24/08/2025: बाढ़ में जान बचाएं या वोट | एम्पायर मिला हुआ, तेजस्वी का आरोप | जयशंकर का जवाब | पाकिस्तान जिंदाबाद कहना देशद्रोह नहीं | गलियों के बाद कश्मीर में विचारों पर कर्फ्यू
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
बिहार में बाढ़: वोट की चिंता करें या जान बचाएं, पूछ रहे ग्रामीण
तेजस्वी का आरोप: बिहार में 80 हजार फर्जी मतदाता जोड़े, वास्तविक नाम काटे
मतदाता सूची में धांधली: सपा, टीएमसी और आप ने भी चुनाव आयोग पर उठाए सवाल
जयशंकर का अमेरिका को जवाब: किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं होगा
अनिल अंबानी पर शिकंजा: बैंक धोखाधड़ी मामले में सीबीआई ने आवास पर छापा मारा
भारत-अमेरिका व्यापार: व्यापारिक खींचतान के "अनचाहे शिकार" बने मुकेश अंबानी
टिकटॉक की वापसी: भारत में वापसी की कोई योजना नहीं, कंपनी ने किया स्पष्ट
चीन-पाकिस्तान सहयोग: आर्थिक गलियारे का विस्तार करने का लिया संकल्प
महाराष्ट्र हेट क्राइम: हिंदू लड़की से दोस्ती करने पर मुस्लिम युवक की पीट-पीटकर हत्या
तेलंगाना में जातीय भेदभाव: अंतरजातीय विवाह पर दलित परिवार का सामाजिक बहिष्कार
ओवैसी का सरकार पर तंज: 'बांग्लादेशियों' को निर्वासित करना है तो पहले शेख हसीना से शुरुआत करें
भाषाई पहचान पर हमला: श्रीनगर में सड़क संकेतों से कश्मीरी भाषा मिटाने का आरोप
हाईकोर्ट का फैसला: सिर्फ 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' कहना देशद्रोह नहीं
पड़ोसी देशों की कूटनीति: बांग्लादेश और पाकिस्तान के राजनयिकों को मिलेगी वीजा-मुक्त यात्रा
भारत-अमेरिका संबंध: सर्जियो गोर भारत में नए अमेरिकी राजदूत नामित
ट्रम्प का विरोध: नागपुर में मारबत उत्सव के दौरान टैरिफ वृद्धि के खिलाफ ट्रंप का पुतला घुमाया
मुख्यमंत्रियों की संपत्ति: चंद्रबाबू नायडू सबसे अमीर, ममता बनर्जी सबसे नीचे
कश्मीर में प्रतिबंध: 25 किताबों पर प्रतिबंध, विचारों पर पहरेदारी या राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता
आतिश तासीर की किताब: नई किताब में अपना देश खोने की शर्म का जिक्र
बिहार में बाढ़ से जूझ रहे ग्रामीण बोले, “वोट को देखें या जान बचाएं?”
बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन राज्य के लोग बाढ़ से जूझ रहे हैं. “द रेड माइक” के लिए सौरभ शुक्ला ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में बताया है कि लोग कैसे जूझ रहे हैं. जिंदा बचेंगे, तब वोट की चिंता करेंगे. यह देखेंगे कि उनका नाम कट गया या सुरक्षित है?
नकटा दियारा गांव सहित बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हजारों घर और खेत गंगा की बाढ़ में डूब चुके हैं. लोग जीवन बचाने के लिए पलायन कर रहे हैं, जानवरों को किसी तरह बचा रहे हैं. बहुत से लोगों को यह पता ही नहीं है कि चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) चल रहा है. कई ग्रामीणों ने बताया कि उनके पास मतदाता सूची की जानकारी नहीं है. बताया कि कहीं ड्राफ्ट सूची लगी नहीं है, क्योंकि स्कूल व पंचायत भवन भी डूबे हुए हैं.
लोग कह रहे हैं "जान बचेगी तो वोट देंगे", क्योंकि इस समय वोट से ज्यादा जीवन और जीविका मायने रखती है. सरकारी नाव नहीं मिली, निजी नाव वालों ने किराया कई गुना बढ़ा दिया. लोगों का कहना है कि बीएलओ दबाव डाल रहे हैं कि दस्तावेज़ दो, नहीं तो नाम कट जाएगा. बीएलओ भी परेशान हैं, उनपर अधिकारियों का दबाव है, जबकि वे खुद बाढ़ में फंसे हैं. गांवों में सरकारी राहत सीमित है, मुआवजा या खाद्य सामग्री ज्यादातर नहीं पहुंची.
किसी मंत्री, विधायक या सांसद ने अभी तक इलाके का दौरा नहीं किया. पानी उतरने के बाद भी कीचड़ है, स्कूल, अस्पताल, पंचायत सब ठप हैं. नाम कटा-जुड़ा है या नहीं, इसकी जानकारी लगभग किसी को नहीं है. सरकार की आलोचना करते ग्रामीण कहते हैं कि बाढ़ में मतदाता सूची का पुनरीक्षण अमानवीय है—पहले जीवन, खाना, कपड़ा-मकान चाहिए, बाद में वोट.
कुछ गांववालों ने कहा, "सरकार मदद नहीं पहुंचा रही, राहत नहीं मिल रही, फसल का नुकसान हो गया. पहले पेट बचेगा तभी वोट बचेगा. जो बाढ़ पीड़ित कागज नहीं देगा, उसकी सुविधाएं कट जाएंगी. पेंशन, सरकारी योजना आदि सब रुक जाएंगी." सरकारी अधिकारियों और चुनाव आयोग के बारे में ग्रामीणों ने नाराजगी जताई—उनका कहना है कि चुनाव आयोग जमीन की हकीकत नहीं जानता.
“ऐसे मैच का क्या मतलब, जिसका अंपायर मिला हुआ हो”
तीन विधानसभा में 80 हजार ऐसे नाम जोड़े गए, जिनका पता ही नहीं है : तेजस्वी
25 से 30 हजार वोट हर विधानसभा से काटे गए, इनमें 60-70% वास्तविक मतदाता
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका दावा है कि बिहार में फर्जी मतदाता बढ़ाए गए हैं और कई वास्तविक लोगों के नाम काटे गए हैं.
