23/09/2025: वीज़ा फैसले के बाद खलबली जारी | रुपया गिरा, शेयर बाज़ार भी | छोटे यूट्यूबरों पर दमन की तैयारी | अडानी को पूरी क्लीन चिट नहीं | क्रिकेट है तो करतारपुर क्यों नहीं | बेसब्र होता लद्दाख
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
H-1B पर अमेरिका में संकट, वैश्विक प्रतिभाओं पर चीन का 'के वीज़ा' दांव.
अडानी रिपोर्टिंग पर रोक का मामला: उसी जज के पास अपील, जिसने पहले हटाई थी रोक.
चुनाव आयोग के नाम पर फ़र्ज़ी बयान? ANI की संपादक स्मिता प्रकाश के ख़िलाफ़ मामला दर्ज.
पाकिस्तान: बम बनाने की सामग्री में ही धमाका, 14 आतंकियों समेत 24 की मौत.
अडानी समूह को पूरी राहत नहीं, हिंडनबर्ग के कुछ आरोपों पर सेबी की जांच अब भी जारी.
50 हज़ार से कम सब्सक्राइबर वाले यू-ट्यूबर पर 'पत्रकारिता' के लिए प्रेस एक्ट.
चीन पर निर्भरता कम करने की तैयारी, रक्षा क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण खनिजों का भंडार बनाएगा भारत.
नेपाल में सियासी भूचाल, भारत के पड़ोस में बढ़ती अस्थिरता का नया प्रतीक.
आरक्षण पर गडकरी का 'ब्राह्मण' वाला बयान और सुले की नसीहत, महाराष्ट्र में छिड़ी नई बहस.
चीन के बाद अब भारत, AI कंपनियों के लिए बना नया रणक्षेत्र.
BCCI अध्यक्ष का फ़ैसला: पिच पर नहीं, अमित शाह के लाउंज में हुआ चयन.
सिखों का सवाल: अगर क्रिकेट को हां, तो पाकिस्तान की तीर्थयात्रा को ना क्यों?
H-1B वीज़ा की चिंता में डॉलर के मुक़ाबले रुपया और पस्त, 88.31 पर बंद.
ताड़मेटला कांड और कांग्रेसियों पर हमले के दो मास्टरमाइंड माओवादी नेता ढेर.
नागा उग्रवादी संगठन NSCN (खापलांग) पर पांच साल के लिए बढ़ा प्रतिबंध.
मणिपुर में मोदी का दौरा: वादों का पिट स्टॉप या शांति की उम्मीद?
लद्दाख में भूख हड़ताल जारी, प्रदर्शनकारी बोले- लोग अधीर, मामला हाथ से निकल सकता है.
अमेरिकी टैरिफ का असर, भारत के निर्यात में 22% की भारी गिरावट.
ट्रम्प का एक फ़रमान, 10 लाख भारतीयों के सपनों पर गिरी गाज.
"फर्जी" दंगा मामले: जब पुलिस ही बनाए अपराध, तो सज़ा क्यों नहीं?
उमर खालिद और शरजील की ज़मानत पर सुप्रीम कोर्ट का दिल्ली पुलिस को नोटिस.
सरकारी खजाने के लिए आधा दर्जन कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी सरकार.
अमेरिकी H-1B वीज़ा शुल्क की मार, भारतीय आईटी शेयरों में भारी गिरावट.
अब मानहानि को अपराध न माना जाए: सुप्रीम कोर्ट के जज की बड़ी टिप्पणी.
वीज़ा खत्म होने के नाम पर दिल्ली में अफ़्रीकी शरणार्थियों पर पुलिस की कार्रवाई, 30 गिरफ़्तार.
यूपी 2027: वोटर लिस्ट विवाद से लेकर जातीय गोलबंदी तक, बिछने लगी बिसात.
यूपी का आदेश: अब न गाड़ियों पर जाति, न पुलिस रिकॉर्ड में, न जाति के नाम पर रैली.
बंगाल में 23 साल पुरानी वोटर लिस्ट से बेचैनी, नागरिकता के डर से दस्तावेज़ों के लिए भागदौड़.
एक करोड़ के पार भारत के शिक्षक, पर हर 14 शिक्षक पर सिर्फ़ एक सहायक कर्मचारी.
एयर इंडिया क्रैश: जांच पर ही उठे सवाल, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब.
न्यूयॉर्क के अरबपतियों की नींद उड़ाने वाला मेयर उम्मीदवार, जिसे रोकने के लिए बन रही साज़िशें.
ट्रम्प की एक चाल और 10 लाख भारतीयों के सपनों पर गिरी गाज़
कल्पना कीजिए. आप सैन फ़्रांसिस्को एयरपोर्ट पर हैं. भारत में अपने परिवार से मिलने के लिए विमान में बैठ चुके हैं. तभी आपके एम्प्लॉयर का फ़ोन आता है और आवाज़ आती है, "वापस मत आना, यहीं फंस जाओगे." यह कोई फ़िल्मी सीन नहीं, बल्कि उन सैकड़ों भारतीय IT प्रोफ़ेशनल्स की हक़ीक़त है, जिनकी ज़िंदगी में राष्ट्रपति ट्रम्प के एक फ़रमान ने भूचाल ला दिया है.
व्हाइट हाउस से जारी हुए एक नए आदेश ने H-1B वीज़ा की दुनिया को हमेशा के लिए बदलने की नींव रख दी है. अब किसी भी विदेशी कर्मचारी को नौकरी पर रखने के लिए अमेरिकी कंपनियों को हर साल एक लाख डॉलर (क़रीब 90 लाख रुपये) की फ़ीस चुकानी होगी. यह एक ऐसी रक़म है जो छोटी और मझोली कंपनियों के लिए लगभग नामुमकिन है. मोटे तौर पर इसका मतलब है कि H-1B वीज़ा, जो दशकों से भारतीय प्रतिभा के लिए अमेरिका का दरवाज़ा था, अब उस पर ताला लगने जा रहा है.
सतह के नीचे का सच: चुनाव या स्कैंडल? पहली नज़र में यह ट्रम्प की 'अमेरिका फ़र्स्ट' नीति का हिस्सा लगता है. वे अपने 'मागा' (MAGA) वोट बैंक को संदेश देना चाहते हैं कि वे अमेरिकी नौकरियां अमेरिकियों के लिए बचा रहे हैं. लेकिन हमारे पॉडकास्ट में अमेरिका स्थित पत्रकार सलीम रिज़वी एक और गहरी वजह की ओर इशारा करते हैं. यह वजह है 'एपस्टीन फ़ाइल्स'.
जेफ़री एपस्टीन का सेक्स स्कैंडल एक ऐसा जिन्न है, जिससे ट्रम्प बेहद डरे हुए हैं. इस मामले में उनका नाम बार-बार उछाला जा रहा है और उनका कट्टर समर्थक वर्ग भी उनसे सवाल पूछने लगा है. ऐसे में H-1B वीज़ा पर हमला एक क्लासिक ट्रम्प रणनीति है- एक बड़ा और भावनात्मक मुद्दा उछालो ताकि लोग असलियत से भटक जाएं. 10 लाख भारतीयों का भविष्य और अरबों डॉलर की इंडस्ट्री का नुक़सान, शायद ट्रम्प के लिए अपनी राजनीतिक ज़मीन बचाने की एक छोटी-सी क़ीमत है.
दोस्ती के दावों के बीच दुश्मनी यह फ़ैसला उस समय आया है जब भारत और अमेरिका की दोस्ती के क़सीदे पढ़े जाते हैं. लेकिन हक़ीक़त यह है कि ट्रम्प प्रशासन ने भारत पर पहले ही भारी टैरिफ़ लगा रखे हैं, जिससे टेक्सटाइल से लेकर ब्रास इंडस्ट्री तक परेशान है. अब यह नया हमला सीधे भारत की सबसे बड़ी ताक़त, यानी उसके IT सेक्टर पर हुआ है. यह दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में व्यक्तिगत दोस्ती के दावे कितने खोखले होते हैं.
इस फ़ैसले का असर सिर्फ़ वीज़ा तक सीमित नहीं है. यह उन लाखों परिवारों पर भी है जिन्होंने अमेरिका में घर ख़रीदे हैं, लोन लिए हैं और अपने बच्चों का भविष्य वहां देखा है. रातों-रात उनकी दुनिया अनिश्चितता के अंधेरे में डूब गई है.
आगे क्या होगा, यह कहना मुश्किल है. शायद अमेरिकी टेक कंपनियाँ दबाव बनाएँ या शायद अदालतें इस बेतुके फ़ैसले को पलट दें. लेकिन एक बात साफ़ है- जब सत्ताधारी अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए बाहरी दुश्मन गढ़ने लगते हैं, तो उसकी क़ीमत हमेशा उन आम लोगों को चुकानी पड़ती है जो बस मेहनत करके अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाना चाहते हैं.
अमेरिकी एच-1बी वीज़ा शुल्क में बढ़ोतरी की चिंताओं से आईटी शेयरों में गिरावट
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार (22 सितंबर, 2025) को सुबह के कारोबार में आईटी शेयरों में गिरावट आई, जिसमें टेक महिंद्रा के शेयरों में 6% से ज़्यादा की गिरावट दर्ज की गई. यह गिरावट अमेरिकी एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी बढ़ोतरी को लेकर चिंताओं के बीच हुई है. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर टेक महिंद्रा के शेयर 6.45% गिर गए, एलटीआईमाइंडट्री 5.61% लुढ़क गया, पर्सिस्टेंट सिस्टम्स में 5.51% की गिरावट आई, हेक्सावेयर टेक्नोलॉजीज़ 5.14% टूटा और एचसीएल टेक में 4.24% की कमी आई. इसी तरह, इंफोसिस के स्टॉक में 3.91%, विप्रो में 3.51% और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ में 3.36% की गिरावट देखी गई. बीएसई आईटी इंडेक्स 2.20% की गिरावट के साथ 35,177.15 पर कारोबार कर रहा था.
