24/05/2025 : खुदकुशियां कोटा ही में क्यों | आतंकी पकड़े नहीं, पर पहचान लिये | राहुल के फिर सवाल | बीआरएस में बेटी की बाप को चिट्ठी | मोदी और संघ के रिश्तों पर किताब | दलित-मुस्लिम दोस्ती और तालियां |
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में 11,400 शिक्षकों के पद रिक्त
ट्रम्प ने एपल से कहा, भारत में बनाओगे तो 25% शुल्क लगेगा
नसों में सिंदूर! क्या वाकई?
दिल्ली दंगा : चार मामलों में 30 बरी
विजय शाह ने फिर मांगी माफ़ी
मॉस्को में 40 मिनट आसमान में फंसे रहे डेलिगेट्स
दलित युवकों के कपड़े उतारे, मुंह काला कर जूतों की माला पहनाई, पीटा भी
पुस्तक | रिक्लेमिंग भारत आरएसएस मोदी पर काबू करना चाहता है...
अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बिना हार्वर्ड, हार्वर्ड नहीं
'वे केवल कोटा में ही क्यों मर रहे हैं?' : छात्रों की आत्महत्याओं में वृद्धि पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा
सर्वोच्च न्यायालय ने देश के अग्रणी कोचिंग हब कोटा में छात्रों की आत्महत्याओं में खतरनाक वृद्धि को संबोधित करने में विफल रहने के लिए राजस्थान सरकार को आड़े हाथों लिया. न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने स्थिति को ‘गंभीर’ बताया और चिंता व्यक्त की कि इस वर्ष शहर में 14 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने सुनवाई के दौरान पूछा, “आप एक राज्य के रूप में क्या कर रहे हैं? ये बच्चे आत्महत्या करके क्यों मर रहे हैं और केवल कोटा में? क्या आपने एक राज्य के रूप में इस पर विचार नहीं किया?” कोटा के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी शैक्षणिक वातावरण में छात्रों द्वारा सामना किए जाने वाले प्रणालीगत दबावों के बारे में भी न्यायालय की गहरी चिंता दर्शाई.
केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में 11,400 शिक्षकों के पद रिक्त, करोड़ों खर्च नहीं हुए
पिछले साल दिसंबर तक केंद्रीय विद्यालयों (केवी) में शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 8,900 से अधिक पद खाली पड़े थे. जवाहर नवोदय विद्यालयों (जेएनवी) में शिक्षकों (प्रधानाचार्यों और उप-प्रधानाचार्यों सहित) और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 6,800 से अधिक पद खाली पड़े थे. ये महिला, बाल, शिक्षा, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति के निष्कर्ष हैं, जिन्हें इस साल 26 मार्च को संसद में पेश किया गया था. ये आंकड़े दो कारणों से चिंताजनक हैं. अगर वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2024 पर नज़र डालें, तो कक्षा 3 में चार में से केवल एक बच्चा कक्षा 2 की पाठ्यपुस्तक पढ़ सकता है, जबकि तीन में से एक बुनियादी घटाव कर सकता है. ये बुनियादी स्तर एक दशक से भी अधिक समय में सबसे अधिक हैं, जो ग्रामीण भारत के सरकारी स्कूलों में दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता में भारी कमी को दर्शाता है. यह इस तथ्य से और भी बढ़ जाता है कि पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं.
यूडीआईएसई+ 2023-24 रिपोर्ट के अनुसार, जो पूरे भारत में सरकारी और निजी स्कूलों से डेटा एकत्र करती है, 1.1 लाख से अधिक स्कूलों में केवल एक शिक्षक है.
सरकार केवी और जेएनवी में हजारों करोड़ रुपये डालना जारी रखे हुए है, लेकिन खर्च न किए गए फंड और शिक्षकों के खाली पदों से पता चलता है कि सरकार 2030 तक सभी के लिए माध्यमिक शिक्षा के अपने लक्ष्य को साकार करने से कितनी दूर है - जैसा नई शिक्षा नीति, 2020 में कल्पना की गई है.
2025-26 के लिए स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (डीएसईएल) को आवंटित कुल 78,572 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा हिस्सा (79.75%) समग्र शिक्षा अभियान या पीएम श्री जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए निर्धारित किया गया है. इस बीच, कुल फंड का 19.64 प्रतिशत या 15,430.58 करोड़ रुपये चार स्वायत्त निकायों को आवंटित किए गए जो डीएसईएल के अंतर्गत आते हैं, जिनमें केवीएस और जेएनवी शामिल हैं.
शिक्षा की स्थिति सीरीज के अंतर्गत द क्विंट ने देखा कि कैसे केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय आदर्श विद्यालय होने के बावजूद शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के रिक्त पदों से भरे पड़े हैं. पढ़े पूरी रिपोर्ट.
पहलगाम
पकड़ा नहीं, पर आतंकियों को पहचानने में सफल
देश को झकझोर के रख देने वाले पहलगाम आतंकी हमले को एक माह हो चुका है. लेकिन, आतंकवादी अब भी पकड़े नहीं गए हैं. ऐसे वक्त में जब पीड़ित परिवार शोक मना रहे हैं और नागरिक जवाब मांग रहे हैं, तब मोदी सरकार ने बजाय कार्रवाई के जश्न की ओर रुख कर लिया है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की तथाकथित सफलता का उत्सव ऐसे मनाया जा रहा है, मानो न्याय मिल चुका हो.
एक इंटरव्यू में, जिसमें भारतीय न्यूज़ टीवी द्वारा अनदेखा किया गया असहज करने वाला सच सामने आया तो डच अखबार ‘डी वोल्क्सक्रांट’ के एक पत्रकार ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से सीधा सवाल पूछा : “क्या आपने पहलगाम हमले के आतंकवादियों को पकड़ा?” जयशंकर का जवाब था : “हम उन्हें पहचानने में सफल रहे.” जब उनसे पूछा गया कि भारत-पाकिस्तान के हालिया संघर्ष को खत्म करने के दौरान अमेरिका कहां था, तो जयशंकर के पास कहने को शब्द नहीं थे. उन्होंने बमुश्किल कहा, “अमेरिका, अमेरिका में था.”
