7 नवंबर, 2024: अमेरिका ट्रम्प के हवाले, निजी संपत्ति पर सरकारी कब्ज़े को सुप्रीम कोर्ट की ना, बुलेट ट्रेन चलने से पहले ही हादसा, झारखंड में बढ़ती चुनावी झौंझौं, हिंदू-सिख तनाव से सुलगता कनाडा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
अमेरिका का 47वां राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प: टेढ़ा है पर मेरा है..
डोनल्ड जूनियर ट्रम्प ने बड़ी आसानी से कमला हैरिस पर अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनावों में जीत हासिल की. मेरे जैसे लोग अभी कई दिन तक अपनी दाढ़ी खुजाते रहेंगे, जिन्हें अभी भी लगता है लोकतंत्र, तर्क, तमीज, सच, गरिमा जैसी चीजों को लोग पसंद करते हैं. कल हम समझने की कोशिश करेंगे भारत और दुनिया के लिए इस सनसनीखेज घटनाक्रम का अर्थात.
डोनल्ड ट्रम्प में ऐसे कोई भी लक्षण नहीं हैं. दो बार इम्पीचमेंट, कई बार कंगाल, महिलाओं से व्याभिचार और दुनिया भर के अपराध न सिर्फ दर्ज हैं, बल्कि साबित भी हो चुके हैं. उनका चुनाव कैम्पेन खुले आम अपनी प्रतिद्वंद्वी और विपक्ष के लिए अपशब्दों का प्रयोग कर रहा था, बल्कि लातिनी लोगों और खास तौर पर पुओर्तो रीको के लोगों को कचरा करार दे रहा था. खुद डोनल्ड ट्रम्प ने फौजी जनरलों को बुरा भला कहा था और अमेरीका के लिए लड़ने वालों को ‘सकर्स और लूजर्स’. खुद रिपब्लिकन पार्टी के कई बड़े नेता कमला हैरिस के पक्ष में थे और पिछले ट्रम्प कार्यकाल के सहयोगी कह रहे थे कि ट्रम्प एक हिटलर पसंद फासिस्ट है और अमेरिका के लिए खतरनाक.
पर इस सबके बावजूद जीत हुई ट्रम्प की ही. इस सबकी क्या वजहें रहीं और इसका क्या मतलब होगा? कई स्रोतों को खंगालने के बाद हमने इन बातों को इकठ्ठा किया.
अमेरिका किसी औरत को राष्ट्रपति पद पर देखने के लिए तैयार नहीं है. अश्वेत को तो बिलकुल भी नहीं.
और गोरा अगर जितने भी संदिग्ध चरित्र वाला हो, अमेरिका को मंजूर है. जैसे भारत में एक विज्ञापन आता है- टेढ़ा है पर मेरा है.
अमेरिका ने ट्रम्प के 34 अपराधों, पिछला चुनाव हारने के बाद कैपिटल पर हमले में भूमिका और चुनाव में धोखाधड़ी के आरोपों को नजरअंदाज किया.
ट्रम्प का अभियान गाली गलौज, भय और नफरत से भरी हुई थी, जिसे अमेरिका ने पसंद किया.
ट्रम्प ने अवैध प्रवासी, आपराधिक गतिविधियों और समलैंगिक अधिकारों पर आक्रामक बयानबाजी जारी रखी.
अमेरिका ने रिपब्लिकन पार्टी के उन नेताओं की एक न सुनी, जो कमला हैरिस का समर्थन कर रहे थे, और न उनकी जो पिछले राष्ट्रपति काल में ट्रम्प के साथ वरिष्ठ पदों पर काम करते थे और ट्रम्प को अमेरिका के लिए खतरा बता रहे थे.
ट्रम्प ने बेतहाशा झूठ बोले. आपने हरकारा के इस अंक में विस्तार से पढ़ा था.
हैरिस कैम्पेन के महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे अबार्शन का अधिकार, मकान, बच्चों और बड़ों के लिए फंड जैसे मुद्दे पानी की तरह बह गये.
ट्रम्प के पास दूसरों के खिलाफ बयानबाजी के अलावा महंगाई और अवैध प्रवासन मुद्दे थे. लोगों की जिंदगी से जुड़े मुद्दे मोटे तौर पर यही बताए जा रहे हैं.
ट्रम्प के इस अभियान में दो हत्या के प्रयासों का भी सामना करना पड़ा
ट्रम्प 78 वर्ष की आयु में सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति चुने गए.
