25/05/2025 : विकसित भारत की बैठक में कई मुख्यमंत्री नाराज़, कई गैरहाज़िर | शुभमन क्या कोहली जैसा होगा? | पहलगाम का दोष 'सुहाग खोने वालियों' पर! | भारत एक डफ़र ज़ोन | सोना खदान के मज़दूर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
टूटे घर, बिखरे सामान, नम आंखें राहुल पुंछ में
भारत में कोविड-19 के नए सबवेरिएंट NB.1.8.1 का पता चला
झारखंड : मुठभेड़ में दो माओवादी मारे गए
अमेरिका ने संपर्क किया था, पर सीज़ फायर तो पाकिस्तान से सीधी बातचीत से हुआ
छह महिलाओं की कब्रों को अपवित्र करने के मामले की जांच शुरू
सुशांत सिंह : भारत ने बांग्लादेश को कैसे खोया: रणनीतिक भूल और बढ़ता संकट
“गोबरहा” : अछूतों को मजदूरी में ‘गोबर का अनाज’
किराना दुकानों के दिन लद चुके हैं?
दुकानदार के पुत्र को “बेटा” कहने पर दलित को पीटा, मौत
रोहिंग्या शरणार्थी : “मैंने एक जहाज से लोगों को समुद्र में फेंकते देखा. उनकी चीखें सुनाई दीं,”
दिल्ली में अहलमद पर रिश्वत लेने का मामला दर्ज, जज का तबादला
ऐसे बनी 2047 तक विकसित भारत की रूपरेखा
2047 तक भारत को विकसित बनाने के लिए नीति आयोग ने अपनी गवर्निंग काउंसिल की 10वीं बैठक दिल्ली में शनिवार को. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां कहा कि अगर केंद्र और राज्य मिल कर काम करेंगे, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है. बैठक में तीन मुख्यमंत्री नहीं हाजिर हुए. और जो ग़ैर भाजपा दलों के हुए उन्होंने कई तरह से केंद्र के रवैये पर सवाल उठाए. बैठक का उद्देश्य 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की रूपरेखा तैयार करना था.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अनुपस्थिति ने केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव को और उजागर किया. विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने पानी बंटवारे, वित्तीय आवंटन और क्षेत्रीय उपेक्षा जैसे मुद्दों पर अपनी नाराजगी जाहिर की. एनडीए के प्रमुख सहयोगी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उन मुख्यमंत्रियों में से थे जिन्होंने बैठक में भाग नहीं लिया. उनकी अनुपस्थिति ने राजनीतिक अटकलों को हवा दे दी है, खासकर इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले. नीतीश कुमार की अनुपस्थिति इसलिए भी खास रही, क्योंकि वे भाजपा के साथ गठबंधन वाली सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने कहा कि बैठक में भाग न लेने वाले राज्यों में कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, बिहार और पुडुचेरी शामिल हैं. आईएएनएस के अनुसार, वरिष्ठ कांग्रेस नेता तारिक अनवर ने इस कदम को ‘महत्वपूर्ण’ बताया और कहा कि ‘इस बैठक में शामिल न होने का उनका निर्णय एक बड़ा राजनीतिक संदेश देता है’, खासकर तब जब बैठक की अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे थे.
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जोर देकर कहा कि उनके राज्य के पास अन्य राज्यों के साथ साझा करने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है. उन्होंने सतलज-यमुना लिंक नहर की बजाय यमुना-सतलज लिंक नहर बनाने की मांग की, क्योंकि पंजाब में पानी की स्थिति गंभीर है. आम आदमी पार्टी के नेता ने यह भी मांग की कि यमुना जल बंटवारे की बातचीत में पंजाब को शामिल किया जाए और उसे उसके उचित अधिकार मिलें. मान ने केंद्र पर पंजाब के साथ भेदभाव का आरोप लगाया और इस अन्याय को खत्म करने की अपील की.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंथ रेड्डी ने अपनी "तेलंगाना राइजिंग 2047" रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने डेटा-आधारित दृष्टिकोण अपनाया. उन्होंने कहा, "भारत राज्यों का संघ है; विकसित भारत का सपना तभी साकार होगा जब सभी राज्यों का समावेशी और टिकाऊ विकास हो." कांग्रेस नेता ने समान विकास पर जोर देते हुए कहा, "एक हाथ अकेले ताली नहीं बजा सकता." रेड्डी ने यह भी संकेत दिया कि तेलंगाना जैसे राज्यों को केंद्र से अधिक समर्थन की जरूरत है ताकि राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों में योगदान दिया जा सके.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र से मिलने वाले कर हिस्से में कमी की शिकायत की. उन्होंने कहा, "हमें वादा किए गए 41% के बजाय केवल 33.16% मिल रहा है," और इसे 50% तक बढ़ाने की मांग की. स्टालिन ने तमिलनाडु के भारत का सबसे शहरीकृत राज्य होने का हवाला देते हुए एक समर्पित शहरी परिवर्तन मिशन की वकालत की. इसके अलावा, उन्होंने कावेरी, वैगई और थामिरबरणी नदियों के लिए एक नदी पुनरुद्धार परियोजना का प्रस्ताव रखा, जो केंद्र के स्वच्छ गंगा मॉडल से प्रेरित हो. उन्होंने राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय गर्व के लिए इन नदियों का नाम अंग्रेजी में रखने का सुझाव दिया.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने केंद्र के दीर्घकालिक वादों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "वे अब 2047 की बात क्यों कर रहे हैं? हर दो-तीन साल में नई तारीख दी जाती है. 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया गया था, जो पूरा नहीं हुआ."
पहलगाम पर अब बीजेपी सांसद के विवादित बोल
“अपना सुहाग खोने वाली महिलाओं में वीरांगना का भाव नहीं था”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हरियाणा से भाजपा के राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा. फोटो सांसद के ‘एक्स’ वॉल से.
मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के बाद अब पहलगाम आतंकी हमले पर हरियाणा से भाजपा सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि पहलगाम में अपना सुहाग खोने वाली महिलाओं में वीरांगना का भाव व जोश नहीं था, इसलिए 26 लोग आतंकियों की गोली का शिकार बने. सांसद ने कहा कि पर्यटक हाथ जोड़कर मारे गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं में वीरता की भावना पैदा करने के लिए एक बहुत बड़ी योजना (अग्निवीर) चलाई. मोदी देश के युवाओं को जो ट्रेनिंग देना चाहते हैं, यदि वह ट्रेनिंग यात्रियों के पास होती तो तीन आतंकवादी 26 लोगों को नहीं मार पाते. यात्रियों के हाथ में लाठी, डंडा कुछ भी होता और वे चारों तरफ से आतंकवादियों की तरफ दौड़ते, तो मैं दावा करता हूं कि शायद 5 या 6 लोगों की ही जान जाती, लेकिन तीनों आतंकवादी भी मारे जाते.
टूटे घर, बिखरे सामान, नम आंखें राहुल पुंछ में
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी शनिवार को जम्मू-कश्मीर के पुंछ पहुंचे और पाकिस्तान की गोलाबारी में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों से मिले. पुंछ के क्राइस्ट पब्लिक स्कूल के छात्रों को सलाह दी, “कड़ी मेहनत करो, और भी ज्यादा जोश से खेलो. स्कूल में ढेर सारे दोस्त बनाओ.” इस महीने की शुरुआत में इस स्कूल ने अंधाधुंध गोलाबारी में अपने दो छात्रों को खो दिया था.
