23/02/2025 : मस्क और अडानी में समानता क्या, यूट्यूब और ओटीटी पर और लगाम, जर्मनी में आज मतदान, दुबई में क्रिकेट, बुजुर्गों को रेलवे रियायत की फेक न्यूज, वह सुनती है व्हेल मछलियों की बातें
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां | 23 फरवरी 2025
अब यूट्यूब, ओटीटी वगैरह पर लगाम की तैयारी
गाँवों पर उड़ते ड्रोन और ज़मीनों के दस्तावेजीकरण
आज जर्मनी में मतदान
पोप फ्रांसिस की हालत गंभीर
यूपी में सियासी बिसात बदलने की आहट
बुजुर्गों को रेलवे रियायत की फेक़ न्यूज़ पकड़ी गई
2 सेंटीमीटर बढ़ गया समुद्र का स्तर
भारत की लड़की जो व्हेल्स की बातचीत सुनती है!
संपत्ति खोने वालों में मस्क टॉप पर, अडानी दूसरे
अरबपति गौतम अडानी और इलोन मस्क एक ऐसी दौड़ में उलझे हुए हैं, जिसे दोनों में से कोई जीतना नहीं चाहता. दौड़ यह कि, 2025 में ब्लूमबर्ग रियल-टाइम अरबपतियों के सूचकांक में सबसे बड़ा नुकसान उठाने वाला कौन होगा? एक समय था, जब मस्क की संपत्ति 500 अरब डॉलर का आंकड़ा पार करने वाली थी. खासकर, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के बाद. लेकिन टेस्ला के मालिक मस्क की संपत्ति बृहस्पतिवार को 455 अरब डॉलर से घटकर 397 अरब डॉलर पर आ गई. अडानी ने भी अपने समूह की कंपनियों के शेयरों को बेकाबू होकर गिरते हुए देखा है. 2025 की शुरुआत से अब तक उनका लगभग 11.9 अरब डॉलर मिट गया है. यह नुकसान मस्क के नुकसान से कम है, लेकिन फिर भी उन्हें इस वर्ष दूसरा सबसे बड़ा नुकसान उठाने वाला बनाता है. उनकी वर्तमान संपत्ति 66.8 अरब डॉलर पर खड़ी है, जो उन्हें दुनिया में 23वें स्थान पर रखती है. वह मुकेश अंबानी के बाद एशिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति बने हुए हैं. अंबानी की संपत्ति 88.7 अरब डॉलर है. अडानी अब उनसे काफी पीछे छूट गए हैं. एक समय अडानी दुनिया के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति थे. सितंबर 2022 में उनके पास 141 अरब डॉलर की संपत्ति थी.
बलात्कार के आरोप में जिसके मक़ान पर बुलडोज़र चलाया गया, वह अदालत में बरी किया गया
मध्यप्रदेश के राजगढ़ में जिस व्यक्ति का घर रेप के आरोप में बुलडोजर से गिरा दिया गया था, उसे कोर्ट ने बरी कर दिया है. कोर्ट ने पाया कि महिला ने झूठे आरोप लगाकर बलात्कार का केस दर्ज करवाया था. “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” की खबर है कि मार्च 2021 में रेप का केस दर्ज होने के 10 दिन के भीतर स्थानीय प्रशासन ने पूर्व पार्षद रफीक अंसारी का घर गिरा दिया था. उनके पुत्र और भाई को भी गिरफ्तार कर लिया गया था. अंसारी ने बताया कि हमारे पास सारे कागज थे. प्रशासन सुबह 7 बजे बुलडोजरों के साथ पहुंचा. इसके पहले कि घर के लोग कुछ समझ पाते, मेरा घर मिट्टी में मिला दिया गया. अंसारी फिलहाल अपने भाई के घर पर रह रहे हैं. उनके परिवार में 7 लोग हैं और सबने इस अन्याय को सहन किया. वह खुद तीन माह जेल में रहे. टाइम्स ऑफ इंडिया में अमरजीत सिंह ने लिखा है कि कोर्ट ने पाया कि अंसारी से बदला लेने के लिए महिला ने बलात्कार की शिकायत की थी. क्योंकि अंसारी की शिकायत पर उसका घर गिराया गया था. बहरहाल, अपना घर ध्वस्त होने से दुखी 58 वर्षीय अंसारी अब न्याय के लिए अदालत जाने की योजना बना रहे हैं.