ट्रम्प ने हिंसा की धमकियाँ भी दी, अमेरिकियों के खिलाफ ही फौज के इस्तेमाल करने की बात की और कहा दुनिया के कई तानाशाहों से ज्यादा खतरनाक अमेरिका में ही भीतरी दुश्मन हैं,
लेकिन इसके बावजूद उनकी अपील मजबूत रही, क्योंकि वे 'अमेरिका को वापस हासिल करने' का वादा कर रहे थे.
ट्रम्प की वापसी से अमेरिकी लोकतंत्र पर भारी दबाव पड़ सकता है, क्योंकि उन्होंने पहले ही संस्थागत जांच और असंतुष्ट अधिकारियों को हटाने की कोशिश की थी.
विदेश नीति में अस्थिरता: ट्रम्प ने चीन, उत्तर कोरिया और रूस जैसे अधिनायकवादी नेताओं की प्रशंसा की और यूरोप और एशिया के लोकतांत्रिक सहयोगियों की आलोचना की. नाटो और यूक्रेन को अमेरिकी सहायता का सवाल बना हुआ है.
ट्रम्प ने अवैध आप्रवासियों को देश से बाहर करने और उच्च शुल्क लगाने का वादा किया था और वे सुप्रीम कोर्ट के और न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे.
उन्होंने खुले आम अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ बदले की कार्रवाई की बात की.
ट्रम्प पर चल रहे आपराधिक मामले व्हाइट हाउस में उनकी वापसी के बाद उनके द्वारा नियुक्त अटॉर्नी जनरल खत्म कर देंगे, ऐसा कहा जा रहा है.
ट्रम्प को रिपब्लिकन सेनेट और हाउस के संभावित नियंत्रण से व्यापक विधायी शक्ति मिलेगी.
हैरिस की हार के बाद डेमोक्रेट्स में आंतरिक संघर्ष बढ़ेगा.
ट्रम्प के अड़ियल रवैये और विपक्ष के लोगों पर हमलों ने ग्रामीण अमेरिका में उनकी पकड़ और मजबूत की.
अमेरिका की राजनीति और समाज दोनों ही दक्षिणपंथी झुकाव की ओर बढ़ रहे हैं, और ये अब पिछले कार्यकाल से कहीं ज्यादा होगा.
कई रिपब्लिकन नेताओं ने डेमोक्रेट्स द्वारा लोकतंत्र को खतरे में डालने के बारे में दावे किए हैं, जो मुख्यधारा मीडिया में ज्यादा प्रचारित नहीं हुए, लेकिन ट्रम्प के समर्थकों में उनका प्रभाव बहुत गहरा था.
बाइडेन का बोझ: कैंपेन के अंतिम दिनों में जो बाइडन कहीं भी नहीं दिखाई दिए — क्योंकि वह हैरिस के लिए एक बड़ा बोझ बन गए थे.
हैरिस का ‘ग्राउंड गेम’ कमजोर पड़ा : चुनाव अभियान के अंतिम महीने में, हैरिस के अभियान ने अकेले पेंसिल्वेनिया में बीस लाख घरों पर दस्तक दी. वहाँ भी वह हार गई.
हैरिस ने रिपब्लिकन मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण दिनों में पूर्व प्रतिनिधि लिज चेनी के साथ प्रचार किया, लेकिन यह कोशिश पूरी तरह से विफल रही. यह रणनीति ऐसे समय में अपनाई गई जब पार्टी को स्थानीय स्तर पर काम करने की बजाय राष्ट्रीय मीडिया पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया जा रहा था.
कहां से मिले ट्रम्प को इतने वोट
महिलाओं में ट्रम्प: 2020 में बाइडन ने ट्रम्प को महिला मतदाताओं की श्रेणी में 12.5 अंकों से हराया था. इस बार, हैरिस उन्हें केवल 10 अंकों से जीती. जितनी औरतों ने बाइडन को वोट दिया, कमला को उतने भी नहीं.
2022 के मध्यावधि चुनावों में एबॉर्शन फैसले के बाद, यह अनुमान था कि महिलाएं हैरिस के पक्ष में मतदान करेंगी, लेकिन वास्तविकता में महिलाओं ने ट्रम्प को समर्थन दिया और पुरुषों ने भी.
ट्रम्प ने कॉलेज-शिक्षित गोरों में बढ़त बनाई: सफेद कॉलेज-शिक्षित मतदाता हैरिस के गठबंधन का मजबूत हिस्सा थे, लेकिन ट्रम्प ने इनमें भी बढ़त बनाई.
उन्होंने कॉलेज में नहीं पढ़े श्वेत मतदाताओं में भी 2 अंकों का सुधार किया और 31 अंकों से जीत हासिल की.
