23/07/2025 : इस्तीफा ही रास्ता था धनखड़ के लिए | एकै दिन में 8 लाख वोटर 'लापता' | आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह ठुकराई | उन्हें पता था मैं बेकसूर हूँ | सीवर में मौतें | बेरोजगारी | छोटे शाह का निज़ाम
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
यदि नहीं देते तो हटाए जाते
धनखड़ के 5 बड़े विवाद
बिहार वोटर लिस्ट पर हंगामा, कार्यवाही ठप
एक ही दिन में 8 लाख से ज़्यादा वोटर 'लापता'
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का सुझाव ठुकराया आधार, वोटर और राशन कार्ड स्वीकार्य नहीं
कांवड़ यात्रा: ढाबों पर क्यूआर कोड के आदेश पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट: दोषियों के बरी होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची महाराष्ट्र सरकार
भाजपा को 'बंगाली-विरोधी' बताने की तैयारी में तृणमूल
90% से ज़्यादा सीवर मौतें बिना सुरक्षा उपकरणों के हुईं
बेरोज़गारी के सरकारी आंकड़े भरोसेमंद नहीं
क्रिकेट का बॉस कौन? जय शाह की काबिलियत पर उठे गंभीर सवाल
धनखड़ से इस्तीफा लिया गया है, यदि नहीं देते तो हटाए जाते
जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफे की "असली वजह" आधिकारिक रूप से भले ही सामने नहीं आई हो, लेकिन मीडिया में जो खबरें हैं, वो बता रही हैं कि उनसे इस्तीफा "लिया गया" है. सोमवार, 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के पहले दिन के घटनाक्रम के बारे में जो खबरें हैं, उनसे ऐसा लगता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ अभियोग प्रस्ताव के मामले में सरकार और उसके प्रबंधकों को धनखड़ की भूमिका पसंद नहीं आई. जिससे, दोनों पक्षों के बीच मनमुटाव हुआ और बात "अहम" तक पहुंच गई. ख़बरों में, कहा तो यह भी जा रहा है कि धनखड़ के रुख को देखते हुए उनसे यहां तक कहा गया कि यदि वे गरिमापूर्ण विदाई चाहते हैं तो इस्तीफा ही विकल्प है. बताते हैं कि इसके बाद ही सोमवार की रात 9.25 बजे उन्होंने "एक्स" पर अपना त्यागपत्र पोस्ट कर दिया. इस्तीफे में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, लेकिन यह किसी के गले नहीं उतर रहा है. इसके कई कारण हैं. मसलन, कल दिन भर वे एकदम चंगे थे. सदन में आसंदी पर विराजमान होकर कार्यवाही संचालित कर रहे थे. दीगर बैठकें ले रहे थे. सदस्यों से मुलाकात कर रहे थे. कार्यमंत्रणा समिति की 12.30 और फिर शाम 4.30 बजे (जिसमें राज्यसभा में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजुजू नहीं आए थे) की बैठक में भी वे ठीक थे. दोपहर में प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) ने 23 जुलाई को उनकी एक दिन की जयपुर यात्रा का कार्यक्रम जारी किया था. बारह दिन पहले, जेएनयू के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, "मेरा रिटायरमेंट (उपराष्ट्रपति पद से) सही वक्त पर ही होगा. और वो समय है अगस्त 2027. बशर्ते दैवीय हस्तक्षेप न हो." और दैवीय हस्तक्षेप हो गया.
"द हिंदू" के अनुसार मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म "एक्स" पर एक संक्षिप्त संदेश में इस्तीफे को स्वीकार किया और उल्लेख किया, “श्री जगदीप धनखड़ जी को हमारे देश में विभिन्न भूमिकाओं में, जिसमें उपराष्ट्रपति का पद भी शामिल है, सेवा का अवसर मिला है. उन्हें अच्छे स्वास्थ्य की शुभकामनाएं.” इस्तीफे के पीछे आधिकारिक कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह जस्टिस यशवंत वर्मा को 63 विपक्षी सांसदों द्वारा हटाए जाने की मांग स्वीकार करने से जुड़ा हो सकता है. सरकार को इस कदम से आश्चर्य हुआ क्योंकि उसने इसे द्विदलीय पहल के रूप में लोकसभा में शुरू करने की योजना बनाई थी. धनखड़ ने न केवल इस नोटिस को स्वीकार किया बल्कि राज्यसभा को भी बताया कि यदि दोनों सदनों में समान नोटिस प्रस्तुत हुए तो एक संयुक्त समिति गठित कर आरोपों की जांच की जाएगी. जबकि, इस दौरान, सरकार के प्रबंधक राज्यसभा में समर्थन के लिए एनडीए सांसदों से समर्थन जुटा रहे थे, ताकि प्रस्ताव का द्विदलीय स्वरूप बना रहे.
इधर पटना से अमित भेलारी की खबर है की धनखड़ के इस्तीफे के बाद बिहार बीजेपी के नेताओं ने उपराष्ट्रपति पद के लिए मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार का नाम आगे बढ़ाया है. भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल और भाजपा मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू ने कहा कि अगर नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति बनते हैं तो यह बिहार के लिए गर्व की बात होगी. हालांकि, जद(यू) नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में बिहार की सेवा करते रहेंगे.
विडंबना, जिस निज़ाम के लिए "निष्ठा" से काम किया, उसी ने मान नहीं रखा
धनखड़ के मामले में यह भी एक विडम्बना है कि, चाहे पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के बतौर, जहां उन्होंने लगातार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को घेरा, और फिर राज्यसभा के सभापति व देश के उपराष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने वर्षों तक जिस शासन के लिए पूरी निष्ठा से कार्य किया, उसी ने उनका और उनके पद का मान नहीं रखा. सभापति की भूमिका में विपक्ष को कुचलने, न्यायपालिका, नागरिक स्वतंत्रताओं, मीडिया, बुद्धिजीवियों पर हमला बोलने, और धर्मनिरपेक्षता व संविधान के 'मूल संरचना' सिद्धांत पर शंका खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
इस पूरे दौर में, न तो मोदी और न ही अमित शाह ने कभी अपने मीडिया सहयोगियों के माध्यम से यह संकेत दिया कि उपराष्ट्रपति अपनी सीमा लांघ रहे थे.
