22/11/2025: एप्सटीन की मेल में मोदी | तेजस और साख़ का सवाल | अकबर, टीपू अब महान नहीं | लेबर यूनियन गुस्सा | वीरेंद्र के टेप पर कुकीजो के फिर सवाल | जब ट्रंप मिले ममदानी से | होमबाउंड और विश्वगुरू
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
एपस्टीन की डायरी में मोदी-अंबानी और मेड इन चाइना अंडरवियर
दुबई एयर शो में तेजस क्रैश और भारत के निर्यात सपनों को झटका
इतिहास की किताबों में अब महान नहीं रहे अकबर और टीपू सुल्तान
बंद पड़े कश्मीर टाइम्स दफ्तर में पुलिस को मिली रिवॉल्वर
चारों लेबर कोड लागू और ट्रेड यूनियनों का आर-पार का मूड
नए ड्रोन कानून ने स्टार्टअप्स की नींद उड़ा दी
अपनी गिरावट पर अब शर्मिंदा भी नहीं होती सरकार
मणिपुर पुलिस ने फॉरेंसिक लैब को भेजे कटे हुए ऑडियो क्लिप
आतंकी जांच के बीच अल-फलाह संस्थापक का घर तोड़ने पर रोक
तुम्हारे लिए पुलाया सरनेम ही काफी है, थीसिस पर दस्तखत से इनकार
व्हाइट हाउस में ट्रम्प और समाजवादी मेयर का लवफेस्ट
लैब रिपोर्ट के नंबर सेहत का पूरा सच नहीं बताते
दिल्ली का मीडिया अपनी मर्सिडीज खोने से डरता है
यौन तस्कर एपस्टीन की ईमेल्स में मोदी, हरदीप पुरी, अनिल अंबानी के नाम, अंडरवियर का जिक्र
यूएस हाउस ओवरसाइट कमेटी द्वारा जारी नए दस्तावेजों और ‘ड्रॉप साइट न्यूज़’ को प्राप्त 18,000 से अधिक ईमेल के लीक होने से एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. इन दस्तावेजों के अनुसार, कुख्यात यौन तस्कर जेफरी एपस्टीन ने अपनी गिरफ्तारी और मौत से ठीक दो महीने पहले, 2019 के मध्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व ट्रम्प व्हाइट हाउस रणनीतिकार स्टीव बैनन के बीच बैठक कराने की सक्रिय कोशिश की थी.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बैनन ने 23 मई 2019 (जिस दिन मोदी ने लोकसभा चुनाव जीता था) को एपस्टीन को मैसेज किया था कि वे मोदी पर एक विशेष शो कर रहे हैं. इस पर एपस्टीन ने कथित तौर पर जवाब दिया कि मोदी का पूरा ध्यान “चीन को रोकने” पर है. एपस्टीन ने बैनन पर दबाव डालते हुए लिखा, “मैं बैठक तय कर सकता हूँ, आपको मोदी से मिलना चाहिए.” बैनन ने जवाब दिया “कृपया”, जिसके बाद एपस्टीन ने लिखा, “मोदी तैयार हैं” (Modi on board). एपस्टीन ने बैनन को यह भी लिखा कि उन्हें भारत और अमेरिका के साझा लक्ष्यों को समझना चाहिए और कहा, “अपने अंडरवियर को देखो, उस पर मेड इन चाइना लिखा होगा या मेड इन इंडिया.”
दस्तावेजों में यह भी सामने आया है कि एपस्टीन ने भारत-इज़राइल संबंधों और रक्षा सौदों को लेकर भारतीय अरबपति अनिल अंबानी के साथ ईमेल का आदान-प्रदान किया था. अनिल अंबानी की कंपनी का इज़राइली रक्षा फर्म ‘राफेल’ के साथ संयुक्त उद्यम था. इसके अलावा, एपस्टीन के निजी कैलेंडर में मौजूदा केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के साथ 2014 से 2017 के बीच कई मुलाकातों का ज़िक्र है.
इस खुलासे के बाद, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने सोशल मीडिया पर सफाई दी कि एपस्टीन के एक ईमेल में ‘लड़कियों’ का ज़िक्र संदर्भ से बाहर समझा गया है और उसका संबंध किसी अनैतिक गतिविधि से नहीं था. द वायर और ड्रॉप साइट न्यूज़ के अनुसार, प्रधानमंत्री कार्यालय, स्टीव बैनन या अनिल अंबानी की ओर से इन दावों पर अभी तक कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है.
दुबई एयर शो में तेजस क्रैश: एचएएल की वैश्विक साख और निर्यात सपनों को लगा गहरा झटका
शुक्रवार (21 नवंबर) को दुबई एयर शो के दौरान भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान ‘तेजस एलसीए मार्क-1’ के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर ने भारत की रक्षा महत्वाकांक्षाओं को हिलाकर रख दिया है. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस हादसे में पायलट की मौत हो गई. यह दुर्घटना ऐसे समय में हुई है जब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका के संभावित खरीदारों के सामने इस विमान को आक्रामक रूप से पेश कर रहे थे. यह 20 महीनों के भीतर तेजस की दूसरी दुर्घटना है; इससे पहले मार्च 2024 में जैसलमेर के पास एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था.