ट्रम्प ने हिस्पैनिक पुरुषों के भी वोट पाए: 2020 में ट्रम्प ने इस श्रेणी में बाइडन से 23 अंकों से पिछड़े थे, लेकिन इस बार वह हैरिस को 10 अंकों से पछाड़ गए—यह 33 अंकों का बदलाव था.
हिस्पैनिक पुरुषों ने कुल राष्ट्रीय मतदाता का 6 प्रतिशत हिस्सा बनाया, लेकिन स्विंग राज्यों जैसे एरिजोना और नेवादा में उनका वोट 10 प्रतिशत के करीब था, और यह नॉन-व्हाइट पुरुष मतदाताओं में एक बड़े बदलाव का संकेत था. ट्रम्प ने हिस्पैनिक मतदाताओं के बीच 16 अंकों का सुधार किया, जो किसी भी अन्य वोटिंग ब्लॉक के मुकाबले उनका सबसे बड़ा सुधार था.
ट्रम्प ने काले पुरुषों में भी जीत हासिल की: प्रारंभिक एक्जिट पोल्स के अनुसार, ट्रम्प ने एक-आध काले पुरुषों का समर्थन हासिल किया, जिससे काले मतदाताओं ने डेमोक्रेट्स के नेतृत्व को 9 अंकों से कम किया.
ट्रम्प ने अनिर्णित मतदाताओं में जीत हासिल की: ट्रम्प ने उन मतदाताओं में 2 अंकों से जीत हासिल की, जिन्होंने अंतिम दिनों में अपना फैसला लिया था, और पिछले सप्ताह में यह अंतर 8 अंक था. यह एक ऐसा परिणाम था जो हैरिस के पक्ष में चल रही लहर के विपरीत था.
ट्रम्प का प्रोक्सी-च्वाइस मतदाताओं में भी अच्छा प्रदर्शन : अवधि-निर्धारित गर्भपात पर हैरिस का रुख अपेक्षाकृत मजबूत था, लेकिन ट्रम्प ने उन मतदाताओं का समर्थन हासिल किया जो गर्भपात को "अधिकतर मामलों में" वैध मानते हैं. ट्रम्प ने इस समूह में केवल 4 अंकों से हार की, जो हैरिस के अभियान के प्रमुख हिस्से को कुंद कर देता है.
हैरिस ने उन मतदाताओं में जीत हासिल की जिन्होंने लोकतंत्र के लिए ट्रम्प को सबसे बड़ा खतरा माना. लेकिन ट्रम्प ने उन मतदाताओं में संकीर्ण जीत हासिल की, जो लोकतंत्र को "काफी खतरे में" मानते थे, जो एक अप्रत्याशित परिणाम था.
ट्रम्प ने उन मतदाताओं का भी एक हिस्सा जीता, जो उसे पसंद नहीं करते थे: 2024 के एक्जिट पोल्स के अनुसार, केवल 44 प्रतिशत मतदाताओं ने ट्रम्प को पसंद किया, जबकि 54 प्रतिशत ने उन्हें नापसंद किया. फिर भी ट्रम्प ने इस 54 प्रतिशत के 9 प्रतिशत मतदाताओं को अपने पक्ष में किया, जो उसे पसंद नहीं करते थे, लेकिन उन्होंने हैरिस के मुकाबले ट्रम्प को चुना. यह डेमोक्रेट्स के लिए एक बड़ा झटका है. यह सब से अधिक महत्वपूर्ण संख्या है जो डेमोक्रेट्स के लिए चिंता का कारण बनेगी, क्योंकि ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में अपनी वापसी की.
ट्रम्प की की पहली जीत लगभग पूरी तरह से गोरे मतदाताओं के कारण हुई थी. इस चुनाव में उन्हें अश्वेत लोगों का भी वोट मिला. खास तौर पर मर्दों का.
एक्जिट पोल्स के अनुसार, मंगलवार को ट्रम्प के लगभग हर पांचवे वोटर ‘कलर्ड’ समुदाय से थे. 2016 में, ट्रम्प के वोटरों में लगभग 13 प्रतिशत लोग ‘कलर्ड’ समुदाय से थे.
लातिनी जो पहले डेमोक्रेटिक वोटर बेस का एक भरोसेमंद हिस्सा थे, ने अपना रुख दाईं ओर करना जारी रखा. दो प्रमुख वोटर सर्वेक्षणों — नेटवर्क एक्जिट पोल्स और एपी वोटकास्ट — में यह अंतर था कि क्या हैरिस ने लातीनी मतदाताओं को 8 अंक से या 15 अंक से जीता. लेकिन किसी भी स्थिति में, यह 2020 में बाइडन द्वारा हिस्पैनिक वोटरों के बीच लगभग 30 अंकों से जीते जाने के मुकाबले एक विशाल बदलाव था.