अजित अंजुम से बात करते हुए उन्होंने कहा कि तीन विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे 80 हजार लोगों के नाम जोड़े गए हैं, जिनका कोई पता ही नहीं है. न भौतिक रूप से उनकी पुष्टि हुई. कुछ दिनों में इसका खुलासा करेंगे. 25 से 30 हजार वोट हर विधानसभा से काटे गए हैं. इनमें से 15 से 20 हजार वास्तविक मतदाताओं के नाम काट दिए गए. यानी 60-70% नाम. “वोट अधिकार यात्रा” इसी धांधली के विरोध में हो रही है और वो कोर्ट में भी इस लड़ाई को लड़ रहे हैं. कहा-“हम लोग बेवकूफ़ थोड़े ही हैं जो यात्रा पर निकल रहे हैं. कोर्ट में लड़ रहे हैं?”
तेजस्वी ने बताया कि उनकी टीम जांच कर रही है कि कितने नाम गलत तरीके से कटे हैं. लेकिन, उन्होंने आरोप लगाया कि गरीबों, प्रवासी मजदूरों और विशेष तौर पर कमजोर वर्ग के लोगों के नाम ज्यादा काटे गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद चुनाव आयोग ने सूची सार्वजनिक की है, लेकिन विपक्ष अभी भी संदेह कर रहा है. उन्होंने कहा कि हम लोग एसआईआर के विरोध में नहीं थे, लेकिन समयावधि को लेकर कुछ सवाल थे. एसआईआर का समय तय करने में पक्षपात हुआ और बीजेपी चुनाव आयोग पर पूरी तरह नियंत्रण कर रही है. संवैधानिक संस्थाओं पर बीजेपी का दबाव है. वह लोकतंत्र को राजतंत्र में बदलना चाहती है.
तेजस्वी ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दबाव में चुनाव आयोग ने आनन- फानन में पुनरीक्षण किया. आयोग का यह दावा गलत है कि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और बीएलए के हस्ताक्षर के बाद उसने ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की है. आरजेडी नेता ने कहा, “पूरी प्रक्रिया फर्जी है. आयोग झूठ बोल रहा है.”
उन्होंने कहा कि अगर सब कुछ तय है और हमें लगेगा कि कोई न्याय नहीं हो रहा है तो चुनाव बहिष्कार (बॉयकॉट) का विकल्प भी खुला है, और सभी विपक्षी दलों के साथ इस विकल्प पर विचार करेंगे. हमारा उद्देश्य सत्ता में आना नहीं है. हम हारे या जीतें, यह महत्वपूर्ण नहीं है. हम विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं. लिहाजा, जब हम चुनाव बहिष्कार की बात करते हैं तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए. बहिष्कार से पूरी दुनिया में इस बात की गूंज होगी कि मोदी जी ने किस हिसाब से तानाशाही और अघोषित इमरजेंसी मोदी जी ने इस देश में लागू कर रखी है. जेबी लोगों को संवैधानिक पदों पर बैठा रखा है. “ऐसा मैच खेलने का क्या मतलब, जहां अंपायर मिला हुआ हो. जनता के हजारों करोड़ खर्च करके चुनाव कराने की क्या जरूरत? ऐसे ही सरकार रिपीट कर देना चाहिए. संवैधानिक संस्थाएं एक पार्टी और एक नेता के लिए काम कर रही हैं. हम लोगों को ऐसा भारत नहीं चाहिए, जहां नफ़रत की बात हो, झूठ का प्रोपेगेंडा चलाया जाए, उल्टा इतिहास पढ़ाया जाए,” उन्होंने कहा. इंटरव्यू में बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार और लॉ ऐंड ऑर्डर जैसे बिहार के जमीनी मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
उन्होंने स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट से नाम कटना संविधान के तहत हर नागरिक के अस्तित्व को खतरे में डालना है, और इससे कई सामाजिक योजनाओं का भी लाभ व्यक्ति को नहीं मिल पाएगा. तेजस्वी ने भाजपा नेताओं पर बार-बार हमला किया और विधानसभा में हुई बहसों का हवाला दिया. सम्राट चौधरी के बयान, विजय सिन्हा की वोटर आईडी की दोहराव जैसी राजनीतिक घटनाओं का जिक्र किया.
मतदाता सूची में गड़बड़ी
समाजवादी पार्टी से लेकर टीएमसी और आप ने चुनाव आयोग पर उठाए सवाल
हालांकि भारतीय चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते राहुल गांधी को "वोट चोरी" के अपने आरोपों को एक सप्ताह के भीतर हलफनामे में प्रदान करने या राष्ट्र से माफी मांगने का अल्टीमेटम जारी किया, लेकिन कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी नहीं है जिसने मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगाया है और चुनाव निकाय के दरवाजे खटखटाए हैं. द वायर के लिए श्रावस्ति दासगुप्ता ने इस पर रिपोर्ट लिखी है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता गांधी से उनके आरोपों की जांच के लिए हलफनामे की चुनाव आयोग की मांग पर समाजवादी पार्टी (सपा) ने सवाल उठाया है, जिसने कहा है कि 2022 के उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद एक हलफनामा प्रदान किया गया था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. हाल के महीनों में, विभिन्न दलों से मतदाता सूची में अनियमितताओं और चुनाव आयोग के आचरण के बारे में कई आरोप सामने आए हैं. दिसंबर 2024 में, बीजू जनता दल (बीजद) ने चुनाव आयोग से संपर्क किया और ओडिशा में डाले गए वोटों और गिने गए वोटों में अनियमितताओं का आरोप लगाया, जहां 2024 में लोकसभा और विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए थे. तब से, पार्टी को चुनाव निकाय से दो जवाब मिले हैं, लेकिन मंगलवार (19 अगस्त) को उसके साथ एक बैठक के बाद, बीजद ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग "जवाब देने में विफल" रहा.
जनवरी में, आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों ने मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगाया, जिसमें पूर्व ने नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में नए मतदाताओं को जोड़ने पर अपनी शिकायतों को चुनाव आयोग के पास ले जाया. मार्च में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा डुप्लीकेट ईपीआईसी कार्ड का मुद्दा उठाने के एक महीने बाद, टीएमसी चुनाव आयोग के पास गई. हालांकि, पार्टी के अनुसार, मामला अभी तक हल नहीं हुआ है.