तीव्र गोलाबारी के पीड़ितों में उरबा फातिमा और ज़ैन अली शामिल थे, जो 12 वर्षीय जुड़वां भाई-बहन थे और सिर्फ दो महीने पहले ही अपने स्कूल के करीब आने के लिए पुंछ आए थे. पीड़ितों में विहान भार्गव भी थे, जिनकी गोलाबारी शुरू होने के बाद बम का टुकड़ा लगने से मौत हो गई थी.
छात्रों से बात करते हुए गांधी ने कहा, “अभी, आप थोड़ा-सा खतरा महसूस कर रहे हैं, थोड़ा डरे हुए हैं, लेकिन चिंता मत करो, सब कुछ फिर से सामान्य हो जाएगा… इसका जवाब देने का आपका तरीका यह होना चाहिए कि आप बहुत मेहनत से पढ़ाई करो, खूब खेलो और स्कूल में बहुत सारे दोस्त बनाओ.”
अपने दौरे के दौरान गांधी ने शहर में पैदल चलकर वहां हुए नुकसान का जायजा लिया. श्रीनगर रवाना होते समय पुंछ की स्थिति को "बहुत बड़ी त्रासदी" बताया. उन्होंने कहा, “कई लोगों की जान गई है और संपत्ति को व्यापक नुकसान हुआ है.” गांधी ने यह भी कहा कि वे स्थानीय लोगों के साथ बातचीत में उठाए गए मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाएंगे.
“द टेलीग्राफ” के अनुसार, जब गांधी सिंह सभा गुरुद्वारे से बाहर निकल रहे थे, भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (ऑपरेशन सिंदूर के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए) पुंछ का जिक्र तक नहीं किया, लेकिन हमें विश्वास है कि आप हमारा मुद्दा जरूर उठाएंगे.” एक युवा लड़की ने गांधी को बताया कि वे पांच बहनें हैं और उनके पिता की मृत्यु 16 साल पहले हो गई थी. उस डरावने अनुभव को याद करते हुए लड़की ने कहा कि वे सभी ग्राउंड फ्लोर पर थीं, जब गोला घर से टकराया और वे चमत्कारिक रूप से बच गईं.
बाद में “एक्स” पर एक पोस्ट में राहुल ने कहा-“टूटे हुए घर, बिखरे हुए सामान, नम आंखें और अपने प्रियजनों को खोने की दर्दनाक कहानियां— ये देशभक्त परिवार हर बार युद्ध का सबसे बड़ा बोझ साहस और गरिमा के साथ उठाते हैं. उनके साहस को सलाम."
2018 के मामले में राहुल के खिलाफ गैर-जमानती वारंट
झारखंड के चाईबासा में एक विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट ने मानहानि के मामले में राहुल गांधी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया है. कोर्ट ने गांधी की निजी तौर से पेश होने से छूट मांगने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया और 26 जून को पेश होने का निर्देश दिया है. यह मामला 2018 में कांग्रेस के पूर्ण अधिवेशन के दौरान का है, तब राहुल गांधी ने कथित तौर पर एक टिप्पणी की थी कि ‘हत्या के आरोप’ का आरोपी कोई भी व्यक्ति भाजपा अध्यक्ष बन सकता है. उस समय भाजपा अध्यक्ष वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह थे. शुरुआत में चाईबासा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर किया गया मामला 2020 में झारखंड हाई कोर्ट के आदेश के बाद रांची में एमपी-एमएलए कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था और फिर इसे चाईबासा में एमपी-एमएलए कोर्ट में वापस स्थानांतरित कर दिया गया था. बार-बार अदालती समन के बावजूद गांधी पेश नहीं हुए. इसके बाद अदालत ने पहले जमानती वारंट जारी किया था.
भारत में कोविड-19 के नए सबवेरिएंट NB.1.8.1 का पता चला
कई राज्यों में कोविड-19 मामलों में वृद्धि की सूचना मिलने के बीच, भारत में NB.1.8.1 नामक एक नए सबवेरिएंट का नमूना पाया गया है. यह नमूना अप्रैल में एकत्र और अनुक्रमित किया गया था. “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार पिछले कुछ हफ्तों में भारत में अनुक्रमित किए गए अधिकतर नमूनों में BA.2 और JN.1 वेरिएंट पाए गए. सिंगापुर और हांगकांग में हाल की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कोविड-19 मामलों में वृद्धि देखी गई है. प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक, ज्यादातर मामले हल्के हैं और इनमें असामान्य गंभीरता या मृत्यु दर नहीं देखी गई.
NB.1.8.1 क्या है? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वेरिएंट को 'वेरिएंट अंडर मॉनिटरिंग' घोषित किया है. यह वर्गीकरण उन वेरिएंट्स को दिया जाता है, जिनमें वायरस के गुणों में महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं, लेकिन उनका महामारी विज्ञान संबंधी प्रभाव स्पष्ट नहीं होता. दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. जतिन आहूजा कहते हैं, “यह ओमिक्रॉन वेरिएंट की एक उप-शाखा है और यह घातक प्रतीत नहीं होता. अब तक, ऐसा कोई संकेत नहीं है कि NB.1.8.1 पिछले स्ट्रेन की तुलना में अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनता है. लेकिन यह मानव कोशिकाओं से तेजी से जुड़ता है. इसलिए यह अधिक आसानी से फैलता है.” उन्होंने कहा कि हमारे पास इस उप-वेरिएंट के लिए कोई विशेष टीका नहीं है, लेकिन ओमिक्रॉन की लहर जो हाल ही में आई थी, हमें कुछ सुरक्षा प्रदान कर सकती है.
झारखंड : मुठभेड़ में दो माओवादी मारे गए : झारखंड के लातेहार जिले में शनिवार 24 मई को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में झारखंड जन मुक्ति परिषद (जेजेएमपी) के सुप्रीमो पप्पू लोहरा समेत दो माओवादी मारे गए. लोहरा पर 10 लाख रुपये का इनाम था, जबकि मारे गए दूसरे माओवादी प्रभात गंजू पर 5 लाख रुपये का इनाम था.
अमेरिका ने संपर्क किया था, पर सीज़ फायर तो पाकिस्तान से सीधी बातचीत से हुआ
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि हालिया संघर्ष के दौरान अमेरिका ने भारत से संपर्क साधा था, लेकिन युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत से हुआ. डच ब्रॉडकास्टर एनओएस को दिए इंटरव्यू में जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे को खारिज किया कि उन्होंने मध्यस्थता की थी. जयशंकर ने बताया कि युद्धविराम, गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई को रोकने पर सीधे भारत-पाकिस्तान ने बातचीत की. उन्होंने कहा, "हमारे पास बातचीत का एक तंत्र है, एक हॉटलाइन. 10 मई को पाकिस्तानी सेना ने संदेश भेजा था कि वे गोलीबारी रोकने को तैयार हैं और हमने उसी हिसाब से जवाब दिया." जयशंकर ने यह भी दोहराया कि पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि उसने सीमा पार आतंकवाद का इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के तरीके के तौर पर किया है और भारत इस मुद्दे से पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय रूप से निपटना चाहता है. उसमें एक जगह जयशंकर से पूछा जाता है, इस सबके बीच यूएस कहां था? जयशंकर कहते हैं, ‘अम्म.. यूएस यूनाइटेड स्टेट्स में था.’
