23/06/2025: अमेरिका जंग में कूदा, ईरान जवाब देगा | पहलगाम को लेकर 2 गिरफ्तार | भारत ग्लोबल साउथ का लीडर है या जी 7 का बेजुबान पिछलग्गू | दुनिया के लिए ट्रम्प के सबक | 5 छूटे कैच और बुमराह के 5 विकेट
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
बम गिराकर अमेरिका जंग में शामिल हुआ, ईरान ने कहा बदला लेगा, होर्मुज से तेल रोकने की बात
क्रूर और तुनकमिज़ाज ट्रम्प का सबक ईरान सीखे न सीखे, दुनिया के लिए बहुत सारे हैं
आतंकियों का पता नहीं, पनाह देने वाले गिरफ्तार
भारत आने वाले अमेरिकियों के लिए ट्रैवल एडवाइजरी
आकार पटेल: भारत ग्लोबल साउथ का लीडर है या जी 7 का बेजुबान पिछलग्गू ?
यूपी में दलित दूल्हे की बारात निकालने पर विवाद, पुलिस ने कराई शादी
डीयू के प्रवेश फॉर्म में 'भोजपुरी', 'मैथिली', 'उर्दू' जैसी भाषाओं की जगह 'बिहारी', 'मुस्लिम' और जातिसूचक शब्दों को भाषा विकल्प के रूप में शामिल करने पर बवाल
पाँच छूटे कैचों की कहानी
लौकी के तुंबे से तानपूरे बनाने वालों का शहर
ईरान-इज़रायल युद्ध
बम गिराकर अमेरिका जंग में शामिल हुआ, ईरान ने कहा बदला लेगा, होर्मुज से तेल रोकने की बात
मध्य पूर्व में तनाव खतरनाक रूप से बढ़ गया है क्योंकि अमेरिका ने सीधे तौर पर ईरान के साथ सैन्य संघर्ष में प्रवेश कर लिया है. अमेरिकी बमवर्षकों ने ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों फोर्दो, नतांज़ और इस्फहान पर 'बंकर-बस्टर' बमों से हमला किया है, जिसके बाद राष्ट्रपति ट्रम्प ने इन स्थलों के "पूरी तरह से नष्ट" होने का दावा किया. लगभग उसी समय, इज़राइल ने भी ईरान भर में दर्जनों सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया. इस दोहरे हमले के जवाब में ईरान ने कूटनीति का रास्ता बंद होने की घोषणा करते हुए जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है. साथ ही, ईरानी संसद ने दुनिया की 20% तेल आपूर्ति वाले होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. इस संभावित वैश्विक आर्थिक संकट को देखते हुए अमेरिका ने चीन से हस्तक्षेप की अपील की है. इस बीच, इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और पाकिस्तान जैसे देश ईरान के समर्थन में आ गए हैं, जिससे यह संकट एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध में बदलने की कगार पर है.
‘रॉयटर्स’ की रिपोर्ट है कि अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने रविवार को चीन से आग्रह किया कि वह ईरान को होरमुज़ जलडमरूमध्य को बंद करने से रोके. यह बयान ईरान पर अमेरिकी हवाई हमलों के बाद आया है, जिन्होंने तेहरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया था. रुबियो ने फॉक्स न्यूज के शो में कहा कि “मैं बीजिंग में चीनी सरकार से आग्रह करता हूं कि वह ईरान से इस बारे में बात करे, क्योंकि वे भी होरमुज़ जलडमरूमध्य पर भारी निर्भर हैं.” उन्होंने चेतावनी दी- “अगर ईरान ने ऐसा किया तो यह एक और गंभीर गलती होगी, उनके लिए यह आर्थिक आत्महत्या के बराबर होगा. हम इससे निपटने के लिए विकल्प रखते हैं, लेकिन बाकी देशों को भी इसकी गंभीरता को समझना चाहिए क्योंकि इससे उनकी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका से कहीं ज्यादा प्रभावित होंगी.” रुबियो ने कहा कि जलडमरूमध्य को बंद करना एक बड़ा सैन्य और रणनीतिक उकसावा होगा, जिससे अमेरिका और अन्य देशों की प्रतिक्रिया तय है. इससे पहले, ईरान के सरकारी मीडिया चैनल प्रेस टीवी ने बताया था कि ईरानी संसद ने होरमुज़ जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है, जहां से दुनिया का लगभग 20% तेल और गैस प्रवाहित होता है. अब तक वॉशिंगटन स्थित चीनी दूतावास की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
बता दें कि रविवार तड़के (22 जून), अमेरिका ने खुद को इज़रायल और ईरान के युद्ध में सीधे तौर पर शामिल कर लिया जब उसके बमवर्षक विमानों ने एक पर्वत के नीचे स्थित यूरेनियम संवर्धन केंद्र पर 30,000 पाउंड वजनी बम गिराए. इसके तुरंत बादईरान के समर्थन में इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) ने घोषणा की है कि वह एक मंत्रीस्तरीय संपर्क समूह बनाएगा, जो क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय पक्षों के साथ नियमित संवाद स्थापित करेगा ताकि तनाव कम करने के प्रयासों को समर्थन मिल सके और ईरान के खिलाफ आक्रामकता को रोका जा सके. रविवार को इस्तांबुल में OIC के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी संयुक्त घोषणा पत्र में 57 सदस्य देशों वाले इस संगठन ने “इज़रायल की आक्रामकता” की कड़ी निंदा की और यह भी कहा कि “इज़रायली हमलों को तत्काल रोके जाने की आवश्यकता है”. साथ ही, संगठन ने इस खतरनाक स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की.