धनखड़ का इस्तीफा उनके स्टाफ और खासकर विपक्षी सांसदों के लिए भी अप्रत्याशित था. उनके जाने के बाद अब तरह-तरह की अटकलें लग रही हैं, जिनका केंद्र मोदी और शाह के साथ किसी मतभेद को माना जा रहा है.
कुछ लोग इसे मोदी और संघ के बीच मतभेद की "आकस्मिक क्षति" मानते हैं. खासकर भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर, क्योंकि धनखड़ को नागपुर (आरएसएस) के नजदीकी माना जाता है.
मोदी सरकार की स्थिरता के लिए धनखड़ को हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था
राजनीतिक विश्लेषक शीला भट्ट ने लिखा है कि भाजपा के पास मोदी सरकार की स्थिरता के लिए धनखड़ को अपने रास्ते से हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. उनका तर्क है की भारतीय लोकतंत्र की विशेष शैली में, विधायिका की अत्यंत महत्वपूर्ण दुनिया में संसद का नियंत्रण सरकार के पास रहता है, और यदि सरकार सतर्क न रहे, तो उसे गिराया भी जा सकता है. भट्ट कहती हैं, राज्यसभा के सभापति के रूप में, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सरकार के सामने स्वयं को मुखर करना शुरू कर दिया था. पिछले कुछ महीनों में, सहमति बनाने और सत्तारूढ़ दल के साथ तालमेल में काम करने के बजाए, उन में बैठे वकील ने केवल कानून की किताब का हवाला देकर अपनी शक्ति जताने का विश्वास कर लिया था. पिछले कुछ महीनों से सत्तारूढ़ पक्ष उनके साथ असहज महसूस कर रहा था और धनखड़ भी खुले तौर पर अपनी असहजता प्रकट करते थे. जब वे कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के नेताओं, जिनमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है, से मिलते तो वे सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी खुलकर साझा करते थे. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचकों के साथ "आज के भारत में लोकतंत्र की स्थिति" जैसे विषयों पर भी चर्चा की. इन कहानियों ने बहुत जल्दी सत्तारूढ़ दल तक पहुंच बना ली. राज्यसभा सभापति के रूप में धनखड़ पूरी तरह नियंत्रण चाहते थे, और वे लगातार अपनी बागी प्रवृत्ति दिखाने लगे थे.
धनखड़ के 5 बड़े विवाद
सोमवार को जगदीप धनखड़ के भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफ़ा देने के बाद, उनका पूरा कार्यकाल एक बार फिर चर्चा में आ गया है. उनका कार्यकाल अक्सर विपक्ष के साथ टकराव और संवैधानिक सीमाओं के उल्लंघन के आरोपों से घिरा रहा. 11 अगस्त 2022 को पद संभालने के बाद से राज्यसभा के सभापति के तौर पर उनके कार्यकाल से जुड़े पांच बड़े विवादों की फेहरिस्ट टेलीग्राफ ने बनाई है.
1. विपक्ष के साथ टकराव : दिसंबर 2023 में, जब संसद में मणिपुर हिंसा को लेकर हंगामा चल रहा था, तब धनखड़ ने 'अमर्यादित व्यवहार' का हवाला देते हुए विपक्ष के एक दर्जन से ज़्यादा सांसदों को निलंबित कर दिया था. इस पर कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा था कि धनखड़ के नेतृत्व में राज्यसभा 'एक खामोश कमरा' बन गई है, न कि 'बुजुर्गों का सदन'. कांग्रेस ने उन पर विपक्षी नेताओं को बोलने से बार-बार टोकने और सत्ता पक्ष के सदस्यों को ज़्यादा समय देने का भी आरोप लगाया. हालांकि, धनखड़ ने अपने बचाव में कहा था, "सदन को नारेबाज़ी का अखाड़ा नहीं बनने दिया जा सकता. लोकतंत्र का सार बहस है, अव्यवस्था नहीं."
2. संविधान के 'मूल ढांचे' पर सवाल : अपने कार्यकाल के सबसे विवादित बयानों में से एक में, धनखड़ ने संविधान के 'मूल ढांचे' (Basic Structure doctrine) के सिद्धांत पर ही सवाल उठा दिया था. यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह संसद द्वारा किए गए किसी भी ऐसे संवैधानिक संशोधन को रद्द कर सकती है जो संविधान की मूल भावना को नष्ट करता हो. धनखड़ ने कहा था, "एक लोकतांत्रिक समाज में संसद की सर्वोच्चता सर्वोपरि है. कोई भी संस्था यह कैसे कह सकती है कि संसद द्वारा पारित संवैधानिक संशोधन को रद्द किया जा सकता है?" उनके इस बयान की काफ़ी आलोचना हुई. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी. लोकुर ने इसे 'बेहद परेशान करने वाला' बताया, जबकि तत्कालीन चीफ़ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने 'मूल ढांचे' के सिद्धांत को 'भारतीय संविधान का ध्रुव तारा' कहकर इसके महत्व को दोहराया.
3. जेएनयू दीक्षांत समारोह में विवादित भाषण : दिसंबर 2023 में, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के दीक्षांत समारोह में धनखड़ ने अपने भाषण में न्यायपालिका, नागरिक समाज और मीडिया की आलोचना की. उन्होंने 'गैर-निर्वाचित संस्थाओं' पर संसद के काम में दखल देने का आरोप लगाया. इस पर JNU के शिक्षक संघ ने कहा कि दीक्षांत समारोह 'राजनीतिक संदेश देने का सही मंच नहीं है'. अगले दिन छात्रों ने 'संविधान बचाओ' और 'न्यायपालिका से दूर रहो' जैसे नारों वाली तख्तियां लेकर कैंपस में मौन विरोध प्रदर्शन किया.
4. बिना बहस के अहम बिलों को पास करना : धनखड़ पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने राज्यसभा में कई महत्वपूर्ण विधेयकों को बिना पर्याप्त बहस के पास होने दिया, ख़ासकर उन सत्रों के दौरान जब बड़ी संख्या में विपक्षी सांसद निलंबित थे. 2024 के मानसून सत्र में, डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल और टेलीकम्युनिकेशन बिल जैसे अहम कानून मिनटों में पास कर दिए गए. विपक्ष ने इसे 'बुलडोज़र से कानून पास करवाना' बताया.
