22/12/2025: 97 लाख मतदाता तमिलनाडु से गायब | हड़बड़ कानून पर आकार पटेल | जाट और भूमिहारों में लामबंदी | उसके झोले में बेटे का शव था | बांग्लादेश में अराजकता | अब क्रिसमस निशाने पर | रूसी जनरल की मौत
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
तमिलनाडु मतदाता सूची विवाद: 97 लाख नाम हटाए जाने पर गहराया विवाद; डेटा विश्लेषण में सामने आई बड़ी गड़बड़ियां
भारत-अमेरिका संबंध: मोदी और ट्रंप के बीच बढ़ता अविश्वास; रणनीतिक रिश्तों में दरार की आहट
जाटों की नई रणनीति: अन्य कृषि समुदायों के साथ ‘अजगर’ गठबंधन की तैयारी
‘भूमिहार ब्राह्मण’ शब्द की मांग को लेकर संगठनों ने दी सरकार को आंदोलन की चेतावनी
एम्बुलेंस न मिलने पर मासूम का शव झोले में ले जाने को मजबूर हुआ लाचार पिता
साइबर ठगी: व्हाट्सएप लिंक के जरिए दिल्ली के बुजुर्ग से 18.80 करोड़ रुपये की ऐतिहासिक ठगी
बिना जांच-परख के जल्दबाजी में कानून पारित करने की परंपरा पर उठे गंभीर सवाल
बांग्लादेश हिंसा: शरीफ उस्मान हादी के बाद एक और छात्र नेता को सिर में मारी गोली
भारत में वीज़ा सेवाएं निलंबित; मुहम्मद यूनुस ने फरवरी में चुनाव कराने का किया वादा
हरिद्वार विवाद: हिंदू संगठनों के विरोध के बाद सरकारी होटल में क्रिसमस का कार्यक्रम रद्द
केरल तनाव: मॉब लिंचिंग और स्कूलों में क्रिसमस पर रोक के आरोपों से राज्य का राजनीतिक माहौल गरमाया
ऑनर किलिंग: कर्नाटक में दलित युवक से शादी करने पर गर्भवती युवती की पिता-भाइयों ने की हत्या
बेरोजगारी का आलम: ओडिशा में होमगार्ड की 187 नौकरियों के लिए उमड़े 8,000 शिक्षित आवेदक
बुलंदशहर गैंगरेप सर्वाइवर: आठ साल का दर्दनाक संघर्ष और जज बनकर न्याय दिलाने का अटूट जज्बा
सुप्रीम कोर्ट की फटकार: उत्तराखंड में वन भूमि पर अवैध कब्जे पर ‘मूकदर्शक’ बनी सरकार
मिर्जापुर अडानी प्लांट: भालू संरक्षण रिजर्व में थर्मल पावर प्लांट से पारिस्थितिकी तंत्र पर मंडराया खतरा
रूस-यूक्रेन युद्ध: मॉस्को में कार विस्फोट में रूसी जनरल की मौत; यूक्रेनी खुफिया एजेंसी पर शक
रूसी सेना में जबरन भर्ती हुआ गुजरात का साहिल यूक्रेन की कैद में; पीएम मोदी से लगाई गुहार
ट्रंप की नई जांच नीति के कारण भारत में फंसे सैकड़ों आईटी पेशेवर
तवांग में छठे दलाई लामा पर संगोष्ठी से भड़का चीन; बताया ‘सांस्कृतिक चोरी’
अमेरिकी टैरिफ की मार से निटवेयर हब को 3,600 करोड़ रुपये का भारी नुकसान
तमिलनाडु मतदाता सूची से 97 लाख नाम हटाए जाने पर गहराया विवाद: डेटा विश्लेषण में सामने आई बड़ी गड़बड़ियां
तमिलनाडु के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा जारी 97 लाख से अधिक हटाए गए मतदाताओं की सूची के विश्लेषण ने कई गंभीर और असामान्य विसंगतियों को उजागर किया है. द हिंदू की एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार, 19 दिसंबर को प्रकाशित ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल में से कुल 97.3 लाख नाम हटाए गए हैं. राज्य के 75,018 पोलिंग स्टेशनों के डेटा का जब बारीक विश्लेषण किया गया, तो इसमें आठ ऐसी श्रेणियां मिलीं जो सांख्यिकीय रूप से असंभव या बेहद असामान्य जान पड़ती हैं. सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा युवाओं की मृत्यु से जुड़ा है. राज्य के 14 पोलिंग स्टेशनों पर मृत्यु के पैटर्न जनसांख्यिकीय मानदंडों के विपरीत हैं. आमतौर पर मृत्यु के मामले बुजुर्गों में अधिक होते हैं, लेकिन यहाँ हटाए गए नामों में युवाओं की संख्या बहुत ज़्यादा है. उदाहरण के लिए, तिरुवल्लूर जिले के माधवरम में एक स्कूल के पोलिंग स्टेशन पर कुल 58 मौतें दर्ज की गईं, जिनमें से 49 लोग (84 प्रतिशत) 50 वर्ष से कम उम्र के थे. इसी तरह, तिरुनेलवेली के नांगुनेरी में 130 मौतों में से 73 युवा थे.
रिपोर्ट में लिंग आधारित विसंगतियों का भी उल्लेख है. 35 पोलिंग स्टेशनों पर हटाए गए नामों में 75 प्रतिशत से अधिक महिलाएं थीं. थोथुकुडी के तिरुचेंदूर में एक स्टेशन पर 110 नामों में से 95 महिलाएं थीं. इसके अलावा, नाम हटाने की दर भी कई जगह असामान्य रूप से अधिक पाई गई है. तमिलनाडु में प्रति पोलिंग स्टेशन औसत 130 नाम हटाए जाते हैं, लेकिन 8,613 स्टेशनों पर यह संख्या 260 से अधिक थी. चेन्नई के अन्ना नगर और चेपॉक जैसे इलाकों के स्टेशनों पर तो 800 से अधिक नाम हटाए गए हैं. एक और हैरान करने वाली बात यह है कि 495 पोलिंग स्टेशनों पर नाम हटाए जाने का शत-प्रतिशत कारण केवल ‘मृत्यु’ दिखाया गया है. मदुरै के तिरुमंगलम में 142 मतदाताओं के नाम हटाए गए और सभी के पीछे मौत को वजह बताया गया. ‘अनुपस्थित’ मतदाताओं की श्रेणी में भी 6,139 स्टेशनों पर भारी संख्या में नाम काटे गए हैं, जो औसत से दोगुने हैं. यह विश्लेषण मतदाता सूची की शुचिता और इसमें सुधार की प्रक्रिया पर गंभीर सवालिया निशान लगाता है.
मोदी और ट्रंप के रिश्तों में बढ़ती कड़वाहट: भारत-अमेरिका संबंधों के एक नाज़ुक दौर की आहट
निक्की एशिया की एक विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार, भारत और अमेरिका के बीच पिछले दो दशकों से चले आ रहे मज़बूत रणनीतिक संबंधों में अब दरार दिखने लगी है. शीत युद्ध के बाद भारत ने जिस तरह अमेरिका के साथ नज़दीकियां बढ़ाई थीं, वह दौर अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच बढ़ते अविश्वास के कारण खत्म होता दिख रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस अविश्वास की वजह से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन का पलड़ा भारी हो सकता है. मोदी और ट्रंप, जो कभी सार्वजनिक मंचों पर एक-दूसरे के प्रति बहुत गर्मजोशी दिखाते थे, उनके बीच कड़वाहट की एक मुख्य वजह ट्रंप का अहंकार और नोबेल शांति पुरस्कार की उनकी चाहत बताई जा रही है.
मई 2024 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम हुआ और संघर्ष विराम हुआ, तो ट्रंप ने दावा किया कि यह उनके प्रयासों का नतीजा था. रिपोर्ट के अनुसार, मोदी इस दावे से बेहद नाराज़ थे क्योंकि भारत का मानना था कि यह उसकी सैन्य शक्ति का प्रभाव था. इसके अलावा, व्यापारिक मोर्चे पर भी तनाव चरम पर है. अगस्त में ट्रंप ने भारतीय आयात पर शुल्क 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया, जिसका कारण भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद बताया गया. भारतीय विदेश नीति के विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी अब ट्रंप के साथ संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा करने को राजनीतिक जोखिम मानते हैं क्योंकि ट्रंप का व्यवहार काफी अनिश्चित है. यही कारण है कि मोदी ने हाल के महीनों में कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ट्रंप से दूरी बनाए रखी है. भारत अब अपने रणनीतिक विकल्पों में विविधता ला रहा है, जिसका संकेत हाल ही में रूसी राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा से मिलता है. भारत के भीतर भी अब एक ऐसा वर्ग मज़बूत हो रहा है जो अमेरिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है.