द वायर में राहुल बेदी के लेख के अनुसार विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक परिचालन दुर्घटना नहीं है, बल्कि एक बड़ा रणनीतिक और व्यावसायिक झटका है. वैश्विक एयरोस्पेस समुदाय और रक्षा पत्रकारों की मौजूदगी में हुआ यह हादसा तेजस की विश्वसनीयता, गुणवत्ता नियंत्रण और क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े करता है. छोटे देशों की वायु सेनाएं, जिन्हें एचएएल लक्षित कर रहा है, वे सुरक्षा रिकॉर्ड और दुर्घटनाओं के इतिहास को बहुत गंभीरता से लेती हैं. ऐसे प्रतिस्पर्धी बाजार में, जहां चीन के जेएफ-17 और जे-10 जैसे विमान कम कीमत पर उपलब्ध हैं, तेजस का इस तरह क्रैश होना उसकी छवि को धूमिल कर सकता है.
यह घटना एचएएल के लिए इक्वाडोर के साथ हुए ‘ध्रुव’ हेलीकॉप्टर सौदे की कड़वी यादें ताजा करती है. 2008-09 में इक्वाडोर को बेचे गए सात ध्रुव हेलीकॉप्टरों में से चार दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे, जिसके बाद इक्वाडोर ने अनुबंध रद्द कर दिया था. एचएएल अभी भी भारतीय वायु सेना का विश्वास जीतने के लिए संघर्ष कर रहा है. एयरो इंडिया 2025 में वायु सेना प्रमुख ए.पी. सिंह ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन्हें एचएएल की समयसीमा पर ‘कोई भरोसा नहीं’ है. विश्लेषकों का कहना है कि यदि एचएएल इस संकट से उबरना चाहता है, तो उसे पारदर्शिता के साथ जांच करनी होगी और दुनिया को भरोसा दिलाना होगा कि तेजस सुरक्षित है, अन्यथा भारत के एयरोस्पेस उद्योग की छवि को लंबी अवधि के लिए नुकसान पहुंच सकता है.
अकबर और टीपू अब ‘महान’ नहीं, इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में हुए बदलाव : आरएसएस नेता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा है कि भारत की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में कई सकारात्मक बदलाव किए गए हैं. शुक्रवार को नागपुर में आयोजित ‘ऑरेंज सिटी लिटरेचर फेस्टिवल’ में बोलते हुए उन्होंने जानकारी दी कि अब मुगल बादशाह अकबर या मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के नाम के साथ ‘महान’ (द ग्रेट) विशेषण का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, आंबेकर ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा किए गए इन संशोधनों की सराहना की.
आंबेकर ने स्पष्ट किया कि हालांकि एनसीईआरटी ने बदलाव किए हैं, लेकिन किसी भी ऐतिहासिक व्यक्ति को किताबों से पूरी तरह हटाया नहीं गया है. उनका तर्क था कि “नई पीढ़ी को इन शासकों के क्रूर कारनामों के बारे में पता होना चाहिए.” उन्होंने कहा, “हमें यह जानना चाहिए कि हम किसके कारण पीड़ित हुए और हमें किससे मुक्त होने की आवश्यकता थी. कुछ लोग कहते हैं कि यह नहीं बताया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता, सच बताया जाना चाहिए.” उन्होंने बताया कि कक्षा 9, 10 और 12 की किताबों में ये बदलाव अगले साल से लागू होंगे.
नालंदा विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए, आरएसएस नेता ने कहा कि लोगों में यह गलत धारणा है कि वहां केवल वेद, पुराण, रामायण और महाभारत पढ़ाए जाते थे. उन्होंने कहा, “यदि आप नालंदा के पाठ्यक्रम को देखें, तो पाएंगे कि वहां साहित्य के साथ-साथ 76 प्रकार के कौशल-आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते थे. इनमें खेती, नगर नियोजन, मेकअप, जासूसी, राजनीतिक शासन और मशीनीकरण जैसे विषय शामिल थे.”
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर चर्चा करते हुए, आंबेकर ने कहा कि संघ का उद्देश्य केवल एक मंदिर बनाना नहीं था. उन्होंने कहा, “यह भगवान राम की संस्कृति के साथ हमारे संबंधों को समझने का अभियान था. हमें यह सोचना होगा कि राम की संस्कृति का हमारे देश और हमारे भविष्य के जीवन से क्या संबंध है.” उन्होंने देश के युवाओं की भी प्रशंसा की और कहा कि आज की नई पीढ़ी बहुत सक्षम है और उनके लिए देशभक्ति एक गर्व की बात है.
कश्मीर टाइम्स दफ्तर पर पुलिस छापा: प्रशासन का दावा ‘साजिश’, अखबार ने बताया ‘प्रतिशोध’
जम्मू-कश्मीर पुलिस की विशेष जांच एजेंसी (एसआईए) ने 20 नवंबर को जम्मू में प्रतिष्ठित अखबार ‘कश्मीर टाइम्स’ के कार्यालय पर छापा मारा. स्क्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस का कहना है कि यह कार्रवाई अखबार के खिलाफ दर्ज एक मामले के सिलसिले में की गई है, जिसमें उस पर “अलगाववादी और राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ आपराधिक साजिश” में शामिल होने का आरोप है. पुलिस ने यह भी दावा किया कि तलाशी के दौरान उन्होंने कार्यालय से एक रिवॉल्वर, गोलियां और कारतूस के खोखे जैसी “आपत्तिजनक सामग्री” बरामद की है. पुलिस ने प्रकाशन पर अपने प्रिंट और डिजिटल सामग्री के माध्यम से “जम्मू-कश्मीर के युवाओं को कट्टरपंथी बनाने” और “भारत की संप्रभुता को चुनौती देने” का आरोप लगाया है.
