25/07/2025: आयोग ने खुद को सही बताया, बाकियों ने ग़लत | नीतीश का राजयोग | चीन का भारत पर कसता घेरा, चीनियों को वीजा में ढील | बांग्लादेशी समझकर जिन्हें बाहर धकेला, भारतीय निकले | राशिद का बिल
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
चुनाव आयोग के दावे 'काल्पनिक कथा', बिहार की जमीनी हकीकत भयावह: योगेंद्र यादव
मतदाता सूची में मृतक या विदेशी नहीं हो सकते: मुचुआ ज्ञानेश कुमार
विपक्ष का 'वोट चोरी' का आरोप, राहुल की चुनाव आयोग को सीधी चेतावनी
नीतीश के बिना बिहार की बिसात लगती नहीं
एयर इंडिया हादसा: ब्रिटिश परिवारों को भेजे गए गलत शव, भारत सरकार ने दी सफाई
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर, कई चीजें होंगी सस्ती
चीन की हिमालय पर हरकत: रेल, सड़क और सीमावर्ती गांवों से भारत की चिंता बढ़ी
भारत-चीन वार्ता के बीच पैंगोंग में नया सैन्य निर्माण
सैंकड़ों बंगाली भाषी मुसलमानों को अवैध रूप से बांग्लादेश भेजा
पिछले 10 सालों में सार्वजनिक बैंकों ने 12 लाख करोड़ रुपये के लोन किए राइट-ऑफ: सरकार
मई 2025 में नेट एफडीआई 98.2% घटकर केवल 40 मिलियन डॉलर पर पहुंचा
इंजीनियर राशिद को जेल से संसद लाने के लिए रोज़ाना ₹1.45 लाख का बिल थमाया
एमपी में पुलिस प्रशिक्षुओं को हर रात रामचरितमानस का पाठ करने को कहा गया
बैंक ऋण घोटाला : अनिल अंबानी समूह से जुड़ी 50 कंपनियों पर ईडी के छापे
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल बनने से रोका
"जब जज ने मेरा नाम पुकारा, तो मैं हंसने लगा. लेकिन जब बाकी सभी को दोषी ठहराया गया, तो मैं रोना बंद नहीं कर सका."
यूपी: महिला पुलिस प्रशिक्षुओं का सुविधाओं को लेकर विद्रोह, गोपनीयता और सम्मान पर उठे सवाल
हेग ने तालिबान नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया: आगे क्या?
जब चाहकर भी मोदी को हटा नहीं पाए वाजपेयी
प्रोफेसर स्तर के 80% ओबीसी, 64% दलित और 83% आदिवासी पद खाली
गाज़ा पर भारत की दोहरी नीति: यूएन में मानवीय संकट पर चिंता , लेकिन संघर्षविराम प्रस्ताव पर मतदान से फिर बचा
ऋषभ पंत को फ्रैक्चर, इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ से बाहर; ध्रुव जुरेल संभालेंगे विकेटकीपिंग
धर्मस्थल: सामूहिक कब्रों की जांच में जुटी SIT में 20 और अफसर शामिल, कोर्ट का मीडिया को 8,800 से अधिक रिपोर्ट हटाने का आदेश
चुनाव आयोग के दावे 'काल्पनिक कथा', बिहार की जमीनी हकीकत भयावह: योगेंद्र यादव
योगेंद्र यादव ने कामायनी स्वामी और राहुल शास्त्री के साथ इंडियन एक्सप्रेस में बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग के दावों को 'एक भयावह काल्पनिक कथा' करार दिया है. वे लिखते हैं कि जब आयोग सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रक्रिया की सफलता का हलफनामा दे रहा था, ठीक उसी समय वे पटना में एक जनसुनवाई कर रहे थे, जहां बिहार के 19 जिलों से आए आम लोगों ने अपनी आपबीती सुनाई. यादव के अनुसार, आयोग के आधिकारिक बयानों और लोगों के जमीनी अनुभवों में जमीन-आसमान का अंतर था. आयोग का पक्ष जहां एक काल्पनिक दुनिया की कहानी लगता है, वहीं बिहार की हकीकत एक बुरे सपने जैसी रही है.
यादव ने जनसुनवाई के कुछ दर्दनाक उदाहरण दिए. कटिहार की एक खेतिहर मजदूर फूलकुमारी देवी को फोटोकॉपी और तस्वीर के लिए अपना राशन का चावल बेचना पड़ा और दो दिन की मजदूरी गंवानी पड़ी. सहरसा की 60 वर्षीय सुमित्रा देवी से उनके मृत माता-पिता के कागजात मांगे गए और कहा गया कि अगर जाति या निवास प्रमाण पत्र नहीं दिया तो वह 'सरकार की लोग' नहीं रहेंगी. कई लोगों से पासबुक और जमीन के रिकॉर्ड जैसे अनावश्यक दस्तावेज मांगे गए, जबकि वे पहले से ही मतदाता सूची में थे. यह विचार कि प्रवासी मजदूर "अपने मोबाइल फोन का उपयोग करके ऑनलाइन मोड में फॉर्म भरेंगे," एक क्रूर मजाक जैसा लगता है, क्योंकि एक सर्वेक्षण में पाया गया कि एक तिहाई प्रवासियों ने तो SIR के बारे में सुना भी नहीं था.
लेख में चुनाव आयोग के एक ही दिशा-निर्देश की धज्जियां उड़ते हुए दिखाया गया है, जिसमें कहा गया था कि बीएलओ घर-घर जाकर हर मतदाता को पहले से छपे विवरण वाले फॉर्म दो प्रतियों में देंगे और उन्हें भरने में मदद करेंगे. यादव लिखते हैं कि यह छह झूठों का पुलिंदा साबित हुआ. हकीकत में, बीएलओ हर घर नहीं गए, कई शहरी इलाकों में खाली फॉर्म बांटे गए, हर सदस्य को फॉर्म नहीं मिला, और डुप्लीकेट कॉपी या रसीद देने का तो सवाल ही नहीं था. मतदाताओं को मार्गदर्शन देने के बजाय, वे खुद ही भ्रमित थे.
यादव के अनुसार, इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा यह था कि मतदाताओं की जानकारी या सहमति के बिना ही उनके फॉर्म भर दिए गए. कई लोगों ने पाया कि वेबसाइट पर उनका फॉर्म पहले ही जमा हो चुका है, जबकि उन्होंने उसे देखा तक नहीं था. उनका अनुमान है कि आयोग द्वारा बताए गए 98.01% सफल आवेदनों में से एक चौथाई या अधिक इसी धोखाधड़ी वाली श्रेणी के हो सकते हैं. अंत में वे निष्कर्ष निकालते हैं कि यह अराजकता और नियमों का उल्लंघन प्रक्रिया के डिजाइन में ही निहित था और इसके लिए पूरी तरह से चुनाव आयोग जिम्मेदार है. उन्होंने बताया कि पटना की जनसुनवाई में सर्वसम्मति से इस SIR प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की गई.
मतदाता सूची में मृतक या विदेशी नहीं हो सकते: मुचुआ ज्ञानेश कुमार
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त (मुचुआ) ज्ञानेश कुमार ने चुनाव-संबंधी बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए चुनाव आयोग के कदम का बचाव किया है. अपने कार्यकाल के अधिकांश समय विपक्ष के पक्षपात के आरोपों का सामना कर रहे कुमार ने तीखे सवालों की झड़ी लगा दी. उन्होंने पूछा, "क्या चुनाव आयोग को मृतक मतदाताओं को सूची में रहने देना चाहिए? क्या डुप्लीकेट EPIC (मतदाता पहचान पत्र) वाले लोगों को अनुमति दी जानी चाहिए? क्या विदेशियों को मतदाता सूची में जगह मिलनी चाहिए? आखिर इस पर आपत्ति क्या है?". उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक त्रुटिहीन और पवित्र मतदाता सूची ही एक सफल और मजबूत लोकतंत्र की आधारशिला होती है. उन्होंने कहा कि आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह हर चुनाव के लिए एक फूल-प्रूफ और स्वच्छ मतदाता सूची तैयार करे.
