24 नवंबर 2024 : समझिए महाराष्ट्र, झारखंड के नतीजे, अडानी और 'ब्रांड इंडिया', जगुआर के 'न्यू लोगो' का हाल, गाय का चारा और क्लाइमेट चेंज, पेंगुइन की यात्रा और बोस्की के लिए गुलजार के शब्द
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
4 जून से पहले की हालत में पहुंचा 'इंडिया ब्लॉक'!
महाराष्ट्र के नतीजों ने सबको हैरान किया है. किसी को अंदाजा नहीं था कि ऐसा नतीजा आएगा. एग्जिट पोल्स का झुनझुना भी महायुति को बढ़त अवश्य बता रहा था, लेकिन इतनी नहीं कि उसके अनुमान भी धराशायी हो जाएंगे.
हैरानी तो झारखंड के परिणामों पर भी हुई है, जहां जेएमएम का जलवा बरकरार है. एग्जिट पोल्स की भविष्यवाणी सोरेन को घर बैठा रही थी, पर वह ठाठ के साथ मौजूद हैं. इन नतीजों ने कुछ सवाल पैदा किए हैं ; मसलन, भाजपा ने ऐसा क्या किया कि महाराष्ट्र में इंडिया ब्लॉक के अस्तित्व पर बन आई है और वह 4 जून के पहले की हालत में पहुंच गया सा लग रहा है. प्रश्न यह भी कि भाजपा और कांग्रेस ने क्रमशः लोकसभा व हरियाणा चुनावों के बाद क्या कोई सबक सीखा? सीखा तो क्या? जानिए इन बिंदुओं के जरिए :
हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में मिली बड़ी जीत बतलाती है कि भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया. लोकसभा चुनावों में जेपी नड्डा के इस बयान के बाद कि “हमें आरएसएस की जरूरत नहीं है”, भाजपा और संघ के रिश्तों मे तनाव पैदा हो गया था. लेकिन कई दौर की बातचीत के बाद दोनों के बीच समन्वय महाराष्ट्र चुनाव के परिणामों का महत्वपूर्ण पहलू है. “द हिंदू” ने भी लिखा है कि बिना किसी शोर शराबे के चुपचाप काम करना संघ का “हालमार्क” बन गया है. महाराष्ट्र में उसके हजारों स्वयंसेवकों ने हालमार्क पद्धति अपनाई.
महिलाओं के लिए चलाई गईं “लाड़की बहन” जैसी योजनाओं ने पार्टी के लिए नतीजे लाने का काम किया. इसके विपरीत कांग्रेस लोकसभा चुनावों में मिली कामयाबी को बरकरार रखने के लिए कुछ भी ऑफर करने में सफल नहीं हो सकी.
कांग्रेस लोकसभा चुनाव वाली पिच पर ही खेली. मतलब, संविधान और जाति जनगणना. महाराष्ट्र में वह तबाह हो गई. उसको तगड़ा झटका लगा है. राहुल गांधी के मुद्दे सवालों के घेरे में हैं. पांच माह पहले 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो इंडिया ब्लॉक को लगा था कि एक दशक बाद विपक्ष का पुनरुत्थान हो रहा है और भाजपा का ग्राफ गिरने की शुरुआत हो गई है.
अब तक पार्टी का प्रचार अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी लोकप्रियता के इर्द गिर्द ही घूमता था, लेकिन बजाए इसके, इस बार स्थानीय नेतृत्व और मुद्दों पर फोकस किया गया. सीधे महिलाओं के खाते में पैसा डालना और बढ़ाकर दोगुना करना भी इसी रणनीति का हिस्सा था.
मोदी की 90 सीटों वाले हरियाणा में 4 रैलियां हुईं. जबकि झारखंड (81 सीटें) में 6 और महाराष्ट्र (288) में दर्जन भर. इससे समझ सकते हैं कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव का झटका खाने के बाद सिर्फ मोदी के भरोसे रहने की अपनी आदत में सुधार कर लिया है और संघ से बेरुखी को तिलांजलि दे दी है.
संघ ने लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद अपने तरीके से जमीनी स्तर पर काम प्रारंभ कर दिया था. विधानसभा चुनाव में तो संघ ने कमान अपने हाथ में ले ली थी. “भाजपा आरक्षण और दलित विरोधी है”, महा विकास अघाड़ी के इस अभियान को काउंटर करने के लिए संघ और भाजपा कार्यकर्ता एक साथ भिड़ गए.
पांच माह पूर्व जिस महाराष्ट्र में इंडिया ब्लॉक ने 48 में 30 लोकसभा सीटें जीती हों, वहां अब उसके तीनों घटक दलों के अस्तित्व पर ही बड़ा संकट पैदा हो गया है. इंडिया ब्लॉक के लिए अब आगे रास्ता क्या है?
