23/04/2025 : कश्मीर में क़त्लोग़ारत | रोज़ 474 लोग मरते हैं सड़क हादसों में | सोना 1 लाख पार | धनखड़ फिर बोले | रामदेव को फटकार | जग्गी के स्कूल में पॉक्सो | पुतिन बात करने को राजी | टैरिफ वॉर का असर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
धनखड़ ने फिर मुंह खोला, सिब्बल ने जवाब दिया
सुप्रीम कोर्ट निशिकांत के बयान पर सुनवाई करेगा
जग्गी वासुदेव के स्कूल के 4 कर्मियों पर पॉक्सो
व्हाइट हाउस की फ़्लोर योजनाएं समेत कई संवेदनशील दस्तावेज़ हज़ारों लोगों तक पहुंचे
कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर लेखिका कूमी कपूर करेंगी मुकदमा
पहलगाम में आतंकी हमला, 28 मौतें, दर्जनों घायल
पहलगाम में पर्यटकों के समूह पर आतंकवादियों के हमले के बाद एक पर्यटक को चिकित्सा सुविधा के लिए ले जाते सुरक्षाकर्मी.
‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि मंगलवार को कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने अंधाधुंध गोलीबारी कर दी. इसमें 28 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए. यह हमला 2019 के पुलवामा हमले के बाद से सबसे घातक माना जा रहा है. हमला दोपहर लगभग 2:30 बजे बैसरान घाटी में हुआ, जो पहलगाम के पास स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है और अपने हरे-भरे मैदानों के कारण 'मिनी स्विट्ज़रलैंड' के नाम से मशहूर है. मृतकों में शिवमोगा के एक रियल एस्टेट व्यवसायी मंजुनाथ भी शामिल हैं, जो अपने बेटे के परीक्षा में 96% अंक लाने की खुशी में परिवार के साथ कश्मीर घूमने गए थे. सांसद बी.वाई. राघवेंद्र ने मंजुनाथ की पत्नी पल्लवी के हवाले से बताया कि आतंकवादियों ने गोली चलाने से पहले मंजुनाथ से उनका धर्म पूछा था. एक अन्य मृतक की पहचान ओडिशा के बालासोर निवासी के रूप में हुई है, जो सीआईपीईटी (सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी) में कार्यरत थे. तीसरे मृतक की पहचान तेलंगाना के खुफिया ब्यूरो (IB) के एक अधिकारी के रूप में हुई है. एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, मृतकों में दो विदेशी नागरिक और दो स्थानीय निवासी भी शामिल हैं, लेकिन इससे ज्यादा जानकारी नहीं दी गई. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “यह हमला हाल के वर्षों में नागरिकों को निशाना बनाकर किए गए सबसे बड़े हमलों में से एक है.” उन्होंने कहा कि मृतकों की संख्या अभी तय की जा रही है. घटना स्थल से एक वीडियो सामने आया है, जिसमें कई लोग खून से लथपथ ज़मीन पर पड़े दिख रहे हैं, जबकि महिला पर्यटक चीख-पुकार कर रही हैं और अपने परिजनों को खोज रही हैं.
विश्लेषण
हमें अपने गिरेबान में भी झांकना चाहिए
निधीश त्यागी
कई लोग बोलेंगे यह सवाल पूछने का वक़्त नहीं है. अब तक 28 लोगों के मारे जाने की खबर है. ये लोग न तो सुरक्षा बलों से हैं, न फिर किसी नफरती गिरोह समुदाय के हिस्से. ये वे लोग हैं, जो इस यकीन के साथ वहां गये थे, कि बतौर सैलानी कश्मीर जाया जा सकता है.
यह यक़ीन किसने दिलवाया था उन्हें? किसने कहा था कि कश्मीर में धारा 370 हटाकर, राज्य का स्तर छीन कर केंद्रशासित प्रदेश बना कर और उसके बाद लुंजपुंज लोकतंत्र लाकर कश्मीर में अब सब सामान्य हो गया है.
दूसरा, जब श्रीनगर तक में शुक्रवार को वहां की सबसे बड़ी मस्जिद में नमाज पढ़े जाने से सरकार असहज थी, तो फिर सैलानियों के लिए सब कुछ सामान्य कैसे था? जब वहां के स्थानीय लोगों, पत्रकारों के साथ सरकार तुर्शी के साथ लगातार पेश आती रही है, तो फिर सैलानियों के लिए कश्मीर सुरक्षित कैसे था. जब वहां की सरकार खुद जरा से बात पर खतरे को महसूस करने लगती है.
तीसरा, इतनी बड़ी फौज, पैरा मिलिट्री, पुलिस, जासूस, खबरी नेटवर्क के बाद भी इतनी आसानी से आतंकवादियों का गिरोह कैसे आकर चोट कर जाता है. चाहे पुलवामा हो या फिर पहलगाम. ये सब उस इलाके में हो रहा है, जहाँ प्रति व्यक्ति बंदूक लिए चलते सुरक्षाकर्मी की तैनाती शायद दुनिया में सबसे अधिक है. उन सबके बीच ये कैसे हो रहा है. इतने सारे चैक पोस्ट, इतने सारे इंतजाम. इतना सारे ड्रोन. फिर भी ऐसा कैसे है कि आतंकवादी इतने आराम से हमले करके चले जाते हैं.