शुरुआती कारोबार में 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 475.16 अंक गिरकर 82,151.07 पर आ गया. 50 शेयरों वाला एनएसई निफ्टी भी 88.95 अंक घटकर 25,238.10 पर पहुंच गया. हालांकि, बाद में दोनों बेंचमार्क ने अपनी शुरुआती ज़्यादातर गिरावट की भरपाई कर ली और मामूली गिरावट के साथ कारोबार कर रहे थे. ऑनलाइन ट्रेडिंग और वेल्थ टेक फर्म एनरिच मनी के सीईओ, पोनमुडी आर ने कहा, "निफ्टी-50 गैप-डाउन के साथ खुला, क्योंकि अमेरिकी एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी बढ़ोतरी से आईटी के प्रमुख शेयरों में आक्रामक बिकवाली हुई. इससे तीन हफ़्तों की मज़बूत रैली के बाद मुनाफ़ावसूली और सावधानी का माहौल बन गया."
यह घटनाक्रम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुक्रवार (19 सितंबर, 2025) को एक घोषणा पर हस्ताक्षर करने के बाद हुआ, जिसमें कंपनियों द्वारा भारत सहित अन्य देशों से कर्मचारियों को काम पर रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले वीज़ा पर शुल्क बढ़ाया गया है. शनिवार (20 सितंबर, 2025) को व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि 100,000 डॉलर का एच-1बी वीज़ा शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होगा. यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय तकनीकी पेशेवर एच-1बी वीज़ा का सबसे बड़ा हिस्सा हैं, जिनकी संख्या 70% से भी अधिक है. इस बढ़ोतरी से भारतीय आईटी कंपनियों पर वित्तीय बोझ बढ़ने की आशंका है, जिसका असर उनके शेयरों पर दिख रहा है.
भारत के अमेरिकी निर्यात पर टैरिफ का असर, शून्य-शुल्क वाली वस्तुओं में सबसे तेज़ गिरावट, निर्यात 22% घटे
भारत का माल निर्यात, जो उसका सबसे बड़ा बाजार अमेरिका है, मई से अगस्त 2025 के बीच 22.2 प्रतिशत घट गया है. यह गिरावट 8.8 अरब डॉलर से घटकर 6.9 अरब डॉलर रह गई है, क्योंकि अमेरिकी टैरिफ में तेज़ वृद्धि से शिपमेंट प्रभावित हुए हैं. यह जानकारी ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की एक नई रिपोर्ट में दी गई है.
रिपोर्ट के अनुसार यह टैरिफ झटका तीव्र और असमान रहा है. अमेरिका ने अगस्त की शुरुआत में भारतीय वस्तुओं पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर मध्य-अगस्त तक 25 प्रतिशत कर दिया और महीने के अंत तक इसे 50 प्रतिशत तक पहुंचा दिया. सितंबर वह पहला पूरा महीना होगा जब यह ऊंचा शुल्क लागू रहेगा, जिससे श्रम-प्रधान क्षेत्रों जैसे वस्त्र, रत्न और आभूषण, झींगा, रसायन और सौर पैनल में गिरावट और गहरी हो सकती है.
“शुल्क-मुक्त निर्यात में गिरावट एक पहेली है. यह चिंताजनक और अप्रत्याशित है — इन उत्पादों पर अमेरिका में शून्य शुल्क लगता है, फिर भी इनमें सबसे तेज़ गिरावट आई है. इसके पीछे असली कारणों की तत्काल जांच की आवश्यकता है,” रिपोर्ट में कहा गया.
पुष्पिता डे के मुताबिक, सबसे बड़ी गिरावट शुल्क-मुक्त वस्तुओं में हुई. स्मार्टफोन, दवाइयां और पेट्रोलियम उत्पाद, जिन पर अमेरिका में कोई शुल्क नहीं लगता, 41.9 प्रतिशत घटकर 1.96 अरब डॉलर पर आ गए. स्मार्टफोन निर्यात 58% गिरकर 965 मिलियन डॉलर रह गया, जो मई में 2.3 अरब डॉलर था. सबसे बड़े निर्यातक फॉक्सकॉन और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स संभवत: नए मॉडलों के लिए अपना उत्पादन आधार वियतनाम या चीन स्थानांतरित कर रहे हैं. दवा निर्यात 13.3% घटकर 647 मिलियन डॉलर हो गया, जिससे भारत के 25 अरब डॉलर के दवा क्षेत्र के लिए नई चिंताएं खड़ी हो गई हैं.
इसके विपरीत, वैश्विक स्तर पर समान शुल्क वाली वस्तुएँ, जैसे धातु और ऑटो कम्पोनेंट, केवल 4% घटकर 600 मिलियन डॉलर पर आ गए. इसका कारण यह है कि इनमें भारत को अद्वितीय नुकसान नहीं उठाना पड़ा.
सबसे अधिक दबाव कैटेगरी-सी वस्तुओं में दिखा — जिन पर 50% शुल्क लगाया गया है. इनका निर्यात 10.8% घटकर 4.3 अरब डॉलर रह गया. रत्न और आभूषण निर्यात में 9.1% की गिरावट आई, जिसमें सूरत का हीरा उद्योग विशेष रूप से प्रभावित हुआ. हालांकि, लैब-ग्रोन (कृत्रिम) हीरों का निर्यात 40% से अधिक बढ़ा, जो अमेरिकी उपभोक्ताओं की बदलती पसंद को दर्शाता है. सौर पैनल निर्यात 34.6% गिरा, जिससे चीन और वियतनाम को बाज़ार हिस्सेदारी खोने का डर है, क्योंकि उन पर अपेक्षाकृत कम शुल्क लगता है. समुद्री खाद्य निर्यात 43.8% गिर गया, जिसमें वानामी झींगा 52.2% लुढ़का, जिससे तटीय इलाकों में आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है.
कपड़ा और परिधान निर्यात 9.3% घटकर 855 मिलियन डॉलर रह गया, जिसमें कपास के वस्त्रों का निर्यात 66.7% की भारी गिरावट के साथ सबसे अधिक प्रभावित हुआ. घरेलू वस्त्र निर्यात (होम टेक्सटाइल्स) ही एकमात्र सकारात्मक क्षेत्र साबित हुआ, जिसमें स्थिर अमेरिकी मांग के चलते 14.2% की वृद्धि हुई. रसायन, खासकर एग्रोकेमिकल्स, लगभग 27% गिर गए, वहीं कृषि और प्रोसेस्ड फूड निर्यात में भी तेज गिरावट रही.
जीटीआरआई ने चेतावनी दी कि शुल्क-मुक्त निर्यात में गिरावट “चिंताजनक और अप्रत्याशित” है और तत्काल जांच की आवश्यकता है. उद्योग संगठनों ने सरकार से ब्याज़-समानीकरण सब्सिडी बढ़ाने, शुल्क वापसी की प्रक्रिया तेज़ करने और तरलता सहायता देने की मांग की है. घरेलू मांग बढ़ाने के लिए जीएसटी कटौती की घोषणा की गई है, लेकिन निर्यात-विशेष राहत अभी बाकी है.
चीन वैश्विक प्रतिभाओं को लुभाने 'के वीज़ा' लाया
H-1B वीज़ा को लेकर चल रही अनिश्चितताओं के बीच, चीन ने 1 अक्टूबर से वैश्विक प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए एक नए 'के वीज़ा' पर दांव लगाया है. रविवार को जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, यह वीज़ा विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्रों में दुनिया भर के पेशेवरों के लिए होगा. इस कदम को विदेशी पेशेवरों, खासकर दक्षिण एशिया के उन लोगों को आकर्षित करने के एक जवाबी उपाय के रूप में देखा जा रहा है, जो अमेरिका में H-1B वीज़ा की जटिलताओं के कारण वैकल्पिक जगहों की तलाश में हो सकते हैं.
यह पहल ऐसे समय में हुई है जब दुनिया भर में प्रतिभाओं को आकर्षित करने की होड़ मची हुई है. यहां तक कि कीर स्टार्मर के नेतृत्व में यूनाइटेड किंगडम भी एक 'वैश्विक प्रतिभा कार्यबल' (global talent taskforce) बनाने पर विचार कर रहा है. इसका उद्देश्य वीज़ा आवेदन शुल्क को कम करना और विदेशी शिक्षाविदों और डिजिटल विशेषज्ञों के लिए ब्रिटेन में बसना आसान बनाना है. चीन का यह नया वीज़ा कार्यक्रम सीधे तौर पर उन पेशेवरों को लक्षित करता है जो अमेरिकी आव्रजन प्रणाली की अनिश्चितताओं से निराश हैं, और उन्हें एक स्थिर और आकर्षक विकल्प प्रदान करना चाहता है.
एआई कंपनियों के लिए भारत बना प्रमुख रणक्षेत्र: द इकोनॉमिस्ट
द इकोनॉमिस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) कंपनियों के लिए एक प्रमुख रणक्षेत्र बन गया है. चूंकि चीन उनकी पहुंच से बाहर है, सिलिकॉन वैली के दिग्गज यहां उत्पादों का परीक्षण कर रहे हैं और उपयोगकर्ताओं को लुभा रहे हैं - पर्प्लेक्सिटी (Perplexity) के गिवअवे से लेकर गूगल के मुफ़्त अपग्रेड तक. साथ ही, वे भारत के विशाल डेटा का उपयोग ईंधन के रूप में कर रहे हैं. यह प्रवृत्ति भारत के बढ़ते डिजिटल बाज़ार और तकनीकी रूप से जागरूक आबादी के महत्व को दर्शाती है, जो इसे वैश्विक एआई दौड़ में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाती है.