लोकसभा के नतीजों से सबक लेकर महायुति ने जांचे परखे कई तरीके अपनाए. वहीं महाविकास अघाड़ी अति आत्मविश्वास में थी. उसे लगा कि वोटर विधानसभा चुनाव में भी उसको अपने आप वोट देंगे. उसकी यही सोच ले डूबी. शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने सीट बंटवारे में क्षमता से अधिक सीटें लेकर चुनाव लड़ा. पवार की पार्टी को 10 सीटें मिलीं. जबकि वह 86 सीटों पर लड़ी. वहीं लोकसभा में खराब प्रदर्शन करने वाली उद्धव की पार्टी 95 सीटों पर लड़ी, यद्यपि यथार्थ में उसकी क्षमता 75 सीटों से अधिक की नहीं थी.
आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस पहले ही इंडिया ब्लॉक से दूरी बना चुके हैं, महाराष्ट्र के ये नतीजे उसके भविष्य को लेकर बहुत कुछ कह रहे हैं. उद्धव ठाकरे बिना सल्तनत के सुल्तान बनकर रह गए हैं. यदि अघाड़ी सत्ता में आ जाती तो भाजपा और संघ परिवार को ठाकरे और इंडिया ब्लॉक से बहुसंख्यकवाद की सियासी लड़ाई लड़ने में दिक्कत होती. इस चुनाव की एक बात और, कांग्रेस 4 जून से पहले की हालत में पहुँच गई है. उसने पुरानी गलतियों से सबक सीखने से इनकार कर दिया है.
सवाल है, भाजपा की यही रणनीति झारखंड में क्यों कामयाब नहीं हो पाई? इसकी वजह वहां की जनसंख्या का ताना बाना है. राज्य की कुल आबादी में आदिवासी 26 प्रतिशत हैं और मुसलमान 14 फीसद. ये दोनों एक तरफ वोट करते हैं. इसको तोड़ने के लिए भाजपा ने “अवैध प्रवासी” का मुद्दा उठाया, पर खारिज कर दिया गया.
आदिवासी ऐतिहासिक रूप से झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़े रहे हैं और तीर कमान उनके मनोविज्ञान का हिस्सा है. भाजपा आदिवासियों को यह समझाने में सफल नहीं हो पाई कि वह उनके हित की बात कर रही है. उसके पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा नहीं था. अभी भी वही बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा जैसे पुराने चेहरे हैं. खुद मुंडा की पत्नी 27 हजार से ज्यादा वोटों से हार गईं. नतीजों में ऐसा दिखा भी. राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से 27 जेएमएम और कांग्रेस ने जीत लीं.
हेमंत सोरेन सरकार की 1000 रुपए देने की “मैया योजना” ने महिलाओं को आकर्षित किया. इससे उनकी वोटिंग बढ़ गई.
आदिवासियों और गैर आदिवासियों को “हिंदू” के रूप में एकजुट करने के लिए भाजपा के “बटेंगे तो कटेंगे”, “एक हैं तो सेफ हैं”, “घुसपैठिए”, “लव जिहाद” और “लैंड जिहाद” के नारे आदिवासी वोटरों को उसके पाले में नहीं ला सके और बुरी तरह पिट गए.
ये नारे आदिवासियों के वोट संथाल परगना जैसे इलाके में लगाए गए, जहां मुस्लिमों की खासी आबादी है और चुनाव परिणाम में निर्णायक भूमिका अदा करती है. नतीजों से यह रुझान भी मिलता है कि झारखंड के आदिवासी और ओबीसी वोटरों का इन मुद्दों से कोई लेना देना नहीं है.
पार्टी में आदिवासी नेतृत्व का विस्तार करने के लिए भाजपा पूर्व सीएम चंपई सोरेन और हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन को तोड़कर भी लाई, लेकिन असर नहीं हुआ. सीता सोरेन तो 43 हजार के बड़े अंतर से हार गईं.
हो सकता है, कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी भी भाजपा को उलटी पड़ी हो. कारण, सोरेन और उनकी पार्टी ने गिरफ्तारी को इस ढंग से पेश किया कि भाजपा एक धरतीपुत्र आदिवासी सीएम के पीछे पड़ी है.
विधानसभा सीटों के उपचुनाव में पुराना ट्रेंड ही बरकरार रहा है. आमतौर पर राज्यों में सत्तारूढ़ दल ही फायदे में रहते हैं. इस बार भी उत्तरप्रदेश, राजस्थान, असम, पंजाब, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल और उत्तराखंड में उपचुनाव सत्तारूढ़ दल के पक्ष में ही गए. प्रियंका गांधी भी वायनाड से लोकसभा का उपचुनाव जीत गई हैं. सिर्फ मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव सरकार के मंत्री रामनिवास रावत को हार का मुंह देखना पड़ा. वह पांच माह पूर्व कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे.