जाटों की नई रणनीति: सत्ता में वापसी के लिए अन्य कृषि समुदायों के साथ गठबंधन की तैयारी
द हिंदू के लिए अशोक कुमार की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर भारत की राजनीति में कभी सबसे प्रभावशाली रहे जाट समुदाय की पकड़ पिछले कुछ वर्षों में ढीली हुई है. अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत को पुनर्जीवित करने के लिए अब यह समुदाय गुर्जर, बिश्नोई और मीना जैसे अन्य कृषि प्रधान समुदायों के साथ नए गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहा है. राजस्थान के पुष्कर में आयोजित ‘राष्ट्रीय जाट शताब्दी सम्मेलन’ में इस रणनीति पर खुलकर चर्चा हुई. सम्मेलन में अखिल भारतीय जाट महासभा के महासचिव युद्धवीर सिंह ने एक कड़ा राजनीतिक संदेश देते हुए कहा कि जाट ‘राम’ के सच्चे अनुयायी हैं, न कि केवल नारे लगाने वाले.
रिपोर्ट के अनुसार, जाटों की मुख्य चिंता केंद्र सरकार और राज्यों में उनकी घटती हिस्सेदारी है. सम्मेलन में वक्ताओं ने रेखांकित किया कि आज़ादी के बाद यह पहली बार है जब केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक भी जाट नेता कैबिनेट मंत्री नहीं है. हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बनाम गैर-जाट की राजनीति ने भी इस समुदाय को काफी नुकसान पहुँचाया है. अब यह समुदाय ‘अजगर’ (अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत) जैसे पुराने सामाजिक समीकरणों को आधुनिक रूप में ज़िंदा करना चाहता है. इसके लिए जाट और गुर्जर समुदायों ने दिल्ली में साझा सम्मेलन भी किया. किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि एमएसपी, आरक्षण और अग्निपथ योजना जैसे मुद्दों ने जाटों को आर्थिक रूप से कमज़ोर किया है और अब वे अपनी पहचान और शक्ति बचाने के लिए एकजुट हो रहे हैं. वे न केवल हिंदू जाटों, बल्कि मुस्लिम और सिख जाटों को भी एक मंच पर लाने की योजना बना रहे हैं ताकि एक बड़ा राजनीतिक ब्लॉक बनाया जा सके.
बिहार में ‘भूमिहार’ बनाम ‘भूमिहार ब्राह्मण’ विवाद: सरकार के फैसले पर विरोध की तैयारी
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में ‘भूमिहार’ शब्द के स्थान पर आधिकारिक दस्तावेजों में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ शब्द का उपयोग करने की मांग ने तूल पकड़ लिया है. बिहार राज्य सवर्ण आयोग ने इस पर कोई स्पष्ट निर्णय लेने के बजाय मामला राज्य सरकार के पाले में डाल दिया है. आयोग के भीतर भी इस मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई, जिसके बाद अब प्रमुख भूमिहार संगठनों ने सरकार के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है. इन संगठनों का मुख्य तर्क यह है कि 1931 की जनगणना के रिकॉर्ड में इस समुदाय का नाम ‘भूमिहार ब्राह्मण’ ही दर्ज था और वर्तमान सरकार ने इसे बदलकर उनकी पहचान के साथ खिलवाड़ किया है.
साल 2015 से बिहार सरकार जाति प्रमाण पत्रों में केवल ‘भूमिहार’ शब्द का उपयोग कर रही है. भगवान परशुराम परिषद जैसे संगठनों ने सरकार को लिखे पत्र में कहा है कि जब ऐतिहासिक और राजस्व रिकॉर्ड में ‘भूमिहार ब्राह्मण’ नाम निर्विवाद है, तो इसे क्यों बदला गया. सवर्ण आयोग ने 2015 में ही ‘भूमिहार’ शब्द के उपयोग की सिफारिश की थी, जिसे अब समुदाय गलत बता रहा है. संगठनों का आरोप है कि यह उनके संवैधानिक अधिकारों को कम करने की एक साज़िश है. यदि सरकार जल्द ही इस विसंगति को दूर नहीं करती है, तो समुदाय कानूनी और सामाजिक स्तर पर आंदोलन को और तेज़ करेगा.
झारखंड : एम्बुलेंस न मिलने पर मासूम का शव झोले में ले जाने को मजबूर हुआ पिता
झारखंड के चाईबासा से आई एक हृदयविदारक खबर ने सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोल दी है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक आदिवासी परिवार को अपने चार महीने के मृत बच्चे का शव सब्जी ले जाने वाले प्लास्टिक के झोले में रखकर करीब 80 किलोमीटर दूर अपने घर ले जाना पड़ा. डिंबा चटोम्बा और उनकी पत्नी रॉयबारी का बच्चा चाईबासा के सदर अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ गया था. मौत के बाद परिवार ने शव को घर ले जाने के लिए मर्चुरी वैन (शव वाहन) की मांग की, लेकिन उन्हें कथित तौर पर बताया गया कि कोई भी वाहन खाली नहीं है.
परिजनों का आरोप है कि अस्पताल के कर्मचारियों ने उनसे कहा कि यदि वे शव को खुले में ले जाएंगे, तो कोई बस वाला उन्हें गाड़ी में नहीं बैठाएगा. इसके बाद कर्मचारियों ने ही 400 रुपये चंदा करके एक सब्जी वाला झोला और बस का टिकट खरीदा, बच्चे के शव को झोले में डाला और माता-पिता को विदा कर दिया. इस घटना के वीडियो वायरल होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने जांच के आदेश दिए हैं. हालांकि, प्रशासन का दावा है कि उस समय एक वाहन उपलब्ध था, लेकिन परिवार इंतज़ार किए बिना ही चला गया. सरकार ने अब भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रत्येक जिला अस्पताल के लिए नए मर्चुरी वाहन खरीदने की घोषणा की है, लेकिन इस घटना ने आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति को उजागर कर दिया है.
व्हाट्सएप के जरिये झटक लिए दिल्ली के बुज़ुर्ग से 18.80 करोड़ रुपये
दिल्ली पुलिस के साइबर सेल (IFSO) ने एक 78 वर्षीय कपड़ा व्यापारी के साथ हुई 18.80 करोड़ रुपये की ठगी का खुलासा किया है, जो दिल्ली के इतिहास की अब तक की दूसरी सबसे बड़ी साइबर ठगी है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह पूरी साजिश एक व्हाट्सएप लिंक के ज़रिए शुरू हुई. जुलाई 2024 में पीड़ित को एक अज्ञात नंबर से शेयर ट्रेडिंग ग्रुप में शामिल होने का न्योता मिला. बुज़ुर्ग को लालच दिया गया कि यदि वे आईपीओ (IPO) में निवेश करते हैं, तो उन्हें 30 प्रतिशत तक का निश्चित मुनाफा होगा.
ठगों ने एक बेहद पेशेवर दिखने वाला नकली ऐप बनवाया था, जो पीड़ित के बैंक खातों और कथित मुनाफे को डैशबोर्ड पर पारदर्शी तरीके से दिखाता था. व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य, जो वास्तव में गिरोह के ही लोग थे, लगातार अपने नकली मुनाफे के स्क्रीनशॉट साझा करते थे ताकि विश्वास जीता जा सके. पीड़ित ने धीरे-धीरे 26 अलग-अलग बैंक खातों में कुल 18.80 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए. जब उन्होंने मुनाफा निकालने की कोशिश की, तो ऐप ने उसे ब्लॉक कर दिया. पुलिस जांच में सामने आया कि यह पूरा सिंडिकेट कंबोडिया से संचालित हो रहा था और इसमें चीनी गिरोहों का हाथ था. ठगी के पैसों को मिनटों के भीतर सैकड़ों ‘म्यूल अकाउंट्स’ में फैलाकर क्रिप्टो करेंसी में बदल दिया गया. पुलिस ने अब तक 20 लोगों को गिरफ्तार किया है, जो ज़्यादातर कमीशन के लालच में अपने बैंक खाते देने वाले गरीब लोग हैं.