राहुल ने “जेजे” लिखकर 3 नए सवाल पूछे
ऐसे समय में जब कांग्रेस के नेता और सांसद बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों के हिस्से के रूप में विदेशी धरती पर सरकार का पाकिस्तान और पड़ोसी देश से उत्पन्न आतंकवाद पर रुख स्पष्ट कर रहे हैं, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर से नए सवाल पूछे और दावा किया कि "भारत की विदेश नीति ध्वस्त हो चुकी है." एक दिन पहले राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी ऑपरेशन सिंदूर और भारत-पाकिस्तान सीज़ फायर को लेकर 3 सवाल पूछे थे.
विदेश मंत्री जयशंकर ने डच ब्रॉडकास्टर एनओएस को इंटरव्यू दिया था. इसमें जयशंकर ने पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष पर सवालों के जवाब दिए थे. जयशंकर के इंटरव्यू के वीडियो को साझा करते हुए राहुल ने सवाल किए- क्या जेजे (जयशंकर जी) बताएंगे, (1) भारत को पाकिस्तान के साथ क्यों जोड़ा गया है? (2) पाकिस्तान की निंदा करने में एक भी देश ने हमारा साथ क्यों नहीं दिया? (3) ट्रम्प से भारत और पाकिस्तान के बीच “मध्यस्थता” करने के लिए किसने कहा?
इस बीच गांधी द्वारा इस्तेमाल किए गए “जेजे” (JJ) शब्द को लेकर पार्टी के भीतर भ्रम की स्थिति रही; कुछ नेताओं ने कहा कि एक ‘जे’ जयशंकर के लिए है, जबकि दूसरा ‘जे’ का अर्थ खुला है—यह ‘जयचंद’ (गद्दार) या ‘झूठा’ भी हो सकता है.
कांग्रेस के मीडिया और सोशल मीडिया विभाग के प्रमुखों ने “जेजे” पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जबकि कुछ वरिष्ठ नेताओं ने माना कि इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल केंद्रीय मंत्री के लिए नहीं होना चाहिए और सरकार से सवाल पूछने के बेहतर तरीके हैं. वहीं, भाजपा ने राहुल गांधी की टिप्पणियों को “अपरिपक्व और गैर-जिम्मेदाराना” बताते हुए उनकी आलोचना की और कहा कि वे “सच से कोसों दूर” हैं. इस सप्ताह यह पहला मौका नहीं है, जब राहुल गांधी और कांग्रेस ने जयशंकर को निशाने पर लिया. इससे पहले भी गांधी ने आरोप लगाया था कि सरकार ने सैन्य कार्रवाई (ऑपरेशन सिंदूर) से पहले पाकिस्तान को सूचित किया, जिससे आतंकियों को बच निकलने में मदद मिली. इस पर विदेश मंत्रालय ने सफाई दी कि जयशंकर के बयान को “गलत तरीके से पेश किया गया” है.
कुल मिलाकर, कांग्रेस ने विदेश नीति पर सरकार की आलोचना को तेज किया है, जबकि भाजपा ने राहुल गांधी के आरोपों को राष्ट्रहित के खिलाफ और तथ्यहीन बताया है. भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने राहुल गांधी को निशान-ए-पाकिस्तान बताया. उन्होंने कहा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर राहुल गांधी की टिप्पणी को इस्लामाबाद, भारत को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है. ऑपरेशन सिंदूर जारी है. उन्होंने कहा- राहुल गांधी, आप तय करें कि आप किस तरफ हैं?
राहुल गांधी आज पुंछ जाएंगे : लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी कल शनिवार 24 मई को जम्मू के पुंछ क्षेत्र का दौरा करेंगे, जहां वह हाल ही में पाकिस्तानी गोलाबारी में मारे गए और प्रभावित परिवारों से मिलेंगे. लगभग दो हफ्ते पहले, भारत द्वारा 7 मई को पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमलों के बाद, पुंछ क्षेत्र में भारी तोपबारी देखी गई थी. इन ठिकानों में प्रतिबंधित जैश-ए-मोहम्मद (बहावलपुर) और लश्कर-ए-तैयबा (मुरीदके) के मुख्यालय भी शामिल थे. यह राहुल गांधी की 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर की दूसरी यात्रा होगी.
ट्रम्प ने एपल से कहा, भारत में बनाओगे तो 25% शुल्क लगेगा
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत में आईफोन बनाने को लेकर एपल को एक बार फिर धमकी दी है. शुक्रवार को ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका में बेचे जाने वाले आईफोन का निर्माण भारत या किसी अन्य देश में नहीं, बल्कि अमेरिका में ही होना चाहिए.
ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने पहले ही एपल के सीईओ टिम कुक को बता दिया है कि यदि एपल अमेरिका में आईफोन नहीं बनाएगा तो कंपनी पर कम से कम 25% का टैरिफ लगाया जाएगा. ट्रम्प की इस धमकी के बाद एपल का शेयर 4 प्रतिशत गिरकर 193 डॉलर पर आ गया.
इसके अलावा ट्रम्प ने यह भी बताया कि यूरोपीय संघ से अमेरिका में आयातित सभी वस्तुओं पर भी वह 50% शुल्क की सिफारिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ के साथ हमारी बातचीत किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है.
नसों में सिंदूर! क्या वाकई?
