24/03/2025 : सम्भल मस्जिद का सदर गिरफ्तार | डल्लेवाल पटियाला अस्पताल में | जलती झोपड़ी से स्कूल बैग लेकर भागती लड़की | इस्तांबुल में राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन | चुनावी बॉण्ड के भंडाफोड़ की कहानी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
अनशन कर रहे किसान नेता डल्लेवाल को चुपचाप पटियाला शिफ्ट किया, अनशन के 118 दिन
सम्भल हिंसा 4 माह बाद शाही मस्जिद का सदर गिरफ्तार
प्याज से निर्यात शुल्क हटा, लेकिन किसान संतुष्ट नहीं
बुलडोजर और जलती झोपड़ियों के बीच स्कूल बैग लेकर भागती लड़की
फॉक्सवैगन बनाम भारत सरकार : दिलचस्प हुई टैक्स की लड़ाई
इस्तांबुल के मेयर की गिरफ्तारी के बाद राष्ट्रपति एर्दोआन के ख़िलाफ सड़कों पर भीड़
जज के जलते घर में ‘नोटों की बोरियां’: न ख़त्म होते सवाल
पुलिस कमिश्नर ने जस्टिस उपाध्याय से संपर्क करने में 16 घंटे से ज्यादा का वक्त क्यों लिया?
दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर में 14 मार्च को लगी आग की घटना के बाद से लेकर अब तक क्या हुआ, उसे आप यहां देख सकते हैं. लेकिन पूरे घटनाक्रम से कुछ अनुत्तरित प्रश्न भी खड़े हो रहे हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि, “दिल्ली के पुलिस कमिश्नर ने मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय से संपर्क करने में 16 घंटे से ज्यादा का वक्त क्यों लिया? “द हिंदू” में कृष्णदास राजगोपाल की रिपोर्ट में बताया गया है कि घटना 14 मार्च की रात 11.30 बजे की है, जबकि पुलिस कमिश्नर ने अगले दिन 15 मार्च को शाम 4.50 बजे जस्टिस उपाध्याय से संपर्क किया. सवाल उठता है कि कमिश्नर ने जस्टिस उपाध्याय को रात में ही सूचना देना मुनासिब क्यों नहीं समझा? अगले दिन (15 मार्च को) सुबह भी नहीं, शाम को संपर्क किया गया? या फिर स्वयं पुलिस कमिश्नर को घटना की जानकारी विलंब से लगी? लेकिन, जानकारी मिलते ही उपाध्याय तुरंत हरकत में आ गए.
कहा जा रहा है कि आग की घटना और उसमें अधजले नोटों की कथित “बोरियां” मिलने की जांच से संबंधित दस्तावेजों और वीडियो का सर्वोच्च न्यायालय का प्रकाशन पारदर्शिता की दिशा में उठाया एक कदम है. इन रिकॉर्डों से हालांकि और भी सवाल उठते हैं, जिनकी जांच भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति कर सकती है.
दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय को दिल्ली पुलिस आयुक्त की भेजी रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर एक सुरक्षा गार्ड ने आग लगने के बाद सुबह ‘अधजला सामान’ और मलबा हटाते देखा था. हिंदी में एक अलग संदेश में कहा गया है कि आग वाले कमरे से 4-5 बोरियां अधजले नोट भी मिले थे. इसी तरह के दूसरे संदेश में सुरक्षा गार्ड ने कथित तौर पर देखी गई बातों का हवाला दिया है.
प्रकाशित दस्तावेज़ के संपादित अंश से गोपनीयता या निष्पक्षता प्रभावित न हो, इसलिए 15 मार्च की सुबह कमरे से सामान हटाने वाले व्यक्ति (व्यक्तियों) की पहचान नहीं बताई गई है. दस्तावेज यह नहीं बताते कि वीडियो और तस्वीरें किसने लीं, जिनमें नोटों के अवशेष दिख रहे हैं. वे यह नहीं बताते कि क्या पुलिस ने तुरंत कमरे को सील किया था? एक ऐसा उपाय, जिससे आग लगने और बुझाने के ऑपरेशन के बाद उस तक पहुँच रोकी जा सके.
न्यायमूर्ति वर्मा ने अपने जवाब में कहा है कि उन्हें उस कमरे में नकदी पड़ी होने की कोई जानकारी नहीं है. आग लगने के समय वह और उनकी पत्नी भोपाल में थे और 15 मार्च को ही वापस लौटे. उन्होंने कहा कि उनके परिवार के सदस्यों को न तो कोई ‘जली करेंसी की बोरियां’ दिखाई गईं और न ही सौंपी गईं. उन्होंने इस आरोप को पूरी तरह से खारिज कर दिया कि “हमने करेंसी हटाई है, न कथित हटाने की हमें जानकारी है. मेरे किसी भी कर्मचारी ने किसी भी रूप में कोई वस्तु, मुद्रा या नकदी नहीं हटाई." अंत में, जले नोटों के अवशेषों के बारे में और उन्हें जब्त किया गया या नहीं, इसका उल्लेख भी दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश की प्रकाशित रिपोर्ट में नहीं है. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख नहीं किया गया है कि आग लगने के कारणों की जांच चल रही है या सीसीटीवी फुटेज बरामद की गई है.
