24/04/2025 : पहलगाम से लोगों की आपबीती | अमित शाह के बयान और जवाबदेही | पाकिस्तान से कट्टी | उर्दू प्रेस के काले पन्ने, लोगों के कैंडल मार्च | सुलगता मणिपुर| प्रज्ञा के लिए सज़ा ए मौत की मांग
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
“सरकार की गारंटी पर भरोसा करके हमारे बच्चे कश्मीर गए थे”
सैयद आदिल हुसैन : पहलगाम का वह मजदूर हीरो, जो आतंकी कोशिश को नाकाम करने में शहीद हो गया
‘मैं सिर्फ घायलों को बचाने के बारे में सोच रहा था’
नजाकत अली ने बचा ली 11 लोगों की जान
कुछ ही दिन पहले अमित शाह ने कहा था- ‘जम्मू-कश्मीर में आतंकी तंत्र पंगु हो गया है’
कश्मीर हमले के बाद भारत ने की पाकिस्तान के साथ संबंधों में कटौती की घोषणा
पहलगाम आतंकी हमले पर तृणमूल का केंद्र पर तीखा हमला, खुफिया विफलता के लिए अमित शाह को ठहराया जिम्मेदार
पहलगाम आतंकी हमले के पीछे प्रतिबंधित संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’
बिहार : एनडीए में नेतृत्व पर विवाद और असंतोष बढ़ा, नीतीश कमजोर
“सरकार की गारंटी पर भरोसा करके हमारे बच्चे कश्मीर गए थे”
"सरकार द्वारा दी गई सुरक्षा की गारंटी पर भरोसा करके हमारे बच्चे कश्मीर गए थे. अगर आपने उन्हें बताया होता कि वहां की स्थिति सुरक्षित नहीं है, तो मैं उन्हें कभी नहीं भेजती," मंजूनाथ राव की सास गीता ने शिवमोग्गा के जिला प्रभारी मंत्री मधु बंगारप्पा के सामने दुख व्यक्त करते हुए कहा. मंजूनाथ राव की मंगलवार को पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
बुधवार सुबह जिला प्रभारी मंत्री मधु बंगारप्पा, विधायक बेलूर गोपालकृष्ण, एस.एन. चन्नाबसप्पा, पूर्व मंत्री किम्माने रत्नाकर, डिप्टी कमिश्नर गुरुदत्त हेगड़े और एसपी जी.के. मिथुन कुमार ने मंजूनाथ राव के निवास पर जाकर परिवार को सांत्वना दी.
गीता ने अपना दर्द व्यक्त करते हुए कहा कि मंजूनाथ ने अपनी मां सुमति को यह कहकर समझाया था कि कुछ पड़ोसी हाल ही में कश्मीर होकर आए हैं और उन्होंने बताया कि अब वहां की स्थिति पहले जैसी नहीं, बल्कि सुरक्षित है.
इस दौरान मधु बंगारप्पा ने मंजूनाथ राव की बहन दीपा से चर्चा कर उन्हें राज्य सरकार द्वारा मंजूनाथ राव के पार्थिव शरीर को शिवमोग्गा लाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी.
मधु बंगारप्पा ने मीडिया से कहा, "इस समय कहने के लिए कुछ नहीं है. ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन हो गई. हमें सुनिश्चित करना है कि आगे ऐसा न हो. सरकार मंजूनाथ राव के परिवार के साथ है."
आपबीती
‘मैं सिर्फ घायलों को बचाने के बारे में सोच रहा था’
"जब मैं वहां पहुंचा, तो मैंने देखा कि घायल और लाशें चारों ओर बिखरी थीं. मैंने घायलों को बचाया." यह कहना है वहीद का, जो स्थानीय टट्टूवालों के संगठन के प्रमुख हैं. उन्होंने फोन पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आतंकियों द्वारा गोलाबारी के बाद उन्होंने लगभग 10 घायलों को टट्टुओं पर और एक को अस्थायी स्ट्रेचर पर वहां से निकाला. यह हमला कश्मीर के लोकप्रिय पर्यटन स्थल बैसरन (पहलागाम) में हुआ. घटना के बाद एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक महिला स्थानीय लोगों से अपने पति को बचाने की गुहार लगाती दिख रही है. “हम भेलपुरी खा रहे थे, तभी वे आए. उन्होंने मेरे पति को गोली मार दी. कृपया उन्हें बचाइए!” वीडियो रिकॉर्ड कर रहा व्यक्ति उसे सांत्वना देता है और वहीद की ओर भेजता है. वहीद बताते हैं, “जब मैं वहां पहुंचा, तो स्नैक बेचने वाले, फोटोग्राफर और बाकी लोग भाग चुके थे. वहां सिर्फ घायल और पीड़ितों के रिश्तेदार ही रह गए थे.” वहीद और कुछ अन्य लोगों ने घायलों को बचाने में एक घंटे से अधिक समय लगाया, लेकिन उन्हें मृतकों के शव वहीं छोड़ने पड़े, ताकि पुलिस और सुरक्षा बल उन्हें ले सकें. “मेरे पास ज्यादा लोग नहीं थे. मैं सिर्फ घायलों को बचाने के बारे में सोच रहा था.” वहीद ने कहा.
यह हमला ऐसे समय हुआ है जब कश्मीर का पर्यटन अर्थव्यवस्था चरम पर थी - 2024 में रिकॉर्ड 2.35 करोड़ पर्यटक आए, जिनमें 65,000 विदेशी शामिल थे. स्थानीय व्यवसायियों को अब डर है कि यह घटना इस नाजुक आर्थिक पुनरुत्थान को बर्बाद कर सकती है. ऐसा हमला पहलागाम में आखिरी बार साल 2000 में हुआ था, जब 30 से अधिक यात्रियों की हत्या कर दी गई थी, लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से गैर-स्थानीयों, अल्पसंख्यकों और अब पर्यटकों को निशाना बनाए जाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है.
