23/05/2025 : सत्यपाल पर सीबीआई चार्जशीट | बलात्कार का आरोप एक और भाजपा नेता | 19 की लिस्ट भी | वक़्फ़ पर आदेश सुरक्षित | महमूदाबाद आख़िरी नहीं | आईपीएल फाइनल की जगह बदली | अब पुरातत्व पर पॉलिटिक्स
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
मध्यप्रदेश में बीजेपी नेता की एक्सप्रेसवे पर अश्लील हरकत, वीडियो वायरल
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुबैर के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से किया इनकार, गिरफ्तारी से सुरक्षा बढ़ाई
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 पर रोक लगाने संबंधी आदेश सुरक्षित रखा
संख्यात्मक : सिर्फ एक साल में 57 ओसीआई रद्द
फैक्ट चेक : पहले दिन, पहले शो में झूठी जानकारी साझा करने के अपने रिकॉर्ड को बरकरार रखा सुधीर चौधरी ने
जिन सवालों से सरकार खुद असहज है, सांसदों का डेलिगेशन कैसे जवाब दे पाएगा
हथियार डीलरों के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ आपदा नहीं अवसर
‘ईडी ने सभी सीमाएं लांघी… संघीय ढांचे का उल्लंघन किया’ : सुप्रीम कोर्ट
ईडी ने सोनिया और राहुल के खिलाफ मामला बनाया, कांग्रेस पर आरोप नहीं
सत्यपाल मलिक पर सीबीआई चार्जशीट
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने किरू पनबिजली परियोजना मामले में पूर्व जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक और छह अन्य के खिलाफ चार्जशीट दायर की है. इस मामले में 2,200 करोड़ रुपये के सिविल कार्यों को देने में कथित भ्रष्टाचार शामिल है. तीन साल की जांच के बाद, एजेंसी ने विशेष अदालत में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं, जिसमें मलिक, उनके दो निजी सचिवों और चार अन्य को आरोपी के रूप में नामित किया गया है.
अस्पताल में भर्ती हैं मलिक, हालत गंभीर : इस बीच मलिक पिछले तीन दिनों से दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में भर्ती हैं. वह यूरिन इन्फेक्शन, सेप्सिस से पीड़ित हैं और डायलिसिस पर भी हैं. अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि उनकी हालत गंभीर है. मलिक ने ‘एक्स’ पर एक संदेश में कहा कि वे अस्पताल में भर्ती हैं और किसी से बात करने की स्थिति में नहीं हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें कई शुभचिंतकों के फोन आ रहे हैं, जिन्हें वे ले नहीं पा रहे थे. मलिक ने पहले आरोप लगाया था कि उक्त परियोजना में उन्हें रिश्वत देने का प्रयास किया गया था.
पूर्व राज्यपाल ने किया था दावा- आरएसएस नेता ने की थी घूस की कोशिश : अक्टूबर 2021 में, राज्यपाल के रूप में पद छोड़ने के दो साल बाद, सत्य पाल मलिक ने दावा किया कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक नेता से संबंधित एक फाइल सहित दो फाइलों को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी. इस आरोप के आधार पर सीबीआई ने मामले में दो मामले दर्ज किए और 14 स्थानों पर तलाशी ली. एजेंसी ने दो मामलों में अनिल अंबानी की रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी और चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारियों सहित अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया.
मोदी के खिलाफ लगातार बोलते रहे हैं पूर्व गर्वनर : 2021 से मलिक लगातार नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ बोलते रहे हैं. इसकी शुरुआत कश्मीर जलविद्युत परियोजना में भ्रष्टाचार के दावों से हुई और फिर केंद्र द्वारा पुलवामा आतंकवादी हमले में जवाबदेही तय करने में जानबूझकर विफल रहने तक के सनसनीखेज दावों से हुई.
भाजपा नेता पर सामूहिक बलात्कार, वायरस का इंजेक्शन और चेहरे पर पेशाब करने का मामला दर्ज
एक 40 वर्षीय महिला ने आरोप लगाया है कि राजराजेश्वरी नगर के भाजपा विधायक मुनिरत्ना और उनके तीन सहयोगियों ने उनका सामूहिक बलात्कार किया, उन्हें एक जानलेवा वायरस का इंजेक्शन दिया और उनके चेहरे पर पेशाब किया. महिला, जिसे भाजपा कार्यकर्ता बताया जा रहा है, ने आरएमसी यार्ड पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है, जिन्होंने मामला दर्ज कर मुनिरत्ना के साथ उनके सहयोगियों वसंता, चन्नाकेशवा और कमल को एफआईआर में नामजद किया है. शिकायत के अनुसार, घटना 11 जून 2023 को मतीकेरे में जेपी पार्क के पास मुनिरत्ना के दफ्तर में हुई. महिला ने बताया कि वसंता और कमल उन्हें एक एसयूवी में बैठाकर विधायक के दफ्तर ले गए.
उन्होंने पुलिस को बताया, "मुनिरत्ना, वसंता और चन्नाकेशवा ने मुझे निर्वस्त्र कर दिया और धमकी दी कि अगर मैंने सहयोग नहीं किया तो मेरे बेटे को जान से मार देंगे. मुनिरत्ना ने फिर वसंता और चन्नाकेशवा को उकसाया, जिन्होंने मेरा बलात्कार किया. बाद में, विधायक ने मेरे चेहरे पर पेशाब किया." उन्होंने आगे आरोप लगाया कि एक अज्ञात व्यक्ति ने कमरे में आकर मुनिरत्ना को एक डिब्बा दिया. इसके बाद, विधायक ने कथित तौर पर उन्हें एक अज्ञात पदार्थ का इंजेक्शन दिया और धमकी दी कि अगर घटना के बारे में किसी से बात की तो परिवार को बर्बाद कर देंगे.
महिला ने यह भी दावा किया कि उन्हें पहले मुनिरत्ना के कहने पर पीन्या और आरएमसी यार्ड पुलिस स्टेशनों में दर्ज ‘झूठे मामलों’ में गिरफ्तार किया गया था. रिहाई के बाद, वसंता और कमल उनके घर आए और यह वादा करते हुए कि विधायक उनके खिलाफ सभी मामले रद्द करवाने में मदद करेंगे, उन्हें एक बार फिर मुनिरत्ना के दफ्तर ले गए. उन्होंने पुलिस को सूचित किया कि वह जनवरी में अस्पताल में भर्ती थीं और पता चला कि उन्हें एक वायरस हो गया था. 19 मई को, उन्होंने आत्महत्या करने का प्रयास किया और उसके बाद ये शिकायत दर्ज कराई.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस मामले को विशेष जांच दल (एसआईटी) को स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जो पहले से ही मुनिरत्ना के खिलाफ कई मामलों की जांच कर रहा है. पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376डी (सामूहिक बलात्कार), 270 (जानलेवा बीमारी का संक्रमण फैलाने की संभावना वाला दुर्भावनापूर्ण कार्य), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 354 (महिला की लज्जा भंग करना), 506 (आपराधिक धमकी), और 509 (महिला की लज्जा का अपमान करना) के तहत मामला दर्ज किया है.