अमेरिकी हमले के बाद अपने पड़ोसी ईरान के समर्थन में पाकिस्तान में बड़े नागरिक प्रदर्शन हुए हैं. पाकिस्तान की सरकार ने हमलों की कड़ी निंदा की और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने ईरानी राष्ट्रपति से बात कर समर्थन जताया. कराची में हजारों प्रदर्शनकारियों ने अमेरिका, इज़रायल और भारत के खिलाफ नारेबाज़ी की. गौरतलब है कि शनिवार को पाकिस्तान ने ट्रम्प को “एक सच्चा शांति निर्माता” बताते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की बात कही थी. पाकिस्तान का कहना था कि ट्रमप ने पिछले महीने भारत के साथ हुए चार दिन के संघर्ष को समाप्त करने में “बेहद दूरदर्शी रणनीति और असाधारण नेतृत्व” दिखाया. इस पर निधीश त्यागी ने एक लंबा डिस्पैच भी लिखा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “एक्स” पर लिखा, “मैंने ईरान के राष्ट्रपति से बात की और हालिया तनाव में वृद्धि पर गहरी चिंता व्यक्त की. तुरंत तनाव कम करने के अपने आह्वान को दोहराया.”
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हमलों के कुछ ही समय बाद एक संबोधन में दावा किया कि ईरान के परमाणु ठिकानों को "पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है." ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था ने हमलों की पुष्टि करते हुए कहा है कि वह अमेरिका के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कार्रवाई करेगी. हालांकि, ईरान और IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी) दोनों ने कहा है कि इन तीन ठिकानों पर हमलों के बाद कोई रेडियोधर्मी विकिरण नहीं पाया गया है.
'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट है कि पेंटागन के शीर्ष अधिकारियों ने राष्ट्रपति ट्रम्प के दावे का समर्थन करते हुए कहा है कि ईरान के परमाणु स्थलों पर अमेरिकी हमलों से ‘गंभीर नुकसान’ पहुंचा है. हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि क्या ईरान की परमाणु क्षमता पूरी तरह खत्म हो चुकी है या नहीं.
इस बीच खामेनेई के सलाहकार अली शमखानी ने कहा है कि अमेरिकी हमलों के बावजूद ईरान का संवर्धित यूरेनियम भंडार सुरक्षित है. शमखानी ने ज़ोर देकर कहा कि भले ही परमाणु स्थल नष्ट कर दिए जाएं, देश की संवर्धित सामग्री, स्वदेशी ज्ञान और राजनीतिक इच्छाशक्ति बनी रहेगी. शमखानी ने संकेत दिया कि भविष्य में और भी चौंकाने वाले कदम उठाए जा सकते हैं.
हमलों के बाद ईरान ने अमेरिका पर "रेड लाइन" पार करने का आरोप लगाया और कहा कि अब कूटनीति संभव नहीं. कुछ घंटों बाद, ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराक़ची ने कहा कि “अब कूटनीति का समय समाप्त हो गया है” और उनके देश को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है. उन्होंने यह भी कहा कि वह तत्काल रूस के सहयोग से समन्वय के लिए मॉस्को रवाना होंगे. अराक़ची ने तुर्की में पत्रकारों से कहा-“वॉशिंगटन का युद्धोन्मादी और विधिविहीन प्रशासन इस आक्रामक कार्रवाई के खतरनाक परिणामों और दूरगामी प्रभावों का पूरी तरह जिम्मेदार है. उन्होंने परमाणु स्थलों पर हमला कर एक बहुत बड़ी लाल रेखा पार कर दी है.” ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन ने पुष्टि की है कि फोर्दो, नतांज़, और इस्फहान स्थित परमाणु ठिकानों पर हमले हुए हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उनका परमाणु कार्यक्रम नहीं रुकेगा.