मुचुआ की यह टिप्पणी उस समय आई है जब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने यह आरोप लगाया है कि एसआईआर प्रक्रिया के कारण बिहार में 50 लाख से अधिक मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. विपक्ष के इन आरोपों का जवाब देते हुए कुमार ने कहा कि आयोग फर्जी वोटों से चुनाव प्रक्रिया को गुमराह होने से बचाने के लिए चिंतित है, चाहे वे मृतक मतदाताओं के नाम पर हों, स्थायी रूप से पलायन कर चुके लोगों के, डुप्लीकेट मतदाताओं के या फिर फर्जी और विदेशी मतदाताओं के. उन्होंने कहा, "इसीलिए यह पुनरीक्षण बिहार में शुरू किया गया है और इसे पूरे देश में ले जाया जाएगा." चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार की मतदाता सूची से 56 लाख नाम हटाने के लिए चिह्नित किए गए हैं. इनमें 20 लाख मृतक, 28 लाख स्थायी रूप से दूसरे राज्यों में जा बसे लोग, 7 लाख ऐसे व्यक्ति जिनका नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज है, और 1 लाख ऐसे मतदाता शामिल हैं जिनसे संपर्क नहीं हो सका.
विपक्ष का 'वोट चोरी' का आरोप, राहुल की चुनाव आयोग को सीधी चेतावनी
द टेलीग्राफ के ब्यूरो और पीटीआई की रिपोर्टों के अनुसार, बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर संसद में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है, जिसके चलते लगातार चौथे दिन भी दोनों सदनों की कार्यवाही ठप रही. विपक्ष ने इस प्रक्रिया को "वोट चोरी" और लाखों मतदाताओं, विशेषकर वंचित समुदायों के लोगों को मताधिकार से वंचित करने की एक सुनियोजित साजिश करार दिया है. विपक्षी सांसद हाथों में 'SIR वापस लो' और 'लोकतंत्र पर वार बंद करो' जैसी तख्तियां लेकर दोनों सदनों के वेल में उतर आए और जोरदार नारेबाजी की. इस हंगामे के कारण लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने विपक्षी सांसदों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, "आपका आचरण सदन की गरिमा के अनुरूप नहीं है, यह सड़कों जैसा व्यवहार है. अगर यह जारी रहा तो मुझे निर्णायक कार्रवाई करनी होगी."
गुरुवार को विपक्ष का रुख और भी आक्रामक हो गया, जब राहुल गांधी ने सीधे चुनाव आयोग को निशाने पर लिया. उन्होंने आयोग को एक कड़ा संदेश देते हुए कहा, "चुनाव आयोग भारत के चुनाव आयोग के रूप में काम नहीं कर रहा है. अगर आप सोचते हैं कि आप इससे बच निकलेंगे, तो आप गलत हैं. हम आपके पीछे आएंगे." उन्होंने दावा किया कि उनके पास कर्नाटक की एक सीट पर चुनाव आयोग द्वारा धोखाधड़ी की अनुमति देने का "100 प्रतिशत ठोस सबूत" है, जहां 50, 60 और 65 साल की उम्र के हजारों नए मतदाता जोड़े गए. वहीं, सरकार ने इस मुद्दे पर संसद में किसी भी तरह की चर्चा से इनकार कर दिया है. सरकार का कहना है कि यह चुनाव आयोग का एक अभ्यास है और चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में भी है, इसलिए सरकार इस पर जवाब नहीं दे सकती. इस बीच, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर अपने कदम का बचाव किया है और कहा है कि SIR अभ्यास "अयोग्य व्यक्तियों को मतदाता सूची से हटाकर चुनावों की पवित्रता को बढ़ाता है."
नीतीश के बिना बिहार की बिसात लगती नहीं
चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर चल रहे विवाद के बीच, यह लगभग तय है कि बिहार विधानसभा चुनाव एक बार फिर 74 वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही घूमेगा. भले ही पिछले कुछ समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा हो, लेकिन बिहार की राजनीति में उनकी केंद्रीयता और अहमियत जस की तस बनी हुई है. कुछ सर्वेक्षण भले ही विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार के रूप में पेश कर रहे हों, लेकिन इस राजनीतिक रूप से सजग राज्य के गठबंधनों के नाजुक सामाजिक संतुलन को देखते हुए, सारा ध्यान नीतीश पर ही केंद्रित रहता है. सुभाष गाटाडे ने डेक्कन क्रोनिकल में लिखा है.
बिहार की राजनीति एक ऐसी सच्चाई पर टिकी है, जिसके अनुसार अगर एक भी अहम कड़ी हटा दी जाए तो पूरा गठबंधन ताश के पत्तों की तरह ढह जाता है. पिछले दो दशकों का अनुभव बताता है कि वह अहम कड़ी नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) ही रही है, जिसके समर्थन के बिना न तो भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए और न ही राजद के नेतृत्व वाला महागठबंधन सत्ता में आ सकता है. बिहार में कहा जाता है कि लोग वोट नहीं देते, बल्कि अपनी जाति को वोट देते हैं. यहां पड़ोसी उत्तर प्रदेश की तरह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण काम नहीं करता. नीतीश का तुरुप का इक्का जातीय जनगणना का समर्थन करना और उसे सफलतापूर्वक कराना रहा है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसने उन्हें अपने सामाजिक आधार पर मजबूत पकड़ बनाए रखने में मदद की है.
यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन नीतीश कुमार शायद स्वतंत्र भारत के एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो 20 वर्षों तक एक बड़े राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं, बिना एक बार भी अपनी पार्टी को अपने दम पर बहुमत दिलाए. यह एक नेता के रूप में न केवल उनकी विश्वसनीयता को दर्शाता है, बल्कि सहयोगियों को दूसरे नंबर की भूमिका निभाने के लिए मजबूर करने की उनकी असाधारण क्षमता को भी दिखाता है, चाहे वे इसे पसंद करें या न करें. भाजपा हो या लालू यादव की राजद, सत्ता के लिए दोनों को बारी-बारी से नीतीश कुमार के दरबार में हाजिरी लगानी पड़ी है. इसी प्रक्रिया में नीतीश को बिहार की राजनीति का 'पलटू राम' जैसा अनूठा उपनाम भी मिला, लेकिन इन विवादों से उनके सामाजिक आधार को कोई खास नुकसान नहीं हुआ.
अब जबकि चुनाव नजदीक हैं, भाजपा की दुविधा साफ दिख रही है. गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में संकेत दिया कि बिहार में एनडीए की जीत का मतलब जरूरी नहीं कि नीतीश की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी हो. उन्होंने कहा, "बिहार का सीएम कौन होगा, यह तो समय ही तय करेगा." इस बयान ने उन अटकलों को हवा दे दी है कि भाजपा महाराष्ट्र का 'एकनाथ शिंदे' मॉडल बिहार में दोहराने पर विचार कर रही है, जहां चुनाव किसी और के नेतृत्व में लड़ा जाए और मुख्यमंत्री कोई और बने. हालांकि, भाजपा की त्रासदी यह है कि वह बिहार में अब तक कोई ऐसा सर्वमान्य नेता नहीं खड़ा कर पाई है, जो नीतीश का विकल्प बन सके. इसलिए, प्रासंगिक बने रहने के लिए वह आज भी नीतीश का पल्लू पकड़कर चलने को मजबूर है. पूरा लेख यहां पर.