टेलीग्राफ के मुताबिक इस मामले पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने बुधवार को ‘एक्स’ पर एक और बयान पोस्ट किया. पार्टी ने कहा, ".@BJP4India पतित लोगों से भरी हुई है जिन्हें महिलाओं की गरिमा की ज़रा भी परवाह नहीं है. यौन हिंसा उनकी अनौपचारिक पार्टी नीति है. उनके कर्नाटक विधायक मुनिरत्ना और उनके साथियों पर एक महिला का गैंगरेप करने, उन पर पेशाब करने और उन्हें वायरस इंजेक्ट करने का मामला दर्ज किया गया है. अगर मोदी जी में ज़रा भी पश्चाताप होता, तो वे 'नारी सुरक्षा' या 'नारी शक्ति' जैसे शब्दों का उच्चारण करने की हिम्मत नहीं करते. और हमेशा की तरह, @NCWIndia बहरेपन वाली चुप्पी साधे है, जो भाजपा की चाटुकारिता में भागीदार है." प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्लू) दोनों ने इन नवीनतम आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
टीएमसी ने गुरुवार को अपने आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें इस मामले की एक समाचार क्लिप, साथ ही बृजभूषण सिंह और प्रज्वल रेवन्ना जैसे अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ इसी तरह के आरोपों वाली सुर्खियां दिखाई गईं. कैप्शन में लिखा था: "यह पहली बार नहीं है कि किसी @BJP4India नेता पर यौन दुराचार का आरोप लगा है, और यह निश्चित रूप से आखिरी बार भी नहीं होगा. क्योंकि @NCWIndia और @India_NHRC उंगली तक नहीं उठाएंगे. और प्रधानमंत्री @narendramodi अपनी ही पार्टी में पनप रहे शिकारियों के खिलाफ एक शब्द भी कहने से इनकार करते हैं."
एक अलग मामले में, सितंबर 2024 में एक और 40 वर्षीय महिला ने मुनिरत्ना पर 2020 से 2022 के बीच बार-बार बलात्कार करने का आरोप लगाया था. कग्गलपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज उस एफआईआर में उन पर एचआईवी संक्रमित महिलाओं के साथ राजनेताओं को हनी-ट्रैप करने की साजिश में उसे मजबूर करने का भी आरोप है. उस एफआईआर में छह अन्य लोगों को भी नामजद किया गया था. मुनिरत्ना भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत भी आरोपों का सामना कर रहे हैं. व्यालीकावल पुलिस स्टेशन, बेंगलुरु में दर्ज एक शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अनुबंध से जुड़े एक मामले में 36 लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी और 20 लाख रुपये स्वीकार किए थे. सीआईडी ने प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है और उसे जांच जारी रखने की मंजूरी मिल गई है.
इस सप्ताह, गुजरात से एक और भाजपा नेता इस बढ़ती सूची में शामिल हो गए. सोमवार को, सूरत पुलिस ने 23 वर्षीय महिला को नशीला पदार्थ देकर गैंगरेप करने के आरोप में भाजपा वार्ड 8 के महासचिव आदित्य उपाध्याय और उनके दोस्त गौरव राजपूत को गिरफ्तार किया. पार्टी ने गिरफ्तारी के बाद उपाध्याय को निलंबित कर दिया है.
चाल, चरित्र और 19 चेहरे
2014 से 2025 तक बलात्कार और यौन शोषण के आरोप
चाल, चरित्र, चेहरा जैसे अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग भारतीय जनता पार्टी को खासा भाता है और संस्कार की बात करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ थकता नहीं. कर्नाटक में भाजपा विधायक द्वारा बलात्कार और दूसरे जघन्य अपराधों के बाद ‘टीम हरकारा’ ने 2014 से अब तक उन भाजपा नेताओं की लिस्ट बनाई है, जिन पर बलात्कार, यौन शोषण, और इससे संबंधित गंभीर अपराधों के आरोप लगे हैं. इनमें सांसद, विधायक, और पूर्व मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन व्यक्ति शामिल हैं. पार्टी की प्रतिक्रिया इन मामलों में भिन्न रही है; कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में निलंबन और निष्कासन जैसे कदम उठाए गए हैं.
2025 में, मध्य प्रदेश के भाजपा नेता अजितपाल सिंह चौहान पर सिद्धी में एक सहयोगी पार्टी सदस्य के साथ बलात्कार और उगाही का आरोप लगा. आरोपों के अनुसार, चौहान ने पार्टी टिकट देने के बहाने पीड़िता को ब्लैकमेल किया. इस मामले में उनकी गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने उन्हें तुरंत निष्कासित कर दिया.
2024 में, उत्तराखंड में तीन उल्लेखनीय मामले सामने आए. भागवत बोरा, जो उत्तराखंड के एक ब्लॉक चीफ थे, पर सितंबर 2024 में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा, जब वह बकरियां चरा रही थी. पार्टी ने उन्हें बरी होने तक निलंबित कर दिया.
उसी वर्ष, वरिष्ठ भाजपा नेता मुकेश बोरा पर नैनीताल में बलात्कार और धमकी देने का आरोप लगा. पीड़िता ने दावा किया कि 2021 से नौकरी का वादा करके उनके साथ कई बार बलात्कार किया गया. पार्टी ने उन्हें उत्तराखंड सहकारी डेयरी फेडरेशन के प्रशासक पद से हटा दिया.
इसी तरह, उत्तराखंड के भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा नेता आदित्य राज सैनी पर हरिद्वार में 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप लगा, जिसका शव जून 2024 में हाईवे पर मिला. पार्टी ने उन्हें तुरंत निष्कासित कर दिया.
2023 में, उत्तर प्रदेश के पूर्व भाजपा सांसद और रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह पर छह महिला पहलवानों, जिनमें ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक और विनेश फोगाट शामिल थीं, द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, पीछा करने और आपराधिक धमकी देने का आरोप लगा. 2012 से 2022 तक की घटनाओं से संबंधित ये आरोप दिल्ली पुलिस द्वारा जून 2023 में दायर 1,000 पेज के आरोपपत्र में दर्ज किए गए. मई 2024 में दिल्ली की एक अदालत ने पांच पहलवानों के संबंध में यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ के आरोप तय किए. भाजपा ने सिंह को 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया, लेकिन उनके बेटे को मैदान में उतारा, और कोई औपचारिक निलंबन या निष्कासन दर्ज नहीं हुआ.
2019 में, पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद पर एक लॉ छात्रा द्वारा बलात्कार और यौन उत्पीड़न का आरोप लगा. सितंबर 2019 में एक वीडियो सामने आने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई. हालांकि, इस मामले में पार्टी की ओर से कोई स्पष्ट कार्रवाई दर्ज नहीं की गई.
2017 में, उत्तर प्रदेश के उन्नाव से भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा. यह मामला पीड़िता के पिता की हिरासत में मृत्यु और एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा था, जिसने व्यापक ध्यान आकर्षित किया. FIR अप्रैल 2018 में दर्ज हुआ, और पार्टी ने 2018 में सेंगर को निलंबित किया और 2019 में जन दबाव के बाद निष्कासित कर दिया.
2017 में ही, मध्य प्रदेश के भाजपा नेता भोजपाल सिंह पर एक दलित महिला के साथ गैंगरेप का आरोप लगा. आरोप था कि उन्होंने बीपीएल कॉर्ड बनवाने में मदद का वादा करके इस अपराध को अंजाम दिया. यह मामला मार्च 2017 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई.
उसी वर्ष, गुजरात के स्थानीय भाजपा नेताओं शांतिलाल सोलंकी, गोविंद परुमालानी, अजित रामवानी और वसंत भाणुशाली पर कच्छ जिले में 24 वर्षीय महिला से गैंगरेप का आरोप लगा. यह मामला फरवरी 2017 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी ने कोई सार्वजनिक कार्रवाई नहीं की.
2017 में, गुजरात के एक अन्य भाजपा नेता जयेश पटेल पर वडोदरा में 22 वर्षीय नर्सिंग छात्रा के साथ बलात्कार का आरोप लगा, जो फरवरी 2017 में दर्ज हुआ. इस मामले में भी पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई.
पूर्व दिल्ली भाजपा विधायक विजय जॉली पर 2017 में एक महिला द्वारा नशीला पदार्थ देकर बलात्कार का आरोप लगा, जो फरवरी 2017 में दर्ज हुआ. पार्टी ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया.
2017 में, मुंबई के भाजपा कॉर्पोरेटर अनिल भोसले पर 44 वर्षीय विवाहित महिला के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंधों का आरोप लगा. यह मामला जनवरी 2017 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई.