इधर, इज़राइल ने कहा है कि उसके लड़ाकू विमानों ने रविवार को ईरान भर में "दर्जनों" ठिकानों को निशाना बनाया, जिसमें देश के मध्य स्थित यज़्द में एक लंबी दूरी की मिसाइल साइट पर हमला भी शामिल है. ऐसा पहली बार हुआ है. यह जानकारी एजेंस फ़्रांस-प्रेस (AFP) ने दी. एक सैन्य बयान में कहा गया- “लगभग 30 आईएएफ (इज़राइली एयर फोर्स) के लड़ाकू विमानों ने पूरे ईरान में दर्जनों सैन्य ठिकानों पर हमला किया.” इसमें विशेष रूप से “यज़्द क्षेत्र में ‘इमाम हुसैन’ स्ट्रैटेजिक मिसाइल कमांड सेंटर” शामिल है, जहां लंबी दूरी की ख़ोर्रमशहर मिसाइलें रखी गई थीं. बयान में यह भी पुष्टि की गई कि बुशहर प्रांत में मिसाइल लॉन्चर पर हमला किया गया, जहां ईरानी मीडिया ने रविवार को एक “भीषण विस्फोट” की रिपोर्ट दी थी. इसके अलावा, दक्षिण-पश्चिम में अहवाज़ और मध्य ईरान के इस्फहान में भी हमले किए गए.
सोशल मीडिया में फैली अफवाहों को PIB ने खारिज किया कि अमेरिका ने भारतीय हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल किया. सरकार ने कहा यह दावा पूरी तरह फर्जी है.

विश्लेषण
क्रूर और तुनकमिज़ाज ट्रम्प का सबक ईरान सीखे न सीखे, दुनिया के लिए बहुत सारे हैं
निधीश त्यागी
(साभार : फेडरल/पोनप्पा)
बम गिराने के बाद अमेरिका पता नहीं ईरान को कोई सबक सिखा पाया या नहीं, डोनल्ड ट्रम्प ने एक बात फिर साबित कर दी है कि उनके शब्दों, उनकी नीयत, उनके फैसलों और उनके कामों पर यकीन नहीं किया जा सकता. यह सबक वह दुनिया को बार बार सिखाना चाह रहे हैं, पर दुनिया अभी भी उनके ही हांके से चल रही है. और खुद ट्रम्प एक अस्थिर जिद्दी बदमिजाज बच्चे की तरह एक के बाद एक हर दिन एक नई उटपटांग हरकत कर रहे हैं, जिसके बारे में न उनकी सरकार, न दुनिया को समझ में आ रहा है कि उसका क्या करें. हम अप्रत्याशित अंतरविरोधों के दौर में हैं.
शनिवार को डोनल्ड ट्रम्प को शांति का नोबेल चाहिए था. रविवार अल सुबह उन्होंने ईरान पर बम गिरा दिये. किस वजह से? कल तक उनकी राष्ट्रीय इंटेलिजेंस की प्रभारी तुलसी गबार्ड अमेरिका को बता रही थीं, कि ईरान अभी एटमी हथियार नही बनाने वाला. अब उन पर उनके राष्ट्रपति को ही यकीन नहीं. यकायक दुनिया को कई साल पहले की उस दलील की याद आ रही है जब इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पास डब्ल्यूएमडी (सामूहिक नरसंहार के हथियार) होेने की बात कही जा रही थी, जो नहीं निकले.
सवाल सिर्फ ईरान का नहीं है. कि वह इसकी जवाबी कार्रवाई किस तरह से, कितनी करता है? पर इस एक हरकत का पूरी दुनिया पर जो असर हो रहा है, उसे देखने, समझने और गंभीरता से लेने की बात है. अमेरिका ने खुद जिन भी जगहों पर जंग छेड़ी है, उसकी कीमत खुद ज्यादा चुकाई है और यह कह पाना मुश्किल है कि उन युद्धों को उसने जीता है. चाहे अफगानिस्तान हो, वियतनाम हो, इराक हो, सब जगह उसने तबाही तो बहुत मचाई पर कोई बेहतर समाधान की तरफ नहीं ले जा पाया.
ईरान के पास अभी विकल्प हैं. क्या ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर देगा? दुनिया का लगभग 20% समुद्री तेल व्यापार इसी रास्ते से होता है. इसे बंद करने का मतलब होगा वैश्विक अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव और तेल की कीमतों में भारी उछाल. क्या ईरान मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमला करेगा? इस क्षेत्र में 30,000 से अधिक अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं, और उन पर कोई भी हमला इस संघर्ष को सीधे अमेरिका-ईरान युद्ध में बदल देगा. क्या ईरान साइबर हमले और अपने प्रॉक्सी समूहों का इस्तेमाल करेगा? हालांकि हिज़्बुल्लाह जैसे प्रॉक्सी समूह हाल के इज़राइली हमलों में कमजोर हुए हैं, फिर भी ईरान के पास दुनिया भर में अस्थिरता पैदा करने की क्षमता है. ईरानी शासन पर दो तरफा दबाव है. अगर वह कमज़ोर दिखता है, तो देश के भीतर ही उसका तख्तापलट हो सकता है. और अगर वह बहुत आक्रामक प्रतिक्रिया देता है, तो उसे अमेरिका के साथ सीधे युद्ध का सामना करना पड़ेगा.