लखनऊ की अदालत ने ECI के नाम पर फ़र्ज़ी बयान प्रसारित करने के आरोप में ANI की संपादक स्मिता प्रकाश के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया
लखनऊ की एक अदालत ने एशियन न्यूज़ इंटरनेशनल (ANI) की प्रधान संपादक स्मिता प्रकाश के ख़िलाफ़ एक शिकायत का मामला दर्ज किया है. यह मामला समाचार एजेंसी पर चुनाव आयोग (ECI) के नाम से मनगढ़ंत बयान प्रसारित करने के आरोपों के बाद दर्ज किया गया. शिकायत पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने दायर की थी, जिन्होंने ANI पर आरोप लगाया कि एजेंसी ने राहुल गांधी के "वोट चोरी" के दावे पर हुई तीखी राजनीतिक बहसों के दौरान बार-बार चुनाव आयोग को झूठे बयानों का श्रेय दिया. अदालत ने शिकायत को संज्ञान में लेते हुए मामले की आगे की कार्यवाही के लिए तारीख तय की है. यह घटना मीडिया की विश्वसनीयता और चुनावी प्रक्रिया के दौरान समाचार एजेंसियों द्वारा जानकारी के सत्यापन की ज़िम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े करती है.
सेबी अभी भी हिंडनबर्ग द्वारा अडानी समूह पर लगाए गए कुछ आरोपों की जांच कर रहा है: ब्लूमबर्ग
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) अभी भी हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह के ख़िलाफ़ लगाए गए कुछ आरोपों की जांच कर रहा है. रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अडानी समूह के लिए "नियामक जोखिम अभी ख़त्म नहीं हुए हैं" और यह भी बताया गया है कि गुरुवार को सेबी के आदेश में उन्हें केवल आंशिक राहत मिली है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सेबी अभी भी अडानी समूह के ख़िलाफ़ तीन या चार आरोपों की जांच कर रहा है. इन जांचों में यह भी शामिल है कि क्या अडानी समूह ने सेबी के न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (minimum public shareholding) के दिशानिर्देशों का पालन किया है. यह रिपोर्ट बताती है कि अडानी समूह पर सेबी की निगरानी अभी भी जारी है और अंतिम निष्कर्ष आने में अभी और समय लग सकता है.
फ़िरोज़ाबाद में 50,000 से कम सब्सक्राइबर वाले यू-ट्यूबर के 'पत्रकारिता' करने पर लगेगा प्रेस एक्ट
उत्तर प्रदेश के फ़िरोज़ाबाद में अधिकारियों ने एक ऐसा आदेश जारी किया है, जिसे नियमन से ज़्यादा सेंसरशिप की कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है. इस आदेश के तहत, 50,000 से कम सब्सक्राइबर वाला कोई भी यू-ट्यूबर अगर "पत्रकारिता करता हुआ" पकड़ा जाता है, तो उस पर प्रेस एक्ट के कड़े प्रावधानों के तहत मुक़दमा दर्ज़ किया जाएगा. ज़िला सूचना अधिकारी (DIO) नरेंद्र मोहन वर्मा ने इस आदेश की पुष्टि की है. यह आदेश प्रभावी रूप से उन स्वतंत्र रचनाकारों द्वारा की जाने वाली ज़मीनी रिपोर्टिंग को अपराधीकरण करता है, जिनके पास बड़े मीडिया घरानों का समर्थन नहीं है. आलोचकों का कहना है कि यह फरमान मानकों को बनाए रखने के बजाय असुविधाजनक आवाज़ों को चुप कराने के बारे में ज़्यादा है. यह कदम स्वतंत्र डिजिटल पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक संभावित हमले के रूप में देखा जा रहा है.
भारत रक्षा क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण खनिजों का रणनीतिक भंडार बनाने पर विचार कर रहा है
रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि भारत अपने रक्षा विनिर्माण क्षेत्र द्वारा आपातकालीन परिदृश्यों में उपयोग के लिए महत्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (rare earths) का एक रणनीतिक भंडार स्थापित करने पर विचार कर रहा है. ब्लूमबर्ग के अनुसार, एक शीर्ष रक्षा अधिकारी राजेश कुमार सिंह ने नई दिल्ली में एक मीडिया कार्यक्रम में उल्लेख किया कि इस तरह का भंडार रक्षा उत्पादन की मांग बढ़ने पर "तत्काल आवश्यकता को पूरा करने" में मदद करेगा.
यह कदम चीन पर निर्भरता कम करने की वैश्विक कोशिशों का हिस्सा है. बीजिंग ने इस साल प्रसंस्कृत दुर्लभ पृथ्वी के निर्यात पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, जिसने भारत सहित कई देशों को विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित किया है. द साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने पहले ही अपनी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाना शुरू कर दिया है, जिसमें जोखिमों से भरा होने के बावजूद, काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) के साथ साझेदारी में म्यांमार में दुर्लभ पृथ्वी खदानों का उपयोग करना शामिल है. द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, "वैश्विक खनन उद्योग के विश्लेषकों ने बताया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड की टीमें इस उम्मीद में काचिन प्रांत का दौरा कर रही हैं कि दुर्लभ पृथ्वी का व्यापार चीनी हाथों से छीना जा सकता है. यांगून में जुंटा नई दिल्ली को सलाह दे रहा है कि यह एक मूर्खतापूर्ण अभ्यास है और काचिन के संसाधनों के लिए चीन के साथ प्रतिस्पर्धा उत्तर-पूर्व में उसकी परेशानियों को और बढ़ाएगी."
नेपाल की राजनीतिक उथल-पुथल भारत के पड़ोस में बढ़ती अस्थिरता का प्रतीक: द न्यूयॉर्क टाइम्स
द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में हालिया सरकार का तख्तापलट भारत के पड़ोस में नवीनतम राजनीतिक उथल-पुथल है, जो क्षेत्रीय विद्रोह की एक लहर में जुड़ गया है जो राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार दे रहा है और नई दिल्ली के राजनयिक प्रयासों को जटिल बना रहा है.
रिपोर्ट में लिखा गया है, "दक्षिण एशिया में इस तरह की अस्थिरता भारत को एक वैश्विक महाशक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से भटकाती है. लेकिन भारत अपने ही आँगन में चीज़ों को अनसुलझा नहीं छोड़ सकता. उस पर पहले से ही अपने छोटे और ग़रीब पड़ोसियों द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि वह उन्हें नज़रअंदाज़ करने और धमकाने के बीच बदलता रहता है, यह रवैया उनके विकास में मदद करने के बजाय स्वार्थ से प्रेरित होता है." रिपोर्ट यह भी कहती है कि "नेपाल जैसे पड़ोसियों ने कभी-कभी मानवीय सहायता और अपनी आर्थिक स्थिरता के लिए खुद को भारत पर निर्भर पाया है, जबकि वे अपने घरेलू मामलों में उसकी दखलअंदाजी से नाराज़ भी रहते हैं." यह विश्लेषण इस बात पर प्रकाश डालता है कि भारत को अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को संतुलित करते हुए अपने तत्काल पड़ोस में जटिल राजनीतिक गतिशीलता को सावधानी से संभालना होगा.
गडकरी और सुले के आरक्षण पर बयानों से महाराष्ट्र में नई बहस
महाराष्ट्र में आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद के बीच, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री और भाजपा नेता नितिन गडकरी ने कहा है कि वह अक्सर मज़ाक में कहते हैं कि भगवान ने उन पर सबसे बड़ा एहसान यह किया है कि वह एक ब्राह्मण हैं और उन्हें जाति-आधारित आरक्षण नहीं मिला. डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, अपने लोकसभा क्षेत्र नागपुर में हल्बा समाज महासंघ के स्वर्ण जयंती समारोह में बोलते हुए गडकरी ने कहा, "मैं उन्हें बताता हूं कि कोई भी इंसान जाति, धर्म या भाषा के कारण महान नहीं होता, बल्कि केवल अपने गुणों के कारण होता है. वास्तव में, मैं अक्सर मज़ाक करता हूं कि भगवान ने मुझ पर जो सबसे बड़ा उपकार किया है, वह यह है कि मैं एक ब्राह्मण हूं और मुझे आरक्षण नहीं मिला." केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उत्तरी राज्यों में ब्राह्मणों की उपस्थिति उल्लेखनीय है. उन्होंने कहा, "जब भी मैं वहां जाता हूं, तो देखता हूं कि दुबे, मिश्रा और त्रिपाठी के पास काफी शक्ति और प्रभाव है."
इसी बीच, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (सपा) की सांसद सुप्रिया सुले को भी आरक्षण पर अपनी टिप्पणी के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिसमें जेन ज़ी (Gen Z) भी शामिल है. सुले ने कहा कि आरक्षण उन लोगों तक सीमित होना चाहिए जिन्हें वास्तव में 'इसकी आवश्यकता है' और इस मुद्दे पर चर्चा का आग्रह किया. एक कार्यक्रम में सुले ने कहा, "आरक्षण उन लोगों के लिए होना चाहिए जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है. मैं आरक्षण नहीं मांग सकती क्योंकि मेरे माता-पिता शिक्षित हैं, मैं शिक्षित हूं और मेरे बच्चे शिक्षित हैं."
