25/04/2025 : सरकार ने चूक मानी | कश्मीरी मुसलमान निशाने पर | भारत-पाक ने एक-दूसरे पर कार्रवाई शुरू की | कश्मीर में मेरे दो भाई | मोदी का मधुबनी से बयान | प्रतिशोध या जवाबदेही?
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
आतंकियों से मुठभेड़ में एक जवान शहीद
ठाकरे बंधुओं का “एका” : क्यों अनमने हैं शिंदे?
मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी
योगी पर मुस्लिम विरोधी बयान देने का मुकदमा खारिज
व्यापार समझौते में अमेरिका की निगाह कृषि उत्पादों पर
दिल्ली हाईकोर्ट ने हर्ष मंदर के ट्रस्ट पर आयकर विभाग को लताड़ा
2 सालों में 28 हजार से ज्यादा भारतीय स्टार्टअप्स बंद
हिंडनबर्ग प्रभाव का अडानी पर असर
दो महिला किसान नेताओं की पुलिस पिटाई, पंजाब सीएम को लिखा पत्र
पहलगाम हमले में सरकार ने चूक मानी
केंद्र सरकार ने गुरुवार को एक सर्वदलीय बैठक में स्वीकार किया कि पहलगाम आतंकी हमले में सुरक्षा में चूक हुई थी. सरकार ने बताया कि स्थानीय टूर ऑपरेटरों ने प्रशासन को सूचित किए बिना पर्यटकों के लिए मार्ग खोल दिया था, जिस कारण वहां सुरक्षा बलों की तैनाती नहीं थी.
‘द प्रिंट’ के मुताबिक विपक्षी नेताओं द्वारा संभावित खुफिया और सुरक्षा चूक के आरोपों के जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, "हमने यह बैठक इसलिए बुलाई है, क्योंकि हम हमले को रोक नहीं सके."
सरकारी अधिकारियों ने जानकारी दी कि आमतौर पर यह मार्ग जून में अमरनाथ यात्रा के शुरू होने के साथ ही पर्यटकों के लिए खोला जाता है. लेकिन इस साल, टूर ऑपरेटरों ने ‘अधिकारियों की जानकारी के बिना’ 20 अप्रैल से ही इसे खोल दिया.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में शाह, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद थे. राहुल गांधी ने हमले के स्थल पर सुरक्षाकर्मियों की पूरी अनुपस्थिति पर सवाल उठाया. बैठक में इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक ने भी 15 मिनट का प्रस्तुतीकरण दिया.
आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बताया, "सरकार ने हमें बताया कि यह मार्ग आमतौर पर जून में अमरनाथ यात्रा के दौरान खुलता है. हालांकि, इस बार स्थानीय टूर ऑपरेटरों ने अप्रैल में ही बुकिंग स्वीकार करना शुरू कर दिया. स्थानीय अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं थी, जिसके परिणामस्वरूप वहां वास्तव में कोई सुरक्षा तैनाती नहीं थी."
बैठक में सभी विपक्षी दलों ने सरकार को आश्वासन दिया कि वे हमले के जवाब में उसके उपायों का पूरा समर्थन करेंगे. सरकार ने विपक्ष को बताया कि उसने पाकिस्तान को संकेत देने के लिए सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है. विपक्षी दलों ने भाजपा से इस हमले को "हिंदू-मुस्लिम" मुद्दा बनाने के प्रयासों से बचने को भी कहा. खड़गे ने बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया, जबकि ओवैसी ने हमले के स्थल पर त्वरित प्रतिक्रिया टीम भेजने में देरी का कारण जानना चाहा.
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पहलगाम हमले के बाद राष्ट्रीय हित में सरकार द्वारा उठाए जा रहे सभी कदमों का समर्थन किया है. उन्होंने पीएम मोदी के ‘कड़े बयान’ का स्वागत करते हुए दोषियों की जवाबदेही तय करने और राष्ट्रीय एकता बनाए रखने पर जोर दिया.
राहुल गांधी कश्मीर जाएंगे : लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी शुक्रवार (25 अप्रैल) को जम्मू-कश्मीर का दौरा करेंगे. वह पहलगाम आतंकी हमले में घायल हुए लोगों से अनंतनाग के सरकारी मेडिकल कॉलेज में मुलाकात करेंगे. गांधी ने इसके लिए अपनी अमेरिका यात्रा बीच में ही समाप्त कर दी थी.
कश्मीरी मुसलमानों को धमकियां, हमलों की खबर

देहरादून में हिंदू रक्षा दल के नेता ललित शर्मा ने एक वीडियो में कश्मीरी मुसलमानों को राज्य छोड़ने की धमकी दी है. उन्होंने कहा, "अगर कल सुबह 10 बजे के बाद हम राज्य में किसी भी कश्मीरी मुसलमान को देखते हैं, तो हम उनके साथ 'सही व्यवहार' करेंगे." इस धमकी के बाद, कई कश्मीरी छात्र भयभीत हैं और कुछ तो एयरपोर्ट के लिए निकल चुके हैं. कॉलेज प्रशासन ने छात्रों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी है.
धमकियों के बाद, देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह ने कहा कि पुलिस उन संस्थानों के संपर्क में है, जहां कश्मीरी छात्र पढ़ते हैं और सभी को सुरक्षा का आश्वासन दिया गया है. फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी कश्मीरी छात्रों को कथित तौर पर दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा पीटा गया था. जम्मू और कश्मीर छात्र संघ के नासिर खुहमी ने दावा किया है कि राज्य के दक्षिणपंथी संगठन कश्मीरी मुसलमानों को धमकियाँ दे रहे हैं और वे राज्यपाल और पुलिस से संपर्क में हैं.
