24/01/2025 : कागज़ी कार्यवाही से अटकी नागरिकता, हिंसा को जरूरी बताया भैयाजी ने, 20 से पहले उन्हें बच्चा चाहिए, बोस का सेक्युलरिज़्म, धंधा क्यों समेट रहे हैं विदेशी निवेशक, दिल्ली पुलिस पर अदालत भड़की
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रौशनी ज्यादा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां | 24 जनवरी 2025
दिल्ली दंगों के मामले में कोर्ट ने पुलिस को दिया अल्टीमेटम : दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नवीन चावला और शालिंदर कौर ने दिल्ली दंगों के पीछे की 'बड़ी साजिश' में उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अदालत पुलिस को "अंतहीन मोहलत" नहीं दे सकती है. पीटीआई ने उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया: "इसे खत्म होना होगा. यह इस तरह नहीं चल सकता ... इसे अब खत्म करने की जरूरत है." अभियोजक ने और समय मांगा, यह कहते हुए कि उनकी याचिकाएं केवल जमानत के लिए नहीं हैं, बल्कि उन निचली अदालतों के आदेशों को भी चुनौती देती हैं जिन्होंने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया था.
आईफोन फैक्ट्री के रोजगार भेदभावों की दुबारा जांच : रॉयटर्स के मुताबिक फॉक्सकॉन में रोजगार भेदभाव के सबूतों की पर्याप्त जांच करने में विफल रहने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने श्रम अधिकारियों को फटकार लगाई है, और उन्हें मामले की दोबारा जांच करने के लिए कहा है. आयोग ने जून में संघीय और तमिलनाडु राज्य के अधिकारियों को फॉक्सकॉन की भर्ती प्रथाओं की जांच करने का आदेश दिया था, जब रॉयटर्स की जांच में पाया गया कि निर्माता ने अपने दक्षिणी भारत के संयंत्र में आईफोन असेंबली नौकरियों से विवाहित महिलाओं को बाहर रखा था. रॉयटर्स ने पाया कि फॉक्सकॉन ने उच्च उत्पादन अवधि के दौरान प्रतिबंध में ढील दी थी. आईफोन कारखाना भारत में एक प्रमुख विदेशी निवेश है, जो देश में विनिर्माण को बढ़ाने की एप्पल और फॉक्सकॉन की योजनाओं के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लक्ष्य के लिए महत्वपूर्ण है.
नागरिकता पाने में देरी : महिला को डिटेंशन सेंटर का डर : असम न्यायाधिकरण द्वारा योग्य घोषित किए जाने के 30 दिनों के भीतर भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय में आवेदन करने में बेगम ज़ान की देरी ने उन्हें नागरिक बनने से रोक दिया है. रोकीबुज़ ज़मान से बात करते हुए, ज़ान ने कहा कि उनका जन्म असम में हुआ और वह सारा जीवन वहीं रहीं, लेकिन उनके वकील ने उन्हें 30 दिनों की समय सीमा के बारे में सूचित नहीं किया. लेकिन गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इस साल की शुरुआत में कहा कि बहुत देर हो चुकी है. हैरानी की बात है कि ज़मान ने कहा कि उच्च न्यायालय - जिसने पहले याचिकाकर्ताओं द्वारा देर से पंजीकरण की अनुमति दी थी - ने असम समझौते के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी परदीवाला की अल्पसंख्यक राय को ज़ान के दरवाजे बंद करने के कारण के रूप में उद्धृत किया. यह स्पष्ट नहीं है कि क्या अल्पसंख्यक राय बाध्यकारी हो सकती है. इस बीच, उसके परिवार को डर है कि उसे डिटेंशन सेंटर ले जाया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को लगाई फटकार, मुख्य सचिव को किया तलब : सुप्रीम कोर्ट असम सरकार के इस जवाब से नाखुश है कि उसने विदेशियों को क्यों हिरासत में लिया है. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को हलफनामा देकर यह बताने को कहा था कि उसने मटिया ट्रांजिट कैंप में 270 विदेशी नागरिकों को क्यों हिरासत में लिया है और उन्हें वापस भेजने के लिए वह क्या कदम उठा रही है. बुधवार को जब अदालत ने मामले की सुनवाई की तो उसने पाया कि हलफनामे में विदेशियों को हिरासत में लेने का कोई कारण नहीं बताया गया है और उन्हें वापस भेजने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी भी नहीं दी गई है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह उसके आदेशों का घोर उल्लंघन है. साथ ही अगली सुनवाई में असम के मुख्य सचिव को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेश होने का निर्देश दिया.