प्रकाशित रिकॉर्ड इस बात पर अलग-अलग रुख दिखाते हैं. पुलिस आयुक्त की रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के गार्ड रूम के बगल में स्थित स्टोर रूम को "बंद रखा जाता था". न्यायमूर्ति वर्मा ने जवाब दिया है कि स्टोर रूम का इस्तेमाल "आम तौर पर सभी लोग" अप्रयुक्त घरेलू सामान और साथ ही (केंद्रीय लोक निर्माण विभाग) सीपीडब्ल्यूडी सामग्री को संग्रहित करने के लिए करते थे. कमरे को मुख्य निवास से अलग कर दिया गया था. उन्होंने कहा, "यह निश्चित रूप से मेरे घर का कमरा नहीं था." दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश से संबद्ध रजिस्ट्रार-सह-सचिव, जिन्होंने 15 मार्च की रात न्यायमूर्ति वर्मा के साथ कमरे का दौरा किया था, ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि न्यायाधीश के निजी सचिव ने बताया कि कमरा बंद नहीं रखा गया था.
गहन जांच की सिफारिश करते हुए अपने समापन नोट में मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने बताया कि उनकी जांच में प्रथम दृष्टया बंगले में रहने वाले लोगों, नौकरों, माली और सीपीडब्लूडी कर्मियों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के कमरे में प्रवेश या पहुंच की संभावना सामने नहीं आई है. इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कमरा किसी बाहरी व्यक्ति के लिए सुलभ नहीं था.
दो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और कर्नाटक हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की तीन सदस्यीय समिति तथ्यों की गहन जांच करेगी. 21 मार्च को सीजेआई खन्ना ने पिछले छह महीनों के दौरान न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर तैनात सुरक्षा गार्डों और निजी सुरक्षा अधिकारियों का ब्योरा मांगा था. दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश ने यह पूछताछ पुलिस को भेज दी थी. सीजेआई ने न्यायमूर्ति वर्मा का कॉल विवरण और इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड (आईपीडीआर) भी मांगा था. कॉल विवरण एक पेन ड्राइव में सीजेआई को सौंप दिया गया है. न्यायमूर्ति वर्मा से कहा गया कि वे अपने फोन का निपटान न करें, न ही उससे कोई बातचीत, संदेश या डेटा डिलीट या संशोधित करें. इन सभी विवरणों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित जांच समिति के समक्ष विचारार्थ रखा जाएगा.
इस बहाने ‘एनजेएसी’ की चर्चा फिर चल पड़ी : यशवंत वर्मा के आवास से कथित नकदी बरामदगी की खबरों के बीच राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम, जिसे संसद ने 2014 में पारित किया था, लेकिन अगले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया था, पिछले शुक्रवार को संसद में चर्चा का विषय बना. राज्यसभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि उन्हें इस बात से चिंता होती है कि “यह घटना हुई और तुरंत सामने नहीं आई.” उन्होंने कहा कि “अगर इस समस्या का समाधान किया गया होता तो शायद हमें इस प्रकार के मुद्दों का सामना नहीं करना पड़ता. धनखड़ ने एनजेएसी का उल्लेख किया, जो न्यायिक नियुक्तियों में सुधार लाने के लिए बनाया गया था, लेकिन अदालत द्वारा खारिज कर दिया गया. उन्होंने कहा, “यह ऐतिहासिक कानून, जिसे इस संसद ने अभूतपूर्व सर्वसम्मति समर्थन के साथ पारित किया था, इस समस्या को बहुत गंभीरता से संबोधित करता.” इस मामले पर विभिन्न दलों ने प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस ने कहा कि इस घटना ने देश को झकझोर दिया है. कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने X पर लिखा, न्यायपालिका न्याय की अंतिम गढ़ थी. जब यहां विश्वास टूटता है तो नागरिक कहाँ जाएं?”
पाठकों से अपील
अनशन कर रहे किसान नेता डल्लेवाल को चुपचाप पटियाला शिफ्ट किया, अनशन का 118 दिन
किसानों की मांगों को लेकर आमरण अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का उपवास रविवार को 118वें दिन में प्रवेश कर गया, लेकिन पंजाब पुलिस ने उन्हें चुपचाप पटियाला के एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया है. जालंधर से नेता को वापस पटियाला लाने का कदम कई लोगों को हैरान कर रहा है, क्योंकि पटियाला वही जगह है, जहां किसानों ने शंभू और खनौरी के पास राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध करके आंदोलन किया था. “द ट्रिब्यून” में अमन सूद की खबर है कि सरकार ने शनिवार देर शाम डल्लेवाल को पटियाला के एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया. इस अस्पताल का प्रशासनिक कार्यभार पंजाब पुलिस के एक पूर्व अधिकारी संभाल रहे हैं, जो सेवानिवृत्ति के बाद यहां नियुक्त हुए हैं. डल्लेवाल को प्राइवेट अस्पताल में ले जाने से यूनियन के सदस्य भी आश्चर्यचकित हैं.