ट्रम्प की इस हरकत से दुनिया की जमीन उन यकीनों पर से खिसक रही है, जहां शांति, स्थिरता, बाजार, कायदे, नियम के आधार पर दुनिया चलती थी. लोकतांत्रिक देश जिस नैतिकता के आधार पर दुनिया की व्यवस्था को चलाने और तय करने की खुदमुख्तारी करते थे, वह अपनी गरिमा और सम्मान खो चुकी है. इस पूरे प्रकरण का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी वैश्विक व्यवस्था की नींव को हिला दिया है. यह हमला अंतर्राष्ट्रीय कानून का खुला उल्लंघन है. किसी देश पर हमला करने का कानूनी आधार तभी बनता है जब उससे "तत्काल खतरा" हो. लेकिन ईरान को परमाणु हथियार बनाने में अभी एक साल से ज़्यादा का समय लग सकता था.
अब दुनिया "जिसकी लाठी, उसकी भैंस" के सिद्धांत पर चल रही है. संयुक्त राष्ट्र (UN) पूरी तरह से अप्रासंगिक नज़र आ रहा है. जब दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश, जो सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, एकतरफा कार्रवाई करता है और ब्रिटेन और फ्रांस जैसे अन्य शक्तिशाली देश उसकी आलोचना करने के बजाय उसके पीछे खड़े हो जाते हैं, तो यह अंतर्राष्ट्रीय कानून के ताबूत में आखिरी कील जैसा लगता है. ट्रम्प ने जी7 देशों में होते हुए भी यह बता दिया कि उनकी प्रासंगिकता नहीं है. यही वह अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो के लिए भी करते रहे हैं.
यह रेखांकित करना भी जरूरी है कि यूरोप और अमेरिका में ज्यादातर लोग न जंग के पक्ष में हैं, और उनकी सरकारें हमलावरों के पक्ष में हैं. और इसलिए इस तरह की खतरनाक बेवकूफियां कर दरअसल लोक और तंत्र के बीच दूरियां पैदा होती जा रही है. इस तरह की अराजकता अब दुनिया में कहीं भी कोई भी कर सकता है. अगर ईरान पर इस तरह बम गिराना सही है, तो रूस की यूक्रेन में कार्रवाई और चीन की ताईवान में किस आधार पर गलत ठहराई जा सकती है. हालांकि सबको पता है कि यह गलत है. पर गलत कौन ठहराएगा?
इसका असर वैश्विक होगा. चीन इसे कैसे देखेगा? क्या इससे चीन को ताइवान पर हमला करने का प्रोत्साहन मिलेगा? अमेरिका अब दो मोर्चों (यूक्रेन और मध्य पूर्व) पर उलझ गया है. साथ ही, इस हमले के बाद पश्चिम ने अपना नैतिक अधिकार खो दिया है. चीन अब यह तर्क दे सकता है कि अगर अमेरिका अपने हितों के लिए एकतरफा कार्रवाई कर सकता है, तो वह क्यों नहीं कर सकता? रूस पहले ही यूक्रेन पर हमले के लिए इसी तरह के "अस्तित्व के खतरे" का तर्क दे चुका है. अब अमेरिका ने भी वही किया है. यह "फोर्डो केस" भविष्य में किसी भी शक्तिशाली देश के लिए अपने मनमाने हमलों को सही ठहराने का एक बहाना बन जाएगा.
यह सब कुछ एक "रियलिटी टीवी शो" जैसा है, जिसमें ट्रम्प चाहते हैं उनको किसी सुपरहीरो की तरह परोसा और देखा जाए. उनके लिए एक विशाल बम गिराना और दुनिया को हिला देना, शांत कूटनीति से कहीं ज़्यादा नाटकीय और आकर्षक है. यह विरोधाभास दिखाता है कि शायद रणनीति से ज़्यादा, उनकी अपनी छवि और सुर्खियों में बने रहने की भूख इस फैसले के पीछे है. उनके समर्थक, जो कल तक अमेरिका को विदेशी युद्धों से दूर रखने की वकालत कर रहे थे, आज उनके इस कदम को सही ठहरा रहे हैं. यह एक ऐसे नेता की तस्वीर पेश करता है जो तर्क नहीं, बल्कि एक पंथ की तरह अपने अनुयायियों को नियंत्रित करता है.
एक सटक चुके राष्ट्रपति का अमेरिका और पूरी दुनिया क्या कर सकती है, यह सोचने की बात है.ट्रम्प के एक फैसले ने न केवल मध्य पूर्व को आग में झोंक दिया है, बल्कि उस पूरी वैश्विक व्यवस्था को भी चुनौती दी है जो दशकों से शांति और स्थिरता की गारंटी देती आई है.ट्रम्प का अमेरिका हमलावर देशों की तरफ है. चाहे इजराइल हो या रूस. वह उन देशों को नीचा दिखाना चाह रहा है, जिन पर हमला हुआ है. और उन लोगों के पक्ष में है, जो लगातार सैन्य हमले और नरसंहार कर रहे हैं. हालांकि इसकी कीमत कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा उन सारे लोगों की जान से लगाया जा सकता है, जो गाजा और ईरान के लोगों ने दी है, आर्थिक और राजनीतिक कीमतें तो हैं ही.