सैयद आदिल हुसैन : पहलगाम का वह मजदूर हीरो, जो आतंकी हमले को नाकाम करने में शहीद हो गया
जब सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक आतंकवाद का धर्म तय करने में लगा है, तब उनके नैरेटिव के खिलाफ अपनी जान देकर एक अकेला मजदूर खड़ा हो गया. उनका नाम है सैयद आदिल हुसैन शाह. आदिल को आतंकवादियों ने उस समय गोली मार दी, जब वे पर्यटकों को बचाने के लिए आतंकवादियों से अकेले भिड़ गए थे और उनसे बंदूक छीनने की कोशिश कर रहे थे. मजदूर शाह पर्यटकों को घोड़े पर लादकर लाते थे. परिवार में उनकी पत्नी, बच्चे और बुजुर्ग माता-पिता शामिल हैं. उनके पिता सैयद हैदर शाह ने एएनआई को बताया, “मेरा बेटा कल ही काम करने के लिए पहलगाम गया था और दोपहर करीब 3 बजे हमले के बारे में पता चला. हमने उसे फोन किया, लेकिन उसका फोन बंद था. बाद में शाम 4.40 बजे उसका फोन चालू हुआ, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. हम पुलिस स्टेशन पहुंचे और तब पता चला कि हमले में उसे गोली लगी है.” शाह का परिवार अब भी गमज़दा है और न्याय की गुहार लगा रहा है. उनकी मां अपने बेटे की मौत से दुखी तो हैं ही, साथ ही उनको इसकी भी चिंता सता रही है कि अब परिवार का क्या होगा. शाह उस परिवार में अकेले कमाने वाले व्यक्ति थे. शाह का अंतिम संस्कार बुधवार को किया गया. इसमें जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी शामिल हुए. अब्दुल्ला ने हमले की निंदा की और मजदूर शाह के परिवार के सदस्यों से मुलाकात कर उन्हें हर संभव मदद का वायदा किया.
नजाकत अली ने बचा ली 11 लोगों की जान : सैयद की ही तरह नजाकत अली ने भी 11 लोगों की जान बचाई है. पत्रकार कृष्ण कांत ने अपने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा - छत्तीसगढ़ के 11 लोग पहलगाम में थे. आतंकी हमला हुआ तो एक कपड़ा व्यापारी नजाकत अली इनके लिए फरिश्ता बन गया. जब हमला हुआ और लोग इधर-उधर भागने लगे तो नजाकत अली ने सूझ-बूझ से इन 11 लोगों को वहां से सुरक्षित निकाल लिया और होटल की तरफ ले गए. छत्तीसगढ़ के कुलदीप स्थापक, शिवांश जैन, हैप्पी बधावान, अरविंद अग्रवाल अपनी-अपनी पत्नी और बच्चों के साथ छुट्टियां मनाने कश्मीर पहुंचे थे. नजाकत अली कपड़ा बेचने छत्तीसगढ़ जाते हैं. वे इन लोगों को पहचानते थे और वे साथ में ही घूम रहे थे. अब सभी लोग कश्मीर से सुरक्षित छत्तीसगढ़ के लिए रवाना हो चुके हैं.
कुछ ही दिन पहले अमित शाह ने कहा था- ‘जम्मू-कश्मीर में आतंकी तंत्र पंगु हो गया है’
पहलगाम आतंकी हमला गृह मंत्री अमित शाह के इस महीने की शुरुआत में किए गए उस दावे के कुछ समय बाद हुआ है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी पारिस्थितिकी तंत्र को पंगु बना दिया गया है. शाह ने जम्मू-कश्मीर के अपने दौरे के दौरान कहा था, “मोदी सरकार के निरंतर और समन्वित प्रयासों के कारण, जम्मू-कश्मीर में हमारे देश के प्रति शत्रुतापूर्ण तत्वों द्वारा पोषित पूरे आतंकी पारिस्थितिकी तंत्र को पंगु बना दिया गया है.”
वरिष्ठ नेता कुणाल घोष ने कहा, "यह सुरक्षा और खुफिया तंत्र की एक बड़ी व अक्षम्य विफलता है. अमित शाह को इस्तीफा देना चाहिए." सांसद महुआ मोइत्रा ने एक्स (X) पर लिखा, "जम्मू-कश्मीर को लेकर ‘सब ठीक है’ की झूठी कहानी बंद कीजिए. ठोस कार्रवाई कीजिए, ताकि मासूम लोगों की जानें न जाएं." पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए सवाल उठाया, "जब आतंकियों की गतिविधियों की सामान्य जानकारी थी तो उन्हें पहलगाम तक कैसे पहुंचने दिया गया? क्या यह फिर से पुलवामा जैसी लापरवाही नहीं है?" उन्होंने भी गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग की. राज्यसभा में तृणमूल की डिप्टी लीडर सागरिका घोष ने भी शाह से पांच सीधे सवाल पूछते हुए ‘कश्मीर सामान्य है’ की उनकी लाइन पर सवाल उठाए. इस पर भाजपा के बंगाल अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने तृणमूल कांग्रेस पर शोक की घड़ी में "राजनीति करने" का आरोप लगाया है. सिद्धारमैया ने कहा - "मुझे लगता है कि यह हमला एक योजनाबद्ध साजिश है. किसी भी जाति या धर्म के हों, आतंकवादी हमला एक जीवन की हत्या है और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं. यह केंद्र की खुफिया एजेंसियों की विफलता है. पहले भी पुलवामा हमला हो चुका है. मैं सुरक्षा के मामले में किसी समझौते के पक्ष में नहीं हूं. आतंकियों को खत्म किया जाना चाहिए." बहरहाल यह घटना कश्मीर में सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठा रही है, खासकर उस वक्त जब सरकार बार-बार दावा करती रही है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में स्थिति सामान्य है.