सिखों का सवाल, अगर क्रिकेट की अनुमति है, तो पाकिस्तान की तीर्थयात्रा क्यों नहीं?
लुधियाना (पंजाब) के समराला की 54 वर्षीय श्रद्धालु कंवलजीत कौर ढिल्लों अपने पति के साथ नवंबर में गुरु नानक देव जी की जयंती पर ननकाना साहिब की तीर्थयात्रा की तैयारी कर रही थीं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि केंद्र ने पाकिस्तान की तीर्थयात्राओं के लिए आवेदन स्वीकार करना बंद कर दिया है, तो उनका उत्साह निराशा में बदल गया.
भारत और पाकिस्तान के बीच दुबई में हो रहे एशिया कप क्रिकेट में दूसरी भिड़ंत पर कोई रोक नहीं, लेकिन तीर्थयात्रा रोक दी गई—इस पर ढिल्लों जैसी कई श्रद्धालुओं ने सरकार के फैसले पर सवाल उठाए.
“द हिंदू” में विकास वासुदेव की रिपोर्ट है कि केंद्र ने मई में ऑपरेशन सिंदूर के बाद से करतारपुर साहिब कॉरिडोर बंद रखा है. इस महीने की शुरुआत में गृह मंत्रालय ने घोषणा की थी कि सिख श्रद्धालु जत्थों की पाकिस्तान यात्रा रोक दी जाएगी, जिसमें ननकाना साहिब भी शामिल है. सरकारी नोटिस में कहा गया कि मौजूदा सुरक्षा हालात को देखते हुए पाकिस्तान भेजा जाना संभव नहीं है.
"चौंकाने वाला कदम" ढिल्लों ने कहा, "जब मैंने सुना कि सरकार ननकाना साहिब की यात्रा की अनुमति नहीं दे रही है, तो यह मेरे लिए बहुत झटका था. मेरे पति और मैं बहुत उत्साहित थे, लेकिन अब सब बिखर गया. अगर क्रिकेट मैचों के लिए अनुमति है, तो फिर हमारी यात्रा क्यों रोकी जा रही है?" करीब 1,900 श्रद्धालु जिन्होंने आवेदन किया था, उनको भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) की तरफ से यही जवाब मिला कि जत्था नहीं जाएगा.
सिख संस्थाओं और राजनीतिक दलों ने केंद्र से आग्रह किया है कि गुरु नानक साहिब की तीर्थयात्रा पुनः शुरू की जाए और करतारपुर कॉरिडोर को फिर से खोला जाए. यह कॉरिडोर अनुयायियों को पाकिस्तान स्थित गुरु नानक के दरबार साहिब जाने की अनुमति देता है. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने 9 मई को घोषणा की थी कि "सुरक्षा स्थिति को देखते हुए करतारपुर कॉरिडोर की सेवाएं अगले आदेश तक निलंबित रहेंगी."
"सिलेक्टिव रवैया" गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के अमरजीत सिंह ने कहा, "हमने कई युद्ध पाकिस्तान के साथ लड़े हैं, फिर भी क्रिकेट होता रहा है. अगर क्रिकेट हो सकता है तो तीर्थयात्रा क्यों नहीं?" पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के पूर्व प्रोफेसर धर्म सिंह ने टिप्प्णी की, "अगर पाकिस्तान में हादसा निंदनीय है तो सरकार को सभी रिश्ते बंद करने चाहिए—न कि सिर्फ तीर्थयात्रा. आप क्रिकेट क्यों खेलने देते हैं, लेकिन सिखों को यात्रा से रोकते हैं?"
डॉलर के मुकाबले रुपया 15 पैसे गिरा
रुपया सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 15 पैसे गिरकर 88.31 (अंतिम) पर बंद हुआ. फॉरेक्स ट्रेडर्स ने कहा कि हालिया एच-1बी वीज़ा फीस बढ़ोतरी निकट अवधि में भारतीय आईटी सेक्टर से इक्विटी आउटफ्लो का कारण बन सकती है और इससे रुपये पर दबाव भी बढ़ सकता है. ‘पीटीआई’ के अनुसार, अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 88.20 पर खुला, फिर दिन में यह 88.34 के निचले स्तर और 88.12 के उच्च स्तर तक पहुंचा. अंततः घरेलू मुद्रा 88.31 पर बंद हुई, जो पिछले बंद भाव से 15 पैसे कम थी. शुक्रवार को रुपया चार पैसे चढ़कर 88.16 के स्तर पर बंद हुआ था.
ताड़मेटला कांड और कांग्रेसियों पर हमले के मास्टरमाइंड दो शीर्ष माओवादी नेता मारे गए
सोमवार को छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र सीमा से लगे अबूझमाड़ क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में दो शीर्ष माओवादी मार गिराए गए. दोनों पर छत्तीसगढ़ में 40-40 लाख रुपये का इनाम घोषित था. पुलिस ने बताया कि मारे गए माओवादियों की पहचान राजू दादा उर्फ कट्टा रामचंद्र रेड्डी और कोसा दादा उर्फ कदरी सत्यनारायण रेड्डी के रूप में हुई है. दोनों ही प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति (सीसी) के सदस्य थे. रबीन्द्रनाथ चौधरी की रिपोर्ट है कि छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर स्थित नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ जंगल के मुठभेड़ स्थल से उनके शवों के साथ कई स्वचालित हथियार भी बरामद किए गए हैं, बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक पी. सुंदरराज ने बताया. यह मुठभेड़, जो नारायणपुर (छत्तीसगढ़) और गढ़चिरोली (महाराष्ट्र) जिले की सीमा पर हुई, आख़िरी खबर आने तक जारी थी. के. रामचंद्र रेड्डी (63), जो माओवादी संगठनों में गुडसा उसेंदी, विजय, विकल्प जैसे कई नामों से जाने जाते थे, तेलंगाना के करीमनगर के मूल निवासी थे. कदरी सत्यनारायण रेड्डी (67), जिनके माओवादी नाम गोपन्ना और बुचान्ना थे, भी तेलंगाना के करीमनगर के ही मूल निवासी थे. दोनों मारे गए माओवादी सेंट्रल कमेटी (CC) सदस्य तीन दशकों से अधिक समय तक दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति में सक्रिय रहे और कई हिंसक घटनाओं के मास्टरमाइंड थे, जिनमें 2010 का ताड़मेटला हमला शामिल है, जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवानों की हत्या हुई थी, और 2013 में छत्तीसगढ़ कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला भी शामिल है, जिसमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख नंद कुमार पटेल और उनके नवविवाहित बेटे तथा सलवा जुडूम (नक्सल विरोधी नागरिक संगठन) के संस्थापक, पूर्व मंत्री और वरिष्ठ आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा की हत्या कर दी गई थी.
एनएससीएन (खापलांग) पर प्रतिबंध बढ़ाया
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को आदेश जारी कर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) और उसके सभी धड़ों, संगठनों और मोर्चों पर पांच साल के लिए गैरकानूनी संघ के रूप में प्रतिबंध को बढ़ा दिया है. गृह मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत यह प्रतिबंध 28 सितंबर से प्रभावी रहेगा.
गृह मंत्रालय ने कहा कि एनएससीएन (खापलांग) समूह अन्य गैरकानूनी संगठनों जैसे उल्फा (आई), प्रेपाक और पीएलए से जुड़ा पाया गया है. फिरौती के लिए अपहरण और व्यापारियों, सरकारी अधिकारियों और अन्य नागरिकों से वसूली जैसी गतिविधियों में शामिल रहा है.
मणिपुर में मोदी का दौरा: हासिल क्या निकला
द हिंदू के लिए विजेता सिंह की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में अल्पसंख्यक कुकी-ज़ो और बहुसंख्यक मैतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली मणिपुर यात्रा में, राज्य के लिए 8,500 करोड़ रुपये तक के निवेश की घोषणा की गई. द हिंदू ने पाया कि प्रधानमंत्री ने चुनिंदा विस्थापित लोगों से मुलाकात की, जबकि जिनसे वे नहीं मिले, वे बंटे हुए थे: कुछ ने कहा कि इससे उन्हें संघर्ष के अंत की उम्मीद मिली; कुछ ने कहा कि निवेश का मतलब शांति ज़रूरी नहीं है. यह लंबी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं.
इंफाल के एक 77 वर्षीय व्यवसायी एन. बीरेंद्र सिंह (बदला हुआ नाम) नियमित रूप से अपने बचपन के दोस्त से फोन पर बात करते हैं, जो कुकी-ज़ो समुदाय के एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं और अब चुराचांदपुर में रहते हैं. बीरेंद्र याद करते हैं, "वह चिंतित था. उसकी गर्भवती बेटी को कुछ दिक्कतें हो गई थीं. मेरा दोस्त उसे चिकित्सा के लिए केवल 60 किमी दूर इंफाल नहीं ला सका. उसे पड़ोसी मिज़ोरम के आइजोल ले जाना पड़ा, जो 330 किमी दूर है. इसमें 14 घंटे से अधिक लगे."
दो साल पहले, बीरेंद्र और उनके दोस्त नियमित रूप से मिलते थे. यह सब 3 मई, 2023 को बदल गया, जब राज्य में जातीय हिंसा भड़क उठी. अब, इंफाल घाटी, जहां मैतेई रहते हैं, और पहाड़ी इलाके, जिसमें चुराचांदपुर भी शामिल है, सुरक्षा की कई परतों से अलग हो गए हैं. इस व्यवस्था को 'बफ़र ज़ोन' के रूप में जाना जाता है. हिंसा में लगभग 250 लोग मारे गए हैं और 60,000 से अधिक विस्थापित हुए हैं.