सम्भल हिंसा
4 माह बाद शाही मस्जिद का सदर गिरफ्तार
ज़फ़र अली ने आरोप लगाया था कि पुलिस की गोली से हुई थीं मौतें
न्यायिक जांच आयोग के सम्भल पहुंचने से पहले हुई गिरफ़्तारी
उत्तरप्रदेश में सम्भल की हिंसा के चार माह बाद शाही जामा मस्जिद कमेटी के सदर जफर अली को रविवार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. उन पर भीड़ को भड़काकर दंगा कराने का आरोप है. हालांकि जफर अली ने कहा, मैंने कोई हिंसा नहीं भड़काई है. पुलिस ने जफर अली को रविवार सुबह 11 बजे घर से उठाया और करीब 4 घंटे पूछताछ के बाद उनकी गिरफ़्तारी घोषित कर दी गई. ज़फ़र अली के बड़े भाई ताहिर अली ने आरोप लगाया कि पुलिस “जानबूझकर” उनके भाई को जेल भेज रही है, ताकि सोमवार (24 मार्च) को न्यायिक पैनल के सामने उनकी गवाही दर्ज होने से पहले ही उन्हें रोका जा सके. यह पैनल उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हिंसा की जांच के लिए नियुक्त किया गया है. ताहिर ने पत्रकारों को बताया, सुबह लगभग 11:15 बजे एक इंस्पेक्टर और मामले के जांच अधिकारी हमारे घर आए और कहा कि सीओ (सर्कल ऑफिसर) कुलदीप सिंह बात करना चाहते हैं. उन्होंने कल रात भी हमसे बात की थी. ज़फर को कल आयोग के सामने गवाही देनी थी और इसी वजह से वे जानबूझकर उन्हें जेल भेज रहे हैं. ताहिर ने कहा कि जफ़र प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए अपने इस बयान से पीछे नहीं हटेंगे कि सम्भल में पुलिस ने फायरिंग की थी और मौतें पुलिस की गोली से ही हुईं. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन लोगों को भड़का रहा है. वह तनाव खत्म करना नहीं चाहता. जितने भी वरिष्ठ अधिकारी हैं, वे सम्भल में तनाव पैदा कर रहे हैं.
बुलडोज़र और जलती झोपड़ियों के बीच स्कूल बैग लेकर भागती लड़की
उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर का एक वीडियो जमकर वायरल हो रहा है. वीडियो में कुछ झोपड़ी नजर आ रही हैं, जिनमें आग लग गई है. प्रशासन रेस्क्यू अभियान चला रहा है. इसी बीच एक बच्ची वहां से सुरक्षित स्थान के लिए भागती हुई नजर आती है. उसके हाथ में स्कूल बैग है. विपक्ष के कई नेताओं ने इस वीडियो को शेयर किया है. बहरहाल, जलती झोपड़ियों के बीच स्कूल बैग लेकर भागती बच्ची की पढ़ाई को लेकर प्रतिबद्धता की जहां जमकर तारीफ हो रही है, वहीं लोग प्रशासन की कार्रवाई की निंदा भी कर रहे हैं. वीडियो यहां है.
प्याज से निर्यात शुल्क हटा, लेकिन किसान संतुष्ट नहीं : केंद्र सरकार द्वारा 1 अप्रैल से प्याज पर 20% निर्यात शुल्क हटाने के फैसले का महाराष्ट्र सरकार ने स्वागत किया है, लेकिन किसान सभा ने इसे “बहुत देर से लिया गया कदम” बताते हुए इस समस्या के समाधान के लिए एक स्थाई नीति की मांग की है. किसान सभा ने इस कदम का स्वागत किया, लेकिन इसे "दुर्भाग्यपूर्ण" भी कहा, क्योंकि निर्यात प्रतिबंधों ने प्याज उत्पादकों को बुरी तरह प्रभावित किया है. सभा के एक सदस्य ने कहा कि अगर इससे हमारे प्याज किसानों को राहत मिलेगी तो हम इस कदम का स्वागत करते हैं. हालांकि, यह किसानों द्वारा झेले गए नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता.
ओडिशा में बारिश और ओलावृष्टि से 2 की मौत : पिछले 24 घंटों में ओडिशा के अलग-अलग हिस्सों में बारिश, आंधी और बिजली गिरने के कारण कम से कम दो लोगों की मौत हो गई, 67 अन्य घायल हो गए, और 600 से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गए. गंजम और पुरी जिलों में बिजली गिरने से दो लोगों की मौत हो गई, जबकि मयूरभंज जिले में ओलावृष्टि से 67 लोग घायल हो गए. इनमें से सात की हालत गंभीर है और उन्हें मयूरभंज जिला मुख्यालय अस्पताल में भर्ती कराया गया है. गंजम जिले से मिली रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को जिले के कई इलाकों में बारिश के साथ आंधी और बिजली गिरी. अचानक हुई इस बारिश से बेरहामपुर शहर के कई इलाकों में जलभराव हो गया. इधर, मयूरभंज जिले में तेज ओलावृष्टि से लगभग 600 घर क्षतिग्रस्त हो गए। जिला प्रशासन ने राहत और पुनर्वास अभियान शुरू कर दिया है, खासकर बिसोई और बांगिरिपोसी ब्लॉकों में, जो सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. जिला कलेक्टर हेम कांता साय ने बताया कि बिसोई में 18 और बांगिरिपोसी में 39 गांव प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा कि जिन लोगों के घर तबाह हो गए हैं, उन्हें प्लास्टिक शीट, पका हुआ भोजन और सूखा राशन दिया जा रहा है.