एएनआई ने ऑडियो म्यूट कर दिया : जब शोकाकुल परिवारों ने श्रीनगर में गृह मंत्री से सवाल पूछने की हिम्मत की, तो समाचार एजेंसी एएनआई ने चुप्पी साध ली – उनके ऑडियो को म्यूट कर दिये गये. न्यू इंडिया के सबसे जोरदार लोकतंत्र में, सच अब फुसफुसाता है… और सवाल खामोश हो जाते हैं. भीषण आतंकवादी हमले के बाद हजारों पर्यटकों ने कश्मीर छोड़ना शुरू कर दिया है और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि पर्यटकों का पलायन देखना ‘दिल दहला देने वाला’ है. एक यूजर रोशन राय ने लिखा - 'जैसे ही पीड़ित परिवारों ने अमित शाह से सवाल पूछने और जवाबदेही मांगने की कोशिश की, एएनआई ने उनका ऑडियो म्यूट कर दिया. शोक में डूबे परिवारों की आवाज़ को सिर्फ इसलिए सेंसर कर देना कि अपने आकाओं की छवि बचाई जा सके - यह सबसे शर्मनाक और निंदनीय बात है जो कोई मीडिया संस्थान कर सकता है.'
कश्मीर समेत देशभर में निकले कैंडल मार्च : हमले के विरोध में देशभर के कई इलाकों में कैंडल मार्च निकालकर नागरिकों ने व्यवस्था के खिलाफ अपना आक्रोश जाहिर किया है. पहलगाम समेत कश्मीर के कई इलाकों में व्यापारियों और स्थानीय लोगों ने भी घटना के विरोध में कैंडल मार्च निकालकर इसे कश्मीर पर चोट बताया है. व्यापारियों के लिए इस तरह की घटनाएं, सीधे उनके कारोबार को प्रभावित करती है. देश के अन्य हिस्सों मसलन रांची, लखनऊ, कोटा, चंबा, देहरादून, रायपुर समेत कई जगहों पर लोगों ने मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित की है. विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी इस घटना पर दुख जताते हुए श्रद्धांजलि दी है. 'ग्रेटर कश्मीर' की खबर है कि सुरक्षा एजेंसियों ने दक्षिण कश्मीर के पहलगाम के पास हुए आतंकी हमले में शामिल तीन संदिग्ध आतंकियों के स्केच जारी किए. अधिकारियों ने तीनों संदिग्धों को पाकिस्तानी नागरिक करार दिया है और बाकायदा संदिग्धों के नाम भी जारी किए हैं, जो हैं - आसिफ फौजी, सुलेमान शाह और अबू तल्हा. इनके कोड नाम भी बताए गए हैं.
मीडिया और स्थानीय लोगों का गुस्सा : कश्मीर में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के विरोध में जुटे स्थानीय कश्मीरियों का गुस्सा इस दौरान टीवी मीडिया को लेकर भी दिखा. स्थानीय लोग इस दौरान रिपब्लिक भारत के विरोध में नारे लगाते नजर आए जबकि आज तक को लेकर भी स्थानीय लोगों में रोष देखा गया. लोगों ने आरोप लगाया है कि अमन की बातें करने के दौरान लाइव फीड रोक ली गई, जबकि नारेबाजी के दौरान मीडिया ने लाइव जारी रखा. इस दौरान कश्मीरियों ने गोदी मीडिया हाय-हाय के नारे भी लगाए.
पाकिस्तान के साथ संबंधों में कटौती की घोषणा
'रायटर्स' की रिपोर्ट है कि कश्मीर में एक पर्यटन स्थल पर संदिग्ध आतंकवादियों द्वारा 26 नागरिकों की हत्या के एक दिन बाद, भारत ने बुधवार को पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को कमजोर करने के लिए कई कड़े कदमों की घोषणा की. यह हमला पिछले दो दशकों में देश में नागरिकों पर हुआ सबसे भीषण हमला बताया जा रहा है. विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने एक प्रेस वार्ता में बताया कि इस हमले के "सीमापार संबंधों" को सुरक्षा कैबिनेट की विशेष बैठक में उजागर किया गया, जिसके बाद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का निर्णय लिया गया. मिसरी ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया गया है. यह संधि सिंधु नदी प्रणाली के जल को दोनों देशों के बीच बांटने की अनुमति देती थी. इसके अलावा नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात रक्षा सलाहकारों को "अवांछित व्यक्ति" घोषित कर दिया गया है और उन्हें भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया है. इसके साथ ही इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग के स्टाफ की संख्या 55 से घटाकर 30 कर दी जाएगी. भारत और पाकिस्तान के बीच मुख्य सीमा चौकी (बॉर्डर चेकपोस्ट) को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है और पाकिस्तानी नागरिकों को विशेष वीजा के तहत भारत यात्रा की अनुमति नहीं दी जाएगी. इंटरनेशनल मीडिया ने भी पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर व्यापक कवरेज की है.
पहलगाम हमले से कोई संबंध नहीं : पाकिस्तान
इस्लामाबाद ने पहलगाम हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह ‘पर्यटकों की जान जाने से चिंतित है’. रेजाउल लस्कर की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि ‘इससे पाकिस्तान का कोई संबंध नहीं है’ और ‘यह सब घरेलू स्तर पर हुआ है. भारत में चीनी राजदूत जू फेइहोंग और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने भी हमले पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि बीजिंग ‘आतंकवाद के सभी रूपों’ की निंदा करता है.
क्या है ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’?
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) जो लश्कर-ए-तैयबा का एक सहयोगी संगठन है, उसने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के पहलागाम में हुए आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी ली है. चूंकि यह क्षेत्र मोटर वाहन से पहुंचने योग्य नहीं है, आतंकियों ने इसी का फायदा उठाते हुए पर्यटकों को निशाना बनाया, ताकि सुरक्षाबलों को पहुंचने में देरी हो. हालांकि सुरक्षा एजेंसियों ने टीआरएफ के दावे की पुष्टि नहीं की है, फिर भी संगठन ने बयान में कहा कि हमला उन 85,000 डोमिसाइल सर्टिफिकेट्स के खिलाफ “बदले की कार्रवाई” था, जो गैर-स्थानीय लोगों को जारी किए गए हैं. संगठन ने इसे "जनसांख्यिकीय बदलाव की राह" बताते हुए धमकी दी है कि "जो लोग अवैध रूप से बसने की कोशिश करेंगे, उनके खिलाफ हिंसा की जाएगी." टीआरएफ यानी द रेजिस्टेंस फ्रंट की स्थापना अक्टूबर 2019 में केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 को रद्द कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर देने के कुछ ही समय बाद हुई थी. टीआरएफ खुद को कश्मीरी प्रतिरोध के लिए लड़ने वाला स्वतंत्र संगठन बताता है, लेकिन भारत के गृह मंत्रालय ने इसे लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन बताया है. 2023 में इसे गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधित किया गया. गृह मंत्रालय के अनुसार टीआरएफ ऑनलाइन माध्यमों से युवाओं की भर्ती, आतंकी प्रचार, घुसपैठ, और पाकिस्तान से हथियारों व नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे कृत्यों में शामिल रहा है.