एयर इंडिया हादसा: ब्रिटिश परिवारों को भेजे गए गलत शव, भारत सरकार ने दी सफाई
'द वायर' की रिपोर्ट है कि जून में गुजरात में हुए एयर इंडिया विमान हादसे में मारे गए ब्रिटिश नागरिकों के परिवारों को कथित तौर पर गलत शव भेजे जाने की खबरों ने हड़कंप मचा दिया है. ब्रिटिश मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ शवों की पहचान गलत हुई और एक ताबूत में एक से अधिक लोगों के अवशेष मिले. ब्रिटेन के पीएम कीर स्टारमर इस मामले को पीएम मोदी के साथ उठाएंगे. इस बीच भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि "सभी शवों की पहचान तय प्रक्रिया और तकनीकी मानकों के अनुसार की गई थी" और ब्रिटिश अधिकारियों के साथ संपर्क में हैं. पीड़ितों के वकील ने कहा कि "कई परिवार सदमे में हैं" और एक शव की पहचान अभी तक नहीं हो सकी है. इस मामले की जांच भारत और ब्रिटेन दोनों में चल रही है.
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर, कई चीजें होंगी सस्ती
भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर आखिरकार आज बकिंघमशायर में ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के आवास पर हस्ताक्षर हो गए. इस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहे. पिछले कुछ वर्षों में 14 दौर की बातचीत के बाद मई में संपन्न हुए इस समझौते के तहत, भारत को अपने लगभग आधे निर्यात पर टैरिफ हटने से लाभ होगा, जबकि ब्रिटेन को ऑटोमोबाइल, व्हिस्की और मशीनरी जैसे उत्पादों पर टैरिफ में कटौती मिलेगी. नई दिल्ली ने कुछ भारतीय पेशेवरों की आवाजाही और बीमा योगदान पर भी रियायतें हासिल की हैं.
चीन की हिमालय पर हरकत: रेल, सड़क और सीमावर्ती गांवों से भारत की चिंता बढ़ी
‘द टेलीग्राफ’ की रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग हिमालय के दुर्गम इलाकों में अपनी रणनीतिक पकड़ को तेजी से मजबूत कर रहा है, जिससे भारत में गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं. चीन, चेंगदू को ल्हासा से जोड़ने वाली एक हाई-स्पीड रेल लाइन पर 40 अरब डॉलर से अधिक का भारी निवेश कर रहा है. वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि इस परियोजना के पूरा होने पर 34 घंटे की यात्रा महज 13 घंटे में सिमट जाएगी. चीन का तर्क है कि ये प्रयास विशुद्ध रूप से आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी के लिए हैं, लेकिन इन विशालकाय ढांचों का पैमाना और उनका दोहरा उपयोग (नागरिक और सैन्य दोनों) नई दिल्ली और दुनिया भर के रक्षा विश्लेषकों के लिए खतरे की घंटी है. येल विश्वविद्यालय के लेक्चरर सुशांत सिंह ने चेतावनी दी है, "एक बार जब आपके पास हाई-स्पीड रेल होती है, तो पर्यटकों को सैनिकों से बदलने के लिए केवल एक आदेश की आवश्यकता होती है."
यह बुनियादी ढांचा सिर्फ रेल तक ही सीमित नहीं है. चीन ने तिब्बत में हजारों मील लंबी सड़कें बनाई हैं, जिनमें से कई भारत की सीमा के समानांतर या बहुत करीब हैं. इसके अलावा, चीन ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बत में यारलुंग ज़ांगबो) पर 167.8 बिलियन डॉलर की लागत से दुनिया का सबसे बड़ा बांध बना रहा है, जो भारतीय सीमा के बेहद करीब है. अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे "टिकता हुआ वाटर बम" कहा है, क्योंकि चीन संघर्ष के समय पानी के बहाव को नियंत्रित कर बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर सकता है. चीन ने इन चिंताओं को यह कहकर खारिज कर दिया है कि यह उसकी संप्रभुता का मामला है.
चीन की रणनीति का एक और पहलू 'जनसांख्यिकीय बदलाव' है. 2018 और 2023 के बीच, चीन ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी आबादी 10.5% बढ़ाई है, और नागरिकों को अरुणाचल प्रदेश के करीब बसाया जा रहा है, जिस पर बीजिंग अपना दावा करता है. भारत ने इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए अपनी परियोजनाओं में तेजी लाई है, जिसमें 13,000 फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी बाई-लेन सुरंग 'सेला टनल' और 'वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम' शामिल हैं. हालांकि, भारतीय परियोजनाएं चीन के विशाल प्रयासों की तुलना में पैमाने और संख्या में बहुत छोटी हैं. हाल ही में दोनों देशों ने तनाव कम करने के कुछ संकेत दिए हैं, जैसे भारत द्वारा चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा फिर से शुरू करना, लेकिन सीमा पर चीन का अनवरत निर्माण कार्य तनाव को लगातार बढ़ा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षेत्र एक ऐसे "मोड़" पर है, जहाँ गलतफहमी या गलत आकलन एक बड़ी समस्या बन सकता है.
भारत-चीन वार्ता के बीच पैंगोंग में नया सैन्य निर्माण
भारत और चीन ने बुधवार को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिति की समीक्षा की और विशेष प्रतिनिधियों की अगली दौर की वार्ता के लिए जमीन तैयार की. इसी के साथ, द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के प्रयासों के तहत, भारत ने पांच साल के अंतराल के बाद गुरुवार से चीनी नागरिकों को पर्यटक वीजा फिर से जारी करने की घोषणा की है. लेकिन इन सकारात्मक कदमों के बीच, भू-खुफिया शोधकर्ता डेमियन साइमन ने चिंताजनक जानकारी दी है. ओपन-सोर्स सैटेलाइट इमेजरी के विश्लेषण के आधार पर साइमन का कहना है कि चीन "पैंगोंग झील के पूर्वी किनारे पर एक सैन्य-संबंधित परिसर का निर्माण लगभग पूरा कर रहा है." उन्होंने आशंका जताई है कि यह स्थल भविष्य में एक SAM (सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल) पोजीशन या किसी अन्य हथियार-संबंधी सुविधा में विकसित हो सकता है.
सैंकड़ों बंगाली भाषी मुसलमानों को अवैध रूप से बांग्लादेश भेजा
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय अधिकारियों ने सैंकड़ों बंगाली भाषी मुसलमानों को अवैध रूप से बांग्लादेश भेज दिया है. उसका आरोप है कि हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार राजनीतिक लाभ के लिए मुसलमानों को निशाना बना रही है. बांग्लादेशी अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि 7 मई से 15 जून के बीच कम से कम 1,500 मुस्लिम पुरुष, महिलाएं और बच्चे सीमा के पार भेजे गए, जिनमें से कुछ के साथ मारपीट की गई और उनके भारतीय पहचान पत्र नष्ट कर दिए गए. भारतीय सरकार ने अवैध अप्रवासियों में से कितने लोगों को बांग्लादेश भेजा है, इस बारे में कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है. ह्यूमन राइट्स वॉच की एशिया निदेशक इलेन पीयरसन ने कहा, "भारत की सत्ताधारी भाजपा बंगाली मुसलमानों को मनमाने तरीके से देश से बाहर निकाल कर भेदभाव को बढ़ावा दे रही है, जिसमें भारतीय नागरिक भी शामिल हैं." उन्होंने कहा कि सरकार के ये कदम दर्शाते हैं कि वह मुसलमानों के खिलाफ व्यापक भेदभावपूर्ण नीतियों को आगे बढ़ा रही है. दिल्ली और गुरुग्राम में रहने वाले पश्चिम बंगाल और असम के कई मुस्लिम लोगों ने बताया कि पुलिस ने उन्हें या उनके रिश्तेदारों को बिना दस्तावेजों के बांग्लादेश से आए अप्रवासी होने के संदेह में पकड़ा, जबकि उनके पास सरकारी दस्तावेज थे. “द वायर” के अलीशान ज़ाफ़री और श्रुति शर्मा गुरुग्राम में असम मूल के मुसलमानों की झुग्गी बस्ती में गए तो देखा कि वीरानी छाई हुई है. वहां सिर्फ कुछ महिलाएं थीं, जो अपने पतियों और दूसरे पुरुष संबंधियों, जो डिटेंशन सेंटर में रखे थे, से मुलाक़ात करने के लिए जाने वाली थीं. कई लोग अधिकारियों से डरकर असम भाग गए थे. एक वकील ने कहा कि पुलिस द्वारा बिना दस्तावेज़ वाले अप्रवासियों की पहचान के लिए कोई स्पष्ट मानदंड नहीं है.