हिंदू लड़की से शादी करने पहुंचे मुस्लिम युवक को कोर्ट में पीटा : उधर मध्यप्रदेश में ही शादी करने पहुंचे अंतर धार्मिक जोड़े पर कोर्ट में हमला किया गया. यह घटना रीवा की है. मुस्लिम युवक और हिंदू लड़की अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए जिला अदालत गए थे. पुलिस ने बताया कि जैसे ही वकीलों को उनकी धार्मिक पहचान पता चली, उन्होंने युवक को पीटना शुरू कर दिया. इस महीने राज्य में यह दूसरी ऐसी घटना है.
अब यूट्यूब, ओटीटी वगैरह पर लगाम की तैयारी : सूचना और प्रसारण मंत्रालय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों पर “हानिकारक” कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए मौजूदा वैधानिक प्रावधानों और एक नए कानूनी ढांचे की जरूरत का परीक्षण कर रहा है. मंत्रालय ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति को बताया है कि समाज में इस बात की चिंता बढ़ रही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर इसकी आड़ में आपत्तिजनक कंटेंट प्रसारित किया जा रहा है. “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार मंत्रालय के मुताबिक वर्तमान कानूनों के तहत कुछ प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन नुकसान पहुंचाने वाले कंटेंट पर लगाम लगाने के लिए एक सख्त और प्रभावी कानूनी ढांचे की जरूरत है. सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रणवीर अल्लाहबादिया के अश्लील बयानों के बाद न्यायालयों, सांसदों और राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी वैधानिक संस्थाओं ने इस मुद्दे पर चिंता जाहिर की है. दरअसल, वर्तमान में अखबारों और टीवी चैनलों के लिए सख्त नियम हैं, लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म, यूट्यूब और सोशल मीडिया पर कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है. हालांकि इस बात को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं कि अधिकारी “बाहरी” कारणों से विषय-वस्तु को सेंसर करने के लिए नए प्रावधानों का उपयोग कर सकते है.
गाँवों पर उड़ते ड्रोन और ज़मीनों के दस्तावेजीकरण
'स्क्रोल' के लिए वैष्णवी राठौड़ और नोलीना मिंज की रिपोर्ट है कि तमाम खामियों के बावजूद ‘स्वामित्व योजना’, जिसे भारत सरकार ने 2020 में शुरू किया था, विवादों के बावजूद तेजी से आगे सरक रही है. 2020 में शुरू हुई स्वामित्व योजना का मकसद ग्रामीणों को उनकी ज़मीन के कानूनी दस्तावेज देना है. अक्सर गाँवों में लोगों के पास खेतों के रिकॉर्ड तो होते हैं, मगर घरों के नहीं. इस योजना में ड्रोन से गाँवों का नक्शा बनाकर लोगों को संपत्ति कार्ड दिए जाने हैं. पर अब तक यह योजना गलतियों और विवादों में घिरी है.
2022 में दिल्ली के शिकारपुर गाँव के बच्चों ने ड्रोन उड़ते देखा और मजाक में पूछा : "क्या हम पर हमला हो रहा है?" दो साल बाद, गाँव के मंदिर पर लगे पोस्टर से पता चला कि ड्रोन से गाँव का नक्शा बनाया गया. ग्रामीणों को 15 दिन में आपत्ति दर्ज करने को कहा गया, मगर किसी को पहले से खबर नहीं थी. पर डेटा में गलतियाँ थीं. शिकारपुर में कुछ लोगों के नाम गलत थे, किसी को एक से ज़्यादा प्लॉट दिखाए गए. अधिकारी जल्दबाजी में काम कर रहे थे, इसलिए गलतियाँ हुईं.