पर्यटन कारोबार को लगेगी चोट, एयरलाइंस को दिखा आपदा में अवसर
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024 में 35 लाख पर्यटक कश्मीर आए, जो 2018 के 8.31 लाख से कहीं अधिक है. यह उछाल भारत के मध्यम वर्ग के कोविड के बाद बढ़े यात्रा खर्च को दर्शाता है. इस बीच, एयरलाइन की कीमतें आसमान छू रही हैं. नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एयरलाइनों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि श्रीनगर मार्ग पर हवाई किराए में कोई उछाल न हो, और एयरलाइंस शहर के लिए अतिरिक्त उड़ानें संचालित करेंगी. नागरिक उड्डयन मंत्री के राममोहन नायडू ने सभी एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ एक जरूरी बैठक की और श्रीनगर मार्ग पर उछाल मूल्य निर्धारण के खिलाफ एक सख्त सलाह जारी की, जिसके बाद एयरलाइंस ने और उड़ानें जोड़ दीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों ने इस पर्यटन उछाल को उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में गिना था, लेकिन मंगलवार को हुए आतंकी हमले, जिसमें कम से कम 26 पर्यटकों की हत्या कर दी गई और कई घायल हुए, ने कश्मीर के पहलगाम इलाके में दहशत का माहौल बना दिया है. पर्यटन ऑपरेटर भारी संख्या में बुकिंग रद्द होने की बात कह रहे हैं और एयरलाइंस श्रीनगर से अतिरिक्त उड़ानें चला रही हैं.
विश्लेषण
थोड़ा और झांक लेना चाहिए हमें गिरेबानों में
निधीश त्यागी
इस शोर में जो बातें अलक्षित रह गईं, कल उनमें से कुछ का जिक्र किया था. आज कुछ और जोड़े दे रहा हूँ. शायद थोड़ा शोर कम हो और रोशनी थोड़ी ज्यादा.
जैसी उम्मीद थी, वैसा ही हो रहा है. कल पहलगाम की दुर्भाग्यपूर्ण आतंकवादी घटना सोशल मीडिया के रणबांकुरों के लिए वर्चुअल लिंचिंग का मौक़ा बन गई है. अब तो जिस तरह की बातें हमारे व्हाट्सएप ग्रुप, सोशल मीडिया के टिप्पणीकार करते हैं, जिनमें हमारे भाई लोग भी शामिल हैं, और रिश्तेदार भी और बहुत से ऐसे पत्रकार भी, जिनके साथ मैंने काम किया है, भावुकता की ओवरडोज़ का शिकार होकर सांप्रदायिक नफरत और हिंसा के तरफ़दार हो रहे हैं. ये वे लोग हैं, जिन्हें उन लोगों पर शर्म नहीं आती है, जो बिलकिस बानो के बलात्कारियों को माला पहना रहे हैं, न गौरक्षा के नाम पर इंसानों के मारे जाने पर, न ही हमारे उन सड़कछाप नेताओं पर, जो खुलेआम भद्दी भाषा में बेतुके विचारों को करंसी दे रहे हैं, न ही बलात्कारी और हत्यारे बाबाओं को पैरोल मिलने पर और न ही एक फ्रॉड के शरबत जिहाद की बात करने पर.
पर आइये, थोड़ा शोर से बाहर निकलते हैं.
इस घटना की एक पीड़िता बता रही है, कि धर्म पूछा और फिर गोली मार दी. पीड़िता के साथ सहानुभूति होनी ही चाहिए. उनका परिवार वहां छुट्टी मनाने गया था और किसे उम्मीद रही होगी कि वे अपने परिवार के सदस्यों को खोकर वहां से लौटेंगी. भयावह है. वह खासी परेशानी में यह सब कह रही थीं, अगर आपने भी वह वीडियो देखा हो तो. सदमे में, दुख में, विह्ववलता में. आतंकियों के निशाने पर हिंदू पुरुष सैलानी थे. औरतों और बच्चों को उन्होंने छोड़ दिया. वह परेशान थी, जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.
हालांकि मृतकों की सूची में मुसलमान नाम भी है. और, इन सैलानियों को बचाने, उन्हें वहां से सुरक्षित निकालने, अस्पताल में उनकी दवा-पट्टी करने, उन्हें अपने खच्चरों पर लादकर उस जगह से बाहर ले जाने वाले लोग कौन थे. कौन थे, जो इन सैलानियों की सलामती के लिए काम कर रहे थे. क्या वे भी आतंकवादी थे? क्या वे हिंदू थे? थोड़ा सोचने की बात है. हाल में जब कश्मीर में तूफान आया था, तो जिन लोगों ने अपने घर, इमारतें, पूजा स्थल खोल दिये थे, वे कौन लोग थे?
कश्मीर में जो लोग इस घटना के बाद मोमबत्तियां लेकर शांति मार्च निकाल रहे हैं, वे कौन हैं? प्रख्यात मनोविश्लेषक सुधीर कक्कड़ की भारत की सांप्रदायिकता पर एक किताब है 'कलर्स ऑफ वॉयलेंस.' करीब तीस साल पहले आई थी. उसके आखिर में साध्वी ऋतंभरा के भड़काऊ भाषण का पैरा दर पैरा विश्लेषण था. इसमें ऋतंभरा ने पाकिस्तान से बात शुरू की, फिर भारत को महान बताया, फिर राष्ट्र और धर्म को लेकर मुसलमानों को दोयम साबित करने की कोशिश की, लोगों ने जय श्री राम के जयकारे लगाए, फिर वे मुसलमानों के लिए अपशब्दों पर आ गईं. फिर आपके और मेरे पड़ोस में रह रहे मुसलमान पर. हिंदू खतरे में आ गये. जय श्री राम के नारे लगने लगे. मस्जिद टूटी. मंदिर का रास्ता बना. आप 2025 के हिंदुस्तान को देख सकते हैं.
