24/07/2025: बिहार में बहिष्कार की बात | सुपरमैन बीएलओ | जदयू सांसद को तुग़लक की याद | पटना प्रशासन का 'फैक्ट चेक' या फेक़ न्यूज | गाज़ियाबाद में दूतावास | रतन थियाम - थियेटर का कीमियागर
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
बिहार वोटर लिस्ट संशोधन पर खुलासे: अजीत अंजुम के वीडियो का प्रशासनिक 'फैक्ट-चेक' खुद सवालों में
अगर सब कुछ फिक्स है, तो चुनाव कराने का क्या मतलब?, तेजस्वी ने बहिष्कार की बात की
"क्या बीएलओ तय करेगा कौन नागरिक है?" - मतदाता सूची पुनरीक्षण पर उठे लोकतांत्रिक सवाल
जद(यू) सांसद ने कहा, बिहार में तुग़लकी फरमान
अंधा फेरबदल या फर्जीवाड़ा? पटना प्रशासन का 'फैक्ट चेक' या फेक़ न्यूज
दावा नंबर 25 : भारत- पाक जंग मैंने रुकवाई
दाल में कुछ काला है : ट्रम्प के दावे पर बोले राहुल
16 घंटे : ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए
पहलगाम की जवाबदेही पर सवाल
सिंदूर के दौरान विमान दुर्घटना में मारे गये दलित के परिजनों ने सरकार से मुआवज़े की मांग की
गाज़ियाबाद में काल्पनिक देश का फर्जी दूतावास, मोदी-कलाम के साथ फेक फोटो
राम जानकी मंदिर से 90 लाख का गबन करने वाली साध्वी गिरफ्तार
हरियाणा सरकार ने छेड़छाड़ के आरोपी विकास बराला को बनाया सहायक महाधिवक्ता
हनीट्रैप के लिए पैगासस जैसे सर्वेलेंस का इस्तेमाल
सीजेआई गवई ने जस्टिस वर्मा मामले की सुनवाई से खुद को अलग किया
मोदी के लौटने के बाद नए उपराष्ट्रपति का फैसला
राष्ट्रपति सचिवालय के स्टाफ को भी चौंका दिया
मिग-21 , 62 साल पुराने सफर का होगा अंत
श्रवण गर्ग: अब किसके रिटायरमेंट की प्रतीक्षा की जाए ? मोदी के या भागवत के?
हिमाचल की जनजातीय महिला ने दो भाइयों से की शादी: कानून में ‘बहुपतित्व’ की क्या स्थिति है?
ये नज़दीकियां: ट्रम्प और एपस्टीन की नई तस्वीरें और वीडियो सामने आए
साई सुदर्शन चमके, पहले दिन भारत 4 / 264
एक विराट बरगद के बारे में हम बात तो करेंगे, पर उसकी छाया में जाकर बैठ नहीं पाएंगे
‘ऐसा लगता है जैसे भारत ने हमें छोड़ दिया है’
थियाम का ऋतुसंहार
अगर सब कुछ फिक्स है, तो चुनाव कराने का क्या मतलब?, तेजस्वी ने बहिष्कार की बात की
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने बुधवार को पटना में कहा कि इस बार विपक्ष राज्य विधानसभा के चुनावों का बहिष्कार कर सकता है. इस बारे में महागठबंधन की सभी पार्टियों के साथ विचार विमर्श किया जाएगा. उन्होंने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण के नाम पर जब बेईमानी से सब तैयार कर लिया गया है, तो हम तय करेंगे कि आगे क्या करना है. राजद नेता ने कहा, "अगर सब कुछ फिक्स है, तो चुनाव कराने का क्या मतलब?" उन्होंने यह भी कहा कि वे देखेंगे कि जनता क्या चाहती है और फिर निर्णय लेंगे. तेजस्वी ने चुनाव आयोग पर बीजेपी के दबाव में काम करने का आरोप लगाया और कहा कि चुनाव ईमानदारी से नहीं हो रहे हैं. उन्होंने बीजेपी को ‘एक्सटेंशन’ देने तक की बात कही.
"क्या बीएलओ तय करेगा कौन नागरिक है?" - मतदाता सूची पुनरीक्षण पर उठे लोकतांत्रिक सवाल
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा चलाया जा रहा विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान अब एक बड़े विवाद के केंद्र में आ गया है. इस अभियान का औचित्य यह बताया गया है कि इससे "बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से आए अवैध प्रवासियों" को मतदाता सूची से हटाया जा सकेगा. मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण अब आम जनता की पहचान और अस्तित्व का सवाल बन गया है. कई लोगों को यह भी नहीं बताया गया कि उनका नाम काहे काटा गया. बस एक बीएलओ आया, कुछ पूछा और चला गया. उसके बाद नाम सूची से ग़ायब. लेकिन एक मौलिक सवाल अब राष्ट्रीय बहस बनता जा रहा है - क्या एक ब्लॉक स्तर का अधिकारी (बीएलओ) यह तय कर सकता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं?
इस विषय पर वरिष्ठ वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने शो "Central Hall" में इस निर्णय की वैधानिकता पर गहरी आपत्ति जताई. सिब्बल ने पूछा - "नागरिकता का निर्धारण संविधान और कानून के तहत होता है. फिर यह अधिकार एक बीएलओ को कैसे दिया जा सकता है?" कार्यक्रम में शामिल पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा कि निर्वाचन आयोग का काम केवल मतदाता की पात्रता जांचना है, नागरिकता तय करना नहीं. "अगर किसी का नाम हटाने का आधार यह हो कि वह 'संभावित गैर-नागरिक' है, तो यह पूरी प्रक्रिया असंवैधानिक हो सकती है."
राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने इसे एक "राजनीतिक प्रोजेक्ट" करार देते हुए कहा - "इस प्रक्रिया का लक्ष्य सीमावर्ती इलाकों में खास समुदायों के नाम काटना है. ये सिर्फ प्रशासनिक पुनरीक्षण नहीं है - ये पहचान की राजनीति है." यहां देखिए पूरी बातचीत.
जद(यू) सांसद ने कहा, बिहार में तुग़लकी फरमान
जद (यू) के बांका (बिहार) से सांसद गिरधारी यादव अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं. बुधवार को उन्होंने अपनी पार्टी और उसकी सहयोगी बीजेपी से अलग रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग द्वारा बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चलाए जा रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) अभियान की आलोचना की और इसे “तुगलकी फरमान” कहा. उन्होंने “द इंडियन एक्सप्रेस” को दिए एक इंटरव्यू में एसआईआर की समस्याओं और संभावित परिणामों पर कहा कि चुनाव आयोग ने इतने बड़े काम के लिए बहुत कम समय दिया है. यह बिहार में खेती का समय है, लोग कृषि कार्य में व्यस्त हैं. लेकिन उन्हें कागजात के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है. इसी समय राज्य के कई हिस्सों में बाढ़ आ जाती है और गांव बह जाते हैं. लोग अपनी जिंदगी संवारने में लगे रहते हैं. ऐसे समय में इस तरह का अभियान चलाना ठीक नहीं है.
चुनाव आयोग का कहना है कि ऑनलाइन फॉर्म भरने की सुविधा है, लेकिन बिहार के कई लोग अशिक्षित हैं. वे जीविका के लिए राज्य से बाहर पलायन करते हैं और जानवरों जैसी स्थिति में रहने को मजबूर होते हैं. ये लोग ऑनलाइन कैसे करेंगे? मुझे अपने ही कागजात जुटाने में 10 दिन लगे. मेरा बेटा अमेरिका में है, वह एक महीने में कैसे दस्तखत करेगा? चुनाव आयोग को इस काम के लिए कम से कम छह महीने का वक्त देना चाहिए था.
उन्होंने कहा कि लोग शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें कागजात जुटाने में बहुत दिक्कत आ रही है. कई जगह अधिकारियों द्वारा रिश्वत मांगने की भी बात सामने आ रही है, ऐसा मेरे क्षेत्र के लोगों ने मुझे बताया है.