ट्रम्प ने काले मतदाताओं के बीच भी बेहतर प्रदर्शन किया. जो पिछले दो चुनावों में 10 प्रतिशत से नीचे थे. इस बार, ट्रम्प ने काले मतदाताओं में क्रमशः 12 प्रतिशत और 15 प्रतिशत वोट हासिल किए.
रिपब्लिकन पार्टी के लाभ विशेष रूप से पुरुषों में केंद्रित थे. ट्रम्प के अभियान ने उन्हें खासतौर पर लक्षित किया था. दोनों सर्वेक्षणों में यह असहमत थे कि क्या ट्रम्प ने लातीनी पुरुषों को जीता — एक सर्वेक्षण कहता है कि उसने उन्हें संकीर्ण रूप से जीता, जबकि दूसरा कहता है कि हैरिस ने उन्हें संकीर्ण रूप से जीता. हालांकि, ट्रम्प ने काले पुरुषों में 20 से 25 प्रतिशत के बीच वोट हासिल किए.
महिलाओं ने हैरिस को समर्थन दिया पर गोरी महिलाएं ट्रम्प के पक्ष में थीं. नेटवर्क एक्जिट पोल्स के अनुसार, 54 प्रतिशत महिलाओं ने हैरिस का समर्थन किया. जबकि अश्वेत और कलर्ड महिलाओं में केवल 26 प्रतिशत ने ट्रम्प को समर्थन दिया, वहीं गोरी महिलाओं में 52 प्रतिशत ने ट्रम्प को वोट दिया.
डेमोक्रेट्स का दावा था कि रो बनाम वेड के फैसले का पलटने के वादे से महिलाओं का समर्थन ले पाएंगे. यह रणनीति काम नहीं आई.
2016 में, डोनाल्ड ट्रम्प की जीत को एक तुक्का माना जा सकता था. लेकिन पिछले आठ वर्षों के बाद, व्हाइट हाउस में उनकी वापसी खासी तसल्ली के साथ आई है.
मस्क के टेस्ला के शेयर उछला !
अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों ने बाज़ार का भी गेम बदल दिया है. एलन मस्क खुश हैं क्योंकि टेस्ला के शेयर प्री-मार्केट ट्रेडिंग में बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी ऐतिहासिक राष्ट्रपति चुनाव जीत के करीब एक भाषण में मस्क को “नया स्टार” बताते हुए कहा, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ.” ट्रम्प और एलन के इस याराने को कई मौकों पर इस चुनाव के दौरान देखा भी गया है. एलन ने खुलकर ट्रम्प के पक्ष में लोगों से मतदान की अपील की थी और अब जबकि ट्रम्प जीत गए हैं, तब एलन के लिए भी नए मौके निश्चित तौर पर आ गए हैं. इसी याराने पर न्यूज़ 18 ने एक रिपोर्ट की है.
कच्चे तेल, सोना, सेंसेक्स, रुपया, बिटकॉयन पर कैसा पड़ा असर?
डोनाल्ड ट्रंप की 2024 की राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद, वित्तीय बाजारों में विभिन्न बदलाव देखे गए. कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखा गया, क्योंकि ट्रंप की नीतियां ऊर्जा क्षेत्र में संभावित बदलाव का संकेत देती हैं, जैसे ओपेक पर दबाव और तेल उत्पादन में वृद्धि. सोने की कीमतें थोड़ी गिर गईं, क्योंकि बाजारों में ट्रंप की आर्थिक नीतियों को लेकर अनिश्चितता थी. भारत में सेंसेक्स ने भी कुछ उतार-चढ़ाव दिखाया, क्योंकि निवेशक वैश्विक व्यापार नीतियों के प्रभावों का अनुमान लगा रहे थे. वहीं, भारतीय रुपया कमजोर हुआ, क्योंकि बाजार ने ट्रंप के व्यापारिक फैसलों के प्रभाव को लेकर चिंता जताई. बिटकॉइन को एक तात्कालिक बढ़त मिली, क्योंकि क्रिप्टो उत्साही ट्रंप की क्रिप्टो समर्थक नीतियों से उम्मीदें लगाए हुए थे. पढ़िए ये रिपोर्ट.