नसों में सिंदूर दौड़ता है कहकर प्रधानमंत्री ने फिर से भारतीयों को चौंका दिया. उन्होंने कहा उनकी नसों में ख़ून नहीं दौड़ता. बीकानेर में बोलते हुए अपने ओजस्वी भाषण में मोदी ने दो मिनट में ही अपना खुद का नाम 15 बार लिया. ये पहली बार नहीं है, जब उन्होंने बिना वैज्ञानिक आधार वाली बातें कही हैं, जिनपर सवाल करने के बजाय मीडिया के चैनल, उनकी पार्टी, समर्थक उनके डायलाग की वाहवाही में लग गये. आल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर ने मोदी के कई बयानों को एक साथ दिखाते हुए बताया कि पहले उनके खून में अलग-अलग चीजें दौड़ती थी. कभी लोकतंत्र, कभी व्यापार, कभी धर्मनिरपेक्षता. अब खून को ही रिप्लेस कर दिया गया है सिंदूर से. ऑपरेशन सिंदूर नाम से भारत की सेना ने जिस तत्परता औऱ त्याग के भाव से सैन्य संघर्ष शुरू किया था, उसकी गंभीरता इस बयान से कम ही होती है. ख़ास तौर पर तब, जब पहलगाम हमले और उसके बाद लगातार भारत की स्थिति खराब करने वाले बयान डोनाल्ड ट्रम्प ने दिये. जिसके बारे में वे चुप हैं.
उधर अजीत अंजुम ने वैज्ञानिक स्रोतों से तसदीक कर बताया है कि सिंदूर जहरीला होता है.
दिल्ली दंगा : चार मामलों में 30 बरी
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली दंगों से जुड़े चार अलग-अलग मामलों में 30 लोगों को बरी कर दिया गया है. इन लोगों पर तीन लोगों की हत्या और लूटपाट और आगजनी करने का आरोप था. कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने 13 मई, 14 मई, 16 मई और 17 मई को एक सप्ताह के भीतर चार लोगों को बरी करने के आदेश पारित किए.
दिल्ली दंगा 2020 के दौरान आमिर अली नामक व्यक्ति की हत्या मामले में 14 लोगों को बरी कर दिया गया. हालांकि, एक आरोपी लोकेश कुमार सोलंकी को भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए और 505 के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया.
अन्य तीन मामलों में, सबूत के अभाव में आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया, क्योंकि अभियोजन पक्ष किसी भी उचित संदेह से परे उनके अपराध को साबित नहीं कर सका. इन तीन में पहली शिकायत इमरान शेख की थी. उन्होंने अपनी मेडिकल दुकान में लूटपाट और आगजनी का आरोप लगाया गया था. दूसरे मामले में शाहबाज नामक व्यक्ति को बेरहमी से पीटकर जिंदा जला दिया गया था, जबकि तीसरा एफआईआर अकील अहमद नामक व्यक्ति की हत्या से संबंधित था.
विजय शाह ने फिर मांगी माफ़ी
मध्य प्रदेश के भाजपा नेता और मंत्री विजय कुंअर शाह ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी माफी ठुकरा देने और मामले की जाँच के लिए एसआईटी का गठन होने के बाद शुक्रवार 23 मई को एक बार फिर सार्वजनिक रुप से माफ़ी मांगी है. उन्होंने कर्नल सोफ़िया कुरैशी पर अपनी टिप्पणी को ‘भाषाई भूल’ बताया.
शाह ने ‘एक्स’ पर वीडियो बयान जारी किया है, “पहलगाम में पहले हुए भीषण नरसंहार से मैं बहुत दुखी और परेशान हूँ. मेरे मन में हमेशा से अपने देश के लिए बहुत प्यार और भारतीय सेना के लिए सम्मान रहा है. मेरे द्वारा बोले गए शब्दों ने समुदाय, धर्म और देशवासियों को ठेस पहुँचाई है, यह मेरी भाषाई भूल थी.”
भाजपा नेता ने आगे कहा, “मेरा इरादा किसी धर्म, जाति या समुदाय को ठेस पहुँचाने या अपमानित करने का नहीं था. मैं अनजाने में कहे गए शब्दों के लिए पूरी भारतीय सेना, सिस्टर कर्नल सोफिया और सभी देशवासियों से ईमानदारी से माफी मांगता हूं और एक बार फिर हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं.”
इससे पहले 20 मई को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर शाह के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तीन सदस्यीय एसआईटी का गठन किया गया था. एसआईटी द्वारा 28 मई को अगली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को अपने निष्कर्ष पेश करने की उम्मीद है.
शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें ‘आंतकवादियों की बहन’ कहा था.
भाजपा विधायक कंवर लाल मीणा की विधानसभा सदस्यता समाप्त
राजस्थान विधानसभा ने शुक्रवार को भाजपा विधायक कंवर लाल मीना की सदस्यता समाप्त कर दी. अधिकारियों ने बताया कि उन्हें एक सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट पर पिस्तौल तानने के मामले में दोषी ठहराया गया है और तीन साल की जेल की सजा सुनाई गई है.
स्पीकर ने फैसला लेने से पहले महाधिवक्ता और वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञों से कानूनी राय मांगी थी. एक अधिकारी ने बताया, “आज प्राप्त कानूनी राय में सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा गया है कि विधायक की सदस्यता समाप्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक नहीं लगाई है.”