5. मीडिया और नागरिक समाज पर हमले : अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, धनखड़ ने मीडिया और नागरिक समाज के एक हिस्से पर लगातार निशाना साधा. उन्होंने पत्रकारों, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं का वर्णन करने के लिए "एक ख़ास मक़सद से गढ़ी गईं बातें" और "चुनिंदा मुद्दों पर शोर मचाने वाले" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने उनके बयानों को 'असंयमित और ख़तरनाक' बताते हुए कहा कि इससे पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में अपनी भूमिका निभाने में डर महसूस कर सकते हैं.
संसद का मानसून सत्र
बिहार वोटर लिस्ट पर हंगामा, कार्यवाही ठप
द वायर के मुताबिक बिहार में वोटर लिस्ट की जांच (स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न - SIR) को लेकर संसद में ज़बरदस्त हंगामा हुआ. विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर तुरंत चर्चा की मांग की, जबकि सरकार ने इससे इनकार कर दिया. इस वजह से संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, की कार्यवाही दिन भर के लिए ठप हो गई और उन्हें स्थगित करना पड़ा.
हंगामे से पहले, इंडिया गठबंधन के कई बड़े नेताओं ने संसद के बाहर प्रदर्शन किया. इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरजेडी सांसद मीसा भारती समेत कई नेता शामिल थे. विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार बिहार में 'वोटबंदी' करवा रही है और चुनाव आयोग के ज़रिए लाखों लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाने की साज़िश कर रही है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा से भाग रही है. विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की मांग की.
दूसरी तरफ, सरकार ने विपक्ष पर सदन न चलने देने का आरोप लगाया. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सरकार चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष हंगामा करके सदन का कीमती समय और जनता का पैसा बर्बाद कर रहा है. उन्होंने कहा कि किसी भी चर्चा से पहले नियमों का पालन करना ज़रूरी है. इस हंगामे के चलते लोकसभा सिर्फ 20 मिनट और राज्यसभा सिर्फ 7 मिनट ही चल सकी. यह पूरा विवाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की ख़बरों के बीच हुआ, जिससे राजनीतिक माहौल और गरमा गया है.
बिहार
एक ही दिन में 8 लाख से ज़्यादा वोटर 'लापता'
द वायर के मुताबिक चुनाव आयोग ने हाल ही में बिहार की वोटर लिस्ट को लेकर कुछ ऐसे आंकड़े जारी किए हैं, जिन्होंने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में सिर्फ एक ही दिन के अंदर 8 लाख 37 हज़ार से ज़्यादा वोटरों को "मृत" या "स्थायी रूप से कहीं और चले गए" की श्रेणी में डाल दिया गया. यह सब तब हो रहा है जब वोटर लिस्ट को फिर से जांचने और साफ़ करने के एक बड़े और विवादित अभियान की आखिरी तारीख, 25 जुलाई, बस आने ही वाली है. इस अचानक आए बड़े बदलाव ने चुनाव आयोग की पूरी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगा दिया है.
आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 21 जुलाई को ऐसे वोटरों की संख्या जो अपने पते पर नहीं मिले, 43.93 लाख थी. लेकिन अगले ही दिन, यानी 22 जुलाई को यह संख्या बढ़कर 52.30 लाख हो गई. इसमें से मृत बताए गए वोटरों की संख्या में 2 लाख 11 हज़ार का इज़ाफ़ा हुआ, और जो वोटर अपना पता बदलकर स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं, उनकी संख्या में 6 लाख 25 हज़ार से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई. हैरानी की बात यह है कि वोटरों की सूची में यह भारी फेरबदल ज़मीनी जांच के आधार पर नहीं हुआ. चुनाव आयोग के ही दस्तावेज़ दिखाते हैं कि इस 24 घंटे के दौरान ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) ने सिर्फ 884 नए फॉर्म जमा किए. इससे साफ़ पता चलता है कि यह बदलाव ज़मीनी सत्यापन (on-ground verification) से नहीं, बल्कि दफ़्तर में बैठकर पुरानी सूचियों के मिलान (data reconciliation) से किया गया है.
इस मामले में सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि चुनाव आयोग ने इसी साल जनवरी में बिहार के लगभग 7.9 करोड़ वोटरों की लिस्ट को साफ़ करने का एक बड़ा अभियान पूरा किया था. उस समय की जांच को बहुत मज़बूत और भरोसेमंद माना गया था. द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की एक जांच में भी यह पाया गया कि जनवरी में जारी की गई वोटर लिस्ट में कोई गड़बड़ी नहीं थी. उस वक़्त की जांच में पता बदलकर जाने वाले वोटरों की पहचान भी की गई थी और ऐसे सिर्फ़ 1.91 लाख वोटर पाए गए थे. अब सिर्फ छह महीने बाद चुनाव आयोग कह रहा है कि 26 लाख से ज़्यादा वोटर स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं. इसका मतलब यह हुआ कि पिछले छह महीनों में 24 लाख से ज़्यादा वोटर अपनी जगह छोड़कर चले गए. यह संख्या इतनी बड़ी है कि इस पर यकीन करना मुश्किल है.
इस पूरी प्रक्रिया में अब राजनीतिक दलों की भूमिका भी बदल दी गई है. पहले चुनाव आयोग ने 12 प्रमुख राजनीतिक दलों से कहा था कि वे 73.55 लाख वोटरों को ढूंढने में मदद करें जिनके फॉर्म जमा नहीं हुए हैं. लेकिन अब आयोग ने उन्हें 21.36 लाख वोटरों की सूची दी है जिनके फॉर्म अभी भी बाकी हैं, और साथ ही उन 52.30 लाख वोटरों की सूची भी दी है जिन्हें मृत, स्थायी रूप से शिफ़्ट हो चुका या एक से ज़्यादा जगह पर नामांकित बताया जा रहा है. अब राजनीतिक दलों का काम सिर्फ फॉर्म जमा करवाना नहीं, बल्कि इन 52 लाख से ज़्यादा लोगों की स्थिति को सत्यापित करना भी हो गया है.
जैसे-जैसे 25 जुलाई की आखिरी तारीख नज़दीक आ रही है, ऐसा लग रहा है कि चुनाव आयोग ज़मीनी जांच के बजाय दफ़्तरी काम और राजनीतिक दलों के सहारे इस बड़े अभियान को पूरा करने की कोशिश कर रहा है. इस पूरी प्रक्रिया का बिहार के लाखों वोटरों पर क्या असर पड़ेगा, इसका असली पता 1 अगस्त को चलेगा, जब वोटर लिस्ट का अंतिम ड्राफ़्ट प्रकाशित किया जाएगा. यह देखना अहम होगा कि इस जल्दबाज़ी और उलझन भरी प्रक्रिया में कहीं असली और योग्य वोटरों के नाम ही लिस्ट से गायब न हो जाएं.