पिछले 10 सालों में सार्वजनिक बैंकों ने 12 लाख करोड़ रुपये के लोन किए राइट-ऑफ: सरकार
'द वायर' की रिपोर्ट है कि वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में बताया कि 2015-16 से 2024-25 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने कुल ₹12.08 लाख करोड़ के लोन राइट-ऑफ किए हैं. इनमें अकेले पिछले पांच वर्षों (FY21-FY25) में ₹5.82 लाख करोड़ से अधिक के लोन शामिल हैं. सरकार ने स्पष्ट किया कि "राइट-ऑफ" का मतलब कर्ज माफ करना नहीं है, बल्कि यह एक तकनीकी प्रक्रिया है. बकायादारों की देनदारी बनी रहती है और रिकवरी की कार्रवाई चलती रहती है. मार्च 2025 तक ₹1.62 लाख करोड़ के लोन वाले 1,629 उधारकर्ता "जानबूझकर चूक करने वाले" घोषित किए गए हैं. इनके खिलाफ SARFAESI, IBC और मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत कार्रवाई जारी है. इस दौरान PSBs ने 1.5 लाख से ज़्यादा लोगों की भर्ती की और 48,570 नई भर्तियों की प्रक्रिया चल रही है.
मई 2025 में नेट एफडीआई 98.2% घटकर केवल 40 मिलियन डॉलर पर पहुंचा : भारत में विदेशी निवेश को लेकर एक चिंताजनक आंकड़ा सामने आया है. 'बिजनेस स्टैंडर्ड' की रिपोर्ट है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, मई 2025 में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Net FDI) में 98.2% की भारी गिरावट दर्ज की गई है. इस महीने कुल नेट FDI केवल 40 मिलियन डॉलर रहा, जबकि मई 2024 में यह आंकड़ा 2.2 बिलियन डॉलर था. नेट एफडीआई का मतलब है – देश में आए कुल निवेश में से बाहर गए निवेश, जैसे कि विदेशी निवेशकों द्वारा अपनी हिस्सेदारी बेचना या भारत से अन्य देशों में हुआ निवेश, को घटा दिया जाए. वित्तीय विश्लेषकों का मानना है कि यह गिरावट निवेशकों के मन में भारत को लेकर अस्थिरता या अनिश्चितता के संकेत देती है. चाहे वह नीति से जुड़ी हो, भू-राजनीतिक तनावों से या वैश्विक आर्थिक मंदी की आहट से. साथ ही, यह भी दर्शाता है कि भारतीय कंपनियां अब अन्य देशों में निवेश के लिए अधिक उत्सुक हैं, जो अपने आप में एक दिलचस्प रुझान है.
मोदी सरकार ने 2023-24 में ₹99,000 करोड़ का राजस्व छोड़ा : 'बिजनेस वर्ल्ड' की रिपोर्ट है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान कॉरपोरेट टैक्स में दी गई छूट के चलते ₹99,000 करोड़ का संभावित राजस्व नहीं वसूला. यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर के दौरान दी. पंकज चौधरी ने बताया कि ये छूट विभिन्न कर प्रोत्साहनों, कटौतियों और रियायतों के तहत दी गईं, जिनका लाभ कॉरपोरेट कंपनियों को मिला.
इस तरह की छूटों को लेकर विपक्ष और कई अर्थशास्त्री सवाल उठाते रहे हैं कि इसका लाभ बड़ी कंपनियों को असमान रूप से मिलता है, जबकि सरकार की कर-संग्रहण क्षमता और सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए संसाधन सीमित हो जाते हैं. एक तरफ जहां सरकार महंगाई, बेरोज़गारी और सामाजिक योजनाओं के लिए संसाधनों की कमी का हवाला देती है, वहीं इतनी बड़ी मात्रा में कॉरपोरेट टैक्स में छूट देना आम लोगों के हितों के साथ विरोधाभास पैदा करता है.
किन कारणों से दी गई छूट?
विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) में निवेश पर टैक्स लाभ
स्टार्टअप्स और नई मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के लिए टैक्स रियायतें
अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर खर्च के लिए टैक्स कटौतियाँ
कुछ उद्योगों को दी गई सेक्टोरल छूटें
इंजीनियर राशिद को जेल से संसद लाने के लिए रोज़ाना ₹1.45 लाख का बिल थमाया
जम्मू-कश्मीर से नव-निर्वाचित सांसद और विचाराधीन कैदी इंजीनियर राशिद से बजट सत्र के दौरान संसद में उपस्थिति के लिए हर दिन करीब ₹1.45 लाख का बिल थमाया गया. 'इंडियन एक्सप्रेस' के पत्रकार प्रवेश लामा की रिपोर्ट के अनुसार, यह जानकारी उनके परिवार और पार्टी 'आवामी इत्तेहाद पार्टी' (AIP) के सदस्यों ने दी है. दिल्ली की एक अदालत ने मार्च में संसद सत्र के दौरान उन्हें तिहाड़ जेल से बाहर जाकर संसद में भाग लेने की अनुमति दी थी, लेकिन शर्त रखी थी कि वे इस दौरान होने वाला परिवहन और सुरक्षा खर्च खुद उठाएंगे.
AIP के प्रवक्ता ने सवाल उठाया कि जब इंजीनियर राशिद को इससे पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए रिहा किया गया था, तब इस तरह का कोई शुल्क नहीं लिया गया था. उनके बेटे अबरार राशिद ने भी बताया कि आमतौर पर कैदियों को जब अदालत में पेशी या मेडिकल जांच के लिए ले जाया जाता है, तब भी उन पर कोई खर्च नहीं डाला जाता.
रिपोर्ट के मुताबिक, इंजीनियर राशिद के छह दिनों की संसद उपस्थिति के लिए कुल खर्च करीब ₹8.7 लाख हुआ. पार्टी और परिजनों का कहना है कि यह व्यवहार पक्षपातपूर्ण और लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ है. इस मुद्दे ने सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया में समानता को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
एमपी में पुलिस प्रशिक्षुओं को हर रात रामचरितमानस का पाठ करने को कहा गया
'रेडिफ' की रिपोर्ट है कि मध्य प्रदेश में पुलिस ट्रेनिंग स्कूलों में प्रशिक्षण ले रहे नए कांस्टेबलों को हर रात सोने से पहले सामूहिक रूप से रामचरितमानस के एक या दो अध्याय पढ़ने का निर्देश दिया गया है. 23 जुलाई से राज्य के आठ पुलिस ट्रेनिंग स्कूलों में नौ महीने का आधारभूत प्रशिक्षण शुरू हुआ है. प्रशिक्षण शुरू होने से पहले, कई नव-नियुक्त कांस्टेबलों ने यह अनुरोध किया था कि उन्हें उनके घर के पास वाले ट्रेनिंग सेंटर में भेजा जाए. इसके जवाब में एडीजी (प्रशिक्षण) राजा बाबू सिंह ने सभी ट्रेनिंग स्कूलों के अधीक्षकों और नए रंगरूटों से वर्चुअली संवाद किया. उन्होंने राम के वनवास का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर भगवान राम 14 वर्ष वन में रह सकते हैं, तो ये प्रशिक्षु 9 महीने प्रशिक्षण में क्यों नहीं रह सकते. उन्होंने रिक्रूट्स से आग्रह किया कि वे स्थानांतरण की बजाय अपने प्रशिक्षण पर ध्यान दें. एडीजी सिंह ने कहा कि यदि संभव हो, तो हर रात सामूहिक रूप से रामचरितमानस का पाठ करें, क्योंकि इसमें आदर्श जीवन मूल्य सिखाए गए हैं और यह ज्ञान का खजाना है.
