय ऐप्स ने कई क्षेत्रों में 2,000 से अधिक के आंकड़े दिखाए.
उदाहरण के लिए, मंगलवार को सिरी फोर्ट में रात 12:30 बजे, सीपीसीबी के डेटा के अनुसार एक्यूआई272 था, जबकि आईक्यूएयर ने उसी स्थान के लिए आश्चर्यजनक रूप से 2,449 एक्यूआई की रिपोर्ट दी.
विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों रीडिंग तकनीकी रूप से सही हैं, लेकिन वे अलग-अलग पद्धतियों और मापों का पालन करते हैं. भारतीय एक्यूआई को छह प्रमुख मापदंडों – पीएम2.5, पीएम10, ओज़ोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के आधार पर परिकलित किया जाता है, और इसका पैमाना 0 से ‘गंभीर से अधिक’ तक जाता है.
दूसरी ओर, आईक्यूएयर जैसे ऐप्स अक्सर अमेरिकी मॉडल का उपयोग करते हैं, जो अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के एक्यूआई पर आधारित होता है. ईपीए का एक्यूआई 500 से अधिक नहीं होता है.
आईक्यूएयर का सूचकांक मुख्य रूप से सेंसर-आधारित डेटा पर निर्भर करता है, जबकि सीपीसीबी अधिक सटीक और मानकीकृत माने जाने वाले एनालाइज़र-आधारित संदर्भ-ग्रेड मॉनिटर पर निर्भर करता है. विशेषज्ञों ने इस संख्यात्मक अंतर के बावजूद, यह माना कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता दिवाली के बाद बहुत खराब थी और यह भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मानकों की सुरक्षा सीमाओं को पार कर गई थी.
फ़र्ज़ी लॉ फ़र्म, नक़ली गूगल नोटिस: वंतारा चिड़ियाघर पर ख़बरों को दबाने का अभियान
मुकेश अंबानी के रिलायंस इंडस्ट्रीज और रिलायंस फ़ाउंडेशन द्वारा समर्थित, गुजरात के जामनगर में वंतारा चिड़ियाघर की आलोचना करने वाले पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को चुप कराने के प्रयास में, एक संदिग्ध इकाई ने एक प्रसिद्ध वकील की पहचान का उपयोग करके एक फ़र्ज़ी लॉ फ़र्म बनाई. एक अन्य प्रयास में, प्रकाशकों को डराने के लिए एक नक़ली गूगल कार्यकारी की आईडी का इस्तेमाल किया गया. यह संदिग्ध ऑपरेशन सुप्रीम कोर्ट से चिड़ियाघर को राहत मिलने से कई महीने पहले किया गया था.
द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार अफ़्रीका, ब्राज़ील, चेक गणराज्य, जर्मनी और भारत के कई पत्रकारों और न्यूज़रूम ने आरोप लगाया है कि उन्हें फ़र्ज़ी ईमेल, झूठे क़ानूनी नोटिस और कॉपीराइट दावों के साथ निशाना बनाया गया, जिसका उद्देश्य चिड़ियाघर की आलोचना करने वाली उनकी रिपोर्टिंग को दबाना था. यह स्पष्ट नहीं है कि कहानियों को हटाने के इस प्रयास के पीछे कौन था, लेकिन उन्होंने ऑनलाइन ‘एस्पायर लॉ फ़र्म’ नामक एक फ़र्ज़ी क़ानूनी व्यवसाय बनाने तक का काम किया. फ़र्म की वेबसाइट के ‘अबाउट अस’ सेक्शन में भारतीय साइबर क़ानून विशेषज्ञ, वकील पुनीत भसीन की जीवनी की साहित्यिक चोरी की गई थी.