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का सुझाव ठुकराया आधार, वोटर और राशन कार्ड स्वीकार्य नहीं
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर स्पष्ट कर दिया है कि किया है कि आधार, वोटर आईडी या राशन कार्ड को केवल पहचान पत्र के रूप में देखा जाएगा, नागरिकता के निर्णायक सबूत के रूप में नहीं. उल्लेखनीय है कि बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर 10 जुलाई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को भी दस्तावेज के बतौर स्वीकार करने का सुझाव दिया था. लेकिन, सोमवार को दिए गए हलफनामे में उसने सुझाव मानने से इनकार कर दिया.
88 पेज के हलफनामे में आयोग ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति चुनावी मतदाता सूची में पंजीकरण के लिए अयोग्य पाया जाता है, तो इससे उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त नहीं होती. विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया का उद्देश्य नागरिकता का निर्धारण या समाप्ति नहीं है, बल्कि मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है.
हलफनामे में यह भी जोड़ गया है कि नागरिकता अधिनियम की के अनुच्छेद 9 के अंतर्गत एसआईआर प्रक्रिया लागू नहीं होती. केवल विदेशी नागरिकता हासिल करने के मामलों में ही नागरिकता समाप्त हो सकती है, और इस पर फैसला केंद्र सरकार का अधिकार है. आयोग ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति मतदाता सूची के लिए अयोग्य ठहराया जाता है, तो यह सिर्फ उस व्यक्ति के मतदान-अधिकार और मतदाता बनने की योग्यता को प्रभावित करता है, उसकी नागरिकता को नहीं.
आयोग ने कहा कि आधार कार्ड सिर्फ पहचान का प्रमाण है. देश में कई सारे फर्जी राशन कार्ड भी चलन में हैं, लिहाजा राशन कार्ड को भी सही नहीं माना जा सकता. और पुराने वोटर आईडी (इपिक कार्ड) को भी सही मान लिया जाएगा तो फिर नए सिरे से सूची बनाने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा.
"द रिपोर्टर्स कलेक्टिव" ने भी चुनाव आयोग के हलफनामे हवाले से बताया है कि अपनी नागरिकता को साबित करने का दायित्व लोगों पर ही है. साथ ही, निर्वाचन नामांकन अधिकारी (ईआरओ ) और मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) के पास इस अभियान के दौरान लोगों के नागरिकता दस्तावेजों को सत्यापित करने का अधिकार होगा. कुलमिलाकर, निर्धारित 11 दस्तावेज ही मान्य होंगे.
इस बीच बिहार में मतदाताओं को जरूरी कागज़ात जुटाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों ने फॉर्म और अन्य आवश्यक प्रक्रियाओं में भेदभाव और अव्यवस्था की शिकायत की है. जरूरी दस्तावेज़ के अभाव और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं. "द टेलीग्राफ" में फेरोज़ एल. विंसेंट ने बताया है कि पटना में नागरिक समाज समूहों द्वारा आयोजित एक दिवसीय “जन सुनवाई” में कई मतदाताओं ने विशेष गहन पुनरीक्षण को अपारदर्शी और मनमाने तरीके से लागू किए जाने की शिकायत की.
कटिहार की फूल कुमारी देवी ने कहा, “मुझे स्टूडियो में फोटो खिंचवाने के लिए 4 किमी चलना पड़ा, ताकि बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) को फोटो दे सकूं. मेरे पास पैसे नहीं थे, इसलिए मुझे अपना राशन में मिला हुआ चावल बेचना पड़ा. आवश्यक दस्तावेज़ों को जुटाने के लिए दो दिन का काम छोड़ना पड़ा, जिससे मैं खाना भी नहीं खरीद सकी.” सहरसा की सुमित्रा देवी का कहना था कि -“मुझसे जाति और जन्म प्रमाण-पत्र मांगा गया. यह सब मैं कहां से लाऊं? उन्होंने मेरे माता-पिता के कागजात भी मांगे. दोनों का निधन तो मेरे बचपन में ही हो गया था.मेरे घर के 10 में से सिर्फ 3 सदस्यों को बीएलओ से प्रविष्टि फार्म मिला है, बाकी का क्या होगा समझ नहीं आ रहा.”
कांवड़ यात्रा: ढाबों पर क्यूआर कोड के आदेश पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें कांवड़ यात्रा के रास्ते में पड़ने वाले सभी ढाबों और होटलों को क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य किया गया है. यह याचिका शिक्षाविद अपूर्वानंद और कुछ अन्य लोगों ने दायर की थी. हालांकि, कोर्ट ने यह ज़रूर कहा कि सभी होटल मालिकों को अपने लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नियमों के अनुसार दिखाने होंगे.
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि क्यूआर कोड का आदेश मालिकों की पहचान ज़ाहिर करने और धार्मिक आधार पर भेदभाव करने का एक तरीका है. वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सवाल उठाया, "मालिक के सरनेम से अच्छी सेवा की गारंटी कैसे मिलती है?" उनका तर्क था कि यह सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल के उस आदेश का उल्लंघन है, जिसमें मालिकों के नाम दिखाने पर रोक लगाई गई थी.
वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि यह नियम खाद्य सुरक्षा (FSSAI) के लिए है. सरकार का दावा था कि कुछ ढाबे खुद को शाकाहारी बताकर मांसाहारी भोजन बेच रहे थे, जिससे भक्तों की भावनाएं आहत होती हैं. इस पर कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा, "ग्राहक राजा है. उसे यह जानने का पूरा अधिकार है कि कोई होटल पहले मांसाहारी था और अब सिर्फ यात्रा के दौरान व्यापार के लिए शाकाहारी बन गया है." कोर्ट ने यह भी कहा कि कांवड़ यात्रा अब अपने अंतिम चरण में है, इसलिए इस समय आदेश पर रोक लगाना उचित नहीं होगा.
विमान हादसा: सरकार ने सीबीआई जांच की मांग खारिज की
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने सोमवार को राज्यसभा में साफ किया कि एयर इंडिया विमान हादसे की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी CBI को सौंपने का कोई प्रस्ताव नहीं है. सरकार ने यह जवाब सांसद जेबी माथेर हिशाम के एक सवाल पर दिया, जिन्होंने पूछा था कि क्या सरकार हादसे की CBI जांच कराएगी. नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने एक लिखित जवाब में कहा, "ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है."