चौथा, कश्मीर के व्यापारियों के लिए दो सबसे बड़े व्यापार है. एक पर्यटन और दूसरा सेब. इस हमले के पीछे अगर स्थानीय लोग हैं, तो ये अपने कारोबार पर ही कुल्हाड़ी मारना है. अभी तक आतंकवादी ज्यादातर सुरक्षाबलों को निशाना बनाते रहे हैं. पर अब अगर सैलानियों को निशाना बनाया जाने लगा है, तो ये थोड़ा बदले हुए अंदाज है.
पांचवा, बजाय छाती ठोंक कर भभकियां देने के सरकार और हम सबको अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि ग़फ़लत कहां हो रही है. अभी सब आश्चर्य जता रहे हैं प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक. पर यह तो एक प्रेस नोट या ट्ववीट भर है. पुलवामा के इंटेलिजेंस फेल्योर की जवाबदेही किसकी है, और उस पर क्या कार्रवाई हुई, देश को नहीं बताया गया. इस तरह की उम्मीद पहलगाम को लेकर भी कैसे की जा सकती है.
छठवां, इस बारे में सोशल मीडिया में दिन भर सांप्रदायिक दुष्प्रचार चलता रहा. अगर सरकार जिम्मेदार है और गंभीर भी, तो इस पर ध्यान देना चाहिए था. कोई तथ्य की पुष्टि नहीं, कोई जांच-परख नहीं. जब सरकार और राजनीति ही प्रोपोगंडा आधारित नैरेटिव पर आधारित हो, तो इस हमले की आग देश में फैलने से कौन रोक सकता है. और कश्मीर में आग लगाकर सियासी रोटियां सेंकने के लिए सबसे बड़ा लाभार्थी कौन है, सबको पता है.
सातवां, इसका असर हर उस कश्मीरी पर पड़ता है, जो अपने राज्य से बाहर पढ़ाई या रोजी-रोटी के लिए निकला है. हर उस गैर कश्मीरी पर भी, जो उस राज्य में जाता है. संदेह, नफरत, हिंसा ऐसे में और बढ़ते ही हैं.
कश्मीर नीति पर सरकार का रवैया और रिकॉर्ड कैसा रहा है, उसके लिए कुछ समय पहले के ही सत्यपाल मलिक के रहस्योद्घाटन काफी है, जो सबसे ज्यादा सरकारी नीयत की गंभीरता को ही संदिग्ध बनाते हैं. पर सरकार के पुराने खटरागों से ये उम्मीद की जा सकती है, वह बड़े बयान देगी. सच को छिपाने की कोशिश करेगी. जवाबदेही तय नहीं करेगी. जैसा चीनी सीमा पर हुआ और पुलवामा पर भी.
ये भी उम्मीद की जा सकती है कि कश्मीर का पर्यटन व्यवसाय मुश्किलों का सामना करेगा, स्थानीय लोग और ज्यादा परेशान किये जाएंगे, पहले से ही मिलिटराइज्ड ज़ोन में और ज्यादा निरंकुशताएं लागू की जाएंगी, आम आदमी की जिंदगी और मुश्किल होगी और कश्मीर? कश्मीर के बारे में देश की संसद में, मुख्यधारा के मीडिया में, सरकारी प्रोपेगंडा में कई बेतुके और बेमतलब दावे किये जाएंगे कि कश्मीर में अब सब ठीक है. दावे जो काफी पहले अपने मायने खो चुके हैं.
औसतन रोज 474 लोग मरते हैं सड़क हादसों में, हर तीसरे मिनट
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार, 2023 में भारत में 480,000 से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 172,000 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई. यह प्रतिदिन औसतन 474 मौतें या हर तीन मिनट में एक मौत के बराबर है. बीबीसी के लिए सौतिक बिस्वास ने एक लंबा डिस्पैच लिखा है.
इन मृतकों में 10,000 बच्चे थे. स्कूलों और कॉलेजों के आसपास हुई दुर्घटनाओं में 10,000 और लोगों की मौत हुई, जबकि 35,000 पैदल यात्री अपनी जान गंवा बैठे. दोपहिया वाहन चालक भी बड़ी संख्या में मौतों का शिकार हुए. अत्यधिक गति आमतौर पर सबसे बड़ा कारण बनकर सामने आई.
बुनियादी सुरक्षा सावधानियों की कमी भी घातक साबित हुई : हेलमेट न पहनने के कारण 54,000 लोगों की मौत हुई और सीटबेल्ट न पहनने से 16,000 लोगों की मृत्यु हुई. अन्य प्रमुख कारणों में अधिक भार लादना (12,000 मौतें) और वैध लाइसेंस के बिना वाहन चलाना (34,000 दुर्घटनाएं) शामिल था. गलत दिशा में वाहन चलाना भी मौतों का कारण बना.
2021 में, 13% दुर्घटनाएं ऐसे चालकों से जुड़ी थीं, जिनके पास सीखने वाला परमिट था या वैध लाइसेंस नहीं था. सड़क पर मौजूद कई वाहन पुराने हैं और उनमें सीटबेल्ट जैसी बुनियादी सुरक्षा सुविधाएं भी नहीं हैं, एयरबैग की तो बात ही छोड़ दें.
भारत के पास विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क है, जो 66 लाख किलोमीटर में फैला है, जो अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है. राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग मिलकर कुल नेटवर्क का लगभग 5% हिस्सा बनाते हैं, जबकि अन्य सड़कें - जिनमें चमचमाते एक्सेस-कंट्रोल्ड एक्सप्रेसवे भी शामिल हैं - शेष का हिस्सा हैं. अनुमानित 3500 लाख पंजीकृत वाहन हैं.