सरकार चाहती तो सोशल मीडिया पर चल रही बकवास को रोक सकती थी, जैसा कि वह थोड़ी-सी भी असुविधाजनक बात का रोना लेकर यूट्यूब और फेसबुक से खबरें, तथ्य, डॉक्यूमेंट्री हटवाने के लिए जान लगा देती है, पर उसने ऐसा नहीं किया. नरेन्द्र मोदी जिस तरह वक़्फ़ कानून पर बोलते हुए मुसलमान नौजवानों को पंक्चर बनाने वाला करार दे रहे थे, उसी तरीके से कह भी सकते थे कि आतंकवादी घटना है, गंभीर मामला है, इस बारे में बोलने से पहले थोड़ा विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, खास तौर पर हिंदुत्व ब्रिगेड को. वह शायद बेहतर सौग़ात-ए-मोदी होती. कोई भी ढंग का और ठीकठाक प्रधानमंत्री होता तो शायद ये करता. इस देश के बहुसंख्यक लोगों से तमीज़दार होने की अपील भी.
पर उनका पहला बयान ही ऐसा आया, जो गुस्से का था. अगर हम गुस्सा हो रहे हैं तो उसका मतलब ही है कि हम आतंकवादी एजेंडे को सफ़ल बना रहे हैं.
याद है मार्च, 2019 की वो घटना, जब न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर में दो जगहों पर भीषण गोलीबारी हुई थी और हमले में 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे. जब पूरी दुनिया इसे इस्लामी आतंकवाद बता रही थी, तब उस देश की मुखिया, उनकी प्रधानमंत्री जेसिंडा अडर्न ने क्या किया था. वो हिजाब पहनकर पीड़ितों से मिलने गईं, मुसलमान महिलाओं और पुरुषों को गले लगाया. उन्होंने आतंकवाद पर धर्म का मुलम्मा नहीं चढ़ने दिया. उन्होंने दिखाया कि एक देश का मुखिया होना बहुत जिम्मेदारी का काम होता है. मुखिया का काम है कि उसका दिल बड़ा और नज़र साफ हो. और हमारे मुखिया क्या कर रहे हैं. बीजेपी के सोशल मीडिया पेज हमले की दिल दहला देने वाली तस्वीरों की जिबली इमेज बना रहे हैं. नेतागण गृहमंत्री के लिए लाल दरीचे बिछा रहे हैं.
मोदी जी बीच सऊदी दौरा तो ऐसे छोड़ कर आये कि आते ही आतंकवादियों की खटिया खड़ी होने ही वाली है. सोच, समझ, विचार, मीमांसा करना उनकी सरकार का चरित्र नहीं रहा है. करना तो ये चाहिए था कि सऊदी में ही उन्हें उन धर्मगुरुओं से बात करनी चाहिए थी. दो-एक दिन और रुक कर और दहशतगर्दी से भारत को बचाने का रास्ता निकालना चाहिए था. हालांकि वे दिल्ली से मणिपुर जाने का समय नहीं निकाल पाए. जो आज तक जल रहा है. क्या संघीय ढांचे और संवैधानिक व्यवस्था में कुछ लोगों की जान बाक़ी लोगों से कम कीमती हैं? होनी तो नहीं चाहिए.
देश को मोदी की ऐसी क्या गारंटी होगी, कि आगे ऐसा नहीं होगा. आसान रास्ता तो यही है कि वहां सिक्योरिटी बढ़ा दो, सरवेलेंस लगा दो, लोगों की आम दिनचर्या जो पहले से ही बहुत मुश्किल है, उसे और ज़्यादा कस दो, हर कश्मीरी को शक की निगाह से देखो और उन्हें एक के बाद एक अघोषित कर्फ़्यू में धकेलते रहो, उनके इंटरनेट बंद कर दो, उन्हें मस्जिद जाने मत दो, उन्हें नजरबंद कर दो. और फिर कहो, कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है. और उनसे कहलवाओ भी. पाकिस्तान से कट्टी कर लो.
दूसरा रास्ता लंबा है. सब्र का. शिक्षा का. विचार का. रोजगार का. कारोबार का. प्यार का. पर जो दस साल में न हो सका, वह अभी और इन लोगों से कैसे होगा? ये पकौड़े और पंक्चर से ऊपर ही नहीं उठ पाए.
आतंकवादियों के पास एक प्लान था. हमारे पास क्या है? हमारी दो नाकामयाबियां सामने हैं. एक तो इंटेलिजेंस की. दूसरी सुरक्षा की. मोदी जी चाहें तो इन नाकामयाबियों के जिम्मेदार लोगों को हटा कर काबिल लोगों को उनकी जगह तैनात कर सकते हैं. क्या वे ऐसा देश, इसके लोगों, इसके बेहतर इंतज़ाम और व्यवस्था के लिए करेंगे. आपको क्या लगता है?
पीछे की कई घटनाएँ बताती हैं, कि इस सरकार के दावे जो अक्सर दंभ और हिंसक क्रूरताओं से भरे होते हैं, हमारे लिए भरोसा नहीं पैदा कर पाते. जिन लोगों ने उस पर यकीन किया, उनका हश्र हम देख ही रहे हैं, चाहे पहलगाम हो या नोटबंदी या कोविड कुप्रबंध. ये सरकार सिर्फ़ अपने लोगों से थाली बजवा कर रोग भगा सकती है. सवाल करने पर या थाली न बजाने पर आपको टांग भी सकती है.
इनकी निर्णायकता ख़तरनाक है, क्योंकि ये सोच-समझकर फैसला करने की बजाय हल्ला कर फैसला सुनाने पर यकीन करते हैं और बाद में भी कहां सोचते हैं. वे जोरों से बोलकर बात को तोड़-मरोड़ सकते हैं और बरगला सकते हैं. वे झूठ भी बोल सकते हैं. हम में से बहुत से लोग हैं, जो ये जानने के बाद भी उन मिथ्या प्रलापों पर यक़ीन करने का दिखावा करते हैं.
