23/03/2025 : डिलिमिटेशन पर विपक्ष लामबंद |जस्टिस वर्मा पर कार्रवाई | सुशांत राजपूत की मौत आत्महत्या निकली | सोने के बिस्कुट फंस गये हैं सरकार के गले में | थाली बजवाने की 5वीं बरसी
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा !
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
| आज की सुर्खियां
नागपुर हिंसा में पहली मौत
महायज्ञ में ब्राह्मणों पर फायरिंग, एक को गोली लगी
भाजपा नेता ने अपने ही परिवार पर चलाई गोली, तीन बच्चों की मौत
मणिपुर विस्थापितों को कानूनी सहायता देने का वादा
तिरुमाला में सिर्फ हिंदुओं को काम करना चाहिए
नोएडा स्पोर्ट्स परियोजना में ₹9,000 करोड़ का ‘खेल’!
‘कोई भी पुरस्कार छोटा या बड़ा नहीं होता’
हिंदी के प्रसिद्ध कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को शनिवार को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा हुई है. यह पुरस्कार पाने वाले वे 12वें हिंदी लेखक है. छत्तीसगढ़ के किसी साहित्यकार को मिलने वाला यह पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार है. पुरस्कार के साथ 11 लाख रुपये, सरस्वती की कांस्य प्रतिमा और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा. प्रख्यात कहानीकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रतिभा राय की अध्यक्षता में ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया. समिति ने कहा है कि यह सम्मान उन्हें हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए प्रदान किया जा रहा है. विनोद कुमार शुक्ल का जन्म एक जनवरी, 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हुआ था.
पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने कहा- 'मुझे भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल रहा है, यह जानकर खुशी हुई. अब तक मुझे जितने भी पुरस्कार मिले हैं, उन सभी ने मुझे खुशी दी है. मेरी दृष्टि से कोई भी पुरस्कार छोटा या बड़ा नहीं होता.'
विनोद जी के जीवन और रचना कर्म पर ब्यौरा नवोदित शक्तावत ने विस्तार से नई दुनिया में यहां दिया है. समालोचन में पीयूष दईया के साथ उनकी बातचीत आप यहां पढ़ सकते हैं. बहुत साल पहले बीबीसी में हरकारा टीम से निधीश त्यागी ने अमरेश द्विवेदी के साथ रेडियो के लिए लंबी बातचीत की थी, जिसका टेक्स्ट आप यहां पढ़ सकते हैं. सीजी खबर ने उन पर हाल ही में एक छोटी फिल्म बनाई है, जिसे आप यहां देख सकते हैं. उनकी कविताएं हिंदवी पर यहां पढ़ सकते हैं. शनिवार को रवीश ने अपना कार्यक्रम भी विनोद जी पर केंद्रित रखा.
डिलिमिटेशन पर विपक्ष लामबंद
आंध्र को छोड़ दक्षिण के सभी सत्तारूढ़ दलों में एकता, पंजाब के सीएम भगवंत मान, ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक भी स्टालिन के मंच पर पहुंचे
लोकसभा सीटों के परिसीमन (डिलिमिटेशन) के मुद्दे पर केंद्र सरकार से मोर्चा लड़ा रहे तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन को, सिवाए आंध्रप्रदेश के चंद्रबाबू नायडू के, दक्षिण के सभी राज्यों के सत्तारूढ़ दलों का समर्थन मिल गया है. शनिवार को स्टालिन के नेतृत्व में बनी संयुक्त कार्य समिति (ज्वाइंट एक्शन कमेटी) की बैठक में प्रस्ताव पारित कर मांग की गई कि परिसीमन को अगले 25 सालों के लिए और रोक दिया जाए. यानी, 1971 की जनसंख्या के आधार पर किये गए परिसीमन के अनुसार लोकसभा सीटों की मौजूदा संख्या यथावत रहे. प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करने वाले राज्यों में संवैधानिक संशोधन लागू किया जाना चाहिए. बैठक में केरल, तेलंगाना और पंजाब के मुख्यमंत्री, कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री के अलावा बीजू जनता दल, बीआरएस और शिरोमणि अकाली दल के प्रतिनिधि भी शामिल हुए.
किसने क्या कहा :-
एमके स्टालिन : परिसीमन के मुद्दे पर हमें एकजुट रहना होगा, अन्यथा हमारी पहचान खतरे में पड़ जाएगी. संसद में हमारा प्रतिनिधित्व कम नहीं होना चाहिए. हमें इस राजनीतिक लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कानूनी पहलुओं पर भी विचार करना होगा. हम परिसीमन के खिलाफ नहीं, निष्पक्ष परिसीमन के पक्ष में हैं.
पिनराई विजयन : परिसीमन तलवार की तरह लटक रहा है. इस मुद्दे पर केंद्र की भाजपा सरकार बिना किसी परामर्श के आगे बढ़ रही है. दक्षिण की सीटों में कटौती और उत्तर में बढ़ोतरी भाजपा के लिए फायदेमंद होगी. उत्तर में उनका प्रभाव है.
रेवंत रेड्डी : अगर सीटों का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर हुआ, तो दक्षिण भारत की राजनीतिक ताकत घटेगी और उत्तर के राज्य हावी हो जाएंगे. यह भौगोलिक दंड है, जो जनसंख्या नियंत्रण लागू करने वाले राज्यों को मिलेगा.
डीके शिवकुमार : लोकतंत्र और संघीय व्यवस्था की नींव खतरे में है. लड़ाई संख्या को लेकर नहीं, अपितु दक्षिण के राज्यों की पहचान और धरोहर की है. हमारा 1500 वर्षों का इतिहास है.