यहां हाल के महीनों में राजनीतिक दलों द्वारा उठाई गई प्रमुख शिकायतों की एक सूची है: समाजवादी पार्टी का हलफनामा, जिस पर अखिलेश यादव ने कहा कि आयोग को अपने ही कार्यालय की रसीदें जांचनी चाहिए. यादव ने आरोप लगाया कि मौर्य, पाल, बघेल और राठौर समुदायों सहित कई पिछड़े समूहों के मतदाताओं के नाम भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए हटाए जा रहे थे. चुनाव आयोग की प्रतिक्रियाओं से असंतुष्ट बीजद अदालत जाने की तैयारी में है, उसका कहना है कि उसे अभी तक फॉर्म 17सी प्रदान नहीं किया गया है. दिल्ली चुनावों से पहले आप ने मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप लगाया. अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि गरीब, एससी और दलितों के वोट काटे जा रहे हैं. वहीं टीएमसी ने डुप्लीकेट ईपीआईसी कार्ड का आरोप लगाया.
भाजपा ने भी पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में डुप्लीकेट ईपीआईसी नंबर और दिल्ली में आप द्वारा सूची में हेरफेर का मुद्दा उठाया है. महादेवपुरा में वोट चोरी के गांधी के आरोपों के बाद, भाजपा ने भी 2024 के लोकसभा चुनावों में अनियमितताओं का आरोप लगाया है. भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने रायबरेली, वायनाड, डायमंड हार्बर और कन्नौज में मतदाता सूची में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अभिषेक बनर्जी और अखिलेश यादव से लोकसभा सांसदों के रूप में इस्तीफा देने को कहा. चुनाव आयोग ने अभी तक ठाकुर से हलफनामा नहीं मांगा है.
राहुल मखाने के खेत में , बनाना समझा, बनाया भी
बिहार में वोटर अधिकार यात्रा के सातवें दिन राहुल गांधी कटिहार पहुंचे. यहां सिमरिया में मखाने की खेती देखने के लिए घुटने तक पतलून चढ़ाकर तालाब में उतरे. किसानों से जाना कि मखाने की खेती कैसे होती है? शाम होते-होते राहुल गांधी मखाना कारखाने पहुंच गए, मखाना बनाने की पूरी प्रक्रिया समझी. खुद मखाना बनाया. उन्होंने “एक्स” पर पोस्ट कर मखाना किसानों को मिल रहे दाम पर सवाल उठाए. तस्वीरें साझा करते हुए लिखा, "बिहार विश्व के मखाना का 90 प्रतिशत उत्पादन करता है, लेकिन दिन-रात धूप और बारिश में मेहनत करने वाले किसान और मजदूर मुनाफ़े का एक प्रतिशत भी नहीं कमा पाते. बड़े शहरों में इसका दाम 1000-2000 रुपये प्रति किलोग्राम है, लेकिन ये मेहनती लोग, जो पूरी इंडस्ट्री की नींव हैं, केवल नाममात्र की कीमत पाते हैं."
"ये किसान और मजदूर कौन हैं? बेहद पिछड़े और दलित-बहुजन. सारी मेहनत ये 99 प्रतिशत बहुजन करते हैं, जबकि मुनाफा केवल एक प्रतिशत दलालों को मिलता है. वोट चोरी करने वाली सरकार न तो इन्हें महत्व देती है और न ही इनकी परवाह करती है - न आय देती है और न न्याय. मतदान का अधिकार और अपनी कौशल के फल पाने का अधिकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं - और हम दोनों को छीनने नहीं देंगे," राहुल ने कहा.
कटिहार में जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा, 'वोट चोर गद्दी छोड़' अब शाम को टीवी देखिए. आपको यह नारा नहीं दिखेगा. आपको यह कहीं नहीं दिखेगा. आपको यह भीड़ नहीं दिखेगी, क्योंकि यह गरीबों की भीड़ है. यह मजदूरों की भीड़ है, किसानों की भीड़ है, हमें वोट चोरी नहीं होने देना चाहिए.' केंद्र पर आरोप लगाते हुए राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी सत्ता का केंद्रीकरण चाहती है, संविधान को नष्ट करना चाहती है.
जयशंकर का अमेरिका को जवाब : किसानों के हितों से समझौता नहीं
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को कहा कि भारत अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं करेगा, भले ही संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता बढ़ते टैरिफ और भू-राजनीतिक तनाव की छाया में जारी है. नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में बोलते हुए, जयशंकर ने वाशिंगटन के साथ चल रही व्यापार वार्ता में भारत की "रेड लाइन्स" को रेखांकित किया और ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाए गए "अनुचित और तर्कहीन" टैरिफ बढ़ोतरी की तीखी आलोचना की. इनमें भारतीय सामानों पर टैरिफ को दोगुना कर 50% तक करने की संभावना है, जिसमें भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद से जुड़ा 25% का अतिरिक्त जुर्माना भी शामिल है. उन्होंने कहा, "व्यापार वास्तव में हमारे देशों के बीच प्रमुख मुद्दा है". उन्होंने आगे कहा, "बातचीत अभी भी चल रही है. कुल मिला कर बात यह है कि हमारी कुछ रेड लाइन्स हैं. और वे हमारे किसानों और छोटे उत्पादकों के हित हैं. इस पर हम समझौता नहीं कर सकते हैं".
जयशंकर की यह टिप्पणी नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बीच आई है, जिसमें हाल के महीनों में ऊर्जा खरीद से लेकर टैरिफ और व्यापार असंतुलन तक कई विवाद के बिंदु सामने आए हैं. मंत्री ने कहा कि वैश्विक मामलों के प्रति मौजूदा अमेरिकी प्रशासन का दृष्टिकोण पिछले मानदंडों से एक तीव्र प्रस्थान का प्रतीक है. उन्होंने कहा, "हमारे पास ऐसा कोई अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं रहा है जिसने मौजूदा राष्ट्रपति की तरह सार्वजनिक रूप से विदेश नीति का संचालन किया हो". जयशंकर ने कहा, "यह अपने आप में एक प्रस्थान है और यह भारत तक ही सीमित नहीं है. पूरी दुनिया इस बदलाव के साथ तालमेल बिठा रही है".
मंत्री ने अमेरिकी अधिकारियों की आलोचना का भी जवाब दिया, जिन्होंने भारत पर रियायती रूसी तेल खरीदकर और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों को बाजार दरों पर पश्चिम में निर्यात करके "मुनाफाखोरी" का आरोप लगाया था. आरोपों को खारिज करते हुए, जयशंकर ने टिप्पणी की: " खुले व्यापार का समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लिए काम करने वाले लोगों द्वारा दूसरों पर व्यापार करने का आरोप लगाना अजीब है". विदेश मंत्री ने कहा, "अगर आपको भारत से तेल या रिफाइंड उत्पाद खरीदने में कोई समस्या है, तो इसे न खरीदें. कोई आपको मजबूर नहीं कर रहा है. लेकिन यूरोप खरीदता है, अमेरिका खरीदता है - इसलिए यदि आप इसे पसंद नहीं करते हैं, तो इसे न खरीदें", और वाशिंगटन के आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया.