दुनिया एक बेहद खतरनाक और अप्रत्याशित दौर में प्रवेश कर चुकी है. अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं कमजोर हो चुकी हैं, गठबंधन बिखर रहे हैं और धौंसपट्टी का दौर लौट आया है. यह सिर्फ एक सैन्य हमला नहीं है, बल्कि उस दुनिया के अंत की शुरुआत हो सकती है जिसे हम अब तक जानते थे. आने वाले दिन, महीने और साल यह तय करेंगे कि यह संकट एक विनाशकारी युद्ध की ओर ले जाता है या दुनिया के नेता इस अराजकता से बाहर निकलने का कोई रास्ता खोज पाते हैं.
ट्रम्प को नोबेल का शांति पुरस्कार दिलवाने की सिफारिश पाकिस्तान ने की थी. अब उसने इसी बमबारी की खुली निंदा की है. भारत ने निंदा नहीं की, बस चिंता जताई है.
पहलगाम हमला
आतंकियों का पता नहीं, पनाह देने वाले गिरफ्तार
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि पहलगाम आतंकी हमले के संदिग्ध अब भी फरार हैं, ऐसे में खुफिया एजेंसियों ने आगामी अमरनाथ यात्रा के दौरान संभावित हमले की चेतावनी देते हुए नया अलर्ट जारी किया है. सूत्रों के मुताबिक, ज़मीन पर तैनात सुरक्षाबलों और स्थानीय पुलिस इकाइयों को इस बारे में ठोस इनपुट साझा किए गए हैं, ताकि वार्षिक तीर्थयात्रा के लिए चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके. सरकार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में खुफिया एजेंसियों ने हालिया पहलगाम हमले के लिए लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के छद्म संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) को ज़िम्मेदार ठहराया है और संकेत दिया है कि यह संगठन यात्रा के दौरान एक और हमला करने की योजना बना सकता है.
पहलगाम आतंकी हमले के दो महीने बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकियों को पनाह देने के आरोप में पहलगाम के दो लोगों को गिरफ्तार किया है. पूछताछ में दोनों ने तीन आतंकियों की पहचान बताई और यह भी पुष्टि की कि वे पाकिस्तानी नागरिक थे और उनका संबंध आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से था. एनआईए के मुताबिक, आरोपियों परवेज और बशीर ने हमले से पहले आतंकियों को हिल पार्क इलाके में ठहराया था और खाना-पीना सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराई थीं.
भारत आने वाले अमेरिकियों के लिए ट्रैवल एडवाइजरी
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट है कि अमेरिका ने भारत की यात्रा करने वाले अपने नागरिकों के लिए अपडेटेड ट्रैवल एडवाइजरी जारी करते हुए “अधिक सतर्कता बरतने” की सलाह दी है. यह चेतावनी देश में बढ़ते अपराध, आतंकवाद और यौन हिंसा विशेष रूप से बलात्कार के जोखिम को देखते हुए दी गई है. अमेरिका ने कहा है कि बलात्कार भारत में “सबसे तेज़ी से बढ़ते अपराधों” में से एक है. अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी इस लेवल-2 ट्रैवल एडवाइजरी में कुछ क्षेत्रों में यात्रा संबंधी प्रतिबंध भी शामिल हैं. एडवाइजरी में “हिंसक अपराधों” और आतंकवादी हमलों के जोखिम का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि ऐसे हमले “बिना किसी चेतावनी के” हो सकते हैं . यहां तक कि उन स्थानों पर भी, जहां पर्यटक अक्सर जाते हैं जैसे परिवहन केंद्र, बाज़ार और सरकारी प्रतिष्ठान.
विश्लेषण
आकार पटेल: भारत ग्लोबल साउथ का लीडर है या जी 7 का बेजुबान पिछलग्गू ?
भारत ने इसी महीने घोषणा की है कि उसने ग्लोबल साउथ की आवाज़ को विश्व मंच पर लाने की जिम्मेदारी ली है. जैसा कि एक अखबार की हेडलाइन में कहा गया: "उपस्थिति दर्ज कराने का समय, भारत ग्लोबल साउथ की आवाज़: जी7 से पहले एस जयशंकर". वैसे, पिछले तीन वर्षों से भारत वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी कर रहा है, जिसे सरकार ने वोग्स (VOGSS) के नाम से छोटा कर दिया है.
हमारी जिम्मेदारी की घोषणा का तत्काल कारण जी7 में हमारे आगमन से जुड़ा था, जहाँ भारत सदस्य नहीं है बल्कि मेक्सिको, ब्राजील, कोमोरोस और कुक आइलैंड्स जैसे अन्य देशों के साथ पर्यवेक्षक के रूप में नामित है, यानी दर्शक. इन देशों की कोई वास्तविक भूमिका नहीं है, हालांकि कभी-कभी गले मिलने और मुस्कराने की स्पष्ट रूप से इजाज़त है.