कार्टून | अध्वर्यू
जासूसी की आरोपी के खिलाफ सुराग़ मिलते दिख नहीं रहे
हिसार की ट्रेवल व्लॉगर ज्योति रानी की पुलिस हिरासत गुरुवार (22 मई, 2025) को चार दिनों के लिए बढ़ा दी गई. ज्योति को पिछले सप्ताह जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और पांच दिनों की पुलिस रिमांड पूरी होने पर अदालत में पेश किया गया था. हिसार के पुलिस अधीक्षक शशांक कुमार सावन ने कहा कि रिमांड 'आगे की जांच' के लिए मांगी गई. पुलिस ने बताया कि अभी तक आरोपी के पास सैन्य, रक्षा या रणनीतिक जानकारी होने का कोई सबूत नहीं मिला है, न ही यह साबित हुआ है कि वह किसी आतंकी संगठन के संपर्क में थी. हालांकि यह जानते हुए भी, वह कुछ पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के संपर्क में थी. उनके चार बैंक खातों की जांच चल रही है, लेकिन पुलिस ने लेन-देन पर टिप्पणी से इनकार किया. जब्त इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फोरेंसिक लैब भेजे गए हैं, परिणाम अभी बाकी है. एफआईआर के मुताबिक, ज्योति ने बताया कि वह 'ट्रैवल विद जो' यूट्यूब चैनल चलाती हैं और दो साल पहले पाकिस्तान उच्चायोग में वीजा के लिए गई थीं, जहां उनकी मुलाकात एहसान-उर-रहीम उर्फ दानिश से हुई. वह फोन पर संपर्क में रहीं और दो बार पाकिस्तान गईं, जहां दानिश के परिचित अली अहवान ने उनकी यात्रा और ठहरने की व्यवस्था की. मध्य प्रदेश पुलिस ने अप्रैल 2024 में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की उनकी यात्रा की जांच की. उज्जैन के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नितेश भार्गव ने कहा कि संवेदनशील शहर होने के कारण उनकी गतिविधियों की जांच की गई, लेकिन कुछ संदिग्ध नहीं मिला. ज्योति ने मंदिर में सामान्य भक्त की तरह दर्शन किए थे.
तुर्की कंपनी अदालत में भारत सरकार के खिलाफ़ : केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि तुर्की की एयरपोर्ट ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी सेलेबी को उसकी सुरक्षा मंजूरी रद्द होने की सूचना नहीं दी जा सकी. यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों के कारण लिया गया, जो भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के तनावों के बीच सामने आया. यह जानकारी बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से पेश होते हुए जस्टिस सचिन दत्ता को बताया, “जब सुरक्षा का सवाल होता है, तो या तो हम कार्रवाई करते हैं या नहीं करते. यह राष्ट्र की रक्षा करते हुए शुद्ध व्यक्तिपरक कार्रवाई के बारे में है.” इस बीच, कंपनी ने कहा कि केंद्र सरकार के इस फैसले से भारत में 10,000 से अधिक कर्मचारियों पर असर पड़ा है.
दोनों ने ही नहीं दी थी इंडिगो को अनुमति : इंडिगो की दिल्ली से श्रीनगर जाने वाली फ्लाइट के पायलटों को खराब मौसम से बचने के लिए पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति भारतीय वायुसेना और लाहौर एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावर, दोनों ने ही नहीं दी थी. यह जानकारी डीजीसीए ने शुक्रवार (23 मई, 2025) को दी.
चूंकि दोनों की एक बेटी है, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के दोषी को फिर जेल नहीं भेजा
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक नाबालिग लड़की के साथ यौन शोषण करने वाले एक व्यक्ति की सजा को तो बरकरार रखा, लेकिन यह देखते हुए कि अब वे दोनों शादीशुदा हैं, उनकी एक बेटी है और यदि दोषी को फिर से जेल भेजा गया तो सबसे अधिक पीड़ित वही लड़की होगी, कोर्ट ने उसे जेल भेजने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति ए. एस. ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने अपने फैसले में कहा : "हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण अधिकारिता का प्रयोग करते हुए यह मानते हैं कि यद्यपि आरोपी दोषी है, उसे सजा नहीं भुगतनी होगी."
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को पीड़िता से मिलने के लिए तीन विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था. समिति की रिपोर्ट पढ़ने और समिति तथा पीड़िता से बातचीत करने के बाद, हमारा मानना है कि यदि हम आरोपी को जेल भेजते हैं, तो सबसे अधिक पीड़ित खुद पीड़िता होगी. 2018 की स्थिति की तुलना में, आज वह बेहतर स्थिति में है. अब वह अपने छोटे परिवार के साथ सहज है. वह और आरोपी दोनों अपनी बेटी पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और चाहते हैं कि उसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले. साथ ही, अंतिम रिपोर्ट में दर्ज है कि पीड़िता स्कूल जा रही है और अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए उत्सुक है. राज्य ने उसे किसी व्यावसायिक कोर्स में दाखिला दिलाने की पेशकश की है, लेकिन वह कम से कम स्नातक तक अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए इच्छुक है, न्यायमूर्ति ओका ने पीठ की ओर से लिखा.
मॉस्को में 40 मिनट आसमान में फंसे रहे डेलिगेट्स
रूस की राजधानी मॉस्को गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का विमान गुरुवार को 40 मिनट तक आसमान में चक्कर काटता रहा. दरअसल, मॉस्को के आसमान में यूक्रेन के ड्रोन मौजूद थे. इसके कारण विमान के लैंडिंग में भी देरी हुई. इस डेलिगेशन का नेतृत्व डीएमके सांसद कनिमोझी कर रही हैं. रुसी मीडिया के अनुसार, मॉस्को से दक्षिण में लगभग 400 किलोमीटर दूर एलेट्स शहर पर कई यूक्रेनी ड्रोन ने हमला किया. इस वजह से 153 उड़ानें प्रभावित हुईं. हवाई सेवा एजेंसी 'रोसावियात्सिया' ने मॉस्को के शेरमेत्येवो, डोमोडेडोवो, झुकोवस्की और वोनुकोवो एयरपोर्ट्स पर उड़ानें अस्थायी रूप से रोक दीं. इस वजह से हजारों यात्री प्रभावित हुए.