अंतिम संस्कार के लिए हिंदू धर्म अपनाने की शर्त : ओडिशा में चार आदिवासी ईसाइयों को अपने परिवार के मुखिया का अंतिम संस्कार करने की खातिर हिंदू धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया. यह मामला नबरंगपुर जिले के सियुनागुड़ा गांव का है. “द वायर” की खबर के मुताबिक वकीलों के छह-सदस्यीय जांच दल ने बालासोर में ईसाई समुदाय के नेताओं और ग्रामीणों से बातचीत में पाया कि चार ईसाइयों को अपने परिवार के मुखिया केसब सांता (70) को दफनाने के लिए हिंदू बनने पर मजबूर किया गया. हिंदू ग्रामीणों ने सियुनागुड़ा गांव में दफनाने की अनुमति देने के लिए यह शर्त रखी थी. केसब का निधन 2 मार्च 2025 को हुआ था. गांव में 30 हिंदू परिवारों में केवल तीन ईसाई परिवार हैं.
चीन ने लद्दाख में दो नई काउंटियां बनाईं : केंद्र सरकार ने शुक्रवार को संसद में बताया कि भारत को चीन द्वारा दो नई काउंटियां बनाने की जानकारी मिली है, जिनका कुछ हिस्सा लद्दाख में आता है. सरकार ने कहा कि इसका कूटनीतिक तरीके से कड़ा विरोध दर्ज कराया गया है. विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, भारतीय जमीन पर चीन के अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया गया है. नई काउंटियां बनाने से न तो इस इलाके पर भारत की स्थिति पर कोई असर पड़ेगा और न ही इससे चीन के अवैध और जबरन कब्जे को कोई वैधता मिलेगी. विदेश मंत्रालय से सवाल किया गया था कि क्या सरकार को होतान प्रांत में चीन के दो काउंटियां बनाने की जानकारी है, जिनमें लद्दाख से जुड़े भारतीय इलाके भी शामिल हैं? अगर हां तो सरकार ने इस मुद्दे का हल निकालने के लिए क्या रणनीतिक और कूटनीतिक उपाय किए हैं? इसके जवाब में विदेश राज्य मंत्री ने कहा कि भारत सरकार को इसकी जानकारी है. सरकार यह जानती है कि चीन सीमा के नजदीक बुनियादी ढांचे का विकास कर रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार सीमा के नजदीक वाले इलाके में बुनियादी ढांचे में सुधार पर खास ध्यान दे रही है, ताकि इन इलाकों में विकास तेज हो सके और साथ ही भारत की सामरिक और सुरक्षा जरूरतों को भी पूरा किया जा सके.
वैकल्पिक मीडिया
नौकरी से छुट्टी करने पर ख़ून से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को चिट्ठियाँ
'द मूकनायक' की खबर है कि रायपुर- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले के बाद सेवा से बर्खास्त किए गए बी.एड. प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों ने अपनी नौकरी बहाली और समायोजन की मांग को लेकर एक मार्मिक कदम उठाया है. तीन महीनों से शांतिपूर्ण आंदोलन करने के बाद भी जब उनकी मांगों पर सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो प्रभावित शिक्षकों ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और मंत्रिमंडल के सदस्यों को अपने खून से लिखे पत्र भेजकर न्याय की गुहार लगाई है. इस दौरान महिला शिक्षकों सहित सैकड़ों प्रभावित शिक्षकों ने धरना स्थल पर अपने खून से संदेश लिखे और सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की. उन्होंने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ नौकरियों के लिए नहीं, बल्कि न्याय, सम्मान और शिक्षा के अधिकारों की सुरक्षा के लिए है. नौकरी छूटने के बाद से ही प्रभावित शिक्षक लगातार आंदोलन कर रहे हैं. 18 दिसंबर 2024 से सैकड़ों प्रभावित शिक्षक रायपुर के तूता धरना स्थल पर प्रदर्शन करने लगे. उन्होंने सरगुजा से रायपुर तक 350 किलोमीटर की 'अनुनय यात्रा' निकाली, जिसमें उन्होंने दिन-रात चलकर अपनी मांगों को लेकर सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की. इसके अलावा, उन्होंने 'जल सत्याग्रह' किया, जिसमें शिक्षकों ने घंटों तक ठंडे पानी में खड़े रहकर अपनी पीड़ा जताई है.