महाराष्ट्र का वोटर और मीडिया में अडानी.. अडानी और बस अडानी!
(न्यूजरूम)
महाराष्ट्र चुनावों में भाजपा की जीत ने यह तो सुनिश्चित कर दिया है कि यहां अडानी के मामले की गूंज का असर वोटर पर कम से कम नहीं पड़ा है, लेकिन मीडिया में अब भी अडानी सुर्खियों में ही हैं. महाराष्ट्र की जीत के बाद तो अडानी अब और भी केंद्र में आ जाते हैं, क्योंकि सारा चुनाव ही उनके नाम के शोर के इर्द-गिर्द लड़ा गया था. कांग्रेस ने तो बाकायदा वीडियोज की एक पूरी श्रृंखला जारी कर, गौतम अडानी और उनके कारोबार को निशाने पर लिया था. ‘हरकारा’ के 22 नवंबर और 23 नवंबर के अंक में हमने अडानी प्रकरण पर विस्तार से लिखा है.
अडानी को नहीं है खुलासे की जरूरत, कंपनी ने भेजा जवाब
अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस ने शनिवार को कहा कि केन्या द्वारा 6,109 करोड़ रुपये की ट्रांसमिशन लाइन परियोजना को रद्द करने के लिए उसे भारतीय स्टॉक एक्सचेंज नियमों के तहत कोई नियामक खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह कंपनी के 'सामान्य व्यापार' के तहत आता है. यह बयान बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के स्पष्टीकरण मांगने के बाद दिया गया. गौरतलब है कि केन्या के राष्ट्रपति ने 30 साल के सार्वजनिक-निजी भागीदारी सौदे को रद्द करने का आदेश हाल ही में अडानी पर अमेरिका में लगे आरोंपो के बाद दिया था.
अडानी के सीएफओ की सफाई
गौतम अडानी और उनके भतीजे समेत 6 अन्य व्यक्तियों पर अमेरिकी अदालत में अभियोग चलने के बाद अडानी समूह के सीएफओ जुगेशिंदर सिंह ने कहा है कि रिश्वतखोरी का अभियोग अडानी ग्रीन एनर्जी के एक अनुबंध से संबंधित है. अडानी समूह के सीएफओ ने कहा कि अभियोग एक अनुबंध से जुड़ा है, जिसमें उसके व्यवसाय का लगभग 10% शामिल है. सीएफओ ने स्पष्ट किया कि समूह की ग्यारह सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनियों में से किसी पर भी अमेरिकी अदालत में कोई मामला नहीं है.
अडानी और केन्याई व्हिसलब्लोअर नेल्सन अमेन्या
फ्रांस स्थित केन्याई व्हिसलब्लोअर नेल्सन अमेन्या ने अडानी प्रकरण पर अब व्यापक चर्चा पाने के बाद खुशी जाहिर की है. अमेन्या ने ही सबसे पहले नैरोबी हवाई अड्डे को चलाने के लिए अडानी समूह के पट्टे का खुलासा किया था, जिसके बाद यह मामला विवादों में आ गया और अब अडानी से केन्या की सरकार ने करार ही तोड़ दिया है. अमेन्या ने लिखा है कि सुबह जब वो उठे तो उनका इनबॉक्स संदेशों से भरा हुआ था. लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर टैग किया था और चाइनीज एजेंट बताया था. अमेन्या ने एक यूजर के ऐसे ही आरोप का जवाब देते हुए लिखा- 'अडानी ने अपने लोगों को मेरे डीएम में भेजना शुरू कर दिया है. मैं अपनी देशभक्ति से प्रायोजित हूं, मुझे अपने देश के लिए लड़ने के लिए भुगतान पाने की आवश्यकता नहीं है!' व्हिसलब्लोअर ने भारतीय जनता और मीडिया को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा कि अदानी से जुड़े मामलों पर रिपोर्टिंग और जागरूकता ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में मदद की है.
मीडिया में भारत की वैश्विक छवि खराब होने की चिंता
‘आर्टिकल 14’ के लिए लिखे अपने लेख में एम. राजशेखर ने पड़ताल की है कि कैसे अमेरिका में अडानी समूह पर लगे आरोपों का असर भारत में बिजली उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है. राजशेखर लिखते हैं कि भले ही गौतम अडानी अपने और अपने समूह के खिलाफ अमेरिकी आरोपों से उबर जाएं, लेकिन यह आरोप कि उन्होंने अधिकारियों को भुगतान किया, भारत के तेजी से बढ़ते नवीकरणीय-ऊर्जा क्षेत्र में वैश्विक विश्वास को हिला देने की संभावना खड़ी कर रहे हैं.