दलित युवकों के कपड़े उतारे, मुंह काला कर जूतों की माला पहनाई, पीटा भी
द मूकनायक के मुताबिक मध्यप्रदेश के राजगढ़ में दलित युवकों के कपड़े उतारकर उनका मुंह काला करने और जूतों की माला पहनाकर उन्हें पीटने वाले पांच आरोपियों को शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया गया. पीड़ित युवक का कहना है कि मैं हाथ जोड़कर कहता रहा कि इतनी बेइज्जती मत करो. मारना है तो मार लो, लेकिन जूते की माला पहनाकर, मुंह काला कर, सबके सामने अपमान मत करो, पर उन्होंने एक नहीं सुनी. यह घटना 13 मई की है. शुरुआत में कुरावर पुलिस यह कहती रही कि युवक नशे की हालत में गांव पहुंचे थे और वहां विवाद हो गया था. लेकिन जब वीडियो सामने आया और मामला गरमाया, तब थाना प्रभारी संगीता शर्मा ने गुरुवार रात जानकारी दी कि पीड़ित की शिकायत पर कार्रवाई की गई है. पुलिस ने मामले में मारपीट, अपमानजनक व्यवहार और अनुसूचित जाति जनजाति के व्यक्तियों के साथ क्रूरता करने के आरोप में केस दर्ज किया है.
के कविता की अपने पिता को लिखी चिट्ठी ने बीआरएस-बीजेपी की अटकलें तेज कीं
बीआरएस नेता के कविता की अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को कथित रूप से लिखे गए एक हस्तलिखित ‘फीडबैक’ पत्र ने तेलंगाना के राजनीतिक हलकों में चर्चाओं को जन्म दे दिया है. इसमें पार्टी की हालिया बैठक के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है.
कविता ने तेलुगु और अंग्रेजी में लिखे पत्र में उल्लेख किया, “जैसा आपने (केसीआर) सिर्फ दो मिनट के लिए बात की. कुछ लोगों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि भविष्य में भाजपा के साथ गठबंधन होगा. यहां तक कि मुझे निजी तौर पर लगा कि आपको (भाजपा के खिलाफ) दृढ़ता से बोलना चाहिए था. शायद ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि मुझे (भाजपा की वजह से) तकलीफ हुई है, लेकिन आपको भाजपा को कुछ और निशाना बनाना चाहिए था, पिताजी.”
पत्र सामने आने के बाद से घंटों बीत जाने के बावजूद, विपक्षी दल ने न तो खंडन जारी किया है और न ही प्रमाणिकता की पुष्टि की है. बीआरएस ने 27 अप्रैल को वारंगल में अपनी रजत जयंती मनाई. कविता ने बैठक में पिछड़े वर्गों के लिए 42% आरक्षण, अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण, वक़्फ़ संशोधन अधिनियम और उनके संबोधन से उर्दू को हटाने जैसे प्रमुख मुद्दों पर राव की चुप्पी को नकारात्मक प्रतिक्रिया के कारणों के रूप में उद्धृत किया. बीआरएस एमएलसी तत्काल टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थीं, क्योंकि वर्तमान में वे अपने बेटे के स्नातक समारोह में भाग लेने के लिए अमेरिका में हैं.
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस सरकार ने जमीनी स्तर पर अपना समर्थन खो दिया है और कुछ बीआरएस कैडर अब भाजपा को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखते हैं. कविता ने कहा कि जब बीआरएस ने हाल ही में एमएलसी चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया, तो पार्टी कार्यकर्ताओं को मजबूत संकेत भेजा गया था, यह सुझाव देते हुए कि वे भाजपा के साथ गठबंधन कर सकते हैं.
सामूहिक बलात्कार के आरोपियों को जमानत मिलने पर स्वागत
कर्नाटक के हावेरी जिले में 2024 के सामूहिक बलात्कार मामले के सात आरोपियों को हाल ही में जमानत पर रिहा किए जाने के बाद उनके दोस्तों और ‘प्रशंसकों’ ने ‘भव्य स्वागत’ किया है. स्वागत की घटना का वीडियो वायरल होने के बाद जिला पुलिस ने आरोपियों को दी गई जमानत रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है. यह घटना 20 मई को हावेरी जिले में हुई, जो राज्य की राजधानी बेंगलुरु से लगभग 300 किलोमीटर दूर है, लेकिन जश्न का वीडियो वायरल होने पर यह प्रकाश में आया. सातों आरोपी 19 लोगों के एक समूह का हिस्सा थे, जिन्हें हावेरी जिले में एक लॉज में चेक इन करने के बाद एक मुस्लिम महिला और एक हिंदू पुरुष पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. हमले के बाद, स्थानीय पुलिस ने सामूहिक बलात्कार का मामला दर्ज किया था. अन्य 12 आरोपियों को पहले ही जमानत पर रिहा कर दिया गया था. 20 मई को जमानत पाने वाले सात लोगों की पहचान आफताब चंदनकट्टी, मदर साब मंडक्की, समीवुल्ला लालनवर, मोहम्मद सादिक आगासिमानी, शोएब मुल्ला, तौसीप चोटी और रियाज साविकेरी के रूप में हुई है.
मानहानि मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को नोटिस : बार एंड बेंच की रिपोर्ट है कि दिल्ली की एक अदालत ने आम आदमी पार्टी (आप) के नेता सोमनाथ भारती की पत्नी लिपिका मित्रा द्वारा दायर मानहानि की शिकायत पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को नोटिस जारी किया है. 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान कथित तौर पर दिए गए बयानों से जुड़ी शिकायत में सीतारमण पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में मित्रा और उनके पति के बारे में ‘अपमानजनक, अपमानजनक और अपमानजनक’ टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया है. मित्रा का दावा है कि ये टिप्पणियां राजनीतिक लाभ के लिए की गई थीं और भारती की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से की गई थीं.