गडकरी ने कहा कि कई सड़क दुर्घटनाएं इसलिए होती हैं, क्योंकि लोगों में कानून के प्रति सम्मान और भय की कमी है. लेकिन यह केवल एक पहलू है. खराब सिविल इंजीनियरिंग प्रथाएं - दोषपूर्ण सड़क डिजाइन, घटिया निर्माण और कमजोर प्रबंधन - अपर्याप्त संकेत और मार्किंग के साथ, सड़क दुर्घटना दर के चिंताजनक रूप से उच्च होने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.
2019 के बाद से, मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजमार्गों में 59 प्रमुख कमियों की सूचना दी है. 13,795 पहचाने गए दुर्घटना-प्रवण "ब्लैक स्पॉट" में से केवल 5,036 का ही दीर्घकालिक सुधार हुआ है.
सड़क सुरक्षा लेखा परीक्षणों ने भारत के सड़क बुनियादी ढांचे में गंभीर खामियां उजागर की हैं. क्रैश बैरियर, ऊंचे मध्य-द्वीप और उठे हुए कैरिजवे सभी सड़क सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं.
सरकार इस समस्या से निपटने के लिए "5Es" रणनीति लागू कर रही है : सड़कों की इंजीनियरिंग, वाहनों की इंजीनियरिंग, शिक्षा, प्रवर्तन और आपातकालीन देखभाल. विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत की सड़क डिजाइन अक्सर पश्चिमी मॉडलों की नकल करती हैं, जो देश की अनूठी यातायात और बुनियादी ढांचे की जरूरतों को नजरअंदाज करती हैं.
अधिकतर अर्थशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि अधिक सड़कें बनाना भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह टिकाऊ होना चाहिए और पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों के जीवन को प्राथमिकता देनी चाहिए.
सुरीले हॉर्न बजेंगे भारत में : भारतीय सड़कों पर व्यवहार की बात करते हुए, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि वाहनों के हॉर्न बहुत कर्कश आवाज़ वाले होते हैं और सरकार एक ऐसे कानून पर काम कर रही है, जिसके तहत हॉर्न में भारतीय वाद्य यंत्रों, जिनमें बांसुरी (फ्लूट) भी शामिल है, की आवाज़ों का उपयोग किया जाएगा.
धनखड़ ने फिर मुंह खोला, सिब्बल ने जवाब दिया
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी के लिए अपने आलोचकों पर मंगलवार को निशाना साधा. दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में धनखड़ ने कहा, “संवैधानिक प्राधिकारी द्वारा कही गई हर बात सर्वोच्च राष्ट्रीय हित से निर्देशित होती है. देश के खिलाफ काम करने वाली ताकतों के प्रयासों को नकारा जाना चाहिए, चाहे वह राष्ट्रपति पद का ही क्यों न हो.”
वकालत पढ़े हुए और संवैधानिक पद पर आसीन धनखड़ ने कहा, "संविधान में संसद से ऊपर किसी भी प्राधिकरण की कोई कल्पना नहीं है. संसद सर्वोच्च है... यह देश के हर व्यक्ति के समान सर्वोच्च है." हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने राज्यपालों द्वारा मंजूरी के लिए आरक्षित विधेयकों पर निर्णय लेने भारत के राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समय सीमा निर्धारित की थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए धनखड़ ने कहा था कि न्यायपालिका "सुपर संसद" की भूमिका नहीं निभा सकती और कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. धनखड़ की बात का जवाब राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने दिया. उन्होंने तुरंत “एक्स” पर लिखा, “संसद के पास कानून बनाने का पूर्ण अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट का कर्तव्य है संविधान की व्याख्या करना और पूर्ण न्याय करना (अनुच्छेद 142). कोर्ट ने जो कुछ भी कहा है, वह हमारे संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है; राष्ट्रीय हित द्वारा निर्देशित है.”
सुप्रीम कोर्ट निशिकांत के बयान पर सुनवाई करेगा
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अगले सप्ताह उस याचिका की सुनवाई करने पर सहमति जताई, जिसमें भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की इस टिप्पणी पर आपत्ति जताई गई है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना देश में हो रहे "गृह युद्ध" के लिए जिम्मेदार हैं. यह मामला न्यायाधीश बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए प्रस्तुत किया गया था. याचिकाकर्ता के वकील ने बेंच को बताया कि दुबे के बयान का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर शीर्ष अदालत के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है. यह एक बहुत गंभीर मुद्दा है. न्यायाधीश गवई ने पूछा, "आप क्या दाखिल करना चाहते हैं? क्या आप अवमानना याचिका दाखिल करना चाहते हैं?"
हेट स्पीच का पूंजीवाद
रामदेव को एक और बार कोर्ट से फटकार, अबकी ‘शरबत जिहाद’ पर
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को रामदेव की पतंजलि को निर्देश दिया कि वह तुरंत ही अपनी सभी ऐसी विज्ञापन सामग्री को हटा दे, जिसमें हमदर्द के लोकप्रिय पेय रुह अफज़ा को "शरबत जिहाद" के रूप में संदर्भित किया गया है. इस केस की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अमित बंसल ने मौखिक टिप्पणी में कहा, “मुझे अपनी आंखों और कानों पर विश्वास नहीं हुआ.” हमदर्द ने पतंजलि के खिलाफ ट्रेडमार्क अवमानना के मुकदमे में अदालत का रुख किया है. पतंजलि के गर्मियों के पेय के विज्ञापन में रामदेव ने रुह अफज़ा की तुलना की और दावा किया कि प्रतियोगी कंपनी हमदर्द के मुनाफे का उपयोग मस्जिदों और मदरसों के निर्माण में किया जाता है. कोर्ट ने पतंजलि को निर्देश दिया कि वह पांच दिनों के भीतर एक हलफनामा दाखिल करे, जिसमें रामदेव का यह बयान दर्ज हो कि वे भविष्य में ऐसा कोई भी बयान, विज्ञापन या सोशल मीडिया पोस्ट जारी नहीं करेंगे. हमदर्द की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि यह मामला केवल रूह अफज़ा उत्पाद की छवि को धूमिल करने का नहीं है, बल्कि यह “सांप्रदायिक विभाजन” का भी मामला है. उन्होंने कहा कि रामदेव की टिप्पणी “हेट स्पीच” है.