राजशेखर ने अपने लेख में बताया है कि अडानी समूह के घोटाले के कारण बिजली उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ सकता है. उन्होंने समझाया कि अमेरिकी आरोपों के बाद यह स्पष्ट हुआ है कि कंपनी ने कई स्तरों पर अनियमितताओं के माध्यम से अनुबंध प्राप्त किए. इन आरोपों में सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर सौर ऊर्जा परियोजनाएं हासिल करने और अनुबंधों के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल शामिल है. इसका असर बिजली दरों पर पड़ सकता है, जिससे उपभोक्ताओं को महंगी बिजली का सामना करना पड़ेगा. इसके अलावा, यदि परियोजनाओं में वित्तीय संकट पैदा होता है, तो यह बिजली आपूर्ति में कटौती को बढ़ा सकता है.लेख में इस बात पर भी जोर दिया गया कि अडानी समूह के संचालन के तरीके पारदर्शिता और जवाबदेही के मानकों को कमजोर कर सकते हैं, जिससे बिजली उपभोक्ताओं और निवेशकों को नुकसान हो सकता है.
'द हिंदू' ने लिखा है कि अडानी समूह पर पहले से लगे आरोपों ने अब उनकी वैश्विक छवि को और खराब कर दिया है. साथ ही लिखा है कि गौतम और सागर अडानी को पता था कि उनकी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी संदिग्ध रिश्वतखोरी के लिए अमेरिकी जांच के अधीन थी, जब उन्होंने भारत के सबसे बड़े सौर पार्क का हिस्सा फ्रांस की टोटल एनर्जीज को बेच दिया था.
अडानी ने 'ब्रांड इंडिया' पर लगाया डेंट!
'द इंडियन एक्सप्रेस' में संजय बारू का एक लेख छपा है. बारू 1999-2001 में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य रहे हैं और 2004-08 के दौरान प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार भी. बारू का कहना है कि टाटा जैसे उद्योग समूह और इंफोसिस जैसी कंपनियों ने सालों की मेहनत के बाद वैश्विक ब्रांड्स का खिताब पाया, लेकिन गौतम अडानी के कारण 'ब्रांड इंडिया' को बड़ा झटका लगा है.
'खराब हुई भारत के उद्योग जगत की साख' शीर्षक से लिखे अपने लेख में बारू लिखते हैं, सरकारें अपने देश के व्यावसायिक हितों को बढ़ावा देती हैं, लेकिन अडानी को दिया गया समर्थन 'लक्ष्मण रेखा' पार कर रहा है. 2022 में कोलंबो में पहली बार चिंता जताई गई थी. एक श्रीलंकाई अधिकारी ने आरोप लगाया कि भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार पर दबाव डाला ताकि एक अक्षय ऊर्जा परियोजना का ठेका गौतम अडानी की कंपनी को दिया जा सके. इन आरोपों का खंडन किया गया और भारत-समर्थक सरकार के आने के बाद मामला ठंडा पड़ गया. 2023 के अंत तक यह मुद्दा भुला दिया गया. यहां तक कि अमेरिका ने भी श्रीलंका में अडानी पोर्ट के लिए 533 बिलियन डॉलर की फंडिंग दी. इसका उद्देश्य चीन को दूर रखना बताया गया, लेकिन हाल ही में अमेरिका के ग्रैंड जूरी द्वारा आरोपों की जांच के बाद, श्रीलंका ने अडानी की एक अन्य ऊर्जा परियोजना पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया.
बारू लिखते हैं कि अभी यह देखना बाकी है कि और कौन-से देश अडानी के प्रोजेक्ट्स की समीक्षा करेंगे. अडानी ग्रुप का विस्तार ऑस्ट्रेलिया से लेकर ग्रीस, बांग्लादेश, केन्या, चीन, और संयुक्त अरब अमीरात तक हुआ है. अडानी ग्रुप के वैश्विक विस्तार को भारत सरकार ने भूराजनीतिक और आर्थिक रणनीति के तहत समर्थन दिया. एक भारतीय राजनयिक ने कहा कि भारत की 'आर्थिक कूटनीति' का उद्देश्य राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाना है. बड़े भारतीय कॉरपोरेट्स को विदेश नीति के उद्देश्यों को पूरा करने में मददगार बताया गया. अडानी ने विदेशी निवेश के लिए बाहर से कर्ज लिया. अब यही बाहरी वित्तीय दबाव उनके लिए समस्या बन गया है. अमेरिकी न्याय प्रणाली का ध्यान इसलिए गया क्योंकि अडानी ग्रुप की एक अमेरिकी पंजीकृत कंपनी ने अमेरिका में फंड जुटाए थे. इसके चलते अमेरिकी कानूनों के तहत जांच हो रही है, जिसमें विदेशी निवेश से जुड़े रिश्वतखोरी के कानून भी शामिल हैं.