इस बीच, जयशंकर ने इस धारणा को भी खारिज कर दिया कि चीन के साथ संबंधों में सुधार भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव की प्रतिक्रिया है, उन्होंने ऐसी व्याख्याओं को सरल बताया. उन्होंने कहा, "हर चीज को एक ही कहानी में समेटने की कोशिश करना एक गलत विश्लेषण होगा. प्रत्येक संबंध अपनी गतिशीलता से आकार लेता है". अमेरिका की रणनीतिक विसंगतियों पर निशाना साधते हुए, जयशंकर ने पाकिस्तान के साथ वाशिंगटन के इतिहास का उल्लेख किया. उन्होंने कहा, "उनका एक-दूसरे के साथ एक इतिहास है, और उनका उस इतिहास को नज़रअंदाज़ करने का भी इतिहास है".
जब उनसे अमेरिकी द्वारा पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को आमंत्रित करने और वाशिंगटन-इस्लामाबाद संबंधों में हालिया उछाल के बारे में पूछा गया, तो विदेश मंत्री ने अमेरिका की चयनात्मक स्मृति की ओर इशारा किया. उन्होंने 2011 में ओसामा बिन लादेन को मारने वाले अमेरिकी छापे का जिक्र करते हुए कहा, "जब आप कभी-कभी एक सेना द्वारा दिए गए प्रमाणपत्रों को देखते हैं, तो यह वही सेना है जो एबटाबाद में गई और वहां आपको-पता-है-कौन मिला". जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उन दावों को भी खारिज कर दिया कि वाशिंगटन ने भारत और पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर को समाप्त करने वाले युद्धविराम में मध्यस्थता में निर्णायक भूमिका निभाई थी. विदेश मंत्री ने कहा, "यह स्वीकार करना एक बात है कि देश संकट के दौरान फोन कॉल करते हैं - यह सामान्य कूटनीति है. लेकिन एक युद्धविराम का श्रेय लेना जो सीधे भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत से हुआ था, यह पूरी तरह से कुछ और है", उन्होंने अपने क्षेत्रीय मामलों में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के खिलाफ भारत की लंबे समय से चली आ रही स्थिति को दोहराया.
अनिल अंबानी के ठिकानों पर सीबीआई के छापे
शनिवार को सीबीआई ने एक एफआईआर दर्ज कर रिलायंस कम्युनिकेशंस तथा उसके प्रवर्तक निदेशक अनिल अंबानी से जुड़े परिसरों पर छापेमारी की. यह कार्रवाई कथित बड़े पैमाने पर हुए बैंक धोखाधड़ी मामले के सिलसिले में की गई. पीटीआई के मुताबिक, सीबीआई की एक टीम ने मुंबई में अंबानी के घर पर तड़के सुबह तलाशी ली. टीम के पहुंचने के समय अनिल अंबानी, उनकी पत्नी और उनके बच्चे घर पर मौजूद थे. यह मामला कथित धोखाधड़ी से जुड़ा है, जिसके कारण भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को लगभग 2,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह छापेमारी एसबीआई की शिकायत के बाद की गई है. बैंक ने 13 जून को कंपनी और उसके प्रमोटर को ‘धोखाधड़ी’ की श्रेणी में रखा था.
इस बीच अनिल अंबानी ने सीबीआई द्वारा उन पर लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया है. अनिल अंबानी के एक प्रवक्ता ने “लाइवमिंट” को बयान दिया कि अंबानी ने स्टेट बैंक की घोषणा को सक्षम न्यायिक मंच पर चुनौती दी है. बयान में कहा गया कि स्टेट बैंक की शिकायत 10 वर्षों से अधिक पुराने मामलों से संबंधित है और उस वक्त अनिल अंबानी रिलायंस कम्युनिकेशंस के दैनिक प्रबंधन में शामिल नहीं थे.
भारत-अमेरिका की खींचतान का ‘अनचाहा शिकार’ मुकेश अंबानी
“ब्लूमबर्ग” के अनुसार, भारत के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी अमेरिका और भारत के बीच चल रही व्यापारिक खींचतान का “अनचाहा शिकार” बन गए हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रूस से कच्चा तेल खरीदने के मामले में जब नई दिल्ली पर दबाव बढ़ाया, तो उनके वरिष्ठ सलाहकारों ने भारत के कुछ सबसे ताकतवर उद्योगपतियों पर युद्धकालीन विकृतियों से मुनाफा कमाने का आरोप लगाया. हालांकि, किसी व्यक्ति का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया, लेकिन अंबानी अनिवार्य रूप से सुर्खियों में आ गए — क्योंकि रिलायंस साम्राज्य रूस के तेल का भारत में सबसे बड़ा खरीदार है.
यह आलोचना केवल एक सामान्य नीतिगत टकराव से कहीं गहरी थी. अंबानी, अपने समकक्ष उद्योगपति गौतम अडानी के साथ, मोदी के राष्ट्र-निर्माण एजेंडे के केंद्रीय स्तंभों में गिने जाते हैं. दोनों ने उन उद्योगों — रिफाइनिंग, पेट्रोकेमिकल्स, खुदरा और अधोसंरचना — में सफलता हासिल की है, जिन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त है.
ट्रम्प के एक पूर्व वाणिज्य अधिकारी ने तो यहां तक खुलासा किया कि 2020 के बाद प्रकाशित अपने संस्मरण में उन्होंने अपनी मेज़ पर भारत के सबसे अमीर “करीबी पूंजीपतियों” की एक सूची रखी थी, और वे उनकी संपत्ति व कारोबारों का इस्तेमाल मोदी की प्राथमिकताओं को समझने के लिए एक शॉर्टहैंड गाइड के रूप में करते थे.
टिकटॉक की वापसी नहीं हुई
शुक्रवार को भारत में इस खबर ने हलचल मचा दी कि पांच साल लंबे अंतराल के बाद शॉर्ट वीडियो प्लेटफ़ॉर्म टिकटॉक की इंटरनेट पर फिर से वापसी हो गई है. हालांकि, कंपनी के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि ऐसी कोई योजना नहीं है. प्रवक्ता ने कहा, “हमने भारत में टिकटॉक की पहुंच बहाल नहीं की है और हम भारत सरकार के निर्देशों का पालन करना जारी रखे हुए हैं.”