आकार पटेल: जल्दबाज़ी में बनाए गए क़ानून
17 दिसंबर को, वायनाड सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने लोकसभा से विकसित भारत - गारंटी फ़ॉर रोज़गार एंड अजीविका मिशन बिल, 2025, को सुझावों और बदलावों के लिए स्थायी समिति को भेजने के लिए कहा. विपक्षी सांसदों ने कहा कि बिल सदस्यों के पोर्टल पर शाम 5 बजे उपलब्ध कराया गया, और शाम 5:45 बजे तक संशोधन माँगे गए. सांसदों ने कहा कि उन्हें पहले बिल को पढ़ने और समझने के लिए कम से कम एक दिन दिया जाना चाहिए.
अनुरोधों को ठुकरा दिया गया और 18 दिसंबर को बिल ध्वनि मत से पारित कर दिया गया. मनरेगा, हमारे सबसे महत्वपूर्ण क़ानूनों में से एक, को समाप्त कर दिया गया है और हम वास्तव में नहीं जानते क्यों.
संसद, जिसमें सत्ता पक्ष भी शामिल है, के बिना बिलों को पारित करना, बिना किसी कठोर प्रक्रिया के उनमें क्या शामिल था इसकी कोई वास्तविक समझ के, मोदी युग के दौरान तेज़ हुआ है. 14वीं लोकसभा (2004-09) में, 60 फ़ीसद बिलों को जाँच के लिए समितियों को भेजा गया था. अगली लोकसभा (2009-14) में, यह संख्या 71 फ़ीसद थी. पहली मोदी सरकार में, यह गिरकर 25 फ़ीसद हो गई. दूसरी मोदी सरकार (2019-2024) में, यह गिरकर 16 फ़ीसद हो गई. इसने जानबूझकर जाँच और परीक्षण के लिए विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समितियों को बिलों को भेजने की संसदीय परंपरा को पूर्ववत कर दिया.
सूचना के अधिकार क़ानून को इसी तरह 2019 में बिना इसे समिति को भेजे बदलाव को धकेलकर कमज़ोर कर दिया गया. प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में, आरटीआई सूचकांक पर भारत की वैश्विक रैंकिंग दूसरे से आठवें और फिर नौवें स्थान पर गिर गई. 2019 में, तेलुगु देशम सांसद कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सांसदों के साथ जुड़े थे ताकि बिना जाँच के बिलों को “जल्दबाज़ी में पारित करने” पर चिंता व्यक्त की जा सके. उन्होंने लिखा कि सार्वजनिक परामर्श - जिसमें विशेष विषयों से जुड़े समूहों और व्यक्तियों को विधायकों द्वारा संभावित क़ानून पर अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया जाता है - भी बंद हो गया था.
“सार्वजनिक परामर्श एक लंबे समय से स्थापित अभ्यास है जहाँ संसदीय समितियाँ बिलों की जाँच करती हैं, विचार-विमर्श करती हैं, संलग्न होती हैं और क़ानून की सामग्री और गुणवत्ता में सुधार की दिशा में काम करती हैं,” उन्होंने लिखा. इसका मोदी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, और 2020 में, एक भी बिल जाँच के लिए समिति को नहीं भेजा गया.
अब यह लिखने का क्या बिंदु है? यह है कि सरकार को यह सीखना चाहिए कि अक्सर यह जल्दबाज़ी और अहंकार ऐसे परिणाम उत्पन्न करता है जो अवांछित हैं.
20 सितंबर 2020 को, अध्यादेश जो लोकसभा को पार कर चुके थे उन्हें राज्यसभा में “ध्वनि मत” पर धकेल दिया गया न कि विभाजन मत पर, जिसका मतलब है एक वास्तविक मत जहाँ “हाँ” और “नहीं” गिने जाते हैं.
तब दिया गया बहाना यह था कि नियंत्रण में व्यक्ति, उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, सदन में अव्यवस्था से विचलित थे और उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि विभाजन मत की माँग की गई थी. राज्यसभा टेलीविज़न ने अपना सीधा प्रसारण बंद कर दिया जबकि यह हो रहा था और सांसदों के माइक्रोफ़ोन बंद कर दिए गए. (बीजेपी ने संकेत लिया और कहीं और भी उसी पैटर्न का पालन किया. कर्नाटक विधान परिषद में, जहाँ इसके पास बहुमत की कमी थी, बीजेपी ने अपने गौ-हत्या विरोधी बिल को ध्वनि मत के माध्यम से पारित किया, विभाजन मत की माँग को अनदेखा करते हुए.)
इस तरीक़े से जन्म दिए गए दो क़ानून थे किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, और किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता अधिनियम, 2020.
पाठकों को याद दिलाने के लिए: पहले क़ानून ने सरकार द्वारा संचालित कृषि बाज़ारों, या मंडियों के एकाधिकार को हटा दिया, और इनके बाहर उपज की बिक्री की अनुमति दी. इसने इन नए स्थानों पर कर लगाने को भी मना किया. इसका मतलब था कि, समय के साथ, मंडियाँ, जिन पर कर लगाया जाता है, निरर्थक हो जातीं.
यह उन राज्यों में किसानों के हितों को नुक़सान पहुँचाता जहाँ मंडियाँ कुशलतापूर्वक चलाई जाती थीं और किसानों की संतुष्टि के लिए ख़रीद होती थी. दूसरे क़ानून ने अनुबंध खेती को संभव बनाया. हालांकि, क़ानून ने कहा कि पीड़ित किसान अदालत नहीं जा सकते यदि ख़रीदार चूक जाता है - वे केवल समाधान के लिए राज्य नौकरशाही से संपर्क कर सकते थे. तीसरे क़ानून ने आवश्यक वस्तुओं की जमाख़ोरी पर प्रतिबंध को पूर्ववत कर दिया, निगमों को उतना अनाज स्टॉक करने की अनुमति दी जितना वे चाहते थे.
मोदी सरकार ने कहा कि जब उसने ये क़ानून लिखे तो उसके दिमाग़ में किसानों के हित थे. कहा गया कि इरादा किसानों की आय को दोगुना करना था, जो वर्षों से ठहरी हुई थी. लेकिन यदि ऐसा था, तो यह अस्पष्ट था कि क़ानूनों में ऐसे प्रावधान क्यों थे जो जानबूझकर किसानों के हित के ख़िलाफ़ जाते प्रतीत होते थे.
जिस तरीक़े से उन्हें पारित किया गया उसके अलावा, क़ानून संविधान का उल्लंघन करते भी प्रतीत होते थे, जिसके तहत कृषि एक राज्य विषय है. विषय पर क़ानून बनाना राज्यों के लिए है न कि केंद्र के लिए. यहाँ, दिया गया बहाना यह था कि ये क़ानून वास्तव में व्यापार को नियंत्रित करते हैं न कि कृषि को खुद.
बिलों पर एक हफ़्ते बाद राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए गए और वे क़ानून बन गए, एक विरोध को ट्रिगर करते हुए जो एक जन आंदोलन बन गया. मनरेगा की तरह, ये ऐसे क़ानून थे जो करोड़ों भारतीयों के जीवन को गहराई से प्रभावित करते. सरकार ने यह नहीं माना कि इन भारतीयों से प्रतिक्रिया क्या होगी. यह पहले तो आश्चर्यचकित और चकित थी कि कोई पुशबैक था भी.
जब यह स्पष्ट हो गया कि यह वास्तव में क़ानूनों को लागू नहीं करवा सकती, तो प्रधानमंत्री ने पूरे एक साल तक परिणाम को नज़रअंदाज़ किया. अंततः, उन्होंने माफ़ी माँगी और पीछे हट गए. लेकिन पहले स्थान पर इस स्थिति में क्यों पहुँचें? इस स्तर की लापरवाही और अहंकार के साथ करोड़ों लोगों के जीवन के साथ गड़बड़ क्यों करें?
लेखक के लिए और वास्तव में पाठक के लिए कहना कठिन है. किसी को विश्वास करना होगा कि उन्हें ऐसे क़दमों पर विचार करने के लिए असीमित शक्ति और अधिकार उपहार में दिया गया है - और इस देश में केवल एक व्यक्ति इस तरह से सोचता है.
हादी के बाद, बांग्लादेश में एक और छात्र नेता को सिर में गोली मारी, कुछ ही दिनों में दूसरा बड़ा हमला
युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के कुछ ही दिनों बाद अज्ञात बंदूकधारियों ने सोमवार को बांग्लादेश के हिंसक छात्र आंदोलन (2024) के एक और प्रमुख नेता मोतलेब शिकदर के सिर में गोली मार दी. यह हमला दक्षिण-पश्चिमी शहर खुलना में हुआ.