पतंजलि की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव नायर ने तर्क दिया कि कंपनी किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है, लेकिन अगर यह रामदेव की “राय” है तो उन्हें बोलने से नहीं रोका जा सकता. इस पर जस्टिस बंसल ने कहा, “वह (रामदेव) अपने दिमाग में ये राय रख सकते हैं, लेकिन इसे व्यक्त नहीं कर सकते.”
जग्गी वासुदेव के स्कूल के 4 कर्मियों पर पॉक्सो
तमिलनाडु पुलिस ने यौन उत्पीड़न की शिकायत के बाद ईशा फाउंडेशन द्वारा संचालित एक स्कूल के चार प्रशासकों और एक पूर्व छात्र के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. स्वयंभू आध्यात्मिक नेता जग्गी वासुदेव - जिन्हें सद्गुरु के नाम से जाना जाता है - द्वारा 1992 में स्थापित फाउंडेशन द्वारा संचालित स्कूल जांच के दायरे में आया था, जब एक पूर्व छात्र के माता-पिता ने आरोप लगाया था कि उनके बेटे के साथ एक साथी छात्र ने छेड़छाड़ की थी.
कोयंबटूर के पेरूर में ऑल वुमन पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर के अनुसार, छात्र की मां ने आरोप लगाया कि यौन शोषण वर्ष 2017 और 2019 के बीच हुआ, जब उसका बेटा स्कूल में पढ़ता था. एफआईआर में पीड़िता की मां का यह आरोप भी दर्ज है कि उसने जग्गी वासुदेव को कई ईमेल लिखे, जिसमें स्थिति से निपटने में उनकी मदद मांगी गई, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.
भारत आना चाहते थे पोप, इजाज़त नहीं मिली
दिल्ली के आर्कबिशप एनिल जोसेफ थॉमस कुटो और थमारसेरी के बिशप मार रेमिजियोस इंचनानियिल ने दावा किया है कि भारत सरकार ने दिवंगत पोप फ्रांसिस को देश में आने की अनुमति नहीं दी, हालांकि वैटिकन की ओर से लंबे समय से उम्मीदें और रुचि के कई संकेत मिले थे. "वह (पोप फ्रांसिस) भी इंतजार कर रहे थे. उन्होंने पांच साल पहले कहा था, 'मैं आपकी सरकार के दरवाजे पर दस्तक दे रहा हूं, लेकिन वे मेरे लिए दरवाजे नहीं खोल रहे हैं.' अब शायद भगवान ने उनके लिए स्वर्ग में दरवाजे खोल दिए हैं," ऑनलाइन प्रकाशन कैथोलिक कनेक्ट ने आर्कबिशप कुटो के हवाले से कहा. उनके इस बयान से कैथोलिक चर्च के प्रमुख की मेजबानी के लिए भारतीय अधिकारियों की ओर से बार-बार देरी और स्पष्ट अनिच्छा पर फिर से ध्यान आकर्षित हुआ है.
इस बीच, कार्डिनलों के कॉलेज में, जो रोमन कैथोलिक चर्च के अगले प्रमुख का चुनाव करेगा, भारत के चार कार्डिनल शामिल होंगे, जिनमें एक दलित भी हैं. हैदराबाद के आर्कबिशप एंथनी पूला, 62 वर्षीय जो आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले से हैं, 138 कार्डिनलों में शामिल हैं जो अगले पोप के लिए मतदान करने के पात्र हैं. अन्य तीन कार्डिनल फिलिप नेरी फेराओ, कार्डिनल बेसिलियोस क्लीमिस और कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवक्कड हैं.
सोना 1 लाख के पार पहुंचा
अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल के कारण भारत में पहली बार 10 ग्राम सोने की कीमत 1 लाख रुपये के ऊपर पहुंच गई. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा फेडरल रिजर्व के पुनर्गठन की योजना घोषित करने के बाद सोने की कीमतों में तेजी आई है. मुम्बई बुलियन मार्केट में मंगलवार को 10 ग्राम के 24 कैरेट सोने की कीमत 1,01,350 रुपये दर्ज की गई. वहीं, 22 कैरेट सोने का भाव 10 ग्राम के लिए 92,900 रुपये था. वैश्विक बाजार ट्रंप की टैरिफ योजनाओं और फेडरल रिजर्व के पुनर्गठन की धमकी के कारण अस्थिर बने हुए हैं, जिससे महंगाई और ब्याज दरों में वृद्धि का खतरा बना हुआ है.