भगवंत मान : परिसीमन के जरिए भाजपा उन राज्यों में सीटें कम कर रही है, जहां वह जीत नहीं पाती है. क्या दक्षिण भारत को जनसंख्या नियंत्रण के लिए दंडित किया जा रहा है? पंजाब में सीटें कम हो जाएंगी, क्योंकि राज्य में भाजपा जीत नहीं पा रही है.
नवीन पटनायक : संसद में सीटों की संख्या निर्धारित करने के लिए जनसंख्या ही एकमात्र मानदंड नहीं होना चाहिए. क्योंकि दक्षिण के राज्यों के अलावा ओडिशा, पंजाब और पश्चिम बंगाल जनसंख्या नियंत्रण के राष्ट्रीय एजेंडा पर अमल करने के लिए कड़ी मेहनत की है.
केटी रामाराव (बीआरएस) : दक्षिण भारत, जो देश की कुल जनसंख्या का केवल लगभग 19 प्रतिशत है, देश की जीडीपी में 36 प्रतिशत का योगदान देता है. इसलिए देश की जनसंख्या नीति और अर्थव्यवस्था में उसके योगदान का सम्मान किया जाना चाहिए. केंद्र सरकार प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के अनुसार विधानसभाओं में सीटों की संख्या बढ़ा सकती है, ताकि शासन में दक्षता में सुधार हो सके. पर जहां तक संसद का सवाल है, हम मानते हैं कि लोकसभा सीटों की वर्तमान संख्या को बनाए रखना बेहतर होगा.
जस्टिस वर्मा के जलते मक़ान से नकदी मिलने की तस्दीक, वीडियो फुटेज जारी
दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास में 14 मार्च को आग लगने के बाद नकदी पाए जाने की पहली आधिकारिक पुष्टि करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अपनी आंतरिक जांच रिपोर्ट जारी की है. इसके साथ ही नकदी मिलने का वीडियो फुटेज भी जारी किया है. संशोधित रिपोर्ट में दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र उपाध्याय ने 21 मार्च को लिखे एक पत्र में न्यायमूर्ति वर्मा से उनके आधिकारिक बंगले में स्थित कमरे में ‘नकदी की मौजूदगी का हिसाब’ मांगा था. न्यायमूर्ति वर्मा ने अपने आधिकारिक जवाब में इन आरोपों से इनकार किया है. उन्होंने कहा, “उनका परिवार जिस परिसर में रहता है, हैं, वहां से कोई भी मुद्रा बरामद नहीं हुई है."
यह रिपोर्ट भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की ओर से जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने के कुछ घंटों बाद जारी की गई. शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को फिलहाल न्यायमूर्ति वर्मा को कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपने के लिए कहा गया है और आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है. इसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस अनु शिवरामन को शामिल किया गया है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को उनके पैतृक इलाहाबाद हाई कोर्ट में वापस भेजने का निर्णय लिया था, हालांकि तबादला प्रक्रियाधीन है. सरकार ने इसे अब तक मंजूरी नहीं दी है. इस बीच शुक्रवार सुबह सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की एक पूर्ण बैठक में यह सुझाव दिया गया है कि दंडात्मक तबादला पर्याप्त नहीं होगा. जज के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जानी चाहिए.
नागपुर हिंसा में पहली मौत
नागपुर हिंसा में शनिवार को पहली मौत दर्ज की गई. घायल 40 वर्षीय इरफान अंसारी का शनिवार को इलाज के दौरान निधन हो गया. पेशे से वेल्डर अंसारी हिंसा वाली रात (17 मार्च) नागपुर रेलवे स्टेशन से इटारसी के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए घर से निकला था, तभी हिंसा का शिकार हो गया. इस बीच पुलिस ने माइनॉरिटीज़ डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हामिद इंजीनियर को भी गिरफ्तार कर लिया है. अध्यक्ष शमीम खान पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों की संपत्ति बेचकर की जाएगी. जरूरत पड़ी तो बुलडोजर भी चलाया जाएगा. सीएम ने बताया कि पुलिस की महिला आरक्षक के साथ छेड़छाड़ की खबर गलत है. उन पर पत्थर जरूर फेंके गए थे. इधर शनिवार शाम को शहर के कुछ इलाकों से कर्फ्यू हटा लिया गया. 11 में से 10 थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू से राहत दी गई है.
मुस्लिमों को आंख दिखाने वाले को बख्शेंगे नहीं : उधर, मुंबई में एक रोज़ा इफ्तार कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा, जो भी मुस्लिम भाइयों को आंख दिखाएगा, दो समूहों के बीच संघर्ष भड़काकर कानून व्यवस्था को बाधित करेगा और कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश करेगा, वह चाहे कोई भी हो, उसे किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा. कहा- रमजान हमें एकता और भाईचारे का संदेश देता है.
महायज्ञ में ब्राह्मणों पर फायरिंग, एक को गोली लगी : हरियाणा के कुरुक्षेत्र में आयोजित एक ‘महायज्ञ’ में आयोजक के सुरक्षा गार्ड के फायरिंग करने से एक नाबालिग आशीष कुमार (लखनऊ) गोली लगने से घायल हो गया. जबकि उत्तरप्रदेश के प्रिंस को पथराव में चोटें आई हैं. विवाद बासी खाने को लेकर हुआ. पिछले चार दिनों से चल रहे इस महायज्ञ में शामिल होने देश भर से लगभग डेढ़ हजार ब्राह्मण कुरुक्षेत्र पहुंचे हैं. उनकी शिकायत बासी भोजन को लेकर थी. फायरिंग से नाराज ब्राह्मणों ने कुरुक्षेत्र-पेहोवा रोड भी जाम कर दिया.