सरकार बिना नोटिस के किसी का घर नहीं तोड़ सकती
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नागरिक परियोजना के लिए अवैध रूप से आवासीय घरों को ध्वस्त करने के लिए फटकार लगाई है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने 6 नवंबर (आज) को लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों के व्यवहार को ‘मनमाना और कठोर’ करार दिया. पीठ एक 2020 की सूओ मोटो याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो मनोज तिवारी अखिल (जो 2019 में एक सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत अपनी ज़मीन के ध्वस्त होने के बाद शिकायतकर्ता बने थे) द्वारा दायर की गई थी. इस परियोजना को आदित्यनाथ सरकार ने शुरू किया था. कुल मिलाकर 124 निर्माणों को ध्वस्त किया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था और उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि जबकि उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि आकाश ने 3.7 वर्ग मीटर ज़मीन पर अतिक्रमण किया था, उन्होंने सवाल उठाया, "आप लोगों के घरों को इस तरह से कैसे ध्वस्त कर सकते हैं?" "यह अराजकता है...किसी के घर में घुसना..." उन्होंने कहा. इसके बाद उन्होंने यह भी कहा:
"यह पूरी तरह से मनमानी कार्रवाई है! उचित प्रक्रिया कहाँ अपनाई गई? हमारे पास हलफनामा है जिसमें कहा गया है कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था, आप सिर्फ साइट पर गए और लोगों को लाउडस्पीकर के जरिए सूचित किया."
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने भी कहा, "आप बुलडोजर लेकर आकर रातोंरात घरों को नहीं ध्वस्त कर सकते. आप परिवारों को खाली करने का समय नहीं देते. घर के सामान का क्या होगा? उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए," सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का दंडात्मक मुआवजा देने का आदेश दिया और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे सभी अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ जांच करें, जो अवैध कार्रवाई के लिए जिम्मेदार थे, और अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करें. सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों द्वारा संपत्ति ध्वस्तीकरण के लिए देशभर के लिए दिशानिर्देशों का प्रस्ताव दिया था. इन राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश है, जो इसे अक्सर एक दंडात्मक उपाय के रूप में इस्तेमाल करता है. सर्वोच्च न्यायालय के बुलडोज़र एक्शन पर प्रतिबंध लगाने के एक दिन बाद, यूपी के बिजली मंत्री ए.के. शर्मा, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र पूर्व नौकरशाह रहे हैं, ने राज्य सरकार द्वारा बुलडोज़रों के इस्तेमाल का बचाव और समर्थन किया.
एक दमनकारी सरकार के अर्थशास्त्री की मृत्यु पर नरम पड़ना
विवेक देबराय को मिलने वाली भावभीनी श्रृद्धांजलियों पर टीका करते हुए अपूर्वानंद द वायर में पूछते हैं कि कैसे याद किया जाए किसी को उनकी मृत्यु के बाद? खासकर उस व्यक्ति को जिसने एक ऐसे सरकार की सेवा की हो, जो मुस्लिम विरोधी नीतियों और क्रियाओं के लिए जानी जाती हो? यह सवाल उठता है, क्या घृणा के प्रति सहिष्णुता हमारी राष्ट्रीय विशेषता बन गई है? लेकिन क्या एक बहुसंख्य वादी और इस्लामोफोबिक राजनीति के साथ जुड़ाव को केवल एक राजनीतिक भिन्नता समझा जा सकता है? क्या यह सही है कि कोई व्यक्ति ऐसी सरकार की सेवा करते हुए, जो धार्मिक विभाजन और घृणा को बढ़ावा देती है, खुद को इस सब से अछूता रखे?
विवेक देबराय की भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी और अन्य नीतियों का समर्थन किया, जिन्होंने आम भारतीयों को संकट में डाला. क्या एक नीति निर्माता के रूप में उन्हें इन नीतियों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए? उनके महाभारत और पुराणों का अध्ययन और अध्यात्मिक पक्ष देखते हुए, क्या उन्होंने एक ऐसी सरकार की सेवा में अपने धर्म और अधर्म के प्रश्नों से समझौता किया, जो विभाजन और घृणा को बढ़ावा देती है?
क्या एक बौद्धिक व्यक्ति का कर्तव्य नहीं था कि वह सत्ता को सत्य बताए? आज के भारत में, जहां धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न और आर्थिक शोषण हो रहा है, एक बौद्धिक व्यक्ति का वास्तविक मूल्य तभी समझा जा सकता है जब वह इन मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाए. समाज के सबसे हाशिए पर रहने वाले लोग, जैसे मुसलमान, आज भारत में विवेक देबराय के निधन पर क्या प्रतिक्रिया देंगे? क्या वे ऐसे व्यक्ति को याद करेंगे, जो अपने आध्यात्मिक सवालों में ही खोया था, जबकि वह एक ऐसी सरकार की सेवा कर रहा था जो उनके उत्पीड़न को बढ़ावा देती थी?