नाकाबिल सरकार होना एक बात है. लोकतंत्रों में ऐसा होता आया है. पर वहाँ के चुनाव आयोग ठीक काम कर लेते हैं. और लोग चाहें तो नालायक सेवकों को चलता कर सकते हैं.
पर नाकाबिल होने पर ग़ुरूर करने की मास्टर क्लास कौन लगा सकता है, जैसा हम देख रहे हैं. सरकार ने जो भी फैसले किए, अब तक औंधे मुँह ही गिरे हैं. वे घमंडी जुमलों का म्यूजियम बना रहे हैं. चाहे सामाजिक विकास हो, रक्षा हो, अर्थव्यवस्था हो. चाहे हर बार मीडिया उसे मास्टर स्ट्रोक कहता रहे.
ये नोटबंदी से कश्मीर में आतंकवाद रोकने चले थे. चीन को लाल आँख दिखाने. घर में घुसकर दुश्मन को मारने. थाली बजाकर कोविड भगाने. बादलों का बेनेफिट लेने.
आगे ऐसा नहीं करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.
उर्दू प्रेस
काले पन्ने छापे कश्मीर के अख़बारों ने
‘कश्मीर उज़्मा’ अखबार ने अपना पहला पन्ना काला कर दिया है और इस पन्ने पर पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ी खबरें हैं. इसमें 26 के मरने की खबर लीड है. इसके अलावा मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का बयान और गृहमंत्री अमित शाह के जम्मू-कश्मीर जाने और मोदी का सऊदी दौरा रद्द कर वापस आने की खबरे हैं. अन्य उर्दू अख़बारों का पहला पन्ना भी कुछ-कुछ ऐसा ही है. सभी ने इस आतंकवादी हमले की खबर प्रमुखता से ली है, सिवाय ‘इंकलाब’ और ‘रोजनामा सहारा’ के. ‘दैनिक जागरण समूह’ के उर्दू अख़बार ‘इंकलाब’ ने पहलगाम हमले को लीड तक बनाना तक जरूरी नहीं समझा है. उसने टॉप बॉक्स में यह खबर दी है और लीड बनाया है निशिकांत दुबे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीटिशन को. वहीं कौमी तंजीम अख़बार ने इस खबर को छह कॉलम में जगह दी है.
अखबारे मशरिक ने भी पहले आधे पन्ने पर पहलगाम आतंकी हमले की खबर ली है ओर लिखा है कि प्रभावितों का दावा है कि हिंदुओं को पहचानकर निशाना बनाया गया. वहीं रोजनामा सियासत में करीब दो तिहाई से ज्यादा खबरें पहलगाम हमले की है और साथ में लिखा है कि गृहमंत्री अमित शाह ने दो हफ्ते पहले ही दावा किया था कि आतंकवाद बस खत्म होने को है. डेली ऐतमाद ने भी पहलगाम हमले को पहले आधे पन्ने पर लिया है. स्थानीय होने के कारण कश्मीर उज़्मा ने इस खबर को बेहद संजीदा तरीके से उठाया है. तीसरा पन्ना भी पूरी तरह से हमले से जुड़ी खबरों और प्रतिक्रियाओं पर केंद्रित है. वहीं एडिट पेज पर इस घटना की निंदा करते हुए लिखा है, “दुनिया का कोई भी धर्म इस तरह के नरसंहार की इजाजत नहीं देता. जो लोग इस्लाम के नाम पर इस तरह के अत्याचार करते हैं वे इस्लाम के अनुयायी नहीं हो सकते और उनका इस्लाम से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है. बदलती परिस्थिति में इन सभी तत्वों को यह भी समझ लेना चाहिए कि हिंसा कोई आदर्श समस्या नहीं है, बल्कि इससे घरों का विनाश ही होता है.
उधर, अब भी सुलग रहा है मणिपुर
अज्ञात हथियारबंद लोगों ने बुधवार सुबह मणिपुर के कामजोंग जिले के दो गांवों में कई घरों में आग लगा दी. यह घटना उस समय हुई जब जिले के सहमफुंग उप-मंडल के गम्पाल और हैयांग गांवों के अधिकतर निवासी खेती के लिए अपने खेतों में गए हुए थे. एक अधिकारी ने बताया कि प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चलता है कि सात से अधिक घर, जिनमें अधिकतर फूस की छत वाले थे, पूरी तरह जलकर राख हो गए. घटना के बाद कामजोंग के जिला मजिस्ट्रेट रंगनामी रंग पीटर ने दोपहर 2 बजे से दोनों गांवों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया.
मालेगांव विस्फोट :
प्रज्ञा ठाकुर के लिए मांगी एनआईए ने मौत की सजा
2008 के मालेगांव विस्फोटों के मामलों की सुनवाई सप्ताहांत में पूरी हो गई – घटना के लगभग 17 साल बाद – और मामले की सुनवाई कर रही विशेष राष्ट्रीय जांच अदालत ने इसे फैसले के लिए 8 मई तक के लिए स्थगित कर दिया है. अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि मालेगांव में विस्फोट - एक ऐसा शहर, जहां मुस्लिमों की अच्छी खासी आबादी है - साजिशकर्ताओं द्वारा मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग को आतंकित करने, आवश्यक सेवाओं को बाधित करने, सांप्रदायिक तनाव पैदा करने और राज्य की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए किया गया था. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एक आश्चर्यजनक यू-टर्न लेते हुए मुंबई की एक विशेष अदालत से 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 16 के तहत मौत की सजा लगाने का अनुरोध किया है. आरोपियों में भाजपा नेता और पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी शामिल हैं. 17 साल से चल रहा यह मामला विस्फोट से जुड़ा है. इसमें छह मुस्लिम मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हो गए. अंतिम दलीलें पूरी होने के बाद शनिवार को एनआईए की अंतिम लिखित दलील - 1,500 से अधिक पृष्ठ लंबी - दायर की गई. साध्वी प्रज्ञा, कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, समीर कुलकर्णी, स्वामी दयानंद पांडे और सुधाकर चतुर्वेदी पर हिंदुत्व विचारधारा से जुड़ी एक व्यापक साजिश के तहत विस्फोट की साजिश रचने और उसे अंजाम देने का आरोप है.