जी7 के वास्तविक खिलाड़ी — अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान — ने एक बयान जारी किया जिसमें इजरायल द्वारा हमला किए जाने के लिए ईरान की निंदा की गई. तेहरान और अन्य जगहों पर बमबारी अभियान का जिक्र करते हुए, जिसमें वैज्ञानिकों सहित नागरिक मारे गए, जी7 ने "पुष्टि की कि इजरायल को अपनी रक्षा का अधिकार है. हम इजरायल की सुरक्षा के लिए अपना समर्थन दोहराते हैं" और यह कि "ईरान क्षेत्रीय अस्थिरता और आतंक का मुख्य स्रोत है."
वोग्स की इस पर कोई राय नहीं थी, हालांकि हमारे प्रधानमंत्री ने शिखर सम्मेलन का अवलोकन किया और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का समय था, क्योंकि वोग्स को म्यूट रखा गया था. यह स्पष्ट नहीं है कि हम उन सभाओं में क्यों भाग लेते हैं जहाँ हमारी कोई बात नहीं है लेकिन शक्तिशाली लोगों के अपने कारण हैं. कहीं और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का समय था.
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ), जहाँ वोग्स एक सदस्य है और वास्तव में उसकी आवाज़ भी है, ने भी उसी विषय पर एक बयान जारी किया. एससीओ के नौ खिलाड़ी हैं: चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिज़स्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान. उनके नागरिक सभी मनुष्यों के लगभग 42 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैश्विक दक्षिण का बहुमत. एससीओ चार्टर कहता है कि इसका कर्तव्य "एक नया लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और तर्कसंगत अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देना" है. इसका मतलब है कि यह कमजोर और गरीब राष्ट्रों के अधिकारों के लिए खड़ा होगा.
एससीओ के बयान में कहा गया कि वे "इजरायल द्वारा किए गए सैन्य हमलों की दृढ़ता से निंदा करते हैं" और यह कि "नागरिक लक्ष्यों के खिलाफ ऐसी आक्रामक कार्रवाइयाँ, जिनमें ऊर्जा और परिवहन बुनियादी ढांचा शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक हताहत हुए हैं, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का घोर उल्लंघन हैं."
यह सब निर्विवाद रूप से सच है.
भारत ने उसी दिन इसके ठीक विपरीत बयान जारी किया, इन शब्दों से दूरी बनाते हुए और स्पष्ट किया कि "भारत ने उपरोक्त एससीओ बयान पर चर्चा में भाग नहीं लिया." हम उन चर्चाओं से क्यों भागते हैं जिन्हें हम भागीदार के रूप में प्रभावित कर सकते हैं और इसके बजाय उनमें भाग लेते हैं जहाँ हम दर्शक हैं, यह स्पष्ट नहीं किया गया. वोग्स रहस्यमय तरीकों से अपने चमत्कार करता है, जैसा कि पीजी वुडहाउस ने समझाया होता.
उसी दिन, 14 जून के एक और अखबार की हेडलाइन है: "भारत ने एब्सटेन किया, 149 राष्ट्रों ने गाजा युद्धविराम के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव का समर्थन किया". प्रस्ताव ने "भुखमरी के उपयोग और युद्ध की रणनीति के रूप में सहायता से इनकार" की निंदा की और इजरायल द्वारा नाकाबंदी हटाने की मांग की. वोग्स को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया.
क्रिकेट में, कुछ न करने का बहुत बखान करने के इशारे को शोल्डरिंग आर्म्स कहते हैं.
भारत द्वारा दिया गया कारण है: "भारत का एब्सटेन करना इस विश्वास में था कि सिवाय बातचीत और कूटनीति के संघर्षों को हल करने का कोई और रास्ता नहीं है," और यह कि "हमारा संयुक्त प्रयास दोनों पक्षों को करीब लाने की दिशा में होना चाहिए." हाँ जरूर, हमें उन लोगों को करीब लाना चाहिए जो बमबारी कर रहे हैं और जिन पर बमबारी की जा रही है.
विदेश मंत्रालय की वेबसाइट हमें बताती है कि 14 अगस्त 2024 को भारत ने अपना तीसरा वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट आयोजित किया. यह कहती है: "यह अनूठी पहल प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' के दृष्टिकोण के विस्तार के रूप में शुरू हुई, और भारत के वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन पर आधारित है. यह ग्लोबल साउथ के देशों को एक साझा मंच पर मुद्दों की पूरी श्रृंखला में अपने दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं को साझा करने के लिए एक साथ लाने की कल्पना करता है."
8 मई को, रोहिंग्या शरणार्थियों की रहने की स्थिति और निर्वासन से संबंधित एक मामले में, उसी भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह न तो यूएनएचसीआर द्वारा जारी शरणार्थी कार्डों को मान्यता देती है और न ही रोहिंग्याओं को शरणार्थी के रूप में, क्योंकि भारत 1951 संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है और इसलिए कोई शरणार्थी सुरक्षा प्रदान नहीं करता.