रिपोर्ट्स को हटाने के प्रयास इस साल जून और जुलाई में हुए. 13 जून को, ‘गैमरिन एंटरप्राइजेज’ नामक एक संगठन ने गूगल के पास एक डिजिटल मिलेनियम कॉपीराइट एक्ट (DMCA) शिकायत दर्ज की. इसी अवधि में, 10 जुलाई को, कम से कम तीन अन्य मीडिया आउटलेट्स - अफ़्रीका ज्योग्राफ़िक, iRozhlas, और Conexão Planeta - को एक फ़र्ज़ी “गूगल लीगल सपोर्ट” डोमेन से लगभग एक जैसे टेकडाउन या मानहानि के ईमेल मिले. 25 जुलाई तक, फ़र्ज़ी भारतीय लॉ फ़र्म, एस्पायर लॉ फ़र्म ने क़ानूनी धमकियां भेजना शुरू कर दिया था.
अफ़्रीका ज्योग्राफ़िक पत्रिका को “गूगल लीगल सपोर्ट” से एक ईमेल मिला. संदेश पर जिम पिंटर के नाम से हस्ताक्षर थे, जो वास्तव में भारत के लिए एक वास्तविक गूगल शिकायत अधिकारी हैं. लेकिन नोटिस एक मिलते-जुलते डोमेन, support@legal-google.com से आया था. Conexão Planeta, एक स्वतंत्र ब्राज़ीलियाई पर्यावरण समाचार साइट को 25 जुलाई को “एस्पायर लॉ फ़र्म” से क़ानूनी धमकियाँ मिलीं. गूगल ब्राज़ील ने पुष्टि की कि ‘गूगल लीगल सपोर्ट’ से आया मेल फ़र्ज़ी था. एस्पायर लॉ फ़र्म की वेबसाइट को तब से हटा दिया गया है.
संपर्क करने पर, पुनीत भसीन, जिनकी पेशेवर जानकारी चोरी हो गई थी, ने पुष्टि की कि उन्हें इस वेबसाइट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने तथाकथित एस्पायर लॉ फ़र्म के साथ किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया.
डीपफेक से निपटने के लिए एआई और सोशल मीडिया कंपनियों पर नए कानूनी दायित्व
सरकार ने बुधवार (22 अक्टूबर 2025) को ऑनलाइन ‘डीपफेक’ के बढ़ते प्रसार से निपटने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और सोशल मीडिया फर्मों के लिए नए कानूनी दायित्वों का प्रस्ताव रखा है. इसके तहत उन्हें ऐसी सामग्री को ‘एआई-जनित’ के रूप में लेबल करना अनिवार्य होगा.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस कदम के पीछे के तर्क को समझाते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि जेनरेटिव एआई टूल के दुरुपयोग की क्षमता, जो “उपयोगकर्ता को नुकसान पहुंचाने, गलत सूचना फैलाने, चुनावों में हेरफेर करने, या व्यक्तियों का प्रतिरूपण करने” के लिए हो सकती है, “काफी बढ़ गई है.”
“रॉयटर्स” के अनुसार, प्रस्तावित नियमों में सोशल मीडिया कंपनियों को यह अनिवार्य किया गया है कि वे अपने उपयोगकर्ताओं से यह घोषणा करने की अपेक्षा करें कि क्या वे डीपफेक सामग्री अपलोड कर रहे हैं. लगभग 1 अरब इंटरनेट उपयोगकर्ताओं वाले एक विशाल देश में, जहां कई जातीय और धार्मिक समुदाय हैं, नकली समाचारों से घातक संघर्ष भड़कने का जोखिम रहता है. ऐसे में चुनावों के दौरान एआई डीपफेक वीडियो से अधिकारियों के बीच चिंता बढ़ गई है, जिससे यह कदम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.