‘पीटीआई’ के अनुसार, एनजीपी (नेशनल सिटीजन पार्टी) की संयुक्त प्रधान समन्वयक महमुदा मितु ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया, “एनसीपी के खुलना संभाग के प्रमुख और पार्टी के वर्कर्स फ्रंट के केंद्रीय समन्वयक, मोतलेब शिकदर को अत्यंत गंभीर हालत में खुलना मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया. स्थानीय समाचार पत्र ‘कालेर कांठा’ के अनुसार, शिकदर को सिर के बाईं ओर गोली लगी और अस्पताल लाते समय काफी खून बह गया.
यह हमला शरीफ उस्मान हादी की हत्या के ठीक बाद हुआ है. हादी पिछले साल हुए उन छात्र प्रदर्शनों के प्रमुख चेहरा थे, जिसके कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग सरकार को सत्ता छोड़नी पड़ी थी. हादी को 12 दिसंबर को ढाका के बिजयनगर इलाके में एक चुनावी अभियान के दौरान नकाबपोश बंदूकधारियों ने सिर में गोली मारी थी.
बांग्लादेश ने वीज़ा सेवाएं निलंबित कीं; यूनुस बोले- चुनाव समय पर होंगे
इस बीच, नई दिल्ली स्थित बांग्लादेश उच्चायोग ने “अपरिहार्य परिस्थितियों” का हवाला देते हुए सोमवार को अपनी कांसुलर और वीज़ा सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया. वहीं, बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने अमेरिकी प्रतिनिधि सर्जियो गोर (जो भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में कार्यरत हैं) से कहा कि देश 12 फरवरी को समय पर चुनाव कराने के लिए तैयार है. यूनुस ने कहा, “राष्ट्र अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है, जिसे निरंकुश शासन द्वारा चुरा लिया गया था.”
इस बीच, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने के लिए मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा, “यह दुखद हत्या उस अराजकता को दर्शाती है जिसने मेरी सरकार को उखाड़ फेंका था और अब यूनुस के शासन में यह कई गुना बढ़ गई है. हिंसा अब एक आम बात बन गई है, जबकि अंतरिम सरकार या तो इससे इनकार कर रही है या इसे रोकने में पूरी तरह असमर्थ है.”
अल्पसंख्यकों का ढाका में विरोध प्रदर्शन
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समूहों ने सोमवार को ढाका में विरोध प्रदर्शन किया और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को रोकने में विफल रहने के लिए अंतरिम सरकार की आलोचना की. यह प्रदर्शन ऐसे समय में हुआ जब अधिकारियों ने एक हिंदू व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या, मीडिया कार्यालयों पर हमलों और भारतीय राजनयिक मिशन के पास हिंसक विरोध प्रदर्शनों से जुड़े 21 संदिग्धों की गिरफ्तारी की घोषणा की.
‘एजेंसी’ के अनुसार, मैमनसिंह शहर में एक गारमेंट फैक्ट्री कर्मचारी, दीपू चंद्र दास को गुरुवार को भीड़ ने कार्यस्थल से खींचकर पीट-पीटकर मार डाला और बाद में उसके शरीर को आग लगा दी. इस घटना के बाद भारत ने भी गहरी चिंता व्यक्त की थी.
‘माइनॉरिटी यूनिटी फ्रंट’ के संयुक्त समन्वयक मणींद्र कुमार नाथ ने ढाका में विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा, “मुहम्मद यूनुस मानवीय बांग्लादेश बनाने का दावा करते हैं, लेकिन वास्तविकता में वह एक अमानवीय मुख्य सलाहकार हैं.” ब्रिटिश पत्रकार डेविड बर्गमैन ने इन घटनाओं के लिए दक्षिणपंथी और चरमपंथी इस्लामी समूहों की “कट्टर और अधूरी जानकारी वाली मानसिकता” को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने लिखा कि ये समूह उन्हें अपना दुश्मन मानते हैं, जो उनकी तरह भारत या अवामी लीग से नफरत नहीं करते. उन्होंने चेतावनी दी कि यह मानसिकता स्वतंत्र प्रेस और देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए बड़ा खतरा है.
हरिद्वार: आरएसएस और हिंदू संगठनों के विरोध के बाद सरकारी होटल में क्रिसमस कार्यक्रम रद्द
हमारा संविधान, भले ही सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक आचरण की इजाजत देता हो, मगर अब हिंदू संगठनों के दबाव में अल्पसंख्यकों के त्योहारों से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम या समारोह आयोजित करना मुश्किल होता जा रहा है. ताज़ा खबर हरिद्वार से है, जहां गंगा किनारे उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संचालित होटल में आयोजित क्रिसमस कार्यक्रम को हिंदू संगठनों की आपत्तियों के बाद रद्द कर दिया गया है.
होटल के मालिक नीरज गुप्ता ने कहा कि क्रिसमस के अवसर पर 24 दिसंबर को होटल भागीरथी में बच्चों के लिए कई गतिविधियां निर्धारित थीं, लेकिन अब वे आयोजित नहीं की जाएंगी. सोशल मीडिया पर होटल में क्रिसमस कार्यक्रम की जानकारी फैलने के बाद हिंदू संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख पदम जी ने ‘पीटीआई’ से कहा कि चाहे वह उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग हो या कोई अन्य संगठन, सभी को हरिद्वार की ‘धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं और गरिमा’ का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा, “हरिद्वार गंगा की नगरी है, देवताओं की भूमि है. यहां सदियों से हिंदू संस्कृति के अनुरूप परंपराओं का पालन किया जाता रहा है, और किसी को भी उनमें बाधा डालने का अधिकार नहीं है.”
श्री गंगा सभा के पदाधिकारी उज्ज्वल पंडित ने सोशल मीडिया पर चेतावनी दी कि गंगा के तट पर क्रिसमस का जश्न बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा, “विदेशी संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम गंगा किनारे सहन नहीं किए जाएंगे. यह कार्यक्रम हरिद्वार की धार्मिक पवित्रता और गंगा की गरिमा का अपमान है.”
होटल के मालिक नीरज गुप्ता ने स्पष्ट किया कि होटल में ऐसा कोई भी आयोजन नहीं किया जा रहा था जो हरिद्वार की गरिमा या हिंदू संस्कृति के खिलाफ हो. गुप्ता ने कहा, “हमने होटल के रिसेप्शन पर एक क्रिसमस ट्री जरूर सजाया था, और योजना केवल बच्चों के लिए खेल आयोजित करने की थी.” बहरहाल, हिंदू संगठनों के विरोध के चलते बच्चों के लिए तय कार्यक्रमों को रद्द कर दिया गया है. अब होटल की ओर से केवल गंगा तट पर भव्य आरती का आयोजन किया जाएगा.
केरल: मॉब लिंचिंग और स्कूलों में क्रिसमस पर रोक के आरोपों से गरमाया राजनीतिक माहौल
केरल में सांप्रदायिक और राजनीतिक तनाव की दो प्रमुख घटनाएं सामने आई हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पलक्कड़ में छत्तीसगढ़ के एक 31 वर्षीय प्रवासी मज़दूर रामनारायण बघेल की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. आरोप है कि हमलावरों ने उसे ‘बांग्लादेशी’ होने के संदेह में निशाना बनाया. राज्य के मंत्री एमबी राजेश ने इस घटना के लिए संघ परिवार की ‘नफरत की राजनीति’ को ज़िम्मेदार ठहराया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई है कि बघेल की मौत अंदरूनी चोटों के कारण अधिक खून बहने से हुई. सरकार ने पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का वादा किया है.
दूसरी ओर, द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने आरोप लगाया है कि राज्य के कुछ स्कूलों ने दक्षिणपंथी समूहों के दबाव में आकर क्रिसमस समारोहों को रद्द कर दिया. मंत्री ने कहा कि उन्हें ऐसी शिकायतें मिली हैं कि स्कूल प्रबंधन ने छात्रों से इकट्ठा किए गए पैसे वापस कर दिए क्योंकि उन्हें आरएसएस से जुड़े समूहों द्वारा धमकाया गया था. उन्होंने इसे केरल की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति पर हमला बताया. यह विवाद तब और बढ़ गया जब डाक विभाग के एक कार्यक्रम में आरएसएस का ‘गणगीत’ गाने के दबाव के कारण क्रिसमस और नए साल का जश्न रद्द कर दिया गया था. सरकार ने इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं.