ओला ऊबर पर भेदभाव के आरोप : उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने गुरुवार को कहा कि उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने कैब एग्रीगेटर ओला और उबर को उपयोगकर्ता के मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम - एंड्रॉइड या आईओएस - के आधार पर समान सवारी के लिए कथित तौर पर अलग-अलग मूल्य निर्धारण के लिए नोटिस जारी किए हैं. जोशी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, "मोबाइल के विभिन्न मॉडलों (एंड्रायड और आईफ़ोन) के उपयोग के आधार पर स्पष्ट #विभेदक_मूल्य निर्धारण के पहले के अवलोकन के बाद, उपभोक्ता मामलों के विभाग ने सीसीपीए के माध्यम से प्रमुख कैब एग्रीगेटर ओला और ऊबर को नोटिस जारी किया है, जिसमें उनकी प्रतिक्रियाएं मांगी गई हैं." यह कदम कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं द्वारा समान मार्गों के लिए आईफोन और एंड्रॉइड फोन में किराए के अंतर की ओर इशारा करने के बाद आया है. पिछले महीने, जोशी ने "उपभोक्ता शोषण के लिए शून्य सहनशीलता" पर जोर दिया था और सीसीपीए से इन आरोपों की पूरी जांच करने के लिए कहा था.
हवाई अड्डों पर यूजर डेवलपमेंट फीस पर सवाल : संसद की लोक लेखा समिति ने हवाई अड्डा आर्थिक नियामक प्राधिकरण को पत्र लिखकर दो सप्ताह के भीतर यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि हवाई अड्डों पर लगाए जाने वाले 'उपयोगकर्ता विकास शुल्क' की गणना कैसे की जाती है. शोभना नायर और जागृति चंद्रा ने पाया कि पीएसी के सदस्यों के एक क्रॉस-सेक्शन ने उच्च यूडीएफ को एक मुद्दे के रूप में उठाया, खासकर निजी स्वामित्व वाले हवाई अड्डों की बढ़ती संख्या के संदर्भ में, और यह माना कि यह शुल्क 'मनमाने ढंग से' लगाया जा रहा था. कथित तौर पर समिति ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय को टैरिफ को विनियमित करने में ढिलाई बरतने के लिए फटकार लगाई.
कानूनी अड़चनों के चलते नौसेना का 'पाजामाकरण' रुका: नौसेना ने कानूनी अड़चनों की आशंका के कारण अधिकारी स्तर से नीचे के रैंकों को 'भारतीयकरण' करने या अपने ड्रेस कोड में कुर्ते और पायजामे को शामिल करने की योजनाओं के साथ आगे नहीं बढ़ी है, दोनों का पिछले साल नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने समर्थन किया था. जहां तक कुर्ते-पायजामे की योजनाओं का सवाल है, एक अनुभवी ने राहुल बेदी को बताया कि उन्होंने नौसेना को "कई चुटकुलों का निशाना" बना दिया. उन्होंने कई दिग्गजों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि भारत के लिए अपने औपनिवेशिक बैगेज को छोड़ना अपरिहार्य है, सशस्त्र बलों को ऐतिहासिक पहलुओं से मुक्त करना - जो परंपरा को दिल से लगाते हैं - बहुत काम का नहीं था.
मुनव्वर फारुकी को जमानत देने से इनकार करने वाले जज बने बीजेपी के संयोजक
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति रोहित आर्य को मध्य प्रदेश में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के लिए भाजपा का संयोजक नियुक्त किया गया है. यह वही जज हैं, जिन्होंने कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और नलिन यादव को जमानत देने से इनकार कर दिया था, और एक महिला की मर्यादा भंग करने के आरोपी एक व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह उसकी कलाई पर राखी बांधेगा - आनंद मोहन जे रिपोर्ट करते हैं.
पाकिस्तान का नाम जर्सी पर, भारत खेलेगा : क्या बीसीसीआई भारतीय पुरुष टीम को आईसीसी द्वारा स्वीकृत जर्सी पहनने देगा जिसकी चैंपियंस ट्रॉफी लोगो में पाकिस्तान का नाम होगा. बीसीसीआई का जवाब है- "हम आईसीसी के निर्देश का पालन करेंगे." इसका मतलब यह है कि टीम इंडिया, बीसीसीआई ने जिसे पाकिस्तान में खेलने की अनुमति नहीं दी थी. इस वजह से वह अपना मैच तो दुबई में खेलेगी, मगर पहनेगी यह जर्सी.
संघ परिवार महाराष्ट्र के भाजपा मंत्रियों को मुहैया कराएगा निजी सहायक : ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में भाजपा मंत्रियों के कुछ निजी सहायक अब आरएसएस और संघ परिवार के अन्य संगठनों से लिए जाएंगे. सुधीर देउलगांवकर, जो अब भाजपा और राज्य सरकार के बीच मुख्य समन्वयक हैं, के हवाले से सुरेंद्र पी गगन ने ये रिपोर्ट की है. देउलगांवकर ने कहा कि इसका उद्देश्य ‘पार्टी और सरकार के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना, पार्टी कार्यकर्ताओं और लोगों के बीच यह विश्वास पैदा करना है कि यह हमारी सरकार है”.