अमेज़न 2030 तक 6 लाख से अधिक कर्मचारियों को रोबोट से बदल सकती है
“द न्यूयॉर्क टाइम्स” के हवाले से “द हिंदू” की खबर है कि अमेज़न अपनी सुविधाओं में रोबोट की संख्या बढ़ाने की योजना बना रहा है, एक ऐसा कदम जो 2030 तक 600,000 से अधिक नौकरियों को बदल सकता है. कंपनी ने यह भी दावा किया है कि वह उस समयावधि के भीतर दोगुनी मात्रा में वस्तुओं की बिक्री करेगी. आंतरिक दस्तावेज़ों से पता चला कि अमेज़न की रोबोटिक्स टीम कंपनी के 75% परिचालन को स्वचालित करने की दिशा में काम कर रही थी, जिससे 2027 तक 160,000 अमेरिकी कर्मचारियों की नियुक्ति की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी. इसके परिणामस्वरूप 2025 और 2027 के बीच लगभग 12.6 बिलियन डॉलर की बचत होगी.
कनाडा में पंजाबी गायक तेजी कहलों को गोली मारी गई; रोहित गोदारा के गैंग ने ली जिम्मेदारी
कनाडा में पंजाबी गायक तेजी कहलों को गोली मारी गई है, और गैंगस्टर रोहित गोदारा के गिरोह के सदस्यों ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. फेसबुक पर एक पोस्ट में, महेंद्र सारण दिलाना, राहुल रिनाऊ और विक्की पहलवान के रूप में पहचाने गए व्यक्तियों ने, जो कथित तौर पर गैंगस्टर रोहित गोदारा से जुड़े हैं, कनाडा में कहलों पर हमले की जिम्मेदारी ली. उन्होंने आरोप लगाया कि कहलों को प्रतिद्वंद्वी गिरोहों को हथियार और पैसा पहुंचाने और उनके मुखबिर के रूप में काम करने के लिए निशाना बनाया गया था. हरप्रीत बाजवा की रिपोर्ट है कि पोस्ट में कहा गया, “कनाडा में तेजी कहलों पर गोली हमने चलाई है. उसे पेट में गोली मारी गई है. अगर वह समझ जाए तो ठीक है. नहीं तो, अगली बार हम उसे खत्म कर देंगे.”
हाल ही में, लॉरेंस बिश्नोई के करीबी सहयोगी हरि बॉक्सर को संयुक्त राज्य अमेरिका में गोली मारी गई थी, और गैंगस्टर रोहित गोदारा ने उस हमले की भी जिम्मेदारी ली थी. रोहित गोदारा, जिसे रावताराम स्वामी के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के बीकानेर में लूनकरनसर का एक कुख्यात गैंगस्टर है.
विश्लेषण:
जस्टिस श्रीधरन का तबादला; सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम पर कार्यपालिका का प्रभाव, न्यायिक स्वतंत्रता के लिए चिंताजनक
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अतुल श्रीधरन को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने के अपने पहले के प्रस्ताव के बजाय, केंद्र सरकार की इच्छा का पालन करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए अनुशंसित करने के अप्रत्याशित रूप से मन बदलने से संवैधानिक न्यायालयों में न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों में कार्यपालिका के हस्तक्षेप का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है.
“द हिंदू” में कृष्णदास राजगोपाल का विश्लेषण बताता है कि 14 अक्टूबर के ‘संक्षिप्त’ कॉलेजियम प्रस्ताव में यह खुलासा नहीं किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट की इस संस्था ने जस्टिस श्रीधरन को लेकर अपनी पिछली सिफारिश क्यों छोड़ दी. इसमें मूल रूप से एक पैराग्राफ में बताया गया कि उनके फिर से विचार करने के पीछे “सरकार द्वारा मांगा गया पुनर्विचार” था. इस बात का कोई विवरण नहीं है कि सरकार जस्टिस श्रीधरन को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में क्यों नहीं चाहती थी, जहां वह उस उच्च न्यायालय के कॉलेजियम के सदस्य होते और भविष्य के न्यायाधीशों का चयन करने की स्थिति में होते. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 25 और 26 अगस्त को हुई बैठकों में जस्टिस श्रीधरन को छत्तीसगढ़ के लिए अनुशंसित किया था. अगस्त में कॉलेजियम ने स्थानांतरण या प्रत्यावर्तन के लिए जिन 14 उच्च न्यायालय न्यायाधीशों का प्रस्ताव किया था, उनमें जस्टिस श्रीधरन का नाम पहले स्थान पर था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में, जस्टिस श्रीधरन वरिष्ठता में सातवें स्थान पर होंगे, और उच्च न्यायालय कॉलेजियम से बाहर होंगे. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने यह खुलासा नहीं किया कि सरकार के उन्हें इलाहाबाद स्थानांतरित करने के सुझाव को क्यों स्वीकार कर लिया गया? क्योंकि कॉलेजियम के पास वीटो (अस्वीकार) की शक्ति है, और वह अगस्त की पिछली सिफारिश को दोहरा सकता था, जिसके बाद सरकार को झुकना पड़ता.