यूपीएससी में पहले दो स्थान पर महिलाएं क़ाबिज : संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने सोमवार को सिविल सेवा परीक्षा 2024 चक्र के परिणाम घोषित कर दिया है. इस साल सीएसई में टॉप-2 पोजिशन महिलाओं को मिली है. पहले स्थान पर शक्ति दुबे हैं, जबकि दूसरे स्थान पर हर्षिता गोयल. सरकार की अधिसूचना के अनुसार, इस भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से कुल 1,129 रिक्तियां भरी जानी हैं. इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में 180 पद, भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में 55 पद और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में 147 पद शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, केंद्रीय सेवा समूह ‘ए’ में 605 और समूह ‘बी’ सेवाओं में 142 रिक्तियां हैं. परिणाम घोषित होने की तिथि से 15 दिनों के भीतर वेबसाइट पर अंक उपलब्ध होंगे. देखें अन्य टॉपर्स की लिस्ट.
5 महीनों में 130 सेंसरशिप नोटिस : अक्टूबर 2024 और 8 अप्रैल 2025 के बीच, केंद्र सरकार ने गूगल, यूट्यूब, एमेज़न, एपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को 130 कंटेंट नोटिस जारी किए हैं. एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से प्राप्त डेटा के अनुसार, गृह मंत्रालय के भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4सी) के नेतृत्व वाले सहयोग पोर्टल के तहत जारी ये नोटिस, कंटेंट ब्लॉकिंग आदेशों के रूप में कार्य करते हैं और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79(3)(बी) के तहत भेजे जाते हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार ये नोटिस सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69(A) के बाहर आते हैं, जिसका सामान्यतः ऑनलाइन सेंसरशिप आदेश जारी करने के लिए उपयोग किया जाता है.
भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण दोनों तरफ फंसे लोग : फरवरी में, पाकिस्तान ने 22 भारतीय मछुआरों को रिहा किया, जिन्हें अप्रैल 2021 और दिसंबर 2022 के बीच पाकिस्तान की समुद्री सुरक्षा एजेंसी ने तब कैद कर लिया था, जब वे गुजरात के तट पर मछली पकड़ रहे थे. रिहा किए गए लोगों में से तीन दीव से, 18 गुजरात से और एक उत्तर प्रदेश से है. 17 मार्च को भारत के विदेश मंत्रालय ने खुलासा किया कि पाकिस्तान में वर्तमान में कैद 194 भारतीय मछुआरों में से 123 गुजरात के हैं. भारत सरकार के अनुसार, उसकी हिरासत में 81 पाकिस्तानी मछुआरे हैं. दोनों पक्षों के परिवारों का कहना है कि उनके प्रियजनों को एक ऐसे अपराध के लिए जेल में डाल दिया गया है जो उन्होंने “अनजाने में” किया था, क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि वे किसी दूसरे देश के दावे वाले पानी में घुस गए हैं. इस वजह से दोनों क्षेत्र के परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है और वे कर्ज के दलदल में धंसते जा रहे हैं.
प्रसंगवश
नेहरू ने तुरंत माफी मांग ली थी...
इस बीच “द वायर” में एसएन साहू ने न्यायपालिका के बारे में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विचारों का स्मरण कराया है. साहू के अनुसार 24 मई, 1949 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित अनुच्छेद पर संविधान सभा की चर्चा में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था, "यह महत्वपूर्ण है कि ये न्यायाधीश (सुप्रीम कोर्ट के) न केवल प्रथम श्रेणी के हों, बल्कि देश में प्रथम श्रेणी के माने जाएं और सर्वोच्च सत्यनिष्ठा वाले (ईमानदार) हों. यदि आवश्यक हो तो ऐसे लोग जो कार्यपालिक सरकार और कोई भी उनके रास्ते में आए, उसके खिलाफ खड़े हो सकें." इन शब्दों के उच्चारित होने के 51 वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ द्वारा खुलकर किए जा रहे हमलों का सामना कर रहा है, जिन्होंने "सुपर संसद" कहकर उसका उपहास बनाया है.
साहू लिखते हैं, धनखड़ की ताज़ा टिप्पणियों की रोशनी में नेहरू के 1959 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवियन बोस के खिलाफ अनुचित टिप्पणी करने और बाद में उनसे माफी मांगने का संदर्भ आज भी महत्वपूर्ण है. यह मामला कुख्यात मुंधरा घोटाले से जुड़ा था. 1957 में, एलआईसी ने कारोबारी हरिदास मुंधरा की कंपनियों में एक करोड़ से अधिक रुपये का निवेश किया था. इस निवेश के खिलाफ कई आरोप उठने पर बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जांच का जिम्मा दिया गया. उनकी रिपोर्ट के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी ने इस्तीफा दे दिया था.
बाद में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विवियन बोस की अध्यक्षता में एक जांच बोर्ड ने कुछ अधिकारियों पर लगे आरोपों की जांच की और अपनी रिपोर्ट में कहा कि एलआईसी का मुंधरा की कंपनियों में निवेश इसलिए संभव हुआ, क्योंकि मुंधरा ने उत्तरप्रदेश में कांग्रेस पार्टी को 1.50 लाख रुपये और अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी को 1 लाख रुपये दान दिए थे.
जब एक पत्रकार ने कांग्रेस को मिले फंड्स के बारे में नेहरू से सवाल किया, तो उन्होंने कहा, "अगर आप मानते हैं कि मुंधरा से मिले ढाई लाख रुपये के लिए यह सौदा हुआ है, तो जो ऐसा कहता है वह बुद्धिमान नहीं है, भले ही वह हाईकोर्ट का जज ही क्यों न हो. "
कोलकाता बार एसोसिएशन ने नेहरू की इस टिप्पणी पर आक्रोश जताया, तब नेहरू ने बोस से माफी मांगी और स्वीकार किया कि उनकी यह बात अनुचित थी, और उन्होंने अचानक उठे सवालों के दबाव में कही थी. इस पर न्यायमूर्ति बोस ने नेहरू को विनम्रतापूर्वक लिखा कि उन्होंने उनकी टिप्पणियों को गंभीरता से नहीं लिया और इसलिए नाराज़ नहीं हुए. बोस ने अफसोस जताया कि उनके द्वारा घोटाले पर कही गई बातों ने इतना सार्वजनिक विवाद पैदा कर दिया.