यहाँ ‘हरकारा’ न्यूज़लेटर के लिए इस बातचीत पर आधारित एक विस्तृत न्यूज़ स्टोरी दी गई है:
ऑस्ट्रेलिया का ‘डिजिटल लॉकडाउन’: क्या बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना मुमकिन है?
ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐतिहासिक और साहसी कदम उठाते हुए 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया (Facebook, Instagram, TikTok, X) पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है. ‘हरकारा डीप डाइव’ के ताज़ा अंक में निधीश त्यागी ने ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली डॉक्टर और पत्रकार कृति गर्ग से इस फैसले के सामाजिक, मानसिक और व्यावहारिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की.
बातचीत में 2022 के एक बड़े मेटा-एनालिसिस का हवाला दिया गया, जिसके अनुसार किशोरों में सोशल मीडिया पर बिताया गया हर एक अतिरिक्त घंटा डिप्रेशन और एंग्जायटी के जोखिम को 13% तक बढ़ा देता है. कृति गर्ग, जो पेशे से एक ओरल सर्जन हैं, बताती हैं कि उनके क्लिनिक में आने वाले किशोरों में एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं का बढ़ता चलन इस संकट की भयावहता का सबूत है.
कोविड-19 के दौरान दुनिया के सबसे लंबे लॉकडाउन झेलने वाले मेलबर्न जैसे शहरों में बच्चों का स्क्रीन टाइम बेतहाशा बढ़ गया. इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चों में आम बातचीत के कौशल (Conversation Skills) कम हो गए, अकेलापन बढ़ा और वे सोशल मीडिया के ‘चंगुल’ में फंस गए. ऑस्ट्रेलिया सरकार ने इसे ‘नी-जर्क रिएक्शन’ (हड़बड़ाहट में लिया गया फैसला) के बजाय एक ‘इमीडिएट सेफगार्ड’ या ‘डिजिटल लॉकडाउन’ की तरह पेश किया है, ताकि बच्चों की मानसिक सेहत को और अधिक नुकसान से बचाया जा सके.
जहाँ कई अभिभावक इस फैसले से खुश हैं क्योंकि अब उन्हें बच्चों को ‘ना’ कहने के लिए सरकार का सहारा मिल गया है, वहीं एक तबका चिंतित भी है. ‘न्यूरोडायवर्जेंट’ (Neurodivergent) और ‘LGBTQ+’ समुदायों के बच्चों के लिए सोशल मीडिया अक्सर एक ‘सेफ स्पेस’ होता है, जहाँ वे बिना डरे अपनी पहचान के साथ जुड़ सकते हैं. इस बैन से उनके ये सुरक्षित ऑनलाइन समुदाय छिन सकते हैं. साथ ही, उन ‘किड-प्रेन्योर्स’ (यू ट्यूबर्स) के लिए भी यह झटका है जो अपने टैलेंट से कमाई कर रहे हैं.
इस कानून को लागू करना सबसे बड़ी चुनौती है. 2025 के अंत तक टेक कंपनियों को पुख्ता इंतजाम करने के निर्देश दिए गए हैं. हालांकि, बच्चे एआई (AI) का उपयोग करके अपनी उम्र छिपाने या फेक अकाउंट बनाने के रास्ते ढूंढ रहे हैं. कृति के अनुसार, “यह लड़ाई डिजिटल नेटिव्स (बच्चे) और डिजिटल कन्वर्ट्स (कानून बनाने वाले) के बीच है.” टेक कंपनियों को अब फेशियल रिकॉग्निशन और एल्गोरिदम के जरिए पहचान सुनिश्चित करनी होगी, वरना उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा.
बातचीत में सोशल मीडिया की लत की तुलना सिगरेट और शराब से की गई. जैसे शराब और सिगरेट के विज्ञापनों और पैकिंग पर सख्त चेतावनी होती है, वैसे ही सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही तय करने का यह सही समय है. मुनाफे के लिए हेट, हिंसा और असुरक्षा (Insecurity) फैलाने वाले एल्गोरिदम पर लगाम कसना ज़रूरी है.
भारत, जहाँ दुनिया के सबसे ज़्यादा सोशल मीडिया यूज़र्स हैं, वहाँ के लिए यह एक बड़ी चेतावनी है. भारत में रूरल और अर्बन के बीच डिजिटल डिवाइड बहुत बड़ा है और यहाँ रेगुलेशन लागू करना कहीं अधिक जटिल है. कृति का मानना है कि भारत में जब तक सरकार कदम उठाएगी, तब तक माता-पिता को ही ‘अवेयर’ होकर इसे रेगुलेट करना होगा.
ऑस्ट्रेलिया का यह फैसला दुनिया के लिए एक ‘टेस्टिंग ग्राउंड’ है. यह बैन केवल एक पाबंदी नहीं, बल्कि समाज को वापस ‘किताबों’, ‘मोहल्लेदारियों’ और ‘सच्चे संवाद’ की ओर मोड़ने की एक कोशिश है.
दलित युवक से शादी करने पर गर्भवती युवती की ‘ऑनर किलिंग’
कर्नाटक के हुबली तालुक के इनाम वीरापुरा गाँव में 19 वर्षीय एक गर्भवती महिला की उसके परिवार द्वारा कथित तौर पर “ऑनर किलिंग” कर दी गई, क्योंकि महिला ने दलित व्यक्ति से शादी की थी.
मृतक महिला की पहचान मान्या के रूप में हुई है, जो हमले के समय छह से सात महीने की गर्भवती थी. मान्या ने इसी साल मई में अपने ही गाँव के एक दलित युवक विवेकानंद से अंतर्जातीय विवाह किया था. मान्या का परिवार लिंगायत समुदाय से है और वे इस शादी के सख्त खिलाफ थे. “मकतूब मीडिया” की रिपोर्ट है कि रिश्तेदारों से मिली धमकियों के बाद यह जोड़ा हावेरी में एक रिश्तेदार के घर रह रहा था. वे 8 दिसंबर को ही वापस गाँव लौटे थे. पुलिस ने बताया कि शादी के तुरंत बाद मान्या के माता-पिता को बुलाकर उन्हें जोड़े से दूर रहने की चेतावनी दी गई थी. उसके पिता प्रकाश गौड़ा पाटिल से लिखित आश्वासन भी लिया गया था. इसके बावजूद, रविवार रात प्रकाशगौड़ा अपने बेटों—ईरानगौड़ा और अरुणगौड़ा—के साथ विवेकानंद के घर में घुसा और मान्या, उसके पति और ससुराल वालों पर लोहे की छड़ों, पाइपों और कुल्हाड़ी से हमला किया. पुलिस ने मृतका के पिता सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.
बेरोजगारी: होमगार्ड की 187 नौकरियों के लिए 8,000 आवेदक, हवाई पट्टी को बनाना पड़ा परीक्षा केंद्र
बेरोजगारी का ये आलम है कि ओडिशा के संबलपुर में होम गार्ड के 187 रिक्त पदों के लिए न्यूनतम योग्यता केवल कक्षा 5वीं पास अनिवार्य थी, लेकिन भर्ती अभियान में 8,000 से अधिक आवेदक उमड़ पड़े, जिनमें कई स्नातक और स्नातकोत्तर शामिल थे. 16 दिसंबर को उम्मीदवारों की भारी संख्या को देखते हुए संबलपुर पुलिस को जमादारपाली एयरस्ट्रिप को परीक्षा केंद्र में बदलना पड़ा. इस भीड़ को संभालने के लिए लगभग 150 पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए ड्रोन से निगरानी रखी गई. इस अनोखे परीक्षा केंद्र का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.
“डीसी वेब डेस्क” के अनुसार, आवेदनों की यह बड़ी संख्या बेरोजगारी की समस्या को उजागर करती है. पुलिस उपाधीक्षक (होम गार्ड) बिल्किस नेशा ने बताया कि शुरुआत में 10,600 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे; कम योग्यता या कम उम्र वाले आवेदनों को खारिज करने के बाद, 8,000 से अधिक उम्मीदवार परीक्षा में शामिल हुए. ऐसी ही भीड़ राउरकेला जैसे जिलों में भी देखी गई.