2016 में, मध्य प्रदेश के एक स्थानीय भाजपा नेता (जिनका नाम सार्वजनिक नहीं हुआ) पर एक आदिवासी लड़की के साथ 36 घंटे तक गैंगरेप करने का आरोप लगा. यह घटना तब हुई जब लड़की ने छेड़छाड़ के एक पुराने मामले को वापस लेने से इनकार कर दिया. यह मामला दिसंबर 2016 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की.
गांधीनगर के स्थानीय भाजपा नेता अशोक मकवाना पर 2016 में एक 13 वर्षीय लड़की के साथ विमान में छेड़छाड़ करने का आरोप लगा. उनकी गिरफ्तारी नवंबर 2016 में हुई, लेकिन पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की.
2016 में, भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एससी मोर्चा के सदस्य वेंकटेश मौर्य पर बेंगलुरु में 38 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा. यह मामला अक्टूबर 2016 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी ने कोई कदम नहीं उठाया.
उत्तराखंड के भाजपा नेता (अब कांग्रेसी) हरक सिंह रावत पर 2016 में 32 वर्षीय महिला द्वारा बलात्कार और उत्पीड़न का आरोप लगा. यह मामला जुलाई 2016 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई.
2015 में, गुरुग्राम के भाजपा नेता उमेश अग्रवाल पर फरीदाबाद में एक होटल में 30 वर्षीय महिला को नशीला पदार्थ देकर बलात्कार करने का आरोप लगा. यह मामला सितंबर 2015 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की.
2014 में, मध्य प्रदेश के भाजपा नेता हामिद सदर पर असम की एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न और तस्करी का आरोप लगा. उनकी गिरफ्तारी अगस्त 2014 में हुई, लेकिन पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की.
2014 में, राजस्थान के सांसद निहाल चंद पर 20 वर्षीय महिला द्वारा यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगा. यह मामला जून 2014 में दर्ज हुआ, लेकिन पार्टी ने कोई सार्वजनिक कार्रवाई नहीं की.
भाजपा ने कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में त्वरित कार्रवाई की है, जैसे कुलदीप सिंह सेंगर, आदित्य राज सैनी, और अजितपाल सिंह चौहान को निष्कासित करना. हाल के मामलों में, जैसे भागवत बोरा और मुकेश बोरा, पार्टी ने निलंबन और पद से हटाने जैसे कदम उठाए. हालांकि, 2014 से 2017 तक के अधिकतर मामलों में कोई सार्वजनिक कार्रवाई दर्ज नहीं हुई, जो या तो कार्रवाई की कमी या सीमित जानकारी को दर्शाता है. डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) जैसे संगठनों की रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा के सांसदों और विधायकों पर अन्य दलों की तुलना में ऐसे मामले अधिक हैं, जिसने विवाद को और बढ़ाया है. विपक्षी दलों और नागरिक समाज ने अक्सर पार्टी पर आरोपियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है, खासकर स्वामी चिन्मयानंद जैसे मामलों में. दूसरी ओर, पार्टी ने हाल के मामलों में जांच और न्याय की बात कही है, जैसा उत्तराखंड के प्रवक्ता मनीवीर चौहान के बयानों में देखा गया. 2014 से 2025 तक, भाजपा के कम से कम 19 वरिष्ठ नेताओं पर बलात्कार और यौन शोषण जैसे गंभीर अपराधों के आरोप लगे हैं. पार्टी ने कुछ मामलों में सख्त कदम उठाए, लेकिन कई शुरुआती मामलों में कार्रवाई की कमी ने सवाल खड़े किए हैं. आप एडीआर की इस मामले पर रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं.
मध्यप्रदेश में बीजेपी नेता की एक्सप्रेसवे पर अश्लील हरकत, वीडियो वायरल
इस बीच मध्यप्रदेश के मंदसौर में भी भाजपा के नेता मनोहर धाकड़ का एक अश्लील वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में वह दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर एक महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नजर आ रहे हैं. बुधवार से यह अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो के दृश्य इतने आपत्तिजनक और अश्लील हैं कि इसे न तो दिखाया जा सकता है और न ही विस्तार से बताया जा सकता है.
जानकारी के अनुसार, मनोहर धाकड़ मंदसौर के बनी गांव के निवासी हैं और उनकी पत्नी वार्ड नंबर 8 से जिला पंचायत सदस्य हैं. वायरल वीडियो 13 मई की रात का बताया जा रहा है. इसमें धाकड़ सफेद बलेनो कार में महिला के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखे जा सकते हैं. धाकड़ एक्सप्रेस-वे पर अपनी कार रोकते हैं. कार से पहले एक महिला बिना कपड़ों के निकलती है. बाद में धाकड़ भी अर्धनग्न हालत में निकलते हैं. वे दोनों बीच सड़क पर खुलेआम आपत्तिजनक हरकतें करते नज़र आते हैं. यह पूरी घटना एक्सप्रेसवे पर लगे हाई-सिक्योरिटी कैमरों में रिकॉर्ड हुई है.
विश्लेषण
महमूदाबाद न पहला है, न आख़िरी
निधीश त्यागी
कि सुप्रीम कोर्ट जाकर अंतरिम जमानत लेने को हम भारतीय नागरिकों के उन कामों के लिए इंसाफ समझ लें. जमानत को ही आज़ादी मान लें. राहत की सांस लें. और सोच लें कि बात खत्म हुई. महमूदाबाद के फेसबुक पोस्ट के बाद महिला आयोग की शिकायत, हरियाणा पुलिस की जबरदस्त फुर्ती, एफआईआर, उनकी गिरफ्तारी, उनकी यूनिवर्सिटी का हाथ झाड़ लेना शायद उनकी जिंदगी का काफ्काएस्क (फ्रेंज काफ्का की कहानियों के चरित्रों की तरह) मन:स्थिति तो पैदा करता है, पर इसका पूरे देश के लिए क्या मतलब है? ये कोई एक्सीडेंट नहीं है. ये एक सोचा-समझा पैटर्न है. महमूदाबाद इस सिलसिले में न तो पहले है. न ही आखिरी. अभी ये निजाम इसी तरह चलता रहेगा.
जुर्म साबित हो न हो, सजा सुनाई जाए न जाए, अपील मे जाएं न जाएं, महमूदाबाद के जरिये एक सबक सिखाने की कोशिश है. आखिर महमूदाबाद उन सारी बातों के प्रतीक हैं, जिनसे सरकार को खासी परेशानी है. पहली वह मुसलमान है, दूसरा वह पढ़े-लिखे हैं, तीसरा वह देश की प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं, चौथी एक नवाबी पृष्ठभूमि वाले परिवार से आते हैं, जिनके रिश्तेदार पाकिस्तान में भी हैं. और पांचवी वह सोचते हैं, छठी वह लिख भी लेते हैं. और सातवीं और सबसे खतरनाक, वह सवाल भी कर लेते हैं.
किस आधार पर, हिम्मत कैसे हुई, सोचा भी कैसे, समझते क्या हैं. इनको ठिकाने लगाना जरूरी है.
हरियाणा महिला आयोग रेणु भाटिया की बेबसी, बेचारगी साफ झलकती है, जब वे सीधी बात पूछ रही एंकर को जवाब नहीं दे पाती. भाटिया उस बड़ी स्कीम की प्यादा है, जिसे ये पता होना जरूरी नहीं है कि उनकी शिकायत दरअसल क्या है. उनके लिए ये कल्पना कर लेना काफी है कि यूपी से आये हरियाणा में काम कर रहे एक मुस्लिम प्रोफेसर ने भारत-पाक संघर्ष के दौरान अगर कुछ लिखा है, तो वह ऐतराज के काबिल ही होगा. वे एक जगह वह वाक्य नहीं बता पा रहीं कि महमूदाबाद ने ऐसा कहा क्या. पर वे उन्हें राजद्रोही और महिला विरोधी माने हुई हैं. वे एक जगह कहती हैं कि जब मैंने बुलाया और जब मैं मिलने गई, तो मिलने नहीं आये. मिल लेते, माफ़ी मांग लेते, तो मामला सुलट जाता. फिर कहीं और वे कहती हैं, महमूदाबाद के तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं और उन्हें फंडिंग आती है. जब भी एयर टाइम मिलता है भाटिया जी अपनी अक्ल का इजहार करने से नहीं चूकती. इस बीच अगर शब्द, वाक्य, अर्थ के बीच के रिश्ते तितर-बितर हो भी जाएं तो उन्हें क्या फर्क पड़ता है. उनके चेहरे पर जबरदस्त कान्फिडेंस है. नूर टपक रहा होता है, जब वे टीवी स्क्रीन पर आती हैं.