मुझे यह नहीं पता कि इस अभियान से वास्तविक वोटर छूट सकते हैं या नहीं, लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि लोग परेशान हो रहे हैं. कोई भी सरकार या संवैधानिक संस्था लोगों का जीवन आसान बनाने के लिए है, न कि और जटिल. लोकसभा चुनाव हुए एक साल हो गया है, चुनाव आयोग अब तक क्या कर रहा था? पूरे साल वोटर लिस्ट में नाम जुड़ते रहते हैं और अब आप कह रहे हैं कि इंटेंसिव रिवीजन करेंगे. यह काम लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद शुरू किया जा सकता था. इससे लोगों के मन में संदेह पैदा होता है. यादव की दीप्तिमान तिवारी से बातचीत विस्तार में यहां पढ़ सकते हैं.
अंधा फेरबदल या फर्जीवाड़ा? पटना प्रशासन का 'फैक्ट चेक' या फेक़ न्यूज
बिहार में आगामी चुनावों को लेकर चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान पर अब गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम द्वारा जारी किए गए एक वीडियो रिपोर्ट में पटना के फुलवारी विधानसभा क्षेत्र के एक ब्लॉक कार्यालय में बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा कथित रूप से फर्जी हस्ताक्षर करने के आरोप लगाए गए. हालांकि इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, पटना जिला प्रशासन और चुनाव आयोग दोनों ने अंजुम के दावों को "भ्रामक और निराधार" बताते हुए 'फैक्ट-चेक' जारी किया. लेकिन इन दोनों 'स्पष्टीकरणों' में खुद कई गंभीर विरोधाभास और कानूनी असंगतियां सामने आई हैं.
‘ऑल्ट न्यूज़’ के लिए अभिषेक कुमार की रिपोर्ट है कि पटना जिला प्रशासन ने पहले प्रेस नोट में कहा कि अंजुम द्वारा जिस बीएलओ को वीडियो में दिखाया गया है, वह दरअसल मृत/स्थानांतरित मतदाताओं की सूची बना रहा था. उन्होंने दो ऐसे दस्तावेज भी साझा किए जिनमें बीएलओ 'रानी कुमारी' द्वारा 'Death' या 'Shifted' लिखकर हस्ताक्षर करने का दावा किया गया.
हालांकि, ‘ऑल्ट न्यूज़’ की पड़ताल में निकलकर आया कि अजीत अंजुम के वीडियो में दिख रहे बीएलओ स्वयं के नाम से नहीं, बल्कि "शांती देवी" और "चंद्र प्रकाश साह" के नाम से फॉर्म पर हस्ताक्षर करते दिखे. यानि बीएलओ द्वारा मृत व्यक्ति के नाम से हस्ताक्षर करना प्रशासन के पहले दावे को झूठा सिद्ध करता है.
प्रशासन का दूसरा दावा: गड़बड़ ही गढ़बड़
पहले दावे के उजागर होने के बाद, प्रशासन ने दूसरी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि दोनों व्यक्ति (शांती देवी और चंद्र प्रकाश साह) वास्तव में मृतक हैं, और बीएलओ ने मृतक का नाम हस्ताक्षर के स्थान पर लिखकर सत्यापन किया.
इस दावे में दो गंभीर प्रश्न उठते हैं. पहला कि क्या भारत में किसी मृतक व्यक्ति के नाम से हस्ताक्षर करना कानूनी प्रक्रिया मानी जाती है? बीएलओ द्वारा हस्ताक्षर की जगह मृत व्यक्ति का नाम लिखना — क्या यह दस्तावेज़ी फर्जीवाड़ा नहीं है?
और दूसरा भारतीय कानून के तहत दूसरे व्यक्ति के नाम से हस्ताक्षर करना फर्जीवाड़ा (Forgery) माना जाता है. और कोई व्यक्ति मृत होने के बाद हस्ताक्षर कर ही नहीं सकता. इस आधार पर जिला प्रशासन की सफाई कानूनन भी टिकती नहीं.
संजय कुमार: न मृत, न स्थानांतरित — फिर हस्ताक्षर क्यों?
अजीत अंजुम के वीडियो में संजय कुमार, पिता रामायण यादव नामक मतदाता का फॉर्म भी दिखता है, जिस पर एक महिला बीएलओ हस्ताक्षर करती दिखाई देती हैं.
‘ऑल्ट न्यूज़’ और अन्य पत्रकारों ने पड़ताल की तो पाया कि संजय कुमार जीवित हैं और वहीं निवास करते हैं.
पत्रकार मीरा राजपूत और ज्योतिष चौहान ने उनकी वोटर आईडी और आधार कार्ड भी प्रस्तुत किए, जिनसे पुष्टि होती है कि संजय न तो मृतक हैं, न ही कहीं और स्थानांतरित हुए हैं. तो फिर बीएलओ द्वारा उनके स्थान पर फॉर्म पर हस्ताक्षर करने का क्या औचित्य था?
प्रशासन ने बदला संजय कुमार के फॉर्म की स्थिति
18 जुलाई को अजीत अंजुम ने सोशल मीडिया पर संजय कुमार के फॉर्म की तस्वीरें साझा कीं, जिसमें उसका स्टेटस था - "फॉर्म सबमिट हो चुका है, नाम 1 अगस्त की ड्राफ्ट मतदाता सूची में आएगा." लेकिन बाद में जब ‘ऑल्ट न्यूज़’ ने दोबारा स्टेटस चेक किया तो परिणाम आया - "अपने बीएलओ से संपर्क करें." यानी प्रशासन ने सोशल मीडिया पर मामला उजागर होने के बाद फॉर्म की स्थिति बदल दी, जिससे साफ प्रतीत होता है कि गलती छिपाने की कोशिश की गई.

दावा नंबर 25 : भारत- पाक जंग मैंने रुकवाई
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर - कथित तौर पर 25वीं बार - भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने का श्रेय लिया है, जिसकी विपक्ष ने कड़ी आलोचना की है. इस बीच, अमेरिकी विदेश विभाग ने राष्ट्रपति के बयानों का समर्थन किया है, और प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रम्प और विदेश मंत्री दोनों ने संभावित रूप से अस्थिर स्थितियों, जैसे कि भारत-पाकिस्तान गतिरोध में हस्तक्षेप किया है, और तनाव कम करने में मदद करने में सक्षम थे.
दाल में कुछ काला है : ट्रम्प के दावे पर बोले राहुल
इधर, कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला. राहुल ने सवाल किया कि ट्रम्प के बार-बार दावे करने के बावजूद प्रधानमंत्री ने एक बार भी जवाब क्यों नहीं दिया. उन्होंने कहा, "आप कह रहे हैं कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है, एक तरफ आप कहते हैं कि हम विजयी हो गए हैं. दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रम्प ने 25 बार कहा कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को रोक दिया है. कुछ न कुछ तो दाल में काला है ना." बिहार में किए जा रहे एसआईआर पर कहा कि हिंदुस्तान में चुनाव चोरी किए जा रहे हैं, यह सच्चाई है. बिहार में एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक भाई-बहनों के वोट चुराए जा रहे हैं. हम चुप नहीं बैठेंगे. इंडिया गठबंधन संसद से सड़क तक जन अधिकार की लड़ाई लड़ेगा.
16 घंटे : ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के लिए
संसद में “ऑपरेशन सिंदूर” पर चर्चा संभवतः अगले सोमवार, 28 जुलाई को होगी. मोदी सरकार ने दोनों सदनों में खास चर्चा के लिए 16 घंटे आवंटित किए हैं. इसके लिए सभी दलों के बीच सहमति बनी है. लोकसभा में यह चर्चा 28 जुलाई से शुरू होगी और यदि कोई बाधा न आई तो राज्यसभा में यह एक दिन बाद, 29 जुलाई को होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह के इस मुद्दे पर सरकार का पक्ष रखने की उम्मीद है, जबकि विपक्ष ने प्रधानमंत्री से दोनों सदनों और राष्ट्र को संबोधित करने की मांग की है.