हेट स्पीच | फिर यति नरसिंहानंद : डासना देवी मंदिर के विवादास्पद पुजारी यति नरसिंहानंद गिरी पर एक बार फिर अपमानजनक टिप्पणी करने का मामला दर्ज किया गया है. इस बार उस पर महात्मा गांधी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और पुलिस को गाली देने का मामला दर्ज किया गया है. अधिकारियों ने शनिवार को बताया कि गिरि पर एक वीडियो में नफरत फैलाने और जिले के शीर्ष पुलिस अधिकारियों को गाली देने का भी मामला दर्ज किया गया है.
न्यायाधीशों ने मणिपुर विस्थापितों को कानूनी सहायता देने का वादा किया : शनिवार 22 मार्च को मणिपुर में अलग-अलग राहत शिविरों में रह रहे सैकड़ों मैतेई और कुकी लोगों ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के प्रतिनिधिमंडल से जातीय हिंसा के कारण हाथ से निकल गए अपने घरों और ज़मीनों को वापस पाने में मदद की गुहार लगाई. शीर्ष न्यायालय के जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ और एमएम सुंदरेश के नेतृत्व में मणिपुर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी कृष्णकुमार और जस्टिस गोलमेई गैफुलशुइलू के साथ प्रतिनिधिमंडल ने पहाड़ियों में चुराचांदपुर और इंफाल घाटी में बिष्णुपुर जिले में शिविरों का दौरा किया और विस्थापितों को कानूनी सहायता सेवाओं का आश्वासन दिया और उनकी वापसी के लिए समर्थन का भी वादा किया. स्थानीय कानूनी समूह के विरोध के कारण चुराचांदपुर नहीं गए मैतेई जज जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह बिष्णुपुर में सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ शामिल हुए. सिंह ने कहा, “हमें अतीत, दर्द या त्रासदी में नहीं जीना चाहिए.” इम्फाल घाटी के मैतेई समुदाय और पहाड़ियों की कुकी-ज़ो आदिवासी आबादी के बीच जातीय संघर्ष में 60,000 से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए हैं और 260 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई है. घरों से निकाले गए लोग अब घाटी और पहाड़ियों में 290 शिविरों में शरण लिए हुए हैं. इस बीच चुराचांदपुर जिला मुख्यालय में 9 साल की लड़की मृत पाई गई है. इस मामले में 15 को हिरासत में लिया गया है. पुलिस को संदेह है कि उसके साथ बलात्कार हुआ है. शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया है.
चंद्रबाबू : तिरुमाला में सिर्फ हिंदुओं को काम करना चाहिए
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने शुक्रवार को कहा कि तिरुमाला में भगवान श्री वेंकटेश्वर मंदिर में केवल हिंदुओं को ही काम पर रखा जाना चाहिए और अन्य धर्मों के कर्मचारी अगर अब भी काम कर रहे होंगे तो उन्हें स्थानांतरित कर दिया जाएगा. नायडू की यह टिप्पणी मंदिर प्रबंधन समिति तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) बोर्ड की ओर से ‘गैर-हिंदू धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने वाले और अभ्यास करने वाले’ 18 कर्मचारियों को स्थानांतरित करने के करीब दो महीने बाद आई है.
इसके अलावा हिंदू समूहों और विभिन्न हिंदू धार्मिक संस्थानों के संतों के बड़े पैमाने पर विरोध को देखते हुए नायडू ने शुक्रवार को तिरुपति जिले के अलीपीरी में तिरुमाला पहाड़ियों के पास होटल निर्माण के लिए ओबेरॉय समूह की सहायक कंपनी मुमताज होटल्स, एमार कंस्ट्रक्शन और देवलोक समूह को दी गई अनुमति भी रद्द करने की घोषणा की.
तीनों होटलों में से, मुमताज होटल के लिए भूमि आवंटन ने विवाद को जन्म दिया था. कई हिंदू संगठनों और विभिन्न मठों के संतों ने मुमताज होटल को भूमि आवंटन का विरोध करते हुए कहा था कि यह तिरुमाला का अपमान है. इसके विरोध में कई संतों ने 12 फरवरी को अलीपीरी के पास विरोध प्रदर्शन भी किया था. इससे पहले, दिसंबर में, तिरुमाला क्षेत्र संरक्षण समिति के अध्यक्ष टी ओंकार और आंध्र प्रदेश साधु परिषद के अध्यक्ष श्रीनिवासनंद स्वामी ने हाईकोर्ट में अलग-अलग जनहित याचिकाएँ (पीआईएल) दायर कर मुमताज होटल की मूल कंपनी ओबेरॉय होटल को भूमि आवंटन रद्द करने की माँग की थी.
नायडू ने इस मौके पर यह भी कहा कि ओबेरॉय समूह ने सरकार से इस आश्वासन के साथ संपर्क किया था कि क्षेत्र के धार्मिक मूल्यों के साथ तालमेल बिठाया जाएगा और सिर्फ शाकाहारी भोजन परोसा जाएगा. इतना ही नहीं समूह ने मुमताज होटल्स का नाम बदलने का भी प्रस्ताव रखा है. इसके बावजूद हमने उनसे कह दिया कि हम अनुमति नहीं दे सकते.