गाँव वालों से बात नहीं की गई थी. कई जगह ग्राम सभा या लोगों से राय नहीं ली गई. कुछ गाँवों में तो ड्रोन सर्वे की खबर तक नहीं दी गई.
आदिवासियों और महिलाओं की चिंता : आदिवासी इलाकों में ज़मीन सामूहिक होती है, पर योजना में इसे नज़रअंदाज किया गया. पुराने रिकॉर्ड में सिर्फ पुरुषों के नाम होने से महिलाओं के अधिकार खतरे में हैं.
सरकार का दावा है कि यह योजना ग्रामीणों को ज़मीन का कानूनी हक देगी और झगड़े कम करेगी. पर अभी तक यह योजना गाँवों में नए विवाद ही पैदा कर रही है.
स्वामित्व योजना को लागू करने के तरीके और गलत डेटा ने ग्रामीणों की परेशानी बढ़ा दी है.
पाठकों से अपील
आज दुबई में पाकिस्तान से मुकाबला : रविवार को जब दुबई के इंटरनेशनल स्टेडियम में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के एक अहम मुकाबले में भारत-पाकिस्तान भारतीय समयानुसार अपरान्ह ढाई बजे आमने-सामने होंगे तो रोमांच अपने चरम पर होगा. इसे स्टार स्पोर्ट्स टीवी पर देखा जा सकता है, जबकि जियो हॉटस्टार पर स्ट्रीमिंग की जा सकती है. चैम्पियंस ट्रॉफी में भारत बांग्लादेश से अपना पहला मैच जीतकर आराम की स्थिति में है तो वहीं पाकिस्तान को टूर्नामेंट में बने रहने के लिए हर हाल में जीतना होगा. यह मैच रविवार को कब खेला जाएगा. कहां खेला जाएगा और आप इसे कहां से देख सकते हैं, जैसी सारी जानकारी यहां देख सकते हैं. अब तक हुई सारी चैम्पियंस ट्रॉफी की जानकारी, विजेता और भारत-पाकिस्तान के महत्वपूर्ण खिलाड़ियों की जानकारी आपको यहां मिल जाएगी. भारत–पाक मैच में अब तक कौन कब जीता यहां देख सकते हैं. प्वाइंट टेबल में कौन कहां है यहां जान सकते हैं.
एक्सप्लेनर
आज जर्मनी में मतदान
गेब्रियेल एबल्स, द कन्वरसेशन
23 फरवरी को जर्मनी में अचानक घोषित संघीय चुनाव हो रहे हैं, जो चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ की गठबंधन सरकार के टूटने के बाद कराए जा रहे हैं. यह चुनाव देश की संसद (बुंडेसटैग) में सीटें जीतने के लिए लड़ा जाएगा. दुनिया भर में इस चुनाव को लेकर उत्सुकता है, खासकर क्योंकि जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसके नतीजे वैश्विक राजनीति को प्रभावित करेंगे. आइए, सात प्रमुख सवालों के ज़रिए इस चुनाव को समझते हैं :
मुख्य पार्टियाँ कौन-सी हैं? जर्मनी के राजनीतिक स्पेक्ट्रम में मुख्य दल हैं : समाजवादी नीतियों का समर्थन करती लिंके (वाम), मध्यम वाम, श्रमिक अधिकारों पर ज़ोर देने वाली एसपीडी (सोशल डेमोक्रेट), पर्यावरण और जलवायु पर फोकस करने वाली ग्रीन्स, आर्थिक उदारवादी एफडीपी (लिबरल), पारंपरिक मूल्य, बाज़ार-आधारित अर्थव्यवस्था की बात करने वाली सीडीयू/सीएसयू (कंज़र्वेटिव), प्रवासन विरोधी-, यूरोपीय संघ के आलोचक एएफडी (दक्षिणपंथी). और बीएसडब्ल्यू (सारा वागेनक्नेच्ट गठबंधन) : वाम की सामाजिक नीतियाँ, लेकिन प्रवासन विरोधी और रूस-समर्थक.
