23/01/2025 : एनडीए में भाजपा के खिलाफ़ हरकत, किसान फिर आएंगें ट्रैक्टर लेकर, रूस को ट्रम्प की धमकी, अमेरिका छोड़ेगा डब्ल्यूएचओ, डीयू में प्रोपोगंडा पैम्फलेट का प्रमोशन, चिनार पर मार
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां | 23 जनवरी 2025
बैंकों का कर्ज 2024 के अंतिम दो हफ्तों में 88,000 करोड़ रुपये बढ़ा : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के ताजे आंकड़े बताते हैं कि 2024 के अंतिम पखवाड़े में बैंकों ने बाजार से 88,000 करोड़ रुपये का उधार उठाया है. यह उधारी मुख्यतः टियर-II बॉन्ड्स, इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स और ग्रीन बॉन्ड्स के माध्यम से की गई, जो पिछले छह महीनों में सबसे अधिक है. इससे बैंकिंग लाभप्रदता पर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि वित्तीय प्रणाली में नकदी या धन की उपलब्धता में इस उधारी से कमी आ सकती है और ऐसी स्थिति में ये उधारियां महंगी साबित होंगी. 2024 में बैंक उधारी में 26% की वृद्धि हुई, जबकि 2023 में यह वृद्धि 70% से अधिक थी.
26 जनवरी को ट्रैक्टर लेकर सड़क पर उतरेंगे किसान : सभी किसान संगठन केंद्र के समक्ष अपना विरोध प्रदर्शन करने के लिए संयुक्त रूप से इस गणतंत्र दिवस पर पंजाब और हरियाणा की सड़कों पर एक लाख से अधिक ट्रैक्टर लेकर उतरेंगे. 26 जनवरी को दोपहर 12 से 3 बजे तक किसान पंजाब और हरियाणा के 200 से अधिक स्थानों पर ‘ट्रैक्टर मार्च’ निकालेंगे. एसकेएम (अब निरस्त हो चुके तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 में किसान विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था) ने पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है. एसकेएम नेताओं ने कहा कि अन्य राज्यों में भी ‘ट्रैक्टर मार्च’ देखने को मिलेंगे. 2021 में किसानों के आंदोलन के दौरान दिल्ली के बाहरी इलाकों में इसी तरह की ट्रैक्टर परेड निकाली गई थी. उस समय कुछ किसान लाल किले तक पहुँच गए थे, जिस कारण उन्हें गिरफ़्तार किया गया था.
जलगांव में पुष्पक एक्सप्रेस से कूदने पर 11 यात्रियों की मौत : जलगांव जिले में लखनऊ-मुंबई पुष्पक एक्सप्रेस में आग लगने की आशंका के चलते 11 यात्रियों की दर्दनाक मौत हो गई. 'द प्रिंट' की खबर है कि यात्रियों ने डर के कारण ट्रेन से कूदने की कोशिश की और इस दौरान वे दूसरी ट्रेन की चपेट में आ गए. यह हादसा परधांडे और महेजी रेलवे स्टेशनों के बीच हुआ. रेलवे अधिकारियों ने घटना की जांच शुरू कर दी है। शुरुआती जांच में आग लगने की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यात्रियों में भय का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है.
डल्लेवाल ने चिकित्सा सहायता स्वीकार की : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 22 जनवरी को पंजाब सरकार की ओर से पेश एक दलील दर्ज की कि किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने चिकित्सा सहायता स्वीकार कर ली है. केंद्र सरकार के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक के बाद खनौरी सीमा पर विरोध स्थल से 50 मीटर दूर एक अस्थायी अस्पताल में वे स्थानांतरित हो गए हैं. इस घटनाक्रम को ‘सकारात्मक’ बताते हुए, जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह की इस दलील को भी रिकॉर्ड में लिया कि किसान 14 फरवरी, 2025 को चंडीगढ़ में केंद्र और अन्य अधिकारियों के साथ बातचीत के लिए मिलने पर सहमत हो गए हैं. पीठ ने निर्धारित वार्ता से दो दिन पहले डल्लेवाल को चंडीगढ़ पहुंचने और पीजीआई चंडीगढ़ में विशेषज्ञ डॉक्टरों से अपने स्वास्थ्य के बारे में परामर्श करने की सलाह दी, ताकि वे बैठक में प्रभावी रूप से भाग ले सकें.
मथुरा में शाही ईदगाह के सर्वेक्षण पर रोक बढ़ायी : मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण करने का निर्देश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 14 दिसंबर 2023 को दिया था. 16 जनवरी 2024 को इस पर अमल करने से सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. अब बुधवार 22 जनवरी को अपने आदेश पर लगी रोक को सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ा दिया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने शाही मस्जिद ईदगाह प्रबंधन ट्रस्ट समिति की याचिकाओं को 1 अप्रैल, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने ईडी को दी चेतावनी, लगाया जुर्माना : बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक अहम आदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया. अदालत ने साथ में एजेंसी को फटकार भी लगाई, कहा- ‘‘अब समय आ गया है कि ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियां कानून के दायरे में रहकर काम करें और कानून को अपने हाथ में लेना तथा नागरिकों को परेशान करना बंद करें. यह सुनिश्चित करने के लिए प्रवर्तन एजेंसियों को एक ‘कड़ा संदेश’ भेजा जाना चाहिए. इसलिए मैं अनुकरणीय जुर्माना लगाने को बाध्य हूं कि उसे कानून के दायरे में रहना चाहिए.” जस्टिस मिलिंद जाधव ने कहा कि उनके सामने मौजूद मौजूदा मामला पीएमएलए के क्रियान्वयन की आड़ में उत्पीड़न का एक क्लासिक मामला है. ईडी की ओर से दायर एक आवेदन पर विशेष पीएमएलए अदालत ने 8 अगस्त 2014 को शहर के एक डेवलपर के खिलाफ जारी किये गये ‘प्रक्रिया’ को रद्द करते हुए ईडी के खिलाफ ये कड़ी टिप्पणियां की.