भोपाल के भौरी ट्रेनिंग स्कूल में प्रशिक्षण ले रहे रवि कुमार तिवारी ने कहा कि वे इस पहल से खुश हैं और रामचरितमानस के पाठ से उन्हें प्रेरणा मिलेगी. “एडीजी सर ने कहा कि रामजी 14 साल वन में रहे, तो हम 9 महीने अपने देश, राज्य, माता-पिता और खुद की उन्नति के लिए क्यों नहीं रह सकते,” उन्होंने कहा.
बैंक ऋण घोटाला : अनिल अंबानी समूह से जुड़ी 50 कंपनियों पर ईडी के छापे
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुरुवार को रिलायंस अनिल अंबानी समूह से जुड़े लगभग 35 परिसरों पर मनी लॉन्ड्रिंग जांच के तहत छापे मारे. ईडी ने मुंबई सहित विभिन्न स्थानों पर समूह से जुड़ी 50 कंपनियों और 25 से अधिक व्यक्तियों के खिलाफ छापेमारी की. यह कार्रवाई वित्तीय घोटाले और धोखाधड़ी से जुड़ी है, जिसमें लगभग 3,000 करोड़ रुपये के गैरकानूनी ऋण के आरोप हैं, जो यस बैंक ने रिलायंस समूह की कंपनियों को 2017-2019 के बीच दिए थे. इस मामले में यस बैंक के पूर्व अध्यक्ष राणा कपूर सहित बैंक अधिकारियों पर रिश्वतखोरी का संदेह भी है. प्रारंभिक जांच में पता चला है कि यह एक सुनियोजित साजिश थी जिसके तहत सार्वजनिक धन को धोखाधड़ी करके बैंक, निवेशकों, शेयरधारकों को ठगा गया. इस छापामारी में समूह की कई कंपनियों के कार्यालयों और वरिष्ठ अधिकारियों के परिसरों की तलाशी ली गई, लेकिन अनिल अंबानी के निजी आवास में कोई छापा नहीं मारा गया. जांच एजेंसी का दावा है कि ऋण मंजूर कराने से पूर्व बैंक अधिकारियों को रिश्वत दी गई थी, साथ ही ऋण मंजूरी बैंक के नियमों के विरुद्ध थी.
इस बीच, अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप ने यस बैंक और रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों को लेकर एक श्वेतपत्र जारी किया है. गुरुवार को जारी स्पष्टीकरण में ग्रुप ने कहा कि प्रवर्तन संबंधी कार्रवाई उन लेनदेन से जुड़ी है, जो आठ साल से भी अधिक पुराने हैं. ग्रुप ने यह भी कहा कि रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड द्वारा योग्यता के आधार पर, उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए और 30 से अधिक सदस्यों वाली क्रेडिट कमेटी की मंजूरी के बाद ऋण स्वीकृत किए गए थे. ये ऋण पूरी तरह सुरक्षित थे और ब्याज सहित पूरी तरह चुकाए जा चुके हैं. शेष राशि शून्य है.
मुंबई ब्लास्ट केस
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल बनने से रोका
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2006 के 7/11 मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाकों के मामले में बंबई हाईकोर्ट द्वारा सभी 12 दोषियों को बरी किए जाने के फैसले पर आंशिक रोक लगाई है. यह रोक विशेष रूप से इस फैसले को अन्य मामलों में न्यायिक मिसाल के तौर पर इस्तेमाल करने पर लगाई गई है. हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि दोषमुक्त हुए लोगों को दोबारा जेल भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है.
क्या कहा राज्य सरकार ने? महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ के सामने पेश होकर आग्रह किया कि हाईकोर्ट का यह फैसला, जो मकोका (MCOCA) मामलों में कानूनी व्याख्या करता है, अन्य लंबित मामलों को प्रभावित कर सकता है. इसलिए इसे अंतरिम रूप से रोका जाए. उन्होंने कहा, “हम इन लोगों को फिर से जेल भेजने के लिए रोक नहीं मांग रहे हैं. हमारी चिंता उन कानूनी निष्कर्षों को लेकर है, जिनका असर मकोका के अन्य मामलों पर पड़ेगा.”
सुप्रीम कोर्ट का आदेश शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, “राज्य की इस दलील को ध्यान में रखते हुए, हम यह निर्देश देते हैं कि बंबई हाईकोर्ट का यह फैसला किसी अन्य लंबित ट्रायल में मिसाल के रूप में न इस्तेमाल किया जाए.” इसका मतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्तों की दोषमुक्ति को नहीं रोका, बल्कि केवल उनके पक्ष में आए फैसले को कानूनी मिसाल बनने से रोका है. बता दें कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की सात लोकल ट्रेनों में 6:23 से 6:29 के बीच सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे. इन हमलों में 187 लोगों की मौत और 824 लोग घायल हुए थे. साल 2025 में एक विशेष मकोका अदालत ने इस मामले में 12 लोगों को दोषी ठहराया था और इनमें से पांच को फांसी और सात को आजन्म कारावास की सजा दी गई थी. लेकिन जुलाई 2025 में, बंबई हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि प्रॉसिक्यूशन (अभियोजन) यह साबित करने में विफल रहा कि ये लोग दोषी थे. हाईकोर्ट ने सभी 12 को बरी कर दिया.
आगे क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए दोषमुक्त लोगों को नोटिस जारी किया है. आगे इस मामले में विस्तृत सुनवाई होगी. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि कुछ आरोपियों के पाकिस्तान से जुड़े होने की बात सामने आई है. राज्य सरकार ने कहा कि वे लोग भारत से भाग गए थे और उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सिर्फ अन्य मकोका मामलों में मिसाल बनने से रोका है. दोषमुक्त अभियुक्तों को फिलहाल जेल लौटने की जरूरत नहीं है. मामले में आगे सुनवाई जारी रहेगी. यह फैसला देश की आतंकवाद से संबंधित मामलों की न्यायिक प्रक्रिया, मकोका कानून की व्याख्या और न्याय की प्रक्रिया को लेकर महत्वपूर्ण कानूनी पड़ाव माना जा रहा है.
सुकन्या शांता की रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, "हमें सूचित किया गया है कि सभी प्रतिवादी रिहा हो चुके हैं और उन्हें वापस जेल में लाने का कोई सवाल ही नहीं है." हाई कोर्ट के फैसले के मिसाल बनने वाले पहलू पर रोक लगाने और बरी करने के फैसले में हस्तक्षेप न करने का मतलब है कि यातना के अन्य पीड़ित अपनी रिहाई की मांग वाली किसी भी अपील में फिलहाल बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले का हवाला नहीं दे पाएंगे. यह स्थिति कम से कम तब तक बनी रहेगी जब तक सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र एटीएस द्वारा दायर मुख्य अपील पर फैसला नहीं सुना देता.
"जब जज ने मेरा नाम पुकारा, तो मैं हंसने लगा. लेकिन जब बाकी सभी को दोषी ठहराया गया, तो मैं रोना बंद नहीं कर सका."