छह महिलाओं की कब्रों को अपवित्र करने के मामले की जांच शुरू : मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में कम से कम छह हाल ही में मृत महिलाओं की कब्रों को अपवित्र करने का भयावह मामला सामने आया है. इन कब्रों में शवों का निचला हिस्सा बाहर निकल आया था. यह घटना खंडवा शहर कोतवाली के तहत लोहारी नाका के बड़े कब्रिस्तान और मोघाट रोड थाना क्षेत्र के सिहाड़ा गांव के कब्रिस्तान में हुई. ये दोनों कब्रिस्तान लगभग 10-15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, यह घटना लगभग तीन दिन पहले हुई थी. पुलिस ने इस गंभीर मामले की जांच शुरू कर दी है. इंदौर जोन ग्रामीण के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) अनुराग ने इन दो घटनाओं की पुष्टि करते हुए बताया कि अज्ञात आरोपियों के खिलाफ दो अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं और आगे की कानूनी कार्रवाई जारी है. स्थानीय समुदाय में आक्रोश है.
विश्लेषण | सुशांत सिंह
भारत ने बांग्लादेश को कैसे खोया : रणनीतिक भूल और बढ़ता संकट
सिलीगुड़ी गलियारा, भारत का वह संवेदनशील हिस्सा है, जो केवल 22 किलोमीटर चौड़ा है और पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है. यह क्षेत्र बांग्लादेश, भूटान और नेपाल से घिरा है, और इसकी सुरक्षा भारत के लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन हाल के महीनों में भारत-बांग्लादेश संबंधों में दरार ने इस क्षेत्र को खतरे में डाल दिया है. अगस्त 2024 में बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद, बांग्लादेश ने भारत के प्रति अपनी नीति बदल दी और अब चीन और पाकिस्तान की ओर झुक रहा है. भारत की रणनीतिक भूलों, खासकर हसीना के तानाशाही शासन का समर्थन और हिंदू राष्ट्रवाद के उभार ने बांग्लादेश के लोगों को नाराज किया है, जिसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं. सुशांत सिंह ने फॉरेन पॉलिसी में एक लंबा विश्लेषण लिखा है.
2017 में, भारत और चीन के सैनिक भूटान के डोकलाम पठार पर 73 दिनों तक आमने-सामने रहे. यह तनाव तब शुरू हुआ, जब चीन ने सिलीगुड़ी गलियारे के पास सड़क निर्माण शुरू किया, जो भारत के लिए रणनीतिक रूप से संवेदनशील है. भारत ने इसे रोकने के लिए सैन्य कार्रवाई की. पूर्व सेना जनरल एम.एम. नारवणे ने अपनी किताब में लिखा कि भारत सरकार को इस क्षेत्र में चीनी घुसपैठ की गहरी चिंता थी. अब, बांग्लादेश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस ने मार्च 2025 में चीन की यात्रा के दौरान सिलीगुड़ी गलियारे का जिक्र करते हुए कहा, “भारत का पूर्वोत्तर पूरी तरह से जमीन से घिरा है, और इसकी समुद्री पहुंच बांग्लादेश के नियंत्रण में है.” इस बयान ने भारत में हड़कंप मचा दिया.
यूनुस ने चीन के साथ रिश्तों को मजबूत किया. चीन ने बांग्लादेश को 100% शुल्क-मुक्त निर्यात की सुविधा दी, 2.1 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता और बुनियादी ढांचे के लिए समझौते किए. यूनुस ने मोंगला बंदरगाह के विकास के लिए चीन को आमंत्रित किया, जिसे पहले भारत को संचालित करने का अधिकार मिला था. इसके अलावा, यूनुस ने पाकिस्तान को लालमोनीरहाट में हवाई अड्डा बनाने का प्रस्ताव दिया, जो सिलीगुड़ी गलियारे के करीब है. यह भारत के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि बांग्लादेश का चीन और पाकिस्तान के साथ गठजोड़ सिलीगुड़ी गलियारे को अवरुद्ध कर सकता है, जिससे पूर्वोत्तर भारत अलग-थलग पड़ सकता है.
भारत की नीतियां इस संकट की जड़ में हैं. हसीना के 15 साल के शासन में भारत ने उनकी तानाशाही को नजरअंदाज किया और उन्हें समर्थन दिया. हसीना ने भारत के लिए पूर्वोत्तर में स्थिरता सुनिश्चित की, आतंकवादियों पर कार्रवाई की और भारत को व्यापारिक सुविधाएं दीं. लेकिन उनकी सरकार ने 2014, 2018 और 2024 के चुनावों में धांधली की, जिससे बांग्लादेश में जनता का गुस्सा बढ़ा. भारत ने हसीना की आलोचना करने के बजाय उनका साथ दिया, जिससे बांग्लादेशी जनता में भारत के प्रति नाराजगी बढ़ी. सीमा पर हत्याएं, पानी के बंटवारे के विवाद और भारत के असमान व्यापारिक लाभ ने इस नाराजगी को और गहरा किया.
मोदी सरकार की हिंदू राष्ट्रवादी नीतियों ने भी आग में घी डाला. 2019 का नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), जिसने बांग्लादेशी मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता से वंचित किया, को बांग्लादेश में अपमान के रूप में देखा गया. गृह मंत्री अमित शाह के “घुसपैठिए” और “दीमक” जैसे बयानों ने बांग्लादेशियों को और आहत किया. 2021 में मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों की खबरें आईं, जिन्हें भारत ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया. जवाब में, बांग्लादेश ने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हमलों का मुद्दा उठाया.
भारत ने हसीना के बाद बांग्लादेश में प्रभाव खो दिया. यूनुस अब एक स्वतंत्र विदेश नीति अपना रहे हैं, जिसमें चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध बढ़ाना शामिल है. अप्रैल 2025 में बांग्लादेश और पाकिस्तान ने 2010 के बाद पहली बार विदेश मंत्रालय स्तर की बातचीत की. बांग्लादेश ने पाकिस्तान के साथ उड़ानें शुरू कीं और वीजा नियमों में ढील दी. दूसरी ओर, चीन बांग्लादेश को बेल्ट एंड रोड पहल में शामिल करने की कोशिश कर रहा है.
भारत ने जवाब में आर्थिक दबाव बनाया. उसने बांग्लादेश के निर्यात के लिए महत्वपूर्ण ट्रांसशिपमेंट सुविधा निलंबित कर दी और तैयार कपड़ों के आयात पर सख्ती की. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने धमकी दी कि अगर बांग्लादेश ने सिलीगुड़ी गलियारे को निशाना बनाया, तो भारत चटगांव बंदरगाह को निशाना बनाएगा. एक पूर्व नौसेना कमांडर ने दावा किया कि बांग्लादेश का 17 किलोमीटर का संकरा क्षेत्र भारत के सैन्य हस्तक्षेप के लिए कमजोर है.
ये कदम भारत की रणनीतिक गलतियों को छिपाने की कोशिश हैं. बांग्लादेश की नई नीति चीन या पाकिस्तान की साजिश नहीं, बल्कि भारत की नीतियों का परिणाम है. हसीना का समर्थन और हिंदू-प्रमुख नीतियों ने बांग्लादेशी जनता को भारत से दूर कर दिया. इससे आतंकवाद-निरोधी सहयोग और आर्थिक संबंधों को नुकसान पहुंचा है, और पूर्वोत्तर में अस्थिरता का खतरा बढ़ गया है.