पीएम मोदी की सुरक्षा में चूक मामला, 25 किसानों के खिलाफ वारंट : पंजाब के फिरोजपुर जिले में 5 जनवरी 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान हुई सुरक्षा में चूक की घटना के संबंध में 25 किसानों के खिलाफ नई धारा जोड़कर इनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया है. ये सभी भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) और क्रांतिकारी पेंडू मजदूर यूनियन के सदस्य हैं. बता दें कि प्रधानमंत्री को फिरोजपुर में रैली को संबोधित करना था, लेकिन पियाराना फ्लाईओवर पर विरोध प्रदर्शन के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा था. बीकेयू क्रांतिकारी के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल ने कहा है कि हम सब शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. एफआईआर में लगाए गए हत्या के प्रयास का आरोप बेबुनियाद है.
एनडीए में भाजपा के खिलाफ़ सुगबुगाहट
मणिपुर में जद(यू) के समर्थन को लेकर भ्रम, वीसी नियुक्ति पर घटक दलों का विरोध
मणिपुर में जद(यू) की राज्य इकाई द्वारा भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को समर्थन न देने की घोषणा के बाद भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. हालांकि, पार्टी के एकमात्र विधायक के करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने समर्थन वापस नहीं लिया है, जिसे पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी दोहराया है. जद(यू) के एक वरिष्ठ राज्य नेता ने स्पष्ट किया कि यह पत्र समर्थन की "वापसी" नहीं, बल्कि राज्य सरकार का समर्थन न करने के पहले से मौजूद रुख का "पुनर्स्थापन" है. वहीं, विधायक अब्दुल बासिर के एक करीबी सूत्र ने बताया कि उन्होंने सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया है और वे इस मुद्दे पर अपनी और पार्टी की स्थिति स्पष्ट करने के लिए दिल्ली जाएंगे. जद(यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने भी इस बात पर जोर दिया कि पार्टी एनडीए का हिस्सा बनी रहेगी और मणिपुर सहित अन्य राज्यों में सरकारों का समर्थन करेगी. उन्होंने यह भी बताया कि केएसएच बीरेन सिंह को अनुशासनहीनता के कारण पार्टी पद से हटा दिया गया है. यह घटनाक्रम मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी द्वारा मणिपुर सरकार से समर्थन वापस लेने के दो महीने बाद आया है.
उधर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मसौदा विनियम 2025 को लेकर भी एनडीए में असंतोष देखने को मिल रहा है. जद(यू) ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकारों की भूमिका को कम करने के लिए इन नियमों की आलोचना की है. यूजीसी के मसौदा नियमों में राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (वी-सी) की नियुक्ति में चांसलर को अधिक शक्तियां देने का प्रस्ताव है, जो ज्यादातर राज्यों में केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल हैं. जद(यू) का मानना है कि इससे शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकारों के प्रयासों को हतोत्साहित किया जाएगा.
एक अन्य एनडीए सहयोगी, टीडीपी ने भी यूजीसी के मसौदा नियमों पर अपनी चिंता व्यक्त की है, लेकिन इस मुद्दे पर सतर्क रुख अपनाया है. टीडीपी का कहना है कि वे इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं करेंगे और आंतरिक रूप से संबंधित लोगों से बात करेंगे. वहीं, एलजेपी (रामविलास) ने सुझाव दिया है कि इस मुद्दे पर संसद में चर्चा की जानी चाहिए.
विपक्षी शासित राज्यों ने भी इन नियमों का विरोध किया है, जिसमें चांसलर को वी-सी नियुक्त करने में अधिक शक्तियां दी गई हैं. उनका आरोप है कि ये नियम संघवाद के संवैधानिक सिद्धांत को कमजोर करेंगे और राज्य के उच्च शिक्षा क्षेत्र के हितों को नुकसान पहुंचाएंगे. केरल और तमिलनाडु विधानसभाओं ने भी इन मसौदा नियमों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं.