वहीं चंडीगढ़ के डेरा बस्सी में यूनिवर्सल ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस में बुधवार रात को कश्मीरी छात्रों पर उनके छात्रावास परिसर के अंदर कथित तौर पर हमला किया गया. एक वीडियो में, कुछ छात्रों ने कहा कि कुछ स्थानीय और अन्य राज्यों के छात्र जबरन छात्रावास में घुस आए और उन्हें धारदार हथियारों से निशाना बनाया. एक छात्र ने वीडियो में कहा, “उनके पास चाकू थे. हम यहां सुरक्षित नहीं हैं. डर है कि हम पर हमला हो सकता है.” वीडियो में दिख रहे छात्रों में से एक के हाथ पर चोट लगी है, जबकि अन्य के कपड़े फटे हुए हैं. संस्थान में करीब 100 कश्मीरी छात्र पढ़ते हैं. खुहमी ने पंजाब और यूपी के प्रयागराज के बारे में भी बात की. प्रयागराज में मकान मालिक सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए शहर में पढ़ने और काम करने वाले कश्मीरी छात्रों और युवाओं से तुरंत घर खाली करने को कह रहे हैं. कुछ दबाव में आकर पहले ही घर छोड़ चुके हैं. यह चिंताजनक है. प्रयागराज एक संवेदनशील क्षेत्र है और उत्पीड़न और प्रोफाइलिंग की आशंकाएँ बढ़ रही हैं. नोएडा में पढ़ने वाले एक कश्मीरी छात्र की भी पिटाई की गई.”
खुहमी ने बताया कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से भी संकटपूर्ण कॉल मिली हैं, जहाँ कश्मीरी छात्रों पर कथित तौर पर हिंदुत्व और कट्टरपंथी तत्वों ने परेशान, दुर्व्यवहार और शारीरिक रूप से हमला किया. छात्रावास के दरवाज़े जबरन तोड़े जा रहे हैं. और छात्रों को धमकाया जा रहा है. उन्हें आतंकवादी करार दिया जा रहा है और धमकी और हिंसा का प्रयोग कर घर खाली करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. स्थानीय अधिकारियों की ‘चुप्पी’ भय के इस राज को बढ़ावा दे रही है."
जम्मू-कश्मीर छात्र संघ द्वारा उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में इन घटनाओं को चिह्नित किए जाने के बाद अब्दुल्ला ने ‘एक्स’ पर कहा, “मैं इन राज्यों के अपने समकक्ष मुख्यमंत्रियों के संपर्क में हूं और उनसे अतिरिक्त सावधानी बरतने का अनुरोध किया है. जहां ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं.” वहीं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस सिलसिले में बात की है और उनसे “विभिन्न राज्यों में कश्मीरी छात्रों और व्यापारियों को खुलेआम धमकी देने वाले कुछ तत्वों” के मद्देनजर हस्तक्षेप करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है.
‘अब कश्मीर में मेरे दो भाई हैं’
पिता को खोने वाली कोच्चि निवासी ने स्थानीय लोगों से मिली मदद के बारे में बताया
अपने परिवार के साथ कश्मीर की एक छोटी-सी यात्रा कोच्चि निवासी आरती आर मेनन के लिए एक भयावह स्मृति में बदल गई. मंगलवार को पहलगाम आतंकी हमले में उन्होंने अपने पिता को खो दिया. उनके 65 वर्षीय पिता एन रामचंद्रन उन 26 लोगों में शामिल थे जिन्हें पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकवादियों ने गोली मार दी थी.
आरती ने गुरुवार को मीडिया को बताया, “पहले तो हमें लगा कि यह पटाखे हैं... लेकिन अगली गोली चलने पर पता चल गया... यह एक आतंकवादी हमला है.”
आरती के पिता और उनके छह वर्षीय जुड़वां बेटे बैसरन में एक बाड़ वाले घास के मैदान से गुज़र रहे थे, जब आतंकवादियों ने उन पर हमला किया. तब उनकी माँ शीला कार में ही बैठी थीं. उन्होंने बताया, “हम बचने के लिए बाड़ के नीचे रेंग गए. लोग सभी दिशाओं में बिखर गए. जैसे ही हम आगे बढ़ रहे थे, एक आदमी जंगल से निकलकर आया. उसने सीधे हमारी तरफ़ देखा. कुछ ऐसे शब्द बोले, जो मेरी समझ में नहीं आया. वह कलमा जैसा लग रहा था. मैंने कहा, नहीं पता. अगले ही पल, उसने गोली चला दी. मेरे पिता हमारे बगल में गिर पड़े. जब मैंने उन्हें गले लगाया तो उन्होंने मेरे ऊपर बंदूक तान दी.”
आरती ने याद किया, “मैंने दो लोगों को देखा, लेकिन उनमें से किसी ने सैनिक की वर्दी नहीं पहनी हुई थी. इसके बाद मेरे बेटे चिल्लाने लगे तो वे भाग गये. मुझे पता था कि मेरे पिता चले गए हैं. मैंने लड़कों को पकड़ लिया और जंगल में भाग गई, मुझे नहीं पता था कि मैं कहाँ जा रही हूँ. इसके बाद हम एक घंटे तक जंगल में भटकते रहे. जब फ़ोन सिग्नल पकड़ने लगा तो मैंने अपने ड्राइवर मुसाफिर को फ़ोन किया. टट्टू भी दौड़ने लगे थे और मैं बस उनके पदचिह्नों का अनुसरण करती रही.”
इस भयावहता के बीच मेनन को उन अजनबियों से भी सहानुभूति मिली, जिन्होंने उसके साथ परिवार जैसा व्यवहार किया. आरती ने बताया, “मेरा ड्राइवर मुसाफिर और एक अन्य व्यक्ति समीर… वे दोनों मेरे भाई बन गए. वे हर समय मेरे साथ खड़े रहे, मुझे शवगृह ले गए, औपचारिकताओं में मदद की... मैं वहाँ 3 बजे तक इंतज़ार करती रही. उन्होंने भाई की तरह मेरी देखभाल की.”
जब वह श्रीनगर से निकल रही थी, तो मेनन ने उनसे एक बात कही : “अब कश्मीर में मेरे दो भाई हैं. अल्लाह तुम दोनों की रक्षा करे.”