सैमुअल वाइफेई, 20, जो हिंसा भड़कने तक इंफाल में पढ़ते थे, अब चुराचांदपुर के एक राहत शिविर में बच्चों को पढ़ाते हैं. वह उन 40 आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों (आईडीपी) में से थे, जिन्होंने 13 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. सैमुअल ने कहा, "मैंने प्रधानमंत्री को हमारे दर्द और पीड़ा के बारे में बताया. मैंने उनसे कहा कि हम अब मैतेई लोगों के साथ नहीं रहना चाहते."
राज्य में अपने चार घंटे के प्रवास के दौरान, मोदी ने दो सार्वजनिक प्रस्तुतियां दीं: एक इंफाल में और दूसरी चुराचांदपुर में. चुराचांदपुर के पीस ग्राउंड में, उन्होंने मणिपुर के लिए 7,300 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की घोषणा की. इंफाल के कांगला किले में, प्रधानमंत्री ने 1,200 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन किया. पास की एक फार्मेसी में काम करने वाली 22 वर्षीय रानोई लिकमाबम कहती हैं, "बहुत देर हो चुकी है. वह अब क्यों आ रहे हैं?"
यह यात्रा लगभग रद्द हो गई थी. लगातार बारिश के कारण दोनों मैदान दलदल में बदल गए थे. मोदी को मूल रूप से आइजोल से सीधे चुराचांदपुर हेलिकॉप्टर से यात्रा करनी थी. इसके बजाय, वह एक विमान से इंफाल के लिए उड़े और वहां से सड़क मार्ग से चुराचांदपुर गए, जिसका उन्होंने अपने भाषण में उल्लेख भी किया. उनकी मोटरकेड बिष्णुपुर और चुराचांदपुर के बीच एक ऐसे बफ़र ज़ोन से गुज़री. उनका काफिला एक क्षतिग्रस्त पुल के पास से गुज़रा जिसे 2023 में उपद्रवियों ने उड़ा दिया था और संघर्ष के दौरान जलाए गए कई घरों और संपत्तियों के पास से भी.
विपक्ष और राज्य के लोगों ने हिंसा के तुरंत बाद मणिपुर का दौरा न करने के लिए मोदी की आलोचना की है. 2024 के आम चुनाव में, कांग्रेस ने राज्य की दोनों लोकसभा सीटें जीतीं. चुराचांदपुर में यह राजीव गांधी की 1988 की यात्रा के बाद किसी प्रधानमंत्री की दूसरी यात्रा थी. प्रधानमंत्री से मिलने वाले आईडीपी को राज्य प्रशासन द्वारा सावधानीपूर्वक चुना और जांचा गया था. एक सेवानिवृत्त नौसेना के जवान एन. समानंद सिंह ने प्रधानमंत्री को बताया कि जो लोग अपने ही राज्य में शरणार्थी बन गए हैं, उन्हें नौकरी की ज़रूरत है. उन्होंने मांग की कि राष्ट्रीय राजमार्ग-2, जो इंफाल घाटी को नागालैंड के दीमापुर से जोड़ता है, को मैतेई लोगों के लिए खोला जाए. हालांकि, ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि यह मार्ग अभी भी मैतेई यात्रियों के लिए पूरी तरह से सुलभ नहीं है.
आर्थिक गतिविधियों के प्रभावित होने के साथ-साथ, पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में भी बहुत कम प्रगति हुई है. जून 2023 में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराने के मामले में मुक़दमा अभी शुरू नहीं हुआ है. उन दो बलात्कार पीड़िताओं में से कोई भी उन आईडीपी में शामिल नहीं थी, जिन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की. इंफाल में वापस, बीरेंद्र, जिनका डेयरी का कारोबार हिंसा के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ था, दार्शनिक रूप से कहते हैं, "झगड़ा करने का क्या फायदा? हम सब यहाँ बस अस्थायी रूप से हैं."
लद्दाख के प्रदर्शनकारी नेता: लोग अधीर हो रहे हैं, मामला हाथ से निकल सकता है
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे नागरिक समाज के नेताओं ने सोमवार (22 सितंबर, 2025) को कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय का 6 अक्टूबर को बातचीत के लिए बुलाने का निर्णय "एकतरफ़ा" है. उन्होंने कहा कि मंत्रालय को यह बैठक जल्द बुलानी चाहिए थी क्योंकि लेह में निवासियों द्वारा की जा रही भूख हड़ताल 13वें दिन में प्रवेश कर चुकी है.
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और अन्य निवासी लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और केंद्र शासित प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांगों के बीच लेह में 35 दिनों की भूख हड़ताल पर बैठे हैं. लेह से एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन (एलबीए) के अध्यक्ष और लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के सह-संयोजक चेरिंग दोरजे लकरुक ने कहा: "लोग अब अधीर हो रहे हैं और मामला हमारे हाथ से निकल सकता है. अब तक, भूख हड़ताल और हमारे विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे हैं. पिछला अनुभव बताता है कि अगर हम दबाव नहीं डालते हैं तो वे (सरकार) हमें हल्के में लेने लगते हैं. मंत्रालय द्वारा बुलाई गई बातचीत बहुत देर से हो रही है, यह जल्द से जल्द होनी चाहिए."
सोनम वांगचुक ने कहा कि मांगों के समाधान में देरी आगामी पहाड़ी परिषद चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की संभावनाओं को प्रभावित करेगी. उन्होंने कहा, "वे (सरकार) चुनाव स्थगित करने या भंग करने तक जा सकते हैं, लेकिन यह बेईमानी के समान होगा. उन्हें (भाजपा को) 2020 के पहाड़ी परिषद चुनावों के दौरान किए गए वादे (लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा देने पर) का सम्मान करना चाहिए."
द हिंदू द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने अतीत में कभी बातचीत के दौरान लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची का दर्जा देने का आश्वासन दिया था, लकरुक ने कहा, "जब केंद्रीय गृह सचिव लेह आए थे, तो उन्होंने कहा था कि बातचीत का अगला दौर इन दो विषयों पर केंद्रित होगा." वांगचुक ने कहा कि 12,000 फीट की ऊंचाई पर उपवास करना आसान नहीं है और निर्जलीकरण की चुनौतियों के बावजूद, "तिब्बत की सीमा से लगे" दूरदराज के गांवों से आए स्थानीय लोग आंदोलन जारी रखने के लिए दृढ़ हैं.
2023 में गठित, उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी), जिसका नेतृत्व राज्य मंत्री नित्यानंद राय कर रहे हैं, इस क्षेत्र के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग पर एलएबी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के साथ बातचीत कर रही है, जो 2019 में एक केंद्र शासित प्रदेश बना था.
सुप्रीम कोर्ट का उमर खालिद, शरजील और अन्य की याचिकाओं पर दिल्ली पुलिस को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 दिल्ली दंगों से जुड़ी बड़ी साजिश के केस में उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शिफा-उर-रहमान की जमानत याचिकाओं पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है. इन सभी ने सितंबर 2025 के दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें इन्हें जमानत देने से इनकार किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को तय की है. “द हिंदू” के अनुसार, दिल्ली पुलिस से 7 अक्टूबर तक जमानत के सवाल पर अपनी दलीलें स्पष्ट करने के लिए कहा गया है. याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने शीघ्र सुनवाई की मांग करते हुए यह तर्क दिया कि आरोपी पांच साल से अधिक समय से मुकदमे से पहले ही जेल में बंद हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि उन्हें सुना जाएगा.
स्वामीनाथन: फर्जी दंगों के मामलों में पुलिस को दंडित क्यों नहीं किया जाता?
पूर्वी दिल्ली में दंगों के पांच साल बाद भी न्याय नहीं मिला है; इसे राजनीतिक रूप से हथियार बना दिया गया है. एक तरफ दर्जनों कार्यकर्ता बिना सुनवाई के वर्षों से जेल में पड़े हैं और यूएपीए सरीखे कठोर कानूनों के तहत जमानत से वंचित कर दिए गए हैं. दूसरी तरफ, अदालतें बार-बार पुलिस को 'झूठे गवाहों' और 'फर्जी सबूतों' के लिए फटकार लगाती हैं.
मीडिया जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि पुलिस ने ऐसी जगह अपराध बनाए, जहां कोई अपराध था ही नहीं, यानी उन्होंने खुद ही अपराध किए. फिर भी अदालतें पुलिस के झूठ और न्याय को भटकाने के अपराध पर कठोर क्यों नहीं होतीं? क्यों केवल दोषी ठहराए गए लोगों के लिए कठोर कानून लागू होते हैं, जबकि जिन्होंने मुकदमा भी नहीं देखा उनके लिए छूट दी जाती है, वहीं पुलिस के लिए नरमी? अगर पुलिस को पता हो कि अदालतें उन्हें झूठ और फर्जीवाड़े के लिए दंडित नहीं करेंगी, तो वे राजनीतिक दबाव के आगे कभी नहीं झुकेंगे.
अदालतों ने दिल्ली दंगों की जांचों में पुलिस को बार-बार कटघरे में खड़ा किया है. 116 दंगा मामलों में से 80% मामलों में बरी या दोषमुक्ति मिली है. कम से कम 17 मामलों में, न्यायाधीशों की भाषा बेहद कटु रही है. इतनी सारी झूठी और खोखली कार्रवाई केवल पुलिस की अक्षमता नहीं है.