गुजरात : सीवर सफाई करते दो दलितों की मौत
गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के पाटनडी तालुका में मंगलवार को सीवर की सफाई करते समय दो दलित सफाईकर्मियों की दम घुटने से मौत हो गई. पुलिस ने बताया कि एक तीसरा कर्मचारी अस्पताल में भर्ती है. पुलिस के अनुसार, मृतक, चिराग कानू पटारिया (18) और जयेश भरत पटारिया (28), बिना किसी सुरक्षा उपकरण के 15 से 20 मीटर गहरे सीवर में उतरे थे, जिससे यह दुखद घटना हुई. पाटनडी नगर पालिका के अधिकारियों के कहने पर, चिराग, जयेश और चेतन मांगा पटारिया एक सीवर लाइन की सफाई कर रहे थे. सुबह 11:30 बजे, चिराग और जयेश जहरीली गैस के कारण बेहोश हो गए. चेतन ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन वह भी गैस से प्रभावित हो गया. पुलिस ने इस घटना के संबंध में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है और मामले की जांच जारी है. नगर पालिका के मुख्य अधिकारी सहित तीन लोगों पर गैर इरादतन हत्या और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. मृतकों के परिवारों को 30-30 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा.
शहरों का कचरा साफ करते आदिवासी, न सामाजिक सुरक्षा न न्यूनतम वेतन
मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले से 26 वर्षीय सूरज डामोर 17 साल की उम्र में अहमदाबाद आए थे. पहले वे दिहाड़ी मजदूरी करते थे, लेकिन 2016 में उन्हें घर-घर कचरा इकट्ठा करने वाले वाहन चलाने का मौका मिला. इससे उन्हें निश्चित रोजगार मिला और वे अपनी पत्नी और बच्चे के साथ काम कर सके. भारत में कई शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) कचरा संग्रहण का काम निजी कंपनियों को देते हैं. अहमदाबाद में भी डामोर एक ऐसी कंपनी के लिए काम करते थे. लेकिन चार साल बाद, उन्हें और उनकी पत्नी को वाहन के रखरखाव का खर्च कर्मचारियों पर डालने का विरोध करने पर निकाल दिया गया. इंडियास्पेंड के लिए अनामिका सिंह और पीयूष माने ने इस पर विस्तार से लिखा है.
सेंटर फॉर लेबर रिसर्च एंड एक्शन के एक अध्ययन में पाया गया कि अहमदाबाद, गांधीनगर और सूरत में कचरा संग्रहण करने वाले बहुत से आदिवासी मजदूरों का शोषण होता है. उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती, आधे से ज़्यादा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का हिस्सा नहीं हैं और 60% से ज़्यादा को कचरा संग्रहण के लिए कोई सुरक्षा उपकरण नहीं मिलता. अध्ययन में पाया गया कि 73% मजदूर पिछले पांच सालों में कचरा संग्रहण में आए हैं. 86% 18 से 30 वर्ष की आयु के हैं और 62% ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है. वे ज्यादातर मध्य प्रदेश के झाबुआ और गुजरात के दाहोद से हैं. ज्यादातर आदिवासी.
मजदूरों को अक्सर मौखिक रूप से काम पर रखा जाता है और ठेकेदार उन पर निगरानी नहीं रखते. कई बार ठेकेदार मजदूरों के बैंक खातों से पैसे निकालकर उन्हें नकद देते हैं. वे कचरा बेचकर कुछ अतिरिक्त पैसे भी कमाते हैं, लेकिन महिला श्रमिकों को उनके काम के लिए कोई भुगतान नहीं मिलता. कई मजदूर बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के 11 घंटे से ज़्यादा काम करते हैं. उन्हें कोई सुरक्षा उपकरण नहीं मिलते और वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहते हैं. वे कचरा ट्रांसफर स्टेशनों के पास तंबू और बांस से बनी झुग्गियों में रहते हैं और पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझते हैं. अध्ययन में ठेकेदारों द्वारा श्रम कानूनों का उल्लंघन पाया गया है. शहरी स्थानीय निकाय के अनुसार, ठेकेदार मजदूरों के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं करते.
टिप्पणी | अपूर्वानंद
जब ज्ञान, शिक्षा, सवाल, तर्क के खिलाफ़ खड़ा हो जाये विश्वविद्यालय और उसका निज़ाम
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति (वीसी), योगेश सिंह ने पिछले सप्ताह विश्वविद्यालय के सम्मेलन कक्ष में एक कार्यक्रम में दर्शकों से तटस्थता छोड़ने और ‘राष्ट्र हित’ का पक्ष चुनने के बारे में सोचने का आग्रह किया. कार्यक्रम ‘मोदी बनाम खान मार्केट गैंग’ नामक पुस्तक के विमोचन के लिए था. वीसी और विश्वविद्यालय के कुछ शीर्ष अधिकारियों के अलावा, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पदाधिकारी भी गणमान्य व्यक्तियों के रूप में मौजूद थे. बड़ी संख्या में कॉलेज के प्राचार्य, शिक्षक और छात्र दर्शक थे. हॉल खचाखच भरा हुआ था.
किसी भी विश्वविद्यालय के लिए शिक्षकों और छात्रों की इतनी बड़ी संख्या में किसी पुस्तक के विमोचन के लिए आना कितना सुखद हो सकता है? जो कोई भी विश्वविद्यालय की वास्तविकता को जानता है और इसके छात्रों और शिक्षकों की पूरी किताब पढ़ने में अनिच्छा से अवगत है, वह एक में रुचि के इस तरह के सार्वजनिक प्रदर्शन को देखकर सुखद आश्चर्यचकित हो सकता है. किसी भी ऐसी बौद्धिक चर्चा के लिए इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का आना केवल एक अच्छा संकेत हो सकता है.