नतीजे कब आएँगे? मतगणना में कुछ दिन लग सकते हैं. पोस्टल वोट (जो बढ़ रहे हैं) और छोटी पार्टियों के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा. 5% वोट थ्रेसहोल्ड पार करने वाली ही पार्टियाँ संसद में पहुँचेंगी. लिंके, एफडीपी और बीएसडब्ल्यू इस थ्रेसहोल्ड के आसपास हैं. एक खास नियम के तहत, कोई पार्टी यदि तीन जिलों में जीतती है, तो उसे सीटें मिलेंगी.
अगला चांसलर कौन? सभी रायशुमारियों के अनुसार, सीडीयू/सीएसयू सबसे बड़ी पार्टी बनेगी और इसके नेता फ्रेडरिक मेर्ज़ अगले चांसलर होंगे.
क्या एक पार्टी सरकार बना पाएगी? जर्मनी की चुनावी प्रणाली में कोई भी पार्टी अकेले सरकार नहीं बना सकती. गठबंधन बनाना अनिवार्य है, जिसमें संसद की 50% से अधिक सीटें हों. अतीत में केवल 1950 के दशक में कोनराड एडेनॉयर ने एकल सरकार बनाई थी, पर उन्होंने भी गठबंधन को तरजीह दी. जर्मन मतदाता अल्पमत सरकारों को "कमज़ोर" मानते हैं, इसलिए स्पष्ट बहुमत वाले गठबंधन पसंद करते हैं.
गठबंधन ही क्यों? इसकी वजह आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और राजनीतिक संस्कृति है. यह प्रणाली छोटी पार्टियों को भी मौका देती है, लेकिन 5% की बाधा अत्यधिक विखंडन रोकती है. 1980 तक संसद में तीन पार्टियाँ होती थीं, आज सात हैं.
क्या एएफडी सरकार में शामिल होगी? नहीं. अन्य पार्टियाँ एएफडी के साथ गठबंधन से इनकार कर चुकी हैं. सीडीयू के मेर्ज़ ने कहा है कि एएफडी के साथ जाना "कंज़र्वेटिव आत्मा को बेचना" होगा. हालाँकि, पूर्वी जर्मन राज्यों में स्थानीय स्तर पर एएफडी का सहयोग बढ़ रहा है.
यह चुनाव ऐतिहासिक क्यों है? अमेरिकी चुनावों जितना नहीं, पर यह जर्मनी के भविष्य के लिए अहम है. प्रवासन और अर्थव्यवस्था प्रमुख मुद्दे हैं. मतदाताओं में निराशा और राजनीति के प्रति अविश्वास बढ़ा है. स्कोल्ज़ सरकार के झगड़ों से तंग आकर 76% मतदाता चुनाव चाहते हैं. हालाँकि, अल्प समय में मतदान प्रतिशत कम हो सकता है. एएफडी युवाओं और निष्क्रिय मतदाताओं को जगाने में सफल रही है, पर बुजुर्ग मतदाता निर्णायक होंगे.
यह चुनाव जर्मनी को नई दिशा दे सकता है. गठबंधन वार्ताएँ जटिल होंगी, खासकर यदि एफडीपी या बीएसडब्ल्यू थ्रेसहोल्ड पार करते हैं. सीडीयू/सीएसयू और एसपीडी या ग्रीन्स के बीच गठबंधन संभावित है. एएफडी का बढ़ता प्रभाव चिंताजनक है, पर अभी वह राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग है. जर्मनी की स्थिरता और यूरोपीय नेतृत्व की भूमिका इस चुनाव पर निर्भर करेगी.
एडवोकेट एक्ट वापस :'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि केंद्र सरकार ने वकील (संशोधन) विधेयक 2025 वापस ले लिया है. इस बिल का मसौदा 28 फरवरी तक सार्वजनिक परामर्श और सुझाव के लिए विधि विभाग की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था, लेकिन इसे बार काउंसिल और वकीलों के विरोध का सामना करना पड़ा.