पहले भी हुए हैं ऐसे मामले: हाल के वर्षों में यह पहला मामला नहीं है, जब न्यायाधीशों के तबादले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सरकार की इच्छाओं के आगे समर्पण किया है. 2018 में, केंद्र ने जस्टिस अकिल कुरैशी को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश पर आपत्ति जताई थी, जिन्होंने गुजरात के ‘फर्जी’ मुठभेड़ मामलों में अपने फैसलों से लोगों को नाराज़ कर दिया था. इसके बजाय, कॉलेजियम ने उन्हें त्रिपुरा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने पर सहमति व्यक्त की, जो केवल चार न्यायाधीशों वाला एक छोटा न्यायालय था. जस्टिस कुरैशी को अंततः उनकी सेवानिवृत्ति से बमुश्किल छह महीने पहले राजस्थान उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. हालांकि वह सबसे वरिष्ठ उच्च न्यायालय न्यायाधीशों में से एक थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के लिए उन पर विचार नहीं किया गया.
इसी तरह, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को, केंद्र द्वारा कॉलेजियम की सिफारिश पर प्रतिक्रिया देने के लिए महीनों तक इंतजार करने के बाद, तत्कालीन उड़ीसा के मुख्य न्यायाधीश, डॉ. एस. मुरलीधर को मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अपनी सितंबर 2022 की सिफारिश को वापस लेना पड़ा था.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अप्रैल 2023 के अपने प्रस्ताव में बताया था, “यह सिफारिश भारत सरकार के पास बिना किसी जवाब के लंबित रही. डॉ. जस्टिस मुरलीधर अब 7 अगस्त, 2023 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जिसमें चार महीने से भी कम समय बचा है. इस देरी के मद्देनज़र, डॉ. जस्टिस एस. मुरलीधर के तबादले की सिफारिश करने वाले प्रस्ताव को वापस लिया जाता है.”
जस्टिस श्रीधरन का इतिहास: जस्टिस श्रीधरन का यह तीसरी बार तबादला हो रहा है. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में उनका पहला स्थानांतरण 2023 में उनके अपने अनुरोध पर आधारित था. वह ऐसे राज्य में न्यायाधीश नहीं रहना चाहते थे, जहां उनकी बेटी एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रही थी.
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में, जस्टिस श्रीधरन उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पब्लिक सेफ़्टी एक्ट) के तहत कई निवारक निरोध आदेशों को रद्द कर दिया था.
मार्च 2025 में उन्हें मध्यप्रदेश में वापस भेज दिया गया था. मध्यप्रदेश में वापस आकर, वह उस पीठ का हिस्सा थे जिसने कथित तौर पर राज्य मंत्री विजय शाह द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान मीडिया को जानकारी देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ की गई टिप्पणियों का स्वतः संज्ञान लिया था, और भाजपा नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. अगस्त में, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायाधीश के तबादले की सिफारिश छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में की थी, जहां वह दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश होते.