पहलगाम की जवाबदेही पर सवाल
पहलगाम हत्याकांड के तीन महीने बाद, कश्मीर में जघन्य हमले के जिम्मेदार अपराधियों को पकड़ने के लिए जवाबदेही की मांग बढ़ रही है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में कहा था, "जब ऐसी गंभीर गलती के कारण कीमती जानें जाती हैं तो जवाबदेही तय होनी चाहिए. कश्मीर के लोग यह जानने के हकदार हैं कि क्या गलत हुआ और किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा." यह बयान उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बाद आया है, जो पांच साल बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जिन्होंने इस घटना को "सुरक्षा में चूक" बताते हुए पूरी जिम्मेदारी ली थी. हमलों में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय टट्टू सवार सहित छब्बीस लोग मारे गए थे. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने कथित तौर पर हमलावरों को आश्रय और भोजन प्रदान करने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया है.
सिंदूर के दौरान विमान दुर्घटना में मारे गये दलित के परिजनों ने सरकार से मुआवज़े की मांग की
हाल ही में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान एक सैन्य विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उसमें विस्फोट होने से मारे गए बठिंडा के दलित व्यक्ति राज कुमार सिंह के परिवार ने सरकार से मुआवजे की मांग की है. राज कुमार की विधवा, परमजीत कौर ने वित्तीय सहायता की मांग करते हुए आवेदन जमा कराया है. सिंह की मृत्यु 11 मई को हुई थी. वह दुर्घटना में घायल होने के बाद कुछ समय तक इलाजरत रहे थे.
परिवार की आय पूरी तरह दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर थी और सिंह की मृत्यु के बाद उनके पास आजीविका का कोई अन्य साधन नहीं है. उनके बेटे जगमीत सिंह (15) और बेटी गगनदीप कौर (14) अभी स्कूल में पढ़ते हैं और उनका भरण-पोषण भी संभव नहीं रह गया है. दुर्घटना के पहले शिकार, हरियाणा निवासी गोविंद कुमार (32) की पत्नी ममता, बेटी परी और बेटा प्रशांत हैं. गोविंद भी बठिंडा जिले में मजदूरी करते थे और उनकी मौत के बाद उनका परिवार भी मुआवज़े की मांग कर रहा है.
गाज़ियाबाद में काल्पनिक देश का फर्जी दूतावास, मोदी-कलाम के साथ फेक फोटो
उत्तरप्रदेश एसटीएफ ने गाजियाबाद में “वेस्ट आर्कटिका” नामक एक काल्पनिक देश के फर्जी दूतावास का भंडाफोड़ किया है. आरोपी हर्षवर्धन जैन को गिरफ्तार किया गया, जो कविनगर स्थित एक किराए के बंगले से यह फर्जी दूतावास चला रहा था. जैन खुद को वेस्ट आर्कटिका, सबोर्गा, पॉलविया और लोडोनिया जैसे काल्पनिक देशों का 'राजदूत' बताता था. उसके पास से फर्जी विदेश मंत्रालय की मुहर, 12 नकली डिप्लोमैटिक पासपोर्ट, चार लग्जरी कारें जिन पर डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट लगी थी, 34 विभिन्न देशों और कंपनियों की मोहरें, फर्जी प्रेस कार्ड, पैन कार्ड, विदेशी करेंसी और लगभग 44.7 लाख रुपये की नकदी बरामद की गई है.
पुलिस के मुताबिक, जैन पड़ोसियों और कारोबारियों को ऊंचे पद, विदेशों में नौकरी, डिप्लोमैटिक रैंक व सरकारी पहुंच का झूठा झांसा देकर ठगता था. भरोसा दिलाने के लिए उसने अपनी कई फोटो मॉर्फ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सहित बड़े नेताओं के साथ तस्वीरें बनाई थीं. “वेस्ट आर्कटिका” असल में कैलिफोर्निया में पंजीकृत एक गैर-मान्यता प्राप्त माइक्रोनेशन है, जिसका कोई अंतरराष्ट्रीय दर्जा या राजनयिक मान्यता नहीं है. भारत समेत विश्व मानचित्र में ऐसे देशों का कोई अस्तित्व नहीं है.
राम जानकी मंदिर से 90 लाख का गबन करने वाली साध्वी गिरफ्तार
करीब एक साल फरार रहने के बाद, छिंदवाड़ा के एक मंदिर ट्रस्ट से 90 लाख रुपये गबन करने की आरोपी 39 वर्षीय महिला को सोमवार को नर्मदापुरम जिले से गिरफ्तार किया गया. आरोपी की पहचान रैना रघुवंशी उर्फ साध्वी लक्ष्मीदास के रूप में हुई है. उसे चौरई पुलिस ने आयोध्या से लौटने की सूचना मिलने के बाद चांदपुर गांव से हिरासत में लिया. उसे मंगलवार को अदालत में पेश किया गया, जहां उसे दो दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया."
अधिकारियों ने बताया कि आरोपी ने खुद को दिवंगत मंदिर प्रमुख, महंत कनक बिहारी दास का उत्तराधिकारी बताते हुए धोखा दिया. पुलिस के अनुसार, महंत कनक बिहारी दास की मृत्यु के बाद, आरोपी ने कथित तौर पर उनके बैंक खातों तक पहुंच बनाकर 90 लाख रुपये निकाल लिए. यह पैसा श्री राम जानकी मंदिर समिति का था.
हरियाणा सरकार ने छेड़छाड़ के आरोपी विकास बराला को बनाया सहायक महाधिवक्ता
हरियाणा सरकार ने विकास बराला को सहायक महाधिवक्ता नियुक्त किया है. विकास बराला वही व्यक्ति हैं जो 2017 के चंडीगढ़ छेड़छाड़ मामले में आरोपी हैं और वरिष्ठ बीजेपी नेता सुभाष बराला के बेटे हैं. न्याय विभाग द्वारा 18 जुलाई को जारी आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, विकास उन 97 लोगों में शामिल हैं, जिन्हें अतिरिक्त महाधिवक्ता, वरिष्ठ उप महाधिवक्ता, उप महाधिवक्ता और सहायक महाधिवक्ता जैसे पदों पर नियुक्त किया गया है.
5 अगस्त 2017 को विकास बराला और उनके मित्र आशीष कुमार के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 354D (पीछा करना), 341 (ग़लत तरीके से रोकना), 365 (अपहरण का प्रयास), और 511 (अपराध की कोशिश), साथ ही शराब पीकर गाड़ी चलाने से संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. यह शिकायत पूर्व आईएएस अधिकारी वीएस कुंडू की बेटी वर्णिका कुंडू ने दर्ज कराई थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि दोनों आरोपियों ने रात के समय उनकी गाड़ी का पीछा किया और जबरदस्ती अंदर घुसने की कोशिश की.
यह मामला सेक्टर 26 थाना, चंडीगढ़ में एफआईआर नंबर 156 के तहत दर्ज किया गया था. उस समय इस घटना को लेकर पूरे देश में भारी आक्रोश देखा गया था. 13 अक्टूबर 2017 को आरोप तय किए गए, लेकिन ट्रायल अब तक लंबित है. अगली सुनवाई 2 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है, जिसमें बचाव पक्ष के साक्ष्य दर्ज किए जाएंगे.
वर्णिका कुंडू ने 'द क्विंट' से बातचीत में कहा कि विकास बराला को इस तरह के पद पर नियुक्त किए जाने से उनका न्यायपालिका में भरोसा कमजोर हो रहा है. "जहां एक ओर न्याय की उम्मीद अब भी ज़िंदा है, वहीं यह कहना पड़ेगा कि न्यायपालिका पर मेरा भरोसा डगमगा रहा है. हरियाणा सरकार को कुछ सवालों के जवाब देने होंगे."
हनीट्रैप के लिए पैगासस जैसे सर्वेलेंस का इस्तेमाल
शिवसेना (यूबीटी) ने सामना में प्रकाशित एक संपादकीय में आरोप लगाया कि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के विधायकों और सांसदों को हनीट्रैप करने के लिए छिपे हुए कैमरों और पेगासस जैसे निगरानी प्रणाली का इस्तेमाल किया गया, जिससे 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई. सेना (यूबीटी) ने दावा किया कि अविभाजित शिवसेना और एनसीपी के कई विधायकों ने केंद्रीय एजेंसियों के दबाव में निष्ठा बदली. इसमें दावा किया गया कि कम से कम 18 विधायकों और चार सांसदों को "हनीट्रैप" किया गया, जिससे उन्हें अपनी छवि बचाने के लिए भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा. संपादकीय में कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार के उस बयान का उल्लेख किया गया जिसमें उन्होंने कहा था कि सांसदों और विधायकों को ब्लैकमेल किया गया था. एक पूर्व नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उनके बयानों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. संपादकीय में कहा गया, "इजरायल से छिपे हुए कैमरों और पेगासस जैसे सिस्टम का इस्तेमाल (निगरानी के लिए) पूरी तरह से किया गया था. अब यह स्पष्ट है कि एमवीए सरकार इस (हनी) ट्रैपिंग के कारण गिरी."