पोप फ्रांसिस की हालत गंभीर : 'द गार्डियन' की खबर है कि वेटिकन ने शनिवार, 22 फरवरी को कहा कि पोप फ्रांसिस एक लंबे अस्थमैटिक अटैक के बाद गंभीर स्थिति में हैं. उनका इलाज चल रहा है और इसे नियंत्रित करने के लिए उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखना पड़ा. 88 वर्षीय पोप फ्रांसिस, जो पिछले एक सप्ताह से एक जटिल फेफड़ों के संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती थे, उन्हें एनीमिया से जुड़ी एक स्थिति का पता चलने के बाद रक्त ट्रांसफ्यूजन भी दिया गया, वेटिकन ने देर रात एक अपडेट में यह जानकारी दी.
यूपी में सियासी बिसात बदलने की आहट : अभी तक कभी ऐसा नहीं हुआ, जब बीजेपी के खिलाफ उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस मिल कर लड़ी हों, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे हैं. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और 2025 में सपा और कांग्रेस मिल कर लड़ी थीं. वरिष्ठ पत्रकार और संपादक शंभूनाथ शुक्ल ने ‘टीवी 9’ में लिखा है कि नेता विपक्ष (LOP) राहुल गांधी ने गुरुवार को रायबरेली में कहा यदि बसपा लोकसभा चुनाव में उनके साथ मिल कर लड़ती तो उत्तर प्रदेश में भाजपा (BJP) का सफाया तय था. उन्होंने कहा, पता नहीं क्यों मायावती चुनाव लड़ने को लेकर उदासीन रुख अपनाए हैं. राहुल गांधी ने यह बात तब कही, जब एक दलित युवक ने उनसे कांशीराम और मायावती के बारे में पूछा. उसने कहा था कि दलितों के हालात तब बदले जब बहन मायावती सत्ता में आईं. इसके बाद राहुल गांधी ने उससे कहा कि चुनाव के पूर्व हमने उनसे इंडिया गठबंधन में आने को कहा था. यदि ऐसा होता तो हमारे लिए सत्ता की डगर आसान होती.
फैक्ट चेक
बुजुर्गों को रेलवे रियायत की फेक़ न्यूज़ पकड़ी गई
हाल ही में एक खबर उड़ी कि भारतीय रेलवे में वरिष्ठ नागरिकों के लिए छूट योजना चल रही है. ये दावा सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में रहा. ऑल्ट न्यूज़ ने अब इस मामले का फैक्ट चेक किया है और पाया है कि दावा फर्जी है. एक्स यूज़र संजय वाडेकर के इस वायरल मैसेज में दावा किया गया था कि रेलवे ने वरिष्ठ नागरिक यात्रियों के लिए किराए में बड़ी राहत देने की घोषणा की है और 15 फरवरी 2025 से महिलाएं रेल टिकटों पर 50% की छूट प्राप्त करेंगी, जबकि पुरुषों को 40% की छूट मिलेगी. यह भी दावा किया गया कि यह योजना कोरोना वायरस महामारी के दौरान बंद कर दी गई थी और अब इसे फिर से शुरू किया जा रहा है. संजय वाडेकर के एक्स प्रोफाइल में यह उल्लेखित है कि वे कथित तौर पर बीजेपी कार्यकर्ता हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं.
2 सेंटीमीटर बढ़ गया समुद्र का स्तर : ग्लेशियरों के पिघलने के कारण इस सदी में समुद्र स्तर में लगभग 2 सेंटीमीटर का इजाफा हुआ है, यह एक दशकों लंबे अध्ययन से सामने आया है. 'द गार्डियन' की खबर है कि इस अध्ययन में पाया गया कि 2000 और 2023 के बीच दुनिया के ग्लेशियरों ने मिलकर 6.542 ट्रिलियन टन बर्फ खो दी, जिससे वैश्विक समुद्र स्तर में 18 मिमी (0.7 इंच) की वृद्धि हुई. धरती पर तकरीबन 2 बिलियन (अरब) लोग ग्लेशियरों से निकलने वाले पानी पर निर्भर हैं, ऐसे में ग्लेशियर्स का पिघलना एक बड़ी समस्या खड़ी कर रहा है.