मधुबनी जाकर अंग्रेजी में मोदी ने आतंकियों को ‘बड़ी’ सज़ा देने की बात कही
पहलगाम हमले के बाद गुरुवार को बिहार के मधुबनी पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- “पहलगाम के दोषियों को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है. आतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सजा मिलकर रहेगी.” मोदी ने दुनिया के देशों को संदेश देने के लिए मंच से अंग्रेजी में कहा, “मैं बिहार की धरती से पूरी दुनिया को कहता हूं, भारत, हर आतंकवादी और उसको प्रश्रय देने वाले को कड़ी सजा देगा. हम उनका धरती के अंतिम छोर तक पीछा करेंगे. आतंकवाद से भारत की आत्मा कभी नहीं टूटेगी. आतंकवाद को सजा मिलेगी. न्याय सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा. पूरा देश इस संकल्प में एक है. मानवता में विश्वास रखने वाला हर व्यक्ति हमारे साथ है. मैं विभिन्न देशों के लोगों और उनके नेताओं को धन्यवाद देता हूं जो हमारे साथ खड़े हैं.”
दोनों देशों ने एक-दूसरे पर बंदिशें लगानी शुरू कीं
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए विनाशकारी आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की दुखद मौत के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध अत्यंत गंभीर मोड़ पर पहुंच गए हैं. भारत द्वारा इस हमले के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का हाथ बताए जाने के बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं.
भारत के कठोर कदम
वीज़ा निरस्तीकरण : विदेश मंत्रालय ने 27 अप्रैल, 2025 से सभी पाकिस्तानी नागरिकों के मौजूदा वीज़ा तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए हैं. चिकित्सा वीज़ा केवल 29 अप्रैल तक वैध रहेंगे. भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को अपने वीज़ा की समाप्ति से पूर्व देश छोड़ने का निर्देश दिया गया है.
यात्रा चेतावनी : सरकार ने भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान की यात्रा न करने तथा वहां मौजूद भारतीयों को शीघ्रातिशीघ्र स्वदेश लौटने का परामर्श जारी किया है.
राजनयिक संबंधों में कटौती : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक के उपरांत भारत ने पाकिस्तान के साथ राजनयिक रिश्ते सीमित किए, पाकिस्तानी सैन्य अताशे को निष्कासित किया, ऐतिहासिक सिंधु जल संधि (1960) को अस्थायी रूप से निलंबित किया, और अटारी भूमि सीमा पारगमन चौकी को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया है.
राष्ट्रीय एकता प्रदर्शन : सरकार द्वारा आयोजित सर्वदलीय बैठक में बताया गया कि यह हमला जम्मू-कश्मीर की विकासशील अर्थव्यवस्था और फलते-फूलते पर्यटन उद्योग को लक्षित करके किया गया था. सभी राजनीतिक दलों ने आतंकवाद के विरुद्ध सरकार के साथ एकजुटता दिखाई.
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
आर्थिक और वायु प्रतिबंध : पाकिस्तान ने भारतीय विमानों के लिए अपना वायु क्षेत्र प्रतिबंधित कर दिया है और भारत के साथ समस्त व्यापारिक गतिविधियां स्थगित कर दी हैं.
जवाबी राजनयिक कार्रवाई : प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में संपन्न राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (NSC) की बैठक के बाद पाकिस्तान ने भी भारत के कदमों के अनुरूप प्रतिक्रिया दी है. इसमें वाघा सीमा चौकी का बंद किया जाना, भारतीय रक्षा सलाहकारों को पर्सोना नॉन ग्राटा घोषित करना और अपने उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या में कटौती शामिल है.
वीज़ा निलंबन और धार्मिक संबंध : पाकिस्तान ने भारतीयों के लिए सार्क वीज़ा रद्द कर दिया है, पर सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरिडोर अभी खुला रखने का आश्वासन दिया है.
जल संधि पर गंभीर चेतावनी : पाकिस्तान ने भारत द्वारा सिंधु जल संधि के निलंबन पर कड़ी आपत्ति जताते हुए चेतावनी दी है कि संधि के अंतर्गत पाकिस्तान के हिस्से के जल प्रवाह को अवरुद्ध करने या दिशा परिवर्तित करने का कोई भी प्रयास "युद्ध कृत्य" (Act of War) माना जाएगा.
अन्य समझौतों पर खतरा और सैन्य तैयारी : पाकिस्तान ने शिमला समझौते जैसे अन्य द्विपक्षीय समझौतों को समाप्त करने की धमकी दी है और दावा किया है कि उसकी सशस्त्र सेनाएं किसी भी भारतीय "साहसिक कार्रवाई" का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सतर्क हैं.
आरोपों का खंडन : पाकिस्तान ने हमले की निंदा की है, परंतु भारत के कदमों को "एकपक्षीय, अनुचित और राजनीतिक प्रेरित" करार देते हुए, हमले में अपनी भागीदारी के आरोपों को बिना साक्ष्य के निराधार बताया है.
आतंकियों से मुठभेड़ में एक जवान शहीद : जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में सेना का एक जवान शहीद हो गया. आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना के आधार पर शुरू किए गए घेराबंदी और तलाशी अभियान के दौरान डुडू-बसंतगढ़ इलाके में गोलीबारी हुई. सेना ने बताया, “शुरुआती मुठभेड़ में हमारे एक जवान को गंभीर चोटें आईं थी. बाद में चिकित्सा के दौरान उसकी मौत हो गई.” सेना ने यह भी बताया कि घटनास्थल से अंतिम रिपोर्ट आने तक ऑपरेशन जारी था.
पहलगाम हमले के बाद सोशल मीडिया पर वीडियो विवाद : पहलगाम हमले के बाद तीन वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा में हैं. पहला एएनआई का है, जिसमें उनका कैमरा आतंकवादियों की तलाश में जुटे सैनिक के कान के पास घूम रहा है. इसे ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद जुबैर ने शेयर किया. दूसरा बीजेपी नेता सुवेन्दु अधिकारी का है, जिसमें वे हमले में पति खोने वाली महिला से आक्रामक तरीके से बात कर रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन ने इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा कि अधिकारी धमकी भरे अंदाज में पूछ रहे हैं, "बोलो, हिन्दू पूछ कर मारा?" वहीं एक और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, उसमें एक मासूम बच्चा पूछ रहा है कि इतनी बड़ी सरकार है और उन्हें पता ही नहीं है कि आतंकवादी हमला होने वाला है.