सीजेआई गवई ने जस्टिस वर्मा मामले की सुनवाई से खुद को अलग किया
सीजेआई बी.आर. गवई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा द्वारा दायर उस याचिका की सुनवाई से अपने को अलग कर लिया है, जिसमें उन्होंने बेहिसाब नकदी के मामले में दोषी ठहराने वाली इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है. “बार एंड बेंच” ने रिपोर्ट किया है कि यह मामला जस्टिस गवई के समक्ष वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल द्वारा उठाया गया, जो वर्मा की ओर से उपस्थित थे और उन्होंने मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की. सीजेआई ने कहा कि वे इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते क्योंकि वे स्वयं "इस जांच समिति का हिस्सा" थे. उन्होंने यह भी कहा कि वे एक बेंच का गठन करेंगे और मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे.
मोदी के लौटने के बाद नए उपराष्ट्रपति का फैसला
बुधवार को चुनाव आयोग ने घोषणा की कि उसने उपराष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अपने बयान में, चुनाव आयोग ने बताया कि जैसे ही तैयारियां पूरी होंगी, उपराष्ट्रपति पद के चुनाव का कार्यक्रम जल्द घोषित किया जाएगा. इस बीच “द इंडियन एक्सप्रेस” की खबर है कि जगदीप धनखड़ का उत्तराधिकारी कौन होगा, इसका फैसला बीजेपी संसदीय बोर्ड करेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो इस बोर्ड के अध्यक्ष हैं, बुधवार को चार दिवसीय विदेश दौरे पर रवाना हो गए हैं, इसलिए यह बैठक उनकी वापसी के बाद ही होगी. सरकार का उम्मीदवार—जिसके चुने जाने की संभावना है, क्योंकि लोकसभा और राज्यसभा में बीजेपी-नेतृत्व वाले एनडीए के पास पर्याप्त संख्या है, "पूरी तरह से वफादार" व्यक्ति होगा.
राष्ट्रपति सचिवालय के स्टाफ को भी चौंका दिया
जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे से सबसे अधिक जो लोग चौंके, उनमें राष्ट्रपति सचिवालय के कर्मचारी भी थे. अखिलेश कुमार सिंह ने रिपोर्ट किया है कि सोमवार रात बिना किसी पूर्व सूचना के राष्ट्रपति भवन में धनखड़ की अचानक उपस्थिति ने सचिवालय के कर्मचारियों को पूरी तरह से आश्चर्यचकित कर दिया और शांतिपूर्ण कार्यालय में हलचल मचा दी. इसके बाद धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया.
मिग-21 , 62 साल पुराने सफर का होगा अंत
'द हिन्दू' के लिए सौरभ त्रिवेदी की रिपोर्ट है कि भारतीय वायुसेना (IAF) के मिग-21 बाइसन लड़ाकू विमानों का 62 वर्षों का लंबा सफर अब सितंबर में औपचारिक विदाई के साथ खत्म होने जा रहा है. एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि यह सेरेमोनियल रिटायरमेंट चंडीगढ़ एयरबेस पर आयोजित किया जाएगा, जिसमें वो वेटरन पायलट भी शामिल होंगे जिन्होंने इन विमानों को उड़ाया था. मिग-21 विमानों की जगह स्वदेशी तेजस Mk1A विमान लेंगे. मिग-21 एक सिंगल इंजन सुपरसोनिक फाइटर और इंटरसेप्टर एयरक्राफ्ट है, जिसने 1963 में सेवा में आने के बाद से भारतीय वायुसेना की रीढ़ की हड्डी का काम किया — खासकर तब तक जब तक सुखोई Su-30MKI विमान नहीं आए.
1965 और 1971 की भारत-पाक युद्ध, 1999 का कारगिल युद्ध, 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक और हाल ही के ऑपरेशन सिन्दूर अभियान जिनमें मिग-21 ने निभाई बड़ी भूमिका निभाई. इन्हीं मिग-21 बाइसन में से एक को तत्कालीन विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने बालाकोट ऑपरेशन के दौरान उड़ाया था.
अब तक भारत ने 700 से अधिक मिग-21 विमान हासिल किए, जिनमें से कई को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने देश में ही बनाया. वर्तमान में ये विमान राजस्थान के नल एयरबेस पर तैनात 23 स्क्वाड्रन (पैंथर्स) द्वारा उड़ाए जा रहे हैं. बीते 60 वर्षों में मिग-21 से जुड़ी दुर्घटनाओं में करीब 170 पायलट और 40 नागरिकों की मौत हो चुकी है. इन्हें कभी ‘फ्लाइंग कॉफिन’ कहा जाता था - लगातार हो रही दुर्घटनाओं के कारण. बहरहाल, 1960 के दशक में आसमान का शेर कहलाने वाला मिग-21 अब इतिहास बन जाएगा.
विश्लेषण
श्रवण गर्ग: अब किसके रिटायरमेंट की प्रतीक्षा की जाए ? मोदी के या भागवत के?
धनखड़ एपिसोड के पहले तक जनता के बीच दो तरह की चर्चाएँ चल रही थीं ! उन पर बहसें भी हो रही थीं और आर्टिकल्स भी लिखे जा रहे थे ! लिखने वालों में आरएसएस से जुड़े लोग भी थे. एक चर्चा का संबंध इस बात से था कि क्या 11 सितंबर को (इस दिन विनोबा जयंती भी है )अपनी आयु के 75 वर्ष पूरे करते ही संघ प्रमुख मोहन भागवत अपना दायित्व किसी सहयोगी को सौंप देंगे ? दूसरी चर्चा यह थी कि छह दिन बाद ही 17 सितंबर को 75 पूरे करते ही क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं द्वारा स्थापित सिद्धांत के अनुसार अपने स्थान पर किसी अन्य नेता का नाम प्रस्तावित कर देंगे ?
इस तरह की कोई चर्चा मोहन भागवत को लेकर नहीं रही और न है कि वे अगर पद त्याग कर देते हैं तो नागपुर का क्या होगा ? संघ का दायित्व कौन सम्भालेगा ? 21 जुलाई के बाद से कोई भी चर्चा इन आशंकाओं को लेकर तो बिलकुल ही नहीं है कि भागवत तो 11 सितंबर को पद-त्याग की घोषणा कर दें पर मोदी 17 सितंबर को नहीं करें, वे किसी गुफा या स्मारक पर जाकर ध्यानस्थ हो जाएँ और ईश्वरीय आदेश प्राप्त करके नए संकल्पों के साथ नेतृत्व के लिए प्रकट हो जाएँ तो संघ प्रमुख की क्या प्रतिक्रिया होगी ?
संघ के दिवंगत विचारक मोरोपंत पिंगले के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘ मोरोपंत पिंगले : द आर्किटेक्ट ऑफ़ हिंदू रिसर्जेंस’ के नौ जुलाई को नागपुरमें हुए विमोचन समारोह में भागवत ने यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि :’पचहत्तर बाद समझ लो कि अब रुक जाना चाहिये, तुम्हारी उम्र हो गई है ! अब दूसरों को काम करने दो !’
भागवत के कहे का यही अर्थ लगाया गया( लगाया भी जाना चाहिए था) कि उनका इशारा साफ़-साफ़ मोदीजी की तरफ़ था ! दोनों नेताओं के बीच ‘तनावपूर्ण’ संबंधों का अन्दाज़ इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जे पी नड्डा के स्थान पर मोदी अपनी पसंद का व्यक्ति नियुक्त नहीं कर पा रहे हैं. माना जा सकता है कि 21 जुलाई की रात उत्पन्न हुई असाधारण परिस्थितियों के बाद नए अध्यक्ष के नाम की एकतरफ़ा घोषणा किसी भी समय दिल्ली में की जा सकती है !