दूसरी ओर, अखबार प्रबंधन ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. अखबार की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और उनके पति प्रबोध जमवाल ने कहा कि जिस कार्यालय पर छापा मारा गया, वह पिछले चार वर्षों से बंद पड़ा था और वहां कोई कामकाज नहीं हो रहा था. अखबार ने एक बयान जारी कर कहा, “यह हमें चुप कराने का एक और प्रयास है और लगाए गए आरोप निराधार हैं.” यह अखबार 2021-22 में अपना प्रिंट संस्करण बंद कर चुका है और अब केवल डिजिटल रूप में ही संचालित होता है.
1954 में वरिष्ठ पत्रकार वेद भसीन द्वारा स्थापित, कश्मीर टाइम्स को दशकों से जम्मू-कश्मीर में एक निष्पक्ष और विश्वसनीय आवाज़ माना जाता रहा है. वेद भसीन ने हमेशा सांप्रदायिकता के खिलाफ और न्याय के पक्ष में पत्रकारिता की. हालांकि, 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से अखबार और उसकी संपादक अनुराधा भसीन को लगातार सरकारी दबाव का सामना करना पड़ा है. भसीन ने 2019 में संचार बंदी (इंटरनेट शटडाउन) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके बाद 2020 में, प्रशासन ने बिना किसी स्पष्टीकरण के अखबार के श्रीनगर कार्यालय को सील कर दिया था. इसके अलावा, भसीन द्वारा लिखित एक पुस्तक को भी प्रशासन ने “झूठा विमर्श” फैलाने के आरोप में प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची में डाल दिया था.
चारों लेबर कोड लागू , ट्रेड यूनियन नाराज़
देश में बड़े श्रम सुधारों के बीच 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने सरकार द्वारा लागू किए गए चारों लेबर कोड का कड़ा विरोध किया है. द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक़ यूनियनों ने कहा कि बेरोज़गार और महंगाई के बीच इन क़ानूनों को लागू करना “ मज़दूरोंपर युद्ध घोषित करने जैसा” है. वे 26 नवंबर को बड़े विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रही हैं. यूनियनें इन कोडों को “ मज़दूर-विरोधी और मालिक-हितैषी” बता रही हैं.
सरकार ने शुक्रवार (21 नवंबर 2025) को सभी चार लेबर कोड लागू कर दिए. इन नए क़ानूनों से देश की श्रम व्यवस्था में बड़े बदलाव आए हैं. गिग वर्कर्स को पहली बार सामाजिक सुरक्षा मिलेगी, महिलाओं को अधिक अधिकार और सुरक्षा दी जाएगी, जेंडर पे इक्विटी की गारंटी होगी, न्यूनतम वेतन को कानूनी आधार मिलेगा और फिक्स्ड-टर्म एंप्लॉयमेंट की सुविधा भी शुरू होगी.
ये चार लेबर कोड हैं ,वेज कोड (2019), इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड (2020), सोशल सिक्योरिटी कोड (2020) और OSHWC कोड (2020)—यह अब पुराने 29 बिखरे श्रम क़ानूनों की जगह ले चुके हैं, जिनमें से कई आज़ादी से भी पुराने थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन कोडों को “ आज़ादी के बाद सबसे व्यापक और प्रगतिशील श्रम सुधार” बताया. उनका कहना है कि ये कोड मज़दूरों को अधिक सुरक्षा, समय पर वेतन, सुरक्षित कार्यस्थल और बेहतर अवसर देंगे, साथ ही उद्योगों के लिए नियम पालन को आसान बनाएंगे.
श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि ये सुधार रोज़गार को अधिक औपचारिक बनाएंगे और भारत की श्रम संरचना को वैश्विक मानकों के करीब ले जाएंगे. राज्यों में नियमों का ढांचा तैयार किया जा रहा है और केंद्र सरकार बाकी राज्यों की मदद कर रही है.
नए बदलावों में महिलाओं को रात की शिफ्ट में काम करने की अनुमति, 40 वर्ष से अधिक उम्र के मज़दूरों के लिए मुफ्त हेल्थ चेक-अप, पूरे देश में ESIC कवरेज, एकीकृत रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस व्यवस्था शामिल है. फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को भी स्थायी कर्मचारियों जैसे लाभ मिलेंगे.
पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स की स्पष्ट परिभाषा दी गई है. आधार-लिंक्ड यूनिवर्सल अकाउंट नंबर की मदद से मज़दूरों को देश में कहीं भी लाभ आसानी से मिल सकेंगे.
उधर, उद्योग संगठन CII ने इन कोडों को “ऐतिहासिक कदम” बताया है, जबकि बीएमएस ने भी कोडों का स्वागत किया है, हालांकि उसने कुछ “एंटी-वर्कर” प्रावधान संशोधित करने की मांग रखी है.
सरकार अब कोडों के तहत विस्तृत नियम और स्कीमें तय करने के लिए आगे की बातचीत शुरू करेगी.
नये ड्रोन कानून से स्टार्टअप्स में भारी गुस्सा
भारत के नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा हाल ही में पेश किए गए ‘ड्राफ्ट सिविल ड्रोन बिल’ ने देश के तकनीकी जगत में हलचल मचा दी है. जहां उम्मीद थी कि नए नियम ड्रोन उद्योग को बढ़ावा देंगे, वहीं इसके विपरीत स्टार्टअप्स, तकनीकी संस्थाओं और ड्रोन प्रेमियों ने इस प्रस्ताव को प्रतिगामी (रिग्रेसिव) बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है. ‘ज़ेरोधा डेली ब्रीफ’ के विश्लेषण के अनुसार, यह बिल भारत को 2030 तक “ग्लोबल ड्रोन हब” बनाने के सपने को चकनाचूर कर सकता है.