बुलंदशहर हाईवे गैंगरेप: ‘ट्रॉमा कभी खत्म नहीं होता, पर मैं टूटूंगी नहीं’ - सर्वाइवर की प्रेरक कहानी
2016 के बुलंदशहर हाईवे गैंगरेप कांड की एक पीड़िता ने, जो अब 23 साल की हो चुकी है, अपने आठ साल के लंबे और दर्दनाक संघर्ष की कहानी साझा की है. टाइम्स ऑफ इंडिया के राहुल सिंह को दिए इंटरव्यू में उसने बताया कि कोर्ट द्वारा पांच आरोपियों को दोषी ठहराए जाने से उसे न्याय की उम्मीद जगी है, लेकिन समाज की बेरुखी ने उसे ज़्यादा जख्म दिए हैं. घटना के समय वह महज़ 14 साल की थी. उसने बताया कि पिछले आठ सालों में पहचान छुपाने और पड़ोसियों के ताने से बचने के लिए उसके परिवार को पांच बार घर और शहर बदलना पड़ा.
पीड़िता अब कानून की पढ़ाई कर रही है और उसका सपना एक दिन जज बनने का है ताकि वह अन्य बलात्कार पीड़िताओं को न्याय दिला सके. उसने भावुक होते हुए कहा, “उन दरिंदों ने सिर्फ हमारे शरीर को नहीं छुआ, बल्कि हमारी शांति और भविष्य को भी तबाह कर दिया. रातें आज भी डरावनी होती हैं.” इस घटना का परिवार पर आर्थिक रूप से भी बुरा असर पड़ा. पीड़िता के पिता, जो कभी तीन टैक्सियों के मालिक थे, अब सामाजिक बदनामी और बार-बार पलायन के कारण दूसरों की गाड़ी चलाने को मजबूर हैं और बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर रहे हैं. इसके बावजूद, पीड़िता का कहना है कि वह टूटेगी नहीं और इंसाफ की इस जंग को उसके अंजाम तक पहुँचाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को फटकारा, बोला- सब ‘मूकदर्शक’ बने बैठे हैं, वन भूमि पर कब्जे की जांच के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वन भूमि पर अवैध कब्जे को लेकर उत्तराखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार और उसके अधिकारी “मूकदर्शक” बनकर बैठे हैं. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया है.
“पीटीआई” के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की अवकाशकालीन पीठ ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को एक जाँच समिति बनाने और रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया.
कोर्ट ने कहा, “हमारे लिए यह चौंकाने वाला है कि जब उनकी आँखों के सामने वन भूमि पर कब्जा किया जा रहा है, तब उत्तराखंड राज्य और उसके अधिकारी मूकदर्शक बने बैठे हैं. इसलिए हम स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला शुरू कर रहे हैं.”
“उत्तराखंड के मुख्य सचिव और प्रमुख संरक्षण सचिव को एक तथ्य-अन्वेषण समिति बनाने और रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया जाता है। निजी पक्षों को किसी भी प्रकार का ‘थर्ड पार्टी राइट’ (तीसरे पक्ष का अधिकार) बनाने से रोक दिया गया है और वहाँ कोई निर्माण कार्य नहीं होगा.”
शीर्ष अदालत ने कहा कि आवासीय घरों के अलावा जो भी खाली जमीन है, उसे वन विभाग अपने कब्जे में ले ले. अदालत ने छुट्टियों के बाद दोबारा खुलने पर इस मामले को सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. सुप्रीम कोर्ट अनीता कंडवाल द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो उत्तराखंड में वन भूमि के एक बड़े हिस्से पर अवैध कब्जे से संबंधित है.
मिर्ज़ापुर में भी अडानी की एंट्री: ‘भालू के घर’ पर कोयला संयंत्र का खतरा; सुप्रीम कोर्ट में मामला अब भी लंबित
उत्तरप्रदेश के मिर्ज़ापुर में प्रस्तावित भालू (स्लॉथ बेयर) संरक्षण रिजर्व के भीतर कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट का काम आगे बढ़ रहा है, जबकि इसके खिलाफ कानूनी चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होना अभी बाकी है. श्रीरूपा दत्ता की रिपोर्ट है कि 1,600 मेगावाट के इस पावर प्लांट के निर्माण से जुड़ी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं, जिसमें थर्मल पावर प्लांट की चारदीवारी के पीछे अस्थायी स्टाफ क्वार्टर भी बनने लगे हैं. पिछले लगभग एक दशक से वन अधिकारी और वन्यजीव शोधकर्ता यह तर्क दे रहे हैं कि मिर्ज़ापुर के शुष्क पर्णपाती वन संरक्षण रिजर्व के हकदार हैं, जहां भालू (स्लॉथ बेयर) मुख्य प्रजाति है.
विंध्यन इकोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री फाउंडेशन के संस्थापक देबादित्यो सिन्हा ने ‘द टेलीग्राफ ऑनलाइन’ को बताया, “भारत स्लॉथ बेयर का मुख्य निवास स्थान है; बांग्लादेश में वे पहले ही विलुप्त हो चुके हैं. वे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची-1 की प्रजाति हैं, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने महीनों से इस मामले को सूचीबद्ध नहीं किया है. याचिकाएं लंबित हैं, निर्माण कार्य आगे बढ़ रहा है.”
अनुसूची-1 के जीव क्या हैं? भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत, अनुसूची-1 में लुप्तप्राय प्रजातियों को रखा जाता है जिन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त होती है. इनका शिकार या इन्हें नुकसान पहुंचाना सख्त वर्जित है.
मिर्ज़ापुर के जंगलों में भालू पीढ़ियों से मानवीय बस्तियों के साथ रह रहे हैं. सिन्हा ने बताया, यहां के लोग भालुओं के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं हैं. यहां एक सांस्कृतिक स्मृति है—रामायण के जाम्बवंत. भालुओं को वनवासी के रूप में देखा जाता है जो ज्यादातर अपने काम से काम रखते हैं.”
प्रस्तावित रिजर्व मड़िहान, सुकृत और चुनार वन क्षेत्रों में फैला होगा, जो आसपास के संरक्षित क्षेत्रों के लिए एक कॉरिडोर (गलियारा) का काम करता है. 2019 के कैमरा ट्रैप सर्वे में यहां न केवल भालू, बल्कि पहली बार उत्तरप्रदेश में ‘एशियाई जंगली बिल्ली’ भी देखी गई थी.
यह विवाद तब शुरू हुआ जब वेल्सपन एनर्जी ने 1,320 मेगावाट के प्रोजेक्ट का प्रस्ताव रखा. 2016 में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इसकी पर्यावरणीय मंजूरी को “दागी” बताते हुए रद्द कर दिया था, क्योंकि महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई गई थी.
बाद में, अडानी पावर लिमिटेड की सहायक कंपनी ‘मिर्ज़ापुर थर्मल एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड’ ने इसे अधिग्रहित कर लिया और इसे बढ़ाकर 1,600 मेगावाट का कर दिया गया. पर्यावरणविदों का तर्क है कि इतने बड़े प्लांट के लिए पाइपलाइन, रेलवे लाइन और बिजली के तारों के जाल से जंगल कट जाएंगे, जो वन्यजीवों के लिए विनाशकारी होगा.
सिन्हा ने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) ढांचे को इसलिए बनाया गया है, ताकि मंजूरी देने से पहले विकल्पों का आकलन किया जा सके, सामाजिक और पारिस्थितिक लागत का मूल्यांकन हो सके और जनसुनवाई सुनिश्चित की जा सके. उन्होंने कहा, “इसे एक सुरक्षा कवच के रूप में बनाया गया है. विकास, पारिस्थितिक अखंडता की कीमत पर नहीं हो सकता.”
उन्होंने तर्क दिया कि ‘पोस्ट-फैक्टो’ (कार्य होने के बाद) मंजूरी देना इस सिद्धांत का उल्लंघन है. यह एक ऐसी मिसाल कायम करता है, जहां परियोजनाएं पहले काम शुरू कर देती हैं और कानूनी सुरक्षा बाद में तलाशती हैं.
सिन्हा ने कहा, “कई पारिस्थितिक नुकसानों की भरपाई नहीं की जा सकती. यदि आप एक जंगल को नष्ट करते हैं या किसी आवास (हैबिटेट) को खंडित करते हैं, तो आप उन प्रणालियों को मिटा देते हैं जिन्हें विकसित होने में सदियां लगी थीं. कोई भी प्रतिपूरक वनीकरण कभी भी उस जटिलता को दोबारा पैदा नहीं कर सकता.