कनेरिया का शरीफ पर आरोप : पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर दानिश कनेरिया ने पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पर आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगाते हुए पहलगाम हमले में पाकिस्तान की भूमिका का संकेत दिया है. कनेरिया ने शरीफ की चुप्पी को इसका आधार बताया, हालांकि पाक विदेश मंत्रालय ने हमले पर चिंता व्यक्त की थी.
गलती से जवान सीमा पार चला गया : सीमा पर गलती से प्रवेश करने वाले एक भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवान को पाकिस्तानी रेंजर्स ने हिरासत में लिया है. उसकी मुक्ति के लिए दोनों पक्षों के मध्य वार्ता जारी है.
असम में विधायक गिरफ्तार : असम में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के विधायक अमीनुल इस्लाम को पहलगाम और पुलवामा हमलों को भाजपा का षड्यंत्र बताने वाले उत्तेजक बयान देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.
फवाद खान-वाणी कपूर की फिल्म पर प्रतिबंध : सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान और वाणी कपूर अभिनीत फिल्म 'अबीर गुलाल' को भारत में रिलीज़ करने की अनुमति नहीं देने का फैसला किया है. कई सिनेमा हॉल इस फिल्म को दिखाने को तैयार नहीं थे और मनोरंजन संगठनों ने इसके बहिष्कार की मांग की थी. यह फैसला फवाद खान द्वारा इंस्टाग्राम पर इस हमले की निंदा करने के बावजूद लिया गया. इससे पहले, फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्प्लॉइज ने भी फिल्म के बहिष्कार की मांग उठाई थी.
पत्रकार की पिटाई का मामला : ‘दैनिक जागरण’ के रिपोर्टर राकेश शर्मा ने जब भाजपा विधायक से पहलगाम हमले और केंद्र सरकार की सुरक्षा में विफलता के बारे में सवाल किया, तो भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनकी पिटाई कर दी. हमले में शामिल कार्यकर्ताओं की पहचान हिमांशु शर्मा, हरविंदर सिंह, अश्वनी शर्मा, मंजीत सिंह, टोनी और परवीन चूना के रूप में हुई. पत्रकारों ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से मिलकर आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की और भाजपा के कार्यक्रमों के बहिष्कार की घोषणा की है, जब तक पार्टी कार्रवाई नहीं करती.
विश्लेषण
सुशांत सिंह : प्रतिशोध नहीं, जवाबदेही की जरूरत
‘द कैरेवन’ वेबसाइट पर रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और येल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले सुशांत सिंह के लेख में से कुछ हिस्से.
पहलगाम, कश्मीर में हुए भयावह हमले में कम से कम 28 निर्दोष नागरिकों की मौत और दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए. यह हमला पूरी तरह से निंदनीय है, लेकिन इसका जवाब प्रतिशोध की भावना से नहीं, बल्कि सुधारात्मक जवाबदेही से मिलना चाहिए.
ऐसे हमलों के बाद अक्सर देश में भड़काऊ भाषणों और गलत सूचनाओं का उछाल देखा जाता है, जैसा 2019 के पुलवामा-बालाकोट प्रकरण के दौरान हुआ था. "खून का बदला खून" जैसे नारे राजनीतिक बहस और सोशल मीडिया पर छा जाते हैं. यह प्रतिक्रिया भले ही प्रतिशोध की प्यास को संतुष्ट करे, लेकिन यह उन प्रणालीगत विफलताओं को संबोधित नहीं करती जिन्होंने हमले को संभव बनाया.
इस तरह की प्रतिक्रियाएँ उग्रवादी समूहों के हाथों में खेलती हैं, जिनकी रणनीति अक्सर अतिरिक्त प्रतिक्रियाओं को उकसाने पर आधारित होती है.
यह घटना एक ऐसे क्षेत्र में हुई, जिसे मोदी सरकार ने लगातार "शांतिपूर्ण" के रूप में प्रचारित किया था. 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द करने को आतंकवाद को खत्म करने के उपाय के रूप में उचित ठहराया गया था. इसके अलावा 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट हवाई हमलों को भी आतंकवाद को समाप्त करने वाले निर्णायक कार्य के रूप में प्रचारित किया गया था. पहलगाम हमले ने इन दावों को फिर से झुठला दिया है.
कश्मीर में मोदी सरकार की सुरक्षा नीति दो घातक दोषों से ग्रस्त रही है : शासन का सैन्यीकरण और स्थानीय खुफिया जानकारी का आपराधिक उपेक्षा. 2019 के बाद से क्षेत्र पर नई दिल्ली द्वारा नियुक्त नौकरशाहों के माध्यम से शासन किया गया है, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधियों को हाशिये पर रखा गया है. पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे कश्मीरी राजनीतिक दलों से संबंध तोड़कर सरकार ने स्थानीय लोगों के साथ महत्वपूर्ण जमीनी संपर्क खो दिया है.
मंगलवार का हमला बैसरन घाटी में हुआ, जो पहलगाम से मात्र पांच किलोमीटर दूर एक पर्यटक स्थल है. पीड़ित सैन्य लक्ष्य नहीं बल्कि निहत्थे नागरिक थे. उग्रवादी स्वचालित हथियारों के साथ एक सुनियोजित हमला कर सके, यह मोदी सरकार के "मिशन अकॉम्प्लिश्ड" के बयान से उपजी खतरनाक लापरवाही को दर्शाता है.
पाकिस्तान की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उसकी खुफिया एजेंसी ने लंबे समय से लश्कर-ए-तैयबा जैसे जिहादी समूहों का समर्थन किया है. लेकिन केवल आरोप लगाना—जैसे गृह मंत्री अमित शाह का तुरंत "पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों" का आरोप लगाना—एक असहज सच्चाई को नजरअंदाज करता है: मोदी का अति-राष्ट्रवादी प्रचार भारत को कम सुरक्षित बना रहा है.
जवाबदेही केवल दोषारोपण के लिए नहीं है. यह विफलता से सीखने, सुधार करने और जनता का विश्वास बहाल करने के बारे में है. जब राजनीतिक नेताओं और सुरक्षा अधिकारियों को चूक के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है, तो यह सुधार के लिए प्रोत्साहन पैदा करता है.