रिपोर्ट में इस बिल की चार बड़ी खामियों को उजागर किया गया है जो नवाचार का गला घोंट सकती हैं:
यूनिवर्सल रजिस्ट्रेशन (सार्वभौमिक पंजीकरण): बिल के तहत हर ड्रोन का पंजीकरण अनिवार्य होगा, चाहे वह बच्चे के जन्मदिन के लिए खरीदा गया छोटा सा खिलौना ड्रोन ही क्यों न हो. इससे खिलौना बाजार और छात्रों के प्रयोगों पर बुरा असर पड़ेगा.
अनिवार्य पायलट लाइसेंस: अब कॉलेज के बगीचे में छोटा ड्रोन उड़ाने वाले छात्र या ‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना के तहत काम करने वाले स्वयं सहायता समूहों को भी ‘रिमोट पायलट सर्टिफिकेट’ लेना होगा, जो एक जटिल प्रक्रिया है.
टाइप सर्टिफिकेशन: निर्माण, बिक्री या संचालन से पहले हर ड्रोन का डीजीसीए से प्रमाणन अनिवार्य होगा. इसका मतलब है कि स्टार्टअप्स अब प्रोटोटाइप (नमूना) भी नहीं बना पाएंगे और कॉलेज के प्रोजेक्ट्स अवैध हो जाएंगे. डिजाइन में हर छोटे बदलाव के लिए लाखों रुपये और महीनों का समय लगेगा.
आपराधिक दंड और बीमा: कागजी कार्रवाई में गलती होने पर आपराधिक सजा का प्रावधान है और हर ऑपरेटर के लिए तीसरे पक्ष का बीमा अनिवार्य किया गया है, जो छोटे शोधकर्ताओं के लिए बहुत महंगा साबित होगा.
विश्लेषकों का कहना है कि यह बिल इनोवेशन को संतुलित करने के बजाय उस पर कीमत लगा रहा है.
हरकारा डीप डाइव
आकार पटेल : सरकार को अब अपने खराब प्रदर्शन पर शर्म भी नहीं आती
लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता आकार पटेल ने कहा है कि भारत 2014 के बाद लगभग हर वैश्विक सूचकांक में या तो रुका हुआ है या नीचे की ओर फिसल रहा है. हरकारा डीपडाइव के इस बातचीत में उन्होंने बताया कि छह वर्ष पहले नीति आयोग ने प्रयास किया था कि भारत की वैश्विक रैंकिंग सुधरे. सरकार को उम्मीद थी कि या तो सुशासन के ज़रिये सुधार आएगा या फिर ग्लोबल इंडेक्स के मापदंडों में बदलाव करवाकर भारत की स्थिति बेहतर दिखाई जा सकेगी. लेकिन यह प्रयास न केवल विफल रहा बल्कि कुछ वर्षों बाद सरकार ने इन सूचकों पर टिप्पणी करना भी लगभग बंद कर दिया.
आकार पटेल के अनुसार संयुक्त राष्ट्र का मानव विकास सूचकांक दिखाता है कि भारत 2014 में भी 130वें स्थान पर था और आज भी 130वें स्थान पर ही है. भुखमरी सूचकांक में भारत 55वें स्थान से फिसलकर 102वें स्थान पर पहुंच गया है. भ्रष्टाचार सूचकांक में भी शुरुआती दो वर्षों के मामूली सुधार के बाद भारत की रैंक फिर लगातार गिरती गई और आज वह 96वें स्थान पर है. प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 2014 में 140वें स्थान पर था और आज 151वें स्थान पर है.
उन्होंने कहा कि एशिया पावर इंडेक्स बताता है कि 2014 के बाद भारत ने अपना मेजर पावर का दर्जा भी खो दिया है. चीन के साथ हाल के वर्षों के संघर्ष और भारत की आर्थिक स्थिति को देखते हुए शोधकर्ताओं का मानना है कि भारत की हार्ड पावर पहले जैसी नहीं रही.
आकार पटेल ने यह भी कहा कि भारत की सॉफ्ट पावर और नैतिक साख को नुकसान पहुंचा है क्योंकि सरकार जिन दावों के आधार पर दुनिया में अपने आप को प्रस्तुत करती है, उसके उलट आंकड़े और धरातल की वास्तविकता दिखाते हैं कि भारत अपने ही नागरिकों के साथ असमान व्यवहार कर रहा है. उन्होंने कहा कि गरीब और अमीर दोनों पेट्रोल और डीजल की एक ही कीमत देते हैं और रूस से सस्ते तेल का वास्तविक लाभ जनता को नहीं दिया गया. दुनिया बाहर से यह सब देख रही है और इससे भारत की विश्वसनीयता कमज़ोर हुई है.
बातचीत में उत्तर भारत की स्थिति पर भी चर्चा हुई. आकार पटेल ने कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय और मानव विकास मानक सब सहारन अफ्रीका के गरीब देशों के बराबर हैं. यह तथ्य पिछले पचास वर्षों में लगभग स्थिर रहा है लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं बनता. इसके बजाय जाति, धर्म और चुनावी मैनेजमेंट राजनीति में निर्णायक हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा के पास इलेक्टोरल बॉन्ड से आया असीमित चुनावी धन और मज़बूत बूथ प्रबंधन जैसे कारणों से उसके पास भारी बढ़त है.