इस मामले में एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) की शुरुआती रिपोर्ट में कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं, जिससे अटकलों का बाज़ार गर्म है. रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि उड़ान के बीच में विमान का ईंधन नियंत्रण स्विच कैसे बंद हो गया, जिससे इंजन ने काम करना बंद कर दिया और विमान की ऊंचाई घटने लगी. फ्लाइट डेटा रिकॉर्डिंग से पता चलता है कि दोनों पायलट भी असमंजस में थे. रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि यह कोई तकनीकी खराबी थी या इसे जानबूझकर किया गया था. लेखक सौतिक बिस्वास के शब्दों में कहें तो, "कोई ठोस सबूत नहीं है - बस उन जवाबों का एक बेचैन करने वाला इंतज़ार है जो शायद कभी पूरी तरह से सामने न आएं."
इस बीच, नागरिक उड्डयन मंत्री के. राम मोहन नायडू ने संसद को बताया कि AAIB "पूरी तरह से निष्पक्ष" है और नियमों के आधार पर पूरी जांच कर रही है. उन्होंने यह भी बताया कि पिछले छह महीनों में सुरक्षा उल्लंघन के पांच मामलों में एयर इंडिया को कुल नौ कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं. वहीं, एयर इंडिया का कहना है कि उसने अपने सभी बोइंग 787 और 737 विमानों में फ्यूल कंट्रोल स्विच के लॉकिंग मैकेनिज्म की जांच पूरी कर ली है और इसमें कोई समस्या नहीं पाई गई है.
किताबों से पाइका विद्रोह हटाने पर ओडिशा में विवाद
ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक नया मोर्चा खुल गया है. इस बार विवाद स्कूल के पाठ्यक्रम को लेकर है. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबों से पाइका विद्रोह को हटाने पर पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने गहरी चिंता जताई है. पाइका विद्रोह का ओडिशा के लोगों के लिए बहुत महत्व है. नवीन पटनायक ने कहा, "पाइका विद्रोह ओडिशा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था. हमारे बहादुर पाइकाओं ने 1817 में दमनकारी ब्रिटिश शासन के खिलाफ असाधारण साहस के साथ लड़ाई लड़ी थी. मैंने भारत सरकार से कई बार इसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम घोषित करने का आग्रह किया था. इस महान विद्रोह को एनसीईआरटी की किताबों से हटाना, जो 1857 के सिपाही विद्रोह से 40 साल पहले हुआ था, हमारे बहादुर पाइकाओं का बहुत बड़ा अपमान है." इस हमले का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को भाजपा का शीर्ष ओडिया नेता माना जाता है.
विवाद बढ़ने के बाद एनसीईआरटी ने सफाई देते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की. एनसीईआरटी का कहना है कि कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक 'समाज की खोज: भारत और उससे आगे' का यह केवल पहला भाग है. दूसरा भाग अभी तैयार हो रहा है और इसके सितंबर-अक्टूबर 2025 में आने की उम्मीद है. एनसीईआरटी के अनुसार, ओडिशा के पाइका विद्रोह और पंजाब के कूका आंदोलन जैसे क्षेत्रीय प्रतिरोध आंदोलनों से जुड़े विषयों को दूसरे भाग में शामिल किया जाएगा.
2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट: दोषियों के बरी होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची महाराष्ट्र सरकार

सुप्रीम कोर्ट इस गुरुवार को उस अपील पर सुनवाई करेगा, जिसमें 2006 के मुंबई ट्रेन धमाकों के सभी 12 दोषियों को बरी करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है. महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. इन धमाकों में 189 लोगों की जान गई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने इस मामले पर तत्काल सुनवाई की मांग की. उन्होंने अदालत को बताया कि यह एक गंभीर मामला है, जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी और दोषियों को बरी कर दिया गया है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुरुवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई. अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को पलटता है या उसे बरकरार रखता है. इस मामले पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं.
19 साल
वे जानते थे मैं बेगुनाह हूँ!
लगभग 19 साल जेल में बिताने के बाद, साजिद अंसारी को तीन हफ्ते पहले पहली बार पैरोल मिली थी ताकि उनकी पत्नी का इलाज हो सके. सोमवार को, जब वह मुंबई के अपने घर से ऑनलाइन बॉम्बे हाई कोर्ट की कार्यवाही देख रहे थे, तो उन्हें लगा कि जल्द ही उन्हें वापस नासिक जेल जाना होगा. लेकिन अदालत ने उन्हें और 11 अन्य लोगों को 2006 के मुंबई ट्रेन बम धमाकों के मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया. 48 साल के साजिद के लिए यह एक अजीब एहसास था. उन्होंने कहा, "मैं अचानक एक आज़ाद इंसान बन गया हूं". स्क्रोल में तबस्सुम बडनगरवाला ने इस पर लंबा रिपोर्ताज लिखा है.
2006 में, जब साजिद को गिरफ्तार किया गया था, तब वह 29 साल के थे. वह मोबाइल रिपेयर की दुकान और एक ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट चलाते थे. 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात बम धमाके हुए, जिसमें 189 लोग मारे गए और 824 घायल हो गए. इसके तुरंत बाद पुलिस ने साजिद को हिरासत में ले लिया और फिर कभी नहीं छोड़ा. उन पर बम के लिए टाइमर खरीदने, विस्फोटक तैयार करने और दो पाकिस्तानियों को पनाह देने का आरोप लगाया गया. उस वक्त उनकी पत्नी गर्भवती थीं. गिरफ्तारी के तीन महीने बाद उनकी बेटी का जन्म हुआ. पिछले 19 सालों में वह अपनी बेटी से या तो कोर्ट में मिले या वीडियो कॉल पर. वह कहते हैं, "मैं उसे कभी ठीक से जान ही नहीं पाया". साजिद कहते हैं, "मैं जानता था, मेरा परिवार जानता था, और यहां तक कि पुलिस भी जानती थी कि मैं बेगुनाह हूं". लेकिन अब वह अपनी पुरानी जिंदगी में वापस नहीं लौट सकते. वह कहते हैं, "अब तो मैं फोन भी नहीं चला सकता. टेक्नोलॉजी बदल गई है". उन्होंने दो साल पहले कानून की पढ़ाई शुरू की थी. वह कहते हैं, "शायद अब मैं इसी क्षेत्र में काम करूंगा".