पहलगाम हमला भारत की प्रतिशोध की क्षमता का नहीं, बल्कि आत्म-सुधार की क्षमता का परीक्षण होना चाहिए. वास्तविक निवारण सीमा पार से एक और हमले से नहीं, बल्कि सुरक्षा प्रोटोकॉल को सुधारने और रक्तपात के चक्र में फंसने से इनकार करने के कठिन काम से आएगा.
ठाकरे बंधुओं का “एका” : क्यों अनमने हैं शिंदे?
महाराष्ट्र में ठाकरे बंधुओं के ‘मिलन’ की संभावना को दोस्तों और विरोधियों दोनों ने स्वागत योग्य बताया है, लेकिन ‘एक नेता’ को छोड़कर. शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे से जब उद्धव और राज ठाकरे द्वारा हाल ही में किए गए ‘सुलह’ के इशारों के बारे में पूछा गया, तो वे अपनी खीझ छिपा नहीं पाए. आमतौर पर संयमित रहने वाले शिंदे की प्रतिक्रिया असामान्य थी, लेकिन आश्चर्यजनक नहीं.
दरअसल, शिवसेना (यूबीटी) और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (एमएनएस) के गठबंधन से ही शिंदे के खिलाफ समीकरण बदल सकते हैं, जिन्हें यह विश्वास हो गया था कि शिवसेना पर प्रभुत्व की लड़ाई उनके पक्ष में झुक चुकी है.
शिंदे को निश्चित रूप से दोहरी पीड़ा महसूस हो रही होगी, क्योंकि राज ठाकरे कुछ दिन पहले ही उनसे उनके निवास पर मिले थे. उस समय शिंदे को बीएमसी चुनावों की तैयारी में कोई भी कमी नहीं छोड़ते हुए देखा गया था.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में शुभांगी खापरे के अनुसार उद्धव और राज गुटों ने पहले भी सुलह की कोशिशें की थीं, लेकिन ताज़ा प्रयास सबसे गंभीर माना जा रहा है. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में उद्धव की सेना (यूबीटी) शिंदे सेना से काफी पीछे रह गई थी, जिससे उद्धव की स्थिति कमजोर हो गई है.
याद करें, राज ठाकरे ने फिर से ‘एक’ होने का संकेत फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में दिया था. कहा था कि ‘उद्धव के साथ तथाकथित विवाद मामूली थे’. उन्होंने यह भी जोड़ा था, ‘हमारा साथ आना मुश्किल नहीं है… महाराष्ट्र इन सबसे कहीं बड़ा है’. उसी दिन, उद्धव ने मुंबई में एक पार्टी कार्यक्रम में कहा था कि वे भी ‘तैयार’ हैं, और दोहराया था कि महाराष्ट्र के हित सर्वोपरि हैं और उनके आपसी मतभेद छोटे हैं.
शिंदे से जब उनके पैतृक गांव दरे, जिला सतारा में मीडिया ने यही सवाल पूछा तो उनका संक्षिप्त जवाब था, ‘काम की बात कीजिए’.
शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह हासिल कर, विधानसभा चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में उभरकर और एक मजबूत बहुमत वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री बनकर, शिंदे ने हाल ही में सेना (यूबीटी) को और कमजोर करने की कोशिशें तेज कर दी हैं. पिछले हफ्ते शिवाजी पार्क स्थित अपने घर पर राज से हुई उनकी मुलाकात को भी इसी रणनीति का हिस्सा माना गया. इसमें दोनों के समर्थकों ने मराठी मानुस और हिंदुत्व के मुद्दों पर एकमत होने की बात कही. इन दोनों मुद्दों पर सेना (यूबीटी) को कांग्रेस के साथ गठबंधन के कारण रक्षात्मक स्थिति में देखा जाता है.
राज ठाकरे अगर उद्धव को अपना सहयोगी चुनते हैं, तो इससे न सिर्फ शिवसेना (यूबीटी) मजबूत होगी, बल्कि शिंदे पर ठाकरे की विरासत को हड़पने के आरोप भी और गहरे हो जाएंगे. राज ने 2005 में शिवसेना से अलग होकर एमएनएस इसलिए बनाई थी, क्योंकि उद्धव को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था. उस समय और बाल ठाकरे की मृत्यु के काफी समय बाद तक, शिंदे का कोई खास राजनीतिक कद नहीं था और वे मुख्यतः ठाणे के नेता के रूप में जाने जाते थे.
शिंदे को केंद्र में लाने वाली घटना वह बगावत थी, जिसमें उन्होंने शिवसेना को दो हिस्सों में बांट दिया और पार्टी के अधिकतर विधायकों को अपने साथ ले गए. अगर ठाकरे परिवार के ये दोनों चचेरे भाई अपने मतभेद भुला देते हैं, तो परिवार के प्रति नरम रुख रखने वाले कई शिवसैनिक शिंदे की ‘स्थिति’ पर सवाल उठा सकते हैं.
असल में, विधानसभा चुनावों से पहले तक, जहां बीजेपी ने महायुति गठबंधन का बोझ उठाया था, शिंदे गुट की शिवसेना को शिवसेना (यूबीटी) से कड़ी टक्कर मिलती दिख रही थी. लोकसभा चुनावों में उद्धव की पार्टी ने नौ सीटें जीती थीं और शिंदे की पार्टी ने सात.
ठाकरे फैक्टर के बिना भी, शिंदे कई अन्य चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ी है बीजेपी की बढ़ती ताकत. विधानसभा चुनावों के बाद शिंदे ने मुख्यमंत्री पद के लिए काफी समय तक कोशिश की, लेकिन अंततः उन्हें डिप्टी सीएम के पद से ही संतोष करना पड़ा. वे अपनी पसंद के विभाग भी हासिल करने के लिए संघर्ष करते रहे हैं और उनके बारे में यह धारणा भी बनी है कि बीजेपी को एनसीपी के दूसरे डिप्टी सीएम अजित पवार, उनसे ज्यादा पसंद हैं. भाजपा का लक्ष्य भी ऐसी सरकार का है, जो शत-प्रतिशत उसकी हो. और यह शिंदे के लिए मुफीद नहीं है.