मुस्लिम छद्म नामों का इस्तेमाल कर बढ़ रहे हैं हेट क्राइम : मुस्लिम छद्म नामों का इस्तेमाल कर के बम या मौत की धमकी देने से लेकर मुस्लिम पोशाक पहनकर हिंदुओं के खिलाफ बोलने तक, ऐसे मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. हाल-फिलहाल में भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब लोगों ने कथित तौर पर अपराध करते हुए या भड़काऊ बातें कहते हुए छद्म रूप से खुद को मुस्लिम बताया. ऐसा क्यों हो रहा है? इस बारे में वकील अनस तनवीर जैसे कुछ लोगों का कहना है कि ये “सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों को हथियार बनाने और मुसलमानों को हिंसक या राष्ट्र-विरोधी के रूप में चित्रित करने वाली रूढ़ियों को मजबूत करने के लिए जान-बूझकर ये सारे प्रयास किये गये हैं”, जो बढ़ते इस्लामोफोबिया को दर्शाते हैं. ऐसी घटनाओं से प्रभावी ढंग से लड़ना भी मुश्किल है. तथ्य-जांचकर्ता कैरेन रेबेलो ने इसकी वजह बताते हुए कहा कि जब ऐसे मामलों से संबंधित समाचारों की तथ्य-जांच की जाती है, तो उन पोस्टों को ऑनलाइन उतना ध्यान नहीं मिलता जितना कि गलत सूचना वाली खबर को मिला होता है.
रेल हादसा : ‘चाय वाले की अफवाह’ के कारण 13 की मौत : बुधवार शाम को महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में लखनऊ-मुंबई पुष्पक एक्सप्रेस के कुछ यात्री, जिन्होंने अलार्म चेन खींचने की घटना के बाद ट्रेन से उतर गए थे, बगल की पटरियों पर बेंगलुरु से दिल्ली जा रही कर्नाटक एक्सप्रेस की चपेट में आ गए. अधिकारियों के अनुसार, इस हादसे में 13 लोगों की मौत हो गई और 15 घायल हो गए. पुणे में पत्रकारों से बात करते हुए, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा, "पेंट्री का एक चाय विक्रेता, एक कोच में आग लगने के बारे में चिल्लाया." उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती के दो यात्रियों ने इसे सुना और दूसरों को झूठी सूचना दी, जिससे उनके सामान्य कोच और बगल वाले कोच में भ्रम और दहशत फैल गई. पवार ने कहा कि कुछ डरे हुए यात्री खुद को बचाने के लिए ट्रेन से दोनों तरफ से कूद गए. जैसे ही ट्रेन तेज गति से चल रही थी, एक यात्री ने अलार्म चेन खींची. उन्होंने कहा, "ट्रेन रुकने के बाद, लोग नीचे उतरने लगे और बगल की पटरी पर कर्नाटक एक्सप्रेस की चपेट में आ गए."
अभिनेता सैफ पर हमले को नाटक बताते नेता लोग
सैफ अली खान पर हुआ हमला क्या सचमुच नकली था? यह सवाल महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन महाविकास अघाड़ी की तरफ से उठाया जा रहा है. खासकर, सरकार के मंत्री नितेश राणे का यह कहना पुलिस की जांच पर भी प्रहार करने वाला प्रतीत हो रहा है कि “सैफ पर हमला संदिग्ध हो सकता है.” राणे का कहना है, “सैफ अली पर सचमुच चाकू से हमला किया गया या उन्होंने अभिनय किया है?” राणे ने इस वारदात को हिंदू-मुस्लिम के नजरिए से भी देखा है. शिवसेना (शिंदे) के नेता संजय निरुपम ने भी कहा है कि सैफ अली खान पर हमले से लेकर अस्पताल से छुट्टी तक का पूरा घटनाक्रम कई सवाल खड़े करता है. उन्होंने कहा कि सिर्फ पांच दिन में अस्पताल से निकलते ही इतने फिट कैसे? सैफ का कूदते और चलते हुए अस्पताल से बाहर निकलना उनकी गंभीर किस्म की चोटों पर कई मुंबईकरों के मन में संदेह पैदा कर रहा है. उधर ‘डेक्कन हेराल्ड’ में खबर है कि सैफ अली खान और उनके परिवार को भोपाल नवाब से विरासत में मिली 15 हजार करोड़ की संपत्ति का मामला अधर में लटका हुआ है. यदि कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ सैफ के परिवार ने अपील नहीं की तो हजारों करोड़ की यह संपत्ति केंद्र के नियंत्रण में आ सकती है.
बिहार में 40 सीटों की धमकी देकर ढीले पड़े मांझी!
बिहार के सियासतदान अपनी बात से पलटी मारने में माहिर हैं? राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद अब केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा सेक्युलर के संस्थापक जीतन राम मांझी ने भी दो दिनों के भीतर यही साबित किया है. एक दिन पहले वह एनडीए को धमका रहे थे, लेकिन अगले ही दिन ढीले पड़ गए.
मंगलवार को मुंगेर की जनसभा में मांझी ने चेतवानी दी थी कि यदि उनकी पार्टी को बिहार चुनाव में उम्मीदवारी के लिए 40 सीटें नहीं दी गईं तो वह एनडीए सरकार में अपना मंत्री पद त्याग देंगे. उन्होंने कहा था, “झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए एक भी सीट नहीं मिली. आप (एनडीए) कह सकते हैं कि नहीं मांगी तो नहीं मिली. लेकिन, यह कोई न्याय है क्या? मुझे अनदेखा कर दिया गया, क्योंकि दोनों राज्यों में हमारा कोई अस्तित्व नहीं है. लेकिन बिहार में हमको अपना महत्व साबित करना है.” रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई “भय बिनु होए न प्रीत” का उल्लेख करते हुए 80 वर्षीय मांझी का कहना था, “लगता है मुझे केबिनेट से इस्तीफा देना पड़ेगा.”