हालाँकि, हम जानते हैं कि वास्तविकता अलग है. जैसा कि पुस्तक के शीर्षक से स्पष्ट है, यह एक ऐसी पुस्तक नहीं है जिसका ज्ञान या छात्रवृत्ति से कोई लेना-देना है, जो विश्वविद्यालय का काम है. इसके बजाय, यह एक प्रोपोगंडा पैम्फलेट है.
पुस्तक का नाम स्पष्ट रूप से बताता है कि यह मोदी के महिमामंडन अभियान का हिस्सा है. हमें यह पूछने की आवश्यकता है कि क्या विश्वविद्यालय के संसाधनों का उपयोग इस अभियान के लिए करना उचित है? इससे भी बुरी बात यह है कि यह सिर्फ मोदी की मूर्तिपूजा करने का एक मंच नहीं था. यह वास्तव में उनके शासन के आलोचकों को बदनाम और दानवीकरण के अभियान का हिस्सा था - जिनमें से कई विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं. वीसी को इस बुद्धि-विरोधी प्रचार में अपनी आवाज जोड़ते हुए देखना निराशाजनक था.
यह तर्क दिया गया है कि यह विश्वविद्यालय का अपना कार्यक्रम नहीं था. वीसी और अन्य अधिकारी और शिक्षक वहां आमंत्रित लोगों के रूप में थे. लेकिन विश्वविद्यालय ने इस कार्यक्रम की पूरी रिकॉर्डिंग अपनी वेबसाइट पर डाल दी है. वीसी का भाषण अलग से अपलोड किया गया है. क्या हमें अब यह स्वीकार करना चाहिए कि विश्वविद्यालय के संसाधनों का उपयोग एक 'पुस्तक' को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है, जो न तो विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित की गई है और न ही इसके किसी संकाय सदस्य द्वारा लिखी गई है?
विश्वविद्यालय की वेबसाइट एक निजी कार्यक्रम का प्रचार क्यों कर रही है और सक्रिय रूप से इसकी सामग्री का प्रसार कर रही है? कोई नहीं मानेगा कि प्राचार्य, शिक्षक और छात्र इतनी बड़ी संख्या में आए क्योंकि वे पुस्तक के बारे में उत्सुक थे. लेखक के प्रति अनुचित हुए बिना, कोई सुरक्षित रूप से कह सकता है कि वह अपनी पत्रकारिता के लिए नहीं जाने जाते हैं, जो उनके नाम से लोगों को आकर्षित करने का कारण हो सकता है.
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब विश्वविद्यालय में इस तरह की घटना हुई है - और पिछले दस वर्षों में इसे अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा के प्रचार के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया गया है - फिर भी, हर ऐसी घटना के बाद, किसी को डीयू समुदाय के सदस्य के रूप में अपमानित महसूस होता है. यह देखकर दुख और डर लगता है कि हमारे अकादमिक नेता बुद्धिजीवियों और शोधकर्ताओं का मजाक उड़ा रहे हैं और उन्हें राष्ट्र का दुश्मन बता रहे हैं.
‘बौद्धिक आतंकवादियों’ से ‘खान मार्केट गैंग’ तक
‘खान मार्केट गैंग’ शब्द मोदी द्वारा बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए एक गाली के रूप में गढ़ा गया था, जिन्होंने उन पर और उनके शासन पर आलोचनात्मक नजर रखी थी. इससे पहले, 2014 में, उन्होंने एक समान शब्द का आविष्कार किया था: 'फाइव स्टार एक्टिविस्ट'. उन्होंने न्यायधीशों को इन फाइव स्टार कार्यकर्ताओं से प्रभावित न होने की चेतावनी दी थी. इस सलाह के बाद के दस वर्षों में, मानवाधिकार संगठनों को लाइसेंस से वंचित कर दिया गया है और उन्हें निष्क्रिय कर दिया गया है, जबकि कार्यकर्ताओं पर हमला किया गया है, मुकदमा चलाया गया है और जेल में डाल दिया गया है.
यह तथाकथित खान मार्केट गैंग क्या है? डीयू के वीसी सहित बैठक में वक्ताओं के अनुसार, यह दिल्ली से अमेरिका तक फैले लोगों का एक नेटवर्क है जो भारत के खिलाफ साजिश रच रहे हैं: इसे बदनाम कर रहे हैं और इसके बारे में गलत सूचना फैला रहे हैं. इस गिरोह के विदेशी सहयोगी भी हैं. वीसी चाहते हैं कि हम यह स्वीकार करें कि भारत अब मोदी का पर्याय बन गया है. उनके शासन की कोई भी आलोचना या जांच स्वतः ही भारत पर हमला है.
नोबेल पुरस्कार विजेता और प्रसिद्ध वैज्ञानिक वेंकी वेंकटरमन, अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और रघुराम राजन, लेखक सलमान रुश्दी और अशोक वाजपेयी, इतिहासकार रोमिला थापर, इरफान हबीब, उमा चक्रवर्ती और नयनतारा सहगल खान मार्केट गैंग का हिस्सा हैं. जब मैं यह सुनता हूं, तो मुझे याद आता है कि यह मुरली मनोहर जोशी थे, जो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार में शिक्षा मंत्री थे, जिन्होंने उन्हें "बौद्धिक आतंकवादी" करार दिया था. एनडीए -1 के वे बौद्धिक आतंकवादी अब खान मार्केट गैंग बन गए हैं.