शिकायत में आरोप लगाया गया है कि राजनीतिक लाभ के लिए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता ने मित्रा और भारती के बीच कथित वैवाहिक कलह के बारे में गलत तरीके से बात की थी.
मां ने तीन साल की बच्ची को नदी में फेंका : केरल के एर्नाकुलम में तीन साल की एक बच्ची को उसकी मां ने पारिवारिक विवाद के बाद नदी में फेंक दिया. शव के पोस्टमॉर्टम से पता चला कि बच्ची का लंबे समय से यौन शोषण किया जा रहा था. शोषण करने वाला उसका चाचा था. आरोपी मां को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
एक पेपर में फेल होने पर आदिवासी छात्रा को स्कूल से निकाला : कोयंबटूर के वेल्लियांगडू सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कक्षा 11 की अनुसूचित जनजाति की छात्रा के राज्य बोर्ड परीक्षा में वाणिज्य विषय में अनुत्तीर्ण होने के कारण उसे मंगलवार को स्कूल से निकाल दिया. इसकी शिकायत छात्रा के अभिभावक ने जिला प्रशासन से की है.
मातृत्व अवकाश से मना नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट की खंडपीठ के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें एक सरकारी शिक्षिका को उसके तीसरे बच्चे के जन्म के लिए मातृत्व अवकाश देने से मना कर दिया गया था. इस आदेश में राज्य की नीति का हवाला दिया गया था, जिसके तहत लाभ केवल दो बच्चों तक ही सीमित है. न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने कहा कि मातृत्व लाभ प्रजनन अधिकारों का हिस्सा हैं और मातृत्व अवकाश उन लाभों का अभिन्न अंग है.
पुस्तक | रिक्लेमिंग भारत
आरएसएस मोदी पर काबू करना चाहता है...
सत्य हिंदी के सह संस्थापक, पत्रकार, और लेखक आशुतोष की नई किताब ‘रीक्लेमिंग भारत’ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना करते हुए कहती है कि- “नेहरू को शुरू से ही पता था कि वह कोई सुपरहीरो नहीं हैं, न ही उनके पास कोई जादू की छड़ी है. अवास्तविक वादे नहीं करते थे, इसके विपरीत, मोदी अतिश्योक्ति के साथ रहते हैं, बड़े-बड़े वादे करते हैं और उनके इर्द-गिर्द कथानक बुनते हैं. वहीं, आरएसएस के बारे में कहा गया है कि भागवत और संघ एक उग्र बाघ (मोदी) की सवारी कर रहे हैं और अब वे इस पर काबू करना चाहते हैं. 2013 में मोदी ने खुद को ‘भगवान द्वारा भेजा गया’ बताया था. तब इसमें संकोच और जटिलता का भाव था, लेकिन 2024 आते-आते यह घोषणा स्थिर या निर्लज्ज हो गई. किताब के कुछ चुनिंदा हिस्से :
नेहरू एक आधुनिक व्यक्ति थे; धर्मनिरपेक्षता उनका मूलमंत्र था और वह दृढ़ता से मानते थे कि भारत तभी जीवित रह सकता है, जब वह बहुलवाद का सम्मान करे और अपनी विविधता को अपनी पहली प्रकृति के रूप में अपनाए. वह जानते थे कि भारत एक हिंदू बहुल राष्ट्र है, लेकिन मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों की हर क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी के बिना उसकी कल्पना नहीं की जा सकती. उन्होंने हिंदू बहुसंख्यकवादी राजनीति के खतरों की पहले ही कल्पना कर ली थी और यह कोई संयोग नहीं है कि उन्होंने पहले चुनाव (1951-52) को हिंदू सांप्रदायिक राजनीति पर जनमत संग्रह में बदल दिया. उस समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सक्रिय था और विभाजन तथा उसके बाद हुए रक्तपात के कारण देश के कई हिस्सों में उसकी गहरी जड़ें बन चुकी थीं. पहले चुनाव की पूर्व संध्या पर, नेहरू के एक समय सहयोगी रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने, आरएसएस के कहने पर, जनसंघ नामक एक राजनीतिक पार्टी बनाई. लेकिन, सांप्रदायिकता के खतरे से लड़ने के लिए, नेहरू ने दमनकारी उपायों का सहारा नहीं लिया, बल्कि लोकतंत्र के उपकरणों का उपयोग किया. उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए राज्य की शक्ति का उपयोग नहीं किया, न ही असहमति की आवाजों को दबाया. उनके लिए संसद केवल ईंट और गारे से बनी इमारत नहीं थी, वह लोकतंत्र का मंदिर थी. इसी शासन भावना के साथ नेहरू ने सत्रह वर्षों तक देश का नेतृत्व किया और लगातार तीन चुनाव दो-तिहाई बहुमत से जीते.