एनआईए द्वारा साध्वी प्रज्ञा को बरी करने के पहले के प्रयासों के बावजूद - जिसमें तर्क दिया गया था कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है - एजेंसी ने अब अपना रुख बदल दिया है. इसने अदालत से किसी भी तरह की नरमी न बरतने का आग्रह किया है, जबकि 323 गवाहों में से 32 ने कथित तौर पर दबाव में आकर अपने बयान वापस ले लिए हैं. एनआईए के रुख में आए बदलाव ने नए सिरे से बहस छेड़ दी है, खास तौर पर उन पहले के आरोपों के मद्देनजर, जिनमें कहा गया था कि एजेंसी ने मामले को संभालने में पक्षपात किया है. पूर्व विशेष सरकारी वकील रोहिणी सालियान ने सार्वजनिक रूप से एनआईए पर आरोप लगाया था कि सरकार बदलने के बाद वह आरोपियों, खास तौर पर साध्वी प्रज्ञा के प्रति नरम रुख अपना रही है. उन्होंने दावा किया था, “नई सरकार के सत्ता में आने के बाद, मुझे साध्वी प्रज्ञा और अन्य के खिलाफ नरम रुख अपनाने के लिए कहा गया. मैंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। इसलिए मुझे पीछे हटना पड़ा.”
बिहार
एनडीए में नेतृत्व पर विवाद बढ़ा, नीतीश कमजोर
एक सप्ताह पहले, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने घोषणा की थी कि बिहार के मौजूदा उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी विधानसभा चुनावों में "विजय का झंडा लहराएंगे.” यह टिप्पणी उन्होंने सम्राट चौधरी और एनडीए के प्रमुख कोइरी नेता एवं राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की मौजूदगी में की थी. इस बयान के बाद नीतीश कुमार के समर्थकों में गुस्सा फैल गया, जबकि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस पर चुप्पी साधे रखी. इसी बीच, भाजपा के कुर्मी नेता प्रणव प्रकाश ने बिहार शरीफ में कुर्मी समुदाय के लिए शिवाजी रैली का आयोजन किया, जो नालंदा लोकसभा क्षेत्र का मुख्यालय है और विधानसभा क्षेत्र जद (यू) के हिस्से में है.
बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए के भीतर बढ़ती राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी कहा है, "बिहार मुझे बुला रहा है. अपने पिता की तरह मैं राष्ट्रीय राजनीति में रुचि नहीं रखता. मैं 'बिहार फर्स्ट' के लिए काम करूंगा." याद रहे कि चिराग पासवान ने एनडीए में रहते हुए भी जद (यू) के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे, जिससे 2020 के चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी को 36 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था.
जहां बिहार भाजपा के ऐसे नेता, जिन्हें पार्टी का शीर्ष नेतृत्व "फ्रिंज एलिमेंट्स" कह सकता है, नीतीश के नाराज समर्थकों को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं जद (यू) खुद भाजपा और नीतीश के प्रति वफादार समूहों में विभाजित नजर आ रहा है. स्वयं नीतीश कुमार इस संकट को संभालने की क्षमता खोते दिख रहे हैं.
इस प्रकार, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के बयान ने बिहार की राजनीति में गहरी हलचल मचा दी है, जिससे एनडीए के भीतर नेतृत्व और चुनाव रणनीति को लेकर विवाद और असंतोष बढ़ा है.
क्या नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे? यह सवाल पहली बार पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उठाया था, लेकिन जवाब रहस्यमय ढंग से दिया था कि इस बारे में फैसला एनडीए का "शीर्ष नेतृत्व" करेगा. जेडीयू में नीतीश के वफादारों ने शाह की टिप्पणी का कड़ा विरोध किया, जबकि तथाकथित "हाशिए के तत्वों" ने सार्वजनिक रूप से दावा किया कि नीतीश ही एनडीए का नेतृत्व करते रहेंगे. हालांकि, जब फरवरी में भागलपुर की एक रैली में नरेंद्र मोदी ने नीतीश के साथ मंच साझा किया, तो उन्होंने उन्हें "लाड़ला मुख्यमंत्री" कहा, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के विपरीत, उन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए स्पष्ट समर्थन नहीं दिया. देखा जाए तो मोदी ने परोक्ष तौर पर उस अस्पष्टता का ही समर्थन किया, जो शाह ने दो महीने पहले पेश की थी.
‘फ्रिंज एलिमेंट्स’ के बीच होड़
जैसे-जैसे नीतीश कुमार के राजनीतिक व्यवहार में असहजता और अस्थिरता बढ़ती जा रही है, और माना जा रहा है कि वे मोदी-शाह की जोड़ी के जाल में फंसे हुए हैं, वैसे-वैसे बीजेपी के वे नेता जिन्हें “फ्रिंज एलिमेंट्स” माना जाता है, अब खुलकर मुख्यमंत्री पद की दौड़ में लग गए हैं. बीजेपी के भीतर ही तीन दावेदार हैं. हालांकि, इनमें से कोई भी यह सुनिश्चित नहीं कर सकता कि मोदी-शाह की जोड़ी अंततः किसे चुनेगी. हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान और ओडिशा के मुख्यमंत्री के चयन के वक्त सबने यह देखा भी. इन राज्यों में जिन्हें चुना गया, वे चयन से पहले बिहार के "हाशिए के तत्वों" जैसी स्थिति में भी नहीं थे.
उधर, बिहार एनडीए में मचे घमासान के बीच, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वाम दल और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी शामिल हैं, व्यवस्थित नजर आता है. हालांकि एनडीए के "हाशिए के तत्व" मीडिया में यह नैरेटिव फैला रहे हैं कि कांग्रेस तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर समर्थन देने में हिचक रही है, लेकिन हकीकत इससे अलग है. कांग्रेस ने बिहार में तेजस्वी के नेतृत्व को पूरी तरह समर्थन दिया है. बेशक, इस गठबंधन के सामने सीट बंटवारे को लेकर अपनी चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन इस मोर्चे पर भी एनडीए के भीतर सीटों को लेकर खींचतान महागठबंधन की तुलना में कहीं ज्यादा तीव्र नजर आती है. नीतीश की कमजोरी को भांपते हुए, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जेडीयू की कीमत पर ज्यादा सीटों की मांग कर सकता है. ऐसी स्थिति जो नीतीश ने पहले कभी बनने नहीं दी थी. बिहार के बारे में नलिन वर्मा की राजनीतिक रिपोर्ट यहां “द वायर” में विस्तार से पढ़ सकते हैं.