आर्टिकल 14 के लिए प्रिया रमानी की एक विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार, 19 साल के लंबे इंतजार के बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2006 के मुंबई ट्रेन बम धमाकों के मामले में सभी 11 जीवित आरोपियों को बरी कर दिया, जिससे न्याय की एक ऐसी कहानी सामने आई जिसमें निराशा, दृढ़ता और अंततः राहत शामिल है. यह फैसला स्कूल शिक्षक अब्दुल वाहिद शेख के लिए एक विशेष और भावनात्मक क्षण था, जिन्हें 2015 में एक विशेष MCOCA अदालत ने अकेले बरी किया था, जबकि उनके 12 साथियों को दोषी ठहराया गया था, जिनमें से पांच को मौत की सजा सुनाई गई थी. वाहिद ने उस दिन को याद करते हुए बताया, "जब जज ने मेरा नाम पुकारा, तो मैं हंसने लगा. लेकिन जब बाकी सभी को दोषी ठहराया गया, तो मैं रोना बंद नहीं कर सका." पिछले 10 वर्षों से, वाहिद ने अपने साथियों की बेगुनाही साबित करने को ही अपने जीवन का एकमात्र एजेंडा बना लिया था.
हाई कोर्ट ने अपने 671 पन्नों के ऐतिहासिक फैसले में अभियोजन पक्ष के मामले को तार-तार कर दिया. अदालत ने पाया कि महाराष्ट्र एटीएस की जांच गंभीर खामियों से भरी थी. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष सबूतों के तीनों स्तंभों - चश्मदीद गवाह, बरामदगी और इकबालिया बयान - पर बुरी तरह विफल रहा. फैसले में हिरासत में दी गई यातनाओं, लगभग एक जैसे और गढ़े हुए इकबालिया बयानों और महत्वपूर्ण कॉल रिकॉर्ड को नष्ट करने जैसी गंभीर चूकों को रेखांकित किया गया. अदालत ने एक तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, "वास्तविक अपराधियों को दंडित करना कानून के शासन के लिए आवश्यक है. लेकिन निर्दोष लोगों को पकड़कर मामला सुलझाने का झूठा दिखावा करना एक भ्रामक समापन है, जो जनता के विश्वास को कमजोर करता है जबकि असली खतरा बाहर घूमता रहता है."
अपनी रिहाई के बाद के दशक में, वाहिद चुप नहीं बैठे. उन्होंने 'इनोसेंस नेटवर्क' की स्थापना की, जो आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसे लोगों की लड़ाई लड़ता है. उन्होंने 'Acquit Undertrial' नाम से एक यूट्यूब चैनल शुरू किया और अपनी जेल की कहानी पर 'बेगुनाह कैदी' नामक एक किताब भी लिखी, जिस पर बाद में 'हीमोलिम्फ' नामक एक फीचर फिल्म बनी. अब, जब उनके सभी साथी बरी हो गए हैं, वाहिद का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है. उन्होंने अपने एक वीडियो में सवाल उठाया, "वे युवावस्था में जेल गए और बूढ़े होकर बाहर आए. अदालत उनके खोए हुए वर्षों की भरपाई कैसे करेगी?". यह सवाल उस न्याय प्रणाली पर एक गहरा दाग छोड़ जाता है, जिसने इन लोगों के जीवन के दो दशक छीन लिए.
यूपी: महिला पुलिस प्रशिक्षुओं का सुविधाओं को लेकर विद्रोह, गोपनीयता और सम्मान पर उठे सवाल
द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र गोरखपुर में 26वीं प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) बटालियन में नवनियुक्त महिला कांस्टेबलों के एक अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन ने राज्य में पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. बुधवार को, लगभग 600 महिला प्रशिक्षुओं ने, जिन्होंने हाल ही में अपना नौ महीने का प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया था, घटिया रहन-सहन, गोपनीयता के घोर अभाव और वरिष्ठ प्रशिक्षकों द्वारा कथित दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज बुलंद की. इस विरोध प्रदर्शन के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए, जिससे राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया.
वायरल क्लिप में, परेशान महिला प्रशिक्षु यह कहते हुए सुनी जा सकती हैं, "अगर पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी, तो हमें यहां बुलाया ही क्यों गया?". उन्होंने निजी स्नान सुविधाओं की कमी और बाथरूम के गलियारों के पास सीसीटीवी कैमरे लगे होने के गंभीर आरोप लगाए, जिसने सार्वजनिक चिंता को और बढ़ा दिया. हालांकि, अधिकारियों ने बाद में कैमरों के आरोप से इनकार किया. प्रशिक्षुओं ने यह भी आरोप लगाया कि प्रशिक्षक उनके साथ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं और उनकी शिकायतों को वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है. इस घटना पर त्वरित कार्रवाई करते हुए, उत्तर प्रदेश पुलिस ने कमांडेंट आनंद कुमार और फिजिकल ट्रेनिंग इंस्पेक्टर संजय राय को प्रशिक्षुओं के साथ "अनुचित भाषा" का उपयोग करने के आरोप में निलंबित कर दिया. आईजी प्रीतिंदर सिंह ने मीडिया को बताया कि बिजली में तकनीकी खराबी के कारण पानी की आपूर्ति बाधित हुई थी, लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि महिला प्रशिक्षुओं की गरिमा और सुरक्षा विभाग की सर्वोच्च प्राथमिकता है.
हेग ने तालिबान नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया: आगे क्या?

द कन्वर्सेशन में यवोन ब्रेटवीजर फारिया लिखती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने अफगानिस्तान में तालिबान नेतृत्व के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करके एक ऐतिहासिक कदम उठाया है. यह पहली बार है जब अदालत ने विशेष रूप से "लैंगिक आधार पर उत्पीड़न" को मानवता के खिलाफ अपराध मानते हुए वारंट जारी किए हैं. अदालत के प्री-ट्रायल चैंबर II ने कहा है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा और मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हकीम हक्कानी इस अपराध के लिए जिम्मेदार हैं. इन वारंटों को "अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की एक महत्वपूर्ण पुष्टि और स्वीकृति" के रूप में सराहा जा रहा है.
अगस्त 2021 में सत्ता में लौटने के बाद से, तालिबान ने अफगान लोगों, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों पर कठोर नियम और प्रतिबंध लगाए हैं. महिलाओं के सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और 12 साल की उम्र के बाद लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक है. उन्हें शिक्षा, निजता, पारिवारिक जीवन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों से गंभीर रूप से वंचित कर दिया गया है. वारंट में यह भी कहा गया है कि तालिबान उन लोगों को भी सता रहा है जो लिंग, लिंग पहचान या अभिव्यक्ति के बारे में उनकी वैचारिक अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हैं. यह पहली बार है जब किसी अंतरराष्ट्रीय अदालत ने LGBTQIA+ पीड़ितों के खिलाफ मानवता के अपराधों की पुष्टि की है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यौन अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.
हालांकि, सवाल यह है कि क्या ये वारंट अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की दुर्दशा में सुधार ला पाएंगे, यह देखते हुए कि तालिबान अदालत या उसके अधिकार क्षेत्र को मान्यता नहीं देता है. तालिबान ने इन आरोपों से इनकार किया है और वारंट को "शत्रुता का स्पष्ट कार्य" बताया है. फिर भी, ये वारंट केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं. अफगानिस्तान ने 2003 में रोम संविधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका अर्थ है कि वह कानूनी रूप से इन अपराधों के अपराधियों पर मुकदमा चलाने और अदालत के साथ सहयोग करने के लिए बाध्य है. भले ही तत्काल गिरफ्तारी और मुकदमा चलाना मुश्किल हो, लेकिन ये वारंट तालिबान नेतृत्व पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाते हैं और अफगान महिलाओं के लिए न्याय की दिशा में एक उम्मीद भरा कदम हैं.
रूस में विमान दुर्घटना: सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, रूस के सुदूर-पूर्वी अमूर क्षेत्र में एक सोवियत-युग का एंटोनोव एन-24 यात्री विमान एक पहाड़ी ढलान पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. विमान में सवार बच्चों सहित लगभग 50 लोगों के मारे जाने की आशंका है. बचाव दल को हवाई निरीक्षण में कोई भी जीवित व्यक्ति नहीं दिखा.