वीसी ने कहा कि इस गिरोह द्वारा शरारतपूर्ण तरीके से यह दावा किया जा रहा है कि भारत लोकतंत्र सूचकांक और अन्य सूचकांकों पर नीचे गिर रहा है. "इससे बड़ा झूठ क्या हो सकता है? यह कहना कितना सही है कि देश भूख सूचकांक पर कई उप-सहारा देशों से नीचे गिर रहा है जब मोदी 800 मिलियन लोगों को मुफ्त में भोजन करा रहे हैं?"
वीसी विशेष रूप से इस बात से परेशान थे कि स्वीडन जैसे "छोटे देश" के एक संगठन, वी-डेम, ने भारत में लोकतंत्र के स्वास्थ्य को रेट करने की हिम्मत की थी. मानो आकार और जनसंख्या में छोटा होना अपने आप में अयोग्यता है और आकार में विशाल होना महानता का प्रमाण है. "एक 'इतने छोटे देश' का संगठन कैसे भारत जैसे विशाल देश के बारे में बात करने की हिम्मत कर सकता है!"
वीसी को यह विचार करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई कि लोकतंत्र का अध्ययन करने वाले राजनीतिक वैज्ञानिक वी-डेम पर क्यों भरोसा करते हैं. इसी तरह, दुनिया भर के विशेषज्ञों ने भूख सूचकांक, प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक या मानवाधिकार सूचकांक पर संदेह नहीं किया है. यह सरकारें हैं, जिनमें मोदी सरकार भी शामिल है, जो उन्हें लगातार खारिज करती रहती हैं क्योंकि वे उनकी कुरूपता को दर्शाने वाला आईना दिखाती हैं.
क्या उनके लिए अलग-अलग रंगों के राजनीतिक वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन आयोजित करना अच्छा नहीं होगा ताकि वे एक साथ बैठकर इस बात पर चर्चा कर सकें कि ये अंतरराष्ट्रीय संकेतक कितने विश्वसनीय हैं?
‘राष्ट्रीय हित’ के नाम पर शिक्षा पर हमला
विश्वविद्यालय उन विशेषज्ञों का जमावड़ा है जो समाजों, लोकतंत्र, सार्वजनिक स्वास्थ्य, भूख आदि का अध्ययन करते हैं. अक्सर उनका काम उन्हें अपने शासन के दावों पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करता है. यह चिंताजनक होना चाहिए कि उनकी विशेषज्ञता को साजिश या षड्यंत्र के रूप में खारिज कर दिया गया है. यदि विश्वविद्यालय में ही विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं पर हमला किया जाता है, और यदि वीसी उस हमले में शामिल होते हैं, तो ज्ञान के उद्यम का क्या होगा?
वीसी चाहते थे कि लोग राष्ट्रीय हित की सेवा करें. विश्वविद्यालय राष्ट्रीय हित की सेवा कैसे करते हैं? अपना काम करके.
विश्वविद्यालय का कार्य ज्ञान का सृजन और विस्तार है. यह दुनिया भर में स्वीकार किया गया है कि ज्ञान हमेशा प्रश्न पूछकर आगे बढ़ता है. अधिकारियों द्वारा स्थापित और स्वीकार किए गए पर अवश्य ही छानबीन की जानी चाहिए. स्टालिन के शब्दों को ज्ञान के रूप में प्रसारित करके, सोवियत संघ के विश्वविद्यालयों ने राष्ट्रीय हित की सेवा नहीं की, बल्कि इसके खिलाफ काम किया. इसी तरह, जब चीनी विश्वविद्यालयों ने सांस्कृतिक क्रांति के दौरान माओ के आदेशों का पालन करके शिक्षकों और शोधकर्ताओं को निष्कासित कर दिया, तो वे राष्ट्रीय हित में काम नहीं कर रहे थे. जब अमेरिकी और यूरोपीय विश्वविद्यालयों ने फिलिस्तीन पर चर्चा करने से रोक दिया, तो वे ज्ञान निकायों के कर्तव्य और परिणामस्वरूप अपने राष्ट्र के खिलाफ चले गए. अगर मैं आधिकारिक ज्ञान की आलोचनात्मक जांच नहीं करता हूं, तो मैं राष्ट्रीय हित के लिए काम नहीं कर रहा हूं. यदि मैं ऐसा नहीं करता हूं, तो मैं अपने व्यापार के धर्म में विफल रहता हूं और अपने देश में भी विफल रहता हूं. राष्ट्र को धोखे में ले जाना सत्तारूढ़ दल और नेता का पक्ष ले सकता है लेकिन निश्चित रूप से लोगों और राष्ट्र के साथ विश्वासघात है.
इस कार्यक्रम के बैनर को देखकर ही पता चल गया कि यह बीजेपी का प्रचार कार्यक्रम था. विश्वविद्यालय ने खुद को भाजपा और आरएसएस के हितों का सक्रिय प्रचारक बना लिया है. लेकिन भाजपा का प्रचार और राष्ट्रीय हित एक ही नहीं हैं.