कुछ यूज़र्स के लिए सुलभ : इस बीच “टाइम्स ऑफ इंडिया” के अनुसार, टिकटॉक प्लेटफ़ॉर्म की वेबसाइट भारत में कुछ यूज़र्स के लिए सुलभ हो गई है, जिससे इसके संभावित वापसी को लेकर अटकलें बढ़ गई हैं. हालांकि, ऐप अभी भी गूगल प्ले स्टोर और ऐप स्टोर पर उपलब्ध नहीं है और कंपनी की ओर से वापसी को लेकर कोई आधिकारिक बयान भी जारी नहीं किया गया है. ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह कदम बिना शर्तों के नहीं है. जहां कुछ यूज़र्स ने वेबसाइट तक पहुंच बनाने में सफलता पाई है, वहीं “एक्स” पर अन्य लोगों ने बताया कि यह अब भी ब्लॉक है. टाइम्स ऑफ इंडिया की टेक टीम ने जब जांच की, तो वे होमपेज तक तो पहुंच सके, मगर बाकी किसी पेज को एक्सेस नहीं कर पाए.
चीन-पाकिस्तान आर्थिक सहयोग और बढ़ेगा
एपी के मुताबिक चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत पाकिस्तान और चीन ने आर्थिक सहयोग और निवेश का विस्तार करने का संकल्प लिया है. एपी की रिपोर्ट के अनुसार, यह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक प्रमुख कार्यक्रम है. यह बयान चीनी विदेश मंत्री वांग यी की इस्लामाबाद यात्रा के दौरान आया. वांग ने विशेष रूप से फील्ड मार्शल असीम मुनीर से मुलाकात की. सीपीईसी का उद्देश्य पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना और इसकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है, जबकि चीन को हिंद महासागर तक पहुंच प्रदान करना है. दोनों देशों ने इस बात पर जोर दिया कि यह परियोजना क्षेत्रीय समृद्धि और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है.
हेट क्राइम
महाराष्ट्र में लिंचिंग के बाद गांव में तनाव, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की चिंता बढ़ी
कुणाल पुरोहित ने आर्टिकल 14 में लिखा है कि महाराष्ट्र के जलगांव ज़िले में 20 वर्षीय सुलेमान खान पठान की हिंदू पुरुषों द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. बताया जा रहा है कि हमलावर सुलेमान के एक स्थानीय हिंदू लड़की से मिलने से नाराज़ थे. उसके परिवार के अनुसार, हमलावरों में वे लोग भी शामिल थे जिन्हें सुलेमान अपना करीबी दोस्त मानता था. इस घटना के बाद गांव में अनिश्चितता का माहौल है कि आगे क्या हो सकता है, और क्या बाहरी लोग इस हत्या का फायदा उठा सकते हैं. कुणाल पुरोहित की रिपोर्ट के अनुसार, पठान के परिवार और स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि जिस गांव में उसकी हत्या हुई, वह हमेशा शांतिपूर्ण रहा है और सुलेमान पहले गणेश चतुर्थी उत्सव के आयोजन में एक प्रमुख नेता था. हालांकि, पुरोहित ध्यान दिलाते हैं कि उसकी लिंचिंग ऐसे समय में हुई है जब महाराष्ट्र सांप्रदायिक रास्ते पर आगे बढ़ रहा है.
अंतरजातीय विवाह के कारण नलगोंडा में दलित परिवार का कथित सामाजिक बहिष्कार
द मूकनायक के मुताबिक नलगोंडा के चिट्याला मंडल में, एक अंतरजातीय विवाह के बाद एक दलित परिवार को कथित सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद आरोपियों के ख़िलाफ़ एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की मांग की गई. यह घटना ग्रामीण तेलंगाना में लगातार हो रहे जातिगत भेदभाव को उजागर करती है, और परिवार कानूनी सुरक्षा की मांग कर रहा है.
'बांग्लादेशियों' के निर्वासन पर ओवैसी ने मोदी सरकार पर साधा निशाना
हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि अगर मोदी सरकार भारत से 'बांग्लादेशियों' को निर्वासित करने के लिए इतनी ही उत्सुक है, तो उन्हें एक स्पष्ट जगह से शुरुआत करनी चाहिए: नई दिल्ली का वह बंगला जिसमें अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना एक साल से अधिक समय से रह रही हैं. शेख हसीना पर मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है और उन्होंने वहां से ऐसे बयान दिए हैं जिससे ढाका की अंतरिम सरकार को नाराज़गी हुई है. ओवैसी ने कहा, "इस बीच, हमारे पास मालदा और मुर्शिदाबाद के गरीब बंगाली भाषी भारतीय हैं जिन्हें पुणे से विमान में कोलकाता भेजा गया और फिर किसी की ज़मीन पर नहीं छोड़ दिया गया."
श्रीनगर में सड़क संकेत कश्मीरी भाषाई पहचान को मिटाने का प्रयास
दुनिया भर में, शहरी सड़क संकेतों का उद्देश्य निवासियों को अपना रास्ता खोजने में मदद करना है. लेकिन श्रीनगर में, इसका उद्देश्य कश्मीरियों को उनकी भाषाई पहचान से वंचित करना प्रतीत होता है. कई निवासियों और सांस्कृतिक पर्यवेक्षकों ने चिंता व्यक्त की है कि पारंपरिक कश्मीरी नामों और लिपियों को सड़क संकेतों से हटाया जा रहा है और उन्हें देवनागरी या रोमन लिपियों में लिखे गए नामों से बदला जा रहा है. उनका तर्क है कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को कमजोर करने और एकरूपता थोपने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है.
केवल 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' कहना राजद्रोह नहीं
बार एंड बेंच के मुताबिक हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि केवल दूसरे देश की प्रशंसा करना राजद्रोह नहीं माना जा सकता, जब तक कि इसमें भारत की निंदा या अलगाववादी भावनाओं और विध्वंसक गतिविधियों को उकसाना शामिल न हो. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा कि "मातृभूमि की निंदा किए बिना किसी देश की प्रशंसा करना राजद्रोह का अपराध नहीं है, क्योंकि यह न तो सशस्त्र विद्रोह को उकसाता है और न ही विध्वंसक या अलगाववादी गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है." अदालत ने आगे कहा, "इसलिए, प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता को अपराध के कमीशन से जोड़ने के लिए अपर्याप्त सामग्री है."