साफ है वोग्स और वैश्विक परिवार के बारे में हम जो भी दावे करें, व्यावहारिक धरातल पर यह काम कई छुपी हुई शर्तों और नियमों के साथ आता है.
यह कहने की शायद ही जरूरत है कि भारत सिर्फ इसलिए लोगों को खतरे, उत्पीड़न और राज्यविहीनता की तरफ धकेल नहीं सकता, क्योंकि उसने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन की तसदीक नहीं की है. भारत अभी भी प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून में 'गैर-वापसी' के सिद्धांत के तहत लोगों को उन जगहों पर वापस भेजने से बचाने के लिए बाध्य है जहाँ उन्हें गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन और दुर्व्यवहार के वास्तविक जोखिम का सामना करना पड़ेगा. यह अतिरिक्त रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के तहत एक विशिष्ट कानूनी दायित्व है जिसका भारत एक पक्ष है.
लेकिन हमें ग्लोबल साउथ और साझा मानवता के बारे में भव्य भाषण देने से क्या रोक रहा है जबकि स्पष्ट रूप से हम विपरीत तरीकों से काम कर रहे हैं? कुछ भी नहीं, और इसलिए यह दिखावा चलता रहेगा.
यूपी में दलित दूल्हे की बारात निकालने पर विवाद, पुलिस ने कराई शादी
उत्तरप्रदेश में एटा जिले के एक गांव में एक दलित दूल्हे की बारात निकालने पर विवाद के बाद तनाव हो गया. स्थिति बिगड़ते देख भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया, जिसके बाद शादी संपन्न हो सकी. जानकारी के अनुसार अवागढ़ थाना क्षेत्र में ढकपुरा गांव के एक ठाकुर-बहुल मोहल्ले से बारात गुजरते समय विवाद हुआ. आरोप है कि ठाकुरों ने अपने इलाके से बारात निकालने का विरोध किया था. दोनों पक्षों में विवाद बढ़ा और धक्का-मुक्की होने लगी. तभी किसी ने पत्थर फेंका, जिससे पुलिस कांस्टेबल सुनील कुमार को सिर में चोट लग गई और उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया.
एटा के पुलिस अधीक्षक श्याम नारायण सिंह ने कहा, “बारात के लिए एक छोटे, निर्धारित मार्ग पर पुलिस तैनात की गई थी, लेकिन बारात ने दूसरे रास्ते से प्रवेश किया. ठाकुर समुदाय के कुछ लोगों ने आपत्ति जताई. पुलिस मौके पर पहुंची, बीच-बचाव किया और बारात पुलिस सुरक्षा में आगे बढ़ी.” हालांकि वधू पक्ष का आरोप है कि पुलिस ने एकपक्षीय कार्रवाई की. ठाकुरों पर कार्रवाई करने के बजाय घरातियों और बारातियों को हिरासत में ले लिया. थाने में रखा और महिलाओं को पीटा. पूरी घटना यहां पढ़िए.
डीयू के प्रवेश फॉर्म में 'भोजपुरी', 'मैथिली', 'उर्दू' जैसी भाषाओं की जगह 'बिहारी', 'मुस्लिम' और जातिसूचक शब्दों को भाषा विकल्प के रूप में शामिल करने पर बवाल
'द वायर' की रिपोर्ट है कि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) अपने अंडरग्रेजुएट प्रवेश फॉर्म को लेकर विवादों के घेरे में आ गया है. इस फॉर्म में ‘मातृभाषा’ वाले कॉलम में उर्दू, मैथिली, भोजपुरी, मगही जैसी भाषाओं की जगह अपमानजनक और आपत्तिजनक शब्द - जैसे ‘चम***’, ‘मजदूर’, ‘देहाती’, ‘मोची’, ‘कुर्मी’, ‘मुस्लिम’ और ‘बिहारी’ - शामिल कर दिए गए थे. सोशल मीडिया पर इसको लेकर भारी आक्रोश देखने को मिला, खासकर ‘उर्दू’ को हटाकर ‘मुस्लिम’ को भाषा के रूप में दिखाने को लेकर. प्रोफेसर आभा देव हबीब ने सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया और इसे इस्लामोफोबिया और सांप्रदायिक मानसिकता की मिसाल बताया. AIFRTE ने पूछा कि क्या भविष्य में 'हिंदी' की जगह 'हिंदू' को भाषा कहा जाएगा? उन्होंने इस पूरे मामले को ‘अज्ञानता और सांप्रदायिकता’ से प्रेरित बताया और विश्वविद्यालय से सार्वजनिक माफ़ी की मांग की. कांग्रेस ने इसे एक "सुनियोजित साज़िश" करार दिया जबकि बीजेपी ने इसे एक "मानव त्रुटि" बताया. डीयू प्रशासन ने सफाई दी कि यह एक "क्लेरिकल एरर" (लिपिकीय गलती) थी जिसे तुरंत ठीक कर लिया गया.