किताब
जब चाहकर भी मोदी को हटा नहीं पाए वाजपेयी
“द वायर” में लेखक अभिषेक चौधरी ने अपनी पुस्तक "Believer's Dilemma: Vajpayee and the Hindu Right's Path to Power, 1977–2018" के मुख्य अंश दिए हैं, जो 2002 के गुजरात दंगों और उसके बाद के हालात पर रोशनी डालते हैं. खासकर, इस बात पर कि अटल बिहारी वाजपेयी चाहकर भी राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को हटा नहीं पाए. वह मोदी की जगह काशीराम राणा को गुजरात भेजना चाहते थे, मगर मुख्य अंश इस प्रकार हैं-
मार्च 2002 के उत्तरार्ध में, गुजरात में दंगे जारी थे और हर दिन लगभग आधा दर्जन लोगों की जान जा रही थी. अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर नरेंद्र मोदी को, कभी-कभी देर रात, फोन करते, जानकारी लेते, सलाह देते और फटकार भी लगाते. लेकिन उनकी नाराजगी व्यक्तिगत नहीं थी. वे जानते थे कि यह विफलता मोदी की जानबूझकर की गई प्रशासनिक निष्क्रियता और संघ परिवार की योजनाबद्ध प्रतिशोध का मिश्रण थी. उन्हें मोदी पर इसलिए गुस्सा था कि उन्होंने गुजरात में माहौल को और अधिक ध्रुवीकृत करके अपनी स्थिति मजबूत की, जबकि वाजपेयी इस जटिल कार्यप्रणाली से भलीभांति परिचित थे. यदि मोदी ने स्थानीय भाजपा, विहिप, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को गुस्सा निकालने की छूट न दी होती तो वे अपने साथियों में अलोकप्रिय हो जाते.
इस बीच, एनडीए के 23 घटक दलों में से आठ, विपक्ष, मीडिया और नागरिक समाज, सबने मोदी को हटाने की सार्वजनिक मांग की. वाजपेयी ने विचार किया कि मोदी को दिल्ली बुला लिया जाए, शायद उनके साथी गुजराती और उस समय के कपड़ा मंत्री काशीराम राणा के साथ अदला-बदली करके. वही राणा जिनका 'मांस खाने वाला' कहकर मोदी ने कुछ समय पहले ही दिल्ली के पत्रकारों के सामने मज़ाक उड़ाया था.
इसी दौरान हर सप्ताह प्रधानमंत्री निवास 7, रेसकोर्स रोड पर वाजपेयी, आडवाणी, कुशाभाऊ ठाकरे और मदन दास देवी की चार सदस्यीय टीम इस विषय पर चर्चा करती थी. बाकी तीनों सदस्य मोदी को हटाने के पक्ष में नहीं थे. उनके मुताबिक पार्टी पहले ही सभी प्रमुख राज्यों के चुनाव हार चुकी थी और गुजरात आखिरी किला बचा था. यदि मोदी को हटाया जाता तो इसका संदेश स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच गलत जाता और स्थिति और उलझ जाती. उनके अनुसार बीच का रास्ता यह हो सकता था कि जल्दी चुनाव कराए जाएं; क्योंकि हिंदू एकजुटता में उभार दिख रहा था, जिससे पार्टी को बड़ा फायदा हो सकता था. वाजपेयी फिर भी सतर्क रहना चाहते थे और मोदी को बदलना चाहते थे.
अप्रैल 2002 में प्रधानमंत्री वाजपेयी को विदेश यात्रा पर जाना था. आशंका थी कि कहीं उन्हें विदेश में जिम्मेदारियों से भागने के लिए सवालों का सामना न करना पड़े, इसलिए उन्होंने दंगा प्रभावित गुजरात का दौरा किया. वाजपेयी ने मोदी को बुलाकर पुनर्वास के कार्यों में धीमी गति का कारण समझाने को कहा. 27 मार्च को मोदी ने 7, रेसकोर्स रोड पर पावरपॉइंट प्रस्तुति दी, उस समय वाजपेयी खिन्न बैठे थे.
गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह मुद्दा निर्णायक स्तर पर पहुंचा. विमान में ही आडवाणी ने तय किया कि मोदी से औपचारिक-अनौपचारिक तौर पर त्यागपत्र देने का नाटक कराया जाए. कार्यकारिणी की बैठक में मोदी ने अपना पक्ष बड़े भावुक अंदाज में रखा और अंत में त्यागपत्र देने का प्रस्ताव रखा. अचानक ही करीब 175 उपस्थित सदस्यों ने मोदी के पक्ष में शोर मचाना शुरू कर दिया. यह एक प्रायोजित कार्यक्रम था, जिसको देखते हुए मोदी के विरोधियों ने भी समर्थन देना शुरू कर दिया. वाजपेयी इस अप्रत्याशित समर्थन को देख हैरान रह गए. भाजपा अध्यक्ष जना कृष्णमूर्ति ने घोषणा की कि अंतिम फैसला प्रधानमंत्री के पणजी रैली से लौटकर आने के बाद रात 8 बजे लिया जाएगा. धीरे-धीरे वाजपेयी की शक्ति क्षीण होने लगी और अंततः उन्हें दबाव में आकर पार्टी की लाइन के साथ चलना पड़ा.
आरक्षण
प्रोफेसर स्तर के 80% ओबीसी, 64% दलित और 83% आदिवासी पद खाली
'द वायर' की रिपोर्ट है कि भारत सरकार ने स्वीकार किया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षित वर्गों के लिए तय पदों को भरने में भारी पिछड़ापन है, जो संसद द्वारा पारित 2006 के अधिनियम के तहत अनिवार्य है. सबसे बड़ा अंतर प्रोफेसर स्तर पर देखने को मिलता है, जहां सामान्य वर्ग से सबसे अधिक नियुक्तियां हुई हैं, जबकि OBC, दलित और आदिवासी समुदायों के लिए निर्धारित पद बुरी तरह से खाली पड़े हैं.
उदाहरण के लिए OBC वर्ग के लिए 423 प्रोफेसर पद स्वीकृत थे, जिनमें से सिर्फ 84 भरे गए – यानी 80% पद खाली हैं. दलित समुदाय के लिए निर्धारित 308 पदों में से सिर्फ 111 पद भरे गए – यानी 64% पद खाली हैं. आदिवासी समुदाय के लिए 144 पद भरे जाने थे, पर केवल 24 पर ही नियुक्ति हुई – यानी 83% पद खाली हैं. 30 जून, 2025 तक सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 18,951 स्वीकृत पद थे, जिनमें से 14,062 भरे गए थे. यानी अब भी 25% पद खाली हैं.
विशेष बात यह है कि सामान्य वर्ग में केवल 15% पद खाली हैं, लेकिन OBC वर्ग के लिए तय 3,688 पदों में से केवल 2,197 भरे गए – यानी 40% पद खाली. दलित समुदाय के 2,310 में से 1,599 पद भरे गए – यानी 30% पद खाली. आदिवासी वर्ग के 1,155 पदों में से केवल 727 भरे गए – यानी 37% पद खाली.
राज्यसभा में शिक्षा राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने यह आंकड़े पेश किए. यह जानकारी राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज कुमार झा के एक सवाल के जवाब में दी गई, जिसमें उन्होंने पिछले पांच वर्षों में नियुक्तियों और रिक्तियों का ब्यौरा मांगा था.