चंद्रचूड़ की जिंदगी और कार्यकाल पर खोजी रिपोर्टर से बातचीत
सीजेआई चंद्रचूड़ पर कल के न्यूजलेटर में हमने लम्बी स्टोरी की थी. आज देखिए अजीत अंजुम के यूट्यूब चैनल पर ‘द कैरेवन’ पत्रिका में उनका लम्बा प्रोफाइल लिखने वाले युवा खोजी रिपोर्टर सौरव दास से लम्बी बातचीत.
इजराइल उतर आया है सड़क पर नेतन्याहू के ख़िलाफ
इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने रक्षा मंत्री योआव गलांट को बर्खास्त कर दिया है, जिन्हें इज़राइल के अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों द्वारा देश की गठबंधन सरकार के दक्षिणपंथी तत्वों पर रोक लगाने वाली एक प्रमुख शख्सियत माना जाता था. यह कदम इज़राइल में एक व्यापक राजनीतिक और सामाजिक संकट को जन्म दे रहा है, क्योंकि देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कई इज़राइली इसे सरकार के बढ़ते चरमपंथी होने और राजनीतिक वफादारी और वैचारिक दृष्टिकोण के लिए व्यावहारिक और संतुलित आवाजों की बलि देने के रूप में देख रहे हैं. नेतन्याहू ने मंगलवार देर रात एक वीडियो बयान में कहा- “युद्ध के चरम पर, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के बीच पूरी तरह से विश्वास होना जरूरी है… पिछले कुछ महीनों में, मेरे और रक्षा मंत्री के बीच यह विश्वास क्षतिग्रस्त हो गया है,”.
दिल्ली ने नहीं पूछा तो चीन की तरफ मुंह किया नेपाली प्रधानमंत्री ने
नेपाल के नये प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने नई दिल्ली द्वारा उन्हें निमंत्रण देने में देरी के बाद बीजिंग की ओर रुख किया है. ओली ने चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश की है, विशेष रूप से व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के क्षेत्र में. ओली की चीन की ओर झुकाव बढ़ने से नेपाल-भारत रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि पहले से ही सीमा विवादों और अन्य राजनीतिक मुद्दों को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं.
कहाँ गायब हो गए रणथंबौर के 25 बाघ!
रणथंबौर में मौजूद 75 बाघों में से 25 बाघों के आधिकारिक रूप से गायब होने की खबर सामने आई है. इस पर बढ़ती चिंता के बीच, राजस्थान के चीफ वाइल्डलाइफ लार्ज (CWLW) ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, 11 बाघों का एक साल से अधिक समय से कोई पता नहीं चल पाया है, जबकि 14 अन्य बाघों का भी पिछले एक साल में कोई सुराग नहीं मिला है.
सुलगने लगा है कनाडा में हिंदू - सिख तनाव
ब्रैंपटन, ओंटारियो में एक बेकाबू हिंदू भीड़ ने खालिस्तानी समर्थकों द्वारा भक्तों पर हमले का आरोप लगाकर जमकर बवाल काटा और सड़क पर कब्जा कर लिया और बेतरतीब कारों पर हमले शुरू कर दिए. कनाडा के हिंदू समुदाय के एक हजार से अधिक सदस्य इस दौरान ब्रैम्पटन के गोर रोड पर इकट्ठा होकर देश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के खिलाफ नारेबाजी करते रहे. इस दौरान प्रदर्शनकारियों की पुलिस से तीखी नोंक झोंक भी हुई है. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित किया और 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. यह घटना कनाडा और भारत के बीच चल रही तनावपूर्ण स्थितियों के बीच हुई है. पिछले महीने, ओटावा ने भारत के गृह मंत्री अमित शाह पर सिख कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया था, जिसे भारत सरकार ने नकारा है.
बाज़ार के छोटे लाला मार रहे हैं मक्खी, बड़े खिलाड़ियों ने ऐसे किया खेल
ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (AICPDF) ने हाल ही में यह गंभीर आरोप लगाया है कि फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) कंपनियां अपने करीब एक्सपायरी पर पहुंच चुके या कम मांग वाले उत्पादों को क्यू-कॉमर्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के जरिए भारी छूट के साथ बेच रही हैं. फेडरेशन का कहना है कि ये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कंपनियों के लिए "डंपिंग ग्राउंड" बन गए हैं, जिनसे वो ऐसे उत्पादों को आसानी से बेच सकती हैं जिन्हें पारंपरिक रिटेल चैनलों में बेचना मुश्किल है. AICPDF का मानना है कि कंपनियां इस तरह से डिस्ट्रीब्यूटर नेटवर्क की अनदेखी कर रही हैं और केवल अपने स्टॉक को हटाने के लिए उपभोक्ताओं को बड़े डिस्काउंट देकर भ्रमित कर रही हैं. डिस्ट्रीब्यूटर्स के अनुसार, इस प्रक्रिया से उन्हें नुकसान हो रहा है, क्योंकि उपभोक्ता भारी छूट की वजह से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से खरीदारी कर रहे हैं, जिससे उनके पास रखे समान की मांग कम हो रही है.