बारू लिखते हैं कि पिछले कुछ सालों में भारत के मीडिया के कुछ हिस्सों में यह चर्चा होती रही है कि वर्तमान भारतीय सरकार दक्षिण कोरिया के मॉडल की नकल कर रही है, जिसमें घरेलू व्यवसायों को वैश्विक स्तर पर विस्तार करने के लिए राज्य का समर्थन दिया जाता है, जैसे दक्षिण कोरियाई चेबोल्स (बड़े उद्योग समूह). दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया से लेकर यूरोप तक बंदरगाह और बिजली परियोजनाओं के जरिए भारत अपने भू-आर्थिक प्रभाव का विस्तार कर रहा था. वो लिखते हैं अडानी पर लगे आरोपों ने भारत की भू-आर्थिक रणनीति की एक और बड़ी कमजोरी को उजागर किया. जहां चीन अपने वैश्विक विस्तार के लिए अपने खुद के वित्तीय संसाधनों का उपयोग करता है, वहीं कई भारतीय कंपनियां अपनी वैश्विक परियोजनाओं के लिए पश्चिमी वित्तपोषण पर निर्भर रही हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय व्यवसायों का वैश्वीकरण पश्चिमी समर्थन पर निर्भर हो गया, जैसे श्रीलंका में अडानी की एक परियोजना को अमेरिकी फंडिंग मिली. इस तरह की वित्तीय निर्भरता भारतीय कंपनियों को अमेरिकी कानूनी प्रणाली के दायरे में लाकर खड़ा कर देती है.
जगुआर के 'न्यू लोगो' का हाल 'न्यू इंडिया' के नारे जैसा हो गया!
क्या वाहन निर्माता जगुआर वर्ष के सबसे खराब विज्ञापन के लिए पुरस्कार जीतेगा? टाटा समूह की कंपनी जगुआर अपने ब्रांड के पुन: लॉन्च को लेकर ऐसी ही उपहासपूर्ण आलोचना और घोर तिरस्कार झेल रही है. ‘द टेलीग्राफ’ के लिए लिखी अपनी स्टोरी में प्राण बालकृष्णन खिते हैं कि विषम बाल कटाने और विचित्र पोशाकें पहनने वाली मॉडल वाला जगुआर का नया भविष्यवादी विज्ञापन का दांव अब कंपनी पर ही उल्टा पड़ गया है. आलोचकों ने टाटा के लक्जरी वाहन जगुआर के रीब्रांड की आलोचना की है. जगुआर के पुनरुद्धार के प्रयास पर पिघला हुआ व्यंग्य करते हुए, गार्जियन स्तंभकार मरीना हाइड ने कहा, 'अफसोसजनक न्यूज़फ्लैश. कार बेचना कार कंपनी का मुख्य मिशन रहता है.' टेस्ला के सीईओ एलोन मस्क ने भी इस विज्ञापन का मजाक उड़ाया और पूछा- 'क्या आप कारें बेचते हैं?' यहां देखिए जगुआर का वो व्ज्ञिापन, जिस पर मच गया है अब हल्ला…जगुआर ने 4 दिन पहले ही अपना ये नया एड 'कॉपी नथिंग', अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जारी किया है.
नींबू पानी, कच्ची हल्दी, नीम के पत्ते और कैंसर... टाटा मेमोरियल ने चिट्ठी लिखकर कहा- प्लीज ये सब मत करना!
हाल ही में पूर्व क्रिकेटर और नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने बताया था कि उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू कैंसर से फ्री हो गई हैं. उन्होंने कहा नवजोत ने महज 40 दिन के अंदर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को मात देने का काम किया है. इतने से सब ठीक था, लेकिन अब बवाल मचा है सिद्धू की ट्रीटमेंट थ्योरी पर! सिद्धू ने कहा, 'मेरी पत्नी ने नींबू पानी, नीम के पत्ते, कच्ची हल्दी जैसे चीजों को खाने में शामिल किया और वह ठीक हो गई.' बस यही बात एक्सपर्ट को हजम नहीं हुई. टाटा मेमोरियल एलुमनी ने तो बाकायदा जनहित में एक सूचना जारी की है कि इस तरह के भ्रामक दावे ठीक नहीं हैं. साथ ही कहा है कि अभी कुछ लोग इस पर शोध जरूर कर रहे हैं, लेकिन इससे कैंसर ठीक हो सकता है, इसके कोई क्लीनिकल प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं. पत्र में टाटा मेमोरियल ने कहा है कि वक्त पर डॉक्टर की सलाह लें और किसी भी किस्म के ऊलजलूल नुस्खों से बचें.