कटाक्ष
राकेश कायस्थ : गुरु घंटाल से कैसे निपटेंगे विश्वगुरु?
गुरु, महागुरु, गुरु घड़ियाल और विश्वगुरु सब चक्करघिन्नी बन चुके हैं, क्योंकि सबसे बड़ी ताकत के पास अब गुरु घंटाल है. धन्य हो अमेरिका की जनता. चुना भी तो ऐसा आदमी कि अगले चार साल तक पूरी दुनिया को नाच नचाता रहेगा.
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, आचार-व्यवहार, शिष्टाचार सबका ‘अचार’ लगाकर ट्रम्पवा पूरी दुनिया को बेचेगा और जब बाकी दुनिया अपना माल बेचने अमेरिका आएगी तो मनमाना टैरिफ लगाएगा. कूटनीति के किसी सिद्धांत या किसी तर्क से ट्रम्प को नहीं समझा जा सकता है.
ये वही आदमी है, जिसके लिए अपने वाले विश्वगुरु ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ का नारा बुलंद करके वोट मांगने गये थे. अहमदाबाद में राजा-महाराजाओं की तरह स्वागत किया था. मगर नमकहरामी देखो, ना जाने किस जन्म का बदला निकाल रहा है.
कहते हैं कि बाइडेन के कार्यकाल के आखिरी साल में जब साहेब अमेरिका गये थे, उसी समय से रिश्ते बिगड़े हैं. तब हवा डेमोक्रेट के पक्ष में थी और साहब की हमेशा जीतने वालों से रिश्तेदारी होती है. बस यहीं गलती से थोड़ा मिस्टेक हो गया. माई डियर फ्रेंड दोलांड को साहेब ने इग्नोर मार दिया. कुछ देशों के शासन प्रमुख अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रम्प से मिले थे, लेकिन अपने साहब नहीं गये. ट्रम्पवा समझ गया ये कि ये मुझे मामू बना रहे थे और बदला लेने पर उतारू हो गया.
अमेरिका की बुद्धिमान जनता ने ट्रम्प को फिर से पॉवर में ला दिया. विदेश मंत्री कई दिन तक अमेरिका में डेरा डाले रहे, लेकिन साहब के लिए शपथ ग्रहण समारोह का न्यौता नही जुगाड़ पाये. साहेब किसी तरह बाद में पहुंचे तो बेहद ठंडा स्वागत हुआ. बाद में पता चला कि वो आधिकारिक यात्रा थी ही नहीं. साहब अपने निजी प्रयासों से अप्वाइंटमेंट लेकर संबंध सुधारने गये थे. मुझे यहां उनसे हमदर्दी है, क्योंकि मामला आखिर देश से जुड़ा हुआ है.
साहेब ने कहा लड़ाई-लड़ाई माफ करो, लेकिन लगता है गुरु घंटाल का बदला पूरा नहीं हुआ. प्रेस कांफ्रेंस में साहब सामने बैठे रहे और ट्रम्पवा खुलेआम कहता रहा कि ये जितना टैक्स लगाएंगे हम भी उतना ही लगाएंगे. कूटनीति के इतिहास में ऐसी बदतमीजी पहले किसने देखी है?
साहेब वापस लौटे और गुरु घंटाल ने रिटर्न गिफ्ट में बिना वीज़ा अमेरिका पहुंचे भारतीयों की अगली खेप भिजवा दी. इस बार भी हथकड़ी और बेड़ी लगवाई. आखिर इस तरह की दुष्टता का क्या मतलब? दुनिया भर के ना जाने कितने देशों के नागरिक अमेरिका में गैर-कानूनी तौर पर रह रहे हैं, लेकिन सिर्फ भारत को नीचा दिखाने का क्या प्रयोजन?