शिंदे के अलावा सेना के अन्य नेताओं ने भी ठाकरे से फिर से मिलन की संभावना को या तो खारिज किया है या उसका मजाक उड़ाया है. मंत्री संजय शिरसाट ने तंज कसते हुए कहा, "अगर ठाकरे भाई मिल जाएं तो हम मिठाई बांटेंगे," पार्टी नेता संजय निरुपम ने कहा, "दो शून्य मिलकर भी शून्य ही बनते हैं", जबकि सेना सांसद नरेश म्हस्के ने उद्धव को “आधुनिक दुर्योधन” कहा. सेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने इन बयानों का मजाक उड़ाते हुए कहा, "शिंदे की बेचैनी समझ में आती है. आखिरकार, उन्होंने सेना को चालाकी और विश्वासघात से छीना है.”
हालांकि, ठाकरे परिवार की खासकर मुंबई में पकड़ को देखते हुए, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपनी प्रतिक्रिया में सतर्कता बरती और कहा, "अगर वे (राज और उद्धव) एक साथ आ रहे हैं तो यह अच्छी बात है. हम इसका स्वागत करते हैं.”
उद्धव की सहयोगी सुप्रिया सुले (एनसीपी-एसपी), जिन्होंने दोनों भाइयों को फोन कर उनके बयानों की सराहना की. उन्होंने कहा कि पुनर्मिलन “एक स्वर्णिम क्षण” होगा. यह खबर सुनकर मैं अभिभूत हूं. एक अन्य सहयोगी, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने इस खबर को "दिल को छू लेने” वाली बताया.
मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी
'लाइव लॉ' की खबर है दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया है. यह कार्रवाई 2001 में उनके खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद की गई है. यह मामला विनय कुमार सक्सेना द्वारा दर्ज कराया गया था, जो वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल हैं. साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने कहा कि दोषसिद्धि के बावजूद पाटकर अदालत में पेश नहीं हुईं, जबकि उन्हें पेश होने का निर्देश दिया गया था. न्यायाधीश ने यह भी कहा कि उनकी अनुपस्थिति कोर्ट की अवमानना के समान है, जिसके बाद यह सख्त कदम उठाया गया. गौरतलब है कि यह मामला तब का है, जब विनय सक्सेना राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) से जुड़े थे और उन्होंने मेधा पाटकर पर झूठे और मानहानिकारक आरोप लगाने का दावा किया था.
योगी पर मुस्लिम विरोधी बयान देने का मुकदमा खारिज
लखनऊ की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के खिलाफ फरवरी में विधान परिषद में एक भाषण के दौरान कथित तौर पर मुस्लिम विरोधी गाली का इस्तेमाल करने के लिए दायर मानहानि के मुकदमे को खारिज कर दिया. अतिरिक्त सिविल जज आलोक वर्मा ने फैसला सुनाया कि राज्य विधानमंडल के ऊपरी सदन में आदित्यनाथ द्वारा की गई टिप्पणी को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत संरक्षित है, जो विधायी निकायों के भीतर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. अपने भाषण में, आदित्यनाथ ने समाजवादियों की आलोचना करते हुए इस शब्द का इस्तेमाल किया था, उन्होंने दावा किया था कि वे अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में भेजते हैं, जबकि दूसरों से उर्दू पढ़ने का आग्रह करते हैं ताकि वे “मौलवी” बन सकें.
व्यापार समझौते में अमेरिका की निगाह कृषि उत्पादों पर
जैसे ही अमेरिका ने भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के लिए हरी झंडी दिखाई, ट्रंप प्रशासन ने कृषि पर ध्यान केंद्रित करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया. यह एक ऐसा कदम है, जो निश्चित रूप से टकराव को बढ़ावा देगा. अमेरिकी अधिकारी इस सप्ताह वाशिंगटन डीसी में भारतीय समकक्षों से मिल रहे हैं. वे कृषि उत्पादों में टैरिफ कटौती के लिए कड़ा दबाव डाल रहे हैं, जो आर्थिक और राजनीतिक दोनों ही दृष्टि से भारत के लिए बेहद संवेदनशील क्षेत्र है. अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय ने एक बेबाक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा : “अमेरिका में कृषि उत्पादों पर लागू औसत टैरिफ दरों में से एक सबसे कम है, लेकिन हमारे कई व्यापारिक साझेदार निषेधात्मक टैरिफ दरें बनाए रखते हैं, जो अमेरिकी किसानों और पशुपालकों के लिए निर्यात अवसरों को बाधित करती हैं.” इस तरह के दबाव में धमकाने की बू आती है - ऐसी रियायतों की मांग करना, जो अमीर अमेरिकी कृषि व्यवसायिक हितों को खुश करने के लिए भारतीय आजीविका को खतरे में डाल सकती हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट ने हर्ष मंदर के ट्रस्ट पर आयकर विभाग को लताड़ा
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर के अमन बिरादरी ट्रस्ट (एबीटी) के मामले में आयकर विभाग की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए पूछा, "क्या कोई व्यक्ति एनजीओ को छोटी राशि दान करे तो उसकी 'क्रेडिटवर्थनेस' जांची जाएगी?" विभाग ने सितंबर 2024 में एबीटी का आयकर अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था, जिसके खिलाफ ट्रस्ट ने याचिका दायर की है. एबीटी, जो 2005 और 2022 में पंजीकृत एक चैरिटेबल ट्रस्ट है, के खिलाफ आयकर विभाग ने दो आरोप लगाए :
2017-20 के दौरान कुछ दानदाताओं के पैन और पते का विवरण न रखना.
'मीडिया फेलो' कार्यक्रम पर खर्च करना, जो ट्रस्ट के उद्देश्यों से अलग बताया गया.
विभाग ने 3.92 करोड़ रुपये का टैक्स नोटिस भेजा, जिसे एबीटी ने आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) में चुनौती दी है. न्यायमूर्ति विभु बाखरू और तेजस करिया की पीठ ने आयकर विभाग से पूछा, "दान की रकम देखिए—कुछ 50 रुपये, कुछ 1 लाख से अधिक. क्या 5,000 रुपये देने वाले की आर्थिक स्थिति जांचेंगे?" पीठ ने यह भी कहा कि ट्रस्ट के उद्देश्यों में मीडिया फेलोशिप जैसे कार्य शामिल प्रतीत होते हैं. एबीटी ने दलील दी कि पैन विवरण का नियम 2021 के वित्त अधिनियम से लागू हुआ, जो 2017-20 पर पूर्वव्यापी नहीं लग सकता. साथ ही, दानदाताओं का उपलब्ध विवरण विभाग को दिया गया था. मामला अगली सुनवाई तक विचाराधीन है.