इस देश में अब लोग दो अलग तरह के वाक्य बनाने लगे हैं. एक जो तर्क, तथ्य, उम्मीद, तरक्की, सरोकार के आधार पर बनते हैं, विचार, सवाल, परिप्रेक्ष्य के साथ. जो महमूदाबाद का वाक्य था. और हर महमूदाबाद के लिए एक रेणु भाटिया भी हैं. जो अपने रसूख के नाम पर जो कल्पना करें, वही मतलब निकाल सकती हैं. उनके वाक्य ही निराले हैं. उनकी पाखंडी सांस्कारिकता एक बेकसूर महमूदाबाद के लिए तो यकायक बदले की आग में बिना वजह जलने लगती है, पर अपनी ही पार्टी के मंत्री विजय शाह के बारे में उनकी कोई राय नहीं बनती. हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष पद पर बैठी रेणु मैडम हत्या और बलात्कार के दोषी राम रहीम को अर्णब गोस्वामी के शो में रेपिस्ट नहीं कह पा रही थीं. बिगाड़ का डर था और ईमान की बात नहीं कही जा सकती थी. उनके दिमाग में शायद यह एक मुश्किल बात है कि भारत में रह रहे सभी लोग देश प्रेमी हो सकते हैं. और मुस्लिम होकर भी भारतीय सेना और प्रतिष्ठा के साथ खड़े हो सकते हैं. जब टीवी पर रेणु भाटिया बोल रही थीं, तो साफ लग रहा था कि उन्हें अपनी बात साफ तरीके से रखना नहीं आ रहा था. उनके शब्द और उनका कृत्य अलग-अलग थे. मेरठ में पढ़ीं और फरीदाबाद में रह रही रेणु भाटिया बतौर व्यक्ति और पदाधिकारी ये काम कर रही थीं या फिर उनसे ऐसा करवाया जा रहा था.
महमूदाबाद के मामले में तो हरियाणा पुलिस भी चाहती तो कानून की किताब और शुरुआती जांच कार्रवाई से जान जाती कि मामले में कोई दम नहीं है. शायद शिकायत करने वालों से जरा सवाल कर लेती. हरियाणा सरकार और पुलिस ने इस फेसबुक पोस्ट पर प्रोफेसर को गिरफ्तार करने के लिए जो तत्परता दिखाई, वह अपने आपमें मिसाल है. एक सीनियर अफसर का तबादला किया, चार्ज बदले, सुबह-सुबह दिल्ली जाकर बहादुरी के साथ जांबाज पुलिस अफसरों ने जो फौरी कार्रवाई की, वह अपने आपमें एक अवॉर्ड विनिंग डाक्यूमेंट्री बनवा सकती है. उसके बाद जिस तरह का आदेश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आया, वह भी एक तरह से अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में नहीं कहा जा सकता.
एक सच जो सामने है, फेसबुक पोस्ट पर. उसे सीधे कानून की कसौटी पर कस कर देखना चाहिए था. उसे सिर्फ उस तरह से सीधे सरल वाक्यों में लिखे गये पोस्ट को नहीं देखा जा रहा है. क्योंकि रेणु को ऐसा लगा, क्योंकि पुलिस को हरियाणा में हो रहे फेसबुक पोस्ट लिखने जैसे संगीन अपराधों को निपटाने की कर्तव्यपरायणता एकदम से सूझी, क्योंकि अदालत को लगा इसमें और भी कई पेंच हैं, और क्योंकि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भी (एक और बार) पल्ला झाड़ लिया, इसलिए उस व्यक्ति और उसके वाक्यों को हर उस तरह से देखा जाना जरूरी समझा गया, जो उसका मतलब ही नहीं था. जैसे 2015 में कुछ लोगों ने एक मुसलमान मोहम्मद अख़लाक के फ्रिज में गोमांस होने की कल्पना की और हत्या कर दी. फ्रिज में मटन निकला. सरकार यूपी की थी. एक काल्पनिकता से उनकी आस्था आहत थी. आपको सिर्फ कल्पना ही तो करनी होती है, बाकी सरकार देख लेती है क्या करना है. ठिकाने कैसे लगाना है. पुलिस भेज कर. ईडी सीबीआई लगाकर. अदालतों के चक्कर कटवा कर. गिरफ्तारी कर. मीडिया में खबरें चलवा कर. एंकरों से ट्वीट करवा कर.
सरकार कुछ लोगों के लिए पूरे देश को शिकार बनाने के प्रोजेक्ट में लगी है. यह हमारी साझा राष्ट्रीय चेतना पर मूर्खता का आक्रमण है. ये बदले की कार्रवाई है. अक्ल के खिलाफ़ झूठ और मक्कारी की. अकेले महमूदाबाद के खिलाफ़ नहीं. सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ़ नहीं. सिर्फ अकादमिकों के खिलाफ नहीं. सिर्फ यूनिवर्सिटी छात्रों के खिलाफ़ नहीं. सिर्फ विपक्ष के खिलाफ़ नहीं.
बल्कि देश के खिलाफ़. और हर उस देशवासी के खिलाफ़ जो इससे प्यार करते हैं. जिन्हें सवाल सूझते हैं. जिन्हें अब भी ज़िद है सच की तरफ रहने की.
पता नहीं उन्हें कैसे लगता है कि सब चुप हो जाएंगे और सवाल करने बंद कर देंगे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुबैर के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से किया इनकार, गिरफ्तारी से सुरक्षा बढ़ाई
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यति नरसिंहानंद के भाषण के खिलाफ ट्वीट करने के मामले में मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा गुरुवार को बढ़ा दी, लेकिन एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया. जुबैर के खिलाफ एफआईआर में भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने, समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, मानहानि और आपराधिक धमकी से संबंधित बीएनएस की धाराओं का इस्तेमाल किया गया है. बार एंड बेंच की रिपोर्ट है कि जुबैर ने नरसिंहानंद के एक भाषण को मुद्दा बनाया था, जिसमें कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टिप्पणी की गई थी. इसके बाद मुसलमानों द्वारा हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए, साथ ही नरसिंहानंद के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई.
वक़्फ़
सुप्रीम कोर्ट ने वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 पर रोक लगाने संबंधी आदेश सुरक्षित रखा
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 22 मई को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की याचिका पर अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने तीन दिनों तक अंतरिम आदेश के बिंदु पर मामले की सुनवाई की.
• वक़्फ़ पंजीकरण की अनिवार्यता : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वक़्फ़ पंजीकरण 1923 से अनिवार्य है, न कि 2025 के अधिनियम से शुरू हुआ. CJI ने पूछा कि वक़्फ़ों ने इतने वर्षों में पंजीकरण क्यों नहीं कराया.
• केंद्र का तर्क : 1923, 1954, और 1995 के वक़्फ़ अधिनियमों में पंजीकरण अनिवार्य था. राज्यों को वक़्फ़ संपत्तियों का सर्वेक्षण करने का निर्देश था, लेकिन अधिकतर राज्यों ने यह नहीं किया.
• याचिकाकर्ताओं का आरोप : कपिल सिब्बल ने कहा कि पंजीकरण न होने का कारण राज्य सरकारों की विफलता है. समुदाय को इसके लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए. केवल एक राज्य ने सर्वेक्षण पूरा किया.
• उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ : सिब्बल और एएम सिंघवी ने तर्क दिया कि 'उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़' इस्लाम की मूल अवधारणा है, जिसे कानून ने मान्यता दी, न कि बनाया गया है. 2025 का अधिनियम अपंजीकृत वक़्फ़ों जैसे मस्जिदों और कब्रिस्तानों, को उनकी स्थिति से वंचित कर सकता है. पिछले वक़्फ़ अधिनियमों ने पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया था, लेकिन उन्होंने ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़’ को भी वैधानिक रूप से मान्यता दी थी, जो देश में आठ लाख से अधिक वक़्फ़ों का लगभग आधा हिस्सा है. सिंघवी ने कहा, कानून ने ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़’ नहीं बनाया, इसने केवल इस्लाम में इस अवधारणा को मान्यता दी.”
• वक़्फ़ की इस्लामी अहमियत : राजीव धवन ने कहा कि वक़्फ़ इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक (दान) से जुड़ा है और यह धार्मिक-सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है. सरकार का दावा कि यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, गलत है.
• गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति : याचिकाकर्ताओं ने वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का विरोध किया, कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 26(डी) के तहत धार्मिक संपत्ति के प्रशासन के अधिकार का उल्लंघन है. राज्य अल्पसंख्यक समुदाय के अपने धार्मिक बंदोबस्त पर प्रशासनिक अधिकार नहीं छीन सकता. संविधान का अनुच्छेद 26 (डी) प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को अपनी संपत्ति का प्रशासन करने का अधिकार देता है.”
• विश्वास साबित करने की शर्त : हुजेफा अहमदी ने कहा कि 2025 अधिनियम के तहत वक़्फ़ बनाने के लिए पांच साल तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने का सबूत देना अनुचित है. उन्होंने कहा, “मैं एकमात्र समुदाय हूं, जिसे वक़्फ़ बनाने के लिए अपने विश्वास को साबित करने की आवश्यकता है.”
• आदिवासी भूमि : अधिवक्ता अहमदी ने कहा कि धारा 3ई आदिवासी भूमि की सुरक्षा का दावा करती है, लेकिन दूसरी ओर, यह आदिवासी मुसलमानों को वक़्फ़ बनाने के उनके अधिकार को कम करने के लिए अलग-थलग करता है.”
आईपीएल फाइनल के आयोजन स्थल में बदलाव से विवाद
इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के फाइनल को ईडन गार्डन्स से अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में स्थानांतरित करने के बीसीसीआई के फैसले ने बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. गुरुवार दोपहर को, राज्य के खेल मंत्री अरूप बिस्वास ने हाई-प्रोफाइल मैच को स्थानांतरित करने के पीछे बीसीसीआई के कारणों को बताने के लिए मौसम विभाग द्वारा किया गया पूर्वानुमान पेश किया. बिस्वास ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "1 जून के लिए आईएमडी का पूर्वानुमान 26 मई से उपलब्ध होगा. आईएमडी ने सूचित किया है कि उनके कार्यालय ने जून के पहले सप्ताह के लिए कोलकाता शहर के लिए कोई पूर्वानुमान जारी नहीं किया है. उन्होंने तंज किया, “बीसीसीआई और आईपीएल गवर्निंग काउंसिल कब से मौसम विज्ञानी बन गए हैं?"
बीसीसीआई ने प्लेऑफ और फाइनल के लिए स्थानों को स्थानांतरित करने के निर्णय के पीछे दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत और दक्षिणी और पूर्वी भारत में अप्रत्याशित बादल फटने का हवाला दिया था. बंगाल क्रिकेट संघ (सीएबी) ने भी भारतीय मौसम विभाग से एक रिपोर्ट भेजी थी. इसमें कहा गया था कि 3 जून के आसपास क्षेत्र में शुष्क मौसम की भविष्यवाणी की गई है, हालांकि बीसीसीआई कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है. मंत्री बिस्वास के दावे के बाद, आईएमडी के आंकड़ों पर संदेह पैदा हो गया है.
संख्यात्मक
सिर्फ एक साल में 57 ओसीआई रद्द
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सिर्फ 2024 में 57 ओवरसीज सिटिजनशिप ऑफ इंडिया (ओसीआई) पंजीकरण रद्द कर दिए हैं, जो पिछले एक दशक में रद्द किए गए ऐसे कुल पंजीकरणों का लगभग आधा है. 2024 से पहले 2014-2023 के बीच, केंद्र सरकार ने 19 मई तक 2025 में धारा 7डी और 15 के तहत 122 ओसीआई पंजीकरण रद्द किए हैं. सूचना के अधिकार के तहत ‘द हिंदू’ ने इसका खुलासा किया है.
फैक्ट चेक
पहले दिन, पहले शो में झूठी जानकारी साझा करने के अपने रिकॉर्ड को बरकरार रखा सुधीर चौधरी ने
‘स्टार’ एंकर सुधीर चौधरी ने सार्वजनिक प्रसारक दूरदर्शन में अपने कार्यकाल की धमाकेदार शुरुआत की, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने तीन साल पहले आजतक में शामिल होने पर की थी.
ऑल्ट न्यूज के फैक्ट चेक के अनुसार, पहले दिन, पहले शो में झूठी जानकारी साझा करने के अपने अप्रिय ट्रैक रिकॉर्ड को बरकरार रखते हुए, चौधरी ने 15 मई, 2025 को डीडी न्यूज के लिए पहले शो में पुराने, असंबंधित वीडियो को भारत की वायु रक्षा प्रणाली द्वारा पाकिस्तानी जेट को नष्ट करने के फुटेज के रूप में दिखाया. अपने पहले अवतार में, आजतक कार्यक्रम ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ के होस्ट के रूप में, चौधरी ने 19 जुलाई, 2022 को प्रसारित पहले ही एपिसोड में मार्क ट्वेन को एक उद्धरण गलत तरीके से दिया था.
इस साल मार्च में प्रसार भारती ने मई के मध्य से शुरू होने वाले सप्ताह के दिनों में दूरदर्शन पर एक घंटे के सेगमेंट की मेजबानी के लिए चौधरी के साथ 15 करोड़ रुपये का वार्षिक समझौता किया था. डीडी न्यूज द्वारा ‘एक्स’ पर साझा किए गए ‘डिकोड’ का पहला एपिसोड भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर केंद्रित था. सुधीर चौधरी ने डीडी न्यूज़ पर अपने पहले शो में 15:25 मिनट पर एक वीडियो दिखाकर दावा किया गया कि यह भारत-पाकिस्तान संघर्ष का है. यही वीडियो अक्टूबर 2024 से डीडी इंडिया के यूट्यूब चैनल पर इजरायल पर ईरानी हमले के रूप में उपलब्ध है. इतना ही नहीं. फिर से, शो के 26:48 मिनट के आसपास, चौधरी ने कहा, “जब पाकिस्तान ने भारत के अलग-अलग शहरों पर और एयरबेसेज पर हमला किया, तब ये हमले एयर डिफेंस सिस्टम की मदद से हमने नाकाम कर दिए. इनमें दो एयर डिफेंस सिस्टम्स हमने रशिया से खरीदे थे और एक एयर डिफेंस सिस्टम मेड इन इंडिया है, और उसका नाम है आकाशतीर…”
इस क्लिप का भी भारत-पाकिस्तान संघर्ष से कोई संबंध नहीं है. संघर्ष के चरम पर, इसी क्लिप को आज तक, एनडीटीवी, टाइम्स नाउ, न्यूज़18, टाइम्स नाउ नवभारत, एबीपी न्यूज़, वन इंडिया, न्यूज़ नेशन और इंडिया टीवी सहित कई चैनलों ने जैसलमेर के ऊपर हवाई लड़ाई के दृश्य के रूप में प्रसारित किया, जिसमें भारतीय वायु रक्षा प्रणालियों ने पाकिस्तान के हमले को विफल कर दिया.