साहेब ने अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रम्प के रिंग मास्टर इलॉन मस्क से पींगे बढ़ाईं और बदले में मन-माफिक खबर भी आई. टेस्ला ने भारत आने की घोषणा कर दी और ये खबर भी तैरने लगी कि इलेक्ट्रिक कार से जुड़ी ड्यूटी में भारत बदलाव के लिए तैयार है. लेकिन गुरु घंटाल ट्रम्प बीच में आ गया. अगले ही दिन खबर छप गई कि ट्रम्प खुलेआम कह रहा है कि टेस्ला को भारत नहीं जाना चाहिए.
ऐसा लगता है कि कोई कंजूस बूढ़ा अपने घर के दरवाज़े पर बैठ गया है और पड़ोसन को एक कटोरी चीनी देती बहू को आंखे दिखा रहा है या चाय पीने आए पड़ोसी को बेइज्जत करके भगा रहा है. ट्रम्प सिर्फ भारत नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द है. उसे लगता है कि इधर-उधर से सब कुछ छीनकर वो अमेरिका को फिर से महान बना देगा. साथ खड़े अपने साहब ने हां में हां मिलाते हुए कहा था, हम भी भारत को महान बना देंगे. कुछ नमूने और इकट्ठा होंगे, सबके देश महान बनेंगे, लेकिन पता नहीं दुनिया का क्या होगा?
हंसी-ठट्ठे से अलग दो-तीन गंभीर बातें. पहली बात ये कि कूटनीतिक मोर्चे पर भारत इस वक्त बेहद मुश्किल स्थिति में है. रूस की मौजूदगी से दुनिया में शक्ति संतुलन था, लेकिन रूस अब अमेरिका के नजदीक जाना चाहता है. गाल बजाने वाले देशों से अलग चीन चुपचाप अपना काम कर रहा है और विश्व को प्रभावित करने के मामले में अपनी स्थिति अमेरिका के बराबर बना चुका है.
भारत के लिए जिस 'सॉफ्ट पावर' शब्द का इस्तेमाल किया जाता था, उससे बीजेपी-आरएसएस को बहुत चिढ़ थी. उन्हें लगता था कि अपना स्वतंत्र वजूद रखने की बात कहना एक तरह का ढोंग है और अमेरिका की गोद में जाकर बैठ जाना ही हर समस्या का हल है. मोदी के नेतृत्व में भारत ने यही किया. नतीजा ये हुआ कि भारत की बारगेनिंग पावर पूरी तरह खत्म हो गई. अमेरिका को पहले की तरह अब इस बात की चिंता नहीं है कि कहीं रूस-चीन और भारत एक साथ आ गये तो क्या होगा?
धारा-370 हटाने का फैसला मोदी ने राजनीतिक फायदे के लिए किया और इसके नतीजे में छह महीने के भीतर गलवान हो गया. चीन ने ताकत दिखाने के लिए अरूणाचल का एक हिस्सा कब्जा लिया और साहब को ये कहना पड़ा कि ना कोई घुसा, ना कोई घुसा है.
भारत कोशिश कर रहा है कि किसी भी मान-मनौव्वल के साथ चीन को इस बात के लिए राजी कर लिया जाये कि वो थोड़ा पीछे हटे और सरकार को अपनी जनता के सामने और शर्मिंदा ना होना पड़े. बॉर्डर पर शांति नज़र आये, चाइनीज़ एप फिर बहाल हों और साहब माई डियर चाइनीज़ फ्रेंड को झूला-झुलाते हुए कह सकें-सब चंगा सी. लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
विश्वगुरु के पत्ते एक के बाद एक करके गलत पड़ते जा रहे हैं. देश की आर्थिक स्थिति बेहद डांवाडोल है और इन सबके बीच अमेरिका की तख्त पर एक ऐसा नमूना फिर से आ बैठा है, जो एक दिन भी दुनिया को शांति से नहीं रहने देगा. भारत ही नहीं, बल्कि हर सहयोगी देश को घुटने पर लाने का इरादा लेकर ट्रम्प काम कर रहा है. गुरु घंटाल से निपटने की क्या तरकीब विश्वगुरु निकालते हैं, इससे भारत के आने वाले चार साल तय होंगे.