पाठकों से अपील
भाजपा नेता ने अपने ही परिवार पर चलाई गोली, तीन बच्चों की मौत
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां भाजपा के एक नेता ने अपने ही परिवार पर गोली चला दी. इसमें दो बच्चों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि पत्नी और एक अन्य बच्चे को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया. इलाज के दौरान तीसरे बच्चे ने भी दम तोड़ दिया. इस घटना से पूरे सहारनपुर में सनसनी फैल गई है. यह घटना गंगोह तहसील के सगनखेड़ा गांव की है, जहां भाजपा जिला समिति के सदस्य योगेश रोहिल्ला ने कथित तौर पर अपनी पत्नी नेहा और तीन बच्चों पर गोली चला दी. नेहा की हालत नाजुक बनी हुई है और उसे बेहतर इलाज के लिए एक बड़े अस्पताल में रेफर किया गया है. पुलिस के मुताबिक, रोहिल्ला ने खुद पुलिस को फोन कर इस घटना की जानकारी दी. उसने फोन पर कबूल किया - "मैंने अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार दी है." पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल बरामद कर ली है और रोहिल्ला को हिरासत में ले लिया गया है. मामले की जांच जारी है.
नोएडा स्पोर्ट्स परियोजना में ₹9,000 करोड़ का ‘खेल’!
नोएडा स्पोर्ट्स सिटी परियोजना, जिसे कभी विश्वस्तरीय खेल सुविधाओं के साथ-साथ आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्रों के केंद्र के रूप में देखा गया था, अब घोटाले के चलते सुर्खियों में है. 'डेक्कन हेराल्ड' की खबर है कि सीबीआई ने नोएडा में स्पोर्ट्स सिटी प्रोजेक्ट्स के आवंटन, विकास और मंजूरी से जुड़े कथित अनियमितताओं के तीन मामले दर्ज किए हैं, जो 2011 से 2014 के बीच 9000 करोड़ रुपये के 'घोटाले' में बदल गए. इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर कार्रवाई करते हुए एजेंसी ने रियल एस्टेट फर्म्स लॉजिक्स इंफ्रा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, ज़ेनाडू एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड और लोटस ग्रीन कंस्ट्रक्शन्स प्राइवेट लिमिटेड, उनके निदेशकों और नोएडा अथॉरिटी के कुछ अनाम अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसके बाद तलाशी अभियान चलाया गया. एक अधिकारी के अनुसार, नोएडा स्पोर्ट्स सिटी प्रोजेक्ट का उद्देश्य नोएडा के सेक्टर 78, 79 और 150 में विश्व स्तरीय खेल सुविधाओं के साथ आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों का विकास करना था. अधिकारी ने कहा, "यह आरोप लगाया गया कि... परियोजनाओं के आवंटन के बाद, आवंटकों/उप-पट्टाधारकों ने नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों की सांठगांठ से संबंधित शर्तों का कई बार उल्लंघन किया, जिससे राज्य के खजाने को लगभग 9000 करोड़ रुपये का संदिग्ध वित्तीय नुकसान हुआ और कुछ डेवलपर्स को राज्य के खर्च पर अनुचित लाभ मिला." सीबीआई ने आरोप लगाया कि सीएजी रिपोर्ट में इस बड़ी परियोजना में अनियमितताओं की ओर इशारा करने के बाद भी अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया. सीबीआई ने एक बयान में कहा, "इस संबंध में, सीबीआई ने दिल्ली और नोएडा में कई स्थानों पर तलाशी अभियान चलाया, जिससे अभियोगात्मक दस्तावेज, डिजिटल साक्ष्य आदि बरामद हुए."
5 साल बाद सुशांत राजपूत की मौत साधारण आत्महत्या निकली, याद है न उस समय के प्राइमटाइम!
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने शुक्रवार को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच में अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है, जिसमें इसे ‘साधारण आत्महत्या का मामला’ करार दिया गया है. रिपोर्ट दाखिल होने के बाद, बांद्रा मजिस्ट्रेट अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 अप्रैल की तारीख तय की है, जब आगे के आदेश दिए जाएंगे. सीबीआई ने इस मामले में दर्ज दो एफआईआर में नामित सभी व्यक्तियों को आरोप मुक्त कर दिया है, जिनमें अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती, उनके माता-पिता और भाई के साथ-साथ राजपूत की बहन प्रियंका और एक डॉक्टर का नाम भी शामिल था. प्रियंका और डॉक्टर का नाम चक्रवर्ती द्वारा दर्ज कराई गई क्रॉस एफआईआर में आया था. सुशांत सिंह राजपूत 14 जून 2020 को अपने बांद्रा स्थित आवास में मृत पाए गए थे. मामले को बंद करने की मांग करते हुए, सीबीआई ने अदालत के समक्ष एक विविध आपराधिक आवेदन दाखिल किया, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि इन व्यक्तियों की आत्महत्या के लिए उकसाने में कोई संलिप्तता नहीं पाई गई. सीबीआई ने अपनी अंतिम रिपोर्ट के साथ दस्तावेजों और गवाहों की एक सूची भी प्रस्तुत की. सीबीआई के एक अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया - "सीबीआई ने बांद्रा अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि यह एक साधारण आत्महत्या का मामला है." हालांकि, अधिकारियों ने क्लोजर रिपोर्ट के पीछे के कारणों के बारे में कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया.