उन्होंने कहा कि इस वर्ष के अंत में होने वाले चुनाव में वह 40 सीटों पर लड़ना चाहते हैं. कुछ लोग कह सकते हैं कि मैं एनडीए के खिलाफ लड़ रहा हूं. लेकिन नरेंद्र मोदी का नेतृत्व ऐसा है कि विद्रोह का सवाल ही पैदा नहीं होता. मैं तो बस याचना कर रहा हूं और टकराव में शामिल नहीं हूं. कुलमिलाकर मुंगेर की सभा में बागी तेवर दिखाने के बाद मांझी ने डैमेज कंट्रोल के लिए ‘एक्स’ पर मरते दम तक मोदी को समर्थन देने वाली पोस्ट डाली. यह भी कहा कि उनकी बात को गलत ढंग से पेश किया गया. बता दें कि मांझी खुद को बिहार की महादलित मुसहर जाति का नेता बताते हैं. राज्य की लगभग 13 करोड़ आबादी में 3.1 प्रतिशत हिस्सा इसी जाति का है. 243 सदस्यों वाली विधानसभा में उनकी पार्टी के चार विधायक हैं और वह स्वयं एकमात्र सांसद हैं.
महाकुंभ में माला बेचती लड़की से बदतमीज़ी : प्रयागराज महाकुंभ में 16 साल की गरीब लड़की मोनालिसा भोंसले का वीडियो वायरल हो गया. यह वायरल होना उसके लिए इतनी बड़ी मुसीबत बना कि अंतत: उसे अपना कारोबार समेटना पड़ा और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा. उसने बताया कि कुछ लोग बहाने से उसके टेंट में घुस आए और उसके साथ तस्वीर खिंचवाने और वीडियो बनाने की जिद करने लगे. मना करने पर कहा, उसके पिता ने उन्हें भेजा है. मोनालिसा ने बताया, ‘‘मुझे कहना पड़ा कि अगर पिता ने भेजा है तो उनके पास ही चले जाओ. मैं तस्वीरें नहीं खिंचवाऊंगी.” बात इतने पर ही संभल जाती, तब भी ग़नीमत थी. इसके बाद जब मोनालिसा के भाई ने उनके फोन से तस्वीरें हटाने की कोशिश की, जो उन लोगों ने जबरदस्ती खींच ली थीं, तो उन लोगों ने उसके भाई पर हमला कर दिया. वे नौ लोग थे. सबने मिलकर पीटा. माला विक्रेता लड़की ने आगे कहा, “मैं डरी हुई हूँ. यहाँ बिजली नहीं है. कोई भी मुझे नुकसान पहुँचा सकता है.”
बांग्लादेश हसीना की वापसी के प्रयास जारी रखेगा : बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने मंगलवार को कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत से वापस लाने के लिए प्रयास जारी रखेगी. अगर आवश्यक हुआ तो अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग करेगी. 77 साल की हसीना पिछले साल 5 अगस्त से भारत में रह रही हैं, जब छात्रों के नेतृत्व में हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद वे भागकर यहां आ गई थीं.
राम गोपाल वर्मा को चेक बाउंस मामले में तीन महीने की जेल : फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक राम गोपाल वर्मा को पुराने चेक बाउंस मामले में तीन महीने की जेल की सजा सुनाई गई है. मुंबई की एक अदालत ने आज, 23 जनवरी को यह फैसला सुनाया. राम गोपाल वर्मा अदालत में पेश नहीं हुए, जिसके चलते दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार सजा को लागू करने के लिए उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट भी जारी किया गया है. जेल की सजा के अलावा, राम गोपाल वर्मा को शिकायतकर्ता को ₹3.72 लाख का मुआवजा देने का भी आदेश दिया गया है.
आरएसएस नेता भैयाजी जोशी के मुताबिक “हिंसा कभी-कभी ज़रूरी”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ नेता भैयाजी जोशी ने गुरुवार को कहा कि अहिंसा के विचार की रक्षा के लिए कभी-कभी हिंसा "ज़रूरी" होती है, इस बात पर जोर देते हुए कि भारत को शांति के रास्ते पर सभी को साथ लेकर चलना होगा. पीटीआई के मुताबिक जोशी अहमदाबाद के गुजरात विश्वविद्यालय के मैदान में 'हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला', जिसे 'हिंदू अध्यात्मिक सेवा मेला' के नाम से भी जाना जाता है, के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे. उन्होंने कहा, "हिंदू हमेशा अपने धर्म की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. अपने 'धर्म' की रक्षा के लिए, हमें वे काम भी करने होंगे जिन्हें दूसरे 'अधर्म' कहेंगे और ऐसे काम हमारे पूर्वजों ने किए थे." महाभारत के युद्ध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पांडवों ने 'अधर्म' को खत्म करने के लिए युद्ध के नियमों को ताक पर रख दिया था. मेले का उद्घाटन गृह मंत्री अमित शाह ने किया था.