जिन सवालों से सरकार खुद असहज है, सांसदों का डेलिगेशन कैसे जवाब दे पाएगा
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सांसदों के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल 25 से अधिक देशों की राजधानियों का दौरा कर रहे हैं. मोदी सरकार का लक्ष्य स्पष्ट है : भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश के तौर पर पेश करना, सीमा पार आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका उजागर करना और अंतरराष्ट्रीय विमर्श को अपने पक्ष में मोड़ना. हालांकि, इन आधिकारिक बातों से परे, भारतीय सांसदों को कुछ तीखे और असहज सवालों का सामना करना पड़ेगा. इनके लिए सिर्फ रटे-रटाए जवाब काफी नहीं होंगे. द वायर ने एक प्रश्न बैंक बनाया है, जो डेलिगेशन को असहज कर सकते हैं. हालांकि जिन सवालों का जवाब सरकार खुद दे पाने में अभी तक असमर्थ रही है, उसमें सासंद ऐसा अतिरिक्त और अलग क्या बता देंगे. विदेशी सरकारें भारत का मूल्यांकन इस आधार पर करेंगी कि वह सबूत पेश करने, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का सम्मान करने, राजनयिक सिद्धांतों में स्पष्टता रखने और घरेलू व विदेश नीति में निरंतरता बनाए रखने के लिए कितना तैयार है. पहलगाम हमले पर भारत के सबूत कहां हैं? वैश्विक दर्शकों को विशिष्ट विवरण चाहिए : हमलावर कौन थे. पाकिस्तान से उनके संबंध का क्या सबूत है. ऑपरेशन सिंदूर का वास्तविक उद्देश्य और परिणाम क्या था. सरकार द्वारा पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ढांचे पर हमला करने का दावा करने के बावजूद, विदेशी सरकारें और मीडिया सत्यापन योग्य सबूतों पर जोर देंगे. भारत को अंतरराष्ट्रीय समर्थन चाहिए तो उसे तथ्यों के साथ तैयार रहना होगा, न कि केवल बयानबाजी से.
गिराए गए विमानों सहित सैन्य नुकसान का स्पष्ट लेखा-जोखा क्यों नहीं है? युद्ध का कोहरा भ्रम पैदा करता है, और हालिया संघर्ष कोई अपवाद नहीं था. पाकिस्तान ने भारतीय लड़ाकू विमानों को गिराने का दावा किया, जबकि भारत ने चुप्पी साध रखी है. यह अस्पष्टता भारत की विश्वसनीयता को कम करती है. सांसदों से पूछा जाएगा: वास्तव में क्या हुआ था. क्या भारत ने कोई विमान खोया. पाकिस्तानी मिसाइल और ड्रोन हमलों से भारतीय सैन्य ठिकानों को कितना नुकसान हुआ. सैन्य नुकसान या ऑपरेशनल परिणामों का स्पष्ट लेखा-जोखा क्यों नहीं है. दुनिया पारदर्शिता की उम्मीद करती है.
देश में पारदर्शिता की कमी, लेकिन विदेश में ब्रीफिंग क्यों? विपक्ष और नागरिक समाज की ओर से एक बड़ी आलोचना मोदी सरकार की अपारदर्शिता है. सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर पर विदेशी सरकारों को ब्रीफ किया, लेकिन भारतीय संसद और जनता को अंधेरे में रखा. संसद का विशेष सत्र नहीं बुलाया गया, राजनीतिक दलों से सलाह नहीं ली गई. मोदी सरकार अपने नागरिकों के बजाय विदेशी शक्तियों के प्रति अधिक खुलकर क्यों पेश आ रही है. सांसदों को इस दोहरे मापदंड पर चुनौती दी जाएगी.
युद्धविराम की सच्चाई क्या है. क्या इसमें अमेरिका की भूमिका थी, जिसे भारत ने स्वीकार किया? भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम भ्रम में डूबा हुआ है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने मध्यस्थता का श्रेय लिया, जबकि भारत ने अमेरिकी भागीदारी से इनकार किया. फिर भी, सरकार ने ट्रम्प के दावों का सार्वजनिक रूप से और स्पष्ट रूप से खंडन नहीं किया, जिससे अटकलें तेज हो गईं. क्या भारत ने अपनी पुरानी नीति का उल्लंघन करते हुए तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार की. सांसदों को यह स्पष्ट करने के लिए कहा जाएगा.
क्या मोदी का नया आतंकवाद विरोधी सिद्धांत विश्वसनीय और जिम्मेदार लोकतंत्र के अनुरूप है? पीएम मोदी ने आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता का सिद्धांत बताया है. लेकिन आलोचक विसंगतियों की ओर इशारा कर सकते हैं: संकट के दौरान सीमावर्ती क्षेत्रों से नागरिकों को क्यों नहीं निकाला गया. घरेलू स्तर पर असंतोष को क्यों दबाया जा रहा है. सांसदों से पूछा जाएगा : क्या भारत लगातार युद्ध में रहेगा. क्या वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के खतरे के प्रति लापरवाह है. क्या भारत की आतंकवाद विरोधी नीति वास्तविक सुरक्षा के बारे में है, या घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए एक उपकरण है.
यदि सांसद इन सवालों का जवाब देने में असमर्थ रहते हैं, तो वे उस कहानी को ही कमजोर करने का जोखिम उठाते हैं, जिसे वे बढ़ावा देने गए हैं. त्वरित जानकारी और वैश्विक जांच के इस युग में, अपारदर्शिता के लिए कोई जगह नहीं है. दुनिया देख रही है, और वह निश्चित उत्तरों की उम्मीद करती है.
हथियार डीलरों के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ आपदा नहीं अवसर
ऑपरेशन सिंदूर के चार दिवसीय प्रदर्शन के दौरान जब भारत-पाकिस्तान ने मिसाइलों, स्मार्ट हथियारों और सशस्त्र ड्रोनों का आदान-प्रदान किया, तो खिलाड़ियों का एक समूह ऐसा था, जो पूरी तरह से बेफिक्र रहा. इस समूह के लिए, सिंदूर एक संकटपूर्ण संघर्ष नहीं था, बल्कि कामिकेज़ स्वार्म ड्रोन, (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) एआई-निर्देशित हथियारों और अन्य उन्नत 21वीं सदी के सैन्य उपकरणों के साथ-साथ स्टील्थ निगरानी तकनीक के लाइव प्रदर्शनों के साथ एक व्यावसायिक अवसर था.
“द वायर” के लिए राहुल बेदी के अनुसार, हर सटीक हमला, ड्रोन की आवाजाही और रडार लॉक-ऑन ने उनके कई सूचीबद्ध उत्पादों की युद्ध-परीक्षणित तकनीक की पुष्टि भी की, जिससे नई दिल्ली और संभवतः रावलपिंडी में रक्षा अधिकारियों और खरीद समितियों पर प्रभाव पड़ने की गारंटी थी, जिससे दोनों ने जल्दी से दोबारा ऑर्डर देने के लिए प्रेरित किया.
इसने विभिन्न प्लेटफार्मों और हथियार प्रणालियों के आकर्षक उन्नयन और रेट्रोफिट के लिए भी मंच तैयार किया, अक्सर विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से. लेकिन असली जैकपॉट रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (एमआरओ) अनुबंधों में था - अपने जीवन चक्र में रक्षा उपकरणों को बनाए रखने के लिए दीर्घकालिक, उच्च-मार्जिन सौदे. ये बाद की व्यवस्थाएँ एकमुश्त बिक्री नहीं थीं, बल्कि दीर्घकालिक साझेदारी होती हैं, जिससे एक बार जुड़ जाने के बाद, आपूर्तिकर्ता शायद ही इसे कभी जाने देते हैं और न ही मुनाफ़ा.
इस बीच, रक्षा सूत्रों ने कहा कि भारत की आगामी संभावित खरीदारी सूची में उन्नत मिसाइलें, स्मार्ट लोइटरिंग म्यूनिशन, जीपीएस-निर्देशित 155 मिमी आर्टिलरी राउंड, उच्च-स्तरीय निगरानी गियर, AI-सक्षम स्वायत्त हथियार और विविध नेटवर्क-केंद्रित, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली और हथियारबंद आपूर्ति शृंखलाएं शामिल हैं.