न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" शब्दों के साथ मोदी की एआई-जनित छवि साझा करने के आरोपी एक विक्रेता को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ घृणा या असंतोष भड़काने का कोई आरोप नहीं था. हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने पाया कि राजद्रोह से जुड़े मामले में आरोपी सुलेमान को हिरासत में रखना जारी रखने के लिए अपर्याप्त सामग्री थी. उसे जून में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में है. अदालत ने बचाव पक्ष के इस दावे पर ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता को झूठा फंसाया गया था.
बांग्लादेश और पाकिस्तान आगे बढ़े, भारत पीछे हटा
बांग्लादेश और पाकिस्तान अब राजनयिक उद्देश्यों के लिए वीज़ा-मुक्त यात्रा की अनुमति देंगे. यह फैसला बांग्लादेश की सलाहकार परिषद द्वारा मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के तहत अनुमोदित एक मसौदा समझौते के बाद आया है. यह सौदा, जो पांच साल के लिए वैध है, न केवल राजनयिक जुड़ाव को आसान बनाने की उम्मीद है, बल्कि द्विपक्षीय और यहां तक कि सैन्य सहयोग को भी गहरा करेगा.
दशकों तक, भारतीय अधिकारियों और राजनयिक पासपोर्ट धारकों ने सार्क देशों में वीज़ा-मुक्त यात्रा का आनंद लिया - जिसमें अफगानिस्तान भी शामिल था. यह भारत की केंद्रीय भूमिका और पड़ोस में उसकी सद्भावना की पहचान थी. हालांकि, मोदी के तहत दक्षिण एशिया में प्रभाव और सम्मान का वह युग अब समाप्त हो गया है. जैसा कि महेश्वर पेरी लिखते हैं, "एकमात्र हिंदू देश नेपाल, भारत के कब्जे वाले क्षेत्र - कालापानी-लिपुलेख-लिंपियाधुरा क्षेत्र - पर दावा कर रहा है और उसका कहना है कि यह क्षेत्र नेपाल के भीतर है. बांग्लादेश, एक कट्टर भारत मित्र और एक देश जिसे हमने आज़ाद कराया, ने आरोप लगाया कि भारतीय धरती पर 'बांग्लादेश विरोधी' गतिविधियां की जा रही थीं."
सर्जियो गोर भारत में नए अमेरिकी राजदूत
पदभार संभालने के 7 महीने बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 38 वर्षीय सर्जियो गोर को भारत में नए अमेरिकी राजदूत के रूप में नामित किया है. गोर की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा देने से दोनों देशों के रिश्तों में गिरावट आ गई है. ट्रम्प ने ट्रुथ सोशल पर घोषणा करते हुए लिखा, “मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मैं सर्जियो गोर को भारत गणराज्य में हमारे अगले संयुक्त राज्य अमेरिका के राजदूत और दक्षिण व मध्य एशियाई मामलों के लिए विशेष दूत के रूप में नामित कर रहा हूं.” ट्रम्प ने यह भी लिखा कि प्रेसिडेंशियल पर्सनल के निदेशक के तौर पर सर्जियो और उनकी टीम ने रिकॉर्ड समय में हमारी संघीय सरकार के हर विभाग में लगभग 4,000 'अमेरिका फ़र्स्ट' समर्थकों की नियुक्ति की है. सीनेट से पुष्टि होने तक सर्जियो अपनी मौजूदा भूमिका में व्हाइट हाउस में बने रहेंगे.
विदेश मंत्रालय ने गोर के नामांकन पर कोई टिप्पणी नहीं की. उनके पूर्ववर्ती एरिक गार्सेटी के विपरीत, जिन्होंने कांग्रेस की देरी के कारण बिडेन प्रशासन के दो साल बाद नई दिल्ली में कार्यभार संभाला था, गोर की पुष्टि प्रक्रिया सुचारू होने की उम्मीद है. अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी फोरम के अध्यक्ष और सीईओ मुकेश अघी ने कहा, "यह तथ्य कि एक उम्मीदवार है, और वह सर्जियो गोर जैसा कोई है, सकारात्मक खबर है". उन्होंने कहा कि एक अमेरिकी राजदूत के लिए अमेरिकी विदेश विभाग के माध्यम से संवाद में देरी करने के बजाय सीधे अमेरिकी राष्ट्रपति से बात करने में सक्षम होना महत्वपूर्ण है.
हालांकि, पूर्व विदेश सचिव निरुपमा मेनन राव, जो 2011 और 2013 के बीच अमेरिका में भारत की राजदूत भी थीं, ने बताया कि गोर के पास कोई राजनयिक या क्षेत्रीय अनुभव नहीं है. उन्होंने कहा, "उपलब्ध जानकारी के आधार पर, वह एक लंबे समय से ट्रम्प के सहयोगी हैं, जिनका भारत या दक्षिण एशिया में कोई स्पष्ट पृष्ठभूमि नहीं है. उनकी मुख्य योग्यता ट्रम्प के प्रति वफादारी प्रतीत होती है".
मारबत उत्सव में ट्रम्प का पुतला नागपुर की सड़कों पर घुमाया, टैरिफ से गुस्सा
शनिवार को नागपुर में सदियों पुराने मारबत उत्सव के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का एक विशाल पुतला शहर की सड़कों पर घुमाया गया. यह प्रदर्शन स्थानीय लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति थी, जो वॉशिंगटन द्वारा भारतीय वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाने के फैसले से नाराज़ थे.
मिट्टी और पुआल से बना ट्रम्प का यह ऊंचा पुतला पारंपरिक जुलूस का मुख्य आकर्षण बन गया. इसके साथ ही तख्तियां भी थीं, जिन पर तीखे संदेश लिखे थे. जैसे:- "टैरिफ लगाकर हमें डराने की कोशिश करते हैं, लेकिन अंत में भारत की ताक़त देखकर पछताते हैं, हमारे सामान पर लगाया गया टैरिफ उनकी अपनी व्यापारिक हानि का कारण बनेगा, अमेरिकी अंकल भारत पर पाबंदियां लगाते हैं, लेकिन अंततः खुद रूसी उत्पाद खरीदते हैं."
मारबत उत्सव, जो नागपुर में हर वर्ष पोला के दूसरे दिन मनाया जाता है, परंपरागत रूप से धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक टिप्पणी का मिश्रण रहा है. 19वीं शताब्दी में इसकी शुरुआत हुई थी, जब इसे बुरी आत्माओं को दूर करने के उद्देश्य से मनाया गया. इस अवसर पर “मारबत” नामक पुतले बनाए जाते हैं, जो समाज की बुराइयों का प्रतीक होते हैं.