भारत को अब अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा. इस्लामोफोबिक बयानबाजी को रोकना, बांग्लादेशी जनता का विश्वास जीतना और व्यापार व निवेश जैसे सकारात्मक प्रोत्साहन देना जरूरी है. बांग्लादेश की स्वायत्तता को स्वीकार कर भारत को सहयोगी गठबंधन बनाने होंगे, न कि निर्भरता. यदि भारत ऐसा नहीं करता, तो वह न केवल बांग्लादेश में प्रभाव खोएगा, बल्कि उसकी “नेबरहुड फर्स्ट” और “एक्ट ईस्ट” नीतियां भी खतरे में पड़ जाएंगी. भारत की रणनीतिक गहराई बल प्रयोग से नहीं, बल्कि सम्मान और साझेदारी से ही कायम हो सकती है.
वैकल्पिक मीडिया से
“गोबरहा” : अछूतों को मजदूरी में ‘गोबर का अनाज’
उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में, अछूतों को खेती के काम के लिए “गोबरहा” दिया जाता था. जिसका अर्थ है “गोबर का अनाज.” फसल कटाई के मौसम (मार्च या अप्रैल) में बैल खलिहान में अनाज को भूसे से अलग करने के लिए उस पर चलते, इस दौरान वे कुछ अनाज और भूसा खा लेते. अगले दिन, उनके गोबर से आंशिक रूप से पचा हुआ अनाज निकाला जाता है, छाना जाता, और अछूत मजदूरों को उनकी मजदूरी के रूप में दिया जाता. मजदूर इस अनाज को आटे में बदलकर रोटी बनाते, जो उनकी मजबूरी का परिणाम होता.
“द मूकनायक” में गीता सुनील पिल्लई के अनुसार अंबेडकरवादी चिंतक बताते हैं कि “गोबरहा” केवल एक भुगतान का तरीका नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया अपमान था. यह अछूतों को सम्मानजनक श्रम और भोजन से वंचित करने का प्रतीक है, जो उन्हें पशुओं द्वारा त्यागे गए अवशेषों पर जीवित रहने के लिए मजबूर करता था. अंबेडकर का इस प्रथा का दस्तावेजीकरण जाति व्यवस्था की क्रूरता को रेखांकित करता है, जहां अछूतों के श्रम को इतना कम आंका जाता है कि उनकी जीविका भी अपमानजनक हो जाती है.
पिल्लई लिखती हैं- ज़रा कल्पना कीजिए, एक गरीब मजदूर, जिसने दिनभर तपती धूप में हाड़तोड़ मेहनत की- खेतों में पसीना बहाया, फसल काटी, अनाज को भूसे से अलग करने के लिए बैलों को हांका. उसकी पीठ झुक गई, हथेलियां छिल गईं, लेकिन उसकी आंखों में छोटी-सी उम्मीद रहती कि शायद उसे अपनी मेहनत का कुछ उचित फल मिलेगा. थका-हारा, अपने मालिक के सामने अपनी मजदूरी मांगने जाता, यह सोचकर कि शायद उसके बच्चों को पेट भर खाना नसीब होगा. लेकिन मालिक उसे क्या देता? पैसे न साफ-सुथरा अनाज, बल्कि एक झोली भर “गोबरहा”—वही अनाज, जो बैलों के गोबर से छानकर निकाला जाता. वही दाने, जो पशुओं के पेट से होकर आए और मजदूर की झोली में डाल दिए गए, ताकि वह इन्हें आटे में पीसकर अपने परिवार के लिए रोटी बनाए. यह कहानी गोबरहा की है—एक ऐसी प्रथा, जो अछूतों की अमानवीयता और हिंदू सामाजिक व्यवस्था की क्रूरता का प्रतीक है, जैसा डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अपनी रचनाओं में बयान किया है. यह एक ऐसी सच्चाई है, जो दिल को झकझोर देती है और हमें उस उत्पीड़न की गहराई तक ले जाती है, जिसे अछूतों ने सदियों तक सहा.
डॉ. भीमराव अंबेडकर के लेखन और भाषण, खंड 5, अध्याय 4 में भारत के जाति-प्रधान समाज में अछूतों (दलितों) के सामने आने वाली कठोर वास्तविकताओं का मार्मिक वर्णन किया गया है, जिसमें गोबरहा की प्रथा उनकी अमानवीयता के एक प्रमुख प्रतीक के रूप में उभरती है.
“गोबरहा प्रथा” हिंदू सामाजिक व्यवस्था के तहत अछूतों के व्यवस्थित उत्पीड़न पर प्रकाश डालती है. अछूतों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से हाशिए पर धकेलने को दर्शाती है, और यह भी बताती है कि कैसे उन्हें तथाकथित “ग्राम गणराज्य” में बाहरी व्यक्ति बनाकर रखा गया.
किराना दुकानों के दिन लद चुके हैं?
दिल्ली के मालवीय नगर में विनीत कुमार की किराना दुकान पिछले पांच दशकों से स्थानीय लोगों की जरूरतों का केंद्र रही है. 69 वर्षीय विनीत अपनी दुकान के ट्रेडमार्क कूलर में बिना ब्रांड वाली बंटा सोडा की बोतलें रखते हैं, जो नियमित ग्राहकों में खासी लोकप्रिय हैं. 10 मिनट में ₹50 में पेप्सी की बोतल पहुंचाने वाले त्वरित वाणिज्य मंचों के बावजूद, विनीत कहते हैं, “इसका मेरे कारोबार पर बहुत कम असर पड़ा है.” वे दूध और सिगरेट जैसी जरूरी चीजें बेचते हैं और डिलीवरी भी देते हैं, जो ब्लिंकिट, जेप्टो और स्विगी इंस्टामार्ट जैसे मंचों के मुकाबले उनकी दुकान को टिकाए रखता है. द हिंदू के लिए अरुण दीप ने इस पर रिपोर्ताज लिखा है.
लेकिन पास ही दुकान चलाने वाली 54 वर्षीय अनुराधा तनेजा को यह झटका ज्यादा गहरा लगा है. उनकी दुकान का कारोबार 25 सालों में 30% तक गिर गया है. “पहले युवा छात्र और कामकाजी लोग मेरी दुकान पर सामान खरीदने आते थे. अब वे घर बैठे 10 मिनट में ऑर्डर मंगवाते हैं,” वे कहती हैं. तनेजा की दुकान में ताजी सब्जियां नहीं हैं, इसलिए राहगीरों पर उनकी निर्भरता बढ़ गई है, जो अब कम हो रहे हैं.
गुरुग्राम के ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर सिमरजीत सिंह के अनुसार, किराना दुकानें “दैनिक घरेलू सामानों का भंडार” हैं, जो आसान पहुंच, उधार और मुफ्त डिलीवरी की सुविधा देती हैं. लेकिन टियर-1 शहरों में ये दुकानें भारी दबाव में हैं. एक किराना दुकान शुरू करने में ₹5 से ₹15 लाख का निवेश लगता है, जिसमें 65% दुकानें किराए के स्थान पर चलती हैं, जिनका मासिक किराया ₹5,000 से ₹1 लाख तक होता है. सिंह कहते हैं, “किराया सकल लाभ का 20% या कुल बिक्री का 3% से ज्यादा नहीं होना चाहिए.”