अमेरिकी भारतीयों में 20 फरवरी से पहले बच्चा पैदा करवाने की होड़
अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक नए कार्यकारी आदेश के कारण भारतीय मूल के कई माता-पिता में चिंता का माहौल है. ट्रम्प ने जन्मसिद्ध नागरिकता को खत्म करने का आदेश दिया है, जिसके तहत अमेरिका में पैदा हुए बच्चों को स्वतः नागरिकता मिल जाती थी. यह आदेश ट्रम्प की सख्त आप्रवासन विरोधी नीतियों का हिस्सा है. इस आदेश के लागू होने की अंतिम तिथि 20 फरवरी है. ग्रीन कार्ड के इंतजार में कई साल लगने के कारण, जन्मसिद्ध नागरिकता कई जोड़ों, खासकर अमेरिका में काम करने वाले भारतीयों के लिए एक सुरक्षा कवच थी. जन्मसिद्ध नागरिकता एक कानूनी सिद्धांत है जो बच्चों को उनके जन्म के देश के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, भले ही उनके माता-पिता की राष्ट्रीयता या आव्रजन स्थिति कुछ भी हो. जन्मसिद्ध नागरिकता की अंतिम तिथि से पहले जन्म करवाने की होड़ बहुत अधिक है, क्योंकि 20 फरवरी के बाद गैर-स्थायी निवासियों से पैदा हुए बच्चों को स्वतः नागरिकता नहीं मिलेगी.
इस डर से कि उनके बच्चों को अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगी, कई भारतीय माता-पिता अपने बच्चों को 20 फरवरी से पहले पैदा करवाने के लिए समय से पहले सी-सेक्शन करवा रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सी-सेक्शन करवाने वाली महिलाएं ज्यादातर अपनी गर्भावस्था के आठवें या नौवें महीने में हैं, हालांकि कुछ महिलाएं पूर्ण अवधि तक पहुंचने से अभी भी कुछ सप्ताह दूर हैं. न्यू जर्सी के एक मातृत्व क्लिनिक में काम करने वाली डॉ. एस.डी. रमा का कहना है कि उनके पास समय से पहले डिलीवरी के कई अनुरोध आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक महिला जो सात महीने की गर्भवती थी, अपने पति के साथ जल्द डिलीवरी करवाने के लिए आई थी, उसकी डिलीवरी मार्च में होने वाली थी.रिपोर्ट में एक 28 वर्षीय भारतीय कर्मी ने कहा कि यदि उनकी आश्रित पत्नी अंतिम तिथि के बाद जन्म देती है तो उनकी योजनाएं बाधित हो जाएंगी. एक एच-1बी वीजा धारक, जो अभी भी कुछ महीनों दूर माता-पिता बनने से दूर है, ने कहा, "हमने यहां आने के लिए बहुत त्याग किया. अब, ऐसा लग रहा है कि हमारे लिए दरवाजे बंद हो रहे हैं."
विश्लेषण | विवेक कौल
विदेशी निवेशक धंधा समेट क्यों रहे हैं भारत से
जनवरी में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा भारतीय शेयरों की लगातार बिक्री जारी रही. इस लेख को लिखे जाने तक, विदेशी निवेशकों ने महीने के दौरान ₹60,859 करोड़ या 7 बिलियन डॉलर के शेयरों की शुद्ध बिक्री की थी. इससे कई दिलचस्प बातें सामने आती हैं. आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ विवेक कौल ने यहां इसके कारण गिनवाए हैं.
पहला, विदेशी निवेशकों द्वारा बिक्री लगातार हो रही है. अक्टूबर से अब तक, उन्होंने लगभग ₹1.52 लाख करोड़ या लगभग 18 बिलियन डॉलर के भारतीय शेयर बेचे हैं. लेकिन इससे पूरी तस्वीर नहीं मिलती है. जनवरी 2022 से, विदेशी निवेशकों ने केवल 1.64 बिलियन डॉलर के शेयरों की शुद्ध बिक्री की है, जिसका मतलब है कि कुल मिलाकर, उन्होंने तब से कुछ भी नहीं खरीदा है. इसलिए, उनकी हालिया बिक्री को 2022 से पहले किए गए निवेशों, विशेष रूप से 2020 में जब शेयरों की कीमतें बहुत आकर्षक थीं, पर कुछ लाभ बुकिंग के रूप में देखा जा सकता है.
दूसरा, यह इतना सरल नहीं है कि विदेशी निवेशकों सिर्फ मुनाफा बुक कर रहे हैं. विदेशी निवेशकों की हिरासत में कुल इक्विटी संपत्ति सितंबर 2024 में 930 बिलियन डॉलर से थोड़ा ऊपर पहुंच गई थी. यह वह समय भी था जब व्यापक शेयर बाजार चरम पर था. नवंबर के अंत तक, यह आंकड़ा लगभग 851 बिलियन डॉलर तक गिर गया था, जो अपने चरम से लगभग 8.6% की गिरावट थी. विदेशी निवेशकों द्वारा जनवरी में लगातार बिक्री और शेयर बाजार में लगातार गिरावट के साथ, विदेशी निवेशकों की हिरासत में इक्विटी संपत्ति का नवीनतम आंकड़ा नवंबर के आंकड़े से कम होगा. इसका तात्पर्य है कि भारतीय शेयरों में विदेशी निवेशकों के निवेश का कुल मूल्य अब तक अपने सितंबर के चरम से 10% से अधिक गिर गया होगा.