चंद्रबाबू सबसे अमीर मुख्यमंत्री, ममता सबसे नीचे
मोदी सरकार को समर्थन दे रहे टीडीपी नेता और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भारत के सबसे अमीर मुख्यमंत्री हैं. उनके पास 931 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति है. देश के मौजूदा 30 मुख्यमंत्रियों के पास कुल 1632 करोड़ रुपए की संपत्ति है. इसका करीब 57% हिस्सा नायडू के पास है. इस मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम निचले क्रम पर है.
चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार नायडू के पास 810 करोड़ रुपए की चल संपत्ति (नगद डिपॉजिट, जेवर आदि) और 121 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति (मकान, जमीन आदि) है. चंद्रबाबू पर 10 करोड़ रुपए का कर्ज भी है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास सिर्फ 15.38 लाख रुपए की चल संपत्ति है. ममता के पास किसी प्रकार की अचल संपत्ति नहीं है. यह डेटा पिछला चुनाव लड़ने से पहले दायर हलफनामों से लिया गया है. मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है.
हरकारा डीपडाइव
कश्मीर में 25 किताबों पर प्रतिबंध: विचारों पर पहरेदारी या राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता?
जम्मू और कश्मीर सरकार ने हाल ही में 25 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकारी नियंत्रण को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है. सरकार का दावा है कि ये किताबें "अलगाववाद को बढ़ावा" देती हैं, "आतंकवाद का महिमामंडन" करती हैं और युवाओं को कट्टरपंथ की ओर ले जाती हैं. इस फैसले के बाद, पुलिस ने कश्मीर घाटी में कई किताबों की दुकानों पर छापेमारी कर इन प्रतिबंधित पुस्तकों को जब्त कर लिया है. हरकारा डीपडाइव में प्रोफेसर अपूर्वानंद से निधीश त्यागी ने इस बारे में बात की है.
यह प्रतिबंध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 98 के तहत लगाया गया है, जो सरकार को किसी भी प्रकाशन को जब्त करने का अधिकार देती है यदि उसे राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता के लिए खतरा माना जाता है. प्रतिबंधित किताबों की सूची में अरुंधति रॉय की 'आजादी', ए.जी. नूरानी की 'द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-2012' और सुमंत्रा बोस की 'कश्मीर एट द क्रॉसरोड्स' जैसी अकादमिक और पत्रकारिता से जुड़ी चर्चित कृतियाँ शामिल हैं. ये किताबें भारत और विदेश के प्रतिष्ठित विद्वानों, पत्रकारों और इतिहासकारों द्वारा लिखी गई हैं, जो कश्मीर के जटिल इतिहास, राजनीति और मानवाधिकारों के मुद्दों का विश्लेषण करती हैं.
इस निर्णय की व्यापक आलोचना हो रही है. आलोचकों का तर्क है कि यह कदम कश्मीर में असहमति और वैकल्पिक विचारों को दबाने का एक प्रयास है. दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले लेखक और सार्वजनिक बुद्धिजीवी, अपूर्वानंद ने इस प्रतिबंध को कश्मीर के लोगों के खिलाफ एक "मनोवैज्ञानिक युद्ध" करार दिया है. उनका मानना है कि यह प्रतिबंध कश्मीरियों को यह बताने का एक तरीका है कि सरकार उनकी जिंदगी के हर पहलू को नियंत्रित कर सकती है, जिसमें यह भी शामिल है कि वे क्या पढ़ सकते हैं और क्या नहीं.
अपूर्वानंद ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस तरह के प्रतिबंध इंटरनेट के युग में बेमानी हैं, जहाँ प्रतिबंधित सामग्री आसानी से पीडीएफ के रूप में उपलब्ध हो जाती है. उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कार्रवाई पारदर्शिता की कमी को दर्शाती है और यह स्पष्ट नहीं है कि इन 25 किताबों को किस प्रक्रिया के तहत चुना गया. उन्होंने इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया कि इन 25 किताबों में से अधिकांश अंग्रेजी में हैं और अकादमिक प्रकृति की हैं, जिन्हें आम जनता द्वारा पढ़े जाने की संभावना कम है.
सरकार का कहना है कि यह कदम "झूठे विमर्श" को फैलने से रोकने और युवाओं को गुमराह होने से बचाने के लिए आवश्यक था. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले प्रशासन का तर्क है कि यह साहित्य "शिकायत, पीड़ित होने और आतंकवादी वीरता की संस्कृति को बढ़ावा देकर युवाओं के मानस पर गहरा प्रभाव" डालता है.
यह घटनाक्रम एक बड़े पैटर्न का हिस्सा प्रतीत होता है, जहाँ सरकार सूचना और विचारों के प्रवाह को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है. इसकी तुलना एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में किए जा रहे बदलावों से भी की जा रही है, जहाँ ऐतिहासिक तथ्यों को एक विशेष विचारधारा के अनुरूप संशोधित करने के आरोप लगते रहे हैं. अपूर्वानंद का मानना है कि जैसे कश्मीर में जो हो रहा है, वह धीरे-धीरे पूरे भारत में लागू किया जा सकता है, जिसे वे "भारत का कश्मीरीकरण" कहते हैं.
इस प्रतिबंध ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि एक लोकतंत्र में विचारों के मुक्त आदान-प्रदान की सीमा क्या होनी चाहिए. क्या सरकार को यह तय करने का अधिकार है कि नागरिक क्या पढ़ें और क्या नहीं? या यह एक खतरनाक मिसाल है जो बौद्धिक स्वतंत्रता और आलोचनात्मक सोच को खत्म कर देगी? जैसा कि अपूर्वानंद कहते हैं, किताबें प्रतिबंधित करने से वे और अधिक चर्चित हो जाती हैं और उन लोगों तक भी पहुंच जाती हैं, जिन्होंने शायद पहले उनका नाम भी नहीं सुना होगा.
किताब
अपना देश खोना एक गहरी शर्म को जानना है, लिखते हैं आतिश तासीर अपनी नई पुस्तक में
7 नवंबर 2019 को भारत सरकार ने आतिश तासीर की "भारतीय प्रवासी नागरिकता" (ओवरसीज़ सिटिजनशिप ऑफ़ इंडिया-ओसीआई) को रद्द कर दिया. इसकी ख़बर उन्हें सबसे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता के ट्वीट से मिली. आधिकारिक पत्र बाद में पहुंचा. सरकार ने जो आधार बताया, वह यह था कि उन्होंने अपने पिता की पाकिस्तानी पृष्ठभूमि को छुपाया था. लेकिन क्या यही पूरी सच्चाई थी?