भोपाल के चूना भट्टी में नरेश रघुवंशी की दुकान भी इस संकट से जूझ रही है. 41 वर्षीय नरेश कहते हैं, “ऑनलाइन मंच हमारा कारोबार छीन रहे हैं. हम उनकी कीमतों और ऑफर्स से मुकाबला नहीं कर सकते. मेरा कारोबार पिछले दो सालों में 30-35% कम हो गया है.” किराए का बोझ और कम होते ग्राहक उनके लिए चुनौती हैं.
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के सचिव और सांसद प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि विदेशी फंडिंग वाले ई-कॉमर्स मंच भारी छूट देकर छोटे दुकानदारों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. “लगभग 20% मोबाइल फोन की दुकानें बंद हो चुकी हैं,” वे कहते हैं.
किराना दुकानें जीवित रहने के लिए नवाचार कर रही हैं. विनीत डिलीवरी और उधार की सुविधा दे रहे हैं, जबकि भोपाल के 23 वर्षीय तुषार सिंह ने अपनी पान की दुकान पर सिगरेट की कीमतों में ₹5-10 की छूट शुरू की. फिर भी, बढ़ते किराए और कम मार्जिन के बीच कई दुकानें बंद हो रही हैं. खंडेलवाल कहते हैं, “ग्राहक कितने समय तक ₹12 की चीज को ₹10 में ऑनलाइन उपलब्ध होने पर हमसे खरीदेंगे?”
दुकानदार के पुत्र को “बेटा” कहने पर दलित को पीटा, मौत
गुजरात के अमरेली जिले में एक दुकानदार के पुत्र को “बेटा” कहकर संबोधित करने पर एक दलित युवक की इतनी पिटाई की कि छह दिन बाद भावनगर के एक अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया. पुलिस ने इस मामले में आठ लोगों को गिरफ्तार किया है और एक नाबालिग को हिरासत में लिया है.
शुक्रवार को, कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी ने मृतक निलेश राठौड़ के परिवार के सदस्यों के साथ धरना दिया और न्याय की मांग की. फेसबुक पर जारी बयान में विधायक ने कहा, "जरकिया गांव के निलेश राठौड़ की मौत... जातिवादी तत्वों द्वारा एक बच्चे को 'बेटा' कहने जैसी छोटी-सी बात पर बेरहमी से पीटे जाने के कुछ दिनों बाद हुई. हम मांग करते हैं कि सभी चार पीड़ितों (जिसमें मृतक के परिजन और परिचित भी शामिल हैं जिन्हें पीटा गया) को या तो पांच एकड़ कृषि भूमि या सरकारी नौकरी दी जाए, जांच किसी अच्छे अधिकारी से कराई जाए और केस को फास्ट-ट्रैक किया जाए, ताकि एक मिसाल कायम हो सके. राठौड़ के परिवार ने कहा है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे उनका शव स्वीकार नहीं करेंगे.
रोहिंग्या शरणार्थी
“मैंने जहाज से लोगों को समुद्र में फेंकते देखा, उनकी चीखें सुनाई दीं”
म्यांमार के तनिन्थारयी क्षेत्र में एक मछुआरे, नये नगे सो, ने 8 मई 2025 की रात को भयावह दृश्य देखा. रात के 1 बजे, अपनी नाव से लौटते वक्त, उन्होंने समुद्र में 50 मीटर दूर अंधेरे में कुछ आकृतियों को तैरते देखा. “मैंने एक जहाज से लोगों को समुद्र में फेंकते देखा. उनकी चीखें सुनाई दीं,” 22 वर्षीय नये ने बताया. गहरे पानी में बुजुर्ग और महिलाएं, जो तैरना नहीं जानती थीं, जीवन रक्षक जैकेट के सहारे रस्सी पकड़कर तट तक पहुंचे. सुबह होने पर पता चला कि ये रोहिंग्या थे, म्यांमार का मुस्लिम अल्पसंख्यक समूह. स्ट्रेट टाइम्स में रोहिणी मोहन ने इस पर लंबा रिपोर्ताज लिखा है.
ग्रामीणों ने उन्हें भोजन, पानी और सूखे कपड़े दिए. शरणार्थियों ने बताया कि उन्हें भारत से निर्वासित किया गया था. उसी सप्ताह, जब भारत-पाकिस्तान की सीमा पर गोलीबारी हो रही थी, भारत ने 6 से 9 मई तक कम से कम 40 रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार भेज दिया. संयुक्त राष्ट्र ने इसकी जांच शुरू की, इसे ‘अमानवीय’ और ‘मानवता के खिलाफ’ करार दिया. संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज ने कहा कि यह गैर-कानूनी निर्वासन अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है, जो किसी को ऐसी जगह वापस भेजने से रोकता है, जहां उनकी जान या स्वतंत्रता खतरे में हो.
भारत ने उसी समय असम से 50 अन्य रोहिंग्या को बांग्लादेश में “धकेल दिया,” यानी औपचारिक निर्वासन के बजाय उन्हें सीमा पार पैदल भेजा गया. संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने भारत से रोहिंग्या को म्यांमार न भेजने की अपील की, जहां वे उत्पीड़न और नरसंहार का सामना करते हैं. 2017 में म्यांमार की सेना के क्रूर दमन से सैकड़ों हजारों रोहिंग्या भाग गए थे, जिनमें से लगभग 7 लाख बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं. भारत में अनुमानित 40,000 रोहिंग्या रहते हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) “अवैध मुस्लिम प्रवासियों” के खिलाफ सख्त रुख अपनाकर राजनीतिक लाभ उठा रही है. नीति विश्लेषक अंशुमन चौधरी ने कहा, “भारत सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों और बांग्लादेशी प्रवासियों को एक ही श्रेणी में रखती है, जो धार्मिक और भाषाई समानताओं के बावजूद पूरी तरह अलग हैं.” भारत के गृह मंत्रालय ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में रोहिंग्या के रिश्तेदारों ने निर्वासन रोकने की याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने इसे सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया. एक जज ने समुद्र में फेंके जाने के दावों को “काल्पनिक” बताया. हालांकि, म्यांमार के स्थानीय लोगों और निर्वासित सरकार के उप-मानवाधिकार मंत्री आंग क्याव मो ने पुष्टि की कि 40 रोहिंग्या को 9 मई को म्यांमार के तट पर छोड़ दिया गया. इनमें से 37 नाम याचिकाओं से मेल खाते थे. सभी निर्वासित लोगों के पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) के दस्तावेज थे.
भारत में 20,000 रोहिंग्या यूएनएचसीआर के साथ पंजीकृत हैं, जो ज्यादातर दिल्ली के गरीब इलाकों में रहते हैं. उनकी गतिशीलता, आवास और आजीविका पर सख्त पाबंदियां हैं. गैर-लाभकारी संगठन ‘द आजादी प्रोजेक्ट’ की प्रियाली सुर ने बताया कि फरवरी से दिल्ली में रोहिंग्या को सत्यापन के नाम पर पुलिस उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. 6 मई को, दिल्ली के हस्तसाल, विकासपुरी और ओखला में दर्जनों रोहिंग्या को बायोमेट्रिक सत्यापन के लिए हिरासत में लिया गया, लेकिन उन्हें घर वापस नहीं भेजा गया.