एनजीओ ने की आलोचना: प्रस्तावित स्थानांतरण को वापस लेने की मांग करते हुए, एनजीओ ‘कैंपेन फॉर जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स’ ने एक बयान में कहा कि “दूसरे और तीसरे न्यायाधीशों के मामले यह स्पष्ट करते हैं कि स्थानांतरण सार्वजनिक हित में और न्यायपालिका की संस्था की सुरक्षा के लिए होने चाहिए, न कि केंद्र सरकार की सुविधा या हितों के लिए. प्रक्रिया के विपरीत, सिफारिश में ऐसा बदलाव कॉलेजियम के इरादों और उद्देश्यों के बारे में जनता को गलत संकेत देता है.”
दलित अत्याचार
बुज़ुर्ग को गिरा हुआ पानी चखने पर किया मज़बूर, आरोपी गिरफ़्तार
इंडियन एक्सप्रेस और मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार - लखनऊ के काकोरी थाना क्षेत्र में एक मंदिर परिसर में एक बुज़ुर्ग दलित व्यक्ति को गिरा हुआ पानी यह “साबित” करने के लिए चखने पर मज़बूर किया गया कि वह मूत्र नहीं है. इस मामले में 62 वर्षीय आरोपी को मंगलवार को गिरफ़्तार कर लिया गया. आरोपी पर जातिसूचक टिप्पणी करने और धमकी देने का भी आरोप है.
काकोरी थाने के एसएचओ सतीश चंद्रा के अनुसार, 60 वर्षीय पीड़ित रामपाल द्वारा दी गई शिकायत के अनुसार, वह मंदिर परिसर के अंदर बैठे थे, जब उनकी पानी की बोतल से कुछ पानी गलती से उनके सामने गिर गया. पीड़ित के अनुसार, आरोपी स्वामी कांत ने कथित तौर पर यह मान लिया कि उन्होंने उस स्थान पर पेशाब किया है और उन्हें गाली देना और धमकी देना शुरू कर दिया. जब पीड़ित ने विरोध किया और आरोप से इनकार किया, तो कांत ने कथित तौर पर उसे अपनी उंगली से गिरे हुए पानी को छूने और फिर उसे अपनी जीभ पर रखने के लिए मज़बूर किया ताकि यह “साबित” हो सके कि पानी शुद्ध था. पीड़ित ने इस मांग का पालन किया और घर लौट आए.
अगले दिन, रामपाल ने अपने रिश्तेदारों के साथ पुलिस से संपर्क किया और कांत के ख़िलाफ़ एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद, काकोरी पुलिस ने आरोपी के ख़िलाफ़ आपराधिक धमकी और अन्य संबंधित अपराधों सहित आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की. इसके अलावा, पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधान भी लगाए हैं. एसएचओ चंद्रा ने पुष्टि की, “हमने मामले के सिलसिले में आरोपी स्वामी कांत को गिरफ़्तार कर लिया है.” पुलिस के अनुसार आरोपी पिछड़ी जाति से है.
इस घटना की निंदा करते हुए, भीम आर्मी प्रमुख और आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद सांसद ने इसे “मानवता पर कलंक और संविधान की आत्मा पर हमला” बताया और तत्काल कार्रवाई की मांग की. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “सिर्फ़ इसलिए कि कोई ग़लती करता है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपमानजनक या अमानवीय सज़ा का हक़दार है. केवल बदलाव ही बदलाव ला सकता है.” कांग्रेस ने इस घटना को “भाजपा शासित यूपी में मानवता पर कलंक” बताया और कहा कि यह घटना आरएसएस-भाजपा की दलित विरोधी मानसिकता का प्रतीक है.
सोनी म्यूज़िक ने इलैयाराजा के साथ उनके गानों से हुई कमाई का ब्योरा साझा करने से किया इनकार
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार - सोनी म्यूज़िक एंटरटेनमेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने बुधवार (22 अक्टूबर, 2025) को संगीतकार आर. इलैयाराजा के साथ उनके द्वारा अतीत में कुछ फ़िल्मों के लिए रचित गीतों के ‘व्यावसायिक उपयोग’ के माध्यम से अर्जित राजस्व का लेखा-जोखा साझा करने से इनकार कर दिया.