क्या असली निशाना 'दंगाई' थे या नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध करने वाले? शाहीन बाग का आंदोलन न मुस्लिम नेताओं द्वारा चलाया गया और न ही राजनेताओं द्वारा — बल्कि मुस्लिम गृहिणियों द्वारा, जिन्हें पास के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों का समर्थन मिला. कानून की प्रक्रिया से इस आंदोलन की विरासत मिटाने के लिए राज्य ने इसे 'राष्ट्र-विरोधी षड्यंत्र' बता दिया.
दंगा आरोपियों — छात्र नेताओं और महिला प्रदर्शनकारियों — को पांच साल तक बिना जमानत जेल में रखा गया, लेकिन नेताओं को कोई सजा नहीं हुई, जिन्होंने खुलेआम नफरत फैलाई. अदालतें अभियुक्तों के खिलाफ 'गंभीर आरोप' मानती रहीं, लेकिन पुलिस द्वारा पेश फर्जी सबूतों की अनदेखी करती रहीं. सुप्रीम कोर्ट बार-बार कहती है 'जमानत नियम है, जेल अपवाद', लेकिन यूएपीए मामलों में लागू नहीं करती.
आगे की राह क्या है? पहली बात, अदालतें अपनी रीढ़ सीधी करें — कानून की गलतियों और दोहरे मानदंडों का विरोध करें. पुलिस की गड़बड़ी को दंडित करें, न कि नज़रअंदाज या माफ किया जाए. यूएपीए जैसे कठोर कानूनों पर भी न्यायालय की समीक्षा जरूरी है. जब तक न्यायपालिका राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करती, लोकतंत्र बच नहीं सकता. क्या यह निराशाजनक रास्ता है? शायद, लेकिन सच्चा लोकतंत्र बनने के लिए भारत को यही दिशा अपनानी होगी. “टाइम्स ऑफ इंडिया” में स्वामीनाथन अंकलेसरिया अय्यर का यह पूरा लेख यहां पढ़ा जा सकता है.
आधा दर्जन से ज्यादा कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही है सरकार
भारत सरकार लगभग आधा दर्जन सरकारी कंपनियों में अपनी अल्पांश हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है, यह जानकारी विनिवेश सचिव अरुणीश चावला ने सोमवार को एक टेलीविज़न चैनल को दी.
चावला ने यह नहीं बताया कि किन कंपनियों के शेयर हिस्सेदारी बिक्री के लिए विचाराधीन होंगे. हालांकि, रॉयटर्स ने पहले रिपोर्ट किया था कि भारत की योजना सार्वजनिक क्षेत्र के पांच बैंकों में हिस्सेदारी बेचने की है, जिनमें यूको बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र शामिल हैं. इसके अलावा, सरकार को देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) में अपनी हिस्सेदारी कम करनी है, ताकि बाजार नियामक के न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता नियमों का पालन किया जा सके.
चावला ने बताया कि चालू वित्तीय वर्ष में प्राकृतिक संसाधन क्षेत्र की एक सरकारी कंपनी का प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आईपीओ) भी जारी किया जाएगा. यह आईपीओ या तो किसी सरकारी कंपनी या उसकी सहायक कंपनी का हो सकता है. हालांकि, उन्होंने नाम का खुलासा नहीं किया, लेकिन माना जा रहा है कि यह ओएनजीसी और एनएचपीसी की ग्रीन एनर्जी वाली कंपनी हो सकती है. इन दोनों कंपनियों ने अपनी ग्रीन एनर्जी यूनिट्स को शेयर बाजार में लाने की योजना बनाई है.
सरकार की योजना है कि बीमा, रक्षा और अंतरिक्ष जैसे महत्वपूर्ण सेक्टरों में भी अल्पांश हिस्सेदारी बेची जाए. चावला ने कहा कि इन क्षेत्रों में भी शेयर बाजार के नियमों के अनुसार हिस्सेदारी की बिक्री की जाएगी. इसका मकसद निवेशकों को नए अवसर देना और इन सेक्टरों में निजी निवेश बढ़ाना है.
सुप्रीम कोर्ट जज ने कहा, मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का समय आ गया है
नई दिल्ली से द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के जज एम.एम. सुंदरेश ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का सही समय है. यह टिप्पणी आपराधिक मानहानि क़ानून के बढ़ते इस्तेमाल पर शीर्ष अदालत की चिंता को दर्शाती है. साथ ही, यह इस सवाल को फिर से खोलती है कि 'क्या किसी निजी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि को 'अपराध' माना जा सकता है, क्योंकि यह किसी भी सार्वजनिक हित की पूर्ति नहीं करता है.' यह बयान मानहानि क़ानून की संवैधानिकता और इसके दुरुपयोग पर चल रही बहस को एक नई दिशा दे सकता है, विशेष रूप से पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आलोचकों के ख़िलाफ़ इसके इस्तेमाल को लेकर.
दिल्ली पुलिस की अफ़्रीकी शरणार्थियों पर कार्रवाई; 'वीज़ा अवधि से ज़्यादा रहने' पर कम से कम 30 गिरफ़्तार
द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में राजधानी दिल्ली में पुलिस ने सिलसिलेवार छापों के दौरान लगभग 30 अफ़्रीकी शरणार्थियों को गिरफ़्तार कर लम्पुर डिटेंशन सेंटर भेज दिया है. इस कार्रवाई से दिल्ली में रहने वाले अन्य अफ़्रीकी शरणार्थियों में डर का माहौल है और उनमें से कुछ पुलिस की गिरफ़्तारी से बचने के लिए छिप गए हैं. हिरासत में लिए गए लोगों में से ज़्यादातर सूडान और सोमालिया के हैं. शरणार्थियों ने द वायर को बताया कि पुलिस ने उन्हें हौज़ रानी और मालवीय नगर जैसे रिहायशी इलाक़ों में उनके घरों से सीधे गिरफ़्तार किया. गिरफ़्तारी का आधिकारिक कारण वीज़ा अवधि समाप्त होने के बाद भी देश में रहना बताया गया है, लेकिन कई शरणार्थियों ने आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई नस्लीय भेदभाव से प्रेरित है.
उत्तर प्रदेश 2027 का चुनाव जाति और रणनीति पर आधारित होगा
द वायर के लिए सैयद कामरान ने अपनी रिपोर्ट में विश्लेषण किया है कि उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची में धोखाधड़ी को लेकर हुए विवाद और उसके परिणामस्वरूप हुए जातीय ध्रुवीकरण ने एक उच्च-दांव वाले चुनावी मुकाबले की ज़मीन तैयार कर दी है. 18 अगस्त, 2025 को विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने कथित चुनावी सूची में हेरफेर के विरोध में 1,300 किलोमीटर की 'वोटर अधिकार यात्रा' शुरू की. राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया, जिसे समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने "वोट डकैती" कहा. इन आरोपों ने जाति-आधारित राजनीतिक लामबंदी को भी हवा दी है, क्योंकि पार्टियां 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले प्रमुख मतदाता समूहों को लुभाने के प्रयास तेज़ कर रही हैं.
उत्तर प्रदेश में, जातिगत समीकरण राजनीतिक रणनीति का एक जटिल ताना-बाना बुनते हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में, समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने 43 सीटें जीतकर शानदार वापसी की. सपा की पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति गैर-यादव ओबीसी, जाटवों और मुसलमानों पर लक्षित है, जबकि बीजेपी अगड़ी जातियों और गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं के बीच अपना समर्थन मज़बूत कर रही है.
जातिगत विश्लेषण के अनुसार, ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य बीजेपी के मज़बूत गढ़ बने हुए हैं. यादव सपा का मुख्य आधार हैं, जिन्होंने 2024 में 82% समर्थन दिया. गैर-यादव ओबीसी, जैसे कुर्मी, कुशवाहा, लोध और राजभर, एक महत्वपूर्ण स्विंग वोट हैं. 2024 में आरक्षण और संविधान संबंधी चिंताओं के कारण इस समूह का एक बड़ा हिस्सा सपा की ओर झुका. जाटव, जो पारंपरिक रूप से बसपा का वोट बैंक थे, अब बसपा के कमज़ोर होने के कारण सपा की ओर स्थानांतरित हो रहे हैं. वहीं, गैर-जाटव दलित विभाजित हैं, लेकिन उनका झुकाव भी सपा की ओर थोड़ा ज़्यादा है. मुसलमान सपा और इंडिया गठबंधन के लिए एकजुट हैं, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बीजेपी का आधार बने हुए हैं. बसपा का वोट शेयर लगातार घट रहा है, जिसका सीधा फ़ायदा सपा को मिल रहा है. 2027 का चुनाव बेहद क़रीबी और द्विध्रुवीय होने की संभावना है, जिसमें ग्रामीण इलाक़ों में आरक्षण और नौकरियों जैसे मुद्दे हावी रहेंगे, जबकि शहरी क्षेत्रों में पार्टी की वफ़ादारी अहम होगी.
यूपी पुलिस रिकॉर्ड में जाति कॉलम और जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों के ख़िलाफ़ शासनादेश जारी
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पुलिस रिकॉर्ड में अभियुक्त की जाति का उल्लेख करने पर रोक लगाने और जाति के महिमामंडन पर अंकुश लगाने के निर्देश के कुछ दिनों बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने एक शासनादेश (जीओ) जारी किया है. इस जीओ के तहत एफ़आईआर और अन्य संबंधित पुलिस रिकॉर्ड के प्रारूप में बदलाव की घोषणा की गई है. अब वाहनों, बोर्डों या स्टिकरों पर जाति के नामों का उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिनका इस्तेमाल किसी विशेष जाति की बहुलता वाले इलाक़ों को चिह्नित करने के लिए किया जाता है.