धनखड़ को लेकर चले घटनाक्रम ने संघ की इस धारणा को सबसे धक्का पहुँचाया होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों ने मोदी के नेतृत्व को कमज़ोर साबित कर दिया है. संघ के साथ-साथ पार्टी में रणनीतिक मौन धारण किए बैठे मोदी-विरोधी भी यही मानते रहे हैं कि नेतृत्व नहीं बदला गया तो 2029 के नतीजों के बाद भाजपा कई बैसाखियों के सहारे भी सत्ता तक नहीं पहुँच पाएगी ! मोदी के नेतृत्व में ही अगला चुनाव लड़कर भाजपा वैसी ही गलती करेगी जैसी कांग्रेस ने 1996 में नरसिंहाराव और 2014 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यक़ीन दोहराकर की थी.
धनखड़ एपिसोड को जिस क्रूर तरीक़े से अंजाम दिया गया, उससे नागपुर तक भी संदेश पहुँचा होगा कि मोदी देश में रहें या विदेशों में भाजपा के पास उनका कोई विकल्प ही नहीं है ! यह भी कह सकते हैं कि मोदी ने किसी विकल्प को बचने ही नहीं दिया. भाजपा के एक सांसद ने हाल ही में कहा भी था कि मोदी को पार्टी की ज़रूरत नहीं हैं, पार्टी को मोदी की है.
संघ प्रमुख ने बिना मोदी का नाम लिए पचहत्तर साल पर पद त्याग देने की बात नौ जुलाई को कही थी. दस दिन तक उनके कहे पर देश भर में चर्चाएँ होती रहीं, जिनमें एक स्वर यह भी था कि मोदी तो पद छोड़ेंगे नहीं, भागवत ही छोड़ने वाले हैं. संघ शायद इन चर्चाओं से ज़्यादा सकते में आ गया. इसीलिए भागवत की सलाह के दस दिन बाद संघ के प्रमुख विचारक राम माधव को एक आर्टिकल संघ प्रमुख के बचाव में लिखना पड़ा. राम माधव का आर्टिकल 19 जुलाई को ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित हुआ और दो दिन बाद 21 जुलाई को देश की राजधानी में नया संसदीय इतिहास रच गया.
अपने आर्टिकल के सार में राम माधव ने यही समझाया कि :’’संघ प्रमुख के कहे को सही तरीक़े से नहीं समझा गया. भागवत का इशारा किसी व्यक्ति विशेष की ओर नहीं था. वे तो युवा-नेतृत्व को आगे लाने में खुलेपन की बात कह रहे थे . सच यह भी है कि युवा नेतृत्व के होते हुए भी देशवासियों ने वर्तमान नेतृत्व को इसीलिए चुना कि उम्र कोई मानदंड नहीं होती. जिस तरह की दूरदृष्टि और स्फूर्ति दोनों(मोदी और भागवत) के पास है वे आने वाले कई वर्षों तक अपनी भूमिकाएँ निभाते रहें यही अपेक्षा है. उम्र कोई मायने ही नहीं रखती.”
राम माधव के आर्टिकल और उसके बाद हुए धनखड़ एपिसोड के क्या अर्थ लगाए जाने चाहिए ? क्या यह कि मोदी के रिटायरमेंट को लेकर भागवत अब कुछ भी नहीं बोलने वाले हैं ? देश को अब 17 सितंबर के बजाय सिर्फ़ 11 सितंबर की ही प्रतीक्षा करना चाहिए ?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार संपादक हैं.
हिमाचल की जनजातीय महिला ने दो भाइयों से की शादी: कानून में ‘बहुपतित्व’ की क्या स्थिति है?
'द इंडियन एक्सप्रेस' के लिए अमाल शेख की रिपोर्ट है कि हिमाचल प्रदेश के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में हाल ही में सदियों पुरानी एक परंपरा फिर चर्चा में आई, जब सुनीता चौहान नामक महिला ने दो सगे भाइयों प्रदीप और कपिल नेगी से शादी की. यह परंपरा स्थानीय रूप से 'जोड़ीदरण' के नाम से जानी जाती है और हट्टी जनजाति में इसकी सामाजिक मान्यता है. पिछले छह वर्षों में इस समुदाय में ऐसी पाँच शादियाँ दर्ज की जा चुकी हैं. गौरतलब है कि हट्टी समुदाय को 2022 में केंद्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया था.
परंपरा के पीछे क्या कारण? बहुपतित्व (Polyandry) की यह परंपरा मुख्य रूप से पारिवारिक कृषि भूमि को विभाजित होने से बचाने के लिए शुरू हुई थी. इसके समर्थकों का मानना है कि इससे न केवल भाइयों के बीच का रिश्ता मज़बूत होता है, बल्कि महिला को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा भी मिलती है.
क्या भारत में बहुपतित्व कानूनी है? विशेष विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, और भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) के अंतर्गत बहुपतित्व (polyandry) और बहुपत्नीत्व (polygamy) दोनों ही गैर-कानूनी और दंडनीय अपराध हैं. हालांकि, संविधान अनुसूचित जनजातियों (STs) के प्रचलित रीतिरिवाजों को मान्यता देता है, जिससे स्थिति थोड़ी जटिल हो जाती है. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2(2) कहती है कि यह कानून अनुसूचित जनजातियों पर तब तक लागू नहीं होता जब तक केंद्र सरकार इसके लिए अधिसूचना जारी न करे. इसलिए, जब तक केंद्र सरकार विशेष रूप से ऐसा आदेश जारी नहीं करती, तब तक हट्टियों जैसे समुदायों पर उनकी परंपराएं ही वैध मानी जाती हैं, चाहे वे लिखित हों या नहीं. धारा 3 के अनुसार, कोई भी परंपरा तभी वैध मानी जाती है जब वह लंबे समय से अपनाई गई हो, स्पष्ट, उचित और सार्वजनिक नीति के विरुद्ध न हो. लेकिन अदालत में अगर चुनौती दी जाती है, तो यह साबित करना ज़रूरी होता है कि वह परंपरा सच में प्रचलित है.
समान नागरिक संहिता (UCC) और जनजातियाँ 2024 में उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की, जिसमें विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे मामलों में समान नियम बनाए गए हैं. UCC ने बहुपत्नी प्रथा पर रोक लगाई और सभी धर्मों और समुदायों के पतियों-पत्नियों को समान अधिकार दिए. लेकिन, अनुसूचित जनजातियाँ इस कानून के दायरे से बाहर रखी गई हैं. UCC नियम, 2025 की धारा 2 कहती है कि यह संहिता उन व्यक्तियों और समुदायों पर लागू नहीं होगी जो अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आते हैं या जिनकी परंपराएं संविधान के भाग 21 के तहत संरक्षित हैं.
अदालत का रुख क्या है? हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि कोई भी परंपरा जो मौलिक अधिकारों, जैसे समानता (अनुच्छेद 14), गरिमा और जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करती हो, वह असंवैधानिक मानी जाएगी.
ये नज़दीकियां: ट्रम्प और एपस्टीन की नई तस्वीरें और वीडियो सामने आए
‘सीएनएन’ द्वारा जारी किए गए नए फोटो और वीडियो फुटेज ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और कुख्यात यौन अपराधी जेफरी एपस्टीन के बीच की पुरानी और करीबी दोस्ती को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है. 1993 में ट्रम्प की दूसरी पत्नी मार्ला मेपल्स से शादी के दौरान एपस्टीन समारोह में मौजूद था. यह शादी न्यूयॉर्क के प्लाज़ा होटल में हुई थी. 1999 में विक्टोरिया सीक्रेट फैशन शो के दौरान ट्रम्प, एपस्टीन और मेलानिया ट्रम्प को साथ में हंसते-बतियाते देखा गया. 1993 में हार्ले-डेविडसन कैफे के उद्घाटन पर ली गई तस्वीर में एपस्टीन, ट्रम्प और उनके बच्चों एरिक और इवांका के साथ दिखता है.