वीसी एक पक्ष चुनना चाहते थे और तटस्थता छोड़ना चाहते थे. हम उनसे यह भी विनती करते हैं कि वे ज्ञान और शासन के बीच की लड़ाई में दर्शक न बनें. उन्हें ज्ञान का पक्ष चुनना चाहिए. हम अपने अकादमिक नेताओं को बताना चाहेंगे कि उनका काम सत्ता के आक्रमण से ज्ञान की रक्षा करना है, इसे फलने-फूलने के लिए एक सुरक्षित वातावरण देना है. निश्चित रूप से उनका काम सत्ता में बैठे लोगों के लिए विश्वविद्यालयों के द्वार खोलना और ज्ञान के उद्यान को रौंदने में उनके साथ शामिल होना नहीं है.
अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाते हैं. मूल लेख इंडिया केबल और द वायर में.
ट्रंप का फैसला : अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होगा
न्यूयॉर्क/लंदन/जेनेवा, 21 जनवरी (रायटर). राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) छोड़ देगा. ट्रम्प ने वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसी पर कोविड-19 महामारी और अन्य अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संकटों को गलत तरीके से संभालने का आरोप लगाया. ट्रम्प ने कहा कि डब्ल्यूएचओ "डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों के अनुचित राजनीतिक प्रभाव" से स्वतंत्र रूप से कार्य करने में विफल रहा है और उसे अमेरिका से "अनुचित रूप से भारी भुगतान" की आवश्यकता है, जो चीन जैसे अन्य, बड़े देशों द्वारा प्रदान की गई राशि के अनुपात में नहीं थे.
ट्रम्प ने दूसरे कार्यकाल के लिए अपने उद्घाटन के तुरंत बाद, वापसी पर एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए कहा, "विश्व स्वास्थ्य ने हमें लूटा, हर कोई संयुक्त राज्य अमेरिका को लूटता है. यह अब और नहीं होगा." डब्ल्यूएचओ ने मंगलवार को कहा कि उसे अपने शीर्ष दानदाता देश के इस कदम पर खेद है.
जिनेवा में डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता तारिक जसारविक ने संवाददाताओं से कहा, "हमें उम्मीद है कि संयुक्त राज्य अमेरिका पुनर्विचार करेगा और हम वास्तव में उम्मीद करते हैं कि सभी के लाभ के लिए, अमेरिकियों के लिए बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए भी रचनात्मक बातचीत होगी."
इस कदम से संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी को छोड़ने और इसके काम में सभी वित्तीय योगदान बंद करने के लिए अमेरिका को 12 महीने की नोटिस अवधि मिलती है. संयुक्त राज्य अमेरिका डब्ल्यूएचओ का अब तक का सबसे बड़ा वित्तीय समर्थक है, जो इसकी कुल फंडिंग का लगभग 18% योगदान देता है. डब्ल्यूएचओ का नवीनतम दो साल का बजट, 2024-2025 के लिए, 6.8 बिलियन डॉलर था.
ट्रम्प की रूस को धमकी : यूक्रेन युद्ध न रोकने पर कर, शुल्क और प्रतिबंध लगेंगे
ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में, डोनाल्ड ट्रम्प ने रूस और उसके सहयोगियों पर "उच्च स्तर के कर, शुल्क और प्रतिबंध" लगाने की धमकी दी है, अगर वह यूक्रेन पर अपना आक्रमण नहीं रोकता है. यह पोस्ट तब आई है जब ट्रम्प अपने पदभार ग्रहण करने के 24 घंटे के भीतर देश में युद्ध समाप्त करने के अपने अभियान के वादे को पूरा करने में विफल रहे. राष्ट्रपति ने यह लिखा :
‘मैं रूस को चोट पहुँचाना नहीं चाहता. मैं रूसी लोगों से प्यार करता हूं, और हमेशा राष्ट्रपति पुतिन के साथ बहुत अच्छे संबंध रहे हैं - और यह कट्टरपंथी वामपंथियों के रूस, रूस, रूस के धोखे के बावजूद. हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि रूस ने द्वितीय विश्व युद्ध जीतने में हमारी मदद की, इस प्रक्रिया में लगभग 60,000,000 लोगों की जान गँवा दी. यह सब कहे जाने के बाद, मैं रूस, जिसकी अर्थव्यवस्था विफल हो रही है, और राष्ट्रपति पुतिन पर एक बहुत बड़ा एहसान करने जा रहा हूं. अभी समझौता करें, और इस हास्यास्पद युद्ध को रोकें! यह केवल और खराब होने वाला है. अगर हम "समझौता" नहीं करते हैं, और जल्द ही नहीं, तो मेरे पास रूस द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न अन्य भाग लेने वाले देशों को बेची जा रही किसी भी चीज पर उच्च स्तर के कर, शुल्क और प्रतिबंध लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. चलिए इस युद्ध को खत्म करते हैं, जो शुरू ही नहीं होता अगर मैं राष्ट्रपति होता! हम इसे आसान तरीके से कर सकते हैं, या मुश्किल तरीके से - और आसान तरीका हमेशा बेहतर होता है. यह "समझौता करने" का समय है. अब और जान नहीं जानी चाहिए!!!’