तीसरा, इसका मतलब यह भी है कि विदेशी निवेशकों भारतीय शेयरों में अपना आवंटन कम कर रहे हैं क्योंकि 10% एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है. बेशक, उनकी लगातार बिक्री से उनके निवेश का मूल्य और गिर जाता है, जिससे शायद अधिक विदेशी निवेशकों बेचने पर विचार करने को मजबूर होते हैं. यह एक आत्म-पूर्ति भविष्यवाणी है.
चौथा, भारतीय शेयरों में इस कम आवंटन का एक प्रमुख कारण यह है कि विदेशी निवेशकों संयुक्त राज्य अमेरिका (US) में अधिक निवेश करना चाहते हैं. बहुत ही सरल शब्दों में, वे भारत से पैसा निकाल रहे हैं और अमेरिका में निवेश कर रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 'मेकिंग अमेरिका ग्रेट अगेन' (MAGA) की अपनी योजना के तहत जो कुछ भी वादा किया है, उससे अमेरिकी व्यवसायों और इसलिए, अमेरिका में सूचीबद्ध शेयरों को लाभ होने की संभावना है, और वे इस संभावना का लाभ उठाना चाहते हैं.
पांचवां, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना भी भारतीय शेयरों के लिए मददगार नहीं रहा है. 2024 के अधिकांश समय में, एक डॉलर की कीमत ₹83-84 थी. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सुनिश्चित किया कि विनिमय दर इसी संकीर्ण सीमा में रहे. लेकिन ऐसा लगता है कि यह बदल गया है. अक्टूबर के अंत में, एक डॉलर की कीमत ₹84 से थोड़ी अधिक थी. तब से, डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य कम हुआ है और इस लेख को लिखे जाने के समय एक डॉलर की कीमत लगभग ₹86.4 थी. मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि नए आरबीआई गवर्नर अपने पूर्ववर्ती की तुलना में डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य गिरने के विचार से अधिक सहज हैं.
अब, यह आरबीआई के रुख में इस बदलाव को समझाने की जगह नहीं है. फिर भी, यह बदलाव विदेशी निवेशकों के भारतीय शेयरों को देखने के तरीके को प्रभावित करता है. एक बहुत ही सरल स्तर पर, जब विदेशी निवेशक शेयर बेचते हैं, तो उन्हें रुपये में भुगतान किया जाता है. लेकिन जब उन्हें इस पैसे को विदेश भेजना होता है, तो उन्हें आमतौर पर अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है. इसे देखते हुए, विदेशी निवेशकों रुपये बेचते हैं और डॉलर खरीदते हैं. इससे विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये की अधिकता और डॉलर की कमी हो जाती है, जिससे डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्यह्रास होता है. अब, आरबीआई डॉलर बेचकर और रुपये खरीदकर रुपये के मूल्य की रक्षा कर सकता है, जो ऐसा लगता है कि वह हाल के दिनों में कर रहा है. लेकिन अब बदले हुए रुख के साथ, यह रुपये को और गिरने दे सकता है या शायद पहले की तरह उसी गति से हस्तक्षेप न करे, यह देखते हुए कि आरबीआई की डॉलर की आपूर्ति असीमित नहीं है.
गिरते मूल्य वाला रुपया विदेशी निवेशकों को नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि उन्हें रूपांतरण पर कम डॉलर मिलते हैं. मान लीजिए कि एक विदेशी निवेशक ₹84 करोड़ के शेयर बेचता है. यदि एक डॉलर की कीमत ₹84 है, तो रूपांतरण पर, विदेशी निवेशकों को $10 मिलियन (गणना की आसानी के लिए अन्य लागतों की अनदेखी करते हुए) मिलते हैं. यदि यह ₹86.4 है, जैसा कि इस लेख को लिखे जाने के समय है, तो विदेशी निवेशकों को लगभग $9.72 मिलियन मिलते हैं, जो लगभग 2.8% कम है.
इस परिदृश्य में, यदि डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य गिरने की आशंका प्रबल है, तो कुछ विदेशी निवेशक इस विदेशी मुद्रा नुकसान से बचने के लिए भारतीय शेयरों की अपनी होल्डिंग बेचना चाह सकते हैं. बेशक, यदि कई विदेशी निवेशक बेचने का फैसला करते हैं, तो आरबीआई के बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप न करने पर डॉलर के मुकाबले रुपया और नीचे गिरेगा. उस अर्थ में, यह गतिशीलता आत्मनिर्भर हो सकती है और वर्तमान में काम कर रही है.