ICC के इजरायली पीएम की गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ अमरीका
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ क्रिमिनल (ICC) की ओर से जारी गिरफ्तारी वारंट को अपमानजनक बताया है. ICC ने नेतन्याहू के अलावा इजरायल के बर्खास्त रक्षा मंत्री योआव गैलेंट और हमास कमांडर मोहम्मद डेफ के लिए भी गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. इजरायल की मानें तो मोहम्मद डेफ को उसने जुलाई में मारा गिराया है. जहां अमेरिका आईसीसी के वारंट के खिलाफ है, वहीं अधिकतर यूरोपीय यूनियन के देश इसके समर्थन में हैं.
इजराइल के हमले में गाजा में फिर मारे गए 120 फिलिस्तीनी
हिज़्बुल्लाह लड़ाकों और इज़रायली सैनिकों के बीच दक्षिणी लेबनान के खियाम शहर और तटीय बयादा क्षेत्र में भीषण झड़पें हुईं हैं. इन इलाकों में इज़रायली सेना बढ़त हासिल करने की कोशिश कर रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि पिछले 48 घंटों में गाजा में इजरायली हमलों में कम से कम 120 फिलिस्तीनी मारे गए हैं और 205 अन्य घायल हुए हैं. लड़ाई अब भी जारी है. अक्टूबर 2023 से लेबनान में इज़रायली हमलों में 3,600 से अधिक लोग मारे गए हैं, जबकि लगभग 15,300 घायल हुए हैं. इस लड़ाई के चलते 1.2 करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं.
पर्थ टेस्ट दूसरा दिन : भारत को 218 रन की बढ़त, सारे विकेट हाथ में
भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच पर्थ टेस्ट मैच के दूसरे दिन स्टंप तक टीम इंडिया ने बिना किसी नुकसान के 172 रन बना लिए हैं. पहली पारी में टीम इंडिया को 46 रन की बढ़त मिली थी. इस तरह 218 रन की लीड लेकर भारत ड्राइविंग सीट पर आ गया है और एक विकेट भी नहीं गिरा है. यशस्वी जायसवाल 90 और केएल राहुल 62 रन बनाकर नाबाद हैं. इससे पहले 67 पर 7 से आगे खेलते हुए ऑस्ट्रेलिया की पूरी पारी 104 पर सिमट गई. कप्तान बुमराह ने पांच विकेट लिए तो हर्षित राणा 3 व सिराज के हाथ 2 विकेट लगा. ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी में शीर्ष स्कोरर टैलेंडर मिचेल स्टॉर्क (26) रहे.
ठंड से भारतीय परिवार की मौत के मामले में 2 मानव तस्कर दोषी
'द गार्डियन' की खबर है कि कनाडा-अमेरिका सीमा पार करने की कोशिश में एक भारतीय परिवार की ठंड से मौत के बाद एक जूरी ने मानव तस्करी के आरोप में अमेरिका की अदालत ने दो लोगों को दोषी ठहराया है. शुक्रवार को मिनेसोटा में एक जूरी ने 29 वर्षीय भारतीय नागरिक हर्षकुमार रमनलाल पटेल जो 'डर्टी हैरी' के उपनाम से पहचाना जाता है और फ्लोरिडा के एक अमेरिकी 50 वर्षीय स्टीव शैंड के खिलाफ मामले में फैसला सुनाया. अभियोजकों का कहना है कि यह जोड़ी एक व्यापक आपराधिक उद्यम का हिस्सा थी, जिसने प्रवासियों को कनाडा से संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश करने में मदद की थी. पांच दिवसीय सुनवाई के दौरान अदालत ने जनवरी 2022 में दुखद क्रॉसिंग प्रयास का विवरण सुना, जब 37 वर्षीय वैशालीबेन पटेल, उनके 39 वर्षीय उनके पति जगदीश पटेल, उनकी 11 वर्षीय बेटी, विहांगी और उनके तीन साल के बेटे धार्मिक को बर्फ़ीले तूफ़ान के दौरान मरने के लिए छोड़ दिया गया था.
उस दिन जब तापमान -23C तक गिर गया था और तेज़ हवाएँ चल रही थीं, सीमा अधिकारियों को पहली बार कुछ गड़बड़ होने का संदेह हुआ, जब उन्हें एक स्नोप्लो चालक से एक सूचना मिली, जिसने शैंड की वैन को खाई से निकालने में मदद की थी. शैंड को हाल के दिनों में कई बार इस क्षेत्र में देखा गया था. उत्तरी डकोटा में सीमा पार करने का प्रयास करने पर अधिकारियों ने शैंड को पकड़ लिया. वैन के अंदर उन्हें शैंड के साथ दो भारतीय नागरिक मिले. बाद में उन्हें पांच और लोग एक खेत में भटकते हुए, अस्त-व्यस्त और ठिठुरते हुए मिले थे.