उन्होंने यह भी कहा कि नागरिकों के मन में पुलिस थाने, अदालत, सरकारी अस्पताल और मीडिया तक का भय लोकतंत्र की बुनियाद को कमज़ोर कर रहा है. सूचना के अधिकार पर हमले और पारदर्शिता में कमी के कारण अब किसी भी चीज का सत्यापन करना मुश्किल होता जा रहा है. उनका कहना है कि लोकतंत्र तभी मज़बूत होता है जब नागरिक सरकार से न डरें लेकिन आज स्थिति इसके उलट है.
मणिपुर हिंसा ऑडियो: कुकी संगठन का आरोप — पुलिस ने 48 मिनट की रिकॉर्डिंग के बजाय सिर्फ कटे क्लिप भेजे
कुकी ऑर्गनाइज़ेशन फॉर ह्यूमन राइट ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि मणिपुर पुलिस ने 48 मिनट 46 सेकंड की पूरी कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग भेजने के बजाय सिर्फ कुछ छोटे और काटे हुए हिस्से ही नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) गांधीनगर को भेजे हैं. यह जानकारी लाइव लॉ की रिपोर्ट में दी गई है.
यह वही ऑडियो क्लिप है जिसे पिछले साल जारी किया गया था और जिसमें कहा गया था कि मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह 2023 की जातीय हिंसा में एक भूमिका निभाते हुए सुनाई देते हैं. इस हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए, कई घायल हुए और कम से कम 70,000 लोग कुकी और मैतेई समुदायों से विस्थापित हुए. यह 48 मिनट की रिकॉर्डिंग उस व्यक्ति ने दी थी, जिसने दवा किया था कि उसने एक आधिकारिक परिसर में रिकॉर्ड किया था.
ऑडियो में एक आवाज़, जो मुख्यमंत्री की मानी जा रही है, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बातचीत का ज़िक्र करती है. इसमें “बम” इस्तेमाल करने की चर्चा सुनाई देती है. बीरेन सिंह कथित तौर पर यह कह रहे हैं कि शाह ने उन्हें बम का इस्तेमाल बंद करने को कहा था, लेकिन उन्होंने बाद में चुपके से ऑपरेशन जारी रखने को कहा. उन्होंने यह भी कहा कि हथियार चोरी करने वाले उग्रवादियों को भी उन्होंने बचाया.
संगठन का आरोप है कि पुलिस ने NFSU को सिर्फ 0:30, 1:28, 0:36 और 1:47 मिनट की चार क्लिप भेजीं, जिसके कारण पूरी बातचीत का सही चित्र सामने नहीं आ पाया. संगठन ने कहा है कि इतने महत्वपूर्ण सबूत को टुकड़ों में भेजना जांच की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है.
यह आरोप एक हलफनामे में लगाया गया है, जिसमें NFSU की 10 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट पर जवाब दिया गया है. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि ऑडियो फाइल के साथ छेड़छाड़ हुई है और यह वैज्ञानिक तौर पर वॉइस मैचिंग के लिए फीट नहीं है. संगठन का कहना है कि उन्होंने जनवरी 2025 में पूरी 48 मिनट की फ़ाइल सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी और कोर्ट ने निर्देश दिया था कि पूरी फ़ाइल की जांच की जाए. लेकिन मणिपुर पुलिस की साइबर क्राइम यूनिट ने सिर्फ चार छोटे हिस्से ही भेजे.
हलफनामे में कहा गया है कि अधूरी क्लिप्स भेजे जाने के कारण NFSU और CFSL दोनों ही ऑडियो की निरंतरता और प्रामाणिकता की जांच नहीं कर पाए. NFSU ने सिर्फ मेटाडेटा और टैम्परिंग की जांच की और क्लिप्स को “टैम्पर्ड” या “AI जनरेटेड” बताते हुए आवाज़ की तुलना नहीं की गई, कि आवाज़ किसकी है.
यहां तक कि दूरदर्शन द्वारा दिए गए बीरेन सिंह की मूल आवाज वाले कंट्रोल सैंपल्स को भी NFSU ने गलत तरीके से “प्रोसेस्ड” या “परिवर्तित” मान लिया.
हलफनामे में कहा गया है कि इससे पहले ट्रुथ लैब्स ने दो पेन ड्राइव की जांच की थी. पेन ड्राइव A में पूरा 48 मिनट का ऑडियो था और पेन ड्राइव B में मुख्यमंत्री के भाषण थे. ट्रुथ लैब्स ने ऑडिटरी, एकॉस्टिक और स्पेक्ट्रोग्राफिक जांच के बाद जनवरी 2025 में कहा था कि 93% संभावना है कि दोनों आवाज़ें एक ही व्यक्ति की हैं.
संगठन का कहना है कि अगस्त 2024 में जारी की गई 48 मिनट की बातचीत के ट्रांसक्रिप्ट ने भी राज्य मशीनरी की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए थे. जस्टिस लांबा कमीशन के पास पूरी रिकॉर्डिंग गई थी, लेकिन पहचान छिपाने के लिए कुछ हिस्से हटाकर छोटी फ़ाइल ट्रुथ लैब्स को भेजी गई.
संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से एक कोर्ट-निरीक्षित SIT की मांग दोहराई है. उनका कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद पर बैठे व्यक्ति के ख़िलाफ़ लगे आरोपों की जांच कोर्ट नहीं, बल्कि विशेषज्ञ जांच एजेंसी को करनी चाहिए. हलफनामे में कहा गया है कि फॉरेंसिक रिपोर्ट अधूरी होने से जांच रोकने का कोई आधार नहीं बनता. अगर जांच में कुछ न भी मिले, तो क़ानून के अनुसार ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दी जा सकती है.
संगठन का आग्रह है कि इस ऑडियो और ट्रुथ लैब्स की रिपोर्ट के आधार पर मामला दर्ज कर निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच शुरू की जाए, ताकि सच सामने आ सके.
मप्र हाईकोर्ट ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी संस्थापक के पुश्तैनी घर पर कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगाई
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जव्वाद सिद्दीक़ी के मऊ (Mhow) वाले पुश्तैनी घर को तोड़ने की कार्रवाई पर 15 दिन की रोक लगा दी है. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस प्रणय वर्मा ने कहा कि यह कार्रवाई 1996–97 के पुराने नोटिसों पर आधारित है, इसलिए इतने लम्बे समय बाद अगर करवाई करनी है, तो उससे पहले घर के मालिक को सुनने का मौक़ा देना ज़रूरी है. कोर्ट ने मऊ कैंटोनमेंट बोर्ड को अगले आदेश तक किसी भी तरह की ध्वस्तीकरण कार्रवाई से रोक दिया है.
मऊ कैंटोनमेंट बोर्ड ने हाल ही में मकान को “अवैध निर्माण” बताते हुए तीन दिन में खुद ढहाने का नोटिस चिपकाया था. यह चार मंज़िला इमारत, जिसे स्थानीय लोग “मौलाना की बिल्डिंग” कहते हैं, जव्वाद सिद्दीक़ी के पिता मोहम्मद हम्माद सिद्दीक़ी का पुराना घर है. नोटिस के ख़िलाफ़ अब्दुल मजीद ने याचिका दायर की, जो परिवार के साथ वहीं रहते हैं. उनका कहना है कि बोर्ड ने यह नहीं बताया कि घर का कौन-सा हिस्सा अवैध है उनका आरोप है कि बोर्ड ने आज की स्थिति देखकर जांच करने के बजाय 30 साल पुराने कागज़ों पर भरोसा किया है. इसलिए तोड़फोड़ का आधार भी साफ नहीं है.
उनके वकील अजय बगाड़िया ने दलील दी कि तीन दिन में जवाब देने की चेतावनी सुप्रीम कोर्ट की 2025 की गाइडलाइंस के ख़िलाफ़ है, जिसमें कम से कम 15 दिन का समय देना ज़रूरी है. उन्होंने यह भी कहा कि लगभग 30 साल पहले दिए गए ऐसे ही नोटिसों पर भी कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.
कोर्ट में घर की मालिकाना हक़ की बात भी उठी. बताया गया कि यह घर पहले मोहम्मद हम्माद सिद्दीक़ी का था, बाद में उनके बेटे जव्वाद सिद्दीक़ी के नाम हुआ और फिर उन्होंने इसे अब्दुल माजिद को गिफ्ट कर दिया, जो अब खुद को क़ानूनी मालिक बताते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि यह नोटिस उस समय सामने आयी है जब सिद्दीक़ी परिवार एक बार फिर जांच एजेंसियों के राडार पर है. यह जांच तब तेज़ हुई जब फरीदाबाद के अल-फलाह मेडिकल कॉलेज के दो डॉक्टरों का नाम 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके से जुड़े एक कथित “टेरर मॉड्यूल” में सामने आया. वहीं इसी हफ्ते जव्वाद सिद्दीक़ी के छोटे भाई हमूद अहमद सिद्दीक़ी को हैदराबाद से गिरफ़्तार किया गया. वे लगभग 25 साल से फरार थे और उन पर 2000 के दशक में फौजी कर्मियों से धोखाधड़ी के कई मामले दर्ज हैं.
पुलिस जांच में पता चला है कि सिद्दीक़ी ने 1990 के दशक में मऊ में अपना करियर शुरू किया था और उस समय वे अल-फलाह इन्वेस्टमेंट कंपनी चलाते थे. मऊ के एडिशनल एसपी रूपेश द्विवेदी के मुताबिक, वित्तीय गड़बड़ियों की शिकायतें आने के बाद यह परिवार 2001 में दिल्ली शिफ्ट हो गया था.
जांच अधिकारियों का कहना है कि मध्य प्रदेश छोड़ने के बाद सिद्दीक़ी ने अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया, जिसके जरिए बाद में फरीदाबाद, हरियाणा में अल-फलाह यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई.कोर्ट अब 15 दिनों बाद मामले पर अगली सुनवाई करेगा.
दलित शोधार्थी ने केरल यूनिवर्सिटी की डीन पर जातीय अपमान का आरोप लगाया
केरल यूनिवर्सिटी में एक दलित शोध छात्र ने यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग के डीन और प्रमुख पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) के तहत मामला दर्ज करवाया है. द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, दलित छात्र विपिन विजयन का आरोप है कि उनके लिए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है.
39 वर्षीय विपिन विजयन ‘पुलाया’ समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं. उनकी थीसिस को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब केरल यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग की डीन और प्रमुख, सी.एन. विजयकुमारी ने उनके काम को ख़ारिज कर दिया था. विजयकुमारी पर आरोप है कि उन्होंने स्कॉलर के ख़िलाफ़ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया.