नस्लवादी केकेके फ़्लायर्स, प्रवासियों से "अभी छोड़ने" के लिए कहा गया
अमेरिका के केंटकी पुलिस जांच कर रही है जब उद्घाटन दिवस पर राज्य भर में नस्लवादी कु क्लक्स क्लान (केकेके) फ़्लायर्स वितरित किए गए, जिसमें प्रवासियों से "अभी छोड़ने" के लिए कहा गया था. केकेके अमेरिका में सबसे कुख्यात श्वेत वर्चस्ववादी घृणा समूहों में से एक है.
फ़्लायर्स में अंकल सैम का एक कार्टून दिखाया गया है जिसमें एक बच्चे और दो छोटे बच्चों सहित पाँच लोगों के पल्लल को लात मारी जा रही है. अंकल सैम एक दस्तावेज़ पकड़े हुए हैं जिसमें "घोषणा" लिखा है और कहा गया है: "हमें आपकी मदद की ज़रूरत है. सभी प्रवासियों की निगरानी करें और उनका पता लगाएं. उन सभी की रिपोर्ट करें."
दस्तावेज़, जिसमें केंटकी क्षेत्र का एक फ़ोन नंबर और "हमारे साथ जुड़ें" का निमंत्रण शामिल है, डोनाल्ड ट्रम्प के पदभार संभालने के दिन वितरित किए गए थे. राष्ट्रपति ने बार-बार प्रवासियों को दानव बताया है और "अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ा निर्वासन कार्यक्रम" शुरू करने का संकल्प लिया है.
लुडलो, केंटकी में पुलिस विभाग ने फेसबुक पर एक बयान में कहा, "हम जानते हैं और पहले ही इस परेशान करने वाले और घृणित केकेके प्रचार के लिए एक रिपोर्ट ले चुके हैं जो हमारे समुदाय में घूम रहा है. यह नफ़रत भरी बकवास अन्य शहरों में भी सामने आ रही है." बयान में आगे कहा गया, "हम इस प्रकार के व्यवहार का समर्थन या अनुमोदन नहीं करते हैं और यदि आपको लगता है कि आपको परेशान या धमकी दी जा रही है तो पुलिस को कॉल करने और रिपोर्ट दर्ज करने में संकोच न करें."
बिशप ने कहा दया दिखाओ, ट्रम्प ने कहा माफ़ी मांगो
वाशिंगटन नेशनल कैथेड्रल में आयोजित एक प्रार्थना सेवा के दौरान, एपिस्कोपल बिशप मैरियन एडगर बड ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से एलजीबीटीक्यू+ समुदाय और आप्रवासियों के प्रति "दया" दिखाने का आह्वान किया. बड ने कहा कि हमारे देश में अब डर महसूस करने वाले लोगों पर दया दिखाएं. असल में बड ने अपने उपदेश में कहा था- "वे नागरिक नहीं हो सकते या उनके पास उचित दस्तावेज नहीं हो सकते, लेकिन अधिकांश अप्रवासी अपराधी नहीं हैं. वे कर चुकाते हैं और अच्छे पड़ोसी हैं. वे हमारे चर्चों, मस्जिदों, सिनागॉग, गुरुद्वारों और मंदिरों के विश्वसनीय सदस्य हैं.'
बिशप के भाषण पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ संपादक पत्रकार ओम थानवी ने कहा, “इसे कहते हैं मुँह पर बोलना। प्रार्थना सभा में साहसी बिशप मारियान एडगर बुडे के दया और करुणा बरतने के उद्गार सुनकर राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति और कुटुम्बी खिसिया गए. मारियान बोलीं कि राष्ट्रपतिजी, लोग डरे हुए हैं. वे चाहे बाहर से आए हों, नागरिक न हों या पूरे काग़ज़ात न बने हों, पर वे भले और कामकाजी लोग हैं. अगर भगवान ने आपको भेजा है तो उन्हें सताइएगा मत. पादरी-बिशप, साधु-संन्यासियों का काम है सत्ता-सीकरी से दूरी बनाकर रखना, मानवता के हक़ में शासकों को सद्-बुद्धि देना. हमारे यहाँ ऐसे निडर उपदेशक अब कहाँ हैं?”
ट्रम्प, बड की इस सार्वजनिक अपील से असहज हो गए और उन्होंने ट्विटर पर बड को "नास्ट्री" (नापसंद) कहा और उनसे माफी की मांग की. उन्होंने बड को "रैडिकल लेफ्ट हार्डलाइन ट्रम्प हेटर" (उग्र वामपंथी कट्टर ट्रम्प विरोधी) करार दिया और उनकी शैली और बुद्धिमत्ता की आलोचना की. गौरतलब है कि ट्रम्प ने आते ही गैर कानूनी ढंग से अमेरिका में रह रहे अप्रवासियों के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है और इसी कड़ी में कबूतरबाजी से अमेरिका पहुंचे 18 हजार भारतीयों के जत्थे के जल्द देश पहुंचने की उम्मीद की जा रही है. ‘हरकारा’ के 22 जनवरी के अंक में हमने इस बारे में विस्तार से छापा है.