कतर में हिरासत में हैं टेक महिंद्रा के क्षेत्रीय प्रमुख : टेक महिंद्रा के कतर और कुवैत क्षेत्र के प्रमुख वडोदरा के रहने वाले अमित गुप्ता को उनके परिवार के अनुसार, इस साल जनवरी से कतर स्टेट सिक्योरिटी ने संभावित डेटा चोरी के आरोप में दोहा में हिरासत में ले रखा है. मामले से परिचित लोगों ने शनिवार को बताया कि दोहा में भारतीय दूतावास गुप्ता को हर संभव सहायता प्रदान कर रहा है. कतर में भारतीयों को हिरासत में लिए जाने का यह 2022 के बाद से दूसरा मामला है. हालांकि, गुप्ता के खिलाफ़ आरोप जारी नहीं किए गए हैं. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गुप्ता की पत्नी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से हस्तक्षेप करने की मांग की है, जबकि उनके पिता जगदीश गुप्ता ने मामले में सहायता के लिए महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा से संपर्क किया है. इस बीच, उनके परिवार ने वडोदरा के भाजपा सांसद हेमंग जोशी से भी संपर्क किया है, जिन्होंने उनकी मदद का वादा किया है. बताया जाता है कि गुप्ता की मां पुष्पा गुप्ता कतर गई हैं और वहां भारतीय राजदूत से मुलाकात की है, लेकिन अभी तक कोई ‘सकारात्मक’ प्रतिक्रिया नहीं मिली है. अगस्त 2022 में, जासूसी के आरोप में आठ पूर्व भारतीय नौसेना कर्मियों को हिरासत में लिया गया था.
टैरिफ विवाद भारत में भी
फॉक्सवैगन बनाम भारत सरकार : दिलचस्प हुई टैक्स की लड़ाई
'रायटर्स' की रिपोर्ट है कि भारत सरकार ने मुंबई की एक अदालत में कहा है कि फॉक्सवैगन की उस मांग को मान लेना, जिसमें उसने 1.4 अरब डॉलर के टैक्स नोटिस को रद्द करने की बात कही है, "विनाशकारी परिणाम" ला सकता है और कंपनियों को जानकारी छिपाने व जांच में देरी करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. यह बात कोर्ट दस्तावेजों से सामने आई है. भारत में आयात शुल्क से जुड़ी अब तक की सबसे बड़ी टैक्स मांग 12 साल की फॉक्सवैगन की शिपमेंट की जांच के बाद आई है, जिसने विदेशी निवेशकों के बीच लंबी जांच प्रक्रियाओं को लेकर फिर से चिंता बढ़ा दी है. ऑटोमोबाइल कंपनी ने इस मामले को अपने भारत के कारोबार के लिए "जीवन और मृत्यु" का सवाल बताया है और वह मुंबई हाई कोर्ट में टैक्स विभाग से लड़ रही है. फॉक्सवैगन की भारतीय इकाई, स्कोडा ऑटो फॉक्सवैगन इंडिया पर आरोप है कि उसने ऑडी, वीडब्ल्यू और स्कोडा कारों के कुछ कलपुर्जों के आयात को गलत तरीके से वर्गीकृत किया, ताकि ऊंचे शुल्क से बचा जा सके. कंपनी की प्रमुख दलील यह है कि शिपमेंट की समीक्षा में टैक्स अधिकारियों की "निष्क्रियता और सुस्ती" के कारण देरी हुई. भारतीय टैक्स प्राधिकरण ने हाई कोर्ट में 78 पन्नों की जवाबी रिपोर्ट में कहा कि फॉक्सवैगन ने अपने आयात से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और डेटा छिपाकर खुद देरी की. टैक्स विभाग ने 10 मार्च की फाइलिंग में कहा कि अगर फॉक्सवैगन की दलील स्वीकार कर ली जाती है, तो इससे आयातकों को महत्वपूर्ण जानकारी दबाने और फिर यह दावा करने की छूट मिल जाएगी कि जांच के लिए टैक्स प्राधिकरण की समय-सीमा समाप्त हो चुकी है. सरकार ने अपनी फाइलिंग में कहा, "इसका विनाशकारी असर होगा."
भारत के कार बाजार में फॉक्सवैगन की हिस्सेदारी काफी छोटी है, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है. उसकी ऑडी ब्रांड, मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू जैसे प्रतिद्वंद्वियों से काफी पीछे है. अगर कंपनी दोषी पाई जाती है, तो उसे 2.8 अरब डॉलर का टैक्स बिल चुकाना पड़ सकता है, जिसमें जुर्माना और विलंबित ब्याज शामिल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी निवेशकों को सरल नियमों और कम नौकरशाही अड़चनों का वादा करके आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लंबी टैक्स जांच, जो सालों तक चलने वाले मुकदमे को जन्म दे सकती हैं, अब भी एक बड़ी चिंता बनी हुई है. भारत सरकार चाहती है कि अदालत फॉक्सवैगन को निर्देश दे कि वह न्यायाधीशों के समक्ष जाने के बजाय प्राधिकरण से संवाद करके टैक्स नोटिस का पालन करे और प्रक्रियाओं का पालन करे. टैक्स प्राधिकरण का आरोप है कि फॉक्सवैगन ने कई वर्षों में वाहन के पुर्जे अलग-अलग शिपमेंट में आयात किए, ताकि इसका पता न चले और टैक्स बचाया जा सके, बजाय इसके कि वह इन वस्तुओं को "पूरी तरह से नॉक्ड डाउन" (CKD) इकाइयों के रूप में घोषित करे, जिन्हें भारत में फिर से असेंबल किया जाना था. सीकेडी इकाइयों पर लगभग 30% से 35% तक टैक्स लगता है, जबकि वाहन के अलग-अलग कलपुर्जों पर लगभग 5% से 15% तक टैक्स लगता है.