छठा, कई भारतीय शेयरों का मूल्यांकन बहुत अधिक रहा है, इसलिए यह भी विदेशी निवेशकों को बेचने के लिए प्रेरित कर सकता है. इसके अलावा, लिस्टेड कंपनियों की बिक्री वृद्धि धीमी होती दिख रही है, जो उपभोक्ता मांग की समस्या को दर्शाती है. जुलाई से सितंबर 2024 तक, लगभग 3,400 सूचीबद्ध गैर-वित्तीय फर्मों की शुद्ध बिक्री में 2023 की इसी अवधि की तुलना में 3.9% की वृद्धि हुई. इसका मतलब है कि कॉर्पोरेट बिक्री वृद्धि प्रचलित खुदरा मुद्रास्फीति दर से कम थी, जो कभी भी अच्छा संकेत नहीं है. अक्टूबर से दिसंबर 2024 तक, 172 गैर-वित्तीय फर्मों के लिए बिक्री वृद्धि, जिन्होंने परिणाम घोषित किए हैं, 1.2% रही है. बेशक, यह एक बहुत छोटा नमूना है.
विदेशी निवेशकों द्वारा जारी बिक्री भारत में उच्च स्टॉक मूल्यांकन, एक कमजोर रुपया और धीमी कॉर्पोरेट वृद्धि पर चिंताओं को दर्शाती है. विदेशी निवेशकों के अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, भारतीय बाजार को संभावित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
आज़ाद हिंद फौज़ में हिंदू चाय और मुस्लिम चाय को मिला दिया गया था
इंडिया केबल ने सुभाष चंद्र बोस की 128वीं जयंती पर एस.एन. साहू का लेख लिया है. जिसमें बोस और हिंदू वादी प्रवृत्तियों, मुस्लिमों को लेकर उनकी राय पर चर्चा है.
साहू के मुताबिक “उनका सपना एक ऐसे भारत का था जो धर्म और जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर सभी को साथ लेकर चले. आज, जब हम देखते हैं कि कैसे भाजपा, आरएसएस और हिंदुत्ववादी संगठन बहुसंख्यकवाद के नाम पर धार्मिक आधार पर समाज को विभाजित कर रहे हैं, तो नेताजी का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है.”
ह्यू टोय की पुस्तक "द स्प्रिंगिंग टाइगर" में, नेताजी के जाति और धर्म के भेदभाव को मिटाने के संकल्प का उल्लेख है. भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) के एक सिपाही ने कहा था, "भारत में कई धर्म और भगवान हैं, लेकिन यहां सब कुछ 'जय हिंद' है." यह नारा, जो एकता का प्रतीक है, आज के भारत से बिल्कुल अलग है, जहां धार्मिक नारों का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी जैसे नेता 'जय बजरंग बली' का नारा लगाते हैं, और भाजपा नेता 'जय श्री राम' के नारे से दूसरे धर्मों के लोगों को डराते हैं.
एसएन साहू ने पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन के विशेष कर्तव्य अधिकारी के रूप में कार्य किया है. वे नेताजी की किताब "एन इंडियन पिलग्रिम : एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी" से उद्धरण निकालते हैं, जिनमें विभाजनकारी ऐतिहासिक बातों का खंडन किया गया है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने हमेशा देश के सार्वजनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, चाहे ब्रिटिश शासन से पहले हो या उसके दौरान. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू और मुस्लिम के बीच का विवाद अंग्रेजों द्वारा पैदा किया गया है, जैसे आयरलैंड में कैथोलिक-प्रोटेस्टेंट विवाद था. नेताजी का मानना था कि भारत में मुस्लिम शासन के बारे में बात करना गलत है क्योंकि उस समय शासन में हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे.
“इतिहास मुझे इस बात का समर्थन करेगा कि भारत में ब्रिटिश शासन के आगमन से पहले की राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन करते समय मुस्लिम शासन के बारे में बात करना एक गलत नाम है... चाहे हम दिल्ली में मुगल सम्राटों की बात करें या बंगाल के मुस्लिम राजाओं की, हम पाएंगे कि दोनों ही मामलों में प्रशासन हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा एक साथ चलाया जाता था, कई प्रमुख कैबिनेट मंत्री और जनरल हिंदू थे.”
इस ऐतिहासिक समझ ने बोस को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सभी धर्मों के लोगों को संगठित करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने वी.डी. सावरकर जैसे हिंदुत्व के आंकड़ों की ब्रिटिशों के साथ सहयोग करने के लिए आलोचना की, सावरकर के कार्यों को मोहम्मद अली जिन्ना के कार्यों के बराबर बताया. 17 अगस्त, 1942 को आजाद हिंद रेडियो के संबोधन में, गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के आठ दिन बाद, बोस ने कहा: "मैं श्री जिन्ना, श्री सावरकर, और उन सभी नेताओं से अनुरोध करूंगा जो अभी भी अंग्रेजों के साथ समझौता करने के बारे में सोचते हैं, कि वे एक बार यह महसूस कर लें कि कल की दुनिया में कोई ब्रिटिश साम्राज्य नहीं होगा."