2 सालों में 28 हजार से ज्यादा भारतीय स्टार्टअप्स बंद
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम भारत में पिछले दो वर्षों (2023-2024) में 28,638 स्टार्टअप्स बंद हुए, जो 2019-2022 के दौरान 2,300 बंद होने वाले स्टार्टअप्स की तुलना में 12 गुना अधिक है. Tracxn के डेटा के अनुसार, 2024 में अब तक केवल 125 नए स्टार्टअप्स लॉन्च हुए, जबकि 2019-2022 में प्रति वर्ष 9,600+ स्टार्टअप्स शुरू होते थे. एक्सपर्ट्स इसे इकोसिस्टम की "विफलता" नहीं, बल्कि "मार्केट करेक्शन" बता रहे हैं. एग्रीटेक, एडटेक, फिनटेक और हेल्थटेक सेक्टर्स में सबसे ज्यादा बंदी देखी गई. Eximius Ventures की पर्ल अग्रवाल के मुताबिक, 2021-22 में बिना प्रोडक्ट-मार्केट फिट (PMF) के स्टार्टअप्स को फंडिंग मिली, जिससे "ग्रोथ-एट-ऑल-कॉस्ट" मानसिकता और हाई कैश बर्न हुआ. निवेशक अब केवल PMF वाले, फाइनेंशियल रूप से मजबूत स्टार्टअप्स में निवेश कर रहे हैं. MentorMyBoard की नेहा शाह ने बिजनेस मॉडल में लचीलेपन की कमी और ग्राहकों को बनाए न रख पाने को प्रमुख वजह बताया. 2021 में 248 एक्विजिशन की तुलना में 2023 में केवल 131 हुए. बड़ी कंपनियां अब स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप या ज्वाइंट वेंचर्स को तरजीह दे रही हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 में बंदी का सिलसिला जारी रह सकता है.
हिंडनबर्ग प्रभाव का अडानी पर असर
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी ग्रुप ने भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों से उधारी महज दो साल में चौगुनी कर ली है, जो 27,000 करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गई है. 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के बाद वैश्विक पूंजी बाजारों से दूर हटने के कारण, यह कॉन्ग्लोमरेट अब अपने साम्राज्य को संचालित करने के लिए घरेलू उधारदाताओं पर भारी निर्भर हो गया है. आदानी का 42% कर्ज अब भारतीय स्रोतों से है, जबकि वैश्विक बाजारों से सिर्फ 23% ही आता है. वैश्विक बैंकों को अभी भी 27% कर्ज बाकी है, ऐसे में आदानी के चारों ओर कसता वित्तीय जाल पहले से कहीं ज्यादा डांवाडोल नजर आ रहा है.
दो महिला किसान नेताओं की पुलिस पिटाई, पंजाब सीएम को लिखा पत्र
भारत भर से 700 से अधिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, कलाकारों, अधिवक्ताओं, लेखकों और दर्जनों जन संगठनों ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखकर दो महिला किसान नेताओं के साथ पंजाब पुलिस द्वारा कथित पिटाई और उन्हें प्रताड़ित करने पर आक्रोश और गहरी निराशा व्यक्त की है. ये दोनों किसान नेता आदर्श सीनियर सेकंडरी स्कूल, चौके (बठिंडा जिला) की महिला शिक्षकों को पिछले दो महीने से वेतन न मिलने और स्कूल प्रबंधन द्वारा कर्मचारियों की अवैध छंटनी के विरोध में वहां के शिक्षकों के साथ शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होकर धरने पर बैठीं थीं.
लेखिका अरुंधति रॉय, वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट इंदिरा जयसिंह, वकील और मानवाधिकार और महिला अधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर, पीयूसीएल की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव, मानवाधिकार और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और हर्ष मंदर सहित कई प्रमुख नामों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है, “किसान यूनियन बीकेयू उग्राहां की महिला विंग की संयोजक हरिंदर बिंदु और किसान नेता परमजीत कौर पिथोन को निशाना बनाकर की गई बर्बरतापूर्ण हरकतों से हम बेहद दुखी और व्यथित हैं. पत्र में कहा गया है, “70% राज्य सरकार के वित्त पोषण से संचालित यह स्कूल वित्तीय कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और अन्य अनियमितताओं के लिए चर्चा में रहा है. डिप्टी कमिश्नर, भटिंडा द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति की सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में स्कूल में अनियमितताओं का ब्यौरा दिया गया था, लेकिन न तो इसे सार्वजनिक किया गया और न ही इस पर कोई कार्रवाई की गई. इसके उलट 5 अप्रैल की सुबह जब शिक्षक स्कूल गेट पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो प्रबंधन ने पुलिस बुलाकर उन्हें तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया. इसके बाद, 13 महीने के बच्चे के साथ एक महिला शिक्षक सहित कई शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया. पत्र में कहा गया है, "धरना खत्म होने के बाद पुलिस ने खास तौर पर हरिंदर बिंदु को निशाना बनाया, जो एक प्रमुख महिला किसान नेता हैं, जिनके संघर्ष और योगदान को न केवल पंजाब में, बल्कि पूरे देश में जाना जाता है. हरिंदर और परमजीत कौर के बयानों के अनुसार, डीएसपी, एसएचओ और दो महिला एसआई ने उन पर अपना गुस्सा निकाला. उन्हें बेरहमी से पीटा और बार-बार कहा, “इन किसान नेताओं की हड्डियाँ तोड़ दी जानी चाहिए, ताकि वे कभी मंच पर चढ़कर भाषण न दे सकें. दो पुलिस महिलाओं ने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए और महिला एसआई ने उसे बार-बार जोर से थप्पड़ मारे, जिससे उसके कान के पर्दे सूज गए और उसकी सुनने की क्षमता काफी कम हो गई. पुरुष अधिकारियों ने उसे जोर से मारने के लिए अपनी बेंत, मुट्ठियाँ और बूटों का इस्तेमाल किया, उसके बाल जबरन खींचे गए और उसे बालों से घसीटा गया.”