और जबकि आत्मनिर्भरता पर एक बड़ा जोर था - ऐसी क्षमताओं का स्वदेशी विकास - इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक अधिकतर तकनीक, सिस्टम और उप संयोजन को अब भी परिचालन तत्परता और युद्ध के मैदान की प्रधानता बनाए रखने के लिए तत्काल आयात किया जाना था, खासकर ऑपरेशन सिंदूर के अस्पष्ट परिणाम के मद्देनजर.
नतीजतन इस संभावित खरीदारी के लिए भारत के 40,000 करोड़ रुपये के आवंटन को आपातकालीन खरीद-6 (ईपी-6) के तहत संसाधित किया जाना है, जो हाल ही में रक्षा मंत्रालय (एमओडी) द्वारा अनुमोदित तरीका है. यह भारत का छठा ऐसा उपाय है - चार मई 2020 में लद्दाख में चीन के साथ सैन्य गतिरोध के बाद शुरू किए गए थे, जबकि पांचवें ने कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए अधिग्रहण को तेज़ करने पर ध्यान केंद्रित किया था.
सप्ताहांत में अनाम आधिकारिक स्रोतों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि ईपी-6 का उद्देश्य ऑपरेशन सिंदूर द्वारा उजागर की गई परिचालन कमियों को भरना और भविष्य के उपयोग के लिए मौजूदा बल गुणकों को मजबूत करना है. पिछले संस्करणों की तरह ईपी-6 प्रत्येक सेवा को 300 करोड़ रुपये तक के कई अनुबंधों को हरी झंडी देकर रक्षा मंत्रालय की कुख्यात धीमी खरीद प्रक्रिया से बचने की अनुमति देता है, जिसमें सभी खरीद 40 दिनों के भीतर पूरी हो जाती है और डिलीवरी 12 महीनों में पूरी हो जाती है.
अधिकारियों ने कहा कि सेवा मुख्यालय और रक्षा मंत्रालय में वित्तीय सलाहकारों से मंजूरी अनिवार्य है, लेकिन उन्हें व्यापक रूप से प्रचलित राष्ट्रीय सुरक्षा विचारों के तहत रबर स्टैंप माना जाता है.
ऑनलाइन शोध से पता चला है कि 7-10 मई के बीच, ऑपरेशन सिंदूर को भय के साथ नहीं देखा गया, बल्कि फ्रांस, चीन, इज़राइल, तुर्की, अमेरिका और मॉस्को सहित अन्य देशों के रक्षा समूहों के बोर्डरूम में व्यावसायिक प्रत्याशा के साथ देखा गया.
प्रत्येक युद्ध - या यहां तक कि किसी युद्ध का खतरा, जैसे पांच वर्ष पूर्व लद्दाख में चीन के साथ हुआ निकट-संघर्ष - दिल्ली में एक परिचित रीति-रिवाज को जन्म देता है : आपातकालीन खरीद (ईपी), त्वरित निविदाएं तथा मीडिया को रणनीतिक जानकारी लीक करना और तथाकथित 'खेल-परिवर्तक' हथियार प्रणालियों को शामिल करने की बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना.
ये चक्र हमेशा अरबों डॉलर के रक्षा सौदों में परिणत हुए हैं, जो सैन्य आधुनिकीकरण के लिए भारत के दृष्टिकोण की विशेषता वाली तत्परता और जड़ता दोनों को दर्शाते हैं.
सैन्य विश्लेषक मेजर जनरल अमृत पाल सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर लाभदायक तनाव का एक पाठ्यपुस्तक मामला है – तमाशा बहुत ज़्यादा, स्पष्टता कम.” उन्होंने आगे कहा कि एक प्रतिस्पर्धी कथा उभरी है, जिसका उद्देश्य यह साबित करना है कि ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल किए गए हथियारों, प्रक्षेपास्त्रों और आयुध का एक बड़ा हिस्सा ‘विशेष रूप से’ स्वदेशी था.
हालांकि, यह दावा पूरी तरह से सही नहीं था, क्योंकि उपकरणों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा या तो सीधे आयात किया गया था या ओईएम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से निर्मित किया गया था, जिससे विदेशी सहयोग पर निरंतर निर्भरता बनी रही, जिसे रक्षा मंत्रालय ने खारिज कर दिया.
दिल्ली स्थित सुरक्षा जोखिम परामर्श समूह के सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर राहुल भोंसले ने कहा, “भारत-पाकिस्तान हथियारों की दौड़ और सैन्य वृद्धि की वास्तविकता यह है कि हथियारों के व्यापारियों को लाभ कमाने के लिए वास्तव में किसी भी पक्ष को जीतना जरूरी नहीं है.” उन्होंने कहा कि जो मायने रखता है वह दूसरे पक्ष को रक्षा खरीद बढ़ाने के लिए डराना है, जो उन्हें व्यवसाय में बनाए रखता है.
‘ईडी ने सभी सीमाएं लांघी… संघीय ढांचे का उल्लंघन किया’ : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सरकारी शराब खुदरा विक्रेता तमिलनाडु राज्य विपणन निगम (TASMAC) में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की मनी लॉन्ड्रिंग जांच की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए कहा कि केंद्रीय एजेंसी ‘सभी सीमाओं को पार कर रही है’ और ‘संघीय ढांचे का उल्लंघन’ कर रही है. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति एजी मसीह की दो-न्यायाधीशों की पीठ निगम मुख्यालय में ईडी की तलाशी को चुनौती देने वाली तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि निगम ने पाया है कि जिन लोगों को शराब की दुकानें आवंटित की गई थीं, वे नकद ले रहे थे, इसलिए राज्य ने खुद 2014 से 2021 तक 41 एफआईआर दर्ज कीं, व्यक्तियों के खिलाफ, निगम के खिलाफ नहीं. ईडी 2025 में तस्वीर में आता है और निगम, मुख्यालय पर छापा मारता है.”
नोटिस जारी करते हुए सीजेआई ने केंद्रीय एजेंसी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा, “कॉर्पोरेशन के खिलाफ अपराध कैसे हो सकता है? आप व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज कर सकते हैं. आपराधिक मामले में कॉर्पोरेशन कैसे? आपका ईडी सभी हदें पार कर रहा है, ‘श्री राजू’.” उन्होंने ईडी से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा. इसी के साथ याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही पर रोक लगाने का निर्देश दिया. एएसजी की ओर मुड़ते हुए सीजेआई गवई ने बताया कि राज्य ने पहले ही एफआईआर दर्ज कर ली है और पूछा, “ईडी को अनावश्यक रूप से क्यों... और मुख्य अपराध कहां है?”
राजू ने कहा कि ईडी की जांच में कुछ भी दुर्भावनापूर्ण नहीं है और वह एक हलफनामा दायर करेंगे. सीजेआई गवई ने कहा कि जवाब दाखिल होने के बाद अदालत मामले की सुनवाई करेगी. सुनवाई बंद करने से पहले सीजेआई ने दोहराया, “आप संघीय ढांचे का पूरी तरह उल्लंघन कर रहे हैं... ईडी सभी हदें पार कर रहा है.” इस पर राजू ने कहा, “इस मामले में ऐसा नहीं है.”
उत्तर प्रदेश : बदायूं में भीषण आग, 200 घर खाक : गुरुवार 22 मई को आए तूफान में एक ट्रांसफार्मर में चिंगारी से लगी, जिसने भीषण आग की शक्ल अख्तियार कर ली. उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के टप्पा जामनी गांव में इस आग ने करीब 200 घरों को अपनी चपेट में ले लिया. स्थानीय लोगों ने बतया कि इस आग के हवाले होकर कई मवेशियों की मौत हो गई.