बहरहाल, नेहरू द्वारा स्थापित यह उदाहरण उस समय और अधिक प्रासंगिक हो जाता है जब भाजपा सांसद और उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट पर सभी सीमाएं पार करते हुए हमले किए हैं और अभी तक माफी मांगने से बच रहे हैं.
यूक्रेन से बात करने को तैयार हैं पुतिन
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि रूस ने कहा है कि वह यूक्रेन के साथ प्रत्यक्ष वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन उसने कीव के ईस्टर युद्धविराम को बढ़ाने के प्रस्ताव का समर्थन करने से इनकार कर दिया है. मास्को में मंगलवार को एक रिपोर्टर से बात करते हुए व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता ने कहा कि नागरिक लक्ष्यों पर हमले को रोकने के बारे में वार्ता के लिए कोई ठोस योजनाएं नहीं हैं, लेकिन अगर कीव "कुछ अवरोध" हटा देता है, तो रूसी राष्ट्रपति इसके बारे में सीधे यूक्रेन से चर्चा करने के लिए तैयार हैं. हालांकि यह दुर्लभ है, पुतिन द्वारा यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की के साथ सीधे वार्ता का प्रस्ताव देना असामान्य नहीं है. रूस ने बार-बार यह दावा किया है कि वह यूक्रेन के साथ वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन कीव ने 2022 में पुतिन के साथ वार्ता पर प्रतिबंध लगाने वाले एक आदेश को पारित करके इसे कानूनी रूप से असंभव बना दिया है. रूसी नेता ने पहले यह सुझाव दिया था कि यूक्रेन को चुनाव कराना चाहिए और किसी नए राष्ट्रपति का चयन करना चाहिए, तब ही कोई ऐसी वार्ता हो सकती है. अब तक, रूस की पूरी पैमाने पर यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से दोनों पक्षों के बीच कोई आधिकारिक प्रत्यक्ष वार्ता नहीं हुई है.
पुतिन और जेलेंस्की दोनों ने हाल ही में शांति वार्ताओं की संभावना को लेकर अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाया है, संभवतः ट्रम्प प्रशासन के दबाव के जवाब में, जिसने कहा है कि यदि वास्तविक प्रगति नहीं होती है, तो वह अपनी मध्यस्थता प्रयासों को छोड़ सकता है. दोनों पक्षों ने ईस्टर युद्धविराम के दौरान संघर्ष में कमी की सूचना दी है, हालांकि प्रत्येक ने एक-दूसरे पर अस्थायी युद्धविराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. सोमवार को रूस की टेलीविजन पर बोलते हुए, पुतिन ने कहा कि रूस "किसी भी शांति पहलों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है". हालांकि, उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह कोई संकेत नहीं दिया है कि वह युद्ध समाप्त करने के लिए अपने कुछ अधिकतम मांगों से पीछे हटने के लिए तैयार हैं, जिनमें यूक्रेन का सैन्यकरण करना और 2022 में अवैध रूप से अनुशासन किए गए चार यूक्रेनी क्षेत्रों पर पूर्ण रूसी नियंत्रण शामिल हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यूएस रूस के पक्ष में भारी रूप से एक "शांति समझौते" का प्रचार कर रहा है. इस प्रस्ताव में संघर्ष को वर्तमान 1,000 किलोमीटर के मोर्चे पर रोकने, क्रीमिया को रूस का हिस्सा मानने और यूक्रेन को नाटो में शामिल होने पर रूस का वीटो अधिकार देने की बातें शामिल हैं. कीव इस प्रस्ताव पर लंदन में होने वाली बैठक के दौरान प्रतिक्रिया देने की उम्मीद कर रहा है.
साइबर फ्रॉड क्यों बढ़ रहे हैं और इन्हें कैसे रोका जा सकता है?
'द वायर' के लिए पूनम अग्रवाल की रिपोर्ट है कि कोविड-19 के बाद साइबर ठगी के मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. कभी-कभी स्कैमर कम ब्याज पर लोन देने का झांसा देकर लोगों को फंसाते हैं और फिर बहुत ज़्यादा ब्याज वसूलने के नाम पर उन्हें ब्लैकमेल करते हैं. कभी-कभी वे पुलिस बनकर लोगों से पैसे ऐंठते हैं, जिसे ‘डिजिटल अरेस्ट’ कहा जाता है. कई बार वे किसी करीबी की नकली आवाज़ बनाकर परिवार को यकीन दिलाते हैं कि उनका कोई सदस्य किसी अपराध में पुलिस हिरासत में है. इसके अलावा और भी कई तरीके हैं, लेकिन सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियां साइबर स्कैमर्स से मीलों पीछे दिखाई देती हैं, जो हर कुछ महीनों में मासूमों को ठगने के नए तरीके लेकर आ जाते हैं. सवाल यह है कि आखिर कानून एजेंसियां साइबर क्राइम को रोक क्यों नहीं पा रही हैं? और क्या ऐसे अपराधों को रोका जा सकता है?