पत्र में कहा गया है कि इसके बाद दोनों महिलाओं को पुलिस वैन में धकेल दिया गया और दूसरे पुलिस स्टेशन नंदगढ़ ले जाया गया. उन्हें रास्ते में शौचालय तक नहीं करने दिया गया. नंदगढ़ पुलिस स्टेशन पहुंचने पर डिप्टी सुपरिंटेंडेंट प्रदीप सिंह, एसएचओ जोगिंदर सिंह, एसआई हरप्रीत कौर और सुखवीर कौर ने न केवल उन्हें फिर से लाठी से बुरी तरह पीटा, बल्कि वहां मौजूद अन्य पुरुष पुलिसकर्मियों से भी ऐसा ही करवाया. परमजीत कौर ने बताया कि उन्हें रीढ़ की हड्डी में समस्या है, इसलिए उन्हें पीठ पर मारा गया और कहा गया कि इसके बाद, उन्हें जीवन भर बिस्तर पर ही रहना पड़ेगा और वे फिर कभी मंच पर नहीं आएंगी.” इसके बाद 10 अप्रैल की देर शाम को दोनों महिलाओं को रिहा कर दिया गया.
चलते-चलते
आइये चलें एक और चाय वाले के अड्डे पर

कोलकाता से लगभग 30 किलोमीटर दूर छत्रा मोहल्ले में स्थित एक छोटी सी चाय की दुकान, जिसे स्थानीय लोग "नरेश शोम की चाय की दुकान" के नाम से जानते हैं, भारत की सामाजिक संस्कृति की एक अनूठी मिसाल बन गई है. इस दुकान की खासियत यह है कि यहां ग्राहक न केवल चाय पीते हैं, बल्कि उसे बनाते और परोसते भी हैं. मार्च की गर्म सुबह है और 65 वर्षीय आशीष बंद्योपाध्याय अपने घर से साइकिल चलाकर 10 मिनट की दूरी पर स्थित इस चाय की दुकान पर पहुंचे हैं. गुलाबी पोलो शर्ट पहने आशीष दुकान का संचालन अपने हाथों में लेते हुए घोषणा करते हैं कि आज उनकी "बारी" है. "मैं यहां काम नहीं करता," वे एक मुस्कान के साथ बताते हैं, जबकि ताज़ा चाय बनाने के लिए दूध का पैकेट खोलते हैं. "मैं सिर्फ एक पुराना ग्राहक हूं, जो स्वेच्छा से सेवा करना पसंद करता हूं."
अल जजीरा के लिए दिवस गहटराज अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि हुगली नदी के तट पर बसे इस 350 साल पुराने भवन में लगभग 100 साल से यह चाय की दुकान चल रही है. नरेश चंद्र शोम, जो ब्रुक बॉन्ड नामक औपनिवेशिक काल की चाय कंपनी में काम करते थे, ने 1925 के आसपास अपनी बुआ के मकान की निचली मंजिल पर यह दुकान खोली थी. स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और फिर सीपीआई एम के सक्रिय सदस्य बने रहे.
हर सुबह अब के मौजूदा मालिक 60 वर्षीय अशोक चक्रवर्ती दुकान खोलते हैं और फिर अपनी ऑफिस की नौकरी के लिए निकल जाते हैं. "हम में से कोई एक शाम तक दुकान चलाने का जिम्मा संभाल लेता है. आज मेरी बारी थी," आशीष बताते हैं. कुल मिलाकर, सप्ताह के सातों दिन दस ग्राहक बारी-बारी से वालंटियर करते हैं. इनमें से अधिकतर सेवानिवृत्त ग्राहक हैं. कोई निश्चित रोटा नहीं है - "जो भी खाली होता है, वह संभाल लेता है," आशीष बताते हैं. "हम पैसे को शेल्फ पर रखे लकड़ी के बॉक्स में रखते हैं, जिससे दूध या चीनी खरीदते हैं. और एक भी दिन ऐसा नहीं गया, जब दुकान की देखभाल करने वाला कोई न हो."
दुकान में आज भी चाय मिट्टी और कागज़ के कप में परोसी जाती है, और एक रीफिल की कीमत मात्र 5 रुपये है. यहां ग्राहकों को सादी चाय, दूध वाली चाय - चीनी के साथ या बिना - काली चाय सादी या नींबू के साथ, और कबिराजी चाय (मसालेदार काली चाय) में से चुनने का विकल्प मिलता है. सेरामपोर में कई चाय की दुकानें हैं, लेकिन नियमित ग्राहक प्रशांतो मंडल कहते हैं, "मैं हमेशा यहीं आता हूं, लगभग रोज़ाना, क्योंकि यहां का माहौल और भाईचारा अनूठा है." 25 साल पहले एक सहकर्मी उन्हें पहली बार यहां लाया था. शाम 6 बजे के आसपास, अशोक अपनी क्लर्क की नौकरी से लौटते हैं और आशीष से दुकान का कार्यभार संभाल लेते हैं. "आज आशीष दा ने मुझे दिन की आय के रूप में 400 रुपये दिए," मिट्टी के कप में चाय डालते हुए अशोक बताते हैं. अशोक कहते हैं कि उन्हें कभी भी ग्राहकों के भुगतान न करने की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. ग्राहक हमेशा चाय के लिए सही रकम कैश बॉक्स में छोड़ देते हैं या बाद में आकर अपना बकाया चुका देते हैं. पिछले कुछ वर्षों में, अशोक अपनी प्रतिष्ठित दुकान के भविष्य को लेकर चिंतित होने लगे हैं. "मुझे संदेह है कि क्या नई पीढ़ी इस विश्वास की प्रिय विरासत को आगे बढ़ाएगी. युवा पीढ़ी के बहुत कम लोग आते हैं और चाय की दुकान में भाग लेते हैं," वे कहते हैं. उनका बेटा इंजीनियर है और उसने दुकान में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है.
पाठकों से अपील
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