तासीर की नई पुस्तक “A Return to Self: Excursions in Exile” की समीक्षा में भूमिका ठोस ढंग से तर्क देती है कि ऐसा नहीं था. वे लिखते हैं—“यह एक अजीब आरोप था. मैंने 2009 में “Stranger to History” नाम की किताब लिखी थी और अपने पिता के बारे में कई लेख प्रकाशित किए थे, जबकि जीवन का अधिकांश समय मैं उनसे दूर ही रहा.” वास्तव में यह कोई राज़ नहीं था कि तवलीन सिंह का बेटा, सलमान तासीर का प्रेम-संबंध से जन्मा पुत्र है. “इस बात से अनजान रहना सरकार के लिए असंभव था,” पत्रकार करण थापर ने पुस्तक की समीक्षा में लिखा है.
“हालांकि, एक और बात याद रखने लायक है. 1999 में, जब तवलीन ने आतिश की ओर से "भारतीय मूल के व्यक्ति (पीआईओ)" कार्ड के लिए आवेदन किया था — जो 2005 में "भारतीय प्रवासी नागरिकता (ओसीआई)" बन गया — उस समय के नियमों में यह शर्त नहीं थी कि अगर माता-पिता में से एक पाकिस्तानी हो तो व्यक्ति अयोग्य होगा. यह प्रावधान तो 2016 में आया, जबकि आतिश को बहुत पहले ही भारतीय प्रवासी नागरिकता मिल चुकी थी,” थापर लिखते हैं.
असल में, एक और तथ्य ध्यान देने योग्य है. आतिश के पिता, सलमान तासीर, पाकिस्तानी और ब्रिटिश—दोहरे नागरिक थे. उनकी मां ब्रिटिश थीं. सम्भवतः इसी कारण आतिश को जन्म के समय ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त हुई.
आतिश को इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उनकी भारतीय प्रवासी नागरिकता किसी और कारण से रद्द की गई. यह किसी जानकारी छिपाने की वजह से नहीं था, बल्कि इसलिए था क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी. उसका कहना है, “मोदी सरकार की नज़रों में मैं ‘पाकिस्तानी’ बना — और उससे भी महत्वपूर्ण यह कि ‘मुसलमान’, क्योंकि भारत में धार्मिक पहचान प्रायः पितृ-वंशानुगत मानी जाती है और ज़्यादातर ख़ून से जुड़ी होती है, न कि आस्था से — यह पहचान मुझे केवल तब दी गई जब मैंने ‘टाइम’ मैगज़ीन के लिए नरेंद्र मोदी पर लिखे कवर लेख ‘इंडियाज़ डिवाइडर इन चीफ़’ में उनकी आलोचना की. इस लेख से प्रधानमंत्री बेहद क्रोधित हो गए … उसके बाद, भारत में मेरे दिन गिनती के रह गए. यह मायने नहीं रखता था कि मेरी मां भारतीय थीं. मुझे एक बाहरी व्यक्ति, एक अजनबी, एक पाकिस्तानी के रूप में पेश कर दिया गया. यह ऐसा फैसला था जिससे कोई राहत नहीं थी.”
आतिश से जुड़े कुछ सवाल बेहद अजीब, बल्कि आपत्तिजनक भी थे. उनसे पूछा गया कि उन्होंने उपनाम तासीर क्यों रखा है. उनका जवाब था कि उन्होंने खुद अपना नाम नहीं चुना, लेकिन यह तर्क किसी ने नहीं माना. उन्हें कहा गया कि अगर उनका नाम आतिश सिंह होता, तो वे हिंदू कहलाते. लेकिन तासीर नाम होने का मतलब है कि वे सिर्फ मुसलमान और पाकिस्तानी हो सकते हैं.
अपनी नागरिकता खोने के बाद सरकार ने उन्हें वीज़ा देने से भी इनकार कर दिया. नतीजतन, जब उनकी नानी — जिन्होंने उन्हें पाला था — का निधन हुआ, तब भी आतिश उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए.
आतिश की भूमिका इस बात को गहराई से दर्शाती है कि नागरिकता खोना कैसा अनुभव होता है:- “अपना देश खोना वैसा है जैसे आपको माता-पिता ने अपनाने से इनकार कर दिया हो, जैसे आपको आपके ही घर से निकाल दिया गया हो… यह उन कुछ चीज़ों में से है जिन्हें हम सहज रूप से अपना मान लेते हैं… देश के बिना हम दिशाहीन भटकते हैं.”
इस अर्थ में, उनसे उनकी वह इकलौती पहचान छीन ली गई थी जिसे वे अब तक जानते और संजोते आए थे. सच यह है कि अमेरिका की यूनिवर्सिटी से लौटने के बाद आतिश को यह बेहद गहराई से एहसास हुआ कि वे एक ऐसे शिकंजे का हिस्सा हैं जो भारतीय बहुसंख्यक समाज से कटा हुआ, बल्कि उससे बिल्कुल अलग-थलग है. इसलिए उन्होंने हिंदी, उर्दू और संस्कृत सीखने में भारी मेहनत की और पूरे देश में यात्रा की, ताकि उसमें खुद को डुबो सकें. यह भारत का हिस्सा बनने, उसमें अपनापन महसूस करने की सच्ची कोशिश थी. उन्होंने लिखा, “मैंने खुद के कई हिस्सों को मार डाला… सिर्फ इसलिए कि भारतीय जीवन में बेहतर तरीके से फिट हो सकूं.”
इसलिए हैरान करने वाली बात नहीं कि जब उनके लिए दरवाज़ा बंद कर दिया गया, तो उन्होंने लिखा, “मैंने एक अजीब-सी आज़ादी महसूस की… मुझे राहत मिली. भारत में फिट होने की कोशिश का बोझ, उसकी कमियों के लिए लगातार माफ़ी मांगने का बोझ, अपनी पश्चिमी पृष्ठभूमि के लिए शर्मिंदा होने का बोझ — यह सब अचानक मेरे कंधों से उतर गया. ”
आज वह देश के बारे में भूतकाल में लिखते हैं: "भारत मेरा देश था." वे कहते हैं कि ऐसा करना अत्यंत दुखद है. लेकिन यह उनके लिए मजबूरी बन गया है. 44 वर्ष की उम्र है, उनके सामने बनाने के लिए भविष्य पड़ा है. मोदी सरकार ने भारत को उनका अतीत बना दिया है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.