नेचर इनफोकस फोटोग्राफी प्रतियोगिता प्रकृति और वन्यजीव संरक्षण के महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने वाली तस्वीरों के माध्यम से प्रतिभाशाली फोटोग्राफर्स को सम्मानित करती है. यह वार्षिक प्रतियोगिता न केवल प्राकृतिक इतिहास की शक्तिशाली झलकियाँ पेश करती है, बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी बढ़ाती है. प्रतियोगिता में हर साल प्रकृति की सुंदरता और उसकी चुनौतियों को दर्शाती कलात्मक तस्वीरों का एक अनूठा संग्रह देखने को मिलता है. विजेताओं का चयन उनकी रचनात्मकता, तकनीकी कौशल और संदेश की प्रभावशीलता के आधार पर किया जाता है. आप देख सकते हैं इन चुनिंदा चित्रों को यहां पर.

चलते-चलते
भारत की प्रत्युषा जो व्हेल्स की बातचीत सुनती है!
प्रत्युषा शर्मा एमआईटी में पीएचडी कर रही हैं. व्हेल्स की "भाषा" समझने की कोशिश कर रही हैं… व्हेल्स एक-दूसरे से बात करने के लिए 'कोडा' नामक आवाज़ें निकालती हैं, जो छोटी-छोटी क्लिक जैसी होती हैं… प्रत्युषा इन आवाज़ों को कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से समझना चाहती हैं... जैसे उन्होने पता लगाया कि स्पर्म व्हेल्स की आवाज़ें हंपबैक व्हेल्स के गानों जैसी नहीं, बल्कि तेज़ रिदम वाली होती हैं, जैसे बीटबॉक्सिंग. ये आवाज़ें उनके रोजमर्रा के काम, जैसे शिकार करने में या एक-दूसरे को पहचानने में मदद करती हैं… उनका मकसद है कि व्हेल्स की भाषा डिकोड करके यह पता लगाना कि वे कैसे सोचती हैं, समूह में कैसे रहती हैं, और अपने पर्यावरण से कैसे जुड़ी हैं… इससे समुद्री जीवन को बचाने में भी मदद मिलेगी…
शोध के लिए व्हेल्स पर डिजिटल टैग लगाए जाते हैं, जो उनकी आवाज़ें, गहराई, और हरकतें रिकॉर्ड करते हैं… एआई इन रिकॉर्डिंग्स में पैटर्न ढूंढ़ता है… 2024 के एक अध्ययन में पता चला कि व्हेल्स की भाषा एक जटिल कोडिंग सिस्टम है, जहाँ हर आवाज़ की अपनी रिदम और गति होती है.. प्रत्युषा कहती हैं कि भारत की भाषाई विविधता ने उन्हें सिखाया कि भाषा दुनिया को देखने का तरीका बदल देती है… इसलिए, व्हेल्स की भाषा समझकर वे उनकी ज़िंदगी को बेहतर जानना चाहती हैं… यह प्रोजेक्ट सीईटीआई नामक संस्था के साथ चल रहा है, जहाँ समुद्री वैज्ञानिक, भाषा विशेषज्ञ, और एआई एक्सपर्ट्स मिलकर काम करते हैं… एआई अकेले काम नहीं कर सकता, इसलिए व्हेल्स के व्यवहार और पर्यावरण को समझने के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जाती है… प्रत्युषा ने आईआईटी दिल्ली से पढ़ाई की और टोक्यो में होंडा जैसी कंपनियों में काम किया है... वे हिंदी, तेलुगू, जापानी, और अंग्रेजी बोलती हैं…
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.