जहां साजिद को आज़ादी का स्वाद चखने का मौका मिला, वहीं बिहार के रहने वाले कमाल अंसारी इतने भाग्यशाली नहीं थे. 2021 में, कोविड के कारण नागपुर जेल में उनकी मृत्यु हो गई. उनके बेटे अब्दुल्ला बताते हैं कि जब पुलिस उनके पिता को बिहार के मधुबनी जिले से ले गई, तब वह सिर्फ छह साल के थे. पुलिस ने उन पर मुंबई की ट्रेन में बम रखने का आरोप लगाया था. अब्दुल्ला ने कहा, "लेकिन मेरे पिता कभी मुंबई गए ही नहीं थे. धमाके के समय वह नेपाल में थे". पिता की गिरफ्तारी के बाद परिवार ने अपना कमाने वाला खो दिया. अब्दुल्ला ने छोटी उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया. सोमवार को जब कमाल अंसारी को निर्दोष करार दिया गया, तो अब्दुल्ला ने कहा, "यह फैसला साबित करता है कि उनकी ज़िंदगी जेल में सड़ते हुए बीती. मेरे पिता को मुझसे छीन लिया गया. और वह दोषी भी नहीं थे".
आसिफ खान 32 साल के थे जब उन्हें गिरफ्तार किया गया. वह एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सिविल इंजीनियर थे और उनके तीन बच्चे थे. उन पर बम रखने और पाकिस्तानी आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप था. विशेष अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई और पुणे की यरवदा जेल के फांसी यार्ड में भेज दिया गया. उनके भाई अनीस अहमद कहते हैं, "उनकी पूरी जवानी जेल में बर्बाद हो गई". गिरफ्तारी के बाद उनका परिवार बहुत मुश्किलों से गुज़रा. लेकिन आसिफ ने फांसी की सज़ा के बावजूद उम्मीद नहीं खोई. वह जेल में कुरान पढ़ते और नमाज़ अदा करते थे.
मुंबई की एक गरीब बस्ती, शिवाजी नगर में रहने वाले मोहम्मद अली पर आरोप था कि उन्होंने अपनी 120 वर्ग फुट की झोपड़ी में बम बनाने के लिए एक दर्जन से ज़्यादा आतंकवादियों को पनाह दी थी. उनकी बेटी फरज़ाना अपनी छोटी सी झोपड़ी को दिखाते हुए कहती हैं, "हमारी झोपड़ी को देखिए, इसमें एक दर्जन लोग फिट भी नहीं होंगे". अली की गिरफ्तारी के बाद उनके परिवार को बहुत कुछ सहना पड़ा. उनकी पत्नी सईदन निसा कहती हैं कि पुलिस उन्हें "आतंकवादी की बीवी" कहकर ताने मारती थी. अली की बहन रुकसाना शेख ने बताया कि पुलिस उनके घर से प्रेशर कुकर और सीमेंट की एक बोरी ले गई थी. उन्होंने कहा, "मैंने उस कुकर में अभी-अभी चना बनाया था जब उन्होंने मुझसे इसे सौंपने को कहा". परिवार का कहना है कि अली को ज़बरदस्ती अपना जुर्म कबूल करने पर मजबूर किया गया था. अब, इतने सालों के संघर्ष के बाद, जब अली को निर्दोष घोषित किया गया है, तो परिवार उनकी रिहाई की तैयारी कर रहा है. उनकी मां सईदन निसा, जो अपने बेटे सोहेल के लिए नागपुर जाने का बैग तैयार कर रही थीं, कहती हैं, "मैंने पूरी रात एक अच्छे फैसले की उम्मीद में दुआ की".
भाजपा को 'बंगाली-विरोधी' बताने की तैयारी में तृणमूल
ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अब भाजपा की नागरिकता की राजनीति का जवाब देने के लिए उसे 'बंगाली-विरोधी' के रूप में पेश करने की तैयारी में है. भाजपा के एक नेता ने माना है कि अगर बिहार की तरह मतदाताओं की जांच होती है, तो इसका असर सिर्फ बंगाली मुसलमानों पर ही नहीं, बल्कि हिंदुओं पर भी पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि 1970 के बाद कई बंगाली हिंदू बांग्लादेश से राज्य में आए थे.
राजनीतिक वैज्ञानिक द्विगायन भट्टाचार्य का भी मानना है कि ममता बनर्जी ने जगन्नाथ मंदिर बनाने और एक अलग बंगाली हिंदू आवाज उठाकर भाजपा के हिंदुत्व वाले नैरेटिव की धार कुंद कर दी है. भट्टाचार्य के अनुसार, "अब ममता बनर्जी को हिंदू-विरोधी या मुस्लिम-परस्त कहना आसान नहीं रहा." TMC की यह नई रणनीति भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है, जो नागरिकता कानून के मुद्दे पर बंगाल में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. अब पार्टी को यह साबित करना होगा कि उसकी नीतियां बंगाल के हिंदुओं के खिलाफ नहीं हैं.
सरहद पर 'झंडों की जंग': पाकिस्तान को जवाब देने के लिए भारत लगाएगा 200 फुट ऊंचा तिरंगा
द वायर में राहुल बेदी ने भारत ने पंजाब में पाकिस्तान के साथ लगी अपनी सादकी सीमा पर लगभग 200 फुट ऊंचा तिरंगा झंडा लगाने का फैसला किया है. यह स्वतंत्रता दिवस तक लग जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार, इसका मकसद दूसरी तरफ लगे पाकिस्तान के 165 फुट ऊंचे झंडे को बौना साबित करना है. यह दोनों देशों के बीच "झंडा प्रतियोगिता" का नवीनतम उदाहरण है.
यह प्रतियोगिता पंजाब में तीन मुख्य सीमा क्रॉसिंग- अमृतसर के पास वाघा, फिरोजपुर के पास हुसैनीवाला और फाजिल्का के पास सादकी में देखी जा सकती है. हालांकि, लेखक राहुल बेदी याद दिलाते हैं कि सादकी और हुसैनीवाला में सीमा रक्षकों की सेरेमनी वाघा बॉर्डर की तुलना में काफी शांत होती है. वाघा बॉर्डर पर होने वाली परेड में देशभक्ति का आक्रामक प्रदर्शन होता है, जबकि अन्य दो जगहों पर माहौल अपेक्षाकृत शांत रहता है. यह प्रतीकात्मक मुकाबला दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बीच एक दिलचस्प पहलू को उजागर करता है, जहां राष्ट्रीय गौरव का प्रदर्शन झंडों की ऊंचाई से भी किया जा रहा है.