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एन. सेंथिलकुमार के समक्ष उपस्थित होते हुए, वरिष्ठ वकील विजय नारायण ने कहा कि उनके मुवक्किल अदालत में एक सीलबंद लिफ़ाफ़े में खातों का विवरण लाए थे और इसे केवल न्यायाधीश के अवलोकन के लिए अदालत के समक्ष रखने को तैयार थे. उन्होंने संगीतकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील के साथ खातों के विवरण की एक प्रति साझा करने से इनकार कर दिया, और एप्पल म्यूज़िक, अमेज़न म्यूज़िक, स्पॉटीफ़ाई जैसे प्लेटफ़ॉर्मों से प्राप्त आय के बारे में वाणिज्यिक जानकारी के संबंध में गोपनीयता का दावा किया.
वरिष्ठ वकील ने कहा कि संगीतकार ऐसी वाणिज्यिक जानकारी का हक़दार तब तक नहीं होगा जब तक कि वह उन गीतों पर अपना क़ानूनी अधिकार स्थापित करने में सफ़ल नहीं हो जाता, जिन्हें उन्होंने फ़िल्म निर्माताओं से उचित पारिश्रमिक प्राप्त करने के बाद विभिन्न फ़िल्मों के लिए संगीतबद्ध किया था. दूसरी ओर, श्री इलैयाराजा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एस. प्रभाकरन ने न्यायाधीश को बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार सीलबंद लिफ़ाफ़ों में जानकारी जमा करने की प्रथा की निंदा की है.
दोनों पक्षों को सुनने के बाद, न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार ने सीलबंद लिफ़ाफ़े को नहीं खोलने का फ़ैसला किया. श्री नारायण ने उन्हें यह भी सूचित किया कि सोनी म्यूज़िक ने पिछले हफ़्ते सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था ताकि श्री इलैयाराजा द्वारा दायर मुक़दमे को मद्रास उच्च न्यायालय से बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सके. इसके बाद, उन्होंने श्री इलैयाराजा के मुक़दमे को अगली सुनवाई के लिए 27 नवंबर, 2025 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया.
ट्रंप ने फिर दोहराया दावा, भारत रूसी तेल का आयात कम करेगा
बीबीसी न्यूज़ के लिए निकिता यादव की रिपोर्ट के अनुसार - अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दोहराया है कि भारत रूसी कच्चे तेल की अपनी ख़रीद को कम करने पर सहमत हो गया है. ट्रंप ने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को एक फ़ोन कॉल के दौरान उन्हें आश्वासन दिया था कि दिल्ली “रूस से ज़्यादा तेल नहीं ख़रीदेगा” क्योंकि वह भी “रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त होते देखना चाहते हैं”.
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में दिवाली के त्योहार पर ट्रंप के कॉल और उनकी “गर्मजोशी से दी गई शुभकामनाओं” को स्वीकार किया, लेकिन रूसी तेल पर कोई टिप्पणी नहीं की. ट्रंप ने पिछले हफ़्ते भी इसी तरह की टिप्पणी की थी, लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने उस समय कहा था कि उसे दोनों नेताओं के बीच किसी भी फ़ोन कॉल की “जानकारी नहीं” है. बुधवार को, मंत्रालय के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि ट्रंप की ताज़ा टिप्पणियों पर उनके पास कोई नई टिप्पणी नहीं है.
मंगलवार को व्हाइट हाउस में दिवाली समारोह के दौरान ट्रंप ने संवाददाताओं से कहा, “मैंने आज प्रधानमंत्री मोदी से बात की, जैसा कि मैंने पहले बताया था. और हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं. और वह रूस से ज़्यादा तेल नहीं ख़रीदने जा रहे हैं.” उन्होंने आगे कहा, “वह रूस-यूक्रेन के साथ युद्ध को समाप्त होते देखना चाहते हैं. और, जैसा कि आप जानते हैं, वे बहुत ज़्यादा तेल नहीं ख़रीदेंगे. इसलिए उन्होंने इसे बहुत कम कर दिया है और वे इसे लगातार कम कर रहे हैं.”