मराठवाड़ा : 3 माह में 269 किसानों की आत्महत्या
छत्रपति संभाजीनगर के संभागीय आयुक्त कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2025 के पहले तीन महीनों में मराठवाड़ा क्षेत्र में किसानों की आत्महत्याओं में महज एक साल में चार गुणा वृद्धि दर्ज की गई है. जनवरी से मार्च के बीच, मराठवाड़ा के आठ जिलों : छत्रपति संभाजीनगर, धाराशिव, लातूर, बीड, नांदेड़, हिंगोली, परभणी और जालना में 269 किसानों ने आत्महत्या की, जबकि पिछले साल इसी अवधि में आठ जिलों में 65 मौतें हुईं.
महाराष्ट्र सरकार पलटी, हिंदी अब अनिवार्य नहीं
जनता के कड़े विरोध और राजनीतिक आलोचना के बाद, महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने यू टर्न लेते हुए कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का फैसला रद्द कर दिया है. स्कूल शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे ने कैबिनेट बैठक के बाद यह घोषणा की कि सरकार के पूर्व आदेश से "अनिवार्य" शब्द हटा दिया जाएगा. तीन-भाषा नीति पहले की तरह लागू रहेगी, लेकिन अब स्कूलों को यह छूट देनी होगी कि यदि पर्याप्त संख्या में छात्र कोई वैकल्पिक भाषा चुनना चाहें, तो उन्हें उसकी अनुमति दी जाए. इसका मतलब है कि हिंदी अब तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य नहीं होगी, बल्कि छात्रों के लिए एक विकल्प के तौर पर उपलब्ध रहेगी.
मुरुगप्पा समूह द्वारा भाजपा को 125 करोड़ रुपये का दान देने के पीछे क्या है?
'स्क्रोल; के लिए आयुष तिवारी की रिपोर्ट है कि एक साल बाद जब सीजी पावर (पूर्व में क्रॉम्पटन ग्रीव्स) बैंक धोखाधड़ी के आरोपों में घिरा और उसके चेयरमैन को हटना पड़ा, तब चेन्नई स्थित मुरुगप्पा समूह ने इस कंपनी में बहुमत हिस्सेदारी खरीद ली. हालांकि, सीबीआई ने जांच जारी रखी, 2021 में एफआईआर दर्ज की और 2023 में चार्जशीट दाखिल की. फिर फरवरी 2024 में केंद्र सरकार ने गुजरात में एक सेमीकंडक्टर यूनिट को मंजूरी दी, जिसे मुरुगप्पा समूह द्वारा बनाया जाना है. हालांकि समूह को इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था. इस प्रोजेक्ट में कुल ₹7,600 करोड़ के निवेश में से लगभग आधे हिस्से को सरकार ने समर्थन देने का निर्णय लिया. इसी के एक हफ्ते के भीतर, मुरुगप्पा समूह ने अपने इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से भाजपा को ₹125 करोड़ का दान दिया. इससे पहले, अप्रैल 2014 से फरवरी 2024 के बीच समूह ने भाजपा को सिर्फ ₹21 करोड़ का दान दिया था. इस वर्ष की शुरुआत में, एक दिल्ली अदालत ने सीबीआई को सीजी पावर बैंक धोखाधड़ी मामले की फाइल अदालत में पेश न करने के लिए फटकार लगाई थी और आरोप लगाया था कि एजेंसी अदालत से कुछ “छिपा रही” है.
विश्वविद्यालयों में छात्रों पर बढ़ती कार्रवाइयां
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में छात्रों ने जंगल काटने के खिलाफ विरोध किया, तो पुलिस ने उन पर हमला किया. दिसंबर 2024 में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एक छात्र को केवल एक दीवार पर नारा लिखने के लिए निष्कासित कर दिया था. 2020 में सीएए के विरोध में कई छात्रों को गिरफ्तार किया गया. 2023 में TISS के एक दलित शोध छात्र को एनईपी के विरोध में प्रदर्शन करने के लिए दो साल के लिए निलंबित किया गया. 2023 में ही बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ की स्क्रीनिंग के चलते कई यूनिवर्सिटियों में छात्रों को सस्पेंड किया गया. 11 अप्रैल को हुए प्रदर्शन के बाद छात्र नेताओं पर झूठे आरोप लगाए गए-यूनिवर्सिटी गेट को रोकना, गार्ड्स को धक्का देना, कुलपति और रजिस्ट्रार की गाड़ी को नुकसान पहुँचाना. छात्रों ने इन सभी आरोपों को "बेतुका" और "झूठा" बताया. शेफाली ने कहा, "यहाँ से हमारी लड़ाई और मज़बूत होगी. हम ज़रूर चुनौती देंगे."
'आर्टिकल 14' की रिपोर्ट है कि दिल्ली की अंबेडकर यूनिवर्सिटी में एक छात्रा पर खाना गिरने की घटना के बाद कुछ छात्रों ने उसे लेकर उत्पीड़न और मानसिक तनाव की शिकायत की. इसके बाद शिकायत करने वाले और उनका साथ देने वाले छात्रों को ही निलंबित कर दिया गया. कुछ छात्रों का निलंबन तभी हटाया गया, जब उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की. पिछले चार महीनों में दिल्ली की दो अन्य यूनिवर्सिटी में 21 छात्र या तो निलंबित हुए या हिरासत में लिए गए. 5 मार्च को यूनिवर्सिटी ने 11 छात्रों को निलंबित किया, तीन जिन्होंने उत्पीड़न की शिकायत की थी और आठ जिन पर उत्पीड़न का आरोप था.
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