अंटार्कटिका से 3,000 किलोमीटर की यात्रा पर निकला पेंगुइन, क्लाइमेट चेंज बनी वजह
एक एंपरर पेंगुइन ने 3,000 किलोमीटर की यात्रा कर पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के डेनमार्क क्षेत्र के एक समुद्र तट पर पहुंच कर सबको चौंका दिया. इसे 'गस' नाम दिया गया है. यह पहली बार हुआ है जब इस प्रजाति के पेंगुइन को अपने प्राकृतिक आवास अंटार्कटिक से इतनी दूर देखा गया है. गस को भूख और थकान की स्थिति में पाया गया, लेकिन 20 दिनों की देखभाल के बाद उसकी सेहत में सुधार हुआ और उसे दक्षिणी महासागर में वापस छोड़ दिया गया.
गस की यात्रा का कारण अंटार्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के चलते बदलते पर्यावरण को माना जा रहा है, जो पेंगुइनों को भोजन और जीवन के लिए नई जगहों की तलाश करने पर मजबूर कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि वह समुद्री धाराओं का अनुसरण करते हुए ऑस्ट्रेलिया पहुंचा.
गाय जो मीथेन छोड़ रही है उसे काबू करो, ‘क्लाइमेंट चेंज’ से निपटने के लिए ये हैं वैज्ञानिकों की 6 सिफारिशें
(मध्य हिमालय में पंचाचूली की पहाड़ियां. जलवायु परिवर्तन ने हिमालय पर भी कहर बरपाया है. बड़ी तेजी से हिमालय की बर्फ कम हो रही है और ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं. तस्वीर -गौरव नौड़ियाल)
गायों से उत्पादित मीथेन को काबू में कर क्लाइमेट चेंज पर फतह हालिस की जा सकती है! वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय ने क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए जिन 6 थ्योरीज को सामने रखा है, उनमें एक ये भी है. वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय ने कहा है कि हम क्लाइमेट चेंज से निपट सकते हैं, लेकिन इसके लिए इकट्ठे काम करना पड़ेगा और कुछ तकनीकी बदलाव सबको करने होंगे. वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए माइक्रोबियल समाधानों की जोरदार पैरवी के साथ ही इससे निपटने के लिए एक ग्लोबल टास्क फोर्स बनाने की भी बात की है. एप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी इंटरनेशनल (एएमआई) ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रमुख वैश्विक वैज्ञानिक संगठनों के साथ हाथ मिलाया है. इस पहल का उद्देश्य माइक्रोबायोम प्रौद्योगिकियों की तैनाती में तेजी लाना है.
वैज्ञानिक पत्रिका एमसिस्टम और कई अन्य प्रतिष्ठित जर्नल्स में प्रकाशित संपादकीय में यह बताया गया है कि माइक्रोब्स (सूक्ष्मजीव) कार्बन पृथक्करण, मीथेन ऑक्सीकरण, जैव ऊर्जा उत्पादन, बायोरिमेडिएशन और नाइट्रोजन प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में जलवायु संकट से निपटने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. वैज्ञानिकों ने COP29 सम्मेलन में सभी देशों और संगठनों से अपील की कि वे सूक्ष्मजीव आधारित प्रौद्योगिकियों को अपनाएं. उन्होंने इसे बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए एक ग्लोबल टास्क फोर्स बनाने की सिफारिश भी सम्मेलन में की है. नेचर बॉयोलॉजी और आईएसएमई जर्नल सहित 24 अन्य महत्वपूर्ण जर्नल्स में ये प्रकाशित हुआ है.
इस विषय पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने भी रिपोर्ट तैयार की है. IPCC की रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2025 तक चरम पर पहुंचाने और 2030 तक 50% तक घटाने के उपाय लागू किए जाएं, तो जलवायु संकट को कम किया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी. इसमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग में पर्याप्त कमी, व्यापक विद्युतीकरण, बेहतर ऊर्जा दक्षता और वैकल्पिक ईंधन (जैसे हाइड्रोजन) का उपयोग शामिल होगा. जीवनशैली और व्यवहार में बदलाव लाने के लिए सही नीतियां, बुनियादी ढांचा और प्रौद्योगिकी होने से 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 40-70% की कमी लाई जा सकती है.
वैज्ञानिक समूह की माइक्रोबियल-आधारित समाधानों की मांग
कार्बन पृथक्करण बूस्टर: मिट्टी और महासागरों में कार्बन को रोकने में मदद करने के लिए रोगाणुओं का उपयोग करना, वातावरण में CO₂ को कम करना और बेहतर फसल विकास के लिए मिट्टी को समृद्ध करना.
मीथेन बस्टर्स: कूड़े से निकलने वाली मीथेन को कम करने के लिए लैंडफिल साइटों में बैक्टीरिया को शामिल करना. इसे पशुधन फार्मों और आर्द्रभूमियों पर भी लागू किया जा सकता है.
माइक्रोबियल बायोएनर्जी: जैव ईंधन बनाने के लिए शैवाल, खमीर, गन्ना, वनस्पति तेल और पशु वसा का उपयोग कर जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता को पूरा करना.