सुशांत की मौत के वक़्त जिस तरह का तूल उस समय के मेनस्ट्रीम मीडिया ने दिया था शायद आपको याद हो. पूरे प्राइमटाइम शो हर दिन रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के खिलाफ विचहंट की तरह थे. ये दो स्मरणीय वीडियो आप शायद दुबारा देखना चाहें और सोचें कि भारत का समाचार मीडिया कब और कैसे अपनी पटरी से उतरा.
जापान, चीन, दक्षिण कोरिया की सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर बैठक
'रायटर्स' की खबर है कि जापान, चीन और दक्षिण कोरिया के शीर्ष राजनयिक टोक्यो में मिले, जहां उन्होंने बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के बीच पूर्वी एशियाई सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर आम सहमति बनाने की कोशिश की है. जापान के विदेश मंत्री तकेशी इवाया ने बैठक की शुरुआत में कहा- "बढ़ते हुए गंभीर अंतरराष्ट्रीय हालात को देखते हुए, मुझे लगता है कि हम वास्तव में इतिहास के एक अहम मोड़ पर हैं." बैठक के बाद इवाया ने संयुक्त घोषणा में बताया कि तीनों देशों ने इस साल जापान में होने वाले त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन की तैयारियों में तेजी लाने पर सहमति जताई है. इस बैठक में गिरती जन्म दर और बूढ़ी होती आबादी जैसे मुद्दों पर चर्चा शामिल होगी. यह बैठक ऐसे समय हुई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दशकों पुराने गठबंधनों को झकझोर रहे हैं, जिससे चीन के लिए पारंपरिक रूप से वाशिंगटन के सहयोगी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के नए अवसर खुल सकते हैं.
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा- "हमारे तीन देशों की संयुक्त आबादी लगभग 1.6 अरब है और हमारी आर्थिक उत्पादन क्षमता 24 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है. हमारे विशाल बाजार और अपार संभावनाएं हमें महत्वपूर्ण प्रभाव डालने की क्षमता देती हैं." वांग ने आगे कहा कि चीन अपने पड़ोसियों के साथ मुक्त व्यापार वार्ता फिर से शुरू करना चाहता है और 15 देशों के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के सदस्य देशों का विस्तार करना चाहता है. हालांकि, टोक्यो और सियोल के साथ बीजिंग के संबंधों में कई मुद्दों पर गहरे मतभेद बने हुए हैं, जैसे चीन का उत्तर कोरिया को समर्थन. ताइवान के आसपास उसकी बढ़ती सैन्य गतिविधियां और रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस को समर्थन. दक्षिण कोरियाई विदेश मंत्री चो ताए-युल ने बैठक में चीन से उत्तर कोरिया को उसके परमाणु हथियार छोड़ने के लिए राजी करने में मदद करने का अनुरोध किया.
चो ने यह भी कहा- "मैंने जोर देकर कहा कि रूस और उत्तर कोरिया के बीच अवैध सैन्य सहयोग को तुरंत रोकना चाहिए और यूक्रेन युद्ध समाप्त करने की प्रक्रिया में उत्तर कोरिया को उसके गलत कामों के लिए इनाम नहीं मिलना चाहिए." इवाया ने अपने चीनी और दक्षिण कोरियाई समकक्षों से अलग-अलग मुलाकात भी की, जिसमें बीजिंग के साथ छह वर्षों में पहली उच्च-स्तरीय आर्थिक वार्ता शामिल थी. जापान के लिए प्रमुख मुद्दा चीन द्वारा जापानी समुद्री भोजन पर लगाया गया आयात प्रतिबंध था, जो 2023 में फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से अपशिष्ट जल के समुद्र में छोड़े जाने के बाद लगाया गया था. इवाया ने कहा कि उन्होंने चीन से सितंबर में किए गए उस वादे की पुष्टि की, जिसमें समुद्री उत्पादों के आयात को फिर से शुरू करने की बात कही गई थी. इसके साथ ही, उन्होंने जापानी कृषि उत्पादों, जैसे कि गोमांस और चावल के आयात के विस्तार पर भी चर्चा की.
पोप फ्रांसिस की अस्पताल से छुट्टी आज : 'द गार्डियन' की खबर है कि पोप फ्रांसिस जो पिछले पांच हफ्तों से अस्पताल में हैं, रविवार को रोमन जेमेली अस्पताल की खिड़की से लोगों को आशीर्वाद देंगे. 88 वर्षीय पोप को 14 फरवरी को डबल निमोनिया के कारण भर्ती कराया गया था. वेटिकन ने बताया कि उनकी हालत स्थिर है और वे धीरे-धीरे ठीक हो रहे हैं. बीबीसी के मुताबिक उन्हें रविवार को अस्पताल से डिस्चार्ज किया जा सकता है. कार्डिनल विक्टर मैनुअल फर्नांडीज ने कहा कि पोप को फिर से बोलने की आदत डालनी होगी, लेकिन उनकी शारीरिक स्थिति पहले जैसी ही है. फ्रांसिस ने हाल ही में शांति और निरस्त्रीकरण की अपील करते हुए एक पत्र लिखा. उनकी मुलाकात 8 अप्रैल को किंग चार्ल्स और क्वीन कैमिला से हो सकती है.
विश्लेषण
कैसे एल्गार परिषद मामला कल्पना और धोखे पर टिका है!