वर्तमान सरकार, भले ही इस बात पर खुश हो कि उसने लगातार तीन संसदीय चुनाव जीतकर नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है, लेकिन उसके कवच में दरारें स्पष्ट दिखने लगी हैं. मोदी एक अजीब समस्या का सामना कर रहे हैं. उन्हें खुद से ही लड़ना है. 2014 के मोदी, 2024 के मोदी से कुछ कठिन सवाल पूछ रहे हैं. जब उन्होंने 2014 में प्रधानमंत्री पद के लिए प्रचार किया, तो मोदी ने लोगों की उम्मीदें जगाईं. उन्होंने देश की सभी समस्याओं के लिए खुद को बड़ी चतुराई से “एक-खिड़की” समाधान के रूप में प्रस्तुत किया. खासकर, हिंदी पट्टी में लोगों को यह विश्वास दिलाया कि वह ही वो “मसीहा” हैं, जिसका देश लंबे समय से इंतजार कर रहा था. एक बार जब वह प्रधानमंत्री बने, तो मुख्यधारा की मीडिया ने इस छवि को कई गुना बढ़ा दिया. यह ठीक वैसा ही था, जैसा स्वतंत्रता के समय, जब लोगों की आकांक्षाएं आसमान छू रही थीं. आम आदमी को विश्वास था कि अब जब देश ने विदेशियों से आज़ादी पा ली है और अब कोई अपना ही शासक है, तो रोजमर्रा की ज़िंदगी की मामूली समस्याएं अपने आप गायब हो जाएंगी. लेकिन, नेहरू को शुरू से ही पता था कि वह कोई सुपरहीरो नहीं हैं, न ही उनके पास कोई जादू की छड़ी है. वह जानते थे कि धैर्य और दृढ़ता ही लोगों का विश्वास जीतने का कवच है, और शिक्षा व प्रशिक्षण ही आगे बढ़ने का रास्ता है. इसके विपरीत, 2013 में जब से उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया, उन्होंने खुद को भगवान द्वारा भेजा गया बताया. यदि 2013-14 में यह संकेत सूक्ष्म और जटिल था, तो 2024 में यह उनके भीतर दिव्यता की घोषणा में पूरी तरह से अडिग और निर्लज्ज है.
भागवत और आरएसएस एक उग्र बाघ की सवारी कर रहे हैं
उपसंहार में, आशुतोष ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बारे में भी कलम चलाई है. लिखा है- भागवत के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि 2024 के फैसले से बहुत पहले ही उन्होंने हिंदुत्व की सीमाओं को समझ लिया था, और वह चाहते थे कि अगर आरएसएस को अखिल भारतीय स्तर पर प्रभावी बनना है, तो उसे अपनी वैचारिक दिशा बदलनी होगी. चुनावों के बाद भी उन्होंने मोदी समर्थकों के गुस्से को न्यौता देते हुए चुनाव प्रचार की मोदी की शैली पर सीधा हमला किया. बिना मोदी का नाम लिए, उन्होंने उन्हें अहंकारी कहा, एक ऐसा व्यक्ति जो खुद को ‘भगवान’ समझता है.
भागवत के सामने दो समस्याएं हैं. एक- वह और आरएसएस एक “उग्र बाघ” की सवारी कर रहे हैं, और अब वे उस बाघ को काबू में करना चाहते हैं, उसे अपनी दहाड़ कम करने की सलाह देना चाहते हैं. लेकिन अपने सौ साल के इतिहास में, आरएसएस ने कई पीढ़ियों के हिंदुओं को मुस्लिम विरोध के साथ पैदा और उनका पालन-पोषण किया है. अब उनसे मुसलमानों को अपनाने के लिए कहना, अपने अनुयायियों से अपनी ही पहचान, अपने अस्तित्व को नकारने जैसा है. यह खतरनाक है. इससे बाघ क्रोधित हो सकता है, और अपनी नाराजगी भागवत और आरएसएस की ओर मोड़ सकता है. हाल ही में, आरएसएस प्रमुख, जिन्हें परम पूजनीय माना जाता है, जिनकी राय अंतिम मानी जाती है, उन्हें हिंदुत्ववादियों द्वारा सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना और गालियां दी जा रही हैं. दूसरी बात- यह मानने का क्या कारण है कि भागवत कोई छल-कपट का खेल नहीं खेल रहे? उनके बयान एक दिखावा भी हो सकते हैं, जबकि वह एक साथ अच्छा और बुरा पुलिस वाला बनने की रणनीति अपना रहे हों. जैसा पहले भी कहा गया है, सरदार पटेल जैसे नेताओं ने भी कहा है कि आरएसएस छल करता है; वे कुछ कहते हैं और कुछ और करते हैं.
मैं भागवत को संदेह का लाभ देने को तैयार हूं. मैं मानने को तैयार हूं कि वह सचमुच उस रास्ते को बदलना चाहते हैं, जिस पर हिंदुत्व पिछले सौ वर्षों में चला है. मेरे आरएसएस के मित्रों ने मुझे बताया है कि भागवत आज एक चिंतित व्यक्ति हैं. वह चिंतित हैं, क्योंकि उन्होंने महसूस किया है कि अगर हिंदुत्व की यात्रा को नियंत्रित नहीं किया गया या उसकी दिशा नहीं बदली गई, तो कट्टर इस्लाम की तरह, हिंदुत्व भी बदनाम हो जाएगा, गाली बन जाएगा, न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी. वैश्विक मीडिया, विशेषकर पश्चिमी दुनिया में, हिंदुत्व के मुद्दे पर मोदी शासन की कड़ी और लगभग सार्वभौमिक आलोचना ने भगवत को झकझोर दिया है. कई वरिष्ठ आरएसएस नेता उनकी राय से सहमत हैं, और भाजपा में भी कुछ लोग ऐसा सोचते हैं. उनके अनुसार, अगर हिंदुत्व अपनी भाषा में नरमी नहीं लाता, तो हिंदू एकता परियोजना का पूरा उद्देश्य गंभीर संकट में पड़ जाएगा, और आरएसएस ऐसा होने नहीं दे सकता. उनकी समझ में, मोदी और भाजपा सरकार बनाने की महत्वाकांक्षा से प्रेरित हो सकते हैं; आरएसएस पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. उनके लिए राजनीति द्वितीयक है; मुख्य उद्देश्य हिंदुओं की प्राचीन महिमा को पुनः प्राप्त करना है, जो तब तक संभव नहीं है, जब तक हिंदुत्व और हिंदू शब्द ही हिंसा, असहिष्णुता और घृणा का पर्याय न बन जाए. यह आरएसएस के लिए सभ्यतागत आत्महत्या होगी.