2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जब पश्चिमी देशों ने मॉस्को पर प्रतिबंध लगाए और ख़रीद से परहेज़ किया, तो भारत रूसी तेल के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक बन गया. दिल्ली ने अपने आयात में वृद्धि की और रियायती क़ीमतों पर रूसी कच्चा तेल ख़रीदा, यह कहते हुए कि यह फ़ैसला अपने लाखों लोगों को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण था. दिल्ली ने यह भी बताया है कि अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों के रूस के साथ व्यापारिक संबंध बने हुए हैं.
हाल के महीनों में, अमेरिकी अधिकारियों ने दिल्ली पर कच्चा तेल ख़रीदना जारी रखकर यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के युद्ध को वित्तपोषित करने में मदद करने का आरोप लगाया है, इस दावे को दिल्ली ख़ारिज करता है. ट्रंप प्रशासन ने क्रेमलिन को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने और यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव डालने के प्रयासों के तहत दिल्ली पर मॉस्को के ऊर्जा बाज़ार के लिए अपना समर्थन कम करने के लिए सार्वजनिक और राजनयिक दबाव डाला है. इसी दबाव के तहत अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ़ लगाया है - जिसमें रूसी तेल ख़रीदने के दंड के रूप में अतिरिक्त 25% शामिल है.
हालांकि, दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता आगे बढ़ने के साथ हाल के दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति का लहज़ा नरम हुआ है. पिछले हफ़्ते, एक भारतीय सरकारी प्रवक्ता ने कहा था कि अमेरिकी प्रशासन के साथ चर्चा “जारी” है, जिसने “भारत के साथ ऊर्जा सहयोग को गहरा करने में रुचि दिखाई है”. इस बीच, मिंट अख़बार की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जल्द ही एक समझौते की घोषणा की जा सकती है और “भारत रूसी तेल के अपने आयात को धीरे-धीरे कम करने पर सहमत हो सकता है”.
फ्रांस के शाही गहनों की चोरी के तीन दिन बाद फिर खुला लूव्र संग्रहालय
बीबीसी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार - पेरिस का लूव्र संग्रहालय, दिनदहाड़े हुई एक बड़ी डकैती में 88 मिलियन यूरो (क़रीबन 102 मिलियन डॉलर) के गहने चोरी होने के तीन दिन बाद फिर से खुल गया है. बुधवार को स्थानीय समयानुसार सुबह 9:00 बजे से आगंतुकों का लूव्र में स्वागत किया गया, लेकिन संग्रहालय ने कहा कि उसकी अपोलो गैलरी - जहां डकैती हुई थी - बंद रहेगी.
रविवार की सुबह चोरों ने बिजली के उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए दुनिया के सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले संग्रहालय में घुसने और लूट का माल लेकर स्कूटर पर भागने में आठ मिनट से भी कम समय लिया. वे अभी तक पकड़े नहीं गए हैं. एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने मंत्रियों से लूव्र में सुरक्षा उपायों को तेज़ी से लागू करने का आग्रह किया है.
इस डकैती को मैक्रों ने देश की विरासत पर हमला बताया है. एक प्रारंभिक रिपोर्ट में पाया गया कि लूव्र के तीन में से एक कमरे में सीसीटीवी की कमी थी और इसका व्यापक अलार्म सिस्टम भी नहीं बजा था. इसके परिणामस्वरूप पूरे फ्रांस में सांस्कृतिक संस्थानों में सुरक्षा उपाय कड़े कर दिए गए हैं.