डेपसांग और डेमचोक में डंके की चोट पर गश्त की घोषणा कर क्या सच छिपा गई सरकार!
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख के डेपसांग क्षेत्र में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर पेट्रोलिंग के नियमों और मार्गों को लेकर चल रही सैन्य बातचीत में भारतीय मीडिया ने ऐसे खबर उड़ाई है जैसे सब ‘ऑल इज वेल’ हो गया हो, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है. भारत और चीन के बीच इस क्षेत्र में गश्त (पेट्रोलिंग) के विस्तार और मार्गों को लेकर बातचीत एक जटिल स्थिति में फंस गई है, जिससे इस पर कोई समाधान नहीं निकल पा रहा है.
चीन ने भारत की सेना के कुछ पेट्रोलिंग पॉइंट्स (PPs) 10 और 11 तक पूरी तरह से जाने पर आपत्ति जताई है. इसके अलावा, चीन ने PPs 11A, 12, और 13 तक पेट्रोलिंग के दायरे (दूरी) को लेकर भी आपत्ति जताई है. इन बिंदुओं पर पेट्रोलिंग की व्यवस्था तय करने के लिए दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की बातचीत हो रही है. भारतीय सेना द्वारा अप्रैल 2020 से पहले जिन बिंदुओं पर गश्त की जाती थी, उनके कार्यक्रम को लेकर चीनी पक्ष बातचीत को खींच रहा है. यह संदेह जताया जा रहा है कि चीनी सेना जानबूझकर पेट्रोलिंग शेड्यूल को लेकर देरी कर रही है, जिससे भारतीय सेना इन मार्गों पर पूरी तरह से गश्त न कर सके.
अक्टूबर 2023 में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने डेपसांग और डेमचोक में गश्त के मार्गों को फिर से खोलने की घोषणा की थी. इसके बाद दोनों पक्षों के ब्रिगेड कमांडर स्तर के अधिकारियों को पेट्रोलिंग व्यवस्था तय करने का कार्य सौंपा गया है.
एमपी में सिविल सेवाओं की भर्ती में महिलाओं को 35% आरक्षण
मध्य प्रदेश सरकार ने मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में एक बड़ा निर्णय लेते हुए सिविल सेवाओं की भर्ती में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दी. उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने बताया कि अब राज्य के सभी विभागों में सीधी भर्ती में महिलाओं के लिए आरक्षण 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 35 प्रतिशत कर दिया गया है. यह प्रावधान मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) और कर्मचारी चयन बोर्ड (ESB) द्वारा आयोजित सभी भर्ती प्रक्रियाओं पर लागू होगा.
झारखंड: आदिवासियों का वोट और 'घुसपैठिया' का शोर
झारखंड में राजनीतिक संघर्ष और तेज हो गया है, जहां असम के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रमुख नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य की सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा झामुमो सरकार पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. सरमा ने कहा कि संथाल परगना क्षेत्र में मुस्लिम आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसे उन्होंने अवैध घुसपैठियों से जोड़ा. इस पर, उन्होंने भाजपा द्वारा "घुसपैठियों" को बाहर करने का वादा किया.
इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, हेमंत सोरेन के भाई बासंत सोरेन ने सरमा पर समाज में आग लगाने का आरोप लगाया। इस मुद्दे को लेकर झारखंड के चुनावी मैदान में भाजपा और झामुमो के बीच तनातनी बढ़ गई है. BJP मुख्य रूप से 67.83% हिंदू वोटरों को ध्यान में रखते हुए आदिवासी वोटों को भी आकर्षित करने की कोशिश कर रही है, जो मुख्य रूप से सरनाईत (12.52%) और ईसाई (4.31%) धर्म के अनुयायी हैं.