2024 के चुनाव परिणाम एक चेतावनी संकेत हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व ने भी यह संकेत प्राप्त कर लिया है. इसीलिए, जाति जनगणना के मुद्दे पर, हिंदू एकता के लिए, आरएसएस ने मान लिया है कि यह—राजनीति के लिए नहीं, बल्कि कल्याण के लिए—हो सकती है. लेकिन ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसी भाषा, जो संसद चुनाव के बाद महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल हुई, यह भी दर्शाती है कि आरएसएस के भीतर भी संघर्ष चल रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने संघर्ष समाधान तंत्र के लिए जाना जाता है, यही कारण है कि उसके इतिहास में कभी उसका विभाजन नहीं हुआ. लेकिन फिर, उसने कभी इतनी बड़ी “पावर” का स्वाद नहीं चखा, और “पावर” की अपनी ही गतिशीलता होती है. पावर किसी भी साम्राज्य को बना या बिगाड़ सकती है और आरएसएस भी इसका अपवाद नहीं है.
अंत में, यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन की भूमिका बहुत बड़ी है. इसने काफी हद तक बाघ को काबू करने में सफलता पाई है; 2024 चुनाव में उसने काफी जमीन वापस हासिल की है. उसने हिंदुत्व की ताकतों को कमजोर किया है. यूपी और महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा को निर्णायक रूप से हराने के बाद, इसने यह उम्मीद फिर से जगा दी है कि हिंदुत्व अजेय नहीं है, और हिंदू राष्ट्र की यात्रा को रोका जा सकता है; गांधी, नेहरू, पटेल, बोस, आज़ाद और अंबेडकर का भारत फिर से हासिल किया जा सकता है, बशर्ते वह अपने तमाम अंतर्विरोधों और महत्वाकांक्षाओं के टकराव के बावजूद एकजुट रहे.
(प्रकाशक वेस्टलैंड | मूल्य 599 रुपये | लिंक )
"अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बिना हार्वर्ड, हार्वर्ड नहीं है."
रॉयटर्स के मुताबिक अमेरिकी जज ने ट्रम्प प्रशासन को हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विदेशी छात्रों के नामांकन को रद्द करने से अस्थायी रूप से रोक दिया. यह नीति, हार्वर्ड के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की उस व्यापक कोशिश का हिस्सा थी, जिसमें वह विश्वविद्यालय की शैक्षणिक स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश कर रहे थे. यह आदेश कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स स्थित विश्वविद्यालय के लिए राहत लेकर आया, जो इस नीति को अमेरिकी संविधान और अन्य संघीय कानूनों का ‘खुला उल्लंघन’ मानता था. हार्वर्ड ने कहा कि यह नीति विश्वविद्यालय और 7,000 से अधिक वीजा धारक छात्रों पर "तत्काल और विनाशकारी प्रभाव" डालेगी. हार्वर्ड ने अपने मुकदमे में कहा, "अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बिना हार्वर्ड, हार्वर्ड नहीं है." इस शैक्षणिक वर्ष में हार्वर्ड में करीब 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्र नामांकित हैं, जो कुल नामांकन का 27% हैं. यह कदम ट्रम्प प्रशासन और हार्वर्ड के बीच चल रही तनातनी का हिस्सा है, जिसमें प्रशासन विश्वविद्यालयों, कानूनी फर्मों और अन्य स्वतंत्र संस्थानों को अपनी नीतियों के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है. जज एलिसन बरोज ने इस नीति को दो सप्ताह के लिए रोक दिया और 27 व 29 मई को सुनवाई तय की. हार्वर्ड के अध्यक्ष एलन गार्बर ने कहा कि प्रशासन अवैध रूप से विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम, फैकल्टी और छात्रों पर नियंत्रण चाहता है. विश्वविद्यालय ने दावा किया कि यह कदम प्रथम संशोधन का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह निजी अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने के लिए दबाव का उपयोग करता है.
चलते-चलते
जब एक दलित और मुस्लिम की दोस्ती पर बनी फिल्म के लिए बजती रहीं नौ मिनट तालियां
बीबीसी में असीम छाबड़ा लिखते हैं कि 23 मई 2025 को कान्स फिल्म फेस्टिवल में भारतीय फिल्म 'होमबाउंड' ने इतिहास रच दिया. निर्देशक नीरज घेवन की यह फिल्म "अन सर्टेन रिगार्ड" सेक्शन में प्रदर्शित हुई और इसे नौ मिनट तक खड़े होकर तालियां मिलीं. 'होमबाउंड' कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान दो पुरुषों - एक मुस्लिम और एक दलित - की दोस्ती और घर वापसी की भावुक कहानी है. यह न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख "टेकिंग अमृत होम" से प्रेरित है. नीरज घेवन ने 2010 में 'मसान' से कान्स में डेब्यू किया था, जो जाति व्यवस्था पर आधारित थी. अब 'होमबाउंड' में भी उन्होंने हाशिए पर जी रहे लोगों की कहानी को बखूबी पेश किया. फिल्म के मुख्य कलाकार इशान खट्टर, विशाल जेठवा और जाह्नवी कपूर हैं. प्रीमियर के दौरान दर्शक भावुक हो गए, और नीरज ने निर्माता करण जौहर को गले लगाया.
इस फिल्म को हॉलीवुड दिग्गज मार्टिन स्कोर्सेसे का भी साथ मिला. स्कोर्सेसे ने कहा, "नीरज की 'मसान' मुझे पसंद थी, और इस कहानी ने मुझे प्रभावित किया." करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस ने इसे प्रोड्यूस किया है. नीरज, जो खुद दलित समुदाय से हैं, कहते हैं, "मैं हिंदी सिनेमा में इस समुदाय का अकेला जाना-माना चेहरा हूं." 'होमबाउंड' न सिर्फ मनोरंजन करती है, बल्कि समाज के छिपे दर्द को भी उजागर करती है. यह फिल्म निश्चित रूप से दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ेगी.
पाठकों से अपील-
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