25 वर्षीय मोहम्मद ने बताया कि उनकी पत्नी के गर्भपात के दौरान वह अस्पताल में थे, जब उनके माता-पिता और भाइयों को हिरासत में लिया गया. 7 मई को, कम से कम 40 लोगों को अंडमान द्वीप समूह ले जाया गया और वहां से नौसेना के जहाज से म्यांमार के तट पर फेंक दिया गया. एक ऑडियो रिकॉर्डिंग में, एक निर्वासित व्यक्ति ने कहा कि उन्हें आंखों पर पट्टी बांधकर हथकड़ी लगाई गई थी. म्यांमार में, मछुआरों ने उन्हें बचाया और निर्वासित सरकार की पीपुल्स डिफेंस फोर्स को सौंप दिया, जो सैन्य जुन्टा के खिलाफ लड़ रही है.
रोहिंग्या अब डर में जी रहे हैं. जम्मू की 26 वर्षीय श्रीमती एस ने बताया कि उनके माता-पिता और भाई म्यांमार भेज दिए गए. “मेरा पूरा परिवार चला गया. क्या वे जीवित हैं? सेना के हाथों मुसीबत में हैं? मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती,” वह रोते हुए बोलीं. भारत ने मई में 30 दिन की समय सीमा दी है कि बांग्लादेश और म्यांमार के संदिग्ध अवैध प्रवासियों के दस्तावेज सत्यापित हों, वरना उन्हें निर्वासित किया जाएगा. श्रीमती एस ने कहा, “मेरे परिवार के पास वैध शरणार्थी कार्ड थे, फिर भी उन्हें भेज दिया गया. अब मेरी बारी है. अगर म्यांमार, बांग्लादेश और भारत हमें नहीं चाहते, तो मैं कहां जाऊं?”
दिल्ली में अहलमद पर रिश्वत लेने का मामला दर्ज, जज का तबादला
राउज एवेन्यू कोर्ट में तैनात एक विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) को रोहिणी (उत्तर-पश्चिम दिल्ली) में स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि कुछ दिन पहले ही भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने उनके अहलमद (रिकॉर्ड कीपर) मुकेश कुमार के खिलाफ जमानत के मामलों में कथित भ्रष्टाचार के लिए रिश्वत का मामला दर्ज किया था. एसीबी ने 16 मई को कुमार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 13 तथा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के संबंधित प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया था, जिसमें उन पर जमानत पर रिहाई के बदले में आरोपियों से रिश्वत मांगने और स्वीकार करने का आरोप लगाया गया था. हालांकि, कुमार ने आरोपों से जोरदार तरीके से इनकार किया है और दावा किया है कि एसीबी अधिकारियों ने न्यायाधीश को निशाना बनाने के उद्देश्य से एक व्यापक साजिश के तहत उन्हें झूठा फंसाया है.
उल्लेखनीय है कि एफआईआर दर्ज होने से पहले एसीबी ने जनवरी में दिल्ली सरकार के विधि सचिव को पत्र लिखकर न्यायाधीश के खिलाफ जांच शुरू करने की अनुमति मांगी थी. एजेंसी ने न्यायाधीश और कुमार दोनों के खिलाफ प्रशासनिक पक्ष से उच्च न्यायालय में आरोप लगाने वाली सामग्री भी प्रस्तुत की थी. फरवरी में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जवाब दिया कि एजेंसी शिकायतों की जांच करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन पर्याप्त सामग्री की कमी के कारण उस स्तर पर न्यायाधीश के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया.
इंग्लैंड टेस्ट सीरीज की टीम के गिल बने कप्तान
अश्विन, कोहली और रोहित के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद बदलाव से गुजर रही टीम का कप्तान युवा शुभमन गिल को बनाया गया है और उनके नायब की जिम्मेदारी ऋषभ पंत को दी गई है. वहीं सात साल बाद करुण नायर की टीम में वापसी हुई है.
इस 18 सदस्यीय टीम में मोहम्मद शमी को जगह नहीं दी गई है तो सरफराज खान को बाहर कर दिया गया है. शमी के अनफिट होने की खबर है. इंग्लैंड में पांच टेस्ट खेले जाने हैं.
टीम : शुभमन गिल (कप्तान), ऋषभ पंत (विकेटकीपर/उपकप्तान), यशस्वी जायसवाल, केएल राहुल, साई सुदर्शन, अभिमन्यु ईश्वरन, करुण नायर, नीतीश कुमार रेड्डी, रवींद्र जडेजा, ध्रुव जुरेल (विकेटकीपर), वाशिंगटन सुंदर, शार्दुल ठाकुर, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद सिराज, प्रसिद्ध कृष्णा, आकाश दीप, अर्शदीप सिंह और कुलदीप यादव.
शुभमन क्या कोहली जैसा होगा?
शुभमन गिल और विराट कोहली की तुलना अक्सर उनकी प्रतिभा, नेतृत्व और करियर की समानताओं के आधार पर की जाती है. दोनों ने युवा उम्र में भारतीय टेस्ट टीम की कप्तानी संभाली और अपने करियर में कई समान चुनौतियों का सामना किया. हालांकि, उनकी नेतृत्व शैली और व्यक्तिगत लक्षणों में स्पष्ट अंतर हैं, जो उन्हें अद्वितीय बनाते हैं.
शुभमन गिल और विराट कोहली दोनों ने लगभग 26 वर्ष की आयु में भारतीय टेस्ट टीम की कप्तानी संभाली. कोहली ने 2014 में, 51 टेस्ट मैचों के अनुभव के साथ, पहली बार कप्तानी की, जबकि गिल ने 2025 में, 33 टेस्ट मैचों के बाद यह जिम्मेदारी ली. दोनों को उस समय नेतृत्व का अवसर मिला जब भारतीय क्रिकेट में एक बदलाव का दौर चल रहा था, जिसमें वरिष्ठ खिलाड़ियों का स्थान नए चेहरों ने लिया.
दोनों खिलाड़ियों ने अपने करियर की शुरुआत में कठिन दौर देखे. कोहली को 2014 में इंग्लैंड दौरे पर खराब प्रदर्शन के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, जहां उनका औसत केवल 13.40 था. इसी तरह, गिल को 2023 में ऑस्ट्रेलिया में पांच पारियों में केवल 93 रन बनाने के कारण आलोचना झेलनी पड़ी. फिर भी, दोनों ने इन चुनौतियों से उबरकर अपनी प्रतिभा साबित की. कोहली और गिल दोनों में सफलता के प्रति एक तगड़ा जुनून है. कोहली ने अपने करियर में कई बार वापसी की, विशेष रूप से 2014 के बाद, जब उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया. गिल ने भी अपने शुरुआती कठिन दौर के बाद लगातार सुधार दिखाया, और उनकी बल्लेबाजी में निरंतरता ने उन्हें भारतीय क्रिकेट का भविष्य बनाया.
कोहली की नेतृत्व शैली उनकी अभिव्यक्तिपूर्ण लीडरशिप थी, जो अपनी ऊर्जा और भावनात्मक शैली से टीम को प्रेरित करते थे. वह अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करते थे, चाहे वह जीत का उत्सव हो या हार का गुस्सा. उनकी कप्तानी उनके व्यक्तित्व का स्वाभाविक विस्तार थी, और वह वरिष्ठ खिलाड़ियों के बीच भी अपनी जगह बनाने में सफल रहे. दूसरी ओर, गिल अधिक संयत और विचारशील हैं. उनकी कप्तानी को एक प्रोजेक्ट के रूप में देखा गया, जहां उन्हें उप-कप्तानी के माध्यम से धीरे-धीरे तैयार किया गया. वह मैदान पर इतने शांत रहते हैं कि कई बार उनकी उपस्थिति का पता ही नहीं चलता, जब तक कि गेंद उनके पास न आए.