ट्रम्प की प्रतिक्रिया: जब सीएनएन ने इस विषय पर ट्रम्प से प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने कहा- "क्या आप मज़ाक कर रहे हैं?" इसके बाद उन्होंने सीएनएन को "फेक न्यूज़" कहकर फोन काट दिया. व्हाइट हाउस कम्युनिकेशन डायरेक्टर स्टीवन चेउंग ने बयान में कहा- "ये सारी तस्वीरें और वीडियो बस आम आयोजनों की कुछ 'आउट ऑफ कॉन्टेक्स्ट' क्लिप्स हैं. राष्ट्रपति ने उसे (एपस्टीन को) क्लब से बाहर निकाल दिया था. यह सब डेमोक्रेट्स और लिबरल मीडिया की साजिश है."
1992, 1997 और 2000 के दौरान कई बार ट्रंप और एपस्टीन एक साथ दिखे थे. पॉम बीच के एक पार्टी में ट्रम्प, एपस्टीन, गिलेन मैक्सवेल और प्रिंस एंड्रयू भी मौजूद थे. 2002 में न्यूयॉर्क मैगज़ीन में ट्रम्प ने एपस्टीन को "बहुत मज़ेदार इंसान" कहा था और ये भी कहा कि "उसे सुंदर और कम उम्र की लड़कियां पसंद हैं, जैसे मुझे."
1990 के दशक में ट्रम्प ने एपस्टीन के प्राइवेट जेट में कम से कम सात बार यात्रा की. 2003 में जन्मदिन पर ट्रम्प की ओर से भेजे गए एक कार्ड में एक नग्न महिला की तस्वीर और "हर दिन एक और सुंदर रहस्य हो" जैसी लाइनें थीं, जिसे ट्रम्प ने भेजने से इंकार किया और वॉल स्ट्रीट जर्नल पर मुकदमा किया है.
बता दें कि इस महीने की शुरुआत में जस्टिस डिपार्टमेंट ने एपस्टीन से जुड़े और फाइलें सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया, जिससे ट्रम्प समर्थक भी नाराज़ हैं.
इधर, डोनाल्ड ट्रम्प ने सेक्स ट्रैफिकिंग के आरोपी जेफ़्री एप्स्टीन से जुड़ी उठती आग को दबाने की कोशिश की, लेकिन इससे उनके आलोचकों की सबसे बड़ी चिंता सच होती दिख रही है कि वो दोबारा राष्ट्रपति बनते ही न्याय और खुफिया एजेंसियों को अपने निजी राजनीतिक हथियार बना लेंगे. ट्रम्प ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओबामा पर 'देशद्रोही तख्तापलट' की साजिश रचने का आरोप लगाया, वहीं उनके पूर्व वकील और अब डिप्टी अटॉर्नी जनरल टॉड ब्लांश जेल में बंद घिसलेन मैक्सवेल से मिलने जा रहे हैं, जिससे संदेह और गहराया है.
क्रिकेट
साई सुदर्शन चमके, पहले दिन भारत 4 / 264
भारत और इंग्लैंड के बीच चल रही पांच टेस्ट मैचों की सीरीज़ के चौथे मुकाबले में पहले दिन का खेल भारत के नाम रहा. मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर खेले जा रहे इस मुकाबले में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए भारत ने दिन का खेल समाप्त होने तक 264 रन पर चार विकेट गंवा दिए. इस दौरान युवा बल्लेबाज़ साई सुदर्शन ने बेहतरीन अर्द्धशतक जमाते हुए 61 रनों की पारी खेली और भारत को मज़बूत शुरुआत दिलाई. स्टंप्स के समय रवींद्र जडेजा और शार्दुल ठाकुर नाबाद लौटे.
टॉस जीतकर पहले गेंदबाज़ी चुनने वाले इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स ने खुद गेंद संभाली और दो महत्वपूर्ण विकेट चटकाए – भारतीय कप्तान शुभमन गिल और सेट हो चुके साई सुदर्शन को पवेलियन भेजा. क्रिस वोक्स ने भी नई गेंद से सधी हुई गेंदबाज़ी करते हुए एक विकेट हासिल किया. इंग्लैंड के गेंदबाज़ों ने हालांकि बीच के ओवरों में मौके गंवाए जिससे भारत को संभलने का मौक़ा मिला.
भारत ने इस मुकाबले के लिए तीन बदलाव किए हैं. करुण नायर, नितीश कुमार रेड्डी और आकाश दीप को बाहर किया गया है. उनकी जगह साई सुदर्शन, शार्दुल ठाकुर, और डेब्यूटेंट अंशुल कांबोज को मौका दिया गया. वहीं इंग्लैंड ने चोटिल शोएब बशीर की जगह बाएं हाथ के स्पिनर लियम डॉसन को टीम में शामिल किया है.
रतन थियाम (1948 -2025)
एक विराट बरगद के बारे में हम बात तो करेंगे, पर उसकी छाया में जाकर बैठ नहीं पाएंगे
विनोद कुमार
रतन थियाम एक ऐसे इंसान थे, जिनके लिए शानदार शब्द गढ़ा गया है. उन्होंने अभिव्यक्ति के लिए थियेटर चुना पर उनके थियेटर में बहुत सारे तत्व थे, जिनके बारे में उस तरह से पहले कभी सोचा नहीं गया था. एक तो उनके ज्यादातर नाटक मणिपुरी भाषा में होते थे, जिसमें मणिपुरी नृत्य और संगीत प्रमुखता से था. जिस तरह के सेट और रौशनी थियाम साहब की होती थी, वह अपने आपमें मास्टर क्लास थी, हर थियेटर कर्मी के लिए.
वह भाषा के परे जाकर एक भाव दर्शक तक पंहुचा सकने का जादू बुन सकते थे. हम कह सकते हैं, कि खांटी भारतीय थियेटर बनाने वाले वे आखिरी महान नाटककार थे. उनके नाटक दुनिया में कहीं भी दिखलाए जा सकते थे, और हर जगह लोग उनके काम से सम्मोहित ही होते. थियाम के हाथों में आने के बाद हर कथानक एक विंहगम, विराट, गहरा और सोच के परे ले जाने वाला हो जाता. उनका मणिपुर उनके साथ चलता पर साथ में पूरी दुनिया भी. वे संस्कृत और दूसरे भारतीय नाटकों को मणिपुरी में करते और उसके बाद मूल के साथ ईमानदारी के बावजूद वह नाटक थियाम की अपनी बौद्धिक संपदा बन जाता, निखर कर, बड़ा होकर और अपने असर के साथ.
थियाम की माँ एक संगीत प्रेमी, जब कि पिता एक धार्मिक व्यक्ति थे. इसलिए बचपन में ही शास्त्रीय संगीत , लोक धुनों , कथा -कहानियों और धार्मिक अनुष्ठान ने उनके अंदर नाटकीयता और आध्यात्मिक दृष्टि की नींव डाली. वहां के संकीर्तन परंपरा , रासलीला , थांग-ता (मार्शल आर्ट) और लोककथाओं को आगे चल कर रतन थियाम ने अपने रंगकर्म का विषय और सम्प्रेषण का माध्यम बनाया. उन्होंने 1971 में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (एनएसडी) में दाखिला लिया, जहाँ रंगमंच की तकनीक के साथ -साथ भारतीय और पाश्चात्य नाट्यदर्शन की समझ भी हासिल की. एनएसडी से निर्देशन का प्रशिक्षण प्राप्त किया और इस बात पर उनका विशेष ज़ोर रहा कि रंगमंच सिर्फ अभिनय प्रदर्शन ही नहीं बल्कि एक 'दार्शनिक अनुशासन ' का भी रूप हैं. उन्होंने अपनी समझ को इस रूप में भी विकसित किया कि नाट्यकर्म आत्मा की यात्रा और समाज के पुनर्निर्माण का माध्यम भी हैं. एनएसडी के बाद मणिपुर लौटे और 1976 में कोरस रिपर्टरी की स्थापना की. इस रिपर्टरी का मकसद सिर्फ नाट्य प्रस्तुति करना ही नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण थिएटर संस्कृति विकसित करना था.
संस्था का नाम कोरस यानी सामूहिक चेतना पर आधारित है. थियम ने इस रिपर्टरी को एक आश्रम की तरह विकसित किया - जहाँ कलाकार रहते हैं , रिहर्सल करते हैं ,जीवन जीते हैं और रंगकर्म को सामूहिक साधना के रूप में अपनाते हैं. बाद में रतन थियाम राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक भी रहे.