गाजा में 19 लोगों की मौत, मारा गया हमास का नेता : 'द गार्डियन' की खबर कि रविवार को इज़रायली हमलों में गाजा के दक्षिणी हिस्से में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई, जिनमें हमास के एक वरिष्ठ राजनीतिक नेता भी शामिल हैं. इस बीच हमास से जुड़े यमन के ईरान समर्थित विद्रोहियों ने इज़रायल पर एक और मिसाइल दागी. इज़रायली सेना ने कहा कि मिसाइल को बीच में ही नष्ट कर दिया गया और कोई नुकसान नहीं हुआ. ये हमले इज़रायल द्वारा लेबनान के टायर शहर में शनिवार को किए गए हमले के बाद हुए, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और सात लोग घायल हो गए थे. इससे हिज़्बुल्लाह के खिलाफ एक साल तक चले संघर्ष के बाद हुई नाजुक युद्धविराम संधि को खतरा पैदा हो गया है इज़रायली सेना के प्रवक्ता ने कहा कि उसने "आतंकी कमांड मुख्यालय, आतंकवादी लड़ाकों, मिसाइल लांचरों और हिज़्बुल्लाह के हथियार भंडार" को निशाना बनाया था. लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस हमले में छह लोगों की मौत हुई, जिनमें एक बच्चा भी शामिल है. 28 लोग घायल हुए. लेबनान के रक्षा मंत्री, मिशेल मेनासा ने कहा कि देश अपनी संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए राजनयिक, राजनीतिक और सैन्य प्रयास जारी रखे हुए है.
इज़रायल में बढ़ता असंतोष : इधर इज़रायल में शनिवार को हजारों प्रदर्शनकारियों ने तेल अवीव और यरुशलम की सड़कों पर उतरकर प्रधानमंत्री नेतन्याहू की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों में 40 ऐसे लोग भी शामिल थे जो पहले हमास के कब्जे में थे. उन्होंने इज़रायल सरकार से "अंतहीन युद्ध" रोकने की अपील की और बाकी बंधकों की रिहाई के लिए वार्ता फिर से शुरू करने की मांग की. उन्होंने एक पत्र में लिखा- "यह पत्र खून और आंसुओं से लिखा गया है. युद्ध को रोकें और सभी बंधकों को वापस लाने के लिए समझौते को पूरा करें, भले ही इसके लिए युद्ध खत्म करना पड़े."
ज़ेलेंस्की ने की रूस पर 'नया दबाव' डालने की अपील : 'द गार्डियन' की खबर कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा है कि पिछले हफ्ते हुए आंशिक युद्धविराम के बावजूद, उनके देश में रूसी हमले "दैनिक वास्तविकता" बने हुए हैं. उन्होंने कीव पर रात भर हुए ड्रोन हमले का ज़िक्र किया, जिसमें कम से कम 3 लोग मारे गए और दक्षिणी यूक्रेनी शहर ज़ापोरिज्जिया पर हुए रूसी हमले का भी हवाला दिया, जिसमें शुक्रवार देर रात एक परिवार के तीन लोगों की मौत हो गई. ज़ेलेंस्की ने सऊदी अरब में युद्धविराम वार्ता से पहले, इन हमलों के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए, एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा- "ये हमले एक दैनिक वास्तविकता हैं. सिर्फ इस हफ्ते ही हमारे लोगों के खिलाफ 1,580 से अधिक हवाई बम, लगभग 1,100 हमला करने वाले ड्रोन और विभिन्न प्रकार की 15 मिसाइलें इस्तेमाल की गईं. इन सभी हथियारों में कम से कम 1,02,000 विदेशी घटक शामिल हैं. इसलिए, रूसी आतंकवादियों के खिलाफ प्रतिबंध और अधिक प्रभावी होने चाहिए। हर उस रास्ते को बंद किया जाना चाहिए, जिससे वे प्रतिबंधों को दरकिनार कर सकते हैं. इन हमलों और इस युद्ध को समाप्त करने के लिए मास्को पर नए फैसले और नया दबाव डालने की जरूरत है. हमें यूक्रेन और अपनी सेना को मजबूत करना होगा."
तुर्की में घमासान
इस्तांबुल के मेयर की गिरफ्तारी के बाद राष्ट्रपति एर्दोआन के ख़िलाफ सड़कों पर भीड़
‘द गार्डियन’ की खबर है कि इस्तांबुल की एक अदालत ने शहर के मेयर एकरेम इमामोग्लू को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार करने का आदेश देते हुए उन्हें पूर्व-परीक्षण हिरासत में भेज दिया गया है. यह घटना उसी दिन हुई जब उनसे समर्थक राष्ट्रपति पद के लिए अपनी पार्टी का नामांकन प्राप्त करने की उम्मीद थी. तुर्की के सबसे बड़े शहर के मेयर और राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन के प्रतिद्वंद्वी इमामोग्लू को एक आपराधिक संगठन का नेतृत्व करने, रिश्वतखोरी, कदाचार और भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजा गया है, साथ ही उनके दर्जनों कर्मचारियों और नगर निगम अधिकारियों को भी हिरासत में लिया गया. सर्कार ने आरोप लगाया है कि इस्तांबुल के मेयर और कम से कम चार अन्य लोगों पर एक अलग मामले में "एक सशस्त्र आतंकवादी समूह की सहायता करने" के आरोप भी लगे हैं, क्योंकि उन्होंने पिछले साल स्थानीय चुनावों से पहले एक वामपंथी राजनीतिक गठबंधन के साथ सहयोग किया था.