कोहली पश्चिमी दिल्ली की पृष्ठभूमि से आते हैं, जहां उनका जोशीला और मुखर स्वभाव उनकी पहचान बन गया. वह हमेशा से ही मैदान पर ऊर्जा और जोश के साथ खेलते रहे हैं. इसके विपरीत, गिल पंजाब के चक खेरेवाला गांव से हैं, जहां उन्होंने अपने पिता के खेतों पर क्रिकेट सीखा. तीन साल की उम्र से ही उन्होंने क्रिकेट के प्रति समर्पण दिखाया, और बाद में बेहतर कोचिंग के लिए मोहाली चले गए. उनकी शांत मुस्कान और संयमित उत्सव शैली उन्हें राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे शांतचित्त खिलाड़ियों से जोड़ती है. उनके साक्षात्कारों में तीव्रता के साथ शांति और मापा हुआ व्यवहार दिखता है.
शुभमन गिल और विराट कोहली दोनों भारतीय क्रिकेट के लिए महत्वपूर्ण हैं. उनकी समानताएँ, जैसे युवा उम्र में कप्तानी और चुनौतियों पर विजय, उन्हें एक-दूसरे से जोड़ती हैं. हालांकि, उनकी नेतृत्व शैली और व्यक्तित्व में अंतर उन्हें अद्वितीय बनाते हैं. गिल कोहली की तरह ही प्रतिभाशाली हैं, लेकिन उनकी अपनी अलग पहचान है, जो भारतीय क्रिकेट के भविष्य को उज्ज्वल बनाती है. कुछ प्रशंसक गिल को कोहली का उत्तराधिकारी मानते हैं, जबकि अन्य उनकी अलग शैली की सराहना करते हैं.
पुस्तक चर्चा
भारत एक डफ़र ज़ोन में बदल चुका है : अवय शुक्ला
भारत एक ऐसा देश बनता जा रहा है जहां मूर्खता का बोलबाला है और हम निएंडरथल युग की ओर लौट रहे हैं. यह कहना है मशहूर ब्लॉगर और लेखक अवय शुक्ला का, जिन्होंने अपनी नई किताब होली काउज एंड लूज कैनन्स : द डफर जोन क्रॉनिकल्स के लॉन्च के मौके पर करण थापर के साथ द वायर पर करन थापर के साथ खास बातचीत की. अवय शुक्ला, जो पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा में वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं, अपने अंग्रेजी ब्लॉग्स के जरिए लाखों पाठकों के दिलों में जगह बना चुके हैं. उनकी यह किताब उनके चुनिंदा पचास निबंधों का संग्रह है, जो भारतीय समाज की खामियों, विचित्रताओं, और पूर्वाग्रहों को उजागर करते हैं. कुछ निबंध गंभीर हैं, कुछ व्यंग्यात्मक, और कुछ पढ़कर बस हंसी छूट जाती है. बातचीत में शुक्ला ने भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक पतन पर तीखी टिप्पणी की, साथ ही हल्के-फुल्के अंदाज में बात रखी है.
शुक्ला का कहना है कि भारत का एक बड़ा हिस्सा, खासकर LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) से लेकर कन्याकुमारी तक, एक “डफर जोन” बन चुका है. उनके शब्दों में, “यह स्पष्ट है कि LAC का भारतीय हिस्सा कन्याकुमारी तक एक बड़ा डफर जोन है.” इस डफर जोन को वह न केवल भौगोलिक रूप से, बल्कि मानसिकता के स्तर पर भी परिभाषित करते हैं. यह वह इलाका है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत का हिंदू हृदयस्थल है, जहां कम साक्षरता, उच्च जन्म दर, और अंधविश्वास की अधिकता है. इस क्षेत्र को वह हिंदुत्व की अतिशय धार्मिकता, असहिष्णुता, इस्लामोफोबिया, और क्षेत्रवाद से जोड़ते हैं. शुक्ला का कहना है कि यह डफर जोन अब दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर तक फैल रहा है, जो एक खतरनाक संकेत है. वह कहते हैं, “दूसरे देश बेहतरी के लिए विकसित होते हैं, हम लगातार बदतर की ओर बढ़ रहे हैं, और हमें इस पर गर्व है.”
शुक्ला की लेखनी भारतीय समाज की उन प्रवृत्तियों पर भी तंज कसती है, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को नकार रही हैं. खासकर, वह उन लोगों से नाराज हैं जो अचानक मुस्लिम संस्कृति और विरासत को खारिज करने लगे हैं. उनके एक उल्लेखनीय उद्धरण में वह कहते हैं,
“वे अचानक भगवान को खोज चुके हैं और उन्हें लगता है कि वह केवल हिंदू हो सकता है. मुगलई खाने पर पलने, ग़ज़ल और कव्वाली सुनने, उर्दू और हिंदुस्तानी शब्दों से भरी भाषा में बात करने, दिलीप कुमार, मधुबाला और वहीदा रहमान पर झूमने, गालिब और गुलज़ार की शायरी पर वाह-वाह करने के बाद... अब उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि ये सब बुरी चीजें हैं, ये हमारे हिंदू संस्कारों और लड़कियों को खतरे में डालती हैं, और इन्हें पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए.”
शुक्ला रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन्स (RWAs) की बढ़ती दखलंदाजी पर भी तीखी आलोचना करते हैं. वह कहते हैं, “वे धीरे-धीरे नैतिकता, संस्कृति और राजनीतिक विमर्श के स्वयंभू संरक्षक बनते जा रहे हैं... वह समय दूर नहीं जब ये व्यस्त लोग यह तय करेंगे कि उनके सदस्य क्या खाएं, कैसे कपड़े पहनें, किन देवताओं की पूजा करें... शायद वे यह भी जोर देंगे कि सभी सदस्य किसी खास पार्टी को वोट दें.” उनकी यह टिप्पणी RWAs के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करती है, जो अब लोगों के निजी जीवन और विचारों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं. वह इसे हमारी औपनिवेशिक और सामंती मानसिकता का परिणाम मानते हैं, जहां थोड़ी सी सत्ता पाने वाला व्यक्ति खुद को “सार्जेंट मेजर” समझने लगता है.
फिल्म द कश्मीर फाइल्स पर शुक्ला की आलोचना भी उल्लेखनीय है. वह इस फिल्म को इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वाला मानते हैं, जिसका मकसद इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देना था. वह कहते हैं कि फिल्म का इरादा “तीस साल पुराने भूतों को फिर से जगाना, ठीक हो रहे जख्मों को फिर से खोलना, और नफरत और डर की कीड़े को जिंदा रखना है, ताकि उन्हें वोटिंग बॉक्स में डाला जा सके.” वह इस बात से खास तौर पर नाराज हैं कि फिल्म को न केवल केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने बढ़ावा दिया, बल्कि इसे प्रधानमंत्री तक ने समर्थन दिया. शुक्ला का मानना है कि यह फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश करती है, जैसे कि कश्मीरी पंडितों की संख्या और हत्याओं के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना.