उनकी पहली उल्लेखनीय प्रस्तुति है- ' चिंगथमाखोंग ' जो मणिपुर की राजनितिक स्थिति , जातीय हिंसा और सामजिक विघटन पर आधारित था. मंच पर संगीत और मौन का गहन प्रयोग, संवादों की लयात्मकता, वेशभूषा में पारम्परिक रंगो का प्रयोग प्रस्तुति की विशिष्टता थी. थियाम के नाटक उस दृश्यात्मक चमत्कार की तरह लगातार पचास सालों से ज्यादा तक लोगों को कौतुक से भरते रहे.
धर्मवीर भारती का नाटक 'अंधायुग' उनका पहला राष्ट्रीय स्तर का निर्देशन था. इसमें उन्होंने महाभारत के कथानक को समकालीन युद्धों और सत्ता संघर्ष से जोड़ा. इस प्रस्तुति ने उन्हें भारतीय रंगमंच में एक वैचारिक क्रांतिकारी के रूप में स्थापित किया. ये सत्यदेव दुबे के अंधा युग से अलग है और इब्राहिम अलकाजी से भी. और बाद के निर्देशकों से भी. कथन, कहन और प्रभाव में भी.
क्योंकि मणिपुरी भाषा कम लोग जानते हैं, इस बात का भी थियाम ने छवियां बनाने में, लालित्य लाने और दर्शक के काल्पनिकता बढ़ाने में इस्तेमाल किया. उनके टोटल थियेटर की अवधारणा में मूर्त से ज्यादा अमूर्त है, शब्द से ज्यादा ध्वनियां, अंधेरी चुप्पियों को पंक्चुएट करती रौशनियों की छिरी है और सब कुछ मिलाकर हर बार जादू जैसा कुछ. बनता हुआ, गायब होता हुआ और फिर से बनता हुआ.
थियाम के नाटक सिर्फ देखने के लिए नहीं रहे. वे गहरे मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक अनुभवों के लिए थे, जिसे महान चरित्र अपनी टुच्ची मनुष्यताओं में उलझते हैं और कई बार इसका उलटा भी. और वह दर्शक की चेतना में कहीं गहरे उतर जाते थे. हममें से जिन्होंने भी उनके नाटक देखे हैं, नाटक के बहुत समय बाद तक वे छवियां, वह प्रभाव कहीं अटका रह जाता है.
उनके प्रमुख नाटकों में उत्तर प्रियदर्शी (सत्ता और वैराग्य का संघर्ष), जब मै मरना शुरू करता हूँ (आत्ममंथन और समय की राजनीति), चक्रव्यूह, ऋतुसंहार (आज की दुनिया की अराजकता और हिंसा के बीच सांत्वना और विवेक की तलाश), लेंगशोनी (नाटक 'एंटीगोनी ' का रूपांतरण), कर्णभाराम, 'हे नुंग्शिबी पृथ्वी' और 'छिंगलोन मापन तंपाक अमा' गिने जाते हैं. उनके नाटकों में हम भास और कालिदास की शास्त्रीय दृष्टि , ब्रेख्त और आरतो का प्रयोगवाद और मणिपुर की लोक परंपरा को एक सूत्र में गुँथा हुआ पते हैं. यह समन्वय उनके नाटकों में जितना भारतीय हैं उतना वैश्विक भी. सब कुछ मणिपुरी में. उनकी चर्चित प्रस्तुति ‘नाइन हिल्स वन वैली’ में आप उनकी नाट्यदृष्टि और मणिपुर की सांस्कृतिक पीड़ा का जीवंत चित्र देख सकते हैं.
1948 में मणिपुर के काकचिंग में जन्मे रतन थियाम का बुधवार तड़के इम्फाल में स्थानीय अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वे 77 वर्ष के थे. जैसा कि मैंनें शुरू में लिखा, वे बेहद शानदार इंसान थे. खास तौर थियेटर वालों के लिए एक विराट बरगद की तरह, जिसके बारे में हम बात तो करेंगे, पर उसकी छाया में जाकर बैठ नहीं पाएंगे.
लेखक पटना में रहकर थियेटर करते हैं.
मणिपुर और थियाम
‘ऐसा लगता है जैसे भारत ने हमें छोड़ दिया है’
प्रसिद्ध रंगनिर्देशक और पद्मश्री रतन थियाम ने 'द वायर' के लिए करन थापर के साथ एक भावनात्मक इंटरव्यू में कहा था कि मणिपुर जैसी भयावह स्थिति उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी. ये इंटरव्यू 19 जून साल 2023 में ऑन एयर हुआ था. इसमें मणिुपर पर प्रधानमंत्री की चुप्पी के सवाल पर उन्होंने कहा था कि जब तुर्की में भूकंप होता है तो प्रधानमंत्री तुरंत संवेदना व्यक्त करते हैं, लेकिन मणिपुर के लिए वे एक शब्द नहीं बोलते. “या तो वे समझ नहीं रहे या उन्हें फर्क नहीं पड़ता,” करन थापर ने कहा, जिस पर थियाम सहमत दिखे. का दिल टूट चुका है और वे बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील कर चुके हैं कि वे मणिपुर के बारे में बोलें, लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.
हताशा और पीड़ा: रतन थियाम ने कहा, “हमारी ज़मीन पर गोलियां, आग, विधवाएं, अनाथ बच्चे और कोई पूछने वाला नहीं है। ऐसा लगता है जैसे भारत ने हमें छोड़ दिया है.”
मीडिया की चुप्पी: उन्होंने कहा कि मुख्यधारा मीडिया ने भी मणिपुर की त्रासदी को लगभग नजरअंदाज़ किया. “मौसम रिपोर्ट कोलकाता पर आकर रुक जाती है, जैसे पूर्वोत्तर भारत भारत का हिस्सा ही न हो.”
धार्मिक संस्थाओं की भूमिका: थियाम ने सभी धर्मों के नेताओं से शांति की अपील करने की मांग की, लेकिन अफसोस जताया कि कोई आगे नहीं आया.
सांस्कृतिक एकता की अपील: उन्होंने मणिपुर की विविध संस्कृति, सुंदर नृत्य और मेल-जोल की परंपरा की याद दिलाई और कहा कि भाईचारा बहाल हो सकता है, अगर संवाद और कला के माध्यम से प्रयास किए जाएं.
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: थियाम ने स्पष्ट कहा कि बिना दिल्ली की राजनीतिक इच्छा के शांति संभव नहीं. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार सच में चाहती, तो प्रधानमंत्री अब तक मणिपुर में होते.
राज्य सरकार की नाकामी: मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की भूमिका पर उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह फेल हो चुकी है और राज्य के ही भाजपा नेता भी अब उन पर सवाल उठा रहे हैं.
टूटते भरोसे पर चिंता: उन्होंने कहा कि कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जो भरोसा टूटा है, उसे फिर से बनाना ज़रूरी है और इसमें कलाकारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बड़ी भूमिका हो सकती है.
संभावित भूमिका पर संकेत: करन थापर ने जब पूछा कि क्या वे शांति स्थापना की प्रक्रिया की अगुवाई करेंगे, तो थियाम ने कहा – “मैं कलाकार हूं, जनता के लिए समर्पित हूं. अगर सरकार बुलाएगी, तो मैं अपने राज्य और देश के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.”
अफसोस कि मणिपुर में आज भी बहुत ज्यादा कुछ नहीं बदला है, न प्रधानमंत्री ने चुप्पी तोड़ी.
थियाम का ऋतुसंहार
“तभी अचानक मुझे यह समझ आया कि कई बरस बीत गए मैं फूलों के पास नहीं गया, मैंने फूलों को अच्छी तरह नहीं देखा, मैं बारिश में भीगा नहीं हूँ, मैंने सोचा. पत्तों से बतियाया नहीं हूँ, उनको आँख भरकर देखा नहीं है, पेड़ों को नहीं देखा है, पक्षियों की आवाज़ को नहीं सुना है. यह मुझसे क्या हो गया ? चार साल हो गए मैंने यह सब नहीं किया…
थियाम पर मंजरी श्रीवास्तव ने एक बेहतरीन लेख उनके जन्मदिन पर लिखा, जो समालोचन में छपा. इसमें मंजरी ने उनके ऋतुसंहार के बारे में लिखा है. वैसे तो आपको पूरा लेख ही पढ़ना चाहिए. यहां उसके अंश-
नृत्य विधा में विशेष रूप से कथक में बरसों से ऋतुसंहार की प्रस्तुतियां होती रही हैं लेकिन नाटक की विधा में रतन थियाम से पहले या उनके बाद अबतक शायद ही किसी ने ऋतुसंहार की प्रस्तुति के बारे में सोचा था.