एक साइबर स्कैमर को मुख्य रूप से दो चीजों की ज़रूरत होती है. पहला एक मोबाइल फोन (SIM कार्ड सहित) या लैपटॉप जिससे वो लोगों से दूर बैठे संपर्क कर सके और दूसरा एक म्यूल बैंक खाता, जिसमें वह पीड़ित से पैसा प्राप्त कर सके. स्कैमर दूसरों के नाम पर बैंक खाते (म्यूल अकाउंट) खोलकर उन्हीं से ठगी का पैसा मंगवाते हैं. खाता धारक अक्सर गरीब होते हैं, जिन्हें पैसे का लालच देकर फंसाया जाता है. पैसा एक खाते से दूसरे खाते में जल्दी-जल्दी ट्रांसफर कर दिया जाता है, ताकि पुलिस उसे ट्रैक न कर सके. कई मामलों में बैंक कर्मचारी खुद स्कैमर्स से मिलकर फर्जी खाते खोलने में मदद करते हैं. कुछ सरकारी बैंक भी इसमें शामिल पाए गए. अगस्त 2024 की एक रिपोर्ट में बताया गया कि हैदराबाद में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक शाखा के मैनेजर और उनके सहयोगियों को ₹175 करोड़ के घोटाले में गिरफ्तार किया गया. मैनेजर ने स्कैमर के साथ मिलकर चालू खाते खुलवाए और कमीशन लेकर ट्रांजेक्शन और निकासी की अनुमति दी. एक अन्य रिपोर्ट में, प्रवर्तन निदेशालय ने 15,000 म्यूल खातों का पर्दाफाश किया जब एक चार्टर्ड अकाउंटेंट और उसके साथियों को अवैध लेन-देन के आरोप में पकड़ा गया.
म्यूल खातों को ट्रैक करना कितना मुश्किल है?
नीलेश पुरोहित, एक स्वतंत्र साइबर जांचकर्ता ने ऑनलाइन सट्टा, लोन ऐप्स जैसी गतिविधियों में शामिल कथित चीनी ऐप्स की जांच के दौरान लगभग 4,000 म्यूल खातों की पहचान की, जो यूपीआई और बैंक खातों के रूप में इस्तेमाल हो रहे थे. उन्होंने और उनकी टीम ने उन्नत ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस तकनीकों और खोज एल्गोरिदम की मदद से यह डेटा जुटाया. उन्होंने कहा, “हमारे डेटा संग्रह के तरीके इस तरह डिज़ाइन किए गए हैं कि बैंक और फिनटेक कंपनियों को रीयल-टाइम कार्रवाई योग्य जानकारी मिल सके जिससे फ्रॉड रोका जा सके.” इस जांच में पाया गया कि ये 4,000 खाते 32 बैंकों में खुले थे, जिनमें से 10 सरकारी बैंक थे. उन्होंने इन बैंकों और अधिकारियों को सूचित किया, लेकिन ज़्यादातर ने ठंडी प्रतिक्रिया दी.
अधिकतर मामलों में पुलिस या एजेंसियां म्यूल अकाउंट होल्डर्स को ही पकड़ पाती हैं, जो इस गिरोह की सबसे निचली कड़ी होते हैं. असल मास्टरमाइंड, जो इन अवैध ऑनलाइन ऐप्स को चला रहे होते हैं, अक्सर देश के बाहर बैठकर यह सब करते हैं और संसाधनों की कमी के कारण एजेंसियां उन्हें पकड़ नहीं पातीं.
रोकथाम का उपाय:
बैंक खाता खोलने की प्रक्रिया (KYC) को सख्त किया जाए.
बैंकों को म्यूल खातों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाए.
स्टाफ को ट्रेनिंग दी जाए कि वे ऐसे संदिग्ध खातों को पहचान सकें.
ट्रम्प के टैरिफ वॉर से पूरी दुनिया का विकास धीमा होगा, आईएमफ की चेतावनी
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने मंगलवार को अमेरिका, चीन और अधिकतर देशों के विकास अनुमानों में कटौती की घोषणा की है. इसका कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए 100 साल के उच्चतम टैरिफ और बढ़ते व्यापार तनावों को बताया गया है, जो वैश्विक आर्थिक विकास को और धीमा कर सकते हैं. यह संशोधित अनुमान वैश्विक आर्थिक एकीकरण के टूटने और व्यापार नीतियों में अस्थिरता के गंभीर परिणामों की ओर इशारा करते हैं.
आईएमएफ ने अपने विश्व आर्थिक परिदृश्य के अद्यतन संस्करण में 2025 के लिए वैश्विक विकास दर का अनुमान 0.5% घटाकर 2.8% और 2026 के लिए 0.3% घटाकर 3% कर दिया है. यह संशोधन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित व्यापक टैरिफ के प्रभाव को दर्शाता है. संस्था ने चेतावनी दी कि मुद्रास्फीति 2025 तक 4.3% और 2026 में 3.6% रह सकती है, जो अमेरिका और अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अधिक होगी.
आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे-ऑलिवियर गुरिनचास ने कहा, "हम एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, जहां पिछले 80 वर्षों का वैश्विक आर्थिक तंत्र पुनर्गठित हो रहा है. टैरिफ और अनिश्चितता ने व्यापार वृद्धि को 1.7% तक सीमित कर दिया है, जो 2024 की आधी है."
प्रमुख देशों पर प्रभाव :
अमेरिका : 2025 में विकास दर 1.8% (0.9% कम), मुद्रास्फीति 3% तक.
चीन : 2025-26 में विकास दर 4% (0.6% कम), टैरिफ का 1.3% प्रतिकूल प्रभाव.