बोस की समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता एक राष्ट्रीय गीत को अपनाने की उनकी इच्छा में स्पष्ट थी जो सभी भारतीयों के लिए उनके धार्मिक मत के बावजूद स्वीकार्य हो. उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर (एक राष्ट्रीय गान के लिए समीक्षा समिति के सदस्य के रूप में) से सहमति व्यक्त की, जब टैगोर ने बंकिम चंद्र के प्रतिष्ठित 'वंदे मातरम' के बारे में कहा - जिसका एक हिस्सा भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया है - कि इसका मूल "देवी दुर्गा की स्तुति है: यह इतना स्पष्ट है कि इस पर कोई बहस नहीं हो सकती है. बेशक, बंकिम अंत में दुर्गा को बंगाल के साथ अविभाज्य रूप से एकजुट दिखाते हैं, लेकिन किसी मुसलमान से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह देशभक्ति से दस-भुजाओं वाली देवी को स्वदेश (राष्ट्र) के रूप में पूजा करे."
लॉस एंजेलिस में आग: 31,000 लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया
एक तरफ अमेरिका के लॉस एंजेलिस के जंगलों में फैलती आग रुकने का नाम नहीं ले रही, दूसरी तरफ तीन दिन पहले नये राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प कहते पाए गये कि वे आग रोकने के लिए संघीय मदद रोकने पर विचार कर रहे हैं.
'द गार्डियन' की खबर है कि लॉस एंजेलिस के उत्तर में तेज़ी से फैल रही जंगल की आग के कारण स्थानीय निवासियों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने के आदेश दिए गए हैं. दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया, जहां पहले से ही सूखे का सामना किया जा रहा है, इस समय खतरनाक हवाओं के बीच सप्ताहांत में संभावित बारिश का इंतजार कर रहा है.
‘वाशिंगटन पोस्ट’ की खबर है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने विनाशकारी जंगल की आग से उबरने के प्रयासों के बीच कैलिफ़ोर्निया को संघीय सहायता रोकने की धमकी दी है. यह बयान उन्होंने अपने उद्घाटन के बाद पहली बार दिये गये साक्षात्कार में दिया. ट्रम्प ने फॉक्स न्यूज़ पर बुधवार रात शॉन हैनिटी के साथ साक्षात्कार के दौरान कहा- "मुझे नहीं लगता कि हमें कैलिफ़ोर्निया को कुछ भी देना चाहिए. जब तक वे पानी का ठीक से इंतजाम नहीं करते." ट्रम्प के इस बयान से कैलिफ़ोर्निया और संघीय सरकार के बीच तनाव और बढ़ सकता है, खासकर जब राज्य में जंगल की आग से भारी तबाही मची हो.
ट्रम्प ने कहा, बाइडन का खुद को माफ़ न करना एक गलती थी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सुझाव दिया है कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा पद छोड़ने से पहले खुद को माफ़ी न देना एक बड़ी गलती थी. फॉक्स न्यूज़ होस्ट सीन हैनिटी के साथ एक साक्षात्कार में ट्रम्प ने कहा- "यह आदमी सभी को माफी दे रहा था और आप जानते हैं, मजेदार बात, शायद दुखद बात यह है कि उसने खुद को माफी नहीं दी. और अगर आप देखें, तो यह सब उसी से जुड़ा था." साक्षात्कार के दौरान ट्रम्प ने यह भी खुलासा किया कि 2021 में व्हाइट हाउस छोड़ने के समय उन्हें खुद को माफी देने का विकल्प दिया गया था, लेकिन उन्होंने यह विकल्प ठुकरा दिया, क्योंकि उनका मानना था कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है.
चलते-चलते : ऑस्कर 'एमिलिया पेरेज़' ने 13 नामांकनों के साथ बनाया रिकॉर्ड
2025 के ऑस्कर नामांकनों में इतिहास रचते हुए, फिल्म 'एमिलिया पेरेज़' ने 13 नामांकन हासिल किए हैं. यह फिल्म इस साल की सबसे अधिक नामांकित फिल्म बनकर उभरी है. वहीं, 'द ब्रूटलिस्ट' और 'विकेड' ने 10-10 नामांकन हासिल कर चर्चा बटोरी है. 'एमिलिया पेरेज़' ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, और प्रमुख अभिनय श्रेणियों में नामांकन प्राप्त कर रिकॉर्ड बनाया है.
'द ब्रूटलिस्ट' और 'विकेड' जैसी फिल्मों ने तकनीकी श्रेणियों में शानदार प्रदर्शन किया है. भारत की डॉक्यूमेंट्री 'वॉयस ऑफ द हिल्स' को पर्यावरण संरक्षण पर आधारित अपनी सशक्त कहानी के लिए नामांकन मिला है. ऑस्कर 2025 में भारत की ओर से हिंदी भाषा की अमेरिकी फिल्म 'अनुजा' को सर्वश्रेष्ठ लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म श्रेणी में नामांकन मिला है. इस फिल्म की कार्यकारी निर्माता प्रियंका चोपड़ा और गुनीत मोंगा हैं. हालांकि, 'अनुजा' के अलावा भारतीय निर्देशक 'रीमा सेन' की फिल्म 'द डांस ऑफ होप' को भी इस श्रेणी में नामांकन मिला है. किसी भारतीय फीचर फिल्म को नामांकन नहीं मिला है. सूर्या और बॉबी देओल की फिल्म 'कंगूवा', रणदीप हुड्डा की 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' और अन्य भारतीय फिल्में नामांकन की दौड़ में जगह नहीं बना पाई.
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