हालांकि, उर्दू विभाग के प्रोफेसर अर्जुमंद आरा और अन्य शिक्षकों ने इसे महज गलती मानने से इनकार कर दिया. आरा ने कहा, “यह कोई चूक नहीं है, बल्कि एक प्रयोग है जो ठीक से अंजाम नहीं दिया जा सका. डीयू को ऐसे लोगों से भरा गया है जिन्हें भाषा, इतिहास और राजनीति की समझ नहीं है, उनके पास सिर्फ़ संघ की विचारधारा है.” प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा, “शर्म अब बीते समय की बात हो गई है. अगर डीयू जैसा संस्थान ऐसी ‘गलती’ करता है, तो यह गम्भीर बात है. यहां न तो खेद जताया गया, न ही माफ़ी मांगी गई.” राज्यसभा सांसद मनोज झा ने भी इसे क्लेरिकल एरर मानने से इनकार कर दिया और इसे एक गहन राजनीतिक संकेतक बताया.
क्रिकेट
पाँच छूटे कैचों की कहानी
जसप्रीत बुमराह अपना सिर अपने हाथों में थाम लेते, रीप्ले में गेंद का बल्ले से बाल-बाल चूकना देखते और जब स्लिप में कैच छूट जाता तो दर्दभरी मुस्कान के साथ अपनी झुंझलाहट जाहिर करते और ओवरों के बीच वह बाउंड्री लाइन पर खड़े होकर सोच में डूबे नजर आते…यह दिन भर की कहानी है. इंग्लैंड की वापसी की कहानी, जिसमें उसने अपना स्कोर 465 रन तक पहुंचा दिया, जो भारत के 471 से सिर्फ छह रन कम था और यह बुमराह की पांच विकेट की उपलब्धि से ज्यादा. दरअसल, यह पांच छूटे कैचों और बाकी गेंदबाजों की नाकामी की कहानी है. बुमराह की तन्हाई ने भारत की गेंदबाजी की कोशिशों का सार बता दिया और बल्लेबाजों ने पहले दिन जो बढ़त दिलाई थी, वह खत्म कर दी.
स्टंप्स के समय मैच बराबरी पर था. भारत ने 2 विकेट पर 90 रन बना लिए थे, जिसमें केएल राहुल 47 रन पर नाबाद शानदार फॉर्म में दिख रहे थे. इंग्लैंड इस बात से खुश होगा कि उसने यशस्वी जायसवाल को 4 और साई सुदर्शन को 30 रन पर आउट कर दिया.
चलते-चलते
लौकी के तुंबे से तानपूरे बनाने वालों का शहर
सर्वोदय प्रेस सेवा ने एक फ़ीचर महाराष्ट्र के मिरज शहर पर लिखा है, जो तानपूरों का शहर है. लौकी के खोल या तूम्बे से तानपूरे और दूसरे वाद्य यंत्र तैयार किये जाते हैं. नजरूल हक ने बताया है कि कैसे हथियार बनाने वाले शिकलगार समुदाय के लोग वहां संगीत के यंत्र बनाने लगे. वे लिखते हैं..
फ़रीदसाहब ने तार-वाद्य यंत्रों की मरम्मत से शुरुआत की और उनके निर्माण की बारीकियों को गहराई से समझना शुरू किया. उनमें जन्मजात जिज्ञासा थी, वे टूटे-फूटे पुराने वाद्ययंत्रों को खोलकर उनके ध्वनि-विज्ञान को समझने का प्रयास करते थे. उनके वंशजों के बीच एक चर्चित किस्सा है कि फ़रीदसाहब कई हफ़्तों तक एक सितार के पास सोते रहे, रात के अलग-अलग समय पर उसे थपथपाते रहते, ताकि आर्द्रता और तापमान का उसकी ध्वनि पर कैसा असर पड़ता है, यह जान सकें. उनकी असली खोज तब हुई जब उन्होंने पाया कि स्थानीय खेतों में उगने वाली लौकी—जिनका उपयोग साधु जलपात्र के रूप में करते थे—ध्वनि अनुनाद (रेजोनेन्स) के लिए आदर्श होती हैं. ये लौकियां या तो स्थानीय खेतों से प्राप्त की जातीं या विशेष रूप से उगाई जातीं. इन लौकियों को धीरे-धीरे सुखाकर और संसाधित कर ‘प्राकृतिक अनुनाद कक्ष’ (रेजोनेटर) बनाया जाता था. अपने भाई मोइनुद्दीन की सहायता से फ़रीदसाहब ने हाथ से ही पूरी तरह सितार बनाना शुरू किया—लकड़ी की किस्मों, तारों के तनाव और जावरी (जो वाद्य के स्वरगुण को आकार देती है) के सूक्ष्म संतुलन पर प्रयोग करते हुए.
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