हालांकि, कंपनी ने इन आरोपों का खंडन कर कहा कि जमीन पर उसका कानूनी कब्जा है और उसे घेराबंदी करने का अधिकार है. उसने यह भी स्पष्ट किया कि पावर प्लांट का निर्माण शुरू नहीं हुआ है और केवल वेल्सपन द्वारा बनाई गई पुरानी चारदीवारी की मरम्मत का काम किया गया था. इससे पहले प्रोजेक्ट मैनेजर दिनेश सिंह ने उन दावों को खारिज कर दिया था कि प्लांट ने वन भूमि पर अतिक्रमण किया है. उन्होंने इस जगह को बंजर और पथरीला बताया, जहां कोई नदी या सिंचाई की क्षमता नहीं है, और वन्यजीवों से जुड़ी चिंताओं को भी खारिज कर दिया. उन्होंने एक साक्षात्कार में पूछा था, “यहां कौन से जानवर रहते हैं? क्या चूहों को भी वन्यजीव माना जाता है?”
इस बीच, कानूनी लड़ाई और जटिल हो गई है. 23 सितंबर, 2025 को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने परियोजना को नई पर्यावरणीय मंजूरी दे दी. इस मंजूरी में बफर जोन में ‘अनुसूची-1’ के वन्यजीवों की मौजूदगी को स्वीकार किया गया और कहा गया कि एक ‘वन्यजीव संरक्षण योजना’ तैयार कर राज्य वन विभाग को मंजूरी के लिए भेजी गई है.
सिन्हा ने कहा, “सभी पक्षों को 17 सितंबर तक जवाब देने के लिए कहा गया था, लेकिन अब तक केवल मंत्रालय ने जवाब दाखिल किया है, जिसमें कहा गया है कि उसने पहले ही मंजूरी दे दी है. हमने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान जारी उल्लंघनों की ओर खींचने के लिए ताज़ा तस्वीरों के साथ एक नया स्थगन आवेदन दायर किया है.”
11 नवंबर के लिए निर्धारित सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई टाल दी गई है और नई तारीख की घोषणा नहीं हुई है. सिन्हा के अनुसार, यह देरी अस्तित्व के लिए खतरा है. भालुओं को बाघों की तरह बहुत बड़े क्षेत्र की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन उन्हें जंगल के ऐसे शांत हिस्सों की जरूरत होती है, जहां वे भोजन तलाश सकें, मांद बना सकें और सुरक्षित घूम सकें. सिन्हा ने 2016 के एनजीटी के आदेश का हवाला देते हुए कहा, “इस परियोजना को एक बार अव्यवहारिक पाया गया था. मिर्ज़ापुर के अंतिम बचे प्राकृतिक क्षेत्रों में से एक की कीमत पर इस अधकचरी परियोजना को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है. इसके लिए कोई वैकल्पिक स्थान क्यों आवंटित नहीं किया जा सकता?”
मॉस्को में कार विस्फोट में रूसी जनरल की मौत; एक साल में तीसरी ऐसी घटना
सोमवार सुबह मॉस्को में हुए एक कार बम विस्फोट में रूसी जनरल की मौत हो गई. बम जनरल की कार के नीचे ही लगाया गया था. जांचकर्ताओं का कहना है कि इस हमले के पीछे यूक्रेन का हाथ हो सकता है. एक साल के भीतर किसी वरिष्ठ सैन्य अधिकारी की हत्या का यह तीसरा मामला है.
“एपी” के मुताबिक, रूसी सशस्त्र बल के जनरल स्टाफ के परिचालन प्रशिक्षण निदेशालय के प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल फानिल सरवरोव की मौत चोटों के कारण हुई. रूस की शीर्ष आपराधिक जांच एजेंसी की प्रवक्ता स्वेतलाना पेट्रेंको ने कहा, “जांचकर्ता इस हत्या के संबंध में कई पहलुओं पर गौर कर रहे हैं. इनमें से एक यह है कि इस अपराध की साजिश यूक्रेनी खुफिया सेवाओं द्वारा रची गई थी.”
‘घर वापस आना चाहता हूं’ : रूस की ओर से लड़ने वाला साहिल यूक्रेन की हिरासत में, मोदी से मांगी मदद
गुजरात के मोरबी जिले के रहने वाले एक 23 वर्षीय युवक, जो कथित तौर पर रूस की ओर से लड़ने के आरोप में वर्तमान में यूक्रेन की हिरासत में है, ने भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी रिहाई के लिए मदद की अपील की है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, अपने परिवार को भेजे गए वीडियो संदेशों में, उसने रूस जाने की योजना बना रहे भारतीय नागरिकों को धोखाधड़ी और घोटालों से सावधान रहने की चेतावनी भी दी है.मोरबी निवासी साहिल मोहम्मद हुसैन मजोठी पहली बार अक्टूबर में तब चर्चा में आए थे, जब यूक्रेनी अधिकारियों ने उनका एक वीडियो जारी किया था जिसमें वे यूक्रेनी सेना के सामने आत्मसमर्पण करते दिख रहे थे.
मजोठी 10 जनवरी, 2024 को आईटीएमओ यूनिवर्सिटी में रूसी भाषा और संस्कृति का कोर्स करने के लिए छात्र वीज़ा पर सेंट पीटर्सबर्ग गए थे. बाद में वे कानूनी पचड़ों में फंस गए, उन्हें रूस में जेल हुई और कथित तौर पर यूक्रेनी सेना द्वारा पकड़े जाने से पहले उन्हें रूसी सेना में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया.
रविवार रात परिवार को मिले दो वीडियो संदेशों में मजोठी ने अपनी स्थिति को अत्यंत चिंताजनक बताया है. वीडियो में मजोठी का बयान है, “अभी मैं यूक्रेन में युद्ध अपराधी के रूप में फंसा हुआ हूं. मैं निराश हूं और नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा.”
साहिल ने दावा किया कि “उन्होंने रूसी जेल की सजा से बचने के लिए युद्ध लड़ने के अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर हस्ताक्षर किए थे. मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी.”
ट्रम्प की नई नीति के कारण भारत में फंसे कई एच-1बी वीज़ा धारक, इंटरव्यू रद्द
“वाशिंगटन पोस्ट” की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस महीने अपने अमेरिकी वर्क परमिट (कामकाजी परमिट) को रिन्यू कराने भारत आए कई भारतीय एच-1बी वीज़ा धारक अधर में लटक गए हैं. अमेरिकी दूतावासों द्वारा उनके वीज़ा इंटरव्यू अचानक पुनर्निर्धारित किए जाने के कारण उन्हें भारत में ही फंसना पड़ा है.
जानकारी के अनुसार, 15 से 26 दिसंबर के बीच निर्धारित इंटरव्यू रद्द कर दिए गए हैं. इनमें से कई लोगों को अब अगले साल मार्च तक की नई तारीखें दी गई हैं. अमेरिकी विदेश विभाग ने प्रभावित लोगों को ईमेल भेजकर बताया है कि ट्रम्प प्रशासन की ‘विस्तारित सोशल मीडिया जांच नीति’ लागू होने के कारण यह देरी हो रही है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी आवेदक अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा न हो.
उल्लेखनीय है कि 10 दिसंबर को भारत में अमेरिकी दूतावास ने घोषणा की थी कि सोशल मीडिया और ऑनलाइन मौजूदगी की जांच अब सभी एच-1बी कार्यकर्ताओं और उनके आश्रितों (एच-4) के लिए अनिवार्य कर दी गई है. पहले यह मुख्य रूप से छात्रों के लिए थी.
आव्रजन मामलों के तीन वकीलों ने इस स्थिति को गंभीर बताया है. रेड्डी न्यूमैन ब्राउन पीसी की एमिली न्यूमैन ने बताया कि उनके कम से कम 100 क्लाइंट भारत में फंसे हुए हैं. उन्होंने सवाल उठाया, “कंपनियां इन लोगों का कब तक इंतजार करेंगी?”
भारतीय वकील वीणा विजय अनंत ने इसे अब तक की “सबसे बड़ी अव्यवस्था” करार दिया. अप्रैल 2025 की यूएससीआईएस रिपोर्ट के अनुसार, कुल एच-1बी वीज़ा धारकों में 71 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीयों की है, इसलिए इस देरी का सबसे ज्यादा असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ रहा है.