विपिन ने अपनी पुलिस शिकायत में बताया कि जब वह 15 अक्टूबर को अपनी थीसिस का बचाव कर रहे थे. तब विजयकुमारी ने सत्र में ख़लल पैदा की और थीसिस में बदलाव की मांग की. हालाँकि विपिन के मुताबिक़ थीसिस को सुपरवाइजर और थीसिस एग्जामिनिंग कमेटी के चेयरपर्सन दोनों ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन इसके बावजूद विजयकुमारी ने उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया.
विपिन ने मीडिया को बताया, “जब मैंने विजयकुमारी से अपनी थीसिस पर हस्ताक्षर करने का अनुरोध किया, तो उन्होंने मुझसे कहा, ‘तुम्हें अपने नाम के साथ डॉक्टरेट जोड़ने की क्या आवश्यकता है? तुम्हारे पास पुलाया सरनेम है, वही काफी है’.
ट्रम्प ममदानी मुलाकात: मेक लव, नॉट वॉर
व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और न्यूयॉर्क शहर के नवनिर्वाचित मेयर ज़ोहरान ममदानी के बीच हुई एक उच्च-स्तरीय बैठक ने राजनीतिक पंडितों को हैरान कर दिया. जो मुलाकात तीखी होने की उम्मीद थी, वह एक प्रकार के ‘प्रेम उत्सव’ (लवफेस्ट) में बदल गई. पोलिटिको और एक्सियोस की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों नेताओं ने अपनी वैचारिक दूरियों को किनारे रखकर ‘महंगाई’ और ‘किफायती जीवन’ के मुद्दे पर एक-दूसरे की जमकर तारीफ की. 34 वर्षीय डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ममदानी के लिए यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उन्हें डर था कि चंचल स्वभाव वाले रिपब्लिकन राष्ट्रपति ट्रम्प संघीय सहायता में कटौती कर सकते हैं या शहर में नेशनल गार्ड तैनात कर सकते हैं. वहीं, ट्रम्प के सहयोगी चाहते थे कि राष्ट्रपति यह दिखाएं कि वे समाजवाद के कारण न्यूयॉर्क को बर्बाद नहीं होने देंगे.
बैठक के दौरान मौजूद एक शीर्ष सहयोगी ने बताया कि ममदानी ने बंद कमरे में हुई इस बातचीत के दौरान अपनी रणनीति नहीं छोड़ी और पूरा ध्यान आम जनता की जेब से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित रखा. इस रणनीति ने ट्रम्प के गुस्से को शांत करने का काम किया. बैठक के बाद, ट्रम्प ने मुस्कुराते हुए पत्रकारों से कहा, “ममदानी ने मुझे बताया कि मेरे कई मतदाताओं ने उन्हें भी वोट दिया है.” ट्रम्प ने आगे कहा, “हमने बहुत दिलचस्प बातचीत की और उनके कई विचार वास्तव में मेरे जैसे ही हैं. आज का नया शब्द ‘किफायती’ (एफोर्डेबिलिटी) है.” ट्रम्प ने ममदानी को एक “बहुत ही तर्कसंगत व्यक्ति” बताया और कहा कि वे इस बैठक से सुखद रूप से आश्चर्यचकित थे.
यह दृश्य असली कम और काल्पनिक ज्यादा लग रहा था क्योंकि ट्रम्प ने पहले ममदानी को “मेरा छोटा कम्युनिस्ट” कहकर उनका मजाक उड़ाया था, जबकि ममदानी ने अपनी जीत के भाषण में ट्रम्प को ‘फासीवादी’ कहा था. लेकिन ओवल ऑफिस में दोनों मुस्कुराते हुए और एक-दूसरे की पीठ थपथपाते हुए नजर आए. ममदानी ने जोर देकर कहा कि अपराध, आव्रजन और इज़राइल जैसे मुद्दों पर गहरे मतभेद होने के बावजूद, वे दोनों कामकाजी वर्ग के लोगों को राजनीति के केंद्र में वापस लाने के लक्ष्य को साझा करते हैं.
ममदानी की चीफ ऑफ स्टाफ एली बिस्गार्ड-चर्च ने बताया कि बैठक में असहमतियां भी स्पष्ट रूप से रखी गईं. उन्होंने कहा, “मेयर-इलेक्ट ने स्पष्ट किया कि हम अपने शहर में शरण देने वाले कानूनों (सैंक्चुअरी लॉ) का पालन करेंगे और सभी आप्रवासी सुरक्षित रहेंगे.” हालांकि, ट्रम्प और ममदानी इस बात पर सहमत दिखे कि हिंसक अपराध करने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. ट्रम्प ने यहां तक कि अपनी ही पार्टी की नेता एलीज़ स्टेफनिक द्वारा ममदानी को ‘जिहादी’ कहे जाने पर भी मेयर का बचाव किया.
नॉर्मल की परिभाषा सबकी अलग: सेहत को सिर्फ लैब रिपोर्ट के नंबरों से नहीं समझा जा सकता
दुनिया के मशहूर पहलवान और अभिनेता ड्वेन “द रॉक” जॉनसन जब अपने करियर के चरम पर थे, तब उनका BMI (शरीर द्रव्यमान सूचकांक) लगभग 33 था.विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से यह मोटापे की श्रेणी में आता है, लेकिन उन्हें देखकर कोई भी उन्हें अस्वस्थ नहीं कह सकता था. यह उदाहरण बताता है कि सिर्फ नंबरों के आधार पर सेहत को मापा नहीं जा सकता.