गाजा में खाने का संकट, ट्रकों को लूट रहे बच्चे
'एसोसिएट प्रेस' की खबर है कि गाज़ा के दक्षिणी शहर रफ़ा में बुधवार को सहायता ट्रक मलबे के बीच से गुजरते हुए दिखाई दिए, जबकि कई बच्चे इन ट्रकों के पीछे दौड़ते हुए सहायता बॉक्स निकालने की कोशिश कर रहे थे. संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA) ने रिपोर्ट किया कि गाज़ा में 2 मिलियन से अधिक लोग, जिनमें से आधे से अधिक बच्चे हैं, इस सहायता पर निर्भर हैं. गाज़ा में खाद्य संकट, पानी की कमी और चिकित्सा आपूर्ति की भारी कमी के कारण लोग नारकीय परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे हैं. खाने-पीने की चीजों की भारी कमी और शुद्ध पानी की आपूर्ति लगभग न के बराबर हो गई है, जिससे स्थिति और भी भयावह हो गई है.
सूडान युद्ध के कारण 10 लाख से अधिक लोगों ने शरण ली : संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सूडान में जारी युद्ध के चलते 10 लाख से अधिक लोग पड़ोसी देश दक्षिण सूडान में शरण लेने को मजबूर हुए हैं. मंगलवार को जारी रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले 21 महीनों में सूडान के उत्तरी बॉर्डर पर जोडा क्रॉसिंग से 7.7 लाख से अधिक लोग दक्षिण सूडान में प्रवेश कर चुके हैं. अन्य सीमाओं से आए शरणार्थियों को मिलाकर यह संख्या 10 लाख से अधिक हो गई है.
हर 12 बच्चों में से एक किसी न किसी ऑनलाइन यौन शोषण का शिकार
द लांसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में हर 12 में से एक बच्चा पिछले वर्ष ऑनलाइन यौन शोषण का शिकार बना है. यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग और चीन की एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 2010 से 2023 के बीच किए गए 123 अध्ययनों की समीक्षा की. इसमें उन्होंने पाया कि वैश्विक स्तर पर हर आठ में से एक बच्चा इंटरनेट पर छवि-आधारित यौन शोषण से प्रभावित है. लगभग उतने ही बच्चों को 'ऑनलाइन प्रलोभन' का सामना करना पड़ा, जिसमें उन्हें यौन गतिविधि या प्रदर्शन के लिए उकसाया गया. अध्ययन में यह भी बताया गया कि बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए अधिक विधायी और प्राथमिक रोकथाम के प्रयासों की आवश्यकता है. इस अध्ययन का उद्देश्य ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार की प्रकृति और प्रसार को समझना था.
कृष्णा सोबती का आखिरी अरमान और आरडब्ल्यूए के रोने
हिंदी की महान रचनाकार कृष्णा सोबती की वसीयत में दर्ज उनकी आकांक्षा विचित्र क़ानूनी दांव-पेंच में उलझ गई है. द वायर हिंदी के मुताबिक सोबती के निधन के बाद उनके जिस घर को राष्ट्रीय धरोहर होना चाहिए था, वह क़ानूनी जाल में फंसकर खंडहर हो रहा है. सोबती चाहती थीं कि उनके आवास को ‘लेखकों का घर’ बना दिया जाए, जहां रचनात्मकता को पंख मिले. लेकिन कला, संस्कृति और विचारों के जिस मंच को सोबती यह काम सौंपकर गई थीं, उनकी हाउसिंग सोसाइटी उस रज़ा फाउंडेशन को उनके आवास पर आधिपत्य देने से इनकार कर चुका है. उनकी वसीयत को लेकर उपजा विवाद साहित्य और कला की विरासत के संरक्षण का एक मुद्दा बन गया है. इस वक्त यह मामला दिल्ली के सोसाइटी रजिस्ट्रार ऑफिस में है. अगली सुनवाई 5 फरवरी को है.
चलते चलते : गायब होते कश्मीर के शानदार चिनार
"सैलानियों के लिए यह एक दहशत भरा पल था," शालीमार बाग के हेड क्लर्क फयाज अहमद कहते हैं, जब सितंबर 2024 में 300 साल पुराना चिनार का पेड़ गिर गया था. "किस्मत से, किसी को कुछ हुआ नहीं."
यह वह समय है जब शानदार चिनार के पत्ते शरद ऋतु के आगमन पर चमकीले लाल रंग में बदल जाते हैं - एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण. आमतौर पर, एक चिनार 30 मीटर (98 फीट) या उससे अधिक बढ़ता है और अपनी दीर्घायु और फैलते हुए मुकुट के लिए जाना जाता है. पेड़ों को अपनी परिपक्व ऊंचाई तक पहुंचने में लगभग 30 से 50 साल लगते हैं और उन्हें अपने पूर्ण आकार में बढ़ने में लगभग 150 साल लगते हैं. इंडिया स्पेंड के सुहैल भट्ट ने इस पर एक लम्बा रिपोर्ताज लिखा है.
कश्मीर के वन विभाग की 2021 की पुस्तिका के अनुसार, कश्मीर में चिनार के पेड़ों की संख्या में कमी आई है. कुछ अनुमानों के अनुसार 1970 के दशक में इनकी संख्या 42,000 थी. वर्तमान अनुमान 17,000 से 34,000 तक हैं. एक गणना चल रही है, जिसके समन्वयक का कहना है कि कश्मीर में अनुमानित 32,500 चिनार हैं. अहमद ने कहा, "मेरे 15 वर्षों के अनुभव के आधार पर, मेरा अनुमान है कि अकेले शालीमार में 100 से अधिक चिनार गिर चुके हैं."
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.