बेरोज़गारी के सरकारी आंकड़े भरोसेमंद नहीं: देश के बड़े अर्थशास्त्रियों का दावा
रॉयटर्स में विवेक मिश्रा के मुताबिक देश के बड़े और स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बेरोज़गारी पर सरकार जो आंकड़े देती है, वे सही नहीं हैं और देश में बेरोज़गारी की असली गंभीर तस्वीर को छिपाते हैं. रॉयटर्स द्वारा किए गए एक सर्वे में 50 में से 37 से ज़्यादा अर्थशास्त्रियों ने माना कि सरकार का यह दावा कि बेरोज़गारी दर सिर्फ 5.6% है, गलत है. कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि असल बेरोज़गारी दर इससे लगभग दोगुनी, यानी 10% या उससे भी ज़्यादा हो सकती है.
इसकी सबसे बड़ी वजह रोज़गार की सरकारी परिभाषा है. भारत के सरकारी सर्वे (PLFS) में, अगर कोई व्यक्ति हफ़्ते में सिर्फ एक घंटा भी काम कर लेता है, तो उसे 'रोज़गार' वाला मान लिया जाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह नियम मज़ाक जैसा है और इससे देश में छिपी हुई बेरोज़गारी (underemployment) का पता नहीं चलता, जहाँ लोगों के पास काम तो है, लेकिन बहुत कम. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रणब बर्धन ने कहा, "यह आंखों में धूल झोंकने जैसा है. हमारे देश में रोज़गार का एक बहुत बड़ा संकट है, जो इन आंकड़ों में नहीं दिखता."
पूर्व RBI गवर्नर डी. सुब्बाराव ने भी सरकारी आंकड़ों पर शक जताते हुए कहा कि सिर्फ नौकरी मिलना ही काफी नहीं है, बल्कि नौकरी की क्वालिटी कैसी है, यह भी मायने रखता है. एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था भले ही तेज़ी से बढ़ रही है, लेकिन अच्छी और ज़्यादा तनख्वाह वाली नौकरियां पैदा नहीं हो पा रही हैं. इसी वजह से लोगों की असली मज़दूरी भी नहीं बढ़ रही है, जो एक सेहतमंद अर्थव्यवस्था की निशानी नहीं है.
कांग्रेस पार्टी को टैक्स मामले में झटका, 199 करोड़ की आय पर अपील ख़ारिज : इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) ने मंगलवार को कांग्रेस पार्टी की एक अपील को ख़ारिज कर दिया है. यह मामला 199 करोड़ रुपए से ज़्यादा की आय पर टैक्स की मांग से जुड़ा है. ट्रिब्यूनल ने कहा कि कांग्रेस ने 2017-18 के लिए अपना इनकम टैक्स रिटर्न तय समय-सीमा (31 दिसंबर 2018) के बाद फ़ाइल किया था, जिस वजह से उसे राजनीतिक दलों को मिलने वाली टैक्स छूट का फ़ायदा नहीं मिल सकता. पार्टी पर नकद चंदे की सीमा का उल्लंघन करने का भी आरोप है.
भारत-अमेरिका व्यापार सौदा कृषि पर अटका, ट्रंप से 'सरप्राइज़' की उम्मीद : भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत कृषि के मुद्दे पर फंस गई है. 1 अगस्त की समय-सीमा नज़दीक आ रही है, लेकिन भारत अपने किसानों के हितों की रक्षा के लिए कृषि क्षेत्र को विदेशी आयात के लिए खोलने को तैयार नहीं है. वहीं, अमेरिका चाहता है कि भारत यह बाज़ार खोले. अधिकारियों के मुताबिक, बातचीत में गतिरोध बना हुआ है. हालांकि, वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से किसी आखिरी मौके पर लिए जाने वाले चौंकाने वाले फ़ैसले की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं.
जहाज में आग: हॉन्ग कॉन्ग से दिल्ली आ रही एयर इंडिया की फ्लाइट AI 315 में मंगलवार को आग लग गई. विमान के पिछले हिस्से में मौजूद APU (ऑक्जिलरी पावर यूनिट) में यह आग तब लगी, जब विमान दिल्ली में लैंड करने के बाद गेट पर खड़ा था. सभी यात्री और क्रू सदस्य सुरक्षित हैं.
सरकारी ऑडिट का ख़ुलासा: 90% से ज़्यादा सीवर मौतें बिना सुरक्षा उपकरणों के हुईं
केंद्र सरकार द्वारा कराए गए एक सोशल ऑडिट में एक बेहद चौंकाने वाली और दर्दनाक सच्चाई सामने आई है. ऑडिट के मुताबिक, सीवर और सेप्टिक टैंक की सफ़ाई के दौरान जान गंवाने वाले 90% से ज़्यादा मज़दूरों के पास किसी भी तरह के सुरक्षा उपकरण (Safety Gear) नहीं थे. यह ख़ुलासा देश में मैला ढोने की प्रथा पर लगे आधिकारिक प्रतिबंध के बावजूद, ज़मीनी हक़ीक़त की भयावह तस्वीर पेश करता है.
हिंदू के मुताबिक यह ऑडिट सामाजिक न्याय मंत्रालय ने करवाया था, जिसमें 2022 और 2023 में हुईं 54 मौतों की गहराई से जांच की गई. यह मौतें 8 राज्यों के 17 ज़िलों में हुई थीं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इन दो सालों में पूरे देश में 150 लोगों की सीवर में मौत हुई. इस ऑडिट का मक़सद यह जानना था कि इन मज़दूरों को काम पर कैसे रखा गया, क्या उन्हें सुरक्षा उपकरण दिए गए, और क्या उन्हें काम से जुड़े ख़तरों के बारे में बताया गया था.
ऑडिट के नतीजे दिल दहला देने वाले हैं. जांच की गईं 54 मौतों में से 49 मामलों में मज़दूरों ने कोई भी सुरक्षा उपकरण नहीं पहना था. सिर्फ़ पांच मामलों में उनके पास दस्ताने थे और सिर्फ़ एक मामले में दस्ताने और गमबूट दोनों थे. इससे भी ज़्यादा गंभीर बात यह है कि 47 मामलों में मज़दूरों को सफ़ाई के लिए कोई भी मशीनी उपकरण नहीं दिया गया था. यही नहीं, 27 मामलों में तो मज़दूरों से काम के लिए सहमति तक नहीं ली गई थी. और जिन 18 मामलों में लिखित सहमति ली भी गई, वहां उन्हें काम में शामिल जान के ख़तरों के बारे में कुछ नहीं बताया गया.