हालांकि, शुक्ला की किताब केवल गंभीर आलोचनाओं तक सीमित नहीं है. उनके निबंधों में हास्य और व्यंग्य का पुट भी है. उदाहरण के लिए, वह चुनावों में काले धन के उपयोग को एक मजेदार नजरिए से देखते हैं. उनका कहना है कि चुनाव काले धन को “उत्पादक रूप से अर्थव्यवस्था में डालते हैं,” जिससे रोजगार सृजन होता है और समाज के निचले तबके को फायदा पहुंचता है. वह मजाक में कहते हैं कि 50,000 करोड़ रुपये का काला धन, जो गद्दों के नीचे या रियल एस्टेट में छिपा होता है, चुनावों के दौरान बाहर आता है और टेंट लगाने वालों, बैनर बनाने वालों, और गुंडों तक को रोजगार देता है. यह व्यंग्य उनकी लेखनी की खासियत को दर्शाता है, जो गंभीर मुद्दों को भी हल्के अंदाज में पेश करता है. शुक्ला की बातचीत में उनकी कुत्तों के प्रति दीवानगी भी झलकती है. वह खुद को “जन्मजात कुत्ता प्रेमी” कहते हैं और बताते हैं कि उनका परिवार भी कुत्तों से उतना ही प्यार करता है. करण थापर के साथ हल्के-फुल्के अंदाज में वह कहते हैं कि कुत्ते न रखना एक निजी पसंद हो सकती है, लेकिन यह सिंगल माल्ट या सिगार छोड़ने जैसा है—आप बहुत कुछ मिस कर रहे हैं!
कुल मिलाकर, अवय शुक्ला की यह बातचीत और उनकी किताब *होली काउज एंड लूज कैनन्स* भारतीय समाज के उन पहलुओं को उजागर करती है, जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं. उनकी लेखनी न केवल आलोचनात्मक है, बल्कि हास्य और व्यंग्य से भरी हुई है, जो पाठकों को हंसाते हुए गंभीर सवाल उठाती है. यह किताब और यह साक्षात्कार हमें अपने समाज, अपनी संस्कृति, और अपने व्यवहार पर पुनर्विचार करने का मौका देता है.
होली काउज एंड लूज कैनन्स: द डफर जोन क्रॉनिकल्स | अवय शुक्ला |काशक ऑथर्स अपफ्रंट | पेपर बैक | मूल्य : 499 रुपये | लिंक
चलते चलते
मनुष्यता, अर्थशास्त्र, शोषण, प्रवृत्तियां, जीवन… सल्गाडो का एक फ्रेम
सेबास्तियाओ सल्गाडो का सेर्रा पेलाडा सोने की खदान का कार्य उनकी सबसे प्रभावशाली परियोजनाओं में से एक है. 1986 में ली गईं ये तस्वीरें ब्राजील की इस विशाल खदान में काम करने वाले हजारों श्रमिकों की कठिन जिंदगी को दर्शाती हैं. ये चित्र पूंजीवाद की क्रूरता और मानव श्रम की कीमत को उजागर करते हैं. सल्गाडो ने इन श्रमिकों के चेहरों में न केवल दुख, बल्कि उनकी गरिमा और दृढ़ता को भी कैद किया.
ब्राजील में जन्मे फोटो पत्रकार सेबास्तियाओ सल्गाडो ने अपनी काले-सफेद तस्वीरों के माध्यम से विश्व में मानवता और पर्यावरण की गहरी कहानियां बयां कीं. लगभग पांच दशकों तक, उनके कैमरे ने अनदेखे परिदृश्यों, संघर्षरत समुदायों और प्रकृति के बदलते चेहरों को कैद किया. उनका काम अर्थशास्त्र, राजनीति और पर्यावरण के बीच जटिल रिश्तों को उजागर करता है, जो विपत्तियों में मानवता की लचीलापन और दृढ़ता को दर्शाता है. सल्गाडो की तस्वीरें केवल छवियां नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक जोरदार आह्वान हैं.शुक्रवार को पेरिस में 81 साल की उम्र में उनका निधन हुआ. उनकी गज़ब की तस्वीरों के लिए उन्हें याद किया जाएगा. फोटोग्राफी के बारे में अगर सोच भी रहे हों, तो उनका काम देखिये. सल्गाडो की फोटोग्राफी सामान्य से परे थी. उनकी परियोजनाएं, जैसे "वर्कर्स", "माइग्रेशन्स", और "जेनेसिस", मानवता और प्रकृति के बीच गहरे संबंधों को दर्शाती हैं. "वर्कर्स" (1993) में उन्होंने विश्व भर के श्रमिकों की मेहनत और संघर्ष को कैद किया, जिसमें ब्राजील की सेर्रा पेलाडा सोने की खदान की तस्वीरें शामिल हैं. 1986 में ली गईं ये तस्वीरें खदान के विशाल पैमाने और खनिकों की अमानवीय परिस्थितियों को दिखाती हैं. हजारों श्रमिक, कीचड़ में सने, सोने की तलाश में खदान की गहराइयों में उतरते दिखते हैं, जो पूंजीवाद और मानवीय लागत के बीच तनाव को उजागर करता है.
"माइग्रेशन्स" (2000) में सल्गाडो ने युद्ध, गरीबी और पर्यावरणीय संकटों के कारण विस्थापित लोगों की कहानियां बताईं. उनकी तस्वीरें रवांडा के नरसंहार से लेकर बोस्निया के युद्ध तक, मानवता के दुख और आशा को दर्शाती हैं. उनकी सबसे चर्चित परियोजना "जेनेसिस" (2013) पर्यावरण संरक्षण के लिए एक प्रेम पत्र थी. आठ साल तक, सल्गाडो ने विश्व के उन हिस्सों की यात्रा की जहां प्रकृति अभी भी अपनी प्राचीन अवस्था में है, जैसे अमेज़न जंगल और गैलापागोस द्वीप. इस परियोजना का उद्देश्य ग्रह के संरक्षण की तात्कालिकता को उजागर करना था. सल्गाडो और उनकी पत्नी लेलिया ने 1998 में इंस्टीट्यूटो टेरा की स्थापना की. यह संगठन ब्राजील के अटलांटिक वन, जो कभी सल्गाडो के बचपन का हिस्सा था, को पुनर्जनन के लिए समर्पित है. इस परियोजना ने लाखों पेड़ लगाए और स्थानीय समुदायों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया. सल्गाडो का मानना था कि पर्यावरण और मानवता एक-दूसरे से अटूट रूप से जुड़े हैं, और उनकी तस्वीरें इस विश्वास को प्रतिबिंबित करती थीं.
"द सॉल्ट ऑफ द अर्थ": जीवन और कार्य का दस्तावेज : 2014 में, विम वेंडर्स और सल्गाडो के बेटे जुलियानो द्वारा निर्देशित वृत्तचित्र "द सॉल्ट ऑफ द अर्थ" ने उनके जीवन और कार्य को विश्व के सामने प्रस्तुत किया. यह फिल्म उनकी तस्वीरों की सुंदरता के साथ-साथ सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है. वृत्तचित्र में सल्गाडो के व्यक्तिगत संघर्ष भी उजागर हुए, जैसे कि रवांडा नरसंहार को कवर करने के बाद उनका भावनात्मक टूटन. इसने उन्हें फोटोग्राफी छोड़ने के लिए मजबूर किया, लेकिन "जेनेसिस" परियोजना ने उन्हें फिर से प्रेरित किया. भारतीय फोटोग्राफर समर जोधा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर उनकी ये तस्वीर साझा की है.
पाठकों से अपील-
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