ऋतुसंहार मूलतः कविता है जिसमें महाकवि कालिदास ने छह ऋतुओं का वर्णन किया है पर उसमें नाटक की भी सम्भावना है यह रतन थियाम के नाटक को देखने के पहले सोचा भी नहीं जा सकता था.
ऋतुसंहार वर्णनात्मक है पर रतन थियाम ने उसमें नाट्य तत्व को ढूंढ निकाला और बड़ी ही कुशलता से मंच पर ऋतुसंहार को उतार दिया. उनके पहले या उनके बाद के किसी भी निर्देशक ने अबतक ऋतुसंहार पर नाटक करने का साहस नहीं किया है.
महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार को लिखते समय जो सोचा होगा उसे रतन थियाम ने पहले मंच पर खुद देखा और फिर हम दर्शकों को दिखाया. रतन थियम ने कालिदास के वर्णनात्मक ऋतुसंहार को विजुअल्स के रूप में दर्शकों के सामने अद्भुत तरीके से प्रस्तुत किया, जिसने रतन थियाम का ऋतुसंहार देख लिया उसे कालिदास का ऋतुसंहार पढ़ने पर और ज़्यादा आनंद आएगा. उसे यह लगेगा कि वह कालिदास का लिखा देख रहा है या देख चुका है. विजुअल्स उसकी आँखों के सामने होंगे.
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि आपने रतन थियाम का ऋतुसंहार देख लिया है तो आपको कालिदास का ऋतुसंहार पढ़ने की ज़रूरत भी नहीं.
इस नाटक पर बात करते हुए थियाम बताते हैं कि-
“मुझे अपने मन में कालिदास से यह सवाल पूछते रहना अच्छा लगता है कि आप तो सशक्त कल्पनासम्पन्न हैं पर क्या मैं उसके आसपास भी भटक सका हूँ.”
दरअसल रतन थियम ने यह सारा नाटक उस पथिक के इर्द-गिर्द बुना है. उनका कहना है कि- “पूरा का पूरा ऋतुसंहार एक श्लोक पर टिका हुआ है और यह श्लोक एक पथिक की पीड़ा और विरह की बात करता है. उस पीड़ा और विरह से ही ऋतुसंहार का यह पूरा वर्णन उत्पन्न हुआ है.”
रतन थियाम जज़्बाती होते हुए बताते हैं कि – “मुझे लगा कि यह पथिक मैं खुद हूँ. यह सिर्फ उन पुराने दिनों का पथिक नहीं है इसकी पीड़ा और इसका विरह तो किसी भी समय के पथिक का हो सकता है. मैंने यह तय किया कि इस पथिक को समकालीन और आज के सन्दर्भों में प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए. मैंने उसे ‘हैट’ पहना दिया, ट्राली वाला बैग दे दिया और यह कल्पना की कि समूचा नाटक इसी के चारों तरफ बुना जाये. हर ऋतु के अंत में पथिक हैट लगाए और ट्राली लिए मंच पर आता है और उसके मंच से जाते ही ऋतु परिवर्तन हो जाता है.”
इस नाटक की पूरी रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए थियाम बताते हैं कि- “मैं उन दिनों बहुत थका हुआ था. एक के बाद एक प्रदर्शन कर रहा था. मैं इसीलिए बहुत यात्राएं कर रहा था. कह सकते हैं कि उन दिनों मुझमें ऊर्जा का स्तर बहुत कम हो गया था. मैंने सोचा कि मुझे यह क्या हो गया है. तभी अचानक मुझे यह समझ आया कि कई बरस बीत गए मैं फूलों के पास नहीं गया, मैंने फूलों को अच्छी तरह नहीं देखा, मैं बारिश में भींगा नहीं हूँ, मैंने सोचा. पत्तों से बतियाया नहीं हूँ, उनको आँख भरकर देखा नहीं है, पेड़ों को नहीं देखा है, पक्षियों की आवाज़ को नहीं सुना है. यह मुझसे क्या हो गया ? चार साल हो गए मैंने यह सब नहीं किया. इसके बगैर मुझमें शक्ति और ऊर्जा कहाँ से आएगी? जिनके साथ मेरी जान-पहचान है उनके पास मैं नहीं जा सका. मेरी शक्ति के जो स्रोत हैं मैं उनसे दूर हो गया हूँ. आधुनिक व्यस्त जीवन के कारण मेरा मिट्टी और पानी से लगाव काम होता जा रहा है, ऐसा मैंने सोचा. मैंने विचार किया कि मुझे अपने स्रोतों के पास फिर से जाना होगा. मैंने सोचा कि मैं प्रकृति के सौंदर्य के निकट जाऊंगा और कहूंगा कि मुझे अपनी गोद में थोड़ा आराम करने दो, मुझे वहां सर रखकर थोड़ी देर सोने दो. ऐसे में मुझे यह याद आया कि एक-एक ऋतु के साथ मेरा सम्बन्ध कम हो गया है. उस समय मैं ब्राजील जा रहा था. वह बहुत दूर है. मेरे पास कालिदास की कृतियों का संकलन था. वहां हर शाम प्रदर्शन होते रहते. रात में होटल के कमरे में लौटकर मुझे यह लगता कि मुझे ऋतुओं के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए ‘ऋतुसंहार’ पढ़ना चाहिए. एक रात करीब ग्यारह बजे मैंने ‘ऋतुसंहार’ खोला. उसका पहला अध्याय ‘ग्रीष्म वर्णन’ पढ़ा. इसके अलावा कुछ नहीं पढ़ा. मैंने तुरंत अपनी नोटबुक निकाली और उसमें इस अध्याय का मणिपुरी में अनुवाद कर लिया. यह करने में मुझे बहुत ख़ुशी हुई और इसमें मुझे करीब दो घंटे लगे. मैंने यह अनुवाद बहुत जल्दी कर लिया था.
रात के करीब एक बजे अनुवाद कर चुकने के बाद मुझे यह लगा कि मुझे इसे किसी को सुनाना चाहिए. मेरे साथ वहां मणिपुर के नृत्य संयोजक ईबो चोब सिंह थे. वे मेरी ही उम्र के हैं. मैंने उनके कमरे में जाकर उन्हें जगाया. वे उठकर बोले क्या बात है ? मैंने कहा- ‘मैंने कालिदास के ऋतुसंहार के पहले अध्याय का अनुवाद किया है, क्या तुम सुनोगे? वे सुनने को हमेशा ही उत्सुक रहा करते थे. हम मेरे कमरे में आ गए. मैंने फ्रिज से स्कॉच की बोतल निकाली और उसे गिलास में डालकर हम दोनों बैठ गए. मैं उन्हें अनुवाद सुनाने लगा. मैंने उसे बार-बार पढ़ा. उन्हें वह बहुत अच्छा लग रहा था. फ्रिज का मिनी बार खाली हो गया. सुबह के छह बज गए थे. वहां सुबह का नाश्ता छह बजे शुरू हो जाता था. हमने सोचा कि चलो नाश्ता करते हैं. नाश्ते के बाद हम फिर सुनते-सुनाते और पीते-पिलाते रहे. मैं थोड़ा-थोड़ा सा अनुवाद करता रहा. अनुवाद करने की गति धीमी हो गई, क्योंकि मैं सोच रहा था कि इसपर कैसे नाटक किया जाए. मैं यह सोचने लगा कि इस नाटक की थीम क्या है? मैं लिखता रहा और पढता रहा. उन दिनों ब्राजील में हमें तीन-चार दिन का अवकाश मिल गया था. उस दौरान मैं यह बड़ा काम कर गया. मैं बहुत सुबह से सोचना शुरू कर देता था और अनुवाद करता था और पीता था और सुनाता था.”
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