बता दें कि एच-1बी वीज़ा को लेकर हाल ही में कई कड़े कदम उठाए गए हैं. सितंबर 2025 से एच-1बी धारक किसी तीसरे देश (जैसे कनाडा या मैक्सिको) में जाकर वीज़ा रिन्यू नहीं करा सकते. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने नए एच-1बी आवेदनों पर 100,000 यूएस डॉलर (लगभग 84 लाख रुपये) का शुल्क लगाने वाले एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.
कैलिफोर्निया सहित अमेरिका के 20 राज्यों ने इस 100,000 डॉलर के शुल्क को “अवैध” बताते हुए इसे रोकने के लिए मुकदमा दायर किया है. नई नीति के तहत आवेदकों को अपनी ऑनलाइन प्राइवेसी सेटिंग्स को ‘पब्लिक’ (सार्वजनिक) रखने की आवश्यकता हो सकती है, ताकि अधिकारी उनके पोस्ट, प्रोफेशनल प्रोफाइल और ऑनलाइन गतिविधियों की बारीकी से जांच कर सकें. इस बदलाव की वजह से वीज़ा प्रोसेसिंग के समय और प्रतीक्षा सूची में भारी बढ़ोतरी हुई है. भारत आए एक पेशेवर ने बताया कि वे दिसंबर की शुरुआत में एक शादी के लिए आए थे, लेकिन उनके 17 और 23 दिसंबर के अपॉइंटमेंट रद्द हो गए, जिससे अब उनकी नौकरी और भविष्य की यात्रा योजनाओं पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं.
प्रभावित एच-1बी धारक अब अपनी अमेरिका स्थित नौकरियों पर लौटने के लिए अनिश्चित समय-सीमाओं से जूझ रहे हैं. आव्रजन वकीलों ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक होने वाली इन देरी से नियोक्ताओं के साथ संबंध खराब हो सकते हैं और भविष्य की यात्रा योजनाओं में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं.
छठे दलाई लामा को लेकर भारत-चीन में कूटनीतिक युद्ध: तवांग में आयोजन से भड़का बीजिंग
अरुणाचल प्रदेश के तवांग में छठे दलाई लामा (त्सांगयांग ग्यात्सो) पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को लेकर भारत और चीन के बीच नया विवाद खड़ा हो गया है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने इस आयोजन को उसकी क्षेत्रीय संप्रभुता और तिब्बती बौद्ध धर्म पर उसके नियंत्रण को चुनौती देने वाला करार दिया है. तवांग छठे दलाई लामा की जन्मस्थली है और यह क्षेत्र भारत और चीन के बीच विवाद का मुख्य केंद्र रहा है. चीन इसे ‘ज़ंगनान’ यानी दक्षिणी तिब्बत कहता है, जबकि भारत इसे अपना अभिन्न अंग मानता है.
चीनी विशेषज्ञों और सरकारी सोशल मीडिया अकाउंट्स ने भारत पर सांस्कृतिक चोरी का आरोप लगाते हुए कहा है कि त्सांगयांग ग्यात्सो की विरासत चीन की शासन व्यवस्था का हिस्सा है. 12 दिसंबर को चीन के राष्ट्रीय जातीय मामलों के आयोग ने एक लेख प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था, “भारत, हमारे त्सांगयांग ग्यात्सो को चुराने के बारे में सोचना भी मत.” चीन का तर्क है कि छठे दलाई लामा का चयन और अभिषेक किंग राजवंश के मार्गदर्शन में हुआ था, इसलिए यह चीन का आंतरिक मामला है. दूसरी ओर, विशेषज्ञ जेम्स लिबोल्ड का कहना है कि यह आयोजन भारत-चीन संबंधों में ‘सूखी लकड़ी पर चिंगारी’ जैसा काम कर रहा है. यह विवाद 14वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर चल रही रस्साकशी के बीच आया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है.
अमेरिकी टैरिफ की मार: तिरुपुर के निटवेयर हब को 3,600 करोड़ रुपये का भारी नुकसान
तमिलनाडु का प्रमुख टेक्सटाइल हब तिरुपुर इन दिनों गहरे आर्थिक संकट से गुज़र रहा है. डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर महीने से अब तक इस निटवेयर क्लस्टर को लगभग 3,600 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. इसकी मुख्य वज़ह भारतीय आयात पर अमेरिका द्वारा लगाया गया 50 प्रतिशत का भारी टैरिफ (शुल्क) है, जिसके कारण अमेरिकी खरीदारों ने नए ऑर्डर देना बंद कर दिया है. यह नुकसान उस घाटे के अतिरिक्त है, जो निर्यातकों ने अगस्त में शुल्क लागू होने के बाद सहा था. उस समय निर्यातकों ने अपना तैयार माल अमेरिका भेजने के लिए खरीदारों को 20 से 25 प्रतिशत तक की भारी छूट दी थी ताकि वे सामान स्वीकार कर लें.
तिरुपुर के निर्यातकों के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है क्योंकि 50 प्रतिशत टैरिफ के अलावा उन्हें 16 प्रतिशत की ड्यूटी भी चुकानी पड़ रही है. इस दोहरी मार ने कई कंपनियों को अपना परिचालन कम करने पर मजबूर कर दिया है. इसका सीधा असर मज़दूरों पर पड़ा है और उनके काम के घंटों में कटौती की गई है. बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से त्योहारों की छुट्टियों पर गए हज़ारों प्रवासी मज़दूर अब तक वापस नहीं लौटे हैं क्योंकि काम की कमी है. हालांकि, अभी बड़े पैमाने पर छंटनी नहीं हुई है, लेकिन कंपनियां धीरे-धीरे अपना काम समेट रही हैं.
तिरुपुर निर्यातकों के लिए अमेरिका एक बहुत बड़ा बाज़ार है. यहाँ के कुल निर्यात का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अकेले अमेरिका जाता है. भारत के कुल निटवेयर निर्यात में तिरुपुर की हिस्सेदारी 55 प्रतिशत से अधिक है और वित्त वर्ष 2024-25 में इस क्लस्टर का राजस्व 39,618 करोड़ रुपये रहा था. तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (TEA) के संयुक्त सचिव कुमार दुरैस्वामी ने बताया कि अमेरिका के साथ होने वाला मासिक कारोबार लगभग 1,200 करोड़ रुपये का है, जो अब पूरी तरह से ठप हो गया है. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अगले कुछ महीनों में यह समस्या हल नहीं हुई, तो नुकसान 10,000 करोड़ से 15,000 करोड़ रुपये तक पहुँच सकता है.
निर्यातकों को सबसे बड़ा डर यह है कि यदि गतिरोध जल्द खत्म नहीं हुआ, तो अमेरिकी खरीदार वियतनाम, बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे प्रतिस्पर्धी देशों का रुख कर लेंगे. एक बार खरीदार दूसरे देशों के सप्लायर्स के साथ सहज हो गए, तो उन्हें वापस लाना बहुत मुश्किल होगा. तिरुपुर के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) पर इसका सबसे बुरा असर पड़ रहा है. बड़ी कंपनियां अब यूरोपीय बाज़ार की ओर रुख कर रही हैं और वहां कीमतों को कम करके कोट कर रही हैं, जिससे छोटे उद्यमियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है. छोटे व्यापारी पहले ही बहुत कम मुनाफे (मार्जिन) पर काम कर रहे हैं और अब वे भारी घाटे की स्थिति में हैं.
निर्यातकों का मानना है कि कोई भी दूसरा बाज़ार अमेरिका की जगह नहीं ले सकता क्योंकि वहां से मिलने वाले ऑर्डर की मात्रा (वॉल्यूम) बहुत अधिक होती है. निर्यातकों ने केंद्र सरकार से इस संकट में मदद की गुहार लगाई है. TEA के पूर्व अध्यक्ष राजा एम. शनमुघम ने कहा कि यह संकट भू-राजनीतिक कारणों से पैदा हुआ है, इसलिए सरकार को निर्यातकों को सब्सिडी देकर या अन्य राहत उपायों के माध्यम से सहायता प्रदान करनी चाहिए. दुरैस्वामी ने कहा कि वर्तमान स्थिति कोविड-19 महामारी से भी बदतर है क्योंकि उस समय कम से कम कारोबार तो हो रहा था, लेकिन अब ऑर्डर पूरी तरह से गायब हैं. उन्होंने सरकार से 20 प्रतिशत EXIM स्क्रिप की मांग की है ताकि खरीदारों को बनाए रखा जा सके और उद्योग को डूबने से बचाया जा सके.
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