राजनीतिक भाषा के संस्कारों पर दो टूक
न्यूजलांड्री हिंदी के संपादक अतुल चौरसिया का तंज भरा कार्यक्रम टिप्पणी के निशाने पर वह भाषा है जो वोट पाने के लिए कई लोग झारखंड के लोगों को रिझाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. वे कितनी सांस्कारिक हैं औऱ कितनी संवैधानिक, आप खुद तय कर सकते हैं. यह भी मात्र संयोगमात्र है कि आपको इसमे अमेरिका मे हुए चुनाव प्रचार की झलक दिखाई पड़ने लगे. इसमें वह शख्स भी शामिल है जिसे- आई एम ए डिस्को डांसर गाने पर कूल्हे मटकाते देख हममें से कई लोग बड़े हुए थे.
गुजरात के आनंद में बुलेट ट्रेन निर्माण स्थल पर हादसा, 3 श्रमिकों की मौत
मंगलवार को गुजरात के आनंद जिले के राजुपुरा गांव में मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के निर्माण स्थल पर कंक्रीट ब्लॉकों के गिरने से तीन श्रमिकों की मौत हो गई, जबकि एक अन्य को मलबे में से सुरक्षित निकाल लिया गया. इस हादसे के बाद कांग्रेस ने श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताते हुए, इसके लिए भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बुलेट ट्रेन परियोजना के तहत सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है, जिससे इस तरह की दुर्घटनाएं हो रही हैं.
जुगनुओं के बिना कैसे होगा ‘फायरफ्लाई फेस्टिवल्स’
स्क्राॅल के लिए रुषिकेष मोरे और संजना ने जुगनुओं पर बढ़ रहे खतरे को रेखांकित करते हुए एक रिपोर्ट लिखी है. पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र के ‘फायरफ्लाई फेस्टिवल्स’ के लिए पर्यटकों की आमद तो बढ़ी है, लेकिन जलवायु परिवर्तन इन नाजुक कीट प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है. गर्मी, मानसून के बदलाव और बढ़ते प्रदूषण के कारण जुगनुओं की संख्या में गिरावट आई है. ऐसे में जुगनुओं के संरक्षण के लिए सतर्कता और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है.
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के भंडारदरा क्षेत्र में मई के अंत में पश्चिमी हवा के साथ गर्मी कम होने लगती है. मई के अंत और जून की शुरुआत में यहां जुगनुओं का प्रजनन काल होता है और यह जीव अपने प्रकाश से वैली में चमकते हुए अद्भुत दृश्य उत्पन्न करते हैं. जैसे-जैसे मानसून आता है, जुगनुओं की संख्या धीरे-धीरे कम हो जाती है. इस पर ये फिल्म देखिये.
भारत की जैव सम्पदा में 16 हजार नई प्रजातियां, पर ख़तरे में कई
भारत ने पिछले दस वर्षों में 16 हजार से ज्यादा नई पादप और जीव-जंतु प्रजातियों की खोज कर उन्हें अपने जैव संपदा में इज़ाफा किया है. इनमें 8,213 नई पादप प्रजातियां और 8,188 नई जीव-जंतु प्रजातियां शामिल हैं. खास बात यह है कि इनमें से कई विभिन्न जैवभौगोलिक क्षेत्रों की मूल निवासी हैं. मतलब, स्थानीय हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि उत्पत्ति स्थान की बर्बादी और जलवायु परिवर्तन जैसे तमाम कारणों की वजह से देश में दोनों ही प्रजातियों पर खतरा बढ़ रहा है.
डेक्कन हेराल्ड के अनुसार भारत की जैव विविधता के बारे में केंद्र सरकार ने अपनी 2024-2030 की रिपोर्ट में ब्यौरा दिया है. रिपोर्ट कहती है कि नई प्रजातियों के जुड़ने से भारत में अब विश्व की 6.47% जीव-जंतु प्रजातियां और 9.24% पादप प्रजातियां हैं. हालांकि डेटा यह भी दर्शाता है कि वर्ष 2022 तक 675 जीव-जंतु और 1,663 पादप प्रजातियां को खतरे के रूप में वर्गीकृत किया गया था.
चलते - चलते: पढ़िये निर्मल वर्मा द्वारा अनूदित और कल्पना में 1957 में प्रकाशित कहानी ‘एक रात का सत्य’
विलियम सरोयान, अर्मेनियाई मूल के एक अमेरिकी लेखक थे, जिनका जन्म 1908 में हुआ था. उन्होंने साहित्य की दुनिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया और विशेष रूप से द ह्यूमन कॉमेडी की पटकथा के लिए उन्हें ऑस्कर सम्मान प्राप्त हुआ. हालांकि, अंग्रेजी साहित्य में उनके योगदान को बीसवीं सदी के दौरान अपेक्षाकृत अनदेखा किया गया. हिंदी साहित्य पर केंद्रित ऑनलाइन पत्रिका समालोचन ने इसे यहां फिर से छापा है.
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