गाज़ा पर भारत की दोहरी नीति: यूएन में मानवीय संकट पर चिंता , लेकिन संघर्षविराम प्रस्ताव पर मतदान से फिर बचा
भारत ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक अहम बहस में गाज़ा पट्टी में चल रहे संघर्ष पर चिंता जताते हुए युद्धविराम की ज़रूरत को दोहराया. भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने कहा कि इज़राइल-गाज़ा युद्ध में "थोड़े-थोड़े समय के लिए हो रहे विराम" वहां की भीषण मानवीय त्रासदी से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. पी. हरीश ने गाज़ा के हालात को रेखांकित करते हुए कहा कि वहां के लोग हर दिन भोजन और ईंधन की भारी कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और शिक्षा तक पहुंच के अभाव जैसी गम्भीर समस्याओं से जूझ रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत की फिलिस्तीनी मुद्दे के प्रति प्रतिबद्धता "अटल" है और यह आशा जताई कि आने वाला संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन इस दिशा में ठोस कदम उठाएगा. गौरतलब है कि भारत ने महज एक महीने पहले संयुक्त राष्ट्र में लाए गए एक प्रस्ताव से पुनः दूरी बना ली, जिसमें गाज़ा में स्पष्ट और पूर्ण संघर्षविराम की मांग की गई थी. भारत ने उस प्रस्ताव पर न तो समर्थन दिया और न ही विरोध बल्कि मतदान से परहेज़ किया.
भारत की इस नीति को लेकर विशेषज्ञ और मानवाधिकार समूह सवाल उठा रहे हैं कि एक तरफ भारत गाज़ा में मानवीय संकट को गंभीर बता रहा है, और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ठोस राजनीतिक कार्रवाई से पीछे हट रहा है खासकर तब, जब इज़राइल पर वैश्विक आलोचना बढ़ रही है.
ऋषभ पंत को फ्रैक्चर, इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज़ से बाहर; ध्रुव जुरेल संभालेंगे विकेटकीपिंग
मैनचेस्टर से एक बड़ी खबर सामने आई है. भारतीय टीम के स्टार विकेटकीपर-बल्लेबाज़ ऋषभ पंत इंग्लैंड के खिलाफ चल रही टेस्ट सीरीज़ के बाकी मैचों से बाहर हो गए हैं. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने पुष्टि की है कि पंत के दाहिने पैर में फ्रैक्चर हुआ है, जो उन्हें चौथे टेस्ट के पहले दिन बल्लेबाज़ी के दौरान लगा था. बीसीसीआई ने बताया कि पंत अब शेष टेस्ट में विकेटकीपिंग नहीं करेंगे और यदि ज़रूरत पड़ी तो बल्लेबाज़ी करेंगे. उनकी जगह युवा खिलाड़ी ध्रुव जुरेल विकेटकीपिंग की ज़िम्मेदारी निभाएंगे. चोट की बात करें तो पंत के दाहिने पैर में मेटाटार्सल बोन (पैर की उंगलियों के पीछे की हड्डी) में फ्रैक्चर पाया गया है. डॉक्टरों के मुताबिक, उन्हें 6 से 8 हफ्तों का आराम जरूरी है. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में उन्हें मैनचेस्टर स्थित टीम होटल के बाहर मूनबूट पहने देखा गया है.
चौथे टेस्ट का दूसरा दिन: डकेट और क्रॉली की शानदार बल्लेबाज़ी से इंग्लैंड की मज़बूत वापसी
मैनचेस्टर में भारत और इंग्लैंड के बीच चल रहे चौथे टेस्ट मैच के दूसरे दिन इंग्लैंड ने बेन डकेट और ज़ैक क्रॉली की आक्रामक बल्लेबाज़ी की बदौलत मैच में मज़बूती से वापसी की. दिन का अंत इंग्लैंड के नियंत्रण में रहा, क्योंकि उन्होंने भारत की पहली पारी के जवाब में ठोस शुरुआत करते हुए तेज़ी से रन जोड़े.
बेन डकेट और ज़ैक क्रॉली ने भारत के गेंदबाज़ों पर आक्रमण करते हुए पहली ही साझेदारी में 150 रन से ज़्यादा जोड़े. दोनों बल्लेबाज़ों ने मैदान के चारों ओर स्ट्रोक्स लगाए, जिससे भारतीय गेंदबाज़ों पर दबाव बना रहा. डकेट ने अपनी अर्धशतकीय पारी में तेज़ रन बनाए, वहीं क्रॉली ने भी शुरुआत से ही आत्मविश्वास दिखाया और ऑफसाइड में बेहतरीन शॉट्स खेले. भारतीय गेंदबाज़ों, खासकर तेज़ गेंदबाज़ों को स्विंग और सीम से कोई मदद नहीं मिली.
दिन के अंत तक इंग्लैंड बिना किसी नुकसान के 190 रन तक पहुंच चुका था, जिससे वह भारत की पहली पारी के स्कोर के काफ़ी करीब पहुंच गया है. अब तीसरे दिन भारत को वापसी की सख्त ज़रूरत है, वरना यह मैच इंग्लैंड की ओर झुक सकता है.
धर्मस्थल: सामूहिक कब्रों की जांच में जुटी SIT में 20 और अफसर शामिल, कोर्ट का मीडिया को 8,800 से अधिक रिपोर्ट हटाने का आदेश
देशभिमानी की रिपोर्ट है कि कर्नाटक सरकार ने दक्षिण कन्नड़ ज़िले के प्रसिद्ध मंदिर नगर धर्मस्थल में सामने आई सामूहिक कब्रों की ढंकने की कथित घटना की जांच को और तेज़ कर दिया है. यह मामला राज्य की सीमाओं से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है, जहां एक ओर मीडिया पर कानूनी रोक लगाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
कुछ दिन पहले, एक सफाईकर्मी ने चौंकाने वाला दावा किया कि धर्मस्थल के आसपास कई पुरुषों और महिलाओं के शवों को गुप्त रूप से दफनाया गया है. इस खुलासे के बाद राज्य सरकार ने इस मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था, जिसे अब और 20 पुलिस अधिकारियों के साथ मजबूत किया गया है. ये अधिकारी उडुपी, उत्तर कन्नड़ और चिक्कमगलुरु जिलों से लिए गए हैं.
पहले से गठित चार सदस्यीय IPS नेतृत्व वाली टीम की अगुवाई डीजीपी प्रणब मोहंती कर रहे हैं, हालांकि रिपोर्टों के अनुसार शुरुआती टीम के दो सदस्यों ने जांच से हटने की इच्छा जाहिर की है.
इस बीच, धर्मस्थल मंदिर ट्रस्ट ने बेंगलुरु सिटी सिविल सेशन्स कोर्ट से एक व्यापक "गैग ऑर्डर" (प्रकाशन पर प्रतिबंध) हासिल किया है. जज विजय कुमार राय द्वारा जारी इस आदेश के अनुसार ट्रस्ट के खिलाफ किसी भी "मानहानिपूर्ण" सामग्री को प्रकाशित करने पर रोक लगाई गई है. 8,842 इंटरनेट लिंक हटाने के निर्देश भी दिए गए हैं. यह आदेश 390 मीडिया संस्थाओं, यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया मंचों (जैसे Reddit) को प्रभावित करता है. आदेश उन मीडिया संस्थानों पर भी लागू होता है जिनका नाम नहीं लिया गया है. यह आगामी आदेश तक लागू रहेगा.
यह मुकदमा हरशेंद्र कुमार ने दायर किया है, जो श्री मंजुनाथस्वामी मंदिर संस्थानों के सचिव हैं और धर्मस्थल धर्माधिकारी डी. वीरेंद्र हेगड़े के भाई भी हैं. इस मीडिया प्रतिबंध को लेकर कई पत्रकारों, एक्टिविस्टों और आम नागरिकों में गुस्सा है. राज्य भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. एक यूट्यूब चैनल "थर्ड आई" ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें ट्रस्ट को पत्रकारों पर मानहानि के मुकदमे करने से रोके जाने की मांग की गई है. यह भी कहा गया है कि किसी भी गैग ऑर्डर को तथ्यों की जांच के बाद ही लागू किया जाए. कानूनी रिपोर्टिंग को मानहानि न माना जाए. लेकिन बुधवार को, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सुनने से इनकार कर दिया. मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अगुवाई वाली पीठ ने पूछा कि याचिकाकर्ता ने पहले हाईकोर्ट का रुख क्यों नहीं किया? सीजेआई ने कहा, “पहले हाईकोर्ट जाइए,” और याचिका खारिज कर दी.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.