प्रदूषण सेनानी: निर्माण स्थलों से औद्योगिक कचरे में प्रदूषकों को तोड़ने, दूषित भूमि और पानी को साफ करने के लिए रोगाणुओं का उपयोग करना.
माइक्रोबायोम थेरेपी: गायों द्वारा उत्पादित मीथेन को कम करने के लिए उनके आहार में बदलाव करना.
उर्वरक क्रांति: हवा और पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए उर्वरकों में सिंथेटिक नाइट्रोजन को प्राकृतिक बैक्टीरिया से बदलना.
वायु प्रदूषण : कृत्रिम बारिश से नहीं बनेगी बात
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCD) ने सूचना के अधिकार के तहत डालकर पूछे गए एक जवाब में कहा है कि उत्तर भारत में सर्दियों में बढ़ जाने वाले वायु प्रदूषण से निपटने के आपातकालीन उपाय के रूप में क्लाउड सीडिंग बड़ी भूमिका नहीं निभा सकता है. क्योंकि इसमें नमी की कमी रहेगी. साथ में पहले से मौजूद बादलों पर भी निर्भरता रहेगी. सीपीसीबी ने आईआईटी कानपुर के क्लाउड सीडिंग प्रस्ताव पर अपनी टिप्पणियां साझा कीं. कार्यकर्ता अमित गुप्ता की ओर से दायर प्रश्न का उद्देश्य कृत्रिम वर्षा के माध्यम से दिल्ली के गंभीर वायु प्रदूषण संकट से निपटना था.
चलते चलते: गुलज़ार अपनी बेटी के नामकरण की कथा बता रहे हैं... बंगाल की एक नदी और गुलजार के परिवार की इकलौती भारतीय
(साभार- इंडियन एक्सप्रेस)
गुलजार के लेखों का एक संकलन आया है. ये पहली बार मराठी में छपा था और अब इसके एक हिस्से को, जो कि उनकी बेटी मेघना पर है, का अनुवाद अनुवाद अंबरीश मिश्रा ने 'स्क्रॉल' के लिए किया है और इसे आप अंग्रेजी में पूरा पढ़ सकते हैं. हमने भी अपनी सुविधा से इस अंग्रेजी लेख का एक खूबसूरत हिस्सा अनुवाद किया है जिसमें…
गुलजार लिखते हैं- “नवजात शिशु बहुत खूबसूरत और नाजुक लग रहा था, मुलायम रेशम के टुकड़े की तरह. मैंने उसे बोस्की कहा. राखी जी को ये थोड़ा अजीब लगा. हालाँकि, 'बोस्की' को परिवार ने ख़ुशी से स्वीकार कर लिया. जब हम औपचारिक नामकरण समारोह की योजना बना रहे थे तो एक ताज़ा बहस छिड़ गई. मैंने सोचा, मेरा सबसे बड़ा भाई निशात लेकर आया- एक अच्छा नाम. मैंने अपनी माँ का नाम सुजान सुझाया. शायद, लगभग सर्वसम्मत फैसला यह था कि आप अपनी बेटी को उसकी दादी का नाम नहीं दे सकते. करीबी रिश्तेदार पारिवारिक परंपरा को कायम रखने के इच्छुक थे. इस प्रकार सुजान को अस्वीकार कर दिया गया. राखी जी ने मेघना नामक एक नदी का सुझाव दिया जो बंगाल में उनके पैतृक शहर से होकर बहती है. मुझे यह नाम जितना इसकी लय के कारण पसंद आया, उतना ही इस तथ्य के कारण भी कि राखी जी अपने जन्मस्थान के साथ अपने संबंध को पुनर्जीवित करना चाहती थीं. राखी जी पूर्वी बंगाल से हैं, जो अब बांग्लादेश है, जबकि पंजाब मेरा जन्मस्थान है, जो अब पाकिस्तान है. हम अक्सर मज़ाक करते हैं कि बोस्की परिवार में एकमात्र भारतीय हैं. किसी बच्चे को बड़ा होते देखना एक अद्भुत अनुभव है जिसे कोई भी पटकथा लेखक कागज पर उतारने की हिम्मत नहीं कर सकता. एक बच्चा अपनी माँ के पल्लू से खेलता रहता है. क्या इसलिए कि उसे पल्लू की बुनाई या उसका लाल रंग पसंद है? कौन जानता है? मैंने लंगोट बदलना सीखा. एक बच्चे को अपनी छाती के करीब रखना हृदयस्पर्शी है. इससे जीवन की मधुर सुगंध निकलती है. बच्चे के ब्रह्मांड को साझा करते हुए, जहां हाथी उड़ते हैं और पेड़ समुद्री डाकू करते हैं, माता-पिता अपने बचपन को फिर से जीते हैं.”
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