सरकार ने संसद में इन ख़ुलासों को स्वीकार करते हुए बताया है कि इस समस्या से निपटने के लिए 'नमस्ते' (NAMASTE) योजना शुरू की गई है. सरकार का अब यह कहना है कि देश में 'मैला ढोना' (Manual Scavenging) ख़त्म हो चुका है, और अब सिर्फ़ 'खतरनाक तरीक़े से सीवर की सफ़ाई' की समस्या बची है, जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है. नमस्ते योजना के तहत, अब तक देश भर में 84,902 सीवर और सेप्टिक टैंक कर्मचारियों की पहचान की गई है, जिनमें से आधे से कुछ ज़्यादा को ही पीपीई किट और सुरक्षा उपकरण दिए गए हैं. यह आंकड़े दिखाते हैं कि सरकारी योजनाओं और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच एक बहुत बड़ी खाई है, जिसे पाटने की तत्काल ज़रूरत है.
ढाका विमान हादसा: जब एक स्कूल 'मौत के जाल' में बदल गया, दर्जनों बच्चों की मौत से देश में मातम
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में सोमवार का दिन हज़ारों परिवारों के लिए क़यामत बनकर आया. एक सामान्य स्कूल का दिन उस वक़्त एक भयानक त्रासदी में बदल गया, जब बांग्लादेश वायु सेना का एक लड़ाकू जेट बीच हवा में ख़राब होकर एक स्कूल पर आ गिरा. इस हादसे में स्कूल की इमारत आग के गोले में तब्दील हो गई और कम से कम 31 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 25 मासूम बच्चे शामिल हैं. 165 से ज़्यादा लोग घायल हैं, जिनमें से कई की हालत गंभीर है. सीएनएन के लिए हेलन रेगन के इस पर रिपोर्ट लिखी है.
यह हादसा ढाका के माइलस्टोन स्कूल एंड कॉलेज में हुआ. जब जेट विमान स्कूल की दो मंजिला इमारत से टकराया, तब बच्चे अपनी दोपहर की क्लास ख़त्म कर रहे थे और माता-पिता अपने बच्चों को लेने के लिए गेट के बाहर जमा थे. धमाके की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि दूर-दूर तक सुनी गई. देखते ही देखते पूरी इमारत आग और धुएं में घिर गई. यह बांग्लादेश के हाल के इतिहास का सबसे घातक हवाई हादसा है, जिसने 17 करोड़ की आबादी वाले पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है.
प्रत्यक्षदर्शियों ने जो मंज़र देखा, वह रूह कंपा देने वाला था. स्कूल के एक लेक्चरर मोहम्मद इमरान हुसैन ने बताया, "हमने बच्चों और उनके माता-पिता के शरीर के बिखरे हुए हिस्से देखे. मैं शब्दों में सब कुछ बयां नहीं कर सकता." स्कूल के एक छात्र शेख रमीन ने कहा, "यह इमारत एक 'मौत के जाल' में बदल गई थी. मैंने एक जले हुए बच्चे को मदद मांगते देखा, लेकिन कोई उसकी मदद के लिए नहीं आया." गुस्साए और दुखी छात्र अब अधिकारियों से जवाब मांग रहे हैं.
देश की सेना के अनुसार, चीन में बना FT-7 जेट विमान एक रूटीन ट्रेनिंग मिशन पर था. उड़ान भरने के तुरंत बाद इसमें तकनीकी ख़राबी आ गई. पायलट ने विमान को घनी आबादी वाले इलाक़ों से दूर ले जाने की पूरी कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्य से यह एक स्कूल पर गिर गया. हादसे के बाद राजधानी के अस्पताल घायलों से भर गए, जहां डॉक्टर बुरी तरह जले हुए बच्चों का इलाज करने में जुटे रहे. परेशान और बदहवास रिश्तेदार अपने प्रियजनों की ख़बर के लिए अस्पतालों के बाहर इंतज़ार करते रहे.
बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के नेता मुहम्मद यूनुस ने एक भावुक संदेश में कहा, "मेरे पास शब्द नहीं हैं. हम उनके माता-पिता को क्या जवाब दे सकते हैं? हम ख़ुद को भी जवाब नहीं दे सकते." इस हादसे ने पूरे देश को राष्ट्रीय शोक में डुबो दिया है.
क्रिकेट का बॉस कौन? जय शाह की काबिलियत पर उठे गंभीर सवाल
क्या क्रिकेट 2028 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में एक खेल बनेगा? इस पर विचार चल रहा है. लेकिन इस बीच, क्रिकेट की राजनीति पर एक बड़ी बहस छिड़ गई है. ऑस्ट्रेलिया के वरिष्ठ क्रिकेट लेखक और 'इंडियन समर्स' किताब के लेखक गिदोन हेग ने आदित्य मणि झा से बातचीत में कहा है कि "क्रिकेट के हित हमेशा राजनीतिक हितों के आगे दूसरे दर्जे पर रहने का खतरा है."
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के प्रमुख जय शाह पर तीखी टिप्पणी की. हेग ने कहा, "यह सोचना भी एक मज़ाक जैसा है कि जय शाह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को चलाने के लिए दुनिया के सबसे काबिल व्यक्ति हैं. उनकी एकमात्र योग्यता यह है कि वे भारत के गृह मंत्री के बेटे हैं, और बस. उनके पास न तो कोई खास विज़न है, न कोई विशेष कौशल है, और न ही वे बहुत करिश्माई हैं. वे सिर्फ एक वजह से वहां हैं: भाजपा का राजनीतिक दबदबा."
हेग ने आगे कहा, "यह भारत के खिलाफ कोई तर्क नहीं है- मुझे लगता है कि क्रिकेट चलाने वाले सबसे काबिल लोग भारत में ही कहीं होंगे, लेकिन जय शाह वह व्यक्ति नहीं हैं. मुझे आश्चर्य है कि लोग इस पर हर समय टिप्पणी क्यों नहीं करते." यह बयान क्रिकेट प्रशासन में राजनीतिक प्रभाव और योग्यता पर एक गंभीर बहस को जन्म देता है.
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