पुलिस और ज़िला प्रशासन को सोशल मीडिया पर भी कड़ी नज़र रखने और किसी विशेष जाति की प्रशंसा करने या सार्वजनिक कलह पैदा करने के लिए जाति का उपयोग करने के प्रयासों पर नकेल कसने के लिए कहा गया है. ये आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हो गए हैं. इसके अलावा, राज्य सरकार ने जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, यह कहते हुए कि वे 'सार्वजनिक व्यवस्था' और 'राष्ट्रीय एकता' के लिए ख़तरा हैं. इस क़दम के दूरगामी राजनीतिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि 2027 में यूपी राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं.
रविवार देर शाम जारी किए गए 10-सूत्रीय शासनादेश में वाहनों पर जाति के नाम, नारे और स्टिकर लगाने पर केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की संबंधित धाराओं के तहत चालान जारी करने के निर्देश शामिल हैं. हालांकि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज आपराधिक अपराधों से संबंधित एफ़आईआर को इस शासनादेश के दायरे से बाहर रखा गया है. दिलचस्प बात यह है कि इस आदेश का असर कुर्मी, निषाद और राजभर समुदाय के नेतृत्व वाली अपना दल (एस), निषाद पार्टी या सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसी जाति आधारित पार्टियों की राजनीतिक सभाओं पर पड़ेगा. शासनादेश में यह भी कहा गया है कि पुलिस रिकॉर्ड में किसी भी व्यक्ति की जाति की जानकारी नहीं होनी चाहिए और अभियुक्त के पिता के नाम के साथ-साथ मां का नाम भी दर्ज करने की व्यवस्था की जाए.
मतदाता सूची संशोधन और प्रवासियों पर कार्रवाई के बीच पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती निवासी काग़ज़ात के लिए परेशान
आर्टिकल-14 के लिए स्निग्धेन्दु भट्टाचार्य की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती ज़िलों के निवासी अपने दस्तावेज़ों को दुरुस्त कराने के लिए सरकारी दफ़्तरों के चक्कर लगा रहे हैं. यह हड़बड़ी 28 अगस्त, 2025 को चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा बिना किसी घोषणा के पश्चिम बंगाल की 2002 की मतदाता सूची को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के बाद शुरू हुई, जिससे यह संकेत मिला कि राज्य में 23 साल बाद मतदाता सूची का संशोधन किया जाएगा. इस क़दम से लोगों में डर पैदा हो गया है, खासकर मुसलमानों में, क्योंकि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बार-बार सूची से "घुसपैठियों" को हटाने की बात कह चुके हैं.
लोगों को डर है कि मतदाता सूची का यह संशोधन असम की तरह एक नागरिकता परीक्षण में बदल सकता है, जहां राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से 19 लाख लोग बाहर हो गए थे. इसी डर के कारण, हज़ारों लोग पुराने दस्तावेज़ खोजने और नए काग़ज़ात बनवाने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं. मुर्शिदाबाद ज़िले के 28 वर्षीय मोहम्मद सफ़ीउल्लाह अंसारी को अपने दस्तावेज़ों में कई ग़लतियों को ठीक करवाना है: उनके वोटर आईडी पर उपनाम "Ansary" है जबकि आधार पर "Ansari" है. उन्हें अपने मृत पिता के वोटर आईडी की ज़रूरत पड़ी, जिसे खोजना मुश्किल था.
उत्तर दिनाजपुर, कूचबिहार, मुर्शिदाबाद, मालदा जैसे सीमावर्ती ज़िलों के पंचायत कार्यालयों, अस्पतालों और अदालतों में दस्तावेज़ों के लिए भारी भीड़ है. दस्तावेज़ों में नाम, वर्तनी या पते में मामूली अंतर को ठीक करने के लिए लोगों को हलफ़नामे बनवाने पड़ रहे हैं. इस प्रक्रिया में आधार, वोटर आईडी, स्कूल या ज़मीन के प्रमाण पत्र और माता-पिता के आईडी जैसे कई दस्तावेज़ों की ज़रूरत पड़ती है, जिसमें समय और पैसा दोनों ख़र्च हो रहा है. यह स्थिति उन प्रवासी मज़दूरों के लिए और भी मुश्किल है, जिन्हें बीजेपी शासित राज्यों में "अवैध प्रवासी" बताकर परेशान किया जा रहा है और मामूली दस्तावेज़ी गड़बड़ियों के कारण उनकी नागरिकता पर सवाल उठाया जा रहा है. लोगों की मांग है कि राज्य सरकार गांवों में शिविर लगाकर दस्तावेज़ सुधारने और बनवाने में मदद करे ताकि उन्हें उत्पीड़न से बचाया जा सके.
शिक्षकों की संख्या 1 करोड़ पार
इंडियास्पेंड के लिए विजय जाधव ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 2024-25 में भारत का शिक्षक कार्यबल 1 करोड़ को पार कर गया. नवीनतम सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, सरकारी स्कूल अभी भी सबसे ज़्यादा शिक्षकों को रोज़गार देते हैं, जबकि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूल भी अपनी शिक्षक संख्या बढ़ा रहे हैं. कुल मिलाकर, 54% शिक्षक महिला हैं और 46% पुरुष हैं, लेकिन स्कूली शिक्षा के उच्च स्तर पर पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है. आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि गैर-शिक्षण कर्मचारियों की संख्या 22% घटकर 2024-25 में 7,20,000 हो गई, जिसका अर्थ है कि हर 14 शिक्षकों पर केवल एक गैर-शिक्षण कर्मचारी था.
कुछ प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
शिक्षकों की संख्या में वृद्धि: भारत का शिक्षक कार्यबल 2022-23 में 94.8 लाख से बढ़कर 2024-25 में 1.012 करोड़ हो गया.
निजी स्कूलों में तेज़ वृद्धि: पिछले चार वर्षों में, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या में 4.5% की वृद्धि हुई, जबकि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में 8.6% की वृद्धि हुई.
छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार: भारत में प्रति शिक्षक छात्रों की संख्या 2022-23 में 27 से सुधरकर 2024-25 में 24 हो गई. हालांकि, झारखंड (47), महाराष्ट्र (37) और ओडिशा (37) जैसे राज्यों में उच्च माध्यमिक स्तर पर यह अनुपात अभी भी बहुत ज़्यादा है.
लिंगानुपात: प्री-प्राइमरी स्तर पर 96% शिक्षक महिलाएं थीं, लेकिन माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर 57% शिक्षक पुरुष थे.
शैक्षणिक योग्यता: लगभग 87% शिक्षकों के पास कम से कम स्नातक की डिग्री थी. स्नातक शिक्षकों की संख्या बढ़ी है, लेकिन पेशेवर प्रशिक्षण वाले शिक्षकों की संख्या में गिरावट आई है.
सहायक कर्मचारियों की कमी: 2024-25 में, हर 14 शिक्षकों के लिए केवल एक सहायक कर्मचारी था, जो 2022-23 के 10 शिक्षकों पर एक के अनुपात से भी खराब है.
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि जहाँ शिक्षकों की संख्या और योग्यता में सुधार हो रहा है, वहीं सहायक कर्मचारियों की कमी और कुछ राज्यों में खराब छात्र-शिक्षक अनुपात जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं.
एयर इंडिया दुर्घटना की स्वतंत्र जांच की याचिका पर भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकार से उस याचिका पर जवाब देने को कहा है जिसमें 12 जून को हुए एयर इंडिया विमान दुर्घटना की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है. इस दुर्घटना में 260 लोग मारे गए थे. शीर्ष अदालत एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) 'सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन' द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. यह पहली बार है जब अदालत भारतीय अधिकारियों द्वारा की जा रही जांच का परीक्षण कर रही है.
सोमवार को हुई सुनवाई में, एनजीओ के वकीलों ने जांच पैनल में विमानन सुरक्षा नियामक के अधिकारियों को शामिल करने पर सवाल उठाया, यह कहते हुए कि इससे "हितों का टकराव" पैदा होता है. एनजीओ की याचिका में कहा गया, "जांच में अनिवार्य रूप से डीजीसीए (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) की अपनी नियामक कार्रवाइयों और संभावित चूकों की आलोचनात्मक जांच शामिल है."
अहमदाबाद हवाई अड्डे से उड़ान भरने के तुरंत बाद थ्रस्ट खोने के कारण एयर इंडिया का बोइंग 787 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें विमान में सवार 242 लोगों में से एक को छोड़कर सभी और ज़मीन पर मौजूद 19 अन्य लोगों की मौत हो गई थी. भारत सरकार द्वारा पहले जारी की गई एक प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में दुर्घटना से ठीक पहले कॉकपिट में पायलटों के बीच भ्रम की स्थिति को दर्शाया गया था, जब विमान के ईंधन इंजन स्विच उड़ान भरने के तुरंत बाद लगभग एक साथ 'रन' से 'कटऑफ' पर चले गए थे. रिपोर्ट में बोइंग और इंजन निर्माता जीई एयरोस्पेस को दोषमुक्त किया गया था, लेकिन कुछ पीड़ित परिवारों ने जांचकर्ताओं की आलोचना की है.
एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण ने जजों को बताया, "तीन सदस्य नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (उड़ान सुरक्षा नियामक) के सेवारत अधिकारी हैं, जो हितों का एक बहुत गंभीर टकराव पैदा करता है." अदालत ने कहा है कि वह "निष्पक्ष, impartial, और स्वतंत्र, और त्वरित" जांच की मांग की समीक्षा करेगी और उसने सरकार से जवाब देने को कहा है.