इधर इमामोग्लू ने अपने खिलाफ लगे आरोपों से इनकार किया है और पूछताछ के दौरान जांचकर्ताओं से कहा कि उनकी हिरासत ने "न केवल तुर्की की अंतरराष्ट्रीय साख़ को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि न्याय और अर्थव्यवस्था में जनता के विश्वास को भी हिला दिया है." उन्होंने कहा- "लोकतंत्र के रक्षक और लोगों की शक्ति में विश्वास रखने वाले के रूप में, मुझे भरोसा है कि सच की जीत होगी।" उनके प्रमुख प्रवक्ता मूरत ओंगुन, जिन्हें हिरासत में लिया गया है, उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा- "मुझे उस बदनामी पर गिरफ्तार किया गया, जिसके समर्थन में एक भी सबूत नहीं था!" इस सप्ताह की शुरुआत में इमामोग्लू की गिरफ्तारी के बाद तुर्की भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं. हर रात हजारों लोग सड़कों पर उतरते हैं और अक्सर पुलिस से झड़पें होती हैं. गृह मंत्री अली येरलीकाया ने घोषणा की कि इस्तांबुल नगर पालिका की जांच के तहत रात भर में 323 और लोगों को हिरासत में लिया गया, इसके एक दिन बाद उन्होंने बताया था कि विरोध प्रदर्शन करने के लिए 343 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. तुर्की अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है कि इमामोग्लू और नगर निगम अधिकारियों, व्यापारियों, और सीएचपी के दर्जनों अन्य सदस्यों के खिलाफ की गई व्यापक कार्रवाई राजनीतिक रूप से प्रेरित थी. हालांकि, इससे सरकार विरोधी भावना शांत नहीं हुई है. प्रदर्शनकारी हर रात विश्वविद्यालय परिसरों, सार्वजनिक चौकों और इस्तांबुल सिटी हॉल को घेरते हुए विरोध प्रतिबंध की अवहेलना कर रहे हैं. इमामोग्लू को उसी दिन पूर्व-परीक्षण हिरासत में भेजा गया, जिस दिन सीएचपी के 15 लाख सदस्यों ने एक प्राथमिक मतदान में भाग लिया, जिससे उनके राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी को औपचारिक रूप से समर्थन मिलने की उम्मीद थी. इस्तांबुल के मेयर पार्टी के एकमात्र राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं, जिससे यह मतदान समर्थन का प्रतीकात्मक प्रदर्शन बन गया. इमामोग्लू को लंबे समय से एर्दोआन को चुनाव में हराने में सक्षम एकमात्र प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव 2028 में होना है, लेकिन जल्दी चुनाव की उम्मीद जताई जा रही है. ओज़ेल ने इस सप्ताह की शुरुआत में इस्तांबुल सिटी हॉल के बाहर भारी भीड़ से कहा- "एकरेम इमामोग्लू का एकमात्र अपराध है सर्वेक्षणों में आगे होना."
पोप फ्रांसिस ने भीड़ से कहा - "सभी का धन्यवाद" : ‘द गार्डियन’ की खबर है कि पोप फ्रांसिस ने रविवार को अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले रोम के जेमेली अस्पताल के बाहर इकट्ठा हुए तीर्थयात्रियों की बड़ी भीड़ का अभिवादन किया. यह उनका पांच सप्ताह से अधिक समय में पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था. पोप ने अपने अस्पताल कक्ष की बालकनी से संक्षिप्त अभिवादन और आशीर्वाद दिया. इसके तुरंत बाद उनके संडे एंजेलस के पाठ को जारी किया गया. "सभी का धन्यवाद", 88 वर्षीय फ्रांसिस ने भीड़ से कहा. इसके बाद वे वेटिकन सिटी में स्थित कासा सांता मार्टा अपने घर लौट गए, जहां वे कम से कम दो महीने तक स्वास्थ्य लाभ करेंगे. फ्रांसिस, जिन्हें 14 फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और बाद में उनके श्वसन तंत्र में संक्रमण और डबल निमोनिया का पता चला, उनकी हालत में लगातार सुधार हो है. हालांकि, उनके शरीर को पूरी तरह से ठीक होने में अभी बहुत समय लगेगा.
आईपीएल के कमेंट्री पैनल से इरफ़ान पठान बाहर: पूर्व भारतीय ऑलराउंडर इरफान पठान को आईपीएल 2025 की कमेंट्री पैनल से हटा दिया गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रॉडकास्टर्स उनके खिलाफ इसलिए नाराज थे, क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर कमेंट्री प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल निजी खुन्नस निकालने के लिए किया. पठान, जो अपने रिटायरमेंट के बाद से आईपीएल और भारत के अंतरराष्ट्रीय मैचों में नियमित कमेंटेटर रहे हैं, शनिवार को कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) के बीच ओपनर मैच में नजर नहीं आए. “टाइम्स ऑफ इंडिया” की रिपोर्ट के अनुसार, पठान पर आरोप है कि उन्होंने कुछ खिलाड़ियों के खिलाफ अपनी निजी नाराजगी को ऑन-एयर व्यक्त किया और सोशल मीडिया पर भी उनके खिलाफ टिप्पणी की. एक प्रमुख खिलाड़ी ने कथित तौर पर ऑस्ट्रेलिया सीरीज के दौरान पठान की टिप्पणियों से नाराज होकर उनका नंबर ब्लॉक कर दिया. कई खिलाड़ियों ने शिकायत की कि उनकी कमेंट्री व्यक्तिगत आलोचना का मंच बन गई थी.