कनाडा और मैक्सिको : कनाडा का अनुमान 1.4% (2025), मैक्सिको की अर्थव्यवस्था -0.3% तक गिर सकती है.
यूरोप : जर्मनी में 2025 में 0% वृद्धि, स्पेन 2.5% के साथ अपवाद.
गुरिनचास ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व को मुद्रास्फीति नियंत्रण में सतर्क रहना होगा. साथ ही, केंद्रीय बैंकों की स्वतंत्रता बनाए रखना महत्वपूर्ण है. टैरिफ के कारण वैश्विक व्यापार में कमी और निवेश संबंधी अनिश्चितता से अर्थव्यवस्थाओं के "अक्षम" होने की आशंका जताई गई है. इस रिपोर्ट के बाद अमेरिकी शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज की गई, हालांकि मंगलवार को कुछ सुधार देखा गया. आईएमएफ के अनुसार, संरचनात्मक सुधारों के अभाव में मध्यम अवधि में वैश्विक विकास दर 3.2% पर स्थिर रहेगी, जो ऐतिहासिक औसत (3.7%) से कम है.
व्हाइट हाउस की फ़्लोर योजनाएं समेत कई संवेदनशील दस्तावेज़ हज़ारों लोगों तक पहुंचे
'वॉशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट है कि संवेदनशील दस्तावेज़, जिनमें व्हाइट हाउस का फ्लोर प्लान भी शामिल हैं, हज़ारों लोगों के साथ ग़लती से साझा कर दिया गया. जो बाइडेन प्रशासन के दौरान सरकारी अधिकारियों ने हज़ारों संघीय कर्मचारियों के साथ संवेदनशील दस्तावेज़, मसलन व्हाइट हाउस का फ़्लोर प्लान, एक ब्लास्ट डोर का डिज़ाइन और एक विक्रेता का बैंक खाता विवरण ग़लती से साझा कर दिया है. जनरल सर्विसेज़ एडमिनिस्ट्रेशन (जीएसए) के करियर कर्मचारियों, जो संघीय तंत्र को प्रशासनिक और तकनीकी सहयोग प्रदान करते हैं और सरकार की अचल संपत्तियों का प्रबंधन करते हैं, उन्होंने यह फाइल साझा की, जिससे पिछले सप्ताह एक साइबर सुरक्षा घटना रिपोर्ट और जांच शुरू हुई. रिकॉर्ड दिखाते हैं कि कर्मचारियों ने अनजाने में एक गूगल ड्राइव फोल्डर, जिसमें ये संवेदनशील दस्तावेज़ थे, जीएसए के पूरे स्टाफ, यानी कि 11,200 से अधिक लोगों के साथ साझा कर दिया. साझा की गई जानकारी में व्हाइट हाउस विज़िटर सेंटर के लिए प्रस्तावित ब्लास्ट डोर का डिज़ाइन और एक विक्रेता का बैंक खाता विवरण भी शामिल था, जिसने बाइडेन प्रशासन की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मदद की थी. हालांकि जीएसए ने बताया कि कोई भी दस्तावेज़ औपचारिक रूप से गोपनीय नहीं था और उन्होंने 14 अप्रैल को इस ग़लती का पता चलने के एक दिन बाद ही एक्सेस सीमित कर दिया. सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस घटना को डिजिटल युग में सरकारी दस्तावेज़ों के सुरक्षित प्रबंधन में कमज़ोरी का एक और उदाहरण बताया है. यह प्रकरण एक बड़े साइबर सुरक्षा ऑडिट के दौरान सामने आया, और जांच अभी भी जारी है.
चलते चलते
कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर लेखिका कूमी कपूर करेंगी मुकदमा
भाजपा की लोकसभा सदस्य कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पर लेखिका कूमी कपूर ने कॉपीराइट उल्लंघन और ऐतिहासिक घटनाओं के कथित रूप से विकृत वर्णन के कारण निर्माताओं पर मानहानि का मुकदमा करने का फैसला किया है. इस फिल्म को पहले सिख समूहों के विरोध का सामना करना पड़ा था, क्योंकि इसमें अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाले को इंदिरा गांधी के साथ गुप्त रूप से काम करते हुए दिखाया गया था. फिल्म के डिस्क्लेमर में कहा गया है कि यह ‘कपूर की द इमरजेंसी और जयंत वसंत सिन्हा की प्रियदर्शिनी’ पर आधारित है. कपूर ने इस पर आपत्ति जताई है. उन्होंने टेलीग्राफ को बताया, “दो कानूनी नोटिस के बाद भी यह डिस्क्लेमर दिखाया गया है...” रनौत की मणिकर्णिका फिल्म्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स को 3 अप्रैल को भेजे गए नोटिस में कहा गया है, “आपने जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से उक्त फिल्म में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है. हमारे मुवक्किल के अधिकारों और सहमति के प्रति पूरी तरह से अनादर प्रदर्शित किया है और उक्त फिल्म के साथ उनके नाम का अवैध रूप से शोषण किया है.” कपूर के वकीलों ने छह कथित ऐतिहासिक अशुद्धियों का हवाला दिया. अशुद्धियों पर, मणिकर्णिका ने कहा, “पार्टियों के समझौते में स्पष्ट रूप से सहमति व्यक्त की गई थी कि विषय कहानी और पटकथा में आवश्यक संशोधन करने के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता का प्रयोग किया जाएगा और कपूर ने उन्हें इस उद्देश्य के लिए पुस्तक पर “पूर्ण और संपूर्ण बौद्धिक संपदा अधिकार’ दिए थे.
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