प्रशांत राही और मौली शर्मा ने 'द पोलिस प्रोजेक्ट' के लिए अपने लंबे लेख के दूसरे हिस्से में लिखा है कि एल्गार परिषद मामला भारतीय न्यायिक प्रणाली और मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. साक्ष्य की कमजोर प्रामाणिकता और न्यायिक प्रक्रिया में देरी ने इस मामले को और जटिल बना दिया है. गढ़चिरोली मामले में आरोपियों की बरी होने के बाद, एल्गार परिषद मामले में भी न्यायिक निर्णय की उम्मीद की जा रही है. हालांकि, इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया की गति और साक्ष्य की प्रामाणिकता पर सवाल बने हुए हैं. यह मामला 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हुए हिंसक घटनाक्रम से जुड़ा है, जहां दलित-बहुजन समुदाय के लोग वार्षिक शहीद स्तंभ (विजय स्तंभ) पर श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र हुए थे. इस घटना के बाद, पुणे पुलिस ने 16 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को एल्गार परिषद कार्यक्रम से जोड़कर गिरफ्तार किया, जो 31 दिसंबर 2017 को आयोजित हुआ था. इन कार्यकर्ताओं पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और अवैध गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गंभीर आरोप लगाए गए, लेकिन अब तक उन्हें हिंसा से जोड़ने वाला कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है.
'द पोलिस प्रोजेक्ट' ने अनगिनत दस्तावेजों को खंगाला, यह जानने के लिए कि वास्तव में क्या हुआ. आरोपियों के माने जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के क्लोन पर कई विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय साइबर फॉरेंसिक जांच हुईं, जिनमें से सभी इस बात की ओर इशारा करती हैं कि सबूतों के निर्माण का पैमाना और प्रकृति अभूतपूर्व थी. यह मामला वैश्विक रूप से एक रचनात्मक संस्थागत कृति के रूप में ध्यान आकर्षित करता है, जो अंधकारमय और जटिल कथा के रूप में उभरता है, जिसकी जड़ें 2013-14 के गढ़चिरौली गिरफ्तारियों तक जाती हैं.
गढ़चिरोली मामले की पृष्ठभूमि
2013-14 में गढ़चिरोली में कुछ कार्यकर्ताओं को "अर्बन नक्सल" के रूप में चिह्नित करके गिरफ्तार किया गया था. इनमें जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा शामिल थे. इन पर आरोप लगाया गया कि वे माओवादी संगठनों के साथ जुड़े हुए हैं. 2017 में गढ़चिरोली अदालत ने इन्हें दोषी ठहराया, लेकिन 2024 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया. इस मामले ने एल्गार परिषद मामले के लिए एक प्रस्तावना का काम किया, क्योंकि दोनों मामलों में कई आरोपी एक ही थे.
हेम मिश्रा पर यह आरोप लगाया गया था कि वह प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के कथित शहरी मोर्चा संगठन, रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF) की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के सहायक प्रोफेसर रहे दिवंगत जीएन साईबाबा के लिए एक संदेशवाहक थे. दावा किया गया था कि मिश्रा को आरडीएफ के एक मेमोरी कार्ड, जिसमें कुछ आपत्तिजनक जानकारी थी, को नर्मदक्का नाम के एक अंडरग्राउंड माओवादी नेता तक पहुंचाने के लिए भेजा गया था. बाद में गढ़चिरौली मुकदमे में आरोपित होने से पहले ही पुलिस हिरासत में जिनकी मृत्यु हो गई. इसी मामले में सितंबर में रायपुर से दो अन्य लोगों को भी पकड़ा गया और उसके बाद अगले साल मई में साईबाबा को गिरफ्तार किया गया. 7 मार्च 2017 को गढ़चिरौली सेशंस कोर्ट में छह लोगों की तेज़ गति से चली सुनवाई में हुई सज़ा ने देशभर और विदेशों में हंगामा खड़ा कर दिया.
अपने 824 पन्नों के दोषसिद्धि निर्णय में, सेशंस जज सूर्यकांत शिंदे ने "अरबन नक्सल" की श्रेणी गढ़ी, जिससे उनका तात्पर्य उन लोगों से था जैसे साईबाबा और उनके सह-आरोपी जो आधुनिक "विकास" परियोजनाओं के रास्ते में खड़े थे. जज का मानना था कि यही वंचित लोगों के जीवन स्तर और कल्याण को बढ़ाने का एकमात्र वैध तरीका है. कुछ ही महीनों में, अति-दक्षिणपंथी प्रचारक विवेक अग्निहोत्री ने इस शब्द का इस्तेमाल स्वराज्य, एक दक्षिणपंथी पत्रिका, के लिए लिखे एक लेख में किया और बाद में इसी नाम की एक किताब के लिए भी. भारत के सार्वजनिक विमर्श में इस शब्द के जरिए कट्टर वामपंथ के समर्थकों को कलंकित करना जल्द ही आम बात हो गई.
एल्गार परिषद मामले की शुरुआत
2018 में भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद, पुणे पुलिस ने 16 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया, जिनमें वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद शामिल थे. इन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने एल्गार परिषद कार्यक्रम के माध्यम से हिंसा भड़काई. हालांकि, अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला है जो इन कार्यकर्ताओं को हिंसा से जोड़ता हो. इनमें से कई कार्यकर्ता गढ़चिरोली मामले में भी शामिल थे और साईबाबा की रिहाई के लिए अभियान चला रहे थे.
इस मामले में सबसे बड़ा मुद्दा साक्ष्य की प्रामाणिकता है. आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से प्राप्त साक्ष्य पर सवाल उठाए गए हैं. कई अंतरराष्ट्रीय साइबर फोरेंसिक प्रयोगशालाओं ने यह साबित किया है कि इन उपकरणों में मैलवेयर के जरिए नकली दस्तावेज डाले गए थे. इसके अलावा, पुलिस ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया, जैसे कि सीजर के समय हैश वैल्यू रिकॉर्ड करना. इससे साक्ष्य की विश्वसनीयता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है.
इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया में लंबी देरी हुई है. कई आरोपी सालों से जेल में बंद हैं, लेकिन अभी तक मुकदमे की सुनवाई शुरू नहीं हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ आरोपियों को जमानत दे दी है, लेकिन कई अन्य अब भी जेल में हैं. इनमें कबीर कला मंच के सदस्य रमेश गैचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप शामिल हैं, जिन पर आरोप है कि वे माओवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं. हालांकि, इन आरोपों का एल्गार परिषद मामले से कोई संबंध नहीं है.
मास्टर स्ट्रोक
सोने के बिस्कुट फंस गये हैं मोदी सरकार के गले में
'ब्लूमबर्ग' में एंडी मुखर्जी की रिपोर्ट है कि भारत में सोने के प्रति प्रेम रखने वाले देश में एक "नेकेड शॉर्ट" सौदे ने भारत सरकार को 13 अरब डॉलर की देनदारी में डाल दिया है. भारत सरकार ने 2015 में सोने से जुड़े बॉन्ड (सोवरिन गोल्ड बॉंड्स) जारी किए, ताकि लोग असली सोना खरीदने के बजाय इन बॉन्ड्स में निवेश करें. इससे सरकार को सस्ते में उधार मिल जाता और देश का सोना आयात करने पर खर्च भी कम होता, लेकिन योजना उलटी पड़ गई. सोने की कीमतें दोगुनी से ज्यादा हो गईं, जिससे सरकार को बॉन्ड पर भारी भुगतान करना पड़ा. अब सरकार के ऊपर 13 अरब डॉलर (1.2 लाख करोड़ रुपये) की देनदारी आ गई है, जिसे देश के करदाताओं को भरना पड़ेगा. सरकार ने बिना हेजिंग (जोखिम से बचाव) के यह दांव लगाया था, मानो उसने सोने की कीमतें गिरने पर शर्त लगा ली हो, लेकिन भारतीयों का सोने के प्रति लगाव सांस्कृतिक और आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा है और इधर कीमतें बढ़ती गईं. कुल मिलाकर देखें तो सरकार ने सोने पर "शॉर्ट पोजिशन" ले ली (यानी सोने के दाम गिरने पर मुनाफा होता), लेकिन कीमतें बढ़ती गईं, जिससे भारी नुकसान हो गया.
एंडी लिखते है कि 2015 में भारत के वित्त मंत्रालय को एक नायाब चतुराई भरा विचार सूझा और वह ये कि क्यों न ऐसी योजना लाई जाए, जिससे आभूषणों से जुड़ा रिटर्न वादा करके सस्ते में उधार लिया जा सके? इस प्रक्रिया में अधिकारी देश को एक महंगी लत से दूर करने की कोशिश करने का विचार लेकर ख्याली पुलाव बना रहे थे. इस योजना में भारतीय दुनिया में अपनी सबसे ऊंची भख जो कि सोने के लिए है, उसे कुछ और भी चमकदार चीज़ पर दांव लगाकर संतुष्ट कर सकते थे. अधिकारियों ने सोचा कि यह "कुछ" केवल एक सरकारी समर्थन प्राप्त निवेश विकल्प हो सकता है, जिससे निवेशक अपने सबसे प्रिय कमोडिटी 'सोना', उसकी कीमत पर सट्टा लगाने के साथ-साथ कुछ नकद भी कमा सकें, वह भी इसे वास्तविक रूप से खरीदे बिना. लेकिन अधिकारियों ने एक मूल नियम को नज़रअंदाज कर दिया. अगर कोई सौदा सच होने के लिए बहुत अच्छा लगता है, तो शायद वह सच नहीं होता. अब जब यह कड़वी सच्चाई सामने आ रही है, तो भारत की 10 साल पुरानी संप्रभु स्वर्ण बांड योजना सरकार के लिए 13 अरब डॉलर की 'नेकेड शॉर्ट' पोजिशन बन गई है. यह सरकार के गले की हड्डी बन गई है, खासकर ऐसे समय में जब सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं और उनके थमने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है. यह करदाताओं पर निर्भर है कि वे बॉन्डधारकों को वह पैसा दें.
इज़रायल के दक्षिणी लेबनान और गाज़ा पर हमले जारी : 22 मार्च को को इज़रायल ने दक्षिणी लेबनान के गांवों में हवाई हमले किए हैं. रिपोर्ट्स हैं कि कम से कम दो लोग इज़राइली सेना के दक्षिणी लेबनान पर हमलों में मारे गए हैं. उत्तरी इज़राइल की ओर भी रॉकेट दागे गए हैं, हालांकि हिज़्बुल्लाह ने इन रॉकेट हमलों में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया है. इधर ‘अलजजीरा’ की रिपोर्ट है ग़ाज़ा पट्टी में रातभर हुए एक बड़े हवाई हमले में पांच बच्चों की मौत हो गई और कम से कम आठ लोग मलबे में दबे हुए हैं. घायलों तक राहत पहुंचाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि अब भी यहां इज़रायली हमले जारी हैं. पिछले 48 घंटों में ग़ाज़ा में इज़रायली हमलों से कम से कम 130 फ़िलीस्तीनी मारे गए हैं. ग़ाज़ा के सरकारी मीडिया कार्यालय के अनुसार, इज़रायल-ग़ाज़ा संघर्ष में अब तक कम से कम 61,700 फ़िलीस्तीनी मारे जा चुके हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय 1,13,213 घायलों की बात कहता है. अब भी मलबे के नीचे दबे हजारों फ़िलीस्तीनी लापता हैं और मृत माने जा रहे हैं.