चीन ने आर्मी में “डीपसीक” का इस्तेमाल शुरू किया : चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने चीनी एआई टूल “डीपसीक” का उपयोग गैर-युद्ध कार्यों के लिए शुरू कर दिया है. खासकर सैन्य अस्पतालों में, जहां यह डॉक्टरों को उपचार योजनाएं बनाने में मदद करता है. इसके अलावा, इसे अन्य नागरिक क्षेत्रों में भी उपयोग किया जा रहा है.
हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार डीपसीक के ओपन-सोर्स बड़े भाषा मॉडल्स (LLMs) का उपयोग पीएलए के अस्पतालों, पीपुल्स आर्म्ड पुलिस और नेशनल डिफेंस मोबिलाइज़ेशन ऑर्गन्स में किया जा रहा है.
चलते-चलते
चुनावी बॉण्ड के फर्जीवाड़े से भंडाफोड़ तक
खोजी पत्रकार पूनम अग्रवाल ने काफी समय से भारत के चुनावों और इलेक्टोरल बॉण्ड में हो रहे फर्जीवाड़े पर अपने रिपोर्ताज लिखे हैं, जो अब किताब की शक्ल में ‘इंडिया इंक्ड : इलेक्शन्स इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी’ शीर्षक से ब्लूम्सबरी इंडिया ने प्रकाशित किये हैं. द टेलीग्राफ ने किताब का एक अंश यहां प्रकाशित किया है. उसके कुछ हिस्से-
सितंबर 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिका ने चुनावी बॉण्ड योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई शुरू की, जिसका परिणाम फरवरी 2024 के ऐतिहासिक फैसले में निकला. एडीआर ने वित्त अधिनियम, 2017 को रद्द करने की मांग की थी, जिसके तहत यह योजना लाई गई थी.
एडीआर की याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग समेत कई मंत्रालयों को नोटिस जारी किए, लेकिन मीडिया और जनता में इसकी चर्चा सीमित रही. विपक्षी दलों ने भी चुप्पी साधे रखी, सिवाय सीपीआई (एम) के. पार्टी के तत्कालीन महासचिव सीताराम येचुरी ने 2018 में अलग याचिका दायर कर चेतावनी दी कि यह योजना "भारतीय लोकतंत्र की नींव को कमज़ोर करेगी" और "क्विड प्रो क्वो" (एहसान के बदले एहसान) को बढ़ावा देगी. सीपीआई (एम) चुनावी बॉण्ड से दान लेने से इनकार करने वाली एकमात्र पार्टी थी.
मार्च 2018 में स्टेट बैंक ने बॉण्ड बेचने शुरू किए. इन बॉण्ड में छुपे अल्फ़ान्यूमेरिक कोड का पता अप्रैल 2018 में लगा, जिसके ज़रिए सरकार दानदाताओं पर नज़र रख सकती थी. एक विपक्षी नेता ने इसकी जानकारी के बाद संसद में मुद्दा उठाने का आश्वासन दिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. अधिकतर दलों ने बॉण्ड से मिलने वाले धन के आगे योजना के खतरों को नज़रअंदाज़ किया.
आरटीआई कार्यकर्ता अवकाशप्राप्त कमोडोर लोकेश बत्रा और अंजली भारद्वाज ने आरटीआई के ज़रिए जानकारियाँ जुटाईं. पता चला कि बॉण्ड छापने पर करदाताओं के 14 करोड़ रुपये खर्च हुए. 99.9% बॉण्ड 10 लाख और 1 करोड़ रुपये के थे, जिससे पता चलता है कि दानदाता बड़ी कंपनियाँ थीं. चुनाव आयोग ने भी योजना पर आपत्ति जताई.
एडीआर ने 2019 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बॉण्ड की बिक्री रोकने की मांग की. कोर्ट ने सभी दलों को चुनाव आयोग के पास दानदाताओं का विवरण सीलबंद लिफ़ाफ़े में जमा करने का आदेश दिया. 105 दलों ने विवरण जमा किए, लेकिन आरटीआई से पता चला कि इनमें से कई दल चुनावी वोट शेयर के मानदंड पर खरे नहीं उतरते थे. 2024 में जारी आँकड़ों ने साबित किया कि बीजेपी को 95% दान चुनावी बॉण्ड से मिला. विपक्ष की निष्क्रियता, मीडिया की उदासीनता और जनता की अनभिज्ञता ने इस योजना को फलने-फूलने दिया. एडीआर, सीताराम येचुरी और कार्यकर्ताओं के प्रयासों ने ही इस "वित्तीय अँधेरे" को उजागर किया.
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