द हिंदू के एक आर्टिकल में डॉ. सी. अरविंदा बताते हैं कि सिर्फ नंबर देखकर सेहत का अंदाज़ा लगाना सही नहीं होता. कई सालों तक WHO ने BMI की एक ही सीमा पूरी दुनिया पर लागू की — 25 से ऊपर ‘ओवरवेट’ और 30 से ऊपर ‘मोटापा’. लेकिन बाद में पता चला कि एशियाई लोगों के लिए ये सीमा सही नहीं है. रिसर्च में पाया गया कि एशियाई आबादी में लोग कम BMI पर भी डायबिटीज और दिल की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. इसी वजह से एशियाई देशों के लिए ‘नॉर्मल’ BMI की सीमा 23 रखी गई. यानी सेहत का ‘सामान्य’ होना कोई तय नियम नहीं, बल्कि हर समाज और शरीर की बनावट के हिसाब से बदलता रहता है.
यह लेख बताता है कि लैब रिपोर्ट में जो ‘रेफरेंस रेंज’ लिखी होती है, वह असल में सांख्यिकीय सीमा होती है, इसे सामान्य सीमा समझ लेना ग़लत है. यह 95% स्वस्थ लोगों के डेटा से बनती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाकी 5% बीमार हैं. इसलिए रिपोर्ट के नंबर बीमारी तय नहीं करते, डॉक्टर को मरीज़ की पूरी स्थिति देखकर निर्णय लेना होता है.
सोडियम-पोटैशियम जैसे कुछ टेस्ट बहुत सीमित रेंज में बदलते हैं, जबकि कोलेस्ट्रॉल, लिवर एंजाइम और हार्मोन रोज़ाना बदलते रहते हैं. इसलिए हर टेस्ट के परिणाम को संदर्भ में समझना ज़रूरी है, जैसे: सैंपल कब लिया गया, मरीज़ की उम्र-आदतें क्या हैं, और उसके लक्षण क्या बताते हैं.
लेख यह भी बताता है कि स्वास्थ्य मानक हर आबादी में अलग-अलग होते हैं. उदाहरण के लिए अफ्रीकी लोगों में सफेद रक्त कोशिकाएं कम होती हैं, जबकि हिमालयी क्षेत्रों के लोगों में हीमोग्लोबिन अधिक होता है. भारत के लिए कई टेस्ट के “नॉर्मल रेंज” आज भी पश्चिमी देशों से ही ली जा रही हैं, जिससे ग़लत निदान का खतरा बढ़ सकता है.
कोई भी मेडिकल रिपोर्ट अकेले नंबरों से नहीं पढ़ी जा सकती. डॉक्टर को हमेशा मरीज़ की पूरी कहानी, उसका शरीर, उसकी जीवनशैली और उसके लक्षणों को देखकर ही रिपोर्ट से मिलान करना चाहिए. क्योंकि स्वास्थ्य की सच्ची परिभाषा सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि इंसान की पूरी हालत में पोशीदा होती है.
‘होमबाउंड’ फिल्म ‘विश्वगुरु’ के दावों की हकीकत बयां करती है: बशारत पीर
नीरज घायवान द्वारा निर्देशित और बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘होमबाउंड’ (2025) के लेखक और पत्रकार बशारत पीर ने द वायर के तत्सम मुखर्जी को दिए एक साक्षात्कार में फिल्म की पृष्ठभूमि और भारत की स्थिति पर खुलकर बात की. यह फिल्म 2020 के लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के संकट पर आधारित है. पीर ने कहा कि फिल्म की शुरुआती छवि, जिसमें सैकड़ों युवा रेलवे ट्रैक पार करके सरकारी नौकरी की परीक्षा देने जा रहे हैं, आज के भारत की सबसे जरूरी तस्वीर है. उन्होंने कहा, “होमबाउंड फिल्म ‘विश्वगुरु’ के दावों के बारे में है, और यह बताती है कि हमारी कथित आर्थिक समृद्धि के बावजूद सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा में हमारा निवेश कितना कम है.”
बशारत पीर, जिन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में ‘टेकिंग अमृत होम’ शीर्षक से एक लेख लिखा था जिस पर यह फिल्म आधारित है, ने दिल्ली के मीडिया की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि दिल्ली का मीडिया अपनी सुख-सुविधाएं (जैसे मर्सिडीज कार) खोने के डर से सच बोलने से बचता है, जबकि कश्मीरी पत्रकार कहीं अधिक शत्रुतापूर्ण माहौल का सामना करते हैं. फिल्म में सेंसर बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा लगाए गए कट्स पर पीर ने कहा कि यह परेशान करने वाला था, खासकर जातिसूचक शब्दों को म्यूट करना और सरकार की आलोचना वाले 77 सेकंड के दृश्यों को हटाना. लेकिन उन्होंने कहा कि फिल्म का मूल संदेश और प्रभाव अभी भी बरकरार है.
पीर ने इस बात पर भी जोर दिया कि 1978 की फिल्म ‘गमन’ ही एकमात्र ऐसी हिंदी फिल्म है जिसे ‘होमबाउंड’ का पूर्वज माना जा सकता है, क्योंकि यह भी शहर में आने वाले प्रवासी की लाचारी को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि एक लेखक के रूप में उन्हें खुशी है कि यह कहानी फिल्म के माध्यम से व्यापक दर्शकों तक पहुंच रही है, क्योंकि अगर यह नहीं लिखी जाती, तो इतिहास का यह काला अध्याय भुला दिया जाता.
होमबाउंड नेटफ्लिक्स पर 21 नवंबर से दिखाई जा रही है.
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