स्यू को की कला और अमेरिकी लोकतंत्र पर सवाल

पिकासो की प्रसिद्ध कृति गुएर्निका, जो युद्ध विरोधी भावना का प्रतीक है, दीवारों से चीखती प्रतीत होती है. इसके नीचे लिखा है- "8 दिसंबर 2023 : अमेरिका ने गाजा में मानवीय संघर्षविराम की मांग को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रोक दिया." एक अन्य काले-सफेद चित्र में, धुएं के गुबार के नीचे एक बच्ची डरी-सहमी अपने साथियों, एक भयभीत गधे और कुपोषित कुत्ते को कसकर पकड़े हुए है. उसके पैरों के पास एक मरी हुई बिल्ली पड़ी है और उनके चारों ओर बर्बाद इमारतों के अवशेष दिखाई देते हैं. इसके नीचे लिखा है- "भूख से मर रहे हैं, संघर्षविराम करो!"
ये चित्र ब्रिटिश कलाकार स्यू को के नए संग्रह का हिस्सा हैं, जो अमेरिका में गिरते लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है. उनकी किताब ‘द यंग पर्संस इलस्ट्रेटेड गाइड टू अमेरिकन फासिज्म’ में अमेरिकी सैन्य-औद्योगिक तंत्र, जलवायु संकट, बाल श्रम और पशु क्रूरता जैसे मुद्दों पर तीखी टिप्पणियां की गई हैं. लेखक और कला इतिहासकार स्टीफन एफ. आइजनमैन इस किताब की 40-पृष्ठीय भूमिका में अमेरिकी लोकतंत्र की खामियों पर चर्चा करते हैं. वे अमेरिका की विदेश नीति, इजरायल के गाजा युद्ध में समर्थन और मुक्त भाषण पर हो रहे हमलों की ओर इशारा करते हैं. उनके अनुसार, अमेरिका का फासीवाद कोई नई चीज नहीं है. आइजनमैन का मानना है कि डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी फासीवाद का केवल एक चेहरा हैं. वे बताते हैं कि अमेरिका की नीतियां लंबे समय से फासीवादी रही हैं. फिर चाहे वह वियतनाम, अफगानिस्तान या इराक पर हमला हो, या फिर ग्वांतानामो बे जैसे यातना शिविर चलाना. हालांकि, किताब पर यह आरोप भी लगाया गया है कि यह अमेरिकी फासीवाद को केवल ट्रम्प तक सीमित कर देती है और अमेरिका के इतिहास में हुए अन्य अत्याचारों की अनदेखी करती है. आलोचक यह भी कहते हैं कि किताब में गाज़ा को केवल एक पीड़ित के रूप में दिखाया गया है, जबकि फिलीस्तीनी प्रतिरोध को जगह नहीं दी गई है.
चलते-चलते
लोग कोविड से मर रहे थे, सरकार हमसे थाली बजवा रही थी
31 दिसंबर 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीन के शहर वुहान में कोरोनावायरस का पहला केस मिला था. इसके बाद से लेकर मई 2023 में कोविड-19 महामारी के खात्मे की घोषणा होने तक डब्लूएचओ की मानें तो दुनिया भर में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोरोना से जुड़ी करीब 1.49 करोड़ मौतें हुईं और भारत में 47 लाख लोग मरे. हालांकि, आंकड़े अब भी रहस्य बने हुए हैं, क्योंकि भारत समेत ज्यादातर देशों ने आंकड़ों को छुपाया. भारतीय सरकारी आंकड़े के अनुसार, देश में डब्लूएचओ के अनुमान से 10 गुना कम 5.33 लाख मौतें ही कोरोना से हुई. इसके अलावा कितनों को बीमा का लाभ मिला, इसका भी कोई डेटा उपलब्ध नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी इस बात को मानता है कि कोविड के कारण 5.33 लाख मौतें हुईं, मगर अधिकतर को कोई बीमा लाभ नहीं मिला, क्योंकि देश में बीमा की पहुंच बहुत कम है.
इस दौरान गंगा नदी के किनारे कई शहरों में लाशें बाहर आ गई थीं. सबसे भयावह और हृदय विदारक तस्वीर तो कुंभनगरी प्रयागराज से आई थी. वह मंजर याद कर अब भी दिल दहल जाता है कि लॉकडाउन के कारण कैसे और किन हालात में लाखों मजदूर हजारों मील की यात्रा कर अपने-अपने गांव की ओर रवाना हुए थे और उनमें से कइयों ने रास्ते में ही कोराना, राह की थकन और भूख-प्यास से निढाल होकर दम तोड़ दिये थे.
आपको याद होगा कि आज से पांच साल पहले 24 मार्च को कोविड के कारण 21 दिन का पहला लॉकडाउन लगा था. इस मौके पर पूरे देश से इसे भगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से अपने-अपने घरों से ताली-थाली पीटने का आग्रह किया था. उस वक्त की ढोल, मंजीरे और ताली-थाली पीटते लोगों के वीडियोज को अब अगर आप देखेंगे तो लगेगा कि उस दिन पूरे देश में जैसे कोई जश्न मनाया जा रहा था.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.