अजमेर दरगाह पुजारियों के सीएजी ऑडिट पर रोक : दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले सप्ताह अजमेर दरगाह में खादिमों या वंशानुगत पुजारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली दो पंजीकृत सोसायटियों की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की ऑडिट कार्यवाही पर सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तक रोक लगा दी. अंतरिम उपाय के रूप में दी गई रोक, अदालत के यह अनुमान लगाने के बाद है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 के प्रावधान के तहत आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं किया गया था.
मोदी को निशाना बनाने वाले कार्टून के लिए हेमंत मालवीय पर एफआईआर : इंदौर पुलिस ने कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय के खिलाफ कथित तौर पर आरएसएस कार्यकर्ताओं, मोदी को निशाना बनाने के साथ-साथ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली ‘आपत्तिजनक’ सामग्री साझा करने के लिए एफआईआर दर्ज की है. विडंबना यह है कि मालवीय को खुद नहीं पता कि किस कार्टून के कारण उन पर मामला बनाया गया है. अधिकारियों का दावा है कि उनके काम ने ‘सांस्कृतिक मूल्यों’ और ‘राष्ट्रीय गरिमा’ का अपमान किया है.
ईडी ने सोनिया और राहुल के खिलाफ मामला बनाया, कांग्रेस पर आरोप नहीं
ईडी ने बुधवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट को बताया कि कांग्रेस पार्टी अभी तक नेशनल हेराल्ड मामले में आरोपी नहीं है. प्रथम दृष्टया मनी लॉंड्रिंग का मामला सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर बनता है. ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने से कहा, “मैं दिखाऊंगा कि मनी लॉन्ड्रिंग का प्रथम दृष्टया मामला बनता है... संपत्तियों की कुर्की नवंबर 2023 में हुई थी. तब तक आरोपी अपराध की आय का आनंद ले रहे थे.” राजू के साथ विशेष वकील जोहेब हुसैन और विशेष लोक अभियोजक एनके मट्टा भी थे.
9 अप्रैल को आरोपपत्र दाखिल करने वाली ईडी के अनुसार, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने 2,000 करोड़ रुपये की संपत्ति हड़पने की साजिश रची. ईडी के अनुसार, पार्टी ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को 90.21 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त ऋण दिया था - यह नेशनल हेराल्ड अखबार प्रकाशित करता था और इसकी संपत्ति 2,000 करोड़ रुपये की थी - केवल 50 लाख रुपये के लिए. एजेंसी ने दावा किया कि इस ऋण को गैर-लाभकारी कंपनी यंग इंडियन (वाईआई) के पक्ष में इक्विटी में बदल दिया गया, जिसमें सोनिया और राहुल गांधी की बहुलांश हिस्सेदारी थी.
यंग इंडियन और डोटेक्स मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड तथा गांधी परिवार के अलावा ईडी ने कांग्रेस नेता सुमन दुबे और सैम पित्रोदा को भी मामले में आरोपी बनाया है. अदालत को यह बताते हुए कि कांग्रेस पार्टी अभी तक आरोपी नहीं है, हुसैन ने कहा, "हम इसकी जांच कर रहे हैं. पार्टी अभी तक आरोपी नहीं है. पार्टी के दानदाता पीड़ित हैं."
विशेष न्यायाधीश गोगने ने ईडी से पूछा, “क्या उनके पास फोरेंसिक ऑडिटर है. अदालत यह समझना चाहती है कि कंपनियां कैसे काम करती हैं... उन्हें किस तरह से शेयर जारी करने की अनुमति है... क्या शेयर अनुसूचित अपराध के डेरिवेटिव हैं?”
हुसैन ने कहा, “अनुसूचित अपराध और पीएमएलए के बीच कोई स्पष्ट रेखा नहीं होगी. हमेशा एक ओवरलैप होता है.” न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई 2 जुलाई को दिन-प्रतिदिन के आधार पर करने के लिए सूचीबद्ध किया.
जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर की याचिका फिर खारिज : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर कथित रूप से नकदी बरामद होने के संबंध में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की याचिका पर विचार करने से एक बार फिर इनकार कर दिया. जस्टिस अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा से कहा कि उन्हें न्यायालय में आने से पहले उचित प्राधिकारी के समक्ष प्रतिनिधित्व के माध्यम से निवारण की मांग करनी होगी. पीठ ने उनसे कहा, “जांच चल रही है. रिपोर्ट प्रधानमंत्री और भारत के राष्ट्रपति को भेज दी गई है. आप उनके समक्ष प्रतिनिधित्व दायर करें, यदि कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो आप हमारे पास आएं.” .
चलते-चलते
तमिलनाडु का प्राचीन शहर, पुरातत्व की रिपोर्ट के साथ पॉलिटिक्स?
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने पुरातत्वविद् अमरनाथ रामकृष्ण से केलड़ी उत्खनन पर अपनी रिपोर्ट आवश्यक सुधारों के साथ फिर से जमा करने को कहा है. अमरनाथ रामकृष्ण ने मदुरै के पास केलड़ी में प्राचीन सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रमाण खोजे हैं. उन्होंने 2014 से शुरू हुए उत्खनन का नेतृत्व किया था. उनकी रिपोर्ट में 200 ईसा पूर्व या उससे भी पहले की एक विकसित शहरी बस्ती के मजबूत संकेत मिले थे. साइट से मिले पुरावशेषों और कार्बन डेटिंग ने संगम युग से तमिलनाडु में शहरी सभ्यता के अस्तित्व का सुझाव दिया था. अमरनाथ रामकृष्ण ने अपनी 982 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट जनवरी 2023 में एएसआई को सौंपी थी. दो साल से अधिक समय बाद, एएसआई ने उन्हें रिपोर्ट में कुछ बदलाव करने को कहा है. एएसआई ने विशेषज्ञों की राय का हवाला देते हुए कहा है कि रिपोर्ट को अधिक प्रामाणिक बनाने के लिए कालों के नामकरण, समय सीमा के औचित्य और वैज्ञानिक डेटा की प्रस्तुति में सुधार की आवश्यकता है. शुरुआती काल (8वीं से 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के लिए ठोस प्रमाण और डेटा की सटीक प्रस्तुति मांगी गई है. पूर्व आईएएस अधिकारी आर बालकृष्णन ने एएसआई के इस कदम को 'अभूतपूर्व' बताया है. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से 'इतिहास के दबाव' का परिणाम है. उन्होंने दक्षिण भारतीय पुरातत्व के प्रति एएसआई के रवैये और रिपोर्टों को प्रकाशित करने में अक्सर होने वाली देरी पर भी गहरी चिंता व्यक्त की. यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि केलड़ी निष्कर्ष दक्षिण भारत के इतिहास की समयरेखा को बदल सकते हैं.
"पर्याप्त खुदाई न करना एक त्रासदी माना जाता है, रिपोर्टों को सामने न आने देना एक बड़ी त्रासदी है. यह बिल्कुल दयनीय है," उन्होंने कहा. इतिहास जमी हुई बर्फ की तरह नहीं, बल्कि बहती नदी की तरह है, यह दोहराते हुए, ओडिशा के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव, श्री बालकृष्णन ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा दक्षिण भारतीय पुरातत्व के साथ व्यवहार लगातार असंतोषजनक रहा है. "हमें एक स्पष्ट पूर्वाग्रह दिखाई दे रहा है. भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में, इतिहास को सावधानीपूर्वक और जिम्मेदारी से संभालने की आवश्यकता है," उन्होंने कहा. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर री के बाद 100 साल तक किसी ने आदिचनल्लूर को छुआ तक नहीं. "टी सत्यमूर्ति की आदिचनल्लूर रिपोर्ट अदालत के हस्तक्षेप तक 15 साल तक सामने नहीं आई. अब, यही केलड़ी के साथ हुआ है. श्री सत्यमूर्ति और श्री रामकृष्ण की रिपोर्ट प्रकाशित होने में देरी चिंता का विषय है," उन्होंने कहा.
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