अडानी के ख़िलाफ़ रिपोर्टिंग पर रोक के मामले में अपीलें उसी जज को ट्रांसफर हुईं जिन्होंने पहले रोक हटाई थी
दिल्ली की रोहिणी कोर्ट के जिला न्यायाधीश सुनील चौधरी ने पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता और डिजिटल समाचार प्लेटफ़ॉर्म न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा दायर की गई अपीलों को उसी जज को स्थानांतरित कर दिया है, जिन्होंने पहले अडानी समूह के ख़िलाफ़ रिपोर्टिंग को रोकने वाले एकतरफ़ा आदेश (ex-parte gag order) को चार अन्य पत्रकारों के मामले में रद्द कर दिया था. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, इसके परिणामस्वरूप, अपीलें अब पहले जिला और सत्र न्यायाधीशों के सामने सूचीबद्ध होंगी और उसके बाद उन्हें जज आशीष अग्रवाल के समक्ष पेश किया जाएगा.
जज अग्रवाल ने पहले पत्रकार रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयस्कान्त दास और आयुष जोशी को अडानी एंटरप्राइज लिमिटेड (AEL) को 'बदनाम' करने वाली कहानियों को प्रकाशित करने से रोकने वाले एकतरफ़ा आदेश पर रोक लगा दी थी. उसी दिन, जज चौधरी ने गुहा ठाकुरता की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. हालांकि, जज अग्रवाल ने एक अलग मामले में चार अन्य पत्रकारों के संबंध में उसी आदेश को रद्द कर दिया था. अब गुहा ठाकुरता और न्यूज़लॉन्ड्री की अपीलों पर भी वही जज सुनवाई करेंगे, जिससे इस मामले में एकरूपता आने की उम्मीद है.
बीसीसीआई अध्यक्ष पद के लिए मिथुन मन्हास का चयन: फ़ैसला पिच पर नहीं, अमित शाह के लाउंज में हुआ
दिल्ली के पूर्व कप्तान मिथुन मन्हास ने रविवार को मुंबई में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के मुख्यालय में अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाख़िल किया. 1997-98 से 2016-17 तक लंबे घरेलू करियर के दौरान 157 प्रथम श्रेणी, 130 लिस्ट ए और 91 टी20 मैच खेलने वाले मन्हास, पिछले महीने रोजर बिन्नी के जाने से ख़ाली हुए इस पद को संभालने के लिए सबसे आगे चल रहे हैं. क्रिकबज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह फ़ैसला "शनिवार रात एक केंद्रीय मंत्री के आवास पर एक उच्च-स्तरीय बैठक के बाद" हुआ, जिसमें कई उम्मीदवारों को दिल्ली आने और फ़ोन का इंतज़ार करने के लिए कहा गया था. रिपोर्ट में बताया गया है कि वह केंद्रीय मंत्री आईसीसी अध्यक्ष जय शाह के पिता अमित शाह हैं. रिपोर्ट के दूसरे संस्करण के अनुसार, "मन्हास की नियुक्ति पर कोई ख़ास बहस नहीं हुई - यह सिर्फ़ एक निर्णय था."
पाकिस्तान के तालिबानी अड्डे में विस्फोट, 14 आतंकी समेत 24 की मौत
पाकिस्तान के अशांत उत्तर-पश्चिम प्रांत में सोमवार को पाकिस्तानी तालिबान के लड़ाकों द्वारा एक परिसर में कथित तौर पर जमा की गई बम बनाने की सामग्री में विस्फोट हो गया, जिसमें आतंकवादियों और आम नागरिकों सहित कम से कम 24 लोगों की मौत हो गई. पुलिस के अनुसार, यह विस्फोट खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की तिराह घाटी में हुआ और इससे आसपास के कई घर भी नष्ट हो गए. स्थानीय पुलिस अधिकारी ज़फ़र ख़ान ने बताया कि मरने वालों में कम से कम 10 आम नागरिक शामिल हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी हैं, जबकि 14 आतंकवादी भी मारे गए. यह इलाका लंबे समय से आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र रहा है और इस घटना ने एक बार फिर क्षेत्र में मौजूद ख़तरों को उजागर कर दिया है.
न्यूयॉर्क के अरबपति मेयर उम्मीदवार ज़ोहरान ममदानी के ख़िलाफ़ क्यों रच रहे हैं साज़िश?
द गार्डियन के लिए एडम गैबैट की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ोहरान ममदानी को न्यूयॉर्क शहर के अगले मेयर बनने के अपने अभियान के दौरान बहुत कुछ पार करना पड़ा है. उनकी उम्र, अनुभव की कमी और उनका घोषित लोकतांत्रिक समाजवाद उन्हें पीछे खींच सकता था. फिर भी, 33 वर्षीय ज़ोहरान, जो 12 महीने पहले एक अनजान चेहरा थे, सभी चुनौतियों को पार करते हुए नवंबर में चुनाव जीतने के लिए पसंदीदा उम्मीदवार बन गए. हालांकि, ममदानी पर एक चीज़ अब भी मंडरा रही है: न्यूयॉर्क शहर का अरबपति वर्ग और उससे जुड़ी रियल एस्टेट लॉबी.
ममदानी ने न्यूयॉर्क के सबसे अमीर 1% लोगों पर किराया फ्रीज़ करने और टैक्स थोड़ा बढ़ाने का वादा करके पारंपरिक बड़े धन वाले डेमोक्रेटिक दानदाताओं और शक्तिशाली रियल-एस्टेट दिग्गजों को डरा दिया है. इन वादों ने अभिजात वर्ग को डेमोक्रेटिक प्राइमरी के दौरान लाखों डॉलर खर्च करने के लिए प्रेरित किया, जो काम नहीं आया. ममदानी ने न्यूयॉर्क के पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को आसानी से हरा दिया, लेकिन अमीर लोगों ने अभी हार नहीं मानी है. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, न्यूयॉर्क के कुछ सबसे अमीर ज़मींदार और व्यवसायी इस महीने कुओमो के साथ सिटी हॉल तक उनका "रास्ता बनाने की साज़िश" रचने के लिए इकट्ठा हुए. शहर के सबसे बड़े डेवलपर ने चेतावनी दी कि उन्हें ममदानी को रोकने के लिए एकजुट होना होगा.
साज़िशकर्ताओं में कम से-कम दो अरबपति और न्यूयॉर्क के सबसे बड़े भवन निर्माताओं में से एक शामिल थे. उस बैठक के कुछ दिनों बाद, बिल एकमैन, जो एक हेज फंड मैनेजर हैं और जिनकी कुल संपत्ति लगभग 10 बिलियन डॉलर है, ने भी इस मामले में अपनी राय दी. एकमैन, जिन्होंने डेमोक्रेट्स को दान दिया है, लेकिन 2024 में डोनाल्ड ट्रम्प का समर्थन किया था, ने मौजूदा मेयर एरिक एडम्स से दौड़ से हटने का आह्वान किया ताकि पूर्व गवर्नर के लिए रास्ता साफ़ हो सके. पहले, एकमैन ने दावा किया था कि ममदानी का 1 मिलियन डॉलर से अधिक कमाने वाले न्यूयॉर्क वासियों पर अतिरिक्त 2% टैक्स लगाने का प्रस्ताव अमीर लोगों को शहर से भगा देगा. उन्होंने ममदानी को रोकने के लिए भारी मात्रा में निवेश करने का वादा किया, जिन्हें डेमोक्रेटिक प्राइमरी में 570,000 से अधिक लोगों ने वोट दिया था.
प्राइमरी के दौरान कुओमो ने बड़ा पैसा आकर्षित किया. इन दीज़ टाइम्स के एक विश्लेषण में पाया गया कि रियल एस्टेट दानदाताओं ने कुओमो को निर्वाचित कराने की कोशिश में 6 मिलियन डॉलर खर्च किए. अरबपति पूर्व मेयर माइकल ब्लूमबर्ग ने गर्मियों में कुओमो का समर्थन करने के लिए 8.3 मिलियन डॉलर खर्च किए. न्यूयॉर्क स्टेट टेनेंट ब्लॉक की प्रबंध निदेशक सुमति कुमार ने कहा, "प्राइमरी के बाद से वे घबराए हुए हैं और यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे ममदानी को कैसे हरा सकते हैं."
यह स्पष्ट है कि ममदानी कुओमो पर एक बड़ी बढ़त बनाए हुए हैं. इस सप्ताह, एक मैरिस्ट पोल में उन्हें 45% वोट मिले; कुओमो को 24%, रिपब्लिकन कर्टिस स्लिवा को 17% और एडम्स को सिर्फ़ 9% वोट मिले. जब न्यूयॉर्क वासियों से केवल ममदानी और कुओमो के बीच एक काल्पनिक मुकाबले में वोट देने के बारे में पूछा गया, तो 49% ने ममदानी को चुना, जबकि 39% ने उनके प्रतिद्वंद्वी को, जो यह बताता है कि अरबपति वर्ग के प्रयास व्यर्थ हो सकते हैं. न्यूयॉर्क वर्किंग फैमिलीज़ पार्टी की सह-राज्य निदेशक एना मारिया अर्किला ने कहा, "ज़ोहरान ने एक व्यापक रूप से साझा की गई भावना को पकड़ा है कि कुछ बदलना है, और अभी बदलना है. वह ठोस समाधान प्रस्तावित कर रहे हैं और यही कारण है कि इतने सारे लोग उत्साहपूर्वक उनके अभियान का समर्थन कर रहे हैं."
पाठकों से अपील :
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