इस साहसी डकैती के बाद संग्रहालय ने अपने दरवाज़े बंद कर दिए थे. इस बीच, दर्जनों जांचकर्ता अपराधियों को पकड़ने के लिए काम कर रहे हैं. रविवार सुबह 9:30 बजे चार नक़ाबपोश चोरों ने एक ट्रक का इस्तेमाल किया, जिस पर लगी यांत्रिक सीढ़ियों के सहारे वे सीन नदी के पास एक बालकनी के रास्ते अपोलो गैलरी तक पहुंचे. उनमें से दो ने पहली मंज़िल पर एक कांच की खिड़की को बैटरी से चलने वाले डिस्क कटर से काटा और संग्रहालय में प्रवेश किया. फिर उन्होंने अंदर के गार्डों को धमकी दी और गहनों वाले दो डिस्प्ले केसों के शीशे काट दिए.
लूट के माल में सम्राट नेपोलियन द्वारा अपनी पत्नी को दिया गया एक हीरा और पन्ना का हार, नेपोलियन तृतीय की पत्नी महारानी यूजनी द्वारा पहना गया एक टियारा और पहले महारानी मैरी-एमेली के स्वामित्व वाले कई टुकड़े शामिल हैं. जांचकर्ताओं को चोरों के भागने के रास्ते पर महारानी यूजनी का एक क्षतिग्रस्त ताज भी मिला है - माना जाता है कि भागते समय यह उनसे गिर गया होगा. अभियोजकों ने कहा है कि उनका सिद्धांत यह है कि लुटेरे एक आपराधिक संगठन के आदेश पर काम कर रहे थे.
जेल के भीतर भी पूर्व फ्रेंच राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी को मिलेगी स्थायी पुलिस सुरक्षा
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी को जेल में रहने के दौरान दो पुलिस अधिकारी स्थायी सुरक्षा प्रदान करेंगे. फ्रांस के आंतरिक मंत्री ने कहा है कि ये अधिकारी उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर समय पास की कोठरियों में तैनात रहेंगे.
सरकोज़ी ने मंगलवार को पेरिस की ला सांत (La Santé) जेल में अपनी पांच साल की सज़ा काटनी शुरू की. उन्हें लीबिया से अवैध रूप से अभियान के लिए धन जुटाने की साज़िश रचने का दोषी ठहराया गया था. यह 2007 से 2012 तक देश का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति के लिए एक आश्चर्यजनक पतन है.
बुधवार को आंतरिक मंत्री लॉरेंट नुनेज़ ने यूरोप 1 रेडियो को बताया कि पूर्व राष्ट्रपतियों की सुरक्षा करने वाले एक सुरक्षा दस्ते के दो पुलिस अधिकारी सरकोज़ी के कारावास के दौरान स्थायी रूप से पड़ोसी कोठरियों में तैनात रहेंगे. नुनेज़ ने कहा, “गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति अपनी स्थिति के कारण सुरक्षा के हक़दार हैं. ज़ाहिर है कि उनके ख़िलाफ़ ख़तरा है, और हिरासत में रहते हुए भी यह सुरक्षा बनाए रखी जा रही है.”
सरकोज़ी को ला सांत की आइसोलेशन यूनिट में रखा जाएगा, जहाँ कैदियों को एकल कोठरियों में रखा जाता है और बाहरी गतिविधियों के दौरान अलग रखा जाता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें अन्य कैदियों के संपर्क में नहीं आना चाहिए.
जेल गार्ड यूनियनों ने जेल के अंदर पुलिस की मौजूदगी पर विरोध जताया है. सीजीटी यूनियन के निकोलस पेरिन ने कहा कि ला सांत के कर्मचारी कैदियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में पूरी तरह से सक्षम हैं और पुलिस की आवश्यकता नहीं है. एक अन्य जेल गार्ड यूनियन के प्रमुख विल्फ़्रेड फ़ोंक ने कहा, “वे मूल रूप से हमें बता रहे हैं कि हम अपना काम करना नहीं जानते.” सरकोज़ी के वकीलों ने उनकी अपील की सुनवाई लंबित रहने तक जल्दी रिहाई के लिए एक अनुरोध दायर किया है, और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस अनुरोध की समीक्षा लगभग एक महीने में की जाएगी.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.






